विद्युत बसबार में परीक्षण के प्रकार ( Types of testing in Electrical busbar )
बसबार परीक्षण, जिसे बसबार जांच के रूप में भी जाना जाता है, विद्युत उप-केंद्रों और औद्योगिक संयंत्रों में एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसका उपयोग बसबार की अखंडता, विश्वसनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।
बसबार एक धातु की पट्टी होती है जिसका उपयोग उच्च विद्युत धाराओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने और वितरित करने के लिए किया जाता है।
बसबार परीक्षण के कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
- इंसुलेशन प्रतिरोध परीक्षण (Insulation Resistance Test): यह परीक्षण बसबार के इन्सुलेशन की स्थिति का आकलन करने के लिए किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि बसबार का इन्सुलेशन पर्याप्त है और इसमें कोई रिसाव नहीं है।
- डाई-इलेक्ट्रिक शक्ति परीक्षण (Dielectric Strength Test): यह परीक्षण बसबार के इंसुलेशन की उच्च वोल्टेज का सामना करने की क्षमता को मापता है।
- सर्किट ब्रेकर और रिले का परीक्षण (Circuit Breaker and Relay Testing): बसबार से जुड़े सर्किट ब्रेकर और रिले जैसे उपकरणों का परीक्षण किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे सही ढंग से काम कर रहे हैं और किसी भी खराबी या ओवरलोडिंग की स्थिति में सर्किट को तुरंत काट सकते हैं।
- थर्मोग्राफी (Thermography): इस परीक्षण में एक इन्फ्रारेड कैमरा का उपयोग करके बसबार में अत्यधिक गर्म स्थानों का पता लगाया जाता है। अत्यधिक गर्मी के कारण ढीले कनेक्शन या अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
- विकिरण परीक्षण (Partial Discharge Test): यह परीक्षण बसबार के इन्सुलेशन में छोटे-छोटे दोषों का पता लगाने के लिए किया जाता है।
बसबार परीक्षण का उद्देश्य बसबार के संभावित दोषों का पता लगाना है जैसे:
- ढीले कनेक्शन
- क्षतिग्रस्त इन्सुलेशन
- गलत स्थापना
- ओवरलोडिंग
बसबार परीक्षण एक निवारक रखरखाव प्रक्रिया है जो बसबार की विफलता को रोकने और एक सुरक्षित और विश्वसनीय विद्युत प्रणाली सुनिश्चित करने में मदद करती है।
कमीशनिंग से पहले बसबार का परीक्षण कई कारणों से महत्वपूर्ण है, जो विद्युत प्रणाली की सुरक्षा, विश्वसनीयता और दक्षता सुनिश्चित करते हैं। यह प्रक्रिया संभावित समस्याओं का पता लगाने और उन्हें ठीक करने में मदद करती है, जिससे महंगे उपकरण की विफलता और सुरक्षा जोखिमों को रोका जा सकता है।
कमीशनिंग से पहले बसबार परीक्षण का महत्व
- सुरक्षा सुनिश्चित करना: परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि बसबार में कोई दोष या क्षति नहीं है जो शॉर्ट सर्किट, आग या अन्य खतरनाक घटनाओं का कारण बन सकती है।
- प्रदर्शन का सत्यापन: परीक्षण यह जांचता है कि बसबार को सही ढंग से स्थापित किया गया है और यह डिज़ाइन विनिर्देशों के अनुसार काम कर रहा है। यह सुनिश्चित करता है कि यह बिना गर्म हुए या वोल्टेज ड्रॉप के बिना अपेक्षित करंट ले जा सकता है।
- स्थापना दोषों की पहचान: स्थापना के दौरान, ढीले कनेक्शन, गलत इन्सुलेशन या बाहरी क्षति जैसे दोष हो सकते हैं। कमीशनिंग से पहले परीक्षण इन दोषों का पता लगाने में मदद करता है।
- उपकरणों की विफलता से बचाव: दोषपूर्ण बसबार अन्य महंगे उपकरणों जैसे ट्रांसफार्मर, सर्किट ब्रेकर और स्विचगियर को नुकसान पहुंचा सकता है। परीक्षण इन जोखिमों को कम करता है।
- निवारक रखरखाव: प्रारंभिक परीक्षण भविष्य में होने वाली समस्याओं का पता लगाने और उन्हें रोकने के लिए एक आधार रेखा प्रदान करता है, जिससे निवारक रखरखाव आसान हो जाता है।
इन सभी कारणों से,
कमीशनिंग से पहले बसबार का परीक्षण करना एक सुरक्षित और विश्वसनीय विद्युत प्रणाली के लिए एक अनिवार्य कदम है।
बसबार परीक्षण के मुख्य उद्देश्य विद्युत प्रणाली की सुरक्षा, विश्वसनीयता और कार्यक्षमता सुनिश्चित करना है। यह संभावित विफलताओं को रोकने और उपकरणों के जीवनकाल को बढ़ाने में मदद करता है।
बसबार परीक्षण के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं:
- सुरक्षा सुनिश्चित करना: बसबार परीक्षण का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सिस्टम सुरक्षित है। यह इंसुलेशन की अखंडता की जाँच करता है और किसी भी दोष का पता लगाता है जो शॉर्ट सर्किट, आग या बिजली के झटके का कारण बन सकता है।
- दोषों का पता लगाना: बसबार परीक्षण के माध्यम से विभिन्न प्रकार के दोषों जैसे कि ढीले कनेक्शन, क्षतिग्रस्त इन्सुलेशन, या गलत स्थापना का पता लगाया जा सकता है। समय पर इन दोषों का पता लगाने से बड़ी खराबी या दुर्घटना को रोका जा सकता है।
- विश्वसनीयता बढ़ाना: नियमित परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि बसबार सुचारू रूप से और विश्वसनीय रूप से कार्य कर रहा है। यह अनियोजित डाउनटाइम को कम करता है और बिजली की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
- प्रदर्शन का सत्यापन: परीक्षण यह पुष्टि करता है कि बसबार अपनी डिज़ाइन की गई क्षमता के अनुसार करंट ले जा रहा है और उसमें कोई असामान्य वोल्टेज ड्रॉप या ओवरहीटिंग नहीं हो रही है।
- निवारक रखरखाव: परीक्षण एक निवारक रखरखाव रणनीति का हिस्सा है जो बसबार की विफलता को रोकने में मदद करता है। यह बसबार की स्थिति का मूल्यांकन करके भविष्य की समस्याओं का अनुमान लगाने में मदद करता है, जिससे मरम्मत या प्रतिस्थापन के लिए पहले से ही योजना बनाई जा सकती है।
यह वीडियो बसबार के मेगर परीक्षण के बारे में बताता है और दिखाता है कि कैसे इसका उपयोग नियंत्रण बस की जांच करने के लिए किया जाता है।
फ़ैक्टरी परीक्षण और साइट परीक्षण के बीच मुख्य अंतर उनके स्थान, समय, और उद्देश्य में होता है। दोनों परीक्षण एक-दूसरे के पूरक होते हैं और यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि उपकरण सही ढंग से काम कर रहे हैं और सभी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
फ़ैक्टरी परीक्षण (Factory Acceptance Test - FAT)
- स्थान: यह परीक्षण निर्माता की फ़ैक्टरी या सुविधा में किया जाता है, उपकरण को ग्राहक के पास भेजने से पहले।
- उद्देश्य: FAT का मुख्य उद्देश्य यह सत्यापित करना है कि उपकरण तकनीकी विनिर्देशों के अनुसार काम करता है। यह एक नियंत्रित वातावरण में किया जाता है, जहाँ उपकरण की कार्यक्षमता, प्रदर्शन और गुणवत्ता की जाँच की जाती है। यह सुनिश्चित करता है कि उपकरण में कोई निर्माण दोष नहीं है।
- शामिल लोग: निर्माता के प्रतिनिधि, इंजीनियर, और अक्सर ग्राहक के प्रतिनिधि भी इसमें शामिल होते हैं।
साइट परीक्षण (Site Acceptance Test - SAT)
- स्थान: यह परीक्षण ग्राहक के स्थल पर किया जाता है, उपकरण की डिलीवरी और स्थापना के बाद।
- उद्देश्य: SAT का मुख्य उद्देश्य यह सत्यापित करना है कि उपकरण अपने वास्तविक परिचालन वातावरण में सही ढंग से काम करता है। इसमें अन्य प्रणालियों के साथ एकीकरण, स्थानीय पर्यावरणीय परिस्थितियों (जैसे तापमान और आर्द्रता) और साइट-विशिष्ट आवश्यकताओं की जाँच की जाती है।
- शामिल लोग: ग्राहक की टीम, जिसमें ऑपरेटर और ऑन-साइट इंजीनियर शामिल होते हैं, और निर्माता के प्रतिनिधि भी मौजूद हो सकते हैं।
संक्षेप में,
FAT यह सुनिश्चित करता है कि उपकरण जैसा डिज़ाइन किया गया है वैसा ही काम करता है, जबकि SAT यह पुष्टि करता है कि उपकरण अपने अंतिम परिचालन वातावरण में सही ढंग से काम करता है। FAT पहले किया जाता है ताकि किसी भी समस्या को साइट पर भेजने से पहले ही ठीक किया जा सके, जिससे समय और लागत की बचत होती है।
बसबार परीक्षण के लिए कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानक अपनाए जाते हैं। ये मानक बसबार की सुरक्षा, कार्यक्षमता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश और परीक्षण प्रक्रियाएँ प्रदान करते हैं। सबसे प्रमुख मानक हैं:
IEC मानक (International Electrotechnical Commission)
IEC (अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रोटेक्निकल कमीशन) मानक दुनिया भर में सबसे अधिक उपयोग किए जाते हैं, खासकर कम और मध्यम वोल्टेज बसबार प्रणालियों के लिए।
- IEC 61439-1: यह स्विचगियर और कंट्रोलगियर असेंबली के लिए सामान्य नियम और दिशानिर्देश प्रदान करता है, जिसमें बसबार भी शामिल हैं। यह विभिन्न प्रकार के सत्यापन परीक्षणों को परिभाषित करता है।
- IEC 61439-6: यह विशेष रूप से बसबार ट्रंकिंग सिस्टम (जिसे बसवे भी कहते हैं) पर केंद्रित है। यह बसवे की यांत्रिक और विद्युत विशेषताओं, जैसे कि तापमान वृद्धि, शॉर्ट-सर्किट क्षमता और यांत्रिक शक्ति के परीक्षण के लिए विस्तृत प्रक्रियाएँ निर्धारित करता है।
IEEE मानक (Institute of Electrical and Electronics Engineers)
IEEE (इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स संस्थान) मानक मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका में उपयोग किए जाते हैं, लेकिन इन्हें विश्व स्तर पर भी मान्यता प्राप्त है।
- IEEE C37.23: यह मेटल-एनक्लोज्ड बस के लिए एक मानक है। यह बसबार के डिजाइन और परीक्षण के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है, जिसमें डाइइलेक्ट्रिक शक्ति (dielectric strength) और शॉर्ट-सर्किट क्षमता (short-circuit capacity) जैसे महत्वपूर्ण परीक्षण शामिल हैं।
- IEEE Std 118-1978: यह प्रतिरोध माप (resistance measurement) के लिए एक मानक परीक्षण कोड है, जिसका उपयोग बसबार में संपर्क प्रतिरोध (contact resistance) और अन्य प्रतिरोधों को मापने के लिए किया जाता है।
भारतीय मानक (Indian Standards - IS)
भारत में, बसबार परीक्षण के लिए अक्सर भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards - BIS) द्वारा निर्धारित IS मानकों का पालन किया जाता है। ये मानक अक्सर अंतर्राष्ट्रीय मानकों, जैसे IEC, पर आधारित होते हैं और भारत की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप बनाए जाते हैं।
ये मानक यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि बसबार की डिज़ाइन, निर्माण, और स्थापना उच्चतम सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों को पूरा करती है।
बसबार परीक्षण में, प्रकार परीक्षण (Type Testing) और नियमित परीक्षण (Routine Testing) दो अलग-अलग प्रकार के परीक्षण हैं जिनके विशिष्ट उद्देश्य होते हैं।
प्रकार परीक्षण (Type Testing)
प्रकार परीक्षण एक विशिष्ट बसबार डिज़ाइन के लिए किया जाने वाला व्यापक और कठोर परीक्षण है। यह किसी भी नए डिज़ाइन या सामग्री के लिए केवल एक बार किया जाता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि डिज़ाइन सभी तकनीकी मानकों और सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करता है। इस परीक्षण का उद्देश्य यह प्रमाणित करना है कि बसबार का डिज़ाइन सुरक्षित और विश्वसनीय है, न कि प्रत्येक व्यक्तिगत इकाई का सत्यापन करना।
मुख्य उद्देश्य:
- डिज़ाइन की क्षमता और विश्वसनीयता को प्रमाणित करना।
- यह सुनिश्चित करना कि बसबार शॉर्ट-सर्किट, ओवरहीटिंग, या अन्य तनाव जैसी स्थितियों का सामना कर सकता है।
उदाहरण:
- अत्यधिक तापमान वृद्धि का परीक्षण।
- शॉर्ट-सर्किट क्षमता परीक्षण।
- यांत्रिक शक्ति और तनाव परीक्षण।
नियमित परीक्षण (Routine Testing)
नियमित परीक्षण प्रत्येक व्यक्तिगत बसबार इकाई पर किया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उत्पादन प्रक्रिया के दौरान कोई विनिर्माण दोष नहीं हुआ है और प्रत्येक इकाई अपने डिज़ाइन विनिर्देशों के अनुरूप है। यह परीक्षण आमतौर पर कम व्यापक और गैर-विनाशकारी होता है।
मुख्य उद्देश्य:
- यह सत्यापित करना कि प्रत्येक इकाई सही ढंग से निर्मित हुई है।
- किसी भी विनिर्माण दोष जैसे कि खराब कनेक्शन या इंसुलेशन की कमी का पता लगाना।
उदाहरण:
- इंसुलेशन प्रतिरोध परीक्षण।
- इकाइयों का दृश्य निरीक्षण।
- ध्रुवीयता (polarity) और निरंतरता (continuity) की जाँच।
विद्युत बसबारों पर कई तरह के परीक्षण किए जाते हैं ताकि उनकी सुरक्षा, विश्वसनीयता और कार्यक्षमता सुनिश्चित हो सके। इन परीक्षणों को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
प्रकार परीक्षण (Type Tests), नियमित परीक्षण (Routine Tests), और साइट परीक्षण (Site Tests)।
प्रकार परीक्षण (Type Tests)
ये परीक्षण एक विशेष बसबार डिज़ाइन पर किए जाते हैं ताकि उसकी योग्यता और प्रदर्शन को प्रमाणित किया जा सके।
- तापमान वृद्धि परीक्षण (Temperature Rise Test): यह जाँच करता है कि बसबार पूरी लोड करंट पर चलने पर अत्यधिक गर्म तो नहीं होता।
