पीएलसी क्या है? ( What is PLC )
पीएलसी का फुल फॉर्म प्रोग्रामेबल लॉजिक कंट्रोलर (Programmable Logic Controller - PLC) होता है।
पीएलसी क्या है?
पीएलसी एक विशेष प्रकार का औद्योगिक (Industrial) कंप्यूटर है जिसे विशेष रूप से विनिर्माण (manufacturing) प्रक्रियाओं, जैसे असेंबली लाइन, मशीनरी, रोबोटिक उपकरण, या किसी भी ऐसी गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है जिसमें उच्च विश्वसनीयता, प्रोग्रामिंग में आसानी और प्रक्रिया दोष निदान की आवश्यकता होती है।
इसे अक्सर एक कंट्रोलर (Controller) कहा जाता है क्योंकि यह निम्नलिखित कार्य करता है:
- इनपुट (Inputs) पढ़ना: यह सेंसर, स्विच, और अन्य इनपुट उपकरणों से डेटा (जैसे 'चालू' या 'बंद' की स्थिति, तापमान, दबाव आदि) लेता है।
- लॉजिक निष्पादित करना: यह इस इनपुट डेटा को अपने प्रोसेसर (CPU) में संग्रहीत (stored) प्रोग्राम (logic) के आधार पर संसाधित (process) करता है।
- आउटपुट भेजना: प्रोग्राम किए गए लॉजिक के आधार पर यह एक्चुएटर्स, मोटर, वाल्व, लाइट या रिले जैसे आउटपुट उपकरणों को चालू या बंद करने का निर्देश भेजता है, जिससे मशीन या प्रक्रिया नियंत्रित होती है।
संक्षेप में,
यह उद्योगों में विभिन्न स्वचालन (Automation) कार्यों को नियंत्रित करने के लिए एक मजबूत और लचीला इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है। इसने पारंपरिक हार्ड-वायर्ड रिले लॉजिक सिस्टम को बदल दिया है, जिससे नियंत्रण कार्यों को बदलना और उनका रखरखाव करना बहुत आसान हो गया है।
रिले-आधारित नियंत्रण प्रणालियों की तुलना में पीएलसी (PLC) को कई कारणों से प्राथमिकता दी जाती है, खासकर मध्यम से जटिल औद्योगिक स्वचालन (industrial automation) में। पीएलसी, जिसे मूल रूप से जटिल रिले पैनलों को बदलने के लिए डिज़ाइन किया गया था,
निम्नलिखित प्रमुख लाभ प्रदान करता है:
पीएलसी को प्राथमिकता देने के प्रमुख कारण
1. लचीलापन और पुनः प्रोग्रामिंग की सुगमता (Flexibility and Ease of Reprogramming)
- पीएलसी: यदि आपको नियंत्रण लॉजिक (control logic) में बदलाव करना है, तो आपको केवल प्रोग्राम को बदलना होगा। इसके लिए किसी भी वायरिंग को बदलने की आवश्यकता नहीं होती है।
- रिले सिस्टम: लॉजिक में बदलाव के लिए आपको भौतिक रूप से नए रिले जोड़ने, हटाने और पूरी वायरिंग को बदलना पड़ता है, जो श्रमसाध्य और महंगा होता है।
2. विश्वसनीयता और जीवनकाल (Reliability and Lifespan)
- पीएलसी: पीएलसी में रिले का कार्य सॉलिड-स्टेट (Solid-State) इलेक्ट्रॉनिक्स द्वारा किया जाता है, जिसका कोई यांत्रिक भाग (mechanical part) नहीं होता है। वे धूल, कंपन और तापमान परिवर्तन जैसे कठोर औद्योगिक वातावरण के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
- रिले सिस्टम: पारंपरिक यांत्रिक (mechanical) रिले के संपर्क (contacts) बार-बार खुलने और बंद होने से घिस जाते हैं और आर्किंग (arcing) के कारण खराब हो सकते हैं।
3. दोष निदान और समस्या निवारण (Diagnostics and Troubleshooting)
- पीएलसी: इसमें इनबिल्ट डायग्नोस्टिक्स और त्रुटि-पहचान (fault detection) क्षमताएं होती हैं। तकनीशियन आसानी से सॉफ्टवेयर इंटरफ़ेस में लॉजिक की स्थिति (जैसे 'ऑन' या 'ऑफ') देख सकते हैं, जिससे समस्या को खोजने में लगने वाला समय बहुत कम हो जाता है।
- रिले सिस्टम: समस्या का पता लगाने के लिए, तकनीशियन को सैकड़ों तारों और रिले के बीच भौतिक रूप से जांच करनी पड़ती है, जिससे ब्रेकडाउन समय (downtime) बढ़ जाता है।
4. कॉम्पैक्ट डिज़ाइन और कम जगह (Compact Design and Less Space)
- पीएलसी: एक ही पीएलसी कई सौ रिले, टाइमर और काउंटरों का कार्य कर सकता है, जिससे नियंत्रण पैनलों में लगने वाली जगह और आवश्यक वायरिंग की मात्रा बहुत कम हो जाती है।
- रिले सिस्टम: प्रत्येक कार्य (लॉजिक, टाइमर, काउंटर) के लिए एक अलग भौतिक उपकरण और व्यापक वायरिंग की आवश्यकता होती है, जिससे पैनल बहुत बड़े हो जाते हैं।
5. जटिल कार्यक्षमता (Complex Functionality)
- पीएलसी: यह टाइमिंग, गिनती, अंकगणितीय (arithmetical) और डेटा प्रोसेसिंग जैसे जटिल लॉजिक ऑपरेशन को आसानी से संभाल सकता है।
- रिले सिस्टम: ये मुख्य रूप से केवल साधारण ऑन/ऑफ लॉजिक के लिए उपयुक्त हैं और जटिल गणनाओं या उन्नत डेटा हैंडलिंग को संभाल नहीं सकते।
लंबे समय में,
पीएलसी सिस्टम अपनी उच्च विश्वसनीयता, आसान रखरखाव और लचीलेपन के कारण अधिक लागत प्रभावी (cost-effective) होते हैं, भले ही उनकी प्रारंभिक लागत रिले सिस्टम से अधिक हो सकती है।
पीएलसी (PLC) के मुख्य घटक (Main Components) एक सामान्य कंप्यूटर की तरह होते हैं, लेकिन ये औद्योगिक नियंत्रण कार्यों के लिए विशेष रूप से मजबूत (ruggedized) किए जाते हैं।
इसके तीन मुख्य घटक हैं:
1. केंद्रीय प्रसंस्करण इकाई (Central Processing Unit - CPU/Processor)
यह पीएलसी का मस्तिष्क (Brain) है। यह निम्नलिखित कार्य करता है:
- प्रोग्राम निष्पादन (Program Execution): यह संग्रहीत (stored) लॉजिक प्रोग्राम (जैसे लैडर लॉजिक) को पढ़ता है और उसे निष्पादित करता है।
- निगरानी (Monitoring): यह लगातार इनपुट मॉड्यूल से डेटा लेता है।
- निर्णय लेना (Decision Making): यह इनपुट की स्थिति के आधार पर गणनाएँ करता है और आउटपुट के लिए कमांड जारी करता है।
- मेमोरी प्रबंधन (Memory Management): यह प्रोग्राम और डेटा को मेमोरी में स्टोर करता है और उसका प्रबंधन करता है।
2. इनपुट/आउटपुट मॉड्यूल (Input/Output - I/O Modules)
ये पीएलसी और वास्तविक दुनिया की मशीनों के बीच इंटरफ़ेस (Interface) का काम करते हैं। ये मॉड्यूल पीएलसी को यह जानने और नियंत्रित करने की अनुमति देते हैं कि बाहर क्या हो रहा है।
(a) इनपुट मॉड्यूल (Input Modules)
ये बाहरी इनपुट उपकरणों (जैसे सेंसर, लिमिट स्विच, पुश बटन) से डेटा प्राप्त करते हैं और इसे सीपीयू द्वारा समझने योग्य डिजिटल सिग्नल (0 या 1) में परिवर्तित करते हैं।
- उदाहरण: एक बटन दबाया गया है (1) या नहीं (0)।
(b) आउटपुट मॉड्यूल (Output Modules)
ये सीपीयू से प्राप्त कमांड को लेते हैं और उन्हें बाहरी उपकरणों को नियंत्रित करने के लिए उपयोग होने वाले विद्युत सिग्नल में परिवर्तित करते हैं।
- उदाहरण: एक मोटर को चालू करना, एक वाल्व खोलना या एक इंडिकेटर लाइट को ऑन करना।
3. पावर सप्लाई (Power Supply)
यह पीएलसी के सभी आंतरिक घटकों (जैसे सीपीयू, मेमोरी और आई/ओ मॉड्यूल) को संचालित करने के लिए आवश्यक वोल्टेज और करंट प्रदान करता है। यह आमतौर पर 120V AC या 240V AC की इनकमिंग पावर को पीएलसी के आंतरिक घटकों के लिए आवश्यक कम DC वोल्टेज (जैसे 5V DC, 24V DC) में परिवर्तित करता है।
अन्य सहायक घटक
- प्रोग्रामिंग डिवाइस (Programming Device): एक कंप्यूटर (PC) या एक विशेष हैंडहेल्ड प्रोग्रामर जिसका उपयोग पीएलसी में लॉजिक प्रोग्राम लिखने, संपादित करने और अपलोड करने के लिए किया जाता है।
- मेमोरी (Memory): इसमें प्रोग्राम लॉजिक और डेटा (जैसे टाइमर/काउंटर वैल्यू) संग्रहीत होते हैं। इसमें ROM और RAM दोनों शामिल होते हैं।
- कम्युनिकेशन मॉड्यूल (Communication Module): यह पीएलसी को अन्य पीएलसी, एचएमआई (HMI), या स्कैडा (SCADA) सिस्टम जैसे बाहरी नेटवर्क और डिवाइस से जुड़ने की अनुमति देता है।
पीएलसी का कार्य सिद्धांत एक दोहराए जाने वाले चक्र पर आधारित है जिसे स्कैन साइकिल (Scan Cycle) कहते हैं। यह चक्र लगातार तब तक चलता रहता है जब तक पीएलसी चालू रहता है, जिससे यह वास्तविक समय (real-time) में औद्योगिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है।
पीएलसी स्कैन साइकिल के चरण
एक पीएलसी का कार्य सिद्धांत मूल रूप से चार मुख्य चरणों से मिलकर बना होता है जो एक सतत लूप (Continuous Loop) में दोहराए जाते हैं:
1. इनपुट स्कैन (Input Scan)
- कार्य: इस चरण में, पीएलसी सभी इनपुट मॉड्यूल की वर्तमान स्थिति (स्टेटस) की जाँच करता है।
- विवरण: यह देखता है कि कौन से सेंसर, स्विच या पुश बटन ऑन (चालू, लॉजिक '1') हैं और कौन से ऑफ (बंद, लॉजिक '0') हैं। इन सभी इनपुट स्थितियों को पीएलसी की मेमोरी इमेज टेबल (Memory Image Table) में संग्रहीत (Store) किया जाता है।
2. प्रोग्राम निष्पादन (Program Execution/Logic Solve)
- कार्य: इस चरण में, पीएलसी सीपीयू (CPU) संग्रहीत प्रोग्राम (आमतौर पर लैडर लॉजिक) को लाइन-दर-लाइन (rung-by-rung) निष्पादित करता है।
- विवरण: यह प्रोग्राम को निष्पादित करने के लिए इनपुट स्कैन चरण में प्राप्त इनपुट डेटा का उपयोग करता है। लॉजिक के परिणाम (अर्थात, कौन सा आउटपुट ऑन या ऑफ होना चाहिए) को आउटपुट इमेज टेबल में संग्रहीत किया जाता है।
3. आउटपुट स्कैन (Output Scan)
- कार्य: इस चरण में, पीएलसी आउटपुट इमेज टेबल में संग्रहीत अंतिम परिणाम को आउटपुट मॉड्यूल में भेजता है।
- विवरण: यह आउटपुट मॉड्यूल को भौतिक रूप से सक्रिय (Activate) या निष्क्रिय (Deactivate) करता है, जिससे मोटरें, वाल्व या लाइट जैसे उपकरण चालू या बंद हो जाते हैं।
4. हाउसकीपिंग और संचार (Housekeeping and Communication)
- कार्य: यह चरण निदान (Diagnostics), संचार (Communication) और आंतरिक प्रक्रियाओं को संभालता है।
- विवरण: इस चरण में पीएलसी अपने स्वयं के स्वास्थ्य की जाँच करता है, प्रोग्रामिंग डिवाइस या एचएमआई (HMI) के साथ डेटा का आदान-प्रदान करता है, और अगले स्कैन चक्र की तैयारी करता है।
इन चार चरणों को बहुत तेजी से दोहराया जाता है (आमतौर पर मिलीसेकंड में), जिससे यह सुनिश्चित होता है कि पीएलसी नियंत्रण प्रक्रिया पर त्वरित और सटीक प्रतिक्रिया देता है।
पीएलसी (PLC) का स्कैन चक्र (Scan Cycle) वह लगातार दोहराया जाने वाला चक्रीय क्रम है जिसका उपयोग प्रोग्रामेबल लॉजिक कंट्रोलर वास्तविक समय (real-time) में औद्योगिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए करता है। यह वह समय है जो पीएलसी को सभी इनपुट को पढ़ने, प्रोग्राम को निष्पादित करने और सभी आउटपुट को अपडेट करने में लगता है।
स्कैन चक्र में चार मुख्य चरण होते हैं जो मिलीसेकंड (milliseconds) के भीतर क्रम से पूरे किए जाते हैं:
स्कैन चक्र के मुख्य चरण
1.इनपुट रीड (Input Read)
इनपुट मॉड्यूल की स्थिति की जाँच करना।
2. प्रोग्राम निष्पादन (Program Execution)
नियंत्रण प्रोग्राम को हल करना।
3. आउटपुट राइट (Output Write)
आउटपुट उपकरणों को नियंत्रित करना।
4. हाउसकीपिंग/कम्युनिकेशन
आंतरिक कार्य और संचार संभालना।
ये चरण तेजी से दोहराए जाते हैं, जिससे पीएलसी सुनिश्चित करता है कि वह इनपुट में किसी भी बदलाव पर तुरंत प्रतिक्रिया दे सकता है।
पीएलसी (Programmable Logic Controller) औद्योगिक स्वचालन के लिए एक अत्यंत उपयोगी उपकरण है, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी हैं। आइए, इसके प्रमुख फायदे (Advantages) और नुकसान (Disadvantages) पर एक नज़र डालते हैं।
पीएलसी के फायदे (Advantages of PLC)
पीएलसी को रिले-आधारित नियंत्रण प्रणालियों पर कई महत्वपूर्ण लाभों के कारण प्राथमिकता दी जाती है:
1. उच्च लचीलापन (High Flexibility)
- आसान प्रोग्रामिंग: नियंत्रण लॉजिक को बदलने के लिए भौतिक रूप से वायरिंग बदलने की आवश्यकता नहीं होती है; बस सॉफ्टवेयर में प्रोग्राम को संपादित करें।
- पुनः उपयोग (Reusability): एक ही पीएलसी हार्डवेयर को विभिन्न नियंत्रण कार्यों के लिए आसानी से पुनः प्रोग्राम किया जा सकता है।
2. उच्च विश्वसनीयता और जीवनकाल (High Reliability & Lifespan)
- पीएलसी में यांत्रिक (mechanical) भाग कम होते हैं (यह सॉलिड-स्टेट डिवाइस है), इसलिए रिले की तरह घिसने वाले संपर्क नहीं होते। यह कठोर औद्योगिक वातावरण (धूल, कंपन, तापमान) के लिए डिज़ाइन किया गया है।
3. दोष निदान में आसानी (Ease of Troubleshooting)
- इनबिल्ट डायग्नोस्टिक सुविधाएँ और सॉफ्टवेयर इंटरफ़ेस तकनीशियनों को समस्या का पता लगाने में मदद करते हैं। इससे ब्रेकडाउन समय (Downtime) काफी कम हो जाता है।
4. कॉम्पैक्ट डिज़ाइन (Compact Design)
- एक ही पीएलसी कई सौ भौतिक रिले, टाइमर और काउंटरों का कार्य कर सकता है, जिससे नियंत्रण पैनलों में जगह की बचत होती है और वायरिंग सरल हो जाती है।
5. जटिल नियंत्रण क्षमता (Complex Control Capability)
- पीएलसी आसानी से जटिल अंकगणितीय गणनाएँ (arithmetic calculations), डेटा हैंडलिंग, और उन्नत नियंत्रण एल्गोरिदम (PID नियंत्रण) को संभाल सकता है।
6. कम ऊर्जा की खपत (Low Power Consumption)
- रिले नियंत्रण प्रणालियों की तुलना में पीएलसी को चलाने में काफी कम बिजली की आवश्यकता होती है।
पीएलसी के नुकसान (Disadvantages of PLC)
