ट्रांसफार्मर की सुरक्षा ( Protection of Transformer )
ट्रांसफार्मर की सुरक्षा विद्युत प्रणाली में एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसकी सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के आंतरिक और बाहरी सुरक्षा उपकरण और रिले का उपयोग किया जाता है ताकि इसे विद्युत दोषों और आंतरिक समस्याओं से बचाया जा सके।
आंतरिक सुरक्षा (Internal Protection)
यह सुरक्षा प्रणाली ट्रांसफार्मर के अंदर होने वाली समस्याओं का पता लगाती है।
- बुखोल्ज़ रिले (Buchholz Relay): यह ट्रांसफार्मर का सबसे महत्वपूर्ण आंतरिक सुरक्षा उपकरण है। यह तेल में डूबे ट्रांसफार्मर में गैस और तेल के प्रवाह का पता लगाता है। जब कोई छोटा दोष होता है, तो गैस बनती है। रिले इस गैस को इकट्ठा करता है और एक अलार्म भेजता है। यदि दोष बड़ा होता है, तो तेल का प्रवाह तेज होता है और रिले तुरंत सर्किट को ट्रिप कर देता है, जिससे ट्रांसफार्मर को अलग किया जा सकता है।
- तापमान सुरक्षा (Temperature Protection): ट्रांसफार्मर के तेल और वाइंडिंग में लगे तापमान सेंसर अत्यधिक गर्मी का पता लगाते हैं। यदि तापमान एक निश्चित सीमा से ऊपर जाता है, तो यह एक अलार्म बजाता है, और यदि यह और बढ़ता है, तो यह ट्रांसफार्मर को बंद कर देता है ताकि वाइंडिंग को नुकसान न हो।
- दबाव राहत उपकरण (Pressure Relief Device - PRD): जब कोई बड़ा आंतरिक दोष होता है, तो अचानक गैस बनती है, जिससे ट्रांसफार्मर टैंक के अंदर दबाव बढ़ जाता है। पीआरडी इस दबाव को तुरंत बाहर निकालता है ताकि टैंक फटने से रोका जा सके।
बाहरी सुरक्षा (External Protection)
यह सुरक्षा प्रणाली ट्रांसफार्मर से जुड़े बाहरी सर्किट में होने वाली समस्याओं का पता लगाती है।
- डिफरेंशियल रिले (Differential Relay): यह रिले ट्रांसफार्मर में प्रवेश करने वाले करंट और बाहर निकलने वाले करंट की तुलना करता है। यदि दोनों करंट में कोई अंतर होता है (जो बाहरी दोषों के कारण नहीं होता), तो यह एक आंतरिक दोष को दर्शाता है, और रिले सर्किट ब्रेकर को ट्रिप कर देता है।
- ओवरकरंट और अर्थ फॉल्ट रिले (Overcurrent and Earth Fault Relay): ये रिले ट्रांसफार्मर को बाहरी ओवरलोड और अर्थ फॉल्ट से बचाते हैं। जब ट्रांसफार्मर में अत्यधिक करंट बहता है, तो ये रिले सक्रिय होते हैं और ट्रांसफार्मर को अलग करने के लिए सर्किट को ट्रिप कर देते हैं।
इन सभी सुरक्षा प्रणालियों का एक साथ काम करना ट्रांसफार्मर की सुरक्षा, उसके जीवनकाल और विद्युत आपूर्ति की विश्वसनीयता सुनिश्चित करता है।
ट्रांसफार्मर संरक्षण का अर्थ है ट्रांसफार्मर को विभिन्न प्रकार के विद्युत दोषों (faults) और असामान्य परिचालन स्थितियों से बचाना। इसका उद्देश्य ट्रांसफार्मर के जीवनकाल को बढ़ाना, महंगी मरम्मत से बचना और बिजली प्रणाली की निरंतरता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है।
ट्रांसफार्मर संरक्षण का महत्व
- उपकरणों की सुरक्षा: ट्रांसफार्मर बहुत महंगे और महत्वपूर्ण उपकरण हैं। इन्हें ओवरलोडिंग, शॉर्ट सर्किट, या आंतरिक खराबी जैसे दोषों से बचाना अत्यंत आवश्यक है।
- बिजली आपूर्ति की निरंतरता: यदि एक ट्रांसफार्मर विफल हो जाता है, तो यह बिजली कटौती का कारण बन सकता है। प्रभावी संरक्षण प्रणाली दोष को तुरंत अलग कर देती है, जिससे व्यवधान कम होता है।
- कर्मचारियों की सुरक्षा: ट्रांसफार्मर में होने वाले बड़े दोषों से आग और विस्फोट हो सकता है, जो आसपास काम करने वाले कर्मचारियों के लिए खतरनाक है। उचित संरक्षण प्रणाली इन जोखिमों को कम करती है।
संरक्षण के मुख्य तरीके
ट्रांसफार्मर को सुरक्षित रखने के लिए कई उपकरणों और तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- सुरक्षात्मक रिले: ये ऐसे उपकरण हैं जो करंट, वोल्टेज या तापमान में असामान्य बदलाव का पता लगाते हैं। यदि वे कोई समस्या पाते हैं, तो वे सर्किट ब्रेकर को एक सिग्नल भेजते हैं ताकि ट्रांसफार्मर को बिजली प्रणाली से अलग किया जा सके।
- सर्किट ब्रेकर: ये स्वचालित स्विच होते हैं जो रिले से सिग्नल मिलने पर सर्किट को खोल देते हैं, जिससे दोषपूर्ण ट्रांसफार्मर को बाकी प्रणाली से अलग किया जा सकता है।
- आंतरिक सुरक्षा उपकरण: इनमें बुखोल्ज़ रिले (जो तेल में बनने वाली गैस का पता लगाता है) और तापमान सेंसर शामिल हैं जो ट्रांसफार्मर के अंदर अत्यधिक गर्मी का पता लगाते हैं।
इन सभी उपायों का सामूहिक उद्देश्य ट्रांसफार्मर को क्षति से बचाना और एक सुरक्षित और विश्वसनीय विद्युत प्रणाली बनाए रखना है।
ट्रांसफार्मर की सुरक्षा इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह न केवल महंगे उपकरणों को क्षति से बचाती है, बल्कि बिजली की निरंतर आपूर्ति, और कर्मचारियों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करती है।
मुख्य कारण
उपकरणों की सुरक्षा: ट्रांसफार्मर किसी भी विद्युत प्रणाली के सबसे महंगे और महत्वपूर्ण घटकों में से एक हैं। इन्हें शॉर्ट सर्किट, ओवरलोडिंग, या इंसुलेशन विफलता जैसे दोषों से बचाना आर्थिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। यदि कोई दोष होता है, तो सुरक्षा प्रणाली इसे तुरंत अलग कर देती है, जिससे ट्रांसफार्मर को स्थायी नुकसान से बचाया जा सकता है।
विश्वसनीयता और निरंतरता: बिना सुरक्षा के, एक छोटा दोष भी पूरी बिजली प्रणाली में एक बड़ी विफलता का कारण बन सकता है, जिससे लंबी बिजली कटौती हो सकती है। सुरक्षा प्रणाली दोषपूर्ण हिस्से को तुरंत अलग करके, बाकी प्रणाली को सामान्य रूप से काम करने देती है, जिससे बिजली की आपूर्ति में व्यवधान कम होता है।
कर्मियों की सुरक्षा: ट्रांसफार्मर में होने वाले बड़े दोष, जैसे चाप (arc) या विस्फोट, आस-पास काम करने वाले कर्मियों के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं। प्रभावी सुरक्षा उपकरण, जैसे बुखोल्ज़ रिले, इन जोखिमों को कम करते हैं और एक सुरक्षित कार्य वातावरण सुनिश्चित करते हैं।
जीवनकाल में वृद्धि: ट्रांसफार्मर को ओवरलोडिंग और अत्यधिक तापमान से बचाकर, सुरक्षा प्रणाली उसके जीवनकाल को बढ़ाती है, जिससे समय से पहले प्रतिस्थापन की आवश्यकता नहीं होती।
संक्षेप में,
ट्रांसफार्मर की सुरक्षा विद्युत प्रणाली के सुचारू, सुरक्षित और विश्वसनीय संचालन के लिए एक अनिवार्य हिस्सा है।
ट्रांसफार्मर में मुख्य रूप से दो प्रकार की खराबी आ सकती है: आंतरिक दोष (Internal Faults) जो ट्रांसफार्मर के अंदर होते हैं, और बाहरी दोष (External Faults) जो ट्रांसफार्मर से जुड़े बाहरी नेटवर्क पर होते हैं।
आंतरिक दोष (Internal Faults)
ये दोष ट्रांसफार्मर के घटकों में उत्पन्न होते हैं और आमतौर पर अधिक गंभीर होते हैं।
- वाइंडिंग के बीच शॉर्ट सर्किट (Short Circuit between Windings): यह सबसे आम आंतरिक दोष है, जहाँ वाइंडिंग के इन्सुलेशन के विफल होने के कारण दो या दो से अधिक वाइंडिंग आपस में जुड़ जाती हैं।
- इन्सुलेशन विफलता (Insulation Failure): वाइंडिंग और कोर के बीच इन्सुलेशन का कमजोर होना या टूट जाना। ऐसा नमी, अत्यधिक गर्मी या उम्र बढ़ने के कारण हो सकता है।
- कोर से संबंधित दोष (Core-related Faults): ट्रांसफार्मर के चुंबकीय कोर में खराबी।
- तेल की खराबी (Oil Deterioration): इन्सुलेटिंग तेल की गुणवत्ता में कमी, जिससे तेल का इन्सुलेशन गुण कम हो जाता है।
बाहरी दोष (External Faults)
ये दोष ट्रांसफार्मर के बाहर, उससे जुड़े बिजली नेटवर्क पर होते हैं।
- ओवरलोडिंग (Overloading): जब ट्रांसफार्मर अपनी निर्धारित क्षमता से अधिक बिजली खींचता है, तो यह गर्म हो जाता है।
- बाहरी शॉर्ट सर्किट (External Short Circuit): ट्रांसफार्मर से जुड़ी ट्रांसमिशन या वितरण लाइनों पर होने वाला शॉर्ट सर्किट।
- अर्थ फॉल्ट (Earth Fault): जब एक विद्युत लाइन गलती से जमीन से संपर्क में आ जाती है।
- वोल्टेज में अचानक वृद्धि (Voltage Surge): यह बिजली गिरने या स्विचिंग ऑपरेशन के कारण हो सकता है।
इन सभी दोषों से ट्रांसफार्मर को बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के सुरक्षा रिले और सर्किट ब्रेकर का उपयोग किया जाता है।
आंतरिक और बाहरी ट्रांसफार्मर दोषों के बीच मुख्य अंतर यह है कि आंतरिक दोष ट्रांसफार्मर के अंदर होते हैं, जबकि बाहरी दोष ट्रांसफार्मर से जुड़े बाहरी नेटवर्क पर होते हैं।
आंतरिक दोष (Internal Faults)
- स्थान: ये दोष ट्रांसफार्मर के भीतर, उसके मुख्य घटकों जैसे वाइंडिंग, कोर या इंसुलेटिंग तेल में होते हैं।
- गंभीरता: आंतरिक दोष आमतौर पर अधिक गंभीर होते हैं और यदि उन्हें तुरंत ठीक न किया जाए तो ट्रांसफार्मर को स्थायी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
-
उदाहरण:
- वाइंडिंग के बीच शॉर्ट सर्किट: वाइंडिंग के इन्सुलेशन के विफल होने के कारण।
- कोर दोष: ट्रांसफार्मर के कोर में खराबी।
- इंसुलेटिंग तेल की खराबी: तेल में नमी या गैस का प्रवेश।
- पता लगाना: इन दोषों का पता लगाने के लिए बुखोल्ज़ रिले और डिफरेंशियल रिले जैसी विशेष सुरक्षा प्रणालियों का उपयोग किया जाता है।
बाहरी दोष (External Faults)
- स्थान: ये दोष ट्रांसफार्मर के बाहर, उससे जुड़े विद्युत नेटवर्क पर होते हैं, जैसे ट्रांसमिशन लाइन या वितरण प्रणाली।
- गंभीरता: ये ट्रांसफार्मर के लिए प्रत्यक्ष रूप से हानिकारक नहीं होते हैं, लेकिन यदि इन्हें जल्दी से अलग न किया जाए तो ये ओवरलोडिंग के कारण ट्रांसफार्मर को गर्म कर सकते हैं और उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं।
-
उदाहरण:
- ओवरलोडिंग: जब ट्रांसफार्मर अपनी निर्धारित क्षमता से अधिक बिजली खींचता है।
- बाहरी शॉर्ट सर्किट: ट्रांसमिशन लाइन पर होने वाला शॉर्ट सर्किट।
- अर्थ फॉल्ट: जब कोई लाइन जमीन से संपर्क में आ जाती है।
- पता लगाना: इन दोषों का पता लगाने के लिए ओवरकरंट रिले और अर्थ फॉल्ट रिले का उपयोग किया जाता है, जो सर्किट ब्रेकर को ट्रिप करते हैं।
संक्षेप में,
आंतरिक दोष ट्रांसफार्मर के जीवन के लिए सीधा खतरा होते हैं, जबकि बाहरी दोष अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं और उन्हें अलग करके ट्रांसफार्मर को सुरक्षित किया जाता है।
ट्रांसफार्मर की विफलता के सामान्य कारण विद्युत संबंधी, यांत्रिक और पर्यावरणीय कारकों का संयोजन होते हैं। इन कारणों से ट्रांसफार्मर के महत्वपूर्ण घटक क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, जिससे अंततः यह काम करना बंद कर देता है।
मुख्य कारण
- इंसुलेशन विफलता (Insulation Failure): यह ट्रांसफार्मर की विफलता का सबसे आम कारण है। वाइंडिंग और कोर के बीच का इन्सुलेशन (जैसे तेल और पेपर) समय के साथ गर्मी, नमी, या अत्यधिक वोल्टेज के कारण कमजोर हो जाता है। जब यह इन्सुलेशन विफल होता है, तो आंतरिक शॉर्ट सर्किट होता है।
- ओवरलोडिंग (Overloading): ट्रांसफार्मर को उसकी निर्धारित क्षमता से अधिक लोड पर चलाने से वाइंडिंग और तेल का तापमान बढ़ जाता है। यह अत्यधिक गर्मी इन्सुलेशन के जीवनकाल को काफी कम कर देती है और समय से पहले विफलता का कारण बनती है।
- वोल्टेज सर्ज (Voltage Surge): बिजली गिरने या स्विचिंग ऑपरेशन के कारण उत्पन्न होने वाले अचानक, उच्च वोल्टेज के झटके (surges) ट्रांसफार्मर के इन्सुलेशन और वाइंडिंग को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
- ढीले कनेक्शन (Loose Connections): ट्रांसफार्मर के अंदर और बाहर केबल और वाइंडिंग के ढीले कनेक्शन उच्च प्रतिरोध पैदा करते हैं। यह प्रतिरोध गर्मी उत्पन्न करता है, जिससे आसपास के इन्सुलेशन को नुकसान होता है और आग लगने का जोखिम बढ़ जाता है।
- रखरखाव की कमी (Lack of Maintenance): यदि ट्रांसफार्मर का नियमित रखरखाव नहीं किया जाता है, तो तेल की गुणवत्ता खराब हो सकती है, पंखे और पंप जैसे कूलिंग सिस्टम विफल हो सकते हैं, और छोटे दोष बड़े समस्याओं में बदल सकते हैं।
इन कारणों को शुरुआती चरण में ही पहचान कर और निवारक उपाय अपनाकर ट्रांसफार्मर के जीवनकाल को बढ़ाया जा सकता है और उसकी विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सकती है।
बुखोल्ज़ रिले एक गैस-चालित सुरक्षा उपकरण है जिसका उपयोग तेल-डूबे हुए ट्रांसफार्मर में होने वाली आंतरिक खराबी का पता लगाने के लिए किया जाता है। इसका नाम जर्मन आविष्कारक मैक्स बुखोल्ज़ के नाम पर रखा गया है।
यह कैसे काम करता है?
बुखोल्ज़ रिले को ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक और उसके कंजरवेटर टैंक के बीच की पाइपलाइन में लगाया जाता है। यह दो मुख्य तरीकों से काम करता है:
- छोटी खराबी के लिए (अलार्म): जब ट्रांसफार्मर में कोई छोटी खराबी (जैसे हल्का ओवरहीटिंग) होती है, तो इंसुलेटिंग तेल विघटित होता है और गैस के छोटे बुलबुले बनते हैं। ये बुलबुले ऊपर की ओर बढ़ते हैं, रिले के अंदर जमा हो जाते हैं, और एक ऊपरी फ्लोट को नीचे धकेलते हैं। यह फ्लोट एक स्विच को सक्रिय करता है, जो एक अलार्म बजाता है। यह ऑपरेटर को एक संभावित समस्या के बारे में चेतावनी देता है।
- गंभीर खराबी के लिए (ट्रिप): जब कोई बड़ी खराबी (जैसे गंभीर शॉर्ट सर्किट) होती है, तो यह बहुत तेजी से बड़ी मात्रा में गैस और तेल के दबाव का कारण बनती है। यह दबाव रिले के माध्यम से तेल को तेजी से कंजरवेटर टैंक की ओर धकेलता है। तेल का यह तेज़ प्रवाह रिले के अंदर एक निचले फ्लोट या फ्लैप को सक्रिय करता है, जो सर्किट ब्रेकर को एक ट्रिप सिग्नल भेजता है। यह सिग्नल तुरंत ट्रांसफार्मर को बिजली के स्रोत से अलग कर देता है, जिससे इसे और अधिक नुकसान से बचाया जा सकता है।
इसका उपयोग कहाँ किया जाता है?