- शॉर्ट-सर्किट परीक्षण (Short-Circuit Test): यह बसबार की शॉर्ट-सर्किट की स्थिति में बिना क्षतिग्रस्त हुए करंट ले जाने की क्षमता की जाँच करता है।
- इंपल्स वोल्टेज परीक्षण (Impulse Voltage Test): यह बसबार की बिजली गिरने या स्विचिंग के कारण होने वाले अचानक उच्च वोल्टेज स्पाइक्स का सामना करने की क्षमता को मापता है।
- डाइ-इलेक्ट्रिक शक्ति परीक्षण (Dielectric Strength Test): यह इंसुलेशन की उच्च वोल्टेज का सामना करने की क्षमता की जाँच करता है।
नियमित परीक्षण (Routine Tests)
ये परीक्षण प्रत्येक बसबार इकाई पर किए जाते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे विनिर्माण दोषों से मुक्त हैं।
- इंसुलेशन प्रतिरोध परीक्षण (Insulation Resistance Test - IR Test): यह बसबार के इंसुलेशन की गुणवत्ता की जाँच करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इसमें कोई लीकेज नहीं है।
- दृश्य निरीक्षण (Visual Inspection): यह किसी भी भौतिक क्षति, जैसे खरोंच, दरारें, या ढीले कनेक्शन की जाँच करता है।
- निरंतरता परीक्षण (Continuity Test): यह सुनिश्चित करता है कि बसबार में करंट प्रवाह के लिए कोई रुकावट नहीं है।
साइट परीक्षण (Site Tests)
ये परीक्षण बसबार को स्थापित करने के बाद साइट पर किए जाते हैं।
- मेगर परीक्षण (Megger Test): यह इंसुलेशन प्रतिरोध की जाँच के लिए एक महत्वपूर्ण साइट परीक्षण है, जो स्थापित बसबार में नमी या क्षति के कारण हुए इंसुलेशन दोषों का पता लगाता है।
- थर्मोग्राफी (Thermography): एक इंफ्रारेड कैमरे का उपयोग करके बसबार में अत्यधिक गर्म स्थानों का पता लगाया जाता है। यह ढीले या खराब कनेक्शन का संकेत हो सकता है।
- टॉर्क परीक्षण (Torque Test): यह सुनिश्चित करता है कि सभी कनेक्शन सही टॉर्क के साथ कस दिए गए हैं ताकि ओवरहीटिंग को रोका जा सके।
उच्च वोल्टेज सहनशीलता परीक्षण (High Voltage Withstand Test), जिसे डाइइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ टेस्ट या हाइपोट टेस्ट भी कहा जाता है, का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी विद्युत उपकरण का इंसुलेशन सिस्टम निर्धारित उच्च वोल्टेज को बिना किसी खराबी या विफलता के सहन कर सकता है।
मुख्य उद्देश्य
- इंसुलेशन की अखंडता का सत्यापन: यह परीक्षण जाँचता है कि उपकरण का इंसुलेशन पर्याप्त मजबूत है और इसमें कोई दोष या कमजोरी नहीं है। यह परीक्षण किसी भी छिपे हुए दोष जैसे कि पिनहोल, दरारें, या खराब बॉन्डिंग का पता लगाता है, जो सामान्य परिचालन वोल्टेज पर दिखाई नहीं देते।
- सुरक्षा सुनिश्चित करना: यह परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि उपकरण का उपयोग करना सुरक्षित है। यदि इंसुलेशन विफल हो जाता है, तो यह बिजली के झटके या शॉर्ट सर्किट का कारण बन सकता है। उच्च वोल्टेज सहनशीलता परीक्षण इस तरह की दुर्घटनाओं को रोकने में मदद करता है।
- गुणवत्ता नियंत्रण: यह एक गुणवत्ता नियंत्रण उपाय के रूप में कार्य करता है। यह पुष्टि करता है कि उपकरण का निर्माण उच्चतम मानकों के अनुसार किया गया है और यह ग्राहकों तक पहुंचने से पहले कठोर सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करता है।
यह परीक्षण आमतौर पर बसबार,
ट्रांसफॉर्मर, मोटर और केबल जैसे विद्युत उपकरणों के निर्माण या कमीशनिंग के दौरान किया जाता है।
बसबार के लिए इंसुलेशन प्रतिरोध परीक्षण (Insulation Resistance Test - IR Test), जिसे मेगरिंग भी कहते हैं, एक महत्वपूर्ण परीक्षण है जिसका उद्देश्य बसबार के इंसुलेशन की गुणवत्ता और अखंडता की जाँच करना है। यह परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि बसबार का इंसुलेशन क्षतिग्रस्त नहीं है और इसमें कोई लीकेज करंट नहीं है जो शॉर्ट सर्किट या बिजली के झटके का कारण बन सकता है।
परीक्षण का उद्देश्य
यह परीक्षण मुख्य रूप से दो उद्देश्यों के लिए किया जाता है:
- इंसुलेशन की स्थिति का आकलन: यह जाँचता है कि बसबार का इंसुलेशन नमी, धूल, या यांत्रिक क्षति के कारण खराब तो नहीं हुआ है। खराब इंसुलेशन संभावित रूप से करंट को लीक कर सकता है, जिससे सुरक्षा जोखिम पैदा होते हैं।
- दोषों का पता लगाना: यह बसबार में छिपे हुए दोषों, जैसे कि पिनहोल, दरारें, या अपर्याप्त गैप का पता लगाने में मदद करता है।
परीक्षण प्रक्रिया
इंसुलेशन प्रतिरोध परीक्षण एक विशेष उपकरण का उपयोग करके किया जाता है जिसे मेगर (Megohmmeter) कहते हैं।
- सुरक्षा सावधानी: परीक्षण शुरू करने से पहले, बसबार को पूरी तरह से डी-एनर्जाइज़ (de-energize) किया जाता है और ग्राउंड कर दिया जाता है ताकि सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
-
कनेक्शन: मेगर के दो टर्मिनलों को जोड़ा जाता है:
- टर्मिनल 1 (लाइन/पॉजिटिव): बसबार के कंडक्टर से जोड़ा जाता है।
- टर्मिनल 2 (अर्थ/नेगेटिव): बसबार के मेटल एनक्लोजर (metal enclosure) या ग्राउंड से जोड़ा जाता है।
- वोल्टेज लगाना: मेगर एक उच्च DC वोल्टेज (आमतौर पर 500V से 5000V) उत्पन्न करता है और इसे बसबार और ग्राउंड के बीच लागू करता है।
- मापन: मेगर इस वोल्टेज के कारण प्रवाहित होने वाले लीकेज करंट को मापता है और इसे ओम (Ω) या मेगाओम (MΩ) में इंसुलेशन प्रतिरोध के रूप में प्रदर्शित करता है।
स्वीकार्य मान
इंसुलेशन प्रतिरोध का मान जितना अधिक होता है, इंसुलेशन उतना ही बेहतर होता है। आमतौर पर, बसबार के लिए इंसुलेशन प्रतिरोध का न्यूनतम स्वीकार्य मान 100 मेगाओम (MΩ) से अधिक होना चाहिए, हालांकि यह मान विशिष्ट मानकों और बसबार के वोल्टेज रेटिंग के आधार पर भिन्न हो सकता है। यदि मान इस सीमा से नीचे आता है, तो यह एक संभावित दोष का संकेत है और आगे की जाँच या मरम्मत की आवश्यकता होती है।
यह परीक्षण बसबार के लिए एक निवारक रखरखाव प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
लघु समय धारा सहन परीक्षण, जिसे शॉर्ट-टाइम करंट विथस्टैंड टेस्ट भी कहते हैं, एक प्रकार का परीक्षण है जो यह सत्यापित करने के लिए किया जाता है कि कोई बसबार या स्विचगियर असेंबली शॉर्ट-सर्किट की स्थिति में उत्पन्न होने वाली अत्यधिक उच्च धारा को एक निश्चित, छोटे समय के लिए बिना क्षतिग्रस्त हुए सहन कर सकती है।
यह परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि बसबार का यांत्रिक और तापीय डिज़ाइन इतना मजबूत है कि वह शॉर्ट-सर्किट के दौरान उत्पन्न होने वाले शक्तिशाली विद्युत-चुंबकीय बलों और तीव्र ताप को झेल सके।
मुख्य उद्देश्य
- यांत्रिक सहनशीलता की जाँच: जब एक भारी शॉर्ट-सर्किट करंट बसबार से होकर गुजरता है, तो यह मजबूत विद्युत-चुंबकीय बल पैदा करता है जो बसबार के कंडक्टर को मोड़ या तोड़ सकते हैं। यह परीक्षण बसबार की यांत्रिक शक्ति की जाँच करता है।
- तापीय सहनशीलता की जाँच: भारी करंट के कारण बसबार में तीव्र गर्मी उत्पन्न होती है। यह परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि बसबार और उसके इंसुलेशन का तापमान इतना नहीं बढ़ता कि वे पिघल जाएं या क्षतिग्रस्त हो जाएं।
परीक्षण प्रक्रिया
- एक बसबार नमूने को परीक्षण सेटअप में स्थापित किया जाता है।
- एक उच्च शॉर्ट-सर्किट करंट (जो आमतौर पर कुछ किलोएम्पियर से लेकर कई दसियों किलोएम्पियर तक होता है) को एक बहुत ही कम अवधि के लिए (आमतौर पर 1 सेकंड या 3 सेकंड के लिए) बसबार से होकर गुजारा जाता है।
- परीक्षण के बाद, बसबार का निरीक्षण किया जाता है कि क्या कोई स्थायी विरूपण, वेल्डिंग में दरार, या इंसुलेशन क्षति हुई है।
यह परीक्षण एक प्रकार परीक्षण (Type Test) है,
जिसका अर्थ है कि यह किसी भी नए डिज़ाइन के लिए केवल एक बार किया जाता है, न कि प्रत्येक निर्मित इकाई पर। यदि बसबार इस कठोर परीक्षण को पास कर लेता है, तो यह प्रमाणित होता है कि इसका डिज़ाइन शॉर्ट-सर्किट की स्थिति में भी सुरक्षित रहेगा।
तापमान वृद्धि परीक्षण (Temperature Rise Test) एक महत्वपूर्ण प्रकार का परीक्षण है जो यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि एक बसबार या स्विचगियर असेंबली अपने रेटेड करंट को बिना अत्यधिक गर्म हुए सुरक्षित रूप से ले जा सकती है। यह परीक्षण, जिसे ऊष्मीय परीक्षण (thermal test) भी कहते हैं, यह सत्यापित करता है कि बसबार का डिज़ाइन और सामग्री अपनी अधिकतम भार क्षमता (rated load capacity) पर काम करते हुए निर्धारित तापमान सीमा के भीतर रहती है।
उद्देश्य
इस परीक्षण का मुख्य उद्देश्य बसबार की ऊष्मीय सहनशीलता (thermal endurance) को मापना है। जब बसबार से करंट गुजरता है, तो उसमें प्रतिरोध के कारण गर्मी उत्पन्न होती है। यदि यह गर्मी बहुत अधिक बढ़ जाती है, तो यह बसबार, उसके इंसुलेशन और आस-पास के घटकों को नुकसान पहुँचा सकती है, जिससे दक्षता में कमी और उपकरणों की विफलता हो सकती है। यह परीक्षण सुनिश्चित करता है कि:
- बसबार के जोड़ों (joints) और टर्मिनलों में प्रतिरोध के कारण अत्यधिक गर्मी उत्पन्न न हो।
- बसबार का तापमान मानक सीमाओं से अधिक न हो, जिससे इंसुलेशन को नुकसान हो सके।
- बसबार का कूलिंग सिस्टम सही ढंग से काम करे।
परीक्षण प्रक्रिया
- रेटेड करंट लागू करना: बसबार असेंबली को उसके रेटेड करंट या उससे थोड़ा अधिक करंट पर चलाया जाता है।
- तापमान मापना: बसबार के विभिन्न बिंदुओं, जैसे कि जोड़ों, टर्मिनलों, और सबसे गर्म भागों पर तापमान सेंसर (जैसे थर्मोकपल) लगाए जाते हैं।
- स्थिर अवस्था (Steady-State): करंट को तब तक बनाए रखा जाता है जब तक कि सभी मापे गए बिंदुओं पर तापमान एक स्थिर अवस्था (steady-state) तक न पहुँच जाए, जिसका अर्थ है कि तापमान अब नहीं बढ़ रहा है।
- परिणामों का विश्लेषण: रिकॉर्ड किए गए तापमान को बसबार के परिवेश के तापमान (ambient temperature) से तुलना करके तापमान वृद्धि की गणना की जाती है। यह मान निर्धारित मानकों (जैसे IEC 61439-1) में निर्दिष्ट अधिकतम अनुमेय तापमान वृद्धि से कम होना चाहिए।
यह परीक्षण एक प्रकार परीक्षण (Type Test) है,
जिसका मतलब है कि यह प्रत्येक बसबार पर नहीं, बल्कि केवल एक प्रतिनिधि नमूने पर किया जाता है ताकि डिज़ाइन की विश्वसनीयता को प्रमाणित किया जा सके।
आवेग सहन वोल्टेज परीक्षण (Impulse Withstand Voltage Test) एक प्रकार का परीक्षण है जो यह सत्यापित करने के लिए किया जाता है कि कोई बसबार या विद्युत उपकरण आकाशीय बिजली गिरने (lightning strikes) या स्विचिंग ऑपरेशन के कारण होने वाले बहुत कम अवधि के, अत्यधिक उच्च वोल्टेज स्पाइक्स (surges) का सामना कर सकता है।
इस परीक्षण का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उपकरण का इंसुलेशन इन अचानक और खतरनाक वोल्टेज झटकों के तहत विफल नहीं होगा।
परीक्षण का उद्देश्य
आवेग परीक्षण का मुख्य उद्देश्य यह जाँच करना है कि बसबार का इंसुलेशन:
- बिजली के झटकों को सहन कर सकता है: बिजली गिरने से विद्युत प्रणाली में कुछ माइक्रोसेकंड के लिए लाखों वोल्ट का वोल्टेज उत्पन्न हो सकता है। यह परीक्षण बसबार की इस अत्यधिक उच्च वोल्टेज को झेलने की क्षमता को मापता है।
- स्विचिंग सर्ज को सहन कर सकता है: स्विचिंग ऑपरेशन (जैसे सर्किट ब्रेकर को चालू या बंद करना) भी क्षणिक रूप से उच्च वोल्टेज स्पाइक्स का कारण बन सकता है। यह परीक्षण इन सर्ज का सामना करने की बसबार की क्षमता को भी सत्यापित करता है।
परीक्षण प्रक्रिया
इस परीक्षण में, एक विशेष जनरेटर का उपयोग करके एक मानक आवेग वोल्टेज तरंग (standard impulse voltage wave) उत्पन्न की जाती है, जिसे आमतौर पर 1.2/50 माइक्रोसेकंड तरंग के रूप में जाना जाता है।
- 1.2 माइक्रोसेकंड: वह समय है जिसमें वोल्टेज अपने चरम मान (peak value) तक पहुँचता है।
- 50 माइक्रोसेकंड: वह समय है जिसमें वोल्टेज अपने चरम मान के 50% तक गिर जाता है।
यह वोल्टेज तरंग बसबार पर लगाई जाती है और बसबार के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जाता है। यदि इस परीक्षण के दौरान बसबार के इंसुलेशन में कोई खराबी या फ्लैशओवर नहीं होता है, तो यह माना जाता है कि बसबार ने परीक्षण पास कर लिया है।
यह परीक्षण एक प्रकार परीक्षण (Type Test) है, क्योंकि यह बसबार के डिज़ाइन की कठोरता को प्रमाणित करता है और इसे प्रत्येक निर्मित इकाई पर नहीं किया जाता है।
आंशिक निर्वहन परीक्षण (Partial Discharge Test) एक गैर-विनाशकारी परीक्षण है जिसका उपयोग उच्च वोल्टेज वाले विद्युत उपकरणों, जैसे कि बसबार, ट्रांसफार्मर और केबलों के इंसुलेशन में छोटे-छोटे दोषों का पता लगाने के लिए किया जाता है।
यह परीक्षण इंसुलेशन के अंदर होने वाली छोटी-छोटी विद्युत चिंगारियों या डिस्चार्ज (partial discharge) को मापता है। ये डिस्चार्ज आमतौर पर आंखों से दिखाई नहीं देते, लेकिन समय के साथ इंसुलेशन को खराब कर सकते हैं और पूरी तरह से विफल होने का कारण बन सकते हैं।