पीएलसी की कुछ सीमाएँ और कमियाँ भी हैं, जिन्हें ध्यान में रखना ज़रूरी है:
1. प्रारंभिक लागत (Initial Cost)
- सरल नियंत्रण अनुप्रयोगों के लिए, एक पीएलसी की प्रारंभिक लागत और सेटअप पारंपरिक रिले नियंत्रण से अधिक महंगा हो सकता है।
2. विशिष्ट प्रोग्रामिंग की आवश्यकता (Need for Specialized Programming)
- पीएलसी को प्रोग्राम करने के लिए विशेष सॉफ्टवेयर ज्ञान (जैसे लैडर लॉजिक, फंक्शन ब्लॉक डायग्राम) और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। गैर-प्रशिक्षित कर्मियों के लिए इसकी प्रोग्रामिंग मुश्किल हो सकती है।
3. अतिरिक्त घटक (Additional Components)
- एनालॉग सिग्नल (Analog Signals), उन्नत संचार या उच्च गति की गिनती (high-speed counting) के लिए अक्सर विशेष I/O मॉड्यूल की आवश्यकता होती है, जिससे समग्र लागत बढ़ जाती है।
4. सुरक्षा और अपग्रेड (Security and Upgrades)
- जैसे-जैसे पीएलसी नेटवर्क से जुड़ते हैं (IoT), वे साइबर सुरक्षा जोखिमों के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं।
- पुराने सिस्टम को अपग्रेड करना (पुराने पीएलसी मॉडल के पुर्जे न मिलने पर) महंगा और जटिल हो सकता है।
5. निश्चित कार्य समय (Fixed Scan Time)
- पीएलसी स्कैन चक्र पर काम करता है, जो अत्यंत तेज (Fast) होता है। हालाँकि, कुछ अनुप्रयोगों (जैसे बहुत उच्च गति वाले मशीन नियंत्रण) के लिए, यह स्कैन चक्र भी प्रतिक्रिया समय में मामूली विलम्ब (latency) पैदा कर सकता है।
संक्षेप में,
जटिल, बड़े पैमाने के और उच्च-विश्वसनीयता वाले अनुप्रयोगों के लिए पीएलसी उत्कृष्ट हैं, जबकि बहुत सरल ऑन/ऑफ नियंत्रण कार्यों के लिए, रिले-आधारित समाधान लागत-वार अधिक उपयुक्त हो सकता है।
उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले पीएलसी (PLC) मुख्य रूप से उनके डिज़ाइन, आकार और कार्यक्षमता के आधार पर वर्गीकृत किए जाते हैं।
प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
उद्योगों में प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के PLC
1. कॉम्पैक्ट पीएलसी (Compact PLC)
- विशेषताएँ: इसमें सीपीयू, बिजली आपूर्ति (power supply), और I/O (इनपुट/आउटपुट) बिंदु सभी एक ही मॉड्यूल या बाड़े (enclosure) में एकीकृत (integrated) होते हैं।
- उपयोग: छोटे अनुप्रयोगों और मशीनों के लिए उपयुक्त, जहाँ I/O की संख्या सीमित होती है और भविष्य में विस्तार की आवश्यकता कम होती है।
- फायदा: ये लागत प्रभावी (cost-effective) और सरल होते हैं।
2. मॉड्यूलर पीएलसी (Modular PLC)
- विशेषताएँ: इसमें सीपीयू, पावर सप्लाई, और I/O को अलग-अलग मॉड्यूल के रूप में डिज़ाइन किया जाता है, जिन्हें एक रैक (Rack) या चेसिस (Chassis) पर लगाया जाता है।
- उपयोग: बड़े और जटिल नियंत्रण प्रणालियों के लिए, जहाँ I/O की संख्या बहुत अधिक हो सकती है और लचीलेपन (flexibility) की आवश्यकता होती है।
- फायदा: ये अत्यधिक विस्तार योग्य (expandable) और लचीले होते हैं। यदि एक मॉड्यूल विफल हो जाता है, तो केवल उसे ही बदला जा सकता है।
3. माइक्रो पीएलसी (Micro PLC)
- विशेषताएँ: ये कॉम्पैक्ट पीएलसी का एक छोटा और कम-शक्तिशाली संस्करण हैं। इनमें आमतौर पर 32 से कम I/O बिंदु होते हैं।
- उपयोग: बहुत छोटे स्वचालन कार्यों, एकल मशीनों के नियंत्रण या साधारण तर्क नियंत्रण के लिए।
- फायदा: बहुत कम लागत और बहुत छोटे आकार के होते हैं।
4. नैनो पीएलसी (Nano PLC)
- विशेषताएँ: माइक्रो पीएलसी से भी छोटे, जिनमें आमतौर पर 16 या उससे कम I/O बिंदु होते हैं। इन्हें अक्सर स्मार्ट रिले भी कहा जाता है।
- उपयोग: साधारण लाइटिंग नियंत्रण, छोटे एचवीएसी (HVAC) सिस्टम, या बुनियादी सुरक्षा कार्यों के लिए।
- फायदा: न्यूनतम जगह घेरते हैं।
5. रैक-माउंटेड पीएलसी (Rack-Mounted PLC)
- विशेषताएँ: मॉड्यूलर पीएलसी का एक प्रकार, जिसे उद्योग में मानक रैक सिस्टम में लगाया जाता है। ये अत्यधिक उन्नत और उच्च-प्रदर्शन वाले होते हैं।
- उपयोग: बड़ी प्रक्रियाओं, जैसे कि पेट्रोकेमिकल संयंत्र (petrochemical plants), बिजली संयंत्र (power plants) और बड़ी विनिर्माण इकाइयों (manufacturing units) के लिए।
- फायदा: उच्च गति, बड़ी मेमोरी क्षमता और जटिल संचार प्रोटोकॉल का समर्थन करते हैं।
ध्यान दें: यह वर्गीकरण कठोर नहीं है, और कई निर्माता इन श्रेणियों के बीच ओवरलैप (overlap) वाले पीएलसी भी बनाते हैं। चुनाव पूरी तरह से नियंत्रित की जाने वाली प्रक्रिया की जटिलता, आवश्यक I/O की संख्या और भविष्य की विस्तार क्षमता पर निर्भर करता है।
पीएलसी (PLC) को आमतौर पर उनके भौतिक आकार, I/O (इनपुट/आउटपुट) बिंदुओं की संख्या और प्रसंस्करण शक्ति के आधार पर विभिन्न आकारों या श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। मुख्य रूप से उन्हें इन तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है:
1. नैनो और माइक्रो पीएलसी (Nano & Micro PLC)
यह सबसे छोटे आकार की श्रेणी है, जिसे छोटी और साधारण मशीन नियंत्रण के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- आकार: बहुत छोटे और कॉम्पैक्ट। ये एक छोटी सी किताब या स्मार्टफ़ोन जितने बड़े हो सकते हैं।
- I/O क्षमता: आमतौर पर 6 से 32 I/O बिंदु तक सीमित।
- उपयोग: साधारण तर्क कार्य (Simple Logic Tasks), लाइटिंग नियंत्रण, छोटे कन्वेयर सिस्टम या घरेलू स्वचालन।
- विशेषता: अक्सर कॉम्पैक्ट डिज़ाइन (सभी घटक एक इकाई में) होते हैं और इनकी कीमत कम होती है।
2. स्माल पीएलसी (Small PLC)
यह श्रेणी माइक्रो पीएलसी से बड़ी और अधिक शक्तिशाली होती है, जो मध्यम आकार के अनुप्रयोगों के लिए संतुलन प्रदान करती है।
- आकार: मध्यम, जिसे अक्सर एक पैनल के अंदर लगाया जाता है।
- I/O क्षमता: आमतौर पर 30 से 128 I/O बिंदु तक।
- उपयोग: छोटे विनिर्माण मशीनें, पैकेजिंग मशीनें, या मध्यम आकार की प्रक्रियाओं का नियंत्रण।
- विशेषता: ये अक्सर मॉड्यूलर और कॉम्पैक्ट दोनों डिज़ाइन में उपलब्ध होते हैं। मॉड्यूलर डिज़ाइन होने पर, इसमें कुछ अतिरिक्त I/O या फ़ंक्शन मॉड्यूल जोड़ने की सुविधा होती है।
3. लार्ज पीएलसी/मीडियम से लार्ज पीएलसी (Large PLC / Medium-to-Large PLC)
यह सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली श्रेणी है, जिसे जटिल और बड़े पैमाने के औद्योगिक नियंत्रण के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- आकार: ये कई रैक (Racks) में विस्तारित हो सकते हैं, जो पूरे कंट्रोल कैबिनेट (Control Cabinet) में स्थापित होते हैं।
- I/O क्षमता: सैकड़ों से लेकर हज़ारों I/O बिंदु तक।
- उपयोग: बड़े औद्योगिक संयंत्र, असेंबली लाइन, तेल रिफाइनरी, बिजली उत्पादन स्टेशन, या पूरी फैक्ट्री का समन्वय (Coordination)।
- विशेषता: ये लगभग हमेशा मॉड्यूलर होते हैं। ये उच्च-स्तरीय डेटा प्रोसेसिंग, नेटवर्किंग, अतिरेक (Redundancy) और जटिल संचार क्षमताओं का समर्थन करते हैं।
संक्षेप में:
जैसे-जैसे पीएलसी का आकार बढ़ता है, उसकी I/O क्षमता, प्रोग्रामिंग जटिलता को संभालने की शक्ति और डेटा संचार क्षमता भी बढ़ती जाती है।
पीएलसी (PLC) और माइक्रोकंट्रोलर (Microcontroller) दोनों ही प्रोग्रामेबल डिवाइस हैं जिनका उपयोग नियंत्रण (control) के लिए किया जाता है, लेकिन वे डिज़ाइन, उद्देश्य और अनुप्रयोग के क्षेत्र में fundamentally अलग हैं।
यहाँ उनके बीच मुख्य अंतर दिए गए हैं:
पीएलसी और माइक्रोकंट्रोलर के बीच अंतर
विशेषता
पीएलसी (Programmable Logic Controller)
मुख्य उद्देश्य
औद्योगिक स्वचालन (Industrial Automation) और कठोर वातावरण में मशीनरी का नियंत्रण।
डिज़ाइन/कठोरता
अत्यधिक मजबूत (Ruggedized): कंपन, धूल, उच्च/निम्न तापमान, और विद्युत शोर (electrical noise) को सहन करने के लिए डिज़ाइन किया गया।
I/O इंटरफ़ेस
सीधे फील्ड डिवाइस से जुड़ता है: इसमें उच्च वोल्टेज (जैसे 24V DC, 120/240V AC) और उच्च करंट को सीधे नियंत्रित करने के लिए निर्मित I/O मॉड्यूल होते हैं।
प्रोग्रामिंग भाषा
मुख्य रूप से लैडर लॉजिक (Ladder Logic), साथ ही फंक्शन ब्लॉक डायग्राम (FBD), स्ट्रक्चर्ड टेक्स्ट (ST)। यह औद्योगिक इंजीनियरों के लिए आसान है।
प्रसंस्करण गति
स्कैन चक्र (Scan Cycle) पर आधारित। तेज लेकिन माइक्रोकंट्रोलर जितना तेज नहीं। रीयल-टाइम में I/O को प्रबंधित करने के लिए डिज़ाइन किया गया।
कीमत
प्रति इकाई अधिक महंगा।
सामान्य अनुप्रयोग
फैक्ट्री असेंबली लाइन, ट्रैफिक लाइट, रोबोट नियंत्रण, बड़ी प्रक्रियाएँ।
विशेषता
माइक्रोकंट्रोलर (Microcontroller - MCU)
मुख्य उद्देश्य
छोटे, एम्बेडेड (Embedded) सिस्टम में एक विशिष्ट कार्य को नियंत्रित करना।
डिज़ाइन/कठोरता
गैर-मजबूत (Non-Ruggedized): सामान्य इलेक्ट्रॉनिक वातावरण के लिए डिज़ाइन किया गया। औद्योगिक उपयोग के लिए अतिरिक्त सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
I/O इंटरफ़ेस
निम्न वोल्टेज (Low Voltage): आमतौर पर 5V या 3.3V पर काम करता है। फील्ड डिवाइस से जुड़ने के लिए बाहरी सर्किट्री (रिले, ऑप्टोकपलर, ड्राइवर) की आवश्यकता होती है।
प्रोग्रामिंग भाषा
मुख्य रूप से C/C++ या असेंबली भाषा। इसके लिए सॉफ्टवेयर/इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
प्रसंस्करण गति
इवेंट-आधारित (Event-Based) और अत्यंत तेज प्रोसेसिंग गति प्रदान कर सकता है।
कीमत
प्रति इकाई बहुत सस्ता।
सामान्य अनुप्रयोग
रिमोट कंट्रोल, वाशिंग मशीन, कैलकुलेटर, खिलौने, छोटे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट।
मुख्य अंतर का सार
संक्षेप में:
- PLC एक तैयार औद्योगिक कंप्यूटर है जिसे भारी शुल्क नियंत्रण (heavy-duty control) और पर्यावरण के लिए बनाया गया है। इसे प्रोग्राम करना आसान है, और यह सीधे उच्च-शक्ति वाले उपकरणों को चला सकता है।
- माइक्रोकंट्रोलर एक सिंगल-चिप कंप्यूटर है जिसका उपयोग कस्टम-डिज़ाइन किए गए, छोटे एम्बेडेड अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है जहाँ लागत और आकार महत्वपूर्ण होते हैं। इसके लिए उच्च-शक्ति वाले औद्योगिक इंटरफ़ेस बनाने के लिए अतिरिक्त घटकों की आवश्यकता होती है।
पीएलसी (PLC) और डीसीएस (DCS) दोनों ही औद्योगिक नियंत्रण प्रणालियाँ हैं, लेकिन वे अनुप्रयोग के पैमाने (scale), वास्तुकला (architecture) और कार्यक्षमता (functionality) के मामले में भिन्न हैं।
यहाँ पीएलसी और डीसीएस के बीच मुख्य अंतर दिए गए हैं:
पीएलसी (PLC) और डीसीएस (DCS) में मुख्य अंतर
विशेषता
पीएलसी (Programmable Logic Controller)
मुख्य फोकस
डिस्क्रीट (Discrete) नियंत्रण। यह मशीनों, पैकेजिंग लाइनों और इवेंट-चालित लॉजिक (Event-driven logic) के लिए है।
संरचना (Architecture)
केंद्रीकृत (Centralized) या वितरित (Distributed) I/O: नियंत्रण एक या कुछ पीएलसी में होता है, जो अक्सर पॉइंट-टू-पॉइंट या सरल नेटवर्क से जुड़े होते हैं।
गति (Speed)
अत्यधिक तेज स्कैन समय: तेज ऑन/ऑफ और सुरक्षा प्रतिक्रिया के लिए महत्वपूर्ण।
जटिलता (Complexity)
माध्यम से उच्च। यह जटिल तर्क (logic) और अनुक्रमण (sequencing) में श्रेष्ठ है।
डेटा प्रबंधन
बुनियादी डेटा संग्रह और अलार्मिंग। ऐतिहासिक डेटा के लिए अक्सर बाहरी SCADA/HMI सिस्टम की आवश्यकता होती है।
अतिरेक (Redundancy)
वैकल्पिक। केवल मिशन-क्रिटिकल अनुप्रयोगों के लिए ही लागू किया जाता है।
उपयोग
असेंबली लाइन, रोबोटिक्स, पैकेजिंग मशीनें, बिल्डिंग ऑटोमेशन, छोटे से मध्यम बैच प्रक्रियाएँ।
विशेषता
डीसीएस (Distributed Control System)
मुख्य फोकस
सतत (Continuous) प्रक्रिया नियंत्रण। यह प्रक्रियाओं (Flow, Temperature, Pressure) को सुचारू रूप से नियंत्रित करने के लिए है।
संरचना (Architecture)
वितरित नियंत्रण: नियंत्रण कई नियंत्रकों (controllers) में फैला हुआ होता है, जो एक उच्च-क्षमता वाले नेटवर्क से जुड़े होते हैं। नियंत्रण और निगरानी के बीच स्पष्ट अलगाव होता है।
गति (Speed)
धीमा स्कैन समय: प्रक्रिया चर (process variables) को स्थिर करने के लिए अधिक विस्तृत गणना की आवश्यकता होती है।
जटिलता (Complexity)
बहुत उच्च। यह उन्नत प्रक्रिया नियंत्रण, PID लूप और बड़े डेटा प्रबंधन में श्रेष्ठ है।
डेटा प्रबंधन
अंतर्निहित (Inherent) क्षमताएँ: व्यापक डेटा लॉगिंग, ऐतिहासिक रिकॉर्डिंग, उन्नत अलार्म प्रबंधन और रिपोर्टिंग।
अतिरेक (Redundancy)
मानक: नियंत्रक, नेटवर्क और बिजली आपूर्ति में अतिरेक (Redundancy) अक्सर मानक होता है।
उपयोग
तेल और गैस, पेट्रोकेमिकल, बिजली संयंत्र, फार्मास्यूटिकल्स, बड़ी रासायनिक प्रक्रियाएँ।
संक्षिप्त सारांश