बुखोल्ज़ रिले का उपयोग सभी तेल-डूबे हुए ट्रांसफार्मर में किया जाता है, जिनके पास कंजरवेटर टैंक होता है। यह एक अनिवार्य सुरक्षा उपकरण है, खासकर बड़े ट्रांसमिशन और वितरण ट्रांसफार्मर के लिए, क्योंकि यह कई प्रकार की आंतरिक खराबी (जैसे वाइंडिंग दोष) का पता लगा सकता है और ट्रांसफार्मर को बड़े नुकसान से बचा सकता है। यह ट्रांसफार्मर की सुरक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
बुखोल्ज़ रिले का कार्य सिद्धांत गैस और तेल के दबाव पर आधारित है जो ट्रांसफार्मर के अंदर उत्पन्न होता है जब कोई दोष होता है। यह ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक और उसके कंजरवेटर टैंक के बीच की पाइपलाइन में स्थापित होता है।
कार्य सिद्धांत के मुख्य चरण
- सामान्य स्थिति (Normal Condition): जब ट्रांसफार्मर सामान्य रूप से काम कर रहा होता है, तो रिले तेल से भरा होता है। इसके अंदर दो फ्लोट (float) होते हैं, एक ऊपर और एक नीचे, जो अपनी निर्धारित स्थिति में होते हैं।
- छोटी खराबी (Minor Fault): जब कोई छोटी खराबी (जैसे वाइंडिंग में हल्का ओवरहीटिंग या कोर में स्थानीय दोष) होती है, तो ट्रांसफार्मर का इंसुलेटिंग तेल विघटित होता है और गैस के छोटे बुलबुले बनाता है। ये गैस के बुलबुले हल्के होने के कारण ऊपर की ओर बढ़ते हैं और रिले के शीर्ष पर जमा हो जाते हैं। गैस के जमाव के कारण, रिले का ऊपरी फ्लोट धीरे-धीरे नीचे आता है। जब यह एक निश्चित स्तर तक नीचे आता है, तो यह एक स्विच को सक्रिय करता है जो एक अलार्म बजाता है। यह ऑपरेटर को यह चेतावनी देता है कि ट्रांसफार्मर में एक संभावित समस्या है।
- गंभीर खराबी (Major Fault): जब कोई बड़ी खराबी (जैसे शॉर्ट सर्किट) होती है, तो यह बहुत तेजी से बड़ी मात्रा में गैस और तेल का वाष्पीकरण करती है। इस प्रक्रिया से ट्रांसफार्मर के अंदर अत्यधिक दबाव बनता है। यह दबाव रिले के माध्यम से तेल को तेजी से कंजरवेटर टैंक की ओर धकेलता है। तेल का यह तेज प्रवाह रिले के निचले फ्लोट को अपनी मूल स्थिति से हटा देता है। यह निचला फ्लोट एक दूसरे स्विच को सक्रिय करता है, जो सर्किट ब्रेकर को एक ट्रिप सिग्नल भेजता है। यह सिग्नल तुरंत ट्रांसफार्मर को बिजली के स्रोत से अलग कर देता है, जिससे इसे बड़े नुकसान और आग के जोखिम से बचाया जा सकता है।
संक्षेप में,
बुखोल्ज़ रिले गैस और तेल के प्रवाह का पता लगाकर काम करता है और ट्रांसफार्मर को आंतरिक दोषों से बचाने के लिए एक दो-चरण (अलार्म और ट्रिप) सुरक्षा प्रणाली प्रदान करता है।
बुखोल्ज़ रिले एक बहुमुखी सुरक्षा उपकरण है जो तेल-डूबे हुए ट्रांसफार्मर में कई प्रकार के आंतरिक दोषों का पता लगा सकता है। यह दोष की गंभीरता के आधार पर, या तो अलार्म या ट्रिप सिग्नल भेजता है।
छोटे दोष (जो अलार्म बजाते हैं)
ये दोष आमतौर पर गैस का धीरे-धीरे निर्माण करते हैं। बुखोल्ज़ रिले इन गैसों को इकट्ठा करके एक चेतावनी (अलार्म) जारी करता है।
- स्थानीय ओवरहीटिंग: वाइंडिंग या कोर के किसी हिस्से में अत्यधिक गर्मी।
- इंसुलेशन की शुरुआती खराबी: वाइंडिंग के इन्सुलेशन का धीरे-धीरे कमजोर होना।
- ढीले कनेक्शन: ट्रांसफार्मर के अंदर केबलों के ढीले कनेक्शन जो स्पार्किंग का कारण बनते हैं।
- कोर में दोष: चुंबकीय कोर में छोटा दोष जो स्थानीय हीटिंग का कारण बनता है।
गंभीर दोष (जो ट्रिप सिग्नल भेजते हैं)
ये दोष अचानक बड़ी मात्रा में गैस या तेल के दबाव का कारण बनते हैं, जिससे रिले तुरंत ट्रिप हो जाता है।
- गंभीर शॉर्ट सर्किट: वाइंडिंग के बीच या वाइंडिंग और टैंक के बीच एक बड़ा शॉर्ट सर्किट।
- अर्थ फॉल्ट: जब कोई वाइंडिंग ट्रांसफार्मर के कोर या टैंक से संपर्क में आती है।
- आंतरिक चाप (Internal Arc): एक उच्च ऊर्जा वाला विद्युत चाप जो तेल को तेजी से वाष्पित करता है।
संक्षेप में,
बुखोल्ज़ रिले ट्रांसफार्मर के अंदर होने वाली लगभग सभी प्रकार की आंतरिक खराबी का पता लगाने में सक्षम है, जिससे यह ट्रांसफार्मर की सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन जाता है।
बुखोल्ज़ रिले में अलार्म और ट्रिप ऑपरेशन के बीच का मुख्य अंतर यह है कि अलार्म एक चेतावनी है जो संभावित समस्या का संकेत देती है, जबकि ट्रिप एक तत्काल क्रिया है जो ट्रांसफार्मर को गंभीर नुकसान से बचाने के लिए बिजली आपूर्ति से अलग कर देती है।
अलार्म ऑपरेशन (Alarm Operation)
- उद्देश्य: छोटे दोषों का पता लगाना जो धीरे-धीरे विकसित हो रहे हैं।
- कारण: ट्रांसफार्मर के अंदर छोटी मात्रा में गैस का धीरे-धीरे जमा होना। ऐसा हल्के ओवरहीटिंग, इन्सुलेशन की शुरुआती खराबी, या ढीले कनेक्शन के कारण हो सकता है।
- कार्यप्रणाली: जब गैस रिले के ऊपरी हिस्से में जमा होती है, तो यह ऊपरी फ्लोट (float) को नीचे की ओर धकेलती है। यह फ्लोट एक स्विच को सक्रिय करता है, जो एक अलार्म बजाता है।
- परिणाम: ऑपरेटर को संभावित समस्या के बारे में सूचित किया जाता है, जिससे वे ट्रांसफार्मर का निरीक्षण कर सकते हैं और समस्या के बढ़ने से पहले उसे ठीक कर सकते हैं। यह तत्काल बिजली कटौती का कारण नहीं बनता है।
ट्रिप ऑपरेशन (Trip Operation)
- उद्देश्य: गंभीर दोषों से ट्रांसफार्मर को तत्काल सुरक्षा प्रदान करना।
- कारण: ट्रांसफार्मर के अंदर अचानक और बड़ी मात्रा में गैस या तेल का दबाव बनना। ऐसा गंभीर शॉर्ट सर्किट या आंतरिक चाप (arc) के कारण होता है।
- कार्यप्रणाली: जब कोई बड़ा दोष होता है, तो तेल और गैस का तेज़ प्रवाह रिले के माध्यम से होता है। यह प्रवाह निचले फ्लोट या फ्लैप को अपनी जगह से हटा देता है। यह फ्लैप एक दूसरे स्विच को सक्रिय करता है, जो सर्किट ब्रेकर को एक ट्रिप सिग्नल भेजता है।
- परिणाम: सर्किट ब्रेकर तुरंत ट्रांसफार्मर को बिजली के स्रोत से अलग कर देता है। इससे ट्रांसफार्मर को स्थायी क्षति, विस्फोट और आग लगने के जोखिम से बचाया जा सकता है। यह एक निवारक कार्रवाई है जो ट्रांसफार्मर को बचाने के लिए की जाती है।
बुखोल्ज़ रिले का उपयोग केवल तेल से भरे ट्रांसफार्मर में इसलिए किया जाता है क्योंकि इसका कार्य सिद्धांत तेल के अपघटन (decomposition) से उत्पन्न होने वाली गैस और तेल के प्रवाह पर निर्भर करता है।
कार्य सिद्धांत और तेल का संबंध
बुखोल्ज़ रिले को ट्रांसफार्मर के कंजरवेटर टैंक और मुख्य टैंक के बीच की पाइपलाइन में लगाया जाता है। जब ट्रांसफार्मर के अंदर कोई खराबी होती है, तो यह अत्यधिक गर्मी उत्पन्न करती है।
- गैस का निर्माण: यह गर्मी ट्रांसफार्मर के इंसुलेटिंग तेल को विघटित कर देती है, जिससे गैस के बुलबुले बनते हैं। ये बुलबुले हल्के होने के कारण ऊपर की ओर बढ़ते हैं और रिले में जमा हो जाते हैं, जिससे यह अलार्म बजाता है।
- तेल का प्रवाह: एक बड़ी खराबी के दौरान, अचानक बहुत अधिक गर्मी और गैस बनती है, जिससे तेल का दबाव बढ़ता है और यह रिले के माध्यम से कंजरवेटर टैंक की ओर तेजी से बहता है। इस प्रवाह से रिले का फ्लैप सक्रिय होता है और ट्रांसफार्मर को ट्रिप करता है।
इन दोनों क्रियाओं (गैस का निर्माण और तेल का प्रवाह) के लिए तेल की उपस्थिति आवश्यक है।
अन्य ट्रांसफार्मर प्रकार
ड्राई-टाइप ट्रांसफार्मर में कोई इंसुलेटिंग तेल नहीं होता है; इसके बजाय, वे हवा या ठोस इन्सुलेशन का उपयोग करते हैं। चूंकि इनमें तेल नहीं होता है, इसलिए कोई भी आंतरिक दोष गैस या तेल का प्रवाह उत्पन्न नहीं करता है जिसे बुखोल्ज़ रिले द्वारा पता लगाया जा सके। इस कारण से, बुखोल्ज़ रिले ऐसे ट्रांसफार्मर के लिए अनुपयुक्त है।
ट्रांसफार्मर का विभेदक संरक्षण (Differential Protection) एक अत्यधिक संवेदनशील सुरक्षा योजना है जो किर्चॉफ के वर्तमान नियम के सिद्धांत पर काम करती है। इसका उपयोग मुख्य रूप से ट्रांसफार्मर के भीतर होने वाले आंतरिक दोषों (internal faults) का पता लगाने के लिए किया जाता है।
कार्य सिद्धांत
साधारण परिचालन स्थितियों में, ट्रांसफार्मर में प्रवेश करने वाला कुल करंट (primary side) उसके बाहर निकलने वाले कुल करंट (secondary side) के बराबर होता है (रूपांतरण अनुपात को ध्यान में रखते हुए)। इसलिए, दोनों धाराओं के बीच का अंतर शून्य होता है।
विभेदक संरक्षण में, दो करंट ट्रांसफार्मर (CT) का उपयोग किया जाता है: एक ट्रांसफार्मर के प्राइमरी साइड पर और दूसरा सेकेंडरी साइड पर। ये सीटी दोनों धाराओं को मापते हैं और उनके मानों को एक विभेदक रिले (Differential Relay) को भेजते हैं।
- सामान्य स्थिति में: रिले में प्रवेश करने वाली धाराओं का अंतर लगभग शून्य होता है, इसलिए रिले निष्क्रिय रहता है।
- आंतरिक दोष की स्थिति में: जब ट्रांसफार्मर के अंदर कोई दोष (जैसे वाइंडिंग में शॉर्ट सर्किट) होता है, तो दोष बिंदु की ओर एक भारी करंट बहता है। इस कारण, ट्रांसफार्मर में प्रवेश करने वाला करंट और बाहर निकलने वाला करंट असंतुलित हो जाता है। यह असंतुलन एक बड़े अंतर करंट का कारण बनता है जो रिले में प्रवेश करता है। जब यह अंतर एक पूर्व-निर्धारित मान से अधिक होता है, तो रिले तुरंत सर्किट ब्रेकर को एक ट्रिप सिग्नल भेजता है।
लाभ
- उच्च संवेदनशीलता: यह आंतरिक दोषों के प्रति बहुत संवेदनशील है और उनका तुरंत पता लगा सकता है।
- चयनात्मकता (Selectivity): यह केवल ट्रांसफार्मर के अंदर होने वाले दोषों के लिए काम करता है, और बाहरी दोषों (जैसे ओवरलोड या बाहरी शॉर्ट सर्किट) के लिए यह काम नहीं करेगा।
इस प्रकार,
विभेदक संरक्षण बड़े और महत्वपूर्ण ट्रांसफार्मर की सुरक्षा के लिए एक विश्वसनीय और प्रभावी विधि है।
ट्रांसफार्मर का विभेदक संरक्षण किर्चॉफ के वर्तमान नियम के सिद्धांत पर आधारित है, जो बताता है कि एक नोड में प्रवेश करने वाले और बाहर निकलने वाले धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है। यह सिद्धांत ट्रांसफार्मर के प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच करंट के अंतर को मापकर आंतरिक दोषों का पता लगाता है।
सिद्धांत की व्याख्या
- सामान्य परिचालन (Normal Operation): जब ट्रांसफार्मर सामान्य रूप से काम कर रहा होता है, तो प्राथमिक वाइंडिंग में प्रवेश करने वाला करंट और द्वितीयक वाइंडिंग से बाहर निकलने वाला करंट एक निश्चित अनुपात में होता है। इस योजना में, दोनों वाइंडिंग के दोनों तरफ करंट ट्रांसफार्मर (CT) लगाए जाते हैं। इन सीटी को इस तरह से जोड़ा जाता है कि उनके सेकेंडरी से निकलने वाला करंट एक विभेदक रिले (Differential Relay) में जाता है। सामान्य स्थिति में, दोनों धाराओं का अंतर (difference) शून्य होता है, और रिले निष्क्रिय रहता है।
- बाहरी दोष (External Fault): यदि ट्रांसफार्मर के बाहर (जैसे ट्रांसमिशन लाइन पर) कोई दोष होता है, तो प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग में धाराओं का मान बढ़ जाता है, लेकिन उनका अनुपात समान रहता है। इससे रिले में प्रवेश करने वाली धाराओं का अंतर शून्य के करीब रहता है, और रिले काम नहीं करता है। यह योजना की चयनात्मकता (selectivity) को सुनिश्चित करता है।
- आंतरिक दोष (Internal Fault): जब ट्रांसफार्मर के अंदर कोई दोष होता है (जैसे वाइंडिंग में शॉर्ट सर्किट), तो दोष बिंदु की ओर एक अतिरिक्त करंट बहने लगता है। इस कारण, प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग के करंट का अनुपात बिगड़ जाता है। यह असंतुलन एक बड़ा अंतर करंट उत्पन्न करता है जो विभेदक रिले में प्रवेश करता है। जब यह अंतर एक पूर्व-निर्धारित मान से अधिक होता है, तो रिले तुरंत सक्रिय होता है और ट्रांसफार्मर के प्राइमरी और सेकेंडरी साइड के सर्किट ब्रेकर को ट्रिप सिग्नल भेजता है। यह सिग्नल दोनों तरफ से बिजली की आपूर्ति काट देता है, जिससे ट्रांसफार्मर को स्थायी क्षति से बचाया जा सकता है।
संक्षेप में,
विभेदक संरक्षण का सिद्धांत ट्रांसफार्मर के भीतर एक "सुरक्षात्मक क्षेत्र" बनाता है और केवल तभी कार्य करता है जब इस क्षेत्र के अंदर धाराओं का असंतुलन होता है।
प्रतिशत अंतर संरक्षण (Percentage Differential Protection) विभेदक संरक्षण का एक उन्नत और अधिक स्थिर रूप है। यह रिले को गलत ट्रिपिंग (false tripping) से बचाने के लिए, प्राथमिक और द्वितीयक धाराओं के बीच के अंतर की तुलना उनके औसत से करता है।
सिद्धांत और कार्यप्रणाली
साधारण विभेदक संरक्षण में, यदि प्राथमिक और द्वितीयक धाराओं में मामूली अंतर भी होता है (उदाहरण के लिए, करंट ट्रांसफार्मर की त्रुटियों के कारण), तो रिले गलती से ट्रिप हो सकता है। प्रतिशत अंतर संरक्षण इस समस्या को हल करता है।
यह एक विशेष रिले का उपयोग करता है जिसमें दो प्रकार की कॉइल होती हैं:
- परिचालन कॉइल (Operating Coil): यह कॉइल दो धाराओं के बीच के अंतर से सक्रिय होती है। जब अंतर करंट इस कॉइल से गुजरता है, तो यह एक ट्रिपिंग बल उत्पन्न करता है।
- प्रतिबंधक कॉइल (Restraining Coil): यह कॉइल दोनों धाराओं के योग (या औसत) से सक्रिय होती है। यह एक प्रतिबंधक बल उत्पन्न करती है जो ट्रिपिंग बल का विरोध करता है।
ट्रिपिंग की शर्त: रिले केवल तभी ट्रिप होगा जब परिचालन कॉइल द्वारा उत्पन्न बल प्रतिबंधक कॉइल द्वारा उत्पन्न बल से अधिक हो। दूसरे शब्दों में, विभेदक करंट (अंतर) तभी ट्रिप करेगा जब वह कुल औसत करंट के एक निश्चित प्रतिशत (जैसे 10% या 20%) से अधिक हो।