परीक्षण का उद्देश्य
आंशिक निर्वहन परीक्षण का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित दोषों का पता लगाना है:
- निर्माण दोष: इंसुलेशन में हवा के बुलबुले, अशुद्धियाँ, या voids (शून्य स्थान) जो निर्माण प्रक्रिया के दौरान रह गए हों।
- यांत्रिक क्षति: स्थापना के दौरान इंसुलेशन में हुई दरारें या क्षति।
- खराब डिज़ाइन: डिज़ाइन संबंधी समस्याएँ जो विद्युत क्षेत्र को एक विशेष स्थान पर केंद्रित करती हैं, जिससे तनाव बढ़ता है।
परीक्षण प्रक्रिया
इस परीक्षण में, उपकरण पर एक उच्च वोल्टेज लगाया जाता है, और एक विशेष डिटेक्टर का उपयोग करके किसी भी आंशिक निर्वहन से उत्पन्न होने वाले विद्युत आवेगों को मापा जाता है। ये आवेग अक्सर रेडियो तरंगों, ध्वनि या प्रकाश के रूप में होते हैं। डिटेक्टर इन संकेतों को मापता है और विश्लेषण करता है कि क्या आंशिक निर्वहन की मात्रा स्वीकार्य सीमा के भीतर है।
चूंकि यह परीक्षण इंसुलेशन में शुरुआती समस्याओं का पता लगा सकता है, यह विफलता को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण निवारक उपाय है। यह बसबार जैसे उपकरणों के दीर्घकालिक जीवन और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने में मदद करता है।
यांत्रिक प्रभाव परीक्षण (Mechanical Impact Test) एक प्रकार का कठोर परीक्षण है जो यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि बसबार या अन्य विद्युत उपकरण बाहरी यांत्रिक बलों और तनावों को बिना किसी नुकसान के सहन कर सकते हैं। यह परीक्षण बसबार की शारीरिक अखंडता (physical integrity) और संरचनात्मक मजबूती का मूल्यांकन करता है।
उद्देश्य
इस परीक्षण का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बसबार निम्नलिखित स्थितियों में भी सुरक्षित और कार्यशील बना रहे:
- शॉर्ट-सर्किट के दौरान विद्युत-चुंबकीय बल: जब शॉर्ट-सर्किट होता है, तो अत्यधिक उच्च धाराएं बहुत मजबूत विद्युत-चुंबकीय बल उत्पन्न करती हैं जो बसबार को मोड़ या हिला सकती हैं। यांत्रिक प्रभाव परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि बसबार और उसके सपोर्ट इस बल का सामना कर सकते हैं।
- परिवहन और हैंडलिंग के दौरान यांत्रिक तनाव: बसबार को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने या स्थापित करने के दौरान झटके और कंपन का सामना करना पड़ सकता है। यह परीक्षण जाँचता है कि बसबार इन प्रभावों से क्षतिग्रस्त नहीं होता है।
- भूकंपीय घटनाएं: विशेष रूप से महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिए, बसबारों को भूकंपीय घटनाओं से उत्पन्न होने वाले कंपन और तनाव को सहन करने के लिए डिज़ाइन किया जाता है। यांत्रिक प्रभाव परीक्षण इस क्षमता को सत्यापित करता है।
परीक्षण प्रक्रिया
इस परीक्षण में, बसबार को एक विशेष परीक्षण सेटअप पर रखा जाता है। इसके बाद, नियंत्रित तरीके से उस पर यांत्रिक बल या प्रभाव डाला जाता है। यह बल विभिन्न तरीकों से उत्पन्न किया जा सकता है, जैसे कि कंपन तालिका (vibration table) का उपयोग करके या नियंत्रित झटके लगाकर। परीक्षण के बाद, बसबार का निरीक्षण किया जाता है कि कहीं कोई स्थायी विरूपण, दरारें, या अन्य यांत्रिक क्षति तो नहीं हुई है।
यह परीक्षण एक प्रकार परीक्षण (Type Test) है, क्योंकि यह बहुत कठोर होता है और इसका उद्देश्य बसबार के डिज़ाइन की पुष्टि करना होता है, न कि प्रत्येक इकाई की।
बसबारों पर डाइइलेक्ट्रिक परीक्षण, जिसे उच्च-विभव परीक्षण (high-potential test) या हिपोट (hipot) परीक्षण भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण सुरक्षा और गुणवत्ता नियंत्रण उपाय है। इसका उद्देश्य बसबार के इंसुलेशन की अखंडता और विद्युत शक्ति का मूल्यांकन करना है। यह सुनिश्चित करता है कि इंसुलेशन निर्दिष्ट वोल्टेज तनाव को बिना टूटे सहन कर सकता है।
उद्देश्य
- इंसुलेशन की जाँच: डाइइलेक्ट्रिक परीक्षण का प्राथमिक उद्देश्य इंसुलेशन में कमजोरियों या दोषों का पता लगाना है जो सामान्य परिचालन स्थितियों के तहत दिखाई नहीं देते हैं।
- सुरक्षा सुनिश्चित करना: यह सत्यापित करता है कि बसबार का इंसुलेशन बिजली के झटके या शॉर्ट सर्किट को रोकने के लिए पर्याप्त है, जिससे कर्मियों और उपकरणों की सुरक्षा होती है।
- गुणवत्ता नियंत्रण: यह पुष्टि करता है कि बसबार का निर्माण मानकों के अनुसार किया गया है और यह अपने रेटेड विद्युत भार को सुरक्षित रूप से वहन कर सकता है।
डाइइलेक्ट्रिक परीक्षण के प्रकार
बसबारों पर दो मुख्य प्रकार के डाइइलेक्ट्रिक परीक्षण किए जाते हैं:
-
AC डाइइलेक्ट्रिक परीक्षण (AC Dielectric Test):
- इस परीक्षण में, बसबार पर एक उच्च एसी वोल्टेज लगाया जाता है, जो आमतौर पर उसके परिचालन वोल्टेज से दो गुना से अधिक होता है, साथ ही 1000 वोल्ट का अतिरिक्त सुरक्षा मार्जिन भी होता है।
- यह वोल्टेज एक विशिष्ट समय अवधि (जैसे एक मिनट) के लिए बनाए रखा जाता है।
- यदि इंसुलेशन बिना टूटे वोल्टेज को सहन कर लेता है, तो परीक्षण सफल माना जाता है।
-
DC डाइइलेक्ट्रिक परीक्षण (DC Dielectric Test):
- यह परीक्षण एसी परीक्षण के समान है लेकिन इसमें डीसी वोल्टेज का उपयोग किया जाता है।
- यह इंसुलेशन में लीकेज करंट को मापने के लिए अधिक प्रभावी होता है।
- डीसी परीक्षण का एक लाभ यह है कि यह एसी परीक्षण की तुलना में कम शक्ति का उपयोग करता है और अक्सर ऑपरेटर के लिए सुरक्षित होता है।
विद्युत प्रणालियों में, वोल्टेज स्तरों को विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। भारत में, ये वर्गीकरण भारतीय विद्युत नियमों और भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। हाई वोल्टेज (HV) परीक्षण, जिसे डाइइलेक्ट्रिक परीक्षण भी कहा जाता है, यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि उपकरण और इंसुलेशन सामग्री सामान्य परिचालन वोल्टेज और संभावित ओवरवोल्टेज को बिना टूटे सहन कर सकें।
भारत में वोल्टेज स्तरों का वर्गीकरण
भारत में, वोल्टेज स्तरों को मुख्य रूप से चार श्रेणियों में बांटा गया है:
- कम वोल्टेज (Low Voltage - LV): 250 V तक
- मध्यम वोल्टेज (Medium Voltage - MV): 250 V से अधिक और 650 V तक
- उच्च वोल्टेज (High Voltage - HV): 650 V से अधिक और 33 kV तक
- अतिरिक्त उच्च वोल्टेज (Extra High Voltage - EHV): 33 kV से अधिक
HV परीक्षणों में प्रयुक्त वोल्टेज
HV परीक्षणों में, परीक्षण के लिए उपयोग किए जाने वाले वोल्टेज का स्तर उपकरण की ऑपरेटिंग वोल्टेज और मानकों पर निर्भर करता है। सामान्यतः, परीक्षण वोल्टेज उपकरण के सामान्य परिचालन वोल्टेज से काफी अधिक होता है। इसका उद्देश्य उपकरण के इंसुलेशन की मजबूती की जांच करना और किसी भी संभावित दोष का पता लगाना है।
कुछ सामान्य HV परीक्षणों और उनके वोल्टेज स्तरों का संक्षिप्त विवरण:
- डायइलेक्ट्रिक स्ट्रेन्थ टेस्ट (Hipot Test): इस परीक्षण में, उपकरण के इंसुलेशन पर एक उच्च वोल्टेज (AC या DC) लगाया जाता है। सामान्यतः, परीक्षण वोल्टेज ऑपरेटिंग वोल्टेज के दोगुने से भी अधिक होता है। इसका उपयोग यह जांचने के लिए किया जाता है कि क्या इंसुलेशन बिना टूटे वोल्टेज के तनाव का सामना कर सकता है।
- इम्पल्स वोल्टेज टेस्ट (Impulse Voltage Test): इस परीक्षण में, बिजली गिरने (lightning) या स्विचिंग सर्ज (switching surge) जैसी क्षणिक ओवरवोल्टेज की स्थिति का अनुकरण करने के लिए बहुत कम अवधि के लिए उच्च वोल्टेज पल्स (पल्स) लगाया जाता है। इसका उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि उपकरण अचानक और अत्यधिक वोल्टेज के झटकों का सामना कर सके।
- पावर फ्रीक्वेंसी वोल्टेज विदस्टैंड टेस्ट (Power Frequency Voltage Withstand Test): इस परीक्षण में, उपकरण पर एक निर्दिष्ट समय (जैसे 1 मिनट) के लिए AC वोल्टेज लगाया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि उपकरण सामान्य पावर फ्रीक्वेंसी पर निरंतर ओवरवोल्टेज को सहन कर सकता है।
उदाहरण:
एक 400V के ट्रांसफॉर्मर के लिए, HV परीक्षण में आमतौर पर 1.5 kV से 2 kV का वोल्टेज लगाया जा सकता है। इसी तरह, 33 kV की केबल के लिए, परीक्षण वोल्टेज कई गुना अधिक हो सकता है, जो कि IEC और BIS जैसे मानकों द्वारा निर्धारित होता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सुरक्षा कारणों से HV परीक्षण नियंत्रित वातावरण में और प्रशिक्षित पेशेवरों द्वारा ही किए जाते हैं।
पावर फ़्रीक्वेंसी वोल्टेज विदस्टैंड टेस्ट, जिसे डाइइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ टेस्ट या हाइपोट (Hi-POT) टेस्ट भी कहते हैं, एक आवश्यक उच्च वोल्टेज (High Voltage) परीक्षण है। यह किसी भी विद्युत उपकरण या इंसुलेशन सामग्री की यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि वह अपनी निर्धारित ऑपरेटिंग वोल्टेज (operating voltage) और थोड़े समय के लिए होने वाले ओवरवोल्टेज (overvoltage) को बिना किसी नुकसान के सहन कर सकता है। यह परीक्षण उपकरणों की इन्सुलेशन क्षमता का सबसे निर्णायक तरीका है।
परीक्षण का उद्देश्य
- इंसुलेशन की गुणवत्ता की जांच: यह परीक्षण यह पता लगाता है कि क्या उपकरण का इंसुलेशन पर्याप्त मजबूत है और इसमें कोई दोष (जैसे पिनहोल, दरारें) तो नहीं हैं।
- ऑपरेशनल सुरक्षा सुनिश्चित करना: यह सुनिश्चित करता है कि उपकरण सामान्य परिचालन के दौरान या किसी आकस्मिक ओवरवोल्टेज की स्थिति में विफल न हो, जिससे शॉर्ट-सर्किट या आग जैसी दुर्घटनाएँ न हों।
- उत्पादन दोषों का पता लगाना: निर्माण प्रक्रिया के दौरान हुए किसी भी दोष को उजागर करने के लिए यह परीक्षण महत्वपूर्ण है।
परीक्षण विधि और वोल्टेज स्तर
इस परीक्षण में, उपकरण के इंसुलेशन पर रेटेड वोल्टेज (rated voltage) से काफी अधिक AC वोल्टेज लगाया जाता है, आमतौर पर यह वोल्टेज 50 या 60 Hz की सामान्य पावर फ़्रीक्वेंसी पर होता है।
- परीक्षण वोल्टेज: परीक्षण वोल्टेज का मान आमतौर पर उपकरण के रेटेड वोल्टेज के दोगुने से अधिक होता है, या कम से कम 1000 V, जो भी अधिक हो। यह मान भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) और अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रोटेक्निकल कमीशन (IEC) जैसे मानकों द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- परीक्षण अवधि: वोल्टेज को एक निर्धारित समय के लिए, आमतौर पर 1 मिनट, तक लगाया जाता है।
- परिणाम: यदि इस अवधि के दौरान इंसुलेशन में कोई ब्रेकडाउन (अवरोधन भंग) या फ्लैशओवर (flashover) नहीं होता है, तो उपकरण परीक्षण में सफल माना जाता है।
यह परीक्षण ट्रांसफार्मर,
केबल, मोटर, स्विचगियर और अन्य उच्च वोल्टेज उपकरणों के लिए अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करता है कि वे कठोर पर्यावरणीय परिस्थितियों और संभावित विद्युत तनावों का सामना कर सकें।
शक्ति आवृत्ति और आवेग वोल्टेज परीक्षण दोनों ही विद्युत उपकरणों के इन्सुलेशन की ताकत को मापने के लिए महत्वपूर्ण परीक्षण हैं, लेकिन उनके उद्देश्य, समय-सीमा, और जिस तरह के तनाव को वे अनुकरण करते हैं, उनमें मुख्य अंतर हैं।
उद्देश्य
- शक्ति आवृत्ति वोल्टेज परीक्षण (Power Frequency Voltage Test): इस परीक्षण का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उपकरण अपनी सामान्य परिचालन वोल्टेज (rated voltage) को बिना किसी खराबी के झेल सके। यह उपकरण के इंसुलेशन में मौजूद कमजोरियों और दोषों का पता लगाता है, जो लंबे समय तक सामान्य परिचालन स्थितियों में दिखाई दे सकते हैं।
- आवेग वोल्टेज परीक्षण (Impulse Voltage Test): इस परीक्षण का उद्देश्य उपकरणों को अचानक होने वाले बाहरी ओवरवोल्टेज से बचाना है, जैसे कि बिजली गिरने (lightning strikes) या स्विचिंग ऑपरेशन के दौरान। यह परीक्षण यह जांचता है कि उपकरण का इंसुलेशन इन क्षणिक और तीव्र वोल्टेज स्पाइक्स (spikes) का सामना कर सकता है या नहीं।
मुख्य अंतर:
संक्षेप में,
शक्ति आवृत्ति परीक्षण उपकरणों के लिए उनके जीवनकाल के दौरान लगातार होने वाले वोल्टेज तनाव को जांचता है, जबकि आवेग वोल्टेज परीक्षण उन्हें क्षणिक और हानिकारक वोल्टेज से बचाने के लिए होता है जो बिजली गिरने या स्विचिंग के कारण होते हैं। ये दोनों परीक्षण मिलकर उपकरणों की समग्र इन्सुलेशन विश्वसनीयता सुनिश्चित करते हैं।
परावैवैद्युत शक्ति का महत्व कई कारणों से है, खासकर विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में। यह किसी भी विद्युत रोधी पदार्थ (insulating material) की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है।
परावैद्युत शक्ति क्या है?
