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एचवीडीसी ट्रांसमिशन सिस्टम ( HVDC Transmission System )

एचवीडीसी (HVDC) का मतलब हाई वोल्टेज डायरेक्ट करंट (High Voltage Direct Current) ट्रांसमिशन सिस्टम है। यह एक ऐसी प्रणाली है जिसका उपयोग उच्च वोल्टेज डीसी की मदद से लंबी दूरी पर या समुद्र के नीचे बड़ी मात्रा में बिजली (बल्क पावर) को कुशलतापूर्वक संचारित करने के लिए किया जाता है। ​

एचवीडीसी सिस्टम की मुख्य बातें ​क्या है? 

इसमें बिजली को प्रत्यक्ष धारा (DC) के रूप में उच्च वोल्टेज (जैसे 500 kV या 800 kV) पर ट्रांसमिट किया जाता है। ​

उपयोग: यह विशेष रूप से लंबी दूरी के ट्रांसमिशन, पानी के नीचे केबलों (जैसे समुद्री क्रॉसिंग), और दो अलग-अलग फ्रीक्वेंसी वाले एसी ग्रिड को जोड़ने (एसिंक्रोनस इंटरकनेक्शन) के लिए उपयोगी है। ​

कनवर्टर स्टेशन: चूंकि अधिकांश बिजली उत्पादन एसी में होता है, इसलिए एचवीडीसी प्रणाली के दोनों सिरों पर कनवर्टर स्टेशन की आवश्यकता होती है। 

प्रेषण छोर (Sending End): एसी को डीसी में बदलने के लिए रेक्टिफायर का उपयोग किया जाता है। ​

प्राप्ति छोर (Receiving End): डीसी को वापस एसी में बदलने के लिए इनवर्टर का उपयोग किया जाता है ताकि इसे सामान्य ग्रिड में वितरित किया जा सके। ​

एचवीडीसी के फायदे ​एचवीडीसी ट्रांसमिशन के कई महत्वपूर्ण फायदे हैं, 

खासकर लंबी दूरी के लिए:

कम बिजली हानि (Low Power Loss): डीसी ट्रांसमिशन में एसी की तुलना में प्रतिबाधा (Inductance) और धारिता (Capacitance) के कारण होने वाले कोई प्रतिक्रियाशील बिजली हानि (reactive power losses) नहीं होते हैं। 

लंबी दूरी पर {I}^2{R} (प्रतिरोध) हानि भी कम होती है, जिससे यह अधिक कुशल होता है। ​

कम कंडक्टर की आवश्यकता: एचवीडीसी में आमतौर पर केवल दो कंडक्टरों (या एक कंडक्टर और ग्राउंड रिटर्न) की आवश्यकता होती है, जबकि एसी के लिए तीन कंडक्टरों की आवश्यकता होती है। ​

कोरोना हानि (Corona Loss) में कमी: समान बिजली स्तर के लिए एचवीएसी (HVAC) की तुलना में कोरोना डिस्चार्ज से होने वाली ऊर्जा हानि कम होती है। ​

कोई स्किन इफेक्ट नहीं: डीसी में स्किन इफेक्ट (Skin Effect) नहीं होता, इसलिए कंडक्टर के पूरे क्रॉस-सेक्शन का उपयोग करंट प्रवाह के लिए होता है, जिससे प्रतिरोध और हानि कम हो जाती है। 

टावर का डिज़ाइन: टावर हल्के और कम खर्चीले होते हैं क्योंकि कम इंसुलेशन और कंडक्टर की आवश्यकता होती है। ​

एचवीडीसी के नुकसान ​एचवीडीसी सिस्टम की कुछ कमियां भी हैं: ​

उच्च प्रारंभिक लागत: कनवर्टर स्टेशनों (रेक्टिफायर और इनवर्टर) की लागत बहुत अधिक होती है, जिससे प्रणाली की प्रारंभिक लागत बढ़ जाती है। ​

जटिल कनवर्टर उपकरण: कनवर्टर उपकरण जटिल होते हैं और उन्हें अधिक रखरखाव की आवश्यकता होती है। 

डीसी सर्किट ब्रेकर: उच्च वोल्टेज डीसी को बाधित करने के लिए सर्किट ब्रेकर बनाना जटिल और महंगा होता है। 

हार्मोनिक्स: कनवर्टर के कारण हार्मोनिक्स उत्पन्न होते हैं, जिन्हें कम करने के लिए फिल्टर की आवश्यकता होती है। ​




एचवीडीसी (HVDC) का मतलब हाई वोल्टेज डायरेक्ट करंट (High Voltage Direct Current) ट्रांसमिशन सिस्टम है। यह एक ऐसी प्रणाली है जिसका उपयोग उच्च वोल्टेज पर प्रत्यक्ष धारा (DC) का उपयोग करके लंबी दूरी पर या समुद्र के नीचे बड़ी मात्रा में बिजली (बल्क पावर) को कुशलतापूर्वक संचारित करने के लिए किया जाता है।

यह कैसे काम करता है?

  1. उत्पादन (Generation): बिजली को हमेशा प्रत्यावर्ती धारा (AC) के रूप में उत्पन्न किया जाता है।
  2. रूपांतरण (Conversion): ट्रांसमिशन शुरू करने से पहले, कनवर्टर स्टेशन में एक रेक्टिफायर का उपयोग करके इस AC बिजली को उच्च वोल्टेज DC में बदला जाता है।
  3. संचरण (Transmission): इस DC बिजली को ओवरहेड लाइनों या भूमिगत/पानी के नीचे केबलों के माध्यम से लंबी दूरी तक भेजा जाता है।
  4. वापसी रूपांतरण (Re-Conversion): प्राप्त करने वाले सिरे पर, एक दूसरे कनवर्टर स्टेशन में एक इनवर्टर का उपयोग करके DC बिजली को वापस AC में बदला जाता है ताकि इसे सामान्य AC ग्रिड में वितरित किया जा सके।

मुख्य उपयोग और फायदे

​एचवीडीसी सिस्टम का उपयोग मुख्य रूप से उन परिस्थितियों में किया जाता है जहां पारंपरिक एचवीएसी (HVAC) सिस्टम कम कुशल या अव्यावहारिक होते हैं:

फायदा:-     

विवरण

कम बिजली हानि 

लंबी दूरी के संचरण में, AC की तुलना में DC में प्रतिरोधक हानि कम होती है, क्योंकि इसमें इंडक्टेंस और कैपेसिटेंस के कारण होने वाली प्रतिक्रियाशील बिजली हानि नहीं होती है।

लंबी दूरी का संचरण

लंबी दूरी के लिए (आमतौर पर 600-800 किमी से अधिक) यह AC की तुलना में अधिक किफायती और कुशल होता है।

समुद्री केबल

पानी के नीचे या भूमिगत ट्रांसमिशन के लिए यह एकमात्र व्यावहारिक विकल्प है, क्योंकि AC केबल में कैपेसिटिव चार्जिंग करंट के कारण अत्यधिक बिजली हानि होती है।

ग्रिड इंटरकनेक्शन

यह दो अलग-अलग AC ग्रिडों (जिनकी फ़्रीक्वेंसी अलग-अलग हो सकती है) को जोड़ने (एसिंक्रोनस इंटरकनेक्शन) की अनुमति देता है।

टावर की लागत में कमी

DC ट्रांसमिशन में केवल दो कंडक्टरों (या एक) की आवश्यकता होती है, जबकि AC में तीन की आवश्यकता होती है, जिससे ट्रांसमिशन टावरों का डिज़ाइन सरल और सस्ता हो जाता है।




लंबी दूरी के ट्रांसमिशन के लिए एचवीडीसी (HVDC) का उपयोग मुख्य रूप से इसकी उच्च दक्षता और लागत-प्रभावशीलता के कारण किया जाता है, जो एक निश्चित दूरी से अधिक होने पर पारंपरिक एचवीएसी (HVAC) सिस्टम से बेहतर हो जाता है। ​

यह AC (प्रत्यावर्ती धारा) ट्रांसमिशन की तुलना में लंबी दूरी पर कई महत्वपूर्ण तकनीकी लाभ प्रदान करता है: ​

मुख्य कारण: कम बिजली हानि (Lower Power Loss) ​लंबी दूरी के ट्रांसमिशन में एचवीडीसी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें बिजली की हानि काफी कम होती है। ​

कोई प्रतिक्रियाशील शक्ति हानि नहीं: DC में, AC की तरह इंडक्टेंस (Inductance) और कैपेसिटेंस (Capacitance) के कारण कोई प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) नहीं होती है। 

यह प्रतिक्रियाशील शक्ति AC में उपयोगी कार्य नहीं करती है, बल्कि ट्रांसमिशन लाइन में अतिरिक्त हानि पैदा करती है। DC में यह हानि पूरी तरह समाप्त हो जाती है। ​

कम {I}^2{R} हानि: DC के लिए समान मात्रा में बिजली ट्रांसमिट करने हेतु कम करंट की आवश्यकता होती है, जिससे प्रतिरोध हानि ({I}^2{R}) कम हो जाती है। लंबी दूरी के साथ यह बचत काफी बढ़ जाती है। ​

कोई स्किन इफेक्ट नहीं: AC में, करंट कंडक्टर की बाहरी सतह पर केंद्रित हो जाता है (स्किन इफेक्ट), जिससे प्रभावी प्रतिरोध बढ़ जाता है। DC में, करंट पूरे कंडक्टर क्रॉस-सेक्शन में समान रूप से वितरित होता है, जिससे हानि कम होती है। ​

अन्य तकनीकी और आर्थिक फायदे

फायदा:- 

विवरण

कम निर्माण लागत

DC ट्रांसमिशन में समान बिजली क्षमता के लिए कम कंडक्टरों (आमतौर पर दो) की आवश्यकता होती है, जिससे टावर हल्के और कम चौड़े बनाए जा सकते हैं। इससे लाइन की निर्माण लागत कम हो जाती है।

कोरोना हानि में कमी

DC ट्रांसमिशन में, AC की तुलना में कोरोना डिस्चार्ज के कारण होने वाली ऊर्जा हानि कम होती है, खासकर उच्च वोल्टेज स्तरों पर।

केबल ट्रांसमिशन

भूमिगत और समुद्र के नीचे केबलों के माध्यम से लंबी दूरी तक बिजली संचारित करने के लिए एचवीडीसी सबसे अच्छा विकल्प है, क्योंकि AC केबलों में कैपेसिटेंस के कारण अत्यधिक हानि होती है।

ग्रिड को जोड़ना

एचवीडीसी दो अतुल्यकालिक (Asynchronous) AC ग्रिडों को आपस में जोड़ सकता है, जिनकी फ्रीक्वेंसी और फेज अलग-अलग होते हैं, जो AC ट्रांसमिशन से संभव नहीं है।

संतुलन स्तर दूरी (Break-even Distance): हालाँकि HVDC कनवर्टर स्टेशनों (रेक्टिफायर और इनवर्टर) की लागत बहुत अधिक होती है, लेकिन जैसे-जैसे ट्रांसमिशन लाइन की दूरी बढ़ती है, लाइनों में होने वाली बचत कनवर्टर स्टेशन की शुरुआती लागत से अधिक हो जाती है। 

यह संतुलन स्तर दूरी (आमतौर पर ओवरहेड लाइनों के लिए 600-800 किमी) से अधिक होने पर HVDC आर्थिक रूप से AC से बेहतर हो जाता है।



लंबी दूरी के ट्रांसमिशन में एचवीडीसी (HVDC) के कई महत्वपूर्ण फायदे हैं, जो इसे पारंपरिक एचवीएसी (HVAC) सिस्टम से बेहतर बनाते हैं। ये फायदे मुख्य रूप से उच्च दक्षता और कम समग्र लागत से संबंधित हैं।

एचवीडीसी के प्रमुख फायदे (Advantage of HVDC)

फायदा:-

विवरण

कम बिजली हानि (Lower Power Loss) 

लंबी दूरी पर यह सबसे बड़ा लाभ है। DC ट्रांसमिशन में AC की तरह प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) हानि नहीं होती है। साथ ही, स्किन इफेक्ट अनुपस्थित होने के कारण, कंडक्टर का पूरा क्रॉस-सेक्शन उपयोग होता है, जिससे प्रतिरोध हानि ({I}^2{R} लॉस) कम हो जाती है और ट्रांसमिशन दक्षता बढ़ती है।

कम कंडक्टर और सरल टावर

DC ट्रांसमिशन में समान बिजली संचारित करने के लिए AC की तुलना में कम कंडक्टरों (आमतौर पर दो) की आवश्यकता होती है। इससे ट्रांसमिशन टावर हल्के, संकरे और कम खर्चीले हो जाते हैं।

कोई दूरी सीमा नहीं

AC ट्रांसमिशन में लंबी दूरी पर लाइन के कैपेसिटेंस के कारण वोल्टेज अस्थिरता और हानि बढ़ जाती है, जिससे दूरी सीमित हो जाती है। DC में यह समस्या नहीं होती है, इसलिए यह बहुत लंबी दूरी (आमतौर पर 600 किमी से अधिक) के लिए उपयुक्त है।

समुद्र के नीचे/भूमिगत केबल के लिए आदर्श

AC केबलों में, कैपेसिटेंस के कारण चार्जिंग करंट बहुत अधिक होता है, जिससे लंबी दूरी के लिए यह अव्यावहारिक हो जाता है। DC केबल में कैपेसिटेंस का प्रभाव नगण्य होता है, जो इसे समुद्र के नीचे (Submarine) और भूमिगत ट्रांसमिशन के लिए एकमात्र व्यावहारिक विकल्प बनाता है।

अतुल्यकालिक ग्रिड को जोड़ना

एचवीडीसी दो ऐसे AC ग्रिडों को आपस में जोड़ सकता है जिनकी फ्रीक्वेंसी या फेज अलग-अलग हों (एसिंक्रोनस इंटरकनेक्शन)। यह दो अलग-अलग क्षेत्रीय या राष्ट्रीय ग्रिडों को जोड़ने में महत्वपूर्ण है।

बेहतर नियंत्रण

एचवीडीसी सिस्टम में पावर फ्लो को रेक्टिफायर और इन्वर्टर स्टेशनों पर बहुत जल्दी और सटीक रूप से नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे ग्रिड की स्थिरता (Stability) और विश्वसनीयता बढ़ती है।

संक्षेप में, 

हालाँकि HVDC के लिए कनवर्टर स्टेशनों की शुरुआती लागत अधिक होती है, लेकिन लंबी दूरी पर लाइनों में होने वाली ऊर्जा बचत और कम लाइन लागत के कारण यह एक निश्चित "ब्रेक-ईवन दूरी" के बाद AC से अधिक किफायती और कुशल हो जाता है।




एचवीएसी (HVAC - High Voltage Alternating Current) की तुलना में एचवीडीसी (HVDC - High Voltage Direct Current) के कई महत्वपूर्ण फायदे हैं, खासकर लंबी दूरी के ट्रांसमिशन और विशेष अनुप्रयोगों के लिए।

एचवीएसी की तुलना में एचवीडीसी के फायदे

पहलू:-   एचवीडीसी (HVDC) - फायदे

बिजली हानि (Power Loss)

काफी कम होती है। इसमें प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) हानि, स्किन इफेक्ट (Skin Effect) और सर्ज इम्पेडेन्स लोडिंग की समस्या नहीं होती है।

दूरी के लिए उपयुक्तता

बहुत लंबी दूरी (आमतौर पर 600-800 किमी से अधिक) और पानी के नीचे केबलों (Submarine Cables) के लिए सबसे उपयुक्त।

कंडक्टर की आवश्यकता

समान बिजली के लिए कम कंडक्टर (आमतौर पर दो या एक) की आवश्यकता होती है।

ट्रांसमिशन लाइन लागत

टावर संकरे और सस्ते होते हैं, क्योंकि कम कंडक्टरों और कम इन्सुलेशन (कम वोल्टेज स्ट्रेस के कारण) की आवश्यकता होती है।

स्किन इफेक्ट

उपस्थित नहीं होता है, जिससे कंडक्टर का पूरा क्रॉस-सेक्शन उपयोग होता है।

सिस्टम इंटरकनेक्शन

दो अतुल्यकालिक (अलग-अलग फ्रीक्वेंसी वाले) AC ग्रिड को आपस में जोड़ सकता है।

पावर फ्लो नियंत्रण

बेहतर और तेज नियंत्रण संभव है। कनवर्टर स्टेशन तेजी से और सटीक रूप से बिजली के प्रवाह की दिशा और मात्रा को नियंत्रित कर सकते हैं।


पहलू:-  एचवीएसी (HVAC)

बिजली हानि (Power Loss)

प्रतिक्रियाशील शक्ति, स्किन इफेक्ट, और कोरोना हानि के कारण लंबी दूरी पर हानि अधिक होती है।

दूरी के लिए उपयुक्तता

लंबी दूरी पर अस्थिरता और उच्च हानि के कारण सीमित।

कंडक्टर की आवश्यकता

ट्रांसमिशन के लिए तीन कंडक्टरों की आवश्यकता होती है।

ट्रांसमिशन लाइन लागत

टावर HVDC की तुलना में बड़े और अधिक महंगे होते हैं।

स्किन इफेक्ट

उपस्थित होता है, जिससे हानि बढ़ती है।

सिस्टम इंटरकनेक्शन

केवल तुल्यकालिक (एक ही फ्रीक्वेंसी और फेज वाले) ग्रिड को ही जोड़ सकता है।

पावर फ्लो नियंत्रण

नियंत्रण जटिल और धीमा होता है।

निष्कर्ष:

​एचवीडीसी की शुरुआती लागत (कनवर्टर स्टेशनों के कारण) HVAC से अधिक होती है, लेकिन एक निश्चित "ब्रेक-ईवन दूरी" (आमतौर पर 600-800 किमी) से अधिक होने पर कम हानि और सस्ते लाइन निर्माण के कारण यह कुल मिलाकर HVAC से अधिक किफायती और अधिक कुशल हो जाता है।




एचवीडीसी (HVDC - High Voltage Direct Current) ट्रांसमिशन के कुछ महत्वपूर्ण नुकसान (Disadvantages) इस प्रकार हैं:

  • महंगे कन्वर्टर स्टेशन (Costly Converter Stations): एचवीडीसी सिस्टम में ट्रांसमिशन लाइन के दोनों सिरों पर कनवर्टर (Rectifier और Inverter) स्टेशनों की आवश्यकता होती है। ये स्टेशन एसी (AC) को डीसी (DC) में और फिर डीसी को वापस एसी में बदलने का काम करते हैं। इन उपकरणों और उनसे संबंधित फ़िल्टर (Harmonic Filters) की लागत बहुत अधिक होती है।
  • वोल्टेज स्तर बदलने में कठिनाई (Difficulty in Changing Voltage Levels): डीसी वोल्टेज के स्तर को बदलने के लिए एसी सिस्टम में उपयोग किए जाने वाले सामान्य ट्रांसफार्मर का उपयोग नहीं किया जा सकता। डीसी वोल्टेज को बदलने के लिए अतिरिक्त और जटिल कन्वर्टर उपकरण की आवश्यकता होती है, जो इसे और महंगा बनाता है।
  • सीमित ओवरलोड क्षमता (Limited Overload Capability): कन्वर्टर उपकरणों की ओवरलोड क्षमता आमतौर पर एसी उपकरणों की तुलना में कम होती है।
  • जटिल नियंत्रण (Complex Control): एचवीडीसी प्रणाली का नियंत्रण और ऑपरेशन, विशेष रूप से मल्टी-टर्मिनल डीसी सिस्टम में, जटिल होता है।
  • डीसी सर्किट ब्रेकर की उच्च लागत (High Cost of DC Circuit Breakers): डीसी धाराओं को तोड़ना (Circuit Breaking) एसी की तुलना में अधिक कठिन होता है, जिसके लिए महंगे और विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए डीसी सर्किट ब्रेकर की आवश्यकता होती है।
  • प्रारंभिक लागत (Initial Cost): कनवर्टर स्टेशनों की उच्च लागत के कारण, एचवीडीसी प्रणाली की प्रारंभिक स्थापना लागत शॉर्ट-डिस्टेंस एसी ट्रांसमिशन की तुलना में अधिक होती है। लंबी दूरी या सबमरीन ट्रांसमिशन के लिए ही यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य होता है।

संक्षेप में, 

कन्वर्टर स्टेशन की उच्च लागत एचवीडीसी ट्रांसमिशन का सबसे बड़ा नुकसान है, जिसके कारण यह केवल लंबी दूरी के ट्रांसमिशन या विशेष अनुप्रयोगों (जैसे दो अतुल्यकालिक एसी सिस्टम को जोड़ना) के लिए ही फायदेमंद साबित होता है।




एसी (AC - Alternating Current) और डीसी (DC - Direct Current) ट्रांसमिशन के बीच मुख्य अंतर को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है:

एसी ट्रांसमिशन, जिसका अर्थ है प्रत्यावर्ती धारा (Alternating Current - AC) पारेषण, बिजली को एक स्थान से दूसरे स्थान (जैसे बिजली संयंत्र से उपभोक्ता तक) तक पहुँचाने की सबसे आम विधि है। इसमें बिजली को अल्टरनेटिंग करंट के रूप में उच्च वोल्टेज पर ट्रांसमिट किया जाता है।

एसी ट्रांसमिशन के मुख्य बिंदु

  • धारा प्रवाह (Current Flow): इसमें धारा की दिशा और मान (Magnitude) एक निश्चित अंतराल पर लगातार बदलते रहते हैं, इसलिए इसे प्रत्यावर्ती धारा कहा जाता है।
  • वोल्टेज परिवर्तन में आसानी: यह एसी ट्रांसमिशन का सबसे बड़ा फायदा है। ट्रांसफार्मर का उपयोग करके, वोल्टेज को बहुत कम ऊर्जा हानि के साथ आसानी से बढ़ाया (Step-Up) जा सकता है और फिर वितरण के लिए घटाया (Step-Down) जा सकता है।
    • ​बिजली संयंत्र में, बिजली को कम हानि के लिए उच्च वोल्टेज (जैसे 132 kV, 220 kV, 400 kV) पर ट्रांसमिट करने के लिए वोल्टेज को बढ़ाया जाता है।
    • ​उपभोक्ताओं तक पहुँचने से पहले, इसे सुरक्षा और घरेलू उपयोग के लिए कम वोल्टेज (जैसे 220 V या 440 V) में घटाया जाता है।
  • प्रणाली: अधिकांश एसी ट्रांसमिशन थ्री-फेज (Three-Phase) सिस्टम का उपयोग करते हैं, जिसके लिए आमतौर पर तीन या चार तारों की आवश्यकता होती है।

एसी ट्रांसमिशन के लाभ (Advantages)

एसी (प्रत्यावर्ती धारा) ट्रांसमिशन के कई महत्वपूर्ण लाभ हैं, यही वजह है कि यह दुनिया भर में बिजली पारेषण और वितरण के लिए सबसे व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधि है।

एसी ट्रांसमिशन के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:

एसी ट्रांसमिशन के मुख्य लाभ

​1. वोल्टेज परिवर्तन में आसानी (Easy Voltage Transformation)

​एसी ट्रांसमिशन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि ट्रांसफार्मर का उपयोग करके वोल्टेज को आसानी से और कुशलता से बढ़ाया (Step-Up) या घटाया (Step-Down) जा सकता है।

  • Step-Up: बिजली संयंत्र से निकलने के बाद वोल्टेज को उच्च स्तर तक बढ़ाया जाता है। ऐसा करने से करंट का मान कम हो जाता है, जिससे ट्रांसमिशन लाइनों में I^2R (प्रतिरोधक हानि) बहुत कम हो जाती है। कम हानि के कारण लंबी दूरी पर बिजली का पारेषण अधिक कुशल हो जाता है।
  • Step-Down: अंतिम उपयोगकर्ताओं (घरों और उद्योगों) तक पहुँचने से पहले, सुरक्षित और उपयोग योग्य स्तर पर वोल्टेज को आसानी से घटाया जाता है।