लाभ
- गलत ट्रिपिंग से बचाव: यह रिले को मामूली CT त्रुटियों, चुंबकीय इनरश करंट या ट्रांसफार्मर के टेप-चेंजर ऑपरेशन के दौरान होने वाले सामान्य असंतुलन से बचाता है।
- उच्च विश्वसनीयता: यह ट्रांसफार्मर की सुरक्षा को बहुत अधिक विश्वसनीय बनाता है और अनावश्यक बिजली कटौती को रोकता है।
संक्षेप में,
प्रतिशत अंतर संरक्षण एक बुद्धिमान सुरक्षा योजना है जो यह सुनिश्चित करती है कि रिले केवल तभी कार्य करे जब कोई वास्तविक और गंभीर आंतरिक दोष हो।
विभेदक संरक्षण में प्रतिशत पूर्वाग्रह (Percentage Bias or Restraint) का उपयोग इसलिए किया जाता है ताकि रिले को गलत ट्रिपिंग (false tripping) से बचाया जा सके, जिससे बिजली की अनावश्यक कटौती नहीं होती।
पूर्वाग्रह का उद्देश्य और कारण
साधारण विभेदक संरक्षण में, रिले प्राथमिक और द्वितीयक धाराओं के बीच के अंतर पर काम करता है। हालांकि, कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं जब ये धाराएं सामान्य परिचालन के दौरान भी पूरी तरह से संतुलित नहीं होती हैं, जिससे रिले गलती से ट्रिप हो सकता है।
ये स्थितियाँ हैं:
- करंट ट्रांसफार्मर (CT) की त्रुटियां: विभिन्न CTs में थोड़ी बहुत निर्माण और सैचुरेशन (saturation) त्रुटियाँ हो सकती हैं, जिससे उनके आउटपुट करंट में एक छोटा, लेकिन निरंतर अंतर होता है।
- चुंबकीय इनरश करंट (Magnetic Inrush Current): जब ट्रांसफार्मर को पहली बार ऊर्जा दी जाती है, तो यह कुछ समय के लिए एक बड़ा, असंतुलित इनरश करंट खींचता है। यह करंट आंतरिक दोष नहीं होता, लेकिन यह साधारण विभेदक रिले को ट्रिप कर सकता है।
- टेप-चेंजर ऑपरेशन: जब ट्रांसफार्मर का वोल्टेज टेप-चेंजर काम करता है, तो प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग का अनुपात क्षण भर के लिए बदल जाता है, जिससे धाराओं में असंतुलन पैदा होता है।
प्रतिशत पूर्वाग्रह कैसे काम करता है
प्रतिशत पूर्वाग्रह यह सुनिश्चित करता है कि रिले केवल तभी ट्रिप हो जब धाराओं में अंतर उनके औसत के एक निश्चित प्रतिशत से अधिक हो।
- यह रिले में एक प्रतिबंधक कॉइल (Restraining Coil) जोड़कर किया जाता है जो दोनों धाराओं के औसत से सक्रिय होता है।
- यह कॉइल एक ऐसा बल उत्पन्न करता है जो ट्रिपिंग बल का विरोध करता है।
- रिले केवल तभी ट्रिप होगा जब अंतर करंट, औसत करंट के एक पूर्व-निर्धारित प्रतिशत (जैसे 10% से 30%) से अधिक हो।
इस तरह,
प्रतिशत पूर्वाग्रह एक सुरक्षात्मक मार्जिन प्रदान करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि रिले केवल वास्तविक आंतरिक दोषों के लिए ही कार्य करे, और बिजली की विश्वसनीयता और प्रणाली की स्थिरता बनी रहे।
ट्रांसफार्मर डिफरेंशियल प्रोटेक्शन में सीटी (करंट ट्रांसफार्मर) अनुपात में सुधार के लिए दो मुख्य तरीके हैं: टैप मुआवजा (Tap Compensation) और सहायक सीटी (Auxiliary CTs) का उपयोग। ये विधियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि सामान्य संचालन या बाहरी फॉल्ट की स्थिति में ट्रांसफार्मर के प्राइमरी और सेकेंडरी साइड के सीटी से मापी गई धाराएँ बराबर हों, जिससे रिले को गलत ट्रिप होने से रोका जा सके।
1. टैप मुआवजा (Tap Compensation)
यह आधुनिक डिजिटल और न्यूमेरिकल रिले में सबसे आम तरीका है। इसमें, सीटी के अनुपात को भौतिक रूप से बदलने के बजाय, रिले के सॉफ्टवेयर के माध्यम से गणितीय गणनाओं द्वारा करंट के अनुपात को समायोजित किया जाता है।
- कैसे काम करता है: रिले प्रत्येक वाइंडिंग (प्राथमिक, द्वितीयक, आदि) के लिए एक "टैप" सेटिंग को कॉन्फ़िगर करने की अनुमति देता है। यह सेटिंग एक गुणक (multiplier) के रूप में कार्य करती है जो रिले द्वारा मापी गई करंट को ट्रांसफार्मर के पूर्ण-लोड (full-load) करंट के आधार पर सामान्यीकृत (normalized) करती है। इस तरह, रिले के अंदर सभी करंट को एक सामान्य आधार पर लाया जाता है।
- उदाहरण: यदि ट्रांसफार्मर के प्राइमरी और सेकेंडरी साइड पर अलग-अलग सीटी अनुपात (जैसे 100/5A और 200/5A) हैं, तो रिले सॉफ्टवेयर में इन अनुपातों को दर्ज किया जाता है। रिले तब इनपुट करंट को आंतरिक रूप से समायोजित करता है ताकि उनके बीच का अनुपात ट्रांसफार्मर के टर्न रेशियो के बराबर हो, जिससे डिफरेंशियल करंट शून्य या बहुत कम हो जाए।
2. सहायक सीटी (Auxiliary CTs)
यह पारंपरिक, इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले के लिए एक भौतिक विधि है। इसमें, मुख्य सीटी के आउटपुट में अतिरिक्त छोटे सीटी जोड़े जाते हैं ताकि उनका अनुपात और फेज शिफ्ट सही हो सके।
-
कैसे काम करता है: सहायक सीटी को इस तरह से चुना जाता है कि वे मुख्य सीटी के सेकेंडरी करंट को संशोधित कर सकें। इनका उपयोग दो उद्देश्यों के लिए किया जाता है:
- अनुपात सुधार (Ratio Correction): सहायक सीटी के टर्न रेशियो को समायोजित करके, यह सुनिश्चित किया जाता है कि प्राइमरी और सेकेंडरी साइड के करंट का अनुपात ट्रांसफार्मर के अनुपात से मेल खाता है।
- फेज शिफ्ट सुधार (Phase Shift Correction): स्टार-डेल्टा (Y-Δ) जैसे ट्रांसफार्मर कनेक्शन में 30° का फेज शिफ्ट होता है। इस फेज शिफ्ट को समाप्त करने के लिए सहायक सीटी को डेल्टा या स्टार में कनेक्ट किया जा सकता है, ताकि रिले को इनपुट करंट एक ही फेज में मिलें।
अतिरिक्त कारक (Additional Factors)
- फेज मुआवजा (Phase Compensation): सीटी अनुपात के सुधार के अलावा, ट्रांसफार्मर डिफरेंशियल प्रोटेक्शन में फेज शिफ्ट का मुआवजा भी उतना ही महत्वपूर्ण है, खासकर स्टार-डेल्टा ट्रांसफार्मर के लिए। आधुनिक रिले यह सुधार भी सॉफ्टवेयर के माध्यम से ही कर देते हैं।
- बायसिंग (Biasing): CTs में मामूली त्रुटियों और ट्रांसफार्मर के ऑन-लोड टैप चेंजर (OLTC) के कारण सामान्य संचालन में भी थोड़ी सी डिफरेंशियल करंट बहती है। इस समस्या से बचने के लिए, बायसिंग का उपयोग किया जाता है। यह एक ऐसी सुविधा है जो डिफरेंशियल करंट को एक निश्चित सीमा से कम रहने पर रिले को ट्रिप होने से रोकती है, जिससे स्थिरता बढ़ती है।
ट्रांसफार्मर में ओवरकरंट तब होता है जब ट्रांसफार्मर अपनी निर्धारित क्षमता से अधिक विद्युत धारा वहन करता है, जिससे इसकी वाइंडिंग और इन्सुलेशन को नुकसान हो सकता है। ओवरकरंट प्रोटेक्शन एक सुरक्षा प्रणाली है जो ट्रांसफार्मर को इन हानिकारक स्थितियों से बचाने के लिए उपयोग की जाती है। यह प्रणाली फॉल्ट (जैसे शॉर्ट सर्किट) या ओवरलोड की स्थिति में ट्रांसफार्मर को बिजली स्रोत से डिस्कनेक्ट करके क्षति को रोकती है।
ओवरकरंट के कारण
ओवरकरंट की स्थिति कई कारणों से उत्पन्न हो सकती है, जिनमें शामिल हैं:
- शॉर्ट सर्किट (Short Circuit): यह सबसे गंभीर स्थिति है, जहां वाइंडिंग या बाहरी लाइन में अचानक कम प्रतिरोध वाला पथ बन जाता है। इससे धारा का मान बहुत तेज़ी से और अत्यधिक बढ़ जाता है।
- ओवरलोड (Overload): जब ट्रांसफार्मर से जुड़ी मांग उसकी डिज़ाइन क्षमता से अधिक हो जाती है, तो यह ओवरलोड कहलाता है। यह स्थिति कम हानिकारक होती है लेकिन लंबे समय तक जारी रहने पर ट्रांसफार्मर को गर्म कर सकती है और उसकी जीवनकाल को कम कर सकती है।
- अर्थ फॉल्ट (Earth Fault): जब एक फेज का तार गलती से जमीन से जुड़ जाता है, तो यह भी अत्यधिक धारा प्रवाह का कारण बनता है।
ओवरकरंट प्रोटेक्शन के तरीके
ट्रांसफार्मर को ओवरकरंट से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरणों और रिले का उपयोग किया जाता है।
-
ओवरकरंट रिले (Overcurrent Relay): यह एक मुख्य सुरक्षा उपकरण है। यह एक सेंसिंग तंत्र का उपयोग करता है (जैसे कि करंट ट्रांसफार्मर - CT) जो ट्रांसफार्मर से बहने वाली धारा की निगरानी करता है। जब धारा का मान एक पूर्व-निर्धारित सीमा (सेटिंग) से अधिक हो जाता है, तो रिले ट्रिप होने के लिए एक सिग्नल भेजता है।
- टाइम-डिले (Time-Delay): यह रिले को कुछ समय के लिए अत्यधिक धारा को सहन करने की अनुमति देता है, जिससे क्षणिक (temporary) लोड बढ़ने पर ट्रिपिंग से बचा जा सके।
- तत्काल (Instantaneous): यह रिले बहुत ही उच्च धाराओं (शॉर्ट सर्किट) के लिए होती है और बिना किसी देरी के तुरंत ट्रिप करती है।
- सर्किट ब्रेकर (Circuit Breaker): यह एक स्विचिंग डिवाइस है जो रिले से सिग्नल मिलने पर सर्किट को खोलता है। यह ट्रांसफार्मर को फॉल्ट करंट से पूरी तरह से अलग कर देता है।
- फ्यूज (Fuse): छोटे ट्रांसफार्मर के लिए, फ्यूज एक सरल और प्रभावी सुरक्षा उपाय है। इसमें एक पतला तार होता है जो अत्यधिक धारा के कारण पिघल जाता है, जिससे सर्किट टूट जाता है।
- बैकअप प्रोटेक्शन (Backup Protection): यदि मुख्य सुरक्षा (जैसे कि डिफरेंशियल प्रोटेक्शन) विफल हो जाती है, तो ओवरकरंट प्रोटेक्शन बैकअप के रूप में कार्य करता है। इसे आमतौर पर मुख्य सुरक्षा से थोड़े अधिक समय-विलंब (time-delay) पर सेट किया जाता है।
बड़े ट्रांसफार्मर के लिए केवल ओवरकरंट प्रोटेक्शन पर्याप्त नहीं है क्योंकि यह कई प्रकार के आंतरिक फॉल्ट्स (internal faults) का पता लगाने में अक्षम होता है और इसकी ऑपरेटिंग स्पीड (operating speed) भी धीमी हो सकती है। ये बड़े ट्रांसफार्मर, जो बिजली ग्रिड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, को गंभीर नुकसान से बचाने के लिए ओवरकरंट के अलावा अन्य उन्नत सुरक्षा प्रणालियों की आवश्यकता होती है।
ओवरकरंट प्रोटेक्शन की सीमाएं
- ओवरलोड बनाम आंतरिक फॉल्ट में अंतर न कर पाना: ओवरकरंट रिले सिर्फ धारा के मान (magnitude) के आधार पर काम करती है। यह इस बात का अंतर नहीं कर पाती कि धारा में वृद्धि किसी बाहरी ओवरलोड के कारण हुई है या ट्रांसफार्मर के अंदर किसी गंभीर फॉल्ट जैसे वाइंडिंग शॉर्ट सर्किट या कोर फॉल्ट के कारण।
- विलंबित प्रतिक्रिया (Time Delay): बड़े ट्रांसफार्मरों को सुरक्षित रखने के लिए अति-तेज प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है। ओवरकरंट रिले में अक्सर जानबूझकर समय-विलंब (time delay) दिया जाता है ताकि यह क्षणिक ओवरलोड पर ट्रिप न हो। हालांकि, इस देरी के दौरान एक गंभीर आंतरिक फॉल्ट ट्रांसफार्मर को स्थायी रूप से क्षति पहुँचा सकता है।
- संवेदनशीलता की कमी (Lack of Sensitivity): कुछ आंतरिक फॉल्ट, जैसे कि इंटर-टर्न फॉल्ट (inter-turn fault), शुरू में केवल थोड़ी मात्रा में धारा में वृद्धि का कारण बनते हैं। ओवरकरंट प्रोटेक्शन इन छोटे फॉल्ट्स का पता लगाने के लिए पर्याप्त संवेदनशील नहीं होता, जबकि ये फॉल्ट समय के साथ बड़े और विनाशकारी बन सकते हैं।
- फॉल्ट का स्थान निर्धारित न कर पाना: ओवरकरंट प्रोटेक्शन यह नहीं बता सकता कि फॉल्ट ट्रांसफार्मर के अंदर है या बाहर। इस कारण से, यह अनावश्यक रूप से ट्रिप हो सकता है और पूरे सर्किट को बंद कर सकता है, जिससे बिजली आपूर्ति में व्यवधान आता है।
बड़े ट्रांसफार्मरों के लिए अन्य आवश्यक सुरक्षा प्रणालियाँ
ओवरकरंट प्रोटेक्शन की इन सीमाओं को दूर करने के लिए, बड़े ट्रांसफार्मरों में अक्सर निम्नलिखित मुख्य सुरक्षा प्रणालियाँ लगाई जाती हैं:
- डिफरेंशियल प्रोटेक्शन (Differential Protection): यह ट्रांसफार्मर के अंदरूनी फॉल्ट्स से बचाने के लिए सबसे प्रमुख सुरक्षा प्रणाली है। यह ट्रांसफार्मर की प्राइमरी और सेकेंडरी साइड में बहने वाली धाराओं की लगातार तुलना करती है। सामान्य परिस्थितियों में, दोनों तरफ की धाराओं का अनुपात एक समान होता है। जब कोई आंतरिक फॉल्ट होता है, तो यह संतुलन बिगड़ जाता है और डिफरेंशियल रिले तुरंत ट्रिप हो जाती है, जिससे तेज और सटीक सुरक्षा मिलती है।
- बुकोल्ज़ रिले (Buchholz Relay): यह एक गैस-आधारित रिले है जो ट्रांसफार्मर के अंदर तेल में उत्पन्न होने वाले छोटे से छोटे फॉल्ट का भी पता लगाती है। जब कोई आंतरिक फॉल्ट होता है, तो तेल में गैस के बुलबुले बनते हैं। बुकोल्ज़ रिले इन गैसों को इकट्ठा करती है और एक निश्चित मात्रा में गैस जमा होने पर अलार्म देती है या गंभीर स्थिति में ट्रांसफार्मर को ट्रिप कर देती है।
- तापमान सुरक्षा (Temperature Protection): ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग और तेल के तापमान की निगरानी के लिए सेंसर लगाए जाते हैं। अत्यधिक तापमान से वाइंडिंग का इन्सुलेशन खराब हो सकता है। यह सुरक्षा प्रणाली तापमान के एक निश्चित सीमा से अधिक होने पर अलार्म या ट्रिपिंग सिग्नल देती है।
ये उन्नत सुरक्षा प्रणालियां ओवरकरंट प्रोटेक्शन की कमियों को दूर करती हैं और बड़े ट्रांसफार्मरों को सुरक्षित रखने के लिए बहु-स्तरीय सुरक्षा प्रदान करती हैं।
ट्रांसफार्मर में भू-गलनांक (अर्थ फॉल्ट) संरक्षण एक सुरक्षा प्रणाली है जो ट्रांसफार्मर को तब बचाती है जब एक फेज कंडक्टर गलती से जमीन से संपर्क में आ जाता है।
इसे रेसिड्यूअल करंट प्रोटेक्शन या जीरो-सीक्वेंस ओवरकरंट प्रोटेक्शन भी कहा जाता है। यह सुरक्षा प्रणाली विशेष रूप से अनग्राउंडेड (un-grounded) या रजिस्टेंस-ग्राउंडेड (resistance-grounded) सिस्टम के लिए महत्वपूर्ण है।
यह कैसे काम करता है?