परावैद्युत शक्ति (Dielectric Strength) किसी विद्युत रोधी पदार्थ की वह अधिकतम विद्युत क्षेत्र शक्ति है जिसे वह बिना भंजन (breakdown) हुए या अपने इन्सुलेशन गुण खोए सहन कर सकती है। दूसरे शब्दों में, यह वह अधिकतम वोल्टेज है जो एक निश्चित मोटाई की सामग्री बिना शॉर्ट-सर्किट के झेल सकती है। इसे अक्सर वोल्ट प्रति इकाई मोटाई (जैसे, V/mm या V/mil) में मापा जाता है।
परावैद्युत शक्ति का महत्व
- सुरक्षा सुनिश्चित करना: परावैद्युत शक्ति यह सुनिश्चित करती है कि विद्युत उपकरण, जैसे ट्रांसफार्मर, केबल, और कैपेसिटर, सामान्य और अत्यधिक वोल्टेज की स्थितियों में सुरक्षित रूप से कार्य करें। एक उच्च परावैद्युत शक्ति वाली सामग्री शॉर्ट-सर्किट, विद्युत रिसाव और आग के जोखिम को कम करती है।
- गुणवत्ता नियंत्रण: यह किसी सामग्री या घटक की गुणवत्ता और विश्वसनीयता का एक महत्वपूर्ण माप है। निर्माण के दौरान परावैद्युत शक्ति परीक्षण करके, निर्माता यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि उत्पाद निर्धारित सुरक्षा मानकों को पूरा करता है।
- उत्पादों का डिज़ाइन: इंजीनियरों को किसी विशेष अनुप्रयोग के लिए सही इन्सुलेशन सामग्री चुनने के लिए परावैद्युत शक्ति के मान की आवश्यकता होती है। एक उच्च वोल्टेज प्रणाली के लिए, उच्च परावैद्युत शक्ति वाली सामग्री का उपयोग आवश्यक है, जिससे उपकरणों के आकार और लागत को कम करने में भी मदद मिलती है।
- दोष का पता लगाना: समय के साथ, इन्सुलेशन सामग्री का प्रदर्शन खराब हो सकता है। परावैद्युत शक्ति का नियमित परीक्षण करके, किसी भी दोष या कमजोरी का पता लगाया जा सकता है, जिससे समय रहते मरम्मत या प्रतिस्थापन किया जा सके।
- विद्युत ऊर्जा का भंडारण: संधारित्र (capacitors) में, परावैद्युत शक्ति एक महत्वपूर्ण कारक है क्योंकि यह निर्धारित करती है कि संधारित्र कितनी विद्युत ऊर्जा को सुरक्षित रूप से संग्रहीत कर सकता है। उच्च परावैद्युत शक्ति वाली सामग्री से बने संधारित्र उच्च वोल्टेज पर काम कर सकते हैं और अधिक ऊर्जा घनत्व प्रदान करते हैं।
अल्प समय सहनशीलता परीक्षण का उद्देश्य किसी व्यक्ति की शारीरिक सहनशीलता, क्षमता और अल्पकालिक तनाव के प्रति प्रतिक्रिया का आकलन करना है। इस प्रकार के परीक्षणों का उपयोग आमतौर पर एथलीटों, सैन्य कर्मियों और शारीरिक रूप से चुनौतीपूर्ण व्यवसायों में लगे व्यक्तियों की फिटनेस का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है।
परीक्षण के मुख्य उद्देश्य
- शारीरिक प्रदर्शन का मूल्यांकन: यह परीक्षण यह निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति कम समय के लिए, लेकिन उच्च तीव्रता वाली शारीरिक गतिविधि को कितनी अच्छी तरह से सहन कर सकता है।
- फिटनेस स्तर का निर्धारण: यह व्यक्ति के मौजूदा फिटनेस स्तर का आकलन करने में मदद करता है और यह ट्रैक करने में सहायक होता है कि समय के साथ इसमें कितना सुधार हुआ है।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम का अनुकूलन: इस परीक्षण के परिणाम का उपयोग व्यक्ति की विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर एक अनुकूलित प्रशिक्षण योजना बनाने के लिए किया जा सकता है।
- जोखिमों का पता लगाना: यह हृदय या श्वसन संबंधी कमजोरियों जैसे अंतर्निहित स्वास्थ्य जोखिमों को उजागर कर सकता है।
संक्षेप में,
यह एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो किसी व्यक्ति की अल्पकालिक शारीरिक क्षमताओं को मापता है और उसके प्रशिक्षण और स्वास्थ्य प्रबंधन के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है।
शॉर्ट सर्किट करंट क्षमता की गणना करने के लिए, आपको मुख्य रूप से ओम के नियम का उपयोग करना होता है। यह गणना किसी भी विद्युत प्रणाली की सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
गणना के लिए मुख्य सूत्र शॉर्ट सर्किट करंट (Isc) की गणना का मूल सूत्र है:
Isc ={V}{Z}
यहां:
Isc = शॉर्ट सर्किट करंट (एम्पियर में)
V = फॉल्ट से पहले सिस्टम का वोल्टेज (वोल्ट में)
Z = सर्किट की कुल प्रतिबाधा (ओम में),
जिसमें केबल,
ट्रांसफार्मर और अन्य घटकों की प्रतिबाधा शामिल होती है। गणना के लिए आवश्यक जानकारी सटीक गणना के लिए, आपको निम्नलिखित जानकारी की आवश्यकता होती है:
सिस्टम वोल्टेज (V): सिस्टम का रेटेड वोल्टेज।
कुल प्रतिबाधा (Z): इसमें सभी घटकों, जैसे ट्रांसफार्मर, केबल, और स्रोत की प्रतिबाधा शामिल होती है।
सभी प्रतिबाधाओं को एक ही संदर्भ (जैसे, ओम या प्रति यूनिट) में व्यक्त किया जाना चाहिए।
सर्किट का प्रकार: एकल-चरण (single-phase) या तीन-चरण (three-phase)। यह गणना के सूत्र को प्रभावित कर सकता है। गणना का उद्देश्य शॉर्ट सर्किट करंट की गणना कई कारणों से की जाती है:
सुरक्षा उपकरणों का चयन: यह सुनिश्चित करने के लिए कि सर्किट ब्रेकर, फ्यूज और अन्य सुरक्षा उपकरणों की ब्रेकिंग क्षमता (यानी, वे अधिकतम करंट जिसे वे सुरक्षित रूप से बाधित कर सकते हैं) शॉर्ट सर्किट करंट से अधिक हो।
उपकरणों की सुरक्षा: यह जानने के लिए कि शॉर्ट सर्किट की स्थिति में उपकरण जैसे कि ट्रांसफार्मर और केबल कितनी यांत्रिक और थर्मल तनाव को सहन कर सकते हैं।
प्रणाली की स्थिरता: सिस्टम में कमजोर स्थानों की पहचान करना और दुर्घटनाओं को रोकना। यह वीडियो बताता है कि ट्रांसफॉर्मर में शॉर्ट सर्किट करंट की गणना कैसे की जाती है।
"आईआर" का मतलब इन्सुलेशन रेजिस्टेंस (Insulation Resistance) हो सकता है, जिसे मेगर (Megger) या इन्सुलेशन प्रतिरोध परीक्षक (Insulation Resistance Tester) जैसे उपकरणों से मापा जाता है।
यह उपकरण विद्युत तारों, केबलों और उपकरणों के इन्सुलेशन की गुणवत्ता की जांच करता है। यह उच्च वोल्टेज (आमतौर पर 500V, 1000V, 2500V या 5000V) को सर्किट में इंजेक्ट करता है और इन्सुलेशन के माध्यम से प्रवाहित होने वाले लीकेज करंट को मापता है। इस लीकेज करंट का मान जितना कम होगा, इन्सुलेशन उतना ही बेहतर होगा।
अन्य अर्थ और संबंधित उपकरण
"आईआर" (IR) का मतलब इन्फ्रारेड (Infrared) भी हो सकता है, जो एक प्रकार का विकिरण है। इस संदर्भ में, विभिन्न उपकरण होते हैं:
- इन्फ्रारेड थर्मामीटर (Infrared Thermometer): ये बिना संपर्क के किसी वस्तु की सतह का तापमान मापने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- थर्मल इमेजिंग कैमरा (Thermal Imaging Camera): ये कैमरे किसी क्षेत्र के तापमान वितरण को एक रंगीन थर्मल इमेज के रूप में दिखाते हैं।
- आईआर सेंसर (IR Sensor): ये सेंसर आमतौर पर तापमान या दूरी का पता लगाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
सामान्यतः,
विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक्स के संदर्भ में "आईआर माप" का मतलब इन्सुलेशन रेजिस्टेंस से संबंधित होता है, और इसके लिए मेगर सबसे प्रमुख उपकरण है।
विद्युत प्रणालियों के लिए मानक इन्सुलेशन प्रतिरोध (IR) मान उपकरण के वोल्टेज और प्रकार पर निर्भर करते हैं। कोई एकल, सार्वभौमिक मानक मान नहीं है, लेकिन कुछ सामान्य नियम और दिशानिर्देश हैं जिनका पालन किया जाता है।
सामान्य नियम और दिशानिर्देश
आईआर मान को मापने के लिए मेगर (Megger) नामक एक उपकरण का उपयोग किया जाता है। यह उपकरण उच्च DC वोल्टेज (जैसे 500V, 1000V) उत्पन्न करता है और इन्सुलेशन के माध्यम से प्रवाहित होने वाले करंट को मापकर प्रतिरोध की गणना करता है।
आईआर मान के लिए मुख्य दिशानिर्देश हैं:
- 1 मेगाओम (MΩ) का नियम: एक सामान्य नियम के अनुसार, किसी भी मोटर, ट्रांसफार्मर, या केबल का न्यूनतम इन्सुलेशन प्रतिरोध मान 1 MΩ से कम नहीं होना चाहिए।
- वोल्टेज के आधार पर: कई संगठन और मानक बताते हैं कि इन्सुलेशन प्रतिरोध 1 MΩ + सिस्टम के प्रति 1000 वोल्ट (1 kV) होना चाहिए। उदाहरण के लिए, 415V प्रणाली के लिए यह 1 MΩ से ऊपर होना चाहिए।
-
ध्रुवीकरण सूचकांक (Polarization Index - PI): यह 10 मिनट के परीक्षण के बाद आईआर मान और 1 मिनट के बाद के आईआर मान का अनुपात होता है।
- PI > 2: यह एक अच्छा इन्सुलेशन स्थिति इंगित करता है।
- PI < 1: यह खराब या खतरनाक इन्सुलेशन स्थिति का संकेत है।
याद रखें कि ये मान तापमान,
आर्द्रता और उपकरण की उम्र पर निर्भर करते हैं। इसलिए, समय-समय पर परीक्षण करना महत्वपूर्ण है।
बसबार ट्रंकिंग प्रणाली में इन्सुलेशन रेजिस्टेंस (IR) परीक्षण एक महत्वपूर्ण सुरक्षा और रखरखाव प्रक्रिया है। यह परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि बसबार का इन्सुलेशन ठीक से काम कर रहा है और उसमें कोई लीकेज करंट नहीं है। यह प्रणाली को शॉर्ट सर्किट और अन्य विद्युत दोषों से बचाता है।
परीक्षण प्रक्रिया
इस परीक्षण के लिए मेगर (Megger) नामक उपकरण का उपयोग किया जाता है। परीक्षण के मुख्य चरण इस प्रकार हैं:
- सुरक्षा: सबसे पहले, यह सुनिश्चित करें कि बसबार प्रणाली से बिजली की आपूर्ति पूरी तरह से काट दी गई है और सिस्टम को सुरक्षित रूप से निष्क्रिय कर दिया गया है।
- कनेक्शन: मेगर के लीड्स को बसबार के कंडक्टरों और बाहरी आवरण (जो अर्थ से जुड़ा होता है) के बीच जोड़ा जाता है।
- माप: मेगर को उच्च DC वोल्टेज (जैसे 500V या 1000V) पर सेट किया जाता है और परीक्षण शुरू किया जाता है।
- डेटा रिकॉर्डिंग: मेगर द्वारा मापे गए प्रतिरोध मान को नोट किया जाता है।
स्वीकार्य मान
- न्यूनतम मान: सामान्य नियम के अनुसार, इन्सुलेशन प्रतिरोध मान 1 MΩ से कम नहीं होना चाहिए।
- PI (Polarization Index) मान: कुछ परीक्षणों में, 1 मिनट और 10 मिनट के बाद के मानों का अनुपात (PI) भी मापा जाता है। एक अच्छा PI मान 2 या उससे अधिक माना जाता है, जो इन्सुलेशन की अच्छी स्थिति को इंगित करता है।
यह परीक्षण बसबार ट्रंकिंग प्रणाली की स्थापना के बाद और समय-समय पर रखरखाव के दौरान किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सुरक्षित और कुशलता से काम कर रहा है।
आंशिक निर्वहन (Partial Discharge) एक स्थानीय विद्युत निर्वहन है जो पूरी तरह से दो कंडक्टरों के बीच के इन्सुलेशन को नहीं पाटता। यह आमतौर पर उच्च वोल्टेज वाले विद्युत उपकरणों, जैसे कि ट्रांसफॉर्मर, केबल और स्विचगियर के इन्सुलेशन के भीतर होता है। यह एक छोटा, क्षणिक विद्युत स्पार्क है जो समय के साथ इन्सुलेशन को खराब कर सकता है, जिससे अंततः उपकरण की विफलता हो सकती है।
आंशिक निर्वहन के कारण
यह आमतौर पर इन्सुलेशन में दोषों के कारण होता है, जैसे:
- दोषपूर्ण सामग्री: इन्सुलेशन के निर्माण के दौरान बनने वाले छोटे-छोटे छेद या हवा के गैप।
- यांत्रिक क्षति: स्थापना या रखरखाव के दौरान इन्सुलेशन को हुई क्षति।
- तापमान और नमी: अत्यधिक गर्मी या नमी के कारण इन्सुलेशन का खराब होना।
- प्रदूषण: इन्सुलेटर की सतह पर धूल या अन्य कणों का जमा होना।
प्रभाव
हालांकि आंशिक निर्वहन शुरुआत में हानिरहित लग सकता है, लेकिन समय के साथ इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं:
- इन्सुलेशन का क्षरण: यह इन्सुलेशन सामग्री को धीरे-धीरे नष्ट करता है, जिससे उसका जीवनकाल कम हो जाता है।
- रासायनिक प्रतिक्रियाएं: यह ओजोन और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसों का उत्पादन करता है, जो इन्सुलेशन को और अधिक खराब करती हैं।
- पूर्ण विफलता: यदि इसे अनदेखा किया जाता है, तो यह अंततः इन्सुलेशन के पूर्ण टूटने (Breakdown) और उपकरण की विनाशकारी विफलता का कारण बन सकता है।
पहचान
आंशिक निर्वहन का पता लगाने के लिए विशेष उपकरणों का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण निर्वहन से उत्पन्न होने वाले अल्ट्रासोनिक (Ultrasonic) सिग्नल, रेडियो फ्रीक्वेंसी (RF) उत्सर्जन या क्षणिक पृथ्वी वोल्टेज (TEV) को मापते हैं। नियमित परीक्षण उच्च वोल्टेज उपकरणों की सुरक्षा और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
पीडी (आंशिक निर्वहन) परीक्षण का महत्व उच्च वोल्टेज उपकरणों, जैसे ट्रांसफार्मर, केबल और स्विचगियर, की सुरक्षा और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में निहित है। यह एक गैर-विनाशकारी परीक्षण है जो इन्सुलेशन में दोषों का पता लगाने में मदद करता है, जिससे बड़े पैमाने पर विफलता और दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।
मुख्य महत्व
- दोषों का शीघ्र पता लगाना: पीडी परीक्षण इन्सुलेशन में छोटे-छोटे दोषों (जैसे voids या दरारें) का शुरुआती चरण में ही पता लगा लेता है, जब वे अभी भी बड़े खतरे नहीं बने होते।
- उपकरणों की सुरक्षा: समय रहते इन दोषों का पता लगाकर, उपकरणों की विफलता को रोका जा सकता है, जिससे महंगी मरम्मत और उत्पादन में रुकावट से बचा जा सकता है।
