ओवेरवॉल्टेज और अंडरवोल्टेज सुरक्षा प्रणालियां ( Overvoltage & Undervoltage Protection System )

ओवेरवॉल्टेज और अंडरवोल्टेज सुरक्षा प्रणालियां ऐसी प्रणालियां हैं जो उपकरणों को उनके रेटेड वोल्टेज से अधिक या कम होने से होने वाले नुकसान से बचाती हैं। ये प्रणालियां वोल्टेज में उतार-चढ़ाव का पता लगाती हैं और यदि वोल्टेज एक सुरक्षित सीमा से बाहर चला जाता है तो सर्किट को काट देती हैं, जिससे उपकरण सुरक्षित रहते हैं।

ओवरवोल्टेज सुरक्षा (Overvoltage Protection)

​ओवरवोल्टेज तब होता है जब एक विद्युत उपकरण को उसके डिज़ाइन किए गए वोल्टेज से अधिक वोल्टेज मिलता है। यह कई कारणों से हो सकता है, जैसे बिजली गिरना ,पावर ग्रिड में खराबी, या भारी मोटर चालू होने पर अचानक वोल्टेज बढ़ना। ओवरवोल्टेज से उपकरण के सर्किट और घटकों को स्थायी नुकसान हो सकता है, जिससे वे जल सकते हैं।

ओवरवोल्टेज से बचाव के उपाय:

  • सर्ज प्रोटेक्टर (Surge Protector): ये उपकरण अतिरिक्त वोल्टेज को जमीन में मोड़कर बिजली के झटके और वोल्टेज स्पाइक्स से उपकरणों की रक्षा करते हैं। ये घरेलू और ऑफिस दोनों जगहों पर व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं।
  • वोल्टेज लिमिटर (Voltage Limiter): ये ऐसे उपकरण होते हैं जो एक निश्चित सीमा से अधिक वोल्टेज को रोकते हैं।
  • ओवरवोल्टेज रिले (Overvoltage Relay): ये रिले वोल्टेज को लगातार मॉनिटर करते हैं और जब वोल्टेज एक सेट सीमा से ऊपर चला जाता है तो सर्किट को डिस्कनेक्ट कर देते हैं।

अंडरवोल्टेज सुरक्षा (Undervoltage Protection)

​अंडरवोल्टेज तब होता है जब एक विद्युत उपकरण को उसके डिज़ाइन किए गए वोल्टेज से कम वोल्टेज मिलता है। इसे अक्सर "ब्राउनआउट" भी कहा जाता है। यह आमतौर पर पावर ग्रिड पर अधिक भार पड़ने या दूर के सबस्टेशन से बिजली की आपूर्ति होने के कारण होता है। अंडरवोल्टेज से उपकरण ओवरहीट हो सकते हैं और उनकी मोटरें या अन्य घटक खराब हो सकते हैं।

अंडरवोल्टेज से बचाव के उपाय:

  • अंडरवोल्टेज रिले (Undervoltage Relay): ये रिले वोल्टेज की निगरानी करते हैं और जब वोल्टेज एक सुरक्षित सीमा से नीचे चला जाता है तो सर्किट को खोल देते हैं।
  • वोल्टेज स्टेबलाइज़र (Voltage Stabilizer): ये उपकरण इनपुट वोल्टेज में उतार-चढ़ाव को स्थिर करते हैं ताकि उपकरण को लगातार एक ही वोल्टेज मिल सके। ये रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर जैसे उपकरणों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।

सुरक्षा प्रणालियों का महत्व

​ये दोनों सुरक्षा प्रणालियां विद्युत उपकरणों की लंबी उम्र और सुरक्षित संचालन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। ये न केवल महंगे उपकरणों को बचाने में मदद करती हैं, बल्कि आग लगने और अन्य दुर्घटनाओं के जोखिम को भी कम करती हैं। इसलिए, घरेलू और औद्योगिक दोनों जगहों पर इनका उपयोग बहुत आवश्यक है।



ओवरवोल्टेज (अधिवोल्टता) एक ऐसी स्थिति है जब किसी विद्युत सर्किट या उपकरण में वोल्टेज उसकी सामान्य डिज़ाइन सीमा से अधिक हो जाता है। यह एक गंभीर समस्या है क्योंकि यह उपकरणों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे वे जल सकते हैं या खराब हो सकते हैं।

ओवरवोल्टेज के कारण

ओवरवोल्टेज के मुख्य दो कारण होते हैं:

आंतरिक कारण (Internal Causes): ये कारण विद्युत प्रणाली के भीतर ही उत्पन्न होते हैं।

  • स्विचिंग ऑपरेशन: जब बड़े विद्युत उपकरणों को चालू या बंद किया जाता है, तो वोल्टेज में अचानक उतार-चढ़ाव हो सकता है।
  • लोड में बदलाव: जब पावर ग्रिड पर अचानक लोड कम हो जाता है, तो वोल्टेज बढ़ सकता है।

बाहरी कारण (External Causes): ये कारण विद्युत प्रणाली के बाहर से उत्पन्न होते हैं।

बिजली गिरना (Lightning Strikes): यह ओवरवोल्टेज का सबसे खतरनाक बाहरी कारण है। बिजली गिरने से बहुत अधिक वोल्टेज का एक क्षणिक झटका (transient spike) उत्पन्न होता है, जो उपकरणों को तुरंत नष्ट कर सकता है।

पावर ग्रिड में खराबी: सबस्टेशन या ट्रांसफार्मर में तकनीकी खराबी के कारण भी वोल्टेज बढ़ सकता है।

ओवरवोल्टेज से होने वाले नुकसान

ओवरवोल्टेज से उपकरणों को कई तरह के नुकसान हो सकते हैं:

  • इंसुलेशन ब्रेकडाउन: उच्च वोल्टेज उपकरणों के अंदर लगे इंसुलेशन को तोड़ सकता है, जिससे शॉर्ट सर्किट और आग लगने का खतरा बढ़ जाता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक घटकों का जलना: ओवरवोल्टेज से सर्किट बोर्ड और संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक घटक जैसे कैपेसिटर, ट्रांजिस्टर और आईसी (integrated circuits) जल सकते हैं।
  • ओवरहीटिंग: उच्च वोल्टेज के कारण उपकरण में ज़्यादा करंट बहने लगता है, जिससे वे ज़्यादा गरम हो जाते हैं और उनकी वाइंडिंग या अन्य भाग जल सकते हैं।

​इस समस्या से बचने के लिए सर्ज प्रोटेक्टर और ओवरवोल्टेज रिले जैसी सुरक्षा प्रणालियों का उपयोग किया जाता है।



अंडरवोल्टेज (अधोवोल्टता) तब होता है जब किसी विद्युत उपकरण को उसके सामान्य डिज़ाइन वोल्टेज से कम वोल्टेज मिलता है। इस स्थिति को कभी-कभी "ब्राउनआउट" भी कहा जाता है। अंडरवोल्टेज के कारण उपकरण ठीक से काम नहीं कर पाते और उनके खराब होने का खतरा बढ़ जाता है।

अंडरवोल्टेज के कारण

अंडरवोल्टेज के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से मुख्य हैं:

  • पावर ग्रिड पर ज़्यादा लोड: जब बहुत सारे उपकरण एक साथ चल रहे हों, तो पावर ग्रिड पर अतिरिक्त भार पड़ता है, जिससे वोल्टेज कम हो जाता है।
  • लंबी ट्रांसमिशन लाइनें: लंबी दूरी से आने वाली बिजली आपूर्ति में वोल्टेज ड्रॉप हो सकता है।
  • गलत वायरिंग या ढीले कनेक्शन: खराब या पुरानी वायरिंग और ढीले तार भी वोल्टेज को कम कर सकते हैं।

अंडरवोल्टेज से होने वाले नुकसान

अंडरवोल्टेज से उपकरणों को कई तरह से नुकसान पहुँच सकता है:

  • ओवरहीटिंग: जब वोल्टेज कम होता है, तो उपकरण को अपना काम करने के लिए अधिक करंट की आवश्यकता होती है। यह अतिरिक्त करंट उपकरण को ज़्यादा गरम कर सकता है, जिससे उसकी मोटर या वाइंडिंग जल सकती है।
  • उपकरणों का खराब प्रदर्शन: कम वोल्टेज के कारण उपकरण अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते, जिससे उनका प्रदर्शन धीमा हो जाता है। उदाहरण के लिए, एक मोटर कम गति पर चलेगी।
  • शुरुआती समस्याएं: कई उपकरण, विशेष रूप से जिनमें मोटर होती है, कम वोल्टेज पर शुरू ही नहीं हो पाते।
  • जीवनकाल में कमी: लगातार कम वोल्टेज पर काम करने से उपकरणों का जीवनकाल कम हो जाता है।

​अंडरवोल्टेज से बचाव के लिए वोल्टेज स्टेबलाइज़र और अंडरवोल्टेज प्रोटेक्शन रिले का उपयोग किया जाता है, जो वोल्टेज को एक सुरक्षित सीमा के भीतर रखते हैं।



ओवरवोल्टेज के मुख्य कारण आंतरिक (Internal) और बाहरी (External) होते हैं।

बाहरी कारण (External Causes)

​ये कारण विद्युत प्रणाली के बाहर से उत्पन्न होते हैं।

बिजली गिरना (Lightning Strikes): यह सबसे आम और गंभीर कारण है। जब बिजली गिरती है, तो यह विद्युत लाइनों और ग्रिड में अत्यधिक उच्च वोल्टेज का क्षणिक झटका (transient spike) पैदा कर सकती है, जो उपकरणों को तुरंत नष्ट कर सकता है।

इलेक्ट्रोस्टैटिक डिस्चार्ज (Electrostatic Discharges - ESD): स्थैतिक बिजली का संचय और फिर उसका अचानक डिस्चार्ज होना भी ओवरवोल्टेज का कारण बन सकता है, हालांकि यह आमतौर पर कम खतरनाक होता है।

आंतरिक कारण (Internal Causes)

​ये कारण विद्युत प्रणाली के भीतर ही उत्पन्न होते हैं।

  • स्विचिंग ऑपरेशन (Switching Operations): जब बड़े उपकरणों (जैसे भारी मोटर्स या ट्रांसफॉर्मर) को चालू या बंद किया जाता है, तो सर्किट में अचानक वोल्टेज में उतार-चढ़ाव होता है। यह अक्सर औद्योगिक सेटिंग्स में होता है।
  • इंसुलेशन फेलियर (Insulation Failure): जब किसी कंडक्टर का इंसुलेशन खराब हो जाता है और वह जमीन या किसी अन्य कंडक्टर के संपर्क में आता है, तो सर्किट में वोल्टेज बढ़ सकता है।
  • रेज़ोनेंस (Resonance): कुछ खास सर्किट स्थितियों में, इंडक्टिव और कैपेसिटिव रिएक्टेंस (inductive and capacitive reactance) एक दूसरे के बराबर हो सकते हैं, जिससे बहुत अधिक वोल्टेज उत्पन्न होता है। यह अक्सर लंबी ट्रांसमिशन लाइनों में होता है।
  • ग्राउंड फॉल्ट (Ground Fault): जब कोई लाइव कंडक्टर गलती से जमीन से जुड़ जाता है, तो यह बाकी सर्किट में वोल्टेज को बढ़ा सकता है।
  • लोड में अचानक बदलाव: जब किसी पावर ग्रिड से अचानक से भारी लोड हटा दिया जाता है, तो वोल्टेज सामान्य से अधिक हो सकता है।

​ये सभी कारण विद्युत उपकरणों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है और उनका जीवनकाल कम हो जाता है।


अंडरवोल्टेज के मुख्य कारण हैं:

  • पावर ग्रिड पर अत्यधिक भार: जब बहुत सारे उपकरण एक ही समय में बिजली का उपयोग करते हैं (जैसे गर्मियों में एयर कंडीशनर का ज़्यादा उपयोग), तो बिजली की मांग बढ़ जाती है।  इस अतिरिक्त भार के कारण वोल्टेज कम हो जाता है।
  • लंबी ट्रांसमिशन लाइनें: बिजली जब लंबी दूरी तक ट्रांसमिशन लाइनों से होकर आती है, तो वोल्टेज में स्वाभाविक रूप से थोड़ी गिरावट होती है, जिसे वोल्टेज ड्रॉप कहते हैं।
  • कमजोर या पुरानी वायरिंग: घरों या इमारतों में पुरानी, खराब या अपर्याप्त मोटाई की वायरिंग भी वोल्टेज ड्रॉप का कारण बन सकती है।
  • दोषपूर्ण उपकरण या ट्रांसफार्मर: किसी सबस्टेशन या ट्रांसफार्मर में खराबी के कारण भी वोल्टेज कम हो सकता है।
  • ढुलाई के दौरान नुकसान: कई बार, उपकरण को ले जाते समय वोल्टेज में उतार-चढ़ाव होता है जिससे अंडरवोल्टेज की स्थिति पैदा हो जाती है।

​ये सभी कारण उपकरणों को ओवरहीटिंग और खराब प्रदर्शन का शिकार बना सकते हैं, क्योंकि कम वोल्टेज पर काम करने के लिए उन्हें अधिक करंट खींचना पड़ता है।


ओवरवोल्टेज (अधिवोल्टता) के सिस्टम पर कई गंभीर प्रभाव पड़ते हैं, जो उपकरणों को स्थायी रूप से नुकसान पहुँचा सकते हैं और सुरक्षा जोखिम पैदा कर सकते हैं।

ओवरवोल्टेज से होने वाले नुकसान

इंसुलेशन ब्रेकडाउन: उच्च वोल्टेज के कारण उपकरणों और तारों में लगा इंसुलेशन (विद्युत रोधक परत) टूट सकता है। जब यह परत टूटती है, तो शॉर्ट सर्किट का खतरा बढ़ जाता है, जिससे आग लग सकती है।

घटकों का जलना: ओवरवोल्टेज से सर्किट बोर्ड के संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक घटक जैसे कैपेसिटर, रेसिस्टर, ट्रांजिस्टर, और आईसी (integrated circuits) जल सकते हैं। ये घटक अपनी निर्धारित वोल्टेज सीमा से अधिक वोल्टेज सहन नहीं कर पाते।

ओवरहीटिंग: जब वोल्टेज अचानक बढ़ता है, तो उपकरणों में बहुत अधिक करंट बहने लगता है। इससे उपकरण ज़्यादा गरम हो जाते हैं और उनकी मोटर या वाइंडिंग जल सकती है, जिससे उपकरण स्थायी रूप से खराब हो जाते हैं।

उपकरणों की कार्यक्षमता में कमी: बार-बार होने वाले छोटे ओवरवोल्टेज के झटके उपकरणों की कार्यक्षमता को धीरे-धीरे कम कर देते हैं और उनका जीवनकाल घटा देते हैं।

उदाहरण:

  • घरेलू उपकरण: टीवी, रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर जैसे महंगे उपकरण ओवरवोल्टेज से आसानी से खराब हो सकते हैं।
  • औद्योगिक मशीनरी: औद्योगिक सेटिंग्स में, ओवरवोल्टेज से भारी मोटर्स और नियंत्रण प्रणालियों को नुकसान पहुँच सकता है, जिससे उत्पादन रुक सकता है और महंगा मरम्मत खर्च हो सकता है।

​ओवरवोल्टेज के इन प्रभावों से बचने के लिए सर्ज प्रोटेक्टर और वोल्टेज स्टेबलाइज़र जैसे सुरक्षा उपकरणों का उपयोग करना महत्वपूर्ण है।


अंडरवोल्टेज (अधोवोल्टता) के सिस्टम पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं, जो उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उनकी कार्यक्षमता को कम कर सकते हैं।

अंडरवोल्टेज से होने वाले नुकसान

  • ओवरहीटिंग और मोटर का जलना: यह अंडरवोल्टेज का सबसे आम और गंभीर प्रभाव है। जब वोल्टेज कम होता है, तो उपकरण (खासकर मोटर्स वाले) अपनी पूरी शक्ति से काम करने के लिए अधिक करंट खींचते हैं। इस अतिरिक्त करंट से उपकरण के घटक, जैसे मोटर वाइंडिंग, ज़्यादा गरम हो जाते हैं और जल सकते हैं।
  • प्रदर्शन में कमी: कम वोल्टेज के कारण उपकरण अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते। उदाहरण के लिए, एक बल्ब कम रोशनी देगा, एक हीटर कम गर्म होगा, और एक मोटर धीमी गति से चलेगी।
  • स्टार्टअप की समस्या: कई उपकरण, जैसे रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर की मोटरें, एक निश्चित वोल्टेज से कम होने पर शुरू ही नहीं हो पातीं। बार-बार शुरू करने की कोशिश से मोटर और कंप्रेसर पर दबाव पड़ता है, जिससे वे खराब हो सकते हैं।
  • इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को नुकसान: हालाँकि ओवरवोल्टेज की तुलना में कम होता है, लेकिन लगातार कम वोल्टेज भी कुछ संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक घटकों को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे उनकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है और उनका जीवनकाल कम हो जाता है।

उदाहरण:

  • घरेलू उपकरण: कम वोल्टेज पर चलने वाले रेफ्रिजरेटर या एयर कंडीशनर का कंप्रेसर खराब हो सकता है।
  • औद्योगिक मशीनरी: औद्योगिक मशीनों में, अंडरवोल्टेज के कारण मोटर्स बंद हो सकती हैं या उनकी गति कम हो सकती है, जिससे उत्पादन में रुकावट आती है।

इन प्रभावों से बचने के लिए, 

अक्सर वोल्टेज स्टेबलाइज़र और अंडरवोल्टेज प्रोटेक्शन रिले का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण वोल्टेज को एक सुरक्षित स्तर पर बनाए रखने में मदद करते हैं।



ओवरवोल्टेज प्रोटेक्शन (अधिवोल्टता सुरक्षा) इसलिए आवश्यक है क्योंकि यह विद्युत उपकरणों को अचानक और खतरनाक वोल्टेज वृद्धि से होने वाले नुकसान से बचाता है। यह सुरक्षा प्रणाली महंगी मरम्मत और उपकरणों को स्थायी रूप से खराब होने से रोकती है।

ओवरवोल्टेज से होने वाले खतरे

  • इलेक्ट्रॉनिक घटकों का जलना: कंप्यूटर, टीवी और रेफ्रिजरेटर जैसे उपकरणों के अंदर के संवेदनशील सर्किट और चिप्स उच्च वोल्टेज के कारण तुरंत जल सकते हैं।
  • इंसुलेशन ब्रेकडाउन: तारों और उपकरणों पर लगी इंसुलेशन परत टूट सकती है, जिससे शॉर्ट सर्किट और आग लगने का खतरा बढ़ जाता है।
  • उपकरण का जीवनकाल कम होना: बार-बार होने वाले छोटे ओवरवोल्टेज झटके भी धीरे-धीरे उपकरणों की कार्यक्षमता को कम करते हैं और उनका जीवनकाल घटा देते हैं।

बचाव के उपाय

​ओवरवोल्टेज से बचने के लिए, सर्ज प्रोटेक्टर और वोल्टेज लिमिटर जैसे उपकरणों का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण अतिरिक्त वोल्टेज को जमीन में मोड़कर या सर्किट को तुरंत बंद करके उपकरणों को सुरक्षित रखते हैं।

संक्षेप में, 

ओवरवोल्टेज प्रोटेक्शन एक अनिवार्य सुरक्षा प्रणाली है जो न केवल आपके उपकरणों को बचाती है, बल्कि आपकी सुरक्षा भी सुनिश्चित करती है।



ओवरवोल्टेज से सुरक्षा के लिए कई तरह के उपकरण उपयोग किए जाते हैं, जो सर्किट में वोल्टेज बढ़ने पर उसे नियंत्रित या डायवर्ट करके उपकरणों को बचाते हैं।

​1. सर्ज प्रोटेक्टर (Surge Protector)

​सर्ज प्रोटेक्टर सबसे आम और प्रभावी ओवरवोल्टेज सुरक्षा उपकरण है। यह क्षणिक वोल्टेज स्पाइक्स (transient voltage spikes) या बिजली के झटकों को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

  • कार्य: जब वोल्टेज अचानक से एक सुरक्षित स्तर से ऊपर उठता है, तो सर्ज प्रोटेक्टर अतिरिक्त वोल्टेज को जमीन में मोड़ देता है। इससे उपकरण को केवल सामान्य वोल्टेज मिलता है और वह सुरक्षित रहता है।
  • उपयोग: ये आमतौर पर घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कंप्यूटर, टीवी, और रेफ्रिजरेटर की सुरक्षा के लिए उपयोग किए जाते हैं।

​2. ओवरवोल्टेज रिले (Overvoltage Relay)

​यह एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो वोल्टेज स्तर की लगातार निगरानी करता है।

  • कार्य: जब वोल्टेज एक निश्चित सीमा से ऊपर चला जाता है, तो रिले ट्रिगर होता है और सर्किट को खोल देता है, जिससे विद्युत आपूर्ति बंद हो जाती है। जब वोल्टेज सामान्य हो जाता है, तो यह सर्किट को फिर से जोड़ देता है।
  • उपयोग: इनका उपयोग औद्योगिक नियंत्रण प्रणालियों, मोटरों और अन्य संवेदनशील उपकरणों में किया जाता है।

​3. वोल्टेज लिमिटर (Voltage Limiter)

​ये उपकरण वोल्टेज को एक पूर्व-निर्धारित सीमा से ऊपर जाने से रोकते हैं।

  • कार्य: ये उपकरण वोल्टेज में वृद्धि होने पर खुद को सक्रिय करते हैं और अतिरिक्त वोल्टेज को सर्किट से हटाते हैं, जिससे उपकरणों को सुरक्षित वोल्टेज मिलता है।
  • उपयोग: इनका उपयोग अक्सर औद्योगिक और वाणिज्यिक सेटिंग्स में किया जाता है, जहाँ स्थिर वोल्टेज की आवश्यकता होती है।

​4. लाइटनिंग अरेस्टर (Lightning Arrester)

​यह एक विशेष उपकरण है जिसका उपयोग बिजली गिरने के कारण होने वाले अत्यधिक वोल्टेज से बचाव के लिए किया जाता है।

  • कार्य: यह बिजली के सीधे झटके और उनके कारण होने वाले सर्ज को जमीन में डायवर्ट करता है।
  • उपयोग: ये आमतौर पर विद्युत सबस्टेशनों और लंबी ट्रांसमिशन लाइनों पर लगाए जाते हैं।

​ये सभी उपकरण अलग-अलग प्रकार के ओवरवोल्टेज से सुरक्षा प्रदान करते हैं, जिससे विद्युत प्रणाली और उससे जुड़े उपकरण सुरक्षित रहते हैं।



अंडरवोल्टेज रिले का कार्य सिद्धांत इसके नाम से ही स्पष्ट है: यह वोल्टेज के कम होने पर प्रतिक्रिया करता है और सर्किट को तोड़ देता है ताकि उपकरण को नुकसान न हो। इसका मुख्य उद्देश्य वोल्टेज में गिरावट (अंडरवोल्टेज) से सुरक्षा प्रदान करना है।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​एक अंडरवोल्टेज रिले का मुख्य घटक एक कॉइल (coil) होता है जो सर्किट के वोल्टेज से जुड़ा होता है।

  1. सामान्य स्थिति (Normal Condition): जब वोल्टेज सामान्य और सुरक्षित सीमा के भीतर होता है, तो कॉइल में पर्याप्त चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) बनता है। यह चुंबकीय क्षेत्र एक स्विच या संपर्क (contact) को बंद रखता है, जिससे बिजली का प्रवाह सामान्य रूप से जारी रहता है।
  2. अंडरवोल्टेज की स्थिति (Undervoltage Condition): जब वोल्टेज एक निर्धारित सीमा से कम हो जाता है, तो कॉइल में बनने वाला चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हो जाता है। यह कमजोर चुंबकीय क्षेत्र स्विच को पकड़ कर नहीं रख पाता, जिससे स्विच खुल जाता है।
  3. सर्किट का डिस्कनेक्ट होना: जब स्विच खुल जाता है, तो उपकरण तक बिजली की आपूर्ति तुरंत बंद हो जाती है। यह उपकरण को कम वोल्टेज के कारण होने वाली ओवरहीटिंग या अन्य क्षति से बचाता है।