यह संरक्षण प्रणाली इस सिद्धांत पर काम करती है कि एक स्वस्थ, संतुलित तीन-फेज प्रणाली में, तीनों फेजों (R, Y, B) की धाराओं का सदिश योग (vector sum) शून्य होता है।
यानी: I_R + I_Y + I_B = 0 इस सिद्धांत का उपयोग करने के लिए, तीनों फेजों के करंट ट्रांसफार्मर (CT) को इस तरह से जोड़ा जाता है कि उनके सेकेंडरी करंट का योग एक ही तार से प्रवाहित हो।
सामान्य स्थिति (Normal Condition): जब सिस्टम में कोई भू-दोष नहीं होता, तो तीनों फेजों की धाराओं का सदिश योग शून्य होता है। इसलिए, तीनों CTs के सेकेंडरी में बहने वाली धाराओं का योग भी शून्य होता है।
इस स्थिति में, रिले के माध्यम से कोई धारा प्रवाहित नहीं होती है, और रिले निष्क्रिय रहता है।
भू-दोष की स्थिति (Earth Fault Condition): जब किसी भी फेज में जमीन से संपर्क होता है, तो एक असंतुलित धारा (unbalanced current) या रेसिड्यूअल करंट (residual current) जमीन की ओर बहने लगती है।
इस स्थिति में, तीन फेजों की धाराओं का सदिश योग शून्य नहीं होता है। यह असंतुलित धारा तीनों CTs के सेकेंडरी वाइंडिंग में भी असंतुलित धाराएँ पैदा करती है।
इन धाराओं का योग, जो अब शून्य नहीं है, एक छोटे रिले कॉइल से होकर गुजरता है। जब यह रेसिड्यूअल करंट एक पूर्व-निर्धारित मान से अधिक हो जाता है, तो रिले सक्रिय हो जाता है और सर्किट ब्रेकर को ट्रिप होने के लिए सिग्नल भेजता है, जिससे ट्रांसफार्मर बिजली आपूर्ति से अलग हो जाता है।
प्रकार : भू-गलनांक संरक्षण के दो मुख्य प्रकार हैं:
रेस्ट्रिक्टेड अर्थ फॉल्ट (Restricted Earth Fault - REF): यह एक बहुत ही संवेदनशील और तेज सुरक्षा प्रणाली है जो केवल ट्रांसफार्मर के संरक्षण क्षेत्र (restricted zone) के भीतर होने वाले भू-दोष का पता लगाती है।
यह बाहरी फॉल्ट पर काम नहीं करती, जिससे अनुचित ट्रिपिंग से बचा जा सकता है। यह आमतौर पर डिफरेंशियल प्रोटेक्शन के साथ मिलकर काम करता है।
अनरेस्ट्रिक्टेड अर्थ फॉल्ट (Unrestricted Earth Fault): यह एक बैकअप सुरक्षा प्रणाली है जो न केवल ट्रांसफार्मर के फॉल्ट को, बल्कि बाहरी भू-दोषों को भी सेंस कर सकती है।
प्रतिबंधित भू-भ्रंश (Restricted Earth Fault - REF) संरक्षण एक प्रकार की डिफरेंशियल सुरक्षा है जो ट्रांसफार्मर या जनरेटर जैसे उपकरणों को उनके निश्चित सुरक्षा क्षेत्र (restricted zone) के भीतर होने वाले भू-दोषों से बचाने के लिए उपयोग की जाती है। यह प्रणाली उन आंतरिक फॉल्ट्स का पता लगाने के लिए बहुत संवेदनशील और तेज है, जिनका पता सामान्य ओवरकरंट या अनरेस्ट्रिक्टेड अर्थ फॉल्ट प्रोटेक्शन से नहीं लगाया जा सकता।
कार्य सिद्धांत
REF प्रोटेक्शन का सिद्धांत किरचॉफ के पहले नियम (Kirchhoff's Current Law) पर आधारित है, जिसके अनुसार किसी भी नोड में प्रवेश करने वाली धाराओं का योग बाहर जाने वाली धाराओं के योग के बराबर होता है।
इस सुरक्षा योजना में, करंट ट्रांसफॉर्मर (CTs) का एक सेट ट्रांसफार्मर वाइंडिंग के तीन फेजों पर लगाया जाता है, और एक चौथा CT ट्रांसफार्मर के न्यूट्रल (neutral) से जमीन के बीच लगाया जाता है। इन चारों CTs के सेकेंडरी वाइंडिंग को एक साथ इस तरह जोड़ा जाता है कि सामान्य परिस्थितियों में उनके आउटपुट करंट का सदिश योग शून्य हो।
- सामान्य स्थिति: जब कोई फॉल्ट नहीं होता, तो तीनों फेज की धाराओं का सदिश योग न्यूट्रल से बहने वाली धारा के बराबर होता है। इस संतुलन के कारण, रिले से कोई करंट नहीं बहता और वह निष्क्रिय रहता है।
- आंतरिक भू-भ्रंश (Internal Earth Fault): जब ट्रांसफार्मर के अंदर (संरक्षित क्षेत्र में) कोई भू-दोष होता है, तो फॉल्ट करंट न्यूट्रल के माध्यम से वापस जमीन में बहने लगता है। इस स्थिति में, फेज और न्यूट्रल CTs के बीच धाराओं का संतुलन बिगड़ जाता है। यह असंतुलित धारा रिले के माध्यम से प्रवाहित होती है, जिससे रिले सक्रिय हो जाता है और सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग सिग्नल भेजता है।
- बाहरी भू-भ्रंश (External Earth Fault): यदि फॉल्ट संरक्षित क्षेत्र के बाहर होता है, तो फॉल्ट करंट ट्रांसफार्मर के न्यूट्रल से होकर नहीं बहता। इस स्थिति में भी धाराओं का संतुलन बना रहता है, और रिले संचालित नहीं होता, जिससे अनावश्यक ट्रिपिंग से बचा जा सकता है।
लाभ और महत्व
- उच्च संवेदनशीलता: REF प्रोटेक्शन छोटे से छोटे आंतरिक भू-दोषों का भी पता लगा सकता है, जिन्हें अन्य सुरक्षा प्रणालियाँ अक्सर नजरअंदाज कर देती हैं।
- तीव्र संचालन: यह प्रणाली फॉल्ट का तुरंत पता लगाती है और रिले को ट्रिप कर देती है, जिससे ट्रांसफार्मर को गंभीर क्षति से बचाया जा सकता है।
- चयनात्मकता (Selectivity): यह केवल अपने "प्रतिबंधित क्षेत्र" में होने वाले फॉल्ट पर ही प्रतिक्रिया करती है, जिससे बाहरी फॉल्ट के कारण होने वाली अनुचित ट्रिपिंग से बचा जा सकता है।
प्रतिबंधित भू-भ्रंश (REF) संरक्षण और स्टैंडबाय अर्थ फॉल्ट (SBEF) संरक्षण के बीच मुख्य अंतर उनकी ऑपरेटिंग ज़ोन (operating zone) और उद्देश्य (purpose) में है। REF प्राथमिक सुरक्षा है जो एक विशिष्ट क्षेत्र में दोषों का पता लगाती है, जबकि SBEF एक बैकअप सुरक्षा है जो बाहरी दोषों के लिए उपयोग की जाती है।
प्रतिबंधित भू-भ्रंश (REF) संरक्षण
- उद्देश्य: यह एक प्राथमिक और इकाई (unit) सुरक्षा है। इसका मुख्य उद्देश्य ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग या उसके टर्मिनल पर होने वाले आंतरिक भू-दोषों का पता लगाना है।
- कार्य क्षेत्र: REF की सुरक्षा सीमा बहुत प्रतिबंधित (restricted) होती है। यह केवल उस क्षेत्र में होने वाले फॉल्ट पर प्रतिक्रिया करता है जो इसके CTs के बीच स्थित है (यानी, ट्रांसफार्मर वाइंडिंग के अंदर)।
- संवेदनशीलता: यह बहुत उच्च संवेदनशील होता है और छोटे से छोटे आंतरिक भू-दोषों का भी पता लगा सकता है, जिन्हें अन्य सुरक्षा प्रणालियां अनदेखा कर सकती हैं।
- परिचालन गति: यह बहुत तेज गति से काम करता है क्योंकि इसे तुरंत प्रतिक्रिया करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
स्टैंडबाय अर्थ फॉल्ट (SBEF) संरक्षण
- उद्देश्य: यह एक बैकअप सुरक्षा है। इसका उपयोग तब किया जाता है जब कोई अन्य सुरक्षा (जैसे फीडर प्रोटेक्शन) बाहरी भू-दोषों को साफ करने में विफल हो जाती है।
- कार्य क्षेत्र: SBEF की सुरक्षा सीमा अप्रतिबंधित (unrestricted) होती है। यह न केवल ट्रांसफार्मर के अंदर के दोषों का पता लगाता है, बल्कि आउटगोइंग फीडरों पर होने वाले दोषों के लिए भी बैकअप सुरक्षा प्रदान करता है।
- संवेदनशीलता: यह REF की तुलना में कम संवेदनशील होता है क्योंकि इसका प्राथमिक उद्देश्य बड़े फॉल्ट करंट का पता लगाना है।
- परिचालन गति: यह REF की तुलना में धीमा होता है। इसमें जानबूझकर देरी (time delay) रखी जाती है ताकि यह अन्य प्राथमिक सुरक्षाओं को पहले काम करने का मौका दे सके।
सारणीबद्ध अंतर
REF प्रोटेक्शन का उद्देश्य ट्रांसफार्मर को गंभीर आंतरिक क्षति से बचाना है, जबकि SBEF का उद्देश्य ग्रिड के अन्य हिस्सों में दोषों से ट्रांसफार्मर को अप्रत्यक्ष रूप से बचाना और समग्र प्रणाली की विश्वसनीयता सुनिश्चित करना है।
ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग तापमान संरक्षण एक महत्वपूर्ण सुरक्षा प्रणाली है जो ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग को अत्यधिक गर्मी से होने वाले नुकसान से बचाती है। वाइंडिंग में अत्यधिक गर्मी से इन्सुलेशन खराब हो सकता है, जिससे ट्रांसफार्मर की आयु कम हो जाती है या गंभीर फॉल्ट (जैसे वाइंडिंग के बीच शॉर्ट सर्किट) हो सकता है। यह प्रणाली लगातार वाइंडिंग के तापमान की निगरानी करती है और एक निर्धारित सीमा से अधिक होने पर कार्रवाई करती है।
यह कैसे काम करता है?
वाइंडिंग का तापमान सीधे मापना मुश्किल होता है क्योंकि वे तेल में डूबी होती हैं। इसलिए, अप्रत्यक्ष तरीकों का उपयोग किया जाता है:
तापमान सेंसर (Temperature Sensors): ट्रांसफार्मर के टॉप ऑयल में थर्मोस्टेट या प्रतिरोध तापमान डिटेक्टर (RTDs) जैसे सेंसर लगाए जाते हैं।
थर्मल एनालॉग (Thermal Analogue): चूंकि वाइंडिंग का तापमान टॉप ऑयल के तापमान से अधिक होता है, इसलिए रिले एक थर्मल मॉडल का उपयोग करता है। यह मॉडल ट्रांसफार्मर से गुजरने वाली धारा (लोड करंट) को मापता है और एक गणितीय गणना के माध्यम से वाइंडिंग के तापमान का अनुमान लगाता है।
यह मॉडल इस सिद्धांत पर आधारित है कि वाइंडिंग में गर्मी धारा के वर्ग (I^2R) के अनुपात में उत्पन्न होती है। जब अनुमानित वाइंडिंग का तापमान निर्धारित सीमाओं से अधिक हो जाता है,
तो रिले दो स्तरों पर कार्रवाई करती है:
पहला स्तर (Alarm): जब तापमान एक निश्चित सीमा (जैसे 90°C) से ऊपर जाता है, तो एक अलार्म बजता है। यह ऑपरेटर को सचेत करता है कि ट्रांसफार्मर पर लोड कम करने की आवश्यकता है।
दूसरा स्तर (Trip): यदि तापमान और भी अधिक (जैसे 100°C या उससे अधिक) हो जाता है और अलार्म के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जाती, तो रिले एक ट्रिप सिग्नल भेजती है। यह सिग्नल सर्किट ब्रेकर को ट्रांसफार्मर को बिजली स्रोत से डिस्कनेक्ट करने का निर्देश देता है, जिससे इसे स्थायी क्षति से बचाया जा सके।
महत्व सुरक्षा: यह प्रणाली ट्रांसफार्मर को ओवरलोड और आंतरिक फॉल्ट के कारण होने वाली गर्मी से बचाती है।
आयु बढ़ाना: वाइंडिंग इन्सुलेशन का जीवनकाल तापमान पर निर्भर करता है। वाइंडिंग को एक सुरक्षित तापमान सीमा के भीतर रखकर, यह ट्रांसफार्मर की कुल आयु को बढ़ाता है।
विश्वसनीयता: यह प्रणाली बिजली ग्रिड की विश्वसनीयता सुनिश्चित करती है क्योंकि यह ट्रांसफार्मर को समय से पहले खराब होने से रोकती है।
ट्रांसफार्मर में तेल तापमान संरक्षण एक सुरक्षा प्रणाली है जो ट्रांसफार्मर में अत्यधिक तेल तापमान से होने वाले नुकसान से बचाती है। ट्रांसफार्मर के कोर और वाइंडिंग में उत्पन्न होने वाली गर्मी को तेल अवशोषित करता है, और यदि यह तापमान बहुत अधिक हो जाता है, तो यह तेल और वाइंडिंग के इन्सुलेशन को खराब कर सकता है, जिससे ट्रांसफार्मर की आयु कम हो जाती है या गंभीर फॉल्ट हो सकता है।
तेल तापमान संरक्षण का कार्यान्वयन
तेल तापमान संरक्षण को आमतौर पर एक थर्मोस्टेट या तापमान गेज (temperature gauge) के माध्यम से लागू किया जाता है, जो ट्रांसफार्मर के ऊपरी हिस्से में लगे होते हैं, जहाँ सबसे गर्म तेल जमा होता है। यह प्रणाली दो मुख्य चरणों में काम करती है:
- अलार्म चरण (Alarm Stage): जब तेल का तापमान एक निश्चित पूर्व-निर्धारित सीमा (जैसे 85°C) तक पहुँचता है, तो तापमान गेज एक अलार्म सिग्नल भेजता है। यह ऑपरेटर को सूचित करता है कि तापमान बढ़ रहा है और ट्रांसफार्मर को ओवरलोड से बचाने के लिए लोड कम करने की आवश्यकता है। यह चेतावनी प्रणाली ट्रांसफार्मर को अनावश्यक रूप से ट्रिप होने से बचाती है।
- ट्रिपिंग चरण (Tripping Stage): यदि तापमान बढ़ना जारी रहता है और एक उच्च सीमा (जैसे 95°C) तक पहुँच जाता है, तो गेज एक ट्रिप सिग्नल भेजता है। यह सिग्नल सर्किट ब्रेकर को ट्रांसफार्मर को बिजली स्रोत से डिस्कनेक्ट करने का निर्देश देता है। यह सुनिश्चित करता है कि ट्रांसफार्मर को स्थायी क्षति से बचाया जा सके।
तापमान को नियंत्रित करने के अन्य तरीके
तापमान संरक्षण के अलावा, ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने के लिए अन्य प्रणालियाँ भी उपयोग की जाती हैं:
- कूलिंग फैन (Cooling Fans): कुछ ट्रांसफार्मरों पर कूलिंग फैन लगाए जाते हैं जो एक निश्चित तापमान पर स्वचालित रूप से चालू हो जाते हैं। ये पंखे तेल के रेडिएटर के माध्यम से हवा का प्रवाह बढ़ाते हैं, जिससे गर्मी का फैलाव तेज होता है।
- तेल पंप (Oil Pumps): बड़े ट्रांसफार्मरों में तेल को सर्कुलेट करने के लिए पंपों का उपयोग किया जाता है। ये पंप गर्म तेल को रेडिएटर में भेजते हैं और ठंडा होने के बाद उसे वापस टैंक में लाते हैं।
इस प्रकार,
तेल तापमान संरक्षण एक महत्वपूर्ण सुरक्षा परत है जो ट्रांसफार्मर के सुरक्षित और विश्वसनीय संचालन को सुनिश्चित करती है।
ट्रांसफार्मर में तापमान संवेदन रिले (Temperature Sensing Relay) एक सुरक्षा उपकरण है जो ट्रांसफार्मर के तेल और वाइंडिंग के तापमान की लगातार निगरानी करता है। जब तापमान एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो यह रिले ट्रांसफार्मर को ओवरहीटिंग से बचाने के लिए अलार्म या ट्रिपिंग सिग्नल देता है।
कार्य सिद्धांत
तापमान संवेदन रिले एक या अधिक सेंसर (जैसे कि आरटीडी - RTD या थर्मोस्टेट) से जुड़े होते हैं जो ट्रांसफार्मर में रणनीतिक स्थानों पर रखे जाते हैं, जैसे कि ऊपरी तेल की सतह पर और वाइंडिंग के पास। यह रिले दो प्रकार के तापमान की निगरानी करता है:
- तेल का तापमान: यह सीधे तौर पर तेल में लगे सेंसर से मापा जाता है। तेल का तापमान बढ़ने का मतलब है कि ट्रांसफार्मर में समग्र रूप से गर्मी बढ़ रही है।
- वाइंडिंग का तापमान: वाइंडिंग का तापमान सीधे मापना मुश्किल होता है। इसलिए, रिले एक थर्मल एनालॉग का उपयोग करती है। यह ट्रांसफार्मर से गुजरने वाली धारा (लोड करंट) को मापती है और गणितीय गणनाओं के आधार पर वाइंडिंग के तापमान का अनुमान लगाती है।
परिचालन के चरण
जब रिले को सेंसर से बढ़ते तापमान का इनपुट मिलता है, तो यह दो चरणों में प्रतिक्रिया करती है:
- अलार्म चरण: जब तापमान एक निर्धारित सीमा (जैसे 85°C) तक पहुँचता है, तो रिले एक अलार्म बजाती है। यह ऑपरेटर को सचेत करता है कि लोड कम करने की आवश्यकता है।
- ट्रिपिंग चरण: यदि तापमान बढ़ना जारी रहता है और एक उच्च सीमा (जैसे 95°C) तक पहुँच जाता है, तो रिले एक ट्रिपिंग सिग्नल भेजती है जो सर्किट ब्रेकर को ट्रांसफार्मर को बिजली स्रोत से डिस्कनेक्ट करने का निर्देश देता है।
यह प्रणाली ट्रांसफार्मर की आयु बढ़ाने और उसे स्थायी क्षति से बचाने के लिए महत्वपूर्ण है।
कूलिंग फैन और पंप नियंत्रण प्रणाली ट्रांसफार्मर को ओवरहीटिंग से बचाकर उसकी सुरक्षा करती है, जिससे इसकी दक्षता और जीवनकाल बढ़ता है। यह प्रणाली स्वचालित रूप से काम करती है और लोड और तापमान के आधार पर कूलिंग को समायोजित करती है।
कार्य सिद्धांत
यह प्रणाली ट्रांसफार्मर के तेल और वाइंडिंग के तापमान की लगातार निगरानी करती है। जब तापमान एक निश्चित सीमा से ऊपर जाता है, तो यह कूलिंग उपकरणों को चालू कर देती है ताकि गर्मी को प्रभावी ढंग से बाहर निकाला जा सके।
इस प्रक्रिया के दो मुख्य चरण हैं:
तापमान सेंसर: ट्रांसफार्मर के ऊपरी हिस्से में लगे तापमान सेंसर (जैसे कि थर्मोस्टेट या आरटीडी) तेल और वाइंडिंग के तापमान को मापते हैं।
नियंत्रण प्रणाली: ये सेंसर एक नियंत्रण रिले को तापमान का इनपुट देते हैं। यह रिले पूर्व-निर्धारित सेटिंग्स के आधार पर कूलिंग फैन और पंप को नियंत्रित करती है:
- पहला चरण (Stage 1): जब ट्रांसफार्मर पर लोड बढ़ता है और तेल का तापमान एक निश्चित सीमा (जैसे 60-70°C) तक पहुँचता है, तो नियंत्रण प्रणाली कूलिंग फैन को स्वचालित रूप से चालू कर देती है। पंखे रेडिएटर से हवा को खींचते हैं, जिससे गर्म तेल तेजी से ठंडा होता है।
- दूसरा चरण (Stage 2): यदि लोड और बढ़ता है और तापमान एक और उच्च सीमा (जैसे 75-85°C) तक पहुँचता है, तो नियंत्रण प्रणाली ऑयल पंप को भी चालू कर देती है। पंप गर्म तेल को ट्रांसफार्मर से रेडिएटर में भेजता है, जहां यह ठंडा होता है, और फिर उसे वापस ट्रांसफार्मर में सर्कुलेट करता है।
सुरक्षा लाभ
- ओवरहीटिंग से बचाव: यह प्रणाली ट्रांसफार्मर को लगातार उसकी सुरक्षित ऑपरेटिंग सीमा के भीतर रखती है, जिससे ओवरहीटिंग के कारण होने वाले इन्सुलेशन क्षति से बचाव होता है।
- दक्षता और जीवनकाल: तापमान को नियंत्रित करके, यह ट्रांसफार्मर की दक्षता को बनाए रखती है और उसके समग्र जीवनकाल को बढ़ाती है।
- स्वचालित संचालन: यह प्रणाली स्वचालित रूप से काम करती है, जिससे मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता कम होती है और यह सुनिश्चित होता है कि ट्रांसफार्मर हमेशा इष्टतम तापमान पर संचालित होता है।
इस तरह,
कूलिंग फैन और पंप नियंत्रण प्रणाली ट्रांसफार्मर की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, खासकर जब उस पर भारी लोड होता है।
ट्रांसफार्मर संरक्षण में तेल स्तर सूचक (Oil Level Indicator) की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक और कंजरवेटर टैंक में तेल के स्तर को लगातार दर्शाता है। तेल स्तर में किसी भी असामान्य कमी को इंगित करके, यह ट्रांसफार्मर को गंभीर क्षति से बचाता है।
भूमिका और कार्य
- तेल के स्तर की निगरानी: तेल स्तर सूचक ट्रांसफार्मर में तेल की मात्रा को दिखाता है। ट्रांसफार्मर का तेल न केवल एक इन्सुलेटर के रूप में कार्य करता है, बल्कि यह वाइंडिंग और कोर को ठंडा भी करता है। सही स्तर पर तेल का होना आवश्यक है।
-
अलार्म और ट्रिपिंग: अधिकांश बड़े ट्रांसफार्मरों में तेल स्तर सूचक में दो प्रमुख संपर्क (contacts) होते हैं:
- पहला संपर्क (Alarm): जब तेल का स्तर एक निश्चित न्यूनतम सीमा से नीचे चला जाता है, तो यह संपर्क बंद हो जाता है और एक अलार्म बजाता है। यह ऑपरेटर को सचेत करता है कि तेल का रिसाव हो रहा है या स्तर में कमी है, और तुरंत जांच और रखरखाव की आवश्यकता है।
- दूसरा संपर्क (Trip): यदि तेल का स्तर अलार्म के बाद भी गिरना जारी रहता है और एक महत्वपूर्ण रूप से कम स्तर पर पहुँच जाता है, तो दूसरा संपर्क बंद हो जाता है और एक ट्रिपिंग सिग्नल भेजता है। यह सिग्नल सर्किट ब्रेकर को ट्रांसफार्मर को बिजली स्रोत से अलग करने का निर्देश देता है।
क्यों आवश्यक है?
