इलेक्ट्रिकल साक्षात्कार प्रश्न और उत्तर ( Electrical Interview Questions & Answers )

इलेक्ट्रिकल साक्षात्कार प्रश्न और उत्तर( Electrical Interview Questions & Answers )

1. यदि मैं एक संधारित्र को जनरेटर लोड से जोड़ दूं तो क्या होगा?

Ans.  

एक संधारित्र (capacitor) को जनरेटर (generator) लोड से जोड़ने पर कई चीजें हो सकती हैं, जो संधारित्र के प्रकार, आकार और कनेक्शन की स्थिति पर निर्भर करती हैं।

  • पावर फैक्टर सुधार (Power Factor Correction): यदि जनरेटर पर प्रेरक (inductive) लोड (जैसे मोटरें) अधिक है, तो संधारित्र को समानांतर (parallel) में जोड़ने से पावर फैक्टर में सुधार हो सकता है। यह जनरेटर से खींची गई कुल धारा को कम करता है, जिससे जनरेटर अधिक सक्रिय शक्ति (active power) प्रदान कर सकता है और उसकी दक्षता (efficiency) बढ़ जाती है।
  • प्रतिक्रियाशील शक्ति विनिमय (Reactive Power Exchange): संधारित्र अग्रणी (leading) प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान करता है।
    • ​यह प्रेरक लोड की पिछड़ने वाली (lagging) प्रतिक्रियाशील शक्ति की भरपाई करता है।
    • ​यदि संधारित्र की क्षमता लोड की आवश्यकता से अधिक है, तो यह अति-सुधार (over-correction) कर सकता है, जिससे जनरेटर पर अग्रणी प्रतिक्रियाशील लोड आ सकता है।
  • वोल्टेज अस्थिरता और स्पाइक्स (Voltage Instability and Spikes): अत्यधिक संधारित्र क्षमता या बिना लोड वाले जनरेटर से संधारित्र को जोड़ने पर ओवरवोल्टेज (overvoltage) की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिसे स्व-उत्तेजन (self-excitation) कहा जाता है। इससे संवेदनशील उपकरण खराब हो सकते हैं और जनरेटर की वोल्टेज नियंत्रण प्रणाली (AVR) विफल हो सकती है।
  • हार्मोनिक विरूपण (Harmonic Distortion): यदि सिस्टम में गैर-रेखीय लोड हैं, तो संधारित्र उनके साथ इंटरैक्ट करके हार्मोनिक विरूपण को बढ़ा सकता है, जिससे बिजली की गुणवत्ता खराब हो सकती है।
  • संधारित्र का चार्ज और डिस्चार्ज (Charging and Discharging): यदि संधारित्र पहले से चार्ज नहीं है, तो वह जनरेटर के आउटपुट से ऊर्जा संग्रहित करेगा। यदि उसका वोल्टेज जनरेटर से अधिक है, तो वह लोड या जनरेटर में अपनी ऊर्जा डिस्चार्ज कर सकता है।

संक्षेप में, 

उचित आकार और नियंत्रित संधारित्र बैंक का उपयोग जनरेटर पर पावर फैक्टर को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है, लेकिन अत्यधिक संधारित्र क्षमता गंभीर वोल्टेज अस्थिरता और क्षति का कारण बन सकती है।



2. संधारित्र केवल AC पर ही क्यों काम करता है?

Ans.  

संधारित्र को मुख्यतः AC (प्रत्यावर्ती धारा) में ही काम करने वाला माना जाता है क्योंकि यह DC (दिष्ट धारा) को रोक देता है (Block), जबकि AC को अपने में से गुजरने देता है (Pass)

​यह अंतर मुख्य रूप से संधारित्र के सिद्धांत और आवृत्ति (Frequency) पर निर्भर करता है।

​1. DC (दिष्ट धारा) के साथ व्यवहार

​जब संधारित्र को DC सप्लाई से जोड़ा जाता है:

  1. चार्जिंग (Charging): शुरुआत में, संधारित्र की प्लेटें चार्ज होना शुरू होती हैं। एक प्लेट पर धनात्मक आवेश और दूसरी पर ऋणात्मक आवेश जमा होता है।
  2. खुला परिपथ (Open Circuit): एक बार जब संधारित्र पूरी तरह से चार्ज हो जाता है, तो इसकी प्लेटों के पार का वोल्टेज सप्लाई वोल्टेज के बराबर हो जाता है।
  3. धारा का रुकना: चूँकि DC का वोल्टेज और ध्रुवीयता (polarity) स्थिर रहती है, इसलिए आवेशित होने के बाद संधारित्र की प्लेटों के बीच कोई और धारा प्रवाह नहीं होता। यह एक खुले परिपथ (Open Circuit) की तरह व्यवहार करता है।
  4. धारितीय प्रतिघात (X_C): DC के लिए आवृत्ति (f) शून्य होती है (f=0)। संधारित्र का प्रतिरोध, जिसे धारितीय प्रतिघात (X_C) कहते हैं, इस सूत्र से दिया जाता है: X_C = {1}{2pi fC} चूँकि f=0, इसलिए X_C अनंत (infty) हो जाता है। अनंत प्रतिरोध का अर्थ है कि संधारित्र DC धारा के मार्ग को अवरुद्ध (block) कर देता है।

​2. AC (प्रत्यावर्ती धारा) के साथ व्यवहार

​जब संधारित्र को AC सप्लाई से जोड़ा जाता है:

  1. निरंतर चार्ज/डिस्चार्ज: AC में वोल्टेज की ध्रुवीयता (polarity) और परिमाण लगातार बदलता रहता है (एक चक्र में धनात्मक से ऋणात्मक और फिर वापस)।
  2. धारा प्रवाह: इस निरंतर बदलाव के कारण, संधारित्र की प्लेटें लगातार चार्ज और डिस्चार्ज होती रहती हैं। यद्यपि प्लेटों के बीच का कुचालक (dielectric) वास्तविक धारा को गुजरने नहीं देता है, लेकिन परिपथ में धारा लगातार बहती हुई महसूस होती है, जिसे विस्थापन धारा (Displacement Current) के रूप में समझा जा सकता है।
  3. धारितीय प्रतिघात (X_C): AC की आवृत्ति (f) परिमित (finite) होती है (जैसे भारत में 50{ Hz})। X_C = {1}{2pi fC} f का एक निश्चित मान होने के कारण X_C का मान परिमित होता है, जिससे संधारित्र AC धारा को गुजरने देता है।

संक्षेप में, 

संधारित्र को काम करने के लिए वोल्टेज में निरंतर परिवर्तन की आवश्यकता होती है, जो केवल AC ही प्रदान करता है।



3. सर्किट ब्रेकर के कार्य सिद्धांत की व्याख्या करें?

Ans.

सर्किट ब्रेकर (Circuit Breaker) एक स्वचालित विद्युत स्विच है जिसे किसी विद्युत परिपथ को ओवरलोड या शॉर्ट सर्किट के कारण होने वाले नुकसान से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह सुरक्षा गार्ड की तरह काम करता है जो गलती (Fault) होने पर तुरंत सर्किट को तोड़ देता है।

​फ्यूज के विपरीत, सर्किट ब्रेकर को गलती ठीक होने के बाद रीसेट किया जा सकता है।

​सर्किट ब्रेकर का कार्य सिद्धांत

​सर्किट ब्रेकर मुख्य रूप से थर्मल-मैग्नेटिक ट्रिपिंग (Thermal-Magnetic Tripping) सिद्धांत पर काम करता है, जो दो मुख्य प्रकार की सुरक्षा प्रदान करता है:

​1. ओवरलोड सुरक्षा (थर्मल ट्रिपिंग)

​यह धीमे, लेकिन लगातार ओवरकरंट की स्थिति में सर्किट को बचाता है, जो तारों को गर्म करके आग लगने का खतरा पैदा कर सकता है।

  • द्विधात्विक पट्टी (Bimetallic Strip): सर्किट ब्रेकर के अंदर एक द्विधात्विक पट्टी (दो अलग-अलग धातुओं से बनी पट्टी) होती है, जो सामान्य धारा को वहन करती है।
  • ताप प्रतिक्रिया: जब लंबे समय तक अधिभार (Overload) के कारण सर्किट में धारा सुरक्षित सीमा से थोड़ी अधिक प्रवाहित होती है, तो यह पट्टी धीरे-धीरे गर्म हो जाती है।
  • झुकना और ट्रिपिंग: दो धातुओं के अलग-अलग ताप विस्तार गुणांक होने के कारण, गर्म होने पर पट्टी एक तरफ झुक जाती है। यह झुकाव एक यांत्रिक लीवर (Trip Mechanism) को धक्का देता है, जिससे ब्रेकर के संपर्क (Contacts) खुल जाते हैं और बिजली का प्रवाह तुरंत रुक जाता है।

​2. शॉर्ट सर्किट सुरक्षा (मैग्नेटिक ट्रिपिंग)

​यह अचानक, अत्यधिक और खतरनाक रूप से उच्च करंट (शॉर्ट सर्किट) की स्थिति में सर्किट को बचाता है।

  • विद्युत चुम्बक (Electromagnet): ब्रेकर के अंदर एक तांबे की कॉइल (Coil) होती है, जो मुख्य सर्किट के साथ श्रृंखला (Series) में जुड़ी होती है।
  • चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण: जब एक शॉर्ट सर्किट होता है, तो धारा का मान अचानक बहुत अधिक बढ़ जाता है (रेटेड करंट का 10-12 गुना)।
  • तीव्र क्रिया: यह अत्यधिक धारा कॉइल के चारों ओर एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। यह चुंबकीय क्षेत्र तुरंत एक छोटे से लोहे के आर्मेचर (Armature) को खींचता है।
  • ट्रिपिंग: आर्मेचर का खिंचाव सीधे ट्रिप मैकेनिज्म को सक्रिय करता है, जिससे संपर्क तत्काल खुल जाते हैं और बिजली का प्रवाह तुरंत रुक जाता है। यह प्रतिक्रिया अधिभार सुरक्षा की तुलना में बहुत तेज होती है।

​आर्क शमन (Arc Extinction)

​जब ब्रेकर के संपर्क उच्च धारा को तोड़ते हुए खुलते हैं, तो उनके बीच एक विद्युत चाप (Electric Arc) उत्पन्न होता है। यदि इस आर्क को तुरंत नहीं बुझाया गया, तो यह ब्रेकर और पूरे सिस्टम को नुकसान पहुंचा सकता है।

  • चाप शमन प्रणाली: सर्किट ब्रेकर में एक आर्क च्यूट (Arc Chute) होता है, जो धातु की अलग-अलग समानांतर प्लेटों का एक ढेर होता है।
  • बुझाने का सिद्धांत: जब चाप इसमें प्रवेश करता है, तो यह कई छोटे चापों में विभाजित हो जाता है, जिससे यह तेजी से ठंडा होता है। चाप को खींचकर (लंबा करके) और ठंडा करके, आर्क गैप की ढांकता हुआ शक्ति बहाल हो जाती है, और आर्क जल्दी से बुझ जाता है।



4.  शीतलन प्रणाली ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते हैं?

Ans. 

ट्रांसफार्मर शीतलन प्रणाली को मुख्य रूप से शीतलन माध्यम और परिसंचरण की विधि के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

​शीतलन माध्यम के आधार पर, ट्रांसफार्मर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:

  1. शुष्क प्रकार (Dry Type) ट्रांसफार्मर: ये शीतलन के लिए वायु (Air) का उपयोग करते हैं।
  2. तेल निमज्जित प्रकार (Oil Immersed Type) ट्रांसफार्मर: ये शीतलन के लिए तेल (आमतौर पर खनिज तेल) का उपयोग करते हैं।

​तेल निमज्जित ट्रांसफार्मर में, शीतलन के तरीके को और अधिक विशिष्ट बनाने के लिए दो अक्षरों के कोड का उपयोग किया जाता है:

  • ​पहला अक्षर शीतलन माध्यम के प्रकार (जैसे तेल या वायु) को दर्शाता है।
  • ​दूसरा अक्षर परिसंचरण की विधि (जैसे प्राकृतिक या मजबूर) को दर्शाता है।

​प्रमुख शीतलन प्रणाली के प्रकार

​शीतलन प्रणाली के सबसे आम प्रकार निम्नलिखित हैं, जिनमें से प्रत्येक का उपयोग ट्रांसफार्मर की क्षमता और परिचालन आवश्यकताओं पर निर्भर करता है:


ट्रांसफार्मर शीतलन प्रणाली को मुख्य रूप से शीतलन माध्यम और परिसंचरण की विधि के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

​शीतलन माध्यम के आधार पर, ट्रांसफार्मर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:

  1. शुष्क प्रकार (Dry Type) ट्रांसफार्मर: ये शीतलन के लिए वायु (Air) का उपयोग करते हैं।
  2. तेल निमज्जित प्रकार (Oil Immersed Type) ट्रांसफार्मर: ये शीतलन के लिए तेल (आमतौर पर खनिज तेल) का उपयोग करते हैं।

​तेल निमज्जित ट्रांसफार्मर में, शीतलन के तरीके को और अधिक विशिष्ट बनाने के लिए दो अक्षरों के कोड का उपयोग किया जाता है:

  • ​पहला अक्षर शीतलन माध्यम के प्रकार (जैसे तेल या वायु) को दर्शाता है।
  • ​दूसरा अक्षर परिसंचरण की विधि (जैसे प्राकृतिक या मजबूर) को दर्शाता है।

​प्रमुख शीतलन प्रणाली के प्रकार

​शीतलन प्रणाली के सबसे आम प्रकार निम्नलिखित हैं, जिनमें से प्रत्येक का उपयोग ट्रांसफार्मर की क्षमता और परिचालन आवश्यकताओं पर निर्भर करता है:

ट्रांसफार्मर शीतलन प्रणाली को मुख्य रूप से शीतलन माध्यम और परिसंचरण की विधि के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

​शीतलन माध्यम के आधार पर, ट्रांसफार्मर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:

  1. शुष्क प्रकार (Dry Type) ट्रांसफार्मर: ये शीतलन के लिए वायु (Air) का उपयोग करते हैं।
  2. तेल निमज्जित प्रकार (Oil Immersed Type) ट्रांसफार्मर: ये शीतलन के लिए तेल (आमतौर पर खनिज तेल) का उपयोग करते हैं।

​तेल निमज्जित ट्रांसफार्मर में, शीतलन के तरीके को और अधिक विशिष्ट बनाने के लिए दो अक्षरों के कोड का उपयोग किया जाता है:

  • ​पहला अक्षर शीतलन माध्यम के प्रकार (जैसे तेल या वायु) को दर्शाता है।
  • ​दूसरा अक्षर परिसंचरण की विधि (जैसे प्राकृतिक या मजबूर) को दर्शाता है।

​प्रमुख शीतलन प्रणाली के प्रकार

​शीतलन प्रणाली के सबसे आम प्रकार निम्नलिखित हैं, जिनमें से प्रत्येक का उपयोग ट्रांसफार्मर की क्षमता और परिचालन आवश्यकताओं पर निर्भर करता है:

कोड

पूरा नाम (हिंदी)

परिसंचरण की विधि

वर्णन

ONAN

तेल प्राकृतिक वायु प्राकृतिक

प्राकृतिक

तेल का प्राकृतिक संवहन और फिर हवा द्वारा प्राकृतिक संवहन द्वारा गर्मी का अपव्यय। (छोटे और मध्यम क्षमता वाले ट्रांसफार्मर के लिए उपयोग किया जाता है)

ONAF

तेल प्राकृतिक वायु बलपूर्वक

प्राकृतिक (तेल), बलपूर्वक (वायु)

तेल का प्राकृतिक संवहन, लेकिन गर्मी को तेजी से हटाने के लिए रेडिएटर (radiator) पर पंखों (Fans) का उपयोग किया जाता है।

OFAF

तेल बलपूर्वक वायु बलपूर्वक

बलपूर्वक

पंप (Pump) का उपयोग करके तेल को जबरन ठंडा करने के लिए रेडिएटर/कूलर में परिचालित किया जाता है, और पंखों का उपयोग करके रेडिएटर को ठंडा किया जाता है। (उच्च क्षमता वाले ट्रांसफार्मर के लिए)

OFWF

तेल बलपूर्वक जल बलपूर्वक

बलपूर्वक

पंप का उपयोग करके तेल को जबरन परिचालित किया जाता है और पानी के कूलर द्वारा ठंडा किया जाता है। (बहुत बड़े ट्रांसफार्मर के लिए जहां पानी आसानी से उपलब्ध हो)

AN

वायु प्राकृतिक

प्राकृतिक

शुष्क प्रकार के ट्रांसफार्मर में केवल प्राकृतिक वायु संवहन द्वारा ठंडा करना। (कम क्षमता वाले शुष्क प्रकार के लिए)

AF

वायु बलपूर्वक

बलपूर्वक

शुष्क प्रकार के ट्रांसफार्मर में पंखों का उपयोग करके जबरन वायु संचलन द्वारा ठंडा करना। (मध्यम क्षमता वाले शुष्क प्रकार के लिए)




5.  सर्किट ब्रेकर में एंटी-पंपिंग का कार्य क्या है?

Ans. 

सर्किट ब्रेकर में एंटी-पंपिंग का मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना है कि क्लोजिंग कमांड (बंद होने का आदेश) लगातार मिलता रहे, तब भी ब्रेकर केवल एक बार ही बंद (Close) हो। यह सर्किट ब्रेकर को बार-बार और अनावश्यक रूप से खुलने (Trip) और बंद होने (Close) से बचाता है।

​यह सुरक्षा विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण होती है जब:

  1. फॉल्ट (Fault) मौजूद हो: यदि सिस्टम में कोई खराबी (जैसे शॉर्ट सर्किट) मौजूद है, तो प्रोटेक्शन रिले (Protection Relay) ब्रेकर को ट्रिप (Trip) कर देगा। यदि ऑपरेटर ने क्लोजिंग स्विच को लगातार दबाकर रखा है, या स्विच में कोई खराबी है, तो ट्रिपिंग के तुरंत बाद क्लोजिंग कमांड फिर से ब्रेकर को बंद करने की कोशिश करेगी, और ब्रेकर फिर ट्रिप हो जाएगा। यह बार-बार होने वाला क्लोज-ट्रिप-क्लोज-ट्रिप चक्र "पंपिंग" कहलाता है।
  2. क्लोजिंग कॉइल की सुरक्षा: लगातार पंपिंग से ब्रेकर की क्लोजिंग कॉइल (Closing Coil) और मैकेनिकल मैकेनिज्म पर अत्यधिक तनाव पड़ता है, जिससे वे जल्दी खराब हो सकते हैं।

​एंटी-पंपिंग रिले यह सुनिश्चित करता है कि जब ब्रेकर एक बार बंद हो जाए, तो वह क्लोजिंग कॉइल की सप्लाई को काट दे, भले ही ऑपरेटर ने क्लोजिंग बटन दबाए रखा हो, जिससे एक ही क्लोजिंग कमांड के लिए मल्टीपल क्लोजिंग ऑपरेशन को रोका जा सके।



6. स्टेपर मोटर क्या है? इसका उपयोग क्या है?

Ans.   

स्टेपर मोटर एक ब्रशलेस DC इलेक्ट्रिक मोटर है जिसका घूर्णन (Rotation) छोटे, सटीक और दोहराए जाने वाले चरणों (स्टेप्स/Steps) में होता है। इसे पल्स मोटर या स्टेप मोटर भी कहा जाता है।

​स्टेपर मोटर का कार्य

​यह मोटर अपनी आंतरिक संरचना (स्टेटर में इलेक्ट्रोमैग्नेट्स और रोटर में स्थायी चुंबक या सॉफ्ट आयरन) के कारण काम करती है।

  1. पल्स-आधारित नियंत्रण: मोटर को घुमाने के लिए इसे कंट्रोलर से पल्स कमांड सिग्नल (Pulse Command Signal) दिए जाते हैं।
  2. स्टेपर मूवमेंट: प्रत्येक विद्युत पल्स (Electrical Pulse) मोटर को एक निश्चित कोण या "स्टेप" से घुमाता है।
    • ​उदाहरण के लिए, यदि किसी मोटर का स्टेप एंगल 1.8^\circ है, तो इसे 360^\circ का एक पूरा चक्कर पूरा करने के लिए 200 पल्स की आवश्यकता होगी।
  3. ओपन-लूप कंट्रोल: इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बिना किसी फीडबैक सेंसर (जैसे एनकोडर) के भी अपनी स्थिति को सटीक रूप से नियंत्रित कर सकती है। नियंत्रक केवल पल्स की संख्या गिनकर मोटर की कोणीय स्थिति को जान सकता है।

​स्टेपर मोटर का उपयोग

​स्टेपर मोटर का प्राथमिक उपयोग उन प्रणालियों में होता है जहाँ सटीक स्थिति नियंत्रण और सटीक गति नियंत्रण (Accurate Speed Control) की आवश्यकता होती है।

​इसके प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं:

क्षेत्र

उपयोग के उदाहरण

विनिर्माण और स्वचालन

3D प्रिंटर (XYZ अक्षों की सटीक गति), CNC मशीनें, पिक एंड प्लेस मशीनें, और लेज़र कटिंग मशीनें।

उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स

स्कैनर और फैक्स मशीनें (स्कैनिंग हेड और पेपर फीड को नियंत्रित करने के लिए), डिस्क ड्राइव।

रोबोटिक्स

रोबोटिक आर्म्स और ग्रिपर्स की गति को नियंत्रित करने के लिए।

चिकित्सा उपकरण

तरल पदार्थों को नियंत्रित करने वाले सिरिंज पंप और स्कैनर।

ऑटोमोटिव

क्रूज़ नियंत्रण प्रणाली और डिजिटल इंजन नियंत्रण प्रणाली में।

कैमरा उपकरण

स्वचालित कैमरा लेंस फोकस तंत्र।




7.  मुझे सी.टी. और पी.टी. के बारे में विस्तार से       बताइये?

Ans.   

सी.टी. (CT) और पी.टी. (PT) को सामूहिक रूप से इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफार्मर (Instrument Transformer) कहा जाता है। इनका मुख्य उद्देश्य उच्च वोल्टेज (High Voltage) और उच्च धारा (High Current) को सुरक्षित और मापने योग्य स्तर तक कम करना है, ताकि उन्हें मानक मीटरिंग (Metering) और प्रोटेक्शन (Protection) उपकरणों से जोड़ा जा सके।

​1. सी.टी. (CT): करंट ट्रांसफार्मर

​करंट ट्रांसफार्मर (CT) एक विशेष प्रकार का ट्रांसफार्मर है जिसका उपयोग उच्च प्रत्यावर्ती धारा (High AC Current) को मापने के लिए किया जाता है।

विशेषता

विवरण

पूर्ण रूप

करंट ट्रांसफार्मर (Current Transformer), जिसे धारा ट्रांसफार्मर भी कहते हैं।

कार्य

प्राथमिक सर्किट की उच्च धारा को एक मानकीकृत, निम्न धारा (आमतौर पर 1A या 5A) तक कम करना।

कनेक्शन

यह हमेशा उस सर्किट के साथ श्रृंखला (Series) में जुड़ा होता है जिसकी धारा मापनी होती है।

संरचना

इसकी प्राथमिक वाइंडिंग (Primary Winding) में कम टर्न (Turns) होते हैं, जबकि द्वितीयक वाइंडिंग (Secondary Winding) में अधिक टर्न होते हैं।

प्रकार

यह एक स्टेप-अप (Step-Up) ट्रांसफार्मर के रूप में कार्य करता है (वोल्टेज बढ़ाता है, लेकिन धारा कम करता है)।

उपयोग

एमीटर (Ammeter), ऊर्जा मीटर और ओवरकरंट (Overcurrent) और शॉर्ट सर्किट प्रोटेक्शन रिले को सप्लाई देना।

सुरक्षा नियम

CT की द्वितीयक वाइंडिंग को कभी भी खुला (Open) नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि इससे द्वितीयक वाइंडिंग में बहुत उच्च वोल्टेज प्रेरित हो सकता है और इन्सुलेशन क्षति हो सकती है।


2. पी.टी. (PT): पोटेंशियल ट्रांसफार्मर

​पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) एक विशेष प्रकार का ट्रांसफार्मर है जिसका उपयोग उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टेज (High AC Voltage) को मापने के लिए किया जाता है।

विशेषता

विवरण

पूर्ण रूप

पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (Potential Transformer), जिसे विभव ट्रांसफार्मर या वोल्टेज ट्रांसफार्मर भी कहते हैं।

कार्य

प्राथमिक सर्किट के उच्च वोल्टेज को एक मानकीकृत, निम्न वोल्टेज (आमतौर पर 110V) तक कम करना।

कनेक्शन

यह हमेशा उस सर्किट के साथ समानांतर (Parallel) में जुड़ा होता है जिसका वोल्टेज मापना होता है।

संरचना

इसकी प्राथमिक वाइंडिंग (Primary Winding) में अधिक टर्न (Turns) होते हैं, जबकि द्वितीयक वाइंडिंग (Secondary Winding) में कम टर्न होते हैं।

प्रकार

यह एक स्टेप-डाउन (Step-Down) ट्रांसफार्मर के रूप में कार्य करता है (वोल्टेज कम करता है)।

उपयोग

वोल्टमीटर, ऊर्जा मीटर और ओवरवोल्टेज (Overvoltage) या अंडरवोल्टेज प्रोटेक्शन रिले को सप्लाई देना।

सुरक्षा नियम

PT की द्वितीयक वाइंडिंग को सुरक्षा के लिए ग्राउंड (Ground) किया जाता है।


सीटी और पीटी का महत्व

​सीटी और पीटी विद्युत प्रणालियों में सुरक्षा (Safety) और मापन सटीकता (Measurement Accuracy) सुनिश्चित करने के लिए अपरिहार्य हैं:

  • ​वे मापन उपकरणों को सीधे उच्च वोल्टेज और उच्च धारा के संपर्क में आने से बचाकर उपकरणों की सुरक्षा करते हैं।
  • ​वे उच्च शक्ति प्रणाली को मीटरिंग और प्रोटेक्शन सर्किट से अलग (Isolate) करते हैं, जिससे कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।



8. एक ट्रांसफार्मर और एक इंडक्शन मशीन है। दोनों की आपूर्ति समान है। किस उपकरण के लिए लोड धारा अधिकतम होगी? और क्यों?

Ans.      

इन दोनों उपकरणों के लिए, यदि हम समान रेटेड क्षमता (Rated Capacity) (KVA) पर तुलना करते हैं, तो इंडक्शन मशीन (प्रेरण मोटर) में लोड धारा (Load Current) अधिकतम होगी।

​यहां यह समझना आवश्यक है कि हम सामान्यतः नो-लोड करंट (No-Load Current) की तुलना करते हैं, क्योंकि ट्रांसफार्मर और इंडक्शन मोटर के नो-लोड करंट में बड़ा अंतर होता है। हालाँकि, यदि प्रश्न अधिकतम 'लोड धारा' के बारे में है, तो यह तुलना दोनों की फुल-लोड करंट (Full-Load Current) के अनुपात पर निर्भर करती है।

​यदि दोनों उपकरणों की {KVA} रेटिंग और आपूर्ति वोल्टेज समान हैं, तो उनके {Full-Load Current (}} रेटेड धारा) सैद्धांतिक रूप से लगभग समान होंगे, क्योंकि {Current} = {KVA} / {Voltage} होता है।

​परन्तु, नो-लोड (No-Load) की स्थिति में, इंडक्शन मशीन अधिक धारा लेती है, जो कि इसकी अधिकतम नो-लोड धारा होती है।

​इंडक्शन मशीन में अधिकतम धारा होने का कारण:

​प्रेरण मोटर (Induction Motor) को उच्च नो-लोड करंट की आवश्यकता होती है क्योंकि:

  1. एयर गैप (Air Gap): इंडक्शन मोटर में स्टेटर और रोटर के बीच एक एयर गैप (वायु अंतराल) होता है। हवा का रिलक्टेंस (Reluctance) लोहे के कोर की तुलना में बहुत अधिक होता है।
  2. उच्च चुम्बकीयकरण धारा: इस बड़े एयर गैप के कारण, मशीन में आवश्यक मैग्नेटिक फ्लक्स (Magnetic Flux) को स्थापित करने के लिए ट्रांसफार्मर की तुलना में बहुत अधिक मैग्नेटाइजिंग करंट की आवश्यकता होती है।
    • ट्रांसफार्मर: नो-लोड करंट रेटेड करंट का लगभग 1% से 5% होता है।
    • इंडक्शन मोटर: नो-लोड करंट रेटेड करंट का लगभग 25% से 50% तक हो सकता है।

​ट्रांसफार्मर की तुलना में:

  1. ट्रांसफार्मर: ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग के चारों ओर एक फेरोमैग्नेटिक कोर (Ferromagnetic Core) होता है, जिसका रिलक्टेंस बहुत कम होता है। इसलिए, इसे कोर में फ्लक्स स्थापित करने के लिए बहुत कम चुम्बकीयकरण धारा की आवश्यकता होती है।
  2. कार्य सिद्धांत: ट्रांसफार्मर केवल विद्युत ऊर्जा को एक स्तर से दूसरे स्तर पर स्थानांतरित करता है (स्थैतिक उपकरण), जबकि इंडक्शन मशीन विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करती है (रोटेटिंग मशीन)।

निष्कर्ष: 

{KVA} रेटिंग के आधार पर दोनों का फुल-लोड करंट लगभग समान होगा। लेकिन यदि हम दोनों के नो-लोड करंट या शुरुआती करंट की तुलना करें, तो इंडक्शन मशीन एयर गैप के कारण आवश्यक उच्च मैग्नेटाइजिंग करंट के कारण, ट्रांसफार्मर की तुलना में काफी अधिक धारा खींचती है।



9. पावर फैक्टर क्या है? क्या यह उच्च या निम्न होना चाहिए? क्यों?

Ans.     

पावर फैक्टर क्या है?

​पावर फैक्टर ({PF}) किसी {AC} विद्युत परिपथ में वास्तविक शक्ति (Real Power) ({kW}) और आभासी शक्ति (Apparent Power) ({kVA}) का अनुपात होता है।

{Power Factor (PF)} = {{वास्तविक शक्ति (Real Power)}}{{आभासी शक्ति (Apparent Power)}} = {{kW}}{{kVA}}

यह अनुपात बताता है कि कुल आपूर्ति की गई विद्युत शक्ति ({kVA}) का कितना हिस्सा वास्तव में उपयोगी कार्य (जैसे प्रकाश या यांत्रिक ऊर्जा) करने में ({kW}) परिवर्तित हो रहा है।

​तकनीकी रूप से, पावर फैक्टर वोल्टेज और करंट की तरंगों के बीच कला कोण (phi) के कोसाइन ({cosine}) मान के बराबर होता है:{PF} = cos(phi)

​इसका मान हमेशा 0 और 1 के बीच होता है।

​क्या यह उच्च या निम्न होना चाहिए? और क्यों?

पावर फैक्टर हमेशा उच्च (High) होना चाहिए, और आदर्श रूप से 1 ({Unity}) होना चाहिए।

उच्च पावर फैक्टर क्यों अच्छा है (1 के करीब):

कारण

प्रभाव

कम करंट खींचना

एक उच्च {PF} का मतलब है कि एक ही मात्रा में उपयोगी शक्ति ({kW}) प्रदान करने के लिए उपकरण को आपूर्ति से कम कुल करंट खींचना पड़ता है। {Current} 1/{PF}

उपकरण क्षमता का बेहतर उपयोग

जनरेटर, ट्रांसफार्मर और लाइनें {kVA} (आभासी शक्ति) के आधार पर रेटेड होती हैं। उच्च {PF} पर, {kW} का मान {kVA} के करीब होता है, जिसका अर्थ है कि उपकरण अपनी अधिकतम क्षमता के करीब उपयोगी कार्य ({kW}) प्रदान कर रहा है।

कम लाइन हानि ({I}^2{R} Loss)

कम करंट का मतलब है कि ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन लाइनों में {I}^2{R} (कॉपर लॉस) कम होगा, जिससे सिस्टम की दक्षता (Efficiency) बढ़ जाती है।

वोल्टेज रेगुलेशन में सुधार

लाइनों में कम करंट बहने से वोल्टेज ड्रॉप कम होता है, जिससे उपभोक्ता को अधिक स्थिर और सही वोल्टेज मिलता है।

पेनाल्टी से बचाव

बिजली आपूर्तिकर्ता आमतौर पर खराब (कम) पावर फैक्टर वाले औद्योगिक उपभोक्ताओं पर पेनाल्टी (जुर्माना) लगाते हैं।

निम्न पावर फैक्टर का अर्थ

​जब पावर फैक्टर निम्न (जैसे 0.7 या 0.8 लैगिंग) होता है, तो इसका मतलब है कि सिस्टम में रिएक्टिव पावर ({kVAR}) की मात्रा अधिक है। यह रिएक्टिव पावर चुंबकीय क्षेत्र बनाने के लिए आवश्यक है (जैसे मोटर और ट्रांसफार्मर के लिए), लेकिन यह उपयोगी कार्य नहीं करती है, फिर भी इसे ट्रांसमिशन लाइनों में प्रवाहित करना पड़ता है।

  • ​निम्न {PF} के कारण, सिस्टम को समान {kW} के लिए अधिक {kVA} (यानी अधिक कुल करंट) की आपूर्ति करनी पड़ती है।
  • ​अधिक करंट के कारण लाइन लॉस बढ़ जाता है, जिससे बिजली कंपनी और उपभोक्ता दोनों को नुकसान होता है।

​उच्च पावर फैक्टर विद्युत प्रणाली के कुशल (Efficient) और किफायती (Economical) संचालन के लिए महत्वपूर्ण है।




10. आइसोलेटर और सर्किट ब्रेकर के बीच क्या अंतर है?

Ans.    

आइसोलेटर (Isolator) और सर्किट ब्रेकर (Circuit Breaker) दोनों विद्युत प्रणालियों में सर्किट को तोड़ने के लिए उपयोग किए जाते हैं, लेकिन उनके उद्देश्य, कार्य और ऑपरेटिंग स्थितियाँ पूरी तरह से अलग हैं।

​यहाँ उनके बीच मुख्य अंतरों का सारांश दिया गया है:

विशेषता (Feature)

सर्किट ब्रेकर (Circuit Breaker)

आइसोलेटर / डिस्कनेक्टर (Isolator / Disconnector)

मुख्य उद्देश्य

सर्किट और उपकरणों को फॉल्ट (दोष) (जैसे ओवरलोड या शॉर्ट सर्किट) से सुरक्षित रखना।

सुरक्षित रखरखाव के लिए सर्किट के एक हिस्से को पूरी तरह से अलग करना।

ऑपरेटिंग स्थिति

ऑन-लोड डिवाइस (On-Load Device): इसे सर्किट में करंट बहने पर भी संचालित (चालू/बंद) किया जा सकता है।

ऑफ-लोड डिवाइस (Off-Load Device): इसे केवल तभी संचालित किया जा सकता है जब सर्किट में कोई करंट न बह रहा हो (नो-लोड)।

ऑपरेशन मोड

स्वचालित (Automatic) और मैनुअल (Manual) दोनों। फॉल्ट होने पर यह अपने आप ट्रिप हो जाता है।

केवल मैनुअल (Manual)। इसे हाथ से या दूर से ही संचालित किया जाता है; इसमें कोई स्वचालित ट्रिपिंग तंत्र नहीं होता है।

आर्क शमन (Arc Quenching)

आर्क शमन प्रणाली (जैसे \text{SF}_6, तेल, वैक्यूम) मौजूद होती है, ताकि करंट काटते समय बनने वाली चाप (Arc) को सुरक्षित रूप से बुझाया जा सके।

कोई आर्क शमन प्रणाली नहीं। करंट को काटने की कोशिश करने पर एक बड़ा और खतरनाक चाप बन सकता है।

सुरक्षा भूमिका

प्रोटेक्शन डिवाइस (Protection Device)। यह सिस्टम में दोष का पता लगाता है और उसे दूर करता है।

सेफ्टी/मेंटेनेंस डिवाइस (Safety/Maintenance Device)। यह यह सुनिश्चित करता है कि मरम्मत के दौरान सर्किट में कोई करंट न हो।

उपयोग का क्रम

आइसोलेटर को हमेशा सर्किट ब्रेकर के ट्रिप होने के बाद ही खोला जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई करंट नहीं बह रहा है।

सर्किट को चालू/बंद करने के लिए पहले सर्किट ब्रेकर का उपयोग किया जाता है।

दृश्य पुष्टि

संपर्क (Contacts) एक बंद आवरण (Casing) के अंदर होते हैं, इसलिए सर्किट टूटा है या नहीं, इसकी दृश्य पुष्टि नहीं होती।

संपर्क खुले में दिखाई देते हैं, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि सर्किट में भौतिक रूप से स्पष्ट अलगाव (Physical Isolation) हो गया है।


संक्षेप में:

सर्किट ब्रेकर एक सुरक्षा उपकरण है जो ऑन-लोड पर काम करता है और स्वचालित रूप से गलती को दूर करता है।

आइसोलेटर एक रखरखाव उपकरण है जो केवल ऑफ-लोड पर काम करता है और सर्किट ब्रेकर के खुले होने की दृश्य पुष्टि प्रदान करके सुरक्षित कार्य क्षेत्र बनाता है।



11. बुचोलज़ रिले क्या है और ट्रांसफार्मर में इसका महत्व क्या है?

Ans.   

बुचोलज़ रिले (Buchholz Relay) एक सुरक्षा उपकरण है जिसका उपयोग तेल-भरे बिजली ट्रांसफार्मर और रिएक्टरों में किया जाता है, जो कंजरवेटर टैंक (ओवरहेड तेल जलाशय) से सुसज्जित होते हैं। यह ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक और कंजरवेटर टैंक को जोड़ने वाली पाइपलाइन में स्थापित होता है।

​यह रिले गैस-संचालित होती है और ट्रांसफार्मर के अंदर होने वाले आंतरिक दोषों का पता लगाती है।

बुचोलज़ रिले का महत्व

​बुचोलज़ रिले का ट्रांसफार्मर में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है, खासकर बड़े ट्रांसफार्मर (आमतौर पर 500 kVA से अधिक रेटिंग वाले) के लिए।

  • आंतरिक दोषों से सुरक्षा: यह ट्रांसफार्मर को वाइंडिंग में शॉर्ट सर्किट, कोर फॉल्ट, इंटर-टर्न फॉल्ट और इंसुलेशन फेलियर जैसे आंतरिक दोषों से बचाता है।
  • गैस संचयन का पता लगाना: जब ट्रांसफार्मर के अंदर कोई दोष उत्पन्न होता है, तो दोष के कारण उत्पन्न गर्मी इन्सुलेटिंग तेल को विघटित (decompose) करती है, जिससे गैसें बनती हैं। यह रिले इन गैसों के छोटे संचय (minor faults) का पता लगाकर अलार्म बजाती है।
  • तेज तेल प्रवाह का पता लगाना: जब कोई बड़ा दोष (major fault) होता है, तो तेल का प्रवाह संरक्षक की ओर तेजी से होता है। यह रिले तेल के इस तेज प्रवाह का पता लगाकर तुरंत सर्किट ब्रेकर को ट्रिप करने का संकेत देती है, जिससे ट्रांसफार्मर को बिजली आपूर्ति से अलग कर दिया जाता है और गंभीर क्षति होने से पहले रोका जा सकता है।
  • नुकसान को कम करना: यह दोष के शुरुआती चरण में ही उसका पता लगाकर अलार्म दे देता है, जिससे समय रहते कार्रवाई की जा सकती है और ट्रांसफार्मर को होने वाले बड़े नुकसान और मरम्मत की लागत को कम किया जा सकता है।

संक्षेप में, 

यह रिले ट्रांसफार्मर के अंदर की समस्याओं को पहचानने और प्रतिक्रिया करने के लिए एक केंद्रीय सुरक्षा तंत्र के रूप में कार्य करता है।



12. एसएफ6 सर्किट ब्रेकर क्या है?

Ans.   

एसएफ6 (SF6) सर्किट ब्रेकर एक प्रकार का सर्किट ब्रेकर (परिपथ वियोजक) है जो विद्युत प्रणालियों में आर्क (Arc) बुझाने और इन्सुलेशन (विद्युत रोधन) के लिए माध्यम के रूप में सल्फर हेक्साफ्लोराइड (Sulphur Hexafluoride - SF6) नामक गैस का उपयोग करता है।

मुख्य बिंदु:

  • SF6 गैस का उपयोग: यह रंगहीन, गंधहीन, गैर-विषाक्त और अज्वलनशील गैस है जिसमें उत्कृष्ट इन्सुलेटिंग गुण और उच्च आर्क-शमन (Arc-quenching) क्षमता होती है।
  • कार्य सिद्धांत: जब सर्किट में कोई खराबी (जैसे शॉर्ट-सर्किट) आती है और ब्रेकर खुलता है, तो संपर्कों के बीच एक विद्युत चाप (आर्क) उत्पन्न होता है। SF6 गैस अपनी उच्च ढांकता हुआ शक्ति (Dielectric Strength) और तापीय चालकता के कारण इस आर्क को तेजी से ठंडा करती है और बुझा देती है, जिससे करंट का प्रवाह बाधित हो जाता है।
  • फायदे:
    • उच्च ब्रेकिंग क्षमता: यह उच्च धाराओं को भी सुरक्षित रूप से बाधित कर सकता है।
    • तेज संचालन: आर्क बुझाने की गति बहुत तेज होती है।
    • छोटा आकार: हवा या तेल सर्किट ब्रेकर की तुलना में कॉम्पैक्ट (छोटा) डिजाइन संभव है।
    • कम रखरखाव: SF6 गैस रासायनिक रूप से स्थिर होती है, जिससे लंबा सेवा जीवन और कम रखरखाव की आवश्यकता होती है।
  • अनुप्रयोग: ये मुख्य रूप से उच्च-वोल्टेज (High-Voltage) बिजली प्रणालियों (जैसे सबस्टेशन, ट्रांसमिशन लाइन) में दोष सुरक्षा, नियंत्रण और संचालन के लिए उपयोग किए जाते हैं, आमतौर पर 35kV और उससे ऊपर के वोल्टेज स्तरों पर।
  • पर्यावरण संबंधी चिंता: SF6 गैस एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जिसका ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (GWP) बहुत अधिक होता है। इसलिए, इसके रिसाव को रोकने और गैस पुनर्प्राप्ति तकनीकों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।




13. फेरेंटिक प्रभाव क्या है?