कार्य में बहाली (Restoring Operation)

​जब वोल्टेज फिर से सामान्य स्तर पर आता है, तो रिले का कॉइल फिर से पर्याप्त चुंबकीय क्षेत्र बनाता है। रिले सर्किट को फिर से जोड़ सकता है, लेकिन कुछ रिले में मैनुअल रीसेट का प्रावधान होता है ताकि ऑपरेटर यह सुनिश्चित कर सके कि समस्या ठीक हो गई है। यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा विशेषता है।

संक्षेप में, 

अंडरवोल्टेज रिले एक प्रकार का स्वचालित स्विच है जो वोल्टेज को निरंतर मॉनिटर करता है और खतरे की स्थिति में सर्किट को डिस्कनेक्ट कर देता है।




ओवरवोल्टेज रिले का कार्य सिद्धांत अंडरवोल्टेज रिले के विपरीत होता है। यह वोल्टेज में वृद्धि का पता लगाता है और जब वोल्टेज एक निर्धारित सीमा से ऊपर चला जाता है तो सर्किट को तोड़ देता है ताकि उपकरण सुरक्षित रहें।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​एक ओवरवोल्टेज रिले के मुख्य भाग में एक कॉइल (coil) और एक स्विच (switch) होता है, जो सामान्यतः खुला (normally open) रहता है।

  1. सामान्य स्थिति (Normal Condition): जब सर्किट में वोल्टेज सामान्य होता है, तो कॉइल में एक निश्चित मात्रा में चुंबकीय क्षेत्र बनता है। यह चुंबकीय क्षेत्र इतना मजबूत नहीं होता कि स्विच को बंद कर सके, इसलिए सर्किट खुला रहता है।
  2. ओवरवोल्टेज की स्थिति (Overvoltage Condition): जब किसी कारण से वोल्टेज अचानक से बढ़ जाता है, तो कॉइल में बहने वाले करंट में भी वृद्धि होती है। यह अतिरिक्त करंट कॉइल में एक मजबूत चुंबकीय क्षेत्र बनाता है। यह चुंबकीय क्षेत्र इतना शक्तिशाली हो जाता है कि यह स्विच को खींचकर बंद कर देता है।
  3. सर्किट का डिस्कनेक्ट होना: जब स्विच बंद होता है, तो रिले का संपर्क (contact) सक्रिय हो जाता है और यह मुख्य सर्किट ब्रेकर या कॉन्टैक्टर को बंद करने का संकेत भेजता है। इससे उपकरण तक बिजली की आपूर्ति तुरंत बंद हो जाती है, जिससे वह ओवरवोल्टेज से होने वाले नुकसान से बच जाता है।

कार्य में बहाली (Restoring Operation)

​जब वोल्टेज सामान्य स्तर पर वापस आ जाता है, तो कॉइल का चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हो जाता है, और स्विच अपनी सामान्य खुली स्थिति में लौट आता है। कुछ ओवरवोल्टेज रिले स्वचालित रूप से सर्किट को फिर से जोड़ देते हैं, जबकि कुछ को मैन्युअल रूप से रीसेट करने की आवश्यकता होती है। यह सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वोल्टेज समस्या पूरी तरह से हल हो गई है।

संक्षेप में, 

ओवरवोल्टेज रिले एक प्रकार का स्वचालित सुरक्षा स्विच है जो वोल्टेज को निरंतर मापता है और अत्यधिक वोल्टेज की स्थिति में सर्किट को डिस्कनेक्ट कर देता है।



ओवरवोल्टेज और अंडरवोल्टेज रिले के बीच मुख्य अंतर यह है कि ओवरवोल्टेज रिले वोल्टेज बढ़ने पर सर्किट को डिस्कनेक्ट करता है, जबकि अंडरवोल्टेज रिले वोल्टेज घटने पर सर्किट को डिस्कनेक्ट करता है

दोनों रिले सुरक्षा उपकरण हैं, लेकिन वे अलग-अलग स्थितियों में काम करते हैं।

ओवरवोल्टेज रिले (Overvoltage Relay)

  • कार्य: इसका मुख्य कार्य सर्किट में अत्यधिक वोल्टेज का पता लगाना है।
  • सक्रियता: जब वोल्टेज एक निश्चित ऊपरी सीमा से ऊपर चला जाता है, तो यह रिले सक्रिय हो जाता है और बिजली की आपूर्ति को काट देता है।
  • बचाव: यह बिजली गिरने, ग्रिड में खराबी, या स्विचिंग सर्ज जैसे कारणों से होने वाले ओवरवोल्टेज से उपकरणों को बचाता है।

अंडरवोल्टेज रिले (Undervoltage Relay)

  • कार्य: इसका मुख्य कार्य सर्किट में कम वोल्टेज का पता लगाना है।
  • सक्रियता: जब वोल्टेज एक निश्चित निचली सीमा से नीचे चला जाता है, तो यह रिले सक्रिय हो जाता है और बिजली की आपूर्ति को काट देता है।
  • बचाव: यह बिजली की कमी, लंबी ट्रांसमिशन लाइनों या अत्यधिक लोड के कारण होने वाले अंडरवोल्टेज से उपकरणों, खासकर मोटर्स को बचाता है।

संक्षेप में, 

दोनों रिले का उद्देश्य उपकरणों को वोल्टेज में असामान्य उतार-चढ़ाव से बचाना है, लेकिन एक "बहुत अधिक" वोल्टेज की स्थिति में काम करता है और दूसरा "बहुत कम" वोल्टेज की स्थिति में।



सर्ज अरेस्टर (Surge Arrester), जिसे लाइटनिंग अरेस्टर (Lightning Arrester) भी कहते हैं, एक सुरक्षा उपकरण है जो विद्युत प्रणाली को अचानक और बहुत अधिक वोल्टेज वृद्धि (सर्ज) से बचाता है। यह सर्ज को सीधे जमीन में मोड़कर उपकरणों को सुरक्षित रखता है।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​सर्ज अरेस्टर में एक नॉन-लीनियर रेसिस्टेंस (non-linear resistance) तत्व होता है, जैसे जिंक ऑक्साइड (Zinc Oxide)। यह तत्व सामान्य वोल्टेज पर बहुत उच्च प्रतिरोध (high resistance) प्रदान करता है, जिससे करंट इसके माध्यम से प्रवाहित नहीं होता।

  • सामान्य स्थिति: जब वोल्टेज सामान्य होता है, तो अरेस्टर में प्रतिरोध बहुत अधिक होता है और यह एक इंसुलेटर (विद्युत रोधी) की तरह काम करता है।
  • सर्ज की स्थिति: जब बिजली गिरने या किसी अन्य कारण से वोल्टेज में अचानक वृद्धि होती है, तो अरेस्टर का प्रतिरोध बहुत तेजी से गिरता है। यह कम प्रतिरोध वाला पथ अतिरिक्त वोल्टेज और करंट को जमीन में प्रवाहित कर देता है, जिससे यह उपकरणों तक नहीं पहुँच पाता।

उपयोग

​सर्ज अरेस्टर का उपयोग विद्युत प्रणालियों में विभिन्न स्तरों पर किया जाता है:

  • पावर ट्रांसमिशन लाइनें: इन्हें हाई-वोल्टेज लाइनों और सबस्टेशनों पर लगाया जाता है ताकि बिजली गिरने से होने वाले नुकसान से बचा जा सके।
  • ट्रांसफॉर्मर: ट्रांसफॉर्मर को ओवरवोल्टेज से बचाने के लिए भी इन्हें उपयोग किया जाता है।
  • घरेलू और औद्योगिक उपकरण: छोटे सर्ज अरेस्टर को घरेलू और औद्योगिक उपकरणों की सुरक्षा के लिए भी उपयोग किया जाता है, जिन्हें अक्सर सर्ज प्रोटेक्टर कहते हैं।

संक्षेप में, 

सर्ज अरेस्टर एक निष्क्रिय लेकिन बहुत प्रभावी सुरक्षा उपकरण है जो वोल्टेज में अचानक होने वाले खतरनाक उतार-चढ़ाव से सिस्टम और उपकरणों को बचाता है।



एवीआर (AVR) का अर्थ है ऑटोमेटिक वोल्टेज रेगुलेटर (Automatic Voltage Regulator)। इसकी मुख्य भूमिका आउटपुट वोल्टेज को स्थिर रखना है, भले ही इनपुट वोल्टेज या लोड में उतार-चढ़ाव हो। यह सुनिश्चित करता है कि जुड़े हुए उपकरण को हमेशा एक सुरक्षित और स्थिर वोल्टेज मिले।

एवीआर की कार्यप्रणाली

​एवीआर वोल्टेज में किसी भी तरह के उतार-चढ़ाव का पता लगाता है और उसे सही करके एक निर्धारित सीमा के भीतर रखता है।

  1. अंडरवोल्टेज की स्थिति (Undervoltage Condition): जब इनपुट वोल्टेज कम होता है, तो एवीआर इसे बढ़ाकर सही स्तर पर ले आता है।
  2. ओवरवोल्टेज की स्थिति (Overvoltage Condition): जब इनपुट वोल्टेज अधिक होता है, तो एवीआर इसे घटाकर सही स्तर पर ले आता है।

​यह सब एक आंतरिक सर्किट के माध्यम से होता है जो वोल्टेज को मॉनिटर करता है और आवश्यकतानुसार ट्रांसफार्मर या अन्य घटकों को समायोजित करता है।

एवीआर का महत्व

  • उपकरणों की सुरक्षा: यह संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे टीवी, कंप्यूटर, रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर को वोल्टेज में उतार-चढ़ाव से होने वाले नुकसान से बचाता है।
  • प्रदर्शन में सुधार: यह सुनिश्चित करता है कि उपकरण अपनी पूरी क्षमता से काम करें, क्योंकि उन्हें लगातार सही वोल्टेज मिलता है।
  • जीवनकाल में वृद्धि: वोल्टेज में उतार-चढ़ाव से उपकरणों का जीवनकाल कम होता है। एवीआर इसे रोककर उपकरणों का जीवनकाल बढ़ाता है।

संक्षेप में, 

एवीआर एक अनिवार्य सुरक्षा उपकरण है जो आपके महंगे इलेक्ट्रॉनिक्स को अस्थिर बिजली आपूर्ति से बचाता है।




फ्यूज और सर्किट ब्रेकर का मुख्य कार्य ओवरवोल्टेज या अंडरवोल्टेज से सीधे सुरक्षा प्रदान करना नहीं है, बल्कि यह ओवरकरंट (अतिधारा) से उपकरणों की रक्षा करना है। हालाँकि, ओवरवोल्टेज और अंडरवोल्टेज की स्थिति में, ओवरकरंट पैदा हो सकता है, और इस तरह वे अप्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा प्रदान करते हैं।

ओवरवोल्टेज और ओवरकरंट के बीच संबंध ​ओवरवोल्टेज तब होता है जब वोल्टेज अपनी सामान्य सीमा से अधिक हो जाता है।

ओम के नियम (V = IR) के अनुसार, 

जब वोल्टेज (V) बढ़ता है, तो करंट (I) भी बढ़ता है (यदि प्रतिरोध [R] स्थिर रहता है)। ​

यह बढ़ा हुआ करंट ही फ्यूज या सर्किट ब्रेकर को ट्रिप करने का कारण बनता है। वे सीधे बढ़े हुए वोल्टेज को नहीं मापते, बल्कि उस बढ़े हुए करंट का पता लगाते हैं जो ओवरवोल्टेज के कारण होता है। ​

अंडरवोल्टेज और ओवरकरंट के बीच संबंध ​अंडरवोल्टेज तब होता है जब वोल्टेज सामान्य से कम हो जाता है। ​

मोटर जैसे कुछ उपकरण, 

अपनी शक्ति को बनाए रखने के लिए कम वोल्टेज पर अधिक करंट खींचते हैं। ​यह बढ़ा हुआ करंट भी फ्यूज या सर्किट ब्रेकर को ट्रिप कर सकता है, जिससे उपकरण जलने से बच जाते हैं। ​