- इन्सुलेशन का नुकसान: कम तेल का स्तर वाइंडिंग और कोर के कुछ हिस्सों को हवा के संपर्क में ला सकता है, जिससे उनके इन्सुलेशन गुण कम हो जाते हैं और शॉर्ट-सर्किट का खतरा बढ़ जाता है।
- ओवरहीटिंग: अपर्याप्त तेल कूलिंग क्षमता को कम कर देता है, जिससे ट्रांसफार्मर अधिक गर्म हो सकता है। यह वाइंडिंग को नुकसान पहुंचा सकता है और ट्रांसफार्मर के जीवनकाल को कम कर सकता है।
संक्षेप में,
तेल स्तर सूचक एक सरल लेकिन प्रभावी सुरक्षा उपकरण है जो ट्रांसफार्मर में तेल के स्तर में कमी का समय पर पता लगाता है, जिससे संभावित फॉल्ट और महंगे मरम्मत से बचा जा सकता है।
ट्रांसफार्मर में अचानक दबाव रिले (Sudden Pressure Relay) एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण है जो ट्रांसफार्मर को आंतरिक फॉल्ट्स के कारण होने वाले दबाव में अचानक वृद्धि से बचाता है। यह रिले बहुत ही तेज गति से काम करता है और किसी भी बड़े फॉल्ट से पहले ट्रांसफार्मर को ट्रिप करके गंभीर नुकसान को रोकता है।
कार्य सिद्धांत
यह रिले एक झिल्ली (diaphragm) और स्प्रिंग (spring) तंत्र पर काम करता है, जो ट्रांसफार्मर के टॉप कवर पर लगा होता है।
- सामान्य स्थिति: जब ट्रांसफार्मर सामान्य रूप से काम कर रहा होता है, तो तेल का दबाव स्थिर रहता है। झिल्ली पर दबाव बराबर होता है और रिले निष्क्रिय रहती है।
- आंतरिक फॉल्ट की स्थिति: जब ट्रांसफार्मर के अंदर कोई गंभीर फॉल्ट (जैसे वाइंडिंग में शॉर्ट सर्किट) होता है, तो इससे तेल में आर्क (arc) उत्पन्न होता है। यह आर्क तेल को विघटित करता है, जिससे अत्यधिक मात्रा में गैसें बनती हैं।
- दबाव में वृद्धि: इन गैसों के अचानक और तेजी से बनने से ट्रांसफार्मर के टैंक के अंदर दबाव में अचानक वृद्धि होती है।
- रिले का सक्रियण: यह अचानक बढ़ा हुआ दबाव झिल्ली को तेजी से धकेलता है। झिल्ली से जुड़ा एक स्विच या संपर्क (contact) बंद हो जाता है, जिससे रिले सक्रिय हो जाती है और तुरंत सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग सिग्नल भेजती है।
बुकोल्ज़ रिले से अंतर
यह रिले अक्सर बुकोल्ज़ रिले के साथ काम करती है, लेकिन दोनों का उद्देश्य अलग है:
- अचानक दबाव रिले: यह बहुत तेज और अचानक फॉल्ट्स पर प्रतिक्रिया करती है।
- बुकोल्ज़ रिले: यह धीमी गति से बनने वाले फॉल्ट्स (जैसे मामूली हीटिंग) और गैस के संचय पर प्रतिक्रिया करती है। यह अचानक और बड़े फॉल्ट्स के लिए धीमी हो सकती है।
संक्षेप में,
अचानक दबाव रिले एक "फायर अलार्म" की तरह है जो किसी बड़े खतरे (अचानक फॉल्ट) का पता लगते ही तुरंत प्रतिक्रिया करता है, जबकि बुकोल्ज़ रिले धीमी गति से बनने वाले खतरों पर नजर रखती है।
अचानक दबाव रिले, जिसे अचानक दबाव वृद्धि रिले (Sudden Pressure Rise Relay) भी कहते हैं, एक सुरक्षा उपकरण है जो ट्रांसफार्मर को आंतरिक फॉल्ट के कारण तेल में होने वाली दबाव की अचानक वृद्धि से बचाता है। यह दबाव में तेज बदलाव को महसूस करके काम करता है और किसी भी बड़े नुकसान से पहले ट्रांसफार्मर को तुरंत ट्रिप कर देता है।
कार्यप्रणाली
अचानक दबाव रिले में एक झिल्ली (diaphragm), एक दबाव स्विच, और एक स्प्रिंग होती है। यह रिले ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक या कंजरवेटर टैंक पर स्थापित किया जाता है।
- सामान्य स्थिति: जब ट्रांसफार्मर सामान्य रूप से काम कर रहा होता है, तो तेल का दबाव स्थिर रहता है। झिल्ली पर बाहर और अंदर से दबाव संतुलित होता है, और रिले निष्क्रिय रहता है।
- आंतरिक फॉल्ट की उत्पत्ति: जब ट्रांसफार्मर के अंदर कोई गंभीर फॉल्ट, जैसे कि वाइंडिंग शॉर्ट सर्किट, होता है, तो इससे तेल में एक विद्युत चाप (electric arc) उत्पन्न होता है। यह आर्क तेल को विघटित कर देता है, जिससे बड़ी मात्रा में गैसें बहुत तेजी से बनती हैं।
- दबाव में अचानक वृद्धि: इन अचानक बनी गैसों के कारण ट्रांसफार्मर के टैंक के अंदर दबाव में अचानक और तेजी से वृद्धि होती है।
-
रिले का संचालन:
- यह बढ़ा हुआ दबाव झिल्ली को स्प्रिंग के बल के विपरीत, बहुत तेजी से धकेलता है।
- इस गतिमान झिल्ली से एक स्विच जुड़ा होता है। जब झिल्ली एक निश्चित बिंदु से आगे बढ़ती है, तो स्विच बंद हो जाता है।
- स्विच के बंद होते ही, रिले एक ट्रिपिंग सिग्नल भेजता है।
- सर्किट ब्रेकर का संचालन: ट्रिपिंग सिग्नल मिलते ही, संबंधित सर्किट ब्रेकर ट्रांसफार्मर को बिजली स्रोत से अलग कर देता है। यह प्रक्रिया माइक्रोसेकंड में होती है, जिससे ट्रांसफार्मर को विस्फोट या स्थायी क्षति से बचाया जा सकता है।
संक्षेप में,
अचानक दबाव रिले एक "प्रेशर सेंसर" की तरह काम करता है जो तेल में दबाव के अचानक बढ़ने पर प्रतिक्रिया करता है, जिससे बड़े फॉल्ट को तुरंत नियंत्रित किया जा सके। यह बुकोल्ज़ रिले से तेज होता है क्योंकि यह गैस के संचय का इंतजार नहीं करता, बल्कि दबाव में बदलाव का तुरंत पता लगाता है।
ट्रांसफार्मर टैंकों में अचानक दबाव बढ़ने का मुख्य कारण आंतरिक दोष (internal faults) हैं। जब ट्रांसफार्मर के अंदर कोई गंभीर विद्युत दोष होता है, तो यह अत्यधिक गर्मी और ऊर्जा उत्पन्न करता है। यह ऊर्जा ट्रांसफार्मर के तेल और वाइंडिंग इन्सुलेशन को तेजी से विघटित करती है, जिससे गैसों का निर्माण होता है।
अचानक दबाव बढ़ने के प्रमुख कारण
- आंतरिक शॉर्ट सर्किट: यह सबसे आम और गंभीर कारण है। जब वाइंडिंग के बीच या वाइंडिंग और टैंक के बीच शॉर्ट सर्किट होता है, तो एक शक्तिशाली विद्युत चाप (electric arc) बनता है। यह चाप तेल को विघटित करता है और भारी मात्रा में गैसें (जैसे हाइड्रोजन, मीथेन, कार्बन मोनोऑक्साइड) बहुत ही कम समय में बनाता है।
- इंटर-टर्न फॉल्ट (Inter-turn Fault): वाइंडिंग के अलग-अलग टर्न के बीच शॉर्ट सर्किट होने पर भी चाप बनता है। हालांकि यह शुरू में छोटा हो सकता है, लेकिन यह तेजी से बढ़कर एक बड़ा शॉर्ट सर्किट बन सकता है और दबाव में अचानक वृद्धि का कारण बन सकता है।
- कोर फॉल्ट (Core Fault): ट्रांसफार्मर के कोर में इन्सुलेशन खराब होने से भी फॉल्ट करंट बह सकता है, जिससे गर्मी उत्पन्न होती है और तेल में गैस बनती है।
- अत्यधिक ओवरलोड: हालांकि यह आमतौर पर धीरे-धीरे तापमान बढ़ाता है, लेकिन बहुत ही तीव्र ओवरलोड की स्थिति में भी अचानक दबाव बढ़ सकता है, खासकर यदि यह किसी आंतरिक कमजोरी के साथ संयुक्त हो।
परिणाम और सुरक्षा
अचानक दबाव में वृद्धि का परिणाम ट्रांसफार्मर टैंक का विस्फोट हो सकता है। इसे रोकने के लिए अचानक दबाव रिले (Sudden Pressure Relay) का उपयोग किया जाता है। यह रिले दबाव में इस अचानक वृद्धि का पता लगाती है और मिलीसेकंड में सर्किट ब्रेकर को ट्रिप करके ट्रांसफार्मर को बिजली से अलग कर देती है। यह सुरक्षा प्रणाली ट्रांसफार्मर को गंभीर और स्थायी क्षति से बचाती है।
बुचोल्ज़ रिले और अचानक दबाव रिले दोनों ही ट्रांसफार्मर की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण उपकरण हैं, लेकिन उनके काम करने के सिद्धांत, संवेदनशीलता और प्रतिक्रिया गति में मुख्य अंतर हैं।
बुचोल्ज़ रिले (Buchholz Relay)
यह रिले धीमी गति से विकसित होने वाले आंतरिक दोषों का पता लगाता है। यह ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक और कंजरवेटर टैंक के बीच लगी होती है और दो सिद्धांतों पर काम करती है: गैस का संचय और तेल का बहाव (oil surge)।
- गैस का संचय: जब ट्रांसफार्मर में मामूली दोष (जैसे ओवरहीटिंग) होता है, तो तेल धीरे-धीरे विघटित होता है और गैस के छोटे बुलबुले बनाता है। ये बुलबुले ऊपर उठते हैं और बुचोल्ज़ रिले में जमा हो जाते हैं। जब गैस एक निश्चित मात्रा तक जमा हो जाती है, तो रिले में लगा एक फ्लोट (float) नीचे आता है और एक अलार्म सिग्नल भेजता है।
- तेज तेल बहाव: यदि कोई बड़ा दोष होता है, तो बड़ी मात्रा में गैसें अचानक बनती हैं। इससे तेल का बहाव कंजरवेटर टैंक की ओर तेजी से होता है। यह बहाव रिले में लगे एक फ्लैप (flap) को सक्रिय करता है, जो सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग सिग्नल भेजता है।
अचानक दबाव रिले (Sudden Pressure Relay)
यह रिले अचानक और तीव्र आंतरिक दोषों का पता लगाता है, जो एक बड़ा दबाव पैदा करते हैं। यह ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक पर लगा होता है।
- दबाव का पता लगाना: जब वाइंडिंग में शॉर्ट सर्किट जैसा कोई गंभीर दोष होता है, तो इससे तेल में चाप (arc) बनता है। यह चाप तेल को तेजी से वाष्पित करता है, जिससे टैंक के अंदर दबाव में अचानक वृद्धि होती है।
- तेज प्रतिक्रिया: अचानक दबाव रिले इस दबाव में वृद्धि को महसूस करता है। इसके अंदर लगी एक संवेदनशील झिल्ली (diaphragm) इस दबाव से तेजी से विस्थापित होती है, जिससे एक स्विच सक्रिय हो जाता है और तुरंत ट्रिपिंग सिग्नल भेजता है।
मुख्य अंतर सारणी
संक्षेप में,
बुचोल्ज़ रिले एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और बैकअप दोनों का काम करती है, जबकि अचानक दबाव रिले एक तेज प्रतिक्रिया सुरक्षा है जो बड़े फॉल्ट्स के कारण होने वाले विस्फोटों से बचाती है।
ट्रांसफार्मर के संरक्षण में घुली हुई गैस विश्लेषण (DGA) एक महत्वपूर्ण नैदानिक तकनीक है।
यह ट्रांसफार्मर तेल में घुली हुई विभिन्न गैसों की मात्रा और प्रकार का विश्लेषण करके ट्रांसफार्मर के आंतरिक स्वास्थ्य और संभावित दोषों (faults) का पता लगाती है।
यह एक पूर्वानुमानित रखरखाव (predictive maintenance) उपकरण है, जो ट्रांसफार्मर में बड़ी खराबी आने से पहले ही चेतावनी देता है।
DGA का कार्य सिद्धांत : जब ट्रांसफार्मर के अंदर कोई दोष होता है (जैसे ओवरहीटिंग, आंशिक निर्वहन या आर्किंग), तो अत्यधिक गर्मी उत्पन्न होती है। यह गर्मी तेल और इन्सुलेशन पेपर को विघटित कर देती है, जिससे विशिष्ट प्रकार की गैसें बनती हैं। ये गैसें तेल में घुल जाती हैं।
DGA प्रक्रिया में तेल का एक नमूना लिया जाता है और एक प्रयोगशाला में इन घुली हुई गैसों का विश्लेषण किया जाता है।
विभिन्न प्रकार के दोष अलग-अलग गैसों का उत्पादन करते हैं:
ओवरहीटिंग (Overheating): वाइंडिंग की ओवरहीटिंग (150°C से 300°C): मीथेन (CH_4), इथेन (C_2H_6) और एथिलीन (C_2H_4) का उत्पादन होता है।
तेल की ओवरहीटिंग (250°C से 400°C): इथेन और एथिलीन की मात्रा बढ़ जाती है।
पेपर इन्सुलेशन की ओवरहीटिंग (200°C से अधिक): कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO_2) का उत्पादन होता है।
आंशिक निर्वहन (Partial Discharge): इस दोष में कम ऊर्जा वाला आर्क बनता है, जिससे मुख्य रूप से हाइड्रोजन (H_2) और मीथेन गैस बनती है।
आर्किंग (Arcing): यह एक उच्च-ऊर्जा वाला दोष है। इससे एसिटिलीन (C_2H_2) गैस का उत्पादन होता है, जो आर्किंग का सबसे स्पष्ट संकेत है।
हाइड्रोजन और एथिलीन भी बनते हैं।
संरक्षण में भूमिका : DGA की सबसे बड़ी भूमिका यह है कि यह ट्रांसफार्मर के आंतरिक दोषों को उनके प्रारंभिक चरण में ही पहचान लेती है, जब वे बुकोल्ज़ रिले या अचानक दबाव रिले जैसे उपकरणों को ट्रिप करने के लिए पर्याप्त गंभीर नहीं होते हैं।
गैसों की मात्रा और अनुपात का विश्लेषण करके इंजीनियर यह तय कर सकते हैं कि ट्रांसफार्मर में किस प्रकार का दोष विकसित हो रहा है और आगे की कार्रवाई क्या होनी चाहिए (जैसे लोड कम करना, मरम्मत करना, या ट्रांसफार्मर को बदलना)।
इस प्रकार,
DGA ट्रांसफार्मर को समय से पहले विफल होने से रोककर उसकी विश्वसनीयता और जीवनकाल को बढ़ाती है।
ट्रांसफार्मर सुरक्षा में तड़ित अवरोधक (Lightning Arrester) या सर्ज अरेस्टर की भूमिका आकाशीय बिजली (lightning strikes) और स्विचिंग ऑपरेशनों के कारण होने वाले उच्च वोल्टेज सर्जेस से ट्रांसफार्मर को बचाना है। ये डिवाइस ट्रांसफार्मर को इन अचानक और अत्यधिक वोल्टेज स्पाइक्स से होने वाले नुकसान से बचाकर उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