- पीएलसी एक तेज, मजबूत और विश्वसनीय नियंत्रक है जो मुख्य रूप से ऑन/ऑफ क्रियाओं (discrete actions) और मशीनों के अनुक्रम नियंत्रण (sequence control) में उत्कृष्टता प्राप्त करता है। यह ब्रेकडाउन को कम करने और उत्पादन क्षमता को अधिकतम करने पर केंद्रित है।
- डीसीएस एक व्यापक नियंत्रण और सूचना प्रणाली है जो बड़े, सतत चलने वाले संयंत्रों की निगरानी और नियंत्रण के लिए डिज़ाइन की गई है। यह प्रक्रिया को स्थिर रखने, गुणवत्ता बनाए रखने और पूरे संयंत्र के संचालन को अनुकूलित (optimize) करने पर केंद्रित है।
आधुनिक उद्योग में,
दोनों प्रणालियों का अक्सर एक-दूसरे के साथ सह-अस्तित्व (co-exist) होता है, जिसमें पीएलसी व्यक्तिगत मशीनों को नियंत्रित करते हैं और डीसीएस पूरे संयंत्र की प्रक्रिया और समन्वय को संभालता है।
पीएलसी (PLC) में सीपीयू (CPU - Central Processing Unit) की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है; यह पीएलसी का मस्तिष्क (Brain) है जो सभी नियंत्रण कार्यों को निर्देशित और निष्पादित करता है।
पीएलसी में सीपीयू की मुख्य भूमिकाएँ
सीपीयू पीएलसी के स्कैन चक्र (Scan Cycle) को चलाता है और नियंत्रण प्रोग्राम के आधार पर इनपुट से आउटपुट तक के पूरे प्रवाह को नियंत्रित करता है। इसकी प्रमुख भूमिकाएँ निम्नलिखित हैं:
1. प्रोग्राम निष्पादन (Program Execution)
- लॉजिक हल करना: सीपीयू मेमोरी में संग्रहीत नियंत्रण प्रोग्राम (जैसे लैडर लॉजिक) को पढ़ता है और उसे लाइन-दर-लाइन (rung-by-rung) निष्पादित करता है।
- निर्णय लेना: यह प्रोग्राम लॉजिक के आधार पर यह निर्धारित करता है कि इनपुट की वर्तमान स्थिति (Status) के परिणामस्वरूप आउटपुट की स्थिति क्या होनी चाहिए।
2. इनपुट/आउटपुट प्रबंधन (I/O Management)
- इनपुट डेटा पढ़ना: सीपीयू, इनपुट मॉड्यूल से भौतिक उपकरणों की वर्तमान स्थिति (जैसे सेंसर ऑन/ऑफ, तापमान रीडिंग) को लेता है और इसे अपनी आंतरिक इनपुट इमेज टेबल में अपडेट करता है।
- आउटपुट कमांड लिखना: प्रोग्राम निष्पादन के बाद, सीपीयू नई आउटपुट स्थितियों को आउटपुट इमेज टेबल से आउटपुट मॉड्यूल में भेजता है, जिससे वास्तविक उपकरण नियंत्रित होते हैं।
3. मेमोरी और डेटा हैंडलिंग (Memory and Data Handling)
- मेमोरी प्रबंधन: यह ऑपरेटिंग सिस्टम, नियंत्रण प्रोग्राम और सभी डेटा (जैसे टाइमर, काउंटर के मान और इनपुट/आउटपुट की स्थिति) को संग्रहीत करने और प्रबंधित करने के लिए मेमोरी (RAM, ROM) का उपयोग करता है।
- डेटा प्रोसेसिंग: यह जटिल नियंत्रण कार्यों के लिए अंकगणितीय (arithmetic) और तार्किक (logical) गणनाएँ करता है।
4. संचार और निदान (Communication and Diagnostics)
- संचार नियंत्रण: सीपीयू अन्य पीएलसी, एचएमआई (HMI), स्कैडा (SCADA) सिस्टम और प्रोग्रामिंग डिवाइस के साथ डेटा विनिमय (data exchange) के लिए संचार मॉड्यूल को नियंत्रित करता है।
- स्व-निदान (Self-Diagnostics): यह लगातार अपने स्वयं के स्वास्थ्य और सिस्टम की अखंडता की जाँच करता है। यदि कोई आंतरिक त्रुटि (जैसे मेमोरी विफलता या पावर लॉस) होती है, तो यह आवश्यक कार्रवाई (जैसे त्रुटि फ्लैग सेट करना या सिस्टम को शटडाउन करना) करता है।
संक्षेप में,
सीपीयू वह केंद्रीय प्रोसेसर है जो स्कैन चक्र (इनपुट पढ़ना, प्रोग्राम हल करना, आउटपुट लिखना) को चलाकर सुनिश्चित करता है कि पीएलसी, प्रोग्राम किए गए तरीके से और वास्तविक समय में, संयंत्र या मशीन को सटीक रूप से नियंत्रित करता रहे।
पीएलसी (PLC) में इनपुट मॉड्यूल (Input Module) और आउटपुट मॉड्यूल (Output Module) वे महत्वपूर्ण इंटरफेस डिवाइस हैं जो पीएलसी के डिजिटल मस्तिष्क (CPU) को बाहरी औद्योगिक उपकरणों से जोड़ते हैं।
इन दोनों मॉड्यूल का कार्य विपरीत होता है, लेकिन दोनों मिलकर पीएलसी को भौतिक दुनिया के साथ इंटरैक्ट करने में सक्षम बनाते हैं।
1. इनपुट मॉड्यूल (Input Module)
इनपुट मॉड्यूल पीएलसी के सेंसर या डिटेक्टर के रूप में कार्य करता है।
विशेषता :- विवरण
कार्य
यह बाहरी इनपुट उपकरणों (Field Devices) से प्राप्त संकेतों (signals) को पीएलसी के सीपीयू द्वारा समझने योग्य डिजिटल सिग्नल (5V DC लॉजिक लेवल) में परिवर्तित करता है।
दिशा
बाहरी उपकरण \rightarrow पीएलसी सीपीयू
मुख्य भूमिका
फील्ड डिवाइस की वर्तमान स्थिति (Status) को पढ़ना और उस डेटा को सीपीयू की आंतरिक मेमोरी (इनपुट इमेज टेबल) में भेजना।
जुड़ने वाले उपकरण
पुश बटन, लिमिट स्विच, प्रॉक्सिमिटी सेंसर, फोटोइलेक्ट्रिक सेंसर, और आपातकालीन स्टॉप बटन।
प्रकार
डिजिटल इनपुट: ऑन/ऑफ (0 या 1) सिग्नल के लिए। एनालॉग इनपुट: निरंतर बदलने वाले सिग्नल (जैसे तापमान, दबाव, 4-20mA, 0-10V) को डिजिटल मानों में बदलने के लिए।
सुरक्षा
इसमें ऑप्टिकल आइसोलेटर (Optical Isolator) सर्किट होता है जो फील्ड उपकरणों के उच्च वोल्टेज को सीपीयू की संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक्स से अलग करता है।
2. आउटपुट मॉड्यूल (Output Module)
आउटपुट मॉड्यूल पीएलसी के एक्चुएटर या नियंत्रण भुजा (Control Arm) के रूप में कार्य करता है।
विशेषता:- विवरण
कार्य
यह सीपीयू से प्राप्त नियंत्रण कमांड को लेता है और उन्हें बाहरी आउटपुट उपकरणों (Field Devices) को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक उच्च-शक्ति वाले विद्युत संकेतों में परिवर्तित करता है।
दिशा
पीएलसी सीपीयू \rightarrow बाहरी उपकरण
मुख्य भूमिका
सीपीयू से प्राप्त आदेशों के आधार पर बाहरी उपकरणों (जैसे मोटर, वाल्व) को भौतिक रूप से सक्रिय (Activate) या निष्क्रिय (Deactivate) करना।
जुड़ने वाले उपकरण
मोटर स्टार्टर (Motor Starters), सोलनॉइड वाल्व (Solenoid Valves), रिले, इंडिकेटर लाइट, हीटर और अलार्म।
प्रकार
डिजिटल आउटपुट: ऑन/ऑफ (0 या 1) कमांड के लिए। एनालॉग आउटपुट: नियंत्रण चर (जैसे मोटर की गति, वाल्व की स्थिति) को लगातार बदलने के लिए।
आइसोलेशन
यह सीपीयू को वापस आने वाले उच्च वोल्टेज (back-voltage) से बचाता है।
ये दोनों मॉड्यूल मिलकर यह सुनिश्चित करते हैं कि पीएलसी, प्रोग्राम किए गए लॉजिक के अनुसार, भौतिक दुनिया की निगरानी कर सके और उस पर कार्रवाई कर सके।
पीएलसी (PLC) में डिजिटल इनपुट और एनालॉग इनपुट के बीच मुख्य अंतर उनके द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले सिग्नल के प्रकार और प्रकृति में होता है।
डिजिटल इनपुट (Digital Input)
डिजिटल इनपुट को असतत (Discrete) इनपुट भी कहा जाता है।
-
सिग्नल का प्रकार: ये केवल दो अवस्थाओं (states) का प्रतिनिधित्व करते हैं:
- चालू (ON) या बंद (OFF)
- सत्य (True) या असत्य (False)
- 1 या 0 (बाइनरी)
- खुला (Open) या बंद (Close)
- प्रकृति: ये सिग्नल असंतत (non-continuous) होते हैं। इनमें बीच का कोई मान नहीं होता।
- उदाहरण: पुश बटन, लिमिट स्विच, प्रॉक्सिमिटी सेंसर, ऑन/ऑफ स्थिति दिखाने वाले सेंसर।
- उपयोग: उन प्रक्रियाओं के लिए आदर्श हैं जिनमें साधारण, बाइनरी निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, जैसे मोटर को शुरू या बंद करना।
एनालॉग इनपुट (Analog Input)
- सिग्नल का प्रकार: ये मानों की एक निरंतर रेंज (continuous range of values) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- प्रकृति: ये सिग्नल सतत (continuous) होते हैं और समय के साथ धीरे-धीरे बदलते रहते हैं।
- उदाहरण: तापमान सेंसर (थर्मोकपल), दबाव ट्रांसड्यूसर, प्रवाह मीटर, पोटेंशियोमीटर।
- उपयोग: उन अनुप्रयोगों में उपयोग किए जाते हैं जहां सटीक माप और नियंत्रण की आवश्यकता होती है, जैसे तापमान, दबाव या प्रवाह दर का नियमन। एनालॉग सिग्नल को पीएलसी द्वारा संसाधित किए जाने से पहले एक एनालॉग-टू-डिजिटल कन्वर्टर (ADC) द्वारा डिजिटल डेटा में परिवर्तित किया जाता है।
- मानक सिग्नल: औद्योगिक अनुप्रयोगों में आम तौर पर इस्तेमाल होने वाले एनालॉग सिग्नल 0 से 10 वोल्ट (V) या 4 से 20 मिलीएम्पियर (mA) की रेंज में होते हैं।
मुख्य अंतरों का सारांश
विशेषता:- डिजिटल इनपुट
सिग्नल की प्रकृति
असतत (Discrete) / असंतत
मान (Value)
केवल दो अवस्थाएँ (ON/OFF, 1/0)
उपयोगिता
साधारण ऑन/ऑफ नियंत्रण
जटिलता
सेटअप और समस्या निवारण (troubleshooting) में सरल
विशेषता:- एनालॉग इनपुट
सिग्नल की प्रकृति
सतत (Continuous) / निरंतर
मान (Value)
मानों की एक रेंज (उदाहरण: 0-10V)
उपयोगिता
सटीक मापन और नियंत्रण
जटिलता
सेटअप और अंशांकन (calibration) में अधिक जटिल
पीएलसी (PLC) में डिजिटल आउटपुट और एनालॉग आउटपुट के बीच मुख्य अंतर उनके द्वारा नियंत्रित किए जाने वाले सिग्नल के प्रकार और कार्य में होता है।
डिजिटल आउटपुट (Digital Output)
डिजिटल आउटपुट को असतत (Discrete) आउटपुट भी कहा जाता है।
- सिग्नल का प्रकार: ये केवल दो अवस्थाओं को नियंत्रित करते हैं: ON (चालू) या OFF (बंद)।
- प्रकृति: ये आउटपुट असंतत (non-continuous) होते हैं और इनका उपयोग केवल दो-स्थिति नियंत्रण के लिए किया जाता है।
- उदाहरण: कॉन्टैक्टर (मोटर चालू/बंद करना), सोलेनोइड वाल्व (पूरी तरह खुला/बंद), पायलट लैंप/इंडिकेटर लाइट, रिले।
- कार्य: पीएलसी डिजिटल आउटपुट का उपयोग उन उपकरणों को नियंत्रित करने के लिए करता है जिन्हें केवल चालू या बंद करने की आवश्यकता होती है।
एनालॉग आउटपुट (Analog Output)
- सिग्नल का प्रकार: ये मानों की एक निरंतर रेंज (continuous range of values) का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसका उपयोग आउटपुट डिवाइस की क्रिया को आनुपातिक रूप से नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
- प्रकृति: ये आउटपुट सतत (continuous) होते हैं और पीएलसी से भेजे गए डिजिटल डेटा को एक डिजिटल-टू-एनालॉग कन्वर्टर (DAC) द्वारा एनालॉग सिग्नल में बदलकर नियंत्रित करते हैं।
- उदाहरण: वेरिएबल फ्रीक्वेंसी ड्राइव (VFD) को मोटर की गति नियंत्रित करने के लिए, कंट्रोल वाल्व (वाल्व के खुलने की डिग्री को नियंत्रित करने के लिए), हीटिंग एलिमेंट को पावर आउटपुट नियंत्रित करने के लिए।
- कार्य: पीएलसी एनालॉग आउटपुट का उपयोग उन उपकरणों को नियंत्रित करने के लिए करता है जिन्हें सटीक, चर (variable) नियंत्रण की आवश्यकता होती है, जैसे किसी मोटर की गति या किसी वाल्व की स्थिति को 0% से 100% के बीच नियंत्रित करना।
- मानक सिग्नल: आमतौर पर 0-10V या 4-20mA जैसे मानक सिग्नल का उपयोग किया जाता है।
मुख्य अंतरों का सारांश
नियंत्रण का प्रकार
दो-स्थिति नियंत्रण (Two-State Control)
उदाहरण
सोलेनोइड, लैंप, कॉन्टैक्टर, रिले
जटिलता
सरल
एनालॉग आउटपुट :-
सिग्नल की प्रकृति
सतत (चर मानों की रेंज)
नियंत्रण का प्रकार
आनुपातिक नियंत्रण (Proportional Control)
उदाहरण
VFD, कंट्रोल वाल्व, सर्वो मोटर
जटिलता
अधिक जटिल (DAC आवश्यक)
पीएलसी (PLC) में पावर सप्लाई मॉड्यूल (Power Supply Module - PSU) का उपयोग पूरे पीएलसी सिस्टम को काम करने के लिए आवश्यक विद्युत शक्ति प्रदान करना है।
इसका मुख्य कार्य है:
वोल्टेज रूपांतरण (Voltage Conversion): यह आमतौर पर बाहर से आने वाले AC (अल्टरनेटिंग करंट) या DC (डायरेक्ट करंट) इनपुट को लेता है (जैसे 120V AC या 220V AC) और इसे पीएलसी के आंतरिक घटकों को सुरक्षित रूप से संचालित करने के लिए आवश्यक कम DC वोल्टेज में परिवर्तित करता है। अधिकांश पीएलसी CPU और अन्य मॉड्यूल को संचालित करने के लिए {24V\ DC} की आवश्यकता होती है।
बिजली वितरण (Power Distribution): यह परिवर्तित और विनियमित (regulated) DC पावर को PLC के CPU, इनपुट/आउटपुट (I/O) मॉड्यूल और कम्युनिकेशन मॉड्यूल तक पहुँचाता है, ताकि ये सभी आंतरिक रूप से काम कर सकें।
सुरक्षा और स्थिरता (Protection and Stability): यह बाहरी पावर सप्लाई में होने वाले उतार-चढ़ाव (fluctuations) से पीएलसी के संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक्स की रक्षा करता है और CPU के स्थिर और विश्वसनीय संचालन को सुनिश्चित करने के लिए एक स्थिर और स्वच्छ (stable and clean) बिजली की आपूर्ति बनाए रखता है।
संक्षेप में,
पावर सप्लाई मॉड्यूल PLC का हृदय है, जो सुनिश्चित करता है कि सिस्टम के सभी डिजिटल घटक सही वोल्टेज पर और विश्वसनीय तरीके से कार्य करते रहें।
पीएलसी में आई/ओ एड्रेसिंग (I/O Addressing) एक ऐसी प्रणाली है जिसका उपयोग प्रोग्रामेबल लॉजिक कंट्रोलर (PLC) के भीतर प्रत्येक इनपुट और आउटपुट टर्मिनल की पहचान करने के लिए किया जाता है।
सरल शब्दों में, यह PLC के CPU को यह बताने का एक तरीका है कि:
- बाहरी दुनिया से आ रहा कौन सा सिग्नल (इनपुट) PLC मेमोरी के किस विशिष्ट स्थान पर संग्रहीत (stored) है।
- PLC प्रोग्राम द्वारा उत्पन्न कौन सा कमांड (आउटपुट) बाहरी डिवाइस को सक्रिय करने के लिए किस विशिष्ट आउटपुट टर्मिनल पर भेजा जाना है।
आई/ओ एड्रेसिंग क्यों महत्वपूर्ण है?