फ्यूज और सर्किट ब्रेकर का कार्य ​फ्यूज: फ्यूज में एक पतला तार होता है जो एक निश्चित मात्रा से अधिक करंट बहने पर पिघल जाता है। यह पिघलने से सर्किट टूट जाता है और करंट का प्रवाह रुक जाता है। एक बार पिघलने के बाद, इसे बदलना पड़ता है। ​

सर्किट ब्रेकर: यह एक स्वचालित स्विच है। जब यह अत्यधिक करंट का पता लगाता है, तो यह तुरंत सर्किट को तोड़ देता है। यह फ्यूज से अलग है क्योंकि इसे मैन्युअल रूप से रीसेट किया जा सकता है और यह फिर से काम करने लगता है। ​

निष्कर्ष रूप में, 

फ्यूज और सर्किट ब्रेकर ओवरकरंट प्रोटेक्शन डिवाइस हैं, लेकिन वे ओवरवोल्टेज और अंडरवोल्टेज की स्थितियों में होने वाले बढ़े हुए करंट से सुरक्षा प्रदान करके इन खतरों से अप्रत्यक्ष रूप से बचाते हैं।



अंडरवोल्टेज के दौरान इंडक्शन मोटर के साथ कई समस्याएं होती हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है ओवरहीटिंग। यह स्थिति मोटर को स्थायी नुकसान पहुँचा सकती है। ​जब एक इंडक्शन मोटर को उसके रेटेड वोल्टेज से कम वोल्टेज मिलता है, तो वह अपना आउटपुट पावर (शक्ति) बनाए रखने के लिए अधिक करंट खींचती है। 

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि मोटर की शक्ति (power) वोल्टेज और करंट का गुणनफल होती है (P = V×I× \cos\phi)। 

जब वोल्टेज (V) कम होता है, तो समान शक्ति (P) बनाए रखने के लिए करंट (I) को बढ़ना पड़ता है। ​

अंडरवोल्टेज के प्रभाव ​अत्यधिक करंट (Overcurrent): अंडरवोल्टेज के कारण बढ़ा हुआ करंट मोटर की वाइंडिंग को ज़्यादा गरम कर देता है। यह गर्मी वाइंडिंग के इन्सुलेशन को नुकसान पहुँचा सकती है, जिससे शॉर्ट सर्किट और मोटर का जलना हो सकता है। ​

टॉर्क में कमी (Reduced Torque): इंडक्शन मोटर का टॉर्क (घूमने की शक्ति) वोल्टेज के वर्ग के समानुपाती होता है (T \propto V^2)। यदि वोल्टेज 10% कम हो जाता है, तो टॉर्क लगभग 19% कम हो जाएगा। इससे मोटर पर लोड को घुमाने में कठिनाई होगी, और मोटर रुक सकती है या जाम हो सकती है। ​

दक्षता में कमी (Reduced Efficiency): कम वोल्टेज पर मोटर कम कुशल हो जाती है, जिससे बिजली की खपत बढ़ जाती है और प्रदर्शन खराब हो जाता है। ​

स्टार्टअप में समस्या: कम वोल्टेज पर मोटर का शुरुआती टॉर्क कम हो जाता है, जिससे वह लोड के साथ शुरू नहीं हो पाती। बार-बार शुरू करने का प्रयास मोटर पर अतिरिक्त दबाव डालता है। ​इन समस्याओं से बचने के लिए, अंडरवोल्टेज रिले का उपयोग किया जाता है। 

जब वोल्टेज एक सुरक्षित स्तर से नीचे जाता है, तो यह रिले मोटर को तुरंत बंद कर देता है, जिससे उसे नुकसान होने से बचाया जा सके।



वोल्टेज संरक्षण में, सुरक्षात्मक रिले (protective relays) वोल्टेज में असामान्य उतार-चढ़ाव (overvoltage और undervoltage) का पता लगाने और उपकरणों को नुकसान से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये रिले एक प्रकार के स्वचालित स्विच होते हैं जो विद्युत प्रणाली की स्थिति की लगातार निगरानी करते हैं और जब वोल्टेज एक निर्धारित सुरक्षित सीमा से बाहर जाता है तो सर्किट को डिस्कनेक्ट कर देते हैं।

सुरक्षात्मक रिले की मुख्य भूमिकाएँ

  • निरंतर निगरानी: रिले वोल्टेज स्तरों को निरंतर मापते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि वे एक सुरक्षित ऑपरेटिंग रेंज के भीतर हैं।
  • दोष का पता लगाना: जब वोल्टेज बहुत अधिक या बहुत कम होता है, तो रिले तुरंत इस दोषपूर्ण स्थिति का पता लगाते हैं।
  • सर्किट का अलगाव: दोष का पता लगाने के बाद, रिले तुरंत एक सर्किट ब्रेकर या कॉन्टैक्टर को ट्रिगर करता है, जो सर्किट को तोड़ देता है और उपकरण तक बिजली की आपूर्ति बंद कर देता है।
  • उपकरणों का संरक्षण: यह तत्काल अलगाव महंगे और संवेदनशील उपकरणों (जैसे मोटर्स, ट्रांसफॉर्मर और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस) को ओवरहीटिंग, वाइंडिंग के जलने, या अन्य स्थायी क्षति से बचाता है।
  • स्वचालन और विश्वसनीयता: रिले स्वचालित रूप से काम करते हैं, जिससे मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती। यह आपातकालीन स्थितियों में त्वरित और विश्वसनीय प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है।

संक्षेप में, 

सुरक्षात्मक रिले एक सुरक्षा गार्ड की तरह काम करते हैं जो वोल्टेज को नियंत्रित करते हैं और यदि कोई खतरा हो तो उपकरणों को पावर ग्रिड से अलग कर देते हैं।



निरंतर ओवरवोल्टेज और क्षणिक ओवरवोल्टेज के बीच मुख्य अंतर उनकी अवधि और कारण में है।

​निरंतर ओवरवोल्टेज लंबे समय तक चलता है, जबकि क्षणिक ओवरवोल्टेज बहुत कम समय के लिए होता है।

निरंतर ओवरवोल्टेज (Continuous Overvoltage)

​निरंतर ओवरवोल्टेज को कभी-कभी स्थायी ओवरवोल्टेज (permanent overvoltage) भी कहा जाता है।

  • अवधि: यह वोल्टेज वृद्धि कुछ सेकंड से लेकर मिनटों या घंटों तक रह सकती है, जब तक कि समस्या का समाधान न हो जाए।
  • कारण: इसका मुख्य कारण पावर ग्रिड में खराबी, जैसे कि न्यूट्रल तार का टूट जाना, या किसी बड़े लोड का अचानक से डिस्कनेक्ट हो जाना हो सकता है।
  • प्रभाव: यह उपकरणों में लगातार ओवरहीटिंग का कारण बनता है। यह धीमी गति से उपकरणों के इन्सुलेशन को खराब करता है और अंततः उन्हें स्थायी रूप से नुकसान पहुँचाता है।

क्षणिक ओवरवोल्टेज (Transient Overvoltage)

​क्षणिक ओवरवोल्टेज को वोल्टेज सर्ज (voltage surge) या वोल्टेज स्पाइक (voltage spike) भी कहा जाता है।

  • अवधि: यह बहुत कम समय के लिए, आमतौर पर माइक्रोसेकंड से मिलीसेकंड तक होता है।
  • कारण: इसका सबसे आम कारण बिजली गिरना है। इसके अलावा, भारी उपकरणों (जैसे मोटर्स) को चालू या बंद करने से भी यह उत्पन्न हो सकता है।
  • प्रभाव: हालांकि यह बहुत कम समय के लिए होता है, लेकिन इसका वोल्टेज स्तर बहुत अधिक हो सकता है (हजारों वोल्ट तक)। यह अचानक उच्च वोल्टेज संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक घटकों को तुरंत जला सकता है या इन्सुलेशन को तुरंत तोड़ सकता है।

संक्षेप में, 

निरंतर ओवरवोल्टेज धीरे-धीरे और लगातार नुकसान पहुँचाता है, जबकि क्षणिक ओवरवोल्टेज अचानक और तुरंत नुकसान पहुँचाता है। दोनों ही स्थितियों में उपकरणों को गंभीर क्षति हो सकती है, इसलिए दोनों से सुरक्षा आवश्यक है।



अंडरवोल्टेज रिले का सबसे अधिक उपयोग उन प्रणालियों में होता है जहाँ मोटर्स और संवेदनशील उपकरण होते हैं। यह रिले वोल्टेज के एक निश्चित स्तर से नीचे जाने पर सर्किट को काट देता है, जिससे ये महंगे उपकरण खराब होने से बच जाते हैं।

उदाहरण 1: औद्योगिक मोटर्स और पंप

​औद्योगिक सेटिंग्स में, बड़े इंडक्शन मोटर्स का उपयोग पंप, कंप्रेसर और कन्वेयर बेल्ट चलाने के लिए होता है।  यदि इन मोटर्स को कम वोल्टेज मिलता है, तो वे अपनी शक्ति बनाए रखने के लिए अधिक करंट खींचते हैं, जिससे वाइंडिंग ज़्यादा गरम हो जाती है और जल सकती है। अंडरवोल्टेज रिले वोल्टेज को लगातार मॉनिटर करता है और जैसे ही यह एक सुरक्षित सीमा से नीचे जाता है, मोटर को बंद कर देता है।

उदाहरण: एक पानी का पंप कम वोल्टेज पर काम कर रहा है। रिले के बिना, मोटर ज़्यादा गरम हो जाएगी और जल जाएगी। रिले के साथ, जैसे ही वोल्टेज कम होगा, रिले मोटर को बंद कर देगा, जिससे वह सुरक्षित रहेगी।

उदाहरण 2: एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर

​घरेलू और वाणिज्यिक एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर के कंप्रेसर कम वोल्टेज पर शुरू होने में मुश्किल महसूस करते हैं। बार-बार शुरू करने के प्रयास से कंप्रेसर पर दबाव पड़ता है और यह खराब हो सकता है।

उदाहरण: जब बिजली कम होती है, तो अंडरवोल्टेज रिले कंप्रेसर को चालू होने से रोक देगा। यह तब तक इंतजार करेगा जब तक वोल्टेज सामान्य नहीं हो जाता, जिससे कंप्रेसर सुरक्षित रहता है और उसका जीवनकाल बढ़ता है।

उदाहरण 3: ट्रांसफार्मर और जनरेटर

​बिजली के ट्रांसफार्मर और जनरेटर को अंडरवोल्टेज से बचाने के लिए भी इन रिले का उपयोग होता है, ताकि वे कम वोल्टेज की स्थिति में भी सही से काम कर सकें और खराब न हों।

संक्षेप में, 

अंडरवोल्टेज रिले का उपयोग उन सभी जगहों पर किया जाता है जहाँ वोल्टेज की स्थिरता महत्वपूर्ण होती है ताकि महंगे और संवेदनशील उपकरणों को ओवरहीटिंग और खराबी से बचाया जा सके।



विद्युत प्रणालियों में ओवरवोल्टेज रिले की विशिष्ट सेटिंग आमतौर पर रेटेड वोल्टेज से 10% से 20% अधिक होती है। यह सेटिंग रिले को तब सक्रिय करने के लिए डिज़ाइन की गई है जब वोल्टेज एक सुरक्षित सीमा से ऊपर चला जाता है, लेकिन इससे पहले कि उपकरण को नुकसान पहुँचे।

सेटिंग के प्रकार

  • डेफिनिट टाइम ओवरवोल्टेज रिले (Definite Time Overvoltage Relay): इस प्रकार के रिले में, वोल्टेज एक निश्चित सीमा (जैसे, 120% रेटेड वोल्टेज) से ऊपर जाने पर एक पूर्व-निर्धारित समय विलंब (जैसे, 0.5 सेकंड) के बाद सर्किट को डिस्कनेक्ट करता है। यह क्षणिक सर्ज को नजरअंदाज करता है।
  • इन्वर्स टाइम ओवरवोल्टेज रिले (Inverse Time Overvoltage Relay): इस रिले में, सर्किट के डिस्कनेक्ट होने का समय वोल्टेज के स्तर पर निर्भर करता है। वोल्टेज जितना अधिक होगा, रिले उतनी ही तेजी से काम करेगा। यह उन स्थितियों में उपयोगी है जहाँ वोल्टेज में बड़ी वृद्धि से तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता होती है।