Ans.   

फेरेंटी प्रभाव (Ferranti Effect) विद्युत पारेषण (Transmission) लाइनों में होने वाला एक प्रभाव है, जिसमें अभिग्राही सिरा (Receiving End) का वोल्टेज, प्रेषण सिरा (Sending End) के वोल्टेज से अधिक हो जाता है।

​यह प्रभाव मुख्य रूप से निम्नलिखित परिस्थितियों में देखा जाता है:

  1. हल्का भार (Light Load) या शून्य भार (No-Load) की स्थिति में।
  2. लंबी पारेषण लाइनों (Long Transmission Lines) में, जो उच्च वोल्टेज पर संचालित होती हैं।

फेरेंटी प्रभाव का कारण

​यह प्रभाव पारेषण लाइन के वितरित धारिता (Distributed Capacitance) के कारण होता है।

  1. धारिता का प्रभाव: लंबी ट्रांसमिशन लाइनें अपने कंडक्टरों के बीच और कंडक्टर तथा जमीन के बीच एक बड़ी धारिता (Capacitance) रखती हैं।
  2. चार्जिंग करंट: जब लाइन हल्के भार पर होती है या शून्य भार पर खुली होती है, तो लाइन की धारिता एक महत्वपूर्ण चार्जिंग करंट (Charging Current) खींचती है।
  3. वोल्टेज में वृद्धि: यह चार्जिंग करंट, लाइन के प्रेरकत्व (Inductance) के माध्यम से प्रवाहित होती है। प्रेरकत्व और धारिता की परस्पर क्रिया के कारण, अभिग्राही सिरे पर एक वोल्टेज ड्रॉप होता है जो प्रेषण सिरा वोल्टेज के साथ फेज (Phase) में होता है। यह वोल्टेज ड्रॉप, प्रेषण सिरा वोल्टेज में जुड़ जाता है, जिससे अभिग्राही सिरा वोल्टेज, प्रेषण सिरा वोल्टेज से अधिक हो जाता है ({V}_{{R}} > {V}_{{S}})।

संक्षेप में: 

चार्जिंग करंट का लाइन के प्रेरकत्व में बहना ही फेरेंटी प्रभाव का मूल कारण है।

प्रभाव को कम करने के उपाय

​इस अतिरिक्त वोल्टेज को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लाइन के उपकरणों (जैसे इंसुलेटर, सर्किट ब्रेकर) को नुकसान पहुंचा सकता है। इसे कम करने के लिए अभिग्राही सिरे पर शंट रिएक्टर (Shunt Reactor) का उपयोग किया जाता है। शंट रिएक्टर (जो मूल रूप से एक बड़ा इंडक्टर होता है) लाइन के कैपेसिटिव चार्जिंग करंट को अवशोषित करके वोल्टेज को सामान्य स्तर पर लाने में मदद करता है।




14. केबलों में इन्सुलेशन वोल्टेज का क्या अर्थ है? इसे समझाइए?

Ans.    

केबलों में इन्सुलेशन वोल्टेज (Insulation Voltage) का अर्थ रेटेड वोल्टेज (Rated Voltage) या वोल्टेज रेटिंग से है।

​यह वह अधिकतम वोल्टेज मान है जिसे केबल में लगी इन्सुलेशन सामग्री (जैसे PVC, XLPE, EPR) बिना किसी क्षति या ब्रेकडाउन के लंबे समय तक सुरक्षित रूप से झेल सकती है।

इसे समझिए

​केबल का मुख्य काम विद्युत ऊर्जा को एक जगह से दूसरी जगह ले जाना है। कंडक्टर के चारों ओर जो इन्सुलेशन परत होती है, वह दो मुख्य कार्य करती है:

  1. सुरक्षा (Safety): यह सुनिश्चित करती है कि कंडक्टर में बहने वाला करंट बाहर न निकले, जिससे बिजली के झटके या शॉर्ट सर्किट का खतरा न हो।
  2. पृथक्करण (Isolation): यह आस-पास के अन्य कंडक्टरों या धातु के हिस्सों से कंडक्टर को विद्युत रूप से अलग रखती है।

इन्सुलेशन वोल्टेज का महत्व:

​इन्सुलेशन वोल्टेज रेटिंग यह सुनिश्चित करती है कि केबल को उसके इच्छित विद्युत प्रणाली में सुरक्षित रूप से उपयोग किया जा सके।

केबलों में इन्सुलेशन वोल्टेज (Insulation Voltage) का अर्थ यह है कि केबल की इन्सुलेशन परत सुरक्षित रूप से अधिकतम कितना वोल्टेज झेल सकती है। इसे वोल्टेज रेटिंग भी कहते हैं।

​यह वह अधिकतम वोल्टेज है जिसे केबल के कंडक्टर और उसके आसपास के वातावरण (जैसे कि ज़मीन, या अन्य कंडक्टर) के बीच केबल का इंसुलेशन बिना ब्रेकडाउन (विद्युत भंजन) हुए झेल सकता है।

इन्सुलेशन वोल्टेज की व्याख्या

​इन्सुलेशन वोल्टेज को बेहतर ढंग से समझने के लिए निम्न बिंदुओं पर विचार करें:

​1. सुरक्षा (Safety)

​यह रेटिंग सुनिश्चित करती है कि केबल का इन्सुलेशन किसी भी परिस्थिति में बिजली का रिसाव (Current Leakage), शॉर्ट सर्किट (Short Circuit) या बिजली के झटके (Electric Shock) को रोकने के लिए पर्याप्त मजबूत है।

​2. इन्सुलेशन सामग्री (Insulation Material)

​केबल का इन्सुलेशन एक परावैद्युत पदार्थ (Dielectric Material) होता है (जैसे, XLPE, PVC, रबर या तेल से भरा कागज) जो बिजली का कुचालक होता है। इन्सुलेशन वोल्टेज रेटिंग मुख्य रूप से इस सामग्री की परावैद्युत शक्ति (Dielectric Strength) पर निर्भर करती है।

​3. ब्रेकडाउन वोल्टेज (Breakdown Voltage)

​हर इन्सुलेशन सामग्री की एक सीमा होती है। यदि उस सीमा से अधिक वोल्टेज लागू किया जाता है, तो इन्सुलेशन अपनी कुचालक (Insulating) क्षमता खो देता है और वह बिजली का चालक बन जाता है। इस बिंदु पर इन्सुलेशन 'फेल' हो जाता है, जिसे ब्रेकडाउन (Breakdown) कहा जाता है। इन्सुलेशन वोल्टेज वह सुरक्षित सीमा है जिसके अंदर केबल को संचालित किया जाना चाहिए।

​4. रेटिंग का महत्व (Importance of Rating)

​केबल को हमेशा ऐसी प्रणाली में उपयोग किया जाना चाहिए जिसका परिचालन वोल्टेज (Operating Voltage) केबल के इन्सुलेशन वोल्टेज से कम या उसके बराबर हो। उच्च वोल्टेज वाली प्रणाली में कम वोल्टेज रेटिंग वाले केबल का उपयोग करने से इन्सुलेशन जल्दी खराब हो सकता है और आग या उपकरणों को नुकसान हो सकता है।

उदाहरण के लिए,

एक केबल जिस पर 600V की रेटिंग लिखी है, उसे 600 वोल्ट या उससे कम वोल्टेज की प्रणाली के लिए डिज़ाइन किया गया है।


15. हम ट्रांसफार्मर पर 2 प्रकार की अर्थिंग क्यों करते हैं (अर्थात: बॉडी अर्थिंग और न्यूट्रल अर्थिंग, इसका कार्य क्या है। मैं 500 केवीए ट्रांसफार्मर और 380 केवीए डीजी सेट स्थापित करने जा रहा हूं, अर्थिंग का मान क्या होना चाहिए?

Ans.    
ट्रांसफार्मर और डीजी सेट जैसे उपकरणों पर दो प्रकार की अर्थिंग की जाती है: बॉडी अर्थिंग (Body Earthing) और न्यूट्रल अर्थिंग (Neutral Earthing)। दोनों का उद्देश्य अलग-अलग है और वे एक सुरक्षित विद्युत प्रणाली के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।

​1. बॉडी अर्थिंग (उपकरण अर्थिंग)

कार्य

​बॉडी अर्थिंग का मुख्य कार्य मानव सुरक्षा है।

  1. बिजली के झटके से बचाव: ट्रांसफार्मर या डीजी सेट के अंदर किसी खराबी (जैसे इन्सुलेशन फेल होना) के कारण यदि लाइव फेज तार गलती से धातु की बॉडी को छू ले, तो बॉडी पर उच्च वोल्टेज आ जाता है।
  2. फॉल्ट करंट को जमीन में भेजना: बॉडी अर्थिंग इस फॉल्ट करंट को तुरंत और सुरक्षित रूप से जमीन (पृथ्वी) में भेज देती है, जिससे उपकरण का आवरण (Body) शून्य विभव (Zero Potential) पर बना रहता है।
  3. सुरक्षा उपकरणों का संचालन: फॉल्ट करंट का यह तेज प्रवाह सर्किट ब्रेकर या फ्यूज को ट्रिप (Trip) करने के लिए पर्याप्त होता है, जिससे बिजली आपूर्ति कट जाती है और उपकरण और व्यक्ति सुरक्षित हो जाते हैं।

किसे अर्थ किया जाता है?

​ट्रांसफार्मर/डीजी सेट का बाहरी धातु आवरण (Metal Body), फ्रेम और अन्य धातु के हिस्से।

​2. न्यूट्रल अर्थिंग (सिस्टम अर्थिंग)

कार्य

​न्यूट्रल अर्थिंग का मुख्य कार्य प्रणाली की स्थिरता और उपकरणों की सुरक्षा है।

  1. न्यूट्रल पॉइंट को स्थिर करना: यह न्यूट्रल पॉइंट को स्थायी रूप से शून्य विभव (Zero Potential) पर बनाए रखता है। यह सुनिश्चित करता है कि स्वस्थ फेजों (Healthy Phases) पर वोल्टेज स्थिर और सामान्य रहे।
  2. असंतुलित वोल्टेज से बचाव: यदि लोड असंतुलित (Unbalanced) हो या किसी एक फेज में ग्राउंड फॉल्ट हो जाए, तो न्यूट्रल अर्थिंग अन्य स्वस्थ फेजों पर वोल्टेज को खतरनाक स्तर तक बढ़ने से रोकती है।
  3. फॉल्ट करंट के लिए वापसी का रास्ता: यह किसी भी फेज-टू-ग्राउंड (Phase-to-Ground) फॉल्ट की स्थिति में फॉल्ट करंट को वापस स्रोत (Source) तक जाने के लिए एक कम प्रतिरोध (Low Resistance) का रास्ता प्रदान करती है, जिससे सुरक्षा रिले तुरंत काम कर सकें।

किसे अर्थ किया जाता है?

​ट्रांसफार्मर/डीजी सेट के स्टार-पॉइंट (Star Point) पर निकले हुए न्यूट्रल टर्मिनल को।

अर्थिंग प्रतिरोध का अनुशंसित मान

​भारतीय मानक (IS) और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार, सुरक्षा और स्थिरता के लिए अर्थिंग प्रतिरोध का मान जितना कम हो उतना बेहतर माना जाता है।

उपकरण

                             अनुशंसित अधिकतम अर्थिंग प्रतिरोध मान

500 kVA ट्रांसफार्मर

                                      1.0 \Omega (ओम) से कम

380 kVA DG सेट

                                      2.0 \Omega (ओम) से कम


नोट:  

  • ​बड़े पावर स्टेशनों और सबस्टेशनों (जैसे 500 kVA ट्रांसफार्मर) के लिए आदर्श मान 0.5 \Omega से कम हो सकता है।
  • ​DG सेट आमतौर पर ट्रांसफार्मर की तुलना में 1.0 \Omega से 2.0 \Omega तक थोड़ा अधिक प्रतिरोध मान स्वीकार करते हैं, लेकिन 1.0 \Omega से कम बनाए रखना हमेशा सबसे अच्छा अभ्यास है, खासकर न्यूट्रल अर्थिंग के लिए।
  • IE नियम 1956 के अनुसार, किसी भी बड़े इंस्टॉलेशन के लिए अर्थिंग प्रतिरोध 5.0 \Omega से अधिक नहीं होना चाहिए।
  • ​उच्च क्षमता वाले उपकरणों (जैसे आपके 500 kVA ट्रांसफार्मर) के लिए, सामान्यतः दो अलग-अलग अर्थिंग पिट न्यूट्रल के लिए और दो अलग-अलग अर्थिंग पिट बॉडी के लिए प्रदान किए जाते हैं, जिन्हें आपस में जोड़ा जाता है ताकि प्रतिरोध का मान न्यूनतम हो सके।




16. एमसीबी और एमसीसीबी के बीच क्या अंतर है, इसका उपयोग कहां किया जा सकता है?

Ans.
एमसीबी (MCB) और एमसीसीबी (MCCB) दोनों ही बिजली के उपकरणों और सर्किट को ओवरलोड (Overload) और शॉर्ट सर्किट (Short Circuit) से बचाने वाले सर्किट ब्रेकर हैं, लेकिन वे क्षमता और उपयोग के मामले में भिन्न होते हैं।

​यहाँ उनके बीच मुख्य अंतर और उपयोग दिए गए हैं:

MCB और MCCB के बीच मुख्य अंतर

​MCB का अर्थ मिनिएचर सर्किट ब्रेकर (Miniature Circuit Breaker) है, जबकि MCCB का अर्थ मोल्डेड केस सर्किट ब्रेकर (Moulded Case Circuit Breaker) है।


विशेषता

MCB (मिनिएचर सर्किट ब्रेकर)

MCCB (मोल्डेड केस सर्किट ब्रेकर)

करंट रेटिंग (Current Rating)

कम (Low): आमतौर पर 6A से 100A तक।

उच्च (High): आमतौर पर 100A से 2500A तक।

ट्रिपिंग सर्किट

फिक्स्ड (Fixed): ट्रिपिंग करंट रेटिंग को समायोजित (Adjust) नहीं किया जा सकता।

समायोज्य (Adjustable): ट्रिपिंग करंट रेटिंग को एक रेंज के भीतर सेट किया जा सकता है।

ब्रेकिंग क्षमता

कम: आमतौर पर 10kA (किलोएम्पीयर) तक सीमित।

उच्च: आमतौर पर 10kA से 100kA या उससे अधिक।

पोल्स की संख्या

1P, 2P, 3P, और 4P में उपलब्ध।

3P और 4P में उपलब्ध (आमतौर पर सिंगल पोल में नहीं)।

आकार और कीमत

छोटा आकार, कम कीमत।

बड़ा आकार, अधिक कीमत।

उपयोग

घरेलू और छोटे वाणिज्यिक अनुप्रयोग।

औद्योगिक और बड़े वाणिज्यिक अनुप्रयोग।




उपयोग (Applications)

​उनके डिज़ाइन और रेटिंग के कारण, MCB और MCCB का उपयोग विभिन्न स्थानों पर किया जाता है:

MCB का उपयोग

​MCB का उपयोग मुख्य रूप से उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ कम करंट रेटिंग और सीमित शॉर्ट-सर्किट क्षमता की आवश्यकता होती है।

  • आवासीय भवन (Residential Buildings): घरों में लाइटिंग सर्किट, पंखे, पावर सॉकेट और छोटे उपकरणों की सुरक्षा के लिए।
  • छोटे कार्यालय/दुकानें (Small Offices/Shops): 100A से कम की लाइटिंग और सिंगल-फेज उपकरण सर्किट के लिए।
  • छोटे पैनल बोर्ड (Small Panel Boards): फीडर या सब-फीडर सर्किट में।

MCCB का उपयोग

​MCCB का उपयोग उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ उच्च करंट रेटिंग, उच्च ब्रेकिंग क्षमता और ट्रिपिंग सेटिंग्स को समायोजित करने की आवश्यकता होती है।

  • मुख्य वितरण बोर्ड (Main Distribution Boards): ट्रांसफार्मर से आने वाली मुख्य बिजली सप्लाई की सुरक्षा के लिए।
  • भारी औद्योगिक मोटर्स (Heavy Industrial Motors): 100A से अधिक करंट खींचने वाली बड़ी मोटरें, पंप, और कंप्रेसर की सुरक्षा के लिए।
  • बड़े वाणिज्यिक भवन (Large Commercial Buildings): मुख्य इनपुट सप्लाई, HVAC सिस्टम (Heating, Ventilation, and Air Conditioning) और बड़ी मशीनों की सुरक्षा के लिए।
  • जनरेटर और ट्रांसफार्मर आउटपुट (Generator and Transformer Output): मुख्य सुरक्षा उपकरण के रूप में, क्योंकि इनकी ब्रेकिंग क्षमता बहुत अधिक होती है।



17. एचटी वोल्टेज में लॉकआउट रिले क्या है?

Ans.    

एचटी (HT - High Tension) वोल्टेज सिस्टम में लॉकआउट रिले (Lockout Relay), जिसे अक्सर मास्टर ट्रिप रिले (Master Trip Relay) या ANSI कोड 86 रिले कहा जाता है, एक अत्यंत महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण है।

​यह एक विशेष प्रकार की सहायक रिले (Auxiliary Relay) है जिसका प्राथमिक कार्य निम्नलिखित है:

​1. सभी ट्रिपिंग कमांड को एकजुट करना (Master Trip Function)

​यह रिले सिस्टम में मौजूद अन्य सभी सुरक्षा रिले (जैसे ओवर-करंट रिले, अर्थ फॉल्ट रिले, डिफरेंशियल रिले, आदि) से ट्रिप कमांड सिग्नल प्राप्त करती है। जब किसी भी सुरक्षा रिले को कोई गंभीर खराबी (फॉल्ट) मिलती है, तो वह सिग्नल सीधे लॉकआउट रिले को भेजती है।

​2. सर्किट ब्रेकर को ट्रिप और लॉक करना (Trip and Lockout)

  • ​सिग्नल मिलते ही, लॉकआउट रिले तुरंत सक्रिय (Activate) हो जाती है और मुख्य एचटी सर्किट ब्रेकर की ट्रिप कॉइल को कमांड भेजकर उसे खोल देती है, जिससे सिस्टम की पावर सप्लाई तुरंत कट जाती है।
  • ​इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य है लॉकआउट। एक बार ट्रिप होने के बाद, यह रिले अपने संपर्क (Contact) को लॉक कर देती है। यह सर्किट ब्रेकर को स्वचालित रूप से (Automatically) दोबारा बंद होने (Reclose) से रोकती है

​3. मानव हस्तक्षेप सुनिश्चित करना (Manual Reset)

​चूंकि यह रिले सर्किट को "लॉक" कर देती है, इसलिए जब तक कोई तकनीशियन या इंजीनियर मैन्युअल रूप से (हाथ से) रिले को रिसेट (Reset) नहीं करता, तब तक सर्किट ब्रेकर को फिर से बंद करना (ON करना) असंभव होता है।

लॉकआउट का महत्व:

यह सुनिश्चित करता है कि जब तक फॉल्ट के कारण का पता लगाकर उसे ठीक नहीं कर लिया जाता, तब तक गलती से भी सिस्टम को वापस चालू न किया जाए। यह बार-बार ट्रिपिंग और री-क्लोजिंग को रोकता है, जिससे एचटी उपकरण (जैसे ट्रांसफार्मर या स्विचगियर) को फॉल्ट के कारण होने वाले गंभीर नुकसान से बचाया जा सके और कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।



18. पृथ्वी प्रतिरोध और पृथ्वी इलेक्ट्रोड प्रतिरोध के बीच क्या अंतर है?

Ans.    

तकनीकी रूप से, पृथ्वी प्रतिरोध (Earth Resistance) और पृथ्वी इलेक्ट्रोड प्रतिरोध (Earth Electrode Resistance) दोनों शब्द एक ही भौतिक मात्रा को दर्शाते हैं। ये लगभग पर्यायवाची (synonymous) हैं और एक ही माप को संदर्भित करते हैं।

​हालांकि, अवधारणा को समझने के लिए, हम इसे उन घटकों (Components) के रूप में देख सकते हैं जिनसे यह कुल प्रतिरोध बनता है:

​1. पृथ्वी इलेक्ट्रोड प्रतिरोध (Earth Electrode Resistance)

​यह उस धातु के इलेक्ट्रोड (जैसे पाइप या प्लेट) का प्रतिरोध है जिसे आपने जमीन में गाड़ा है।

घटक:

  1. धातु इलेक्ट्रोड का प्रतिरोध (Resistance of Metal Electrode): इलेक्ट्रोड स्वयं धातु (तांबा या GI) का बना होता है और इसका अपना एक आंतरिक प्रतिरोध होता है। चूंकि इलेक्ट्रोड का आकार बड़ा होता है और यह उच्च चालकता वाली सामग्री से बना होता है, यह प्रतिरोध आमतौर पर बहुत नगण्य (negligible) होता है।
  2. इलेक्ट्रोड और मिट्टी के बीच संपर्क प्रतिरोध (Contact Resistance): यह प्रतिरोध इलेक्ट्रोड की सतह और उसके आसपास की मिट्टी के बीच मौजूद होता है। यह अक्सर महत्वपूर्ण होता है और नमक, कोयला या बेंटोनाइट जैसे रसायनों का उपयोग करके कम किया जाता है।

संक्षेप में: 

यह सिर्फ इलेक्ट्रोड से संबंधित प्रतिरोध है, लेकिन व्यवहार में, यह अकेले मायने नहीं रखता।

​2. पृथ्वी प्रतिरोध (Earth Resistance) या भू-संपर्कन प्रतिरोध (Grounding Resistance)

​यह वह कुल प्रतिरोध है जो किसी फॉल्ट करंट को सुरक्षित रूप से इलेक्ट्रोड के माध्यम से जमीन में प्रवाहित होने पर मिलता है। यह वह मान है जिसे हम आमतौर पर अर्थ टेस्टर से मापते हैं।

घटक:

​पृथ्वी प्रतिरोध, पृथ्वी इलेक्ट्रोड प्रतिरोध के घटकों के अलावा, मिट्टी के प्रतिरोध (Soil Resistivity) को भी शामिल करता है।

{पृथ्वी प्रतिरोध} = ({इलेक्ट्रोड प्रतिरोध}) + ({इलेक्ट्रोड से दूर मिट्टी का प्रतिरोध})

  • इलेक्ट्रोड से दूर मिट्टी का प्रतिरोध (Resistance of the surrounding soil): यह सबसे बड़ा घटक है। यह प्रतिरोध इलेक्ट्रोड के आसपास की मिट्टी से शुरू होता है और धीरे-धीरे शून्य हो जाता है जब करंट पृथ्वी के सामान्य बड़े हिस्से में फैल जाता है। इलेक्ट्रोड के प्रभावी क्षेत्र से दूर मिट्टी का यह प्रतिरोध पूरे माप में सबसे अधिक योगदान देता है।

निष्कर्ष:

​व्यवहारिक रूप से, जब एक इलेक्ट्रीशियन या इंजीनियर "पृथ्वी प्रतिरोध" मापता है, तो वह वास्तव में पूरे अर्थिंग सिस्टम (इलेक्ट्रोड + आसपास की मिट्टी) का प्रतिरोध माप रहा होता है, जिसे सही नाम से पृथ्वी इलेक्ट्रोड प्रतिरोध कहा जाता है, लेकिन जिसे बोलचाल की भाषा में अर्थ रेजिस्टेंस कहते हैं।

​दोनों शब्द एक ही वांछित माप का वर्णन करते हैं: वह कुल प्रतिरोध जो किसी फॉल्ट करंट को जमीन में सुरक्षित रूप से फैलने से रोकता है।



19. किस पावर प्लांट का लोड फैक्टर अधिक है?

Ans.   

आम तौर पर, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों (Nuclear Power Plants) का लोड फैक्टर (Load Factor) सबसे अधिक होता है।

कारण और व्याख्या:

​लोड फैक्टर को निम्नलिखित सूत्र द्वारा परिभाषित किया जाता है:

{लोड फैक्टर} = {{एक निश्चित अवधि में औसत मांग}}{{उसी अवधि में अधिकतम मांग}}

​उच्च लोड फैक्टर का मतलब है कि पावर प्लांट अपनी क्षमता का उपयोग लगातार और कुशलता से कर रहा है।

पावर प्लांट का प्रकार

लोड फैक्टर की प्रकृति

कारण

परमाणु ऊर्जा संयंत्र (Nuclear)

सबसे अधिक (Highest)

परमाणु संयंत्रों को बेस लोड स्टेशन (Base Load Stations) के रूप में डिज़ाइन किया जाता है। इनकी प्रारंभिक लागत बहुत अधिक होती है और इन्हें चालू या बंद करना मुश्किल और महंगा होता है, इसलिए इन्हें अधिकतम संभव समय (लगभग 90% या उससे अधिक) के लिए लगातार चलाया जाता है।

कोयला/तापीय संयंत्र (Thermal/Coal)

उच्च (High)

ये भी बेस लोड के लिए उपयोग किए जाते हैं, लेकिन इन्हें मेंटेनेंस (रखरखाव) और ईंधन की आपूर्ति के लिए परमाणु संयंत्रों की तुलना में अधिक बार बंद करना पड़ता है। इनका लोड फैक्टर परमाणु संयंत्रों से थोड़ा कम होता है।

जल विद्युत (Hydro)

मध्यम (Moderate)

पानी की उपलब्धता (वर्षा) और जलाशय के स्तर पर निर्भर करता है। रन-ऑफ-रिवर प्लांट का लोड फैक्टर अधिक हो सकता है, जबकि स्टोरेज प्लांट का उपयोग पीक लोड के दौरान भी किया जाता है।

नवीकरणीय ऊर्जा (Renewables)

सबसे कम (Lowest)

जैसे सौर (Solar) और पवन (Wind) ऊर्जा। ये मौसम पर निर्भर होते हैं। उदाहरण के लिए, सौर ऊर्जा केवल दिन के समय बिजली बनाती है। इसलिए इनका लोड फैक्टर आमतौर पर 25% से 45% तक होता है।


संक्षेप में, 

जो पावर प्लांट बेस लोड (यानी, चौबीसों घंटे चलने वाली न्यूनतम आवश्यक बिजली आपूर्ति) को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं, उनका लोड फैक्टर सबसे अधिक होता है, और इसमें परमाणु ऊर्जा संयंत्र शीर्ष पर होते हैं।





20. एसी सोलेनोइड वाल्व प्लंजर को क्यों आकर्षित करता है, भले ही हम टर्मिनल को आपस में बदल देते हैं? क्या ध्रुव बदलेंगे?

Ans.   

एसी (AC) सोलेनोइड वाल्व प्लंजर को हमेशा आकर्षित करता है, भले ही आप टर्मिनलों को आपस में बदल दें, और हाँ, सोलेनोइड के ध्रुव (Poles) बदलते हैं

​यह प्रभाव दो मुख्य कारणों से होता है:

​1. एसी में ध्रुवों का निरंतर परिवर्तन (Continuous Polarity Change in AC)

​एसी सप्लाई अपनी ध्रुवता (दिशा) को लगातार बदलती रहती है (भारत में 50 हर्ट्ज़ पर प्रति सेकंड 100 बार)।

  • AC के कारण ध्रुव परिवर्तन: जब आप एसी सप्लाई देते हैं, तो सोलेनोइड कॉइल में बनने वाला चुंबकीय क्षेत्र भी हर आधे चक्र (half cycle) में अपनी दिशा (उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव) बदलता रहता है।
  • टर्मिनल बदलने का प्रभाव: यदि आप कॉइल के दो टर्मिनलों को आपस में बदल देते हैं, तो यह केवल उस क्षण को बदलता है जब ध्रुवता बदलती है, लेकिन AC सप्लाई अपनी प्रकृति के कारण ध्रुवों को वैसे भी लगातार बदलती रहेगी।

​टर्मिनल बदलने से AC ऑपरेशन पर कोई व्यावहारिक अंतर नहीं आता है।

​2. प्लंजर की प्रकृति (Nature of the Plunger)

​यह मुख्य कारण है कि प्लंजर हमेशा आकर्षित होता है:

  • प्लंजर एक स्थायी चुंबक नहीं है: सोलेनोइड वाल्व में प्लंजर (armature) नरम लौह (soft iron) या अन्य फेरोमैग्नेटिक (ferromagnetic) सामग्री से बना एक साधारण धातु का टुकड़ा होता है, यह स्थायी चुंबक (permanent magnet) नहीं होता है।
  • केवल आकर्षण बल: जब कॉइल में चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है (भले ही ध्रुव N-S हों या S-N), तो यह चुंबकीय क्षेत्र प्रेरण (Induction) द्वारा प्लंजर को चुंबकित (magnetize) करता है। प्लंजर में हमेशा ऐसा ध्रुव प्रेरित होता है जो कॉइल के ध्रुवों के विपरीत हो।
    • आकर्षण का नियम: चूंकि हमेशा विपरीत ध्रुव एक-दूसरे के सामने होते हैं (विपरीत ध्रुव आकर्षित करते हैं), प्लंजर को हमेशा कॉइल की ओर खींचा जाता है।
    • अपकर्षण संभव नहीं: प्लंजर को पीछे हटाने (repel) के लिए समान ध्रुवों की आवश्यकता होती है, जो कि इस सेटअप में संभव नहीं है क्योंकि प्लंजर एक साधारण धातु है, न कि एक निश्चित ध्रुवता वाला चुंबक।

इसलिए, 

चूंकि प्लंजर सिर्फ एक फेरोमैग्नेटिक धातु है, यह हमेशा सोलेनोइड के चुंबकीय क्षेत्र के प्रति आकर्षित होता है, भले ही ध्रुव प्रति सेकंड 100 बार बदल रहे हों या आपने तार बदल दिए हों।




21. IDMT रिले को परिभाषित करें?

Ans.   

एक IDMT (Inverse Definite Minimum Time) रिले एक ऐसा सुरक्षात्मक रिले है जिसका संचालन समय, उसमें से बहने वाले दोष करंट (fault current) की मात्रा के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होता है, लेकिन एक निश्चित न्यूनतम सीमा से नीचे नहीं गिरता।

​यह दो प्रकार के रिले की विशेषताओं को जोड़ता है:

​1. इनवर्स टाइम विशेषता (Inverse Time Characteristic)

​यह गुण सुनिश्चित करता है कि:

  • ​यदि दोष करंट का मान बहुत अधिक है, तो रिले तेजी से (कम समय में) ट्रिप हो जाएगा।
  • ​यदि दोष करंट का मान कम है, तो रिले धीरे-धीरे (अधिक समय में) ट्रिप होगा।

​2. डेफिनिट मिनिमम टाइम विशेषता (Definite Minimum Time Characteristic - DMT)

​यह गुण सुनिश्चित करता है कि:

  • ​दोष करंट कितना भी अधिक क्यों न हो, रिले का संचालन समय एक निश्चित न्यूनतम मान से कम नहीं होगा। यह "न्यूनतम समय" आमतौर पर 0.1 सेकंड से 0.5 सेकंड के बीच होता है।

IDMT की परिभाषा और महत्व

परिभाषा:

IDMT रिले एक ऐसा रिले है जो करंट की मात्रा के साथ व्युत्क्रम अनुपात में काम करता है, लेकिन इसका एक निश्चित समय विलंब (time delay) होता है जो बहुत बड़े दोष करंट के लिए भी रिले के संचालन के समय को एक पूर्व-निर्धारित न्यूनतम मान तक सीमित करता है।

महत्व:

IDMT रिले समन्वय (coordination) के लिए महत्वपूर्ण हैं, खासकर विद्युत वितरण प्रणालियों में। ये सुनिश्चित करते हैं कि दोष के सबसे नजदीक का सर्किट ब्रेकर (near-end breaker) पहले ट्रिप हो, जबकि उससे दूर के ब्रेकरों को एक छोटा विलंब समय मिलता है ताकि वे अनावश्यक रूप से ट्रिप न हों। यह सुनिश्चित करता है कि दोष को दूर करने के लिए पावर सिस्टम का केवल सबसे छोटा हिस्सा ही डिस्कनेक्ट हो।




22. ट्रांसफार्मर हानियाँ क्या हैं?

Ans.    

ट्रांसफार्मर हानियाँ (Transformer Losses) वह ऊर्जा है जो विद्युत ऊर्जा को एक सर्किट से दूसरे सर्किट में स्थानांतरित (transfer) करते समय ऊष्मा (heat) के रूप में व्यर्थ हो जाती है। एक आदर्श ट्रांसफार्मर में कोई हानि नहीं होती है, लेकिन वास्तविक ट्रांसफार्मर में ये हानियाँ इसकी दक्षता (efficiency) को कम करती हैं।

​ट्रांसफार्मर में मुख्य रूप से दो प्रकार की हानियाँ होती हैं:

​1. कोर हानियाँ (Core Losses) या लौह हानियाँ (Iron Losses) 

​ये हानियाँ ट्रांसफार्मर के कोर (magnetic core) में होती हैं और ये मुख्य रूप से वोल्टेज पर निर्भर करती हैं, लोड पर नहीं। इसलिए, ये हानियाँ ट्रांसफार्मर के चालू रहने तक स्थिर (constant) रहती हैं।

कोर हानियों के प्रकार:

  • हिस्टैरिसीस हानि (Hysteresis Loss):
    • ​यह हानि कोर में चुंबकीयकरण (magnetization) और विचुंबकीयकरण (demagnetization) के बार-बार होने के कारण होती है, क्योंकि AC सप्लाई की दिशा लगातार बदलती रहती है।
    • कैसे कम करें: सिलिकॉन स्टील (silicon steel) जैसी उच्च पारगम्यता (high permeability) वाली सामग्री का उपयोग करके।
  • भंवर धारा हानि (Eddy Current Loss):
    • ​यह हानि कोर में फ्लक्स परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली छोटी प्रेरित धाराओं (induced currents) के कारण होती है। ये धाराएं कोर में ऊष्मा के रूप में ऊर्जा नष्ट करती हैं।
    • कैसे कम करें: कोर को ठोस धातु के बजाय पतली-पतली चादरों (laminations) से बनाकर और उन्हें एक दूसरे से इन्सुलेट (insulate) करके।

​2. ताम्र हानियाँ (Copper Losses) या लोड हानियाँ (Load Losses) 

​ये हानियाँ ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग्स (प्राथमिक और द्वितीयक दोनों) में होती हैं और ये मुख्य रूप से करंट पर निर्भर करती हैं, इसलिए इन्हें परिवर्तनीय हानियाँ (variable losses) भी कहा जाता है।

  • कारण: ये हानियाँ वाइंडिंग के तार के प्रतिरोध (R) के कारण होती हैं जब उसमें से करंट (I) प्रवाहित होता है। यह जूल के तापन नियम (I^2R) के अनुसार ऊष्मा उत्पन्न करता है।
  • लोड पर निर्भरता:
    • ​जब ट्रांसफार्मर पर लोड बढ़ता है, तो वाइंडिंग में करंट (I) बढ़ता है।
    • ​चूंकि हानि I^2 के अनुपात में बढ़ती है, इसलिए लोड के बढ़ने पर ताम्र हानियाँ तेजी से बढ़ती हैं
  • कैसे कम करें: वाइंडिंग के लिए कम प्रतिरोध वाले मोटे तार (जैसे तांबे के तार) का उपयोग करके।

​सारणीबद्ध सारांश (Tabular Summary)


हानि का प्रकार

कहाँ होती है?

किस पर निर्भर करती है?

प्रकृति

कम करने का उपाय

कोर हानियाँ

कोर (Core) में

वोल्टेज (V)

स्थिर (Constant)

सिलिकॉन स्टील और लैमिनेशन का उपयोग

ताम्र हानियाँ

वाइंडिंग्स (Windings) में

करंट (I) या लोड

परिवर्तनीय (Variable)

कम प्रतिरोध वाले मोटे तार (तांबा) का उपयोग





23. पुनर्योजी ब्रेकिंग का क्या मतलब है?

Ans.   

पुनर्योजी ब्रेकिंग (Regenerative Braking) एक ऊर्जा-बचत ब्रेकिंग तकनीक है जिसमें किसी इलेक्ट्रिक मोटर को रोकने या धीमा करने के बजाय, उसे एक विद्युत जनरेटर के रूप में कार्य करने के लिए मजबूर किया जाता है।

​पुनर्योजी ब्रेकिंग कैसे काम करती है? 

​इस प्रक्रिया में, मोटर की गतिक ऊर्जा (Kinetic Energy) को बर्बाद होने देने के बजाय, उसे वापस विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करके सिस्टम में लौटा दिया जाता है।

  1. मोटर से जनरेटर में परिवर्तन: जब ड्राइवर ब्रेक लगाता है या गति धीमी करता है, तो मोटर की वाइंडिंग को इस तरह से जोड़ा जाता है कि वह मोटर के बजाय एक जनरेटर के रूप में काम करना शुरू कर दे।
  2. ऊर्जा का पुनर्जनन: वाहन की गति (यानी, पहियों की जड़ता/inertia) इस जनरेटर को चलाती है। जनरेटर तब गतिज ऊर्जा का उपभोग करता है और उसे बिजली में बदल देता है।
  3. ब्रेकिंग बल: इस बिजली उत्पादन के दौरान मोटर में जो यांत्रिक प्रतिरोध (mechanical resistance) उत्पन्न होता है, वह वाहन को धीमा करने का काम करता है—यह ब्रेकिंग बल होता है।
  4. ऊर्जा का उपयोग: उत्पन्न हुई इस विद्युत ऊर्जा को आमतौर पर वाहन की बैटरी में वापस चार्ज करने के लिए भेजा जाता है।

​मुख्य लाभ (Key Benefits)

  • बढ़ी हुई दक्षता: यह ऊर्जा का संरक्षण करता है, खासकर बार-बार रुकने और चलने वाले ट्रैफिक में, जिससे इलेक्ट्रिक वाहन (EV) की रेंज बढ़ जाती है।
  • ब्रेक पैड का जीवनकाल: यह यांत्रिक ब्रेकिंग सिस्टम (Mechanical Brake System) पर दबाव कम करता है, जिससे ब्रेक पैड और डिस्क का जीवनकाल (lifespan) लंबा हो जाता है।
  • कम गर्मी: यांत्रिक ब्रेकिंग की तरह इसमें घर्षण (friction) से गर्मी उत्पन्न नहीं होती, जिससे सिस्टम ठंडा रहता है।

​यह तकनीक इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), हाइब्रिड कारों, इलेक्ट्रिक ट्रेनों और ट्राम में व्यापक रूप से उपयोग की जाती है। यह एक प्रकार की "फ्री" ब्रेकिंग है जो ब्रेक लगाने के दौरान बर्बाद होने वाली ऊर्जा को उपयोगी बना देती है।





24.  डीसी मोटर में प्रारंभिक धारा उच्च क्यों होती है?

Ans.   