​2. एसी जनरेशन की सादगी

  • ​प्रत्यावर्ती धारा को अल्टरनेटर (AC जनरेटर) का उपयोग करके सरलता और कम लागत पर उच्च वोल्टेज स्तरों पर उत्पन्न किया जा सकता है। अल्टरनेटर का निर्माण डीसी जनरेटर की तुलना में सरल होता है।

​3. सरल सब-स्टेशन उपकरण

  • ​एसी ट्रांसमिशन और वितरण प्रणालियों में उपयोग किए जाने वाले स्विचगियर, सर्किट ब्रेकर और अन्य सब-स्टेशन उपकरण डीसी की तुलना में सरल और कम खर्चीले होते हैं।
  • ​एसी में करंट का मान हर चक्र में शून्य को पार करता है, जिससे आर्क (Arc) को बुझाना और सर्किट को तोड़ना डीसी की तुलना में आसान हो जाता है।

​4. विश्वसनीयता और रखरखाव

  • ​एसी सिस्टम का रखरखाव आमतौर पर आसान और सस्ता होता है, खासकर ट्रांसफार्मर जैसे उपकरण बहुत ही विश्वसनीय होते हैं और कम रखरखाव मांगते हैं।

​5. अंतर्संबंध (Interconnection)

  • ​विभिन्न बिजली ग्रिडों को सिंक्रनाइज़ करना और उन्हें जोड़ना (ग्रिड इंटरकनेक्शन) एसी सिस्टम में अपेक्षाकृत आसान होता है, जिससे क्षेत्रों के बीच लोड साझाकरण और बिजली का प्रभावी वितरण संभव होता है।

एसी ट्रांसमिशन की हानियाँ (Disadvantages)

एसी (प्रत्यावर्ती धारा) ट्रांसमिशन के कई लाभ होने के बावजूद, लंबी दूरी या विशिष्ट अनुप्रयोगों में इसके अपने नुकसान (Disadvantages) होते हैं जो इसे डीसी ट्रांसमिशन (HVDC) से कम कुशल बनाते हैं।

​एसी ट्रांसमिशन के प्रमुख नुकसान निम्नलिखित हैं:

एसी ट्रांसमिशन के नुकसान

​1. उच्च पारेषण हानियाँ (Higher Transmission Losses)

​एसी पारेषण लाइनों में कई प्रकार की हानियाँ होती हैं जो डीसी में या तो नहीं होती हैं या कम होती हैं:

  • प्रेरक और धारिता हानियाँ (Inductive and Capacitive Losses): एसी ट्रांसमिशन लाइनों में प्रेरकत्व (Inductance) और धारिता (Capacitance) दोनों मौजूद होते हैं, जो रिएक्टिव पावर (Reactive Power) का निर्माण करते हैं। इस रिएक्टिव पावर के कारण सिस्टम में अनावश्यक धारा प्रवाहित होती है, जिससे I^2R हानि बढ़ जाती है और दक्षता कम हो जाती है।
  • डाइलेक्ट्रिक लॉस (Dielectric Loss): एसी के कारण केबलों में इंसुलेशन मटेरियल (परावैद्युत) गर्म होता है, जिससे ऊर्जा की हानि होती है।

​2. स्किन इफ़ेक्ट (Skin Effect)

  • ​उच्च आवृत्तियों (High Frequencies) पर एसी धारा कंडक्टर के बाहरी सतह (Skin) के पास अधिक प्रवाहित होती है और केंद्र में कम।
  • ​इससे कंडक्टर का प्रभावी प्रतिरोध (Effective Resistance) बढ़ जाता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रतिरोधक हानि (I^2R) भी बढ़ जाती है। डीसी में यह प्रभाव नहीं होता है।

​3. कोरोना प्रभाव (Corona Effect)

  • ​उच्च वोल्टेज पर ट्रांसमिशन लाइनों के चारों ओर की हवा आयनित (Ionized) हो जाती है, जिससे हल्की बैंगनी चमक, हिसिंग ध्वनि और ऊर्जा का नुकसान होता है।
  • ​एसी सिस्टम में कोरोना प्रभाव डीसी सिस्टम की तुलना में अधिक गंभीर होता है, खासकर खराब मौसम में।

​4. स्थिरता की सीमाएँ (Stability Limitations)

  • ​लंबी दूरी की एसी ट्रांसमिशन लाइनों में सिंक्रोनस स्टेबिलिटी (Synchronous Stability) के मुद्दे होते हैं, जिसका अर्थ है कि ग्रिड पर जुड़े विभिन्न जनरेटरों के बीच फेज अंतर (Phase Difference) को बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।
  • ​एक निश्चित दूरी (आमतौर पर 1000 किमी से अधिक) से आगे, एसी ट्रांसमिशन अस्थिर हो जाता है और डीसी ट्रांसमिशन (HVDC) अधिक कुशल और स्थिर समाधान बन जाता है।

​5. अधिक कंडक्टर सामग्री की आवश्यकता

  • ​थ्री-फेज एसी ट्रांसमिशन के लिए आमतौर पर तीन या चार तारों की आवश्यकता होती है, जबकि डीसी ट्रांसमिशन को समान शक्ति को ट्रांसमिट करने के लिए केवल दो (या एक) तारों की आवश्यकता होती है, जिससे एसी में अधिक कंडक्टर सामग्री का उपयोग होता है।



पनडुब्बी (Submarine) और लंबी दूरी के भूमिगत केबलों के लिए उच्च वोल्टेज डायरेक्ट करंट (High Voltage Direct Current - HVDC) ट्रांसमिशन को एसी (AC) ट्रांसमिशन की तुलना में अधिक पसंद किया जाता है।

इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

​1. धारिता प्रभाव की समाप्ति (Elimination of Capacitive Effect)

​यह पनडुब्बी और भूमिगत केबलों के लिए HVDC को चुनने का सबसे महत्वपूर्ण कारण है।

  • एसी (AC) केबल में: जब किसी कंडक्टर के चारों ओर इंसुलेशन (परावैद्युत) होता है, तो वह एक संधारित्र (Capacitor) की तरह व्यवहार करता है। पनडुब्बी और भूमिगत केबलों में, कंडक्टर और आसपास के पानी या जमीन के बीच इंसुलेशन बहुत अधिक धारिता (Capacitance) उत्पन्न करता है। एसी में, यह धारिता एक बड़ी चार्जिंग धारा (Charging Current) प्रवाहित करती है।
    • ​यह चार्जिंग धारा ट्रांसमिशन के लिए उपलब्ध नेट धारा को कम कर देती है और शक्ति हानि (Power Loss) को बढ़ा देती है।
    • ​एक निश्चित दूरी के बाद, चार्जिंग धारा इतनी बड़ी हो जाती है कि यह व्यावहारिक रूप से बिजली के पारेषण को असंभव बना देती है (लगभग 50-80 किमी से अधिक)।
  • एचवीडीसी (HVDC) केबल में: डीसी में कोई आवृत्ति नहीं होती है, इसलिए केबल में कोई धारिता प्रभाव नहीं होता है। इससे:
    • ​कोई चार्जिंग धारा प्रवाहित नहीं होती है।
    • ​पारेषण में शक्ति हानि बहुत कम होती है, जिससे असीमित दूरी तक बिजली का पारेषण संभव हो जाता है।

​2. कम हानि और उच्च दक्षता (Lower Losses and Higher Efficiency)

  • कोई इंडक्टिव या रिएक्टिव लॉस नहीं: डीसी में कोई प्रेरकत्व (Inductance) या रिएक्टिव पावर (Reactive Power) हानि नहीं होती है, जो एसी ट्रांसमिशन में एक प्रमुख समस्या है।
  • कम प्रतिरोधक हानि: डीसी में स्किन इफ़ेक्ट (Skin Effect) अनुपस्थित होता है, जिसका अर्थ है कि धारा कंडक्टर के पूरे क्रॉस-सेक्शन से समान रूप से प्रवाहित होती है। इससे एसी की तुलना में कम प्रतिरोधक हानि होती है।
  • केवल दो कंडक्टर: HVDC ट्रांसमिशन के लिए केवल दो कंडक्टरों (या एक कंडक्टर और अर्थ रिटर्न) की आवश्यकता होती है, जबकि थ्री-फेज एसी के लिए तीन या चार कंडक्टरों की आवश्यकता होती है। इससे केबल की लागत कम हो जाती है।

​3. उच्च इंसुलेशन क्षमता (Higher Insulation Capability)

  • ​एक ही वोल्टेज स्तर के लिए, डीसी में अधिकतम वोल्टेज (Peak Voltage) का मान एसी की तुलना में कम होता है।
  • ​इसलिए, एचवीडीसी केबल में एसी केबल की तुलना में कम इंसुलेशन की आवश्यकता होती है, जिससे केबल पतला और हल्का हो जाता है।

इन कारणों से, 

लंबी दूरी के पनडुब्बी और भूमिगत पारेषण के लिए HVDC एक किफायती, कुशल और तकनीकी रूप से व्यवहार्य विकल्प है।



एचवीडीसी (HVDC) ट्रांसमिशन के लिए किफायती दूरी वह दूरी है जिसके बाद इसकी कुल लागत एचवीएसी (HVAC) ट्रांसमिशन की कुल लागत से कम हो जाती है। इस बिंदु को ब्रेक-ईवन दूरी (Break-Even Distance) या संतुलन दूरी कहा जाता है।

​एचवीडीसी ट्रांसमिशन के लिए किफायती दूरी (ओवरहेड लाइनों के लिए) आम तौर पर निम्नलिखित सीमा में होती है:

  • ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनें: 600 किमी से अधिक (Greater than 600 km)
  • ​व्यवहार में, यह सीमा 500 किमी से 900 किमी तक भिन्न हो सकती है, जो विशेष रूप से:
    • ​बिजली की मात्रा (Megawatts)
    • ​वोल्टेज स्तर
    • ​टर्मिनल उपकरण की लागत (कनवर्टर स्टेशनों की लागत)
    • ​लाइन निर्माण की लागत

HVDC क्यों किफायती है?

​एचवीडीसी ट्रांसमिशन की लागत और दक्षता के ग्राफ में, दो मुख्य कारक शामिल होते हैं:

  1. प्रारंभिक लागत (Initial Cost): HVDC सिस्टम में कनवर्टर स्टेशनों (Converter Stations) की लागत बहुत अधिक होती है, जो एसी सिस्टम के ट्रांसफार्मर की तुलना में अधिक महंगे होते हैं। इसलिए, कम दूरी के लिए, HVDC की प्रारंभिक लागत HVAC से अधिक होती है।
  2. संचरण हानि (Transmission Losses): लंबी दूरी पर, HVDC में लाइन हानियाँ (स्किन इफ़ेक्ट, कोरोना, रिएक्टिव पावर लॉस की अनुपस्थिति के कारण) HVAC से काफी कम होती हैं।

ब्रेक-ईवन दूरी का निर्धारण

​जैसे-जैसे ट्रांसमिशन लाइन की लंबाई बढ़ती है, HVAC के मुकाबले HVDC की हानियों से बचत बढ़ती जाती है, और अंततः यह बचत कनवर्टर स्टेशनों की उच्च प्रारंभिक लागत को पार कर जाती है।

  • ब्रेक-ईवन पॉइंट: यह वह दूरी है जहाँ HVDC की कुल लागत (कनवर्टर + लाइन हानि) HVAC की कुल लागत के बराबर हो जाती है। इस बिंदु के बाद, HVDC सिस्टम अधिक किफायती बन जाता है।

पनडुब्बी/भूमिगत केबलों के लिए

​पनडुब्बी और भूमिगत केबलों के लिए, एचवीडीसी और भी कम दूरी पर किफायती हो जाता है, क्योंकि एसी केबलों में धारिता प्रभाव के कारण बहुत अधिक हानि होती है:

  • भूमिगत केबल: 50 किमी से अधिक की दूरी के लिए HVDC को प्राथमिकता दी जाती है।



एचवीडीसी (HVDC) का पूर्ण रूप है उच्च वोल्टेज डायरेक्ट करंट (High Voltage Direct Current)।

​यह एक प्रकार की विद्युत शक्ति पारेषण प्रणाली है जो लंबी दूरी पर या पनडुब्बी/भूमिगत केबलों के माध्यम से बिजली संचारित करने के लिए दिष्ट धारा (DC) का उपयोग करती है।

दो ग्रिडों के बीच इंटरकनेक्शन (अंतर्संबंध) में एचवीडीसी (HVDC) का उपयोग मुख्य रूप से इसलिए किया जाता है क्योंकि यह अतुल्यकालिक (Asynchronous) एसी ग्रिडों को जोड़ने की क्षमता प्रदान करता है।

​इसका अर्थ है कि HVDC दो ऐसे एसी (AC) बिजली प्रणालियों को जोड़ सकता है जो निम्नलिखित कारणों से एक साथ सिंक्रनाइज़ (Synchronize) नहीं हो सकते हैं:

​1. अतुल्यकालिक कनेक्शन (Asynchronous Connection)

  • आवृत्ति में अंतर (Frequency Difference): अलग-अलग क्षेत्रों में ग्रिड अलग-अलग आवृत्तियों पर काम कर सकते हैं (जैसे 50 हर्ट्ज़ और 60 हर्ट्ज़), या उनकी आवृत्तियाँ एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से बदलती हैं। एसी ट्रांसमिशन केवल तभी संभव है जब दोनों ग्रिड पूरी तरह से एक ही आवृत्ति और फेज एंगल पर सिंक्रनाइज़ हों।
  • HVDC समाधान: HVDC इन दो असिंक्रोनस ग्रिडों के बीच एक "फायरवॉल" के रूप में कार्य करता है।
    1. ​पहले एसी ग्रिड से बिजली ली जाती है और रेक्टिफायर (Rectifier) का उपयोग करके डीसी में परिवर्तित की जाती है।
    2. ​इस डीसी बिजली को ट्रांसमिट किया जाता है।
    3. ​दूसरे एसी ग्रिड पर, इसे इन्वर्टर (Inverter) का उपयोग करके उस ग्रिड की आवश्यक आवृत्ति और फेज एंगल के एसी में वापस परिवर्तित किया जाता है।
    • ​चूंकि डीसी की अपनी कोई आवृत्ति नहीं होती है (0 हर्ट्ज़), यह दोनों एसी सिस्टम को उनकी स्वतंत्र रूप से संचालित होने की अनुमति देता है।

​2. पावर फ्लो पर सटीक नियंत्रण (Precise Power Flow Control)

  • ​HVDC लिंक बिजली के प्रवाह की दिशा और मात्रा को बहुत तेज़ी से और सटीक रूप से नियंत्रित करने की अनुमति देता है।
  • ​यह ग्रिड ऑपरेटरों को एक ग्रिड से दूसरे में मांग के आधार पर आवश्यक मात्रा में बिजली भेजने में सक्षम बनाता है, जो बिजली व्यापार (Power Trading) और आपातकालीन सहायता के लिए महत्वपूर्ण है।
  • ​एसी इंटरकनेक्शन में, पावर फ्लो को नियंत्रित करना जटिल होता है और यह लाइन प्रतिबाधा (Line Impedance) पर निर्भर करता है।

​3. स्थिरता और कैस्केडिंग विफलता को रोकना (Stability and Preventing Cascading Failures)

  • ​HVDC लिंक ग्रिड की स्थिरता (Stability) को बढ़ाता है। यदि एक ग्रिड में कोई बड़ा दोष या व्यवधान होता है, तो HVDC लिंक उस दोष को दूसरे ग्रिड तक फैलने से रोकता है (यानी, कैस्केडिंग विफलता को रोकता है)।
  • ​यह दोनों ग्रिडों को एक-दूसरे की अस्थिरता से बचाते हुए, अधिक विश्वसनीय बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करता है।

उदाहरण: 

भारत में, विभिन्न क्षेत्रीय ग्रिडों को HVDC लिंक (जैसे बैक-टू-बैक कनेक्शन) का उपयोग करके जोड़ा गया है ताकि वे अतुल्यकालिक रूप से (अपनी स्वतंत्र फ्रीक्वेंसी को बनाए रखते हुए) बिजली का आदान-प्रदान कर सकें।



एचवीडीसी (HVDC) प्रणाली के मुख्य घटक वे होते हैं जो प्रत्यावर्ती धारा (AC) को दिष्ट धारा (DC) में परिवर्तित करते हैं, उसे संचारित करते हैं, और फिर वापस प्रत्यावर्ती धारा में परिवर्तित करते हैं।

एचवीडीसी प्रणाली के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं:

​1. कनवर्टर स्टेशन (Converter Stations)

​यह एचवीडीसी प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण और महंगा हिस्सा है। यह प्रत्येक ट्रांसमिशन लिंक के दोनों सिरों पर स्थित होता है।

  • रेक्टिफायर स्टेशन (Rectifier Station): ट्रांसमिशन के शुरुआती सिरे पर स्थित होता है। इसका कार्य एसी बिजली को डीसी बिजली में परिवर्तित करना होता है (AC to DC)।
  • इन्वर्टर स्टेशन (Inverter Station): ट्रांसमिशन के प्राप्तकर्ता सिरे पर स्थित होता है। इसका कार्य डीसी बिजली को वापस एसी बिजली में परिवर्तित करना होता है (DC to AC)।

मुख्य कनवर्टर उपकरण (Main Converter Equipment)

​कनवर्टर स्टेशनों के मुख्य उपकरण हैं:

  • कनवर्टर ट्रांसफार्मर (Converter Transformer): यह एसी वोल्टेज को आवश्यक स्तर पर स्टेप-अप या स्टेप-डाउन करता है, और रेक्टिफायर/इन्वर्टर को आइसोलेट करता है।
  • थायरिस्टर वाल्व या वाल्व हॉल (Thyristor Valves or Valve Hall): यह कनवर्टर का हृदय है। यह उच्च शक्ति वाले सेमीकंडक्टर स्विच (Semiconductor Switches) (जैसे थायरिस्टर, या VSC-आधारित सिस्टम में IGBTs) का उपयोग करके एसी को डीसी में और डीसी को एसी में परिवर्तित करता है।

​2. ट्रांसमिशन मीडिया (Transmission Media)

​यह वह पथ है जिसके माध्यम से डीसी बिजली उच्च वोल्टेज पर संचारित होती है।

  • ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनें (Overhead Transmission Lines): लंबी दूरी के लिए, विशेष रूप से \pm 500 kV या इससे अधिक के अल्ट्रा-हाई वोल्टेज के लिए उपयोग की जाने वाली एयर-इंसुलेटेड लाइनें।
  • पनडुब्बी और भूमिगत केबल (Submarine and Underground Cables): विशेष रूप से समुद्र पार, झीलों के नीचे, या घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों के लिए उपयोग किए जाते हैं।

​3. फ़िल्टर और रिएक्टर (Filters and Reactors)

​ये घटक प्रणाली की गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

  • एसी फ़िल्टर (AC Filters): ये एसी साइड में हार्मोनिक्स (Harmonics) (कनवर्टर ऑपरेशन द्वारा उत्पन्न अवांछित आवृत्तियाँ) को फ़िल्टर करते हैं और प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) प्रदान करते हैं।
  • डीसी फ़िल्टर (DC Filters): ये डीसी ट्रांसमिशन लाइन में उत्पन्न हार्मोनिक्स को फ़िल्टर करते हैं।
  • डीसी रिएक्टर/स्मूथिंग रिएक्टर (DC Reactor/Smoothing Reactor): ये डीसी लाइन पर धारा में उतार-चढ़ाव (Current Ripple) को कम करते हैं और सर्किट को फॉल्ट करंट से बचाते हैं।

​4. अन्य सहायक उपकरण (Other Auxiliary Equipment)

  • नियंत्रण और सुरक्षा प्रणाली (Control and Protection System): यह एचवीडीसी लिंक के वोल्टेज, धारा और शक्ति प्रवाह को नियंत्रित करती है, और फॉल्ट की स्थिति में सिस्टम की सुरक्षा करती है।
  • रिएक्टिव पावर क्षतिपूर्ति उपकरण (Reactive Power Compensation Equipment): एसी फ़िल्टरों के साथ-साथ, एसी सिस्टम के स्थिर संचालन के लिए आवश्यक प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान करता है।
  • अर्थ इलेक्ट्रोड (Earth Electrodes): मोनोपोलर सिस्टम या बाइपोलर सिस्टम में दोष की स्थिति में, डीसी करंट को वापस जनरेटर स्टेशन तक लाने के लिए पृथ्वी (Earth) या समुद्र के पानी को एक चालक के रूप में उपयोग करने के लिए उपयोग किया जाता है।




कनवर्टर स्टेशन (Converter Station) का मुख्य कार्य प्रत्यावर्ती धारा (AC) और दिष्ट धारा (DC) के बीच परस्पर रूपांतरण करना है। यह एचवीडीसी (HVDC) पारेषण प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो बिजली के प्रवाह को नियंत्रित करने में मदद करता है।

इसके दो प्राथमिक कार्य निम्नलिखित हैं:

​1. रेक्टिफिकेशन (Rectification) 

​यह कार्य भेजने वाले सिरे (Sending End) पर किया जाता है।

  • कार्य: कनवर्टर स्टेशन ग्रिड से एसी (प्रत्यावर्ती धारा) बिजली लेता है और इसे डीसी (दिष्ट धारा) बिजली में परिवर्तित करता है (AC to DC)।
  • उद्देश्य: एसी बिजली को लंबी दूरी या पनडुब्बी केबल के माध्यम से उच्च वोल्टेज पर कम हानि के साथ पारेषित करने के लिए तैयार करना।

​2. इन्वर्शन (Inversion) 

​यह कार्य प्राप्त करने वाले सिरे (Receiving End) पर किया जाता है।

  • कार्य: ट्रांसमिशन लाइन से डीसी (दिष्ट धारा) बिजली लेता है और इसे वापस एसी (प्रत्यावर्ती धारा) बिजली में परिवर्तित करता है (DC to AC)।
  • उद्देश्य: परिवर्तित एसी बिजली को स्थानीय एसी वितरण ग्रिड में वितरित करना, ताकि इसे घरों और उद्योगों में उपयोग किया जा सके।

नियंत्रण और स्थिरता (Control and Stability)

​रूपांतरण के अलावा, कनवर्टर स्टेशन महत्वपूर्ण नियंत्रण कार्य भी करता है:

  • शक्ति प्रवाह नियंत्रण (Power Flow Control): यह सुनिश्चित करने के लिए बिजली के प्रवाह की दिशा और मात्रा को तेज़ी से और सटीक रूप से नियंत्रित करता है कि ग्रिड को आवश्यक बिजली ही मिले।
  • अतुल्यकालिक इंटरकनेक्शन (Asynchronous Interconnection): यह दो एसी ग्रिडों को आपस में जोड़ने की अनुमति देता है जिनकी आवृत्तियाँ (Frequencies) या फेज एंगल अलग-अलग होते हैं, क्योंकि यह दो एसी प्रणालियों के बीच एक अलगाव (Isolation) प्रदान करता है।




एचवीडीसी (HVDC) प्रणाली में रेक्टिफायर और इन्वर्टर दोनों कनवर्टर स्टेशन के मुख्य घटक हैं, लेकिन वे विपरीत कार्य करते हैं:

​1. रेक्टिफायर (Rectifier)

​रेक्टिफायर वह उपकरण है जो एसी बिजली को डीसी बिजली में परिवर्तित करता है।

  • स्थान: यह आमतौर पर HVDC ट्रांसमिशन लिंक के भेजने वाले सिरे (Sending End) पर स्थित होता है।
  • कार्य: यह जनरेटिंग स्टेशन से प्राप्त उच्च-वोल्टेज एसी (AC) को लेता है और इसे हाई-वोल्टेज डीसी (DC) में बदल देता है, ताकि बिजली को ट्रांसमिशन लाइन पर कम हानि के साथ भेजा जा सके।
  • हिंदी में नाम: इसे दिष्टकारी भी कहते हैं।
  • मुख्य घटक: यह थायरिस्टर वाल्व या IGBT जैसे पावर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बना होता है।

​2. इन्वर्टर (Inverter)