यह प्रोग्रामर को PLC के लॉजिक प्रोग्राम में भौतिक रूप से जुड़े हुए सेंसर, स्विच और एक्चुएटर्स (मोटर, वाल्व आदि) को स्पष्ट रूप से संदर्भित करने की अनुमति देता है।
- उदाहरण के लिए: जब आप लैडर लॉजिक में यह निर्देश देते हैं कि "यदि स्टार्ट बटन दबाया जाता है, तो मोटर को चालू करें," तो PLC को यह जानने की आवश्यकता होती है कि स्टार्ट बटन का इनपुट सिग्नल और मोटर को चालू करने का आउटपुट कमांड किस सटीक पते (Address) पर स्थित है।
एड्रेस फॉर्मेट (Address Format)
एड्रेसिंग का सटीक फॉर्मेट PLC के निर्माता (जैसे सीमेंस, एलन ब्रैडली, श्नाइडर) और मॉडल पर निर्भर करता है, लेकिन इसमें आमतौर पर निम्नलिखित तत्व शामिल होते हैं:
आम एड्रेसिंग उदाहरण
-
सीमेंस स्टाइल:
- %I0.0 (डिजिटल इनपुट): इनपुट (I) बाइट 0 का बिट 0
- %Q0.1 (डिजिटल आउटपुट): आउटपुट (Q) बाइट 0 का बिट 1
- %IW130 (एनालॉग इनपुट): इनपुट (I) वर्ड (W) 130
-
एलन ब्रैडली स्टाइल:
- I:1/0 (डिजिटल इनपुट): इनपुट फाइल (I) रैक/स्लॉट 1 का बिट 0
- O:2/5 (डिजिटल आउटपुट): आउटपुट फाइल (O) रैक/स्लॉट 2 का बिट 5
पीएलसी (PLC) इनपुट/आउटपुट (I/O) में सिंकिंग (Sinking) और सोर्सिंग (Sourcing) दो महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं जो बताती हैं कि डिवाइस में करंट कैसे प्रवाहित होता है।
सिंकिंग (Sinking)
सिंकिंग I/O तब होता है जब एक डिवाइस करंट को स्वीकार करता है या खींचता है।
- इनपुट: एक सिंकिंग इनपुट मॉड्यूल (यानी, एक पॉजिटिव-लॉजिक या PNP इनपुट) को काम करने के लिए पॉजिटिव वोल्टेज (जैसे +24V DC) की आवश्यकता होती है। जब फील्ड डिवाइस (जैसे सेंसर या स्विच) से पॉजिटिव वोल्टेज इनपुट टर्मिनल पर आता है, तो करंट मॉड्यूल से गुजरता है और कॉमन/नेगेटिव टर्मिनल (0V या ग्राउंड) की ओर प्रवाहित होता है।
- आउटपुट: एक सिंकिंग आउटपुट मॉड्यूल (यानी, एक NPN आउटपुट) अपने से जुड़े लोड (जैसे रिले या लैंप) को सक्रिय करने के लिए नेगेटिव साइड को स्विच करता है। आउटपुट से जुड़ी डिवाइस को पहले से ही पॉजिटिव वोल्टेज से जोड़ा जाता है। जब आउटपुट सक्रिय होता है, तो यह डिवाइस से करंट को अपनी ओर खींचता है और उसे 0V या ग्राउंड तक प्रवाहित होने देता है।
सोर्सिंग (Sourcing)
सोर्सिंग I/O तब होता है जब एक डिवाइस करंट प्रदान करता है या बाहर निकालता है।
- इनपुट: एक सोर्सिंग इनपुट मॉड्यूल (यानी, एक नेगेटिव-लॉजिक या NPN इनपुट) को काम करने के लिए नेगेटिव वोल्टेज (यानी, 0V या ग्राउंड) की आवश्यकता होती है। जब फील्ड डिवाइस से 0V/ग्राउंड इनपुट टर्मिनल पर आता है, तो मॉड्यूल के अंदर का सर्किट सक्रिय हो जाता है, क्योंकि मॉड्यूल पॉजिटिव वोल्टेज (जैसे +24V DC) प्रदान कर रहा होता है।
- आउटपुट: एक सोर्सिंग आउटपुट मॉड्यूल (यानी, एक PNP आउटपुट) अपने से जुड़े लोड को सक्रिय करने के लिए पॉजिटिव साइड को स्विच करता है। जब आउटपुट सक्रिय होता है, तो यह लोड को पॉजिटिव वोल्टेज (जैसे +24V DC) प्रदान करता है, और करंट मॉड्यूल से लोड की ओर प्रवाहित होता है, जो 0V या ग्राउंड से जुड़ा होता है।
मुख्य अंतर
विशेषता:- सिंकिंग (Sinking)
आउटपुट प्रकार
NPN (नेगेटिव स्विचिंग)
करंट प्रवाह
डिवाइस खींचता है (नेगेटिव स्विच)
इनपुट प्रकार
PNP (पॉजिटिव की आवश्यकता)
I/O कनेक्शन
पॉजिटिव कॉमन (आउटपुट के लिए)
विशेषता:- सोर्सिंग (Sourcing)
आउटपुट प्रकार
PNP (पॉजिटिव स्विचिंग)
करंट प्रवाह
डिवाइस प्रदान करता है (पॉजिटिव स्विच)
इनपुट प्रकार
NPN (नेगेटिव की आवश्यकता)
I/O कनेक्शन
नेगेटिव/ग्राउंड कॉमन (आउटपुट के लिए)
याद रखने का सरल तरीका:
- सोर्सिंग (Sourcing) = प्रदान करना (करंट बाहर निकालता है) - यह Positive वोल्टेज को स्विच करता है (PNP)।
- सिंकिंग (Sinking) = खींचना/स्वीकार करना (करंट अंदर लेता है) - यह Negative (Ground) को स्विच करता है (NPN)।
महत्व:
सिंकिंग और सोर्सिंग की अवधारणाएँ संगतता के लिए महत्वपूर्ण हैं। PLC का सोर्सिंग आउटपुट (PNP) एक सिंकिंग इनपुट (PNP) वाले डिवाइस को चलाने के लिए सबसे उपयुक्त है।
इसी तरह,
PLC का सिंकिंग आउटपुट (NPN) एक सोर्सिंग इनपुट (NPN) वाले डिवाइस के साथ सबसे अच्छा काम करता है। इन्हें आमतौर पर मातृत्व (mating) कहा जाता है।
फिक्स्ड (Fixed) और मॉड्यूलर (Modular) पीएलसी (PLC) के बीच मुख्य अंतर उनकी डिजाइन, लचीलेपन, विस्तार क्षमता (Scalability), और मरम्मत (Repair) में होता है।
फिक्स्ड पीएलसी (जिसे कॉम्पैक्ट पीएलसी भी कहा जाता है) एक ऑल-इन-वन यूनिट होती है, जबकि मॉड्यूलर पीएलसी एक रैक-आधारित सिस्टम होती है जिसे विभिन्न घटकों को जोड़कर बनाया जाता है।
फिक्स्ड (कॉम्पैक्ट) पीएलसी
- डिजाइन: यह एक ही संलग्न इकाई होती है जिसमें सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (CPU), पावर सप्लाई (Power Supply) और इनपुट/आउटपुट (I/O) मॉड्यूल सब एक साथ बने होते हैं।
- I/O क्षमता: इनपुट और आउटपुट की संख्या तय (Fixed) होती है और निर्माता द्वारा निर्धारित की जाती है। इन्हें आसानी से बढ़ाया नहीं जा सकता।
- विस्तार क्षमता (Scalability): बहुत सीमित। यदि आपको अधिक I/O की आवश्यकता है, तो आपको अक्सर पूरी पीएलसी को बदलना पड़ता है या केवल छोटे विस्तार मॉड्यूल (Extension Modules) का उपयोग करना पड़ता है।
- उपयोग: छोटे, सरल और कम जटिल नियंत्रण कार्यों के लिए आदर्श, जहाँ I/O की संख्या भविष्य में बदलने की संभावना कम होती है।
- लागत: प्रारंभिक लागत (Initial Cost) आमतौर पर कम होती है।
- मरम्मत: यदि कोई भी घटक (जैसे एक I/O पॉइंट) विफल हो जाता है, तो अक्सर पूरी यूनिट को बदलना पड़ता है, जिससे मरम्मत मुश्किल हो जाती है।
- आकार: आमतौर पर छोटा (कॉम्पैक्ट)।
मॉड्यूलर पीएलसी
- डिजाइन: यह एक रैक या चेसिस पर आधारित होती है, जिसमें अलग-अलग मॉड्यूल को स्लॉट्स में प्लग किया जाता है। मुख्य मॉड्यूल में CPU, पावर सप्लाई, और अलग-अलग I/O मॉड्यूल शामिल होते हैं।
- I/O क्षमता: I/O की संख्या परिवर्तनीय (Variable) होती है। उपयोगकर्ता अपनी आवश्यकता के अनुसार डिजिटल, एनालॉग, या विशेष फंक्शन मॉड्यूल जोड़ या हटा सकते हैं।
- विस्तार क्षमता (Scalability): अत्यधिक लचीला। आप ऑपरेशन के विस्तार के साथ-साथ I/O, मेमोरी या संचार क्षमताओं को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त मॉड्यूल जोड़ सकते हैं।
- उपयोग: बड़े, जटिल और स्केलेबल सिस्टम के लिए आदर्श, जैसे कि असेंबली लाइन, केमिकल प्लांट, या बड़े मशीन ऑटोमेशन।
- लागत: प्रारंभिक लागत आमतौर पर अधिक होती है।
- मरम्मत: रखरखाव और समस्या निवारण (Troubleshooting) आसान होता है। यदि कोई एक मॉड्यूल विफल हो जाता है, तो केवल उस विशेष मॉड्यूल को बदला जा सकता है, जिससे डाउनटाइम (Downtime) कम हो जाता है।
- आकार: आमतौर पर बड़ा।
सारांशित तुलना
विशेषता:- फिक्स्ड (कॉम्पैक्ट) पीएलसी
संरचना
ऑल-इन-वन यूनिट
I/O क्षमता
तय (Fixed) और सीमित
विस्तार
सीमित (छोटे विस्तार मॉड्यूल संभव)
जटिलता
सरल अनुप्रयोग
लागत
कम प्रारंभिक लागत
मरम्मत
विफल होने पर पूरी यूनिट बदलनी पड़ती है
विशेषता:-मॉड्यूलर पीएलसी
संरचना
रैक/चेसिस आधारित, अलग मॉड्यूल
I/O क्षमता
परिवर्तनीय (Variable) और उच्च
विस्तार
अत्यधिक लचीला (नए मॉड्यूल जोड़ सकते हैं)
जटिलता
जटिल और बड़े अनुप्रयोग
लागत
उच्च प्रारंभिक लागत
मरम्मत
केवल दोषपूर्ण मॉड्यूल बदला जा सकता है
फिक्स्ड पीएलसी सरल और लागत प्रभावी समाधान हैं, जबकि मॉड्यूलर पीएलसी भविष्य में विकास और जटिल नियंत्रण के लिए अधिक अनुकूलनीय हैं।
पीएलसी हार्डवेयर में अतिरेक (Redundancy) एक डिज़ाइन सिद्धांत है जिसमें सिस्टम में किसी घटक (Component) के विफल होने की स्थिति में सतत संचालन (Continuous Operation) सुनिश्चित करने के लिए डुप्लिकेट (Duplicate) या बैकअप हार्डवेयर प्रदान किया जाता है।
सरल शब्दों में,
इसका मतलब है कि आप एक ही महत्वपूर्ण कार्य को करने के लिए सिस्टम में दो या दो से अधिक समान उपकरण रखते हैं। यदि प्राथमिक उपकरण विफल हो जाता है, तो बैकअप उपकरण तुरंत उसका कार्यभार संभाल लेता है, जिससे प्रक्रिया में कोई रुकावट नहीं आती है।
अतिरेक का उद्देश्य
- विश्वसनीयता (Reliability) बढ़ाना: सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी एकल विफलता (Single Point of Failure) के कारण संपूर्ण औद्योगिक प्रक्रिया रुक न जाए।
- डाउनटाइम (Downtime) कम करना: यह विफलता के कारण होने वाले उत्पादन नुकसान और महंगे मरम्मत समय को कम करता है।
- सुरक्षा (Safety) सुनिश्चित करना: पेट्रोलियम, गैस, ऊर्जा और रसायन जैसे महत्वपूर्ण उद्योगों में, एक क्षणिक नियंत्रण विफलता भी खतरनाक दुर्घटनाओं का कारण बन सकती है, जिसे अतिरेक रोकता है।
अतिरेक के मुख्य घटक
अतिरेक को पीएलसी सिस्टम के विभिन्न स्तरों पर लागू किया जाता है:
-
सीपीयू अतिरेक (CPU Redundancy):
- इसमें दो समान सीपीयू होते हैं जो एक साथ काम करते हैं।
- एक प्राथमिक (Primary) नियंत्रक के रूप में कार्य करता है, जबकि दूसरा स्टैंडबाय (Standby) पर रहता है।
- दोनों सीपीयू लगातार एक समर्पित लिंक के माध्यम से डेटा सिंक्रोनाइज़ करते रहते हैं।
- यदि प्राथमिक सीपीयू विफल हो जाता है, तो स्टैंडबाय सीपीयू तुरंत और निर्बाध रूप से (Bumpless Transfer) नियंत्रण संभाल लेता है।
-
पावर सप्लाई अतिरेक (Power Supply Redundancy):
- एक ही सिस्टम को बिजली देने के लिए दो अलग-अलग पावर सप्लाई यूनिट्स का उपयोग किया जाता है।
- ये समानांतर (Parallel) में जुड़े होते हैं, ताकि यदि एक इकाई विफल हो जाए, तो दूसरी इकाई बिना किसी रुकावट के पूरी शक्ति प्रदान करती रहे।
- I/O मॉड्यूल अतिरेक (I/O Module Redundancy):
- इसमें इनपुट और आउटपुट मॉड्यूल के लिए डुप्लिकेट सेट होते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि सेंसर और एक्चुएटर्स के साथ संचार एक मॉड्यूल की विफलता के बावजूद बना रहे।
अतिरेक के प्रकार (Hot vs. Cold Standby)
अतिरेक मुख्य रूप से दो तरीकों से लागू की जाती है, जो स्विचओवर की गति को निर्धारित करती है:
प्रकार:- हॉट स्टैंडबाय (Hot Standby)
स्थिति
प्राथमिक और स्टैंडबाय दोनों सक्रिय और सिंक्रोनाइज्ड रहते हैं।
स्विचओवर
त्वरित (Instantaneous) और निर्बाध (Bumpless)।
उपयोग
अत्यंत महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ जहाँ एक भी मिलीसेकंड का विलंब अस्वीकार्य है।
प्रकार:- कोल्ड स्टैंडबाय (Cold Standby)
स्थिति
स्टैंडबाय सिस्टम ऑफलाइन रहता है।
स्विचओवर
धीमा। विफलता के बाद सिस्टम को मैन्युअल रूप से या स्वचालित रूप से चालू किया जाता है।
उपयोग
कम महत्वपूर्ण प्रक्रियाएँ जहाँ कुछ सेकंड या मिनट का डाउनटाइम स्वीकार्य है।