डीसी मोटर में प्रारंभिक धारा (Starting Current) उच्च होने का मुख्य कारण पश्च विद्युत वाहक बल (Back EMF, E_b) का शून्य होना है।

​इसे समझने के लिए डीसी मोटर के आर्मेचर करंट (I_a) के समीकरण को देखना आवश्यक है:

I_a = {V - E_b}{R_a}


जहाँ:

  • ​V = सप्लाई वोल्टेज (Supply Voltage)
  • ​E_b = पश्च विद्युत वाहक बल (Back EMF)
  • ​R_a = आर्मेचर प्रतिरोध (Armature Resistance)

​उच्च प्रारंभिक धारा के कारण (Reasons for High Starting Current)

​1. शून्य पश्च EMF (E_b = 0)

  • ​जब मोटर चलना शुरू नहीं करती है (गति N = 0), तो आर्मेचर कंडक्टर चुंबकीय फ्लक्स को नहीं काटते हैं।
  • ​पश्च EMF (E_b) मोटर की गति के सीधे आनुपातिक होता है (E_b \ N \phi)।
  • ​चूंकि गति शून्य है, इसलिए पश्च EMF (E_b) भी शून्य होता है।
  • ​समीकरण में E_b=0 रखने पर: I_a = {V - 0}{R_a} = {V}{R_a}

​2. कम आर्मेचर प्रतिरोध (R_a)

  • ​आर्मेचर वाइंडिंग का प्रतिरोध (R_a) जानबूझकर बहुत कम रखा जाता है (आमतौर पर 1 ओम से भी कम) ताकि चलती हुई मोटर में कम बिजली हानि (I_a^2 R_a) हो और दक्षता अधिक रहे।
  • ​जब पश्च EMF शून्य होता है, तो आर्मेचर करंट को सीमित करने वाला एकमात्र कारक यह कम प्रतिरोध ही होता है।
  • ​कम प्रतिरोध के कारण, {V}{R_a} का मान बहुत बड़ा हो जाता है, जिससे मोटर शुरू होते ही सामान्य लोड करंट से 5 से 10 गुना अधिक करंट खींचती है।

​समाधान (The Solution)

​इस अत्यधिक प्रारंभिक धारा को रोकने और मोटर को जलने से बचाने के लिए, डीसी मोटर के साथ हमेशा स्टार्टर (Starter) का उपयोग किया जाता है।

  • स्टार्टर का कार्य: स्टार्टर शुरुआती समय में आर्मेचर के साथ श्रेणी क्रम (in series) में एक अतिरिक्त उच्च प्रतिरोध जोड़ता है, जिससे प्रारंभिक करंट सीमित हो जाता है।
  • ​जैसे-जैसे मोटर गति पकड़ती है और E_b बढ़ने लगता है, स्टार्टर इस अतिरिक्त प्रतिरोध को धीरे-धीरे सर्किट से हटा देता है।




25.  इंडक्शन मोटर के साथ स्टार डेल्टा स्टार्टर के क्या फायदे हैं?

Ans.   

इंडक्शन मोटर (प्रेरण मोटर) के साथ स्टार-डेल्टा स्टार्टर (Star-Delta Starter) का उपयोग करने का प्राथमिक और सबसे महत्वपूर्ण लाभ मोटर के शुरुआती करंट को कम करना है। इसके कई अन्य फायदे भी हैं जो इसे औद्योगिक अनुप्रयोगों में लोकप्रिय बनाते हैं।

​स्टार-डेल्टा स्टार्टर के मुख्य फायदे

​1. शुरुआती करंट को कम करना (Reduced Starting Current)

​यह मुख्य लाभ है।

  • ​मोटर को सीधे डेल्टा (Delta) कनेक्शन पर शुरू करने पर वह अपने रेटेड पूर्ण लोड करंट (Full Load Current - FLC) का 5 से 7 गुना तक करंट खींचती है।
  • ​स्टार-डेल्टा स्टार्टर में, मोटर को पहले स्टार (Star) कनेक्शन में जोड़ा जाता है। स्टार कनेक्शन में, वाइंडिंग को मिलने वाला फेज वोल्टेज, लाइन वोल्टेज का {1}{sqrt{3}} गुना हो जाता है। V_{{phase}} = {V_{{line}}}{sqrt{3}}
  • ​वोल्टेज कम होने से, शुरुआती लाइन करंट डेल्टा कनेक्शन की तुलना में केवल {1}{3} गुना रह जाता है। यह बिजली आपूर्ति प्रणाली (power supply system) को अत्यधिक तनाव से बचाता है।

​2. उच्च टॉर्क/करंट अनुपात (Improved Torque/Current Ratio)

  • ​हालांकि शुरुआती टॉर्क भी {1}{3} गुना कम हो जाता है, लेकिन शुरुआती करंट {1}{3} गुना कम होता है। इसका मतलब है कि स्टार्टर एक स्वीकार्य शुरुआती टॉर्क प्रदान करते हुए करंट को काफी कम रखता है, जिससे मोटर को बिना किसी झटके के चालू किया जा सकता है।

​3. मोटर और मशीनरी की सुरक्षा (Protection of Motor and Machinery)

  • झटके से बचाव: कम शुरुआती करंट के कारण शुरुआती टॉर्क भी कम होता है। यह मोटर और उससे जुड़ी हुई यांत्रिक मशीनरी (mechanical coupling, गियरबॉक्स, बेल्ट, आदि) को उच्च शुरुआती टॉर्क के कारण होने वाले अचानक यांत्रिक झटके (mechanical stress) से बचाता है, जिससे उपकरण का जीवनकाल बढ़ता है।
  • ओवरहीटिंग से बचाव: उच्च करंट मोटर वाइंडिंग में अत्यधिक गर्मी पैदा करता है। करंट को सीमित करने से, वाइंडिंग की ओवरहीटिंग (overheating) को रोका जाता है।

​4. लागत प्रभावी और विश्वसनीय (Cost-Effective and Reliable)

  • सरल डिजाइन: स्टार-डेल्टा स्टार्टर का डिजाइन अन्य उन्नत सॉफ्ट स्टार्टर या VFDs (Variable Frequency Drives) की तुलना में सरल होता है। इसमें केवल तीन कॉन्टैक्टर (contactor) और एक टाइमर की आवश्यकता होती है।
  • किफायती: यह सबसे सस्ते शुरुआती तरीकों में से एक है जो करंट को प्रभावी ढंग से कम करता है।

​संचालन का सिद्धांत (Principle of Operation)

​स्टार-डेल्टा स्टार्टर दो चरणों में काम करता है:

  1. स्टार मोड (Star Mode): मोटर को शुरू में स्टार कनेक्शन में जोड़ा जाता है (रेटेड वोल्टेज का 58% मिलता है)। यह लगभग 5 से 10 सेकंड तक चलता है। इस दौरान करंट सीमित रहता है और मोटर लगभग 80% गति तक पहुँच जाती है।
  2. डेल्टा मोड (Delta Mode): जब मोटर पर्याप्त गति पकड़ लेती है, तो एक टाइमर सर्किट को स्वचालित रूप से स्टार से डेल्टा कनेक्शन में बदल देता है। डेल्टा में, मोटर को पूर्ण लाइन वोल्टेज मिलता है और वह अपनी रेटेड गति और पूर्ण लोड टॉर्क पर चलती है।




26.  डेल्टा स्टार ट्रांसफार्मर का उपयोग प्रकाश भार के लिए क्यों किया जाता है?

Ans.   

डेल्टा-स्टार (Delta-Y) ट्रांसफार्मर का उपयोग मुख्य रूप से विद्युत वितरण (Distribution) के लिए किया जाता है, जहाँ प्रकाश भार (Lighting Load) जैसे एकल-फेज (Single-Phase) लोड भी जुड़े होते हैं।

​इस संयोजन का चुनाव करने के निम्नलिखित तीन मुख्य कारण हैं:

​1. न्यूट्रल पॉइंट की उपलब्धता (Availability of Neutral Point) 

  • स्टार सेकेंडरी वाइंडिंग (Star Secondary Winding): डेल्टा-स्टार ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी वाइंडिंग स्टार ({Y}) में जुड़ी होती है। स्टार कनेक्शन का केंद्रीय बिंदु न्यूट्रल पॉइंट (Neutral Point) प्रदान करता है।
  • एकल-फेज सप्लाई: प्रकाश भार (जैसे घरों और सड़कों पर लगी लाइटें) और अधिकांश घरेलू उपकरण सिंगल-फेज लोड होते हैं, जिन्हें काम करने के लिए एक फेज (Phase) और एक न्यूट्रल (Neutral) तार की आवश्यकता होती है।
  • ​डेल्टा-स्टार (Delta-Y) संयोजन एकमात्र सामान्य 3-फेज ट्रांसफार्मर संयोजन है जो एक साथ 3-फेज, 3-तार सप्लाई (मोटरों के लिए) और 3-फेज, 4-तार सप्लाई (प्रकाश और अन्य एकल-फेज लोड के लिए) प्रदान करता है।

​2. असंतुलित भार को संभालना (Handling Unbalanced Loads) 

  • प्रकाश भार की प्रकृति: लाइटिंग लोड प्रकृति में असंतुलित (Unbalanced) होते हैं। उदाहरण के लिए, एक फेज पर दूसरे फेज की तुलना में अधिक लाइटें चालू हो सकती हैं।
  • डेल्टा प्राथमिक (Delta Primary) का महत्व: प्राथमिक (Primary) पक्ष पर डेल्टा ({Delta}) कनेक्शन होने के कारण, यदि द्वितीयक पक्ष पर लोड असंतुलित हो जाता है, तो डेल्टा वाइंडिंग में धाराएँ (सर्कुलेटिंग करेंट) प्रवाहित होती हैं जो इस असंतुलन को आंशिक रूप से पुनर्वितरित (redistribute) करती हैं।
  • ​यह पुनर्वितरण द्वितीयक पक्ष के न्यूट्रल पॉइंट के विस्थापन (Neutral Point Shift) को रोकता है, जिससे तीनों फेजों में वोल्टेज अपेक्षाकृत स्थिर बना रहता है। यदि स्टार-स्टार कनेक्शन का उपयोग किया जाता, तो असंतुलित लोड के कारण वोल्टेज गंभीर रूप से विकृत (distorted) हो सकता था।

​3. हार्मोनिक्स का दमन (Suppression of Harmonics) 

  • तीसरी हार्मोनिक (Third Harmonic): तीन-फेज प्रणालियों में, तीसरी हार्मोनिक धाराएँ (3rd Harmonic Currents) मौजूद होती हैं जो वोल्टेज तरंग (voltage waveform) को विकृत कर सकती हैं।
  • डेल्टा का लाभ: डेल्टा वाइंडिंग (प्राथमिक पक्ष पर) तीसरी हार्मोनिक धाराओं को अपने ही बंद लूप (closed loop) के भीतर घूमने (circulate) के लिए एक रास्ता प्रदान करती है। ये धाराएँ प्राथमिक में ही सीमित रहती हैं और द्वितीयक (स्टार) वाइंडिंग में नहीं पहुँचती हैं।
  • ​इस प्रकार, डेल्टा-स्टार संयोजन यह सुनिश्चित करता है कि ग्राहकों को दिया जाने वाला वोल्टेज वेवफ़ॉर्म विकृति (distortion) से मुक्त और शुद्ध साइन वेव (pure sine wave) के करीब हो।




27.  तीन पिन प्लग में अर्थ पिन अन्य पिनों की तुलना में मोटा और लंबा क्यों होता है?

Ans.   

तीन पिन प्लग में अर्थ पिन (Earth Pin) को अन्य दो पिनों (फेज और न्यूट्रल) की तुलना में मोटा (Thicker) और लंबा (Longer) रखने के दो प्राथमिक कारण हैं, और ये दोनों कारण सुरक्षा (Safety) से जुड़े हैं:

​1. सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए (To Ensure Safety)

​लंबा क्यों? (Longer for Early Contact)

​अर्थ पिन को लंबा इसलिए बनाया जाता है ताकि जब प्लग को सॉकेट में डाला जाए, तो यह सबसे पहले सॉकेट में प्रवेश करे और सबसे आखिर में बाहर निकले।

  • पहले कनेक्शन (First Connection): यह सुनिश्चित करता है कि उपकरण का धात्विक बाहरी भाग (metallic body) मेन सप्लाई के फेज और न्यूट्रल से जुड़ने से पहले धरती (Ground/Earth) से जुड़ जाए।
  • अंतिम वियोग (Last Disconnection): प्लग निकालते समय भी फेज और न्यूट्रल पिन पहले अलग होते हैं, और अर्थ पिन अंत में अलग होती है।
  • परिणाम: यदि उपकरण के अंदर कोई गलती (Fault) है और लीकेज करंट (Leakage Current) उसकी बॉडी में आ गया है, तो अर्थ कनेक्शन पहले ही बन जाने के कारण यह करंट तुरंत सुरक्षित रूप से जमीन में चला जाता है। यह उपयोगकर्ता को बिजली के झटके से बचाता है।

​मोटा क्यों? (Thicker for Low Resistance)

​अर्थ पिन को मोटा रखने के भी दो कारण हैं:

  1. कम प्रतिरोध (Low Resistance):
    • ​प्रतिरोध (Resistance) तार के अनुप्रस्थ काट क्षेत्रफल (cross-sectional area) के व्युत्क्रमानुपाती होता है (R 1/A)।
    • ​मोटा पिन होने से उसका प्रतिरोध बहुत कम हो जाता है।
    • ​यह आवश्यक है क्योंकि लीकेज करंट को सुरक्षा के लिए सबसे आसान (कम प्रतिरोध वाला) रास्ता चाहिए होता है ताकि वह तेजी से जमीन में जा सके।
    • ​यदि प्रतिरोध कम होगा, तो लीकेज करंट बिना कोई खतरनाक वोल्टेज बनाए जमीन में प्रवाहित हो जाएगा।
  2. गलत फिटिंग से बचाव (Preventing Wrong Insertion):
    • ​मोटा पिन यह सुनिश्चित करता है कि इसे गलती से फेज (Live) या न्यूट्रल (Neutral) पिन के छोटे छिद्रों (Holes) में नहीं डाला जा सकता है। यह एक अतिरिक्त सुरक्षात्मक विशेषता है।

​2. सॉकेट शटर मैकेनिज़्म (Socket Shutter Mechanism)

  • ​आधुनिक सॉकेट्स में अक्सर सुरक्षा शटर (Safety Shutters) लगे होते हैं जो फेज और न्यूट्रल के छिद्रों को बंद रखते हैं ताकि बच्चे या अन्य लोग गलती से उनमें कोई वस्तु न डाल दें।
  • ​अर्थ पिन (जो कि लंबा और मोटा होता है) सबसे पहले इस शटर को खोलता है, जिससे फेज और न्यूट्रल पिन के लिए रास्ता खुल जाता है। यदि अर्थ पिन को किसी तरह दरकिनार कर दिया जाए, तो शटर नहीं खुलेगा, और प्लग सॉकेट में नहीं लगेगा।



28.  सीरीज मोटर को बिना लोड के क्यों चालू नहीं किया जा सकता?

Ans.   

सीरीज मोटर (Series Motor) को बिना लोड के चालू नहीं किया जा सकता क्योंकि नो-लोड स्थिति में उसकी गति खतरनाक रूप से अनंत (Dangerously high/Infinite speed) तक पहुँच जाती है, जिसे रनिंग अवे (Running Away) कहा जाता है। यह मोटर को यांत्रिक रूप से नष्ट कर सकता है।

​यह क्यों होता है, इसके पीछे का कारण मोटर के गति समीकरण (Speed Equation) में है:

​गति समीकरण और फ्लक्स का संबंध

​डीसी (DC) सीरीज मोटर में गति (N) फ्लक्स (Phi) के व्युत्क्रमानुपाती (Inversely Proportional) होती है:

N {E_b}{Phi}

जहाँ:

  • ​N = मोटर की गति (Speed)
  • ​E_b = बैक EMF (Back Electro-Motive Force), जो लगभग स्थिर रहता है।
  • ​Phi = फील्ड फ्लक्स (Field Flux)

​1. नो-लोड पर कम फ्लक्स (Low Flux at No-Load)

  • ​सीरीज मोटर में, फील्ड वाइंडिंग आर्मेचर के साथ सीरीज (श्रृंखला) में जुड़ी होती है।
  • ​इसलिए, फील्ड फ्लक्स (Phi) सीधे आर्मेचर करंट (I_a) के समानुपाती होता है (Phi I_a)।
  • ​जब मोटर पर कोई लोड नहीं होता है, तो मोटर को केवल अपने आंतरिक घर्षण और वायु प्रतिरोध (windage losses) को दूर करने के लिए करंट खींचना पड़ता है।
  • ​यह शुरुआती आर्मेचर करंट (I_a) बहुत कम होता है।
  • ​करंट कम होने के कारण, उत्पन्न होने वाला फील्ड फ्लक्स (Phi) भी बहुत कम होता है।

​2. अत्यधिक गति में वृद्धि (Excessive Speed Rise)

  • ​चूंकि गति फ्लक्स के व्युत्क्रमानुपाती होती है (N  1/Phi), जब फ्लक्स (Phi) बहुत कम हो जाता है (नो-लोड पर), तो मोटर की गति (N) अत्यधिक बढ़ जाती है।
  • ​सैद्धांतिक रूप से (यदि फ्लक्स को शून्य माना जाए), तो गति अनंत तक पहुँच सकती है।
  • ​वास्तव में, यह गति इतनी अधिक हो जाती है (जैसे 3000-4000 RPM से भी अधिक) कि आर्मेचर कंडक्टर और कम्यूटेटर पर लगने वाले अपकेंद्री बल (Centrifugal Force) के कारण मोटर की वाइंडिंग, कम्यूटेटर और अन्य यांत्रिक भाग टूट कर बिखर सकते हैं (Mechanically damaged)।

निष्कर्ष: सीरीज मोटर को हमेशा कुछ यांत्रिक लोड (Mechanical Load) से जोड़कर ही शुरू किया जाना चाहिए ताकि आर्मेचर करंट पर्याप्त रहे और एक सुरक्षित गति सीमा बनाए रखने के लिए पर्याप्त फ्लक्स उत्पन्न हो सके।




29.  यदि ELCB का N इनपुट ग्राउंड से कनेक्ट नहीं होता है तो ELCB काम क्यों नहीं कर सकता है?

Ans.   

आपका प्रश्न ELCB (Earth Leakage Circuit Breaker) के वोल्टेज-संचालित पुराने संस्करण से संबंधित है। आधुनिक सुरक्षा उपकरण अब आमतौर पर RCCB/RCD (Residual Current Circuit Breaker/Device) हैं, जो करंट-संचालित होते हैं।

​पुराना वोल्टेज ELCB (Voltage ELCB) इसलिए काम नहीं कर सकता अगर उसका N इनपुट ग्राउंड से कनेक्ट न हो, क्योंकि यह लीकेज को वोल्टेज के अंतर के आधार पर पता लगाता है।

​ELCB के विफल होने का कारण

​वोल्टेज ELCB का कार्य सिद्धांत एक कॉइल (Coil) पर आधारित होता है जो यह पता लगाता है कि:

{वोल्टेज} V = {अर्थ वायर का वोल्टेज} - {स्थानीय ग्राउंड का वोल्टेज}

  1. वर्किंग के लिए ज़रूरी है संदर्भ बिंदु (Need for a Reference Point):
    • ​ELCB को सर्किट को ट्रिप करने के लिए एक संदर्भ बिंदु (Reference Point) की आवश्यकता होती है, जो कि न्यूट्रल (N) इनपुट से जुड़ा ग्राउंड कनेक्शन होता है।
    • ​यह कनेक्शन ELCB को अर्थिंग इलेक्ट्रोड से जोड़ता है।
  2. दोष की स्थिति में वोल्टेज अंतर (Voltage Difference in Fault):
    • ​जब उपकरण की बॉडी पर अर्थ लीकेज होता है, तो लीकेज करंट मेन अर्थ वायर से बहता है।
    • ​यह करंट अर्थ वायर पर वोल्टेज बढ़ाता है (चूंकि तार का कुछ प्रतिरोध होता है)।
    • ​ELCB इस बढ़े हुए वोल्टेज को न्यूट्रल (N) के शून्य संदर्भ वोल्टेज के सापेक्ष मापता है।
    • ​जब यह वोल्टेज अंतर एक निश्चित सीमा (आमतौर पर 50V) से अधिक हो जाता है, तो ELCB ट्रिप करता है।
  3. ग्राउंड कनेक्शन न होने पर समस्या (Problem without Ground Connection):
    • ​यदि न्यूट्रल इनपुट ग्राउंड से कनेक्ट नहीं है, तो ELCB के पास लीकेज वोल्टेज को मापने के लिए कोई स्थिर शून्य संदर्भ नहीं होगा।
    • ​लीकेज करंट बहने पर, ELCB को यह अंतर पता नहीं चलेगा या वह गलत रीडिंग देगा, जिससे वह खतरनाक लीकेज होने पर भी ट्रिप नहीं करेगा और सुरक्षा प्रदान करने में विफल हो जाएगा।

निष्कर्ष: ELCB अपनी सुरक्षात्मक क्रिया के लिए अर्थ इलेक्ट्रोड के साथ न्यूट्रल के सीधे कनेक्शन पर निर्भर करता है, ताकि लीकेज करंट के कारण उत्पन्न वोल्टेज को मापा जा सके।




30.  ए.सी. जनरेटर द्वारा विद्युत शक्ति कैसे उत्पन्न की जाती है?

Ans.   

ए.सी. जनरेटर (AC Generator), जिसे अल्टरनेटर भी कहा जाता है, यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy) को प्रत्यावर्ती विद्युत ऊर्जा (Alternating Electrical Energy) में परिवर्तित करके विद्युत शक्ति उत्पन्न करता है।

​यह प्रक्रिया फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम (Faraday's Law of Electromagnetic Induction) के सिद्धांत पर आधारित है।

​कार्य करने का सिद्धांत

​सिद्धांत यह है कि जब किसी चालक (Conductor) को चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) में घुमाया जाता है, तो उस चालक में एक प्रेरित विद्युत वाहक बल (Induced Electro-Motive Force - EMF) उत्पन्न होता है, जिससे विद्युत धारा प्रवाहित होती है।

​यह तीन मुख्य तत्वों पर निर्भर करता है:

  1. चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field): शक्तिशाली चुंबक (स्थायी या विद्युत चुंबक) द्वारा उत्पन्न।
  2. चालक (Conductor): तांबे के तार की एक कुंडली या आर्मेचर।
  3. सापेक्षिक गति (Relative Motion): चालक या चुंबकीय क्षेत्र का घूमना।

​एसी जनरेटर की कार्यविधि

​एसी जनरेटर में, आमतौर पर (आधुनिक पावर प्लांट जनरेटर में थोड़ा अलग डिज़ाइन हो सकता है) एक आर्मेचर (Armature) को दो शक्तिशाली चुंबकीय ध्रुवों (N और S) के बीच घुमाया जाता है।

  1. यांत्रिक ऊर्जा की आपूर्ति: एक बाहरी स्रोत, जिसे प्राइम मूवर (Prime Mover) कहा जाता है (जैसे स्टीम टरबाइन, गैस टरबाइन, या डीजल इंजन), आर्मेचर को घुमाने के लिए यांत्रिक ऊर्जा प्रदान करता है।
  2. चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन: जैसे ही आर्मेचर कुंडली चुंबकीय क्षेत्र में घूमती है, कुंडली से जुड़ी चुंबकीय बल रेखाओं की संख्या (Magnetic Flux) लगातार बदलती रहती है।
    • ​जब कुंडली चुंबकीय बल रेखाओं के समानांतर होती है, तो फ्लक्स परिवर्तन की दर अधिकतम होती है, और प्रेरित EMF अधिकतम होता है।
    • ​जब कुंडली चुंबकीय बल रेखाओं के लंबवत होती है, तो फ्लक्स परिवर्तन की दर शून्य होती है, और प्रेरित EMF शून्य होता है।
  3. EMF का प्रेरण: फ्लक्स में इस निरंतर परिवर्तन के कारण, कुंडली में फैराडे के नियम के अनुसार एक प्रेरित EMF उत्पन्न होता है।
  4. धारा की दिशा: प्रेरित धारा की दिशा फ्लेमिंग के दाएँ हाथ के नियम (Fleming's Right-Hand Rule) से निर्धारित होती है।
  5. प्रत्यावर्ती धारा (AC) आउटपुट:
    • ​आर्मेचर के पहले आधे घूर्णन (180^\circ) के दौरान, प्रेरित धारा एक दिशा में बहती है।
    • ​अगले आधे घूर्णन (180^\circ) के दौरान, धारा की दिशा उलट जाती है।
    • ​चूंकि यह दिशा हर आधे चक्र में उलटती रहती है, इसलिए आउटपुट में प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current - AC) प्राप्त होती है, जिसका तरंग रूप साइन वेव (Sine Wave) के समान होता है।
  6. सर्पी वलय और ब्रश (Slip Rings and Brushes): आर्मेचर कुंडली के दो सिरे सर्पी वलयों (स्लिप रिंग्स) से जुड़े होते हैं, जो कुंडली के साथ घूमते हैं। कार्बन ब्रश इन सर्पी वलयों को छूते हैं और प्रेरित विद्युत शक्ति को बाहरी परिपथ में एकत्र करते हैं।




31.  एसी सोलेनोइड वाल्व प्लंजर को क्यों आकर्षित करता है, भले ही हम टर्मिनल को आपस में बदल देते हैं? क्या ध्रुव बदलेंगे?

Ans.   

एसी (AC) सोलेनोइड वाल्व प्लंजर को आकर्षित करता रहता है, भले ही आप टर्मिनल को आपस में बदल दें, क्योंकि आकर्षण बल हमेशा एक ही दिशा में कार्य करता है, भले ही एसी सप्लाई में ध्रुवता (Polarity) लगातार बदलती रहती है।

​ध्रुव (Poles) और आकर्षण बल (Attraction Force) का सिद्धांत

  1. एसी में ध्रुव परिवर्तन:
    • ​प्रत्यावर्ती धारा (AC) में, वोल्टेज और धारा की दिशा हर आधे चक्र (1/100 या 1/120 सेकंड) में उलट जाती है।
    • ​इसके कारण सोलेनोइड कॉइल द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के ध्रुव (उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव) भी हर आधे चक्र में आपस में बदल जाते हैं।
  2. आकर्षण बल की दिशा:
    • ​सोलेनोइड वाल्व में, आकर्षण बल सोलेनोइड के स्थिर कोर और चलने वाले प्लंजर (जो एक फेरोमैग्नेटिक पदार्थ के बने होते हैं) के बीच उत्पन्न होता है।
    • ​आकर्षण बल हमेशा विपरीत ध्रुवों के बीच उत्पन्न होता है।
    • महत्वपूर्ण बात: जब सोलेनोइड में ध्रुव उलटते हैं, तो कोर और प्लंजर दोनों के ध्रुव एक साथ उलट जाते हैं।

चक्र (Cycle)

सोलेनोइड कोर का ध्रुव

            प्लंजर का ध्रुव

                                परिणामी बल

पहला आधा चक्र

उत्तर (N)

               दक्षिण (S)

                                   आकर्षण (Pull)

दूसरा आधा चक्र

दक्षिण (S)

               उत्तर (N)

                                   आकर्षण (Pull)


चूँकि ध्रुवीयता हमेशा इस तरह से बदलती है कि सोलेनोइड कोर और प्लंजर के बीच हमेशा विपरीत ध्रुव बने रहते हैं, इसलिए चुंबकीय बल की दिशा हमेशा कोर की ओर रहती है (यानी, प्लंजर को खींचती रहती है)।

​आकर्षण की प्रकृति

  • ​एसी सोलेनोइड में, आकर्षण बल एक सतत पुल नहीं होता है। जब भी धारा शून्य से गुज़रती है (जो प्रति सेकंड 100 या 120 बार होता है), तो चुंबकीय क्षेत्र भी शून्य हो जाता है, जिससे आकर्षण बल क्षण भर के लिए शून्य हो जाता है।
  • ​यह बल में उतार-चढ़ाव सोलेनोइड में गुंजन ध्वनि (Humming Sound) उत्पन्न करता है।
  • ​टर्मिनल को आपस में बदलने से केवल पूरे चक्र का चरण (Phase) बदलता है (शून्य से अधिकतम, या अधिकतम से शून्य, कब शुरू होता है)। इससे ध्रुवीयता के परिवर्तन का क्रम नहीं बदलता है, इसलिए आकर्षण बल की दिशा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।




32.  डिरेटिंग क्या है? यह क्यों आवश्यक है, यह ड्राइव, मोटर और केबल के सभी साधनों के लिए समान है।

Ans.   

डिरेटिंग (Derating) क्या है?

डिरेटिंग (Derating) का अर्थ है किसी उपकरण या घटक को उसकी रेटेड (Rated) या अधिकतम क्षमता से कम लोड या कम रेटिंग पर संचालित करना।

​यह एक इंजीनियरिंग अभ्यास है जिसका उद्देश्य उपकरणों की विश्वसनीयता (Reliability), सुरक्षा (Safety), और लंबी उम्र (Longevity) सुनिश्चित करना है। जब वास्तविक परिचालन स्थितियाँ (जैसे उच्च परिवेश का तापमान, ऊंचाई, या तारों का गुच्छा) मानक परीक्षण स्थितियों से अधिक कठोर होती हैं, तो डिरेटिंग आवश्यक हो जाता है।

​सरल शब्दों में: यह एक सुरक्षा मार्जिन है जो यह सुनिश्चित करता है कि उपकरण कठिन परिस्थितियों में भी विफल न हो।

​डिरेटिंग क्यों आवश्यक है?

​डिरेटिंग की आवश्यकता का मुख्य कारण गर्मी (Heat) है। अधिकांश विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अपनी अधिकतम क्षमता पर चलने पर गर्मी उत्पन्न करते हैं। यदि यह गर्मी परिवेश की परिस्थितियों के कारण या खराब वेंटिलेशन के कारण ठीक से समाप्त (dissipate) नहीं हो पाती है, तो उपकरण के महत्वपूर्ण घटक ज़्यादा गरम हो जाएंगे, जिससे उनकी इन्सुलेशन सामग्री, अर्धचालक, या यांत्रिक भागों को नुकसान पहुंचेगा।

​डिरेटिंग के मुख्य कारण और आवश्यकताएँ:

कारण (Factor)

प्रभाव (Effect)

आवश्यकता (Necessity)

उच्च परिवेश तापमान (High Ambient Temperature)

उपकरण से गर्मी को बाहर निकालना (हीट डिसिपेशन) मुश्किल हो जाता है।

आंतरिक तापमान को सुरक्षित सीमा के भीतर रखना।

समुद्र तल से अधिक ऊँचाई (High Altitude)

पतली हवा के कारण हवा का शीतलन (Air Cooling) कम प्रभावी हो जाता है।

पर्याप्त शीतलन क्षमता बनाए रखना।

समूहीकरण या बंडलिंग (Grouping/Bundling)

केबल या घटकों के आस-पास गर्मी जमा हो जाती है, जिससे व्यक्तिगत घटक ज़्यादा गरम होते हैं।

स्थानीय ताप वृद्धि को नियंत्रित करना।

अन्य लोड कारक (Duty Cycle, Harmonics)

अप्रत्याशित या बार-बार लोड बढ़ने से तात्कालिक गर्मी उत्पन्न होती है।

अत्यधिक झटके और थर्मल तनाव से बचना।


क्या डिरेटिंग ड्राइव, मोटर और केबल के लिए समान है?

नहीं, डिरेटिंग का सिद्धांत समान है (सुरक्षित परिचालन के लिए रेटेड क्षमता को कम करना), लेकिन इसे लागू करने का तरीका और इसके कारण प्रत्येक उपकरण के लिए अलग-अलग होते हैं।

​1. ड्राइव (VFD/VSD - Variable Frequency Drive) के लिए डिरेटिंग

  • कारण: मुख्य रूप से उच्च परिवेश तापमान, कम वायुदाब (ऊँचाई), और स्विचिंग आवृत्ति। ड्राइव में बिजली के सेमीकंडक्टर (जैसे IGBT) होते हैं जो उच्च तापमान के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं।
  • प्रभाव: तापमान बढ़ने पर ड्राइव की आउटपुट करंट क्षमता कम हो जाती है। यदि ड्राइव को डीरेट नहीं किया जाता है, तो यह ओवरहीट होकर त्रुटि (Fault) दे सकता है या स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है।
  • समाधान: यदि तापमान मानक (40^\circ C) से ऊपर है, तो ड्राइव के कैटलॉग में दिए गए डिरेटिंग फैक्टर के अनुसार उसकी अधिकतम आउटपुट करंट को कम किया जाता है।

​2. मोटर (Motor) के लिए डिरेटिंग

  • कारण: उच्च परिवेश तापमान, उच्च ऊँचाई, और ड्यूटी साइकिल (Duty Cycle)। मोटर के वाइंडिंग इन्सुलेशन की जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) सीधे तापमान से जुड़ी होती है।
  • प्रभाव: उच्च तापमान वाइंडिंग इन्सुलेशन को तेजी से खराब करता है। उदाहरण के लिए, यदि परिवेश का तापमान मोटर की रेटेड सीमा (40^\circ C या 50^\circ C) से ऊपर है, तो मोटर की टॉर्क (Torque) और पावर आउटपुट क्षमता को कम करना पड़ता है।
  • समाधान: एक विशिष्ट डिरेटिंग वक्र (Derating Curve) का उपयोग किया जाता है। यदि मोटर 100\% लोड के लिए रेटेड है, तो उच्च तापमान पर उसे केवल 80\% या 90\% लोड पर ही चलाया जाता है।

​3. केबल (Cable) के लिए डिरेटिंग

  • कारण: उच्च परिवेश तापमान, एक ही नाली (Conduit) में या एक ही ट्रे में केबलों का समूहीकरण (Bundling), और बिछाने की गहराई।
  • प्रभाव: केबल की करंट वहन क्षमता (Ampacity) कम हो जाती है क्योंकि गर्मी को बाहर निकालने की क्षमता कम हो जाती है। यदि डीरेटिंग लागू नहीं किया जाता है, तो केबल ज़्यादा गरम होकर इन्सुलेशन को पिघला सकती है, जिससे शॉर्ट सर्किट और आग लग सकती है।
  • समाधान: करेक्शन फैक्टर (Correction Factors) या डिरेटिंग फैक्टर लागू किए जाते हैं (जैसे तापमान करेक्शन फैक्टर और समूहीकरण करेक्शन फैक्टर)। इन कारकों को मानक एम्पेसिटी से गुणा करके केबल की वास्तविक सुरक्षित करंट क्षमता (Derated Ampacity) प्राप्त की जाती है।



33.  स्वचालित वोल्टेज नियामक (AVR) क्या है?

Ans.    

स्वचालित वोल्टेज नियामक (Automatic Voltage Regulator - AVR) एक इलेक्ट्रॉनिक या इलेक्ट्रोमैकेनिकल उपकरण है जो आउटपुट वोल्टेज को एक निश्चित, वांछित मान पर स्वचालित रूप से स्थिर रखता है, भले ही लोड (भार) या इनपुट गति में परिवर्तन हो।

​यह आमतौर पर जनरेटर (Alternator/Generator) और बिजली संयंत्रों में उपयोग किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उपभोक्ताओं को हमेशा एक स्थिर और सुरक्षित वोल्टेज आपूर्ति मिलती रहे।

​AVR का मुख्य कार्य

​AVR का प्राथमिक कार्य जनरेटर के टर्मिनल वोल्टेज को नियंत्रित और स्थिर करना है। यह तीन मुख्य कार्य करता है:

  1. वोल्टेज को स्थिर रखना: यह आउटपुट वोल्टेज में किसी भी उतार-चढ़ाव (fluctuations) को महसूस करता है और उसे तुरंत सही करके एक स्थिर पूर्व निर्धारित (preset) वोल्टेज बनाए रखता है।
  2. वोल्टेज को नियंत्रित करना: जब जनरेटर पर लोड बदलता है (जैसे बड़ी मशीन चालू या बंद होती है), तो जनरेटर का वोल्टेज भी बदलने की प्रवृत्ति रखता है। AVR जनरेटर की फील्ड वाइंडिंग (Field Winding) में उत्तेजना धारा (Excitation Current) को समायोजित करके इस परिवर्तन को संतुलित करता है।
  3. ओवरवोल्टेज सुरक्षा: यह जनरेटर को अत्यधिक वोल्टेज स्तर से बचाता है जिससे उपकरण क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।

​AVR कैसे काम करता है (बुनियादी सिद्धांत)

​AVR एक क्लोज्ड-लूप कंट्रोल सिस्टम (Closed-Loop Control System) पर काम करता है:

  1. सेंसिंग (Sensing): AVR जनरेटर के आउटपुट टर्मिनल से वोल्टेज को लगातार मापता है।
  2. तुलना (Comparison): मापा गया वोल्टेज एक संदर्भ वोल्टेज (Reference Voltage) (वह स्थिर वोल्टेज जिसे बनाए रखना है) से तुलना किया जाता है।
  3. त्रुटि संकेत (Error Signal): मापा गया वोल्टेज और संदर्भ वोल्टेज के बीच के अंतर को त्रुटि संकेत कहा जाता है।
  4. समायोजन (Adjustment): यह त्रुटि संकेत AVR के कंट्रोल सर्किट में जाता है, जो तदनुसार जनरेटर की फील्ड वाइंडिंग (उत्पादित चुंबकीय क्षेत्र) को दी जाने वाली उत्तेजना धारा को बदल देता है:
    • यदि वोल्टेज गिरता है (लोड बढ़ता है): AVR उत्तेजना धारा को बढ़ाता है, जिससे मजबूत चुंबकीय क्षेत्र बनता है और वोल्टेज वापस सेट पॉइंट तक बढ़ जाता है।
    • यदि वोल्टेज बढ़ता है (लोड घटता है): AVR उत्तेजना धारा को घटाता है, जिससे कमजोर चुंबकीय क्षेत्र बनता है और वोल्टेज सेट पॉइंट तक कम हो जाता है।

​यह प्रक्रिया स्वचालित और बहुत तेज होती है, जिससे जनरेटर का आउटपुट वोल्टेज लगभग स्थिर रहता है।




34.  उत्तेजक क्या है और यह कैसे काम करता है?

Ans.   

हाँ, आपका प्रश्न विद्युत उत्पादन से संबंधित है।

उत्तेजक (Exciter) एक सहायक युक्ति (Auxiliary Device) है जो बड़े सिंक्रोनस जनरेटर (Synchronous Generator) या अल्टरनेटर (Alternator) के रोटर (Rotor) में आवश्यक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए दिष्ट धारा (DC Current) की आपूर्ति करता है।

​जनरेटर में विद्युत उत्पादन के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण प्रणाली है, जिसे उत्तेजना प्रणाली (Excitation System) का केंद्रीय भाग माना जाता है।

​उत्तेजक (Exciter) क्या है?

​सिंक्रोनस जनरेटर (जो बिजली संयंत्रों में उपयोग किए जाते हैं) में, विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) द्वारा वोल्टेज उत्पन्न करने के लिए रोटर वाइंडिंग में एक शक्तिशाली स्थिर चुंबकीय क्षेत्र की आवश्यकता होती है।

  • उत्पादित बिजली (AC): जनरेटर की मुख्य वाइंडिंग (आमतौर पर स्टेटर में) में पैदा होती है।
  • चुंबकीय क्षेत्र (DC): फील्ड वाइंडिंग (आमतौर पर रोटर में) में DC धारा प्रवाहित करके बनाया जाता है।
  • उत्तेजक (Exciter): यह छोटी मशीन या इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जो रोटर के फील्ड वाइंडिंग को यह आवश्यक DC धारा प्रदान करती है।

​संक्षेप में: उत्तेजक, मुख्य जनरेटर के लिए शक्तिशाली चुम्बक बनाने का काम करता है।

​उत्तेजक कैसे काम करता है?

​उत्तेजक की कार्यप्रणाली इस्तेमाल किए गए प्रकार पर निर्भर करती है, लेकिन मूलभूत सिद्धांत समान रहता है: AC आउटपुट को स्थिर DC इनपुट में बदलना।

​उत्तेजक के दो मुख्य प्रकार हैं:

​1. ब्रश एक्साइटेशन सिस्टम (Brush Excitation System)

  • संरचना: इस प्रणाली में, उत्तेजक स्वयं एक छोटा DC जनरेटर या AC अल्टरनेटर हो सकता है।
    • ​यदि DC जनरेटर है, तो यह सीधे DC आउटपुट पैदा करता है।
    • ​यदि AC अल्टरनेटर है, तो इसके AC आउटपुट को रेक्टिफायर (Rectifier) का उपयोग करके DC में बदला जाता है।
  • कार्य: उत्पन्न DC धारा को ब्रश (Brushes) और स्लिप रिंग (Slip Rings) का उपयोग करके मुख्य जनरेटर के घूमते हुए रोटर फील्ड वाइंडिंग तक पहुँचाया जाता है।
  • नियंत्रण: इस DC धारा को ऑटोमैटिक वोल्टेज रेगुलेटर (AVR) द्वारा नियंत्रित किया जाता है। AVR आउटपुट वोल्टेज को मापता है और उत्तेजक की DC धारा को कम या ज्यादा करके जनरेटर वोल्टेज को स्थिर रखता है।

​2. ब्रशलेस एक्साइटेशन सिस्टम (Brushless Excitation System)

​यह आधुनिक और अधिक विश्वसनीय प्रणाली है क्योंकि इसमें ब्रश और स्लिप रिंग का उपयोग नहीं होता है, जिससे घिसाव (wear and tear) कम होता है।

  • संरचना: इस सिस्टम में, उत्तेजक अल्टरनेटर (एक छोटा अल्टरनेटर) मुख्य जनरेटर की शाफ्ट पर ही लगा होता है और उसके साथ घूमता है।
    • ​उत्तेजक अल्टरनेटर का फील्ड वाइंडिंग स्थिर (Stator) होता है।
    • ​उत्तेजक अल्टरनेटर का आर्मेचर वाइंडिंग घूमता हुआ (Rotor) होता है।
  • कार्य:
    1. ​AVR एक नियंत्रित DC धारा को उत्तेजक अल्टरनेटर के स्थिर फील्ड वाइंडिंग में भेजता है।
    2. ​यह स्थिर फील्ड वाइंडिंग उत्तेजक अल्टरनेटर के घूमते हुए आर्मेचर वाइंडिंग में AC वोल्टेज प्रेरित करता है।
    3. ​यह प्रेरित AC वोल्टेज शाफ्ट पर लगे एक घूमने वाले रेक्टिफायर असेंबली (Rotating Rectifier Assembly - RRA) में जाता है, जो इसे DC में बदल देता है।
    4. ​यह शुद्ध DC धारा सीधे मुख्य जनरेटर के रोटर फील्ड वाइंडिंग को दी जाती है (चूंकि सब कुछ एक ही शाफ्ट पर है, इसलिए किसी ब्रश की आवश्यकता नहीं होती)।

निष्कर्ष: उत्तेजक का काम जनरेटर के रोटर में एक नियंत्रित DC चुंबकीय क्षेत्र स्थापित करना है, जो मुख्य जनरेटर को बिजली (AC) पैदा करने में सक्षम बनाता है।





35.  चार पॉइंट स्टार्टर और तीन पॉइंट स्टार्टर के बीच अंतर?