​इन्वर्टर वह उपकरण है जो डीसी बिजली को वापस एसी बिजली में परिवर्तित करता है।

  • स्थान: यह आमतौर पर HVDC ट्रांसमिशन लिंक के प्राप्तकर्ता सिरे (Receiving End) पर स्थित होता है।
  • कार्य: यह ट्रांसमिशन लाइन से प्राप्त हाई-वोल्टेज डीसी (DC) को लेता है और इसे प्राप्त करने वाले ग्रिड की आवश्यक आवृत्ति (जैसे 50 Hz या 60 Hz) के एसी में बदल देता है, ताकि बिजली का वितरण और उपयोग किया जा सके।
  • हिंदी में नाम: इसे प्रतिलोमक भी कहते हैं।
  • मुख्य घटक: यह भी थायरिस्टर वाल्व या IGBT जैसे पावर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से बना होता है, लेकिन विपरीत मोड में काम करता है।

संक्षेप में:

रेक्टिफायर (Rectifier) AC to DC 

इन्वर्टर (Inverter) DC to AC





कनवर्टर ट्रांसफार्मर (Converter Transformer) एचवीडीसी (HVDC) कनवर्टर स्टेशन का एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसका मुख्य कार्य वोल्टेज का अनुकूलन (Adaptation) और इलेक्ट्रिकल आइसोलेशन (Electrical Isolation) प्रदान करना है।

इसके दो प्राथमिक कार्य निम्नलिखित हैं:

​1. वोल्टेज अनुकूलन (Voltage Adaptation)

  • वोल्टेज स्तर बदलना: यह एसी ग्रिड से आने वाले वोल्टेज को थायरिस्टर वाल्वों (Thyristor Valves) के संचालन के लिए आवश्यक डीसी वोल्टेज स्तर से मेल खाने के लिए बदलता है।
    • रेक्टिफायर सिरे पर: यह एसी वोल्टेज को आवश्यक उच्च डीसी वोल्टेज स्तर में परिवर्तित करने के लिए स्टेप-अप (Step-Up) करने में मदद करता है।
    • इन्वर्टर सिरे पर: यह ट्रांसमिशन लाइन से आने वाले डीसी को वापस एसी ग्रिड वोल्टेज स्तर से मेल खाने के लिए स्टेप-डाउन (Step-Down) करने में मदद करता है।

​2. इलेक्ट्रिकल आइसोलेशन (Electrical Isolation)

  • डीसी को एसी से अलग करना: यह कनवर्टर सर्किट (थायरिस्टर वाल्व) को जुड़े हुए एसी ग्रिड से विद्युतीय रूप से अलग करता है। यह थायरिस्टर वाल्वों को एसी ग्रिड में किसी भी वोल्टेज वृद्धि (Voltage Surges) या दोष (Faults) से बचाता है।
  • फेज शिफ्ट प्रदान करना (Phase Shift): यह थ्री-फेज वाइंडिंग को स्टार ({Y}) और डेल्टा ( Delta) संयोजन में प्रदान करके एसी हार्मोनिक्स (Harmonics) को कम करने में भी मदद करता है। यह 12-पल्स कनवर्टर ऑपरेशन के लिए आवश्यक है, जो कनवर्टर द्वारा उत्पन्न अवांछित हार्मोनिक धाराओं को रद्द करने में मदद करता है।

संक्षेप में, 

कनवर्टर ट्रांसफार्मर दो अलग-अलग विद्युत प्रणालियों (एसी ग्रिड और डीसी लिंक) के बीच एक आवश्यक इंटरफ़ेस (Interface) के रूप में कार्य करता है, जो वोल्टेज को नियंत्रित करता है और सुरक्षा सुनिश्चित करता है।




एचवीडीसी (HVDC) प्रणाली में, फिल्टर (Filters) ऐसे उपकरण हैं जिनका उपयोग हार्मोनिक्स (Harmonics) नामक अवांछित आवृत्तियों को हटाने के लिए किया जाता है। इनकी आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि कनवर्टर स्टेशन (रेक्टिफायर और इन्वर्टर) स्वाभाविक रूप से ये अवांछित आवृत्तियाँ उत्पन्न करते हैं।

एचवीडीसी में फिल्टर के प्रकार और कार्य

एचवीडीसी सिस्टम में मुख्य रूप से दो प्रकार के फिल्टर का उपयोग किया जाता है:

​1. एसी फिल्टर (AC Filters)

  • स्थान: ये कनवर्टर स्टेशन के एसी साइड (AC Grid से जुड़े हुए भाग) पर लगाए जाते हैं।
  • कार्य:
    • हार्मोनिक्स को हटाना: कनवर्टर (रेक्टिफायर या इन्वर्टर) एसी तरंग में विकृति (distortion) पैदा करते हैं, जिससे एसी हार्मोनिक्स उत्पन्न होते हैं। एसी फिल्टर इन हार्मोनिक्स को सोख लेते हैं और एसी ग्रिड में उनके प्रवाह को रोकते हैं।
    • प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान करना (Provide Reactive Power): ये फिल्टर कनवर्टर ऑपरेशन के लिए आवश्यक प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) की आपूर्ति भी करते हैं, जिससे ग्रिड का वोल्टेज स्थिर रहता है।

​2. डीसी फिल्टर (DC Filters)

  • स्थान: ये कनवर्टर स्टेशन के डीसी साइड (DC ट्रांसमिशन लाइन से जुड़े हुए भाग) पर लगाए जाते हैं।
  • कार्य:
    • डीसी हार्मोनिक्स को हटाना: कनवर्टर ऑपरेशन डीसी हार्मोनिक्स या रिप्पल (Ripple) भी उत्पन्न करता है। डीसी फिल्टर इन अवांछित आवृत्तियों को हटाते हैं ताकि ट्रांसमिशन लाइन में केवल शुद्ध डीसी करंट ही प्रवाहित हो।
    • संचार हस्तक्षेप को कम करना: ये डीसी हार्मोनिक्स पास की कम्युनिकेशन लाइनों (Communication Lines) में हस्तक्षेप (Interference) पैदा कर सकते हैं; डीसी फिल्टर इस हस्तक्षेप को कम करते हैं।

फिल्टर की आवश्यकता क्यों है?

​एचवीडीसी प्रणाली में फिल्टर की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है:

​1. वेवफॉर्म की गुणवत्ता बनाए रखना (Maintain Waveform Quality)

​कनवर्टर (थायरिस्टर वाल्वों का उपयोग करके) एसी को डीसी में या डीसी को एसी में परिवर्तित करते समय पूरी तरह से शुद्ध साइन वेव (Pure Sine Wave) उत्पन्न या प्राप्त नहीं कर पाते हैं। वे स्टेप-बाय-स्टेप स्विचिंग करते हैं, जिससे मूल आवृत्ति के साथ-साथ हार्मोनिक्स नामक अवांछित उच्च आवृत्तियाँ उत्पन्न होती हैं। फिल्टर इन विकृतियों को हटाकर वेवफॉर्म की गुणवत्ता बनाए रखते हैं।

​2. उपकरण की सुरक्षा (Equipment Protection)

​यदि हार्मोनिक्स को नहीं हटाया गया, तो वे:

  • एसी मशीनों (Generators and Motors) में अत्यधिक गरम होने (Overheating) का कारण बन सकते हैं।
  • कैपेसिटर (Capacitors) और अन्य उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

​3. संचार हस्तक्षेप को रोकना (Prevent Communication Interference)

​हार्मोनिक आवृत्तियाँ रेडियो, टेलीफोन, और डेटा संचार लाइनों में हस्तक्षेप (Noise) उत्पन्न कर सकती हैं। फिल्टर इन विद्युत चुम्बकीय हस्तक्षेपों (Electromagnetic Interferences) को रोकते हैं।

​4. लाइन हानियों को कम करना (Reduce Line Losses)

​हार्मोनिक धाराएँ ट्रांसमिशन लाइन में अनावश्यक रूप से अधिक I^2R हानि (पावर लॉस) उत्पन्न करती हैं। फिल्टर इन्हें हटाकर ट्रांसमिशन की समग्र दक्षता (Efficiency) में सुधार करते हैं।




स्मूथिंग रिएक्टर (Smoothing Reactor) एचवीडीसी (HVDC) संचरण प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह मूल रूप से एक बड़ा प्रेरक (inductor) या चोक कॉइल (choke coil) होता है जिसे डीसी ट्रांसमिशन लाइन के साथ श्रृंखला (series) में जोड़ा जाता है।

स्मूथिंग रिएक्टर का कार्य

स्मूथिंग रिएक्टर के दो मुख्य कार्य हैं:

​1. डीसी करंट को सुचारु करना (Smooth the DC Current)

  • रिप्पल को कम करना (Reduce Ripple): रेक्टिफायर स्टेशन पर एसी से डीसी में रूपांतरण के कारण, डीसी करंट में पूरी तरह से स्थिर (pure DC) होने के बजाय कुछ उतार-चढ़ाव (Ripple) या हार्मोनिक्स रह जाते हैं।
  • ​रिएक्टर का उच्च प्रेरकत्व (Inductance) इन तेजी से हो रहे करंट के बदलावों (रिप्पल) का विरोध करता है। यह इन उतार-चढ़ावों को दबा देता है, जिससे डीसी लाइन में एक अधिक सुचारु (Smoother) और स्थिर डीसी करंट प्रवाहित होता है।

​2. फॉल्ट करंट को सीमित करना (Limit Fault Current)

  • सुरक्षा: यदि एचवीडीसी प्रणाली में कोई दोष (fault) उत्पन्न होता है (जैसे शॉर्ट सर्किट), तो बहुत अधिक करंट प्रवाहित हो सकता है।
  • ​स्मूथिंग रिएक्टर की उपस्थिति दोष धारा (Fault Current) के उदय की दर को धीमा कर देती है और उसकी अधिकतम मात्रा को सीमित करती है। यह कनवर्टर वाल्वों (जैसे थायरिस्टर) को अति-धारा (overcurrent) से होने वाले नुकसान से बचाता है और उन्हें सुरक्षित रूप से बंद (shut down) करने के लिए पर्याप्त समय देता है।

संक्षेप में, 

स्मूथिंग रिएक्टर डीसी लिंक की करंट गुणवत्ता और सुरक्षा दोनों सुनिश्चित करता है।




डीसी लिंक (DC Link) पावर इलेक्ट्रॉनिक्स (Power Electronics) सर्किट में एक इंटरमीडिएट सर्किट (intermediate circuit) या लिंक होता है, जो आमतौर पर एक रेक्टिफायर (rectifier) और एक इन्वर्टर (inverter) जैसे पावर रूपांतरण चरणों (power conversion stages) को जोड़ता है। 

इसका मुख्य कार्य ऊर्जा भंडारण और एक स्थिर डीसी वोल्टेज बनाए रखना है।

डीसी लिंक के मुख्य कार्य (Main Functions of a DC Link)

डीसी लिंक निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य करता है:

  1. वोल्टेज स्थिरीकरण (Voltage Stabilization): यह इनपुट पावर में होने वाले उतार-चढ़ाव (fluctuations) को अवशोषित करके इन्वर्टर को एक सुचारु और स्थिर डीसी वोल्टेज प्रदान करता है, जो इन्वर्टर के कुशल संचालन के लिए आवश्यक है।
  2. ऊर्जा भंडारण (Energy Storage): डीसी लिंक में आमतौर पर कैपेसिटर (Capacitor) या प्रेरक (Inductor) होते हैं, जिनमें से कैपेसिटर मुख्य रूप से ऊर्जा भंडारण उपकरण के रूप में कार्य करते हैं। ये अल्पकालिक ऊर्जा बफर के रूप में कार्य करते हैं, जो लोड में अचानक परिवर्तन (transient loads) होने पर ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं।
  3. रिप्पल कमी (Ripple Reduction): रेक्टिफायर से प्राप्त डीसी वोल्टेज में कुछ एसी घटक (AC components) मिश्रित होते हैं, जिन्हें रिप्पल (ripple) कहा जाता है। डीसी लिंक कैपेसिटर इन रिपल्स को फ़िल्टर करके कम करते हैं, जिससे इन्वर्टर को एक शुद्ध डीसी इनपुट मिलता है।
  4. कपलिंग (Coupling): यह विभिन्न पावर स्रोतों और कन्वर्टर इकाइयों को एक साझा डीसी वोल्टेज स्तर से जोड़ता है।

अनुप्रयोग (Applications)

​डीसी लिंक का उपयोग कई पावर इलेक्ट्रॉनिक्स प्रणालियों में किया जाता है, जैसे:

  • इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicles - EV) ड्राइव: इन्वर्टर सर्किट को सुरक्षित रखने और मोटर को स्थिर शक्ति प्रदान करने के लिए।
  • वेरिएबल फ्रीक्वेंसी ड्राइव (Variable Frequency Drives - VFD): मोटर गति नियंत्रण के लिए।
  • सोलर इन्वर्टर (Solar Inverters): सौर पैनलों से प्राप्त डीसी को एसी में परिवर्तित करने की प्रक्रिया में।

​डीसी लिंक के घटकों में डीसी लिंक कैपेसिटर सबसे महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह वास्तविक ऊर्जा भंडारण और वोल्टेज स्थिरीकरण का कार्य करता है।



कम्यूटेशन विफलता (Commutation Failure) पावर इलेक्ट्रॉनिक्स, विशेष रूप से हाई-वोल्टेज डायरेक्ट करंट (HVDC) ट्रांसमिशन सिस्टम में इस्तेमाल होने वाले लाइन-कम्यूटेटेड कनवर्टर (Line-Commutated Converters - LCC) में होने वाली एक महत्वपूर्ण समस्या है।

कम्यूटेशन विफलता क्या है?

​कम्यूटेशन विफलता एक ऐसी स्थिति है जहाँ एक लाइन-कम्यूटेटेड इन्वर्टर सर्किट में, जब एक थायरिस्टर (Thyristor) को बंद करके करंट को अगले थायरिस्टर में स्थानांतरित (Transfer) किया जा रहा होता है, तो पुराना थायरिस्टर सफलतापूर्वक बंद नहीं हो पाता है।

​यह विफलता तब होती है जब थायरिस्टर को बंद (टर्न-ऑफ) होने के लिए आवश्यक न्यूनतम समय नहीं मिल पाता है, जिसके परिणामस्वरूप दोनों थायरिस्टर (या SCRs) एक ही समय में चालन (conducting) करने लगते हैं।

कम्यूटेशन विफलता का संदर्भ और कारण

​यह समस्या मुख्य रूप से HVDC सिस्टम के इनवर्टर (Inverter) स्टेशन पर उत्पन्न होती है, जो DC को वापस AC में बदलता है।

मुख्य कारण

​कम्यूटेशन विफलता का मुख्य कारण अपर्याप्त विलुप्ति कोण (Extinction Angle, Gamma) होता है।

  • विलुप्ति कोण (Gamma): यह वह समय अंतराल है जो थायरिस्टर के एनोड वोल्टेज को ऋणात्मक (Negative) होने के बाद भी उसे न्यूनतम समय तक ऋणात्मक बनाए रखता है, ताकि थायरिस्टर का होल्डिंग करंट शून्य हो जाए और वह बंद हो सके।
  • कम्यूटेशन विफलता: यदि एसी सिस्टम में किसी गड़बड़ी (जैसे कि वोल्टेज डिप, फाल्ट, या उच्च करंट डिमांड) के कारण यह \gamma कोण कम हो जाता है या शून्य हो जाता है, तो थायरिस्टर बंद होने से पहले ही उसका वोल्टेज फिर से धनात्मक (Positive) हो जाता है, जिससे वह चालू रह जाता है, और कम्यूटेशन विफलता हो जाती है।

कम्यूटेशन विफलता के परिणाम

​जब कम्यूटेशन विफलता होती है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं:

  • शॉर्ट सर्किट (Shoot-Through): एक ही चरण (Phase) के दो थायरिस्टरों में एक क्षणिक शॉर्ट सर्किट हो जाता है।
  • डीसी वोल्टेज में गिरावट: डीसी लिंक वोल्टेज में अचानक और तीव्र गिरावट आती है।
  • एसी सिस्टम पर प्रभाव: एसी ग्रिड में बड़े हार्मोनिक धाराएं (Harmonic Currents) इंजेक्ट होती हैं।
  • सिस्टम ट्रिपिंग: गंभीर या लगातार विफलताएं HVDC लिंक को अस्थिर कर सकती हैं और सुरक्षात्मक गियर द्वारा सिस्टम को ट्रिप करा सकती हैं।




एचवीडीसी (HVDC - High-Voltage Direct Current) ट्रांसमिशन सिस्टम में नियंत्रण प्रणाली (Control System) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि शक्ति (power) का प्रवाह कुशलतापूर्वक, विश्वसनीय ढंग से और दोनों सिरों पर एसी ग्रिड (AC Grid) की स्थिरता को बनाए रखते हुए हो।

एचवीडीसी में नियंत्रण प्रणाली की मुख्य भूमिका

​नियंत्रण प्रणाली मुख्य रूप से कनवर्टर (रेक्टिफायर और इन्वर्टर) के फायरिंग कोण (Firing Angle) को नियंत्रित करके पूरे सिस्टम को नियंत्रित करती है।

​1. सक्रिय शक्ति नियंत्रण (Active Power Control)

  • मुख्य उद्देश्य: डीसी लिंक के माध्यम से प्रेषित होने वाली वास्तविक शक्ति (P) को सेट किए गए मान (Power Order) पर बनाए रखना।
  • कार्य: रेक्टिफायर (AC to DC) आमतौर पर स्थिर डीसी करंट (Constant Current - I_d) को नियंत्रित करता है, और इन्वर्टर (DC to AC) स्थिर विलुप्ति कोण (Constant Extinction Angle - CEA) को नियंत्रित करता है। ये दोनों मिलकर वांछित शक्ति प्रवाह को सुनिश्चित करते हैं।
  • दिशा उलट (Power Reversal): नियंत्रण प्रणाली डीसी वोल्टेज की ध्रुवीयता को बदलकर (करंट की दिशा नहीं बदलकर) शक्ति के प्रवाह की दिशा को तुरंत उलट सकती है।

​2. ग्रिड स्थिरता और सुरक्षा (Grid Stability and Protection)

  • एसी ग्रिड सपोर्ट: नियंत्रण प्रणाली एसी ग्रिड में अस्थिरता (जैसे आवृत्ति या वोल्टेज में बदलाव) का पता लगाती है और डीसी शक्ति को समायोजित करके एसी सिस्टम की क्षणिक और गतिशील स्थिरता को बढ़ाती है।
  • दोष (Fault) प्रबंधन: यह कम्यूटेशन विफलता (Commutation Failure) जैसी समस्याओं को रोकती है या उनका शीघ्र पता लगाकर कनवर्टर को क्षति से बचाती है।
  • करंट लिमिटिंग: यह शॉर्ट सर्किट या अन्य दोषों के दौरान डीसी करंट को एक सुरक्षित सीमा के भीतर सीमित करती है।

​3. प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रबंधन (Reactive Power Management)

  • पीएफ (Power Factor) सुधार: एचवीडीसी कनवर्टर प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) का उपभोग करते हैं। नियंत्रण प्रणाली सहायक फिल्टर और स्टेटिक वार कंपनसेटर (SVC) को स्वचालित रूप से स्विच करके पावर फैक्टर को उच्च बनाए रखने में मदद करती है।
  • एसी वोल्टेज नियंत्रण: इन्वर्टर टर्मिनल पर एसी वोल्टेज के स्तर को बनाए रखने में सहायता करती है।

नियंत्रण प्रणाली का पदानुक्रम (Control System Hierarchy)

आधुनिक एचवीडीसी नियंत्रण प्रणाली एक पदानुक्रमित संरचना में काम करती है:

  1. मास्टर कंट्रोलर (Master Controller): यह उच्चतम स्तर का नियंत्रण है, जो शक्ति ऑर्डर (P_{ref}) को सेट करता है और पूरे लिंक (बायपोल) के प्रदर्शन की निगरानी करता है।
  2. पोल कंट्रोलर (Pole Controller): मास्टर ऑर्डर को लेता है और उसे करंट ऑर्डर (I_{ref}) में परिवर्तित करता है, तथा सुरक्षा और दोषों से संबंधित कार्यों को देखता है।
  3. कनवर्टर/वाल्व कंट्रोलर (Converter/Valve Controller): यह सबसे निचला स्तर है। यह I_{ref} सिग्नल प्राप्त करता है और थायरिस्टर के फायरिंग कोण (\alpha) को उत्पन्न करता है, जिससे डीसी करंट और वोल्टेज को सीधे नियंत्रित किया जाता है।

संक्षेप में, 

नियंत्रण प्रणाली एचवीडीसी को एक "पाइपलाइन" की तरह काम करने की अनुमति देती है जहाँ प्रेषित शक्ति की मात्रा को तेज़ी से और सटीक रूप से नियंत्रित किया जा सकता है, जो एसी ट्रांसमिशन में संभव नहीं है।



एचवीडीसी (HVDC) प्रणालियों को मुख्य रूप से दो आधारों पर वर्गीकृत किया जाता है: कनवर्टर की तकनीक और सर्किट का विन्यास (configuration)

​I. कनवर्टर तकनीक के आधार पर प्रकार

​आधुनिक एचवीडीसी प्रणालियाँ मुख्य रूप से दो प्रकार की कनवर्टर तकनीक का उपयोग करती हैं:

​1. लाइन-कम्यूटेटेड कनवर्टर (Line-Commutated Converter - LCC)

  • अन्य नाम: करंट सोर्स कनवर्टर (Current Source Converter - CSC) या क्लासिक एचवीडीसी।
  • डिवाइस: मुख्य रूप से थायरिस्टर (Thyristor) (या SCR) का उपयोग करता है।
  • कम्यूटेशन: कनवर्टर को बंद करने के लिए एसी ग्रिड वोल्टेज पर निर्भर करता है (इसीलिए इसे 'लाइन-कम्यूटेटेड' कहा जाता है)।
  • विशेषताएँ:
    • उच्च शक्ति रेटिंग और उच्च वोल्टेज स्तर के लिए उपयुक्त।
    • ​यह प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) का उपभोग करता है, जिसके लिए एसी साइड पर बड़े फिल्टर और कैपेसिटर बैंक की आवश्यकता होती है।
    • ​कम्यूटेशन विफलता की संभावना होती है।

​2. वोल्टेज सोर्स कनवर्टर (Voltage Source Converter - VSC)

  • अन्य नाम: एचवीडीसी लाइट (HVDC { Light}^{{TM}}) या वीएससी-एचवीडीसी।
  • डिवाइस: मुख्य रूप से आईजीबीटी (IGBT - Insulated Gate Bipolar Transistor) जैसे पूर्ण रूप से नियंत्रणीय स्विच का उपयोग करता है।
  • कम्यूटेशन: स्विच को गेट सिग्नल द्वारा किसी भी समय चालू या बंद किया जा सकता है, जिससे यह एसी ग्रिड से स्वतंत्र रूप से काम करता है।
  • विशेषताएँ:
    • ​सक्रिय और प्रतिक्रियाशील शक्ति (P और Q) का स्वतंत्र नियंत्रण कर सकता है।
    • डीसी वोल्टेज की ध्रुवीयता को बदले बिना शक्ति के प्रवाह की दिशा को उलट सकता है।
    • ​कमजोर एसी ग्रिड और मल्टी-टर्मिनल सिस्टम के लिए आदर्श।

​II. सर्किट विन्यास के आधार पर प्रकार

​यह वर्गीकरण डीसी ट्रांसमिशन लाइन के कंडक्टरों की संख्या और ध्रुवीयता (polarity) पर आधारित है:

​1. मोनोपोलर लिंक (Monopolar Link)

  • विन्यास: इसमें केवल एक हाई-वोल्टेज कंडक्टर होता है, जो आमतौर पर ऋणात्मक ध्रुवीयता का होता है।
  • रिटर्न पाथ: करंट वापस लाने के लिए पृथ्वी (Earth) या पानी (समुद्र) का उपयोग किया जाता है। उच्च प्रतिरोधकता वाले क्षेत्रों में एक धात्विक रिटर्न कंडक्टर का भी उपयोग किया जा सकता है।
  • उपयोग: यह सरल और सबसे किफायती विन्यास है, जो अक्सर पानी के नीचे के केबल लिंक में प्रयोग किया जाता है।