पीएलसी में संचार पोर्ट (Communication Port) की भूमिका एक पुल (Bridge) के रूप में कार्य करना है, जो पीएलसी को बाहरी उपकरणों और सिस्टम से जुड़ने और उनके बीच डेटा का आदान-प्रदान करने की अनुमति देता है। यह पीएलसी को औद्योगिक स्वचालन प्रणाली का एक अभिन्न अंग बनाता है।
संचार पोर्ट की मुख्य भूमिकाओं को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है:
1. प्रोग्रामिंग और डीबगिंग (Programming and Debugging)
यह संचार पोर्ट का सबसे मौलिक कार्य है।
- प्रोग्राम डाउनलोड: इंजीनियर पीसी या लैपटॉप को पीएलसी के संचार पोर्ट (जैसे USB, RS-232, या ईथरनेट) से जोड़ते हैं ताकि कंट्रोल लॉजिक प्रोग्राम (लैडर लॉजिक) को पीएलसी की सीपीयू मेमोरी में डाउनलोड कर सकें।
- ऑनलाइन मॉनिटरिंग और डीबगिंग: यह पोर्ट पीएलसी के वास्तविक समय (Real-Time) संचालन की निगरानी करने की अनुमति देता है। इंजीनियर लाइव इनपुट/आउटपुट स्टेटस, टाइमर, काउंटर्स, और मेमोरी वैल्यू को देख सकते हैं, जिससे समस्या निवारण (Troubleshooting) और लॉजिक को डीबग करना आसान हो जाता है।
2. मानव-मशीन इंटरैक्शन (HMI/SCADA Communication)
संचार पोर्ट पीएलसी को ऑपरेटर इंटरफेस उपकरणों से जोड़ता है।
- HMI (Human Machine Interface): यह पीएलसी को टच स्क्रीन पैनल से जोड़ता है। पीएलसी अपने डेटा (जैसे तापमान, दबाव, मोटर की स्थिति) को HMI पर भेजती है ताकि ऑपरेटर प्रक्रिया की निगरानी कर सकें। ऑपरेटर HMI के माध्यम से कमांड भेजकर पीएलसी को नियंत्रित भी कर सकते हैं।
- SCADA (Supervisory Control and Data Acquisition) / MES: यह पोर्ट पीएलसी को उच्च-स्तरीय डेटा अधिग्रहण और नियंत्रण प्रणालियों से जोड़ता है। यह डेटा को लंबी अवधि के डेटा लॉगिंग, रिपोर्टिंग और प्लांट-वाइड नियंत्रण के लिए सर्वर तक पहुँचाता है।
3. नेटवर्क और फील्ड डिवाइस कम्युनिकेशन (Networking and Field Devices)
संचार पोर्ट पीएलसी को अन्य औद्योगिक उपकरणों से जोड़कर एक नेटवर्क बनाता है।
- पीएलसी-टू-पीएलसी कम्युनिकेशन: बड़े या वितरित नियंत्रण प्रणालियों में, एक पीएलसी दूसरे पीएलसी के साथ डेटा (सिग्नल, स्टेटस) का आदान-प्रदान करने के लिए इस पोर्ट का उपयोग करती है।
- फील्ड डिवाइस से कनेक्शन: यह पोर्ट पीएलसी को वेरिएबल फ़्रीक्वेंसी ड्राइव (VFD), सर्वो ड्राइव, बारकोड रीडर, स्मार्ट सेंसर और रिमोट I/O मॉड्यूल जैसे उपकरणों से जोड़ता है।
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प्रोटोकॉल: इन संचारों को स्थापित करने के लिए विभिन्न प्रोटोकॉल का उपयोग किया जाता है, जैसे:
- सीरियल पोर्ट: RS-232, RS-485 (Modbus RTU, Profibus DP)
- नेटवर्क पोर्ट (RJ45): ईथरनेट, Modbus TCP/IP, Profinet, EtherNet/IP
संक्षेप में,
संचार पोर्ट पीएलसी के लिए दुनिया से जुड़ने का प्रवेश द्वार है, जो इसे सिर्फ एक कंट्रोलर के बजाय एक पूर्ण ऑटोमेशन हब बनाता है।
पीएलसी प्रोग्रामिंग के लिए उपयोग की जाने वाली सामान्य भाषाएँ अंतर्राष्ट्रीय मानक IEC 61131-3 द्वारा परिभाषित हैं। ये भाषाएँ विभिन्न अनुप्रयोगों और इंजीनियरों की प्रोग्रामिंग शैलियों को समायोजित करती हैं।
यहाँ पाँच मुख्य भाषाएँ और उनकी भूमिकाएँ दी गई हैं:
1. लैडर लॉजिक (Ladder Diagram - LD)
- विवरण: यह सबसे लोकप्रिय और पारंपरिक पीएलसी प्रोग्रामिंग भाषा है। इसका लेआउट विद्युत नियंत्रण सर्किट आरेख (रिले लॉजिक) के समान दिखता है।
- प्रोग्रामिंग शैली: यह दो ऊर्ध्वाधर रेलों (रेलें) के बीच क्षैतिज "रंगों" (Rungs) का उपयोग करती है। प्रत्येक रंग में इनपुट (सामान्यतः खुले/बंद संपर्क) और आउटपुट (कॉइल) होते हैं।
- उपयोग: यह उन तकनीशियनों के लिए सहज है जिन्हें पारंपरिक रिले नियंत्रण का अनुभव है। यह डिजिटल और इंटरलॉक लॉजिक (Digital and Interlock Logic) के लिए उत्कृष्ट है।
2. इंस्ट्रक्शन लिस्ट (Instruction List - IL)
- विवरण: यह टेक्स्ट-आधारित और निम्न-स्तरीय (Low-Level) भाषा है, जो असेंबली भाषा के समान है।
- प्रोग्रामिंग शैली: यह छोटे कोड स्टेटमेंट्स की एक सूची का उपयोग करती है, जिसमें ऑपरेटर (जैसे LD, AND, OR, ST) और ऑपरेंड (मेमोरी एड्रेस) शामिल होते हैं।
- उपयोग: इसका उपयोग अक्सर जटिल या गति-संवेदनशील (Speed-Sensitive) कार्यों के लिए किया जाता है, जहाँ मेमोरी का कुशल उपयोग महत्वपूर्ण होता है।
3. फंक्शन ब्लॉक डायग्राम (Function Block Diagram - FBD)
- विवरण: यह एक ग्राफिकल भाषा है जो लॉजिक को पुनः प्रयोज्य ब्लॉक (Reusable Blocks) के रूप में दर्शाती है।
- प्रोग्रामिंग शैली: यह मानकीकृत फ़ंक्शन ब्लॉक (जैसे टाइमर, काउंटर, गणितीय ऑपरेशन या PID कंट्रोलर) का उपयोग करता है। डेटा इनपुट से फ़ंक्शन ब्लॉक में और फिर आउटपुट में लाइनों के माध्यम से प्रवाहित होता है।
- उपयोग: नियंत्रण लूप (Control Loops), जटिल गणित, और एनालॉग डेटा प्रोसेसिंग के लिए बहुत अच्छा है। यह लैडर लॉजिक की तुलना में जटिल कार्यों को अधिक व्यवस्थित तरीके से प्रस्तुत करता है।
4. स्ट्रक्चर्ड टेक्स्ट (Structured Text - ST)
- विवरण: यह एक टेक्स्ट-आधारित और उच्च-स्तरीय भाषा है, जो पास्कल या C जैसी पारंपरिक प्रोग्रामिंग भाषाओं के समान है।
- प्रोग्रामिंग शैली: यह संरचित स्टेटमेंट का उपयोग करती है, जैसे IF-THEN-ELSE, FOR, WHILE, और CASE।
- उपयोग: यह जटिल एल्गोरिदम, डेटा हेरफेर, स्ट्रिंग ऑपरेशन और परिष्कृत गणितीय गणनाओं को लागू करने के लिए आदर्श है, जिन्हें ग्राफिकल भाषाओं में प्रोग्राम करना मुश्किल हो सकता है।
5. सिक्वेंशियल फंक्शन चार्ट (Sequential Function Chart - SFC)
- विवरण: यह एक ग्राफिकल भाषा है जिसका उपयोग अनुक्रमिक (Sequential) और राज्य-आधारित (State-Based) मशीन नियंत्रण को व्यवस्थित करने के लिए किया जाता है।
- प्रोग्रामिंग शैली: इसमें स्टेप्स (Steps), ट्रांजिशन (Transitions) और एक्शन (Actions) का उपयोग किया जाता है। स्टेप्स मशीन की अलग-अलग अवस्थाओं (जैसे 'स्टार्टिंग', 'प्रोसेसिंग', 'स्टॉपिंग') का प्रतिनिधित्व करते हैं, और ट्रांजिशन अगले स्टेप पर जाने के लिए शर्तें हैं।
- उपयोग: बैचिंग ऑपरेशन, रोबोटिक सीक्वेंस और किसी भी मशीन के लिए उत्कृष्ट है जिसका संचालन चरणों के एक निश्चित अनुक्रम का पालन करता है। यह जटिल प्रक्रियाओं को समझने में बहुत आसान बनाता है।
सीढ़ी तर्क आरेख (Ladder Diagram - LD) एक प्रोग्रामिंग भाषा है जिसका उपयोग प्रोग्रामेबल लॉजिक कंट्रोलर (PLC) को प्रोग्राम करने के लिए किया जाता है। यह IEC 61131-3 मानक द्वारा परिभाषित पाँच प्रोग्रामिंग भाषाओं में से एक है।
सीढ़ी तर्क आरेख (Ladder Diagram - LD) क्या है?
सीढ़ी तर्क आरेख एक ग्राफिकल प्रोग्रामिंग भाषा है जिसका डिज़ाइन पारंपरिक विद्युत नियंत्रण सर्किट (रिले लॉजिक) के आरेख जैसा दिखता है। इसे "सीढ़ी" कहा जाता है क्योंकि इसका स्वरूप एक सीढ़ी के जैसा होता है, जिसमें दो ऊर्ध्वाधर रेलें होती हैं और उनके बीच क्षैतिज "रंग" (Rungs) होते हैं।
मुख्य भाग
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ऊर्ध्वाधर रेलें (Vertical Rails):
- ये बिजली की सप्लाई लाइनें दर्शाती हैं, आमतौर पर बाईं ओर पॉजिटिव वोल्टेज (या लॉजिक पावर) और दाईं ओर ग्राउंड/नेगेटिव (या लॉजिक रिटर्न)।
- लॉजिक का प्रवाह हमेशा बाईं रेल से शुरू होकर दाईं रेल पर समाप्त होता है।
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क्षैतिज रंग (Horizontal Rungs):
- ये सीढ़ी के डंडों की तरह होते हैं और प्रत्येक रंग एक स्वतंत्र लॉजिक स्टेटमेंट या नियंत्रण नियम का प्रतिनिधित्व करता है।
- प्रत्येक रंग में इनपुट (शर्तें) और आउटपुट (एक्शन) होते हैं।
रंग के घटक
प्रत्येक रंग में दो मुख्य तत्व होते हैं:
सीढ़ी तर्क की भूमिका और लाभ
1. सहजता (Intuitive Understanding):
LD का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह उन इलेक्ट्रिकल और इंस्ट्रूमेंटेशन तकनीशियनों के लिए सहज है जिन्हें पहले से ही रिले और हार्ड-वायर लॉजिक का अनुभव है। उन्हें एक नया प्रोग्रामिंग सिंटैक्स सीखने के बजाय, वे बस अपने परिचित विद्युत आरेखों को सॉफ्टवेयर में अनुवाद करते हैं।
2. प्रक्रिया का विज़ुअलाइज़ेशन:
चूँकि लॉजिक एक विद्युत प्रवाह की तरह प्रवाहित होता हुआ दिखाई देता है, इसलिए ऑनलाइन मोड में, इंजीनियर आसानी से देख सकते हैं कि कौन सी शर्तें पूरी हो गई हैं (रंगों के माध्यम से बिजली का प्रवाह) और कौन से आउटपुट सक्रिय हैं, जिससे समस्या निवारण (Troubleshooting) बहुत आसान हो जाता है।
3. इंटरफ़ेस नियंत्रण (Interlock Control):
यह इंटरलॉक और सीक्वेंसिंग लॉजिक, जैसे कि 'मोटर A तभी चालू होगी जब वाल्व B बंद होगा और सेंसर C सक्रिय होगा', को प्रोग्राम करने के लिए आदर्श है।
सीढ़ी तर्क छोटे से मध्यम स्तर के डिजिटल नियंत्रण अनुप्रयोगों और जटिल मशीन सीक्वेंसिंग के लिए एक मानक और विश्वसनीय भाषा बनी हुई है।
फंक्शन ब्लॉक डायग्राम (Function Block Diagram - FBD) एक ग्राफिकल पीएलसी प्रोग्रामिंग भाषा है जिसे IEC 61131-3 मानक द्वारा परिभाषित किया गया है। यह लॉजिक को एक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट में ब्लॉकों को जोड़ने के तरीके के समान, पुनः प्रयोज्य (reusable) फ़ंक्शन ब्लॉकों के रूप में दर्शाती है।
FBD की मुख्य विशेषताएँ
FBD का मुख्य विचार यह है कि आप एक जटिल नियंत्रण समस्या को छोटे, आसानी से समझे जाने वाले फ़ंक्शन ब्लॉकों में विभाजित करते हैं।
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फ़ंक्शन ब्लॉक (Function Blocks):
- ये पहले से लिखे गए या उपयोगकर्ता द्वारा बनाए गए प्रोग्राम कोड के छोटे, मानकीकृत हिस्से होते हैं।
- प्रत्येक ब्लॉक एक विशिष्ट कार्य करता है (उदाहरण के लिए, टाइमिंग, काउंटिंग, या गणितीय गणना)।
- ब्लॉक में इनपुट (बाईं ओर) होते हैं जो उसे डेटा प्राप्त करने की अनुमति देते हैं, और आउटपुट (दाईं ओर) होते हैं जो परिणाम प्रदान करते हैं।
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लॉजिक प्रवाह (Logic Flow):
- लॉजिक को लाइनों या तारों का उपयोग करके दर्शाया जाता है जो एक ब्लॉक के आउटपुट को दूसरे ब्लॉक के इनपुट से जोड़ते हैं।
- यह डेटा और नियंत्रण सिग्नल के प्रवाह को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।
FBD के सामान्य उदाहरण
FBD में विभिन्न प्रकार के ब्लॉक का उपयोग किया जाता है:
FBD की भूमिका और लाभ
- पुनः प्रयोज्यता (Reusability) और संरचना: ब्लॉक को एक बार बनाया जा सकता है और फिर प्रोग्राम के भीतर कई बार उपयोग किया जा सकता है, जिससे कोड व्यवस्थित (structured) और कुशल हो जाता है।