Ans.   

डीसी (DC) शंट और कंपाउंड मोटर्स में चार पॉइंट स्टार्टर (4-Point Starter) और तीन पॉइंट स्टार्टर (3-Point Starter) का उपयोग मोटर को शुरू करते समय अत्यधिक स्टार्टिंग करंट (Starting Current) को सीमित करने के लिए किया जाता है।

​इन दोनों स्टार्टर के बीच मुख्य अंतर नो-वोल्ट कॉइल (No-Volt Coil - NVC) या होल्डिंग कॉइल (Holding Coil) के कनेक्शन में है।

​तीन पॉइंट स्टार्टर और चार पॉइंट स्टार्टर के बीच अंतर

विशेषता (Feature)

तीन पॉइंट स्टार्टर (3-Point Starter)

चार पॉइंट स्टार्टर (4-Point Starter)

टर्मिनल (Terminals)

तीन टर्मिनल होते हैं: L (लाइन), A (आर्मेचर), F (फील्ड)

चार टर्मिनल होते हैं: L, A, F, और एक अतिरिक्त टर्मिनल N (नो-वोल्ट कॉइल लाइन)।

NVC कनेक्शन

NVC को शंट फील्ड वाइंडिंग के साथ श्रृंखला (Series) में जोड़ा जाता है।

NVC को एक अतिरिक्त प्रतिरोध (Resistance) के साथ सीधे आपूर्ति (Supply) के समानांतर (Parallel) में जोड़ा जाता है, और यह शंट फील्ड वाइंडिंग से स्वतंत्र होता है।

मुख्य समस्या

फील्ड वीकेनिंग (Field Weakening) द्वारा गति नियंत्रण के लिए उपयुक्त नहीं है। यदि शंट फील्ड करंट कम होता है, तो NVC में करंट भी कम हो जाता है, और कॉइल हैंडल को रिलीज़ करके मोटर को बंद कर सकता है।

फील्ड वीकेनिंग द्वारा गति नियंत्रण के लिए पूरी तरह उपयुक्त है, क्योंकि NVC करंट शंट फील्ड करंट से स्वतंत्र होता है।

NVC कार्यप्रणाली

NVC में प्रवाहित धारा शंट फील्ड की धारा पर निर्भर करती है।

NVC में प्रवाहित धारा केवल आपूर्ति वोल्टेज पर निर्भर करती है, शंट फील्ड की धारा पर नहीं।

उपयोग

जहां फील्ड वीकेनिंग द्वारा गति नियंत्रण की आवश्यकता नहीं होती है।

जहां फील्ड वीकेनिंग (रेटेड स्पीड से ऊपर की गति नियंत्रण) की आवश्यकता होती है।



कार्यप्रणाली का मुख्य अंतर

नो-वोल्ट कॉइल (NVC): यह एक सुरक्षा उपकरण है। इसका काम आपूर्ति वोल्टेज के बहुत कम हो जाने (नो-वोल्ट स्थिति) पर हैंडल को "रन" स्थिति से "ऑफ" स्थिति पर खींचकर मोटर को आपूर्ति से अलग करना है, ताकि वोल्टेज वापस आने पर मोटर खुद से शुरू न हो जाए।

  1. 3-पॉइंट स्टार्टर में समस्या: जब मोटर की गति को रेटेड गति से ऊपर बढ़ाने के लिए फील्ड वीकेनिंग विधि का उपयोग किया जाता है (यानी शंट फील्ड करंट को कम किया जाता है), तो NVC जो शंट फील्ड के साथ श्रृंखला में जुड़ा है, उसमें भी करंट कम हो जाता है। यदि यह करंट इतना कम हो जाता है कि NVC का चुंबकत्व हैंडल को पकड़ नहीं पाता, तो यह हैंडल को रिलीज़ कर देता है, जिससे मोटर अनावश्यक रूप से बंद हो जाती है।
  2. 4-पॉइंट स्टार्टर में समाधान: 4-पॉइंट स्टार्टर में, NVC को सीधे लाइन आपूर्ति के पार जोड़ा जाता है और यह शंट फील्ड से स्वतंत्र होता है। इसलिए, शंट फील्ड करंट को गति नियंत्रण के लिए कितना भी कम किया जाए, NVC में करंट स्थिर रहता है, जिससे यह हैंडल को मजबूती से पकड़ कर रखता है।




36.  उच्च संचरण प्रणाली में वीसीबी का उपयोग क्यों किया जाता है? एसीबी का उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता?

Ans.   

उच्च संचरण (High Transmission) या वितरण प्रणाली (Distribution System) में वीसीबी (VCB - Vacuum Circuit Breaker) का उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि यह एसीबी (ACB - Air Circuit Breaker) की तुलना में उच्च वोल्टेज और उच्च दोष धाराओं (High Fault Currents) को अधिक कुशलता से और सुरक्षित रूप से नियंत्रित कर सकता है।

​उच्च संचरण प्रणाली में वीसीबी (VCB) का उपयोग क्यों किया जाता है?

​वीसीबी 11 kV से लेकर 33 kV तक के मध्यम वोल्टेज अनुप्रयोगों के लिए एक पसंदीदा विकल्प है, और यह अपनी उत्कृष्ट आर्क शमन (Arc Quenching) क्षमता के कारण सफल है:

  1. उत्कृष्ट आर्क शमन (Arc Quenching):
    • ​वीसीबी में, संपर्कों (Contacts) के बीच बनने वाले विद्युत चाप (Electric Arc) को बुझाने के लिए उच्च निर्वात (High Vacuum) का उपयोग किया जाता है।
    • निर्वात में कोई गैस अणु नहीं होते हैं, इसलिए यह चाप को बनाए रखने के लिए आवश्यक आयनित (Ionized) माध्यम प्रदान नहीं करता है।
    • ​परिणामस्वरूप, दोष (Fault) आने पर चाप अत्यधिक तेज़ी से (माइक्रोसेकंड में) बुझ जाता है।
  2. उच्च विद्युत रोधन क्षमता (High Dielectric Strength):
    • ​निर्वात (Vacuum) की विद्युत रोधन शक्ति, हवा की तुलना में बहुत अधिक होती है।
    • ​यह वीसीबी को उच्च वोल्टेज स्तरों को प्रभावी ढंग से संभालने और बिना किसी पुन: प्रज्वलन (Re-ignition) के उच्च दोष धाराओं को बाधित करने की अनुमति देता है।
  3. कम रखरखाव और लंबा जीवनकाल (Low Maintenance & Longer Life):
    • ​चाप को वैक्यूम इंटरप्टर के अंदर सील (Sealed) किया जाता है। आर्क से उत्पन्न ऊष्मा और कण संपर्कों के क्षरण (Erosion) को कम करते हैं।
    • ​इस कारण वीसीबी को एसीबी की तुलना में बहुत कम रखरखाव की आवश्यकता होती है और इसका परिचालन जीवनकाल (Operational Life) लंबा होता है।
  4. कॉम्पैक्ट आकार (Compact Size):
    • ​अत्यधिक कुशल आर्क शमन क्षमता के कारण, वीसीबी का डिज़ाइन छोटा और कॉम्पैक्ट होता है, जो उन्हें स्विचगियर (Switchgear) पैनलों में सीमित जगह के लिए आदर्श बनाता है।

​एसीबी (ACB) का उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता?

एयर सर्किट ब्रेकर (ACB) आर्क को बुझाने के लिए माध्यम के रूप में सामान्य वायु (Air) का उपयोग करता है। उच्च संचरण (High Voltage) प्रणाली में इसका उपयोग न करने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

  1. कम रोधन क्षमता (Lower Insulation Strength):
    • ​उच्च वोल्टेज पर, वायु की विद्युत रोधन शक्ति पर्याप्त नहीं होती है।
    • ​जब संपर्क अलग होते हैं, तो उच्च वोल्टेज के कारण उत्पन्न विद्युत चाप (Arc) बहुत शक्तिशाली होता है, और साधारण वायु इसे तेजी से बुझा नहीं पाती है।
  2. चाप को नियंत्रित करने में कठिनाई (Difficulty in Arc Control):
    • ​उच्च दोष धाराओं के कारण उत्पन्न शक्तिशाली चाप को नियंत्रित करने के लिए ACB को बड़े आर्क च्यूट्स (Arc Chutes) और चुंबकीय ब्लोआउट (Magnetic Blowout) तंत्र की आवश्यकता होती है, जिससे ब्रेकर बहुत बड़ा और भारी हो जाता है।
  3. संपर्क क्षरण और रखरखाव (Contact Erosion and Maintenance):
    • ​वायु में चाप के कारण संपर्कों का अधिक क्षरण होता है।
    • ​उच्च वोल्टेज पर विश्वसनीय प्रदर्शन सुनिश्चित करने के लिए ACB को अधिक बार रखरखाव (जैसे संपर्कों और चाप च्यूट की सफाई/बदलाव) की आवश्यकता होती है।
  4. उच्च वोल्टेज सीमा:
    • ​ACB मुख्य रूप से निम्न वोल्टेज अनुप्रयोगों (आमतौर पर 1000 वोल्ट से नीचे) के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, जहाँ चाप अपेक्षाकृत कम शक्तिशाली होता है। उच्च वोल्टेज संचरण के लिए वे अनुपयुक्त हैं।

​संक्षेप में, VCB की निर्वात-आधारित तकनीक इसे उच्च वोल्टेज पर दोष धाराओं को तेजी से, कुशलता से और कम रखरखाव के साथ तोड़ने की बेजोड़ क्षमता प्रदान करती है, जो ACB के वायु-आधारित तंत्र में संभव नहीं है।



37.  सर्ज अरेस्टर और लाइटनिंग अरेस्टर के बीच क्या अंतर है?

Ans.   

सर्ज अरेस्टर (Surge Arrester) और लाइटनिंग अरेस्टर (Lightning Arrester) दोनों ही विद्युत प्रणालियों को अत्यधिक वोल्टेज (Overvoltage) से बचाते हैं, लेकिन उनके प्राथमिक उद्देश्य, अनुप्रयोग (Application) और सुरक्षा का दायरा अलग-अलग होते हैं।

विशेषता

लाइटनिंग अरेस्टर (Lightning Arrester)

सर्ज अरेस्टर (Surge Arrester)

संरक्षण का प्राथमिक उद्देश्य

सीधे बिजली गिरने (Direct Lightning Strike) के कारण उत्पन्न होने वाले अत्यधिक उच्च वोल्टेज और धारा से इमारतों, संरचनाओं और बाह्य उपकरणों की सुरक्षा करना।

स्विचिंग ऑपरेशन (Switching Operations) या दूरस्थ बिजली गिरने के कारण उत्पन्न होने वाले क्षणिक वोल्टेज स्पाइक्स (Transient Voltage Spikes) से विद्युत उपकरणों की सुरक्षा करना।

सुरक्षा का दायरा

यह बाहरी संरचनात्मक सुरक्षा पर केंद्रित है, जिससे बिजली की भारी ऊर्जा को सीधे जमीन (Ground) में डायवर्ट किया जा सके।

यह आंतरिक विद्युत प्रणाली सुरक्षा पर केंद्रित है, जिससे लाइन में आने वाले वोल्टेज उछाल को नियंत्रित किया जा सके।

स्थापना का स्थान

आमतौर पर बाहर स्थापित किया जाता है—जैसे कि इमारतों की छत पर, बिजली के खंभों पर या ट्रांसमिशन लाइनों पर।

आमतौर पर अंदर स्थापित किया जाता है—जैसे कि सबस्टेशनों के फीडर प्रवेश द्वार पर, पैनलों के अंदर, या संवेदनशील उपकरणों के पास।

वोल्टेज रेंज

उच्च वोल्टेज अनुप्रयोगों (जैसे 11kV से 500kV तक) के लिए डिज़ाइन किया गया।

कम और मध्यम वोल्टेज अनुप्रयोगों (जैसे 0.4kV से 36kV तक) के लिए उपयोग किया जाता है, हालांकि इसका उपयोग उच्च वोल्टेज लाइनों पर भी सर्ज को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।

संरक्षण का कारण

केवल आकाशीय बिजली से उत्पन्न सर्ज।

आकाशीय बिजली, स्विचिंग, लोड परिवर्तन और अन्य आंतरिक या बाहरी कारणों से उत्पन्न सभी प्रकार के वोल्टेज स्पाइक्स (Voltage Spikes)।

संरचनात्मक अंतर

यह आमतौर पर एक छड़ (Rod) या धातु का नुकीला उपकरण होता है जिसे पृथ्वी से जोड़ा जाता है।

यह एक गैर-रेखीय प्रतिरोधी (Non-Linear Resistor) डिवाइस होता है, जो अक्सर मेटल ऑक्साइड वैरिस्टर (MOV) का उपयोग करता है।


मुख्य निष्कर्ष (Key Takeaway)

​वास्तव में, सर्ज अरेस्टर एक व्यापक शब्द है जो किसी भी क्षणिक वोल्टेज उछाल (Transient Overvoltage) से बचाने वाले उपकरण को दर्शाता है। लाइटनिंग अरेस्टर को अक्सर सर्ज अरेस्टर का एक विशेष रूप माना जाता है, जिसे विशेष रूप से सीधे बिजली गिरने की अत्यधिक ऊर्जा को संभालने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

​आजकल, उच्च वोल्टेज प्रणालियों में उपयोग किए जाने वाले अधिकांश उपकरण जो बिजली के सर्ज से रक्षा करते हैं, उन्हें सर्ज अरेस्टर कहा जाता है, जो बिजली के साथ-साथ स्विचिंग से उत्पन्न सर्ज से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं।




38.   विद्युत उत्पादन के लिए समानार्थी जनरेटर का उपयोग क्यों किया जाता है?

Ans.   

विद्युत उत्पादन के लिए तुल्यकालिक जनरेटर (Synchronous Generators), जिन्हें अल्टरनेटर (Alternators) भी कहा जाता है, का उपयोग मुख्य रूप से उनकी स्थिर आउटपुट आवृत्ति, वोल्टेज नियंत्रण क्षमता और ग्रिड के साथ निर्बाध रूप से समानांतर (Parallel) रूप से काम करने की क्षमता के कारण किया जाता है। वे बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन के लिए सबसे विश्वसनीय और कुशल मशीनें हैं।

​तुल्यकालिक जनरेटर का उपयोग करने के मुख्य कारण

​1. स्थिर आवृत्ति और गति नियंत्रण (Constant Frequency and Speed Control)

  • ​तुल्यकालिक जनरेटर का नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इसका रोटर (Rotor), उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र की गति से तुल्यकालिक गति (Synchronous Speed) पर घूमता है।
  • ​विद्युत ग्रिड के लिए एक स्थिर आवृत्ति (भारत में 50 Hz, अमेरिका में 60 Hz) बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। तुल्यकालिक जनरेटर इस आवृत्ति को बनाए रखने के लिए उपयुक्त होते हैं, क्योंकि उनकी गति सीधे आवृत्ति से संबंधित होती है (\text{f} = \frac{\text{PN}}{120})।
  • ​यह स्थिर और नियंत्रित आवृत्ति ग्रिड की स्थिरता के लिए आधार है।

​2. प्रतिक्रियाशील शक्ति नियंत्रण (Reactive Power Control)

  • ​ग्रिड को सक्रिय शक्ति (Active Power) (जो वास्तविक ऊर्जा प्रदान करती है) के साथ-साथ प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) (जो चुंबकीय क्षेत्र स्थापित करने के लिए आवश्यक है) की भी आवश्यकता होती है।
  • ​तुल्यकालिक जनरेटर का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह अपने फील्ड एक्साइटेशन (Field Excitation) को बदलकर प्रतिक्रियाशील शक्ति की मात्रा को नियंत्रित कर सकता है।
    • ओवर-एक्साइटेड (Over-Excited): यह पश्चगामी (Lagging) प्रतिक्रियाशील शक्ति ग्रिड को प्रदान करता है।
    • अंडर-एक्साइटेड (Under-Excited): यह ग्रिड से अग्रगामी (Leading) प्रतिक्रियाशील शक्ति खींचता है।
  • ​यह क्षमता ग्रिड में वोल्टेज स्तरों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

​3. सरल समानांतर संचालन (Easy Parallel Operation)

  • ​बिजली संयंत्रों में कई जनरेटर को एक साथ ग्रिड से जोड़ा जाता है।
  • ​तुल्यकालिक जनरेटर को ग्रिड या अन्य जनरेटर के साथ समानांतर (Parallel) में जोड़ना आसान होता है। एक बार तुल्यकालिक गति पर आने के बाद, वे ग्रिड के साथ स्थिर रूप से काम कर सकते हैं और स्वचालित रूप से ग्रिड में आने वाले भार परिवर्तनों का जवाब दे सकते हैं।

​4. उच्च दक्षता और विश्वसनीयता (High Efficiency and Reliability)

  • ​ये मशीनें बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन के लिए डिज़ाइन की गई हैं और उच्च दक्षता पर काम करती हैं।
  • ​इनकी मजबूत संरचना और डीसी उत्तेजन प्रणाली (DC Excitation System) उन्हें विश्वसनीय बनाती है, जो निरंतर, 24/7 संचालन के लिए आवश्यक है।

अतुल्यकालिक जनरेटर (Asynchronous Generators) या इंडक्शन जनरेटर का उपयोग मुख्य रूप से पवन ऊर्जा संयंत्रों जैसे छोटे या विशेष अनुप्रयोगों में किया जाता है, लेकिन वे प्रतिक्रियाशील शक्ति को ग्रिड में इंजेक्ट नहीं कर सकते हैं, उन्हें हमेशा ग्रिड से प्रतिक्रियाशील शक्ति खींचनी पड़ती है, जो बड़े ग्रिड को स्थिर रखने के लिए उन्हें अनुपयुक्त बनाता है। इसलिए, अधिकांश बिजली संयंत्रों में तुल्यकालिक जनरेटर (Synchronous Generators) ही प्राथमिक जनरेटर हैं।




39.  डीसी जनरेटर के प्रकार सूचीबद्ध करें?

Ans.   

डीसी (DC) जनरेटर को उनके फील्ड वाइंडिंग (Field Winding) उत्तेजन (Excitation) के तरीके के आधार पर मुख्य रूप से दो प्रमुख प्रकारों में सूचीबद्ध किया जाता है: स्थायी चुंबक डीसी जनरेटर और विद्युत चुंबक डीसी जनरेटर

​1. स्थायी चुंबक डीसी जनरेटर (Permanent Magnet DC Generator)

  • ​इन जनरेटरों में, मुख्य चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) बनाने के लिए स्थायी चुंबक का उपयोग किया जाता है।
  • ​ये छोटे आकार के होते हैं और आमतौर पर कम शक्ति (Low Power) वाले अनुप्रयोगों, जैसे छोटे खिलौने, साइकिल डायनेमो, या हैंड-हेल्ड टूल्स में उपयोग किए जाते हैं।

​2. विद्युत चुंबक डीसी जनरेटर (Electromagnet DC Generator)

​इन जनरेटरों में, चुंबकीय क्षेत्र बनाने के लिए विद्युत चुंबक (Electromagnet) (जिसे फील्ड वाइंडिंग कहते हैं) का उपयोग किया जाता है। इन्हें आगे उत्तेजन के तरीके के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

​A. पृथक उत्तेजित डीसी जनरेटर (Separately Excited DC Generator)

  • ​इस प्रकार के जनरेटर में, फील्ड वाइंडिंग (Field Winding) को उत्तेजित करने के लिए एक बाहरी डीसी स्रोत (जैसे एक अलग बैटरी या एक छोटा डीसी जनरेटर) का उपयोग किया जाता है।
  • लाभ: फील्ड करंट को स्वतंत्र रूप से नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे आउटपुट वोल्टेज पर सटीक नियंत्रण मिलता है।
  • उपयोग: प्रयोगशाला परीक्षणों और कुछ विशिष्ट अनुप्रयोगों में जहाँ वोल्टेज नियंत्रण महत्वपूर्ण होता है।

​B. स्व-उत्तेजित डीसी जनरेटर (Self-Excited DC Generator)

  • ​इन जनरेटरों में, फील्ड वाइंडिंग को उत्तेजित करने के लिए आवश्यक शक्ति स्वयं जनरेटर के आर्मेचर (Armature) से ही ली जाती है। यह अवशिष्ट चुंबकत्व (Residual Magnetism) के कारण संभव होता है।
  • ​इन्हें फील्ड वाइंडिंग के आर्मेचर से जुड़ने के तरीके के आधार पर तीन उप-प्रकारों में विभाजित किया जाता है:

​i. डीसी शंट जनरेटर (DC Shunt Generator)

  • फील्ड वाइंडिंग को आर्मेचर के साथ समानांतर (Parallel) में जोड़ा जाता है।
  • ​फील्ड वाइंडिंग में प्रतिरोध अधिक और टर्न की संख्या अधिक होती है।
  • विशेषता: ये लगभग स्थिर वोल्टेज आउटपुट प्रदान करते हैं।
  • उपयोग: लाइटिंग (रोशनी), बैटरी चार्जिंग, और स्थिर वोल्टेज की आवश्यकता वाले औद्योगिक अनुप्रयोग।

​ii. डीसी सीरीज जनरेटर (DC Series Generator)

  • फील्ड वाइंडिंग को आर्मेचर के साथ सीरीज (Series) में जोड़ा जाता है।
  • ​फील्ड वाइंडिंग में प्रतिरोध कम और टर्न की संख्या कम होती है।
  • विशेषता: जैसे-जैसे लोड बढ़ता है, आउटपुट वोल्टेज तेजी से बढ़ता है।
  • उपयोग: मुख्य रूप से डीसी लोकोमोटिव (शुरुआती समय में) और बूस्टर के रूप में।

​iii. डीसी कम्पाउंड जनरेटर (DC Compound Generator)

  • ​इसमें सीरीज फील्ड वाइंडिंग और शंट फील्ड वाइंडिंग दोनों होती हैं।
  • ​सीरीज फील्ड आर्मेचर के साथ सीरीज में और शंट फील्ड आर्मेचर के साथ समानांतर में जुड़ी होती है।
  • लाभ: यह शंट और सीरीज जनरेटर दोनों की विशेषताओं को मिलाता है, जिससे वोल्टेज ड्रॉप को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • वर्गीकरण:
    • लॉन्ग शंट कम्पाउंड (Long Shunt Compound): शंट फील्ड सीरीज फील्ड और आर्मेचर दोनों के समानांतर में जुड़ी होती है।
    • शॉर्ट शंट कम्पाउंड (Short Shunt Compound): शंट फील्ड केवल आर्मेचर के समानांतर में जुड़ी होती है।
  • उपयोग: औद्योगिक पावर सप्लाई और वह जगह जहाँ स्थिर वोल्टेज आउटपुट की आवश्यकता होती है, भले ही लोड बदल जाए।





40.  सिंक्रोनस जेनरेटर और एसिंक्रोनस जेनरेटर के बीच क्या अंतर है?

Ans.    

सिंक्रोनस जनरेटर (Synchronous Generator) और एसिंक्रोनस जनरेटर (Asynchronous Generator) (जिसे इंडक्शन जनरेटर भी कहा जाता है) के बीच मुख्य अंतर उनकी रोटर गति और ग्रिड पर नियंत्रण की क्षमता में है।

विशेषता

सिंक्रोनस जनरेटर (Synchronous Generator) / अल्टरनेटर

एसिंक्रोनस जनरेटर (Asynchronous Generator) / इंडक्शन जनरेटर

रोटर गति (Rotor Speed)

रोटर हमेशा तुल्यकालिक गति (N_s) पर घूमता है, जिसका अर्थ है कि रोटर की गति चुंबकीय क्षेत्र की गति के बराबर होती है।

रोटर तुल्यकालिक गति (N_s) से अधिक गति पर घूमता है, जिससे स्लिप (Slip) का मान ऋणात्मक (Negative) होता है। (N_r > N_s)

क्षेत्र उत्तेजन (Field Excitation)

इसे बाहरी DC स्रोत (जैसे एक्ससाइटर) की आवश्यकता होती है, जिससे यह अपना चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सके।

इसे बाहरी उत्तेजन की आवश्यकता नहीं होती है; यह चुंबकीय क्षेत्र बनाने के लिए ग्रिड से प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) खींचता है।

प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power)

यह प्रतिक्रियाशील शक्ति को उत्पन्न या अवशोषित (ग्रिड को प्रदान या ग्रिड से खींच) कर सकता है, जिससे यह ग्रिड वोल्टेज को नियंत्रित करने में सक्षम होता है।

यह हमेशा ग्रिड से प्रतिक्रियाशील शक्ति खींचता है (अवशोषित करता है)। यह वोल्टेज को नियंत्रित नहीं कर सकता।

ग्रिड अनुप्रयोग

बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन के लिए प्राथमिक विकल्प है (जैसे थर्मल, हाइड्रो, न्यूक्लियर पावर प्लांट)।

मुख्य रूप से पवन टर्बाइन और छोटी जलविद्युत इकाइयों जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में उपयोग किया जाता है।

संरचना की जटिलता

अधिक जटिल (स्लिप रिंग, ब्रश और एक्साइटर की आवश्यकता होती है)।

अधिक सरल और मजबूत (स्लिप रिंग और एक्साइटर की आवश्यकता नहीं होती)।

शुरुआत

इसे तुल्यकालिक गति तक लाने के लिए एक प्राइम मूवर (Prime Mover) की आवश्यकता होती है।

इसे शुरू करने के लिए प्राइम मूवर के साथ-साथ ग्रिड से प्रतिक्रियाशील शक्ति की आवश्यकता होती है।





41.   डीसी शंट मोटर की दो बुनियादी गति नियंत्रण योजनाएँ बताइए?

Ans.   

डीसी शंट मोटर (DC Shunt Motor) की गति नियंत्रण (Speed Control) की दो बुनियादी योजनाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. क्षेत्र नियंत्रण विधि (Field Control Method) या फ्लक्स नियंत्रण विधि (Flux Control Method):
    • ​इस विधि में, शंट फ़ील्ड वाइंडिंग (Shunt Field Winding) के साथ श्रृंखला (Series) में एक परिवर्तनीय प्रतिरोध (Variable Resistor) जिसे फ़ील्ड रिओस्टेट कहा जाता है, जोड़ा जाता है।
    • ​रिओस्टेट का प्रतिरोध बढ़ाकर शंट फ़ील्ड करंट (I_{sh}) को कम किया जाता है।
    • ​फ़ील्ड करंट कम होने से मोटर का फ्लक्स (\Phi) कम हो जाता है।
    • ​चूँकि मोटर की गति (N) फ्लक्स के व्युत्क्रमानुपाती (N \propto 1/\Phi) होती है, इसलिए फ्लक्स कम होने पर मोटर की गति सामान्य गति (Base Speed) से ऊपर बढ़ जाती है।
    • ​यह विधि स्थिर शक्ति (Constant Power) और परिवर्तनीय बलाघूर्ण (Variable Torque) ऑपरेशन प्रदान करती है।
  2. आर्मेचर नियंत्रण विधि (Armature Control Method):
    • ​इस विधि में, आर्मेचर वाइंडिंग (Armature Winding) के साथ श्रृंखला में एक परिवर्तनीय प्रतिरोध (Variable Resistor) जोड़ा जाता है।
    • ​इस प्रतिरोध को बढ़ाकर आर्मेचर परिपथ का कुल प्रतिरोध बढ़ाया जाता है।
    • ​इससे आर्मेचर वोल्टेज (V_a) कम हो जाता है, जिससे बैक EMF (E_b) कम हो जाता है।
    • ​चूँकि मोटर की गति बैक EMF (N \propto E_b) के समानुपाती होती है, इसलिए मोटर की गति सामान्य गति से नीचे कम हो जाती है।
    • ​यह विधि निरंतर बलाघूर्ण (Constant Torque) और परिवर्तनीय शक्ति (Variable Power) ऑपरेशन प्रदान करती है।




42.  मोटर का सिद्धांत क्या है?

Ans.     

मोटर का सिद्धांत विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव पर आधारित है।

​मोटर का सिद्धांत

​मोटर एक विद्युत-यांत्रिक मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा (घूमने वाली गति) में परिवर्तित करती है।

बुनियादी सिद्धांत:

  1. ​जब किसी धारावाही चालक (Current-carrying conductor), जैसे कि एक आयताकार कुंडली (Rectangular Coil) को, एक चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) में रखा जाता है, तो उस चालक पर एक बल (Force) कार्य करता है।
  2. ​यह बल फ्लेमिंग के वामहस्त नियम (Fleming's Left-Hand Rule) द्वारा निर्धारित होता है, जिसके अनुसार बल, चुंबकीय क्षेत्र और धारा की दिशा एक दूसरे के लंबवत (Perpendicular) होती हैं।
  3. ​कुंडली के दोनों विपरीत किनारों पर यह बल विपरीत दिशाओं में कार्य करता है, जिससे एक बल युग्म (Couple) बनता है।
  4. ​यह बल युग्म कुंडली को लगातार घुमाता है, जिससे मोटर की धुरी (Shaft) घूमने लगती है और यांत्रिक कार्य होता है।

​संक्षेप में, मोटर का सिद्धांत यह है कि चुंबकीय क्षेत्र में धारा प्रवाहित करने पर बल उत्पन्न होता है, जो घूर्णन (Rotation) पैदा करता है।





43.   आर्मेचर प्रतिक्रिया से क्या तात्पर्य है?

Ans.      

आर्मेचर प्रतिक्रिया (Armature Reaction) से तात्पर्य मुख्य क्षेत्र फ्लक्स (Main Field Flux) पर आर्मेचर फ्लक्स के प्रभाव से है।

​जब एक डीसी मशीन (चाहे वह मोटर हो या जनरेटर) लोड पर चलती है, तो आर्मेचर वाइंडिंग में धारा (I_a) प्रवाहित होती है। इस धारा के कारण आर्मेचर फ्लक्स (\Phi_a) उत्पन्न होता है।

​यह आर्मेचर फ्लक्स, जो कि मुख्य रूप से ध्रुवों (Poles) द्वारा उत्पन्न मुख्य क्षेत्र फ्लक्स (\Phi_m) के लंबवत (Perpendicular) होता है, मुख्य फ्लक्स के साथ परस्पर क्रिया (Interact) करता है और उस पर दो अवांछनीय प्रभाव डालता है:

  1. क्रॉस-चुम्बकन प्रभाव (Cross-Magnetizing Effect): यह प्रभाव मुख्य फ्लक्स वितरण को विकृत (Distort) कर देता है। इसके कारण चुंबकीय उदासीन अक्ष (Magnetic Neutral Axis - MNA) अपनी मूल स्थिति से विस्थापित (Shift) हो जाता है।
  2. वि-चुम्बकन प्रभाव (De-Magnetizing Effect): यह प्रभाव मुख्य फ्लक्स के मान को कम (Reduce) कर देता है।

संक्षेप में:

  • आर्मेचर फ्लक्स (Phi_a) + मुख्य फ्लक्स (Phi_m) = विकृत फ्लक्स (Distorted Flux)
  • ​इस विकृत फ्लक्स का मुख्य फ्लक्स पर पड़ने वाला प्रभाव ही आर्मेचर प्रतिक्रिया कहलाता है।

​आर्मेचर प्रतिक्रिया के कारण स्पार्किंग (Sparking) और मशीन की दक्षता (Efficiency) में कमी आ सकती है।




44.   ध्रुवीकरण सूचकांक मूल्य क्या है? (पीआई मूल्य) और ध्रुवीकरण सूचकांक की सरल परिभाषा क्या है?

Ans.     

ध्रुवीकरण सूचकांक (Polarization Index - PI) विद्युत मशीन (जैसे मोटर और ट्रांसफार्मर) के इन्सुलेशन (विद्युत रोधन) की समग्र गुणवत्ता और नमी की मात्रा का आकलन करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण नैदानिक उपकरण है।

​ध्रुवीकरण सूचकांक (PI) की सरल परिभाषा

​ध्रुवीकरण सूचकांक (PI) दो अलग-अलग समय पर मापे गए इन्सुलेशन प्रतिरोध (Insulation Resistance - IR) का अनुपात है।

​यह अनुपात दिखाता है कि समय के साथ इन्सुलेशन सामग्री कितनी अच्छी तरह से चार्ज को अवशोषित करती है और इन्सुलेशन प्रतिरोध में वृद्धि होती है। यह मशीन के इन्सुलेशन में नमी, प्रदूषण या गंभीर क्षति की उपस्थिति को इंगित करता है।

​ध्रुवीकरण सूचकांक मूल्य (PI Value)

​PI मान की गणना 10 मिनट के इन्सुलेशन प्रतिरोध को 1 मिनट के इन्सुलेशन प्रतिरोध से विभाजित करके की जाती है:

{PI} = {{10 मिनट पर इन्सुलेशन प्रतिरोध (IR)} (R_{10})}{{1 मिनट पर इन्सुलेशन प्रतिरोध (IR)} (R_{1})}

PI मान और इन्सुलेशन की स्थिति:

​विद्युत मशीनरी के लिए स्वीकार्य PI मान आमतौर पर 2.0 या उससे अधिक होता है। विभिन्न मानों का अर्थ निम्नलिखित है:

PI मान.                                           

इन्सुलेशन की स्थिति

< 1.0 से 1.5 तक

खराब / खतरनाक (नमी संदूषण, गंदगी या गंभीर गिरावट को दर्शाता है)

1.5 से 2.0 तक                                              

सीमांत (Marginal)

\ge 2.0

अच्छा / संतोषजनक

> 4.0

उत्कृष्ट (Excellent)


एक उच्च PI मान (आमतौर पर 2.0 या उससे अधिक) स्वस्थ, साफ और सूखा इन्सुलेशन दर्शाता है।

एक कम PI मान (1.0 के करीब) दूषित, खराब या गीला इन्सुलेशन दर्शाता है।




45. क्या होगा जब शक्ति वितरण में शक्ति गुणांक अग्रणी होगा?

Ans.

जब किसी शक्ति वितरण (Power Distribution) प्रणाली में शक्ति गुणांक (Power Factor - PF) अग्रणी (Leading) होता है, तो इसका मतलब है कि परिपथ में धारा (Current) वोल्टेज (Voltage) से आगे चलती है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब सिस्टम में धारिता लोड (Capacitive Load) की मात्रा अधिक हो जाती है।

​शक्ति गुणांक के अत्यधिक अग्रणी होने पर वितरण प्रणाली में निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं:

​1. वोल्टेज में वृद्धि (Voltage Rise)

​यह सबसे महत्वपूर्ण और हानिकारक प्रभाव है।

  • फेरांटी प्रभाव (Ferranti Effect): लंबी ट्रांसमिशन लाइनों और हल्के लोड की स्थिति में, लाइन की प्राकृतिक धारिता (Capacitance) के कारण प्राप्त करने वाले सिरे (Receiving End) का वोल्टेज भेजने वाले सिरे (Sending End) के वोल्टेज से अधिक हो जाता है।
  • वोल्टेज का अनियंत्रण: अग्रणी शक्ति गुणांक (Capacitive VARs) जनरेटर/अल्टरनेटर के चुंबकीय क्षेत्र (Field) की सहायता करता है, जिससे टर्मिनल वोल्टेज बढ़ जाता है। वोल्टेज का यह उच्च स्तर लोड और सिस्टम उपकरणों (जनरेटर, अल्टरनेटर) को नुकसान पहुंचा सकता है।

​2. उपकरणों को क्षति (Damage to Equipment)

  • ​जनरेटर और अल्टरनेटर अग्रणी शक्ति गुणांक के कारण होने वाले उच्च वोल्टेज और प्रतिक्रियाशील शक्ति के प्रवाह को सहने के लिए डिज़ाइन नहीं किए जाते हैं। इससे उनके इन्सुलेशन और संचालन पर तनाव बढ़ जाता है, जिससे वे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।

​3. अतिरिक्त प्रतिक्रियाशील शक्ति का प्रवाह (Excess Reactive Power Flow)

  • ​अग्रणी शक्ति गुणांक का अर्थ है कि लोड वास्तव में प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) को सिस्टम में पहुंचा (Supply) रहा है।
  • ​यदि यह प्रतिक्रियाशील शक्ति आपूर्ति प्रणाली (Utility) की आवश्यकता से अधिक है, तो इसे अवशोषित करने के लिए प्रणाली में अतिरिक्त उपकरणों की आवश्यकता होती है, जिससे संचालन लागत बढ़ जाती है।

​निष्कर्ष

​आमतौर पर, उद्योगों में पिछड़ा हुआ शक्ति गुणांक (Lagging Power Factor) (इंडक्टिव लोड के कारण) होता है, और इसे इकाई (Unity) के करीब लाने के लिए संधारित्र बैंक (Capacitor Banks) का उपयोग किया जाता है। हालांकि, यदि गलती से बहुत अधिक संधारित्र लगा दिए जाते हैं या हल्के लोड की स्थिति में भी वे चालू रहते हैं, तो शक्ति गुणांक अत्यधिक अग्रणी हो सकता है, जिससे सिस्टम में वोल्टेज अनियंत्रण की गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाती है।




46.  2 फेज मोटर क्या है?

Ans. 

2 फेज मोटर एक प्रकार की AC (प्रत्यावर्ती धारा) मोटर है, जिसमें आमतौर पर दो स्टेटर वाइंडिंग (Stator Windings) होती हैं, जो एक-दूसरे से 90 विद्युत डिग्री पर विस्थापित (Displaced) होती हैं।

​2 फेज मोटर की अवधारणा

​मूल रूप से, 2-फेज मोटर एक दो-फेज विद्युत आपूर्ति पर चलने के लिए डिज़ाइन की गई थी, जिसमें दो AC वोल्टेज एक-दूसरे से 90^{\circ} कला कोण पर होते थे। हालांकि, आधुनिक विद्युत वितरण प्रणालियों में, 2-फेज प्रणाली का उपयोग अब लगभग नहीं किया जाता है; इसके बजाय 3-फेज या सिंगल-फेज प्रणाली का उपयोग होता है।

​वर्तमान उपयोग के संदर्भ में "2 फेज मोटर"

​आजकल, जब "2 फेज मोटर" शब्द का उपयोग किया जाता है, तो यह अक्सर दो प्रकार की मोटरों को संदर्भित करता है:

  1. AC सर्वो मोटर (AC Servo Motor):
    • ​ये मोटरें आमतौर पर दो वाइंडिंग वाली होती हैं: एक मुख्य वाइंडिंग (Main Winding) और एक नियंत्रण वाइंडिंग (Control Winding)
    • ​इन वाइंडिंगों को 90^{\circ} पर विस्थापित किया जाता है।
    • ​नियंत्रण वाइंडिंग को मुख्य वाइंडिंग से 90^{\circ} कला कोण पर एक वोल्टेज से आपूर्ति दी जाती है (अक्सर एक कैपेसिटर का उपयोग करके कला विभाजन/Phase Split प्राप्त किया जाता है)।
    • ​इसका उपयोग सटीक नियंत्रण अनुप्रयोगों (जैसे रोबोटिक्स और स्वचालित मशीनों) में किया जाता है।
  2. 2-फेज स्टेपर मोटर (2-Phase Stepper Motor):
    • ​यह एक इलेक्ट्रोमैकेनिकल डिवाइस है जो विद्युत पल्स (Electrical Pulses) को सटीक यांत्रिक घूर्णन में परिवर्तित करता है।
    • ​इसमें दो अलग-अलग वाइंडिंग (या चरण) होते हैं, जिन्हें एक विशिष्ट अनुक्रम (Sequence) में एनर्जाइज़ किया जाता है ताकि रोटर छोटे, निश्चित स्टेप्स में घूमे।
    • ​यह सटीक स्थिति नियंत्रण (Precise Positional Control) के लिए बहुत आम है।





47.  ईओटी क्रेन के लिए गैर वीवीवीएफ ड्राइव की तुलना में वीवीवीएफ ड्राइव के क्या लाभ हैं?

Ans.  