​2. बाईपोलर लिंक (Bipolar Link)

  • विन्यास: इसमें दो हाई-वोल्टेज कंडक्टर होते हैं—एक धनात्मक (+V_{dc}) और दूसरा ऋणात्मक (-V_{dc}) ध्रुवीयता का।
  • रिटर्न पाथ: सामान्य परिचालन में, दोनों ध्रुवों में धाराएँ एक-दूसरे को संतुलित करती हैं, और पृथ्वी से बहुत कम या कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है।
  • विश्वसनीयता: यदि एक पोल में दोष आता है, तो शेष स्वस्थ पोल को मोनोपोलर मोड में पृथ्वी रिटर्न के साथ संचालित किया जा सकता है, जिससे आधी शक्ति का संचरण जारी रहता है। यह सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला विन्यास है।

​3. होमोपोलर लिंक (Homopolar Link)

  • विन्यास: इसमें दो या अधिक कंडक्टर होते हैं जिनकी ध्रुवीयता समान होती है (आमतौर पर ऋणात्मक)।
  • रिटर्न पाथ: यह हमेशा पृथ्वी या धात्विक रिटर्न पाथ का उपयोग करता है।
  • उपयोग: यह आधुनिक प्रणालियों में बहुत कम इस्तेमाल होता है, क्योंकि इसके पर्यावरण पर प्रभाव और नियंत्रण जटिलताएँ बाईपोलर लिंक से अधिक होती हैं।

​4. बैक-टू-बैक कपलिंग (Back-to-Back Coupling)

  • विन्यास: इसमें रेक्टिफायर और इन्वर्टर स्टेशन एक ही स्थान पर होते हैं और इनके बीच कोई लंबी डीसी लाइन नहीं होती है।
  • उपयोग: इसका उपयोग दो अतुल्यकालिक (Asynchronous) एसी ग्रिडों (अलग-अलग आवृत्तियों या चरण कोणों वाले ग्रिड) को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है।

​5. मल्टी-टर्मिनल डीसी (Multi-Terminal DC - MTDC)

  • विन्यास: यह एक एचवीडीसी प्रणाली है जिसमें दो से अधिक कनवर्टर स्टेशन एक साझा डीसी नेटवर्क से जुड़े होते हैं।
  • उपयोग: यह कई बिंदुओं से शक्ति भेजने और प्राप्त करने की अनुमति देता है, जिससे एक जटिल डीसी ग्रिड बनाया जा सकता है।




मोनोपोलर एचवीडीसी (Monopolar HVDC) प्रणाली हाई-वोल्टेज डायरेक्ट करंट ट्रांसमिशन का सबसे सरल और आर्थिक विन्यास है। इसमें मुख्य रूप से एक ही हाई-वोल्टेज कंडक्टर का उपयोग किया जाता है, और करंट को वापस लाने के लिए पृथ्वी (Earth) या जल (Sea/Water) को रिटर्न पाथ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मोनोपोलर प्रणाली का विन्यास (Configuration)

मोनोपोलर प्रणाली की संरचना निम्नलिखित घटकों पर आधारित होती है:

  • सिंगल कंडक्टर: ट्रांसमिशन लाइन में केवल एक ही कंडक्टर (पोल) होता है। यह कंडक्टर आमतौर पर ऋणात्मक ध्रुवीयता (Negative Polarity) पर संचालित होता है। ऋणात्मक ध्रुवीयता का उपयोग करने से कोरोना हानि (Corona Losses) और रेडियो हस्तक्षेप (Radio Interference) कम होते हैं।
  • ग्राउंड/सी रिटर्न पाथ: करंट वापस लाने के लिए मुख्य रूप से पृथ्वी या समुद्र को रिटर्न पाथ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। दोनों छोरों पर अर्थ इलेक्ट्रोड (Earth Electrodes) लगाए जाते हैं, जो कनवर्टर स्टेशन से कुछ दूरी पर स्थित होते हैं।
  • मेटैलिक रिटर्न (वैकल्पिक): यदि जमीन की प्रतिरोधकता (Resistivity) बहुत अधिक है या पर्यावरण संबंधी चिंताएँ हैं, तो एक अलग धात्विक कंडक्टर (Metallic Conductor) का उपयोग रिटर्न पाथ के रूप में किया जाता है, हालांकि यह विन्यास अधिक महंगा हो जाता है।

मुख्य विशेषताएँ और उपयोग

मोनोपोलर एचवीडीसी प्रणाली का उपयोग मुख्य रूप से उन परिस्थितियों में किया जाता है जहाँ लागत कम रखना और केबल का उपयोग करना प्राथमिकता होती है।

मोनोपोलर एचवीडीसी के विशिष्ट उपयोग

​मोनोपोलर प्रणाली, जो केवल एक हाई-वोल्टेज कंडक्टर और पृथ्वी/समुद्र को रिटर्न पाथ के रूप में उपयोग करती है, निम्नलिखित अनुप्रयोगों के लिए सबसे अधिक अनुकूल है:

​1. पनडुब्बी/समुद्र के नीचे केबल ट्रांसमिशन (Submarine/Underwater Cable Transmission)

​मोनोपोलर लिंक का सबसे व्यापक उपयोग लंबी दूरी की पनडुब्बी केबल परियोजनाओं में होता है।

  • कारण: समुद्र के नीचे दो केबलों की तुलना में केवल एक केबल डालना अधिक किफायती होता है। एचवीएसी (HVAC) केबलों में उच्च संधारित्र चार्जिंग करंट (Capacitor Charging Current) के कारण होने वाली हानियाँ HVDC में नगण्य होती हैं, जिससे लंबी दूरी के पनडुब्बी ट्रांसमिशन में मोनोपोलर एचवीडीसी सबसे दक्ष विकल्प बन जाता है।

​2. लंबी दूरी का कम-क्षमता संचरण (Low-Capacity Long-Distance Transmission)

  • ​मोनोपोलर लिंक का उपयोग उन परियोजनाओं में किया जाता है जहाँ बिजली संचरण की क्षमता कम होती है, लेकिन दूरी अधिक होती है।
  • कारण: यह बाईपोलर लिंक की तुलना में आधी शक्ति का संचरण करता है, लेकिन इसके लिए आवश्यक उपकरणों (जैसे कनवर्टर वाल्व और कंडक्टर) की संख्या कम होने के कारण यह एक सस्ता समाधान है।

​3. प्रारंभिक निर्माण चरण (Initial Phase of Bipolar Link)

  • ​कुछ बड़ी एचवीडीसी परियोजनाएँ, जिन्हें अंततः बाईपोलर लिंक के रूप में काम करना है, को चरणों में बनाया जाता है।
  • उपयोग: पहले चरण में केवल एक पोल स्थापित किया जाता है और उसे मोनोपोलर मोड में संचालित किया जाता है। बाद में, दूसरा पोल स्थापित करके इसे पूर्ण बाईपोलर लिंक में परिवर्तित किया जाता है।

​4. मेटैलिक रिटर्न के साथ उपयोग

  • ​उन क्षेत्रों में जहाँ पृथ्वी रिटर्न (Ground Return) से मिट्टी का क्षरण (Soil Erosion), पाइपलाइनों में संक्षारण (Corrosion) या अन्य पर्यावरणीय समस्याएँ होती हैं, वहाँ मोनोपोलर लिंक को मेटैलिक रिटर्न कंडक्टर के साथ उपयोग किया जाता है। हालांकि, यह विन्यास बाईपोलर की तुलना में विश्वसनीयता में कम रहता है।

उपयोग (Applications)

​मोनोपोलर एचवीडीसी प्रणाली का उपयोग अक्सर निम्नलिखित स्थितियों में किया जाता है:

  1. सबमरीन/अंडरग्राउंड केबल: लंबी दूरी के समुद्र के नीचे केबलों (Submarine Cables) में, जहाँ दूसरा कंडक्टर स्थापित करना बहुत महंगा या कठिन होता है (उदाहरण के लिए, पनडुब्बी केबल लिंक)।
  2. कम शक्ति संचरण: अपेक्षाकृत कम मात्रा में शक्ति संचरण (Low Power Transfer) के लिए।
  3. बाईपोलर का पहला चरण: किसी भावी बाईपोलर लिंक के निर्माण के पहले चरण के रूप में।

लाभ (Advantages)

  • कम लागत: केवल एक हाई-वोल्टेज कंडक्टर की आवश्यकता के कारण यह सबसे किफायती है।
  • सरल निर्माण: लाइन का डिज़ाइन सरल होता है।
  • केबल ट्रांसमिशन में दक्षता: यह लंबी एसी लाइनों की तुलना में पनडुब्बी केबलों में तकनीकी रूप से अधिक व्यवहार्य है।

सीमाएँ/नुकसान (Limitations/Disadvantages)

  • कम विश्वसनीयता: यदि एकमात्र कंडक्टर दोषपूर्ण हो जाता है, तो पूरा लिंक बंद हो जाता है (आउटेज)।
  • अर्थ रिटर्न: अर्थ या सी रिटर्न पाथ का उपयोग करने से आस-पास के संचार प्रणालियों में हस्तक्षेप (टेलीफोन इंटरफेरेंस) और जमीन के इलेक्ट्रोड के पास भूमि अपरदन (Erosion) हो सकता है।
  • दिशात्मक प्रभाव: समुद्री जहाजों के चुंबकीय कम्पास (Magnetic Compasses) पर प्रभाव पड़ सकता है।




द्विध्रुवी एचवीडीसी (Bipolar HVDC) प्रणाली एचवीडीसी ट्रांसमिशन का सबसे सामान्य और विश्वसनीय विन्यास है। यह दो स्वतंत्र कंडक्टरों का उपयोग करता है जिनकी ध्रुवीयता (Polarity) एक-दूसरे के विपरीत होती है।

द्विध्रुवी प्रणाली का विन्यास (Configuration)

द्विध्रुवी प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • दो हाई-वोल्टेज कंडक्टर: इसमें दो पूर्ण रूप से इंसुलेटेड (insulated) कंडक्टर होते हैं।
    • ​एक कंडक्टर धनात्मक (+V_{dc}) ध्रुवीयता पर संचालित होता है।
    • ​दूसरा कंडक्टर ऋणात्मक (-V_{dc}) ध्रुवीयता पर संचालित होता है।
  • ग्राउंडेड मिड-पॉइंट (तटस्थ बिंदु): कनवर्टर स्टेशनों पर, धनात्मक और ऋणात्मक पोल को जोड़ने वाले मध्यबिंदु (Midpoint) को इलेक्ट्रोड के माध्यम से पृथ्वी से जोड़ा जाता है।
  • करंट फ्लो: सामान्य ऑपरेशन में, धनात्मक पोल में बहने वाली धारा ऋणात्मक पोल में बहने वाली धारा के बराबर और विपरीत होती है। इसलिए, पृथ्वी रिटर्न पाथ में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है (या बहुत कम प्रवाहित होती है)।

मुख्य विशेषताएँ और लाभ

द्विध्रुवी एचवीडीसी प्रणाली (Bipolar HVDC System) एचवीडीसी ट्रांसमिशन का सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला और विश्वसनीय विन्यास है। इसकी मुख्य विशेषताएँ (या लाभ) निम्नलिखित हैं:

​1. विन्यास और चालक (Configuration and Conductors) 

  • दो मुख्य कंडक्टर: इसमें दो स्वतंत्र हाई-वोल्टेज कंडक्टर होते हैं। एक कंडक्टर धनात्मक (+V_{dc}) ध्रुवीयता पर, और दूसरा कंडक्टर ऋणात्मक (-V_{dc}) ध्रुवीयता पर संचालित होता है।
  • तटस्थ भू-सम्पर्कन (Neutral Grounding): कनवर्टर स्टेशनों पर दोनों ध्रुवों के मध्यबिंदु को इलेक्ट्रोड के माध्यम से भू-सम्पर्कित (earthed) किया जाता है।
  • संतुलित धारा: सामान्य ऑपरेशन में, दोनों पोल में धाराएँ बराबर और विपरीत होती हैं, इसलिए पृथ्वी में बहने वाली शुद्ध धारा (Net current in earth) शून्य या नगण्य होती है। इससे पर्यावरण पर प्रभाव (जैसे संक्षारण/Corrosion) कम होता है।

​2. उच्च विश्वसनीयता (High Reliability) 

  • ​द्विध्रुवी प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण लाभ इसकी उच्च विश्वसनीयता है, जिसे मोनोपोलर मोड ऑपरेशन के कारण प्राप्त किया जाता है।
  • आपातकालीन संचालन: यदि एक पोल (धनात्मक या ऋणात्मक) में दोष (Fault) आता है, तो दोषपूर्ण पोल को तुरंत हटा दिया जाता है।
  • आंशिक शक्ति संचरण: शेष स्वस्थ पोल, पृथ्वी रिटर्न पाथ का उपयोग करके एक मोनोपोलर लिंक के रूप में काम करना जारी रखता है। इस तरह, प्रणाली आधी शक्ति का संचरण जारी रखती है, जिससे पूर्ण बिजली कटौती (Outage) से बचा जा सकता है।

​3. शक्ति और दक्षता (Power and Efficiency) 

  • उच्च शक्ति संचरण: चूंकि इसमें दो पोल विपरीत ध्रुवीयता पर संचालित होते हैं, यह मोनोपोलर लिंक की तुलना में दोगुनी शक्ति का संचरण कर सकता है।
  • कम इन्सुलेशन लागत: दोनों कंडक्टरों के बीच वोल्टेज अंतर (Voltage Difference) प्रत्येक कंडक्टर से पृथ्वी के वोल्टेज से दोगुना होता है, लेकिन जमीन के सापेक्ष प्रत्येक कंडक्टर का वोल्टेज मोनोपोलर के समान रहता है।

​4. उपयोग और अनुप्रयोग (Usage and Application) 

  • लंबी दूरी की ओवरहेड लाइनें: द्विध्रुवी प्रणाली लंबी दूरी के संचरण के लिए सबसे उपयुक्त है, जहाँ उच्च शक्ति और उच्च विश्वसनीयता की आवश्यकता होती है।
  • केबल/पनडुब्बी लिंक: हालांकि मोनोपोलर लिंक अधिक किफायती होते हैं, लेकिन उच्च शक्ति या अतिरिक्त विश्वसनीयता की मांग होने पर द्विध्रुवी विन्यास का उपयोग पनडुब्बी केबल लिंक में भी किया जा सकता है।

उच्च विश्वसनीयता (Key Advantage: High Reliability)

​द्विध्रुवी प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ इसकी उच्च विश्वसनीयता है, जो मोनोपोलर मोड ऑपरेशन (Monopolar Mode Operation) के कारण मिलती है:

  • आपातकालीन ऑपरेशन: यदि एक कंडक्टर (या पोल) में कोई दोष (Fault) आता है, तो दोषपूर्ण पोल को तुरंत डिस्कनेक्ट कर दिया जाता है।
  • निरंतर सेवा: शेष स्वस्थ पोल, पृथ्वी या मेटैलिक रिटर्न पाथ का उपयोग करके मोनोपोलर मोड में काम करना जारी रखता है। इस तरह, प्रणाली आधी शक्ति का संचरण जारी रखती है, जिससे पूर्ण आउटेज (पूर्णतः बंद) की स्थिति टल जाती है।

उपयोग (Applications)

  • ​यह लंबी दूरी के ओवरहेड लाइन ट्रांसमिशन के लिए सबसे पसंदीदा विन्यास है जहाँ उच्च शक्ति संचरण क्षमता और विश्वसनीयता की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष: 

द्विध्रुवी प्रणाली, अपनी उच्च संचरण क्षमता और विश्वसनीयता के कारण, दुनिया की अधिकांश बड़ी एचवीडीसी परियोजनाओं में उपयोग की जाती है।




होमोपोलर एचवीडीसी (Homopolar HVDC) प्रणाली एचवीडीसी ट्रांसमिशन का एक ऐसा विन्यास है जिसमें दो या दो से अधिक कंडक्टरों को एक ही ध्रुवीयता (Polarity) पर संचालित किया जाता है।

होमोपोलर प्रणाली का विन्यास

होमोपोलर प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • समान ध्रुवीयता के कंडक्टर: इस प्रणाली में दो या अधिक कंडक्टर होते हैं, और वे सभी एक ही ध्रुवीयता पर काम करते हैं। ऐतिहासिक रूप से, कम कोरोना हानि (Corona Loss) के कारण यह ध्रुवीयता आमतौर पर ऋणात्मक होती है।
  • समानांतर संचालन: सभी कंडक्टर विद्युत रूप से समानांतर (Parallel) में जुड़े होते हैं।
  • पृथ्वी/मेटैलिक रिटर्न: यह प्रणाली हमेशा करंट को वापस लाने के लिए पृथ्वी/समुद्र (Earth/Sea Return) या एक समर्पित धात्विक रिटर्न कंडक्टर (Metallic Return Conductor) का उपयोग करती है।

मुख्य विशेषताएँ और तुलना

होमोपोलर एचवीडीसी प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ (या मुख्य पहलू) निम्नलिखित हैं:

होमोपोलर एचवीडीसी की मुख्य विशेषताएँ

​1. समान ध्रुवीयता (Same Polarity)

  • ​इस प्रणाली में दो या दो से अधिक कंडक्टर होते हैं, और वे सभी एक ही ध्रुवीयता पर संचालित होते हैं।
  • ​परंपरागत रूप से, कोरोना हानि (Corona Losses) को कम करने के लिए यह ध्रुवीयता ऋणात्मक (Negative) रखी जाती थी।

​2. समानांतर संचालन (Parallel Operation)

  • ​सभी कंडक्टर एक दूसरे के साथ विद्युत रूप से समानांतर में जुड़े होते हैं।

​3. अनिवार्य रिटर्न पाथ (Mandatory Return Path)

  • ​करंट को वापस लाने के लिए यह हमेशा पृथ्वी (Earth) या समुद्र (Sea) या एक अलग धात्विक रिटर्न कंडक्टर (Metallic Return Conductor) पर निर्भर करता है।

​4. उच्च पृथ्वी करंट (High Earth Current) 

  • ​यह होमोपोलर प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता और सीमा है: सामान्य परिचालन के दौरान, कंडक्टरों की सभी धाराएँ एक ही दिशा में जुड़ती हैं, जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी रिटर्न पाथ में उच्च करंट लगातार प्रवाहित होता है।

​5. इन्सुलेशन और लागत (Insulation and Cost)

  • ​चूँकि सभी कंडक्टरों की ध्रुवीयता समान होती है, कंडक्टरों के बीच का वोल्टेज अंतर कम होता है, जिससे लाइन के इन्सुलेशन की लागत कम हो सकती है।

​6. विश्वसनीयता (Reliability)

  • ​इसकी विश्वसनीयता द्विध्रुवी (Bipolar) प्रणाली से कम होती है, क्योंकि यह हमेशा पृथ्वी रिटर्न पर निर्भर करता है। द्विध्रुवी प्रणाली केवल आपात स्थिति में पृथ्वी रिटर्न का उपयोग करती है।

मुख्य सीमा (Major Limitation)

  • ​पृथ्वी में लगातार बहने वाले उच्च करंट के कारण, यह पर्यावरण (Environmental) और संचार हस्तक्षेप (Communication Interference) की गंभीर समस्याएँ पैदा करता है। यही मुख्य कारण है कि आधुनिक ट्रांसमिशन प्रणालियों में होमोपोलर विन्यास का उपयोग लगभग बंद कर दिया गया है, और द्विध्रुवी विन्यास को प्राथमिकता दी जाती है।

उपयोग और सीमाएँ

उपयोग

  • ​होमोपोलर प्रणाली का उपयोग आजकल बहुत कम किया जाता है। इसे कुछ शुरुआती एचवीडीसी परियोजनाओं में इस्तेमाल किया गया था, लेकिन इसकी प्रमुख सीमाओं के कारण इसे व्यापक रूप से नहीं अपनाया गया।

सीमाएँ (नुकसान)

  1. उच्च पृथ्वी रिटर्न करंट: सामान्य परिचालन के दौरान पृथ्वी या समुद्र में बड़ी मात्रा में करंट प्रवाहित होता रहता है। यह मुख्य नुकसान है।
  2. पर्यावरणीय प्रभाव: पृथ्वी करंट से संचार प्रणालियों में हस्तक्षेप (Interference), भूमिगत धातु संरचनाओं में संक्षारण (Corrosion), और जहाजों के चुंबकीय कम्पास (Magnetic Compasses) पर प्रभाव जैसे पर्यावरणीय मुद्दे उत्पन्न होते हैं।
  3. ऑपरेशनल जटिलता: बाइपोलर लिंक की तुलना में इसे नियंत्रित करना और सुरक्षित रखना अधिक कठिन हो सकता है।

संक्षेप में, 

अपनी उच्च विश्वसनीयता और नगण्य अर्थ करंट के कारण, द्विध्रुवी प्रणाली वर्तमान एचवीडीसी ट्रांसमिशन में सबसे पसंदीदा विकल्प है, जबकि होमोपोलर प्रणाली अपनी सीमाओं के कारण लगभग अप्रचलित (obsolete) हो चुकी है।




एचवीडीसी (HVDC) प्रणाली में सबसे आम प्रकार का वर्गीकरण उसके सर्किट विन्यास के आधार पर होता है, और इसमें सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला विन्यास है:

1. द्विध्रुवी एचवीडीसी प्रणाली (Bipolar HVDC System) 

​यह दुनिया भर में लंबी दूरी के भूमिगत और ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनों के लिए सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला और पसंदीदा विन्यास है, जिसके मुख्य कारण हैं:

  • उच्च विश्वसनीयता: यदि एक पोल विफल हो जाता है, तो दूसरा पोल अपनी आधी शक्ति का संचरण मोनोपोलर मोड में पृथ्वी रिटर्न के माध्यम से जारी रख सकता है।
  • नगण्य अर्थ करंट: सामान्य संचालन के दौरान, धनात्मक और ऋणात्मक पोल में धाराएँ एक-दूसरे को संतुलित कर देती हैं, जिससे पृथ्वी में कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है, और पर्यावरणीय समस्याओं से बचा जा सकता है।

2. लाइन-कम्यूटेटेड कनवर्टर (LCC) आधारित प्रणाली

कनवर्टर तकनीक के आधार पर, सबसे आम प्रकार है:

  • लाइन-कम्यूटेटेड कनवर्टर (LCC): यह सबसे पुरानी, ​​सबसे स्थापित और उच्चतम शक्ति रेटिंग वाली तकनीक है, जो थायरिस्टरों का उपयोग करती है। अधिकांश क्लासिक और अल्ट्रा-हाई वोल्टेज डीसी (UHVDC) लिंक इसी तकनीक पर आधारित हैं।

(हालांकि, वोल्टेज सोर्स कनवर्टर (VSC) आधारित प्रणाली अब नई परियोजनाओं, विशेषकर केबल और मल्टी-टर्मिनल अनुप्रयोगों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है, लेकिन LCC अभी भी समग्र रूप से व्यापक है।)




बैक टू बैक एचवीडीसी प्रणाली (Back-to-Back HVDC System) एक विशेष प्रकार का एचवीडीसी विन्यास है जिसका उपयोग मुख्य रूप से दो अतुल्यकालिक एसी ग्रिडों (asynchronous AC grids) को आपस में जोड़ने के लिए किया जाता है।

बैक टू बैक प्रणाली क्या है?

