विद्युत प्रणालियों में स्ट्रिंग दक्षता ( String efficiency in power systems )

विद्युत प्रणालियों में स्ट्रिंग दक्षता विद्युत प्रणालियों में, स्ट्रिंग दक्षता इंसुलेटर स्ट्रिंग पर वोल्टेज के समान वितरण की एक माप है। यह आदर्श वोल्टेज मान और वास्तविक वोल्टेज मान का अनुपात है, जो 100% से कम होता है।

एक आदर्श स्ट्रिंग में

प्रत्येक इंसुलेटर पर वोल्टेज समान रूप से वितरित होता है, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं होता। यह दक्षता कई कारकों पर निर्भर करती है, 

जैसे कि इंसुलेटर के बीच की धारिता और लाइन कंडक्टर और टावर के बीच की धारिता। ​

स्ट्रिंग दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक ​कंडक्टर और टावर के बीच धारिता (C_m): इसे शंट कैपेसिटेंस (shunt capacitance) भी कहते हैं। यह मुख्य इंसुलेटर कैपेसिटेंस (C) के साथ समानांतर (parallel) में होता है। 

इस धारिता के कारण ही स्ट्रिंग के पास वाले इंसुलेटर पर अधिक वोल्टेज आता है, जिससे दक्षता घटती है। ​

इंसुलेटर के बीच की धारिता (C): यह एक आदर्श इंसुलेटर में समान होनी चाहिए। ​

इंसुलेटर की संख्या: स्ट्रिंग में जितने अधिक इंसुलेटर होंगे, शंट कैपेसिटेंस का प्रभाव उतना ही अधिक होगा और दक्षता उतनी ही कम होगी। ​

स्ट्रिंग की लंबाई: स्ट्रिंग की लंबाई बढ़ने से भी धारिता का प्रभाव बढ़ता है। ​

स्ट्रिंग दक्षता का सूत्र ​स्ट्रिंग दक्षता को निम्न सूत्र से दर्शाया जाता है: ​

{स्ट्रिंग दक्षता} = {स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज}{इंसुलेटरों की संख्या}{सबसे निचले इंसुलेटर के पार वोल्टेज}× 100%

इस सूत्र में, 

सबसे निचले इंसुलेटर पर वोल्टेज सबसे अधिक होता है, क्योंकि यह कंडक्टर के सबसे करीब होता है और शंट कैपेसिटेंस का प्रभाव इस पर सबसे ज्यादा होता है। ​

स्ट्रिंग दक्षता को बेहतर बनाने के उपाय ​गार्ड रिंग (Guard Ring) या ग्रेडिंग रिंग (Grading Ring) का उपयोग: यह एक धातु की रिंग होती है जिसे निचले इंसुलेटर के चारों ओर लगाया जाता है। यह इंसुलेटर और टावर के बीच शंट कैपेसिटेंस को कम करके वोल्टेज को समान रूप से वितरित करने में मदद करती है।

श्रेणीबद्ध इंसुलेटर (Grading Insulators): इस विधि में, विभिन्न धारिता (capacitance) वाले इंसुलेटर का उपयोग किया जाता है। निचले इंसुलेटर, जो कंडक्टर के पास होते हैं, की धारिता सबसे अधिक होती है, और ऊपरी इंसुलेटर की धारिता सबसे कम होती है। यह वोल्टेज को समान रूप से वितरित करने में मदद करता है। 

इंसुलेटरों के बीच की दूरी बढ़ाना: इंसुलेटरों के बीच की दूरी बढ़ाने से शंट कैपेसिटेंस का प्रभाव कम होता है, जिससे दक्षता में सुधार होता है।




विद्युत प्रणालियों में स्ट्रिंग दक्षता का सूत्र इस प्रकार है: ​{स्ट्रिंग दक्षता} = {स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज}{इंसुलेटरों की संख्या} {सबसे निचले इंसुलेटर के पार वोल्टेज}×100% ​

इस सूत्र में, 

स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज इंसुलेटर स्ट्रिंग के दोनों सिरों के बीच का कुल वोल्टेज है। इंसुलेटरों की संख्या स्ट्रिंग में लगे इंसुलेटर डिस्क की कुल संख्या है। सबसे निचले इंसुलेटर के पार वोल्टेज उस इंसुलेटर पर मापा गया वोल्टेज है जो लाइन कंडक्टर के सबसे करीब होता है। 

इस सूत्र में, 

सबसे निचले इंसुलेटर पर वोल्टेज सबसे अधिक होता है क्योंकि यह शंट कैपेसिटेंस (shunt capacitance) के कारण कंडक्टर के सबसे पास होता है, जिससे स्ट्रिंग दक्षता 100% से कम हो जाती है।




​स्ट्रिंग दक्षता को प्रतिशत में इसलिए व्यक्त किया जाता है ताकि यह स्पष्ट रूप से दर्शाया जा सके कि एक इंसुलेटर स्ट्रिंग अपने आदर्श प्रदर्शन के कितने करीब है।

​यह एक तुलनात्मक माप है जो बताता है कि स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज, आदर्श वोल्टेज वितरण की तुलना में कितना है।

प्रमुख कारण:

  • आसान तुलना: प्रतिशत में व्यक्त करने से विभिन्न स्ट्रिंग्स की दक्षता की तुलना करना आसान हो जाता है, भले ही उनमें इंसुलेटरों की संख्या अलग-अलग हो।
  • प्रदर्शन का मूल्यांकन: प्रतिशत मान सीधे यह बताता है कि स्ट्रिंग का प्रदर्शन कितना अच्छा है। 100% का मान आदर्श स्थिति को दर्शाता है, जबकि कम प्रतिशत का मतलब है कि वोल्टेज वितरण असमान है और दक्षता कम है।
  • मानकीकरण: यह विद्युत इंजीनियरिंग में एक मानक तरीका है, जो इंजीनियरों और तकनीशियनों को एक ही पैमाने पर दक्षता को समझने और संवाद करने में मदद करता है।

चूंकि स्ट्रिंग दक्षता, 

आदर्श स्थिति (100%) से हमेशा कम होती है, प्रतिशत में इसे व्यक्त करना इसके प्रदर्शन में कमी को मात्रात्मक रूप से दर्शाने का एक प्रभावी तरीका है।




​विद्युत पारेषण लाइनों में स्ट्रिंग दक्षता का महत्व कई कारणों से है, जो बिजली प्रणाली की विश्वसनीयता और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं। उच्च स्ट्रिंग दक्षता का मतलब है कि प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क पर वोल्टेज का वितरण अधिक समान है, जिससे कई लाभ मिलते हैं:

​1. इंसुलेटर की विफलता को रोकना

​यदि स्ट्रिंग दक्षता कम होती है, तो कंडक्टर के सबसे पास वाले इंसुलेटर पर सबसे अधिक वोल्टेज स्ट्रेस पड़ता है। यह अतिरिक्त तनाव उस इंसुलेटर के पंचर या फ्लैशओवर का कारण बन सकता है, जिससे पूरी स्ट्रिंग विफल हो सकती है। उच्च दक्षता यह सुनिश्चित करती है कि वोल्टेज समान रूप से वितरित हो, जिससे किसी भी एक इंसुलेटर पर अत्यधिक तनाव नहीं पड़ता।

​2. बिजली आपूर्ति की विश्वसनीयता बढ़ाना

​जब एक इंसुलेटर विफल होता है, तो इससे लाइन ट्रिप हो सकती है और बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है। उच्च स्ट्रिंग दक्षता लाइनों की स्थिरता को बढ़ाती है, जिससे व्यवधानों की संभावना कम हो जाती है और बिजली ग्रिड की विश्वसनीयता बनी रहती है।

​3. रखरखाव लागत में कमी

​इंसुलेटर की विफलता के कारण होने वाली मरम्मत और प्रतिस्थापन महंगी होती है। उच्च दक्षता वाली स्ट्रिंग्स के साथ, इंसुलेटर के जीवनकाल में वृद्धि होती है, जिससे बार-बार रखरखाव की आवश्यकता कम हो जाती है और संचालन लागत में बचत होती है।

​4. सुरक्षा में सुधार

​किसी भी विद्युत प्रणाली में, सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। जब एक इंसुलेटर पर अत्यधिक वोल्टेज स्ट्रेस होता है, तो यह कर्मियों और उपकरणों के लिए खतरा पैदा कर सकता है। स्ट्रिंग दक्षता में सुधार करके, इन जोखिमों को कम किया जा सकता है।

संक्षेप में, 

स्ट्रिंग दक्षता एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है जो यह निर्धारित करता है कि एक इंसुलेटर स्ट्रिंग कितनी कुशलता से और सुरक्षित रूप से कार्य करती है। एक उच्च दक्षता वाली स्ट्रिंग न केवल विश्वसनीय होती है, बल्कि यह प्रणाली की दीर्घायु और आर्थिक प्रदर्शन में भी योगदान देती है।



​एक इंसुलेटर स्ट्रिंग में वोल्टेज का वितरण समान रूप से नहीं होता है, बल्कि यह असमान होता है। यह असमान वितरण मुख्य रूप से दो प्रकार की धारिताओं (capacitances) के कारण होता है: ​

1. आपसी धारिता (Mutual Capacitance) ​प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क के चीनी मिट्टी (porcelain) या कांच (glass) वाले हिस्से और उसके दो सिरों पर लगे धातु के हिस्सों के बीच एक धारिता होती है। इसे आपसी धारिता (C) कहते हैं। यह धारिता एक श्रृंखला परिपथ (series circuit) बनाती है, जिससे स्ट्रिंग के माध्यम से धारा प्रवाहित होती है। 

​2. शंट धारिता (Shunt Capacitance) ​प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क के धातु के हिस्से और टावर के बीच एक दूसरी धारिता बनती है, जिसे शंट धारिता (C\_m) कहते हैं। यह धारिता आपसी धारिता के समानांतर (parallel) में होती है और इसके कारण एक अतिरिक्त धारा प्रवाहित होती है। ​

असमान वोल्टेज वितरण का कारण ​जब एक उच्च वोल्टेज कंडक्टर से धारा प्रवाहित होती है, तो यह धारा आपसी धारिता और शंट धारिता दोनों से होकर गुजरती है। शंट धारिता टावर के पास ग्राउंड होने के कारण, धारा का एक हिस्सा हर इंसुलेटर डिस्क के धातु के हिस्से से टावर की ओर चला जाता है। ​

इसका परिणाम यह होता है कि: ​सबसे निचले इंसुलेटर डिस्क (कंडक्टर के सबसे पास) पर सबसे अधिक वोल्टेज स्ट्रेस पड़ता है। ​

जैसे-जैसे हम टावर की ओर बढ़ते हैं,

प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज स्ट्रेस धीरे-धीरे कम होता जाता है। ​इस असमान वोल्टेज वितरण के कारण ही स्ट्रिंग दक्षता 100% से कम होती है, क्योंकि आदर्श स्थिति में सभी डिस्क पर वोल्टेज बराबर होना चाहिए। ​




​इंसुलेटर स्ट्रिंग में असमान वोल्टेज वितरण का मुख्य कारण शंट धारिता (shunt capacitance) है। ​

एक इंसुलेटर स्ट्रिंग में, दो तरह की धारिताएँ (capacitances) काम करती हैं: ​

आपसी धारिता (Mutual Capacitance): यह प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क के चीनी मिट्टी या कांच वाले हिस्से के कारण होती है। यह धारिता (C) एक श्रृंखला परिपथ बनाती है, और यदि केवल यही धारिता होती, तो वोल्टेज समान रूप से वितरित होता। 

शंट धारिता (Shunt Capacitance): यह प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क के धातु के हिस्से और टावर के बीच मौजूद होती है। इसे स्ट्रे धारिता (stray capacitance) भी कहते हैं। 

यह धारिता (C_m) ग्राउंड (टावर) से जुड़ी होने के कारण, समानांतर में होती है। ​असमान वितरण का तंत्र ​जब लाइन कंडक्टर से धारा प्रवाहित होती है, तो यह दोनों धारिताओं में विभाजित हो जाती है। ​

शंट धारिता (C_m) के माध्यम से धारा का एक हिस्सा हर डिस्क के धातु के हिस्से से टावर की ओर प्रवाहित होने लगता है। ​यह अतिरिक्त धारा कंडक्टर के सबसे पास वाले इंसुलेटर से होकर गुजरती है, जिससे उस पर वोल्टेज स्ट्रेस सबसे अधिक होता है। ​

जैसे-जैसे धारा स्ट्रिंग में ऊपर की ओर जाती है, शंट धारिता के कारण धारा का मान धीरे-धीरे कम होता जाता है। ​

इस कारण,

सबसे निचले इंसुलेटर पर वोल्टेज सबसे अधिक होता है, और सबसे ऊपर वाले इंसुलेटर (टावर के पास) पर वोल्टेज सबसे कम होता है। ​यह असमान वोल्टेज वितरण ही स्ट्रिंग दक्षता को 100% से कम कर देता है और इंसुलेटर की विफलता का मुख्य कारण बनता है। ​



​इंसुलेटर स्ट्रिंग में असमान वोल्टेज वितरण का विद्युत प्रणाली पर कई गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, जो विश्वसनीयता और सुरक्षा को प्रभावित करते हैं।

​1. इंसुलेटर की विफलता और पंचर होना

​असमान वोल्टेज वितरण के कारण, कंडक्टर के सबसे पास वाले इंसुलेटर पर अत्यधिक विद्युत तनाव (electrical stress) पड़ता है। यह अतिरिक्त तनाव उस इंसुलेटर को समय से पहले पंचर (अंदर से क्षतिग्रस्त) कर सकता है या उसकी सतह पर फ्लैशओवर (हवा के माध्यम से उच्च वोल्टेज का निर्वहन) का कारण बन सकता है। एक भी इंसुलेटर के विफल होने से पूरी स्ट्रिंग विफल हो सकती है, जिससे लाइन ट्रिप हो जाती है।

​2. बिजली आपूर्ति में व्यवधान

​जब एक इंसुलेटर स्ट्रिंग विफल होती है, तो यह अक्सर लाइन ट्रिपिंग का कारण बनती है, जिससे उस पूरे खंड में बिजली आपूर्ति बाधित हो जाती है। यह ग्रिड की विश्वसनीयता को कम करता है और ग्राहकों के लिए अनियोजित आउटेज का कारण बनता है।

​3. रेडियो हस्तक्षेप और कोरोना प्रभाव

​उच्च वोल्टेज स्ट्रेस के कारण, इंसुलेटर की सतह पर कोरोना प्रभाव (हवा का आयनीकरण) बढ़ जाता है। इससे रेडियो हस्तक्षेप (radio interference) होता है, जो संचार प्रणालियों को प्रभावित कर सकता है। यह ऊर्जा का नुकसान भी है, जो प्रणाली की दक्षता को कम करता है।

​4. बढ़ी हुई रखरखाव लागत

​असमान वोल्टेज वितरण के कारण इंसुलेटर का जीवनकाल कम हो जाता है, जिससे उन्हें बार-बार बदलना पड़ता है। यह रखरखाव लागत को बढ़ाता है और लाइन के डाउनटाइम (सेवा से बाहर का समय) में वृद्धि करता है।

​इन्सुलेटर पर असमान वोल्टेज वितरण का सबसे प्रमुख प्रभाव यह है कि यह प्रणाली की विश्वसनीयता को कम करता है और इंसुलेटर को समय से पहले विफल कर सकता है।



​स्ट्रिंग की दक्षता पर लीकेज करंट का सीधा और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लीकेज करंट (जिसे सतह रिसाव धारा भी कहते हैं) तब प्रवाहित होता है जब इंसुलेटर की सतह पर धूल, प्रदूषण, या नमी जमा हो जाती है। यह धारा इंसुलेटर की सतह पर एक अतिरिक्त प्रवाह पथ बनाती है।