ईओटी (EOT - Electric Overhead Travelling) क्रेन के लिए वीवीवीएफ (VVVF - Variable Voltage Variable Frequency) ड्राइव का उपयोग गैर-वीवीवीएफ (पारंपरिक कांटेक्टर या प्रतिरोधी नियंत्रण) ड्राइव की तुलना में कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करता है।

​VVVF ड्राइव्स क्रेन संचालन में सटीकता, सुरक्षा और दक्षता में सुधार करते हैं।

​गैर-वीवीवीएफ ड्राइव की तुलना में वीवीवीएफ ड्राइव के मुख्य लाभ

लाभ का क्षेत्र

वीवीवीएफ ड्राइव (VVVF Drive)

गैर-वीवीवीएफ ड्राइव (Non-VVVF Drive)

गति नियंत्रण

चर गति (Stepless Speeds): गति को 5% से 100% तक किसी भी बिंदु पर सुचारू रूप से नियंत्रित किया जा सकता है।

निश्चित/स्टेप गति (Fixed/Step Speeds): केवल कुछ निश्चित गतियाँ (जैसे धीमी, मध्यम, तेज) ही उपलब्ध होती हैं।

सुचारू संचालन

झटके/लोड स्विंग में कमी (Reduced Jerk/Load Swing): मोटर का त्वरण और मंदन (Acceleration and Deceleration) प्रोग्राम किए गए रैंप समय के माध्यम से धीरे-धीरे होता है, जिससे लोड झूलता नहीं है।

अचानक शुरू होने और रुकने से झटके (Jerks) लगते हैं, जिससे लोड में स्विंग (झुकाव) होता है।

ऊर्जा दक्षता

अधिक ऊर्जा बचत: लोड की आवश्यकता के अनुसार मोटर की गति को समायोजित करता है, जिससे मोटर को हमेशा पूरी गति पर चलाने की आवश्यकता समाप्त हो जाती है।

मोटर हमेशा अपनी पूर्ण गति और आवृत्ति पर चलती है, जिससे ऊर्जा की बर्बादी अधिक होती है।

ब्रेकिंग और टॉर्क

नियंत्रित ब्रेकिंग और पुनर्योजी ऊर्जा (Regenerative Energy): ड्राइव विद्युत ब्रेकिंग प्रदान करता है और ब्रेकिंग के दौरान उत्पन्न ऊर्जा को वापस स्रोत में भेज सकता है या ब्रेकिंग रोकने के लिए प्रतिरोधी (Braking Resistor) में नष्ट कर सकता है।

मुख्य रूप से यांत्रिक ब्रेक (Mechanical Brake) पर निर्भर करता है, जिससे घिसाव (Wear and Tear) अधिक होता है।

उपकरण का जीवनकाल

घिसाव में कमी (Reduced Wear and Tear): मोटर और यांत्रिक घटकों (गियर, रस्सी/रस्सी ड्रम) पर कम यांत्रिक तनाव के कारण उनका जीवनकाल बढ़ जाता है।

उच्च यांत्रिक तनाव के कारण मोटर और यांत्रिक भागों में जल्दी घिसाव होता है।

सुरक्षा और सटीकता

सटीक स्थिति निर्धारण: माइक्रोगति पर अत्यंत सटीक नियंत्रण संभव है, जो संवेदनशील और नाजुक वस्तुओं को संभालने के लिए महत्वपूर्ण है। ओवरलोड सुरक्षा ड्राइव में अंतर्निहित (Inbuilt) होती है।

सटीक स्थिति निर्धारण (Precision Positioning) कठिन होता है और मोटर को अतिरिक्त सुरक्षा के लिए बाहरी हार्डवेयर की आवश्यकता होती है।

रखरखाव

संपर्ककर्ताओं (Contactors) के उपयोग में कमी के कारण रखरखाव कम होता है और स्पार्किंग (Arcing) की संभावना समाप्त हो जाती है।

संपर्ककर्ता जल्दी खराब होते हैं, जिससे रखरखाव की लागत और समय बढ़ जाता है।




48. विद्युत ट्रांसफार्मर में वेक्टर समूहीकरण का क्या महत्व है?

Ans. 

विद्युत ट्रांसफार्मर में वेक्टर समूहीकरण (Vector Grouping) का महत्व विद्युत प्रणाली के सही संचालन, सुरक्षा और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में निहित है।

​वेक्टर समूहीकरण (जैसे Dyn11, Yyn0, आदि) तीन-चरण ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग (कुंडलियों) के कनेक्शन और उनके बीच के फेज संबंध को दर्शाता है।

​वेक्टर समूहीकरण का मुख्य महत्व (Key Significance)

​वेक्टर समूहीकरण निम्नलिखित महत्वपूर्ण पहलुओं को निर्धारित करता है:

  1. ट्रांसफार्मर का समानांतर संचालन (Parallel Operation of Transformers):
    • ​यह सबसे महत्वपूर्ण कारण है। यदि दो या दो से अधिक ट्रांसफार्मर को एक साथ समानांतर में संचालित करना है, तो उनका वेक्टर समूह समान होना चाहिए।
    • महत्व: यदि वेक्टर समूह भिन्न होते हैं, तो ट्रांसफार्मर के द्वितीयक (Secondary) सिरों पर लाइन वोल्टेज के बीच एक कला कोण अंतर (Phase Angle Difference) पैदा होता है। यह अंतर एक बड़ा परिसंचारी करंट (Circulating Current) उत्पन्न करता है, जिससे ट्रांसफार्मर की दक्षता कम हो जाती है और वे गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
  2. प्राथमिक और द्वितीयक वोल्टेज के बीच फेज विस्थापन (Phase Displacement):
    • ​वेक्टर समूह स्पष्ट रूप से बताता है कि प्राथमिक (High Voltage - HV) और द्वितीयक (Low Voltage - LV) वाइंडिंग वोल्टेज के बीच कितना फेज अंतर है (घड़ी संकेतन के रूप में 30^{\circ} के गुणकों में)।
    • महत्व: यह फेज संबंध सुनिश्चित करता है कि ट्रांसफार्मर ग्रिड के साथ ठीक से सिंक्रनाइज़ हो, खासकर जब विभिन्न वोल्टेज स्तरों को जोड़ा जाता है।
  3. अर्थिंग/ग्राउंडिंग और न्यूट्रल बिंदु की उपलब्धता (Earthing and Neutral Availability):
    • ​स्टार (Y) कनेक्शन में एक न्यूट्रल बिंदु उपलब्ध होता है, जिसका उपयोग अर्थिंग के लिए और 4-तार बिजली आपूर्ति (Three-Phase, Four-Wire) के लिए किया जा सकता है। डेल्टा (D) कनेक्शन में न्यूट्रल बिंदु नहीं होता।
    • महत्व: यह निर्धारित करता है कि अर्थ फॉल्ट (Ground Fault) करंट कैसे प्रवाहित होगा और सुरक्षात्मक रिले (Protective Relays) को कैसे समन्वयित किया जाना चाहिए।
  4. हार्मोनिक्स का शमन (Harmonic Suppression):
    • ​डेल्टा (Delta) वाइंडिंग तीसरे हार्मोनिक करंट को वाइंडिंग के अंदर ही प्रसारित करके समाप्त कर देती है, जिससे ये हार्मोनिक्स सिस्टम में प्रवेश नहीं कर पाते हैं।
    • महत्व: यह बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता (Power Quality) बनाए रखने और अन्य उपकरणों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

​संक्षेप में, वेक्टर समूहीकरण एक कोड है जो इंजीनियरों को ट्रांसफार्मर को सिस्टम में सही ढंग से एकीकृत करने के लिए आवश्यक सभी जानकारी देता है, जिससे वोल्टेज असंतुलन और परिसंचारी धाराओं को रोका जा सके।



48.  पंखे में किस प्रकार की एसी मोटर का उपयोग किया जाता है (सीलिंग फैन, एग्जॉस्ट फैन, पेडेस्टल फैन, ब्रैकेट फैन, आदि) जो घरों में ठीक हैं?

Ans.   

घरेलू पंखों में मुख्य रूप से सिंगल फेज इंडक्शन मोटर (Single-Phase Induction Motor) का उपयोग किया जाता है, क्योंकि घर की बिजली की आपूर्ति सिंगल फेज एसी होती है।

​इन इंडक्शन मोटरों को उनके संचालन के तरीके के आधार पर आगे वर्गीकृत किया जाता है:

​घरेलू पंखों में उपयोग होने वाले मुख्य AC मोटर

पंखे का प्रकार

उपयोग की जाने वाली AC मोटर का प्रकार

विशेषताएँ

सीलिंग फैन (Ceiling Fan)

परमानेंट स्प्लिट कैपेसिटर (PSC) मोटर (यह सिंगल-फेज इंडक्शन मोटर का एक प्रकार है)

यह पारंपरिक और सबसे आम मोटर है। इसमें स्टार्टिंग (शुरुआत) और रनिंग (चलने) दोनों के लिए एक ही कैपेसिटर स्थायी रूप से जुड़ा रहता है।

पेडस्टल फैन (Pedestal Fan), टेबल फैन (Table Fan), ब्रैकेट फैन (Bracket Fan)

कैपेसिटर स्टार्ट इंडक्शन मोटर या PSC मोटर

ये भी सिंगल-फेज इंडक्शन मोटर का उपयोग करते हैं, जो किफायती और सरल होते हैं।

एग्जॉस्ट फैन (Exhaust Fan) / छोटे ब्लोअर

शेडेड पोल मोटर (Shaded Pole Motor) या PSC मोटर

शेडेड पोल मोटर सबसे सरल, सबसे सस्ती होती है लेकिन इसमें टॉर्क (torque) कम होता है, इसलिए इसका उपयोग छोटे एग्जॉस्ट फैन और कम हवा फेंकने वाले अनुप्रयोगों में किया जाता है।


ऊर्जा दक्षता के लिए आधुनिक विकल्प (Modern Efficient Alternative)

​आजकल, ऊर्जा दक्षता (Energy Efficiency) पर बढ़ते ध्यान के कारण, एक अलग प्रकार की मोटर लोकप्रिय हो रही है:

  • ब्रशलेस डीसी (BLDC) मोटर:
    • ​हालांकि यह तकनीकी रूप से DC मोटर है, यह इन्वर्टर और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट का उपयोग करके घर की AC सप्लाई से चलती है।
    • ​BLDC पंखे पारंपरिक AC इंडक्शन मोटरों की तुलना में 60% तक कम बिजली की खपत करते हैं, शांत चलते हैं, और इन्वर्टर पर लंबे समय तक चलते हैं, इसलिए ये तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं।




50.   जब पक्षी ट्रांसमिशन लाइनों या करंट तारों पर बैठते हैं तो उन्हें झटका क्यों नहीं लगता?

Ans.  

पक्षी ट्रांसमिशन लाइनों या करंट तारों पर बैठने पर इसलिए झटका (करंट) महसूस नहीं करते क्योंकि उनके शरीर में वोल्टेज का कोई अंतर (Potential Difference) नहीं होता और विद्युत सर्किट पूरा नहीं होता

​करंट प्रवाहित होने के लिए दो मुख्य चीजें आवश्यक हैं:

  1. विभवान्तर (Potential Difference): करंट हमेशा उच्च वोल्टेज (High Potential) वाले बिंदु से निम्न वोल्टेज (Low Potential) वाले बिंदु की ओर प्रवाहित होता है।
  2. बंद सर्किट (Closed Circuit): करंट को लौटने या प्रवाहित होने के लिए एक पूरा रास्ता चाहिए।

​कारण (The Scientific Reason)

​जब कोई पक्षी किसी एक तार पर बैठता है, तो निम्नलिखित होता है:

  1. एक समान विभव (Same Potential): पक्षी के दोनों पैर एक ही बिजली के तार को छू रहे होते हैं। इसका मतलब है कि उसके शरीर का प्रत्येक बिंदु (दोनों पैर) उस तार के समान विद्युत विभव पर है।
  2. विभवान्तर की कमी: चूँकि पक्षी के शरीर में कोई उच्च विभव और निम्न विभव वाला बिंदु नहीं होता है (जैसे कि एक पैर X वोल्ट पर और दूसरा पैर Y वोल्ट पर, जहाँ X \neq Y) विभवान्तर शून्य रहता है।
  3. सर्किट पूरा न होना: पक्षी एक ही तार पर बैठकर सर्किट को पूरा नहीं करता। पक्षी न तो दूसरे तार को छूता है, न ही जमीन (जो शून्य विभव पर है) या बिजली के खंभे (जो अर्थिंग से जुड़ा होता है) को छूता है। इस तरह, बिजली को पक्षी के शरीर से प्रवाहित होकर वापस पावर स्रोत या जमीन तक पहुँचने का कोई रास्ता नहीं मिलता है।
  4. न्यूनतम प्रतिरोध का मार्ग (Path of Least Resistance): बिजली हमेशा न्यूनतम प्रतिरोध का रास्ता चुनती है। बिजली के तार का प्रतिरोध (Resistance) पक्षी के शरीर के प्रतिरोध की तुलना में बहुत कम होता है। इसलिए, इलेक्ट्रॉन पक्षी के शरीर में से गुजरने के बजाय, उसी तार में सीधे आगे बढ़ना पसंद करते हैं।

​खतरा कब होता है? (When the Danger Occurs)

​पक्षी को झटका तभी लगेगा जब वह गलती से एक साथ दो अलग-अलग विभव वाले बिंदुओं को छू लेता है, जिससे सर्किट पूरा हो जाता है:

  • ​जब पक्षी एक साथ दो अलग-अलग तारों (जैसे फेज और न्यूट्रल, या दो फेज) को छूता है।
  • ​जब पक्षी एक तार पर बैठा हो और उसका शरीर, पंख, या पूंछ का कोई हिस्सा जमीन या खंभे के ग्राउंडेड हिस्से को छू जाता है।

​उदाहरण के लिए, चमगादड़ (Bats) को अक्सर इसलिए झटका लगता है क्योंकि वे तारों पर उल्टे लटकते हैं और गलती से उनका बड़ा पंख या शरीर का हिस्सा एक साथ दो तारों को छू लेता है।





51.  यदि हम ट्यूब लाइट को 220 वोल्ट डीसी सप्लाई दें तो क्या होगा?

Ans.    

यदि आप एक मानक फ्लोरोसेंट ट्यूब लाइट (जिसे चोक और स्टार्टर के साथ AC सप्लाई पर चलने के लिए डिज़ाइन किया गया है) को सीधे 220 वोल्ट डीसी (DC) सप्लाई देते हैं, तो:

  1. ट्यूब लाइट चालू नहीं होगी (It will not turn ON):
    • ​ट्यूब लाइट को चालू करने के लिए, स्टार्टर और चोक की आवश्यकता होती है। चोक (इंडक्टर) AC सप्लाई में एक क्षणिक उच्च वोल्टेज स्पाइक (High Voltage Spike) उत्पन्न करने के लिए प्रेरित वोल्टेज (Induced Voltage) का उपयोग करता है। यह उच्च वोल्टेज ट्यूब के अंदर गैस को आयनित (Ionize) करने और आर्क (Arc) शुरू करने के लिए आवश्यक है।
    • DC सप्लाई पर चोक इस आवश्यक उच्च वोल्टेज को उत्पन्न नहीं कर पाता है क्योंकि DC में करंट स्थिर होता है और उसमें कोई बदलाव नहीं आता।
    • ​इसके अलावा, स्टार्टर (जिसमें एक गैस भरा बल्ब और बाई-मेटालिक पट्टी होती है) DC पर ठीक से काम नहीं कर पाएगा।
  2. केवल फिलामेंट जल सकता है, या चोक/प्रतिरोधक क्षतिग्रस्त हो सकता है:
    • ​DC सप्लाई पर, चोक (इंडक्टर) का प्रतिरोध (Resistance) लगभग शून्य होता है। इसलिए, ट्यूब को सीमित करने वाला कोई कारक नहीं होगा, और अत्यधिक करंट ट्यूब के फिलामेंट (इलेक्ट्रोड) में प्रवाहित होगा, जिससे वह जल सकता है।
    • ​यदि सर्किट में बैलास्ट (चोक) के बजाय एक इलेक्ट्रॉनिक बैलास्ट है, तो यह डिज़ाइन पर निर्भर करेगा, लेकिन अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक बैलास्ट DC को AC में परिवर्तित करने के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए होते हैं, इसलिए यह क्षतिग्रस्त हो सकता है।

​क्या ट्यूब लाइट DC पर काम कर सकती है?

हाँ, एक ट्यूब लाइट को DC पर चलाया जा सकता है, लेकिन यह एक मानक AC सर्किट के साथ संतोषजनक ढंग से काम नहीं करेगी, और इसके लिए सर्किट में बदलाव की आवश्यकता होती है:

  • सर्किट में बदलाव: चोक के साथ एक प्रतिरोधक (Resistor) को श्रृंखला (Series) में जोड़ना होगा ताकि करंट को सीमित किया जा सके, क्योंकि DC पर चोक का प्रतिरोध कम हो जाता है।
  • नकारात्मक प्रभाव: DC पर चलाने से ट्यूब की दक्षता कम हो जाती है, एक इलेक्ट्रोड तेजी से काला हो जाता है, और ट्यूब का जीवनकाल 80% तक कम हो सकता है।
  • आधुनिक समाधान: आजकल, DC इलेक्ट्रॉनिक बैलास्ट या इन्वर्टर का उपयोग करके ट्यूब लाइट को DC (जैसे बैटरी या सोलर पावर) से चलाया जा सकता है, जो DC को उच्च-आवृत्ति AC में परिवर्तित कर देता है।



52.   किस मोटर में उच्च प्रारंभिक टॉर्क और स्टार्टिंग करंट होता है डीसी मोटर, इंडक्शन मोटर या सिंक्रोनस मोटर?

Ans.  

दिए गए विकल्पों डीसी मोटर, इंडक्शन मोटर, या सिंक्रोनस मोटर में से, डीसी सीरीज़ (श्रेणी) मोटर में उच्चतम प्रारंभिक टॉर्क (High Starting Torque) होता है।

​1. उच्च प्रारंभिक टॉर्क (High Starting Torque)

  • डीसी सीरीज़ मोटर (DC Series Motor):
    • ​इसमें बहुत उच्च प्रारंभिक टॉर्क होता है क्योंकि इसका टॉर्क आर्मेचर करंट (I_a) और फील्ड फ्लक्स (\Phi) के गुणनफल के समानुपाती होता है, और शुरुआती दौर में I_a और \Phi दोनों ही बहुत अधिक होते हैं (लगभग T \propto I_a^2) ।
    • ​इसी कारण से इसका उपयोग भारी लोड वाले अनुप्रयोगों जैसे विद्युतीय रेलवे, क्रेन और लिफ्ट में किया जाता है, जहाँ शुरुआती बल-आघूर्ण की अधिक आवश्यकता होती है।
  • इंडक्शन मोटर (Induction Motor):
    • ​इंडक्शन मोटर में भी स्टार्टिंग टॉर्क होता है, लेकिन यह आमतौर पर डीसी सीरीज़ मोटर की तुलना में कम होता है। हालांकि, यह शुरुआती करंट भी बहुत ज़्यादा (फुल लोड करंट का 5 से 6 गुना) लेती है।
  • सिंक्रोनस मोटर (Synchronous Motor):
    • ​सिंक्रोनस मोटर में कोई प्रारंभिक टॉर्क नहीं होता है। इसे स्वयं शुरू करने के लिए बाहरी साधनों (जैसे डैम्पर वाइंडिंग या पोनी मोटर) की आवश्यकता होती है।

​2. उच्च स्टार्टिंग करंट (High Starting Current)

  • डीसी मोटर (DC Motor):
    • ​डीसी मोटर (विशेषकर सीरीज़ मोटर) में आर्मेचर का प्रतिरोध (Resistance, R_a) बहुत कम होता है। जब मोटर शुरू होती है, तो बैक EMF (E_b) शून्य होता है, इसलिए शुरुआती आर्मेचर करंट बहुत अधिक होता है, जिसे नियंत्रित करने के लिए स्टार्टर का उपयोग करना अनिवार्य है:
      ​I_a = \frac{V - E_b}{R_a} ​ जहाँ E_b \approx 0 (शुरुआत में)।
  • इंडक्शन मोटर (Induction Motor):
    • ​इंडक्शन मोटर भी शुरू में बहुत उच्च स्टार्टिंग करंट (Full Load Current का 5 से 7 गुना) लेती है क्योंकि स्टार्टिंग में स्लिप (s) का मान अधिकतम (s=1) होता है और रोटर का प्रतिबाधा (Impedance) बहुत कम होता है। इसे नियंत्रित करने के लिए स्टार्टर (जैसे स्टार-डेल्टा या ऑटो-ट्रांसफार्मर स्टार्टर) का उपयोग किया जाता है।

निष्कर्ष:

  • उच्चतम प्रारंभिक टॉर्क: डीसी सीरीज़ मोटर
  • उच्च स्टार्टिंग करंट: डीसी मोटर और इंडक्शन मोटर दोनों ही शुरुआत में उच्च करंट लेते हैं, जिसे नियंत्रित करने के लिए स्टार्टर की आवश्यकता होती है।




53.  वैक्यूम सर्किट ब्रेकर क्या है? कारण सहित परिभाषित करें और इसका उपयोग कहां करें।

Ans.   

वैक्यूम सर्किट ब्रेकर (VCB) एक सुरक्षा उपकरण है जो दोष (Fault) की स्थिति में विद्युत सर्किट को तेज़ी से खोलने और उसमें बहने वाले करंट को रोकने के लिए उच्च वैक्यूम (निर्वात) का उपयोग करता है।

​वैक्यूम सर्किट ब्रेकर (VCB) की परिभाषा

​वैक्यूम सर्किट ब्रेकर (VCB) एक ऐसा सर्किट ब्रेकर है जो सर्किट को वियोजित (Break) करते समय उत्पन्न होने वाले आर्क (Arc) को बुझाने (Arc Extinction) के लिए वैक्यूम इंटरप्टर नामक एक सीलबंद कक्ष के अंदर उच्च निर्वात (High Vacuum) का उपयोग करता है।

​वैक्यूम (निर्वात) का कारण और कार्य सिद्धांत

​वैक्यूम का उपयोग मुख्य रूप से उसकी उत्कृष्ट ढांकता हुआ शक्ति (Dielectric Strength) और चाप को तेज़ी से बुझाने की क्षमता के कारण किया जाता है।

​चाप शमन (Arc Quenching) का कारण (कार्य सिद्धांत)

  1. चाप का बनना: जब ब्रेकर के स्थिर और गतिशील संपर्क (Contacts) अलग होते हैं, तो उनके बीच उच्च धारा (Current) प्रवाहित होने के कारण इलेक्ट्रिक आर्क उत्पन्न होता है।
  2. वैक्यूम की भूमिका: वैक्यूम इंटरप्टर में कोई मुक्त इलेक्ट्रॉन, आयनीकरण योग्य गैस कण या हवा नहीं होती है।
  3. शीघ्र शमन: हवा की अनुपस्थिति के कारण, चाप को बनाए रखने के लिए कोई माध्यम नहीं मिलता है। जब प्रत्यावर्ती धारा (AC Current) अपने प्राकृतिक शून्य बिंदु (Natural Current Zero) को पार करती है, तो:
    • ​धातु वाष्प (Metallic Vapour) जो आर्क के कारण उत्पन्न होती है, तेज़ी से संघनित (Condense) होकर संपर्कों की सतह पर जम जाती है।
    • ​आर्क बुझ जाता है।
    • ​वैक्यूम तुरंत अपने उच्च ढांकता हुआ शक्ति को पुनर्स्थापित करता है, जिससे संपर्कों के खुलने के बाद फिर से आर्क बनने की संभावना (Re-striking) समाप्त हो जाती है।

​वैक्यूम सर्किट ब्रेकर का उपयोग (Applications)

​VCB अपनी विश्वसनीयता, कम रखरखाव और तेज़ संचालन के कारण मुख्य रूप से मध्यम वोल्टेज (Medium Voltage) वाले अनुप्रयोगों में उपयोग किए जाते हैं।

अनुप्रयोग का क्षेत्र

    वोल्टेज रेंज

         उदाहरण

बिजली वितरण प्रणाली

1kV से 38kV (आमतौर पर 11 kV  से 33 kV)

             सबस्टेशन, बिजली घरों और स्विचगियर में।

औद्योगिक संयंत्र

    भारी मोटरें, ट्रांसफार्मर और संधारित्र (Capacitor) बैंकों को सुरक्षित करने के लिए।

विद्युत रेलवे

कर्षण (Traction) सबस्टेशन में।

अन्य अनुप्रयोग

बंदरगाहों, खनन उद्यमों, और जहाँ बार-बार स्विचिंग की आवश्यकता होती है।


VCBs को SF6 ब्रेकर की तुलना में अधिक पर्यावरण-अनुकूल माना जाता है क्योंकि वे कोई हानिकारक गैस उत्सर्जित नहीं करते हैं।




54.  एसीआर केबल क्या है और हम इसका उपयोग कहां करते हैं?

Ans.   

एसीआर केबल का पूरा नाम एल्यूमीनियम कंडक्टर स्टील रीइन्फोर्स्ड (Aluminum Conductor Steel Reinforced - ACSR) है।

​यह एक उच्च क्षमता और उच्च शक्ति वाला स्ट्रैन्डेड कंडक्टर (stranded conductor) है जिसका उपयोग मुख्य रूप से विद्युत ऊर्जा के संचरण (Transmission) और वितरण (Distribution) के लिए किया जाता है।

​एसीआर केबल की संरचना और कारण

​ACSR केबल दो मुख्य सामग्रियों के गुणों का उपयोग करने के लिए बनाई गई है:

  1. केंद्रीय कोर (Central Core):
    • ​यह गैल्वेनाइज्ड स्टील (Galvanized Steel) के तारों से बना होता है।
    • कारण: स्टील को इसकी उच्च यांत्रिक शक्ति (High Mechanical Strength) के लिए चुना जाता है। यह लंबी दूरी तक फैले कंडक्टर के भारी वजन, और हवा या बर्फ जैसे यांत्रिक भारण (Mechanical Loading) के कारण पड़ने वाले तनाव को सहन करने में मदद करता है।
  2. बाहरी परतें (Outer Strands):
    • ​ये उच्च शुद्धता वाले एल्यूमीनियम (High Purity Aluminium) के तारों से बनी होती हैं।
    • कारण: एल्यूमीनियम को उसकी उत्कृष्ट विद्युत चालकता (Excellent Electrical Conductivity), हल्के वजन और कम लागत के लिए चुना जाता है, जिससे यह कुशलतापूर्वक बिजली का वहन कर सके।

​इस दोहरी संरचना के कारण, ACSR केबल में एल्यूमीनियम की अच्छी चालकता और स्टील की उच्च शक्ति का संयोजन होता है, जिससे यह लंबी शिरोपरि (Overhead) लाइनों के लिए आदर्श बन जाता है।

​एसीआर केबल का उपयोग

​ACSR केबल का उपयोग मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्यों में किया जाता है:

  1. शिरोपरि पारेषण लाइनें (Overhead Transmission Lines):
    • ​यह लंबी दूरी के उच्च वोल्टेज (High Voltage) संचरण टावरों पर सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले कंडक्टरों में से एक है।
  2. वितरण लाइनें (Distribution Lines):
    • ​इसका उपयोग मध्यम और निम्न वोल्टेज बिजली वितरण लाइनों में भी किया जाता है।
  3. लंबी अवधि (Long Spans):
    • ​इसका उपयोग उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ खंभों या टावरों के बीच की दूरी बहुत अधिक होती है, क्योंकि स्टील का कोर कंडक्टर को टूटने से बचाने के लिए आवश्यक यांत्रिक सहारा प्रदान करता है।



55.  मार्क्स सर्किट क्या है?

Ans.   


मार्क्स सर्किट, जिसे आमतौर पर मार्क्स जनरेटर (Marx Generator) कहा जाता है, एक विशेष प्रकार का विद्युत परिपथ है जिसका उपयोग कम DC वोल्टेज से उच्च वोल्टेज स्पंद (High Voltage Pulse) उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।

​मार्क्स सर्किट का कार्य सिद्धांत

​मार्क्स जनरेटर का मूल सिद्धांत यह है कि यह कई कैपेसिटर को समांतर (Parallel) क्रम में एक कम वोल्टेज स्रोत से चार्ज करता है, और फिर उन्हें लगभग तुरंत श्रृंखला (Series) क्रम में जोड़कर एक बहुत उच्च वोल्टेज स्पंद (पल्स) उत्पन्न करता है।

​संरचना के मुख्य घटक

​मार्क्स सर्किट में मुख्य रूप से तीन घटक होते हैं, जिन्हें कई चरणों (Stages) में व्यवस्थित किया जाता है:

  1. कैपेसिटर (Capacitors - C): ये ऊर्जा को संचित (Store) करते हैं।
  2. चार्जिंग रोकनेवाला (Charging Resistors - R_{c}): ये कैपेसिटर को चार्जिंग के दौरान करंट को सीमित करते हैं।
  3. स्पार्क गैप (Spark Gaps - G): ये तीव्र स्विच के रूप में कार्य करते हैं जो सर्किट को समांतर से श्रृंखला क्रम में बदलते हैं।

​कार्यप्रणाली

  1. चार्जिंग चरण (Charging Phase):
    • ​सभी कैपेसिटर चार्जिंग रोकनेवाला (R_{c}) के माध्यम से एक निम्न DC वोल्टेज (V) पर समांतर क्रम में धीरे-धीरे चार्ज होते हैं।
    • ​इस चरण के दौरान, स्पार्क गैप्स खुले रहते हैं क्योंकि उनके पार का वोल्टेज (V) उनके ब्रेकडाउन वोल्टेज से कम होता है।
  2. डिस्चार्ज चरण (Discharge Phase):
    • ​जब कैपेसिटर पूरी तरह से चार्ज हो जाते हैं, तो पहले स्पार्क गैप को ट्रिगर किया जाता है।
    • ​यह पहला गैप टूटने (Breakdown) से बाकी सभी गैप्स के पार का वोल्टेज बढ़ जाता है, जिससे वे भी लगभग एक साथ टूट जाते हैं (यानी शॉर्ट-सर्किट हो जाते हैं)।
    • ​गैप्स के टूटने से, सभी कैपेसिटर तेजी से श्रृंखला क्रम में जुड़ जाते हैं।
    • आउटपुट वोल्टेज (V_{out}) = N \times V (जहाँ N चरणों की संख्या है और V चार्जिंग वोल्टेज है)। इस प्रकार, यह वोल्टेज को कई गुना बढ़ा देता है, जिससे एक उच्च वोल्टेज स्पंद उत्पन्न होता है।

​उपयोग (Applications)

​मार्क्स जनरेटर का उपयोग उन अनुप्रयोगों में किया जाता है जहाँ कम अवधि के लिए अत्यंत उच्च वोल्टेज की आवश्यकता होती है:

  • उच्च वोल्टेज परीक्षण: बिजली के उपकरणों (जैसे ट्रांसफार्मर, इंसुलेटर) पर आकाशीय बिजली (Lightning) या स्विचिंग ओवर-वोल्टेज के प्रभावों का अनुकरण (Simulate) करने के लिए।
  • उच्च ऊर्जा भौतिकी: कण त्वरक (Particle Accelerators) और पल्स पावर प्रयोगों में।
  • एविएशन और एयरोस्पेस: विमानों और बिजली लाइनों पर आकाशीय बिजली के प्रभावों का परीक्षण करने के लिए।



56.  मोटर का सिद्धांत क्या है?

Ans.   

मोटर (Motor) का सिद्धांत विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करना है। यह सिद्धांत चुंबकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर बल लगने (यानी विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव) के मूलभूत नियम पर आधारित है।

​विद्युत मोटर का मूल सिद्धांत

​विद्युत मोटर के कार्य करने का मूल सिद्धांत यह है कि:

​जब किसी धारावाही चालक (Current-Carrying Conductor) को चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) में रखा जाता है, तो वह चालक एक यांत्रिक बल (Mechanical Force) का अनुभव करता है।


​यह बल चालक को घुमाता है, जिससे विद्युत ऊर्जा घूर्णन (Rotation) की यांत्रिक ऊर्जा में बदल जाती है।

​सिद्धांत की व्याख्या

  1. ऊर्जा परिवर्तन: मोटर एक ऐसा उपकरण है जो विद्युत ऊर्जा (Electrical Energy) को लेता है और उसे यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy) में बदल देता है।
  2. बल की उत्पत्ति: जब मोटर की कुंडली (Coil) में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है, तो कुंडली एक अस्थायी चुम्बक (Electromagnet) की तरह कार्य करती है। यह अस्थायी चुम्बक मोटर में लगे स्थायी चुम्बकों के चुंबकीय क्षेत्र के साथ प्रतिक्रिया करता है।
  3. टॉर्क (Torque): इस प्रतिक्रिया के कारण कुंडली की भुजाओं पर विपरीत दिशाओं में बल लगते हैं। बलों का यह जोड़ा (जिसे बल आघूर्ण या टॉर्क कहते हैं) कुंडली को लगातार घूमने के लिए मजबूर करता है।
  4. दिशा का निर्धारण: बल की दिशा फ्लेमिंग के वामहस्त नियम (Fleming's Left-Hand Rule) द्वारा निर्धारित की जाती है।




57.   विद्युत कर्षण क्या है?

Ans.   

विद्युत कर्षण (Electric Traction) वह प्रणाली है जिसमें रेलगाड़ी, ट्राम, ट्रॉली बस अथवा किसी अन्य वाहन को खींचने या चलाने के लिए विद्युत् शक्ति का उपयोग किया जाता है।

​सरल शब्दों में, यह वाहनों को आगे बढ़ाने के लिए कर्षण बल (Tractive Force) उत्पन्न करने हेतु विद्युत् मोटरों का उपयोग करने की विधि है।

​मुख्य बिंदु

  • परिभाषा: रेलगाड़ी या अन्य गाड़ी को चलाने के लिए विद्युत् ऊर्जा का उपयोग करने की विधि को विद्युत कर्षण कहते हैं।
  • कार्य प्रणाली: कर्षण बल मुख्य रूप से वाहन में लगी विद्युत् मोटर द्वारा प्राप्त होता है। यह मोटर विद्युत् ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा (घूमने वाली गति) में परिवर्तित करती है, जिससे पहिए घूमते हैं और वाहन आगे बढ़ता है।
  • ऊर्जा स्रोत: विद्युत् शक्ति निम्नलिखित माध्यमों से प्राप्त की जा सकती है:
    • ओवरहेड लाइन या तीसरी रेल (Third Rail) से सीधे बाहरी वितरण नेटवर्क द्वारा (जैसे इलेक्ट्रिक ट्रेन, मेट्रो)।
    • ​वाहन में लगे बैटरी या डीजल-इलेक्ट्रिक जनरेटर द्वारा (जैसे बैटरी-इलेक्ट्रिक वाहन, डीजल-इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव)।
  • उदाहरण:
    • ​इलेक्ट्रिक ट्रेन (विद्युत रेलगाड़ी)
    • ​ट्रामकार
    • ​ट्रॉली बस
    • ​मेट्रो सिस्टम
    • ​इलेक्ट्रिक वाहन (EVs)

​लाभ

​विद्युत कर्षण प्रणाली के गैर-विद्युत कर्षण (जैसे स्टीम इंजन या डीजल इंजन) प्रणालियों की तुलना में कई लाभ हैं:

  • स्वच्छता: इसमें धुआँ या राख नहीं होती, इसलिए यह भूमिगत रेलवे या शहरी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है।
  • उच्च त्वरण: इसमें उच्च आरंभिक टॉर्क (starting torque) होता है, जिससे यह तेज़ी से गति पकड़ सकता है।
  • कुशलता: यह ऊर्जा रूपांतरण में अधिक कुशल होता है।
  • कम रखरखाव: इलेक्ट्रिक मोटरों का रखरखाव डीजल इंजनों की तुलना में कम होता है।
  • पुनर्योजी ब्रेकिंग (Regenerative Braking): ब्रेकिंग के दौरान ऊर्जा को वापस ग्रिड में भेजा जा सकता है, जिससे ऊर्जा की बचत होती है।




58.   आप किसी भी चोक/कॉइल का उपयोग किए बिना 40w ट्यूब लाइट 230v एसी/डीसी कैसे शुरू कर सकते हैं?

Ans.   

पारंपरिक 40W फ्लोरोसेंट ट्यूब लाइट को उसके मूल चोक (कॉइल) और स्टार्टर के बिना सीधे 230V AC/DC पर चलाना संभव नहीं है और यह अत्यधिक खतरनाक हो सकता है।

​चोक/कॉइल (जिसे बैलास्ट भी कहा जाता है) के दो मुख्य कार्य होते हैं, जिनके बिना ट्यूब लाइट काम नहीं कर सकती:

  1. प्रारंभिक उच्च वोल्टेज पल्स (Starting High Voltage Pulse) देना: ट्यूब लाइट के अंदर आर्गन गैस और पारे के वाष्प को आयनित (Ionize) करने और आर्क (Arc) शुरू करने के लिए लगभग 1000V के उच्च वोल्टेज की आवश्यकता होती है। पारंपरिक चोक, स्टार्टर के साथ मिलकर, यह उच्च-वोल्टेज पल्स उत्पन्न करता है।
  2. करंट सीमित करना (Current Limiting): एक बार आर्क शुरू हो जाने के बाद, ट्यूब लाइट का प्रतिरोध कम हो जाता है और यह बहुत अधिक करंट खींचना शुरू कर देती है। चोक इस अत्यधिक करंट को सीमित करता है, जिससे ट्यूब जलने से बच जाती है।

​बिना चोक के ट्यूब लाइट जलाने के सुरक्षित तरीके

​चोक के बिना ट्यूब लाइट को सुरक्षित रूप से और कुशलता से चलाने के लिए, आप एक इलेक्ट्रॉनिक बैलास्ट या सीएफएल/एलईडी ड्राइवर सर्किट का उपयोग कर सकते हैं।

​1. इलेक्ट्रॉनिक बैलास्ट का उपयोग

  • कार्य: एक इलेक्ट्रॉनिक बैलास्ट (जिसे अक्सर "इलेक्ट्रॉनिक चोक" कहा जाता है) पारंपरिक कॉइल चोक का आधुनिक विकल्प है।
  • लाभ: यह 50Hz AC को उच्च-आवृत्ति वाले AC (लगभग 20-60 kHz) में परिवर्तित करता है, जिससे ट्यूब लाइट कम वोल्टेज पर और बिना झिलमिलाहट (Flickering) के तुरंत जल जाती है। यह ऊर्जा में अधिक कुशल होता है और पारंपरिक चोक की तुलना में हल्का होता है।
  • AC/DC: इलेक्ट्रॉनिक बैलास्ट 230V AC इनपुट लेता है, उसे DC में बदलता है, और फिर उस DC से उच्च-आवृत्ति वाला AC उत्पन्न करता है।
    • नोट: कुछ DIY सर्किट होते हैं जो सीधे 230V DC का उपयोग करके उच्च-वोल्टेज पल्स उत्पन्न करते हैं, लेकिन इनमें एक करंट लिमिटिंग घटक (जैसे उच्च-वाट क्षमता वाला अवरोधक या कैपेसिटर) आवश्यक होता है।

​2. खराब CFL/LED ड्राइवर सर्किट का उपयोग

  • ​आप एक खराब CFL (कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप) या LED बल्ब के सर्किट (जो ट्यूब लाइट को जलाने के लिए आवश्यक सभी इलेक्ट्रॉनिक्स प्रदान करता है) का उपयोग करके भी ट्यूब लाइट को जला सकते हैं।
  • ​यह सर्किट आवश्यक प्रारंभिक वोल्टेज पल्स और करंट लिमिटिंग दोनों प्रदान करता है, जिससे यह पारंपरिक चोक का एक सस्ता और प्रभावी विकल्प बन जाता है।

 महत्वपूर्ण सुरक्षा चेतावनी 

  • सीधा जोड़ना (Direct Connection): 40W फ्लोरोसेंट ट्यूब लाइट को चोक/बैलास्ट के बिना सीधे 230V AC या DC से जोड़ना अत्यंत खतरनाक है।
    • खतरा: अत्यधिक करंट के कारण ट्यूब लाइट तुरंत जल जाएगी या फट सकती है
    • इलेक्ट्रिक शॉक: सीधे तारों के साथ काम करने में जानलेवा इलेक्ट्रिक शॉक लगने का गंभीर खतरा होता है।
  • DIY प्रयास: यदि आप एक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट का उपयोग करके ट्यूब लाइट चलाने का प्रयास करते हैं, तो सुनिश्चित करें कि आप सही घटकों (जैसे डायोड, कैपेसिटर, उच्च-वाट क्षमता वाले अवरोधक) का उपयोग करते हैं और आपको इलेक्ट्रॉनिक्स का पर्याप्त ज्ञान है।




59.   थर्मल पावर स्टेशन में किया गया ऑपरेशन?

Ans.    