​इस प्रणाली में, रेक्टिफायर (AC को DC में बदलने वाला) और इन्वर्टर (DC को AC में बदलने वाला) स्टेशन भौगोलिक रूप से एक ही स्थान पर, अक्सर एक ही इमारत या स्विचयार्ड के भीतर, स्थापित होते हैं।

  • ​इन दोनों कनवर्टर स्टेशनों के बीच कोई लंबी डीसी ट्रांसमिशन लाइन नहीं होती है।
  • ​डीसी लिंक की लंबाई बहुत कम होती है—केवल कुछ मीटर।
  • ​यह प्रणाली एक एसी नेटवर्क से बिजली लेती है, उसे डीसी में बदलती है, और फिर तुरंत उसे दूसरे एसी नेटवर्क में वापस एसी में बदल देती है।

मुख्य विशेषताएँ

  1. कोई डीसी लाइन नहीं: लंबी दूरी की ट्रांसमिशन लाइन की अनुपस्थिति इस प्रणाली की परिभाषित विशेषता है।
  2. अतुल्यकालिक इंटरकनेक्शन: यह विभिन्न आवृत्तियों (जैसे 50 Hz और 60 Hz) या अलग-अलग नियंत्रण वाले अतुल्यकालिक एसी ग्रिडों को जोड़ने का मुख्य उद्देश्य पूरा करता है।
  3. ग्रिड स्थिरता: यह दो ग्रिडों के बीच बिजली के प्रवाह को नियंत्रित करने की अनुमति देकर ग्रिड स्थिरता (stable interconnection) प्रदान करता है, जिससे एक ग्रिड में होने वाली गड़बड़ी दूसरे ग्रिड को प्रभावित नहीं करती है।
  4. डीसी वोल्टेज स्तर: लंबी डीसी लाइन की आवश्यकता न होने के कारण, डीसी वोल्टेज का स्तर आमतौर पर पॉइंट-टू-पॉइंट एचवीडीसी लिंक की तुलना में कम रखा जाता है (जैसे 150 kV या उससे कम)।
  5. शॉर्ट सर्किट करंट नियंत्रण: यह एक मजबूत एसी नेटवर्क को विभाजित (split up) करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है ताकि किसी भी खंड में शॉर्ट सर्किट करंट (short circuit current) कम हो जाए।

अनुप्रयोग (Applications)

  • अलग आवृत्ति वाले ग्रिड को जोड़ना: सबसे आम उपयोग, जैसे जापान में 50 Hz और 60 Hz के ग्रिड को जोड़ना।
  • अतुल्यकालिक क्षेत्र को जोड़ना: यह दो पड़ोस के बिजली प्रणालियों को जोड़ता है जो तुल्यकालिक रूप से (synchronously) संचालित नहीं होते हैं।
  • अंतर-क्षेत्रीय पावर एक्सचेंज: दो अलग-अलग नियंत्रण क्षेत्रों के बीच नियंत्रित बिजली विनिमय को सक्षम करना।

​बैक टू बैक एचवीडीसी का उपयोग स्थिर अंतःसंबधन देने के लिए किया जाता है।



बिंदु से बिंदु एचवीडीसी प्रणाली (Point-to-Point HVDC System) एचवीडीसी ट्रांसमिशन का सबसे पारंपरिक और सामान्य विन्यास है। यह लंबी दूरी पर एक विशिष्ट भेजने वाले बिंदु (Sending End) से एक विशिष्ट प्राप्त करने वाले बिंदु (Receiving End) तक बड़ी मात्रा में बिजली पहुँचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

मुख्य विशेषताएँ (Key Characteristics) 

​1. संरचना

  • दो टर्मिनल (Two Terminals): इस प्रणाली में केवल दो कनवर्टर स्टेशन होते हैं।
    • रेक्टिफायर स्टेशन (Rectifier Station): भेजने वाले सिरे पर, यह एसी (AC) बिजली को डीसी (DC) में परिवर्तित करता है।
    • इन्वर्टर स्टेशन (Inverter Station): प्राप्त करने वाले सिरे पर, यह डीसी (DC) बिजली को वापस एसी (AC) में परिवर्तित करता है।
  • ट्रांसमिशन लाइन: ये दोनों स्टेशन एक लंबी डीसी ट्रांसमिशन लाइन (ओवरहेड लाइन, भूमिगत केबल, या पनडुब्बी केबल) से जुड़े होते हैं।

​2. प्राथमिक उद्देश्य

  • ​इसका प्राथमिक उद्देश्य एक विशिष्ट जनरेशन साइट से एक विशिष्ट लोड सेंटर तक लंबी दूरी पर थोक बिजली (Bulk Power) का संचरण करना है।
  • ​यह उन स्थानों के लिए आदर्श है जहाँ जनरेशन और खपत के बीच की दूरी बहुत अधिक होती है (आमतौर पर 500-1000 किलोमीटर से अधिक)।

​3. विन्यास के प्रकार

​प्वाइंट-टू-प्वाइंट एचवीडीसी प्रणाली को अक्सर निम्नलिखित विन्यासों में से किसी एक के रूप में लागू किया जाता है:

  • मोनोपोलर (Monopolar): एक कंडक्टर और पृथ्वी रिटर्न पाथ का उपयोग।
  • द्विध्रुवी (Bipolar): दो कंडक्टर (एक धनात्मक, एक ऋणात्मक) का उपयोग (यह सबसे आम है)।

अनुप्रयोग (Applications) 

​बिंदु से बिंदु प्रणाली का उपयोग निम्नलिखित परिदृश्यों में प्रभावी ढंग से किया जाता है:

  1. दूरस्थ बिजली उत्पादन को जोड़ना: दूर स्थित जलविद्युत संयंत्रों या कोयला आधारित स्टेशनों से शहरी केंद्रों तक बिजली पहुँचाना।
  2. पनडुब्बी केबल लिंक: समुद्र के नीचे लंबी दूरी पर दो तटों या देशों के बीच बिजली पहुंचाना (जैसे कि मोनोपोलर विन्यास में)।
  3. ग्रिडों को जोड़ना: दो अतुल्यकालिक एसी ग्रिडों को लंबी दूरी पर जोड़ना।

संक्षेप में, 

बिंदु से बिंदु एचवीडीसी प्रणाली लंबी दूरी पर कुशलतापूर्वक और नियंत्रित तरीके से बड़ी मात्रा में बिजली संचरण करने का मुख्य आधार है।




मल्टीटर्मिनल एचवीडीसी प्रणाली (Multi-Terminal HVDC System - MTDC) एचवीडीसी ट्रांसमिशन का वह विन्यास है जिसमें दो से अधिक कनवर्टर स्टेशन (टर्मिनल) एक ही डीसी नेटवर्क से जुड़े होते हैं।

​यह द्विध्रुवी या मोनोपोलर (जो केवल दो टर्मिनल होते हैं) का विस्तार है और एक डीसी ग्रिड (DC Grid) के निर्माण की दिशा में एक कदम है।

MTDC की मुख्य विशेषताएँ

  • तीन या अधिक टर्मिनल: इसमें एक साथ कई रेक्टिफायर (जो बिजली भेजते हैं) और इन्वर्टर (जो बिजली प्राप्त करते हैं) स्टेशन होते हैं।
  • ग्रिड लचीलापन (Flexibility): यह प्रणाली एसी ग्रिड (AC grid) की तरह कई बिंदुओं से बिजली के प्रवाह को नियंत्रित करने की अनुमति देती है, जिससे ग्रिड का लचीलापन और विश्वसनीयता बढ़ती है।
  • उच्च विश्वसनीयता: यदि किसी एक जनरेशन स्टेशन में अप्रत्याशित विफलता (forced outage) होती है, तो सिस्टम अन्य कनवर्टर स्टेशनों के माध्यम से बिजली की आपूर्ति को पुनर्व्यवस्थित (relocate) कर सकता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण: यह पवन फ़ार्म (Wind Farms) जैसे कई दूरस्थ और वितरित नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एक साथ एसी ग्रिड से जोड़ने के लिए आकर्षक है (विशेषकर अपतटीय पवन फ़ार्म)।
  • जटिल नियंत्रण और सुरक्षा: एसी ग्रिड की तरह, एमटीडीसी सिस्टम में दोष (Fault) का पता लगाने और उसे दूर करने के लिए जटिल सुरक्षा और नियंत्रण रणनीतियों की आवश्यकता होती है, क्योंकि डीसी सर्किट ब्रेकर (DC Breakers) की तकनीक एसी ब्रेकर जितनी सरल नहीं है।

MTDC के प्रकार

MTDC प्रणालियों को मोटे तौर पर दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

​1. सीरीज MTDC प्रणाली (Series MTDC System)

  • विन्यास: सभी कनवर्टर स्टेशन सीरीज में डीसी लाइन के साथ जुड़े होते हैं।
  • नियंत्रण: एक कनवर्टर स्टेशन डीसी करंट को नियंत्रित करता है, जबकि अन्य स्टेशन पावर या वोल्टेज को नियंत्रित करते हैं।
  • लाभ: यह एक मौजूदा टू-टर्मिनल (two-terminal) सिस्टम से अपेक्षाकृत आसानी से बनाया जा सकता है।

​2. पैरेलल MTDC प्रणाली (Parallel MTDC System)

  • विन्यास: सभी कनवर्टर स्टेशन पैरेलल में डीसी लाइन के साथ जुड़े होते हैं।
  • नियंत्रण: यह एसी सिस्टम की तरह निरंतर डीसी वोल्टेज के सिद्धांत पर काम करता है।
  • उप-प्रकार: इसे आगे रेडियल (Radial) या मेश (Mesh - जाल) विन्यास में विभाजित किया जा सकता है। मेश विन्यास सबसे अधिक विश्वसनीय होता है।
  • लाभ: यह बिजली की आवश्यकता बढ़ने पर कनवर्टर स्टेशनों में अतिरिक्त मॉड्यूल जोड़कर चरणबद्ध विकास (staged development) का लाभ देता है।




एचवीडीसी (HVDC) प्रणाली में संचरित शक्ति (P) का मूल सूत्र (Basic Formula) डायरेक्ट करंट (DC) सर्किट के सामान्य शक्ति सूत्र पर आधारित है।

एचवीडीसी में संचरित शक्ति का सूत्र

​एचवीडीसी ट्रांसमिशन लाइन द्वारा संचरित औसत सक्रिय शक्ति (P_{dc}) को निम्न सूत्र द्वारा दर्शाया जाता है:

{P_{dc}} = {U_{d}}×{I_{d}}

जहाँ:

  • ​{P_{dc}} (Active Power): औसत सक्रिय शक्ति (Average Active Power), जिसे वाट (Watts) या मेगावाट (Megawatts) में मापा जाता है।
  • ​{U_{d}} (DC Voltage): एचवीडीसी लिंक का डायरेक्ट करंट वोल्टेज (DC Voltage), जिसे वोल्ट (Volts) या किलोवोल्ट (Kilovolts) में मापा जाता है।
  • ​{I_{d}} (DC Current): एचवीडीसी लिंक में बहने वाला डायरेक्ट करंट (DC Current), जिसे एम्पीयर (Amperes) या किलोएम्पीयर (Kiloamperes) में मापा जाता है।

यह सूत्र DC सर्किट में शक्ति के मूल नियम ({P = V × I}) का सीधा अनुप्रयोग है।



एचवीडीसी (HVDC) प्रणालियों में वोल्टेज स्तर बहुत उच्च होते हैं, क्योंकि उच्च वोल्टेज का उपयोग लंबी दूरी पर बिजली संचरण में होने वाली ऊर्जा हानि ({P_{loss} I^2R}) को कम करने के लिए किया जाता है।

एचवीडीसी में सामान्य वोल्टेज स्तर

​HVDC ट्रांसमिशन में आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ प्रमुख वोल्टेज स्तर (बाइपोलर कॉन्फ़िगरेशन के लिए \pm के साथ) इस प्रकार हैं:

भारत में प्रमुख HVDC वोल्टेज स्तर

​भारत में पावर ग्रिड (Power Grid Corporation of India Limited) की ट्रांसमिशन लाइनों में उपयोग किए जाने वाले मुख्य HVDC वोल्टेज स्तर हैं:

  • {pm 500 { kV}}
  • {pm 800 { kV}} (वर्तमान में भारत में उच्चतम DC वोल्टेज)

वोल्टेज का चयन

​HVDC ट्रांसमिशन के लिए वोल्टेज स्तर का चयन मुख्य रूप से निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है:

  1. संचरित की जाने वाली शक्ति की मात्रा (Magnitude of Power to be Transmitted)।
  2. संचरण की दूरी (Distance of Transmission) — लंबी दूरी के लिए उच्च वोल्टेज आवश्यक है।
  3. अर्थव्यवस्था (Economy) — उच्च वोल्टेज से हानि कम होती है, लेकिन उपकरण की लागत बढ़ जाती है।
  4. प्रौद्योगिकी का प्रकार (Type of Technology) — लाइन कम्यूटेटेड कन्वर्टर (LCC) पारंपरिक रूप से उच्च वोल्टेज पर हावी रहे हैं, जबकि वोल्टेज सोर्स कन्वर्टर (VSC) अब pm 640 { kV} तक विकसित हो रहे हैं।



एचवीडीसी (HVDC) ट्रांसमिशन लाइनों में कोरोना प्रभाव एक महत्वपूर्ण घटना है, जो उच्च वोल्टेज प्रत्यावर्ती धारा (HVAC) लाइनों की तरह ही होती है, लेकिन इसकी प्रकृति और इसके परिणाम थोड़े अलग होते हैं।

कोरोना प्रभाव क्या है?

​जब एक ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइन कंडक्टर की सतह के आसपास का विद्युत क्षेत्र (Electric Field) हवा की ब्रेकडाउन शक्ति (लगभग 30 { kV/cm}) से अधिक हो जाता है, तो आस-पास की हवा आयनित (Ionized) हो जाती है। हवा के इस आंशिक निर्वहन (Partial Discharge) को ही कोरोना प्रभाव या कोरोना डिस्चार्ज कहते हैं।

HVDC में कोरोना के मुख्य परिणाम

HVDC सिस्टम में कोरोना प्रभाव के मुख्य परिणाम और नुकसान (Disadvantages) ये हैं:

  1. शक्ति हानि (Corona Loss - CL):
    • ​कोरोना डिस्चार्ज के दौरान, विद्युत ऊर्जा का एक हिस्सा ऊष्मा, प्रकाश और ध्वनि के रूप में वायुमंडल में नष्ट हो जाता है।
    • ​HVDC ट्रांसमिशन में, समान शक्ति संचरण के लिए, HVAC की तुलना में कोरोना हानि आम तौर पर कम होती है।
    • ​HVDC में, हानि मौसम की स्थिति (जैसे बारिश और कोहरा) से बहुत प्रभावित होती है। बारिश में DC कोरोना हानि अक्सर AC कोरोना हानि से कम होती है।
  2. श्रव्य शोर (Audible Noise - AN):
    • ​कोरोना डिस्चार्ज एक भिनभिनाने या चटकने (Hissing or Crackling) वाली ध्वनि पैदा करता है, जो लाइन के आस-पास के निवासियों के लिए परेशानी का कारण बन सकता है।
    • ​DC लाइनों में श्रव्य शोर का स्तर आमतौर पर AC लाइनों की तुलना में कम होता है, लेकिन यह मौसम की स्थिति और कंडक्टर की सतह की स्थिति पर निर्भर करता है।
  3. रेडियो हस्तक्षेप (Radio Interference - RI):
    • ​आयनित हवा के कण विद्युत चुम्बकीय शोर (Electromagnetic Noise) उत्पन्न करते हैं, जो आस-पास के रेडियो, टेलीविजन और संचार प्रणालियों को बाधित कर सकता है।
    • ​HVDC कोरोना डिस्चार्ज में उत्पन्न होने वाले पल्स (Pulses), AC लाइनों की तुलना में अलग आवृत्ति रेंज में रेडियो हस्तक्षेप उत्पन्न करते हैं, जिसे नियंत्रण करने के लिए विशेष डिज़ाइन की आवश्यकता होती है।
  4. ओजोन निर्माण (Ozone Formation):
    • ​आयनन प्रक्रिया के कारण ओजोन गैस ({O}_3) का निर्माण होता है, जो कंडक्टर और लाइन के पास के अन्य उपकरणों को खराब कर सकता है।

HVDC में कोरोना को कम करने के उपाय

​कोरोना प्रभाव को कम करने के लिए, खासकर UHVDC (pm 800 { kV} और pm 1100 { kV}) लाइनों में, निम्नलिखित उपाय किए जाते हैं:

  • बंडल्ड कंडक्टर (Bundled Conductors) का उपयोग: कंडक्टरों के एक समूह का उपयोग किया जाता है, जिससे प्रभावी कंडक्टर व्यास (Effective Conductor Diameter) बढ़ जाता है और सतह पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता (Electric Field Intensity) कम हो जाती है।
  • कंडक्टर का बड़ा आकार: बड़े व्यास वाले कंडक्टरों का उपयोग किया जाता है।
  • कोरोना रिंग्स: कन्वर्टर स्टेशन जैसे उच्च तनाव वाले बिंदुओं पर विद्युत क्षेत्र को सुचारु (Smooth) बनाने के लिए कोरोना रिंग्स का उपयोग किया जाता है।
  • कंडक्टरों के बीच अधिक दूरी (Larger Spacing): कंडक्टरों के बीच और कंडक्टर तथा जमीन के बीच की दूरी बढ़ाई जाती है।



एचवीडीसी (HVDC) सिस्टम में, ट्रांसमिशन लाइन स्वयं DC (दिष्ट धारा) का उपयोग करती है, इसलिए ट्रांसमिशन लाइन पर कोई पावर फैक्टर नहीं होता है। पावर फैक्टर ({Cos}phi) केवल AC (प्रत्यावर्ती धारा) सिस्टम में परिभाषित होता है, जहाँ वोल्टेज और करंट के बीच फेज अंतर होता है।

​हालांकि, HVDC लिंक के कनवर्टर स्टेशनों पर, AC पावर को DC में बदलने (रेक्टिफायर) और DC को AC में बदलने (इनवर्टर) की प्रक्रिया में पावर फैक्टर एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन जाता है।

​1. लाइन-कम्यूटेटेड कनवर्टर (LCC) में पावर फैक्टर

​पारंपरिक LCC-आधारित HVDC सिस्टम, जो SCR (सिलिकॉन कंट्रोल्ड रेक्टिफायर/थाइरिस्टर) का उपयोग करते हैं, AC ग्रिड के साथ प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) का आदान-प्रदान करते हैं, जिससे पावर फैक्टर की समस्या उत्पन्न होती है।

  • पावर फैक्टर: LCC कनवर्टर स्वाभाविक रूप से लैगिंग पावर फैक्टर पर काम करते हैं। वे AC सिस्टम से प्रतिक्रियाशील शक्ति खींचते हैं (यानी, रिएक्टिव पावर की मांग करते हैं)।
  • कारण: यह दो मुख्य कारणों से होता है:
    1. फेज कंट्रोल (Phase Control): थाइरिस्टर के ट्रिगरिंग (Firing) में देरी (alpha कोण) के कारण एक विस्थापन पावर फैक्टर (Displacement Power Factor) बनता है।
    2. कम्यूटेशन (Commutation): करंट को एक थाइरिस्टर से दूसरे में ट्रांसफर करने में लगने वाले समय (ओवरलैप कोण ) के कारण भी यह प्रतिक्रियाशील शक्ति खींचते हैं।
  • क्षतिपूर्ति (Compensation): इस प्रतिक्रियाशील शक्ति की आवश्यकता को पूरा करने के लिए, LCC स्टेशनों पर आमतौर पर बड़े कैपेसिटर बैंक और AC हार्मोनिक फिल्टर लगाए जाते हैं।

​2. वोल्टेज सोर्स कनवर्टर (VSC) में पावर फैक्टर

​आधुनिक VSC-आधारित HVDC सिस्टम, जो IGBT (इंसुलेटेड गेट बाइपोलर ट्रांजिस्टर) का उपयोग करते हैं, इस समस्या को प्रभावी ढंग से हल करते हैं।

  • पावर फैक्टर: VSC कनवर्टर में सक्रिय शक्ति (Active Power) और प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) को स्वतंत्र रूप से नियंत्रित करने की अंतर्निहित क्षमता होती है।
  • परिणाम: VSC-HVDC सिस्टम को यूनिटी पावर फैक्टर (Unity Power Factor = 1) पर संचालित किया जा सकता है या आवश्यकतानुसार AC ग्रिड को प्रतिक्रियाशील शक्ति सप्लाई या अवशोषित करने के लिए नियंत्रित किया जा सकता है।
  • लाभ: इस कारण VSC स्टेशनों को LCC की तुलना में कम या छोटे AC फिल्टर और कैपेसिटर बैंकों की आवश्यकता होती है।

निष्कर्ष

​HVDC ट्रांसमिशन लाइन का पावर फैक्टर अपरिभाषित (Not Applicable) होता है, जबकि AC ग्रिड के साथ इंटरफेस करने वाले कनवर्टर स्टेशन पर पावर फैक्टर 1 (VSC के लिए आदर्श) से कम होता है, खासकर पारंपरिक LCC तकनीक में।



डीसी (DC) ट्रांसमिशन लाइन में प्रतिक्रियाशील शक्ति क्षतिपूर्ति (Reactive Power Compensation) की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) केवल प्रत्यावर्ती धारा (AC) सर्किट की विशेषता है।

इसकी आवश्यकता न होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

  1. आवृत्ति की अनुपस्थिति (Absence of Frequency):
    • ​प्रतिक्रियाशील शक्ति वह शक्ति है जो सर्किट के प्रेरक (Inductor) और संधारित्र (Capacitor) घटकों के चुंबकीय और विद्युत क्षेत्रों में संग्रहीत और वापस स्रोत को दी जाती है।
    • ​यह प्रक्रिया तभी संभव है जब वोल्टेज और करंट की दिशा और परिमाण समय के साथ बदलते हों, यानी जब आवृत्ति (Frequency) मौजूद हो।
    • DC (दिष्ट धारा) में, आवृत्ति शून्य ({0 Hz}) होती है। वोल्टेज और करंट स्थिर रहते हैं, इसलिए ऊर्जा का कोई चक्रीय भंडारण या वापसी नहीं होती है।
  2. प्रेरक और धारिता का प्रभाव (Effect of Inductance and Capacitance):
    • ​AC सर्किट में, ट्रांसमिशन लाइन की प्रेरकत्व ({L}) और धारिता ({C}) प्रतिक्रियाशील शक्ति का उपभोग और उत्पादन करती हैं, जिसके कारण लंबी AC लाइनों में वोल्टेज प्रोफाइल बनाए रखने के लिए क्षतिपूर्ति की आवश्यकता होती है।
    • DC सर्किट में:
      • प्रेरक ({L}) केवल स्थिर अवस्था (Steady State) में एक साधारण शॉर्ट सर्किट की तरह व्यवहार करता है।
      • संधारित्र ({C}) स्थिर अवस्था में ओपन सर्किट की तरह व्यवहार करता है।
    • ​चूंकि प्रतिक्रियाशील शक्ति के लिए जिम्मेदार मुख्य पैरामीटर (प्रेरकत्व और धारिता) DC में कोई गतिशील भूमिका नहीं निभाते हैं, इसलिए लाइन स्वयं प्रतिक्रियाशील शक्ति को न तो उपभोग करती है और न ही उत्पन्न करती है।

संक्षेप में: 

प्रतिक्रियाशील शक्ति का अस्तित्व फेज अंतर पर निर्भर करता है, और DC में वोल्टेज और करंट हमेशा एक ही फेज में होते हैं (पावर फैक्टर हमेशा {1} होता है)।

हालाँकि, 

ध्यान दें कि HVDC सिस्टम के कनवर्टर स्टेशनों को, AC ग्रिड से इंटरफेस करने के लिए, प्रतिक्रियाशील शक्ति की आवश्यकता हो सकती है (विशेष रूप से LCC-आधारित प्रणालियों में), लेकिन यह आवश्यकता DC लाइन से संबंधित नहीं होती है।



एचवीडीसी (HVDC) ट्रांसमिशन सिस्टम के प्रमुख अनुप्रयोग (Major Applications) निम्नलिखित हैं, जहाँ यह पारंपरिक एसी (AC) ट्रांसमिशन की तुलना में तकनीकी और आर्थिक लाभ प्रदान करता है:

​1. लंबी दूरी का थोक शक्ति संचरण (Long-Distance Bulk Power Transmission)