उदाहरण

  • ​यदि एक मोटर का रेटेड वोल्टेज 440V है, तो ओवरवोल्टेज रिले की सेटिंग लगभग 484V से 528V तक हो सकती है।
  • डेफिनिट टाइम सेटिंग: यदि वोल्टेज 500V तक पहुँचता है, तो रिले 1 सेकंड बाद सर्किट को डिस्कनेक्ट कर देगा।
  • इन्वर्स टाइम सेटिंग: यदि वोल्टेज 500V तक पहुँचता है, तो रिले 1 सेकंड बाद डिस्कनेक्ट करेगा, लेकिन यदि वोल्टेज 550V तक पहुँचता है, तो वह केवल 0.5 सेकंड में डिस्कनेक्ट कर देगा।

​ये सेटिंग्स सुनिश्चित करती हैं कि रिले वोल्टेज में छोटे, हानिरहित उतार-चढ़ाव पर प्रतिक्रिया न करे, बल्कि केवल तब सक्रिय हो जब वास्तव में खतरा हो।



​ओवरवोल्टेज रिले की विशिष्ट सेटिंग आमतौर पर रेटेड वोल्टेज से 10% से 20% अधिक होती है। यह सेटिंग यह सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन की गई है कि रिले तब सक्रिय हो जब वोल्टेज एक सुरक्षित सीमा से ऊपर चला जाए, लेकिन उपकरण को कोई नुकसान होने से पहले।

सेटिंग के प्रकार

​ओवरवोल्टेज रिले की सेटिंग्स को दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • डेफिनिट टाइम ओवरवोल्टेज रिले: इस प्रकार के रिले में, वोल्टेज एक निश्चित सीमा (उदाहरण के लिए, 120% रेटेड वोल्टेज) से ऊपर जाने पर, एक पूर्व-निर्धारित समय विलंब (जैसे 0.5 सेकंड) के बाद सर्किट को डिस्कनेक्ट किया जाता है। यह क्षणिक वोल्टेज सर्ज को अनदेखा करने के लिए उपयोगी है जो हानिरहित होते हैं।
    • इन्वर्स टाइम ओवरवोल्टेज रिले: इस रिले में, सर्किट को डिस्कनेक्ट करने का समय वोल्टेज के स्तर पर निर्भर करता है। वोल्टेज जितना अधिक होगा, रिले उतनी ही तेजी से काम करेगा। यह उन स्थितियों के लिए आदर्श है जहां वोल्टेज में बड़ी वृद्धि होने पर तुरंत कार्रवाई की आवश्यकता होती है।

    उदाहरण

    ​यदि एक मोटर का रेटेड वोल्टेज 440V है, तो ओवरवोल्टेज रिले की सेटिंग लगभग 484V से 528V तक हो सकती है।

    • डेफिनिट टाइम सेटिंग: यदि वोल्टेज 500V तक पहुंचता है, तो रिले 1 सेकंड बाद सर्किट को डिस्कनेक्ट कर देगा।
    • इन्वर्स टाइम सेटिंग: यदि वोल्टेज 500V तक पहुंचता है, तो रिले 1 सेकंड बाद डिस्कनेक्ट करेगा, लेकिन यदि वोल्टेज 550V तक पहुंचता है, तो वह केवल 0.5 सेकंड में डिस्कनेक्ट कर देगा।

    ​ये सेटिंग्स सुनिश्चित करती हैं कि रिले वोल्टेज में छोटे, हानिरहित उतार-चढ़ाव पर प्रतिक्रिया न करें, बल्कि केवल तब सक्रिय हों जब वास्तव में खतरा हो।



    एएनएसआई (ANSI) कोड 27 एक विद्युत सुरक्षा रिले फ़ंक्शन कोड है जो अंडरवोल्टेज रिले का प्रतिनिधित्व करता है। इसका उपयोग यह इंगित करने के लिए किया जाता है कि रिले को एक सुरक्षात्मक उपकरण के रूप में डिज़ाइन किया गया है जो सर्किट में वोल्टेज में कमी (अंडरवोल्टेज) का पता लगाता है।

    कार्य और उपयोग

    • कार्य: जब किसी सर्किट में वोल्टेज एक पूर्व-निर्धारित सीमा (जैसे, रेटेड वोल्टेज का 80% या 90%) से नीचे चला जाता है, तो रिले 27 सक्रिय हो जाता है।
    • परिणाम: एक बार सक्रिय होने पर, यह एक सर्किट ब्रेकर या कॉन्टैक्टर को ट्रिप करने का संकेत भेजता है, जिससे उपकरण को बिजली की आपूर्ति बंद हो जाती है। यह मोटर्स और अन्य संवेदनशील उपकरणों को अंडरवोल्टेज के कारण होने वाली ओवरहीटिंग और क्षति से बचाता है।

    प्रासंगिकता

    ​एएनएसआई कोड 27 विद्युत प्रणालियों में सुरक्षा और स्वचालन के लिए महत्वपूर्ण है। यह इंजीनियरों और तकनीशियनों को जल्दी से यह पहचानने में मदद करता है कि कौन सा रिले किस सुरक्षा कार्य के लिए जिम्मेदार है, जिससे दोष निवारण और सिस्टम रखरखाव आसान हो जाता है।



    एएनएसआई (ANSI) कोड 59 एक विद्युत सुरक्षा रिले फ़ंक्शन कोड है जो ओवरवोल्टेज रिले का प्रतिनिधित्व करता है। इसका उपयोग यह इंगित करने के लिए किया जाता है कि रिले को एक सुरक्षात्मक उपकरण के रूप में डिज़ाइन किया गया है जो सर्किट में वोल्टेज में वृद्धि (ओवरवोल्टेज) का पता लगाता है।

    कार्य और उपयोग

    • कार्य: जब किसी सर्किट में वोल्टेज एक पूर्व-निर्धारित ऊपरी सीमा (जैसे, रेटेड वोल्टेज का 110% या 120%) से ऊपर चला जाता है, तो रिले 59 सक्रिय हो जाता है।
    • परिणाम: एक बार सक्रिय होने पर, यह एक सर्किट ब्रेकर या कॉन्टैक्टर को ट्रिप करने का संकेत भेजता है, जिससे उपकरण को बिजली की आपूर्ति बंद हो जाती है। यह संवेदनशील उपकरणों को ओवरवोल्टेज से होने वाले नुकसान से बचाता है।

    प्रासंगिकता

    ​एएनएसआई कोड 59 का उपयोग बिजली प्रणालियों में सुरक्षा और स्वचालन के लिए महत्वपूर्ण है। यह इंजीनियरों और तकनीशियनों को जल्दी से यह पहचानने में मदद करता है कि कौन सा रिले किस सुरक्षा कार्य के लिए जिम्मेदार है, जिससे दोष निवारण और सिस्टम रखरखाव आसान हो जाता है।



    तात्कालिक रिले (instantaneous relay) और समय विलंबित रिले (time-delay relay) के बीच मुख्य अंतर उनके ऑपरेशन के समय में है।

    तात्कालिक रिले (Instantaneous Relay)

    ​यह रिले बिना किसी जानबूझकर समय विलंब के लगभग तुरंत काम करता है।

    • कार्य सिद्धांत: यह रिले जैसे ही एक पूर्व-निर्धारित वोल्टेज स्तर से ऊपर या नीचे जाता है, तुरंत सर्किट ब्रेकर को ट्रिप करने के लिए एक संकेत भेजता है।
    • उपयोग: इसका उपयोग उन स्थितियों में किया जाता है जहाँ बहुत तेजी से प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है, जैसे कि शॉर्ट सर्किट या गंभीर ओवरवोल्टेज से बचाव के लिए।
    • विशेषता: इसमें कोई प्रोग्राम करने योग्य समय विलंब नहीं होता है, जिससे यह बहुत तेज़ होता है लेकिन क्षणिक उतार-चढ़ाव (transient fluctuations) से सुरक्षा प्रदान नहीं करता।

    समय विलंबित रिले (Time-Delay Relay)

    ​यह रिले वोल्टेज में कमी या वृद्धि का पता लगाने के बाद एक निश्चित समय के बाद काम करता है।

    • कार्य सिद्धांत: यह रिले वोल्टेज में उतार-चढ़ाव का पता लगाता है लेकिन सर्किट को तब तक नहीं तोड़ता जब तक कि वह उतार-चढ़ाव एक निर्धारित समय (जैसे 0.5 सेकंड या 2 सेकंड) तक बना नहीं रहता।
    • उपयोग: इसका उपयोग मोटर स्टार्ट-अप या अन्य सामान्य क्षणिक घटनाओं के दौरान होने वाले सामान्य वोल्टेज उतार-चढ़ाव को अनदेखा करने के लिए किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि रिले केवल वास्तविक, स्थायी दोषों के लिए काम करे।
    • विशेषता: इसमें एक समायोज्य (adjustable) समय विलंब सेटिंग होती है, जो इसे विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए अधिक उपयोगी बनाती है।

    संक्षेप में,

    तात्कालिक रिले तत्काल सुरक्षा प्रदान करता है, जबकि समय विलंबित रिले जानबूझकर देरी से काम करता है ताकि छोटे-मोटे और हानिरहित उतार-चढ़ाव को नजरअंदाज किया जा सके।


    अंडरवोल्टेज रिले में हिस्टैरिसीस की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि रिले अंडरवोल्टेज सीमा के आस-पास के छोटे-छोटे उतार-चढ़ाव के कारण बार-बार ऑन और ऑफ न हो। यह रिले के अनावश्यक ट्रिपिंग और झिलमिलाहट (chattering) को रोकता है।

    हिस्टैरिसीस क्या है?

    ​हिस्टैरिसीस (Hysteresis) एक ऐसी विशेषता है जो रिले को दो अलग-अलग थ्रेशोल्ड (threshold) पर काम करने की अनुमति देती है: एक ऑपरेटिंग थ्रेशोल्ड और एक रीसेट थ्रेशोल्ड

    • ऑपरेटिंग थ्रेशोल्ड: यह वह वोल्टेज स्तर है जिस पर रिले ट्रिप करता है और सर्किट को डिस्कनेक्ट करता है। उदाहरण के लिए, यह 90% रेटेड वोल्टेज हो सकता है।
    • रीसेट थ्रेशोल्ड: यह वह वोल्टेज स्तर है जिस पर रिले फिर से चालू होता है और सर्किट को जोड़ता है। यह ऑपरेटिंग थ्रेशोल्ड से थोड़ा अधिक होता है, उदाहरण के लिए, 95% रेटेड वोल्टेज।

    हिस्टैरिसीस की भूमिका

    ​मान लीजिए एक अंडरवोल्टेज रिले का ऑपरेटिंग थ्रेशोल्ड 90% है और रीसेट थ्रेशोल्ड 95% है।

    • ​जब वोल्टेज 90% से नीचे गिरता है, तो रिले सर्किट को काट देता है।
    • ​अब, अगर वोल्टेज 90% से थोड़ा ऊपर (जैसे 91%) चला जाता है, तो हिस्टैरिसीस के बिना रिले तुरंत फिर से चालू हो जाएगा। लेकिन अगर वोल्टेज 90.1% से 89.9% के बीच लगातार उतार-चढ़ाव करता है, तो रिले बार-बार ऑन-ऑफ होगा, जिससे उपकरण और रिले दोनों को नुकसान होगा।

    ​हिस्टैरिसीस इस समस्या को हल करता है। रिले तब तक ऑफ रहेगा जब तक कि वोल्टेज 95% के रीसेट थ्रेशोल्ड तक नहीं पहुंच जाता। इससे, वोल्टेज में छोटे उतार-चढ़ाव का कोई असर नहीं होता और सिस्टम की स्थिरता बनी रहती है। यह रिले की विश्वसनीयता और उपकरणों के जीवनकाल को बढ़ाता है।