थर्मल पावर स्टेशन (Thermal Power Station) का मुख्य ऑपरेशन उष्मीय ऊर्जा (Heat Energy) को विद्युत ऊर्जा (Electrical Energy) में परिवर्तित करना है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से रैंकाइन चक्र (Rankine Cycle) पर आधारित होती है, जिसमें ऊर्जा रूपांतरण के कई चरण शामिल होते हैं।

​थर्मल पावर स्टेशन में मुख्य ऑपरेशन (The Main Operations)

​थर्मल पावर प्लांट के संचालन को मोटे तौर पर छह प्रमुख चरणों में विभाजित किया जा सकता है:

​1. ईंधन दहन (Fuel Combustion) 

  • कार्य: इस चरण में, ईंधन (आमतौर पर कोयला, तेल या प्राकृतिक गैस) को बॉयलर (भट्टी) में जलाया जाता है।
  • परिणाम: ईंधन में मौजूद रासायनिक ऊर्जा दहन के माध्यम से उष्मीय ऊर्जा (ताप) में परिवर्तित हो जाती है। कोयले के मामले में, इसे जलाने से पहले छोटे, समान टुकड़ों में तोड़ा जाता है ताकि दहन अधिक कुशल हो।

​2. भाप उत्पादन (Steam Generation) 

  • कार्य: बॉयलर में उत्पन्न तीव्र ऊष्मा का उपयोग उच्च दबाव और उच्च तापमान पर भाप बनाने के लिए किया जाता है।
  • प्रक्रिया: बॉयलर के अंदर पानी से भरी ट्यूबें होती हैं। दहन की ऊष्मा इन ट्यूबों में पानी को गर्म करती है और उसे उच्च-दाब वाली भाप में बदल देती है। इस उच्च-दाब वाली भाप को अक्सर और अधिक गर्म करने के लिए सुपरहीटर में भेजा जाता है।

​3. टरबाइन संचालन (Turbine Operation) 

  • कार्य: उत्पादित उच्च-दाब और उच्च-तापमान वाली भाप को स्टीम टरबाइन के ब्लेडों पर निर्देशित किया जाता है।
  • परिणाम: भाप के बल से टरबाइन का शाफ्ट घूमता है। इस तरह, ऊष्मीय ऊर्जा यांत्रिक (घूर्णी) ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।

​4. विद्युत उत्पादन (Electricity Generation) 

  • कार्य: टरबाइन का घूर्णन शाफ्ट सीधे एक जनरेटर (जनित्र) से जुड़ा होता है।
  • परिणाम: जब शाफ्ट घूमता है, तो जनरेटर विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करते हुए यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है। यही बिजली ग्रिड में आपूर्ति की जाती है।

​5. भाप संघनन और जल पुनर्चक्रण (Steam Condensation and Water Recycling) 

  • कार्य: टरबाइन से निकलने वाली कम दबाव वाली भाप को कंडेनसर (संघनित्र) में भेजा जाता है।
  • प्रक्रिया: कंडेनसर में, भाप को ठंडा करने के लिए एक अलग शीतलक जल सर्किट (आमतौर पर कूलिंग टॉवर से ठंडा पानी) का उपयोग किया जाता है। भाप ठंडा होकर वापस पानी (कंडेंसेट) बन जाती है। इस पानी को पंप द्वारा वापस बॉयलर में भेज दिया जाता है, जिससे चक्र पूरा हो जाता है और पानी का पुन: उपयोग होता है।

​6. ग्रिप गैस और राख प्रबंधन (Flue Gas and Ash Handling) 

  • कार्य: दहन प्रक्रिया के उप-उत्पादों (Flue Gas और राख) का निपटान करना।
  • प्रक्रिया:
    • ग्रिप गैस (Flue Gas): दहन से उत्पन्न गैसों को वायुमंडल में छोड़ने से पहले साफ किया जाता है। इसके लिए इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर (ESP) जैसे उपकरण उपयोग किए जाते हैं, जो हानिकारक कणों को हटाते हैं। फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन (FGD) संयंत्र सल्फर डाइऑक्साइड जैसी गैसों को संसाधित करते हैं।
    • राख (Ash): कोयला जलाने से उत्पन्न राख (बॉटम ऐश और फ्लाई ऐश) को एकत्र करके सुरक्षित रूप से निपटाया जाता है।




60.   एसी सर्किट के न्यूट्रल में लिंक और एसी सर्किट के फेज में फ्यूज क्यों प्रदान किया जाता है?

Ans.   

एसी सर्किट में सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करने के लिए फेज (Phase/Live) तार में फ्यूज और न्यूट्रल (Neutral) तार में लिंक (Link) प्रदान किया जाता है।

​इसके दो मुख्य कारण हैं: सुरक्षा और प्रोटेक्शन की प्रभावशीलता

​1. फेज में फ्यूज क्यों? (Why Fuse in Phase?)

​फ्यूज का मुख्य उद्देश्य सर्किट को अतिरिक्त करंट (Overcurrent) और शॉर्ट सर्किट (Short Circuit) से बचाना है। इसे हमेशा फेज तार में लगाने का कारण है:

  • शॉक से सुरक्षा (Safety from Shock): फेज तार में उच्च वोल्टेज (आमतौर पर 230V) होता है, जबकि न्यूट्रल तार अर्थ पोटेंशियल (Ground Potential) के करीब होता है (अर्थात लगभग 0V)।
    • ​जब फ्यूज जल जाता है (फ्यूज ब्लो होता है), तो यह फेज सप्लाई को लोड से पूरी तरह काट देता है
    • ​सप्लाई कटने के बाद, उपकरण या सर्किट में कोई उच्च वोल्टेज नहीं रहता है, जिससे मरम्मत या उपकरण को छूने के दौरान बिजली के झटके लगने का खतरा समाप्त हो जाता है।
  • प्रोटेक्शन की प्रभावशीलता (Effectiveness of Protection): शॉर्ट सर्किट या अर्थ फॉल्ट (Earth Fault) की स्थिति में, अतिरिक्त करंट मुख्य रूप से फेज तार से प्रवाहित होता है।
    • ​यदि फ्यूज फेज में लगा है, तो यह ओवरकरंट को तुरंत पहचान कर सर्किट को तोड़ देगा।
    • ​यदि फ्यूज न्यूट्रल में लगाया जाता है और अर्थ फॉल्ट होता है (जैसे फेज तार किसी उपकरण की ग्राउंडेड बॉडी को छूता है), तो करंट फेज से सीधे जमीन (Earth) में चला जाएगा। इस स्थिति में, न्यूट्रल में कोई ओवरकरंट नहीं होगा, और फ्यूज नहीं जलेगा, जिससे उपकरण को नुकसान होगा और आग लगने का खतरा पैदा हो सकता है।

​2. न्यूट्रल में लिंक/कटआउट क्यों? (Why Link in Neutral?)

​न्यूट्रल तार में फ्यूज के बजाय एक सीधा लिंक (ठोस कंडक्टर) या कटआउट (Link) प्रदान किया जाता है, जिसके दो कारण हैं:

  • निरंतर वापसी पथ (Continuous Return Path): न्यूट्रल तार विद्युत धारा के लिए रिटर्न पथ प्रदान करता है और यह ट्रांसफार्मर पर अर्थ किया हुआ होता है। सुरक्षा कारणों से, इस पथ को जानबूझकर तोड़ना नहीं चाहिए।
  • असुरक्षित "फ्लोटिंग" की रोकथाम (Prevention of Unsafe "Floating"):
    • ​यदि न्यूट्रल तार में लगा फ्यूज जल जाता है, तो उपकरण के दोनों सिरे (फेज और न्यूट्रल) डिस्कनेक्ट हो जाएंगे।
    • ​लेकिन अगर स्विच ऑन है, तो उपकरण का न्यूट्रल सिरा फेज तार से जुड़े होने के कारण उच्च वोल्टेज (230V) पर 'फ्लोट' करता रहेगा।
    • ​इससे उपकरण की बॉडी में उच्च वोल्टेज आ सकता है (विशेषकर अगर उपकरण की बॉडी में कोई फॉल्ट हो), और अगर कोई व्यक्ति उसे छूता है, तो उसे गंभीर झटका लग सकता है, भले ही कोई करंट प्रवाहित न हो रहा हो।
    • ​फेज में फ्यूज और न्यूट्रल में ठोस लिंक सुनिश्चित करता है कि जब फ्यूज जले, तो उच्च वोल्टेज समाप्त हो जाए, और न्यूट्रल हमेशा अर्थ से जुड़ा रहे।

​संक्षेप में, फेज में फ्यूज सुरक्षा के लिए उच्च वोल्टेज को हटाता है, जबकि न्यूट्रल में लिंक रिटर्न पथ की निरंतरता बनाए रखता है और खतरनाक "फ्लोटिंग" वोल्टेज को रोकता है।




61.  डीसी जनरेटर की सूची?

Ans. 

डीसी जनरेटर (DC Generator) को मुख्य रूप से उनके फील्ड वाइंडिंग (Field Winding) और आर्मेचर वाइंडिंग (Armature Winding) के बीच कनेक्शन के तरीके के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

​डीसी जनरेटर के प्रकार (Types of DC Generators)

​डीसी जनरेटर की सूची निम्नलिखित है:

​1. पृथक रूप से उत्तेजित जनरेटर (Separately Excited Generator)

  • कनेक्शन: इस प्रकार के जनरेटर में, फील्ड वाइंडिंग को उत्तेजित करने (चुंबकीय क्षेत्र बनाने) के लिए एक बाहरी डीसी स्रोत (जैसे बैटरी) का उपयोग किया जाता है। फील्ड वाइंडिंग आर्मेचर सर्किट से जुड़ी नहीं होती है।
  • उपयोग: इसका उपयोग आमतौर पर प्रयोगशालाओं और परीक्षण उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जहाँ आउटपुट वोल्टेज को एक व्यापक सीमा में नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है।

​2. स्व-उत्तेजित जनरेटर (Self-Excited Generator)

​इन जनरेटर में, फील्ड वाइंडिंग को आर्मेचर में ही उत्पन्न होने वाले करंट द्वारा उत्तेजित किया जाता है। यह तीन प्रकार का होता है:

​(a) शंट जनरेटर (Shunt Generator)

  • कनेक्शन: फील्ड वाइंडिंग (शंट फील्ड) को आर्मेचर के समांतर (Parallel) में जोड़ा जाता है।
  • विशेषता: फील्ड वाइंडिंग में पतले तार और अधिक मोड़ होते हैं, जिससे इसका प्रतिरोध (Resistance) बहुत अधिक होता है।
  • उपयोग: इसका उपयोग स्थिर वोल्टेज आउटपुट (Constant Voltage Output) की आवश्यकता वाले स्थानों, जैसे बैटरी चार्जिंग और सामान्य प्रकाश व्यवस्था (General Lighting) के लिए किया जाता है।

​(b) श्रृंखला जनरेटर (Series Generator)

  • कनेक्शन: फील्ड वाइंडिंग (सीरीज फील्ड) को आर्मेचर के श्रृंखला (Series) में जोड़ा जाता है।
  • विशेषता: फील्ड वाइंडिंग में मोटे तार और कम मोड़ होते हैं, जिससे इसका प्रतिरोध बहुत कम होता है।
  • उपयोग: इसका आउटपुट वोल्टेज लोड करंट के साथ बढ़ता है, इसलिए इसका उपयोग मुख्य रूप से बूस्टर (Boosters) और वितरण प्रणालियों (Distribution Systems) में फीडरों के वोल्टेज ड्रॉप को संतुलित करने के लिए किया जाता है।

​(c) कंपाउंड जनरेटर (Compound Generator)

​इस जनरेटर में दो फील्ड वाइंडिंग होती हैं: एक शंट में और दूसरी श्रृंखला में जुड़ी होती है। यह दोनों शंट और श्रृंखला जनरेटर की विशेषताओं को मिलाता है। यह दो प्रकार का होता है:

प्रकार

विशेषता

आउटपुट वोल्टेज (Load बढ़ने पर)

I. दीर्घ शंट कंपाउंड (Long Shunt Compound)

शंट फील्ड वाइंडिंग आर्मेचर और सीरीज फील्ड वाइंडिंग दोनों के समांतर में जुड़ी होती है।

-

II. लघु शंट कंपाउंड (Short Shunt Compound)

शंट फील्ड वाइंडिंग केवल आर्मेचर के समानांतर में जुड़ी होती है।

-

A. कम्युलेटिव कंपाउंड (Cumulative Compound)

श्रृंखला और शंट फील्ड एक-दूसरे को मदद करती हैं।

लोड बढ़ने पर वोल्टेज लगभग स्थिर रहता है (ओवर, फ्लैट या अंडर कंपाउंडिंग के आधार पर)।

B. विभेदक कंपाउंड (Differential Compound)

श्रृंखला और शंट फील्ड एक-दूसरे का विरोध करती हैं।

लोड बढ़ने पर वोल्टेज तेजी से घटता है (इसलिए इसका उपयोग कम होता है)।


  • उपयोग: कम्युलेटिव कंपाउंड जनरेटर का उपयोग वहां किया जाता है जहां स्थिर या थोड़ा बढ़ते वोल्टेज की आवश्यकता होती है, जैसे रेलवे और बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में।





62.   इलेक्ट्रॉनिक रेगुलेटर और पंखों के लिए साधारण रिओस्टेट रेगुलेटर के बीच क्या अंतर है?

Ans.   

इलेक्ट्रॉनिक रेगुलेटर और साधारण रिओस्टेट (Rheostat) रेगुलेटर के बीच मुख्य अंतर उनके कार्य सिद्धांत और दक्षता (Efficiency) में है, जो सीधे बिजली की खपत को प्रभावित करता है।

​1. कार्य सिद्धांत (Principle of Operation)

विशेषताएँ

इलेक्ट्रॉनिक रेगुलेटर (Capacitor/Triac Based)

साधारण रिओस्टेट रेगुलेटर (Resistive Type)

मूल सिद्धांत

वोल्टेज को कम करना (Reducing Voltage): यह सप्लाई वोल्टेज को नियंत्रित करने के लिए कैपेसिटर (संधारित्र) या सेमीकंडक्टर (जैसे TRIAC) का उपयोग करता है।

करंट को सीमित करना (Limiting Current): यह श्रृंखला में प्रतिरोध (Series Resistance) का उपयोग करके सर्किट में प्रवाहित होने वाले करंट को सीमित करता है।

उपयोग किया गया घटक

मुख्य रूप से कैपेसिटर या इलेक्ट्रॉनिक सर्किट।

वायर-वाउंड रेसिस्टर (Wire-wound Resistor) या रेसिस्टर्स की एक श्रृंखला।


2. ऊर्जा दक्षता और गर्मी (Energy Efficiency and Heat)

​दक्षता दोनों प्रकार के रेगुलेटर के बीच सबसे महत्वपूर्ण अंतर है:

​इलेक्ट्रॉनिक रेगुलेटर (अधिक कुशल)

  • ऊर्जा की बचत: ये अत्यधिक ऊर्जा कुशल होते हैं।
  • कार्य: जब आप पंखे की गति कम करते हैं, तो कैपेसिटर वोल्टेज को कम करके नियंत्रित करता है। यह ऊर्जा को गर्मी के रूप में नष्ट नहीं करता है, बल्कि सर्किट में रिएक्टिव पावर के रूप में संग्रहित और वापस भेजता है।
  • गर्मी उत्पादन: गर्मी का उत्पादन बहुत कम होता है।
  • बिजली की खपत: पंखे की गति कम होने पर रेगुलेटर की बिजली की खपत न्यूनतम रहती है।

​साधारण रिओस्टेट रेगुलेटर (कम कुशल)

  • ऊर्जा की बर्बादी: ये कम कुशल होते हैं और बिजली की बर्बादी अधिक करते हैं।
  • कार्य: जब आप पंखे की गति कम करते हैं, तो रेगुलेटर सर्किट में प्रतिरोध जोड़ देता है। यह अतिरिक्त प्रतिरोध अतिरिक्त विद्युत ऊर्जा को पूरी तरह से गर्मी के रूप में नष्ट कर देता है।
  • गर्मी उत्पादन: उपयोग के दौरान रेगुलेटर बहुत गर्म हो जाता है।
  • बिजली की खपत: पंखे की गति कम होने पर भी, रेगुलेटर उतनी ही मात्रा में बिजली खींचता है (पंखा + रेगुलेटर का रेसिस्टेंस)। यह बिजली का एक बड़ा हिस्सा गर्मी के रूप में नष्ट हो जाता है, जिससे कोई ऊर्जा बचत नहीं होती है।

​3. अन्य प्रमुख अंतर (Other Key Differences)

अंतर

इलेक्ट्रॉनिक रेगुलेटर

साधारण रिओस्टेट रेगुलेटर

आकार और वजन

छोटा और हल्का (अधिक कॉम्पैक्ट)।

बड़ा और भारी।

कीमत

निर्माण लागत के कारण आमतौर पर थोड़ा महंगा।

सस्ता।

नियंत्रण

आमतौर पर स्टेप-टाइप (1, 2, 3, 4) नियंत्रण या पोटेंशियोमीटर के माध्यम से सटीक नियंत्रण।

आमतौर पर स्टेप-टाइप (1, 2, 3, 4) नियंत्रण।

जीवनकाल

सेमीकंडक्टर या कैपेसिटर की गुणवत्ता पर निर्भर करता है, लेकिन आम तौर पर अच्छा।

प्रतिरोधक तार की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।


निष्कर्ष:

​आजकल, घरों में लगभग हमेशा इलेक्ट्रॉनिक रेगुलेटर का उपयोग किया जाता है क्योंकि वे अधिक ऊर्जा कुशल हैं और लंबी अवधि में बिजली के बिल को कम करते हैं। रिओस्टेट रेगुलेटर पुरानी तकनीक है और उच्च ऊर्जा खपत के कारण अब शायद ही कभी उपयोग किए जाते हैं।





63.   इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के बीच क्या अंतर था?

Ans.   

इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के बीच मुख्य अंतर स्केल (Scale), शक्ति (Power) और करंट के नियंत्रण के तरीके में है।

​सरल शब्दों में:

  • इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग 'नदी' की तरह है, जो बड़ी शक्ति के उत्पादन, संचरण और उपयोग से संबंधित है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग 'बूंद' की तरह है, जो छोटी शक्ति का उपयोग करके इलेक्ट्रॉन के प्रवाह को नियंत्रित करने और जानकारी को संसाधित (Process) करने से संबंधित है।

​मुख्य अंतरों का सारांश

विशेषता

इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (EE)

इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग (ECE)

मुख्य फोकस

विद्युत ऊर्जा (Electrical Power): उत्पादन, वितरण, और बड़ी मशीनों को चलाना।

सूचना संकेत (Information Signal): डेटा/संकेत को संसाधित करने के लिए इलेक्ट्रॉन प्रवाह को नियंत्रित करना।

स्केल (Scale)

मैक्रोस्कोपिक (Macroscopic): बड़े पैमाने पर सिस्टम और उच्च वोल्टेज/करंट।

माइक्रोस्कोपिक (Microscopic): छोटे पैमाने पर सर्किट और कम वोल्टेज/करंट।

वोल्टेज स्तर

उच्च वोल्टेज (High Voltage) (जैसे 220V से 400KV)।

कम वोल्टेज (Low Voltage) (जैसे 5V से 12V)।

उपयोग किए जाने वाले उपकरण

ट्रांसफार्मर, जनरेटर, मोटर, पावर ग्रिड, स्विचगियर, भारी मशीनरी।

ट्रांजिस्टर, डायोड, इंटीग्रेटेड सर्किट (ICs), माइक्रोप्रोसेसर, सेंसर।

करंट का प्रकार

AC (Alternating Current) और DC (Direct Current) दोनों पर काम करता है।

मुख्य रूप से DC (Direct Current) पर काम करता है।

सर्किट की प्रकृति

सर्किट का कोई "निर्णय लेने" का कार्य नहीं होता; यह ऊर्जा को परिवर्तित करता है (जैसे ऊष्मा, प्रकाश, या गति में)।

सर्किट में निर्णय लेने (Decision-Making) की क्षमता होती है (जैसे लॉजिक गेट्स और माइक्रोचिप)।



अध्ययन और अनुप्रयोग के क्षेत्र

​दोनों क्षेत्रों के बीच कई ओवरलैप (जैसे कंट्रोल सिस्टम, रोबोटिक्स) हैं, लेकिन उनके मुख्य अध्ययन क्षेत्र भिन्न हैं:

​1. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के मुख्य क्षेत्र

​इलेक्ट्रिकल इंजीनियर मुख्य रूप से विद्युत शक्ति प्रणाली और विद्युत चुंबकत्व के सिद्धांतों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

  • उत्पादन और वितरण: पावर ग्रिड, बिजली संयंत्रों (हाइड्रो, थर्मल, न्यूक्लियर, सौर), और हाई-वोल्टेज संचरण लाइनें।
  • इलेक्ट्रिकल मशीनें: मोटर, जनरेटर, और ट्रांसफार्मर का डिजाइन और संचालन।
  • पावर इलेक्ट्रॉनिक्स: हाई-वोल्टेज अनुप्रयोगों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उपयोग।
  • इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन: बड़ी औद्योगिक प्रणालियों का नियंत्रण।

​2. इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के मुख्य क्षेत्र

​इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर मुख्य रूप से सेमीकंडक्टर उपकरणों और सूचना प्रौद्योगिकी पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

  • सर्किट डिजाइन: एकीकृत सर्किट (ICs) और चिप्स का निर्माण।
  • संचार प्रणाली: टेलीकम्युनिकेशन, वायरलेस नेटवर्क (5G), रेडियो और उपग्रह संचार।
  • डिजिटल और एनालॉग इलेक्ट्रॉनिक्स: डिजिटल लॉजिक, माइक्रोकंट्रोलर और एम्बेडेड सिस्टम।
  • उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स: स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टीवी और अन्य गैजेट्स का विकास।





64.  उत्तेजक क्या है और यह कैसे काम करता है?

Ans.  


एक्साइटर (Exciter) को हिंदी में उत्तेजक कहते हैं। यह एक सहायक डीसी जनरेटर या इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जिसका मुख्य कार्य बड़े एसी जनरेटर (अल्टरनेटर) या सिंक्रोनस मोटर की फील्ड वाइंडिंग (चुंबकीय कुंडली) को डीसी करंट (DC Current) प्रदान करना है, ताकि मुख्य मशीन में एक मजबूत और नियंत्रित चुंबकीय क्षेत्र स्थापित हो सके।

​उत्तेजक क्या है? (What is an Exciter?)

​उत्तेजक एक अनिवार्य उपकरण है जो पावर स्टेशन में विद्युत उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले विशाल अल्टरनेटर (Alternator) के सफल संचालन को संभव बनाता है।

  • मूल कार्य: यह अल्टरनेटर के रोटर (Rotor) पर मौजूद फील्ड वाइंडिंग को डीसी करंट सप्लाई करता है।
  • उद्देश्य: इस डीसी करंट से रोटर में एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनता है। जब यह चुंबकीय क्षेत्र स्टेटर (Stator) वाइंडिंग को काटता है, तो अल्टरनेटर में एसी वोल्टेज (AC Voltage) उत्पन्न होता है।

​उत्तेजक कैसे काम करता है? (How does an Exciter Work?)

​उत्तेजक का कार्य मुख्य रूप से अल्टरनेटर के आउटपुट वोल्टेज और रिएक्टिव पावर (Reactive Power) को नियंत्रित करने पर केंद्रित होता है।

​1. कार्य सिद्धांत (The Working Principle)

  1. उत्पादन: उत्तेजक प्रणाली (जो स्वयं एक छोटा जनरेटर या रेक्टिफायर हो सकती है) आवश्यक डीसी करंट उत्पन्न करती है।
  2. सप्लाई: यह डीसी करंट अल्टरनेटर के रोटर पर स्थित फील्ड वाइंडिंग तक पहुंचाया जाता है। पारंपरिक प्रणालियों में, इसके लिए स्लिप रिंग्स और ब्रश का उपयोग होता है, जबकि आधुनिक प्रणालियों में ब्रशरहित (Brushless) एक्साइटर का उपयोग होता है।
  3. चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण: फील्ड वाइंडिंग में डीसी करंट प्रवाहित होने से रोटर पर एक शक्तिशाली चुंबकीय ध्रुव (Magnetic Poles) स्थापित हो जाते हैं।
  4. प्रेरण (Induction): जब यह चुंबकीय क्षेत्र रोटर के साथ घूमता है, तो यह अल्टरनेटर की स्टेटर वाइंडिंग को काटता है, जिससे स्टेटर में एसी वोल्टेज प्रेरित (Induce) होता है।
  5. वोल्टेज नियंत्रण: अल्टरनेटर का आउटपुट वोल्टेज सीधे रोटर फील्ड करंट की ताकत पर निर्भर करता है। उत्तेजक प्रणाली द्वारा फील्ड करंट को नियंत्रित करके ही मुख्य अल्टरनेटर के आउटपुट वोल्टेज को स्थिर और वांछित स्तर पर रखा जाता है।

​2. उत्तेजक के प्रकार (Types of Exciters)

​उत्तेजक प्रणाली को मुख्यतः दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

​(a) स्थैतिक उत्तेजक (Static Exciter)

  • घटक: इसमें कोई घूमने वाला भाग नहीं होता। यह सीधे अल्टरनेटर के आउटपुट से सप्लाई लेता है। इसमें ट्रांसफार्मर और थायरिस्टर-आधारित रेक्टिफायर (SCRs) लगे होते हैं।
  • कार्य: यह रेक्टिफायर एसी को डीसी में बदलता है, जिसे सीधे स्लिप रिंग्स के माध्यम से रोटर फील्ड वाइंडिंग को दिया जाता है।
  • लाभ: तेज प्रतिक्रिया (Fast Response) और उच्च दक्षता।

​(b) ब्रशरहित उत्तेजक (Brushless Exciter)

  • घटक: यह स्वयं एक छोटा एसी जनरेटर होता है जिसका आर्मेचर रोटर पर और फील्ड वाइंडिंग स्टेटर पर होती है। रोटर पर ही एक रोटेटिंग रेक्टिफायर भी लगा होता है।
  • कार्य:
    1. ​स्टेटर फील्ड (डीसी) उत्तेजित होती है, जिससे रोटर आर्मेचर में एसी प्रेरित होता है।
    2. ​यह एसी रोटर पर लगे रोटेटिंग रेक्टिफायर द्वारा डीसी में बदल दिया जाता है।
    3. ​यह डीसी सीधे मुख्य अल्टरनेटर की फील्ड वाइंडिंग को सप्लाई किया जाता है।
  • लाभ: ब्रश और स्लिप रिंग्स की आवश्यकता समाप्त हो जाती है, जिससे रखरखाव कम हो जाता है।

​संक्षेप में, उत्तेजक वह 'दिल' है जो अल्टरनेटर के 'शरीर' को वह डीसी 'शक्ति' प्रदान करता है जिससे बिजली पैदा होती है और उस शक्ति को नियंत्रित भी किया जाता है।




65.   बीओएम शब्द की व्याख्या करें?

Ans.

बीओएम शब्द का मतलब बिल ऑफ मैटेरियल्स (Bill of Materials - BOM) है।

​यह एक व्यापक सूची (Comprehensive List) है जिसमें किसी अंतिम उत्पाद (Finished Product), उप-असेंबली (Sub-Assembly) या उप-उत्पाद (Sub-Component) को बनाने के लिए आवश्यक सभी कच्चे माल (Raw Materials), घटक (Components), भाग (Parts) और मात्रा (Quantities) का विवरण होता है।

​बीओएम (BOM) की व्याख्या और कार्य

​बीओएम को अक्सर उत्पाद की "रेसिपी (Recipe)" या "ब्लूप्रिंट (Blueprint)" माना जाता है, क्योंकि यह निर्माण प्रक्रिया के लिए एक सटीक मार्गदर्शिका प्रदान करता है।

​1. बीओएम का उद्देश्य (Purpose of BOM)

  • मानकीकरण (Standardization): यह सुनिश्चित करता है कि हर बार एक ही उत्पाद समान घटकों और प्रक्रियाओं का उपयोग करके बनाया जाए।
  • योजना और खरीद (Planning & Procurement): खरीद विभाग को यह जानने में मदद करता है कि किस सामग्री को, कितनी मात्रा में और कब ऑर्डर करना है।
  • लागत नियंत्रण (Cost Control): किसी उत्पाद को बनाने की सटीक सामग्री लागत (Material Cost) की गणना करने में सहायक होता है।
  • इन्वेंटरी प्रबंधन (Inventory Management): आवश्यक घटकों का स्टॉक स्तर बनाए रखने में मदद करता है।
  • उत्पादन नियंत्रण (Production Control): उत्पादन टीम को यह समझने में मदद करता है कि उन्हें क्या बनाना है और किन घटकों का उपयोग करना है।

​2. बीओएम में शामिल मुख्य जानकारी (Key Information in a BOM)

​एक विशिष्ट बीओएम में निम्नलिखित महत्वपूर्ण जानकारी शामिल होती है:

  • भाग संख्या (Part Number): घटक की पहचान के लिए एक अद्वितीय कोड।
  • घटक का नाम/विवरण (Component Name/Description): सामग्री का स्पष्ट नाम।
  • मात्रा (Quantity): उत्पाद की एक इकाई को बनाने के लिए आवश्यक उस घटक की संख्या।
  • इकाई (Unit of Measure - UoM): जैसे प्रत्येक (Each), किलोग्राम (Kg), मीटर (Meter) आदि।
  • खरीद/निर्माण प्रकार (Procurement Type): यह इंगित करता है कि भाग को खरीदा जाएगा (Purchased) या घर में बनाया जाएगा (Manufactured/Made in-house)

​3. बीओएम के प्रकार (Types of BOM)

​बीओएम को उपयोग के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

प्रकार

विवरण

इंजीनियरिंग बीओएम (EBOM)

यह उत्पाद के डिजाइन को दर्शाता है और इसमें इंजीनियरिंग और तकनीकी विवरण शामिल होते हैं।

विनिर्माण बीओएम (MBOM)

यह उत्पाद के निर्माण के लिए आवश्यक संरचना को दर्शाता है, जिसमें उत्पादन और पैकेजिंग के लिए आवश्यक सभी आइटम शामिल होते हैं।

सेवा बीओएम (Service BOM)

यह उत्पाद की मरम्मत और रखरखाव के लिए आवश्यक घटकों की सूची है।

सिंगल-लेवल बीओएम

यह केवल एक स्तर की असेंबली दिखाता है (जैसे मुख्य उत्पाद और उसके तत्काल भाग)।

मल्टी-लेवल बीओएम

यह उत्पाद संरचना का एक पदानुक्रम (Hierarchy) दिखाता है, जिसमें मुख्य असेंबली, उप-असेंबली, और उनके घटक शामिल होते हैं।







66.   QMS क्या है?

Ans.   

QMS का फुल फॉर्म क्वालिटी मैनेजमेंट सिस्टम (Quality Management System) है, जिसे हिंदी में गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली कहते हैं।

​गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली (QMS) की व्याख्या

​QMS एक औपचारिक ढांचा (Formalized Framework) है जिसमें किसी संगठन की नीतियों (Policies), प्रक्रियाओं (Processes), दस्तावेजीकृत प्रक्रियाओं (Documented Procedures) और संसाधनों का एक संग्रह शामिल होता है, जिसे वह ग्राहकों की आवश्यकताओं को लगातार पूरा करने और उनकी संतुष्टि बढ़ाने के लिए अपनाता है।

​सरल शब्दों में:

QMS एक कंपनी के लिए वह नियम पुस्तिका (Rulebook) है जो यह सुनिश्चित करती है कि उसके उत्पाद या सेवाएँ हर बार एक ही उच्च-स्तरीय गुणवत्ता मानकों को पूरा करें। यह दोषों और विफलताओं को कम करने के लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण प्रदान करता है।

​मुख्य उद्देश्य

​QMS के तीन मुख्य उद्देश्य हैं:

  1. ग्राहक संतुष्टि (Customer Satisfaction): ग्राहकों की वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को पूरा करना।
  2. निरंतर सुधार (Continual Improvement): प्रक्रियाओं और उत्पादों की गुणवत्ता में लगातार सुधार करते रहना।
  3. नियामक अनुपालन (Regulatory Compliance): ISO 9001 जैसे अंतरराष्ट्रीय और उद्योग-विशिष्ट मानकों का पालन करना।

​QMS के मुख्य तत्व

​एक प्रभावी QMS निम्नलिखित मूलभूत तत्वों पर बनाया जाता है:

तत्व (Element)

विवरण (Description)

गुणवत्ता नीति (Quality Policy)

संगठन का एक औपचारिक बयान जो गुणवत्ता के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को परिभाषित करता है।

प्रक्रियाएँ और कार्यविधियाँ (Processes & Procedures)

यह परिभाषित करना कि कोई विशेष कार्य "कैसे," "कब" और "किसके द्वारा" किया जाना है, ताकि कार्य में एकरूपता (Consistency) बनी रहे।

दस्तावेज़ीकरण और रिकॉर्ड (Documentation & Records)

सभी गुणवत्ता-संबंधी गतिविधियों, परिणामों और प्रशिक्षण के रिकॉर्ड का रखरखाव।

नेतृत्व और भागीदारी (Leadership & Engagement)

शीर्ष प्रबंधन का समर्थन और सभी कर्मचारियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना।

निष्पादन माप (Performance Measurement)

प्रक्रियाओं की निगरानी और ऑडिटिंग करना ताकि पता चल सके कि सिस्टम कितना प्रभावी ढंग से काम कर रहा है।



QMS का महत्व (Significance)

​QMS को लागू करने से संगठन को कई दीर्घकालिक लाभ मिलते हैं:

  • दोषों में कमी: व्यवस्थित नियंत्रण के कारण उत्पाद या सेवा में गलतियाँ और त्रुटियाँ कम होती हैं।
  • परिचालन दक्षता (Operational Efficiency): प्रक्रियाओं के मानकीकरण (Standardization) से बर्बादी कम होती है और कार्यकुशलता बढ़ती है।
  • वैश्विक विश्वसनीयता: ISO 9001 जैसे मानकों का अनुपालन दुनिया भर में संगठन की विश्वसनीयता बढ़ाता है।
  • बेहतर निर्णय लेना: रिकॉर्ड्स और डेटा के माध्यम से प्रबंधन को सुधार के लिए सही निर्णय लेने में मदद मिलती है।




67.  उत्पाद निर्माण में क्या चुनौती है?

Ans.   

उत्पाद निर्माण (Product Manufacturing) एक जटिल प्रक्रिया है जो कई चुनौतियों से भरी होती है। ये चुनौतियाँ कच्चे माल की खरीद से लेकर अंतिम उत्पाद के बाजार में आने तक हर चरण को प्रभावित कर सकती हैं।

​उत्पाद निर्माण में आने वाली कुछ मुख्य चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं:

​1. परिचालन और प्रक्रिया चुनौतियाँ (Operational and Process Challenges)

​ये सीधे उत्पादन लाइन और दक्षता से संबंधित हैं।

  • गुणवत्ता नियंत्रण और दोष (Quality Control and Defects): यह सुनिश्चित करना कि प्रत्येक उत्पाद निर्धारित मानकों को पूरा करे। निर्माण प्रक्रिया में मामूली विचलन (minor deviations) भी दोषपूर्ण उत्पादों (defective products) को जन्म दे सकता है, जिससे लागत और समय दोनों बर्बाद होते हैं।
  • दक्षता और विलंब (Efficiency and Delays): उत्पादन लाइन को सुचारू रूप से चलाना। मशीनें खराब होना (machine breakdowns), आपूर्ति श्रृंखला में बाधाएँ, या प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी उत्पादन में विलंब (delays) और परिचालन लागत में वृद्धि कर सकती है।
  • जटिल आपूर्ति श्रृंखला (Complex Supply Chain): दुनिया भर से कच्चे माल और घटकों की सोर्सिंग करना। कच्चे माल की कमी, शिपिंग में देरी, या आपूर्तिकर्ता (suppliers) की विश्वसनीयता का मुद्दा पूरी उत्पादन योजना को बाधित कर सकता है।
  • इन्वेंटरी प्रबंधन (Inventory Management): कच्चे माल और तैयार माल का सही स्तर बनाए रखना। बहुत अधिक इन्वेंटरी से भंडारण लागत बढ़ती है, जबकि बहुत कम होने पर उत्पादन रुक सकता है।
  • स्केलिंग (Scaling): छोटे पैमाने के उत्पादन से बड़े पैमाने पर उत्पादन की ओर बढ़ना, जहाँ गुणवत्ता और लागत स्थिरता बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।

​2. तकनीकी और नवाचार चुनौतियाँ (Technological and Innovation Challenges)

​बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए प्रौद्योगिकी को बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

  • पुरानी तकनीक (Obsolete Technology): उत्पादन के लिए पुरानी या अप्रचलित मशीनों का उपयोग करना। यह उच्च परिचालन लागत और धीमी गति की ओर ले जाता है।
  • ऑटोमेशन का कार्यान्वयन (Implementing Automation): कारखाने में नई रोबोटिक्स या ऑटोमेशन तकनीक को एकीकृत करना। इसके लिए भारी पूंजी निवेश और कर्मचारियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
  • डिजिटल एकीकरण (Digital Integration): उत्पादन प्रक्रिया, आपूर्ति श्रृंखला और बिक्री डेटा को डिजिटल प्लेटफॉर्म (Digital Platforms) (जैसे IoT, AI) के माध्यम से जोड़ना। इसमें डेटा सुरक्षा और सिस्टम संगतता (compatibility) की समस्याएँ आती हैं।
  • उत्पाद जीवनचक्र प्रबंधन (Product Lifecycle Management - PLM): तेजी से बदलते बाजार के रुझानों के अनुरूप उत्पादों को जल्दी से डिजाइन, प्रोटोटाइप और संशोधित करना।

​3. वित्तीय और बाजार चुनौतियाँ (Financial and Market Challenges)

​ये सीधे व्यवसाय की लाभप्रदता और प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करती हैं।

  • बढ़ती लागत (Rising Costs): कच्चे माल, ऊर्जा और श्रम की बढ़ती लागत को नियंत्रित करना।
  • मूल्य निर्धारण प्रतिस्पर्धा (Pricing Competition): बाजार में अन्य निर्माताओं से प्रतिस्पर्धा के कारण उत्पाद को आकर्षक कीमत पर बेचना, जबकि लाभ मार्जिन बनाए रखना।
  • पूंजी निवेश (Capital Investment): नई मशीनरी और प्रौद्योगिकी में निवेश करने के लिए पर्याप्त पूंजी जुटाना।
  • मांग की अनिश्चितता (Demand Uncertainty): बाजार की मांग का सटीक पूर्वानुमान (forecasting) लगाना। अधिक उत्पादन से स्टॉक जमा हो जाता है, जबकि कम उत्पादन से बिक्री का नुकसान होता है।

​4. मानव संसाधन और नियामक चुनौतियाँ (HR and Regulatory Challenges)

​यह सुनिश्चित करना कि कार्यबल कुशल है और सभी नियम-कानूनों का पालन हो रहा है।

  • कुशल श्रम की कमी (Lack of Skilled Labor): जटिल मशीनों को संचालित करने और बनाए रखने के लिए आवश्यक कौशल वाले कर्मचारियों को ढूँढना और बनाए रखना।
  • सुरक्षा और प्रशिक्षण (Safety and Training): कर्मचारियों के लिए सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करना और उन्हें नवीनतम प्रक्रियाओं पर नियमित रूप से प्रशिक्षित करना।
  • पर्यावरण नियम (Environmental Regulations): प्रदूषण नियंत्रण, अपशिष्ट प्रबंधन और ऊर्जा उपयोग से संबंधित सरकारी और अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरणीय नियमों का पालन करना।

​इन चुनौतियों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, कंपनियों को अक्सर लीन मैन्युफैक्चरिंग (Lean Manufacturing), सिक्स सिग्मा (Six Sigma), और उन्नत इन्वेंटरी प्रबंधन प्रणालियों (Advanced Inventory Management Systems) जैसे रणनीतिक उपकरणों का उपयोग करना पड़ता है।



68.  फैक्ट्री ओवरहेड शब्द को परिभाषित करें?

Ans.   

फैक्ट्री ओवरहेड (Factory Overhead), जिसे विनिर्माण ओवरहेड (Manufacturing Overhead) भी कहा जाता है, वे अप्रत्यक्ष लागतें (Indirect Costs) हैं जो किसी कारखाने या उत्पादन सुविधा के संचालन में खर्च होती हैं, लेकिन जिन्हें सीधे किसी विशिष्ट उत्पाद इकाई (specific product unit) से आसानी से जोड़ा नहीं जा सकता।

​फैक्ट्री ओवरहेड की विस्तृत व्याख्या

​फैक्ट्री ओवरहेड उन सभी खर्चों का योग होता है जो किसी उत्पाद को बनाने के लिए आवश्यक तो हैं, पर वे प्रत्यक्ष सामग्री (Direct Material) और प्रत्यक्ष श्रम (Direct Labor) की श्रेणी में नहीं आते।

​मुख्य विशेषताएँ

  1. अप्रत्यक्ष प्रकृति (Indirect Nature): यह लागत सीधे किसी एक उत्पाद इकाई पर नहीं डाली जा सकती। उदाहरण के लिए, पूरे कारखाने का किराया या बिजली का बिल कई उत्पादों पर एक साथ लागू होता है।
  2. उत्पादन से संबंधित (Related to Production): यह खर्च केवल उत्पादन क्षेत्र और विनिर्माण गतिविधियों से संबंधित होता है, न कि प्रशासनिक या बिक्री गतिविधियों से।

​फैक्ट्री ओवरहेड के घटक

​फैक्ट्री ओवरहेड में तीन मुख्य प्रकार की अप्रत्यक्ष लागतें शामिल होती हैं:

लागत का प्रकार

उदाहरण (Examples)

1. अप्रत्यक्ष सामग्री (Indirect Materials)

मशीनरी को चलाने के लिए चिकनाई तेल (Lubricating Oil), सफाई सामग्री (Cleaning Supplies), या छोटे-मोटे उपकरण (Tools) जो जल्दी घिस जाते हैं।

2. अप्रत्यक्ष श्रम (Indirect Labor)

उत्पादन प्रक्रिया में सीधे शामिल न होने वाले कर्मचारियों का वेतन, जैसे पर्यवेक्षक (Supervisors), निरीक्षक (Inspectors), रखरखाव कर्मचारी (Maintenance Staff), और सुरक्षा गार्ड (Security Guards)।

3. अन्य अप्रत्यक्ष व्यय (Other Indirect Expenses)

* फैक्ट्री का किराया और बीमा (Insurance)।

* उत्पादन सुविधा की बिजली और उपयोगिताएँ (Utilities)।

* मशीनरी पर मूल्यह्रास (Depreciation on Machinery)।

* उपकरणों की मरम्मत और रखरखाव (Repairs and Maintenance)।

* संपत्ति कर (Property Taxes)।


संक्षेप में: फैक्ट्री ओवरहेड यह सुनिश्चित करता है कि उत्पादन सुविधा कार्यशील रहे, लेकिन यह खर्च सीधे उत्पाद के निर्माण को मापने योग्य तरीके से प्रभावित नहीं करता। यह उत्पाद की कुल लागत (Total Product Cost) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जिसे बाद में एक उपयुक्त आधार (जैसे श्रम घंटे, मशीन घंटे, या प्रत्यक्ष सामग्री लागत) का उपयोग करके उत्पादों पर वितरित किया जाता है।



69.   किसी विनिर्माण इकाई में पर्यवेक्षण कैसे किया जाए?