  • दक्षता: लंबी दूरी (आमतौर पर 600 किमी से अधिक) के लिए, HVDC में {I}^2{R} और कोरोना नुकसान (Corona Losses) {AC} की तुलना में काफी कम होते हैं।
  • अर्थव्यवस्था: लाइन की लागत कम होती है क्योंकि प्रति सर्किट कम कंडक्टर और कम इन्सुलेशन की आवश्यकता होती है। यह {AC} लाइनों में होने वाले प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) से जुड़े नुकसान और क्षतिपूर्ति की आवश्यकता को भी समाप्त करता है।
  • उदाहरण: दूर स्थित जलविद्युत संयंत्रों या नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे रेगिस्तानी सौर या दूरस्थ पवन फार्म) से बड़े लोड केंद्रों तक बिजली पहुँचाना।

​2. केबल ट्रांसमिशन (Cable Transmission)

  • समुद्र के नीचे/पानी के नीचे की क्रॉसिंग (Submarine/Water Crossings): यह HVDC का सबसे महत्वपूर्ण अनुप्रयोग है।
    • ​{AC} सबमरीन केबल में, केबल की उच्च धारिता (Capacitance) के कारण लंबी दूरी पर बहुत अधिक प्रतिक्रियाशील शक्ति पैदा होती है, जो सक्रिय शक्ति ({P}) के संचरण को सीमित कर देती है।
    • HVDC केबल में कोई धारिता चार्जिंग करंट नहीं होता है, जिससे यह लंबी दूरी की अंडरसीट (Undersea) क्रॉसिंग (जैसे एक देश से दूसरे देश) के लिए एकमात्र व्यावहारिक विकल्प बन जाता है।
  • भूमिगत केबल (Underground Cables): सीमित जगह वाले शहरी क्षेत्रों में लंबी भूमिगत {DC} केबलों का उपयोग किया जाता है, क्योंकि {AC} भूमिगत केबलों की तुलना में इनमें इन्सुलेशन पर कम विद्युत्स्थैतिक तनाव (Dielectric Stress) होता है।

​3. अतुल्यकालिक इंटरकनेक्शन (Asynchronous Interconnection - Back-to-Back)

  • अतुल्यकालिक ग्रिड को जोड़ना: {HVDC} एकमात्र ऐसी तकनीक है जो दो {AC} ग्रिडों को आपस में जोड़ सकती है जो सिंक्रोनाइज़ नहीं हैं (अर्थात, जिनकी आवृत्ति, फेज़ या नियंत्रण प्रणाली अलग-अलग हैं)।
  • उपयोग: यह एक ही देश के विभिन्न क्षेत्रीय ग्रिडों या दो अलग-अलग देशों के ग्रिडों को जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • पावर फ्लो कंट्रोल: {HVDC} कनवर्टर, दो ग्रिडों के बीच बिजली के प्रवाह की दिशा और मात्रा को सटीक रूप से नियंत्रित करने की अनुमति देते हैं, जो ग्रिड स्थिरता को बढ़ाता है।

​4. ग्रिड को मजबूत करना और स्थिरता (Grid Reinforcement and Stability)

  • ग्रिड स्थिरता (Grid Stability): {HVDC} लिंक, {AC} ग्रिड में क्षणिक गड़बड़ी (Transient Disturbances) को अवशोषित करके और ऑसिलेशन को कम करके ग्रिड स्थिरता में सुधार कर सकता है।
  • कॉरिडोर का उपयोग (Corridor Utilization): मौजूदा {AC} कॉरिडोर में {DC} लाइन जोड़कर बिना नए राइट-ऑफ-वे (Right-of-Way) की आवश्यकता के ट्रांसमिशन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।



भारत, अपने विशाल क्षेत्रीय बिजली ग्रिड और लंबी दूरी के थोक बिजली संचरण की आवश्यकता के कारण, एचवीडीसी (HVDC) तकनीक का एक प्रमुख उपयोगकर्ता रहा है। देश में कई महत्वपूर्ण एचवीडीसी परियोजनाएं हैं जो क्षेत्रीय ग्रिडों को जोड़ने और दूर-दराज के स्थानों से बिजली को लोड केंद्रों तक पहुँचाने का काम करती हैं।

भारत की प्रमुख एचवीडीसी परियोजनाएं इस प्रकार हैं:

परिचालन एचवीडीसी लिंक्स (Operational HVDC Links)

​भारत में मुख्य रूप से दो प्रकार की एचवीडीसी परियोजनाएं कार्यरत हैं: बाइपोल लिंक्स (लंबी दूरी की लाइनें) और बैक-टू-बैक लिंक्स (अतुल्यकालिक ग्रिडों को जोड़ने के लिए)।

​1. अल्ट्रा-हाई वोल्टेज डीसी (UHVDC) लिंक्स (pm 800{ kV})

​ये भारत की सबसे बड़ी और सबसे लंबी ट्रांसमिशन लाइनें हैं, जिनका उपयोग एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भारी मात्रा में बिजली स्थानांतरित करने के लिए किया जाता है:

2. हाई वोल्टेज डीसी (HVDC) लिंक्स (pm 500{ kV} और pm 400{ kV})

​ये पुरानी लेकिन महत्वपूर्ण लंबी दूरी की परियोजनाएं हैं:

3. बैक-टू-बैक (Back-to-Back) लिंक्स

​ये तुल्यकालिक (Synchronous) ग्रिडों को आपस में जोड़ने के लिए उपयोग किए जाते थे (भारत में {AC} ग्रिडों के एकीकरण से पहले):

  • विंध्याचल: भारत का पहला वाणिज्यिक बैक-टू-बैक {HVDC} स्टेशन, जो पश्चिमी और उत्तरी ग्रिडों को जोड़ता है। ({2x250 MW})
  • चंद्रपुर: पश्चिमी और दक्षिणी ग्रिडों को जोड़ता है। ({2x500 MW})
  • सासाराम: पूर्वी और उत्तरी ग्रिडों को जोड़ता है। ({1x500 MW})

आगामी/विकासशील एचवीडीसी परियोजनाएं (Upcoming/Developing HVDC Projects)

​भारत नवीकरणीय ऊर्जा निकासी (Renewable Energy Evacuation) के लिए कई नई {HVDC} परियोजनाओं पर काम कर रहा है, खासकर राजस्थान और गुजरात के सौर ऊर्जा क्षेत्रों से:

  • खावड़ा-नागपुर ({KPS2}-नागपुर): यह pm 800{ kV} की 6000{ MW} क्षमता वाली एक प्रमुख परियोजना है, जो गुजरात में खावड़ा के बड़े नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को महाराष्ट्र के नागपुर से जोड़ेगी।
  • लेह-कैथल ({Leh-Kaithal}): लद्दाख क्षेत्र से 13{ GW} नवीकरणीय ऊर्जा निकालने के लिए pm 350{ kV} की 5000{ MW} क्षमता वाली एक महत्वपूर्ण परियोजना।
  • भादला-फतेहपुर ({Bhadla-Fatehpur}): राजस्थान के भादला नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र से उत्तर प्रदेश के फतेहपुर तक 6000{ MW} की बिजली पहुँचाने के लिए pm 800{ kV} लिंक।



एचवीडीसी (HVDC) संचरण प्रणाली के विशिष्ट नुकसान और सीमाएं, इसके टर्मिनल उपकरणों की जटिलता और उच्च लागत से जुड़ी हैं। ये नुकसान ही {AC} संचरण की तुलना में इसकी प्रयोज्यता को सीमित करते हैं।

एचवीडीसी के प्रमुख विशिष्ट नुकसान निम्नलिखित हैं:

​1. कन्वर्टर स्टेशनों की उच्च लागत और जटिलता (High Cost and Complexity of Converter Stations)

​यह {HVDC} प्रणाली का सबसे बड़ा नुकसान है।

  • उपकरण की लागत: {HVDC} में {AC} को {DC} (रेक्टिफायर) और फिर {DC} को वापस {AC} (इन्वर्टर) में बदलने के लिए दोनों सिरों पर परिवर्तक स्टेशनों ({Converter Stations}) की आवश्यकता होती है। ये कन्वर्टर ({Thyristor} वाल्व या {IGBT}) और संबंधित उपकरण बहुत महंगे होते हैं।
  • अतिरिक्त उपकरण: इन स्टेशनों को हार्मोनिक्स (Harmonics) और प्रतिक्रियाशील शक्ति ({Reactive Power}) की खपत को नियंत्रित करने के लिए महंगे फिल्टर ({Filters}) और क्षतिपूर्ति इकाइयों ({Compensation Units}) की आवश्यकता होती है।
  • अल्प दूरी के लिए अलाभकारी: कन्वर्टर स्टेशनों की उच्च लागत के कारण, {HVDC} केवल एक निश्चित ब्रेक-ईवन दूरी (Break-Even Distance) से अधिक लंबी दूरी के संचरण के लिए ही आर्थिक रूप से व्यवहार्य होता है (आमतौर पर शिरोपरि लाइनों के लिए 600{ km} से अधिक)।

​2. डीसी सर्किट ब्रेकर और स्विचगियर (DC Circuit Breakers and Switchgear)

  • कठिन ब्रेकिंग: {DC} धारा को शून्य करने के लिए कोई प्राकृतिक शून्य क्रॉसिंग नहीं होती है (जैसा कि {AC} में होता है)। इसलिए, {DC} फॉल्ट करंट को तोड़ना बेहद मुश्किल और महंगा होता है।
  • सीमित बहु-टर्मिनल प्रणाली: {DC} ब्रेकर की जटिलता के कारण, बहु-टर्मिनल {DC} प्रणाली (Multi-Terminal {DC} System) - जहाँ कई स्थानों पर बिजली जोड़ी या निकाली जाती है - का डिज़ाइन, नियंत्रण और सुरक्षा बहुत जटिल और खर्चीली हो जाती है।

​3. वोल्टेज का {Step-up/Step-down} न होना (Inability to Step-up/Step-down DC Voltage)

  • ट्रांसफार्मर का अभाव: {DC} वोल्टेज को सीधे {AC} की तरह आसानी से ट्रांसफार्मर का उपयोग करके {Step-up} या {Step-down} नहीं किया जा सकता है।
  • परिणाम: वोल्टेज बदलने के लिए {DC} को पहले {AC} में, फिर {AC} ट्रांसफार्मर का उपयोग करके वोल्टेज बदलकर, और अंत में वापस {DC} में बदलना पड़ता है, जो दक्षता को प्रभावित करता है।

​4. विश्वसनीयता और उपलब्धता (Reliability and Availability)

  • कन्वर्टर पर निर्भरता: {HVDC} प्रणाली की विश्वसनीयता परिवर्तक उपकरणों पर निर्भर करती है। किसी भी कन्वर्टर में फॉल्ट आने पर, पूरे {HVDC} लिंक की क्षमता तुरंत कम हो सकती है या वह पूरी तरह से बंद हो सकता है।
  • ओवरलोड क्षमता: {AC} ट्रांसफार्मर की तुलना में {HVDC} कन्वर्टर की ओवरलोड क्षमता सीमित होती है।

​5. ग्रिड के साथ पारस्परिक क्रिया (Interaction with AC Grid)

  • प्रतिक्रियाशील शक्ति: लाइन-कम्यूटेटेड कन्वर्टर ({LCC}) {AC} ग्रिड से प्रतिक्रियाशील शक्ति की खपत करते हैं, जिससे {AC} बस पर वोल्टेज समर्थन की आवश्यकता होती है।
  • अतुल्यकालिक ग्रिड: {HVDC} ग्रिड की शॉर्ट सर्किट क्षमता और सिस्टम जड़ता में सीधे योगदान नहीं करता है, जो {AC} सिस्टम के साथ इसके इंटरफेस पर नियंत्रण और स्थिरता संबंधी चुनौतियां पैदा कर सकता है।




एचवीडीसी (HVDC) संचरण प्रणालियों में मुख्य रूप से दो प्रकार के कन्वर्टर का उपयोग किया जाता है:

​1. लाइन कम्यूटेटेड कन्वर्टर (Line Commutated Converters - LCC)

​इन्हें करंट सोर्स कन्वर्टर (Current Source Converters - CSC) भी कहा जाता है।

2. वोल्टेज सोर्स कन्वर्टर (Voltage Source Converters - VSC)

​इन्हें मॉड्यूलर मल्टीलेवल कन्वर्टर (Modular Multilevel Converters - MMC) तकनीक के रूप में भी जाना जाता है।

 मुख्य अंतर का सारांश

​{LCC} तकनीक लंबी दूरी के थोक बिजली संचरण (जहां दक्षता सर्वोपरि है) के लिए सबसे उपयुक्त है, जबकि {VSC} तकनीक समुद्री केबल, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का एकीकरण, और ग्रिड स्थिरता नियंत्रण के लिए सबसे उपयुक्त है, क्योंकि यह {AC} ग्रिड से स्वतंत्र रूप से प्रतिक्रियाशील शक्ति को नियंत्रित कर सकता है।




थाइरिस्टर वाल्व ({Thyristor Valve}) {HVDC} (उच्च वोल्टेज दिष्ट धारा) कन्वर्टर स्टेशनों का मुख्य घटक होता है। यह एक उच्च-शक्ति, अर्धचालक स्विच है जिसका उपयोग {AC} (प्रत्यावर्ती धारा) को {DC} (दिष्ट धारा) में या {DC} को {AC} में बदलने के लिए किया जाता है।

​1. थाइरिस्टर वाल्व क्या है? (What is a Thyristor Valve?)

​थाइरिस्टर वाल्व एक विशाल संरचना होती है जिसमें {HVDC} वोल्टेज स्तर तक पहुँचने के लिए बड़ी संख्या में श्रृंखला में जुड़े हुए थाइरिस्टर होते हैं।

  • थाइरिस्टर: यह एक सेमी-कंट्रोल्ड (Semi-Controlled) अर्धचालक उपकरण है, जो गेट सिग्नल प्राप्त होने पर धारा को चालू कर सकता है, लेकिन धारा को बंद करने के लिए इसे रिवर्स वोल्टेज की आवश्यकता होती है।
  • वाल्व संरचना: एक {HVDC} वाल्व एक या एक से अधिक वाल्व टावरों से बना होता है और इसमें सैकड़ों थाइरिस्टर होते हैं।

​2. कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​थाइरिस्टर वाल्व {LCC} ({Line Commutated Converter}) {HVDC} प्रणाली में केंद्रीय भूमिका निभाता है:

  1. रेक्टिफायर मोड ({AC} से {DC}):
    • ​थाइरिस्टर को एक विशिष्ट समय पर गेट पल्स देकर चालू किया जाता है।
    • ​यह {AC} इनपुट को {DC} आउटपुट में परिवर्तित करता है।
    • ​थाइरिस्टर प्राकृतिक रूप से बंद (कम्यूटेट) होता है जब {AC} वोल्टेज की ध्रुवीयता उलट जाती है।
  2. इन्वर्टर मोड ({DC} से {AC}):
    • ​वाल्व {DC} को {AC} में परिवर्तित करता है, जिससे बिजली {AC} ग्रिड में फीड हो सके।
    • ​यहां भी थाइरिस्टर प्राकृतिक कम्यूटेशन पर निर्भर करता है, यानी इसे चालू {AC} ग्रिड से रिवर्स वोल्टेज की आवश्यकता होती है ताकि यह बंद हो सके।

​3. वाल्व के प्रमुख घटक (Key Components of a Valve)

​एक पूर्ण थाइरिस्टर वाल्व में केवल थाइरिस्टर ही नहीं, बल्कि कई सहायक प्रणालियां भी होती हैं:

  • थाइरिस्टर मॉड्यूल: एक वाल्व के अंदर, कई थाइरिस्टर एक साथ जुड़े होते हैं। प्रत्येक थाइरिस्टर में एक समानांतर {RC} ({Resistor-Capacitor}) सर्किट होता है, जिसे स्नबर सर्किट कहा जाता है, जो तेज वोल्टेज वृद्धि से बचाता है।
  • फायरिंग/गेट यूनिट्स: ये यूनिट्स थाइरिस्टर के गेट टर्मिनल पर {ON} सिग्नल (पल्स) भेजकर इसे ट्रिगर करती हैं। चूँकि वाल्व उच्च वोल्टेज पर होते हैं, फायरिंग सिग्नल को आमतौर पर ऑप्टिकल फाइबर  के माध्यम से भेजा जाता है, जिससे उच्च वोल्टेज अलगाव सुनिश्चित हो सके।
  • कूलिंग सिस्टम: थाइरिस्टर के स्विचिंग के दौरान भारी मात्रा में गर्मी उत्पन्न होती है। इसलिए वाल्वों को आमतौर पर डी-आयोनाइज्ड पानी ({De-ionised Water}) से ठंडा किया जाता है।
  • वाल्व सपोर्ट स्ट्रक्चर: वाल्वों को ज़मीन से उच्च वोल्टेज तक इन्सुलेट करने के लिए एक मजबूत संरचना।

​4. थाइरिस्टर वाल्व के लाभ

  • उच्च दक्षता: {LCC} वाल्व उच्च शक्ति संचरण के लिए बहुत कम रूपांतरण हानि प्रदान करते हैं।
  • उच्च शक्ति रेटिंग: यह pm 800{ kV} तक के अल्ट्रा-हाई वोल्टेज और 6000{ MW} तक की शक्ति क्षमता को संभाल सकता है।
  • सिद्ध तकनीक: यह {HVDC} की सबसे पुरानी और सबसे सिद्ध तकनीक है, जो विश्वसनीयता सुनिश्चित करती है।

नोट: 

थाइरिस्टर की मुख्य सीमा यह है कि इसे बंद करने के लिए यह {AC} ग्रिड पर निर्भर करता है, जिसके कारण यह वोल्टेज सोर्स कन्वर्टर ({VSC}) की तुलना में कम गतिशील और लचीला होता है।




वीएससी-एचवीडीसी ({VSC-HVDC}) का अर्थ है वोल्टेज सोर्स कन्वर्टर - हाई वोल्टेज डीसी ({Voltage Source Converter - High Voltage Direct Current})। यह {HVDC} संचरण तकनीक की एक आधुनिक पीढ़ी है, जो पारंपरिक थाइरिस्टर-आधारित {LCC-HVDC} (लाइन कम्यूटेटेड कन्वर्टर) पर कई महत्वपूर्ण सुधार प्रदान करती है।

​1. वीएससी-एचवीडीसी की प्रमुख विशेषताएँ (Key Features of VSC-HVDC)

​वीएससी-एचवीडीसी की मुख्य पहचान इसके कन्वर्टर उपकरण और नियंत्रण क्षमता में निहित है।

2. पारंपरिक एलसीसी (LCC) से अंतर (Difference from Traditional LCC)

​वीएससी-एचवीडीसी के आगमन ने {HVDC} के अनुप्रयोगों के दायरे को काफी बढ़ा दिया है।

3. लाभ और अनुप्रयोग (Advantages and Applications)

लाभ (Advantages)

  • ग्रिड सपोर्ट: यह {AC} वोल्टेज और आवृत्ति को स्वतंत्र रूप से नियंत्रित करके {AC} ग्रिड को मजबूत करता है।
  • लचीलापन: मल्टी-टर्मिनल {DC} ({MTDC}) ग्रिड और {DC} नेटवर्क के निर्माण के लिए अधिक लचीलापन प्रदान करता है।
  • छोटे फिल्टर: यह {LCC} की तुलना में कम हार्मोनिक्स उत्पन्न करता है, जिससे छोटे फिल्टर की आवश्यकता होती है।

अनुप्रयोग (Applications)

  • अपतटीय पवन फार्म (Offshore Wind Farms): अपतटीय उत्पादन को तट पर ग्रिड से जोड़ने के लिए यह मानक तकनीक है, क्योंकि यह {AC} केबलों की चार्जिंग समस्या को खत्म करता है।
  • कमजोर ग्रिड इंटरकनेक्शन: ऐसे क्षेत्र जहाँ {AC} ग्रिड कमजोर या अस्थिर है, वहाँ इसका उपयोग {DC} लिंक को स्थिरता प्रदान करने के लिए किया जाता है।
  • शहरी बिजली आपूर्ति: {VSC} का उपयोग {HVDC} भूमिगत केबल के साथ शहरों में थोक बिजली पहुँचाने के लिए किया जाता है, जहाँ ओवरहेड लाइनें संभव नहीं हैं।

भारत में उदाहरण:

भारत में {PGCIL} की पुगलूर-त्रिशूर लिंक (pm 320{ kV}) में {VSC} तकनीक का उपयोग किया गया है, जो लंबी {HVDC} बाइपोल लाइन ({Raigarh-Pugalur}) को केरल के कमजोर {AC} ग्रिड से जोड़ता है।




एमएमसी ({MMC}) का अर्थ है मॉड्यूलर मल्टीलेवल कन्वर्टर ({Modular Multilevel Converter})। यह {VSC-HVDC} (वोल्टेज सोर्स कन्वर्टर - हाई वोल्टेज डीसी) तकनीक की सबसे उन्नत और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली टोपोलॉजी (संरचना) है।

​1. एमएमसी क्या है? (What is MMC?)