- जटिल नियंत्रण: यह जटिल गणितीय (mathematical) और एनालॉग (analog) नियंत्रण लूप (जैसे तापमान या दबाव नियंत्रण) को प्रोग्राम करने के लिए लैडर लॉजिक की तुलना में अधिक उपयुक्त है।
- दृश्य प्रतिनिधित्व: डेटा का प्रवाह (Data Flow) आसानी से देखा जा सकता है, जिससे सिस्टम के व्यवहार को समझना और उसकी निगरानी करना आसान हो जाता है।
FBD उन अनुप्रयोगों में विशेष रूप से प्रभावी है जहाँ नियंत्रण में सिग्नल प्रोसेसिंग, जटिल गणना, और मानक फ़ंक्शन का व्यापक उपयोग शामिल होता है।
सीक्वेंशियल फंक्शन चार्ट (Sequential Function Chart - SFC) एक ग्राफिकल पीएलसी प्रोग्रामिंग भाषा है जिसे IEC 61131-3 मानक द्वारा परिभाषित किया गया है। इसका उपयोग उन नियंत्रण प्रणालियों को संरचित करने के लिए किया जाता है जो चरणों (Steps) के एक तार्किक और क्रमबद्ध अनुक्रम (Sequence) का पालन करती हैं।
SFC की मुख्य विशेषताएँ
SFC को विशेष रूप से उन मशीनों या प्रक्रियाओं को व्यवस्थित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है जो स्पष्ट रूप से परिभाषित अवस्थाओं (States) या चरणों में काम करती हैं। यह जटिल सीक्वेंसिंग को समझने में बहुत आसान बनाता है।
1. चरण (Steps)
- अवधारणा: एक चरण मशीन या प्रक्रिया की एक विशेष अवस्था (State) का प्रतिनिधित्व करता है, जहाँ कुछ विशिष्ट क्रियाएँ (Actions) की जाती हैं।
- उदाहरण: किसी बॉटलिंग प्लांट में 'भरने का चरण', 'कैपिंग का चरण' या 'लेबलिंग का चरण'।
- एक्शन (Actions): प्रत्येक चरण के सक्रिय होने पर निष्पादित होने वाली क्रियाएँ (जैसे, 'मोटर चालू करें', 'वाल्व खोलें')।
2. संक्रमण (Transitions)
- अवधारणा: एक संक्रमण वह शर्त है जो यह निर्धारित करती है कि प्रोग्राम एक चरण से अगले चरण तक कब जा सकता है। यह आमतौर पर एक बूलियन लॉजिक स्टेटमेंट होता है।
- उदाहरण: 'भरने का चरण' से 'कैपिंग का चरण' तक जाने के लिए संक्रमण की शर्त हो सकती है: "भरने का स्तर पूरा हो गया है" (सेंसर से इनपुट)।
3. संबंध (Links)
- अवधारणा: ये ऊर्ध्वाधर रेखाएँ हैं जो चरणों और संक्रमणों को एक विशिष्ट क्रम में जोड़ती हैं।
SFC की भूमिका और लाभ
- अनुक्रमिक नियंत्रण का विज़ुअलाइज़ेशन: SFC जटिल अनुक्रमिक प्रक्रियाओं के लॉजिक को एक स्पष्ट, प्रवाहमय (flowchart-like) तरीके से ग्राफिक रूप से प्रस्तुत करता है।
- डिबगिंग (Debugging) में आसानी: प्रोग्रामर आसानी से देख सकते हैं कि वर्तमान में सिस्टम किस चरण में है और कौन सी संक्रमण शर्त अगले चरण को अवरुद्ध कर रही है, जिससे गलती ढूँढना तेज़ हो जाता है।
- समांतर प्रसंस्करण (Parallel Processing): SFC उन परिस्थितियों को आसानी से संभाल सकता है जहाँ प्रक्रिया को दो या दो से अधिक समांतर रास्तों (Parallel Branches) में विभाजित होने की आवश्यकता होती है, और फिर बाद में फिर से एक साथ जुड़ने की।
- मशीन डिज़ाइन: यह नियंत्रण लॉजिक को मशीन के वास्तविक संचालन चरणों के साथ सीधा संरेखण (direct alignment) में रखता है।
SFC विशेष रूप से बैच प्रोसेसिंग,
पैकेजिंग मशीनरी, या किसी भी अन्य प्रक्रिया के लिए उपयोगी है जो एक अच्छी तरह से परिभाषित स्टार्टअप, रन और शटडाउन सीक्वेंस का पालन करती है।
पीएलसी में मुख्य रूप से तीन (3) प्रकार के टाइमर का उपयोग किया जाता है, जो IEC 61131-3 मानक पर आधारित हैं। इन तीनों टाइमर का उपयोग समय-आधारित नियंत्रण कार्यों को लागू करने के लिए किया जाता है:
1. ऑन-डिले टाइमर (Timer ON Delay - TON)
- कार्य: यह टाइमर इनपुट सिग्नल प्राप्त होने के बाद एक निर्धारित समय तक प्रतीक्षा करता है, और फिर अपने आउटपुट को चालू करता है।
-
लॉजिक:
- जब इनपुट (यानी, एक शर्त) सक्रिय होता है, तो टाइमर गिनती शुरू कर देता है।
- जब टाइमर अपने निर्धारित समय (Preset Time - PT) तक गिन लेता है, तो इसका आउटपुट (Done Bit) सक्रिय हो जाता है।
- यदि इनपुट निर्धारित समय से पहले निष्क्रिय हो जाता है, तो टाइमर रीसेट हो जाता है और आउटपुट सक्रिय नहीं होता है।
- उपयोग: मोटर को चालू करने से पहले वार्म-अप के लिए प्रतीक्षा करना, या अलार्म बजने से पहले एक छोटी देरी देना।
2. ऑफ-डिले टाइमर (Timer OFF Delay - TOF)
- कार्य: यह टाइमर इनपुट सिग्नल निष्क्रिय होने के बाद एक निर्धारित समय तक अपने आउटपुट को चालू रखता है, और फिर आउटपुट को बंद करता है।
-
लॉजिक:
- जब इनपुट सक्रिय होता है, तो आउटपुट तुरंत सक्रिय हो जाता है।
- जब इनपुट निष्क्रिय होता है, तो टाइमर गिनती शुरू करता है।
- जब टाइमर निर्धारित समय तक गिन लेता है, तो इसका आउटपुट निष्क्रिय हो जाता है।
- उपयोग: मशीन को बंद करने के बाद कूलिंग पंखे को कुछ समय तक चालू रखना, या लाइट को बंद करने के बाद थोड़ी देर के लिए जलता रहने देना।
3. रिटेंटिव ऑन-डिले टाइमर (Retentive Timer ON Delay - RTO)
- कार्य: यह एक ऑन-डिले टाइमर के समान है, लेकिन इसकी एक महत्वपूर्ण विशेषता है: यह अपने वर्तमान समय मान (Accumulated Time - ACC) को बरकरार रखता है, भले ही इनपुट सिग्नल निष्क्रिय हो जाए।
-
लॉजिक:
- जब इनपुट सक्रिय होता है, तो टाइमर गिनती शुरू करता है।
- यदि इनपुट निष्क्रिय हो जाता है, तो टाइमर गिनना बंद कर देता है, लेकिन ACC मान नहीं खोता है।
- जब इनपुट फिर से सक्रिय होता है, तो टाइमर वहीं से गिनना शुरू करता है जहाँ वह रुका था।
- इसे रीसेट करने के लिए एक अलग रीसेट इनपुट की आवश्यकता होती है।
- उपयोग: उन कार्यों को मापना जिनमें रुक-रुक कर समय लगता है, जैसे कि किसी उपकरण का संचयी परिचालन समय, या बैचिंग ऑपरेशन जो बीच में बाधित हो सकता है।
अतिरिक्त प्रकार (कुछ वेंडर-विशिष्ट)
कुछ पीएलसी वेंडर इन तीन बुनियादी प्रकारों के अलावा अतिरिक्त टाइमर फ़ंक्शंस भी प्रदान करते हैं, जैसे:
- पल्स टाइमर (TP): यह टाइमर इनपुट सक्रिय होने पर एक निश्चित अवधि के लिए आउटपुट को पल्स करता है।
- हाई-स्पीड टाइमर: बहुत ही सटीक और छोटे समय अंतराल (जैसे मिलीसेकंड या माइक्रोसेकंड) के लिए।
पीएलसी में मुख्य रूप से तीन (3) प्रकार के काउंटर का उपयोग किया जाता है, जिनका उपयोग पल्स (pulses) या घटनाओं (events) की संख्या को गिनने के लिए किया जाता है:
1. अप काउंटर (Count Up - CTU) कार्य: यह काउंटर प्रत्येक इनपुट पल्स (यानी, एक सक्रिय सिग्नल) के साथ अपने वर्तमान मान (Accumulated Value - ACC) को बढ़ाता है। यह गिनना तब तक जारी रखता है जब तक कि ACC मान निर्धारित मान (Preset Value - PV) तक नहीं पहुँच जाता।
लॉजिक: जब इसका काउंट इनपुट (CU) सक्रिय होता है, तो ACC मान 1 से बढ़ जाता है। जब {ACC} {PV} हो जाता है, तो काउंटर का आउटपुट (Done Bit) सक्रिय हो जाता है। इसे वापस शून्य पर सेट करने के लिए एक अलग रीसेट इनपुट (R) की आवश्यकता होती है।
उपयोग: किसी कन्वेयर बेल्ट पर वस्तुओं को गिनना, या एक उत्पादन चक्र में पैकेज किए गए उत्पादों की संख्या गिनना।
2. डाउन काउंटर (Count Down - CTD) कार्य: यह काउंटर प्रत्येक इनपुट पल्स के साथ अपने वर्तमान मान (ACC) को घटाता है।
लॉजिक: जब इसका काउंट इनपुट (CD) सक्रिय होता है, तो ACC मान 1 से घट जाता है। यह आमतौर पर PV से गिनना शुरू करता है (यानी, ACC को पहले PV पर लोड किया जाता है)। जब {ACC} = 0 हो जाता है (यानी, गिनती पूरी हो जाती है), तो काउंटर का आउटपुट (Done Bit) सक्रिय हो जाता है।
इसे वापस PV पर सेट करने के लिए एक अलग लोड/रीसेट इनपुट (L) की आवश्यकता होती है।
उपयोग: किसी स्टोरेज से हटाए गए उत्पादों की संख्या गिनना (एक बैच में शेष उत्पादों की संख्या), या किसी मशीन में बचे हुए चक्रों की संख्या गिनना।
3. अप/डाउन काउंटर (Count Up/Down - CTUD) कार्य: यह एक ही काउंटर है जिसमें दो अलग-अलग इनपुट होते हैं: एक गिनती को बढ़ाने (CU) के लिए और दूसरा गिनती को घटाने (CD) के लिए।
लॉजिक: CU इनपुट: सक्रिय होने पर ACC मान को बढ़ाता है।
CD इनपुट: सक्रिय होने पर ACC मान को घटाता है। जब {ACC} {PV} होता है, तो काउन्ट अप डन बिट (CU Bit) सक्रिय हो जाता है। जब {ACC} = 0 होता है, तो काउन्ट डाउन डन बिट (CD Bit) सक्रिय हो जाता है। इसे रीसेट करने के लिए एक अलग रीसेट इनपुट (R) की आवश्यकता होती है।
उपयोग: पार्किंग गैरेज में खाली स्थानों की संख्या गिनना (प्रवेश करने वाली कारों पर CU और बाहर निकलने वाली कारों पर CD), या स्टॉक में इन्वेंट्री स्तर को ट्रैक करना। इन काउंटरों को अक्सर रिटेंटिव (Retentive) भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि पीएलसी बंद होने और फिर चालू होने पर भी वे अपने ACC मान को बनाए रखते हैं (जब तक कि उन्हें स्पष्ट रूप से रीसेट न किया जाए)।
रिटेनटिव (Retentive) और नॉन-रिटेनटिव (Non-Retentive) टाइमर के बीच मुख्य अंतर यह है कि वे पावर लॉस या इनपुट सिग्नल के अस्थाई रूप से चले जाने पर अपने संचित समय (Accumulated Time) को कैसे संभालते हैं।
1. नॉन-रिटेनटिव टाइमर (Non-Retentive Timer)
नॉन-रिटेनटिव टाइमर, जैसे कि सामान्य ऑन-डिले टाइमर (TON), अपनी गिनती को बनाए नहीं रखते हैं जब उनका इनपुट कंडीशन फॉल्स (false) हो जाता है या पीएलसी पावर खो देती है।
2. रिटेनटिव टाइमर (Retentive Timer)
रिटेनटिव टाइमर, जैसे कि रिटेनटिव ऑन-डिले टाइमर (RTO), अपनी गिनती को बनाए रखते हैं।
संक्षेप में:
- नॉन-रिटेनटिव टाइमर हर बार इनपुट जाने पर अपना समय भूल जाता है।
- रिटेनटिव टाइमर अपना समय याद रखता है और उसे स्पष्ट रीसेट कमांड की आवश्यकता होती है।
टन (TON - Timer ON Delay) और टॉफ (TOF - Timer OFF Delay) टाइमर में मुख्य अंतर यह है कि वे कब गिनती शुरू करते हैं और उनके आउटपुट को कब सक्रिय या निष्क्रिय किया जाता है, जो इनपुट सिग्नल पर निर्भर करता है।
TON (Timer ON Delay) - ऑन-डिले टाइमर
TON टाइमर को इसलिए 'ऑन-डिले' कहा जाता है क्योंकि यह अपने आउटपुट को चालू करने में देरी करता है।
TOF (Timer OFF Delay) - ऑफ-डिले टाइमर
TOF टाइमर को इसलिए 'ऑफ-डिले' कहा जाता है क्योंकि यह अपने आउटपुट को बंद करने में देरी करता है।
पीएलसी (PLC) में वन शॉट पल्स (One Shot Pulse) निर्देश, जिसे अक्सर ONS या OSR (One Shot Rising) कहा जाता है, एक बहुत ही महत्वपूर्ण लॉजिक फ़ंक्शन है जिसका उपयोग किसी आउटपुट या क्रिया को केवल एक प्रोग्राम स्कैन साइकिल के लिए सक्रिय करने के लिए किया जाता है।
वन शॉट पल्स (One Shot Pulse) निर्देश की भूमिका
वन शॉट पल्स निर्देश का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई क्रिया केवल एक बार हो, भले ही उस क्रिया को ट्रिगर करने वाला इनपुट सिग्नल लंबे समय तक सक्रिय (ON) रहे।
यह कैसे काम करता है?