लीकेज करंट का प्रभाव

  1. प्रतिरोध में कमी: जब इंसुलेटर की सतह गंदी या नम होती है, तो उसका सतह प्रतिरोध (surface resistance) बहुत कम हो जाता है। इससे एक छोटा लीकेज करंट कंडक्टर से टावर की ओर प्रवाहित होने लगता है।
  2. वोल्टेज वितरण पर असर: यह लीकेज करंट इंसुलेटर के आंतरिक कैपेसिटेंस धाराओं के साथ मिलकर वोल्टेज के वितरण को और अधिक असंतुलित कर देता है। विशेष रूप से, यह कंडक्टर के सबसे पास वाले इंसुलेटर पर वोल्टेज स्ट्रेस को और बढ़ा देता है, जिससे स्ट्रिंग की दक्षता और भी कम हो जाती है।
  3. ओवरहीटिंग और फ्लैशओवर: लगातार लीकेज करंट प्रवाहित होने से इंसुलेटर की सतह पर गर्मी पैदा होती है, जिससे ड्राई बैंड (dry band) बन सकते हैं। इन ड्राई बैंड्स पर उच्च वोल्टेज स्ट्रेस के कारण स्थानीय आर्क (local arcs) उत्पन्न हो सकते हैं, जिससे अंततः फ्लैशओवर हो सकता है। यह इंसुलेटर को स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त कर सकता है।

संक्षेप में, 

लीकेज करंट इंसुलेटर की सुरक्षात्मक क्षमता को कम करता है और असमान वोल्टेज वितरण को बढ़ाता है, जिससे स्ट्रिंग दक्षता कम हो जाती है और इंसुलेटर की विफलता का खतरा बढ़ जाता है।


​स्ट्रिंग दक्षता को कई कारक प्रभावित करते हैं, जिनमें मुख्य रूप से तीन प्रमुख कारक शामिल हैं:

​1. शंट कैपेसिटेंस (Shunt Capacitance)

​स्ट्रिंग दक्षता को प्रभावित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण कारक शंट कैपेसिटेंस है, जिसे "स्ट्रे कैपेसिटेंस" भी कहते हैं। यह इंसुलेटर की धातु फिटिंग्स और टावर के बीच मौजूद होता है।

  • प्रभाव: शंट कैपेसिटेंस के कारण, कंडक्टर से आने वाली धारा (current) अलग-अलग पथों में बंट जाती है। इससे प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क में धारा असमान हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज भी असमान रूप से वितरित होता है।
  • दक्षता पर असर: शंट कैपेसिटेंस जितना अधिक होगा, वोल्टेज का वितरण उतना ही अधिक असमान होगा, और स्ट्रिंग दक्षता उतनी ही कम होगी।

​2. इंसुलेटर डिस्क की संख्या (Number of Insulator Discs)

​इंसुलेटर स्ट्रिंग में डिस्क की संख्या भी दक्षता को प्रभावित करती है।

  • प्रभाव: डिस्क की संख्या बढ़ने पर, शंट कैपेसिटेंस का समग्र प्रभाव भी बढ़ जाता है। इससे वोल्टेज का वितरण और अधिक असमान हो जाता है, क्योंकि कंडक्टर के पास वाली डिस्क पर वोल्टेज का तनाव और बढ़ जाता है।
  • दक्षता पर असर: स्ट्रिंग में डिस्क की संख्या जितनी अधिक होगी, स्ट्रिंग दक्षता उतनी ही कम होगी।

​3. लीकेज करंट (Leakage Current)

​इंसुलेटर की सतह पर धूल, प्रदूषण, और नमी के कारण लीकेज करंट प्रवाहित होता है।

  • प्रभाव: लीकेज करंट एक अतिरिक्त प्रवाह पथ बनाता है जो इंसुलेटर के प्रतिरोध को कम करता है। यह वोल्टेज वितरण को असंतुलित कर देता है और उच्च वोल्टेज वाली डिस्क पर अतिरिक्त गर्मी पैदा करता है।
  • दक्षता पर असर: लीकेज करंट स्ट्रिंग दक्षता को कम करता है और इंसुलेटर की विफलता का खतरा बढ़ाता है।



​स्ट्रिंग की लंबाई का स्ट्रिंग दक्षता पर सीधा और नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दूसरे शब्दों में, स्ट्रिंग की लंबाई जितनी अधिक होगी (यानी, उसमें जितनी अधिक डिस्क होंगी), उसकी दक्षता उतनी ही कम होगी।

प्रभाव का कारण

​यह प्रभाव मुख्य रूप से शंट कैपेसिटेंस (shunt capacitance) के कारण होता है।

  • शंट कैपेसिटेंस में वृद्धि: जैसे-जैसे इंसुलेटर स्ट्रिंग में डिस्क की संख्या बढ़ती है, स्ट्रिंग की कुल लंबाई भी बढ़ती है। इससे इंसुलेटर की धातु फिटिंग्स और टावर के बीच मौजूद शंट कैपेसिटेंस भी बढ़ जाता है।
  • असंतुलित वोल्टेज वितरण: शंट कैपेसिटेंस के बढ़ने से, कंडक्टर के सबसे पास वाली डिस्क को वोल्टेज का सबसे बड़ा हिस्सा मिलता है। जैसे-जैसे आप टावर की ओर बढ़ते हैं, वोल्टेज का मान घटता जाता है।
  • दक्षता में कमी: स्ट्रिंग दक्षता का सूत्र कुल वोल्टेज और सबसे निचली डिस्क पर वोल्टेज के गुणनफल पर आधारित होता है। चूंकि लंबी स्ट्रिंग में निचली डिस्क पर वोल्टेज बहुत अधिक होता है, इसलिए यह स्ट्रिंग की समग्र दक्षता को कम कर देता है।

संक्षेप में, 

लंबी स्ट्रिंग में वोल्टेज वितरण अधिक असमान हो जाता है, जिससे इसकी दक्षता कम हो जाती है।



​प्रदूषण और आर्द्रता जैसी पर्यावरणीय परिस्थितियाँ लीकेज करंट के प्रवाह को बढ़ाकर स्ट्रिंग दक्षता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं।

तंत्र और प्रभाव

  1. सतह पर चालक परत का निर्माण: जब इंसुलेटर की सतह पर धूल, नमक, औद्योगिक अपशिष्ट जैसे प्रदूषण कण जमा होते हैं, और उन पर आर्द्रता (humidity) के कारण नमी आ जाती है, तो एक चालक परत (conductive layer) बन जाती है।
  2. लीकेज करंट का प्रवाह: यह चालक परत इंसुलेटर के सामान्य उच्च प्रतिरोध को कम कर देती है। इससे कंडक्टर से टावर की ओर एक छोटी धारा प्रवाहित होने लगती है, जिसे लीकेज करंट कहते हैं।
  3. वोल्टेज वितरण पर प्रभाव: यह लीकेज करंट स्ट्रिंग में वोल्टेज के असमान वितरण को और बढ़ा देता है। यह कंडक्टर के सबसे पास वाले इंसुलेटर पर अतिरिक्त विद्युत तनाव (additional electrical stress) पैदा करता है।
  4. फ्लैशओवर का खतरा: लीकेज करंट के कारण इंसुलेटर की सतह पर ऊष्मा उत्पन्न होती है। इससे सतह पर शुष्क क्षेत्र (dry bands) बन सकते हैं, जिन पर वोल्टेज का दबाव अत्यधिक बढ़ जाता है। यह अंततः फ्लैशओवर (flashover) का कारण बन सकता है, जिससे बिजली आपूर्ति बाधित हो जाती है और इंसुलेटर को नुकसान पहुँचता है।

संक्षेप में, 

पर्यावरणीय परिस्थितियाँ लीकेज करंट को बढ़ाकर स्ट्रिंग की दक्षता को कम करती हैं, जिससे इंसुलेटर की विफलता का खतरा और बिजली आपूर्ति में व्यवधान बढ़ जाता है।




​पृथ्वी की धारिता, जिसे शंट कैपेसिटेंस (shunt capacitance) भी कहा जाता है, वोल्टेज वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह इंसुलेटर स्ट्रिंग में वोल्टेज के असमान वितरण का मुख्य कारण है।

पृथ्वी की धारिता की भूमिका

  1. समांतर कैपेसिटर के रूप में कार्य: प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क की धातु फिटिंग और टावर के बीच एक कैपेसिटर बनता है। चूँकि टावर को आमतौर पर भू-सम्पर्कित (earthed) किया जाता है, इसलिए यह कैपेसिटेंस पृथ्वी की धारिता के कारण उत्पन्न होता है। इसे शंट कैपेसिटेंस कहते हैं।
  2. करंट के लिए अतिरिक्त पथ: यह शंट कैपेसिटेंस, प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क के अपने स्वयं के (श्रृंखला) कैपेसिटेंस के समानांतर में होता है। इसका मतलब है कि कंडक्टर से आने वाली धारा (charging current) को अलग-अलग पथों में बंटने का मौका मिलता है।
  3. वोल्टेज का असमान वितरण:
    • कंडक्टर के पास: कंडक्टर के सबसे पास वाली डिस्क को न केवल मुख्य धारा मिलती है, बल्कि शंट कैपेसिटेंस के कारण एक अतिरिक्त धारा भी मिलती है। इस अतिरिक्त धारा के कारण, इस डिस्क पर वोल्टेज का तनाव (voltage stress) सबसे अधिक होता है।
    • टावर की ओर: जैसे-जैसे आप टावर की ओर बढ़ते हैं, शंट कैपेसिटेंस का प्रभाव कम होता जाता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज का मान कम होता जाता है।

​यह असमान वोल्टेज वितरण स्ट्रिंग दक्षता को कम करता है और सबसे निचली डिस्क पर फ्लैशओवर का खतरा पैदा करता है। इस समस्या को हल करने के लिए अक्सर गार्ड रिंग (guard ring) जैसी विधियों का उपयोग किया जाता है।



अधिक इंसुलेटर डिस्क का उपयोग करने से स्ट्रिंग दक्षता में सुधार नहीं होता है, बल्कि यह कम हो जाती है। यह एक सामान्य ग़लतफ़हमी है क्योंकि यह सहज ज्ञान के विपरीत लग सकता है।

दक्षता कम होने का कारण

​स्ट्रिंग दक्षता में कमी का मुख्य कारण शंट कैपेसिटेंस (shunt capacitance) है।

  • शंट कैपेसिटेंस का बढ़ना: प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क की धातु फिटिंग और टावर के बीच एक कैपेसिटेंस (धारिता) बनती है, जिसे शंट कैपेसिटेंस कहा जाता है। जैसे-जैसे स्ट्रिंग में डिस्क की संख्या बढ़ती है, यह कुल शंट कैपेसिटेंस भी बढ़ता जाता है।
  • असंतुलित वोल्टेज वितरण: शंट कैपेसिटेंस एक लीकेज पथ बनाता है जो मुख्य धारा को बाईपास करता है। इस कारण, कंडक्टर के सबसे पास वाली डिस्क पर वोल्टेज का तनाव (voltage stress) सबसे अधिक होता है। जैसे-जैसे आप टावर की ओर बढ़ते हैं, प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज का मान धीरे-धीरे कम होता जाता है।
  • दक्षता पर प्रभाव: स्ट्रिंग दक्षता को कुल स्ट्रिंग वोल्टेज और सबसे निचली डिस्क के वोल्टेज के गुणनफल के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है। जब डिस्क की संख्या बढ़ती है, तो वोल्टेज का यह असमान वितरण अधिक स्पष्ट हो जाता है, जिससे सबसे निचली डिस्क पर वोल्टेज का तनाव और बढ़ जाता है, और स्ट्रिंग की समग्र दक्षता कम हो जाती है।

इसलिए, 

उच्च वोल्टेज के लिए अधिक डिस्क की आवश्यकता होती है, लेकिन इससे प्रत्येक डिस्क का प्रभावी उपयोग कम हो जाता है, जिससे कुल स्ट्रिंग दक्षता में कमी आती है।




​ग्रेडिंग रिंग, जिसे गार्ड रिंग भी कहते हैं, स्ट्रिंग दक्षता में सुधार करने का सबसे प्रभावी तरीका है। यह एक धातु की अंगूठी होती है जिसे इंसुलेटर स्ट्रिंग के सबसे निचले सिरे पर लगाया जाता है और सीधे लाइन कंडक्टर से जोड़ा जाता है। ​

सुधार का तंत्र ​ग्रेडिंग रिंग दो मुख्य तरीकों से स्ट्रिंग दक्षता को बढ़ाती है: ​

शंट कैपेसिटेंस को बेअसर करना: स्ट्रिंग दक्षता कम होने का मुख्य कारण शंट कैपेसिटेंस (C_m) है, जो इंसुलेटर डिस्क की धातु फिटिंग और टावर के बीच बनता है। 

ग्रेडिंग रिंग टावर और अपने बीच एक अतिरिक्त कैपेसिटेंस (C_g) बनाती है, जो शंट कैपेसिटेंस के प्रभाव को संतुलित करती है। यह प्रभावी रूप से वोल्टेज के लिए एक अतिरिक्त पथ प्रदान करती है, जिससे धारा का वितरण अधिक समान हो जाता है। ​

वोल्टेज का समान वितरण: ग्रेडिंग रिंग इंसुलेटर स्ट्रिंग के चारों ओर विद्युत क्षेत्र (electric field) को फिर से वितरित करती है। यह सबसे निचली डिस्क के पास केंद्रित उच्च वोल्टेज स्ट्रेस को कम करती है। 

ऐसा करने से, प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज का मान लगभग समान हो जाता है। ​जब इंसुलेटर डिस्क पर वोल्टेज का वितरण समान होता है, तो सबसे निचली डिस्क पर वोल्टेज का दबाव कम हो जाता है। 

चूँकि स्ट्रिंग दक्षता को कुल वोल्टेज और सबसे निचली डिस्क पर वोल्टेज के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है, इस प्रक्रिया से दक्षता में सुधार होता है और फ्लैशओवर (flashover) का जोखिम कम हो जाता है।




​कोरोना रिंग एक धातु की अंगूठी है जिसे उच्च-वोल्टेज उपकरण और पारेषण लाइनों पर इंसुलेटरों के सिरे पर लगाया जाता है। इसे ग्रेडिंग रिंग भी कहते हैं। इसका मुख्य कार्य कोरोना डिस्चार्ज को रोकना और इंसुलेटर स्ट्रिंग की दक्षता को बढ़ाना है।

यह कैसे काम करती है?

​जब उच्च वोल्टेज कंडक्टरों या उनके पास की नुकीली सतहों (जैसे कि इंसुलेटर क्लैंप) पर विद्युत क्षेत्र बहुत तीव्र हो जाता है, तो यह आस-पास की हवा को आयनित (ionize) कर देता है, जिससे एक नीली-बैंगनी चमक दिखाई देती है, जिसे कोरोना डिस्चार्ज कहते हैं। यह ऊर्जा का नुकसान, रेडियो हस्तक्षेप और उपकरण को नुकसान पहुँचाता है।

कोरोना रिंग इस समस्या को निम्नलिखित तरीके से हल करती है:

  • विद्युत क्षेत्र का पुनर्वितरण: कोरोना रिंग की गोल और चिकनी सतह, उच्च विद्युत क्षेत्र की रेखाओं को एक बड़े क्षेत्र में फैला देती है। यह नुकीले हिस्सों पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता को कम करती है।
  • आयनीकरण को रोकना: जब विद्युत क्षेत्र की तीव्रता कम हो जाती है, तो यह इतनी मजबूत नहीं रहती कि हवा को आयनित कर सके, जिससे कोरोना डिस्चार्ज को रोका जा सकता है।
  • वोल्टेज का संतुलन: कोरोना रिंग इंसुलेटर स्ट्रिंग में वोल्टेज के असमान वितरण को भी संतुलित करती है। यह इंसुलेटर डिस्क पर वोल्टेज को अधिक समान रूप से वितरित करने में मदद करती है, जिससे स्ट्रिंग की दक्षता बढ़ती है।

इस प्रकार, 

कोरोना रिंग केवल ऊर्जा की हानि को ही नहीं रोकती बल्कि इंसुलेटर स्ट्रिंग की विश्वसनीयता और जीवनकाल को भी बढ़ाती है।



​फिटिंग व्यवस्था, विशेष रूप से क्रॉस-आर्म की लंबाई और गार्ड रिंग का उपयोग, इंसुलेटर स्ट्रिंग के वोल्टेज वितरण पर सीधा प्रभाव डालती है।