- निवारक रखरखाव: यह परीक्षण नियोजित रखरखाव कार्यक्रमों का एक हिस्सा है, जो उपकरणों के स्वास्थ्य की निगरानी करने और आवश्यक मरम्मत को समय पर शेड्यूल करने में मदद करता है।
- जोखिम में कमी: पीडी गतिविधि का पता लगाकर और उसे ठीक करके, आग, विस्फोट और विद्युत दोषों का जोखिम कम हो जाता है, जिससे कर्मियों और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- गुणवत्ता नियंत्रण: यह परीक्षण विनिर्माण और स्थापना के दौरान इन्सुलेशन की गुणवत्ता को सत्यापित करने में मदद करता है, यह सुनिश्चित करता है कि उपकरण निर्दिष्ट मानकों को पूरा करते हैं।
संक्षेप में,
पीडी परीक्षण विद्युत प्रणालियों की विश्वसनीयता और सुरक्षा बनाए रखने के लिए एक अनिवार्य उपकरण है, जो उपकरणों के जीवनकाल को बढ़ाता है और अप्रत्याशित विफलताओं को रोकता है।
पीडी (आंशिक निर्वहन) मापने के लिए कई विधियां और उपकरण हैं जो इन्सुलेशन दोषों की पहचान करने में मदद करते हैं। इन विधियों को आम तौर पर तीन मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है: विद्युत, ध्वनिक और रासायनिक।
1. विद्युत विधि
यह सबसे सामान्य विधि है, जिसमें विद्युत संकेतों को सीधे मापा जाता है।
- अल्ट्रा-हाई फ़्रीक्वेंसी (UHF) विधि: यह विधि स्विचगियर और ट्रांसफार्मर जैसे उपकरणों में उत्पन्न होने वाले UHF संकेतों (300 MHz से 3 GHz) को मापती है। यह बाहरी हस्तक्षेप के प्रति कम संवेदनशील होती है।
- ट्रांजिएंट अर्थ वोल्टेज (TEV) विधि: यह विधि विद्युत निर्वहन के कारण धातु के आवरण पर उत्पन्न होने वाले क्षणिक वोल्टेज को मापती है। इसके लिए सतह-माउंटेड कैपेसिटिव सेंसर का उपयोग किया जाता है।
- गैल्वनिक रूप से अलग माप: इसमें उच्च-आवृत्ति वाले करंट पल्स को मापा जाता है जो पीडी के कारण उत्पन्न होते हैं। यह विधि प्रयोगशाला और साइट दोनों पर उपयोग की जाती है।
2. ध्वनिक विधि
यह विधि पीडी द्वारा उत्पन्न अल्ट्रासोनिक ध्वनियों (20 kHz से 100 kHz) को मापती है।
- एयरबॉर्न अल्ट्रासाउंड सेंसर: ये सेंसर हवा में यात्रा करने वाली अल्ट्रासोनिक तरंगों को पकड़ते हैं।
- स्ट्रक्चर-बॉर्न सेंसर: ये सेंसर ठोस माध्यमों (जैसे धातु के टैंक) में यात्रा करने वाली ध्वनिक तरंगों को मापते हैं।
3. रासायनिक विधि
यह विधि ट्रांसफार्मर जैसे तेल-डुबके उपकरणों के लिए उपयुक्त है।
- घुलित गैस विश्लेषण (DGA): पीडी के कारण तेल में हाइड्रोजन, मीथेन, इथेन और एसिटिलीन जैसी गैसें उत्पन्न होती हैं। इन गैसों की मात्रा को मापकर पीडी की उपस्थिति और प्रकार का अनुमान लगाया जा सकता है।
इन सभी विधियों का उद्देश्य विद्युत उपकरणों के इन्सुलेशन की स्थिति का आकलन करना और संभावित विफलताओं को रोकना है।
विद्युत उपकरणों में अनुमेय आंशिक निर्वहन (PD) मान निर्धारित करने के लिए कोई एक निश्चित संख्या नहीं है। यह मान कई कारकों पर निर्भर करता है,
जैसे:
- उपकरण का प्रकार: ट्रांसफार्मर, केबल, स्विचगियर या मोटर।
- रेटेड वोल्टेज: उच्च वोल्टेज वाले उपकरण, कम वोल्टेज वाले उपकरणों की तुलना में, कुछ हद तक पीडी को सहन कर सकते हैं।
- निर्माण सामग्री और डिज़ाइन: विभिन्न इन्सुलेशन प्रणालियों में अलग-अलग सहनशीलता स्तर होते हैं।
- परीक्षण विधि और मानक: अंतर्राष्ट्रीय मानक (जैसे IEC 60270 और IEEE C57) परीक्षण प्रक्रियाओं और अनुमेय स्तरों के लिए दिशानिर्देश प्रदान करते हैं।
सामान्य दिशानिर्देश
हालांकि कोई निश्चित संख्या नहीं है, कुछ सामान्य दिशानिर्देश हैं जिनका पालन किया जाता है:
- नया उपकरण: नए स्थापित उपकरणों के लिए पीडी स्तर बहुत कम या शून्य होना चाहिए। उच्च पीडी रीडिंग एक गंभीर निर्माण दोष का संकेत हो सकती है।
- सेवा में उपकरण (In-service equipment): जो उपकरण लंबे समय से सेवा में हैं, उनमें कुछ पीडी गतिविधि हो सकती है। इस स्थिति में, पीडी स्तरों की निगरानी महत्वपूर्ण है। समय के साथ बढ़ता हुआ पीडी स्तर इन्सुलेशन के क्षरण का संकेत देता है, जिस पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
- इकाई (Unit): पीडी स्तरों को आमतौर पर पिकोकुलम्ब (pC) में मापा जाता है। एक उच्च pC मान आमतौर पर एक अधिक गंभीर निर्वहन का संकेत देता है।
संक्षेप में,
अनुमेय पीडी मान एक सापेक्ष अवधारणा है। यह न केवल वर्तमान मान पर बल्कि समय के साथ होने वाले परिवर्तन की दर पर भी निर्भर करता है। इसलिए, समय-समय पर परीक्षण और रुझानों का विश्लेषण करना आवश्यक है।
यांत्रिक भार परीक्षण किसी वस्तु, सामग्री या संरचना पर बाहरी बल (जैसे तनाव, संपीड़न, कतरनी या मरोड़) लगाकर यह निर्धारित करने की प्रक्रिया है कि वह बल को कितनी अच्छी तरह से सहन कर सकती है। इस परीक्षण का उद्देश्य उसकी शक्ति, कठोरता, थकान, और विरूपण को मापना है।
मुख्य उद्देश्य
- सुरक्षा मूल्यांकन: यह सुनिश्चित करना कि कोई संरचना या घटक निर्दिष्ट भार स्थितियों के तहत सुरक्षित रूप से कार्य करेगा।
- सामग्री की विशेषता: किसी विशेष सामग्री की यांत्रिक गुणों, जैसे लचीलापन (elasticity) और प्लास्टिसिटी (plasticity), को समझना।
- डिजाइन सत्यापन: किसी नए उत्पाद या संरचना के डिजाइन की प्रभावकारिता की पुष्टि करना।
- गुणवत्ता नियंत्रण: यह सुनिश्चित करना कि निर्मित उत्पाद अपेक्षित मानकों को पूरा करते हैं।
परीक्षण के प्रकार
- तनाव परीक्षण (Tension Test): सामग्री को तब तक खींचा जाता है जब तक वह टूट न जाए। यह उसकी तन्य शक्ति (tensile strength) और बढ़ाव (elongation) को मापता है।
- संपीड़न परीक्षण (Compression Test): सामग्री को तब तक दबाया जाता है जब तक वह विफल न हो जाए। यह उसकी संपीड़न शक्ति को मापता है।
- कठोरता परीक्षण (Hardness Test): यह सामग्री की सतह के प्रतिरोध को मापता है, आमतौर पर एक सख्त वस्तु को सतह में दबाकर।
- झुकना/कतरनी परीक्षण (Bending/Shear Test): सामग्री पर झुकने वाला बल लगाया जाता है ताकि उसकी झुकने की क्षमता का मूल्यांकन किया जा सके।
- थकान परीक्षण (Fatigue Test): सामग्री पर बार-बार चक्रीय भार लगाया जाता है ताकि यह पता लगाया जा सके कि वह कितने चक्रों के बाद विफल होगी। यह उन अनुप्रयोगों के लिए महत्वपूर्ण है जहाँ सामग्री को बार-बार तनाव का सामना करना पड़ता है।
यह परीक्षण इंजीनियरिंग और विनिर्माण के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उत्पाद और संरचनाएं अपने इच्छित उद्देश्य के लिए सुरक्षित और विश्वसनीय हैं।
कंपन परीक्षण एक इंजीनियरिंग प्रक्रिया है जो यह निर्धारित करती है कि कोई उत्पाद या संरचना कंपन (vibration) को कितनी अच्छी तरह से सहन कर सकती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उत्पाद अपनी कार्यक्षमता को बनाए रखेगा और कंपन के कारण विफल नहीं होगा, खासकर परिवहन या परिचालन के दौरान।
कंपन परीक्षण के प्रकार
कंपन परीक्षण कई प्रकार के होते हैं, जो विभिन्न कंपन स्थितियों का अनुकरण करते हैं:
- साइन (Sine) कंपन: इस परीक्षण में, उत्पाद को एक निश्चित आवृत्ति पर कंपन दिया जाता है। इसका उपयोग अक्सर प्रतिध्वनि (resonance) आवृत्तियों को निर्धारित करने के लिए किया जाता है, जो संरचनात्मक विफलताओं का कारण बन सकती हैं।
- रैंडम (Random) कंपन: यह सबसे यथार्थवादी प्रकार का परीक्षण है क्योंकि यह वास्तविक दुनिया की स्थितियों, जैसे कि वाहन के चलने से उत्पन्न होने वाले कंपन, का अनुकरण करता है।
- सदमा (Shock) परीक्षण: यह परीक्षण अचानक और तीव्र झटके (जैसे टक्कर या गिरने) का अनुकरण करता है। यह अक्सर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और पैकेजिंग की मजबूती का आकलन करने के लिए उपयोग किया जाता है।
- मिश्रित मोड (Mixed Mode) कंपन: यह परीक्षण एक साथ साइन और रैंडम कंपन का उपयोग करता है, जो अधिक जटिल परिचालन वातावरणों का अनुकरण करता है।
कंपन परीक्षण का महत्व
कंपन परीक्षण कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
- विश्वसनीयता: यह सुनिश्चित करता है कि उत्पाद अपने पूरे जीवनकाल में अपेक्षित कार्य करेगा।
- सुरक्षा: यह यांत्रिक विफलताओं को रोकता है जो खतरनाक हो सकती हैं।
- उत्पाद की गुणवत्ता: यह डिजाइन और विनिर्माण में कमजोरियों की पहचान करने में मदद करता है।
- लागत में कमी: यह वारंटी दावों और मरम्मत की लागत को कम करता है।
कंपन परीक्षण अक्सर सैन्य,
एयरोस्पेस, ऑटोमोटिव और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों में किया जाता है, जहाँ उत्पाद को कठोर वातावरण में काम करना होता है।
यांत्रिक प्रभाव परीक्षण (Mechanical Impact Testing) की आवश्यकता कई कारणों से होती है, जिनका उद्देश्य किसी सामग्री या उत्पाद की मजबूती, स्थायित्व और सुरक्षा सुनिश्चित करना होता है। यह परीक्षण, जिसे अक्सर इम्पैक्ट टेस्ट कहा जाता है, यह मापने के लिए किया जाता है कि कोई सामग्री अचानक पड़ने वाले बल या झटके को कितनी अच्छी तरह से झेल सकती है।
प्रमुख कारण
- सुरक्षा और विश्वसनीयता: इंजीनियरिंग में, यह जानना महत्वपूर्ण है कि कोई पुर्जा या संरचना अचानक पड़ने वाले झटके से टूटेगी या नहीं। उदाहरण के लिए, गाड़ी के बम्पर या हेल्मेट का परीक्षण यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि वे दुर्घटना की स्थिति में यात्री को बचा सकें। यह परीक्षण यह निर्धारित करता है कि सामग्री अत्यधिक तनाव के तहत कैसे व्यवहार करती है, जिससे संभावित विफलताओं को रोका जा सकता है।
- ठंडे मौसम में सामग्री का व्यवहार: कई सामग्रियां, विशेष रूप से धातुएं, तापमान कम होने पर अधिक भंगुर (brittle) हो जाती हैं। यांत्रिक प्रभाव परीक्षण यह जानने के लिए किया जाता है कि क्या कोई सामग्री ठंडे मौसम में अपनी मजबूती बनाए रखेगी। यह उन अनुप्रयोगों के लिए महत्वपूर्ण है जहाँ तापमान में उतार-चढ़ाव होता है, जैसे कि पाइपलाइन, हवाई जहाज के पुर्जे और पुलों की संरचनाएँ।
- सामग्री की गुणवत्ता नियंत्रण: यह परीक्षण उत्पादन प्रक्रिया में गुणवत्ता को नियंत्रित करने का एक तरीका है। निर्माता यह सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से सामग्री के नमूनों का परीक्षण करते हैं कि वे निर्दिष्ट मानकों को पूरा करते हैं और दोषों से मुक्त हैं। इस तरह, वे यह सुनिश्चित कर पाते हैं कि अंतिम उत्पाद मजबूत और टिकाऊ होगा।
- सामग्री का चयन और विकास: यह इंजीनियरों को विभिन्न सामग्रियों की तुलना करने में मदद करता है। किसी विशेष उपयोग के लिए सबसे उपयुक्त सामग्री का चयन करने से पहले, वे यह जानने के लिए इम्पैक्ट परीक्षण करते हैं कि कौन सी सामग्री सबसे अधिक ऊर्जा को अवशोषित कर सकती है और टूटने से पहले झटके को झेल सकती है। यह नई और बेहतर सामग्रियों के विकास में भी मदद करता है।
निष्कर्ष
संक्षेप में,
यांत्रिक प्रभाव परीक्षण सुरक्षा, विश्वसनीयता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि कोई सामग्री वास्तविक दुनिया की स्थितियों में, खासकर अचानक और अत्यधिक बल के तहत, कैसे व्यवहार करती है। इस तरह, यह संभावित दुर्घटनाओं और संरचनात्मक विफलताओं को रोकने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पृथ्वी निरंतरता परीक्षण, जिसे अर्थिंग निरंतरता परीक्षण (Earth Continuity Test) भी कहा जाता है, यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि किसी विद्युत उपकरण या प्रणाली में सुरक्षात्मक पृथ्वी कनेक्शन सही और प्रभावी है। यह परीक्षण यह जांचता है कि उपकरण के धातु के हिस्सों और अर्थिंग पिन या ग्राउंडिंग टर्मिनल के बीच का प्रतिरोध बहुत कम है।
परीक्षण की आवश्यकता और महत्व
यह परीक्षण कई कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है:
- विद्युत झटके से सुरक्षा: यदि किसी उपकरण में कोई खराबी आती है और उसके धातु के हिस्सों में विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है, तो एक सही अर्थिंग कनेक्शन यह सुनिश्चित करता है कि यह धारा तुरंत और सुरक्षित रूप से पृथ्वी में चली जाए। इससे उपयोगकर्ता को बिजली का झटका लगने का खतरा कम हो जाता है।
- आग लगने से बचाव: जब कोई फॉल्ट होता है और धारा को पृथ्वी तक जाने का सही रास्ता नहीं मिलता है, तो यह अत्यधिक गर्म हो सकती है, जिससे आग लगने का खतरा बढ़ जाता है। एक अच्छे अर्थिंग कनेक्शन से यह खतरा टलता है।
- उपकरण की सुरक्षा: यह परीक्षण सुनिश्चित करता है कि उपकरण में उत्पन्न होने वाली अतिरिक्त धाराएं (जैसे कि शॉर्ट सर्किट के कारण) सुरक्षित रूप से पृथ्वी में चली जाएं, जिससे उपकरण को गंभीर क्षति से बचाया जा सके।
परीक्षण प्रक्रिया
इस परीक्षण में, एक कम प्रतिरोध की जांच की जाती है। इसके लिए एक विशेष उपकरण का उपयोग किया जाता है, जिसे पृथ्वी निरंतरता परीक्षक या PAT (Portable Appliance Tester) कहते हैं।