    वोल्टेज संरक्षण रिले और आवृत्ति संरक्षण रिले के बीच मुख्य अंतर यह है कि वे किस विद्युत मात्रा की निगरानी करते हैं और वे किस प्रकार के दोषों का पता लगाते हैं।

    वोल्टेज संरक्षण रिले (Voltage Protection Relay)

    माप: यह रिले सर्किट में वोल्टेज को मापता है।

    कार्य: इसका मुख्य कार्य ओवरवोल्टेज (अधिवोल्टता) या अंडरवोल्टेज (अधोवोल्टता) जैसी स्थितियों का पता लगाना है।

    उपयोग: इसका उपयोग उपकरणों को वोल्टेज में उतार-चढ़ाव से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए किया जाता है, जैसे कि बिजली गिरने, लोड में अचानक बदलाव, या ग्रिड में खराबी के कारण होने वाले वोल्टेज सर्ज।

    उदाहरण: यदि रेटेड वोल्टेज 440V है और यह 500V तक पहुँच जाता है, तो ओवरवोल्टेज रिले सक्रिय हो जाएगा।

    आवृत्ति संरक्षण रिले (Frequency Protection Relay)

    • माप: यह रिले सर्किट में आवृत्ति (frequency) को मापता है।
    • कार्य: इसका मुख्य कार्य ओवरफ़्रीक्वेंसी (अधिक आवृत्ति) या अंडरफ़्रीक्वेंसी (कम आवृत्ति) का पता लगाना है।
    • उपयोग: यह मुख्य रूप से पावर ग्रिड और जेनरेटर में उपयोग होता है जहाँ आपूर्ति और मांग के बीच असंतुलन के कारण आवृत्ति में बदलाव होता है। कम आवृत्ति से जनरेटर और टर्बाइन को नुकसान हो सकता है, और यह ब्लैकआउट का कारण भी बन सकता है।
    • उदाहरण: यदि सामान्य आवृत्ति 50 Hz है और यह 49 Hz तक गिर जाती है, तो अंडरफ़्रीक्वेंसी रिले सक्रिय हो जाएगा, जिससे लोड शेडिंग (लोड को बंद करना) करके सिस्टम को स्थिर किया जा सके।

    संक्षेप में,

    वोल्टेज रिले उपकरणों को वोल्टेज के स्तर से संबंधित समस्याओं से बचाता है, जबकि आवृत्ति रिले पूरे पावर सिस्टम की स्थिरता को बनाए रखता है।




    मोटर प्रतिरोधक भार (resistive loads) की तुलना में अंडरवोल्टेज के प्रति इसलिए अधिक संवेदनशील होती हैं क्योंकि वे एक अलग सिद्धांत पर काम करती हैं। जब वोल्टेज कम होता है, तो मोटर अपनी शक्ति को बनाए रखने के लिए अधिक करंट खींचती है, जबकि प्रतिरोधक भार में ऐसा नहीं होता। ​

    मोटर्स पर अंडरवोल्टेज का प्रभाव ​मोटर्स स्थिर शक्ति (constant power) वाले उपकरण हैं। इसका मतलब है कि वे एक निश्चित मात्रा में यांत्रिक शक्ति (mechanical power) प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। मोटर की शक्ति वोल्टेज (V), करंट (I) और पावर फैक्टर (\cos\phi) का गुणनफल होती है। 

    P = V ×I ×cos\phi ​जब वोल्टेज (V) कम होता है,

    तो समान शक्ति (P) को बनाए रखने के लिए मोटर को अधिक करंट (I) खींचना पड़ता है। यह अतिरिक्त करंट मोटर की वाइंडिंग को ज़्यादा गरम कर देता है, जिससे इंसुलेशन को नुकसान पहुँचता है और अंततः मोटर जल जाती है। इसके अलावा, मोटर का टॉर्क (घूमने की शक्ति) वोल्टेज के वर्ग (T \propto V^2) के समानुपाती होता है, इसलिए वोल्टेज में थोड़ी कमी भी टॉर्क में बहुत बड़ी कमी का कारण बनती है, जिससे मोटर अपनी पूरी गति और शक्ति से काम नहीं कर पाती। ​प्रतिरोधक भार पर अंडरवोल्टेज का प्रभाव ​प्रतिरोधक भार (जैसे हीटर या बल्ब) ओम के नियम (V = IR) के अनुसार काम करते हैं, जहाँ प्रतिरोध (R) स्थिर रहता है। 

    इन उपकरणों में, वोल्टेज में कमी से करंट भी कम हो जाता है। 

    I = V / R ​जब वोल्टेज कम होता है, तो करंट भी कम हो जाता है, जिससे उपकरण की शक्ति (P = V \times I) कम हो जाती है।  

    उदाहरण के लिए, 

    एक हीटर कम गर्म होगा और एक बल्ब कम रोशनी देगा। हालाँकि, इस स्थिति में वे ज़्यादा गरम नहीं होते और उन्हें स्थायी नुकसान होने की संभावना कम होती है। ​

    निष्कर्ष ​संक्षेप में,

    मोटर को अपनी यांत्रिक शक्ति को बनाए रखने के लिए अधिक करंट खींचना पड़ता है, जबकि प्रतिरोधक भार बस कम शक्ति पर काम करते हैं। यही कारण है कि मोटरें अंडरवोल्टेज के प्रति बहुत अधिक संवेदनशील होती हैं।




    वोल्टेज पर निर्भर रिले (Voltage Dependent Relay) एक प्रकार का सुरक्षा रिले है जो सर्किट में वोल्टेज के स्तर में बदलाव के आधार पर काम करता है। यह रिले वोल्टेज की लगातार निगरानी करता है और जब वोल्टेज एक पूर्व-निर्धारित सीमा से ऊपर या नीचे जाता है, तो यह सक्रिय हो जाता है और सर्किट को खोलने या बंद करने के लिए ट्रिपिंग कमांड भेजता है।

    कार्य सिद्धांत

    ​यह रिले अपने अंदर लगे वोल्टेज-सेंसिंग कॉइल के माध्यम से वोल्टेज को मापता है।

    • ओवरवोल्टेज (Overvoltage): जब वोल्टेज बढ़ता है, तो कॉइल में चुंबकीय क्षेत्र मजबूत हो जाता है, जिससे रिले सक्रिय होता है।
    • अंडरवोल्टेज (Undervoltage): जब वोल्टेज घटता है, तो चुंबकीय क्षेत्र कमजोर हो जाता है, जिससे रिले सक्रिय होता है।

    प्रकार और उपयोग

    1. ओवरवोल्टेज रिले (Overvoltage Relay): यह रिले ओवरवोल्टेज से उपकरणों की रक्षा करता है। इसका उपयोग अक्सर उन प्रणालियों में किया जाता है जहाँ बिजली गिरने या स्विचिंग ऑपरेशन के कारण वोल्टेज सर्ज का खतरा होता है।
    2. अंडरवोल्टेज रिले (Undervoltage Relay): यह रिले अंडरवोल्टेज से उपकरणों की रक्षा करता है। इसका उपयोग विशेष रूप से मोटर्स और अन्य संवेदनशील उपकरणों में किया जाता है, जिन्हें कम वोल्टेज से नुकसान हो सकता है।

    संक्षेप में, 

    वोल्टेज पर निर्भर रिले वोल्टेज में असामान्य उतार-चढ़ाव से उपकरणों को बचाने के लिए एक आवश्यक सुरक्षा उपकरण है।



    सर्ज अरेस्टर और सर्ज एब्जॉर्बर के बीच मुख्य अंतर उनके कार्य करने के तरीके में है। सर्ज अरेस्टर अतिरिक्त वोल्टेज को जमीन में मोड़ देता है, जबकि सर्ज एब्जॉर्बर अतिरिक्त ऊर्जा को अवशोषित करता है

    सर्ज अरेस्टर (Surge Arrester)

    ​सर्ज अरेस्टर, जिसे लाइटनिंग अरेस्टर भी कहा जाता है, एक डायवर्टर है। इसका मुख्य उद्देश्य उच्च वोल्टेज सर्ज को विद्युत प्रणाली से दूर मोड़कर जमीन में प्रवाहित करना है।

    • कार्य सिद्धांत: यह सामान्य वोल्टेज पर एक इंसुलेटर (विद्युत रोधक) के रूप में कार्य करता है। जब बिजली गिरने या किसी अन्य कारण से वोल्टेज अचानक से बढ़ता है, तो अरेस्टर का प्रतिरोध बहुत तेज़ी से कम हो जाता है। यह अतिरिक्त करंट को सीधे जमीन में भेज देता है, जिससे उपकरण सुरक्षित रहता है।
    • उपयोग: इसका उपयोग मुख्य रूप से सबस्टेशनों, ट्रांसमिशन लाइनों और इमारतों की छत पर किया जाता है ताकि उन्हें बाहरी और बड़े पैमाने पर वोल्टेज सर्ज (जैसे बिजली) से बचाया जा सके।

    सर्ज एब्जॉर्बर (Surge Absorber)

    ​सर्ज एब्जॉर्बर, जिसे अक्सर सर्ज प्रोटेक्टर या सर्ज सप्रेसर भी कहा जाता है, एक एब्जॉर्बर है। यह अतिरिक्त ऊर्जा को अवशोषित करके उपकरणों की सुरक्षा करता है।

    • कार्य सिद्धांत: यह एक विशेष प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक घटक, जैसे मेटल ऑक्साइड वैरिस्टर (MOV) का उपयोग करता है। जब वोल्टेज बढ़ता है, तो MOV का प्रतिरोध घटता है और यह अतिरिक्त ऊर्जा को गर्मी के रूप में अवशोषित करता है, जिससे वोल्टेज एक सुरक्षित स्तर पर सीमित हो जाता है।
    • उपयोग: इसका उपयोग आमतौर पर घरेलू और औद्योगिक उपकरणों जैसे कंप्यूटर, टीवी, रेफ्रिजरेटर और अन्य संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को आंतरिक रूप से होने वाले छोटे वोल्टेज सर्ज से बचाने के लिए किया जाता है।

    संक्षेप में, 

    अरेस्टर बाहरी और बड़े सर्ज के लिए है, जबकि एब्जॉर्बर आंतरिक और छोटे सर्ज के लिए है। दोनों का उद्देश्य ओवरवोल्टेज से सुरक्षा प्रदान करना है, लेकिन उनके अनुप्रयोग और कार्य करने का तरीका अलग है।


    एमओवी (MOV) का मतलब है मेटल ऑक्साइड वैरिस्टर (Metal Oxide Varistor)। यह एक इलेक्ट्रॉनिक घटक है जो इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को अचानक वोल्टेज स्पाइक या सर्ज से बचाता है। एमओवी का उपयोग सर्ज प्रोटेक्टर और अन्य सुरक्षा सर्किट में किया जाता है।

    एमओवी का कार्य सिद्धांत

    ​एमओवी का कार्य सिद्धांत इसकी गैर-रेखीय प्रतिरोध (non-linear resistance) विशेषता पर आधारित है।

    • सामान्य स्थिति: सामान्य वोल्टेज स्तरों पर, एमओवी का प्रतिरोध बहुत उच्च होता है। इस स्थिति में, यह लगभग एक ओपन सर्किट की तरह काम करता है, और करंट इसके माध्यम से प्रवाहित नहीं होता।
    • अचानक वोल्टेज वृद्धि (सर्ज): जब वोल्टेज एक निर्धारित सीमा (जिसे क्लैम्पिंग वोल्टेज कहा जाता है) से ऊपर चला जाता है, तो एमओवी का प्रतिरोध बहुत तेजी से घटता है।

    ​इस अचानक कमी के कारण, एमओवी एक शॉर्ट सर्किट पथ बनाता है, जिससे अतिरिक्त वोल्टेज और करंट इसके माध्यम से प्रवाहित होते हैं। यह अतिरिक्त ऊर्जा को गर्मी के रूप में अवशोषित करता है, जिससे सर्किट में वोल्टेज एक सुरक्षित स्तर पर सीमित हो जाता है।