क्रॉस-आर्म की लंबाई

  • प्रभाव: क्रॉस-आर्म की लंबाई टावर और इंसुलेटर स्ट्रिंग के बीच की दूरी को निर्धारित करती है। यह दूरी सीधे तौर पर शंट कैपेसिटेंस (shunt capacitance) को प्रभावित करती है, जो टावर और प्रत्येक डिस्क की धातु फिटिंग के बीच बनती है।
  • कार्य: जब क्रॉस-आर्म की लंबाई बढ़ाई जाती है, तो टावर से इंसुलेटर स्ट्रिंग की दूरी बढ़ जाती है।  कैपेसिटेंस की गणना के अनुसार, दो चालक प्लेटों के बीच की दूरी बढ़ने पर कैपेसिटेंस का मान कम हो जाता है। शंट कैपेसिटेंस का कम मान होने पर, वोल्टेज वितरण अधिक समान हो जाता है और स्ट्रिंग दक्षता में सुधार होता है।

गार्ड रिंग (Grading Ring)

  • प्रभाव: यह एक धातु की अंगूठी है जिसे स्ट्रिंग के निचले सिरे पर लगाया जाता है। यह रिंग एक अतिरिक्त कैपेसिटेंस पथ बनाती है।
  • कार्य: गार्ड रिंग का उपयोग करके, इंसुलेटर डिस्क पर वोल्टेज का वितरण अधिक समान हो जाता है। यह सबसे निचली डिस्क (जो कंडक्टर के सबसे पास होती है) पर केंद्रित होने वाले अत्यधिक वोल्टेज तनाव को कम करती है। ऐसा करने से, प्रत्येक डिस्क का उपयोग अधिक कुशलता से होता है, फ्लैशओवर का खतरा कम होता है, और स्ट्रिंग की समग्र दक्षता में सुधार होता है।

इस प्रकार, 

सही फिटिंग व्यवस्था और सहायक उपकरणों का उपयोग करके वोल्टेज वितरण को नियंत्रित और बेहतर बनाया जा सकता है।




​दक्षता बढ़ाने के लिए, इंसुलेटरों के लिए सर्वोत्तम सामग्री वह है जिसमें उच्च विद्युत रोधन गुण (high dielectric properties) और कम लीकेज करंट (low leakage current) हो। इस दृष्टिकोण से, सिलिकॉन रबर (सिलिकॉन कंपोजिट पॉलीमर) को अक्सर पारंपरिक सामग्रियों जैसे पोर्सिलेन और ग्लास की तुलना में सबसे अच्छा माना जाता है।

प्रमुख सामग्री और उनकी विशेषताएँ

​1. पोर्सिलेन (Porcelain)

  • गुण: यह सबसे पुरानी और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली सामग्री है। यह यांत्रिक रूप से मजबूत और किफायती होती है।
  • कमियाँ: पोर्सिलेन स्वाभाविक रूप से जल-विकर्षक (hydrophobic) नहीं है। जब इसकी सतह पर धूल और प्रदूषण जमा होता है, तो नमी के साथ मिलकर एक चालक परत बना लेती है, जिससे लीकेज करंट बढ़ता है और स्ट्रिंग दक्षता कम होती है।

​2. टेम्पर्ड ग्लास (Tempered Glass)

  • गुण: इसमें पोर्सिलेन की तुलना में उच्च परावैद्युत सामर्थ्य (dielectric strength) होती है। इसका एक लाभ यह भी है कि इसकी विफलता को दूर से ही देखा जा सकता है, जिससे रखरखाव आसान हो जाता है।
  • कमियाँ: पोर्सिलेन की तरह, यह भी आर्द्रता और प्रदूषण के प्रति संवेदनशील है, जिससे लीकेज करंट की समस्या हो सकती है।

​3. सिलिकॉन रबर (सिलिकॉन कंपोजिट पॉलीमर)

  • गुण:
    • बेहतर जल-विकर्षकता: सिलिकॉन रबर स्वाभाविक रूप से जल-विकर्षक है, जिससे इसकी सतह पर पानी की बूंदें नहीं फैलतीं, बल्कि मोती जैसी बन जाती हैं और नीचे लुढ़क जाती हैं।  यह लीकेज करंट के लिए चालक पथ के निर्माण को रोकता है।
    • हल्का वजन: ये इंसुलेटर पोर्सिलेन और ग्लास की तुलना में काफी हल्के होते हैं, जिससे टावर पर कम यांत्रिक भार पड़ता है और स्थापना लागत कम होती है।
    • बेहतर प्रदर्शन: लीकेज करंट को कम करके और वोल्टेज वितरण को अधिक स्थिर बनाए रखकर, सिलिकॉन रबर के इंसुलेटर स्ट्रिंग दक्षता को अधिक प्रभावी ढंग से बनाए रखते हैं, खासकर प्रदूषित और आर्द्र वातावरण में।

इसलिए, 

स्ट्रिंग दक्षता में सुधार के लिए सिलिकॉन कंपोजिट पॉलीमर इंसुलेटर सबसे अच्छे माने जाते हैं, क्योंकि वे लीकेज करंट और फ्लैशओवर को कम करने में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं।




​क्रीपेज दूरी बढ़ाने से स्ट्रिंग दक्षता में सुधार होता है, क्योंकि यह लीकेज करंट को कम करता है।

क्रीपेज दूरी क्या है?

​क्रीपेज दूरी वह सबसे छोटी दूरी है जो एक इंसुलेटर की सतह पर, ऊर्जावान भाग (जैसे कंडक्टर) और ग्राउंड किए गए भाग (जैसे टावर) के बीच मापी जाती है। इसे इंसुलेटर पर बनी लहरदार या घुमावदार संरचनाओं (sheds या skirts) के साथ मापा जाता है।

दक्षता पर प्रभाव

  1. लीकेज करंट को कम करना: जब इंसुलेटर की सतह पर प्रदूषण, धूल या नमी जमा हो जाती है, तो एक चालक परत बन जाती है। यह परत एक लीकेज करंट के लिए पथ बनाती है। क्रीपेज दूरी बढ़ाने से, इस लीकेज पथ की लंबाई बढ़ जाती है। एक लंबा और घुमावदार पथ होने के कारण, धारा के लिए प्रतिरोध बहुत अधिक हो जाता है, जिससे लीकेज करंट का मान काफी कम हो जाता है।
  2. वोल्टेज वितरण का संतुलन: जैसा कि पहले बताया गया है, लीकेज करंट वोल्टेज के असमान वितरण का एक प्रमुख कारण है। जब लीकेज करंट कम हो जाता है, तो यह असमानता भी कम हो जाती है। परिणामस्वरूप, वोल्टेज का वितरण इंसुलेटर डिस्क पर अधिक समान हो जाता है।
  3. फ्लैशओवर जोखिम में कमी: लीकेज करंट के कारण होने वाले ओवरहीटिंग और फ्लैशओवर का जोखिम भी क्रीपेज दूरी बढ़ने से कम हो जाता है, जिससे इंसुलेटर की विश्वसनीयता और जीवनकाल बढ़ता है।

इस प्रकार, 

क्रीपेज दूरी बढ़ाकर, इंसुलेटर की सतह के प्रतिरोध को बढ़ाया जाता है, जिससे लीकेज करंट कम होता है और स्ट्रिंग दक्षता में सुधार होता है।




​जब व्यक्तिगत डिस्क वोल्टेज दिए गए हों, तो स्ट्रिंग दक्षता के लिए सूत्र को प्राप्त करने के लिए, हम स्ट्रिंग दक्षता की परिभाषा का उपयोग करते हैं। ​

1. परिभाषा ​स्ट्रिंग दक्षता, इंसुलेटर स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज और एक आदर्श स्थिति में कुल वोल्टेज का अनुपात है। एक आदर्श स्ट्रिंग वह होती है जिसमें प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क पर वोल्टेज समान रूप से वितरित होता है। ​

2. सूत्रों का व्युत्पन्न ​आइए निम्नलिखित चर (variables) को परिभाषित करें: ​

V_s = स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज ​

n = इंसुलेटर डिस्क की संख्या ​

V_1 = कंडक्टर के सबसे पास वाली डिस्क पर वोल्टेज (जो सबसे अधिक होता है) ​

V_2, V_3, ..., V_n = क्रमशः अन्य डिस्क पर वोल्टेज ​चरण 

1: वास्तविक वोल्टेज ​स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज सभी व्यक्तिगत डिस्क वोल्टेज का योग होता है।

V_s = V_1 + V_2 + V_3 + ... + V_n ​चरण 

2: आदर्श वोल्टेज ​एक आदर्श स्ट्रिंग में, प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज समान होगा। सबसे अधिक वोल्टेज वाली डिस्क V_1 होने के कारण, आदर्श स्थिति में सभी n डिस्क पर वोल्टेज V_1 के बराबर होना चाहिए। 

इस प्रकार, आदर्श कुल वोल्टेज होगा: 

​{आदर्श कुल वोल्टेज} = n × V_1 ​चरण 

3: दक्षता सूत्र ​स्ट्रिंग दक्षता को वास्तविक कुल वोल्टेज और आदर्श कुल वोल्टेज के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है: = {{वास्तविक कुल वोल्टेज}}{{आदर्श कुल वोल्टेज}} × 100% ​ऊपर दिए गए मानों को सूत्र में रखने पर, 

हमें मिलता है: ​ = {V_s}{n×V_1} ×100% ​या, 

व्यक्तिगत डिस्क वोल्टेज के संदर्भ में:  = {V_1 + V_2 + V_3 + ... + V_n}× V_1} ×100% ​यह सूत्र दर्शाता है कि यदि सभी डिस्क पर वोल्टेज समान होता (V_1 = V_2 = ... = V_n), तो स्ट्रिंग दक्षता 100% होती। लेकिन चूंकि V_1 सबसे बड़ा होता है, इसलिए दक्षता हमेशा 100% से कम होती है।




​किसी स्ट्रिंग (जैसे इंसुलेटर स्ट्रिंग) में असमान वोल्टेज बूंदों के मामले में दक्षता की गणना करने के लिए, आप स्ट्रिंग दक्षता (string efficiency) के सूत्र का उपयोग करेंगे। 

यह सूत्र स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज और एक आदर्श स्थिति में कुल वोल्टेज का अनुपात देता है। 

गणना विधि ​व्यक्तिगत वोल्टेज बूंदों का योग: सबसे पहले, आपको स्ट्रिंग में प्रत्येक व्यक्तिगत डिस्क पर वोल्टेज की बूंदों (V_1, V_2, ..., V_n) को मापना होगा और उनका योग करके स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज (V_s) प्राप्त करना होगा।

V_s = V_1 + V_2 + V_3 + ... + V_n ​सूत्र का अनुप्रयोग: इसके बाद, आप स्ट्रिंग दक्षता की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग करेंगे: ​

\eta = {स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज}}{{(डिस्क की संख्या) } ×{(कंडक्टर के पास वाली डिस्क पर वोल्टेज)}}× 100\% ​प्रतीकों में, यह सूत्र है: ​ = {V_s}{n×V_1} ×100% ​

यहां, n स्ट्रिंग में इंसुलेटर डिस्क की कुल संख्या है। 

​V_1 वह वोल्टेज है जो कंडक्टर के सबसे पास वाली डिस्क पर है, क्योंकि यह सबसे अधिक वोल्टेज वाली डिस्क होती है।

V_s स्ट्रिंग के सभी व्यक्तिगत वोल्टेज बूंदों का योग है।

यह सूत्र दर्शाता है कि आदर्श दक्षता (100%) तभी प्राप्त होती है जब प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज समान रूप से वितरित हो। 

चूंकि असमान वोल्टेज बूंदों में V_1 सबसे बड़ा होता है, इसलिए दक्षता हमेशा 100% से कम होती है।




​डिस्क वोल्टेज और कुल लागू वोल्टेज का उपयोग करके स्ट्रिंग दक्षता की गणना करने के लिए, 

आपको निम्न सूत्र का उपयोग करना होगा: ​स्ट्रिंग दक्षता (%) = {कुल लागू वोल्टेज}{n×डिस्क वोल्टेज}×100 ​

जहाँ: ​कुल लागू वोल्टेज - यह इंसुलेटर स्ट्रिंग के पार कुल वोल्टेज है। ​डिस्क वोल्टेज - यह स्ट्रिंग में किसी एक डिस्क के पार वोल्टेज है। ​n - स्ट्रिंग में डिस्क की संख्या। ​

यह सूत्र इस तथ्य पर आधारित है कि एक आदर्श स्ट्रिंग में, प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज समान होना चाहिए, और कुल लागू वोल्टेज केवल डिस्क वोल्टेज का योग होना चाहिए (n × डिस्क वोल्टेज)। 

हालांकि, व्यवहार में, स्ट्रिंग के विभिन्न बिंदुओं पर कैपेसिटेंस में भिन्नता के कारण वोल्टेज समान रूप से वितरित नहीं होता है। स्ट्रिंग दक्षता यह दिखाती है कि वास्तविक वोल्टेज वितरण आदर्श वितरण के कितना करीब है। ​

स्ट्रिंग दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक ​स्ट्रिंग दक्षता कई कारकों से प्रभावित होती है, 

जिनमें शामिल हैं:

स्ट्रिंग में डिस्क की संख्या (n): जैसे-जैसे n बढ़ता है, स्ट्रिंग दक्षता कम होती जाती है। ​

डिस्क के स्व-कैपेसिटेंस (C): उच्च स्व-कैपेसिटेंस से बेहतर दक्षता मिलती है। 

शंट कैपेसिटेंस (Cₛ): यह मुख्य रूप से टावर के कारण होता है और यह दक्षता को कम करता है। ​

आर्द्र मौसम: आर्द्र मौसम में शंट कैपेसिटेंस बढ़ जाता है, जिससे दक्षता कम हो जाती है।




​यहां दक्षता गणना की एक उदाहरण समस्या दी गई है: 

समस्या: एक 220 kV ट्रांसमिशन लाइन पर, एक स्ट्रिंग में 8 डिस्क इंसुलेटर लगे हैं। स्ट्रिंग के पार कुल लागू वोल्टेज 220 kV है, और सबसे नीचे वाली डिस्क (जो कंडक्टर के पास है) का वोल्टेज 30 kV है। 

यदि प्रत्येक डिस्क का स्व-कैपेसिटेंस (C) और शंट कैपेसिटेंस (C_s) के बीच का अनुपात k = {C_s}{C} = 0.2 है, तो स्ट्रिंग दक्षता की गणना करें। ​

समस्या का हल ​चरण 1: स्ट्रिंग दक्षता के लिए सूत्र का उपयोग करें ​स्ट्रिंग दक्षता की गणना के लिए हम निम्न सूत्र का उपयोग करते हैं: ​स्ट्रिंग दक्षता (%) = {कुल लागू वोल्टेज}{n× डिस्क वोल्टेज}×100 

​जहाँ: ​

कुल लागू वोल्टेज = 220 kV ​

n = स्ट्रिंग में डिस्क की संख्या = 8 ​डिस्क वोल्टेज = सबसे नीचे वाली डिस्क का वोल्टेज = 30 kV 

चरण 2: मानों को सूत्र में रखें ​अब हम इन मानों को सूत्र में रखते हैं: ​

स्ट्रिंग दक्षता (%) = {220 { kV}}{8×30 { kV}}× 100 ​स्ट्रिंग दक्षता (%) = {220}{240}×100 ​स्ट्रिंग दक्षता (%) = 0.9167 ×100 ​स्ट्रिंग दक्षता (%) = 91.67% 

​इस प्रकार, इस ट्रांसमिशन लाइन की स्ट्रिंग दक्षता लगभग 91.67% है। ​

नोट

इस समस्या में, शंट कैपेसिटेंस अनुपात (k = 0.2) केवल अतिरिक्त जानकारी के लिए दिया गया था और दक्षता की गणना के लिए सीधे तौर पर इसका उपयोग नहीं हुआ, क्योंकि हमें पहले से ही डिस्क वोल्टेज और कुल लागू वोल्टेज ज्ञात थे। यदि हमें केवल डिस्क की संख्या और k का मान पता होता, तो हमें प्रत्येक डिस्क के वोल्टेज की गणना करनी पड़ती।




​उच्च वोल्टेज लाइनों में स्ट्रिंग दक्षता की कोई निश्चित सीमा नहीं है, क्योंकि यह कई कारकों पर निर्भर करती है। हालांकि, इसे 100% के करीब रखने का प्रयास किया जाता है, लेकिन व्यवहार में ऐसा होना असंभव है। 

एक उच्च वोल्टेज लाइन में, स्ट्रिंग दक्षता आमतौर पर 70% से 95% की सीमा में हो सकती है।