- परीक्षण उपकरण का एक सिरा उपकरण के अर्थिंग पिन (Plug) से जोड़ा जाता है।
- दूसरा सिरा उपकरण के किसी धातु के हिस्से से जोड़ा जाता है।
- यदि प्रतिरोध का मान बहुत कम (आमतौर पर 0.1 ओम से कम) आता है, तो इसका मतलब है कि अर्थिंग कनेक्शन सही है और निरंतरता बरकरार है।
यदि प्रतिरोध का मान अधिक है,
तो यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं कनेक्शन खराब है, जैसे कि तार ढीला हो गया है, जंग लग गया है, या तार टूट गया है। ऐसे में, मरम्मत की आवश्यकता होती है।
ध्रुवता जांच (Polarity Test) एक महत्वपूर्ण परीक्षण है जिसका उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि किसी विद्युत घटक या प्रणाली में धनात्मक (+) और ऋणात्मक (-) सिरे सही ढंग से जुड़े हुए हैं। यह परीक्षण मुख्य रूप से ट्रांसफॉर्मर, कैपेसिटर, डायोड, और कुछ अन्य इलेक्ट्रॉनिक घटकों में किया जाता है, जहाँ सही ध्रुवता बनाए रखना उनके उचित और सुरक्षित संचालन के लिए आवश्यक होता है।
ध्रुवता जांच का महत्व
- ट्रांसफॉर्मर में: जब कई ट्रांसफॉर्मरों को समानांतर में जोड़ा जाता है, तो उनकी ध्रुवता का मिलान करना आवश्यक होता है। यदि ध्रुवता गलत है, तो यह अत्यधिक धारा (short circuit) का कारण बन सकता है, जिससे ट्रांसफॉर्मर और सुरक्षात्मक उपकरणों को नुकसान पहुँच सकता है। सही ध्रुवता यह सुनिश्चित करती है कि वोल्टेज सही दिशा में जुड़े और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करें।
- इलेक्ट्रॉनिक घटकों में: डायोड और कैपेसिटर जैसे कुछ घटकों में ध्रुवता होती है, और उन्हें सर्किट में केवल एक विशेष दिशा में ही जोड़ा जा सकता है। यदि उन्हें गलत तरीके से जोड़ा जाता है, तो वे ठीक से काम नहीं करते हैं, और क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक पोलराइज्ड कैपेसिटर को गलत ध्रुवता के साथ लगाने पर वह गर्म हो सकता है, फट सकता है, या आग लग सकती है।
- सुरक्षात्मक रिले: विद्युत प्रणाली में, सुरक्षात्मक रिले की ध्रुवता जांच महत्वपूर्ण होती है ताकि वे सही दिशा में प्रवाहित होने वाली फॉल्ट धाराओं का पता लगा सकें और सुरक्षा उपकरणों को सही समय पर सक्रिय कर सकें। गलत ध्रुवता रिले को विफल कर सकती है, जिससे पूरी प्रणाली के लिए खतरा पैदा हो सकता है।
जांच की विधि
ध्रुवता जांच के लिए विभिन्न तरीकों का उपयोग किया जाता है:
- वोल्टमीटर विधि (AC): ट्रांसफॉर्मर में, प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग को श्रृंखला में जोड़कर वोल्टेज को मापा जाता है। यदि मापा गया वोल्टेज दोनों वाइंडिंग के वोल्टेज का योग है, तो ध्रुवता योगात्मक (additive) है, और यदि यह घटाव है, तो यह घटाव (subtractive) है।
- DC विधि: यह विधि छोटे ट्रांसफॉर्मर में अधिक उपयोग होती है। प्राथमिक वाइंडिंग को एक DC बैटरी से जोड़ा जाता है और एक मिलीवोल्टमीटर को द्वितीयक वाइंडिंग से जोड़ा जाता है। जब बैटरी को जोड़ा या हटाया जाता है, तो वोल्टमीटर की सुई की दिशा देखकर ध्रुवता का पता लगाया जा सकता है।
- मल्टीमीटर से जांच: मल्टीमीटर का उपयोग छोटे घटकों जैसे डायोड या कैपेसिटर की ध्रुवता जांच के लिए किया जाता है। डायोड की जांच में, मल्टीमीटर को प्रतिरोध मोड पर रखकर एक दिशा में बहुत कम प्रतिरोध और दूसरी दिशा में बहुत अधिक प्रतिरोध मिलना चाहिए।
सुरक्षा उपकरणों का कार्यात्मक परीक्षण यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि वे डिज़ाइन के अनुसार सही ढंग से और प्रभावी रूप से काम कर रहे हैं। इन उपकरणों का मुख्य उद्देश्य संभावित खतरों से लोगों, संपत्ति और प्रणालियों की रक्षा करना है।
कार्यात्मक परीक्षण का महत्व
कार्यात्मक सुरक्षा परीक्षण महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल यह सुनिश्चित करता है कि उपकरण स्थापित होने पर काम करते हैं, बल्कि यह भी कि वे विभिन्न परिस्थितियों में, जैसे कि अतिभार (overload), शॉर्ट सर्किट, या रिसाव धारा (leakage current), सही ढंग से प्रतिक्रिया देते हैं।
यह परीक्षण सुरक्षा मानकों और विनियमों का पालन करने के लिए आवश्यक है, जिससे जोखिम कम होता है और उपयोगकर्ता का विश्वास बढ़ता है।
मुख्य सुरक्षा उपकरण और उनका परीक्षण
विद्युत सुरक्षा के संदर्भ में, कुछ प्रमुख उपकरण और उनके कार्यात्मक परीक्षण इस प्रकार हैं:
- फ्यूज (Fuse): फ्यूज का कार्यात्मक परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि अत्यधिक धारा बहने पर यह पिघलकर सर्किट को खोल देगा। इसका परीक्षण एक विशेष परीक्षण फ्यूज का उपयोग करके या निर्माता के निर्देशों के अनुसार किया जाता है। यदि यह समय पर सर्किट नहीं खोलता है, तो इससे आग लग सकती है या उपकरण को नुकसान हो सकता है।
- सर्किट ब्रेकर (Circuit Breaker): सर्किट ब्रेकर (जैसे MCB, MCCB) स्वचालित स्विच होते हैं जो ओवरलोड या शॉर्ट सर्किट होने पर ट्रिप हो जाते हैं। इसका कार्यात्मक परीक्षण यह सत्यापित करता है कि ब्रेकर निर्धारित समय और धारा पर सही ढंग से ट्रिप होता है। इस परीक्षण के लिए विशेष ब्रेकर टेस्टर का उपयोग किया जाता है जो नियंत्रित अतिधारा उत्पन्न करता है।
- अवशिष्ट धारा उपकरण (RCD/GFCI): RCD (Residual Current Device) या GFCI (Ground Fault Circuit Interrupter) बिजली के झटके से सुरक्षा प्रदान करते हैं। वे सर्किट में आने वाली और बाहर जाने वाली धारा के बीच के मामूली अंतर का पता लगाते हैं। इसका परीक्षण उपकरण पर मौजूद टेस्ट बटन दबाकर किया जाता है। यदि उपकरण सही ढंग से काम कर रहा है, तो यह बटन दबाने पर तुरंत ट्रिप हो जाना चाहिए। यह एक सरल लेकिन महत्वपूर्ण परीक्षण है जिसे नियमित रूप से किया जाना चाहिए।
- सर्किट प्रोटेक्शन डिवाइस (SPD): ये डिवाइस अत्यधिक वोल्टेज से संवेदनशील उपकरणों की रक्षा करते हैं। इनका कार्यात्मक परीक्षण यह जांचता है कि वे वोल्टेज वृद्धि (surge) को प्रभावी ढंग से शंट (shunt) करके ग्राउंड कर रहे हैं।
परीक्षण प्रक्रिया
कार्यात्मक परीक्षण की प्रक्रिया आमतौर पर निम्नलिखित चरणों में की जाती है:
- दृश्य निरीक्षण: सबसे पहले, उपकरण को किसी भी भौतिक क्षति, जंग या ढीले कनेक्शन के लिए निरीक्षण किया जाता है।
- जांच उपकरण का उपयोग: मल्टीमीटर, सर्किट ब्रेकर टेस्टर, या RCD टेस्टर जैसे विशिष्ट उपकरणों का उपयोग करके उपकरण के प्रदर्शन को मापा जाता है।
- सिमुलेशन: वास्तविक परिस्थितियों का अनुकरण किया जाता है, जैसे कि नियंत्रित शॉर्ट सर्किट या रिसाव धारा, यह देखने के लिए कि सुरक्षा उपकरण कैसे प्रतिक्रिया देता है।
- रिकॉर्डिंग और विश्लेषण: परीक्षण परिणामों को रिकॉर्ड किया जाता है और यह सत्यापित किया जाता है कि वे निर्माता के विनिर्देशों और सुरक्षा मानकों के अनुरूप हैं।
संक्षेप में,
सुरक्षा उपकरणों का कार्यात्मक परीक्षण निरंतर और नियमित अभ्यास है जो यह सुनिश्चित करता है कि वे आपातकालीन स्थितियों में प्रभावी रहेंगे और लोगों और उपकरणों को संभावित खतरों से बचाएंगे।
कमीशनिंग पूर्व परीक्षण (Pre-Commissioning Testing) वह प्रक्रिया है जो किसी नई स्थापित प्रणाली या उपकरण को पूरी तरह से चालू करने (commissioning) से पहले की जाती है। इस चरण का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी घटक और प्रणालियां सही ढंग से स्थापित हैं और उनकी मूलभूत कार्यप्रणाली सही है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो अंतिम परिचालन से पहले संभावित समस्याओं, दोषों और विफलताओं का पता लगाने में मदद करता है।
उद्देश्य और महत्व
कमीशनिंग पूर्व परीक्षण कई कारणों से आवश्यक है:
- सुरक्षा सुनिश्चित करना: यह परीक्षण यह सुनिश्चित करता है कि प्रणाली में कोई विद्युत दोष, यांत्रिक दोष या सुरक्षा जोखिम नहीं है। यह लोगों और संपत्ति को संभावित खतरों से बचाता है।
- दोषों की पहचान: यह चरण प्रणाली में किसी भी विसंगति या दोष का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है, जैसे कि ढीले कनेक्शन, गलत वायरिंग, या क्षतिग्रस्त घटक। इन समस्याओं का प्रारंभिक चरण में पता लगाने से बाद में होने वाली महंगी मरम्मत और डाउनटाइम से बचा जा सकता है।
- प्रदर्शन का सत्यापन: परीक्षण यह जांचता है कि व्यक्तिगत घटक और उप-प्रणालियाँ निर्माता के विनिर्देशों और डिजाइन आवश्यकताओं के अनुसार काम कर रही हैं। यह सुनिश्चित करता है कि अंतिम प्रणाली अपेक्षित प्रदर्शन देगी।
- दस्तावेजीकरण: परीक्षण के दौरान प्राप्त परिणामों का दस्तावेजीकरण किया जाता है, जो बाद में रखरखाव, समस्या निवारण और ऑडिट के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ प्रदान करता है।
मुख्य परीक्षण
कमीशनिंग पूर्व परीक्षण में विभिन्न प्रकार के विशिष्ट परीक्षण शामिल हो सकते हैं, जो प्रणाली के प्रकार पर निर्भर करते हैं। कुछ सामान्य परीक्षण इस प्रकार हैं:
- दृश्य निरीक्षण (Visual Inspection): यह सबसे पहला और सबसे सरल परीक्षण है। इसमें यह जांचा जाता है कि सभी घटक सही जगह पर स्थापित हैं, लेबलिंग सही है और कोई स्पष्ट क्षति नहीं है।
- निरंतरता परीक्षण (Continuity Test): यह सुनिश्चित करता है कि विद्युत सर्किट में तार सही ढंग से जुड़े हुए हैं और कोई टूटा हुआ तार या खुला सर्किट नहीं है।
- पृथ्वी निरंतरता परीक्षण (Earth Continuity Test): यह जाँचता है कि उपकरण के धातु के हिस्से सही और प्रभावी ढंग से पृथ्वी से जुड़े हुए हैं।
- ध्रुवता जांच (Polarity Test): यह सत्यापित करता है कि सभी कनेक्शन सही ध्रुवता के साथ जुड़े हुए हैं।
- इन्सुलेशन प्रतिरोध परीक्षण (Insulation Resistance Test): यह जांचता है कि तारों का इन्सुलेशन प्रभावी है और कोई रिसाव धारा नहीं है।
- फंक्शनालिटी टेस्ट (Functionality Test): यह जांचता है कि व्यक्तिगत घटक (जैसे स्विच, रिले, और सेंसर) सही ढंग से काम कर रहे हैं।
संक्षेप में,
कमीशनिंग पूर्व परीक्षण एक सत्यापन चरण है जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी प्रणाली को सफलतापूर्वक और सुरक्षित रूप से चालू किया जा सकता है। यह एक निवारक उपाय है जो भविष्य की समस्याओं को कम करता है और प्रणाली की विश्वसनीयता को बढ़ाता है।
निवारक रखरखाव जाँच (Preventive Maintenance Checks) किसी भी उपकरण, मशीन या प्रणाली की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसे उसकी कार्यक्षमता और जीवनकाल को बनाए रखने के लिए नियमित रूप से किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य किसी बड़ी खराबी या अप्रत्याशित विफलता को होने से पहले ही पहचानना और रोकना है। यह एक सक्रिय दृष्टिकोण है, जो मरम्मत के लिए इंतजार करने के बजाय, समस्या को शुरू होने से पहले ही हल करता है।
उद्देश्य और लाभ
निवारक रखरखाव जाँच के कई प्रमुख उद्देश्य और लाभ हैं:
- अप्रत्याशित विफलता को रोकना: नियमित जाँच से उन छोटे-छोटे दोषों का पता चल जाता है जो भविष्य में बड़ी समस्या बन सकते हैं। इससे अचानक होने वाली मशीनरी की खराबी से बचा जा सकता है, जिससे उत्पादन में रुकावट नहीं आती।
- जीवनकाल बढ़ाना: जब उपकरण का नियमित रूप से ध्यान रखा जाता है, जैसे कि सफाई, स्नेहन (lubrication) और पुराने पुर्जों को बदलना, तो उसकी समग्र कार्यक्षमता बेहतर होती है और वह लंबे समय तक चलता है।
- लागत बचाना: निवारक रखरखाव, अचानक होने वाली महंगी मरम्मत और पुर्जों को बदलने की लागत को कम करता है। एक छोटी सी जाँच या मामूली पुर्जे की लागत, एक बड़ी विफलता के बाद होने वाले भारी खर्च से बहुत कम होती है।
- सुरक्षा बढ़ाना: दोषपूर्ण उपकरण सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकते हैं। नियमित रखरखाव से यह सुनिश्चित होता है कि सभी सुरक्षात्मक उपकरण और प्रणालियाँ सही ढंग से काम कर रही हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा कम होता है।
जाँच के प्रकार और प्रक्रिया
निवारक रखरखाव जाँच कई प्रकार की हो सकती है, जो उपकरण और उद्योग पर निर्भर करती है:
- दृश्य निरीक्षण (Visual Inspection): उपकरण में किसी भी तरह की दरार, जंग, घिसे हुए पुर्जे या ढीले कनेक्शन की जाँच करना।
- सफाई और स्नेहन (Cleaning & Lubrication): धूल और गंदगी को हटाना, और चलने वाले पुर्जों में तेल या ग्रीस लगाना ताकि घिसाव कम हो।
- प्रदर्शन की जाँच (Performance Check): यह सुनिश्चित करना कि उपकरण अपनी निर्दिष्ट क्षमता पर काम कर रहा है। इसमें तापमान, दबाव, या विद्युत धारा जैसे मापदंडों की जाँच शामिल हो सकती है।
- कैलिब्रेशन (Calibration): मापन उपकरणों को यह सुनिश्चित करने के लिए कैलिब्रेट करना कि वे सटीक रीडिंग दे रहे हैं।
- समय-आधारित प्रतिस्थापन (Time-Based Replacement): कुछ पुर्जों को एक निश्चित समय अवधि के बाद बदल दिया जाता है, भले ही वे अभी भी काम कर रहे हों, ताकि उनकी विफलता को रोका जा सके (जैसे फिल्टर या बेल्ट)।