Ans.    

विनिर्माण इकाई (Manufacturing Unit) में प्रभावी पर्यवेक्षण (Supervision) के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि उत्पादन प्रक्रियाएँ सुचारू रूप से, कुशलतापूर्वक और गुणवत्ता मानकों के अनुसार चलें।

​पर्यवेक्षण को सफल बनाने के लिए यहाँ कुछ मुख्य कदम और रणनीतियाँ दी गई हैं:

​1. स्पष्ट लक्ष्य और अपेक्षाएँ निर्धारित करें (Set Clear Goals and Expectations)

​पर्यवेक्षण की शुरुआत स्पष्टता से होती है।

  • परिणाम परिभाषित करें: प्रत्येक कर्मचारी और टीम के लिए उत्पादन लक्ष्य (Production Targets), गुणवत्ता मानक (Quality Standards), और सुरक्षा प्रोटोकॉल (Safety Protocols) स्पष्ट रूप से परिभाषित करें।
  • प्रक्रियाएँ मानकीकृत करें: हर कार्य के लिए मानक संचालन प्रक्रियाएँ (Standard Operating Procedures - SOPs) होनी चाहिए। पर्यवेक्षक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी कर्मचारी इन SOPs का ठीक से पालन कर रहे हैं।
  • भूमिकाएँ और जिम्मेदारियाँ (Roles and Responsibilities): स्पष्ट करें कि कौन क्या कर रहा है। इससे भ्रम कम होता है और जवाबदेही (Accountability) बढ़ती है।

​2. उत्पादन की निगरानी और नियंत्रण (Monitor and Control Production)

​उत्पादन तल (Shop Floor) पर सक्रिय रूप से उपस्थित रहना और डेटा का उपयोग करना महत्वपूर्ण है।

  • दृश्य नियंत्रण (Visual Control): उत्पादन क्षेत्र का लगातार निरीक्षण करें। 5S प्रणाली (Sort, Set in order, Shine, Standardize, Sustain) का पालन करें ताकि किसी भी समस्या को तुरंत पहचाना जा सके।
  • प्रदर्शन मीट्रिक का उपयोग (Use Performance Metrics): प्रमुख प्रदर्शन संकेतकों (KPIs) जैसे OEE (Overall Equipment Effectiveness), दोष दर (Defect Rate), स्क्रैप दर (Scrap Rate), और चक्र समय (Cycle Time) पर नज़र रखें।
  • डेटा-संचालित निर्णय (Data-Driven Decisions): किसी समस्या को केवल अनुमान के आधार पर नहीं, बल्कि वास्तविक डेटा और रिपोर्टों के आधार पर हल करें।

​3. गुणवत्ता आश्वासन और सुधार (Quality Assurance and Improvement)

​पर्यवेक्षण का मुख्य फोकस गुणवत्ता बनाए रखना होना चाहिए।

  • ऑन-द-स्पॉट जाँच (On-the-Spot Checks): उत्पादन के महत्वपूर्ण चरणों में अचानक और नियमित गुणवत्ता जाँच (Quality Checks) करें।
  • प्रशिक्षण और कौशल विकास: सुनिश्चित करें कि कर्मचारी अपनी मशीनरी और उपकरणों के संचालन में पूरी तरह से प्रशिक्षित और सक्षम हैं। नए कौशल सीखने को प्रोत्साहित करें।
  • समस्या निवारण (Troubleshooting): जब दोष या मशीन खराबी आती है, तो पर्यवेक्षक को केवल सुधार नहीं करना चाहिए, बल्कि समस्या के मूल कारण (Root Cause) की पहचान करने के लिए टीम का नेतृत्व करना चाहिए (जैसे फाइव व्हाई एनालिसिस का उपयोग करके)।
  • निरंतर सुधार (Continuous Improvement): कर्मचारियों को छोटे-छोटे सुधारों (जैसे काइज़न दृष्टिकोण) का सुझाव देने के लिए प्रोत्साहित करें जो दक्षता और सुरक्षा बढ़ा सकते हैं।

​4. सुरक्षा और कार्यबल प्रबंधन (Safety and Workforce Management)

​एक सुरक्षित और प्रेरित कार्यबल उच्च उत्पादकता की नींव है।

  • सुरक्षा अनुपालन (Safety Compliance): व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) के उपयोग और सभी सुरक्षा नियमों (जैसे मशीन गार्ड, लॉकआउट/टैगआउट) का सख्ती से पालन सुनिश्चित करें। सुरक्षा ऑडिट नियमित रूप से करें।
  • संचार और प्रतिक्रिया (Communication and Feedback): कर्मचारियों के साथ स्पष्ट और खुला संचार बनाए रखें। उनके सुझाव सुनें। रचनात्मक प्रतिक्रिया (Constructive Feedback) तुरंत दें, ताकि त्रुटियों को जल्द सुधारा जा सके।
  • प्रेरणा और मान्यता (Motivation and Recognition): कर्मचारियों के अच्छे प्रदर्शन को पहचानें और पुरस्कृत करें। एक सकारात्मक कार्य संस्कृति बनाएं जो उच्च मनोबल (High Morale) को बढ़ावा दे।
  • संघर्ष समाधान (Conflict Resolution): कर्मचारियों के बीच या टीम के भीतर उत्पन्न होने वाले किसी भी संघर्ष को तुरंत और निष्पक्ष रूप से हल करें।

​प्रभावी पर्यवेक्षण का अर्थ केवल गलतियों को पकड़ना नहीं है, बल्कि सुविधाकर्ता (Facilitator), शिक्षक (Teacher) और समस्या हल करने वाला (Problem Solver) बनना है जो टीम को सफलता की ओर ले जाता है।





70.   डीसी मशीन में कम्यूटेशन की प्रक्रिया की व्याख्या करें। बताएं कि इंटर पोल क्या हैं और डीसी मशीन में उनकी आवश्यकता क्यों है।

Ans.   

डीसी मशीन (DC Machine) में कम्यूटेशन (Commutation) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो आर्मेचर कॉइल्स में उत्पन्न होने वाले प्रत्यावर्ती धारा (AC) को बाहरी सर्किट के लिए दिष्ट धारा (DC) में परिवर्तित करती है।

​कम्यूटेशन की प्रक्रिया (Process of Commutation)

​कम्यूटेशन वह प्रक्रिया है जिसके दौरान कम्यूटेटर सेगमेंट और ब्रश के संपर्क में आने पर एक आर्मेचर कॉइल में प्रवाहित होने वाले करंट की दिशा उलट (Reverse) जाती है।

​1. कम्यूटेशन के चरण

  1. सामान्य स्थिति (Normal Condition): कॉइल (जैसे कॉइल A) कम्यूटेटर सेगमेंट (जैसे सेगमेंट 1 और 2) से जुड़ी होती है। ब्रश पूरी तरह से सेगमेंट 1 पर टिका होता है और कॉइल A में करंट एक दिशा (मान लीजिए, दाएँ से बाएँ) में प्रवाहित होता है।
  2. लघु परिपथ चरण (Short-Circuit Phase): जैसे ही ब्रश आगे बढ़ता है, वह क्षण आता है जब ब्रश एक साथ दो आसन्न सेगमेंट (सेगमेंट 1 और 2) पर होता है। इस क्षण, कॉइल A ब्रश द्वारा लघु-परिपथित (Short-Circuited) हो जाती है।
  3. धारा का उलटना (Current Reversal): ब्रश के संपर्क के दौरान, कॉइल A में करंट शून्य (Zero) तक गिर जाता है, और फिर विपरीत दिशा (बाएँ से दाएँ) में अधिकतम मान तक पहुँच जाता है।
  4. सामान्य स्थिति में वापसी: जब ब्रश सेगमेंट 2 को पूरी तरह से कवर कर लेता है, तो कॉइल फिर से सर्किट से जुड़ जाती है, लेकिन अब उसमें करंट की दिशा उलट गई होती है।

​2. कम्यूटेशन की समस्याएँ: स्पार्किंग

​आदर्श रूप से, यह करंट उलटाव (Reversal) तुरंत और सुचारू रूप से होना चाहिए। हालांकि, कॉइल में स्व-प्रेरकत्व (Self-Inductance) के कारण एक रिएक्टेंस वोल्टेज (Reactance Voltage) उत्पन्न होता है। यह वोल्टेज करंट के उलटाव का विरोध करता है और इसे धीमा कर देता है।

​यदि करंट का उलटाव (Commutation) धीमा होता है, तो जब ब्रश एक सेगमेंट को छोड़ता है, तो सेगमेंट और ब्रश के बीच स्पार्किंग (Sparking) होती है। यह स्पार्किंग ब्रश और कम्यूटेटर दोनों को नुकसान पहुंचाती है, जिससे मशीन का रखरखाव बढ़ जाता है और दक्षता कम होती है।

​इंटर पोल (Inter Poles)

इंटर पोल (Inter Poles), जिन्हें कम्यूटेटिंग पोल (Commutating Poles) भी कहा जाता है, छोटे अतिरिक्त पोल होते हैं जो मुख्य चुंबकीय ध्रुवों (Main Poles) के बीच में स्थापित किए जाते हैं।

​1. इंटर पोल क्या हैं?

  • स्थान: वे मुख्य पोल (जैसे, उत्तर और दक्षिण) के बीच के ज्यामितीय उदासीन अक्ष (Geometric Neutral Axis - GNA) पर स्थापित किए जाते हैं।
  • वाइंडिंग: उनकी फील्ड वाइंडिंग में मोटे तार होते हैं और यह आर्मेचर वाइंडिंग के साथ श्रृंखला (Series with Armature Winding) में जुड़ी होती है।
  • ध्रुवीयता (Polarity):
    • जनरेटर में: इंटर पोल की ध्रुवीयता आगे आने वाले मुख्य पोल के समान होती है।
    • मोटर में: इंटर पोल की ध्रुवीयता पीछे आने वाले मुख्य पोल के समान होती है।

​2. इंटर पोल की आवश्यकता क्यों है?

​इंटर पोल का मुख्य उद्देश्य स्पार्किंग को समाप्त करना (Eliminate Sparking) और कम्यूटेशन में सुधार करना है। यह दो कारणों से आवश्यक हैं:

​A. रिएक्टेंस वोल्टेज का निराकरण (Neutralization of Reactance Voltage)

​इंटर पोल एक सहायक चुंबकीय क्षेत्र (Auxiliary Magnetic Field) उत्पन्न करते हैं। इस क्षेत्र का उद्देश्य कॉइल में स्व-प्रेरकत्व के कारण उत्पन्न होने वाले रिएक्टेंस वोल्टेज को ठीक से रद्द (Cancel Out) करना है। जब यह वोल्टेज सफलतापूर्वक निराकृत हो जाता है, तो करंट का उलटाव सुचारू रूप से होता है और स्पार्किंग समाप्त हो जाती है।

​B. आर्मेचर रिएक्शन का प्रभाव कम करना (Reducing Armature Reaction Effect)

​लोड बढ़ने पर, आर्मेचर करंट एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है जिसे आर्मेचर रिएक्शन कहते हैं। यह आर्मेचर रिएक्शन मुख्य फ्लक्स को विकृत (Distort) कर देता है और चुंबकीय उदासीन अक्ष (Magnetic Neutral Axis - MNA) को खिसका देता है।

​इंटर पोल द्वारा उत्पन्न क्षेत्र, आर्मेचर रिएक्शन के क्रॉस-मैग्नेटाइजिंग प्रभाव (Cross-Magnetizing Effect) का भी विरोध करता है। चूंकि इंटर पोल वाइंडिंग आर्मेचर के साथ श्रृंखला में जुड़ी होती है, उनका क्षेत्र लोड करंट के साथ बदलता है, जिससे वे सभी लोड स्तरों पर प्रभावी रूप से कम्यूटेशन में सुधार करते हैं।

​इस प्रकार, इंटर पोल डीसी मशीन को उच्च गति और उच्च लोड पर भी स्पार्किंग-मुक्त संचालन की अनुमति देते हैं।




71.   एकल चरण ट्रांसफार्मर के संचालन के कार्य सिद्धांत पर टिप्पणी करें।

Ans.   

एकल चरण ट्रांसफार्मर (Single-Phase Transformer) का कार्य सिद्धांत मुख्य रूप से फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम (Faraday's Law of Electromagnetic Induction) और पारस्परिक प्रेरण (Mutual Induction) पर आधारित है।

​एकल चरण ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​ट्रांसफार्मर एक स्थिर (Static) उपकरण है जो बिना किसी चलती भाग के आवृत्ति (Frequency) को बदले बिना विद्युत ऊर्जा को एक सर्किट से दूसरे सर्किट में स्थानांतरित करता है।

​1. प्रत्यावर्ती फ्लक्स का निर्माण (Creation of Alternating Flux)

  1. ​जब ट्रांसफार्मर की प्राथमिक वाइंडिंग (Primary Winding) को एक एकल-चरण प्रत्यावर्ती वोल्टता स्रोत (Single-Phase AC Voltage Source) से जोड़ा जाता है, तो वाइंडिंग में एक प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current - I_1) प्रवाहित होती है।
  2. ​यह प्रत्यावर्ती धारा चुंबकीय कोर (Magnetic Core) के भीतर एक प्रत्यावर्ती चुंबकीय फ्लक्स (\phi) उत्पन्न करती है। फ्लक्स भी एसी प्रकृति का होता है क्योंकि इसे उत्पन्न करने वाली धारा एसी है।

​2. स्व-प्रेरण (Self-Induction)

  1. ​फैराडे के प्रेरण के पहले नियम के अनुसार, चूँकि यह प्रत्यावर्ती फ्लक्स (phi) प्राथमिक वाइंडिंग के फेरों (Turns) को काटता है, यह प्राथमिक वाइंडिंग में एक स्व-प्रेरित ईएमएफ (E_1) उत्पन्न करता है।
  2. ​यह E_1 लागू वोल्टेज (V_1) का विरोध करता है (लेन्ज का नियम), इसलिए इसे पश्च ईएमएफ (Back EMF) भी कहा जाता है।

​3. पारस्परिक प्रेरण (Mutual Induction)

  1. ​ट्रांसफार्मर के कार्य सिद्धांत का मुख्य आधार यह है कि प्राथमिक वाइंडिंग द्वारा उत्पन्न यह प्रत्यावर्ती फ्लक्स (phi) लगभग पूरी तरह से चुंबकीय कोर के माध्यम से यात्रा करता है और द्वितीयक वाइंडिंग (Secondary Winding) के फेरों को काटता है।
  2. ​फैराडे के प्रेरण के दूसरे नियम के अनुसार, द्वितीयक वाइंडिंग के फेरों में फ्लक्स परिवर्तन के कारण एक प्रेरित ईएमएफ (E_2) उत्पन्न होता है।
  3. ​यह प्रेरित ईएमएफ (E_2) द्वितीयक सर्किट में वोल्टेज के रूप में प्रकट होता है। इस प्रक्रिया को पारस्परिक प्रेरण कहा जाता है।
  4. ​यदि द्वितीयक सर्किट एक लोड से जुड़ा होता है, तो द्वितीयक वाइंडिंग में धारा (I_2) प्रवाहित होने लगती है, जिससे ऊर्जा प्राथमिक से द्वितीयक सर्किट में स्थानांतरित हो जाती है।

{प्रेरित ईएमएफ (EMF)} = {फेरों की संख्या}×{फ्लक्स परिवर्तन की दर}


4. वोल्टेज का परिवर्तन (Voltage Transformation)

​उत्पन्न द्वितीयक ईएमएफ (E_2) का मान सीधे प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग में फेरों की संख्या के अनुपात पर निर्भर करता है, जिसे फेरा अनुपात (Turns Ratio - K) कहते हैं:

K = {N_2}{N_1} = {E_2}{E_1} approx {V_2}{V_1}


  • ​यदि N_2 > N_1 (K > 1), तो V_2 > V_1, और ट्रांसफार्मर स्टेप-अप (Step-Up) कहलाता है।
  • ​यदि N_2 < N_1 (K < 1), तो V_2 < V_1, और ट्रांसफार्मर स्टेप-डाउन (Step-Down) कहलाता है।

​संक्षेप में, ट्रांसफार्मर चुंबकीय क्षेत्र को एक माध्यम के रूप में उपयोग करके, एसी वोल्टेज को उसकी आवृत्ति बदले बिना, एक स्तर से दूसरे स्तर पर परिवर्तित करता है।





72.   रेटेड गति क्या है?
Ans.   

रेटेड गति (Rated Speed), जिसे कभी-कभी सामान्य गति (Nominal Speed) भी कहा जाता है, वह गति है जिस पर एक मशीन (जैसे मोटर, जनरेटर, या इंजन) को उसके डिज़ाइन किए गए आउटपुट (यानी, पूर्ण लोड) पर सुरक्षित रूप से और लगातार (continuously) चलाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

​यह वह गति है जिसे मशीन के नेमप्लेट (Nameplate) पर स्पष्ट रूप से इंगित किया जाता है और यह आमतौर पर क्रांति प्रति मिनट (Revolutions Per Minute - RPM) में व्यक्त की जाती है।

​रेटेड गति का महत्व

​रेटेड गति किसी भी घूर्णन मशीन (rotating machine) के संचालन के लिए एक महत्वपूर्ण विनिर्देश (specification) है:

  • डिज़ाइन बिंदु (Design Point): यह गति मशीन के डिज़ाइन का आधार होती है। निर्माता यह सुनिश्चित करते हैं कि इस गति पर, मशीन सबसे अच्छी दक्षता (Efficiency) और विश्वसनीयता (Reliability) प्रदान करे।
  • सुरक्षित संचालन (Safe Operation): मशीन को रेटेड गति से बहुत अधिक गति पर चलाने से यांत्रिक तनाव (Mechanical Stress) और अत्यधिक कंपन (Excessive Vibration) बढ़ सकता है, जिससे मशीन को नुकसान हो सकता है।
  • प्रदर्शन सीमा (Performance Limit): मशीन रेटेड गति पर अपने रेटेड आउटपुट पावर (Rated Output Power) को वितरित करती है। इस गति से नीचे या ऊपर संचालन करने पर मशीन की दक्षता और आउटपुट प्रभावित हो सकता है।

​उदाहरण

  1. इलेक्ट्रिक मोटर: यदि किसी एसी इंडक्शन मोटर की रेटेड गति 1450 RPM है, तो इसका मतलब है कि यह मोटर अपने पूर्ण लोड (Full Load) पर लगातार 1450 RPM पर चलने के लिए डिज़ाइन की गई है।
  2. जनरेटर (Alternator): पावर स्टेशन में एक जनरेटर की रेटेड गति (जैसे 3000 RPM या 1500 RPM, पोल की संख्या और आवृत्ति के आधार पर) वह गति है जिस पर वह रेटेड वोल्टेज और आवृत्ति पर आवश्यक विद्युत ऊर्जा का उत्पादन करेगा।



73.   यदि एक लैंप दो चरणों के बीच जुड़ता है तो यह चमकेगा या नहीं?

Ans.   

यदि एक लैंप (बल्ब) को दो चरणों (Two Phases) के बीच जोड़ा जाता है, तो यह निश्चित रूप से चमकेगा (यानी जल जाएगा), बशर्ते लैंप को इस तरह के वोल्टेज अंतर को संभालने के लिए डिज़ाइन किया गया हो।

​कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​यह सिद्धांत तीन-चरण (Three-Phase) एसी बिजली आपूर्ति प्रणाली पर लागू होता है, जिसका उपयोग अधिकांश औद्योगिक और कुछ उच्च शक्ति वाले आवासीय अनुप्रयोगों में किया जाता है।

​1. वोल्टेज की आवश्यकता (Voltage Requirement)

​किसी भी विद्युत उपकरण (जैसे लैंप) को काम करने के लिए, उसे आवश्यक वोल्टेज अंतर (Potential Difference) मिलना चाहिए।

  • ​एकल-चरण (Single-Phase) घरेलू आपूर्ति में, लैंप फेज (Phase) और न्यूट्रल (Neutral) के बीच जुड़ा होता है। इस मामले में, वोल्टेज आमतौर पर 220 V से 240 V होता है।

​2. दो चरणों के बीच संयोजन (Connection Between Two Phases)

​जब लैंप को तीन-चरण प्रणाली के किन्हीं दो फेज (जैसे R और Y, या Y और B) के बीच जोड़ा जाता है, तो लैंप को मिलने वाला वोल्टेज, एकल-चरण आपूर्ति से मिलने वाले वोल्टेज से अधिक होता है।

  • ​तीन-चरण प्रणाली में, किन्हीं भी दो फेजों के बीच का वोल्टेज लाइन वोल्टेज (Line Voltage - V_L) कहलाता है।
  • ​लाइन वोल्टेज, फेज और न्यूट्रल के बीच के वोल्टेज (फेज वोल्टेज - V_{ph}) से लगभग \sqrt{3} (लगभग 1.732) गुना अधिक होता है।

{लाइन वोल्टेज } (V_L) = sqrt{3} ×{फेज वोल्टेज } (V_{ph})


उदाहरण

​मान लीजिए आपके क्षेत्र में फेज वोल्टेज V_{ph} = 230 V है।

  • ​फेज और न्यूट्रल के बीच वोल्टेज = 230 V
  • दो फेजों के बीच वोल्टेज V_L = 230 V × 1.732 approx **400 V**

​परिणाम (Conclusion)

  1. सामान्य घरेलू लैंप: यदि लैंप को केवल 230 V पर काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, और आप इसे 400 V पर जोड़ते हैं, तो लैंप अत्यधिक चमक के साथ जलेगा और तुरंत फ्यूज (Burn Out) हो जाएगा, क्योंकि वह अपनी रेटेड वोल्टेज क्षमता से बहुत अधिक वोल्टेज संभाल नहीं पाएगा।
  2. उच्च वोल्टेज लैंप: यदि लैंप को विशेष रूप से 400 V या उससे अधिक वोल्टेज पर काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है (जैसा कि कुछ औद्योगिक प्रकाश व्यवस्था में होता है), तो यह सामान्य रूप से चमकेगा और काम करेगा।

​निष्कर्ष: लैंप चमकेगा, लेकिन अगर यह 230 V का घरेलू लैंप है, तो यह ओवरवोल्टेज (overvoltage) के कारण क्षणिक रूप से चमककर खराब हो जाएगा





74.   KVAR का पूर्ण रूप क्या है?

Ans.    

KVAR का पूर्ण रूप है किलोवोल्ट एम्पीयर रिएक्टिव (Kilovolt Ampere Reactive)

​KVAR की व्याख्या

​KVAR विद्युत शक्ति (Electric Power) से संबंधित है और इसका उपयोग रिएक्टिव पावर (Reactive Power) को मापने के लिए किया जाता है।

​1. रिएक्टिव पावर (Reactive Power) क्या है?

​रिएक्टिव पावर वह शक्ति है जो एसी (AC) सर्किट में चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Fields) को बनाने और बनाए रखने के लिए आवश्यक होती है, जिसका उपयोग प्रेरक भार (Inductive Loads) जैसे मोटर्स, ट्रांसफार्मर और इंडक्टरों में किया जाता है।

  • ​यह शक्ति सर्किट में आगे और पीछे प्रवाहित (circulates back and forth) होती रहती है, जिसका अर्थ है कि यह कोई उपयोगी वास्तविक कार्य (Real Work) (जैसे मोटर को घुमाना या बल्ब को जलाना) नहीं करती है।
  • ​यह पूरी तरह से केवल चुंबकीय और विद्युत क्षेत्रों के निर्माण में खर्च होती है।

​2. KVAR का महत्व

  • यूनिट: K का मतलब किलो (हजार), VA का मतलब वोल्ट-एम्पीयर (कुल शक्ति), और R का मतलब रिएक्टिव (Reactive) है।
  • बिजली त्रिभुज (Power Triangle): KVAR विद्युत त्रिभुज में काल्पनिक शक्ति (Imaginary Power) को दर्शाता है, जबकि KW (किलोवाट) वास्तविक कार्य करने वाली शक्ति को दर्शाता है, और KVA (किलोवोल्ट एम्पीयर) कुल या स्पष्ट शक्ति (Apparent Power) को दर्शाता है।
  • बिजली का कारक (Power Factor): यदि किसी प्रणाली में KVAR का मान बहुत अधिक हो जाता है, तो उस प्रणाली का पावर फैक्टर (Power Factor) खराब हो जाता है। पावर फैक्टर को सुधारने के लिए उद्योग अक्सर कैपेसिटर बैंक (Capacitor Banks) का उपयोग करते हैं, जो रिएक्टिव पावर की आपूर्ति करके KVAR की आवश्यकता को कम करते हैं।



75.   100 वाट और 40 वाट के दो बल्बों को क्रमशः 230 वोल्ट की आपूर्ति के साथ जोड़ा जाता है, तो कौन सा बल्ब अधिक चमकेगा और क्यों?

Ans.   

जब 100 वाट और 40 वाट के दो बल्बों को समानांतर (Parallel) में 230{ V} की आपूर्ति के साथ जोड़ा जाता है, तो 100 वाट का बल्ब अधिक चमकेगा

​कारण और कार्य सिद्धांत

​बल्ब की चमक (Brightness) सीधे उसमें उपयोग होने वाली शक्ति (Power Consumed) पर निर्भर करती है। जिस बल्ब में अधिक शक्ति की खपत होती है, वह अधिक चमकीला होता है।

​1. समानांतर कनेक्शन (Parallel Connection)

​जब दो बल्बों को समानांतर में जोड़ा जाता है, तो दोनों बल्बों को समान रूप से उनकी रेटेड वोल्टेज (यानी 230{ V}) की आपूर्ति मिलती है।

  • 100 W बल्ब को 230{ V} मिलता है।
  • 40 W बल्ब को 230{ V} मिलता है।

​चूँकि दोनों को डिज़ाइन वोल्टेज मिल रहा है, वे अपनी रेटेड शक्ति (Rated Power) का उपभोग करेंगे: 100{ W} का बल्ब 100 { W} का उपभोग करेगा, और 40{ W} का बल्ब 40 { W} का उपभोग करेगा।

​2. प्रतिरोध की तुलना (Resistance Comparison)

​हम जानते हैं कि शक्ति (P), वोल्टेज (V) और प्रतिरोध (R) के बीच संबंध इस प्रकार है:

P = {V^2}{R}

चूँकि दोनों बल्बों को समान वोल्टेज (230 { V}) पर रेट किया गया है, हम कह सकते हैं कि शक्ति प्रतिरोध के व्युत्क्रमानुपाती होती है: P = {1}{R}

  • 100 W बल्ब: उच्च शक्ति के लिए, इसका प्रतिरोध (R_{100}) कम होना चाहिए।
  • 40 W बल्ब: कम शक्ति के लिए, इसका प्रतिरोध (R_{40}) अधिक होना चाहिए।

{क्योंकि } P_{100} > P_{40} R_{100} < R_{40}


समानांतर सर्किट में, जिस बल्ब का प्रतिरोध कम होता है, वह अधिक धारा खींचता है (I = V/R), जिससे उसमें अधिक शक्ति (Power) की खपत होती है और वह अधिक चमकीला होता है।

​इसलिए, 100 { W} का बल्ब 40 { W} के बल्ब से अधिक चमकेगा।

पूरक जानकारी: श्रृंखला कनेक्शन (Series Connection) में क्या होगा?

​यदि इन्हीं दो बल्बों को 230 { V} आपूर्ति के साथ श्रृंखला (Series) में जोड़ा जाता, तो 40 वाट का बल्ब अधिक चमकीला होता।

कारण: श्रृंखला में, दोनों बल्बों में धारा (Current) समान होती है (I_{{total}})।

  • ​इस मामले में, शक्ति का उपभोग P = I^2R के अनुसार होगा।
  • ​चूंकि 40 { W} बल्ब का प्रतिरोध (R_{40}) 100 { W} बल्ब के प्रतिरोध (R_{100}) से अधिक है, इसलिए 40 { W} बल्ब में अधिक शक्ति की खपत होगी और वह अधिक चमकीला होगा।





76.   बस बार और आइसोलेटर में तापमान वृद्धि क्यों की जाती है?

Ans.   

बस बार (Busbar) और आइसोलेटर (Isolator) में तापमान वृद्धि (Temperature Rise) की जाँच या निगरानी मुख्य रूप से सुरक्षा, दक्षता और दीर्घकालिक विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए की जाती है।

​यह तापमान वृद्धि, डिज़ाइन की गई अधिकतम सीमा के भीतर होनी चाहिए ताकि उपकरणों को क्षति न पहुँचे।

​1. बस बार (Busbar) में तापमान वृद्धि का महत्व

​बस बार (Busbar) धातु की पट्टियाँ होती हैं जिनका उपयोग स्विचगियर या सबस्टेशन में विद्युत ऊर्जा को वितरित करने के लिए किया जाता है।

कारण

व्याख्या

प्रतिरोधक हानि (Resistive Loss):

जब बस बार से विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो उसके आंतरिक विद्युत प्रतिरोध (R) के कारण ऊष्मा (\text{Power Loss} = I^2R) उत्पन्न होती है। यह ऊष्मा ही तापमान वृद्धि का मुख्य कारण है।

विद्युत की हानि:

तापमान बढ़ने से बस बार का प्रतिरोध और बढ़ सकता है, जिससे शक्ति की हानि (Power Loss) बढ़ जाती है। अत्यधिक हानि दक्षता को कम करती है।

इन्सुलेशन पर प्रभाव:

बस बार के चारों ओर के इन्सुलेशन (Insulation) सामग्री (जैसे PVC या एपॉक्सी) पर अत्यधिक तापमान से बुरा प्रभाव पड़ता है। इन्सुलेशन गर्म होने पर टूट सकता है, जिससे शॉर्ट सर्किट का खतरा बढ़ जाता है।

विस्तार और यांत्रिक तनाव:

अत्यधिक गर्मी धातु में थर्मल विस्तार (Thermal Expansion) पैदा करती है, जिससे बस बार के जोड़ों और सहायक संरचनाओं पर यांत्रिक तनाव पड़ता है, जिससे ढीले कनेक्शन (loose connections) हो सकते हैं।


2. आइसोलेटर (Isolator) में तापमान वृद्धि का महत्व

​आइसोलेटर (जिसे डिस्कनेक्टर भी कहा जाता है) एक यांत्रिक स्विच है जिसका उपयोग सर्किट को ऑफ-लोड स्थिति में अलग (isolate) करने के लिए किया जाता है।

कारण

व्याख्या

जोड़ों की गुणवत्ता (Joint Quality):

आइसोलेटर में सबसे अधिक तापमान वृद्धि इसके चलते हुए और स्थिर संपर्कों (Moving and Fixed Contacts) के जोड़ पर होती है। यदि संपर्क ढीले हैं, तो संपर्क प्रतिरोध (Contact Resistance) बहुत बढ़ जाता है।

स्पार्किंग और चाप (Sparking and Arcing):

संपर्क प्रतिरोध बढ़ने से अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है। यदि तापमान बहुत अधिक हो जाता है, तो संपर्क धातु पिघल (Melt) सकती है, जिससे स्पार्किंग (Sparking) या चाप (Arcing) उत्पन्न हो सकता है, जिससे आइसोलेटर विफल हो सकता है।

संचालन की विश्वसनीयता:

ओवरलोड या फाल्ट (Fault) स्थितियों के दौरान तापमान वृद्धि की जाँच यह सुनिश्चित करती है कि आइसोलेटर के यांत्रिक भाग (जैसे स्प्रिंग्स और ऑपरेटिंग रॉड) गर्मी से विकृत न हों, जिससे वे आवश्यकता पड़ने पर सर्किट को सही ढंग से डिस्कनेक्ट कर सकें।



तापमान वृद्धि की सीमा (Temperature Rise Limits)

​दोनों उपकरणों में, तापमान वृद्धि की सीमा IEC (International Electrotechnical Commission) और ANSI (American National Standards Institute) जैसे मानकों द्वारा निर्धारित की जाती है।

​आमतौर पर, तापमान वृद्धि को परिवेश तापमान (Ambient Temperature) के सापेक्ष मापा जाता है। मानक यह सुनिश्चित करते हैं कि उपकरण के किसी भी बिंदु पर तापमान उस सामग्री के अधिकतम अनुमत तापमान (Maximum Permissible Temperature) से अधिक न हो जिससे वह बना है (विशेषकर इन्सुलेशन)।





77.   सिस्टम क्या है?

Ans.   

सिस्टम (System) को सरल शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है:

​सिस्टम घटकों (components) का एक ऐसा सेट या समूह है जो एक सामान्य उद्देश्य (common purpose) या लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक दूसरे के साथ बातचीत (interact) करते हैं और संगठित (organized) तरीके से काम करते हैं।

​सिस्टम की मुख्य विशेषताएँ (Key Characteristics of a System)

​सिस्टम को बेहतर ढंग से समझने के लिए, उसकी चार मुख्य विशेषताओं पर ध्यान दें:

  1. घटक (Components): सिस्टम छोटे-छोटे हिस्सों (जिन्हें तत्व, भाग या सबसिस्टम कहा जाता है) से बना होता है। उदाहरण के लिए, एक मानव शरीर प्रणाली में हृदय, फेफड़े और मस्तिष्क घटक हैं।
  2. अंतःक्रिया (Interconnection/Interaction): घटक अलग-थलग नहीं होते हैं; वे एक दूसरे से जुड़े होते हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। एक घटक का आउटपुट अक्सर दूसरे घटक का इनपुट बन जाता है।
  3. सीमाएँ (Boundaries): हर सिस्टम की एक सीमा होती है जो इसे उसके परिवेश (Environment) से अलग करती है। यह सीमा निर्धारित करती है कि क्या सिस्टम का हिस्सा है और क्या नहीं।
  4. उद्देश्य या लक्ष्य (Purpose or Goal): सिस्टम का निर्माण हमेशा एक विशिष्ट कारण या लक्ष्य को पूरा करने के लिए किया जाता है। सभी घटक मिलकर उस लक्ष्य की दिशा में काम करते हैं।

​सिस्टम के प्रकार और उदाहरण

​सिस्टम को विभिन्न क्षेत्रों में पाया जा सकता है, और वे सरल या अत्यधिक जटिल हो सकते हैं:

सिस्टम का प्रकार

                           घटक (Components)

         उद्देश्य (Goal)

भौतिक/मशीनी

                     गियर, मोटर, बेल्ट, सेंसर

किसी वस्तु को उठाना या शक्ति संचारित करना।

जैविक (मानव शरीर)

                     अंग, ऊतक, कोशिकाएँ

जीवन को बनाए रखना, प्रजनन और प्रतिक्रिया देना।

कंप्यूटर/सूचना

                     हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, डेटाबेस

डेटा को संसाधित करना और जानकारी प्रदान करना।

सामाजिक/आर्थिक

                     लोग, नियम, संगठन, धन

माल और सेवाओं का उत्पादन और वितरण करना।


संक्षेप में, चाहे वह एक छोटा इलेक्ट्रॉनिक सर्किट हो या एक बड़ी कंपनी, सिस्टम सिर्फ एक संग्रह नहीं है, बल्कि एक ऐसा संगठित ढांचा है जो एक समन्वित तरीके से काम करके कुछ उपयोगी हासिल करता है।




78.   नियंत्रण प्रणाली क्या है?

Ans.   

नियंत्रण प्रणाली (Control System) घटकों का एक ऐसा समूह है जो किसी अन्य प्रणाली या उपकरण के व्यवहार को निर्देशित, विनियमित या नियंत्रित करने का कार्य करता है ताकि एक वांछित आउटपुट या लक्ष्य प्राप्त किया जा सके।

​सरल शब्दों में, यह एक ऐसा तंत्र है जो यह सुनिश्चित करता है कि जो आप चाहते हैं (वांछित आउटपुट), वही हो रहा है (वास्तविक आउटपुट)।

​नियंत्रण प्रणाली के मूलभूत तत्व (Basic Elements of a Control System)

​एक नियंत्रण प्रणाली में आमतौर पर तीन मुख्य तत्व होते हैं:

  1. इनपुट (Input): यह वांछित मान (Desired Value) या लक्ष्य है जो सिस्टम प्राप्त करना चाहता है (जैसे, कमरे का तापमान 25^{\circ}\text{C} होना चाहिए)। इसे सेटपॉइंट (Setpoint) भी कहते हैं।
  2. नियंत्रक (Controller): यह सिस्टम का "मस्तिष्क" होता है। यह इनपुट और आउटपुट की तुलना करता है और आउटपुट को लक्ष्य के करीब लाने के लिए आवश्यक क्रिया निर्धारित करता है।
  3. संयंत्र/प्रक्रिया (Plant/Process): यह वह प्रणाली या मशीन है जिसे नियंत्रित किया जा रहा है (जैसे, एयर कंडीशनर, मोटर, या बॉयलर)।
  4. आउटपुट (Output): यह सिस्टम का वास्तविक परिणाम है (जैसे, कमरे का वास्तविक तापमान)।

​नियंत्रण प्रणाली के प्रकार (Types of Control Systems)

​नियंत्रण प्रणाली को मुख्य रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

​1. ओपन-लूप नियंत्रण प्रणाली (Open-Loop Control System)

  • परिभाषा: इस प्रणाली में, आउटपुट का मान इनपुट को प्रभावित नहीं करता है। आउटपुट की जाँच के लिए कोई प्रतिक्रिया (Feedback) तंत्र नहीं होता है।
  • कार्य: नियंत्रक केवल इनपुट के आधार पर क्रिया करता है, यह जानने की परवाह किए बिना कि वांछित आउटपुट प्राप्त हुआ है या नहीं।
  • उदाहरण: एक रोटी टोस्टर। आप टाइमर सेट करते हैं (इनपुट), और टोस्टर उस समय के लिए गर्म होता है। यह नहीं देखता कि रोटी वास्तव में भूरी हुई है या नहीं (आउटपुट)।

​2. क्लोज्ड-लूप नियंत्रण प्रणाली (Closed-Loop Control System)

  • परिभाषा: इस प्रणाली में, आउटपुट को मापा जाता है और इसे प्रतिक्रिया (Feedback) के रूप में वापस नियंत्रक को भेजा जाता है।
  • कार्य: नियंत्रक प्रतिक्रिया का उपयोग इनपुट (सेटपॉइंट) के साथ वास्तविक आउटपुट की तुलना करने के लिए करता है। यदि कोई अंतर (त्रुटि - Error) है, तो नियंत्रक त्रुटि को कम करने के लिए कार्रवाई करता है।
  • उदाहरण: एक थर्मोस्टेट वाला एयर कंडीशनर (AC)। आप 25^{circ}{C} सेट करते हैं (इनपुट)। AC तापमान मापता है (प्रतिक्रिया/आउटपुट)। यदि तापमान 28^{circ}{C} है, तो नियंत्रक AC को तब तक चालू रखता है जब तक वास्तविक तापमान 25^{circ}{C} नहीं हो जाता।

​क्लोज्ड-लूप प्रणाली को फीडबैक नियंत्रण प्रणाली (Feedback Control System) भी कहा जाता है, और यह आमतौर पर अधिक सटीक और वांछनीय होती है क्योंकि यह बाहरी गड़बड़ी (External Disturbances) को समायोजित कर सकती है।





79.   नियंत्रण प्रणालियों के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

Ans.   