वन शॉट निर्देश एक डिजिटल इनपुट सिग्नल में होने वाले उभरते किनारे (Rising Edge) परिवर्तन का पता लगाता है।
- इनपुट ऑफ (0) से ऑन (1) में बदलता है: जब मॉनिटर किया गया इनपुट सिग्नल ऑफ से ऑन होता है (उभरता किनारा), वन शॉट निर्देश सक्रिय हो जाता है।
- आउटपुट पल्स: निर्देश अपने से जुड़े आउटपुट बिट को केवल एक प्रोग्राम स्कैन साइकिल के लिए ON (यानी, पल्स) करता है।
- इनपुट ऑन रहता है: यदि इनपुट सिग्नल कई स्कैन साइकिलों तक ON बना रहता है, तब भी वन शॉट निर्देश का आउटपुट ऑफ (OFF) रहता है।
- रीसेट: अगली बार पल्स जनरेट करने के लिए, इनपुट सिग्नल को पहले OFF होना चाहिए और फिर वापस ON होना चाहिए।
वन शॉट निर्देश का महत्व और उपयोग
इस निर्देश का उपयोग उन स्थितियों में किया जाता है जहाँ दोहराव से बचने के लिए एक क्षणिक (momentary) क्रिया आवश्यक होती है:
- काउंटर को बढ़ाना (Incrementing a Counter): जब कोई बटन दबाया जाता है, तो आप यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि काउंटर केवल एक ही बार बढ़े, भले ही ऑपरेटर बटन को लंबे समय तक दबाए रखे।
- इवेंट लैचिंग (Event Latching): किसी भी घटना (जैसे कि अलार्म) को एक बार कैप्चर करने के लिए, ताकि उस घटना को दर्ज किया जा सके।
- मेमोरी बिट को टॉगल करना: किसी मशीन की स्थिति को अगली स्थिति में बदलने के लिए केवल एक सिंगल पल्स का उपयोग करना।
- अंकगणितीय ऑपरेशन (Mathematical Operations): किसी गणना को केवल तभी निष्पादित करना जब कोई इनपुट बदलता है, ताकि गणना को हर स्कैन साइकिल में दोहराया न जाए।
सरल शब्दों में:
वन शॉट पल्स किसी भी सतत इनपुट सिग्नल को एक सिंगल, क्षणिक ट्रिगर में बदल देता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि पीएलसी लॉजिक दोहराए बिना केवल एक बार ही कार्य करता है।
स्काडा (SCADA) का अर्थ है पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण (Supervisory Control and Data Acquisition)। यह एक सॉफ्टवेयर-आधारित प्रणाली है जिसका उपयोग बड़े भौगोलिक क्षेत्रों या जटिल औद्योगिक प्रक्रियाओं में उच्च-स्तरीय निगरानी (Supervisory Monitoring), नियंत्रण और डेटा संग्रहण के लिए किया जाता है।
यह एक ऐसा "कमांड सेंटर" है जो ऑपरेटरों को पूरे प्लांट या कई साइटों पर चल रहे सभी उपकरणों और प्रक्रियाओं की वास्तविक समय की स्थिति देखने, डेटा का विश्लेषण करने और दूर से कमांड भेजने की अनुमति देता है।
स्काडा की मुख्य भूमिकाएँ
- डेटा अधिग्रहण (Data Acquisition): यह हजारों सेंसर, वाल्व, मोटर और पीएलसी से लगातार डेटा एकत्र करता है।
- डेटा विज़ुअलाइज़ेशन (Data Visualization): यह जटिल प्रक्रिया डेटा को ग्राफिकल इंटरफ़ेस (HMI) के माध्यम से मानव-पठनीय प्रारूप में प्रदर्शित करता है।
- सुपरवाइजरी कंट्रोल: यह ऑपरेटर को केंद्रीय रूप से नियंत्रण कमांड (जैसे सेटपॉइंट बदलना या मोटर शुरू/बंद करना) भेजने की अनुमति देता है।
- डेटा लॉगिंग और रिपोर्टिंग: यह ऐतिहासिक डेटा को रिकॉर्ड करता है, ट्रेंड्स (trends) बनाता है, और उत्पादन, दक्षता, और नियामक अनुपालन के लिए रिपोर्ट तैयार करता है।
- अलार्मिंग (Alarming): यह असामान्य या खतरनाक स्थितियों का पता चलने पर ऑपरेटरों को अलार्म भेजता है।
पीएलसी के साथ स्काडा कैसे काम करता है
पीएलसी (PLC) और स्काडा (SCADA) एक पदानुक्रमित (hierarchical) प्रणाली में एक साथ काम करते हैं, जहाँ दोनों की अलग-अलग और पूरक भूमिकाएँ होती हैं:
कार्य प्रवाह
- डेटा का निष्पादन (Execution): पीएलसी वास्तविक समय में, मशीन स्तर पर, इनपुट के आधार पर नियंत्रण तर्क निष्पादित करती है (उदाहरण के लिए, तापमान 50°C से ऊपर जाने पर कूलिंग वाल्व खोलना)।
- संचार (Communication): पीएलसी एक औद्योगिक संचार प्रोटोकॉल (जैसे Modbus TCP/IP, Profinet, या EtherNet/IP) का उपयोग करके अपने रीयल-टाइम डेटा (जैसे वर्तमान तापमान, मोटर की स्थिति, त्रुटि कोड) को केंद्रीय स्काडा सर्वर पर भेजती है।
- पर्यवेक्षण (Supervision): स्काडा सॉफ्टवेयर इस डेटा को प्राप्त करता है और इसे अपने HMI (Human-Machine Interface) स्क्रीन पर ग्राफिक रूप से प्रदर्शित करता है, जिससे ऑपरेटर दूर से पूरे प्लांट की निगरानी कर सकता है।
- उच्च-स्तरीय नियंत्रण: यदि ऑपरेटर को कोई समायोजन करना है (उदाहरण के लिए, एक नया सेटपॉइंट दर्ज करना), तो वह कमांड स्काडा इंटरफ़ेस में डालता है। स्काडा उस कमांड को संबंधित पीएलसी को भेजता है, और पीएलसी अपने नियंत्रण तर्क को तदनुसार समायोजित करता है।
संक्षेप में,
पीएलसी नियंत्रण को संभालती है, और स्काडा उस नियंत्रण की निगरानी, रिकॉर्डिंग और पर्यवेक्षण करता है। स्काडा के बिना, ऑपरेटरों को हर मशीन पर व्यक्तिगत रूप से जांच करनी होगी।
एचएमआई (HMI) का अर्थ है ह्यूमन-मशीन इंटरफ़ेस (Human-Machine Interface)। यह एक ऐसा उपकरण या सॉफ़्टवेयर इंटरफ़ेस है जो ऑपरेटरों को औद्योगिक मशीनों, प्रक्रियाओं, और प्रणालियों के साथ बातचीत (interact) करने की अनुमति देता है।
सीधे शब्दों में कहें,
HMI वह स्क्रीन या पैनल है जिसे ऑपरेटर मशीन या प्रक्रिया को देखने, निगरानी करने और नियंत्रित करने के लिए उपयोग करता है।
एचएमआई (HMI) का उपयोग पीएलसी के साथ क्यों किया जाता है?
HMI और पीएलसी (PLC) मिलकर आधुनिक औद्योगिक स्वचालन प्रणाली का एक अभिन्न अंग बनाते हैं। उनका उपयोग निम्नलिखित कारणों से किया जाता है:
1. विज़ुअलाइज़ेशन और निगरानी (Visualization and Monitoring)
- डेटा प्रस्तुति: पीएलसी मशीन के स्तर पर नियंत्रण करती है, लेकिन HMI उस जटिल डेटा को ग्राफ़िक्स, चार्ट, और गेज के रूप में सरल और समझने योग्य तरीके से प्रदर्शित करता है। ऑपरेटर तुरंत तापमान, दबाव, गति या उत्पादन दर जैसी महत्वपूर्ण जानकारी देख सकता है।
- प्रक्रिया अवलोकन: HMI ऑपरेटर को पूरे प्लांट या मशीनरी का एक ग्राफिकल लेआउट (Mimic Diagram) प्रदान करता है, जिससे ऑपरेटर दूर से यह पहचान सकता है कि कौन सा वाल्व खुला है या कौन सी मोटर चल रही है।
2. नियंत्रण और इंटरैक्शन (Control and Interaction)
- कमांड भेजना: HMI ऑपरेटर को टच-स्क्रीन बटन, स्विच या इनपुट फ़ील्ड के माध्यम से पीएलसी को सीधे कमांड भेजने की अनुमति देता है (उदाहरण के लिए, 'स्टार्ट' बटन दबाना, एक सेटपॉइंट बदलना, या एक नया रेसिपी नंबर दर्ज करना)।
- पैरामीटर समायोजन: ऑपरेटर जटिल पीएलसी प्रोग्रामिंग सॉफ़्टवेयर के बिना सीधे HMI पर नियंत्रण मापदंडों (जैसे टाइमर मान या तापमान सेटपॉइंट) को बदल सकते हैं।
3. अलार्म और इवेंट मैनेजमेंट (Alarm and Event Management)
- तत्काल सूचना: यदि पीएलसी में कोई गलती या असामान्य स्थिति (जैसे ओवरहीटिंग) होती है, तो HMI तुरंत ऑपरेटर को टेक्स्ट, रंग परिवर्तन, या श्रव्य अलार्म के माध्यम से सूचित करता है।
- इवेंट लॉगिंग: HMI घटनाओं और अलार्म का समय-मुद्रांकित (time-stamped) रिकॉर्ड रखता है, जो समस्या निवारण और भविष्य के विश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण है।
4. ट्रबलशूटिंग (Troubleshooting)
- HMI पर दिखाए गए स्पष्ट विज़ुअलाइज़ेशन और अलार्म संदेशों के कारण, तकनीशियन पीएलसी लॉजिक में सीधे उतरे बिना मशीन की समस्याओं को जल्दी से पहचान और ठीक कर सकते हैं।
संक्षेप में,
पीएलसी मशीन को नियंत्रित करती है, और एचएमआई मनुष्यों को पीएलसी के साथ संवाद करने के लिए एक उपयोगकर्ता-अनुकूल खिड़की प्रदान करती है। यह दोनों के सहयोग से ही एक कुशल और सुरक्षित स्वचालन प्रणाली बनती है।
पीएलसी (PLC) में प्रयुक्त सामान्य संचार सुरक्षा उपाय (जिन्हें औद्योगिक नियंत्रण प्रणाली, या ICS सुरक्षा के तहत वर्गीकृत किया जाता है) पारंपरिक आईटी सुरक्षा से भिन्न होते हैं क्योंकि वे सुरक्षा (Safety) और उपलब्धता (Availability) को प्राथमिकता देते हैं।
पीएलसी संचार को सुरक्षित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले सामान्य उपाय और अभ्यास निम्नलिखित हैं:
1. नेटवर्क विखंडन (Network Segmentation)
यह सबसे महत्वपूर्ण और बुनियादी सुरक्षा उपाय है।
- विवरण: पीएलसी और अन्य औद्योगिक उपकरणों को फ़ायरवॉल या DMZ (Demilitarized Zone) का उपयोग करके कॉरपोरेट नेटवर्क और इंटरनेट से भौतिक और तार्किक रूप से अलग करना।
- उद्देश्य: किसी भी साइबर हमले के प्रभाव को एक छोटे, अलग क्षेत्र तक सीमित करना। पर्ड्यू मॉडल (Purdue Model) का उपयोग करके विभिन्न ज़ोन (जैसे फ़ील्ड डिवाइस स्तर, नियंत्रण स्तर, और स्काडा/एमईएस स्तर) बनाना।
2. अभिगम नियंत्रण और प्रमाणीकरण (Access Control and Authentication)
- रोल-आधारित अभिगम नियंत्रण (Role-Based Access Control - RBAC): यह सुनिश्चित करना कि केवल अधिकृत कर्मियों को ही पीएलसी प्रोग्रामिंग सॉफ्टवेयर, एचएमआई या नेटवर्क तक पहुँच प्राप्त हो। प्रत्येक उपयोगकर्ता को उसकी नौकरी की भूमिका के लिए आवश्यक न्यूनतम विशेषाधिकार दिए जाते हैं।
- मल्टी-फैक्टर प्रमाणीकरण (Multi-Factor Authentication - MFA): दूरस्थ पहुँच (Remote Access) के लिए उपयोगकर्ता की पहचान को सत्यापित करने के लिए एक से अधिक प्रमाण (जैसे पासवर्ड और वन-टाइम कोड) की आवश्यकता होती है।
- भौतिक सुरक्षा (Physical Security): पीएलसी पैनलों और कंट्रोल रूम तक शारीरिक पहुँच को ताले, कार्ड रीडर या अन्य नियंत्रणों द्वारा सीमित करना।
3. सुरक्षित प्रोटोकॉल और एन्क्रिप्शन (Secure Protocols & Encryption)
-
पारंपरिक पीएलसी प्रोटोकॉल (जैसे Modbus) एन्क्रिप्शन के बिना असुरक्षित थे। आधुनिक प्रणालियों में, निम्नलिखित का उपयोग किया जाता है:
- OPC UA (Unified Architecture): यह एक औद्योगिक प्रोटोकॉल है जिसमें एन्क्रिप्शन (Encryption), प्रमाणीकरण और डेटा अखंडता के अंतर्निहित सुरक्षा सुविधाएँ हैं।
- सुरक्षित वीपीएन (VPN) या एसएसएल/टीएलएस (SSL/TLS) का उपयोग करके रिमोट एक्सेस को एन्क्रिप्ट करना।
4. पोर्ट प्रबंधन और कठोरता (Port Management and Hardening)
- अप्रयुक्त पोर्ट को बंद करना: पीएलसी और नेटवर्क स्विच पर सभी अप्रयुक्त संचार पोर्ट (Communication Ports) और सेवाओं को अक्षम करना।
- फ़ायरवॉल नियम: फ़ायरवॉल को केवल उन्हीं संचार प्रोटोकॉल और आईपी एड्रेस को अनुमति देने के लिए कॉन्फ़िगर करना जिनकी स्पष्ट रूप से आवश्यकता होती है।
- कमजोरियों का निवारण (Patch Management): ज्ञात सुरक्षा कमजोरियों को ठीक करने के लिए पीएलसी फर्मवेयर और सॉफ्टवेयर को नियमित रूप से अपडेट करना, हालांकि यह अक्सर उत्पादन समय के कारण मुश्किल होता है।
पीएलसी में रिमोट आई/ओ (Remote I/O) एक ऐसी प्रणाली है जो इनपुट/आउटपुट (I/O) मॉड्यूल को मुख्य पीएलसी प्रोसेसर से भौगोलिक रूप से दूर स्थापित करने की अनुमति देती है।
रिमोट आई/ओ (Remote I/O) क्या है?
रिमोट आई/ओ एक विकेन्द्रीकृत (decentralized) आर्किटेक्चर है जहाँ:
- मुख्य पीएलसी (Main PLC): इसमें सीपीयू (CPU) और संचार मॉड्यूल होता है, जो नियंत्रण तर्क को निष्पादित करता है।
- रिमोट आई/ओ मॉड्यूल (Remote I/O Modules): ये मॉड्यूल सेंसर और एक्चुएटर (actuators) के करीब, मशीनरी के पास लगाए जाते हैं।
- संचार लिंक (Communication Link): रिमोट मॉड्यूल मुख्य पीएलसी से एक इंडस्ट्रियल कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल (जैसे Profinet, EtherNet/IP, या Modbus TCP) का उपयोग करके एक सिंगल हाई-स्पीड केबल के माध्यम से जुड़े होते हैं।
यह कैसे काम करता है?