- डेटा लॉगिंग और विश्लेषण (Data Logging & Analysis): सेंसर और डेटा लॉगर्स का उपयोग करके उपकरण के प्रदर्शन को ट्रैक करना, ताकि असामान्य व्यवहार का पता लगाया जा सके।
संक्षेप में,
निवारक रखरखाव जाँच एक निवेश है जो भविष्य में होने वाले नुकसान से बचाता है। यह किसी भी व्यवसाय या प्रणाली की दक्षता, सुरक्षा और विश्वसनीयता के लिए एक अनिवार्य हिस्सा है।
बसबार परीक्षण के लिए कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानक हैं जो उनकी सुरक्षा, विश्वसनीयता और प्रदर्शन को सुनिश्चित करते हैं। इन मानकों में विभिन्न प्रकार के परीक्षण शामिल होते हैं, जिनमें प्रकार परीक्षण (Type Tests) और नियमित परीक्षण (Routine Tests) प्रमुख हैं।
प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मानक
IEC 61439 (निम्न-वोल्टेज स्विचगियर और नियंत्रणगियर असेंबली): यह सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय मानक है जो निम्न-वोल्टेज बसबारों के लिए लागू होता है। इसका भाग IEC 61439-6 विशेष रूप से बसबार ट्रंकिंग सिस्टम्स (बसवेज़) को कवर करता है। इस मानक के अनुसार किए जाने वाले परीक्षणों में शामिल हैं:
- तापमान वृद्धि परीक्षण (Temperature Rise Test): यह जांचने के लिए किया जाता है कि बसबार प्रणाली अपनी रेटेड धारा को बिना अत्यधिक गर्म हुए वहन कर सकती है।
- लघु-परिपथ प्रतिरोध (Short-Circuit Resistance): यह परीक्षण सुनिश्चित करता है कि बसबार और उसके सपोर्ट लघु-परिपथ की स्थिति में उत्पन्न होने वाले थर्मल और इलेक्ट्रोडायनामिक तनावों का सामना कर सकते हैं।
- परावैद्युत गुण (Dielectric Properties): इसमें हाईपोट परीक्षण (High Potential Test) और आवेगी वोल्टेज परीक्षण (Impulse Voltage Test) शामिल हैं, जो बसबार के इन्सुलेशन की क्षमता को सत्यापित करते हैं।
- यांत्रिक प्रदर्शन (Mechanical Performance): यह जांचता है कि बसबार यांत्रिक भार और झटके का सामना कर सकता है।
- सुरक्षात्मक सर्किट की प्रभावशीलता (Effectiveness of Protective Circuits): यह सुनिश्चित करता है कि अर्थिंग कनेक्शन प्रभावी है।
IEEE C37.20.1 (धातु-संलग्न निम्न-वोल्टेज पावर सर्किट ब्रेकर स्विचगियर): यह मानक अमेरिका में व्यापक रूप से उपयोग होता है और इसमें बसबारों के लिए डिज़ाइन और परीक्षण की आवश्यकताएं शामिल हैं। यह इन्सुलेशन, लघु-परिपथ की स्थिति में बसबार के व्यवहार और यांत्रिक गुणों पर जोर देता है।
भारतीय मानक (BIS)
भारत में, कुछ संबंधित मानक भी हैं, जैसे IS 5082:1998, जो विद्युत अनुप्रयोगों के लिए एल्यूमीनियम और एल्यूमीनियम मिश्र धातु की छड़ों और खंडों के लिए आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करता है, जिसमें बसबार सामग्री भी शामिल है। यह रासायनिक संरचना, यांत्रिक गुणों और विद्युत प्रतिरोधकता की जांच करता है।
बसबार पर किए जाने वाले सामान्य परीक्षण
भले ही मानक अलग-अलग हों, बसबारों पर आमतौर पर किए जाने वाले कुछ सामान्य परीक्षण हैं:
- दृश्य निरीक्षण (Visual Inspection): किसी भी भौतिक क्षति, जंग या ढीले कनेक्शन की जांच।
- इन्सुलेशन प्रतिरोध परीक्षण (Insulation Resistance Test): यह मेगर (Megger) उपकरण का उपयोग करके किया जाता है ताकि इन्सुलेशन की अखंडता को मापा जा सके। स्वीकार्य मानदंड आमतौर पर 100 MΩ या उससे अधिक होता है।
- संपर्क प्रतिरोध परीक्षण (Contact Resistance Test): यह परीक्षण बसबार जोड़ों पर किया जाता है। एक माइक्रो-ओहम मीटर (Micro-Ohm Meter) का उपयोग करके बहुत कम प्रतिरोध (माइक्रो-ओह्म के रेंज में) की जांच की जाती है, क्योंकि अधिक प्रतिरोध अत्यधिक ताप और ऊर्जा की हानि का कारण बन सकता है।
- उच्च क्षमता (Hi-pot) परीक्षण: यह परीक्षण बसबार के इन्सुलेशन पर उच्च वोल्टेज लगाकर उसकी शक्ति को मापता है।
- अवरक्त थर्मोग्राफी (Infrared Thermography): यह एक गैर-विनाशकारी परीक्षण है जो ऑपरेशन के दौरान बसबार पर अत्यधिक गर्म स्थानों (hot spots) का पता लगाने के लिए किया जाता है। गर्म स्थान अक्सर ढीले जोड़ों या खराब कनेक्शन का संकेत देते हैं।
इन मानकों और परीक्षणों का पालन करके, यह सुनिश्चित किया जाता है कि बसबार प्रणाली सुरक्षित, विश्वसनीय और कुशल है, जिससे विद्युत प्रणाली में दोषों और विफलताओं का जोखिम कम हो जाता है।
IEC 61439 एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मानक है जो निम्न-वोल्टेज स्विचगियर और नियंत्रणगियर असेंबली (Low-Voltage Switchgear and Controlgear Assemblies) के डिजाइन, निर्माण और सत्यापन से संबंधित है। यह मानक विद्युत सुरक्षा और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
प्रासंगिकता (Relevance)
IEC 61439 की प्रासंगिकता कई मायनों में है:
- सुरक्षा (Safety): यह मानक सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। यह सुनिश्चित करता है कि असेंबली में दोषपूर्ण ऑपरेशन, जैसे कि शॉर्ट सर्किट या ओवरलोड, होने पर भी लोगों को बिजली के झटके या अन्य खतरों से बचाया जाए। यह सुरक्षात्मक सर्किट, इन्सुलेशन और यांत्रिक सुरक्षा के लिए सख्त नियम निर्धारित करता है।
- विश्वसनीयता और प्रदर्शन (Reliability & Performance): यह मानक यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि असेंबली अपनी रेटेड स्थितियों के तहत विश्वसनीय रूप से कार्य करे। यह तापमान वृद्धि, लघु-परिपथ प्रतिरोध और परावैद्युत गुणों जैसे प्रदर्शन मापदंडों को सत्यापित करने के लिए परीक्षण विधियां प्रदान करता है।
- संगतता (Consistency): IEC 61439 ने पूर्ववर्ती मानक IEC 60439 की जगह ली है और इसे अधिक स्पष्ट और व्यापक बनाया है। यह निर्माताओं को एक समान परीक्षण और सत्यापन प्रक्रिया का पालन करने की अनुमति देता है, जिससे उत्पादों की गुणवत्ता और सुरक्षा में एकरूपता आती है।
- जिम्मेदारी का स्पष्टीकरण (Clarification of Responsibilities): यह मानक मूल निर्माता (original manufacturer) और असेंबली के अंतिम निर्माता (assembly manufacturer) के बीच की जिम्मेदारियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि हर कोई अपने हिस्से के लिए जवाबदेह है, जिससे दोषों को कम करने में मदद मिलती है।
- वैश्विक स्वीकृति (Global Acceptance): IEC 61439 को दुनिया भर में स्वीकार किया जाता है, जिससे यह अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और परियोजना सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण मानक बन जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि विभिन्न देशों में बने उपकरण एक ही उच्च गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों को पूरा करते हैं।
संक्षेप में,
IEC 61439 की प्रासंगिकता विद्युत सुरक्षा और गुणवत्ता के लिए एक वैश्विक बेंचमार्क के रूप में है, जो यह सुनिश्चित करता है कि निम्न-वोल्टेज विद्युत प्रणालियां सुरक्षित और विश्वसनीय हों। यह मानक न केवल विनिर्माण के दौरान, बल्कि पूरे जीवनकाल में भी उपकरण की अखंडता बनाए रखने में मदद करता है।
प्रकार बनाम नियमित परीक्षण दो अलग-अलग प्रकार के परीक्षण हैं जो किसी उत्पाद की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने के लिए किए जाते हैं।
प्रकार परीक्षण (Type Tests)
प्रकार परीक्षण एक नए उत्पाद के डिजाइन को सत्यापित करने के लिए किया जाता है। यह एक व्यापक और गहन परीक्षण होता है जो यह सुनिश्चित करता है कि उत्पाद किसी विशेष मानक (जैसे IEC, BIS) के सभी सुरक्षा और प्रदर्शन आवश्यकताओं को पूरा करता है। ये परीक्षण आमतौर पर केवल एक बार या जब डिजाइन में कोई बड़ा बदलाव होता है, तब किए जाते हैं।
उदाहरण: एक नए सर्किट ब्रेकर के डिजाइन के लिए प्रकार परीक्षण में निम्नलिखित शामिल होंगे:
- तापमान वृद्धि परीक्षण (Temperature Rise Test): यह जांचने के लिए कि सर्किट ब्रेकर अपने रेटेड करंट पर लगातार चलने के बाद कितना गर्म होता है। यह सुनिश्चित करता है कि यह अत्यधिक गर्म होकर खराब न हो जाए।
- लघु-परिपथ परीक्षण (Short-Circuit Test): यह सत्यापित करने के लिए कि ब्रेकर एक गंभीर शॉर्ट-सर्किट की स्थिति में खुद को और सर्किट को सुरक्षित रूप से अलग कर सकता है।
- यांत्रिक परिचालन परीक्षण (Mechanical Operation Test): ब्रेकर के बार-बार खुलने और बंद होने की क्षमता की जांच, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह अपने पूरे जीवनकाल में सही ढंग से काम करेगा।
नियमित परीक्षण (Routine Tests)
नियमित परीक्षण प्रत्येक व्यक्तिगत उत्पाद इकाई पर किया जाता है। यह एक उत्पादन-लाइन परीक्षण है जो यह सत्यापित करता है कि निर्मित उत्पाद की गुणवत्ता अच्छी है और वह प्रकार-परीक्षणित डिजाइन के अनुरूप है। ये परीक्षण आमतौर पर कम गहन और कम समय लेने वाले होते हैं।
उदाहरण: उसी सर्किट ब्रेकर के लिए, प्रत्येक निर्मित इकाई पर किए जाने वाले नियमित परीक्षणों में निम्नलिखित शामिल होंगे:
- इन्सुलेशन प्रतिरोध परीक्षण (Insulation Resistance Test): यह जांचने के लिए कि प्रत्येक ब्रेकर का इन्सुलेशन दोषों से मुक्त है।
- ध्रुवता जांच (Polarity Test): यह सुनिश्चित करने के लिए कि आंतरिक कनेक्शन सही हैं।
- कार्यात्मक परीक्षण (Functional Test): यह जांचने के लिए कि ब्रेकर का तंत्र सही ढंग से ट्रिप (trip) होता है और काम करता है।
- दृश्य निरीक्षण (Visual Inspection): प्रत्येक इकाई पर किसी भी भौतिक क्षति या दोष की जांच।
मुख्य अंतर
- उद्देश्य: प्रकार परीक्षण डिजाइन को मान्य करता है, जबकि नियमित परीक्षण उत्पादन को सत्यापित करता है।
- आवृत्ति: प्रकार परीक्षण एक बार या डिजाइन में बदलाव पर किया जाता है, जबकि नियमित परीक्षण प्रत्येक इकाई पर किया जाता है।
- लागत और जटिलता: प्रकार परीक्षण महंगा और जटिल होता है, जबकि नियमित परीक्षण कम खर्चीला और सरल होता है।
सुरक्षा सावधानियाँ किसी भी कार्यक्षेत्र या गतिविधि में दुर्घटनाओं, चोटों और नुकसान को रोकने के लिए उठाए गए आवश्यक कदम हैं। ये सावधानियाँ विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण हो जाती हैं जब हम बिजली, मशीनरी, रसायन या अन्य खतरनाक पदार्थों के साथ काम कर रहे होते हैं।
सामान्य सुरक्षा सावधानियां
व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE): कार्यस्थल पर काम करते समय व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण जैसे हेल्मेट, दस्ताने, सुरक्षा चश्मे, और सुरक्षा जूते पहनना अनिवार्य है। ये उपकरण संभावित खतरों से सीधे संपर्क को रोकते हैं।
कार्यस्थल की साफ-सफाई: कार्यक्षेत्र को हमेशा साफ और व्यवस्थित रखना चाहिए। फर्श पर फैले हुए तार, तेल या अन्य तरल पदार्थ फिसलने और गिरने का कारण बन सकते हैं।
आपातकालीन प्रक्रियाएं: सभी कर्मचारियों को आपातकालीन प्रक्रियाओं जैसे आग लगने की स्थिति में क्या करें, प्राथमिक उपचार और निकासी मार्ग के बारे में पता होना चाहिए। आपातकालीन संपर्क नंबर और फर्स्ट-एड किट हमेशा आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए।
सही उपकरण का उपयोग: हमेशा काम के लिए सही उपकरण का उपयोग करें और सुनिश्चित करें कि वे अच्छी कार्यशील स्थिति में हैं। दोषपूर्ण या क्षतिग्रस्त उपकरणों का उपयोग न करें।
विद्युत सुरक्षा सावधानियां
- लॉकआउट/टैगआउट (LOTO): किसी भी विद्युत उपकरण पर काम शुरू करने से पहले, यह सुनिश्चित करें कि विद्युत आपूर्ति पूरी तरह से बंद है और इसे गलती से चालू नहीं किया जा सकता। लॉकआउट/टैगआउट प्रक्रिया इस उद्देश्य के लिए महत्वपूर्ण है।
- पृथ्वी (Earth) कनेक्शन: सभी विद्युत उपकरणों में सही और प्रभावी पृथ्वी (अर्थ) कनेक्शन होना चाहिए। यह शॉर्ट सर्किट की स्थिति में बिजली के झटके से सुरक्षा प्रदान करता है।
- वायरिंग की जांच: नियमित रूप से तारों, प्लगों और सॉकेट्स का निरीक्षण करें। क्षतिग्रस्त या खुले तारों को तुरंत बदल दें, क्योंकि वे आग या बिजली के झटके का कारण बन सकते हैं।
- गीले हाथों से काम न करें: गीले हाथों से किसी भी विद्युत उपकरण या स्विच को न छुएं, क्योंकि पानी बिजली का अच्छा संवाहक है।
मशीनरी सुरक्षा सावधानियां
- सुरक्षा गार्ड (Guards): मशीन के सभी घूमने वाले और खतरनाक हिस्सों पर सुरक्षा गार्ड लगे होने चाहिए ताकि वे गलती से हाथ या कपड़ों को न पकड़ लें।
- प्रशिक्षण: मशीनरी का उपयोग करने से पहले, सुनिश्चित करें कि आप उसके संचालन के लिए पूरी तरह से प्रशिक्षित हैं।
- रखरखाव: मशीनों का नियमित रखरखाव करें। खराब पुर्जों को समय पर बदल दें ताकि वे दुर्घटना का कारण न बनें।