​एमएमसी एक उन्नत कन्वर्टर डिज़ाइन है जो उच्च वोल्टेज {AC} को {DC} में (या इसके विपरीत) बदलने के लिए कई छोटे, स्वतंत्र "सबमॉड्यूल" ({Submodules}) का उपयोग करता है। यह अपनी मॉड्यूलर संरचना और मल्टीलेवल आउटपुट के कारण पारंपरिक कन्वर्टर से बेहतर प्रदर्शन करता है।

प्रमुख संरचना

  1. कन्वर्टर आर्म्स ({Converter Arms}): कन्वर्टर के प्रत्येक {AC} चरण और {DC} पोल के बीच दो आर्म्स होती हैं - एक अपर आर्म और एक लोअर आर्म।
  2. सबमॉड्यूल ({Submodules} - {SM}): प्रत्येक आर्म में बड़ी संख्या में (सैकड़ों तक) समान सबमॉड्यूल श्रृंखला में जुड़े होते हैं। प्रत्येक सबमॉड्यूल में आमतौर पर \text{IGBT} स्विच और एक कैपेसिटर होता है।
  3. कंट्रोलर: यह प्रत्येक सबमॉड्यूल को व्यक्तिगत रूप से नियंत्रित करता है कि उसे बाईपास होना है या वोल्टेज का योगदान करना है।

​2. एमएमसी का कार्य सिद्धांत और लाभ (Working Principle and Advantages)

​एमएमसी की श्रेष्ठता इसके मल्टीलेवल ऑपरेशन से आती है, जो निम्नलिखित प्रमुख लाभ प्रदान करता है:

{AC} वेवफॉर्म की गुणवत्ता (AC Waveform Quality)

  • कम हार्मोनिक्स: चूंकि कई सबमॉड्यूल का आउटपुट वोल्टेज एक साथ जुड़ता है, यह {AC} वेवफॉर्म को सीढ़ीनुमा ({Stepped}), लगभग शुद्ध साइन वेव ({Sine Wave}) के करीब बनाता है।
  • फिल्टर की आवश्यकता नहीं: वेवफॉर्म की उच्च गुणवत्ता के कारण, {LCC} की तरह बड़े और महंगे {AC} फिल्टर की आवश्यकता बहुत कम या बिल्कुल नहीं होती है।

{DC} साइड पर नियंत्रण (DC Side Control)

  • डीसी फॉल्ट ब्लॉकिंग: {MMC} में उपयोग किए जाने वाले उन्नत सबमॉड्यूल डिज़ाइन (जैसे {Full Bridge Submodule}) {DC} साइड में फॉल्ट आने पर {DC} करंट को पूरी तरह से ब्लॉक कर सकते हैं। यह {MTDC} ग्रिड की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।

मॉड्यूलरिटी और अतिरेक (Modularity and Redundancy)

  • उच्च वोल्टेज क्षमता: चूंकि सबमॉड्यूल को श्रृंखला में जोड़कर वोल्टेज बढ़ाया जाता है, {MMC} उच्च वोल्टेज ({HVDC} और {UHVDC} दोनों) को संभाल सकता है।
  • अतिरेक ({Redundancy}): यदि एक सबमॉड्यूल विफल हो जाता है, तो अतिरिक्त सबमॉड्यूल को स्विच करके कन्वर्टर को पूर्ण क्षमता पर कार्य करने की अनुमति दी जा सकती है। इससे सिस्टम की उपलब्धता ({Availability}) और विश्वसनीयता बढ़ती है।

​3. एमएमसी का अनुप्रयोग (Applications of MMC)

​एमएमसी अब {HVDC} में नए मानक के रूप में उभरा है और इसका उपयोग किया जाता है:

  • अपतटीय पवन ऊर्जा: अपतटीय पवन फार्मों को तट पर ग्रिड से जोड़ने के लिए (जैसे {VSC-HVDC} में)।
  • कमजोर {AC} ग्रिड इंटरकनेक्शन: ऐसे ग्रिडों को स्थिरता और बिजली की आपूर्ति प्रदान करने के लिए जिनकी शॉर्ट-सर्किट क्षमता कम है।
  • मल्टी-टर्मिनल {DC} (MTDC) ग्रिड: भविष्य के {DC} बिजली राजमार्गों के निर्माण के लिए, जहाँ एक से अधिक बिंदु जुड़े होते हैं।




एचवीडीसी ({HVDC}) प्रणाली में मुख्य रूप से तीन बुनियादी नियंत्रण विधियों का उपयोग किया जाता है: सक्रिय शक्ति नियंत्रण ({Active Power Control}), डीसी वोल्टेज नियंत्रण ({DC Voltage Control}), और प्रतिक्रियाशील शक्ति/एसी वोल्टेज नियंत्रण ({Reactive Power/AC Voltage Control})।

आमतौर पर, {HVDC} लिंक के दो टर्मिनलों (रेक्टिफायर और इन्वर्टर) को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न संयोजन लागू किए जाते हैं:

​1. सक्रिय शक्ति और डीसी वोल्टेज नियंत्रण (Active Power and DC Voltage Control)

​एचवीडीसी लिंक की सक्रिय शक्ति ({P}) और डीसी वोल्टेज ({V}_{{dc}}) को नियंत्रित करने के लिए नियंत्रण विधियों का एक युग्म (Pair) उपयोग किया जाता है।

सामान्य संयोजन (LCC और VSC दोनों में):

  • रेखीय शक्ति संचरण ({Point-to-Point}):
    • रेक्टिफायर (भेजने वाला सिरा): अक्सर {DC} वोल्टेज को नियंत्रित करता है ({CDVC})।
    • इन्वर्टर (प्राप्त करने वाला सिरा): अक्सर सक्रिय शक्ति को नियंत्रित करता है ({CPC})।
    • परिणाम: इन्वर्टर यह सुनिश्चित करता है कि वांछित बिजली भेजी जा रही है, और रेक्टिफायर {DC} वोल्टेज को स्थिर रखता है।

​2. प्रतिक्रियाशील शक्ति और एसी वोल्टेज नियंत्रण (Reactive Power and AC Voltage Control)

आप संभवतः एसी वोल्टेज नियंत्रण ({AC Voltage Control}) के बारे में पूछ रहे हैं, जो {HVDC} (उच्च वोल्टेज डीसी) प्रणालियों के टर्मिनल स्टेशनों पर एक महत्वपूर्ण कार्य है।

​एसी वोल्टेज नियंत्रण का मुख्य उद्देश्य {HVDC} कन्वर्टर स्टेशन को जोड़ने वाले {AC} ग्रिड बस पर वोल्टेज को स्थिर रखना है, क्योंकि कन्वर्टर का संचालन इस वोल्टेज को प्रभावित करता है।

​1. एलसीसी-एचवीडीसी में एसी वोल्टेज नियंत्रण ({LCC-HVDC} Control)

​लाइन कम्यूटेटेड कन्वर्टर ({LCC}) स्वाभाविक रूप से प्रतिक्रियाशील शक्ति ({Reactive Power}) का उपभोग करते हैं। जब {LCC} कन्वर्टर सक्रिय शक्ति का संचरण करता है, तो यह ग्रिड से प्रतिक्रियाशील शक्ति खींचता है, जिससे {AC} बस पर वोल्टेज कम हो जाता है।

{LCC} में {AC} वोल्टेज को नियंत्रित करने के लिए निम्न का उपयोग किया जाता है:

  • स्विच किए गए फिल्टर बैंक: {HVDC} स्टेशन पर हार्मोनिक्स को फ़िल्टर करने और आवश्यक प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान करने के लिए स्विच किए गए कैपेसिटर बैंक और {AC} फ़िल्टर का उपयोग किया जाता है। जब वोल्टेज कम होता है, तो अधिक कैपेसिटर बैंक चालू किए जाते हैं।
  • सिंक्रोनस कंडेनसर: पुराने या कमजोर ग्रिडों में, एक {Synchronous Condenser} (एक बिना लोड वाला {AC} मोटर/जनरेटर) स्थापित किया जाता है। यह {AC} ग्रिड को प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान करके वोल्टेज और स्थिरता दोनों का समर्थन करता है।
  • ऑन-लोड टैप चेंजिंग ट्रांसफॉर्मर ({OLTC}): कन्वर्टर ट्रांसफॉर्मर के टैप को स्वचालित रूप से बदलकर, कन्वर्टर स्टेशन {AC} वोल्टेज को समायोजित किए बिना भी वांछित {DC} वोल्टेज प्राप्त कर सकता है।

​2. वीएससी-एचवीडीसी में एसी वोल्टेज नियंत्रण ({VSC-HVDC} Control)

​वोल्टेज सोर्स कन्वर्टर ({VSC}) या मॉड्यूलर मल्टीलेवल कन्वर्टर ({MMC}) {AC} वोल्टेज नियंत्रण में क्रांतिकारी बदलाव लाए हैं क्योंकि वे स्वतंत्र रूप से प्रतिक्रियाशील शक्ति का उत्पादन या उपभोग कर सकते हैं।

​{VSC} में, {AC} वोल्टेज नियंत्रण कन्वर्टर के माध्यम से ही किया जाता है:

  • दोहरी नियंत्रण क्षमता: {VSC} नियंत्रण प्रणाली {AC} करंट के क्वाड्रेचर ({Q} - {Reactive}) अक्ष घटक को नियंत्रित करके सीधे प्रतिक्रियाशील शक्ति को समायोजित करती है।
  • निरंतर एसी वोल्टेज नियंत्रण ({C AVC}): {VSC} को निरंतर {AC} वोल्टेज मोड में संचालित करने के लिए प्रोग्राम किया जाता है। यदि {AC} बस पर वोल्टेज गिरता है, तो कन्वर्टर प्रतिक्रियाशील शक्ति का उत्पादन शुरू कर देता है ताकि वोल्टेज को निर्धारित मान पर वापस लाया जा सके। यदि वोल्टेज बढ़ता है, तो यह प्रतिक्रियाशील शक्ति का उपभोग करना शुरू कर देता है।

मुख्य लाभ: {VSC} को {LCC} की तरह बड़े और धीमे {AC} फ़िल्टर या स्विच किए गए कै{{Reactive Power}}$ की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे यह {AC} वोल्टेज को तेजी से और गतिशील रूप से नियंत्रित कर सकता है।

3. विशिष्ट नियंत्रण तकनीकें (Specific Control Techniques)

​A. {LCC} नियंत्रण (लाइन कम्यूटेटेड कन्वर्टर)

​{LCC} में, सक्रिय शक्ति और {DC} वोल्टेज का नियंत्रण कन्वर्टर के फायरिंग एंगल ({Firing Angle} - alpha) को समायोजित करके किया जाता है।

  1. रेक्टिफायर पर: फायरिंग एंगल alpha को नियंत्रित करके {DC} वोल्टेज ({V}_{{dc}}) को नियंत्रित किया जाता है।
  2. इन्वर्टर पर: एक्सटेंशन एंगल ({Extinction Angle} -gamma) को नियंत्रित करके इन्वर्टर को विफल होने से बचाया जाता है, जबकि सक्रिय शक्ति को भी नियंत्रित किया जाता है।

​B. {VSC} / {MMC} नियंत्रण (वोल्टेज सोर्स कन्वर्टर)

​{VSC} में {IGBT} स्विच के कारण पल्स चौड़ाई मॉडुलन ({Pulse Width Modulation - PWM}) का उपयोग किया जाता है, जो {AC} और {DC} दोनों तरफ के वोल्टेज और धारा को अधिक तेज़ी से और सटीकता से नियंत्रित करने की अनुमति देता है।

  • दोहरी नियंत्रण क्षमता: {VSC} नियंत्रण विधियाँ {AC} धारा के प्रत्यक्ष (Direct - d) और चतुर्भुज (Quadrature - q) अक्ष घटकों का उपयोग करके सक्रिय ({P}) और प्रतिक्रियाशील शक्ति ({Q}) दोनों को {AC} ग्रिड से स्वतंत्र रूप से नियंत्रित कर सकती हैं।

​4. फॉल्ट और प्रोटेक्शन नियंत्रण (Fault and Protection Control)

  • करंट लिमिटिंग: फॉल्ट की स्थिति में, कनवर्टर नियंत्रण को तेजी से करंट लिमिटिंग मोड में स्विच किया जाता है ताकि उपकरणों को उच्च धाराओं से बचाया जा सके।
  • फ्री-व्हीलिंग (Free-Wheeling): डीसी लाइन पर फॉल्ट होने पर, {MMC} कंट्रोलर तेजी से सबमॉड्यूल्स को बायपास करके {DC} करंट को ब्लॉक कर सकता है, जो {DC} ग्रिडों के लिए आवश्यक है।




मोनोपोलर ({Monopolar}) \{HVDC} प्रणाली में, ग्राउंड रिटर्न ({Ground Return}) या मेटालिक रिटर्न ({Metallic Return}) सर्किट का उपयोग करंट के वापस लौटने के मार्ग के रूप में किया जाता है।

​1. मोनोपोलर एचवीडीसी प्रणाली (Monopolar HVDC System)

​मोनोपोलर {HVDC} प्रणाली में संचरण के लिए केवल एक उच्च-वोल्टेज कंडक्टर (पोल) होता है।

  • संरचना: यह एक पोल (यानी एक कंडक्टर) का उपयोग करता है, जो या तो धनात्मक ({+ve}) या ऋणात्मक ({-ve}) ध्रुवीयता पर संचालित होता है।
  • रिटर्न पथ: करंट को कन्वर्टर स्टेशन तक वापस लाने के लिए, दूसरे पथ की आवश्यकता होती है, जिसके लिए ग्राउंड रिटर्न या मेटालिक रिटर्न का उपयोग किया जाता है।

​2. ग्राउंड रिटर्न की भूमिका (Role of Ground Return)

​मोनोपोलर {HVDC} में ग्राउंड रिटर्न की मुख्य भूमिकाएँ और विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

​A. करंट रिटर्न पथ (Current Return Path)

  • प्राथमिक कार्य: यह {HVDC} सर्किट को पूरा करने के लिए कम प्रतिरोध वाला पथ प्रदान करता है, जिससे करंट एक कन्वर्टर स्टेशन से दूसरे कन्वर्टर स्टेशन तक वापस लौट सके।
  • परिणाम: यह महंगे दूसरे उच्च-वोल्टेज कंडक्टर की आवश्यकता को समाप्त करता है, जिससे लाइन की लागत कम हो जाती है।

​B. ऑपरेशन के मोड (Modes of Operation)

​ग्राउंड रिटर्न का उपयोग दो मुख्य तरीकों से किया जा सकता है:

  1. अर्थ रिटर्न ({Earth Return}): करंट पृथ्वी ({Earth}) या समुद्र ({Sea}) के माध्यम से वापस लौटता है।
    • लाभ: सबसे सस्ता विकल्प, क्योंकि किसी अतिरिक्त कंडक्टर की आवश्यकता नहीं होती है।
    • नुकसान: इलेक्ट्रोड के आसपास ग्राउंड करंट ({Ground Current}) के कारण भू-क्षरण ({Electrolysis}), आसपास की पाइपलाइनों का क्षरण ({Corrosion}), और संचार प्रणालियों में हस्तक्षेप ({Interference}) हो सकता है।
  2. मेटालिक रिटर्न ({Metallic Return}): एक समर्पित निम्न-वोल्टेज कंडक्टर (आमतौर पर एक तटस्थ तार) का उपयोग रिटर्न पथ के रूप में किया जाता है।
    • लाभ: ग्राउंड करंट से जुड़े पर्यावरणीय नुकसान और क्षरण की समस्या से बचा जा सकता है।
    • नुकसान: अतिरिक्त कंडक्टर (रिटर्न वायर) की आवश्यकता के कारण लाइन की लागत थोड़ी बढ़ जाती है।

​C. सुरक्षा और निरंतरता (Security and Continuity)

  • फॉल्ट की स्थिति में: यदि मुख्य पोल कंडक्टर में फॉल्ट आता है, तो ग्राउंड या मेटालिक रिटर्न पथ को इमरजेंसी बाईपास के रूप में उपयोग करके बिजली संचरण को कम क्षमता पर भी बनाए रखा जा सकता है।

​3. बाइपोलर {HVDC} से अंतर (Difference from Bipolar HVDC)

​मोनोपोलर {HVDC} की तुलना में, बाइपोलर {HVDC} में दो उच्च-वोल्टेज कंडक्टर (एक {+ve} और एक {-ve}) होते हैं।




एचवीडीसी ({HVDC}) संचरण में कोरोना हानि ({Corona Loss}) एसी ({AC}) संचरण की तुलना में कम होती है, इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

​1. स्थिर वोल्टेज और विद्युत क्षेत्र (Steady Voltage and Electric Field)

  • ​{HVDC} में वोल्टेज निरंतर (स्थिर) रहता है, जबकि {AC} में वोल्टेज लगातार शिखर मान (peak value) और शून्य के बीच बदलता रहता है (50 या 60{ Hz} पर)।
  • ​कोरोना हानि मुख्य रूप से चालक के चारों ओर के वायुमंडल में विद्युत क्षेत्र की तीव्रता पर निर्भर करती है।
  • ​{AC} में, वोल्टेज का शिखर मान ({V}_{{peak}} = sqrt{2}×{V}_{{RMS}}) उसके प्रभावी मान से काफी अधिक होता है। {AC} लाइनें कोरोना डिस्चार्ज तभी शुरू करती हैं जब वोल्टेज शिखर मान तक पहुँचता है।
  • तुलना: समान शक्ति संचरित करने के लिए, {HVDC} का {DC} वोल्टेज मान {AC} के शिखर वोल्टेज से कम होता है, और यह {DC} वोल्टेज स्थिर रहता है। इससे चालक के चारों ओर का औसत विद्युत क्षेत्र ({Average Electric Field}) {AC} की तुलना में कम होता है, जिसके परिणामस्वरूप कम कोरोना हानि होती है।

​2. आयन गति और स्थान आवेश (Ion Movement and Space Charge)

  • ​{HVDC} में, ध्रुवीयता स्थिर रहती है। कोरोना डिस्चार्ज से बनने वाले आयन ({ions}) जो चालक के चारों ओर उत्पन्न होते हैं, समान ध्रुवीयता के कारण चालक से दूर धकेल दिए जाते हैं।
  • ​ये आयन चालक के चारों ओर एक स्थान आवेश मेघ ({Space Charge Cloud}) बनाते हैं।
  • ​यह स्थिर स्थान आवेश मेघ, चालक के पास के विद्युत क्षेत्र को प्रभावी ढंग से कम कर देता है, जिससे नए कोरोना डिस्चार्ज को बनने से रोका जा सकता है या उनकी तीव्रता कम हो जाती है।
  • ​{AC} में, ध्रुवीयता लगातार बदलने के कारण, यह स्थिर स्थान आवेश मेघ नहीं बन पाता है, और {AC} में आयन लगातार तेजी से बदलते हुए क्षेत्र में दोलन करते हैं, जिससे अधिक ऊर्जा का नुकसान होता है।

​3. चालकों की संख्या (Fewer Number of Conductors)

  • ​{HVDC} बाइपोलर प्रणाली में केवल दो कंडक्टर ({+ve} और {-ve}) होते हैं, जबकि {AC} प्रणाली में तीन फेज के लिए तीन या उससे अधिक कंडक्टर होते हैं।
  • ​कम कंडक्टर होने से, कुल कोरोना हानि का योग भी कम हो जाता है, क्योंकि कोरोना हानि प्रत्येक कंडक्टर पर अलग-अलग उत्पन्न होती है।




एचवीडीसी ({HVDC}) और एसी ({AC}) संचरण प्रणालियों की विश्वसनीयता ({Reliability}) और उपलब्धता ({Availability}) की तुलना करना जटिल है क्योंकि दोनों के नुकसान और ताकतें अलग-अलग हैं।

​सामान्य तौर पर, दोनों प्रणालियों की विश्वसनीयता इस बात पर निर्भर करती है कि आप सिस्टम का कौन सा हिस्सा देख रहे हैं: लाइन या टर्मिनल स्टेशन

​1. एचवीडीसी की विश्वसनीयता (HVDC Reliability)

कमज़ोरी (Weakness) - टर्मिनल स्टेशन

  • कन्वर्टर उपकरण की जटिलता: {HVDC} विश्वसनीयता मुख्य रूप से टर्मिनल स्टेशनों पर निर्भर करती है, जहाँ {AC} को {DC} में (और इसके विपरीत) बदलने के लिए जटिल और महंगे कन्वर्टर उपकरण ({Thyristor} या {IGBT} वाल्व) लगे होते हैं।
  • कम उपलब्धता: किसी भी वाल्व या कंट्रोल सिस्टम में बड़ी खराबी आने पर, पूरे {HVDC} लिंक को बंद करना पड़ सकता है। इस अतिरिक्त जटिलता के कारण, एकल-पोल {HVDC} सिस्टम की उपलब्धता ({Availability}) {AC} सिस्टम की तुलना में कम हो सकती है।
  • रखरखाव: कन्वर्टर स्टेशनों के जटिल उपकरणों के लिए विशेष ज्ञान और महंगे स्पेयर पार्ट्स की आवश्यकता होती है, जिससे रखरखाव कठिन हो जाता है।

ताकत (Strength) - लाइन और ऑपरेशन

  • बाइपोलर लचीलापन: बाइपोलर {HVDC} प्रणाली में, दो स्वतंत्र पोल ({+ve} और {-ve}) होते हैं। यदि एक पोल फेल हो जाता है, तो दूसरा पोल ग्राउंड रिटर्न का उपयोग करके आधी क्षमता पर बिजली संचरण जारी रख सकता है। यह {AC} डबल-सर्किट लाइन में फॉल्ट की तुलना में अधिक लचीलापन प्रदान करता है, जहाँ एक फेज फॉल्ट होने पर पूरे सर्किट को हटाना पड़ सकता है।
  • कोई स्थिरता सीमा नहीं: {HVDC} में {AC} की तरह {Rotor Angle Stability} की समस्या नहीं होती है, जिसका अर्थ है कि लंबी दूरी पर संचरण की विश्वसनीयता पर दूरी का कोई सीमा कारक नहीं होता है।

​2. एसी की विश्वसनीयता (AC Reliability)

कमज़ोरी (Weakness) - लंबी दूरी

  • अस्थिरता की सीमा: लंबी दूरी के संचरण के लिए {AC} की विश्वसनीयता सिस्टम स्थिरता से सीमित होती है। लंबी लाइनों पर, बिजली का संचरण करने वाला फेज कोण ({Phase Angle}) बहुत बड़ा हो सकता है, जिससे सिस्टम अस्थिर हो सकता है और फॉल्ट की स्थिति में व्यापक ब्लैकआउट ({Blackouts}) हो सकते हैं।
  • प्रतिक्रियाशील शक्ति: लंबी {AC} लाइनें प्रतिक्रियाशील शक्ति उत्पन्न या उपभोग करती हैं, जिसके लिए लगातार मुआवजे की आवश्यकता होती है। यह {AC} वोल्टेज प्रोफ़ाइल को जटिल बनाता है और विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकता है।

ताकत (Strength) - टर्मिनल उपकरण

  • सरल टर्मिनल उपकरण: {AC} सिस्टम में वोल्टेज बदलने के लिए सरल, अत्यधिक विश्वसनीय और टिकाऊ ट्रांसफार्मर का उपयोग किया जाता है। {AC} सबस्टेशन {HVDC} कन्वर्टर स्टेशन की तुलना में कम जटिल होते हैं।
  • उच्च उपलब्धता: ट्रांसफार्मर और {AC} स्विचगियर की उच्च विश्वसनीयता के कारण, {AC} सबस्टेशन की उपलब्धता आमतौर पर {HVDC} टर्मिनल स्टेशनों से अधिक होती है।

​3. निष्कर्ष: विश्वसनीयता का सार (Conclusion: Summary of Reliability)

एचवीडीसी ({HVDC}) निष्कर्ष यह है कि यह एक अत्यधिक कुशल और नियंत्रण योग्य संचरण तकनीक है जो लंबी दूरी के थोक बिजली संचरण, समुद्री केबल बिछाने, और अतुल्यकालिक ग्रिडों को जोड़ने के लिए {AC} संचरण से श्रेष्ठ है। हालाँकि, इसकी प्रयोज्यता टर्मिनल कन्वर्टर स्टेशनों की उच्च लागत और जटिलता के कारण सीमित है।

एचवीडीसी का सारांशित निष्कर्ष (Summarized Conclusion of HVDC)

​1. लाभ और उपयोगिता (Advantages and Utility)

  • दक्षता और दूरी: {HVDC} लंबी दूरी ({600 km} से अधिक) और पनडुब्बी/भूमिगत केबलों ({50 km} से अधिक) के लिए {AC} की तुलना में काफी कम हानि (नो स्किन इफ़ेक्ट, कम कोरोना हानि) सुनिश्चित करता है।
  • नियंत्रण क्षमता: यह सक्रिय शक्ति को सटीक रूप से और तेजी से नियंत्रित करने की अद्वितीय क्षमता प्रदान करता है।
  • ग्रिड एकीकरण: यह दो अलग-अलग आवृत्तियों या अतुल्यकालिक {AC} ग्रिडों को जोड़ सकता है, जिससे सिस्टम की स्थिरता बढ़ती है।

​2. सीमाएं और व्यापार-संतुलन (Limitations and Trade-offs)

  • उच्च प्रारंभिक लागत: {HVDC} प्रणाली की मुख्य सीमा उसके दोनों छोर पर स्थित कन्वर्टर स्टेशनों ({LCC} या {VSC}) की अत्यधिक उच्च लागत है, जो {AC} सबस्टेशन की तुलना में बहुत अधिक होती है।
  • जटिलता: कन्वर्टर उपकरणों ({Thyristors} या {IGBT}) की जटिलता के कारण रखरखाव मुश्किल और महंगा हो जाता है।
  • ब्रेक-ईवन दूरी: उच्च टर्मिनल लागत के कारण, {HVDC} केवल तभी किफायती होता है जब {AC} लाइनों की बचत (कम कंडक्टर, कम हानि) टर्मिनल लागत को संतुलित कर दे।

​3. तकनीकी विकास (Technological Developments)

  • वीएससी (VSC) और एमएमसी (MMC): मॉड्यूलर मल्टीलेवल कन्वर्टर ({MMC}) जैसी उन्नत {VSC} तकनीकों ने प्रतिक्रियाशील शक्ति को स्वतंत्र रूप से नियंत्रित करके, {DC} फॉल्ट को ब्लॉक करके, और कमजोर {AC} ग्रिड को सपोर्ट करके {HVDC} की उपयोगिता और विश्वसनीयता को और बढ़ा दिया है।

अंतिम निष्कर्ष:

​{HVDC} एक विशेषज्ञ तकनीक है जिसे विशिष्ट अनुप्रयोगों (लंबी दूरी, पनडुब्बी संचरण, या ग्रिड इंटरकनेक्शन) के लिए डिज़ाइन किया गया है जहाँ इसकी उच्च दक्षता और नियंत्रण क्षमता इसकी उच्च प्रारंभिक लागत को उचित ठहराती है। यह आज के जटिल और जुड़े हुए बिजली ग्रिड के लिए एक अनिवार्य समाधान है।

संक्षेप में:

  • {AC} की विश्वसनीयता टर्मिनल उपकरणों की सादगी के कारण स्थानिक रूप से उच्च होती है।
  • {HVDC} की विश्वसनीयता लंबी दूरी पर और फॉल्ट की स्थिति में संचरण लाइन के स्तर पर उच्च होती है, लेकिन इसके टर्मिनल उपकरणों के कारण कुल उपलब्धता कम हो सकती है।