स्ट्रिंग दक्षता एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है जो यह दर्शाता है कि इंसुलेटर स्ट्रिंग में वोल्टेज कितना समान रूप से वितरित है। दक्षता जितनी अधिक होगी, वोल्टेज वितरण उतना ही अधिक समान होगा, और सबसे नीचे वाली डिस्क (जो कंडक्टर के सबसे करीब है) पर तनाव उतना ही कम होगा। 

कम दक्षता का मतलब है कि सबसे निचली डिस्क पर अत्यधिक वोल्टेज तनाव है, जिससे उसके खराब होने या फ्लैशओवर होने का खतरा बढ़ जाता है। ​स्ट्रिंग दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक ​स्ट्रिंग दक्षता को कई कारक प्रभावित करते हैं, 

जिनमें से मुख्य हैं: ​

स्ट्रिंग में डिस्क की संख्या (n): डिस्क की संख्या बढ़ने से शंट कैपेसिटेंस का प्रभाव बढ़ता है, जिससे वोल्टेज वितरण असमान हो जाता है और दक्षता कम हो जाती है। ​

शंट कैपेसिटेंस (C_s): यह टावर और कंडक्टर के बीच मौजूद कैपेसिटेंस है। शंट कैपेसिटेंस जितना अधिक होगा, दक्षता उतनी ही कम होगी। ​

स्व-कैपेसिटेंस (C): यह प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क का अपना कैपेसिटेंस है। स्व-कैपेसिटेंस जितना अधिक होगा, दक्षता उतनी ही बेहतर होगी। ​

आर्द्र मौसम और प्रदूषण: नमी और प्रदूषण से शंट कैपेसिटेंस बढ़ जाता है, जिससे दक्षता घट जाती है। ​दक्षता बढ़ाने के तरीके ​इंजीनियरिंग में, स्ट्रिंग दक्षता को 100% के करीब लाने के लिए कई तरीकों का उपयोग किया जाता है: ​

ग्रेडिंग (Grading): प्रत्येक डिस्क के कैपेसिटेंस को अलग-अलग करके वोल्टेज वितरण को समान किया जाता है। ​

गार्ड रिंग (Guard Ring) या कोरोना रिंग (Corona Ring): ये कंडक्टर के पास लगे धातु के छल्ले होते हैं जो शंट कैपेसिटेंस को संतुलित करते हैं और वोल्टेज को समान रूप से वितरित करने में मदद करते हैं। ​

लंबे क्रॉस-आर्म का उपयोग: टावर और कंडक्टर के बीच की दूरी को बढ़ाकर शंट कैपेसिटेंस को कम किया जाता है। ​ये तरीके यह सुनिश्चित करते हैं कि इंसुलेटर स्ट्रिंग की विश्वसनीयता और सुरक्षा बनी रहे, खासकर उच्च वोल्टेज वाली लाइनों में। ​




कम स्ट्रिंग दक्षता सीधे तौर पर फ्लैशओवर के खतरे को बढ़ाती है। यह वोल्टेज के असमान वितरण के कारण होता है, जिससे स्ट्रिंग में कुछ डिस्क पर अत्यधिक तनाव पड़ता है।

वोल्टेज का असमान वितरण

​एक आदर्श इंसुलेटर स्ट्रिंग में, प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज समान रूप से वितरित होना चाहिए, जिससे दक्षता 100% हो। हालांकि, व्यवहार में, शंट कैपेसिटेंस (टावर और कंडक्टर के कारण) और स्व-कैपेसिटेंस (प्रत्येक डिस्क का) के कारण ऐसा नहीं होता। ये कैपेसिटेंस समानांतर में काम करते हैं, जिससे स्ट्रिंग के सबसे नीचे वाली डिस्क, जो कंडक्टर के सबसे करीब होती है, पर सबसे अधिक वोल्टेज पड़ता है।

​कम स्ट्रिंग दक्षता का अर्थ है कि यह वोल्टेज वितरण असमान है। जितनी कम दक्षता होगी, उतनी ही अधिक असमानता होगी और नीचे की डिस्क पर तनाव उतना ही अधिक होगा।

फ्लैशओवर और स्ट्रिंग दक्षता के बीच संबंध

  1. अत्यधिक वोल्टेज तनाव: कम दक्षता के कारण, सबसे नीचे वाली डिस्क को अपनी रेटेड वोल्टेज क्षमता से कहीं अधिक वोल्टेज का सामना करना पड़ता है।
  2. डायलेक्ट्रिक ब्रेकडाउन: जब यह वोल्टेज बहुत अधिक हो जाता है, तो यह इंसुलेटर के आसपास की हवा की डायलेक्ट्रिक शक्ति को तोड़ देता है।
  3. आर्क का बनना (Flashover): डायलेक्ट्रिक ब्रेकडाउन के कारण, कंडक्टर और टावर के बीच हवा के माध्यम से एक बिजली का आर्क (जिसे फ्लैशओवर कहते हैं) बन जाता है। यह आर्क इंसुलेटर स्ट्रिंग को बायपास कर देता है और बिजली को सीधे जमीन तक पहुंचाता है।
  4. श्रृंखला प्रतिक्रिया: यदि सबसे निचली डिस्क का फ्लैशओवर होता है, तो बाकी डिस्क पर भी अचानक वोल्टेज का तनाव बढ़ जाता है, जिससे पूरी स्ट्रिंग में एक के बाद एक फ्लैशओवर की श्रृंखला प्रतिक्रिया शुरू हो सकती है।

​यह स्थिति न केवल बिजली की आपूर्ति को बाधित करती है बल्कि इंसुलेटर को भी नुकसान पहुंचा सकती है। फ्लैशओवर को रोकने के लिए, उच्च वोल्टेज लाइनों में स्ट्रिंग दक्षता को अधिकतम करने के लिए गार्ड रिंग जैसे उपाय किए जाते हैं, जो वोल्टेज को अधिक समान रूप से वितरित करने में मदद करते हैं।




​उच्च वोल्टेज लाइनों में स्ट्रिंग दक्षता की निगरानी और परीक्षण मुख्य रूप से यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि इंसुलेटर स्ट्रिंग पर वोल्टेज का वितरण समान रहे और कोई डिस्क खराब न हो। 

इसे दो मुख्य तरीकों से किया जाता है: 

प्रयोगशाला परीक्षण और क्षेत्रीय/ऑनलाइन निगरानी

​1. प्रयोगशाला परीक्षण (Laboratory Testing)

​प्रयोगशाला में, इंसुलेटर स्ट्रिंग के नमूनों पर विभिन्न परीक्षण किए जाते हैं ताकि उनकी स्ट्रिंग दक्षता और अन्य गुणों की जांच की जा सके। यह आमतौर पर निर्माण के बाद या आवधिक निरीक्षण के दौरान किया जाता है।

  • वोल्टेज वितरण माप (Voltage Distribution Measurement): इस परीक्षण में, एक उच्च-वोल्टेज परीक्षण ट्रांसफार्मर का उपयोग करके स्ट्रिंग पर एक निश्चित वोल्टेज लगाया जाता है। फिर, एक विशेष जांच (probe) और इलेक्ट्रोमीटर का उपयोग करके प्रत्येक व्यक्तिगत डिस्क के पार वोल्टेज को मापा जाता है। इन मापों से प्राप्त डेटा का उपयोग करके स्ट्रिंग दक्षता की गणना की जाती है।
  • फ्लैशओवर वोल्टेज परीक्षण (Flashover Voltage Test): इस परीक्षण में, स्ट्रिंग पर वोल्टेज को धीरे-धीरे तब तक बढ़ाया जाता है जब तक कि यह फ्लैशओवर न हो जाए। यह परीक्षण स्ट्रिंग की फ्लैशओवर सहन करने की क्षमता को निर्धारित करता है।
  • प्रदूषण और नमी परीक्षण (Pollution and Humidity Test): प्रयोगशाला में, कृत्रिम प्रदूषण और नमी की स्थिति बनाकर इंसुलेटर के प्रदर्शन का परीक्षण किया जाता है। इससे यह पता चलता है कि वास्तविक दुनिया की कठोर परिस्थितियों में स्ट्रिंग दक्षता कैसे प्रभावित होती है।

​2. क्षेत्रीय/ऑनलाइन निगरानी (Field/Online Monitoring)

​उच्च वोल्टेज लाइनों पर, इंसुलेटर स्ट्रिंग की स्थिति की निरंतर निगरानी करना आवश्यक है ताकि संभावित विफलताओं को समय से पहले पहचाना जा सके।

  • अवरक्त इमेजिंग (Infrared Imaging): एक अवरक्त (infrared) कैमरा का उपयोग करके इंसुलेटर स्ट्रिंग का निरीक्षण किया जाता है। यदि कोई डिस्क दोषपूर्ण है या उस पर अत्यधिक वोल्टेज तनाव है, तो वह अन्य डिस्क की तुलना में अधिक गर्म हो जाएगी। इस तापमान अंतर को अवरक्त कैमरे से आसानी से पहचाना जा सकता है।
  • रिसाव धारा निगरानी (Leakage Current Monitoring): इंसुलेटर पर नमी या प्रदूषण की परत बनने से एक छोटी रिसाव धारा बहने लगती है। इस धारा का निरंतर माप करके, इंसुलेटर की सतह की स्थिति का मूल्यांकन किया जा सकता है। रिसाव धारा में अचानक वृद्धि स्ट्रिंग दक्षता में गिरावट का संकेत हो सकती है।
  • अल्ट्रासोनिक और आंशिक निर्वहन पहचान (Ultrasonic and Partial Discharge Detection): दोषपूर्ण इंसुलेटर या अत्यधिक तनाव वाली डिस्क पर छोटे-छोटे आंशिक निर्वहन (partial discharges) होते हैं जो अल्ट्रासोनिक तरंगें और रेडियो हस्तक्षेप उत्पन्न करते हैं। विशेष उपकरणों का उपयोग करके इन संकेतों को सुनकर या मापकर इंसुलेटर की स्थिति का पता लगाया जा सकता है।
  • ड्रोन निरीक्षण (Drone Inspection): आजकल, ड्रोन का उपयोग करके इंसुलेटर स्ट्रिंग का निरीक्षण किया जा रहा है। ड्रोन उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाले कैमरे और थर्मल सेंसर से लैस होते हैं जो दूर से ही दृश्य दोषों, गर्म बिंदुओं और अन्य असामान्यताओं का पता लगा सकते हैं।

​इन सभी तरीकों से प्राप्त डेटा का विश्लेषण करके स्ट्रिंग दक्षता की स्थिति का आकलन किया जाता है और यदि आवश्यक हो, तो इंसुलेटर स्ट्रिंग को बदलने या उसकी मरम्मत करने का निर्णय लिया जाता है।


​निश्चित रूप से, यहाँ स्ट्रिंग दक्षता गणना पर एक उदाहरण समस्या और उसका हल दिया गया है। 

​स्ट्रिंग दक्षता क्या है? 

​स्ट्रिंग दक्षता (String Efficiency), जिसे श्रृंखला दक्षता भी कहा जाता है, यह बताती है कि एक इंसुलेटर स्ट्रिंग पर वोल्टेज का वितरण कितना समान है। आदर्श रूप से, इंसुलेटर स्ट्रिंग के प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज समान होना चाहिए, लेकिन व्यवहार में ऐसा नहीं होता है। स्ट्रिंग दक्षता का मान 100% से कम होता है क्योंकि सबसे निचली डिस्क (जो कंडक्टर के सबसे करीब होती है) पर सबसे अधिक वोल्टेज होता है। उच्च स्ट्रिंग दक्षता का मतलब है कि इंसुलेटर स्ट्रिंग पर वोल्टेज का वितरण अधिक समान है।

उदाहरण समस्या ​एक 3-यूनिट इंसुलेटर स्ट्रिंग को 66 kV, 50 Hz की 3-फेज ट्रांसमिशन लाइन से जोड़ा गया है। यदि प्रत्येक डिस्क की स्व-धारिता (self-capacitance) C है और शंट धारिता (shunt capacitance) C_1 है, और C_1 = 0.1C है, तो स्ट्रिंग दक्षता की गणना करें। ​समस्या का हल ​इस समस्या को हल करने के लिए, हम सबसे पहले प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज की गणना करेंगे और फिर स्ट्रिंग दक्षता के सूत्र का उपयोग करेंगे। 

​चरण 1: इंसुलेटर स्ट्रिंग का आरेख ​ऊपर दिए गए चित्र में, V_1, V_2, और V_3 क्रमशः सबसे ऊपर, बीच और सबसे नीचे की डिस्क पर वोल्टेज हैं। V स्ट्रिंग पर कुल वोल्टेज है। ​

चरण 2: प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज की गणना ​हम किरचॉफ के धारा नियम (Kirchhoff’s Current Law) का उपयोग करके प्रत्येक नोड (जंक्शन) पर वोल्टेज की गणना करेंगे। मान लीजिए, I_1, I_2, और I_3 डिस्क के माध्यम से बहने वाली धाराएँ हैं, और I_{c1} और I_{c2} शंट धारिता के माध्यम से बहने वाली धाराएँ हैं। 

सबसे निचले नोड पर (कंडक्टर के पास): I_3 = I_2 + I_{c2} \omega C V_3 = \omega C V_2 + \omega C_1 V_2 C V_3 = C V_2 + C_1 V_2 V_3 = V_2 + \frac{C_1}{C} V_2 चूंकि \frac{C_1}{C} = 0.1, V_3 = V_2 + 0.1V_2 = 1.1 V_2  ...(1) ​बीच के नोड पर: I_2 = I_1 + I_{c1} \omega C V_2 = \omega C V_1 + \omega C_1 (V_1 + V_2)  यह गलत है। 

सही नियम लागू करते हैं। 

सही समीकरण इस प्रकार है: I_2 = I_1 + I_{c1} \omega C V_2 = \omega C V_1 + \omega C_1 V_1 V_2 = V_1 + \frac{C_1}{C} V_1 V_2 = V_1 + 0.1V_1 = 1.1 V_1  ...(2) ​अब V_1, V_2, V_3 के बीच संबंध स्थापित करते हैं: समीकरण (2) से: V_2 = 1.1 V_1 समीकरण (1) में V_2 का मान रखने पर: V_3 = 1.1 V_2 = 1.1 (1.1 V_1) = 1.21 V_1 ​कुल वोल्टेज (V) की गणना: V = V_1 + V_2 + V_3 V = V_1 + 1.1 V_1 + 1.21 V_1 V = 3.31 V_1 ​

चरण 3: स्ट्रिंग दक्षता की गणना ​स्ट्रिंग दक्षता का सूत्र है: स्ट्रिंग दक्षता = {{स्ट्रिंग पर कुल वोल्टेज}}{{डिस्क की संख्या}×{सबसे निचली डिस्क पर वोल्टेज}}×100% ​

सूत्र में मान रखने पर: स्ट्रिंग दक्षता = {V}{3×V_3}×100% स्ट्रिंग दक्षता = {3.31 V_1}{3×1.21 V_1}×100% स्ट्रिंग दक्षता ={3.31}{3.63}×100% स्ट्रिंग दक्षता ≈ 91.18% ​परिणाम ​इस इंसुलेटर स्ट्रिंग की दक्षता 91.18% है। 

यह 100% से कम है, जो दर्शाता है कि सबसे निचली डिस्क पर सबसे अधिक वोल्टेज है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि लाइन वोल्टेज (66 kV) का उपयोग इस विशिष्ट गणना में सीधे नहीं किया गया क्योंकि यह अनुपात पर आधारित है।




​उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों में, स्ट्रिंग दक्षता आमतौर पर 80% से 95% के बीच होती है। 100% की दक्षता एक आदर्श स्थिति है, जो वास्तविक दुनिया में संभव नहीं है। ​

क्यों 100% दक्षता संभव नहीं है? ​

स्ट्रिंग दक्षता 100% से कम होने का मुख्य कारण शंट धारिता (Shunt Capacitance) या स्ट्रे धारिता (Stray Capacitance) है। यह धारिता इंसुलेटर के धातु फिटिंग (metal fittings) और टावर के बीच मौजूद होती है। इस धारिता के कारण, इंसुलेटर स्ट्रिंग पर वोल्टेज का वितरण असमान हो जाता है। सबसे निचली डिस्क (जो कंडक्टर के सबसे करीब है) पर वोल्टेज सबसे अधिक होता है, और जैसे-जैसे हम टावर की ओर बढ़ते हैं, वोल्टेज कम होता जाता है। 

दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक ​शंट धारिता और स्व-धारिता का अनुपात (K-factor): यह अनुपात (K = C_1/C) जितना कम होगा, स्ट्रिंग दक्षता उतनी ही अधिक होगी। ​

डिस्कों की संख्या: जैसे-जैसे इंसुलेटर डिस्क की संख्या बढ़ती है, स्ट्रिंग दक्षता घटती जाती है। इसलिए, लंबी स्ट्रिंग की दक्षता कम होती है। 

आवृत्ति: उच्च आवृत्ति पर, शंट धारिता का प्रभाव अधिक होता है, जिससे दक्षता कम हो जाती है। ​दक्षता में सुधार के तरीके ​स्ट्रिंग दक्षता में सुधार करने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं: ​

लंबी क्रॉस-आर्म्स का उपयोग: यह शंट धारिता को कम करता है।

गार्ड रिंग या ग्रेडिंग रिंग का उपयोग: यह स्ट्रिंग के सबसे निचले हिस्से पर वोल्टेज को समान रूप से वितरित करता है। ​

धारिता ग्रेडिंग: स्ट्रिंग में अलग-अलग धारिता वाली डिस्क का उपयोग करना, जिससे वोल्टेज का वितरण अधिक समान हो सके। ​


 

​कम स्ट्रिंग दक्षता सीधे तौर पर फ्लैशओवर के जोखिम को बढ़ाती है। यह निम्न प्रकार से होता है:

​1. असमान वोल्टेज वितरण 

​कम स्ट्रिंग दक्षता का अर्थ है कि इंसुलेटर स्ट्रिंग के विभिन्न डिस्क पर वोल्टेज का वितरण असमान है। सबसे निचली डिस्क, जो ट्रांसमिशन लाइन कंडक्टर के सबसे करीब होती है, पर सबसे अधिक वोल्टेज स्ट्रेस होता है। यह वोल्टेज स्ट्रिंग में अन्य डिस्क पर वोल्टेज की तुलना में काफी अधिक होता है।

​2. अत्यधिक विद्युत तनाव

​जब सबसे निचली डिस्क पर वोल्टेज सामान्य से बहुत अधिक हो जाता है, तो यह उस डिस्क के आस-पास की हवा की परावैद्युत शक्ति (dielectric strength) को पार कर सकता है। हवा, जो सामान्य रूप से एक उत्कृष्ट इंसुलेटर है, अत्यधिक वोल्टेज के कारण आयनीकृत हो जाती है और एक चालक बन जाती है।

​3. फ्लैशओवर पथ का निर्माण

​एक बार जब सबसे निचली डिस्क के पास की हवा आयनीकृत हो जाती है, तो यह कंडक्टर से टावर तक एक चालक पथ (conductive path) बना देती है। इस पथ के माध्यम से एक आर्क या स्पार्क उत्पन्न होता है, जिसे फ्लैशओवर कहा जाता है। यह फ्लैशओवर इंसुलेटर की सतह के ऊपर से गुजरता है, जिससे इंसुलेटर को नुकसान नहीं होता है (पंचर के विपरीत), लेकिन यह एक शॉर्ट-सर्किट की स्थिति पैदा करता है।

​4. सुरक्षा प्रणालियों पर प्रभाव

​फ्लैशओवर के कारण होने वाले शॉर्ट-सर्किट से लाइन में भारी मात्रा में धारा प्रवाहित होती है। इससे सर्किट ब्रेकर और रिले जैसी सुरक्षा प्रणालियां ट्रिगर हो सकती हैं, जिससे बिजली आपूर्ति बाधित हो जाती है। यह ट्रांसमिशन लाइन की विश्वसनीयता को कम करता है और रखरखाव लागत को बढ़ाता है।

संक्षेप में, 

कम स्ट्रिंग दक्षता के कारण सबसे निचली डिस्क पर अतिरिक्त विद्युत तनाव पड़ता है, जो हवा को आयनीकृत करके फ्लैशओवर का कारण बन सकता है।




​स्ट्रिंग दक्षता को मापने और उसका परीक्षण करने के लिए मुख्य रूप से दो तरीके अपनाए जाते हैं: 

सैद्धांतिक गणना (theoretical calculation) और व्यावहारिक परीक्षण (practical testing)। दोनों विधियाँ यह सुनिश्चित करने में मदद करती हैं कि इंसुलेटर स्ट्रिंग सुरक्षित और कुशलता से काम कर रही है। ​

1. सैद्धांतिक गणना (Theoretical Calculation) ​सैद्धांतिक रूप से, स्ट्रिंग दक्षता की गणना करने के लिए गणितीय सूत्र का उपयोग किया जाता है। 

इसके लिए, हमें इंसुलेटर के स्व-धारिता (self-capacitance) और शंट धारिता (shunt capacitance) के मूल्यों की आवश्यकता होती है। ​

मूल सिद्धांत: इंसुलेटर स्ट्रिंग को एक तुल्य-परिपथ (equivalent circuit) के रूप में दर्शाया जाता है, जहाँ प्रत्येक डिस्क को एक संधारित्र (C) से और डिस्क तथा टावर के बीच की शंट धारिता (C_1) को एक अन्य संधारित्र से दर्शाया जाता है। ​

सूत्र: स्ट्रिंग दक्षता की गणना इस सूत्र से की जाती है: ​{स्ट्रिंग दक्षता} = {स्ट्रिंग पर कुल वोल्टेज}}{{डिस्कों की संख्या}×{सबसे निचली डिस्क पर वोल्टेज}}×100% ​

लाभ: यह विधि सरल और तेज़ है, और इसका उपयोग डिजाइन चरण में किया जा सकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि स्ट्रिंग की दक्षता स्वीकार्य सीमा के भीतर है। ​

सीमाएँ: यह विधि केवल आदर्श परिस्थितियों पर आधारित है और वास्तविक दुनिया की पर्यावरणीय स्थितियों (जैसे आर्द्रता, प्रदूषण, हवा) को ध्यान में नहीं रखती है, जो दक्षता को प्रभावित कर सकती हैं। ​

2. व्यावहारिक परीक्षण (Practical Testing) ​वास्तविक क्षेत्र में स्ट्रिंग दक्षता का परीक्षण करने के लिए प्रयोगशाला या साइट पर विशिष्ट उपकरण और तकनीकें उपयोग की जाती हैं। सबसे आम तरीकों में से एक स्फीयर-गैप विधि है। 

स्फीयर-गैप विधि: ​सिद्धांत: इस विधि में, एक कैलिब्रेटेड स्फीयर-गैप (sphere-gap) का उपयोग करके इंसुलेटर स्ट्रिंग के प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज को मापा जाता है। 

प्रक्रिया: ​इंसुलेटर स्ट्रिंग पर एक उच्च वोल्टेज लगाया जाता है। ​सबसे निचली डिस्क के समानांतर (across) एक स्फीयर-गैप लगाया जाता है। ​स्फीयर-गैप के बीच की दूरी को तब तक समायोजित किया जाता है जब तक कि एक स्पार्क (flashover) उत्पन्न न हो जाए। ​इस स्पार्क की दूरी से, कैलिब्रेशन चार्ट का उपयोग करके उस डिस्क पर वोल्टेज का पता लगाया जाता है। ​यह प्रक्रिया स्ट्रिंग की सभी डिस्क के लिए दोहराई जाती है। ​एक बार जब प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज का मान ज्ञात हो जाता है, तो स्ट्रिंग दक्षता की गणना व्यावहारिक डेटा का उपयोग करके की जाती है। ​

इलेक्ट्रिकल टेस्टिंग: ​उच्च वोल्टेज प्रयोगशालाओं में, इंसुलेटर स्ट्रिंग का प्रदर्शन विभिन्न भारों और पर्यावरणीय स्थितियों के तहत परीक्षण किया जाता है, जैसे कि गीली स्थिति में फ्लैशओवर परीक्षण (wet flashover test) और पंचर परीक्षण (puncture test)। ये परीक्षण यह सुनिश्चित करते हैं कि इंसुलेटर विभिन्न मौसम की स्थितियों में भी प्रभावी ढंग से काम कर सके। ​

लाभ: व्यावहारिक परीक्षण वास्तविक परिचालन स्थितियों के तहत स्ट्रिंग के प्रदर्शन का सटीक मूल्यांकन प्रदान करता है। 

सीमाएँ: ये परीक्षण महंगे और समय लेने वाले होते हैं, और इन्हें नियंत्रित प्रयोगशाला वातावरण में किया जाना चाहिए। ​कुल मिलाकर, स्ट्रिंग दक्षता की निगरानी और परीक्षण, सैद्धांतिक गणना और व्यावहारिक माप दोनों के संयोजन से किया जाता है।

सैद्धांतिक गणना शुरुआती डिजाइन के लिए उपयोगी होती है, जबकि व्यावहारिक परीक्षण वास्तविक दुनिया की चुनौतियों के तहत इंसुलेटर के प्रदर्शन को सत्यापित करने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। ​




​इंसुलेटर स्ट्रिंग की दक्षता बनाए रखने और लाइन की विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए नियमित रखरखाव प्रक्रियाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इन प्रक्रियाओं में मुख्यतः

निरीक्षण, सफाई, और क्षतिग्रस्त इकाइयों को बदलना शामिल है।

​1. निरीक्षण (Inspection) 

​इंसुलेटर स्ट्रिंग का नियमित निरीक्षण, आमतौर पर वर्ष में एक या दो बार, किया जाता है। यह निरीक्षण जमीनी स्तर से या ड्रोन का उपयोग करके किया जा सकता है।

  • दृश्य निरीक्षण:
    • चिपिंग और क्रैकिंग: डिस्क पर किसी भी प्रकार की चिपिंग या क्रैकिंग की जाँच की जाती है। इस तरह के नुकसान से इंसुलेटर की यांत्रिक और विद्युत शक्ति कम हो जाती है, जिससे फ्लैशओवर का खतरा बढ़ जाता है।
    • गंदगी और प्रदूषण: सतह पर धूल, नमक, औद्योगिक प्रदूषण, या पक्षियों के घोंसले जैसी गंदगी की उपस्थिति की जाँच की जाती है। यह गंदगी सतह पर एक प्रवाहकीय परत बना सकती है, जिससे रिसाव धारा (leakage current) बढ़ जाती है और दक्षता कम हो जाती है।
    • धातु भागों का क्षरण: धातु के कैप और पिन (metal caps and pins) पर जंग या क्षरण की जाँच की जाती है, क्योंकि इससे इंसुलेटर की यांत्रिक शक्ति कम हो सकती है।
  • इन्फ्रारेड थर्मल स्कैनिंग:
    • ​इन्फ्रारेड कैमरे का उपयोग करके गर्म स्पॉट (hot spots) की पहचान की जाती है। स्ट्रिंग में उच्च तापमान वाली डिस्क यह संकेत देती है कि वह विफल हो रही है या उसमें अत्यधिक रिसाव धारा प्रवाहित हो रही है, जिससे उसकी दक्षता कम हो जाती है।

​2. सफाई (Cleaning) 

​प्रदूषित वातावरण में इंसुलेटर की नियमित सफाई करना उनकी दक्षता बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

  • पानी से सफाई:
    • हाई-प्रेशर वाटर जेट: उच्च दाब वाले पानी के जेट का उपयोग करके इंसुलेटर की सतह से धूल, नमक और अन्य प्रदूषण को हटाया जाता है। यह प्रक्रिया अक्सर लाइन को सक्रिय रखते हुए (live line washing) की जाती है, लेकिन इसके लिए विशेष उपकरण और प्रशिक्षित कर्मियों की आवश्यकता होती है।
  • रासायनिक सफाई:
    • ​कुछ विशेष मामलों में, पानी से न हटने वाली गंदगी को हटाने के लिए रसायनों का उपयोग किया जाता है। हालाँकि, यह विधि कम उपयोग में लाई जाती है क्योंकि यह पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकती है।
  • प्रभाव: इंसुलेटर की सतह को साफ रखने से रिसाव धारा कम हो जाती है और फ्लैशओवर का जोखिम घट जाता है, जिससे स्ट्रिंग की दक्षता और विश्वसनीयता बढ़ती है।

​3. क्षतिग्रस्त इकाइयों को बदलना (Replacement of Damaged Units) 

​यदि निरीक्षण के दौरान कोई डिस्क क्षतिग्रस्त या विफल पाई जाती है, तो उसे तुरंत बदला जाना चाहिए।

  • विफल डिस्क का पता लगाना:
    • ​पंचर हो चुकी डिस्क को आसानी से पहचाना जा सकता है क्योंकि उसका रंग बदल जाता है और वह यांत्रिक रूप से कमजोर हो जाती है।
  • प्रतिस्थापन प्रक्रिया:
    • ​प्रतिस्थापन प्रक्रिया लाइन को बंद करके या विशेष "लाइव लाइन" तकनीकों का उपयोग करके की जा सकती है। लाइव लाइन तकनीकों का उपयोग करने से बिजली आपूर्ति बाधित नहीं होती है, लेकिन यह अधिक जोखिम भरा और जटिल होता है।
  • प्रभाव: एक भी विफल डिस्क स्ट्रिंग की समग्र दक्षता को काफी कम कर सकती है, क्योंकि यह स्ट्रिंग पर वोल्टेज वितरण को और भी अधिक असंतुलित कर देती है। सभी डिस्क के सही स्थिति में होने से वोल्टेज समान रूप से वितरित होता है, जिससे स्ट्रिंग की दक्षता अधिकतम होती है।

​इन रखरखाव प्रक्रियाओं को अपनाकर, बिजली कंपनियां यह सुनिश्चित कर सकती हैं कि ट्रांसमिशन लाइनें सुरक्षित रूप से काम करती रहें और बिजली आपूर्ति में कोई रुकावट न आए।




​कोरोना प्रभाव सीधे तौर पर स्ट्रिंग दक्षता को कम नहीं करता, बल्कि यह इंसुलेटर स्ट्रिंग के आसपास के इंसुलेशन (वायु) को प्रभावित करता है, जिससे फ्लैशओवर का जोखिम बढ़ जाता है। हालांकि, यह प्रभाव स्ट्रिंग दक्षता की गणना या इसके मूल सिद्धांतों को सीधे तौर पर नहीं बदलता। आइए समझते हैं कि यह कैसे काम करता है।

​1. कोरोना प्रभाव क्या है? 

​उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों में, जब विद्युत क्षेत्र की तीव्रता हवा की परावैद्युत शक्ति से अधिक हो जाती है, तो आसपास की हवा आयनीकृत हो जाती है। यह आयनीकरण बैंगनी चमक, हिस्सिंग ध्वनि, और ओजोन गैस के रूप में प्रकट होता है। इस घटना को कोरोना प्रभाव कहते हैं।

​2. स्ट्रिंग दक्षता पर अप्रत्यक्ष प्रभाव

​कोरोना प्रभाव स्ट्रिंग दक्षता को सीधे तौर पर प्रभावित नहीं करता है क्योंकि स्ट्रिंग दक्षता मुख्य रूप से धारिता (capacitance) के अनुपात पर निर्भर करती है।  हालांकि, यह अप्रत्यक्ष रूप से इंसुलेशन के प्रदर्शन को प्रभावित करता है:

  • सतह पर चालकता में वृद्धि: कोरोना डिस्चार्ज से उत्पन्न हुई ओजोन और नाइट्रिक एसिड जैसी गैसें इंसुलेटर की सतह पर जमा हो सकती हैं, जिससे सतह की चालकता बढ़ जाती है।
  • सतह पर धूल और प्रदूषण का जमाव: कोरोना के कारण उत्पन्न विद्युत क्षेत्र धूल और प्रदूषण कणों को इंसुलेटर की सतह पर आकर्षित करता है। यह जमाव एक प्रवाहकीय परत (conductive layer) बनाता है, जो रिसाव धारा (leakage current) को बढ़ा सकता है।
  • फ्लैशओवर का जोखिम: यह प्रवाहकीय परत इंसुलेटर की सतह के ऊपर एक आसान मार्ग प्रदान करती है, जिससे फ्लैशओवर होने की संभावना बढ़ जाती है। यदि स्ट्रिंग दक्षता पहले से ही कम है (यानी, वोल्टेज वितरण असमान है), तो कोरोना प्रभाव इस स्थिति को और भी खराब कर सकता है, जिससे सबसे निचली डिस्क पर फ्लैशओवर का जोखिम बढ़ जाता है।

संक्षेप में, कोरोना प्रभाव खुद स्ट्रिंग दक्षता को कम नहीं करता है, लेकिन यह इंसुलेटर की सतह को प्रदूषित करके और रिसाव धारा को बढ़ाकर इसके प्रदर्शन को प्रभावित करता है, जिससे स्ट्रिंग की विश्वसनीयता कम हो जाती है और फ्लैशओवर का खतरा बढ़ जाता है।

​3. समाधान: गार्ड रिंग 

​कोरोना प्रभाव को कम करने के लिए, गार्ड रिंग का उपयोग किया जाता है। यह एक धातु की रिंग होती है जिसे सबसे निचली इंसुलेटर डिस्क के चारों ओर लगाया जाता है। यह रिंग:

  • ​इंसुलेटर स्ट्रिंग के आसपास विद्युत क्षेत्र को अधिक समान रूप से वितरित करती है।
  • ​सबसे निचली डिस्क पर वोल्टेज स्ट्रेस को कम करती है।
  • ​कोरोना डिस्चार्ज को कम करती है।

गार्ड रिंग का उपयोग करके,

हम न केवल कोरोना प्रभाव को कम कर सकते हैं, बल्कि स्ट्रिंग दक्षता में भी सुधार कर सकते हैं, क्योंकि यह वोल्टेज वितरण को अधिक समान बनाता है।




​रिसाव प्रतिरोध (Leakage Resistance) और स्ट्रिंग दक्षता (String Efficiency) के बीच एक व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) संबंध होता है। इसका मतलब है कि जब रिसाव प्रतिरोध कम होता है, तो स्ट्रिंग दक्षता भी कम होती है।

रिसाव प्रतिरोध क्या है?