इन सावधानियों का पालन करके, हम सुरक्षित कार्य वातावरण बना सकते हैं और जीवन तथा संपत्ति को सुरक्षित रख सकते हैं।
एचवी (High Voltage) परीक्षण विफलता का मतलब है कि उपकरण या प्रणाली ने उच्च वोल्टेज के तनाव को झेलने की अपनी क्षमता खो दी है। इस विफलता का सीधा संबंध उपकरण के इन्सुलेशन की गुणवत्ता से है। जब एक एचवी परीक्षण विफल होता है, तो इसका मतलब है कि इन्सुलेशन या तो कमजोर हो गया है या पूरी तरह से खराब हो गया है।
विफलता के प्रमुख कारण
एचवी परीक्षण की विफलता के कई कारण हो सकते हैं, जो अक्सर इन्सुलेशन की अखंडता से जुड़े होते हैं:
- उत्पादन दोष (Manufacturing Defects): निर्माण के दौरान इन्सुलेशन सामग्री में हवा के बुलबुले, अशुद्धियाँ, या असमान मोटाई रह सकती है। ये दोष उच्च वोल्टेज के तहत इन्सुलेशन को कमजोर कर देते हैं।
- यांत्रिक क्षति (Mechanical Damage): उपकरण के परिवहन या स्थापना के दौरान इन्सुलेशन को नुकसान पहुँच सकता है। इससे सूक्ष्म दरारें या छेद बन सकते हैं, जिससे उच्च वोल्टेज के तहत रिसाव (leakage) हो सकता है।
- अत्यधिक नमी (Excessive Moisture): नमी इन्सुलेशन के प्रतिरोध को कम करती है। यदि इन्सुलेशन में नमी प्रवेश कर जाती है, तो यह उच्च वोल्टेज के तहत एक प्रवाहकीय मार्ग (conductive path) बना सकती है, जिससे विफलता होती है।
- प्रदूषण (Contamination): धूल, गंदगी, तेल या अन्य रासायनिक पदार्थ इन्सुलेशन की सतह पर जम सकते हैं। ये पदार्थ एक प्रवाहकीय फिल्म बना सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप सतह पर फ्लैशओवर (flashover) हो सकता है।
- आयु के कारण गिरावट (Aging and Degradation): समय के साथ, इन्सुलेशन सामग्री अपनी मूल शक्ति और लोच खो देती है। यह निरंतर ताप, रासायनिक प्रतिक्रियाओं, और विद्युत तनाव के कारण होता है, जिससे इन्सुलेशन कमजोर हो जाता है।
विफलता के परिणाम
एचवी परीक्षण की विफलता के गंभीर परिणाम हो सकते हैं:
- उपकरण की क्षति: यदि इन्सुलेशन विफल हो जाता है, तो यह शॉर्ट सर्किट का कारण बन सकता है, जिससे उपकरण को गंभीर और अपरिवर्तनीय क्षति हो सकती है।
- सुरक्षा जोखिम: इन्सुलेशन की विफलता बिजली के झटके और आग लगने का खतरा पैदा करती है, जो मानव जीवन के लिए खतरनाक है।
- सिस्टम डाउनटाइम: एक विफल उपकरण पूरे सिस्टम को बंद कर सकता है, जिससे उत्पादन में रुकावट और वित्तीय नुकसान हो सकता है।
एचवी परीक्षण की विफलता को गंभीरता से लेना चाहिए। इसका मतलब है कि उपकरण उपयोग के लिए असुरक्षित है और इसे तुरंत मरम्मत या प्रतिस्थापन की आवश्यकता है।
शॉर्ट सर्किट परीक्षण की अवधि उस उपकरण के प्रकार और परीक्षण के उद्देश्य पर निर्भर करती है। यह अवधि सेकंड के एक छोटे अंश से लेकर कुछ सेकंड तक हो सकती है।
विभिन्न उपकरणों के लिए अवधि
- सर्किट ब्रेकर: सर्किट ब्रेकर का मुख्य कार्य शॉर्ट सर्किट होने पर सर्किट को बहुत जल्दी खोलना है। इसलिए, इसका शॉर्ट सर्किट परीक्षण बहुत कम अवधि के लिए होता है, आमतौर पर कुछ मिलीसेकंड (ms) या कुछ सेकंड। इसका उद्देश्य यह जांचना होता है कि ब्रेकर कितने समय में सुरक्षात्मक रूप से कार्य करता है।
- बसबार: बसबार का शॉर्ट सर्किट परीक्षण यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि वे शॉर्ट सर्किट के दौरान उत्पन्न होने वाले अत्यधिक यांत्रिक और थर्मल तनावों का सामना कर सकें। इस तरह के परीक्षण की अवधि 0.1 सेकंड या उससे अधिक हो सकती है, जैसा कि IEC 61914:2009 मानक में निर्दिष्ट है।
- ट्रांसफार्मर: ट्रांसफार्मर के शॉर्ट सर्किट परीक्षण में, मुख्य उद्देश्य कॉपर लॉस (copper loss) और प्रतिबाधा (impedance) निर्धारित करना होता है। इस परीक्षण के लिए, रेटेड करंट को पास करने के लिए वोल्टेज को धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है। यह एक कम शक्ति वाला परीक्षण है और इसे तब तक जारी रखा जा सकता है जब तक कि माप पूरे न हो जाएं। हालांकि, यांत्रिक शक्ति की जांच के लिए किए जाने वाले शॉर्ट सर्किट परीक्षण अधिक तीव्र होते हैं और कुछ सेकंड तक चल सकते हैं।
संक्षेप में,
शॉर्ट सर्किट परीक्षण की अवधि उपकरण के प्रकार और परीक्षण के उद्देश्य (जैसे, ब्रेकर के लिए तेज ऑपरेशन की जांच, या बसबार के लिए यांत्रिक स्थिरता की जांच) पर निर्भर करती है।
अति ताप की पहचान (Overheating Detection) किसी भी यांत्रिक या विद्युत प्रणाली की सुरक्षा और दक्षता के लिए महत्वपूर्ण है। अति ताप, जिसे ओवरहीटिंग भी कहते हैं, तब होता है जब कोई उपकरण अपनी सामान्य ऑपरेटिंग तापमान सीमा से अधिक गर्म हो जाता है। यह विफलता, क्षति, या आग का कारण बन सकता है।
अति ताप की पहचान के तरीके
अति ताप का पता लगाने के कई तरीके हैं, जिन्हें मुख्य रूप से दृश्य, स्पर्श और तकनीकी तरीकों में बांटा जा सकता है:
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दृश्य निरीक्षण (Visual Inspection):
- रंग में परिवर्तन: किसी सतह का रंग बदलना (जैसे धातु का नीला या भूरा हो जाना)। यह इस बात का संकेत है कि वह अत्यधिक तापमान के संपर्क में आई है।
- इन्सुलेशन का पिघलना या काला होना: तारों या अन्य घटकों का प्लास्टिक इन्सुलेशन पिघल सकता है या काला हो सकता है।
- धुआँ या जलने की गंध: जलने वाली सामग्री या धुआँ अक्सर अति ताप का पहला स्पष्ट संकेत होता है।
- स्पर्श विधि (Tactile Method):
- हाथ से महसूस करना: किसी उपकरण को छूकर उसके गर्म होने का पता लगाया जा सकता है, हालांकि यह तरीका जोखिम भरा हो सकता है और केवल छोटे और कम-शक्ति वाले उपकरणों के लिए ही अनुशंसित है।
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तकनीकी विधियाँ (Technical Methods):
- थर्मोकपल और RTDs: ये सेंसर तापमान को मापते हैं और इसे विद्युत संकेत में परिवर्तित करते हैं। इन सेंसर का उपयोग हीटिंग सिस्टम, रिएक्टर या मोटर जैसे उपकरणों में तापमान की निगरानी के लिए किया जाता है।
- थर्मल इमेजर (Thermal Imager): यह एक गैर-संपर्क विधि है। थर्मल इमेजर (या इन्फ्रारेड कैमरा) किसी वस्तु से निकलने वाली गर्मी को मापता है और इसे एक रंगीन छवि में दिखाता है। गर्म क्षेत्र अक्सर चमकीले रंग (जैसे पीला या लाल) में दिखाई देते हैं, जिससे अति ताप का सटीक पता लगाना आसान हो जाता है।
- तापमान स्विच और थर्मोस्टेट: ये उपकरण एक निश्चित तापमान सीमा से अधिक होने पर स्वचालित रूप से सर्किट को बंद कर देते हैं, जिससे उपकरण को क्षति से बचाया जा सकता है।
- तापमान सूचक लेबल (Temperature Indicator Labels): ये विशेष स्टिकर होते हैं जो एक निश्चित तापमान पर पहुंचने पर रंग बदलते हैं, जिससे यह पता चलता है कि उपकरण ओवरहीट हुआ था।
अति ताप के सामान्य कारण
- ओवरलोड: किसी उपकरण पर उसकी क्षमता से अधिक भार डालना।
- घर्षण (Friction): मशीनरी में घिसे हुए या अपर्याप्त रूप से लुब्रिकेटेड पुर्जे।
- खराब वेंटिलेशन: उपकरण के चारों ओर हवा के प्रवाह की कमी।
- ढीले कनेक्शन: विद्युत सर्किट में ढीले कनेक्शन उच्च प्रतिरोध और अत्यधिक गर्मी पैदा करते हैं।
- गलत पुर्जे: गलत रेटिंग वाले पुर्जों का उपयोग करना।
अति ताप की समय पर पहचान न केवल उपकरण को बचाती है, बल्कि दुर्घटनाओं और सुरक्षा खतरों को भी रोकती है।
थर्मोकपल एक सरल और विश्वसनीय तापमान संवेदक है जिसका उपयोग विभिन्न उद्योगों और अनुप्रयोगों में तापमान मापने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग -200°C से 2300°C तक की बहुत विस्तृत तापमान सीमा को मापने के लिए किया जा सकता है।
थर्मोकपल के मुख्य उपयोग
थर्मोकपल का उपयोग कई अलग-अलग क्षेत्रों में होता है:
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औद्योगिक प्रक्रियाएँ (Industrial Processes):
- भट्टियाँ और भट्ठे: उच्च तापमान भट्टियों में तापमान को नियंत्रित करने के लिए थर्मोकपल का उपयोग किया जाता है, जहाँ पिघले हुए धातु या सिरेमिक का उत्पादन होता है।
- रिफाइनरियाँ और रासायनिक संयंत्र: रासायनिक प्रतिक्रियाओं और पेट्रोलियम उत्पादों को संसाधित करने के लिए थर्मोकपल महत्वपूर्ण होते हैं।
- ऊर्जा उत्पादन (Energy Generation):
- पावर प्लांट: गैस टर्बाइन, बॉयलर और स्टीम टर्बाइन के तापमान की निगरानी के लिए थर्मोकपल का उपयोग किया जाता है, ताकि उनकी दक्षता और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
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ऑटोमोटिव क्षेत्र (Automotive Sector):
- इंजन: इंजन के तापमान की निगरानी के लिए थर्मोकपल का उपयोग किया जाता है, ताकि ओवरहीटिंग को रोका जा सके।
- एग्जॉस्ट गैस: यह भी मापा जाता है कि एग्जॉस्ट गैस कितनी गर्म है, ताकि उत्सर्जन नियंत्रण प्रणालियों को ठीक से काम करने में मदद मिल सके।
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विज्ञान और अनुसंधान (Science and Research):
- प्रयोगशालाएँ: वैज्ञानिक प्रयोगों में तापमान मापने के लिए थर्मोकपल का उपयोग किया जाता है।
- अंतरिक्ष यान: अंतरिक्ष यान के घटकों के तापमान की निगरानी के लिए थर्मोकपल आवश्यक हैं, जो अत्यधिक तापमान की स्थितियों में काम करते हैं।
थर्मोकपल कैसे काम करता है?
थर्मोकपल सीबेक प्रभाव (Seebeck effect) के सिद्धांत पर काम करता है। इसमें दो अलग-अलग धातुओं के तार होते हैं, जो एक सिरे पर जुड़े होते हैं। जब इस जंक्शन को गर्म किया जाता है, तो दो तारों के बीच एक बहुत छोटा वोल्टेज उत्पन्न होता है। यह वोल्टेज तापमान के सीधे आनुपातिक होता है। इस वोल्टेज को मापकर तापमान का अनुमान लगाया जाता है।
उदाहरण: सबसे आम थर्मोकपल प्रकारों में से एक है K-प्रकार, जिसमें निकेल-क्रोमियम (Nickel-Chromium) और निकेल-एल्यूमीनियम (Nickel-Aluminium) के तार होते हैं।
थर्मोकपल की मजबूती, सटीकता और विस्तृत तापमान सीमा इसे कई महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों के लिए एक आदर्श विकल्प बनाती है।
विद्युतीकरण से पहले अनुपालन जांच का मतलब है, बिजली का कनेक्शन देने या किसी जगह पर बिजली का काम शुरू करने से पहले, यह सुनिश्चित करना कि सभी नियम और सुरक्षा मानकों का पालन किया गया है। यह जांच कई स्तरों पर होती है और इसमें कई चीजें शामिल होती हैं:
1. सुरक्षा मानक:
- वायरिंग और उपकरण: यह सुनिश्चित करना कि वायरिंग, स्विच, सॉकेट और अन्य सभी बिजली के उपकरण भारतीय विद्युत नियमों (Indian Electricity Rules) के अनुसार लगाए गए हैं और वे सुरक्षित हैं।
- अर्थिंग (Earthing): यह जांच करना कि सही तरीके से अर्थिंग की गई है। अर्थिंग बिजली के झटके से बचाने के लिए बहुत जरूरी है।
- इंसुलेशन (Insulation): केबलों और तारों का इंसुलेशन सही है या नहीं, इसकी जांच करना ताकि शॉर्ट सर्किट या करंट लीकेज न हो।
- मुख्य स्विच (Main Switch) और सर्किट ब्रेकर (Circuit Breaker): यह सुनिश्चित करना कि मेन स्विच और सर्किट ब्रेकर सही जगह पर और सही क्षमता के लगाए गए हैं, ताकि ओवरलोड होने पर बिजली अपने आप बंद हो जाए।
2. कानूनी और प्रशासनिक अनुपालन:
- अनुमति और लाइसेंस: किसी भी बड़े विद्युतीकरण परियोजना के लिए, संबंधित सरकारी विभाग, जैसे कि विद्युत सुरक्षा निदेशालय (Directorate of Electrical Safety) या बिजली वितरण कंपनी से अनुमति लेना जरूरी होता है।
- दस्तावेज़ (Documents): सभी जरूरी दस्तावेज़, जैसे कि आवेदन पत्र, साइट प्लान, और आवश्यक प्रमाणपत्रों की जांच की जाती है।
- ठेकेदार का लाइसेंस: यह जांच करना कि काम करने वाला ठेकेदार (इलेक्ट्रिकल कॉन्ट्रैक्टर) और वायरमैन के पास वैध लाइसेंस और प्रमाणपत्र हैं।
3. कार्यस्थल की सुरक्षा:
- सुरक्षा प्रोटोकॉल: यह सुनिश्चित करना कि काम के दौरान सुरक्षा के सभी प्रोटोकॉल का पालन किया गया है, जैसे कि सुरक्षा उपकरण (PPE - Personal Protective Equipment) का उपयोग, काम शुरू करने से पहले लाइन को बंद करना (Lock Out, Tag Out), आदि।
- आपातकालीन योजना: यह सुनिश्चित करना कि किसी भी दुर्घटना की स्थिति में, आपातकालीन योजना (Emergency Plan) तैयार है और सभी को इसके बारे में पता है।
4. मीटर और कनेक्शन की जांच:
- मीटर का इंस्टालेशन: बिजली का मीटर सही जगह और सही तरीके से लगाया गया है या नहीं, इसकी जांच करना।
- फोटोग्राफी और पहचान: कई जगहों पर, विशेषकर बिजली चोरी की जांच के मामलों में, अधिकारी अपनी पहचान (आईडी कार्ड) दिखाते हैं और जांच से पहले उपभोक्ता के साथ सेल्फी या ग्रुप फोटो लेते हैं। यह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है।
संक्षेप में,
विद्युतीकरण से पहले अनुपालन जांच का मुख्य उद्देश्य सुरक्षा, नियमों का पालन और कार्य की गुणवत्ता सुनिश्चित करना है, ताकि बाद में कोई दुर्घटना या कानूनी समस्या न हो।
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