    ​एक बार जब वोल्टेज सामान्य स्तर पर वापस आ जाता है, तो एमओवी का प्रतिरोध फिर से बढ़ जाता है, और यह अपनी सामान्य, उच्च-प्रतिरोध स्थिति में लौट आता है। यह प्रक्रिया बहुत कम समय (नैनोसेकंड) में होती है, जिससे उपकरण को सर्ज से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।

    संक्षेप में, 

    एमओवी एक वोल्टेज-सेंसिटिव स्विच की तरह काम करता है जो केवल तभी सक्रिय होता है जब वोल्टेज खतरनाक स्तर तक पहुंचता है।



    ओवरवोल्टेज रिले के मुख्य प्रकार हैं:

    1. ओवरवोल्टेज रिले (Overvoltage Relay): यह सबसे सामान्य प्रकार है जो वोल्टेज में वृद्धि का पता लगाता है और एक पूर्व-निर्धारित सीमा से ऊपर जाने पर सर्किट को काट देता है।
    2. डेफिनिट टाइम ओवरवोल्टेज रिले (Definite Time Overvoltage Relay): यह रिले तब सक्रिय होता है जब वोल्टेज एक निश्चित सीमा को पार कर जाता है, लेकिन यह सर्किट को डिस्कनेक्ट करने से पहले एक निर्धारित समय तक इंतजार करता है। यह उन स्थितियों में उपयोगी है जहाँ क्षणिक (temporary) वोल्टेज उतार-चढ़ाव को नजरअंदाज करना होता है।
    3. इन्वर्स टाइम ओवरवोल्टेज रिले (Inverse Time Overvoltage Relay): इस प्रकार का रिले वोल्टेज के स्तर के आधार पर प्रतिक्रिया करता है। वोल्टेज जितना अधिक होगा, यह उतनी ही तेजी से काम करेगा। यह उन स्थितियों के लिए आदर्श है जहाँ गंभीर ओवरवोल्टेज को तुरंत नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है।
    4. तात्कालिक ओवरवोल्टेज रिले (Instantaneous Overvoltage Relay): यह रिले बिना किसी समय विलंब के, जैसे ही वोल्टेज निर्धारित सीमा को पार करता है, तुरंत काम करता है। इसका उपयोग बहुत तेज और गंभीर ओवरवोल्टेज स्थितियों में किया जाता है।

    ​ये सभी रिले अलग-अलग अनुप्रयोगों में उपकरणों को ओवरवोल्टेज से बचाने के लिए उपयोग किए जाते हैं, जिससे विद्युत प्रणालियों की विश्वसनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित होती है।




    अंडरवोल्टेज रिले में व्युत्क्रम समय विशेषता (inverse time characteristic) का महत्व यह है कि यह रिले को वोल्टेज में गिरावट की मात्रा के आधार पर प्रतिक्रिया करने की अनुमति देता है। इसका मतलब है कि वोल्टेज जितनी अधिक गिरेगा, रिले उतनी ही तेजी से काम करेगा

    व्युत्क्रम समय विशेषता का कार्य सिद्धांत

    ​व्युत्क्रम समय रिले में, डिस्कनेक्ट होने का समय वोल्टेज के स्तर के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होता है।

    • छोटी वोल्टेज गिरावट: यदि वोल्टेज थोड़ा कम होता है (उदाहरण के लिए, रेटेड वोल्टेज का 90% तक), तो रिले कुछ सेकंड या मिलीसेकंड तक इंतजार करेगा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि यह गिरावट अस्थायी है और खतरनाक नहीं है।
    • बड़ी वोल्टेज गिरावट: यदि वोल्टेज में भारी गिरावट आती है (उदाहरण के लिए, रेटेड वोल्टेज का 50% तक), तो रिले लगभग तुरंत सक्रिय हो जाएगा और सर्किट को काट देगा।

    महत्व

    इस विशेषता के कई फायदे हैं:

    • त्वरित सुरक्षा: यह गंभीर अंडरवोल्टेज स्थितियों में त्वरित सुरक्षा प्रदान करता है, जिससे महंगे और संवेदनशील उपकरणों को नुकसान होने से बचाया जा सकता है।
    • अनावश्यक ट्रिपिंग से बचाव: यह छोटे और हानिरहित वोल्टेज उतार-चढ़ाव पर रिले को ट्रिप होने से रोकता है, जिससे सिस्टम की स्थिरता और विश्वसनीयता बनी रहती है।
    • मोटर संरक्षण: यह मोटर्स के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि कम वोल्टेज पर वे ज़्यादा करंट खींचते हैं। व्युत्क्रम समय विशेषता मोटर को सबसे खतरनाक स्थिति में सबसे तेज़ सुरक्षा प्रदान करती है।

    संक्षेप में, 

    व्युत्क्रम समय विशेषता अंडरवोल्टेज रिले को अधिक बुद्धिमान बनाती है, जिससे यह खतरे की गंभीरता के आधार पर प्रतिक्रिया दे सके।



    अंडरवोल्टेज संरक्षण में सिम्पैथेटिक ट्रिपिंग (Sympathetic Tripping) एक ऐसी समस्या है जिसमें एक दोषपूर्ण फीडर पर अंडरवोल्टेज रिले के सक्रिय होने से, पास के स्वस्थ (fault-free) फीडर भी अनावश्यक रूप से ट्रिप हो जाते हैं। यह एक प्रकार का अवांछित ट्रिपिंग है जो पूरे पावर सिस्टम की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।

    यह कैसे होता है?

    ​जब एक विद्युत प्रणाली में कोई दोष (जैसे शॉर्ट सर्किट) होता है, तो दोषपूर्ण फीडर में वोल्टेज में भारी गिरावट आती है। इस गिरावट के कारण, अंडरवोल्टेज रिले सक्रिय हो जाता है और उस फीडर को डिस्कनेक्ट कर देता है।

    ​लेकिन, दोष के कारण होने वाली वोल्टेज की गिरावट सिर्फ दोषपूर्ण फीडर तक सीमित नहीं रहती; यह पास के स्वस्थ फीडरों पर भी थोड़ा प्रभाव डालती है। यदि इन स्वस्थ फीडरों पर लगे अंडरवोल्टेज रिले की सेटिंग बहुत संवेदनशील होती है, तो वे भी इस छोटी सी वोल्टेज गिरावट को एक दोष मानकर ट्रिप हो सकते हैं।

    समस्या का समाधान

    ​इस समस्या से बचने के लिए, अंडरवोल्टेज रिले को इस तरह से डिज़ाइन और सेट किया जाता है कि वे केवल तभी सक्रिय हों जब वोल्टेज की गिरावट एक निश्चित और गंभीर स्तर तक पहुँचे। इसके लिए टाइम-डिले सेटिंग और हिस्टैरिसीस का उपयोग किया जाता है:

    • टाइम-डिले सेटिंग: रिले को कुछ समय तक इंतजार करने के लिए सेट किया जाता है (जैसे 0.5 सेकंड) ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वोल्टेज की गिरावट अस्थायी नहीं है।
    • हिस्टैरिसीस: यह रिले को केवल तभी फिर से जोड़ने की अनुमति देता है जब वोल्टेज एक सुरक्षित सीमा तक लौट आए।

    सही सेटिंग्स के साथ, 

    अंडरवोल्टेज रिले केवल वास्तविक दोषों पर प्रतिक्रिया करता है, जिससे सिम्पैथेटिक ट्रिपिंग की समस्या कम हो जाती है।



    यूवी (अंडरवोल्टेज) रिले और जनरेटर उत्तेजना प्रणाली (generator excitation system) के बीच समन्वय महत्वपूर्ण है ताकि बिजली प्रणाली को स्थिरता और विश्वसनीयता प्रदान की जा सके। यह समन्वय यह सुनिश्चित करता है कि वोल्टेज में गिरावट के दौरान जनरेटर सही तरीके से प्रतिक्रिया करे और सिस्टम को अनावश्यक रूप से ट्रिप होने से रोका जा सके।

    समन्वय का महत्व

    1. अंडरवोल्टेज से बचाव: जब बिजली प्रणाली पर भार अचानक बढ़ता है या कोई दोष होता है, तो वोल्टेज में गिरावट आ सकती है। इस स्थिति में, यूवी रिले को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए ताकि उपकरणों को नुकसान न हो।
    2. उत्तेजना प्रणाली की प्रतिक्रिया: जनरेटर की उत्तेजना प्रणाली का कार्य वोल्टेज को स्थिर रखना है। जब वोल्टेज गिरता है, तो उत्तेजना प्रणाली स्वचालित रूप से उत्तेजना करंट को बढ़ाकर वोल्टेज को बढ़ाने की कोशिश करती है।
    3. अनचाही ट्रिपिंग से बचाव: अगर यूवी रिले और उत्तेजना प्रणाली के बीच समन्वय नहीं होता, तो अंडरवोल्टेज रिले वोल्टेज में थोड़ी सी गिरावट पर भी जनरेटर को ट्रिप कर सकता है, भले ही उत्तेजना प्रणाली उसे ठीक करने में सक्षम हो। इससे अनावश्यक पावर आउटेज (power outage) हो सकता है।

    सही समन्वय

    ​सही समन्वय यह सुनिश्चित करता है कि यूवी रिले तत्काल ट्रिप न हो। इसके बजाय, यह एक समय विलंब के साथ काम करता है। यह समय विलंब उत्तेजना प्रणाली को वोल्टेज को सही करने का मौका देता है। यदि उत्तेजना प्रणाली निर्धारित समय के भीतर वोल्टेज को सामान्य नहीं कर पाती है, तो यूवी रिले जनरेटर को ट्रिप कर देता है।

    संक्षेप में, 

    यह समन्वय दोनों प्रणालियों को एक-दूसरे के साथ काम करने की अनुमति देता है: उत्तेजना प्रणाली वोल्टेज को नियंत्रित करने की कोशिश करती है, और अगर वह विफल हो जाती है, तो यूवी रिले अंतिम सुरक्षा उपाय के रूप में काम करता है।



    वोल्टेज में गिरावट की स्थिति में स्वचालित पुनः बंद करने (Automatic Reclosing) का कार्य यह है कि यह अस्थायी दोषों के कारण हुए पावर आउटेज (बिजली कटौती) के बाद बिजली आपूर्ति को तुरंत और स्वचालित रूप से बहाल करता है। यह सिस्टम की विश्वसनीयता को बढ़ाता है और लंबे समय तक बिजली कटौती को रोकता है।

    कार्य सिद्धांत (Working Principle)

    ​जब पावर लाइन में एक अस्थायी दोष (जैसे पेड़ की शाखा का लाइन को छूना या बिजली गिरना) होता है, तो सर्किट ब्रेकर तुरंत लाइन को ट्रिप (बंद) कर देता है। यह स्थिति में, स्वचालित पुनः बंद करने वाला उपकरण कुछ सेकंड तक इंतजार करता है।

    1. दोष को साफ करना: यह प्रतीक्षा इसलिए की जाती है ताकि दोष अपने आप ठीक हो सके (जैसे कि पेड़ की शाखा हट जाए या बिजली का झटका खत्म हो जाए)।
    2. स्वतः पुनः बंद करना: प्रतीक्षा अवधि के बाद, उपकरण सर्किट ब्रेकर को स्वचालित रूप से फिर से बंद करने का संकेत देता है। यदि दोष दूर हो गया है, तो बिजली आपूर्ति बहाल हो जाती है और सिस्टम सामान्य रूप से काम करने लगता है।
    3. स्थायी दोष की स्थिति में: यदि दोष स्थायी है (जैसे कि टूटा हुआ तार), तो ब्रेकर फिर से ट्रिप हो जाएगा। अधिकांश प्रणालियाँ एक निश्चित समय के बाद दो या तीन बार पुनः बंद करने का प्रयास करती हैं। यदि ये सभी प्रयास विफल हो जाते हैं, तो यह मान लिया जाता है कि दोष स्थायी है, और ब्रेकर खुला रहता है, जिसे केवल मैन्युअल रूप से ही बंद किया जा सकता है।