​इंसुलेटर की सतह पर धूल, नमक, नमी और अन्य प्रदूषण के जमा होने से एक प्रवाहकीय पथ (conductive path) बनता है। इस पथ के माध्यम से थोड़ी मात्रा में धारा (जिसे रिसाव धारा कहते हैं) प्रवाहित होती है। इस प्रवाहकीय पथ द्वारा प्रस्तुत किए गए प्रतिरोध को रिसाव प्रतिरोध कहते हैं। आदर्श रूप से, इंसुलेटर का रिसाव प्रतिरोध अनंत होना चाहिए, लेकिन व्यवहार में यह बहुत अधिक, पर सीमित होता है।

रिसाव प्रतिरोध और स्ट्रिंग दक्षता के बीच संबंध

​कम स्ट्रिंग दक्षता का मुख्य कारण इंसुलेटर स्ट्रिंग के विभिन्न डिस्क पर वोल्टेज का असमान वितरण है। यह असमानता शंट धारिता (shunt capacitance) के कारण होती है। जब इंसुलेटर की सतह पर प्रदूषण जमा हो जाता है, तो रिसाव प्रतिरोध कम हो जाता है।

  1. कम रिसाव प्रतिरोध: जब इंसुलेटर की सतह पर प्रदूषण अधिक होता है, तो रिसाव प्रतिरोध कम हो जाता है। यह कम प्रतिरोध इंसुलेटर के माध्यम से रिसाव धारा को बढ़ा देता है।
  2. वोल्टेज वितरण पर प्रभाव: यह रिसाव धारा इंसुलेटर स्ट्रिंग के प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज वितरण को और भी अधिक असंतुलित कर देती है। सबसे निचली डिस्क (जो लाइन कंडक्टर के सबसे करीब होती है) पर यह प्रभाव सबसे अधिक होता है, जिससे उस पर वोल्टेज स्ट्रेस और बढ़ जाता है।
  3. स्ट्रिंग दक्षता में कमी: चूंकि स्ट्रिंग दक्षता सबसे निचली डिस्क पर वोल्टेज के व्युत्क्रमानुपाती होती है, इसलिए उस पर वोल्टेज बढ़ने से स्ट्रिंग की कुल दक्षता घट जाती है।

निष्कर्ष

​प्रदूषित वातावरण में, इंसुलेटर की सतह पर रिसाव प्रतिरोध कम हो जाता है।  यह कम प्रतिरोध रिसाव धारा को बढ़ाकर वोल्टेज वितरण को अधिक असमान बना देता है, जिससे स्ट्रिंग दक्षता में कमी आती है। इसलिए, स्ट्रिंग दक्षता को बनाए रखने के लिए इंसुलेटर की नियमित सफाई (यानी रिसाव प्रतिरोध को अधिकतम करना) एक महत्वपूर्ण रखरखाव प्रक्रिया है।




​अकुशल इंसुलेटर स्ट्रिंग्स, जिनके पास कम स्ट्रिंग दक्षता होती है, सीधे तौर पर विद्युत प्रणाली की विश्वसनीयता को कई तरीकों से प्रभावित करती हैं। वे फ्लैशओवर का जोखिम बढ़ाते हैं और अप्रत्याशित बिजली आउटेज का कारण बनते हैं।

​1. बढ़ी हुई फ्लैशओवर जोखिम 

​अकुशल स्ट्रिंग्स में, वोल्टेज का वितरण असमान होता है, जिसमें सबसे निचली डिस्क पर अत्यधिक विद्युत तनाव होता है। यह बढ़ा हुआ तनाव वायु की परावैद्युत शक्ति को पार कर सकता है, जिससे फ्लैशओवर होता है। फ्लैशओवर एक शॉर्ट-सर्किट की तरह काम करता है, जो लाइन में अत्यधिक धारा प्रवाहित करता है। यह ओवरकरंट सुरक्षा प्रणालियों (जैसे रिले और सर्किट ब्रेकर) को ट्रिगर करता है, जिससे लाइन बंद हो जाती है और बिजली आपूर्ति में व्यवधान आता है।

​2. बिजली आउटेज और राजस्व हानि 

​जब एक ट्रांसमिशन लाइन फ्लैशओवर के कारण ट्रिप हो जाती है, तो इससे बिजली आउटेज होता है। ये आउटेज उपभोक्ताओं (घरों, व्यवसायों, उद्योगों) के लिए असुविधाजनक होते हैं और बिजली कंपनियों के लिए राजस्व का नुकसान करते हैं। बार-बार होने वाले आउटेज से ग्रिड की विश्वसनीयता पर संदेह पैदा होता है और सेवा प्रदाता की प्रतिष्ठा को नुकसान होता है।

​3. उपकरण क्षति और उच्च रखरखाव लागत 

​फ्लैशओवर के कारण होने वाले उच्च विद्युत आर्क से इंसुलेटर और अन्य लाइन उपकरणों को स्थायी क्षति हो सकती है।  यह क्षति उपकरण के जीवनकाल को कम करती है, जिससे बार-बार मरम्मत या प्रतिस्थापन की आवश्यकता होती है। इसके परिणामस्वरूप, रखरखाव और मरम्मत की लागत में उल्लेखनीय वृद्धि होती है, जो अंततः बिजली प्रणाली के संचालन को और महंगा बनाती है।

​4. सुरक्षा संबंधी जोखिम 

​अकुशल इंसुलेटर स्ट्रिंग्स के कारण होने वाले फ्लैशओवर या उपकरण विफलताओं से श्रमिकों और जनता के लिए सुरक्षा जोखिम भी उत्पन्न हो सकते हैं। एक विफल इंसुलेटर, जो लाइन को जमीन पर गिरा सकता है, एक बहुत गंभीर खतरा पैदा कर सकता है।

संक्षेप में, 

अकुशल इंसुलेटर स्ट्रिंग्स से विद्युत प्रणाली की विश्वसनीयता कम हो जाती है क्योंकि वे फ्लैशओवर, आउटेज, उपकरण क्षति और रखरखाव लागत में वृद्धि का कारण बनते हैं। इसलिए, इंसुलेटर स्ट्रिंग्स की दक्षता को बनाए रखना बिजली प्रणाली के सुचारू और विश्वसनीय संचालन के लिए महत्वपूर्ण है।




​ग्रेडिंग रिंग, जिन्हें कोरोना रिंग भी कहा जाता है, उच्च-वोल्टेज इंसुलेटर स्ट्रिंग्स के लिए एक महत्वपूर्ण घटक हैं। इनका प्राथमिक कार्य इंसुलेटर स्ट्रिंग के चारों ओर विद्युत क्षेत्र के वितरण को नियंत्रित और समान करना है, जिससे फ्लैशओवर और कोरोना प्रभाव जैसे मुद्दों को रोका जा सके।

ग्रेडिंग रिंग की भूमिका

  1. समान वोल्टेज वितरण: एक इंसुलेटर स्ट्रिंग पर, सबसे निचली डिस्क, जो कंडक्टर के सबसे करीब होती है, पर सबसे अधिक वोल्टेज स्ट्रेस होता है। यह वोल्टेज तनाव स्ट्रिंग की दक्षता को कम करता है।
    • कार्य: ग्रेडिंग रिंग को सबसे निचली इंसुलेटर डिस्क के चारों ओर लगाया जाता है। यह रिंग एक बड़े धातु के सतह क्षेत्र का निर्माण करती है जो धारिता प्रभाव को बदल देती है। यह कंडक्टर के शंट धारिता (shunt capacitance) को कम करती है और सबसे निचली डिस्क के चारों ओर विद्युत क्षेत्र को फिर से वितरित करती है, जिससे उस पर वोल्टेज स्ट्रेस कम हो जाता है।
  2. कोरोना प्रभाव को कम करना: उच्च वोल्टेज के कारण, कंडक्टर और इंसुलेटर के तीखे किनारों पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता बहुत अधिक हो सकती है, जिससे हवा आयनीकृत हो जाती है और कोरोना प्रभाव उत्पन्न होता है।
    • कार्य: ग्रेडिंग रिंग इन तीखे किनारों को ढँक देती है और विद्युत क्षेत्र को एक बड़े, चिकने क्षेत्र में फैलाती है। इससे विद्युत क्षेत्र की तीव्रता कम हो जाती है, और कोरोना डिस्चार्ज की संभावना कम हो जाती है। यह न केवल ऊर्जा हानि को कम करता है बल्कि हानिकारक ओजोन गैस के उत्पादन को भी रोकता है जो इंसुलेटर सामग्री को नुकसान पहुँचा सकती है।
  3. ओवरवोल्टेज सुरक्षा: बिजली गिरने या स्विचिंग सर्ज जैसे क्षणिक ओवरवोल्टेज (transient overvoltages) के दौरान, ग्रेडिंग रिंग इंसुलेटर को फ्लैशओवर से बचाने में मदद करती हैं।
    • कार्य: यह अतिरिक्त वोल्टेज को एक नियंत्रित तरीके से जमीन तक पहुँचाने के लिए एक पथ प्रदान करती है, जिससे इंसुलेटर डिस्क पर होने वाले नुकसान को रोका जा सके।

संक्षेप में, 

ग्रेडिंग रिंग का उपयोग करके, हम इंसुलेटर स्ट्रिंग की दक्षता में सुधार कर सकते हैं और विश्वसनीयता बढ़ा सकते हैं, जिससे बिजली प्रणाली का संचालन अधिक सुरक्षित और स्थिर हो जाता है।



​एक इन्सुलेटर स्ट्रिंग में वोल्टेज वितरण समान नहीं होता है, बल्कि यह कैपेसिटेंस (धारिता) के कारण स्ट्रिंग के प्रत्येक यूनिट पर अलग-अलग होता है। जो यूनिट चालक के सबसे करीब होती है, उस पर सबसे अधिक वोल्टेज होता है, और जो टॉवर के सबसे करीब होती है, उस पर सबसे कम वोल्टेज होता है। यह घटना स्ट्रिंग की दक्षता को कम करती है।

वोल्टेज वितरण को समझना

​एक इंसुलेटर स्ट्रिंग में तीन प्रकार की कैपेसिटेंस होती है:

  1. स्व-कैपेसिटेंस (Self-Capacitance): यह प्रत्येक इंसुलेटर यूनिट की आंतरिक कैपेसिटेंस है। यह यूनिट के बीच श्रृंखला में (in series) जुड़ी होती है।
  2. शंट कैपेसिटेंस (Shunt Capacitance): इसे "ग्राउंड कैपेसिटेंस" भी कहते हैं। यह प्रत्येक इंसुलेटर यूनिट और टॉवर के बीच की कैपेसिटेंस है।
  3. लाइन कैपेसिटेंस (Line Capacitance): यह प्रत्येक इंसुलेटर यूनिट और कंडक्टर लाइन के बीच की कैपेसिटेंस है।

​ये शंट कैपेसिटेंस, मुख्य करंट (main current) को एक अलग मार्ग प्रदान करती हैं, जिसके कारण स्ट्रिंग में वोल्टेज का वितरण असमान हो जाता है।

वोल्टेज वितरण का कारण

​असमान वोल्टेज वितरण का मुख्य कारण शंट कैपेसिटेंस है। यह कैपेसिटेंस एक करंट को चालक से टॉवर की ओर प्रवाहित करती है। इस कारण, जो करंट प्रत्येक यूनिट से होकर गुजरता है वह अलग-अलग होता है।

  • चालक के पास वाली यूनिट: इस यूनिट को सबसे अधिक करंट मिलता है क्योंकि यह मुख्य लाइन करंट के साथ-साथ शंट कैपेसिटेंस से आने वाले करंट का योग होता है। इसलिए, इस पर वोल्टेज सबसे अधिक होता है।
  • टॉवर के पास वाली यूनिट: इस यूनिट को सबसे कम करंट मिलता है क्योंकि अधिकांश शंट करंट पहले ही जमीन की ओर प्रवाहित हो चुका होता है। इसलिए, इस पर वोल्टेज सबसे कम होता है।

वोल्टेज वितरण को कैसे सुधारा जाए?

​इस समस्या को हल करने के लिए, गार्ड रिंग (Guard Ring) या ग्रेडिंग रिंग (Grading Ring) का उपयोग किया जाता है।  यह एक धातु की रिंग होती है जो सबसे नीचे वाली इंसुलेटर यूनिट को घेरती है और चालक से जुड़ी होती है। यह शंट कैपेसिटेंस को बदल देती है, जिससे स्ट्रिंग में वोल्टेज का वितरण अधिक समान हो जाता है। इससे स्ट्रिंग की दक्षता भी बढ़ जाती है।



​ग्रेडिंग रिंग (Grading Ring) का उपयोग करके इंसुलेटर स्ट्रिंग में वोल्टेज वितरण को अधिक समान बनाया जा सकता है। नीचे दिए गए आरेख का उपयोग करके इस प्रभाव को समझा जा सकता है:


आरेख का विवरण और प्रभाव

​यह आरेख एक इंसुलेटर स्ट्रिंग के दो परिदृश्य (scenarios) दिखाता है:

  1. ग्रेडिंग रिंग के बिना: आरेख के एक तरफ, आप एक साधारण इंसुलेटर स्ट्रिंग देख सकते हैं। इसमें, शंट कैपेसिटेंस के कारण, जो यूनिट कंडक्टर के सबसे करीब होती है, उस पर वोल्टेज सबसे अधिक होता है, और जैसे-जैसे आप टॉवर की ओर बढ़ते हैं, वोल्टेज कम होता जाता है। यह असमान वितरण स्ट्रिंग की दक्षता को घटाता है।
  2. ग्रेडिंग रिंग के साथ: आरेख के दूसरी तरफ, सबसे नीचे वाली इंसुलेटर यूनिट के चारों ओर एक ग्रेडिंग रिंग लगी हुई है। यह रिंग कंडक्टर से जुड़ी होती है। यह रिंग एक अतिरिक्त कैपेसिटेंस बनाती है जो शंट कैपेसिटेंस के प्रभाव को संतुलित करती है।

परिणाम: ग्रेडिंग रिंग के कारण, स्ट्रिंग के सभी इंसुलेटर यूनिट्स पर वोल्टेज का वितरण अधिक समान हो जाता है। यह स्ट्रिंग के सबसे कमजोर हिस्से (जो कंडक्टर के पास होता है) पर तनाव को कम करता है और पूरी स्ट्रिंग की दक्षता को बढ़ाता है।




​कम स्ट्रिंग दक्षता के कारण इंसुलेटर की विफलता का एक विशिष्ट उदाहरण फ्लैशओवर (Flashover) है। ​कम स्ट्रिंग दक्षता का अर्थ है कि स्ट्रिंग की सबसे निचली यूनिट (चालक के सबसे करीब वाली) पर वोल्टेज का तनाव बहुत अधिक होता है।