कार्य सिद्धांत
तड़ित अवरोधक एक गैर-रेखीय प्रतिरोध (non-linear resistance) डिवाइस है जो मुख्य रूप से जिंक ऑक्साइड (Zinc Oxide - ZnO) से बनी होती है। इसका कार्य सिद्धांत सरल है:
- सामान्य स्थिति: सामान्य परिचालन वोल्टेज पर, तड़ित अवरोधक का प्रतिरोध बहुत अधिक होता है। इस स्थिति में यह एक इन्सुलेटर की तरह काम करता है और कोई करंट प्रवाहित नहीं होने देता।
- सर्ज की स्थिति: जब आकाशीय बिजली या स्विचिंग के कारण अत्यधिक उच्च वोल्टेज सर्ज आता है, तो तड़ित अवरोधक का प्रतिरोध अचानक और तेजी से घट जाता है। यह एक चालक की तरह व्यवहार करता है।
- सर्ज का निष्कासन: यह कम प्रतिरोध वाला मार्ग उच्च वोल्टेज सर्ज को जमीन की ओर प्रवाहित होने देता है। यह सर्ज को ट्रांसफार्मर तक पहुँचने से पहले ही बाईपास कर देता है। इस तरह, यह ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग और इन्सुलेशन को अत्यधिक वोल्टेज से होने वाले नुकसान से बचाता है।
- सामान्य स्थिति की बहाली: जब सर्ज समाप्त हो जाता है, तो तड़ित अवरोधक का प्रतिरोध फिर से बहुत अधिक हो जाता है और यह सामान्य इन्सुलेटिंग स्थिति में लौट आता है।
तड़ित अवरोधकों का महत्व
- अत्यधिक वोल्टेज से बचाव: तड़ित अवरोधक ट्रांसफार्मर को बाहरी सर्ज से बचाता है, जो अन्यथा उसकी वाइंडिंग के इन्सुलेशन को पंचर कर सकता है।
- उपकरणों का संरक्षण: यह न केवल ट्रांसफार्मर, बल्कि उससे जुड़े अन्य उपकरणों को भी उच्च वोल्टेज से बचाता है।
- विश्वसनीयता बढ़ाना: यह सुनिश्चित करता है कि बिजली आपूर्ति के दौरान ट्रांसफार्मर सुरक्षित रहे, जिससे ग्रिड की समग्र विश्वसनीयता बढ़ती है।
यह सुरक्षा युक्ति ट्रांसफार्मर के हाई-वोल्टेज और लो-वोल्टेज दोनों टर्मिनलों पर स्थापित की जाती है, ताकि इसे दोनों तरफ से आने वाले सर्ज से बचाया जा सके।
ट्रांसफार्मर की सुरक्षा के लिए बिजली अवरोधक (Lightning Arresters) ट्रांसफार्मर के टर्मिनलों के बहुत करीब स्थापित किए जाते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य ट्रांसफार्मर को अत्यधिक वोल्टेज सर्जेस से बचाना है जो बिजली गिरने या स्विचिंग ऑपरेशनों के कारण उत्पन्न होते हैं।
स्थापना का स्थान
बिजली अवरोधकों को निम्नलिखित स्थानों पर स्थापित किया जाता है:
- हाई-वोल्टेज (HV) साइड: ट्रांसफार्मर के प्राइमरी या हाई-वोल्टेज वाइंडिंग के टर्मिनलों के पास, ट्रांसफार्मर से आने वाली ओवरहेड लाइन या केबल से पहले। यह सबसे महत्वपूर्ण स्थान है क्योंकि आकाशीय बिजली सीधे HV लाइन पर गिरती है।
- लो-वोल्टेज (LV) साइड: ट्रांसफार्मर के सेकेंडरी या लो-वोल्टेज वाइंडिंग के टर्मिनलों के पास। यह कम महत्वपूर्ण होता है, लेकिन फिर भी LV साइड पर आने वाले सर्जेस से सुरक्षा प्रदान करने के लिए इन्हें स्थापित किया जाता है।
स्थापना का कारण
अवरोधकों को ट्रांसफार्मर के जितना संभव हो सके करीब स्थापित किया जाता है क्योंकि:
- सुरक्षात्मक क्षेत्र: यह एक "सुरक्षात्मक क्षेत्र" बनाता है। जब कोई उच्च वोल्टेज सर्ज आता है, तो अवरोधक इसे तुरंत जमीन में प्रवाहित कर देता है, जिससे यह ट्रांसफार्मर तक नहीं पहुँच पाता।
- तेज प्रतिक्रिया: पास होने से अवरोधक बहुत तेजी से प्रतिक्रिया कर सकता है। यदि इसे दूर स्थापित किया जाता है, तो सर्ज ट्रांसफार्मर तक पहुँचने से पहले ही वाइंडिंग को नुकसान पहुँचा सकता है।
ट्रांसफार्मर में सर्ज प्रोटेक्शन (surge protection) एक सुरक्षा प्रणाली है जो ट्रांसफार्मर को अचानक और अत्यधिक वोल्टेज स्पाइक्स से बचाती है।
ये स्पाइक्स,
जिन्हें सर्ज (surges) या क्षणिक ओवरवोल्टेज (transient overvoltages) भी कहा जाता है, आकाशीय बिजली गिरने या विद्युत स्विचिंग ऑपरेशनों के कारण उत्पन्न हो सकते हैं।
उद्देश्य : सर्ज प्रोटेक्शन का मुख्य उद्देश्य ट्रांसफार्मर के आंतरिक घटकों, विशेषकर वाइंडिंग के इन्सुलेशन को अत्यधिक वोल्टेज से होने वाले नुकसान से बचाना है।
यदि इस प्रकार का सर्ज ट्रांसफार्मर तक पहुंचता है, तो यह इन्सुलेशन को नष्ट कर सकता है, जिससे शॉर्ट-सर्किट या ट्रांसफार्मर का विस्फोट हो सकता है।
सर्ज प्रोटेक्शन के घटक : सर्ज प्रोटेक्शन को लागू करने के लिए मुख्य रूप से बिजली अवरोधक (lightning arresters) का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण ट्रांसफार्मर के हाई-वोल्टेज और लो-वोल्टेज टर्मिनलों पर लगाए जाते हैं।
बिजली अवरोधक (Lightning Arrester): ये जिंक ऑक्साइड (ZnO) से बने होते हैं, जो एक गैर-रेखीय प्रतिरोधक सामग्री है।
सामान्य स्थिति में: इनका प्रतिरोध बहुत अधिक होता है, और ये एक इन्सुलेटर की तरह काम करते हैं।
सर्ज की स्थिति में: जब एक उच्च वोल्टेज सर्ज आता है, तो इनका प्रतिरोध तेजी से घट जाता है। यह सर्ज करंट को जमीन की ओर एक सुरक्षित रास्ता प्रदान करता है, जिससे वह ट्रांसफार्मर तक नहीं पहुंच पाता।
यह कैसे सुरक्षा प्रदान करता है?
जब आकाशीय बिजली गिरती है, तो लाइन में बहुत अधिक वोल्टेज उत्पन्न होता है। यह वोल्टेज ट्रांसफार्मर की सुरक्षा सीमा से कहीं अधिक होता है। सर्ज प्रोटेक्शन प्रणाली इस बढ़े हुए वोल्टेज को तुरंत महसूस करती है और अवरोधकों के माध्यम से इसे जमीन में प्रवाहित कर देती है।
यह प्रक्रिया इतनी तेज होती है कि ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।
सर्ज के गुजर जाने के बाद, अवरोधक अपने सामान्य उच्च प्रतिरोध की स्थिति में वापस आ जाते हैं।
इस प्रकार,
सर्ज प्रोटेक्शन ट्रांसफार्मर की विश्वसनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक अनिवार्य हिस्सा है।
बिजली अवरोधक और सर्ज अवशोषक (Lightning Arresters and Surge Absorbers) दोनों ही अत्यधिक वोल्टेज से उपकरणों की सुरक्षा करते हैं, लेकिन उनके काम करने के तरीके और उद्देश्य में महत्वपूर्ण अंतर हैं।
बिजली अवरोधक (Lightning Arrester)
- उद्देश्य: इसका प्राथमिक उद्देश्य आकाशीय बिजली (lightning) और उसके कारण उत्पन्न होने वाले बहुत उच्च ऊर्जा सर्जेस से उपकरणों को बचाना है। यह बड़े पैमाने पर ऊर्जा को संभालने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- कार्य सिद्धांत: यह एक गैर-रेखीय प्रतिरोध वाला उपकरण है जो सामान्य वोल्टेज पर एक इन्सुलेटर की तरह काम करता है। जब अत्यधिक उच्च वोल्टेज सर्ज आता है, तो इसका प्रतिरोध अचानक घट जाता है, जिससे सर्ज करंट जमीन में चला जाता है।
- उपयोग का स्थान: ये आमतौर पर बाहर और ट्रांसफार्मर या स्विचयार्ड जैसे बड़े उपकरणों के पास लगाए जाते हैं, जहाँ बिजली गिरने का खतरा अधिक होता है।
सर्ज अवशोषक (Surge Absorber)
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य स्विचिंग ऑपरेशन (जैसे सर्किट ब्रेकर को चालू या बंद करना) के कारण उत्पन्न होने वाले आंतरिक और कम ऊर्जा वाले सर्जेस को अवशोषित करना है। ये सर्ज बिजली गिरने से होने वाले सर्ज की तुलना में कम शक्तिशाली होते हैं।
- कार्य सिद्धांत: सर्ज अवशोषक में अक्सर संधारित्र (capacitors) और प्रतिरोधक (resistors) का एक संयोजन होता है। यह सर्किट में उत्पन्न होने वाले छोटे सर्जेस को अवशोषित करता है या उनके प्रभाव को कम करता है।
- उपयोग का स्थान: ये आमतौर पर संवेदनशील उपकरणों, जैसे कि जनरेटर, मोटर या बड़े इंडक्शन मोटर्स के टर्मिनलों पर लगाए जाते हैं, ताकि स्विचिंग के दौरान होने वाले सर्ज से उन्हें बचाया जा सके।
मुख्य अंतर सारणी
इस प्रकार, बिजली अवरोधक बाहरी, उच्च-ऊर्जा वाले खतरों से सुरक्षा प्रदान करता है, जबकि सर्ज अवशोषक आंतरिक, कम-ऊर्जा वाले खतरों से सुरक्षा प्रदान करता है।
सर्ज अरेस्टर ट्रांसफार्मर वाइंडिंग को अत्यधिक वोल्टेज (overvoltage) से बचाते हैं, जो आकाशीय बिजली गिरने या स्विचिंग ऑपरेशनों के कारण उत्पन्न हो सकते हैं। वे एक सुरक्षा मार्ग प्रदान करके काम करते हैं जो इस अतिरिक्त वोल्टेज को ट्रांसफार्मर तक पहुंचने से पहले ही जमीन में मोड़ देता है।
कार्यप्रणाली
सर्ज अरेस्टर में जिंक ऑक्साइड (ZnO) जैसे गैर-रेखीय प्रतिरोधक पदार्थ होते हैं। इनका काम करने का तरीका दो चरणों में होता है:
- सामान्य स्थिति: जब ट्रांसफार्मर सामान्य ऑपरेटिंग वोल्टेज पर होता है, तो सर्ज अरेस्टर का प्रतिरोध बहुत अधिक होता है। इस अवस्था में, यह एक इन्सुलेटर की तरह काम करता है और कोई भी करंट प्रवाहित नहीं होता।
- सर्ज की स्थिति: जब बिजली गिरने या स्विचिंग के कारण वोल्टेज में अचानक वृद्धि होती है, तो यह वोल्टेज अरेस्टर के चालू होने वाले वोल्टेज (spark-over voltage) से अधिक हो जाता है। इस स्थिति में, अरेस्टर का प्रतिरोध तेजी से घट जाता है, जिससे यह एक चालक की तरह व्यवहार करता है।
- सर्ज का निष्कासन: यह कम प्रतिरोध वाला मार्ग उच्च वोल्टेज सर्ज को ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग को नुकसान पहुंचाए बिना सीधे जमीन में प्रवाहित कर देता है। इस तरह, वाइंडिंग पर वोल्टेज सुरक्षित स्तर तक सीमित हो जाता है।
एक बार जब सर्ज करंट खत्म हो जाता है, तो अरेस्टर का प्रतिरोध फिर से बढ़ जाता है और वह अपनी सामान्य इन्सुलेटिंग स्थिति में लौट आता है, जिससे सामान्य संचालन जारी रह पाता है। इस पूरी प्रक्रिया में मिलीसेकंड का समय लगता है।
यह प्रणाली वाइंडिंग के इन्सुलेशन को पंचर होने या क्षतिग्रस्त होने से बचाती है, जो अन्यथा ट्रांसफार्मर की विफलता का कारण बन सकती है।
ट्रांसफार्मर का अधिभार संरक्षण (Overload Protection) एक सुरक्षा प्रणाली है जो ट्रांसफार्मर को उसकी डिज़ाइन की गई क्षमता से अधिक लोड होने पर होने वाले नुकसान से बचाती है। ओवरलोड की स्थिति में, ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में धारा का प्रवाह सामान्य से अधिक हो जाता है, जिससे अत्यधिक गर्मी उत्पन्न होती है। यह गर्मी ट्रांसफार्मर के इन्सुलेशन और तेल को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे उसकी जीवनकाल कम हो जाती है या स्थायी क्षति हो सकती है।
अधिभार संरक्षण के तरीके
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तापमान संवेदन रिले (Temperature Sensing Relays):
- ये सबसे आम तरीका हैं। ये रिले ट्रांसफार्मर के तेल तापमान और वाइंडिंग तापमान की निगरानी करते हैं।
- जब तापमान एक पूर्व-निर्धारित सीमा तक पहुँचता है, तो यह एक अलार्म बजाता है।
- यदि तापमान और बढ़ता है, तो यह एक ट्रिपिंग सिग्नल भेजता है, जो ट्रांसफार्मर को बिजली स्रोत से डिस्कनेक्ट कर देता है।
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ओवरकरंट रिले (Overcurrent Relays):
- ये रिले ट्रांसफार्मर के माध्यम से बहने वाली धारा की निगरानी करते हैं।
- जब धारा का मान एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाता है, तो रिले एक टाइमर के बाद ट्रिपिंग सिग्नल भेजता है। अधिभार की स्थिति में, यह रिले धीमी गति से काम करता है ताकि क्षणिक ओवरलोड पर ट्रिपिंग से बचा जा सके।
- यह अधिभार के अलावा शॉर्ट सर्किट फॉल्ट के लिए भी बैकअप सुरक्षा प्रदान करता है।
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फ्यूज और सर्किट ब्रेकर:
- छोटे ट्रांसफार्मरों के लिए फ्यूज का उपयोग किया जाता है। जब धारा अत्यधिक हो जाती है, तो फ्यूज पिघल जाता है और सर्किट को तोड़ देता है।
- बड़े ट्रांसफार्मरों के लिए, सर्किट ब्रेकर का उपयोग होता है, जिसे तापमान या ओवरकरंट रिले द्वारा ट्रिप किया जाता है।
ट्रांसफार्मर में थर्मल इमेज रिले का उपयोग ट्रांसफार्मर के आंतरिक घटकों, विशेष रूप से वाइंडिंग के तापमान, की निगरानी करने और उन्हें अत्यधिक गर्म होने से बचाने के लिए किया जाता है।
यह एक उन्नत सुरक्षा प्रणाली है जो सीधे तापमान सेंसर का उपयोग करने के बजाय ट्रांसफार्मर पर पड़ने वाले लोड के आधार पर वाइंडिंग के तापमान का अनुमान लगाती है। थर्मल इमेजिंग सिद्धांत थर्मल इमेज रिले का सिद्धांत यह है कि ट्रांसफार्मर में गर्मी उत्पादन सीधे उस पर पड़ने वाले लोड के वर्ग (I^2) के अनुपात में होता है।