मुख्य पीएलसी और रिमोट आई/ओ मॉड्यूल के बीच डेटा का आदान-प्रदान इस प्रकार होता है:
- रिमोट आई/ओ मॉड्यूल सेंसर (इनपुट) से डेटा एकत्र करता है।
- यह डेटा को डिजिटल रूप में परिवर्तित करता है और इसे कम्युनिकेशन केबल के माध्यम से मुख्य पीएलसी को भेजता है।
- पीएलसी अपने प्रोग्राम को निष्पादित करता है और नियंत्रण आउटपुट की गणना करता है।
- पीएलसी आउटपुट डेटा को कम्युनिकेशन केबल के माध्यम से वापस रिमोट आई/ओ मॉड्यूल को भेजता है।
- रिमोट मॉड्यूल फिर इस आउटपुट को संबंधित एक्चुएटर (जैसे मोटर या वाल्व) को भेजता है।
रिमोट आई/ओ के उपयोग के लाभ
रिमोट आई/ओ का उपयोग करने से पारंपरिक स्थानीय (लोकल) आई/ओ सिस्टम की तुलना में कई महत्वपूर्ण लाभ मिलते हैं:
- कम वायरिंग लागत: उपकरणों और नियंत्रण कक्ष के बीच प्रत्येक सेंसर और आउटपुट के लिए एक व्यक्तिगत तार खींचने के बजाय, केवल एक ही संचार केबल की आवश्यकता होती है। इससे वायरिंग सामग्री और स्थापना श्रम लागत कम हो जाती है।
- समस्या निवारण में आसानी: चूंकि I/O डिवाइस के करीब होता है, इसलिए गलती ढूंढना और निदान (diagnosis) करना आसान होता है।
- लचीलापन और स्केलेबिलिटी (Scalability): सिस्टम को अपग्रेड करना या भविष्य में I/O पॉइंट्स जोड़ना आसान होता है।
- बेहतर प्रदर्शन: एनालॉग सिग्नल को लंबी दूरी तक भेजने की आवश्यकता नहीं होती है, जिससे सिग्नल की अखंडता (integrity) बनी रहती है और शोर (noise) कम होता है।
रिमोट आई/ओ विशेष रूप से बड़े संयंत्रों,
लंबी कन्वेयर बेल्ट प्रणालियों, या भौगोलिक रूप से वितरित प्रणालियों (जैसे जल उपचार संयंत्र) के लिए महत्वपूर्ण है जहाँ उपकरण नियंत्रण कक्ष से बहुत दूर होते हैं।
पीएलसी (PLC) का उपयोग करके केंद्रीकृत (Centralized) और वितरित (Distributed) नियंत्रण के बीच का अंतर मुख्य रूप से इस बात में निहित है कि नियंत्रण की बुद्धिमत्ता (intelligence) और इनपुट/आउटपुट (I/O) हार्डवेयर को एक औद्योगिक सुविधा में कैसे व्यवस्थित किया जाता है।
केंद्रीकृत नियंत्रण (Centralized Control)
केंद्रीकृत नियंत्रण आर्किटेक्चर में, एकल, शक्तिशाली पीएलसी या सीपीयू अधिकांश या पूरे नियंत्रण कार्य को संभालता है।
वितरित नियंत्रण (Distributed Control)
वितरित नियंत्रण आर्किटेक्चर में, नियंत्रण की बुद्धिमत्ता और I/O को छोटे-छोटे हिस्सों में विभाजित करके पूरी सुविधा में वितरित किया जाता है।
ओपीसी (OPC) का अर्थ है ओपन प्लेटफॉर्म कम्युनिकेशंस (Open Platform Communications)। यह औद्योगिक स्वचालन में एक मानक विनिर्देशों (standards and specifications) की एक श्रृंखला है जो विभिन्न निर्माताओं के उपकरणों और सॉफ्टवेयर अनुप्रयोगों के बीच अंतरसंचालनीयता (interoperability) को सुनिश्चित करता है।
सरल शब्दों में,
ओपीसी एक सार्वभौमिक अनुवादक (universal translator) का काम करता है। यह एक ऐसा मानक प्रदान करता है जिसके माध्यम से किसी भी विक्रेता (vendor) की पीएलसी, सेंसर, या नियंत्रण हार्डवेयर से डेटा को किसी भी अन्य विक्रेता के एचएमआई, स्काडा या एमईएस (MES) सॉफ्टवेयर तक पहुँचाया जा सकता है।
ओपीसी की वास्तुकला ओपीसी एक क्लाइंट/सर्वर (Client/Server) वास्तुकला पर काम करता है:
ओपीसी सर्वर (OPC Server): यह एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है जो औद्योगिक हार्डवेयर (जैसे पीएलसी) के साथ सीधे उनके स्वामित्व वाले (proprietary) प्रोटोकॉल (जैसे Modbus, Profinet, आदि) का उपयोग करके संचार करता है। यह हार्डवेयर प्रोटोकॉल को ओपीसी मानक में अनुवाद (translate) करता है।
ओपीसी क्लाइंट (OPC Client): यह वह सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है जिसे डेटा की आवश्यकता होती है (जैसे स्काडा, एचएमआई, या डेटाबेस)। क्लाइंट को हार्डवेयर के विशेष प्रोटोकॉल के बारे में जानने की आवश्यकता नहीं है; यह केवल ओपीसी सर्वर से मानक ओपीसी भाषा का उपयोग करके डेटा का अनुरोध करता है।
ओपीसी का विकास ओपीसी को दो मुख्य पीढ़ियों में विभाजित किया गया है:
1. ओपीसी क्लासिक (OPC Classic) मूल नाम: {OLE} (Object Linking and Embedding) for Process Control आधार: यह मुख्य रूप से माइक्रोसॉफ्ट विंडोज पर आधारित था और {COM/DCOM} (Component Object Model) तकनीकों का उपयोग करता था।
कमियां: यह केवल विंडोज तक ही सीमित था, और {DCOM} को फायरवॉल और नेटवर्क सुरक्षा सेटिंग्स के साथ कॉन्फ़िगर करना अक्सर जटिल और असुरक्षित होता था।
2. ओपीसी यूए (OPC UA - Unified Architecture) आधार: यह ओपीसी मानक की अगली पीढ़ी है, जिसे {OPC} फाउंडेशन द्वारा विकसित किया गया है।
प्लेटफार्म स्वतंत्रता: यह {TCP/IP} प्रोटोकॉल पर आधारित है और यह प्लेटफार्म-स्वतंत्र (platform-independent) है, जिसका अर्थ है कि यह विंडोज, लिनक्स, आईओएस और अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम पर चल सकता है।
सुरक्षा: {OPC UA} में एन्क्रिप्शन, प्रमाणीकरण (Authentication), और डेटा अखंडता जैसी अंतर्निहित सुरक्षा सुविधाएँ हैं, जो इसे आधुनिक आईओटी (IIoT) और क्लाउड-आधारित अनुप्रयोगों के लिए आदर्श बनाती हैं।
एककीकरण (Unification): यह डेटा एक्सेस, अलार्म और इवेंट्स, और ऐतिहासिक डेटा सहित {OPC} क्लासिक की सभी कार्यात्मकताओं को एक ही फ्रेमवर्क में एकीकृत करता है। ओपीसी यूए (OPC UA) औद्योगिक संचार के लिए एक महत्वपूर्ण मानक है।
पीएलसी में सीरियल (Serial) और ईथरनेट (Ethernet) संचार के बीच मुख्य अंतर उनकी गति (Speed), टोपोलॉजी (Topology), दूरी और डेटा को संभालने की क्षमता में है।
ये दोनों औद्योगिक वातावरण में पीएलसी को अन्य उपकरणों (जैसे एचएमआई, स्काडा सिस्टम, या अन्य पीएलसी) से जोड़ने के लिए मूलभूत तरीके हैं।
1. सीरियल संचार (Serial Communication)
सीरियल संचार में, डेटा बिट-दर-बिट एक ही तार पर क्रमिक रूप से (serially) भेजा जाता है।
2. ईथरनेट संचार (Ethernet Communication)
ईथरनेट संचार डेटा को समानांतर (parallel) में कई तारों पर तेज गति से भेजता है, और यह आधुनिक औद्योगिक नेटवर्किंग का आधार है।
पीएलसी (PLC) नेटवर्क में, फील्डबस सिस्टम (Fieldbus System) एक डिजिटल, द्विदिश (bi-directional), और मल्टी-ड्रॉप संचार प्रणाली है जिसका उपयोग नियंत्रकों (controllers - जैसे PLC) और फील्ड डिवाइसों (जैसे सेंसर, एक्चुएटर, वाल्व, और मोटर ड्राइव) को जोड़ने के लिए किया जाता है। यह पारंपरिक 4-20mA एनालॉग वायरिंग और पॉइंट-टू-पॉइंट कनेक्शन का एक आधुनिक विकल्प है।
फील्डबस सिस्टम की मुख्य बातें
1. परिभाषा और कार्यक्षमता उद्देश्य: फील्डबस सिस्टम का मुख्य उद्देश्य विभिन्न उपकरणों को एक सामान्य संचार केबल पर जोड़कर डेटा का आदान-प्रदान करना, नियंत्रण कमांड भेजना और डिवाइस की स्थिति (status) की जानकारी प्राप्त करना है।
डिजिटल संचार: यह एनालॉग सिग्नल के बजाय डिजिटल डेटा का उपयोग करता है, जिससे शोर (noise) के प्रति उच्च प्रतिरक्षा (immunity) और उच्च डेटा अखंडता (integrity) मिलती है।
मास्टर/स्लेव (Master/Slave) या पीयर-टू-पीयर: अधिकांश फील्डबस सिस्टम एक मास्टर डिवाइस (आमतौर पर पीएलसी) का उपयोग करते हैं जो स्लेव डिवाइसों (फील्ड डिवाइस) से डेटा का अनुरोध करता है।
2. फील्डबस के लाभ कम वायरिंग: प्रत्येक फील्ड डिवाइस के लिए अलग तार बिछाने के बजाय, एक ही केबल कई उपकरणों को जोड़ता है (मल्टी-ड्रॉप), जिससे वायरिंग लागत और जटिलता बहुत कम हो जाती है।
अधिक डेटा: एक एनालॉग तार केवल एक मान (जैसे तापमान) ले जा सकता है, जबकि फील्डबस सिस्टम एक ही केबल पर नियंत्रण डेटा के साथ-साथ निदान डेटा (diagnostic data), डिवाइस की स्थिति और कैलिब्रेशन जानकारी भी ले जा सकता है।
सरल निदान: चूंकि डिवाइस निदान डेटा भेजते हैं, ऑपरेटर और तकनीशियन गलती को तेज़ी से पहचान सकते हैं।
3. लोकप्रिय फील्डबस प्रोटोकॉल: औद्योगिक स्वचालन में कई तरह के फील्डबस प्रोटोकॉल का उपयोग किया जाता है, जिन्हें उनकी गति और जटिलता के आधार पर चुना जाता है:
Modbus (RTU): सबसे पुराने और सरल फील्डबस में से एक।
Profibus: जर्मनी में विकसित, उच्च गति और व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला फील्डबस।
DeviceNet: कंट्रोल नेट (ControlNet) और ईथरनेट/आईपी (EtherNet/IP) के समान कॉमन इंडस्ट्रियल प्रोटोकॉल ({CIP}) पर आधारित।
CANopen: वाहन और मशीन निर्माण में लोकप्रिय।
नोट:
आधुनिक औद्योगिक नेटवर्क तेजी से इंडस्ट्रियल ईथरनेट प्रोटोकॉल (जैसे {Profinet} और {EtherNet/IP}) की ओर बढ़ रहे हैं, जो फील्डबस की कार्यक्षमता को ईथरनेट की उच्च गति और बैंडविड्थ के साथ जोड़ते हैं।
पीएलसी (PLC) में संचार चालक (Communication Drivers), जिन्हें अक्सर कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल (Communication Protocols) भी कहा जाता है, आवश्यक सॉफ्टवेयर घटक होते हैं जो पीएलसी को अन्य उपकरणों और प्रणालियों के साथ डेटा का आदान-प्रदान करने में सक्षम बनाते हैं।
इनकी मुख्य भूमिका विभिन्न उपकरणों के बीच एक सामान्य भाषा और नियमों का एक सेट स्थापित करना है ताकि वे एक दूसरे को समझ सकें और डेटा को मज़बूती से और सही ढंग से स्थानांतरित कर सकें।
संचार चालकों की मुख्य भूमिकाएँ एक संचार चालक या प्रोटोकॉल निम्नलिखित महत्वपूर्ण कार्य करता है:
1. डेटा का अनुवाद (Data Translation) मानकीकरण: औद्योगिक स्वचालन में विभिन्न निर्माताओं (जैसे सीमेंस, एलन-ब्रैडली, मित्सुबिशी) की पीएलसी और डिवाइस अलग-अलग आंतरिक भाषाओं (Internal Languages) या डेटा प्रारूपों का उपयोग करते हैं।
अनुवादक की भूमिका: संचार चालक इन भिन्न-भिन्न डेटा संरचनाओं को एक सामान्य, साझा प्रारूप (जैसे Modbus या {EtherNet/IP}) में अनुवादित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि एक स्काडा सिस्टम (जो एक क्लाइंट है) किसी भी पीएलसी (जो सर्वर है) के डेटा को सही ढंग से पढ़ सके, भले ही उनका मूल प्रोटोकॉल अलग हो।
2. कनेक्शन प्रबंधन (Connection Management) चालक यह परिभाषित करता है कि नेटवर्क पर डिवाइस कैसे एक-दूसरे से जुड़ेंगे, कनेक्शन कैसे शुरू करेंगे, और कनेक्शन कैसे बनाए रखेंगे। यह सुनिश्चित करता है कि डेटा ट्रांसफर के लिए एक स्थिर और विश्वसनीय लिंक मौजूद है।
3. डेटा ट्रांसफर के नियम (Rules for Data Transfer) चालक प्रोटोकॉल के नियमों को लागू करता है, जिसमें शामिल हैं:
डेटा दर (Data Rate): डेटा कितनी तेजी से भेजा जाएगा।
त्रुटि जाँच (Error Checking): यह सत्यापित करना कि ट्रांस्मिट किया गया डेटा बिना किसी क्षति के गंतव्य तक पहुंचा है (जैसे CRC या Checksum का उपयोग करके)।
डेटा एड्रेसिंग: यह सुनिश्चित करना कि डेटा सही उपकरण या पीएलसी मेमोरी एड्रेस (टैग) पर भेजा गया है।
4. विभिन्न स्तरों पर संचार को सक्षम करना (Enabling Multi-Level Communication) पीएलसी प्रणाली एक पदानुक्रम (hierarchy) में काम करती है, और संचार चालक प्रत्येक स्तर पर इंटरफ़ेस प्रदान करते हैं:
संक्षेप में,
संचार चालक पीएलसी की कनेक्टिविटी का आधार हैं। वे पीएलसी को एक अलग मशीन नियंत्रण इकाई से एक एकीकृत, सूचना-साझाकरण नेटवर्क नोड में बदल देते हैं, जो इंडस्ट्री 4.0 और आधुनिक स्वचालन के लिए अपरिहार्य है।
पीएलसी (PLC) आईओटी (IoT) और उद्योग 4.0 प्रणालियों के लिए डेटा का मुख्य स्रोत है। वे औद्योगिक उपकरणों और प्रक्रियाओं को इंटरनेट और क्लाउड-आधारित विश्लेषण प्रणालियों से जोड़कर पुल (bridge) का काम करते हैं।
पीएलसी निम्नलिखित प्रमुख तरीकों से आईओटी/उद्योग 4.0 प्रणालियों से जुड़ता है:
1. इंडस्ट्रियल ईथरनेट प्रोटोकॉल का उपयोग आधुनिक पीएलसी: पारंपरिक सीरियल संचार (जैसे {RS-485}) के बजाय औद्योगिक ईथरनेट प्रोटोकॉल का उपयोग करते हैं। ये प्रोटोकॉल उन्हें कॉर्पोरेट आईटी नेटवर्क से निर्बाध रूप से जुड़ने की अनुमति देते हैं।
Profinet और EtherNet/IP: ये प्रोटोकॉल पीएलसी को उच्च गति पर बड़े डेटा पैकेट भेजने में सक्षम बनाते हैं, जो रीयल-टाइम नियंत्रण और सूचना साझाकरण दोनों के लिए आवश्यक है।
Modbus TCP: यह व्यापक रूप से समर्थित प्रोटोकॉल पीएलसी डेटा को सीधे {TCP/IP} नेटवर्क पर भेजता है, जिससे आईटी सिस्टम के लिए इसे पढ़ना आसान हो जाता है।
2. ओपीसी यूए (OPC UA) का उपयोग: ओपीसी यूए (OPC Unified Architecture) आईओटी और उद्योग 4.0 के लिए सबसे महत्वपूर्ण संचार मानक है।
सुरक्षित डेटा विनिमय: {OPC UA} एन्क्रिप्शन, प्रमाणीकरण और डेटा मॉडलिंग जैसी अंतर्निहित सुरक्षा सुविधाएँ प्रदान करता है, जो पीएलसी डेटा को आईटी नेटवर्क या क्लाउड पर सुरक्षित रूप से स्थानांतरित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
प्लेटफार्म-स्वतंत्रता: यह माइक्रोसॉफ्ट विंडोज पर निर्भर नहीं करता, जिससे पीएलसी लिनक्स-आधारित सर्वर, मोबाइल डिवाइस और क्लाउड प्लेटफ़ॉर्म सहित किसी भी सिस्टम से जुड़ सकते हैं।
3. एज कंप्यूटिंग (Edge Computing) के माध्यम से आईओटी आर्किटेक्चर में, पीएलसी अक्सर एज डिवाइसों से जुड़ते हैं जो क्लाउड पर भेजने से पहले डेटा को संसाधित (process) करते हैं।
डेटा प्री-प्रोसेसिंग: पीएलसी डेटा को एज गेटवे (या पीएलसी में निर्मित एज मॉड्यूल) को भेजती है। यह गेटवे केवल आवश्यक और प्रासंगिक डेटा को क्लाउड पर भेजने के लिए फ़िल्टर, संपीड़ित (compress) और उसका विश्लेषण करता है।
कम विलंबता (Low Latency): महत्वपूर्ण नियंत्रण निर्णय एज पर ही लिए जाते हैं, जिससे क्लाउड तक जाने और वापस आने में लगने वाले विलंब से बचा जा सकता है।
4. डायरेक्ट क्लाउड कनेक्टिविटी (MQTT) :कुछ उन्नत पीएलसी और संचार मॉड्यूल अब सीधे इंटरनेट प्रोटोकॉल का उपयोग करके क्लाउड सेवाओं से जुड़ सकते हैं:
MQTT (Message Queuing Telemetry Transport): यह एक हल्का (lightweight) मैसेजिंग प्रोटोकॉल है जो विशेष रूप से कम बैंडविड्थ और उच्च विलंबता वाले नेटवर्क पर डेटा भेजने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
पब्लिश/सब्सक्राइब मॉडल: पीएलसी एक पब्लिशर के रूप में कार्य करती है, जो {MQTT} ब्रोकर को डेटा भेजती है, और क्लाउड एप्लिकेशन या एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म सब्सक्राइबर के रूप में उस डेटा को प्राप्त करते हैं।
इस प्रकार,
पीएलसी अब केवल एक क्लोज्ड-लूप नियंत्रण उपकरण नहीं है, बल्कि एक स्मार्ट, कनेक्टेड डेटा हब बन गया है जो उद्योग 4.0 की नींव रखता है।
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