​यदि आप लंबी दूरी पर थोक बिजली संचरण के लिए दो अतुल्यकालिक ग्रिड ({Asynchronous Grids}) को जोड़ रहे हैं, तो {HVDC} उच्च नियंत्रणीयता और स्थिरता प्रदान करके संपूर्ण इंटरकनेक्शन की विश्वसनीयता को बढ़ाता है



एचवीडीसी (HVDC) में एलसीसी (LCC) और वीएससी (VSC) दो मुख्य कनवर्टर प्रौद्योगिकियां हैं, और इनके बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं:

संक्षेप में, 

LCC-HVDC एक परिपक्व और शक्तिशाली (उच्च पावर रेटिंग) तकनीक है जो कम नुकसान पर लंबी दूरी तक बिजली संचारित करने के लिए अच्छी है, लेकिन इसे रिएक्टिव पावर सपोर्ट और मजबूत एसी ग्रिड की आवश्यकता होती है।

एलसीसी-एचवीडीसी (LCC-HVDC) का अर्थ लाइन कम्यूटेटेड कनवर्टर हाई वोल्टेज डायरेक्ट करंट (Line Commutated Converter High Voltage Direct Current) है। यह हाई-वोल्टेज डीसी (HVDC) पारेषण में उपयोग की जाने वाली एक पारंपरिक और सबसे पुरानी कनवर्टर तकनीक है।

यह तकनीक मुख्य रूप से थाइरिस्टर्स (Thyristors) का उपयोग करती है।

मुख्य बातें (Key Features)

  • कनवर्टर डिवाइस: यह थाइरिस्टर्स (SCR - Silicon Controlled Rectifiers) पर आधारित है। थाइरिस्टर करंट-नियंत्रित उपकरण हैं।
  • कम्यूटेशन: कनवर्टर को स्विचिंग प्रक्रिया (कम्यूटेशन) को पूरा करने के लिए एसी ग्रिड वोल्टेज की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि इसे "लाइन कम्यूटेटेड" कनवर्टर कहा जाता है।
  • अन्य नाम: इसे करंट सोर्स कनवर्टर (Current Source Converter - CSC) भी कहा जाता है क्योंकि यह डीसी साइड पर करंट को नियंत्रित करता है।
  • पावर फ्लो का नियंत्रण: सक्रिय शक्ति (Active Power) का नियंत्रण कनवर्टर के फायरिंग एंगल (alpha) को समायोजित करके किया जाता है।
  • रिएक्टिव पावर: एलसीसी को अपने संचालन के लिए एसी ग्रिड से रिएक्टिव पावर की आवश्यकता होती है, जो लगभग कनवर्टर की शक्ति रेटिंग का 50-60% होती है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए एसी साइड पर बड़े कैपेसिटर बैंक और हार्मोनिक फिल्टर लगाए जाते हैं।

फायदे और  नुकसान

एलसीसी-एचवीडीसी (LCC-HVDC) के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं:

​एलसीसी-एचवीडीसी, जो कि एक परिपक्व (Classic) और शक्तिशाली तकनीक है, मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में लाभ प्रदान करती है:

​1. उच्च क्षमता और अर्थव्यवस्था (High Capacity and Economy)

  • उच्चतम पावर रेटिंग के लिए सबसे किफायती: LCC-HVDC वर्तमान में उपलब्ध उच्चतम वोल्टेज (pm 800 {kV} और उससे अधिक) और उच्चतम पावर रेटिंग (जैसे 6000 {MW}) के लिए सबसे किफायती समाधान है। यह लंबी दूरी पर भारी मात्रा में बिजली के संचरण के लिए सबसे उपयुक्त है।
  • कम कनवर्टर हानि (Lower Converter Losses): इसमें उपयोग होने वाले थाइरिस्टर्स में वीएससी (VSC) में उपयोग होने वाले IGBTs की तुलना में कम ऑन-स्टेट लॉस होता है। इस कारण, कुल कनवर्टर स्टेशन की हानि VSC की तुलना में कम होती है।
  • कम लाइन लागत: क्योंकि यह डीसी (DC) पर काम करता है, लंबी दूरी के संचरण के लिए कम कंडक्टर और छोटे टावरों की आवश्यकता होती है, जिससे लाइन की समग्र लागत कम हो जाती है।

​2. विश्वसनीयता और सिद्ध तकनीक (Reliability and Proven Technology)

  • सिद्ध और परिपक्व: LCC-HVDC दशकों से परिचालन में है और यह एक अत्यधिक सिद्ध और विश्वसनीय तकनीक है।
  • थाइरिस्टर की मज़बूती: इसमें उपयोग किए जाने वाले थाइरिस्टर उपकरण उच्च करंट ओवरलोड क्षमता रखते हैं और प्रकृति में बहुत मजबूत होते हैं।

​3. डीसी संचरण के सामान्य लाभ (General HVDC Advantages)

LCC-HVDC, HVDC पारेषण के सभी मूलभूत लाभों को भी प्रदान करता है:

  • कम ट्रांसमिशन लॉस (Lower Transmission Losses): एसी (AC) के विपरीत, डीसी ट्रांसमिशन में रिएक्टेंस नहीं होता, जिससे लंबी दूरी के लिए बिजली की हानि काफी कम हो जाती है।
  • अतुल्यकालिक इंटरकनेक्शन (Asynchronous Interconnection): यह विभिन्न आवृत्ति और विशेषताओं वाले दो अलग-अलग एसी ग्रिडों को आपस में जोड़ने (जैसे {India's}{ and}{ neighbouring}{ country's}{ grid}) की अनुमति देता है।
  • स्थिरता में सुधार (Improved Stability): यह ग्रिड के अस्थिर होने पर बिजली के प्रवाह को तेज़ी से नियंत्रित करके एसी ग्रिड की स्थिरता में सुधार करता है।



VSC-HVDC एक आधुनिक और अधिक लचीली तकनीक है। यह रिएक्टिव पावर को स्वतंत्र रूप से नियंत्रित कर सकता है, कमजोर ग्रिड से कनेक्ट हो सकता है, और मल्टी-टर्मिनल सिस्टम के लिए बेहतर है, लेकिन इसमें आमतौर पर अधिक नुकसान होता है और इसकी पावर रेटिंग LCC से कम हो सकती है।

वीएससी-एचवीडीसी (VSC-HVDC) का अर्थ वोल्टेज सोर्स कनवर्टर हाई वोल्टेज डायरेक्ट करंट (Voltage Source Converter High Voltage Direct Current) है। यह एचवीडीसी पारेषण में उपयोग की जाने वाली एक आधुनिक और लचीली तकनीक है, जिसने पारंपरिक एलसीसी (LCC) तकनीक की कई सीमाओं को दूर किया है।

​वीएससी तकनीक को अक्सर एचवीडीसी लाइट (HVDC Light) जैसे नामों से भी जाना जाता है।

मुख्य विशेषताएं और कार्य सिद्धांत (Key Features and Working Principle)

  1. कनवर्टर डिवाइस (Converter Device): इसमें मुख्य रूप से आईजीबीटी (IGBTs - Insulated Gate Bipolar Transistors) जैसे सेल्फ-कम्यूटेटेड स्विच का उपयोग किया जाता है।
  2. कम्यूटेशन (Commutation): ये स्विच एसी ग्रिड वोल्टेज पर निर्भर हुए बिना, कनवर्टर स्वयं ही स्विचिंग प्रक्रिया (कम्यूटेशन) को नियंत्रित करते हैं।
  3. वोल्टेज नियंत्रण (Voltage Control): नाम के अनुसार, यह डीसी साइड पर वोल्टेज (DC Voltage) के ध्रुवीयता (polarity) को स्थिर रखता है और करंट के प्रवाह को नियंत्रित करता है।
  4. प्रौद्योगिकी का विकास: मॉड्यूलर मल्टी-लेवल कनवर्टर (MMC) VSC तकनीक का सबसे उन्नत रूप है, जो हार्मोनिक्स को काफी कम करता है और उच्च वोल्टेज अनुप्रयोगों के लिए अधिक कुशल है।

प्रमुख लाभ (Major Advantages)

वीएससी-एचवीडीसी के सबसे बड़े लाभ इसकी लचीलापन (Flexibility) और नियंत्रण क्षमता में हैं:

  • सक्रिय और प्रतिक्रियाशील शक्ति का स्वतंत्र नियंत्रण (Independent Active and Reactive Power Control): VSC-HVDC सक्रिय शक्ति (MW) और प्रतिक्रियाशील शक्ति (MVAR) दोनों को एक साथ और स्वतंत्र रूप से नियंत्रित कर सकता है।
  • कमजोर/निष्क्रिय ग्रिड से कनेक्ट करने की क्षमता: LCC के विपरीत, VSC को कम्यूटेशन के लिए ग्रिड वोल्टेज की आवश्यकता नहीं होती है। यह कमजोर एसी ग्रिड से सफलतापूर्वक जुड़ सकता है और यहाँ तक कि निष्क्रिय ग्रिड (यानी, एक ग्रिड जिसमें कोई जनरेटर चालू नहीं है, जिसे ब्लैक स्टार्ट क्षमता कहा जाता है) को भी सक्रिय कर सकता है।
  • रिएक्टिव पावर की आवश्यकता नहीं (No Reactive Power Requirement): यह अपनी रिएक्टिव पावर की आवश्यकता को स्वयं पूरा करता है और एसी ग्रिड पर रिएक्टिव पावर का बोझ नहीं डालता, इसलिए बड़े फिल्टर या कैपेसिटर बैंक की आवश्यकता नहीं होती।
  • डीसी केबल के लिए उपयुक्त (Suitable for DC Cable): VSC डीसी वोल्टेज की ध्रुवीयता को स्थिर रखता है, जिससे इसे XLPE (Cross-linked Polyethylene) केबल के साथ उपयोग करना संभव हो जाता है, जो पनडुब्बी (submarine) और भूमिगत पारेषण के लिए आदर्श हैं।
  • मल्टी-टर्मिनल सिस्टम (Multi-Terminal Systems): VSC तकनीक बहु-टर्मिनल डीसी ग्रिड (एक डीसी लाइन से जुड़े तीन या अधिक कनवर्टर स्टेशन) के निर्माण को सरल और अधिक कुशल बनाती है।

​वीएससी-एचवीडीसी (VSC-HVDC) के मुख्य लाभ इसकी अत्यधिक लचीलापन और नियंत्रण की स्वतंत्रता में निहित हैं, जो इसे आधुनिक ग्रिड चुनौतियों और अक्षय ऊर्जा एकीकरण के लिए आदर्श बनाते हैं।

वीएससी-एचवीडीसी के प्रमुख लाभ

वीएससी-एचवीडीसी (VSC-HVDC) के प्रमुख लाभ उसकी असाधारण लचीलापन, बेहतर नियंत्रण क्षमता, और आधुनिक ग्रिड एकीकरण में हैं। ये लाभ इसे पारंपरिक एलसीसी (LCC) तकनीक से अलग बनाते हैं।

​यहाँ वीएससी-एचवीडीसी के मुख्य लाभ दिए गए हैं:

वीएससी-एचवीडीसी (VSC-HVDC) के प्रमुख लाभ

​1. प्रतिक्रियाशील शक्ति का स्वतंत्र नियंत्रण (Independent Reactive Power Control)

  • शक्ति का दोहरा नियंत्रण: वीएससी सक्रिय शक्ति (MW) और प्रतिक्रियाशील शक्ति (MVAR) दोनों को एक साथ और स्वतंत्र रूप से नियंत्रित कर सकता है।
  • ग्रिड को सहायता: यह एसी ग्रिड को प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान या उससे अवशोषित (absorb) कर सकता है, जिससे यह एक स्टैटकॉम (STATCOM) की तरह कार्य करता है और ग्रिड वोल्टेज को स्थिर रखने में मदद करता है।
  • फिल्टर की आवश्यकता नहीं: चूंकि यह अपनी प्रतिक्रियाशील शक्ति की आवश्यकता को स्वयं पूरा करता है, इसलिए LCC की तरह बड़े और महंगे हार्मोनिक फिल्टर या कैपेसिटर बैंक की आवश्यकता नहीं होती।

​2. कमजोर/निष्क्रिय ग्रिड से कनेक्शन (Weak Grid & Black Start Capability)

  • ग्रिड से स्वतंत्रता: VSC में उपयोग किए जाने वाले IGBTs जैसे स्विच स्वयं-कम्यूटेटेड होते हैं, जिसका अर्थ है कि उन्हें ठीक से काम करने के लिए ग्रिड वोल्टेज की आवश्यकता नहीं होती।
  • ब्लैक स्टार्ट: यह क्षमता इसे पूरी तरह से निष्क्रिय (ब्लैकआउट) एसी ग्रिड को भी बिजली प्रदान करके उसे शुरू करने (Black Start) में सक्षम बनाती है। यह दूरस्थ स्थानों या द्वीप ग्रिडों के लिए महत्वपूर्ण है।

​3. मल्टी-टर्मिनल और ग्रिडिंग क्षमता (Multi-Terminal & DC Grids)

  • सरल मल्टी-टर्मिनल: VSC तकनीक बहु-टर्मिनल डीसी नेटवर्क (तीन या अधिक कनवर्टर स्टेशन एक ही डीसी लाइन से जुड़े) के निर्माण और संचालन को बहुत सरल बनाती है।
  • लचीला डीसी ग्रिड: यह इसे अपतटीय पवन फार्मों और सौर संयंत्रों से जटिल बिजली संग्रह के लिए आदर्श बनाता है।

​4. डीसी केबल ट्रांसमिशन (Cable Transmission)

  • स्थिर डीसी ध्रुवीयता: वीएससी कनवर्टर डीसी वोल्टेज की ध्रुवीयता को हमेशा स्थिर रखते हैं। यह XLPE (Cross-linked Polyethylene) केबल के उपयोग की अनुमति देता है।
  • पनडुब्बी लिंक: XLPE केबल पनडुब्बी (subsea) और भूमिगत पारेषण के लिए LCC में उपयोग होने वाली तेल-पेपर केबल की तुलना में अधिक विश्वसनीय, टिकाऊ और लागत प्रभावी होते हैं।

​5. बेहतर पावर क्वालिटी और नियंत्रण (Better Power Quality & Control)

  • फास्ट रिस्पॉन्स: IGBT स्विचिंग की गति बहुत तेज़ होती है, जिससे यह ग्रिड में होने वाले बदलावों पर तुरंत प्रतिक्रिया कर सकता है।
  • बेहतर हार्मोनिक्स: मॉड्यूलर मल्टी-लेवल कनवर्टर (MMC) जैसी उन्नत VSC टोपोलॉजी लगभग पूर्ण साइन वेव (sine wave) एसी तरंगरूप (waveform) उत्पन्न करती हैं, जिससे हार्मोनिक्स काफी कम हो जाते हैं।

संक्षेप में, 

VSC-HVDC अत्यधिक नियंत्रण, छोटे स्टेशनों और कमजोर ग्रिड पर काम करने की क्षमता के कारण आधुनिक पावर सिस्टम के लिए भविष्य की तकनीक है।




हार्मोनिक फिल्टर विद्युत प्रणालियों में हार्मोनिक विरूपण को कम करने के लिए आवश्यक हैं, जो कि गैर-रैखिक भार (non-linear loads) जैसे कि कंप्यूटर, एलईडी लाइटिंग, यूपीएस सिस्टम, और सबसे महत्वपूर्ण रूप से, परिवर्तनीय आवृत्ति ड्राइव (VFD) और पावर इलेक्ट्रॉनिक्स कनवर्टर द्वारा उत्पन्न होते हैं।

हार्मोनिक विरूपण को दूर करने के लिए फिल्टर की आवश्यकता निम्नलिखित मुख्य कारणों से है:

हार्मोनिक फिल्टर की आवश्यकता के प्रमुख कारण

​1. उपकरण की सुरक्षा और दीर्घायु (Equipment Protection and Longevity)

  • अत्यधिक ऊष्मा (Excessive Heating): हार्मोनिक करंट के कारण ट्रांसफार्मर, मोटर और केबलों में अतिरिक्त \text{I}^2\text{R} लॉस होता है, जिससे वे अधिक गर्म होते हैं। यह ओवरहीटिंग उपकरणों के इंसुलेशन (Insulation) को समय से पहले खराब कर देता है और उनकी जीवन अवधि (lifespan) को कम कर देता है।
  • ओवरवोल्टेज (Overvoltage) और अतिप्रवाह (Overcurrent): हार्मोनिक्स, विशेष रूप से रेजोनेंस की स्थिति में, सिस्टम में वोल्टेज और करंट के आयाम को बढ़ा सकते हैं, जिससे उपकरण विफल हो सकते हैं।
  • मोटर टॉर्क (Motor Torque) पर प्रभाव: हार्मोनिक्स मोटर्स में पल्सेटिंग (pulsating) टॉर्क पैदा करते हैं, जिससे कंपन (vibration) और यांत्रिक तनाव बढ़ता है, और मोटर की दक्षता कम हो जाती है।

​2. बिजली की गुणवत्ता (Power Quality - PQ) और अनुपालन (Compliance)

  • वोल्टेज विरूपण (Voltage Distortion): हार्मोनिक करंट, सिस्टम प्रतिबाधा (impedance) से गुजरते हुए, ग्रिड के वोल्टेज तरंगरूप (waveform) को विकृत कर देते हैं। यह विरूपण अन्य संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के सही संचालन में बाधा डालता है।
  • नियामक मानक (Regulatory Standards): दुनिया भर में बिजली की गुणवत्ता के लिए IEEE 519 जैसे कड़े मानक हैं जो स्वीकार्य कुल हार्मोनिक विरूपण (THD) के स्तर को सीमित करते हैं। हार्मोनिक फिल्टर कंपनियों को इन कानूनी और उपयोगिता आवश्यकताओं का पालन करने में मदद करते हैं।
  • रेडियो हस्तक्षेप (Radio Interference): हार्मोनिक्स संचार सर्किटों में हस्तक्षेप (Interference) पैदा कर सकते हैं।

​3. ऊर्जा दक्षता और लागत बचत (Energy Efficiency and Cost Savings)

  • बिजली हानि में कमी: फिल्टर हार्मोनिक करंट को सिस्टम में बहने से रोकते हैं, जिससे ट्रांसमिशन और वितरण के दौरान होने वाली गैर-आवश्यक बिजली हानि (power loss) कम हो जाती है।
  • पावर फैक्टर सुधार (Power Factor Improvement): हार्मोनिक्स के कारण वास्तविक पावर फैक्टर बिगड़ जाता है। फिल्टर हार्मोनिक्स को कम करके और अक्सर प्रतिक्रियाशील शक्ति की क्षतिपूर्ति करके पावर फैक्टर में सुधार करते हैं, जिससे बिजली के बिल कम होते हैं और उपयोगिता से जुर्माने से बचा जा सकता है।

संक्षेप में, 

हार्मोनिक फिल्टर एक स्वस्थ, स्थिर और कुशल विद्युत ग्रिड बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण हैं, जो महंगे उपकरणों की रक्षा करते हैं और वैश्विक पावर क्वालिटी मानकों के अनुपालन को सुनिश्चित करते हैं।




कनवर्टर स्टेशनों में प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, विशेषकर हाई वोल्टेज डायरेक्ट करंट (HVDC) सिस्टम में, जहाँ यह शक्ति इलेक्ट्रॉनिक्स (Power Electronics) के संचालन और एसी ग्रिड (AC Grid) के साथ स्थिर इंटरफेस बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

एलसीसी-एचवीडीसी में भूमिका (Role in LCC-HVDC)

​पारंपरिक लाइन कम्यूटेटेड कनवर्टर (LCC-HVDC) स्टेशनों में प्रतिक्रियाशील शक्ति की आवश्यकता सबसे अधिक और महत्वपूर्ण होती है।

​1. कनवर्टर संचालन (Converter Operation)

  • कम्यूटेशन के लिए अनिवार्य: एलसीसी कनवर्टर (जो थाइरिस्टर का उपयोग करते हैं) को सफल कम्यूटेशन (यानी, एक थाइरिस्टर से दूसरे थाइरिस्टर पर करंट के हस्तांतरण) के लिए एसी ग्रिड से प्रतिक्रियाशील शक्ति खींचने (consume) की आवश्यकता होती है। इसके बिना, कनवर्टर प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सकता।
  • बिजली की मात्रा पर निर्भरता: कनवर्टर द्वारा खींची जाने वाली प्रतिक्रियाशील शक्ति की मात्रा संचरित होने वाली सक्रिय शक्ति (Active Power - MW) पर निर्भर करती है और अक्सर संचरित सक्रिय शक्ति के 50% से 60% तक होती है।

​2. वोल्टेज समर्थन और पावर फैक्टर (Voltage Support & Power Factor)

  • वोल्टेज नियंत्रण: कनवर्टर प्रतिक्रियाशील शक्ति का एक बड़ा उपभोक्ता होने के कारण, यह ग्रिड वोल्टेज को गिरा सकता है। इसे संतुलित करने के लिए, एलसीसी स्टेशनों को एसी ग्रिड वोल्टेज को वांछित स्तर पर बनाए रखने के लिए भारी मात्रा में शंट कैपेसिटर बैंक और हार्मोनिक फिल्टर (जो स्वयं प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान करते हैं) की आवश्यकता होती है।
  • पावर फैक्टर सुधार: प्रतिक्रियाशील शक्ति की आपूर्ति कनवर्टर स्टेशन के एसी साइड पर पावर फैक्टर को स्वीकार्य स्तर पर रखने में मदद करती है।

वीएससी-एचवीडीसी में भूमिका (Role in VSC-HVDC)

​आधुनिक वोल्टेज सोर्स कनवर्टर (VSC-HVDC) तकनीक में प्रतिक्रियाशील शक्ति की भूमिका अधिक लचीली और स्वतंत्र होती है।

​1. ग्रिड वोल्टेज का स्वतंत्र नियंत्रण (Independent Grid Voltage Control)

  • दोहरा नियंत्रण: वीएससी कनवर्टर, अपनी उन्नत तकनीक के कारण, सक्रिय शक्ति (MW) और प्रतिक्रियाशील शक्ति (MVAR) दोनों को स्वतंत्र रूप से और एक साथ नियंत्रित कर सकता है।
  • STATCOM कार्यक्षमता: यह एसी ग्रिड को प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान या उससे अवशोषित कर सकता है। यह एक स्टैटकॉम (STATCOM) की तरह कार्य करता है, जिससे आस-पास के एसी ग्रिड के वोल्टेज को स्थिर करने में मदद मिलती है।

​2. प्रतिक्रियाशील शक्ति की कम आवश्यकता (Lower Reactive Power Requirement)

  • कोई कम्यूटेशन समस्या नहीं: वीएससी स्वयं-कम्यूटेटेड स्विच (IGBTs) का उपयोग करते हैं, इसलिए उन्हें संचालन के लिए ग्रिड से प्रतिक्रियाशील शक्ति की आवश्यकता नहीं होती है, जैसा कि एलसीसी में होता है।
  • फिल्टरों की कम आवश्यकता: वीएससी द्वारा उत्पन्न हार्मोनिक्स बहुत कम होते हैं (विशेष रूप से MMC में), इसलिए महंगे और प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान करने वाले बड़े फिल्टरों की आवश्यकता भी कम या समाप्त हो जाती है।

निष्कर्ष (Summary)

​कनवर्टर स्टेशनों में प्रतिक्रियाशील शक्ति का मुख्य उद्देश्य:

  1. कनवर्टर संचालन: (LCC में) कनवर्टर के सफल कम्यूटेशन को सुनिश्चित करना।
  2. वोल्टेज स्थिरता: स्टेशन के एसी बस पर वोल्टेज स्तर को नियंत्रित और स्थिर करना।
  3. पावर फैक्टर प्रबंधन: यह सुनिश्चित करना कि एसी ग्रिड इंटरफेस पर पावर फैक्टर स्वीकार्य सीमाओं के भीतर रहे।





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