यानी, जैसे-जैसे लोड करंट (I) बढ़ता है, वाइंडिंग में उत्पन्न होने वाली गर्मी तेजी से बढ़ती है। यह रिले एक गणितीय मॉडल (thermal analogue) का उपयोग करती है
जो निम्नलिखित कारकों पर विचार करती है:
लोड करंट (Load Current): रिले ट्रांसफार्मर के माध्यम से बहने वाली धारा को लगातार मापती है।
ऊपरी तेल का तापमान (Top Oil Temperature): ट्रांसफार्मर के ऊपर के तेल का तापमान भी मापा जाता है, क्योंकि यह वाइंडिंग से उत्पन्न गर्मी को दर्शाता है।
तापमान समय स्थिरांक (Temperature Time Constant): यह वाइंडिंग और तेल के गर्म होने और ठंडा होने की दर को दर्शाता है। इन सभी कारकों का उपयोग करके, रिले वाइंडिंग का तापमान वास्तविक समय में अनुमानित करती है।
सुरक्षा में भूमिका जब अनुमानित वाइंडिंग का तापमान निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो थर्मल इमेज रिले दो चरणों में कार्रवाई करती है:
अलार्म: जब तापमान पहली सीमा (जैसे 90°C) तक पहुँचता है, तो यह एक अलार्म बजाती है। यह ऑपरेटर को सचेत करता है कि लोड कम करने की आवश्यकता है।
ट्रिपिंग: यदि तापमान बढ़ना जारी रहता है और एक उच्च सीमा (जैसे 100°C) तक पहुँचता है, तो रिले एक ट्रिपिंग सिग्नल भेजती है। यह सिग्नल सर्किट ब्रेकर को ट्रांसफार्मर को बिजली स्रोत से डिस्कनेक्ट करने का निर्देश देता है, जिससे उसे स्थायी क्षति से बचाया जा सके।
इस प्रकार,
थर्मल इमेज रिले एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण है जो ट्रांसफार्मर को ओवरलोड के कारण होने वाली गर्मी से बचाता है और उसके जीवनकाल को बढ़ाता है।
ट्रांसफार्मर पर लगातार ओवरलोड का सबसे गंभीर परिणाम अत्यधिक गर्मी का उत्पन्न होना है, जो ट्रांसफार्मर के घटकों को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाती है। यह सीधे तौर पर ट्रांसफार्मर के जीवनकाल को कम करता है और अंततः उसकी विफलता का कारण बन सकता है।
मुख्य परिणाम
इन्सुलेशन का नुकसान: ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग के बीच लगे इन्सुलेशन (जैसे पेपर) उच्च तापमान के प्रति बहुत संवेदनशील होते हैं। लगातार ओवरलोड से इन्सुलेशन की उम्र तेजी से कम हो जाती है। एक बार जब इन्सुलेशन खराब हो जाता है, तो यह वाइंडिंग के बीच शॉर्ट सर्किट का कारण बन सकता है, जिससे ट्रांसफार्मर को स्थायी नुकसान होता है।
तेल का खराब होना: ट्रांसफार्मर तेल इन्सुलेशन और कूलिंग दोनों का काम करता है। अत्यधिक गर्मी के कारण तेल का ऑक्सीकरण और विघटन होता है। इससे तेल की इन्सुलेटिंग और कूलिंग क्षमता कम हो जाती है, जो ट्रांसफार्मर के प्रदर्शन को और खराब करती है।
दक्षता में कमी: जब ट्रांसफार्मर ओवरलोड होता है, तो वाइंडिंग में I^2R लॉस (कॉपर लॉस) काफी बढ़ जाता है। इससे ट्रांसफार्मर की दक्षता घट जाती है और अधिक ऊर्जा गर्मी के रूप में बर्बाद होती है।
यांत्रिक तनाव: अत्यधिक गर्मी के कारण ट्रांसफार्मर के धातु के पुर्जे फैलते और सिकुड़ते हैं। लगातार ओवरलोड से यह प्रक्रिया बार-बार होती है, जिससे ट्रांसफार्मर के आंतरिक घटकों पर यांत्रिक तनाव पड़ता है और वे ढीले हो सकते हैं।
बुकोल्ज़ रिले का संचालन: यदि ओवरलोड के कारण तेल में गैस बनने लगती है, तो बुकोल्ज़ रिले सक्रिय हो सकती है, जो अलार्म या ट्रिपिंग सिग्नल दे सकती है।
संक्षेप में,
लगातार ओवरलोड ट्रांसफार्मर के लिए एक धीमी और हानिकारक प्रक्रिया है जो इसकी विश्वसनीयता को कम करती है और अंततः महंगी मरम्मत या प्रतिस्थापन की ओर ले जाती है।
ट्रांसफार्मर सुरक्षा में ओवरलोड रिले और ओवरकरंट रिले दोनों ही अत्यधिक धारा के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन उनके उद्देश्य, प्रतिक्रिया की गति और कार्यप्रणाली में महत्वपूर्ण अंतर हैं।
ओवरलोड रिले (Overload Relay)
- उद्देश्य: यह मुख्य रूप से लंबे समय तक चलने वाले, हल्के से मध्यम अधिभार (overload) की स्थिति से बचाने के लिए होता है। इसका लक्ष्य ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग के तापमान को सुरक्षित सीमा के भीतर रखना है।
- प्रतिक्रिया: यह जानबूझकर देरी (intentional time delay) के साथ काम करता है। यह क्षणिक ओवरलोड (जैसे मोटर शुरू होने पर) पर तुरंत ट्रिप नहीं होता है, बल्कि तापमान के बढ़ने पर प्रतिक्रिया करता है। इसका संचालन थर्मल इमेजिंग या थर्मल एनालॉग के सिद्धांत पर आधारित होता है।
- कार्यप्रणाली: यह ट्रांसफार्मर के माध्यम से बहने वाली धारा को मापता है और एक आंतरिक मॉडल का उपयोग करके वाइंडिंग के तापमान का अनुमान लगाता है। जब अनुमानित तापमान एक निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो यह अलार्म या ट्रिपिंग सिग्नल देता है।
ओवरकरंट रिले (Overcurrent Relay)
- उद्देश्य: यह अचानक और बड़े फॉल्ट करंट (जैसे शॉर्ट सर्किट) से बचाने के लिए होता है। यह त्वरित और निर्णायक कार्रवाई के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- प्रतिक्रिया: यह अधिभार रिले की तुलना में बहुत तेजी से काम करता है। इसमें एक तत्काल (instantaneous) तत्व होता है जो एक बहुत उच्च धारा का पता लगते ही बिना किसी देरी के तुरंत ट्रिप कर देता है।
- कार्यप्रणाली: यह सीधे ट्रांसफार्मर से बहने वाली धारा के परिमाण (magnitude) को मापता है। जब धारा का मान एक पूर्व-निर्धारित स्तर (सेटिंग) से अधिक हो जाता है, तो यह तुरंत या एक छोटी, निश्चित देरी के बाद ट्रिप करता है। इसका प्राथमिक ध्यान धारा के स्तर पर होता है, न कि तापमान पर।
जब किसी ट्रांसफार्मर को पहली बार ऊर्जा दी जाती है (चालू किया जाता है), तो यह एक क्षणिक, बहुत बड़ी धारा खींचता है जिसे इनरश करंट कहते हैं। यह धारा कुछ मिलीसेकंड तक रहती है और फिर सामान्य हो जाती है। यह एक सामान्य घटना है और फॉल्ट नहीं है।
इनरश करंट और फॉल्ट करंट में अंतर
ट्रांसफार्मर के सुरक्षा रिले के लिए इनरश करंट और फॉल्ट करंट के बीच अंतर करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक पर ट्रिप करने की आवश्यकता होती है जबकि दूसरे पर नहीं।
कैसे अलग किया जाता है?
ट्रांसफार्मर के सुरक्षा रिले, खासकर डिफरेंशियल रिले, इनरश करंट को फॉल्ट करंट से अलग करने के लिए मुख्य रूप से दूसरे हार्मोनिक प्रतिबंध (second harmonic restraint) का उपयोग करते हैं।
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दूसरा हार्मोनिक प्रतिबंध: रिले लगातार डिफरेंशियल करंट में दूसरे हार्मोनिक की मात्रा की निगरानी करता है।
- यदि दूसरे हार्मोनिक की मात्रा एक निश्चित प्रतिशत (आमतौर पर 15-20%) से अधिक होती है, तो रिले मानती है कि यह इनरश करंट है और ट्रिपिंग को रोक देती है।
- यदि दूसरे हार्मोनिक की मात्रा उस सीमा से कम होती है, तो रिले मानती है कि यह फॉल्ट करंट है और तुरंत ट्रिपिंग सिग्नल भेजती है।
यह विधि सुनिश्चित करती है कि ट्रांसफार्मर हर बार चालू होने पर अनावश्यक रूप से ट्रिप न हो।
मैग्नेटाइजिंग इनरश प्रोटेक्शन, ट्रांसफॉर्मर प्रोटेक्शन की एक सुविधा है जो बिजली ट्रांसफॉर्मर को चालू करने पर होने वाली तात्कालिक उच्च धारा (inrush current) से बचाती है।
यह इनरश करंट तब उत्पन्न होता है जब एक ट्रांसफॉर्मर को निष्क्रिय अवस्था से पहली बार ऊर्जा दी जाती है। यह धारा सामान्य शॉर्ट-सर्किट फॉल्ट करंट के समान हो सकती है, जिससे ट्रांसफॉर्मर के डिफरेंशियल प्रोटेक्शन रिले (differential protection relay) गलत तरीके से ट्रिप हो सकते हैं।
यह कैसे काम करता है?
मैग्नेटाइजिंग इनरश प्रोटेक्शन (magnetizing inrush protection) एक विशेष एल्गोरिदम का उपयोग करता है जो इनरश करंट को फॉल्ट करंट से अलग पहचानता है। यह पहचान इन धाराओं के बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतरों पर आधारित है:
- इनरश करंट में हार्मोनिक्स (Harmonics): इनरश करंट में बहुत अधिक दूसरे हार्मोनिक्स (second harmonics) होते हैं, जबकि फॉल्ट करंट में ये हार्मोनिक्स बहुत कम होते हैं।
- इनरश करंट का गैर-आवधिक (Non-periodic) स्वभाव: इनरश करंट में एक गैर-आवधिक डीसी घटक (non-periodic DC component) होता है, जो फॉल्ट करंट में नहीं होता।
सुरक्षा का महत्व
यह सुरक्षा सुविधा बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह गलत ट्रिपिंग को रोकती है और ट्रांसफॉर्मर के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करती है। इसके बिना, जब भी किसी ट्रांसफॉर्मर को चालू किया जाता, तो इनरश करंट के कारण सुरक्षा रिले बार-बार ट्रिप हो सकते थे, जिससे बिजली आपूर्ति में अनावश्यक रुकावट आती।
आधुनिक ट्रांसफॉर्मर सुरक्षा रिले (modern transformer protection relays) में यह सुविधा मानक रूप से शामिल होती है।
दूसरे हार्मोनिक प्रतिबंध (second harmonic restraint) का उपयोग ट्रांसफॉर्मर के डिफरेंशियल प्रोटेक्शन रिले (differential protection relay) में इनरश करंट के कारण होने वाली झूठी ट्रिपिंग को रोकने के लिए किया जाता है।
यह तकनीक इस सिद्धांत पर काम करती है कि ट्रांसफार्मर का इनरश करंट (inrush current) जिसमें डीसी कंपोनेंट होता है, वो दूसरे हार्मोनिक (second harmonic) में बहुत समृद्ध होता है, जबकि आंतरिक फॉल्ट करंट (internal fault current) में यह कंपोनेंट बहुत कम होता है।
कैसे काम करता है
- धारा का विश्लेषण: रिले लगातार ट्रांसफार्मर के प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच के डिफरेंशियल करंट (अंतर धारा) को मापता है।
- हार्मोनिक की पहचान: जब यह डिफरेंशियल करंट एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाता है, तो रिले तुरंत उस करंट के हार्मोनिक कंपोनेंट्स का विश्लेषण करता है।
- प्रतिबंध की सक्रियता: यदि रिले यह पाता है कि डिफरेंशियल करंट में 20% से अधिक दूसरे हार्मोनिक कंपोनेंट मौजूद है, तो यह मान लेता है कि यह एक इनरश करंट है न कि कोई आंतरिक फॉल्ट।
- ट्रिपिंग को रोकना: ऐसे मामलों में, रिले ट्रिपिंग कमांड को रोक देता है, जिससे ट्रांसफार्मर को सुरक्षित रूप से चालू होने दिया जाता है।
यह विधि ट्रांसफॉर्मर को बिना किसी रुकावट के चालू करने में मदद करती है, जबकि वास्तविक फॉल्ट (जैसे वाइंडिंग में शॉर्ट-सर्किट) के दौरान रिले को ठीक से काम करने देती है, क्योंकि उस स्थिति में दूसरे हार्मोनिक्स नहीं होते हैं।
ट्रांसफॉर्मर में ओवरफ्लक्सिंग सुरक्षा (overfluxing protection),
जिसे ओवरएक्साइटेशन प्रोटेक्शन (overexcitation protection) भी कहा जाता है,
एक महत्वपूर्ण सुरक्षा विशेषता है जो ट्रांसफॉर्मर को अत्यधिक चुंबकीय फ्लक्स (magnetic flux) से होने वाले नुकसान से बचाती है। यह सुरक्षा ट्रांसफॉर्मर के अंदर के V/f (वोल्टेज-से-आवृत्ति) अनुपात पर आधारित होती है।
फ्लक्स घनत्व (flux density) सीधे तौर पर इस अनुपात के समानुपाती होता है। {Flux}{V}{f} यदि वोल्टेज (V) बढ़ता है या आवृत्ति (f) घटती है, तो V/f अनुपात बढ़ जाता है, जिससे ट्रांसफॉर्मर कोर में फ्लक्स बढ़ जाता है। ओवरफ्लक्सिंग के कारण होने वाले नुकसान जब फ्लक्स अपनी डिज़ाइन सीमा से अधिक हो जाता है, तो ट्रांसफॉर्मर कोर (core) सैचुरेट (संतृप्त) हो जाता है।
इसके कारण: कोर में अत्यधिक एडी करंट (eddy current) और हिस्टेरेसिस लॉस (hysteresis loss) होता है, जिससे कोर और आसपास के धातु के पुर्जों में अत्यधिक गर्मी पैदा होती है।
यह गर्मी इंसुलेशन (insulation) को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे ट्रांसफॉर्मर का जीवनकाल कम हो जाता है या वह स्थायी रूप से खराब हो सकता है। ओवरफ्लक्सिंग के कारण अत्यधिक चुंबकीय धारा (magnetizing current) प्रवाहित होती है,
जो सामान्य से 10 गुना तक अधिक हो सकती है।
ओवरफ्लक्सिंग सुरक्षा कैसे काम करती है?