नियंत्रण प्रणालियों को उनके कार्य सिद्धांत, अनुप्रयोग और घटकों के आधार पर कई तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है।

​नियंत्रण प्रणालियों के दो सबसे मौलिक और व्यापक प्रकार नीचे दिए गए हैं, इसके बाद अन्य महत्वपूर्ण वर्गीकरण दिए गए हैं:

​1. ओपन-लूप नियंत्रण प्रणाली (Open-Loop Control System) 

​इस प्रणाली में, नियंत्रक आउटपुट पर ध्यान दिए बिना ही कार्रवाई करता है। आउटपुट का कोई भी माप या प्रतिक्रिया (feedback) इनपुट को प्रभावित नहीं करता है।

  • कार्य: इनपुट दिया जाता है, नियंत्रक एक निश्चित क्रिया करता है, और आउटपुट उत्पन्न होता है, चाहे वह वांछित हो या नहीं।
  • उदाहरण: ब्रेड टोस्टर। आप समय सेट करते हैं (इनपुट)। टोस्टर उस समय तक गर्म होता है, भले ही ब्रेड पूरी तरह से टोस्ट हुई हो या नहीं (आउटपुट की जाँच नहीं होती)।
  • लाभ: डिज़ाइन में सरल और सस्ता।
  • नुकसान: सटीकता कम होती है और यह बाहरी गड़बड़ियों (disturbances) को समायोजित नहीं कर सकता।

​2. क्लोज्ड-लूप नियंत्रण प्रणाली (Closed-Loop Control System) 

​इस प्रणाली में, आउटपुट को लगातार मापा जाता है और इसे प्रतिक्रिया (Feedback) के रूप में नियंत्रक को वापस भेजा जाता है।

  • कार्य: नियंत्रक आउटपुट को वांछित इनपुट (सेटपॉइंट) के साथ तुलना करता है। इस अंतर (त्रुटि - Error) को कम करने के लिए नियंत्रक तब तक कार्रवाई करता है जब तक वास्तविक आउटपुट वांछित आउटपुट से मेल नहीं खाता।
  • उदाहरण: तापमान नियंत्रक (Thermostat) वाला AC। आप तापमान सेट करते हैं (इनपुट)। AC कमरे के तापमान को मापता है (प्रतिक्रिया) और तब तक चलता रहता है जब तक मापा गया तापमान सेटपॉइंट से मेल नहीं खाता।
  • लाभ: सटीकता अधिक होती है और यह बाहरी गड़बड़ियों को स्वचालित रूप से समायोजित कर सकता है।
  • नुकसान: डिज़ाइन में अधिक जटिल और महंगा।

​अन्य महत्वपूर्ण वर्गीकरण

​A. समय पर निर्भरता के आधार पर (Based on Time Dependency)

प्रकार

व्याख्या

उदाहरण

निरंतर डेटा प्रणाली (Continuous Data System)

वे प्रणालियाँ जहाँ सिग्नल और क्रियाएँ समय के साथ निरंतर (continuously) बदलती रहती हैं।

एनालॉग इलेक्ट्रॉनिक्स, पारंपरिक DC मोटर नियंत्रण।

असतत डेटा प्रणाली (Discrete Data System)

वे प्रणालियाँ जहाँ सिग्नल केवल असतत समय अंतराल (discrete time intervals) पर ही बदलता है या संसाधित होता है।

डिजिटल नियंत्रक, माइक्रोकंट्रोलर-आधारित प्रणालियाँ।


B. रैखिक प्रकृति के आधार पर (Based on Linearity)

प्रकार

व्याख्या

उदाहरण

रैखिक प्रणाली (Linear System)

वह प्रणाली जो अध्यारोपण सिद्धांत (Superposition Principle) का पालन करती है। इसका आउटपुट इनपुट के अनुपात में बदलता है।

सरल RC सर्किट।

अरैखिक प्रणाली (Non-Linear System)

वह प्रणाली जो अध्यारोपण सिद्धांत का पालन नहीं करती है। अधिकांश वास्तविक दुनिया की प्रणालियाँ (जैसे मोटर्स, रोबोट) अरैखिक होती हैं।

सैचुरेशन (Saturation) या फ्रिक्शन (Friction) वाली मशीनें।


C. घटकों के प्रकार के आधार पर (Based on Component Type)

प्रकार

व्याख्या

उदाहरण

यांत्रिक नियंत्रण प्रणाली

केवल यांत्रिक घटकों (गियर, लीवर, स्प्रिंग्स) का उपयोग करती है।

सेंट्रीफ्यूगल गवर्नर (Centrifugal Governor)।

विद्युत नियंत्रण प्रणाली

विद्युत घटकों (रजिस्टर, कैपेसिटर) और सर्किट का उपयोग करती है।

वोल्टेज स्टेबलाइज़र।

हाइड्रोलिक/न्यूमैटिक प्रणाली

तरल पदार्थ (तेल) या हवा के दबाव का उपयोग करती है।

भारी मशीनरी में हाइड्रोलिक ब्रेक और एक्चूएटर्स।

सर्वो तंत्र (Servo Mechanism)

एक क्लोज्ड-लूप प्रणाली जो आउटपुट को त्रुटि के आधार पर नियंत्रित करती है; आमतौर पर स्थिति (position) और वेग (velocity) को नियंत्रित करती है।

रोबोटिक आर्म, ट्रैकिंग एंटीना।




80.    नियंत्रण प्रणाली में फीडबैक क्या है?

Ans.   

नियंत्रण प्रणाली में फीडबैक (Feedback) एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जहाँ किसी सिस्टम के वास्तविक आउटपुट का एक हिस्सा मापा जाता है और उसे इनपुट (या वांछित सेटपॉइंट) की तुलना के लिए वापस नियंत्रक (Controller) तक भेजा जाता है।

​यह प्रक्रिया सिस्टम को अपने प्रदर्शन की जाँच करने और वांछित लक्ष्य से किसी भी विचलन (त्रुटि - Error) को स्वचालित रूप से ठीक करने की अनुमति देती है।

​फीडबैक का कार्य और महत्व (Function and Importance of Feedback)

​फीडबैक क्लोज्ड-लूप (बंद लूप) नियंत्रण प्रणाली का आधार है।

​1. फीडबैक कैसे काम करता है?

  1. आउटपुट का मापन: सिस्टम के वास्तविक आउटपुट (उदाहरण के लिए, कमरे का तापमान) को एक सेंसर (Sensor) द्वारा मापा जाता है।
  2. तुलना (Comparison): यह मापा गया मान नियंत्रक के पास भेजा जाता है। नियंत्रक इस मापे गए मान की तुलना सेटपॉइंट (SetPoint), यानी वांछित मान (उदाहरण के लिए, 25^circ {C}) से करता है।
  3. त्रुटि सिग्नल का निर्माण: यदि वांछित आउटपुट और वास्तविक आउटपुट के बीच कोई अंतर है, तो एक त्रुटि सिग्नल (Error Signal) उत्पन्न होता है।
    ​{त्रुटि} = {वांछित इनपुट} - {वास्तविक आउटपुट (फीडबैक)}
  4. सुधार की कार्रवाई: नियंत्रक इस त्रुटि सिग्नल के आधार पर सिस्टम (जैसे AC) को सही कार्रवाई करने के लिए संकेत भेजता है, जिससे वास्तविक आउटपुट वांछित लक्ष्य की ओर बढ़ता है।

​2. फीडबैक का महत्व

  • सटीकता (Accuracy): यह सुनिश्चित करता है कि सिस्टम का आउटपुट सटीक रूप से वांछित मान तक पहुँचे और उसे बनाए रखे।
  • बाह्य गड़बड़ी को कम करना (Disturbance Rejection): यदि बाहरी कारक (जैसे दरवाजा खुलना) आउटपुट को बदल देते हैं, तो फीडबैक तुरंत त्रुटि का पता लगाकर सुधार करता है।
  • संवेदनशीलता कम करना (Reduced Sensitivity): यह बाहरी परिवर्तनों या आंतरिक घटकों के मान में बदलाव के प्रति सिस्टम की संवेदनशीलता को कम करता है।

​फीडबैक के प्रकार (Types of Feedback)

​मुख्यतः दो प्रकार के फीडबैक का उपयोग किया जाता है:

  1. नकारात्मक फीडबैक (Negative Feedback):
    • ​सबसे आम और वांछित प्रकार।
    • ​मापा गया आउटपुट इनपुट के विपरीत दिशा में जोड़ा जाता है, जिससे त्रुटि कम होती है और सिस्टम स्थिर (Stable) होता है।
    • उदाहरण: थर्मोस्टेट, जो तापमान बहुत अधिक होने पर कूलिंग शुरू करता है।
  2. सकारात्मक फीडबैक (Positive Feedback):
    • ​मापा गया आउटपुट इनपुट के समान दिशा में जोड़ा जाता है।
    • ​यह त्रुटि को बढ़ाता है, जिससे सिस्टम अस्थिर (Unstable) हो जाता है और आउटपुट तेजी से बढ़ता रहता है (या तो अधिकतम या न्यूनतम तक)।
    • उदाहरण: माइक्रोफोन को स्पीकर के बहुत करीब ले जाने पर होने वाली चीख़ (Laud Hissing Sound)। यह आमतौर पर नियंत्रण प्रणालियों में अवांछित होता है।






81.   नियंत्रण प्रणाली में नकारात्मक फीडबैक को क्यों प्राथमिकता दी जाती है?

Ans.  

नियंत्रण प्रणाली में नकारात्मक फीडबैक (Negative Feedback) को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि यह सिस्टम को स्थिर (Stable), सटीक (Accurate) और विश्वसनीय (Reliable) बनाता है। यह स्वचालित रूप से त्रुटियों को ठीक करता है और बाहरी गड़बड़ियों को कम करता है।

​नकारात्मक फीडबैक को प्राथमिकता देने के मुख्य कारण

​नकारात्मक फीडबैक (जहाँ मापा गया आउटपुट इनपुट का विरोध करता है) क्लोज्ड-लूप नियंत्रण प्रणालियों के लिए आवश्यक है क्योंकि यह निम्नलिखित लाभ प्रदान करता है:

​1. स्थिरता सुनिश्चित करता है (Ensures Stability)

  • अस्थिरता को रोकता है: नकारात्मक फीडबैक सिस्टम के आउटपुट को नियंत्रित सीमा के भीतर रखता है। इसके विपरीत, सकारात्मक फीडबैक आउटपुट को तेजी से बढ़ाता या घटाता है, जिससे सिस्टम अस्थिर हो जाता है (जैसे तेज गूँज पैदा करने वाला माइक्रोफोन)।
  • ऑसिलेशन कम करता है: यह सिस्टम को उसके सेटपॉइंट (वांछित लक्ष्य) के आसपास अत्यधिक दोलन (Oscillations) करने से रोकता है, जिससे एक सुचारु और नियंत्रित प्रतिक्रिया सुनिश्चित होती है।

​2. त्रुटियों को स्वचालित रूप से ठीक करता है (Automatically Corrects Errors)

  • त्रुटि संकेत: नियंत्रक लगातार इनपुट और आउटपुट के बीच के अंतर (त्रुटि सिग्नल) की जाँच करता है। नकारात्मक फीडबैक का उपयोग करके, सिस्टम इस त्रुटि को शून्य तक कम करने के लिए कार्य करता है।
  • सेटपॉइंट ट्रैकिंग: यह सुनिश्चित करता है कि वास्तविक आउटपुट हमेशा वांछित इनपुट (सेटपॉइंट) को सटीक रूप से ट्रैक करे।

​3. बाहरी गड़बड़ियों को कम करता है (Reduces External Disturbances)

  • ​यदि कोई बाहरी कारक (जैसे मोटर पर अचानक अतिरिक्त लोड) सिस्टम के आउटपुट को बदलने की कोशिश करता है, तो नकारात्मक फीडबैक तंत्र तुरंत उस बदलाव को मापता है।
  • ​नियंत्रक तुरंत विपरीत कार्रवाई करके इस गड़बड़ी के प्रभाव को दबाता है और आउटपुट को वापस सेटपॉवाइंट पर लाता है।

​4. सिस्टम की संवेदनशीलता कम करता है (Reduces System Sensitivity)

  • ​नकारात्मक फीडबैक आंतरिक परिवर्तनों (जैसे घटकों के तापमान या उम्र बढ़ने के कारण उनके मान में बदलाव) के प्रति सिस्टम के आउटपुट की संवेदनशीलता को कम कर देता है।
  • ​इसका मतलब है कि भले ही सिस्टम के भीतर कुछ घटक थोड़े बदल जाएँ, अंतिम आउटपुट काफी हद तक स्थिर और अनुमानित बना रहता है।

​संक्षेप में, नियंत्रण इंजीनियरिंग का पूरा अनुशासन नकारात्मक फीडबैक का उपयोग करके त्रुटि-मुक्त, स्थिर और मजबूत प्रणालियों के डिजाइन पर आधारित है।






82. प्रणाली की स्थिरता पर सकारात्मक प्रतिक्रिया का क्या प्रभाव पड़ता है?

Ans.

सकारात्मक प्रतिक्रिया (Positive Feedback) का प्रणाली की स्थिरता (Stability) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है; यह प्रणाली को अस्थिर (Unstable) बना देती है।

​प्रणाली की स्थिरता पर सकारात्मक प्रतिक्रिया का प्रभाव

​सकारात्मक फीडबैक तब होता है जब सिस्टम के आउटपुट का एक हिस्सा इनपुट के उसी चरण (Same Phase) में वापस भेजा जाता है, जिससे त्रुटि और आउटपुट दोनों तेजी से बढ़ते हैं।

​1. अस्थिरता (Instability)

​सकारात्मक प्रतिक्रिया किसी भी प्रारंभिक विचलन (initial deviation) को लगातार बढ़ाती जाती है। यदि आउटपुट थोड़ा सा बढ़ता है, तो सकारात्मक प्रतिक्रिया उस बढ़े हुए आउटपुट को इनपुट में जोड़ देती है, जिससे आउटपुट और भी अधिक बढ़ता है।

  • उदाहरण: यदि किसी ऑडियो एम्प्लीफायर (Audio Amplifier) में माइक (Microphone) स्पीकर के बहुत करीब लाया जाए (सकारात्मक प्रतिक्रिया), तो एम्प्लीफायर द्वारा ध्वनि को बार-बार बढ़ाया जाता है, जिससे एक तेज़ चीख़ (Loud Hissing Sound or Squeal) पैदा होती है। यह चीख़ ध्वनि आयाम को तेजी से अधिकतम स्तर (Saturation) तक ले जाती है, जो कि अस्थिरता का एक स्पष्ट उदाहरण है।

​2. आउटपुट का अपसरण (Output Divergence)

​सकारात्मक फीडबैक प्रणाली को नियंत्रित करने के बजाय, उसके आउटपुट को एक सीमा की ओर धकेलता है:

  • ​यदि प्रारंभिक आउटपुट अधिक है, तो यह तेजी से सिस्टम के अधिकतम संभव मान (Saturation) तक बढ़ेगा।
  • ​यदि प्रारंभिक आउटपुट कम है, तो यह तेजी से सिस्टम के न्यूनतम संभव मान (या शून्य) तक गिरेगा।

​यह अनियंत्रित व्यवहार प्रणाली को उपयोगी कार्य करने से रोकता है और इसे अक्सर फ्लाइट (Runaway) कहा जाता है।

​3. अनुप्रयोग (Where it's Used)

​हालांकि सकारात्मक प्रतिक्रिया नियंत्रण प्रणालियों में अस्थिरता लाती है, इसका उपयोग जानबूझकर कुछ विशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक सर्किटों में किया जाता है जहाँ अस्थिरता वांछित होती है:

  • ऑसिलेटर्स (Oscillators): वे सर्किट जो साइन वेव (Sine Wave) या स्क्वायर वेव (Square Wave) जैसे आवधिक (Periodic) सिग्नल उत्पन्न करते हैं। ऑसिलेटर्स को लगातार आउटपुट पैदा करने के लिए अस्थिर होना आवश्यक है।
  • श्मिट ट्रिगर (Schmitt Triggers): कुछ डिजिटल सर्किट्स में जहाँ तेजी से स्विचिंग की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष: नियंत्रण इंजीनियरिंग के संदर्भ में (जैसे तापमान या गति नियंत्रण), सकारात्मक प्रतिक्रिया से पूरी तरह से बचा जाता है क्योंकि यह मशीन को अनियंत्रित कर देती है और नुकसान पहुंचा सकती है।




83. सुरक्षात्मक रिले क्या है?

Ans.  

सुरक्षात्मक रिले (Protective Relay) एक विद्युत उपकरण है जिसका उपयोग विद्युत शक्ति प्रणाली (Electric Power System) जैसे जनरेटर, ट्रांसफार्मर, बस बार और ट्रांसमिशन लाइनों को फाल्ट (Fault) या असामान्य परिचालन स्थितियों से बचाने के लिए किया जाता है।

​सुरक्षात्मक रिले का कार्य सिद्धांत

​सुरक्षात्मक रिले का मुख्य कार्य फाल्ट का पता लगाना (Fault Detection), निदान करना (Diagnosis) और फिर सर्किट ब्रेकर (Circuit Breaker) को ट्रिप कमांड भेजकर फाल्ट वाले हिस्से को स्वस्थ हिस्से से अलग करना (Isolate) है।

​यह एक सुरक्षा गार्ड की तरह काम करता है, जो लगातार विद्युत प्रणाली के स्वास्थ्य की निगरानी करता है।

​1. निगरानी (Monitoring)

  • ​रिले, करंट ट्रांसफार्मर (CT) और पोटेंशियल ट्रांसफार्मर (PT) जैसे सेंसर से इनपुट लेता है।
  • ​यह इन इनपुट (करंट, वोल्टेज, आवृत्ति) की तुलना सामान्य परिचालन मानकों (Normal Operating Parameters) के एक सेट से करता है।

​2. फाल्ट का पता लगाना (Fault Detection)

  • ​जब प्रणाली में कोई असामान्य स्थिति (जैसे शॉर्ट सर्किट, ओवरलोड, अंडरवोल्टेज या फेज लॉस) उत्पन्न होती है, तो CT/PT से आने वाला मान रिले के निर्धारित सेटपॉइंट (Setpoint) से अधिक हो जाता है।
  • ​रिले इस विचलन (Deviation) को फाल्ट के रूप में पहचानता है।

​3. ट्रिप कमांड (Trip Command)

  • ​फाल्ट की पुष्टि होने पर, रिले तुरंत एक ट्रिप सिग्नल (Trip Signal) सर्किट ब्रेकर को भेजता है।
  • ​सर्किट ब्रेकर फाल्ट वाले उपकरण या लाइन को बहुत कम समय (मिलीसेकंड) के भीतर प्रणाली के बाकी हिस्सों से अलग कर देता है।

​मुख्य उद्देश्य

​सुरक्षात्मक रिले के तीन प्राथमिक उद्देश्य हैं:

  1. सुरक्षा (Protection): फाल्ट के कारण उपकरण को होने वाले नुकसान को रोकना
  2. पृथक्करण (Isolation): फाल्ट वाले हिस्से को तेजी से अलग करके स्वस्थ प्रणाली को अप्रभावित रखना।
  3. निरंतरता (Continuity): यह सुनिश्चित करना कि फाल्ट के बावजूद, बिजली की आपूर्ति अधिकतम सीमा तक जारी रहे।

​उदाहरण

  • ओवरकरंट रिले: यह तब सक्रिय होता है जब सर्किट में करंट एक पूर्व निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है (जैसे शॉर्ट सर्किट के दौरान)।
  • डिफरेंशियल रिले: यह किसी उपकरण (जैसे ट्रांसफार्मर) के इनपुट और आउटपुट करंट की तुलना करता है; यदि कोई असंतुलन है, तो यह फाल्ट मानकर ट्रिप करता है।




84.  उपकरण और ट्रांसमिशन लाइनों की सुरक्षा के लिए नियोजित विभिन्न रिले क्या हैं?
Ans.  

उपकरणों और ट्रांसमिशन लाइनों की सुरक्षा के लिए कई प्रकार के सुरक्षात्मक रिले (Protective Relays) का उपयोग किया जाता है। इन रिले को उनके कार्य सिद्धांत, मापी गई मात्रा, या उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली सुरक्षा के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।

​मुख्य रूप से उपयोग किए जाने वाले विभिन्न रिले और उनके अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं:

​1. दूरी रिले (Distance Relays) - ट्रांसमिशन लाइनों के लिए मुख्य

​दूरी रिले ट्रांसमिशन लाइनों की सुरक्षा के लिए सबसे आम हैं। ये रिले फाल्ट स्थान की दूरी के अनुपात में प्रतिबाधा (Impedance) को मापते हैं।

  • कार्य सिद्धांत: फाल्ट से पहले की स्थिति में वोल्टेज और फाल्ट करंट के अनुपात (Z = V/I) को मापकर फाल्ट की दूरी का पता लगाना। यदि प्रतिबाधा एक पूर्व निर्धारित सीमा से नीचे गिरती है, तो फाल्ट मान लिया जाता है।
  • प्रकार:
    • रिएक्टेंस रिले (Reactance Relay): मुख्य रूप से छोटी लाइनों के लिए।
    • मोह रिले (Mho Relay): मुख्य रूप से लंबी लाइनों के लिए।
    • इम्पी डेंस रिले (Impedance Relay): मध्यम लंबाई की लाइनों के लिए।

​2. अतिधारा रिले (Overcurrent Relays) - सामान्य और सरल सुरक्षा

​ये सबसे सरल और सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले रिले हैं, जो किसी भी उपकरण या लाइन में अत्यधिक करंट प्रवाहित होने पर सुरक्षा प्रदान करते हैं।

  • कार्य सिद्धांत: यदि करंट का मान एक पूर्व निर्धारित सेटपॉइंट से अधिक हो जाता है, तो रिले ट्रिप हो जाता है।
  • प्रकार:
    • तात्कालिक अतिधारा रिले (Instantaneous Overcurrent Relay): बिना किसी जानबूझकर समय विलंब के तुरंत संचालित होता है।
    • निश्चित-समय अतिधारा रिले (Definite Time Overcurrent Relay): करंट एक सीमा से अधिक होने पर भी एक निश्चित समय विलंब के बाद ही संचालित होता है।
    • व्युत्क्रम समय अतिधारा रिले (Inverse Time Overcurrent Relay - IDMT): संचालन का समय फाल्ट करंट के परिमाण के व्युत्क्रमानुपाती होता है (करंट जितना अधिक, संचालन का समय उतना कम)।

​3. अंतर रिले (Differential Relays) - उपकरण सुरक्षा के लिए सटीक

​अंतर रिले का उपयोग मुख्य रूप से विशिष्ट उपकरणों जैसे ट्रांसफार्मर और जनरेटर की सुरक्षा के लिए किया जाता है।

  • कार्य सिद्धांत: यह संरक्षित क्षेत्र के इनपुट करंट और आउटपुट करंट की तुलना करता है। यदि दोनों धाराओं में कोई अंतर (Differential) होता है, तो इसका मतलब है कि संरक्षित क्षेत्र के भीतर एक आंतरिक फाल्ट है, और रिले संचालित होता है।
  • अनुप्रयोग: ट्रांसफार्मर, जनरेटर, और बस बार।

​4. दिशात्मक रिले (Directional Relays) - जटिल ग्रिड के लिए

​ये रिले न केवल फाल्ट की उपस्थिति को पहचानते हैं, बल्कि यह भी निर्धारित करते हैं कि फाल्ट किस दिशा में हुआ है।

  • कार्य सिद्धांत: फाल्ट करंट और वोल्टेज के बीच के कला कोण (Phase Angle) को मापकर फाल्ट की दिशा निर्धारित करना।
  • उपयोग: जटिल ग्रिड संरचनाओं (जैसे लूप सिस्टम) में चयनशीलता (Selectivity) सुनिश्चित करने के लिए, अक्सर अतिधारा या दूरी रिले के साथ संयोजन में उपयोग किया जाता है।

​5. अन्य विशेष रिले

रिले का नाम

अनुप्रयोग और सुरक्षा

भू-दोष रिले (Earth Fault Relay)

यह केवल उस फाल्ट करंट के प्रति संवेदनशील होता है जो जमीन के माध्यम से प्रवाहित होता है। यह लाइन-टू-ग्राउंड फाल्ट से सुरक्षा करता है।

बुखोल्ज़ रिले (Buchholz Relay)

तेल-निमज्जित ट्रांसफार्मर के आंतरिक फाल्ट से सुरक्षा करता है। यह ट्रांसफार्मर तेल में फाल्ट के कारण उत्पन्न होने वाली गैसों का पता लगाता है।

अंडर/ओवर वोल्टेज रिले (Under/Over Voltage Relay)

वोल्टेज पूर्व निर्धारित सीमा से अधिक या कम होने पर सुरक्षा करता है। इसका उपयोग जनरेटर और मोटर सुरक्षा में किया जाता है।

आवृत्ति रिले (Frequency Relay)

बिजली प्रणाली की आवृत्ति असामान्य रूप से बढ़ने या घटने पर सुरक्षा करता है। यह अक्सर ग्रिड लोड शेडिंग योजनाओं में उपयोग होता है।

तापमान रिले (Temperature Relay)

मशीन (जैसे मोटर या ट्रांसफार्मर) के वाइंडिंग तापमान की सीधे निगरानी करता है और अत्यधिक गर्मी पर ट्रिप करता है।







85.   विद्युत शक्ति प्रणाली संरक्षण कैसे विभाजित किया जाता है?

Ans.    

विद्युत शक्ति प्रणाली संरक्षण (Power System Protection) को मुख्य रूप से दो प्रमुख तरीकों से विभाजित किया जाता है:

​१. संरक्षण का उद्देश्य/आधार: इसके तहत दोषों (Faults) के प्रकार या उन उपकरणों के आधार पर विभाजन किया जाता है जिनकी सुरक्षा की जानी है।

२. संरक्षण का स्थान/दायरा: इसके तहत प्रणाली के विभिन्न भागों में संरक्षण के स्तर के आधार पर विभाजन किया जाता है।

​१. संरक्षण का उद्देश्य/आधार पर विभाजन (Based on Protection Objective/Type of Fault)

​विद्युत शक्ति प्रणाली में होने वाले विभिन्न प्रकार के दोषों (फॉल्ट्स) और असामान्यताओं से सुरक्षा के लिए संरक्षण को विभाजित किया जाता है:

  • दोष संरक्षण (Fault Protection): यह सबसे सामान्य विभाजन है, जिसमें विभिन्न प्रकार के वैद्युत दोषों (जैसे लघु परिपथ (Short Circuit) या भूमि दोष (Earth Fault)) से उपकरणों और प्रणाली की सुरक्षा की जाती है।
    • अतिधारा संरक्षण (Overcurrent Protection): जब धारा का मान निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है (जैसे शॉर्ट सर्किट या ओवरलोड), तब यह सुरक्षा प्रदान करता है।
    • भूमि दोष संरक्षण (Earth Fault Protection): जब विद्युत धारा गलती से पृथ्वी (Ground) में बहने लगती है, तो यह उससे सुरक्षा प्रदान करता है।
    • अंतर संरक्षण (Differential Protection): यह विशेष रूप से जेनरेटर, ट्रांसफार्मर और बस बार जैसे उपकरणों के आंतरिक दोषों के लिए उपयोग होता है, जहाँ उपकरण के इनपुट और आउटपुट धाराओं के बीच अंतर को मापा जाता है।
    • दूरी संरक्षण (Distance Protection): यह मुख्य रूप से लंबी पारेषण (Transmission) लाइनों के लिए उपयोग किया जाता है।
  • असामान्य परिचालन संरक्षण (Abnormal Operation Protection):
    • अतिवोल्टता संरक्षण (Overvoltage Protection): बिजली गिरने (Lightning) या स्विचिंग क्रियाओं के कारण उत्पन्न होने वाले वोल्टेज उछालों (Surges) से उपकरणों की सुरक्षा।
    • अतिभार संरक्षण (Overload Protection): जब उपकरण अपनी रेटेड क्षमता से अधिक भार वहन करता है, तो यह सुरक्षा प्रदान करता है।
    • निम्न आवृत्ति/उच्च आवृत्ति संरक्षण (Under/Over Frequency Protection): यह जेनरेटरों को प्रणाली में आवृत्ति (Frequency) के अत्यधिक घटने या बढ़ने से बचाता है।

​२. संरक्षण का स्थान/दायरा पर विभाजन (Based on Protection Location/Scope)

​यह विभाजन मुख्य रूप से बिजली के उछालों (Surges) से इमारतों और उपकरणों की सुरक्षा के संदर्भ में उपयोग होता है, जैसे:

स्तर

नाम

उद्देश्य/दायरा

उपकरण

स्तर 1 (Level 1)

बाह्य संरक्षण (External Protection)

यह इमारत पर सीधे बिजली के प्रहार से सुरक्षा प्रदान करता है।

लाइटनिंग रॉड (Air Terminal), डाउन कंडक्टर, ग्राउंडिंग सिस्टम।

स्तर 2 (Level 2)

आंतरिक संरक्षण (Internal Protection)

यह विद्युत प्रणालियों के अंदर छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव और प्रेरित उछालों से सुरक्षा प्रदान करता है।

टाइप 1/टाइप 2 सर्ज अरेस्टर (SPD)।

स्तर 3 (Level 3)

ठीक सुरक्षा (Fine Protection)

यह लोड के बहुत करीब स्थित सबसे संवेदनशील उपकरणों के लिए आवश्यक अंतिम स्तर की सुरक्षा प्रदान करता है।

टाइप 3 सर्ज प्रोटेक्टिव डिवाइस (SPD)।


इसके अलावा, संरक्षण को मोटे तौर पर उन उपकरणों के आधार पर भी विभाजित किया जाता है जिनकी वे सुरक्षा करते हैं:

  • जेनरेटर संरक्षण
  • ट्रांसफार्मर संरक्षण
  • पारेषण लाइन संरक्षण
  • बस बार संरक्षण
  • वितरण प्रणाली संरक्षण आदि।



86.   विद्युत प्रणाली में रिले कैसे जुड़े होते हैं?

Ans.  

विद्युत शक्ति प्रणाली (Electric Power System) में रक्षी रिले (Protective Relays) को मुख्य रूप से उपकरण ट्रांसफार्मर (Instrument Transformers), परिपथ विच्छेदक (Circuit Breakers), और नियंत्रण शक्ति स्रोत (Control Power Source) के साथ जोड़ा जाता है।

​रिले को जोड़ने की प्रक्रिया को तीन मुख्य भागों में समझा जा सकता है:

​१. मापन सर्किट (Measuring Circuit) – CTs और PTs के साथ कनेक्शन

​चूंकि रिले सीधे उच्च वोल्टेज और उच्च धारा वाले मेन पावर सर्किट से नहीं जुड़ सकते, इसलिए उन्हें उपकरण ट्रांसफार्मर के माध्यम से जोड़ा जाता है। ये ट्रांसफार्मर उच्च मात्राओं को सुरक्षित और प्रबंधनीय निम्न स्तरों तक कम कर देते हैं:


उपकरण

कार्य

रिले से कनेक्शन

धारा ट्रांसफार्मर (CT)

यह उच्च लाइन धारा को 1A या 5A जैसी मानक, कम द्वितीयक धारा में स्टेप-डाउन करता है।

CT की द्वितीयक वाइंडिंग सीधे रिले की करंट कॉइल से जुड़ी होती है। यह रिले को मापन के लिए धारा का फीडबैक देता है।

विभव ट्रांसफार्मर (PT)

यह उच्च लाइन वोल्टेज को 110V AC जैसे मानक, कम द्वितीयक वोल्टेज में स्टेप-डाउन करता है।

PT की द्वितीयक वाइंडिंग सीधे रिले की वोल्टेज कॉइल से जुड़ी होती है। यह रिले को मापन के लिए वोल्टेज का फीडबैक देता है।


सारांश: CT और PT, रिले के लिए सेंसर के रूप में कार्य करते हैं, जो दोष (फॉल्ट) की स्थिति को भांपने के लिए सिस्टम की वास्तविक धारा और वोल्टेज की जानकारी प्रदान करते हैं।

​२. ट्रिपिंग सर्किट (Tripping Circuit) – सर्किट ब्रेकर से कनेक्शन

​यह रिले का आउटपुट सर्किट होता है जो दोष की स्थिति में प्रतिक्रिया करता है:

  1. ​जब रिले मापन सर्किट (CT/PT) से प्राप्त जानकारी के आधार पर किसी दोष का पता लगाता है, तो यह अपने संपर्कों (Contacts) को बंद कर देता है।
  2. ​रिले के ये संपर्क एक अलग DC नियंत्रण सर्किट में जुड़े होते हैं (जिसे आम तौर पर सबस्टेशन की बैटरी से सप्लाई मिलती है)।
  3. ​संपर्क बंद होते ही यह DC सप्लाई सीधे सर्किट ब्रेकर की ट्रिप कॉइल को मिलती है।
  4. ​ट्रिप कॉइल को ऊर्जा मिलते ही वह सर्किट ब्रेकर के ऑपरेटिंग मैकेनिज्म को सक्रिय करती है, जिससे सर्किट ब्रेकर ट्रिप हो जाता है (खुल जाता है) और दोषपूर्ण भाग को प्रणाली से अलग कर दिया जाता है।

​३. डीसी सप्लाई सर्किट (DC Supply Circuit)

​रिले को स्वयं काम करने के लिए एक विश्वसनीय नियंत्रण शक्ति स्रोत की आवश्यकता होती है। यह आमतौर पर सबस्टेशन में लगी बैटरी बैंक (DC Source) से प्रदान की जाती है। यह DC सप्लाई रिले की कॉइल को ऊर्जा देती है ताकि वह चालू रह सके और दोष का पता चलने पर ट्रिपिंग सर्किट को सक्रिय कर सके।




87.   इलेक्ट्रो मैकेनिकल रिले के संचालन के विभिन्न प्रकार के सिद्धांत क्या हैं?

Ans.    

इलेक्ट्रो मैकेनिकल रिले (Electromechanical Relays - EMRs) के संचालन के मौलिक रूप से दो मुख्य सिद्धांत हैं। सभी EMRs इन दो सिद्धांतों पर आधारित हैं, जिन्हें आगे विभिन्न संरचनात्मक प्रकारों में विभाजित किया जाता है:

​१. विद्युत-चुम्बकीय आकर्षण (Electromagnetic Attraction)

​यह सिद्धांत रिले का सबसे बुनियादी और सामान्य संचालन तरीका है।

​सिद्धांत

​जब रिले की कॉइल (Coil) में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, तो यह एक विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। यह चुंबकीय क्षेत्र एक आर्मेचर (चलने वाला धातु का हाथ) को अपनी ओर आकर्षित करता है। आर्मेचर की यह यांत्रिक गति, रिले के संपर्कों (Contacts) को बंद (Close) या खोल (Open) देती है, जिससे स्विचिंग क्रिया पूरी होती है।

​इस सिद्धांत पर आधारित रिले के प्रकार:

  • आकर्षित आर्मेचर रिले (Attracted Armature Type Relay): यह सबसे सीधा प्रकार है, जिसमें आर्मेचर एक चुंबक के ध्रुवों की ओर खींचा जाता है। इसका उपयोग DC या AC दोनों प्रणालियों में ओवरकरंट और अंडरकरंट सुरक्षा के लिए किया जाता है।
  • सोलेनोइड प्रकार रिले (Solenoid Type Relay): इसमें, चुंबकीय क्षेत्र बनने पर एक धातु का प्लंजर (Plunger) एक सोलेनोइड (खोखली कॉइल) के अंदर खींचा जाता है, जिससे संपर्क सक्रिय होते हैं।
  • संतुलित बीम रिले (Balanced Beam Type Relay): इसमें एक बीम (डंडी) पर दो विरोधी बल (एक स्प्रिंग का और दूसरा विद्युत चुंबक का) कार्य करते हैं। जब विद्युत चुम्बकीय बल स्प्रिंग बल से अधिक हो जाता है, तो बीम झुक जाता है और संपर्क सक्रिय होता है।

​२. विद्युत-चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction)

​यह सिद्धांत मुख्य रूप से AC सर्किट के लिए डिज़ाइन किए गए रिले में उपयोग होता है और इसके संचालन के लिए आवश्यक बल दो अलग-अलग चुंबकीय फ्लक्सों (Fluxes) के बीच प्रेरण क्रिया (Induction Action) से उत्पन्न होता है।

​सिद्धांत

​यह उसी सिद्धांत पर कार्य करता है जिस पर ऊर्जा मीटर (Energy Meter) काम करता है। इसमें, एक एल्युमिनियम या कॉपर की डिस्क या कप को दो अलग-अलग कॉइलों द्वारा उत्पन्न दो समय-विस्थापित (Time-Displaced) चुंबकीय फ्लक्सों के बीच रखा जाता है। इन फ्लक्सों के कारण डिस्क में भँवर धाराएँ (Eddy Currents) उत्पन्न होती हैं। इन भँवर धाराओं और फ्लक्सों की परस्पर क्रिया से एक टॉर्क (Torque) उत्पन्न होता है जो डिस्क को घुमाता है। डिस्क के घूमने पर, एक निश्चित कोण के बाद यह संपर्क को बंद कर देता है।

​इस सिद्धांत पर आधारित रिले के प्रकार:

  • प्रेरण डिस्क रिले (Induction Disc Type Relay): इसमें एक एल्युमिनियम डिस्क का उपयोग किया जाता है जिसे दो फ्लक्सों द्वारा घुमाया जाता है। इसका व्यापक रूप से इन्वर्स टाइम ओवरकरंट रिले (IDMT) के रूप में उपयोग किया जाता है।
  • प्रेरण कप रिले (Induction Cup Type Relay): यह एक अधिक संवेदनशील और तेज़ रिले होता है जिसमें एक हल्के एल्युमिनियम कप का उपयोग घूमने वाले सदस्य के रूप में किया जाता है। यह आमतौर पर दूरी संरक्षण (Distance Protection) में प्रयोग किया जाता है।




88.   रिले और सर्किट ब्रेकर द्वारा गलती की स्थिति के दौरान की गई कार्रवाई?
Ans.   

रिले और सर्किट ब्रेकर (CB) एक विद्युत प्रणाली में गलती (Fault) की स्थिति में मिलकर काम करते हैं। रिले गलती का पता लगाता है और सर्किट ब्रेकर गलती वाले हिस्से को अलग करता है (बिजली काट देता है)।

​दोष की स्थिति के दौरान उनकी कार्रवाई का क्रम निम्नलिखित है:

​१. गलती का पता लगाना (Fault Detection) - रिले का कार्य

  • मापन (Sensing and Monitoring): रिले लगातार करंट ट्रांसफार्मर (CTs) और वोल्टेज ट्रांसफार्मर (VTs) के माध्यम से विद्युत प्रणाली के मापदंडों (जैसे: धारा, वोल्टेज, आवृत्ति) की निगरानी करता है।
  • असामान्य स्थिति की पहचान (Fault Identification): जब शॉर्ट सर्किट, ओवरलोड (अतिधारा), या किसी अन्य दोष के कारण ये मापदंड पूर्व निर्धारित सीमा (Pre-set Threshold) से अधिक या कम हो जाते हैं, तो रिले इसे एक असामान्य स्थिति के रूप में पहचानता है।
  • रिले का संचालन (Relay Operation): गलती की पहचान होते ही, रिले तुरंत संचालित होता है। सुरक्षा रिले का मुख्य कार्य सर्किट ब्रेकर के ट्रिप सर्किट को बंद करना है।

​२. ट्रिप कमांड और सर्किट को अलग करना (Trip Command and Circuit Isolation) - सर्किट ब्रेकर का कार्य

  • ट्रिप सिग्नल भेजना (Sending Trip Signal): रिले के संपर्क बंद होते ही, यह सर्किट ब्रेकर के ट्रिप कॉइल (Trip Coil) को एक विद्युत सिग्नल (आमतौर पर DC सप्लाई) भेजता है। यह सिग्नल ही ट्रिप कमांड कहलाता है।
  • सर्किट ब्रेकर का सक्रियण (CB Activation): ट्रिप कॉइल एनर्जाइज़ (ऊर्जावान) हो जाती है और सर्किट ब्रेकर के यांत्रिक ऑपरेटिंग मैकेनिज़्म (Mechanical Operating Mechanism) को सक्रिय करती है।
  • सर्किट को खोलना (Opening the Circuit): मैकेनिज़्म के कारण सर्किट ब्रेकर के चलने वाले संपर्क (Movable Contacts), स्थिर संपर्कों (Fixed Contacts) से तेजी से अलग हो जाते हैं। यह क्रिया दोषपूर्ण भाग में बिजली के प्रवाह को तुरंत बाधित कर देती है।
  • आर्क बुझाना (Arc Quenching): चूंकि उच्च वोल्टेज और उच्च करंट को बाधित किया जाता है, संपर्कों के बीच एक विद्युत चाप (Electric Arc) उत्पन्न होता है। सर्किट ब्रेकर चाप को बुझाने (जैसे SF6 गैस, वैक्यूम या तेल का उपयोग करके) और समाप्त करने का कार्य करता है, जिससे सर्किट स्थायी रूप से खुल जाता है और उपकरण सुरक्षित रहते हैं।

​३. गलती को अलग करना (Isolation)

​सर्किट ब्रेकर का संपर्क खुलने के बाद, विद्युत प्रणाली का दोषपूर्ण हिस्सा स्वस्थ हिस्से से अलग हो जाता है, जिससे बाकी प्रणाली का सामान्य संचालन जारी रह पाता है और उपकरण क्षति से बच जाते हैं।

​कार्रवाई का अनुक्रम (Sequence of Action)

  1. गलती होती है (Fault Occurs): जैसे ही ओवरकरंट होता है।
  2. रिले सेंस करता है (Relay Senses): CT/VT के माध्यम से रिले गलती को मापता है और पहचानता है।
  3. रिले संचालित होता है (Relay Operates): रिले ट्रिप सर्किट को बंद कर देता है।
  4. ट्रिप कॉइल सक्रिय होता है (Trip Coil Energized): सर्किट ब्रेकर की ट्रिप कॉइल को कमांड मिलती है।
  5. सर्किट ब्रेकर खुलता है (CB Opens): सर्किट ब्रेकर के संपर्क खुल जाते हैं, जिससे करंट बाधित होता है और चाप बुझ जाता है।
  6. दोषपूर्ण हिस्सा अलग होता है (Faulty Section Isolated)।




















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