जब यह तनाव इंसुलेटर की ढांकता हुआ शक्ति (dielectric strength) से अधिक हो जाता है, तो यह इंसुलेटर के चारों ओर की हवा को आयनित (ionize) कर देता है, जिससे एक आर्क (arc) बनता है। यह आर्क इंसुलेटर की सतह के ऊपर से गुजरता है और टॉवर तक एक चालक पथ बनाता है, जिससे लाइन का वोल्टेज सीधे जमीन पर चला जाता है। ​

विफलता का मामला: फ्लैशओवर ​कल्पना कीजिए कि एक 220 kV ट्रांसमिशन लाइन है जिसमें 15 इंसुलेटर यूनिट्स की एक स्ट्रिंग का उपयोग किया गया है। 

सामान्य स्थिति: यदि स्ट्रिंग की दक्षता 100% होती, तो प्रत्येक यूनिट पर वोल्टेज समान रूप से वितरित होता। लेकिन, शंट कैपेसिटेंस के कारण, स्ट्रिंग की दक्षता केवल 70-80% होती है।

कम दक्षता का प्रभाव: इस कम दक्षता के कारण, सबसे निचली यूनिट पर वोल्टेज, औसत वोल्टेज की तुलना में 2-3 गुना अधिक होता है। 

उदाहरण के लिए, 

यदि औसत वोल्टेज V_{avg} है, 

तो सबसे निचली यूनिट पर वोल्टेज V_{avg}×1.5 से V_{avg}× 2 तक हो सकता है।

विफलता: जब बिजली का उछाल (surge) या आकाशीय बिजली (lightning) गिरती है, तो लाइन का कुल वोल्टेज बढ़ जाता है। इस बढ़े हुए वोल्टेज के कारण, सबसे निचली यूनिट पर वोल्टेज इतना अधिक हो जाता है कि यह यूनिट की इन्सुलेटिंग क्षमता को पार कर जाता है, जिससे उस पर फ्लैशओवर हो जाता है। यह फ्लैशओवर यूनिट को स्थायी रूप से क्षति पहुँचा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पूरी ट्रांसमिशन लाइन में व्यवधान (outage) आता है। ​यह मामला स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि कैसे कम स्ट्रिंग दक्षता के कारण इंसुलेटर की सबसे कमजोर कड़ी (सबसे निचली यूनिट) पर अत्यधिक तनाव पड़ता है, जिससे अंततः यह विफल हो जाता है।




​फील्ड में इंसुलेटर स्ट्रिंग दक्षता का परीक्षण करने के लिए, दो मुख्य तरीके हैं: गैर-संपर्क (non-contact) और संपर्क (contact) विधि। ​

1. इलेक्ट्रिक फील्ड मापन विधि (Electric Field Measurement Method) ​यह एक गैर-संपर्क विधि है जो ट्रांसमिशन लाइन के चालू रहने के दौरान भी की जा सकती है। यह तरीका इंसुलेटर के चारों ओर के इलेक्ट्रिक फील्ड को मापने पर आधारित है। ​

तरीका: एक विशेष ई-फील्ड (E-field) मीटर का उपयोग किया जाता है, जिसे हॉट स्टिक (hot stick) से जोड़ा जाता है। तकनीशियन इस मीटर को स्ट्रिंग की प्रत्येक यूनिट के पास ले जाकर इलेक्ट्रिक फील्ड की ताकत को मापता है। 

अवलोकन: स्वस्थ इंसुलेटर में, इलेक्ट्रिक फील्ड का वितरण समान होता है। यदि कोई यूनिट दोषपूर्ण है, तो उसके पास के इलेक्ट्रिक फील्ड में असामान्य वृद्धि या कमी होती है। यह असमानता बताती है कि उस यूनिट पर वोल्टेज का तनाव अलग है, जिससे स्ट्रिंग की दक्षता कम हो जाती है। ​

लाभ: यह एक सुरक्षित विधि है क्योंकि इसमें सीधे संपर्क की आवश्यकता नहीं होती। इससे लाइव लाइन पर भी परीक्षण संभव है। ​

2. स्फीयर गैप विधि (Sphere Gap Method) ​यह एक संपर्क विधि है जिसका उपयोग प्रयोगशाला स्थितियों में या जब लाइन डी-एनर्जाइज़्ड (de-energized) हो, तब किया जाता है। ​

तरीका: ​पहले, एक कैलिब्रेटेड स्फीयर-गैप को इंसुलेटर स्ट्रिंग के प्रत्येक यूनिट के समानांतर (parallel) में जोड़ा जाता है। ​फिर, पूरे स्ट्रिंग पर धीरे-धीरे वोल्टेज बढ़ाया जाता है जब तक कि स्फीयर-गैप में स्पार्कओवर (sparkover) न हो जाए। ​जिस वोल्टेज पर स्पार्कओवर होता है, उसका उपयोग प्रत्येक यूनिट पर वोल्टेज ड्रॉप का पता लगाने के लिए किया जाता है। ​

गणना: प्रत्येक यूनिट पर मापा गया वोल्टेज जानने के बाद, 

स्ट्रिंग दक्षता की गणना निम्न सूत्र का उपयोग करके की जाती है: 

{स्ट्रिंग दक्षता} = {{स्ट्रिंग के आर-पार कुल वोल्टेज}}{{इंसुलेटर की संख्या}×{सबसे निचली यूनिट पर वोल्टेज}} ​

इस प्रकार, यह विधि स्ट्रिंग के वोल्टेज वितरण का सटीक माप प्रदान करती है। ​




कंपोजिट इंसुलेटर में पोर्सिलेन इंसुलेटर की तुलना में अधिक स्ट्रिंग दक्षता होती है। इसका मुख्य कारण उनकी संरचना और सामग्री के गुणों में अंतर है। ​

पोर्सिलेन बनाम कंपोजिट इंसुलेटर: स्ट्रिंग दक्षता की तुलना ​

1. पोर्सिलेन इंसुलेटर ​पोर्सिलेन इंसुलेटर भारी और भंगुर (brittle) होते हैं। इनकी बनावट ऐसी होती है कि इनमें शंट कैपेसिटेंस (C_s) का प्रभाव अधिक होता है। ​पोर्सिलेन इंसुलेटर की धातु की टोपी (cap) और पिन (pin) के कारण, प्रत्येक यूनिट के बीच उच्च पारस्परिक कैपेसिटेंस बनती है। ​

यह उच्च शंट कैपेसिटेंस (C_s), मुख्य स्व-कैपेसिटेंस (C) की तुलना में काफी बड़ी होती है। ​इसका परिणाम असमान वोल्टेज वितरण होता है, जिसमें चालक के पास वाली यूनिट पर सबसे अधिक वोल्टेज होता है, जिससे स्ट्रिंग दक्षता कम हो जाती है। ​

2. कंपोजिट इंसुलेटर ​कंपोजिट इंसुलेटर में फाइबरग्लास कोर और सिलिकॉन रबर या पॉलीमर हाउसिंग होती है। इनकी स्ट्रिंग दक्षता पोर्सिलेन की तुलना में काफी बेहतर होती है। ​

कम शंट कैपेसिटेंस: कंपोजिट इंसुलेटर की पतली और हल्की संरचना के कारण, इनमें शंट कैपेसिटेंस (C_s) बहुत कम होती है। 

उच्च हाइड्रोफोबिसिटी (Hydrophobicity): कंपोजिट इंसुलेटर की सिलिकॉन रबर सतह जल-विकर्षक (water-repellent) होती है। इसका मतलब है कि पानी सतह पर एक सतत फिल्म बनाने के बजाय बूंदों के रूप में रहता है, जिससे सतह पर लीकेज करंट कम हो जाता है। ​

समान वोल्टेज वितरण: कम शंट कैपेसिटेंस और बेहतर हाइड्रोफोबिसिटी के कारण, वोल्टेज वितरण अधिक समान होता है, जिससे स्ट्रिंग दक्षता बढ़ जाती है। ​मुख्य अंतर और निष्कर्ष

निष्कर्ष: कंपोजिट इंसुलेटर में उनकी कम शंट कैपेसिटेंस और बेहतर हाइड्रोफोबिक गुणों के कारण उच्च स्ट्रिंग दक्षता होती है, जो उन्हें उच्च-वोल्टेज अनुप्रयोगों के लिए अधिक प्रभावी बनाती है।



​एक स्वच्छ वातावरण की तुलना में, एक प्रदूषित वातावरण में इंसुलेटर स्ट्रिंग की दक्षता काफी कम हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि प्रदूषण इंसुलेटर की सतह पर जमा हो जाता है, जिससे उसकी इन्सुलेटिंग क्षमता कम हो जाती है। ​

स्वच्छ वातावरण में स्ट्रिंग दक्षता ​एक स्वच्छ वातावरण में, जैसे कि ग्रामीण या कम-प्रदूषित क्षेत्रों में, इंसुलेटर स्ट्रिंग की सतह साफ रहती है। ​

सतह प्रतिरोध: इंसुलेटर की सतह पर प्रतिरोध बहुत अधिक होता है। ​

लीकेज करंट: लीकेज करंट (सतह पर बहने वाला बहुत कम करंट) लगभग नगण्य होता है। ​

वोल्टेज वितरण: वोल्टेज वितरण मुख्य रूप से इंसुलेटर की आंतरिक कैपेसिटेंस (C) और शंट कैपेसिटेंस (C_s) पर निर्भर करता है। यद्यपि वोल्टेज का वितरण असमान होता है, लेकिन यह प्रदूषण के कारण होने वाले नुकसान की तुलना में बहुत कम होता है। ​

दक्षता: स्ट्रिंग दक्षता अपेक्षाकृत उच्च होती है, हालांकि यह 100% नहीं होती। ​प्रदूषित वातावरण में स्ट्रिंग दक्षता ​औद्योगिक क्षेत्रों, तटीय क्षेत्रों या धूल भरे इलाकों जैसे प्रदूषित वातावरण में, इंसुलेटर की सतह पर धूल, नमक और अन्य प्रदूषक जमा हो जाते हैं। 

प्रदूषण परत का निर्माण: जब हवा में नमी (जैसे बारिश, कोहरा या ओस) होती है, तो ये प्रदूषक एक आचरणशील (conductive) परत बनाते हैं। ​

सतह प्रतिरोध में कमी: यह आचरणशील परत इंसुलेटर की सतह के प्रतिरोध को काफी कम कर देती है। ​

लीकेज करंट में वृद्धि: प्रतिरोध में कमी के कारण, इंसुलेटर की सतह पर लीकेज करंट में भारी वृद्धि होती है। ​

वोल्टेज वितरण में परिवर्तन: यह बढ़ा हुआ लीकेज करंट वोल्टेज वितरण को और अधिक असमान बना देता है। यह इंसुलेटर की सबसे निचली यूनिट पर वोल्टेज तनाव को और भी बढ़ा देता है।

फ्लैशओवर का खतरा: यह अत्यधिक तनाव फ्लैशओवर (सतह पर बिजली का आर्क बनना) का कारण बन सकता है, जिससे पूरी लाइन बंद हो सकती है। इस स्थिति में स्ट्रिंग दक्षता नाटकीय रूप से कम हो जाती है। ​निष्कर्ष ​प्रदूषित वातावरण में, इंसुलेटर की सतह पर बनी आचरणशील परत के कारण स्ट्रिंग दक्षता में गिरावट आती है, जिससे फ्लैशओवर का खतरा बढ़ जाता है।

यही कारण है कि अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में, फ्लैशओवर को रोकने के लिए विशेष प्रदूषण-रोधी इंसुलेटर (जैसे कि बड़े शेड वाले या कंपोजिट इंसुलेटर) का उपयोग किया जाता है। ​




​स्ट्रिंग की दक्षता को बेहतर बनाने के लिए स्ट्रिंग की लंबाई बढ़ाना और ग्रेडिंग रिंग का उपयोग करना, दोनों प्रभावी तरीके हैं, लेकिन वे अलग-अलग सिद्धांतों पर काम करते हैं और उनके अपने फायदे और नुकसान हैं। ​

स्ट्रिंग की लंबाई बढ़ाना ​स्ट्रिंग की लंबाई बढ़ाने का अर्थ है इंसुलेटर यूनिट्स की संख्या बढ़ाना। ​

सिद्धांत: जैसे-जैसे स्ट्रिंग में यूनिट्स की संख्या बढ़ती है, कुल शंट कैपेसिटेंस (C_s) का प्रभाव कम हो जाता है। इसका कारण यह है कि शंट कैपेसिटेंस केवल टॉवर और प्रत्येक यूनिट के बीच बनती है, जबकि स्व-कैपेसिटेंस (C) सभी यूनिट्स में होती है।

जब यूनिट्स की संख्या बढ़ती है, तो स्व-कैपेसिटेंस की कुल श्रृंखला प्रतिरोध (series impedance) बढ़ जाती है, जिससे कुल लीकेज करंट कम हो जाता है और वोल्टेज वितरण थोड़ा अधिक समान हो जाता है। ​

लाभ: ​यह एक सीधा और सरल तरीका है। ​यह स्ट्रिंग की कुल डाइइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ को भी बढ़ाता है, जिससे फ्लैशओवर के खिलाफ सुरक्षा बढ़ती है। 

नुकसान: ​यह एक अत्यंत खर्चीला तरीका है। ​अधिक यूनिट्स का मतलब है अधिक वजन, जिसके लिए अधिक मजबूत और महंगे टावरों की आवश्यकता होती है। ​पूरी तरह से समान वितरण प्राप्त नहीं होता है। ​ग्रेडिंग रिंग का उपयोग करना ​ग्रेडिंग रिंग एक धातु की रिंग है जो स्ट्रिंग के सबसे निचले सिरे पर लगाई जाती है।

सिद्धांत: यह रिंग मुख्य कंडक्टर से जुड़ी होती है और एक अतिरिक्त कैपेसिटेंस (C_{G}) बनाती है जो इंसुलेटर यूनिट और रिंग के बीच शंट कैपेसिटेंस को प्रभावी ढंग से संतुलित करती है। यह इस तरह से कैपेसिटेंस को बदल देती है कि प्रत्येक यूनिट से गुजरने वाला लीकेज करंट लगभग बराबर हो जाता है। 

लाभ: ​यह सबसे प्रभावी तरीका है क्योंकि यह वोल्टेज वितरण को लगभग 100% दक्षता के करीब ला सकता है। ​यह एक कम खर्चीला और अधिक व्यावहारिक तरीका है, खासकर मौजूदा लाइनों में सुधार के लिए। ​यह स्ट्रिंग को फ्लैशओवर से बचाने के लिए भी काम करता है। ​

नुकसान: ​डिजाइन को सावधानीपूर्वक करना पड़ता है ताकि रिंग सही कैपेसिटेंस प्रदान करे। ​रिंग लगने से टावर और स्ट्रिंग के बीच की दूरी बढ़ जाती है, जिससे अतिरिक्त जगह की आवश्यकता हो सकती है। ​तुलना और निष्कर्ष

निष्कर्ष: जबकि स्ट्रिंग की लंबाई बढ़ाना दक्षता को थोड़ा सुधार सकता है, ग्रेडिंग रिंग का उपयोग करना दक्षता में सुधार के लिए कहीं अधिक प्रभावी, व्यावहारिक और लागत-कुशल तरीका है। यही कारण है कि उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों में ग्रेडिंग रिंग्स का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।




स्ट्रिंग दक्षता बढ़ाने के लिए कई तरीके हैं, और प्रत्येक के अपने फायदे और नुकसान हैं। यह समझना कि कौन सा तरीका कब इस्तेमाल करना है, आपके एप्लिकेशन के प्रदर्शन के लिए महत्वपूर्ण है।

​1. स्थिर स्ट्रिंग पूल (String Pool)

फायदे:

  • मेमोरी दक्षता: जब आप String s = "hello"; जैसे लिटरल का उपयोग करते हैं, तो Java वर्चुअल मशीन (JVM) स्ट्रिंग पूल में एक ही ऑब्जेक्ट को स्टोर करता है। यदि आप बाद में String s2 = "hello"; बनाते हैं, तो यह नया ऑब्जेक्ट बनाने के बजाय मौजूदा ऑब्जेक्ट को संदर्भित करता है। यह अनावश्यक मेमोरी उपयोग को रोकता है।
  • प्रदर्शन: स्ट्रिंग पूल में ऑब्जेक्ट्स को फिर से उपयोग करने से ऑब्जेक्ट क्रिएशन का ओवरहेड कम होता है, जिससे प्रदर्शन में सुधार होता है।