ओवरफ्लक्सिंग सुरक्षा रिले लगातार ट्रांसफॉर्मर के V/f अनुपात को मापता है।
अनुपात की निगरानी: रिले V/f अनुपात को मॉनिटर करता है।
अलार्म और ट्रिपिंग: यदि V/f अनुपात एक निश्चित सीमा (आमतौर पर 1.1 गुना) से अधिक हो जाता है,
तो रिले एक टाइम डिले (समय में देरी) के बाद अलार्म बजाता है या ट्रांसफॉर्मर को ट्रिप कर देता है।
इन्वर्स-टाइम विशेषता: यह सुरक्षा आमतौर पर इन्वर्स-टाइम विशेषता (inverse-time characteristic) के साथ काम करती है, जिसका मतलब है कि V/f अनुपात जितना अधिक होगा, ट्रिपिंग का समय उतना ही कम होगा। ऐसा इसलिए है
क्योंकि ट्रांसफॉर्मर थोड़े समय के लिए हल्के ओवरफ्लक्सिंग को सहन कर सकता है, लेकिन गंभीर ओवरफ्लक्सिंग को तुरंत बंद करना आवश्यक होता है।
यह सुरक्षा विशेष रूप से जनरेटर से जुड़े ट्रांसफॉर्मर के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि जनरेटर के स्टार्ट-अप या शटडाउन के दौरान V/f अनुपात में उतार-चढ़ाव होने की संभावना होती है।
ट्रांसफार्मर में ओवरफ्लक्सिंग तब होती है जब ट्रांसफार्मर के कोर में चुंबकीय फ्लक्स (magnetic flux) डिज़ाइन की गई सीमा से अधिक हो जाता है। यह मुख्य रूप से वोल्टेज-से-आवृत्ति (V/f) अनुपात के बढ़ने के कारण होता है। जब V/f अनुपात बढ़ता है, तो ट्रांसफार्मर कोर में फ्लक्स भी बढ़ जाता है।
ओवरफ्लक्सिंग के कारण
- ओवरवोल्टेज (Overvoltage): यदि सिस्टम का वोल्टेज बढ़ जाता है, खासकर जब ट्रांसफार्मर पर लोड अचानक हट जाता है, तो V/f अनुपात बढ़ जाता है, जिससे ओवरफ्लक्सिंग होती है।
- कम आवृत्ति (Under-frequency): जब बिजली जनरेटर की आवृत्ति कम हो जाती है, तो भी V/f अनुपात बढ़ता है और ओवरफ्लक्सिंग की स्थिति पैदा होती है। यह अक्सर जनरेटर के स्टार्ट-अप या शटडाउन के दौरान होता है।
ओवरफ्लक्सिंग से होने वाले नुकसान
ओवरफ्लक्सिंग की स्थिति ट्रांसफार्मर के लिए बहुत हानिकारक होती है और यह कई गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती है:
- कोर सैचुरेशन: जब फ्लक्स बहुत अधिक हो जाता है, तो ट्रांसफार्मर का कोर सैचुरेट (संतृप्त) हो जाता है। इसका मतलब है कि कोर अब और अधिक फ्लक्स को संभाल नहीं सकता।
- अत्यधिक ऊष्मा: कोर सैचुरेशन के कारण कोर और आसपास के धातु के पुर्जों में अत्यधिक एडी करंट (eddy current) और हिस्टेरेसिस लॉस (hysteresis loss) होता है। यह अतिरिक्त ऊष्मा ट्रांसफार्मर के इन्सुलेशन को नुकसान पहुंचाती है, जिससे उसकी लाइफ कम हो जाती है।
- मैग्नेटाइजिंग करंट में वृद्धि: ओवरफ्लक्सिंग के कारण ट्रांसफार्मर का मैग्नेटाइजिंग करंट (चुंबकीय धारा) बहुत बढ़ जाता है, जो सामान्य मान से 10 गुना तक अधिक हो सकता है। यह उच्च धारा ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग पर अत्यधिक तनाव डालती है।
- सुरक्षा रिले की झूठी ट्रिपिंग: बढ़ा हुआ मैग्नेटाइजिंग करंट ट्रांसफार्मर के ओवरकरंट और डिफरेंशियल प्रोटेक्शन रिले को गलत तरीके से ट्रिगर कर सकता है, जिससे अनावश्यक ट्रिपिंग होती है।
ओवरफ्लक्सिंग की स्थिति गंभीर होने पर ट्रांसफार्मर को स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त कर सकती है, इसलिए इसकी सुरक्षा के लिए विशेष रिले का उपयोग किया जाता है।
ट्रांसफार्मर की सुरक्षा प्रणालियों से संबंधित नियमित परीक्षण यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि वे सही ढंग से काम कर रही हैं और ट्रांसफार्मर को नुकसान से बचाती हैं। ये परीक्षण ट्रांसफार्मर के प्रोटेक्शन रिले और अन्य सुरक्षा उपकरणों पर किए जाते हैं।
नियमित परीक्षणों के प्रकार
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दृश्य और यांत्रिक निरीक्षण (Visual & Mechanical Inspection):
- रिले और संबंधित वायरिंग की भौतिक स्थिति की जाँच करना।
- देखना कि कोई ढीला कनेक्शन, धूल या जंग तो नहीं है।
- सभी संकेतक (indicators) और अलार्म (alarms) का सही ढंग से काम करना सुनिश्चित करना।
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मापन और अंशांकन (Measurement and Calibration):
- इंसुलेशन प्रतिरोध मापन (Insulation Resistance Measurement): रिले सर्किट के इन्सुलेशन प्रतिरोध को मापा जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई शॉर्ट-सर्किट या लीकेज तो नहीं है।
- सेटिंग्स की जाँच (Settings Verification): रिले में दर्ज की गई सभी सुरक्षा सेटिंग्स (जैसे ओवरकरंट, डिफरेंशियल, और ओवरफ्लक्सिंग के मान) की जाँच की जाती है ताकि वे सिस्टम की आवश्यकताओं के अनुरूप हों।
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फंक्शनल टेस्टिंग (Functional Testing):
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सेकेंडरी इंजेक्शन टेस्टिंग (Secondary Injection Testing): यह सबसे आम तरीका है। इसमें एक विशेष उपकरण का उपयोग करके रिले के इनपुट (जैसे CT और PT के सेकेंडरी साइड) में नकली करंट और वोल्टेज इंजेक्ट किया जाता है।
- इसका उद्देश्य यह जांचना है कि रिले सही समय पर और सही मानों पर ट्रिप कर रहा है।
- उदाहरण के लिए, एक ओवरकरंट रिले में नकली फॉल्ट करंट इंजेक्ट करके यह देखा जाता है कि वह निर्धारित समय में ट्रिप करता है या नहीं।
- एंड-टू-एंड टेस्टिंग (End-to-End Testing): यह एक अधिक व्यापक परीक्षण है जिसमें पूरी सुरक्षा योजना की जाँच की जाती है। इसमें रिले के साथ-साथ सर्किट ब्रेकर और संचार लिंक (communication links) के बीच तालमेल की जाँच होती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ट्रिप सिग्नल सही तरीके से सर्किट ब्रेकर तक पहुँच रहा है।
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सेकेंडरी इंजेक्शन टेस्टिंग (Secondary Injection Testing): यह सबसे आम तरीका है। इसमें एक विशेष उपकरण का उपयोग करके रिले के इनपुट (जैसे CT और PT के सेकेंडरी साइड) में नकली करंट और वोल्टेज इंजेक्ट किया जाता है।
- ऑयल और गैस विश्लेषण (Oil and Gas Analysis):
- तेल से भरे ट्रांसफार्मर में, डिजॉल्व्ड गैस एनालिसिस (DGA) नियमित रूप से किया जाता है।
- यह तेल में घुल चुकी गैसों (जैसे हाइड्रोजन, मीथेन) की मात्रा का विश्लेषण करके ट्रांसफार्मर के अंदर के संभावित दोषों का पता लगाता है।
- इससे बुचहोल्ज़ रिले (Buchholz relay) जैसे गैस-आधारित सुरक्षा उपकरणों के सही काम करने की जाँच में भी मदद मिलती है।
बुचोल्ज़ रिले (Buchholz relay) का परीक्षण ट्रांसफार्मर के रखरखाव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह सुनिश्चित करता है कि रिले ठीक से काम कर रहा है और ट्रांसफार्मर में किसी भी आंतरिक खराबी का पता लगा सकता है। चूंकि बुचोल्ज़ रिले दो मुख्य सिद्धांतों (गैस संचय और तेल प्रवाह) पर काम करता है, इसलिए इसके परीक्षण भी इन्हीं दो सिद्धांतों पर आधारित होते हैं।
गैस संचय (Gas Accumulation) परीक्षण
यह परीक्षण यह जांचने के लिए किया जाता है कि रिले का ऊपरी फ्लोट (float) और अलार्म सर्किट (alarm circuit) ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं।
- गैस संग्रह: रिले के शीर्ष पर एक गैस रिलीज कॉक (test cock) होता है। इस कॉक पर एक परीक्षण बोतल लगाई जाती है।
- पंप का उपयोग: एक परीक्षण पंप या सिरिंज का उपयोग करके रिले के अंदर हवा भरी जाती है। यह हवा ट्रांसफार्मर के आंतरिक दोषों से उत्पन्न हुई गैस का अनुकरण करती है।
- अलार्म की जाँच: जब पर्याप्त हवा जमा हो जाती है, तो ऊपरी फ्लोट नीचे की ओर झुकता है, जिससे अलार्म सर्किट सक्रिय हो जाता है।
- निष्कर्ष: यदि अलार्म बजता है, तो ऊपरी फ्लोट और अलार्म सर्किट ठीक से काम कर रहे हैं। यदि अलार्म नहीं बजता है, तो मरम्मत की आवश्यकता होती है।
तेल प्रवाह (Oil Flow) परीक्षण
यह परीक्षण यह जांचने के लिए किया जाता है कि रिले का निचला फ्लोट (float) और ट्रिप सर्किट (trip circuit) ठीक से काम कर रहे हैं या नहीं।
- तेल का प्रवाह: यह परीक्षण ट्रांसफार्मर के तेल के तेज़ प्रवाह का अनुकरण करता है, जो बड़े आंतरिक फॉल्ट (जैसे वाइंडिंग में शॉर्ट-सर्किट) के कारण होता है।
- तेज प्रवाह का निर्माण: रिले में एक विशेष पंप का उपयोग करके तेल को बहुत तेजी से प्रवाहित किया जाता है।
- ट्रिप सर्किट की जाँच: इस तेज़ प्रवाह के कारण निचला फ्लोट झुक जाता है, जिससे ट्रिप सर्किट सक्रिय हो जाता है और यह सर्किट ब्रेकर को ट्रिपिंग कमांड भेजता है।
- निष्कर्ष: यदि सर्किट ब्रेकर ट्रिप करता है, तो निचला फ्लोट और ट्रिप सर्किट ठीक से काम कर रहे हैं। यदि नहीं, तो रिले में खराबी है।
यह परीक्षण अक्सर तब किया जाता है जब ट्रांसफार्मर को ओवरहाल किया जाता है या जब रिले के काम करने में कोई समस्या का संदेह होता है।
डीजीए परीक्षण,
जिसे डिजॉल्व्ड गैस एनालिसिस (Dissolved Gas Analysis) भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण नैदानिक तकनीक है जिसका उपयोग तेल से भरे ट्रांसफार्मर के आंतरिक स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। यह परीक्षण ट्रांसफार्मर के इन्सुलेटिंग तेल में घुली हुई गैसों का विश्लेषण करता है।
डीजीए परीक्षण कैसे काम करता है?
जब ट्रांसफार्मर के अंदर कोई दोष (जैसे आर्किंग, ओवरहीटिंग, या आंशिक निर्वहन) विकसित होता है, तो अत्यधिक गर्मी और विद्युत तनाव के कारण ट्रांसफार्मर के इन्सुलेशन (तेल और कागज) का अपघटन होता है। इस प्रक्रिया में विभिन्न प्रकार की गैसें बनती हैं, जो तेल में घुल जाती हैं।
डीजीए परीक्षण में,
तेल का एक छोटा सा नमूना लिया जाता है और उसे एक प्रयोगशाला में भेजा जाता है।
प्रयोगशाला में,
गैसों को तेल से निकाला जाता है और गैस क्रोमैटोग्राफी नामक तकनीक का उपयोग करके उनका विश्लेषण किया जाता है।
यह विश्लेषण निम्न गैसों की सांद्रता (concentration) को मापता है:
हाइड्रोजन (H_2): आंशिक निर्वहन (partial discharge) और कम तापमान की ओवरहीटिंग का संकेत।
एसिटिलीन (C_2H_2): उच्च-ऊर्जा आर्किंग (high-energy arcing) का संकेत, जो सबसे गंभीर दोषों में से एक है।
मीथेन (CH_4): सामान्य ओवरहीटिंग का संकेत।
एथिलीन (C_2H_4): उच्च तापमान की ओवरहीटिंग का संकेत।
कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और कार्बन डाइऑक्साइड (CO_2): कागज के इन्सुलेशन के अपघटन का संकेत।
यह ट्रांसफार्मर स्वास्थ्य के लिए क्यों महत्वपूर्ण है?
डीजीए परीक्षण ट्रांसफार्मर के लिए एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (early warning system) के रूप में कार्य करता है।
यह महत्वपूर्ण है क्योंकि:
प्रारंभिक दोष का पता लगाना: यह गंभीर खराबी होने से पहले ही आंतरिक समस्याओं का पता लगा सकता है। चूंकि यह गैसों की सांद्रता में छोटे बदलावों को भी माप सकता है, इसलिए यह दोषों को उनके शुरुआती चरण में पहचान लेता है, जिससे बड़ी दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।
दोष का प्रकार और गंभीरता: गैसों के अनुपात और सांद्रता का विश्लेषण करके, इंजीनियर दोष के प्रकार (thermal या electrical) और उसकी गंभीरता का निदान कर सकते हैं। इससे उन्हें सही समय पर और उचित रखरखाव कार्रवाई करने में मदद मिलती है।
रखरखाव का अनुकूलन:नियमित डीजीए परीक्षण से प्राप्त डेटा के रुझानों (trends) का विश्लेषण करके, रखरखाव की योजना को अनुकूलित किया जा सकता है। यह अनावश्यक डाउनटाइम और लागत को कम करता है, जबकि ट्रांसफार्मर की विश्वसनीयता बढ़ाता है।
कुल मिलाकर,
डीजीए एक गैर-विनाशकारी (non-destructive) और अत्यधिक प्रभावी विधि है जो ट्रांसफार्मर के स्वास्थ्य की निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और उसके जीवनकाल को बढ़ाती है।
इन्सुलेशन प्रतिरोध परीक्षण (Insulation Resistance Test) ट्रांसफार्मर सुरक्षा से सीधे तौर पर संबंधित है क्योंकि यह ट्रांसफार्मर के इन्सुलेशन सिस्टम की स्थिति का आकलन करता है। यह परीक्षण यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग और कोर के बीच कोई विद्युत लीकेज नहीं है, जिससे शॉर्ट-सर्किट और अन्य गंभीर फॉल्ट को रोका जा सके।
यह कैसे काम करता है?
इन्सुलेशन प्रतिरोध परीक्षण, जिसे मेगरिंग (Meggering) भी कहा जाता है, एक मेगर (Megohmmeter) नामक उपकरण का उपयोग करता है। यह मेगर उच्च डीसी वोल्टेज (500V से 5000V) को ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग पर लगाता है और वाइंडिंग और ग्राउंड के बीच या वाइंडिंग के बीच प्रवाहित होने वाले लीकेज करंट को मापता है।
मेगर इस करंट के आधार पर इन्सुलेशन का प्रतिरोध (Resistance) मेगाओहम (M$\Omega$) में दिखाता है।
- उच्च प्रतिरोध: एक उच्च इन्सुलेशन प्रतिरोध (इकाइयों से लेकर सैकड़ों मेगाओहम तक) स्वस्थ और मजबूत इन्सुलेशन को दर्शाता है।
- कम प्रतिरोध: एक कम इन्सुलेशन प्रतिरोध इन्सुलेशन के खराब होने का संकेत देता है, जो नमी, धूल, या अत्यधिक गर्मी के कारण हो सकता है।
सुरक्षा से संबंध
यह परीक्षण ट्रांसफार्मर सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि:
- फॉल्ट का पता लगाना: यह संभावित शॉर्ट-सर्किट या अर्थ फॉल्ट का पता लगाने में मदद करता है, क्योंकि कमजोर इन्सुलेशन के कारण ये फॉल्ट हो सकते हैं।
- निवारक रखरखाव (Preventive Maintenance): नियमित रूप से इन्सुलेशन प्रतिरोध की जाँच करके, इंजीनियर इन्सुलेशन की स्थिति में गिरावट के रुझानों (trends) का पता लगा सकते हैं। इससे उन्हें ट्रांसफार्मर को गंभीर क्षति होने से पहले ही आवश्यक रखरखाव करने का समय मिल जाता है।
- ओवरहीटिंग की रोकथाम: खराब इन्सुलेशन के कारण लीकेज करंट बढ़ता है, जिससे ट्रांसफार्मर के अंदर गर्मी पैदा होती है। यह परीक्षण इस समस्या को शुरुआती चरण में ही पहचान सकता है।
यह परीक्षण मुख्य रूप से रखरखाव के दौरान किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ट्रांसफार्मर का इन्सुलेशन उसकी सुरक्षा प्रणालियों को ठीक से काम करने के लिए पर्याप्त मजबूत है।
ट्रांसफार्मर की सुरक्षा के लिए समय-समय पर तेल परीक्षण आवश्यक है क्योंकि यह ट्रांसफार्मर के आंतरिक स्वास्थ्य और स्थिति का मूल्यांकन करने में मदद करता है। यह एक निवारक रखरखाव प्रक्रिया है जो संभावित समस्याओं का शुरुआती चरण में ही पता लगा लेती है, जिससे ट्रांसफार्मर को गंभीर क्षति से बचाया जा सकता है।
तेल परीक्षण का महत्व और प्रकार
ट्रांसफार्मर का तेल न केवल एक इन्सुलेटिंग माध्यम के रूप में कार्य करता है बल्कि यह वाइंडिंग और कोर को ठंडा भी करता है। समय के साथ, तेल की गुणवत्ता खराब हो जाती है या इसमें दोषों के कारण गैसें घुल जाती हैं। तेल परीक्षण इन्हीं दोषों का पता लगाने में मदद करता है।
1. डीजीए (डिजॉल्व्ड गैस एनालिसिस):
यह सबसे महत्वपूर्ण तेल परीक्षणों में से एक है। . यह ट्रांसफार्मर के तेल में घुली हुई विभिन्न गैसों जैसे हाइड्रोजन, एसिटिलीन, मीथेन, एथिलीन आदि की मात्रा का विश्लेषण करता है। इन गैसों का निर्माण ट्रांसफार्मर के अंदर के दोषों जैसे ओवरहीटिंग, आर्किंग और आंशिक निर्वहन के कारण होता है। डीजीए से प्राप्त डेटा के आधार पर दोष के प्रकार और उसकी गंभीरता का पता लगाया जा सकता है।
2. ब्रेकडाउन वोल्टेज (Dielectric Strength) परीक्षण:
यह परीक्षण तेल की इन्सुलेटिंग क्षमता को मापता है। उच्च वोल्टेज के तहत, यदि तेल का ब्रेकडाउन हो जाता है, तो इसका मतलब है कि उसमें नमी या अन्य अशुद्धियां मौजूद हैं। कम ब्रेकडाउन वोल्टेज ट्रांसफार्मर के लिए एक सुरक्षा जोखिम है, क्योंकि यह इन्सुलेशन विफलता और शॉर्ट-सर्किट का कारण बन सकता है।
3. नमी सामग्री (Moisture Content) परीक्षण:
तेल में नमी की उपस्थिति ट्रांसफार्मर के इन्सुलेशन को कमजोर करती है और इसकी सुरक्षा को खतरे में डालती है। नमी की मात्रा को मापने से ट्रांसफार्मर के इन्सुलेशन की स्थिति का पता चलता है, जिससे समय रहते सुधारात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
सुरक्षा से संबंध
- प्रारंभिक चेतावनी: ये परीक्षण ट्रांसफार्मर में होने वाले फॉल्ट का शुरुआती चरण में ही पता लगा लेते हैं, जिससे बड़ा नुकसान होने से पहले ही मरम्मत की जा सकती है।
- निर्णय लेने में मदद: परीक्षणों से प्राप्त डेटा रखरखाव टीमों को ट्रांसफार्मर के ओवरहाल या बदलने के बारे में सही निर्णय लेने में मदद करता है।
- विश्वसनीयता और जीवनकाल: नियमित तेल परीक्षण ट्रांसफार्मर की विश्वसनीयता और उसके जीवनकाल को बढ़ाते हैं, जिससे बिजली आपूर्ति की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
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