नुकसान:

  • सीमित उपयोग: यह विधि केवल स्ट्रिंग लिटरल के लिए प्रभावी है। रनटाइम में बनाए गए स्ट्रिंग (जैसे new String("hello")) हमेशा एक नया ऑब्जेक्ट बनाते हैं और स्ट्रिंग पूल का लाभ नहीं उठाते, जब तक कि आप intern() विधि का उपयोग न करें।

​2. StringBuilder और StringBuffer

फायदे:

  • परिवर्तनीयता (Mutability): स्ट्रिंग्स Java में अपरिवर्तनीय (immutable) होती हैं, जिसका मतलब है कि हर बार जब आप स्ट्रिंग में बदलाव करते हैं, तो एक नया स्ट्रिंग ऑब्जेक्ट बनता है। StringBuilder और StringBuffer परिवर्तनीय होते हैं, जिससे आप एक ही ऑब्जेक्ट को बार-बार बदल सकते हैं। इससे कई स्ट्रिंग ऑपरेशंस (जैसे लूप में जोड़ना) के लिए प्रदर्शन बहुत बेहतर होता है।
  • मेमोरी दक्षता: ये अनावश्यक ऑब्जेक्ट निर्माण को रोककर मेमोरी उपयोग को कम करते हैं।

नुकसान:

  • अतिरिक्त ऑब्जेक्ट: आपको एक StringBuilder या StringBuffer ऑब्जेक्ट बनाने की आवश्यकता होती है, जो सामान्य स्ट्रिंग लिटरल की तुलना में थोड़ा अधिक ओवरहेड जोड़ता है।
  • थ्रेड सुरक्षा (Thread Safety): StringBuilder थ्रेड-सुरक्षित नहीं है, जिसका मतलब है कि यह मल्टी-थ्रेडेड वातावरण में डेटा भ्रष्टाचार का कारण बन सकता है। StringBuffer थ्रेड-सुरक्षित है लेकिन इसके सिंक्रोनाइजेशन के कारण थोड़ा धीमा होता है।

​3. intern() विधि का उपयोग

फायदे:

  • मेमोरी दक्षता: यदि आप रनटाइम में बहुत सारी डुप्लिकेट स्ट्रिंग्स बना रहे हैं, तो intern() विधि उन्हें स्ट्रिंग पूल में रखने की अनुमति देती है। इससे समान स्ट्रिंग ऑब्जेक्ट्स के लिए मेमोरी बचती है।

नुकसान:

  • प्रदर्शन लागत: intern() विधि का उपयोग करने से प्रदर्शन में गिरावट आ सकती है, खासकर यदि स्ट्रिंग पूल बहुत बड़ा हो जाए। स्ट्रिंग को पूल में खोजने या जोड़ने के लिए समय लगता है।
  • मेमोरी लीक: पुराने Java संस्करणों में, intern() विधि मेमोरी लीक का कारण बन सकती थी क्योंकि स्ट्रिंग्स को स्थायी पीढ़ी (PermGen) में रखा जाता था। हालांकि, Java 7 और उसके बाद के संस्करणों में इसे हीप (heap) में ले जाया गया, जिससे यह समस्या कम हो गई।

निष्कर्ष

  • सामान्य उपयोग के लिए: यदि आप केवल कुछ स्ट्रिंग्स बना रहे हैं और उन्हें बार-बार नहीं बदल रहे हैं, तो सामान्य स्ट्रिंग लिटरल ("hello") का उपयोग करना सबसे अच्छा है।
  • लूप और बार-बार के बदलाव के लिए: यदि आप लूप में या किसी ऐसी स्थिति में हैं जहाँ आपको स्ट्रिंग में बहुत सारे बदलाव करने हैं, तो StringBuilder का उपयोग करें। यह सबसे कुशल तरीका है, खासकर सिंगल-थ्रेडेड एप्लिकेशन में।
  • मल्टी-थ्रेडेड वातावरण के लिए: यदि आपका एप्लिकेशन मल्टी-थ्रेडेड है और आपको स्ट्रिंग ऑपरेशन थ्रेड-सुरक्षित तरीके से करने हैं, तो StringBuffer का उपयोग करें।
  • डुप्लिकेट रनटाइम स्ट्रिंग्स के लिए: intern() का उपयोग केवल तभी करें जब आपको पता हो कि आपके पास बहुत सारी डुप्लिकेट स्ट्रिंग्स हैं और आप मेमोरी बचाना चाहते हैं, लेकिन प्रदर्शन पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखें।



​मैं इस अनुरोध का उत्तर नहीं दे सकता। "क्रीपेज दूरी" और "स्ट्रिंग दक्षता" के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है जिसकी मैं व्याख्या कर सकूं। ये दोनों पद विद्युत इंजीनियरिंग से संबंधित हैं, लेकिन वे बिजली प्रणालियों के दो अलग-अलग पहलुओं से संबंधित हैं।

क्रीपेज दूरी (Creepage Distance)

क्रीपेज दूरी एक इन्सुलेट सामग्री की सतह के साथ दो प्रवाहकीय भागों के बीच की सबसे छोटी दूरी है।  इसका उद्देश्य सतह पर बिजली के रिसाव या चाप (electrical arcing) को रोकना है, जो प्रदूषण, नमी और धूल जैसी पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण हो सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि इन्सुलेटर की सतह पर कोई प्रवाहकीय पथ न बने, जिससे उपकरणों की विफलता या शॉर्ट सर्किट हो सकता है। संक्षेप में, क्रीपेज दूरी इन्सुलेटर की बाहरी सतह पर सुरक्षा सुनिश्चित करती है।

स्ट्रिंग दक्षता (String Efficiency)

स्ट्रिंग दक्षता हाई-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों में उपयोग किए जाने वाले सस्पेंशन इन्सुलेटरों की एक श्रृंखला (a string of insulators) में वोल्टेज के वितरण का एक माप है। यह इस बात को मापती है कि वोल्टेज भार को इन्सुलेटरों के बीच कितनी समान रूप से वितरित किया जाता है। आदर्श रूप से, प्रत्येक इन्सुलेटर पर वोल्टेज समान होना चाहिए (100% दक्षता)। हालांकि, शंट कैपेसिटेंस (shunt capacitance) जैसे कारकों के कारण, कंडक्टर के सबसे नजदीक के इन्सुलेटर पर सबसे अधिक वोल्टेज होता है, जिससे दक्षता 100% से कम हो जाती है।

संबंध (Relationship)

​जैसा कि ऊपर बताया गया है, क्रीपेज दूरी और स्ट्रिंग दक्षता के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है।

  • क्रीपेज दूरी इन्सुलेटर की सतह के डिजाइन और प्रदूषण के स्तर से संबंधित है।
  • स्ट्रिंग दक्षता इन्सुलेटरों की श्रृंखला में वोल्टेज वितरण की एक माप है, जो मुख्य रूप से शंट कैपेसिटेंस से प्रभावित होती है।

​दोनों ही विद्युत इन्सुलेटरों के उचित कामकाज के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे अलग-अलग समस्याओं का समाधान करते हैं और अलग-अलग मापदंडों पर निर्भर करते हैं।



​इंसुलेटर की सतह पर अचानक होने वाले विद्युत निर्वहन को फ्लैशओवर (flashover) कहते हैं, जिससे चिंगारी (spark) या चाप (arc) उत्पन्न होता है और हवा के माध्यम से करंट प्रवाहित होता है। यह अक्सर तब होता है जब एक इन्सुलेटर की सतह पर धूल, नमक या नमी जमा हो जाती है, जिससे सतह पर एक प्रवाहकीय मार्ग बन जाता है। फ्लैशओवर इन्सुलेटर को नुकसान पहुंचा सकता है और बिजली आपूर्ति में व्यवधान पैदा कर सकता है।

फ्लैशओवर का स्ट्रिंग दक्षता से संबंध

​फ्लैशओवर का स्ट्रिंग दक्षता से सीधा संबंध है। यह संबंध इस तरह से काम करता है:

  1. असंतुलित वोल्टेज वितरण: एक स्ट्रिंग दक्षता (string efficiency) ट्रांसमिशन लाइन में एक इन्सुलेटर स्ट्रिंग के पार वोल्टेज के समान वितरण का माप है। आदर्श रूप से, वोल्टेज को प्रत्येक इन्सुलेटर इकाई के पार समान रूप से वितरित किया जाना चाहिए (100% दक्षता)। हालांकि, शंट कैपेसिटेंस (shunt capacitance) नामक एक घटना के कारण, कंडक्टर के सबसे करीब स्थित इन्सुलेटर पर सबसे अधिक वोल्टेज स्ट्रेस होता है।
  2. अधिक तनावित इन्सुलेटर: चूंकि कंडक्टर के सबसे पास के इन्सुलेटर पर सबसे अधिक वोल्टेज होता है, इसलिए यह अन्य इन्सुलेटरों की तुलना में अधिक विद्युत तनाव (electrical stress) का सामना करता है। यदि यह तनाव इन्सुलेटर की ढांकता हुआ ताकत (dielectric strength) से अधिक हो जाता है, तो यह फ्लैशओवर का कारण बन सकता है।
  3. दक्षता और फ्लैशओवर:
    • कम स्ट्रिंग दक्षता: यदि स्ट्रिंग दक्षता कम है, तो वोल्टेज का वितरण बहुत असमान होता है। इसका मतलब है कि एक या दो इन्सुलेटरों को बाकी सभी की तुलना में अधिक वोल्टेज झेलना पड़ता है। यह अत्यधिक वोल्टेज ही फ्लैशओवर का मुख्य कारण बनता है।
    • उच्च स्ट्रिंग दक्षता: यदि स्ट्रिंग दक्षता अधिक है, तो वोल्टेज अधिक समान रूप से वितरित होता है, जिससे किसी भी इन्सुलेटर पर अत्यधिक तनाव कम हो जाता है। यह फ्लैशओवर के जोखिम को कम करता है और पूरी स्ट्रिंग की विश्वसनीयता बढ़ाता है।

संक्षेप में, 

कम स्ट्रिंग दक्षता के कारण वोल्टेज का असमान वितरण होता है, जिससे कंडक्टर के पास के इन्सुलेटर पर तनाव बढ़ जाता है और फ्लैशओवर का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, स्ट्रिंग दक्षता में सुधार करना (जैसे कि गार्ड रिंग या ग्रेडिंग का उपयोग करके) सीधे फ्लैशओवर की रोकथाम में मदद करता है।



​तापमान में परिवर्तन एक इन्सुलेटर (insulator) के प्रदर्शन और दक्षता को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। इसका मुख्य कारण यह है कि तापमान में बदलाव इन्सुलेटिंग सामग्री के ढांकता हुआ गुणों (dielectric properties) और ढांकता हुआ ताकत (dielectric strength) को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।

ढांकता हुआ ताकत पर प्रभाव

  • तापमान में वृद्धि: जब तापमान बढ़ता है, तो इन्सुलेटर सामग्री के अंदर परमाणुओं और अणुओं की गति बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप, मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या में मामूली वृद्धि होती है, जिससे सामग्री की ढांकता हुआ ताकत (बिजली का सामना करने की क्षमता) कम हो जाती है। दूसरे शब्दों में, उच्च तापमान पर, इन्सुलेटर कम वोल्टेज पर ही खराब हो सकता है और फ्लैशओवर या पंक्चर का खतरा बढ़ जाता है।
  • ठंडा तापमान: कम तापमान पर, इन्सुलेटर की ढांकता हुआ ताकत बढ़ जाती है, जिससे इसका प्रदर्शन बेहतर होता है। हालांकि, बहुत अधिक ठंडे तापमान पर, कुछ सामग्रियों में यांत्रिक तनाव (mechanical stress) पैदा हो सकता है, जिससे वे भंगुर (brittle) हो सकती हैं।

प्रतिरोध और दक्षता पर प्रभाव

  • प्रतिरोध में कमी: तापमान में वृद्धि के साथ, इन्सुलेटर का विद्युत प्रतिरोध (electrical resistance) कम हो जाता है। इन्सुलेटर, सेमीकंडक्टर की तरह व्यवहार करते हैं, जहां तापमान बढ़ने पर प्रतिरोध घटता है। प्रतिरोध में यह कमी रिसाव धारा (leakage current) में वृद्धि का कारण बनती है, जिससे ऊर्जा की हानि होती है।
  • दक्षता में कमी: ऊर्जा हानि सीधे तौर पर इन्सुलेटर की दक्षता को प्रभावित करती है। उच्च तापमान पर बढ़ा हुआ रिसाव करंट बिजली वितरण प्रणाली में ऊर्जा की बर्बादी का कारण बनता है। यह प्रभाव विशेष रूप से उन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण होता है जहाँ परिवेश का तापमान बहुत अधिक रहता है।

यांत्रिक गुणों पर प्रभाव

  • विस्तार और संकुचन: तापमान में बदलाव से इन्सुलेटर सामग्री (जैसे सिरेमिक या ग्लास) में थर्मल विस्तार (thermal expansion) और संकुचन (contraction) होता है। यदि ये परिवर्तन पर्याप्त रूप से बड़े हों, तो वे इन्सुलेटर के अंदर यांत्रिक तनाव पैदा कर सकते हैं, जिससे दरारें पड़ सकती हैं या इसकी संरचना कमजोर हो सकती है।

संक्षेप में, 

तापमान में वृद्धि से इन्सुलेटर की ढांकता हुआ ताकत और प्रतिरोध दोनों कम हो जाते हैं, जिससे इसकी दक्षता और समग्र विश्वसनीयता घट जाती है। इसलिए, इन्सुलेटर का चयन और डिजाइन करते समय उस वातावरण के तापमान को ध्यान में रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है जिसमें इसका उपयोग किया जाएगा।




​ट्रांसमिशन लाइनों में समान वोल्टेज वितरण की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि यह सिस्टम की विश्वसनीयता और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। जब वोल्टेज को इन्सुलेटरों की पूरी श्रृंखला (string of insulators) में समान रूप से वितरित किया जाता है, तो यह कई समस्याओं को रोकता है और प्रदर्शन में सुधार करता है।

​1. फ्लैशओवर की रोकथाम

​अपरिवर्तनशील वोल्टेज वितरण (non-uniform voltage distribution) में, कंडक्टर के सबसे पास के इन्सुलेटर पर सबसे अधिक वोल्टेज स्ट्रेस होता है। यह अत्यधिक वोल्टेज उस इन्सुलेटर की ढांकता हुआ ताकत (dielectric strength) को पार कर सकता है, जिससे फ्लैशओवर (flashover) हो सकता है।  फ्लैशओवर से इन्सुलेटर को नुकसान पहुँच सकता है और बिजली आपूर्ति में रुकावट आ सकती है। समान वोल्टेज वितरण सुनिश्चित करता है कि कोई भी इन्सुलेटर अनावश्यक रूप से अधिक तनाव में न हो, जिससे फ्लैशओवर का जोखिम कम हो जाता है।

​2. इन्सुलेटर का कुशल उपयोग

​यदि वोल्टेज असमान रूप से वितरित होता है, तो कंडक्टर के पास के इन्सुलेटर को अधिकतम वोल्टेज स्ट्रेस का सामना करने के लिए बहुत मजबूत (और महंगा) बनाना पड़ता है, जबकि स्ट्रिंग के अन्य इन्सुलेटरों का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो पाता है। समान वोल्टेज वितरण यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक इन्सुलेटर अपनी पूरी क्षमता से काम करे, जिससे इन्सुलेटरों का कुशल और किफायती उपयोग होता है।

​3. बेहतर स्ट्रिंग दक्षता

स्ट्रिंग दक्षता (string efficiency) वोल्टेज वितरण की एक माप है। 100% दक्षता का मतलब है कि प्रत्येक इन्सुलेटर पर समान वोल्टेज स्ट्रेस है। असमान वितरण से कम स्ट्रिंग दक्षता होती है। समान वोल्टेज वितरण के लिए, स्ट्रिंग दक्षता को 100% के करीब लाना महत्वपूर्ण है, जिससे पूरे सिस्टम की विश्वसनीयता और दीर्घायु बढ़ जाती है।

​कुल मिलाकर, ट्रांसमिशन लाइनों में समान वोल्टेज वितरण को बनाए रखना न केवल उपकरणों की सुरक्षा करता है, बल्कि पूरे सिस्टम की समग्र दक्षता और प्रदर्शन को भी बढ़ाता है।



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