    अंडरवोल्टेज से संबंध

    ​हालांकि स्वचालित पुनः बंद करना सीधे तौर पर अंडरवोल्टेज सुरक्षा का हिस्सा नहीं है, लेकिन इसका एक महत्वपूर्ण संबंध है। जब अंडरवोल्टेज रिले सक्रिय होता है और सर्किट को ट्रिप करता है, तो दोष के ठीक होने के बाद लाइन को फिर से चालू करने के लिए स्वचालित पुनः बंद करने का उपयोग किया जा सकता है, जिससे बिजली की आपूर्ति जल्द से जल्द बहाल हो सके।




    कैपेसिटर बैंक ओवरवोल्टेज के प्रति इसलिए संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके अंदर के डाइइलेक्ट्रिक (dielectric) इन्सुलेशन की एक निश्चित वोल्टेज रेटिंग होती है। जब वोल्टेज इस रेटिंग से अधिक हो जाता है, तो डाइइलेक्ट्रिक का इन्सुलेशन टूट जाता है, जिससे शॉर्ट सर्किट होता है और कैपेसिटर स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

    संवेदनशीलता के कारण

    • डाइइलेक्ट्रिक ब्रेकडाउन: कैपेसिटर ऊर्जा को एक डाइइलेक्ट्रिक सामग्री में संग्रहित करते हैं। यदि वोल्टेज बहुत अधिक बढ़ जाता है, तो यह डाइइलेक्ट्रिक सामग्री को पंचर कर देता है या तोड़ देता है, जिससे कैपेसिटर फेल हो जाता है।
    • अत्यधिक करंट: ओवरवोल्टेज की स्थिति में, कैपेसिटर के माध्यम से बहने वाला चार्जिंग करंट बहुत बढ़ जाता है, जिससे आंतरिक घटक गर्म हो सकते हैं और क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
    • प्रति-एक्टिव पावर (Reactive Power) में वृद्धि: कैपेसिटर बैंक को पावर फैक्टर सुधार के लिए उपयोग किया जाता है। वोल्टेज में वृद्धि से उनकी प्रति-एक्टिव पावर आउटपुट बढ़ जाती है, जो ग्रिड में अस्थिरता पैदा कर सकती है।

    सुरक्षा उपाय

    ​कैपेसिटर बैंक को ओवरवोल्टेज से बचाने के लिए, आमतौर पर ओवरवोल्टेज रिले और सर्ज अरेस्टर का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण अतिरिक्त वोल्टेज को नियंत्रित करके कैपेसिटर बैंक के जीवनकाल और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करते हैं।



    फेज टू ग्राउंड और फेज टू फेज ओवरवोल्टेज में मुख्य अंतर यह है कि फेज टू ग्राउंड ओवरवोल्टेज एक फेज और ग्राउंड के बीच होता है, जबकि फेज टू फेज ओवरवोल्टेज दो अलग-अलग फेज के बीच होता है

    फेज टू ग्राउंड ओवरवोल्टेज

    • परिभाषा: यह एक फेज और अर्थ (ग्राउंड) के बीच वोल्टेज में वृद्धि है। यह आमतौर पर तब होता है जब एक फेज का तार गलती से जमीन से छू जाता है।
    • कारण:
      • ग्राउंड फॉल्ट: जब एक फेज कंडक्टर जमीन या उपकरण के मेटल बॉडी से जुड़ जाता है।
      • असंतुलित सिस्टम: यदि थ्री-फेज सिस्टम में लोड असंतुलित हो जाता है, तो न्यूट्रल पॉइंट पर वोल्टेज बढ़ सकता है, जिससे फेज टू ग्राउंड ओवरवोल्टेज हो सकता है।
    • प्रभाव: यह आमतौर पर इंसुलेशन को नुकसान पहुंचाता है और उपकरणों में ग्राउंड फॉल्ट का कारण बनता है। यह सबसे सामान्य प्रकार का ओवरवोल्टेज है।

    फेज टू फेज ओवरवोल्टेज

    • परिभाषा: यह दो अलग-अलग फेजों के बीच वोल्टेज में वृद्धि है।
    • कारण:
      • स्विचिंग सर्ज: जब सर्किट ब्रेकर बड़ी मशीनों को डिस्कनेक्ट करते हैं, तो फेजों के बीच वोल्टेज में अचानक वृद्धि हो सकती है।
      • सिंक्रोनाइजेशन की समस्या: जब दो अलग-अलग पावर ग्रिड या जनरेटर को गलत समय पर जोड़ा जाता है, तो फेजों के बीच वोल्टेज का अंतर बहुत अधिक हो सकता है।
    • प्रभाव: यह ओवरवोल्टेज ट्रांसफार्मर और मोटर्स की वाइंडिंग को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, क्योंकि इन उपकरणों को उच्च फेज टू फेज वोल्टेज को सहन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

    संक्षेप में, 

    फेज टू ग्राउंड ओवरवोल्टेज एक फेज और ग्राउंड के बीच के वोल्टेज संतुलन को बिगाड़ता है, जबकि फेज टू फेज ओवरवोल्टेज दो फेजों के बीच के वोल्टेज अंतर को बढ़ाता है। दोनों ही प्रकार के ओवरवोल्टेज से सुरक्षा के लिए विशेष रिले और सर्ज प्रोटेक्टर का उपयोग किया जाता है।


    ट्रांसफार्मर पर अंडर-वोल्टेज का सीधा प्रभाव आउटपुट वोल्टेज को कम करना और क्षति को बढ़ाना है। एक ट्रांसफार्मर एक स्थिर वोल्टेज अनुपात पर काम करता है, इसलिए यदि इनपुट वोल्टेज कम होता है, तो आउटपुट वोल्टेज भी कम हो जाएगा। हालाँकि, इस स्थिति में ट्रांसफार्मर को अपनी रेटेड शक्ति (power) बनाए रखने के लिए अधिक करंट खींचना पड़ता है, जिससे नुकसान हो सकता है।  


    प्रमुख प्रभाव ​बढ़ी हुई करंट (Overcurrent): जब इनपुट वोल्टेज कम होता है, तो आउटपुट पावर की मांग को पूरा करने के लिए ट्रांसफार्मर को अधिक करंट खींचना पड़ता है। यह अतिरिक्त करंट ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग को ज़्यादा गरम कर सकता है। 

    ओवरहीटिंग (Overheating): बढ़ा हुआ करंट ट्रांसफार्मर में कॉपर लॉस (copper losses) को बढ़ाता है, जो करंट के वर्ग के समानुपाती होता है (P\_{loss} \\propto I^2). यह अतिरिक्त गर्मी ट्रांसफार्मर के इंसुलेशन को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे उसका जीवनकाल कम हो जाता है। ​

    दक्षता में कमी (Reduced Efficiency): अंडर-वोल्टेज के कारण बढ़ी हुई गर्मी ट्रांसफार्मर की दक्षता को कम करती है, जिससे ऊर्जा की बर्बादी होती है। ​

    कोर लॉस में वृद्धि (Increased Core Losses): कम वोल्टेज से कोर में चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव हो सकता है, जिससे कोर लॉस (जैसे हिस्टैरिसीस लॉस) भी बढ़ सकते हैं। ​

    उपकरणों को नुकसान: ट्रांसफार्मर के आउटपुट पर जुड़े उपकरण भी कम वोल्टेज से प्रभावित होंगे। 

    उदाहरण के लिए, मोटर्स कम टॉर्क और दक्षता के साथ काम करेंगी, और ज़्यादा करंट खींचेंगी, जिससे उन्हें नुकसान होगा। ​

    बचाव ​इन प्रभावों से बचने के लिए, ट्रांसफार्मर को अक्सर वोल्टेज रेगुलेटर या टैप चेंजर के साथ जोड़ा जाता है जो वोल्टेज में उतार-चढ़ाव को समायोजित कर सकते हैं।




    ट्रांसफार्मर पर ओवरवोल्टेज का सबसे गंभीर प्रभाव इंसुलेशन ब्रेकडाउन है, जो ट्रांसफार्मर को स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त कर सकता है। ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग को एक निश्चित वोल्टेज स्तर को सहन करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। जब वोल्टेज इस स्तर से अधिक हो जाता है, तो इंसुलेशन पर बहुत अधिक दबाव पड़ता है।

     

    ओवरवोल्टेज के प्रमुख प्रभाव:

    • इंसुलेशन का टूटना (Insulation Breakdown): ओवरवोल्टेज के कारण ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग के बीच का इन्सुलेशन पंचर हो सकता है या टूट सकता है। इससे शॉर्ट सर्किट होता है, जिससे ट्रांसफार्मर में आग लग सकती है या वह पूरी तरह से नष्ट हो सकता है।
    • कोर सैचुरेशन (Core Saturation): जब वोल्टेज बढ़ता है, तो ट्रांसफार्मर के कोर में चुंबकीय फ्लक्स भी बढ़ जाता है। यदि यह फ्लक्स एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाता है, तो कोर संतृप्त (saturated) हो जाता है। कोर के संतृप्त होने पर, ट्रांसफार्मर एक बड़े करंट को खींचता है, जिसे एक्साइटिंग करंट कहते हैं, जिससे वाइंडिंग अत्यधिक गरम हो जाती है।
    • ओवरहीटिंग (Overheating): बढ़ा हुआ करंट और कोर लॉस के कारण ट्रांसफार्मर ज़्यादा गरम हो जाता है। यह गर्मी ट्रांसफार्मर के तेल और वाइंडिंग दोनों को नुकसान पहुँचाती है, जिससे जीवनकाल कम हो जाता है।
    • यांत्रिक तनाव: अचानक और भारी ओवरवोल्टेज के कारण वाइंडिंग पर मजबूत यांत्रिक बल उत्पन्न होते हैं, जो उन्हें नुकसान पहुँचा सकते हैं और ट्रांसफार्मर की संरचना को विकृत कर सकते हैं।

    संक्षेप में, 

    अंडरवोल्टेज के विपरीत, जो धीरे-धीरे नुकसान पहुँचाता है, ओवरवोल्टेज ट्रांसफार्मर को अचानक और विनाशकारी क्षति पहुँचा सकता है।



    हम जनरेटर में अवशिष्ट वोल्टेज रिले (Residual Voltage Relay) का उपयोग अर्थ फॉल्ट (ground fault) का पता लगाने और उससे सुरक्षा प्रदान करने के लिए करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण है जो जनरेटर और उससे जुड़े उपकरणों को संभावित नुकसान से बचाता है।

    यह कैसे काम करता है?

    ​जब एक स्वस्थ जनरेटर काम कर रहा होता है, तो उसका अवशिष्ट वोल्टेज (residual voltage) या तो शून्य के बराबर होता है या बहुत कम होता है। अवशिष्ट वोल्टेज को तीन-चरण प्रणाली के वोल्टेज वैक्टरों के योग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। जब तक कोई फॉल्ट नहीं होता, ये वेक्टर संतुलित होते हैं और उनका योग शून्य होता है।

    ​लेकिन जब जनरेटर के किसी भी चरण में अर्थ फॉल्ट होता है, तो यह संतुलन बिगड़ जाता है। इस असंतुलन के कारण एक अतिरिक्त वोल्टेज उत्पन्न होता है जिसे अवशिष्ट वोल्टेज रिले महसूस करता है।

    अवशिष्ट वोल्टेज रिले की भूमिका

    ​अवशिष्ट वोल्टेज रिले इस अतिरिक्त वोल्टेज (residual voltage) की निगरानी करता है। जब यह वोल्टेज एक निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो रिले ट्रिप हो जाता है। यह ट्रिपिंग क्रिया निम्नलिखित कार्य करती है:

    • ​जनरेटर को पावर ग्रिड से अलग कर देती है।
    • ​सर्किट ब्रेकर को खोल देती है।
    • ​अलार्म बजाकर ऑपरेटर को सूचित करती है।

    इस तरह, 

    यह रिले फॉल्ट को समय रहते पहचान कर जनरेटर और बिजली प्रणाली को बड़े नुकसान से बचा लेता है, जैसे कि ओवरहीटिंग, इन्सुलेशन क्षति, या आग।



    वोल्टेज असंतुलन संरक्षण (Voltage Unbalance Protection) एक सुरक्षा प्रणाली है जिसका उपयोग तीन-चरण (three-phase) विद्युत प्रणालियों में वोल्टेज के असंतुलन से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए किया जाता है। जब किसी तीन-चरण प्रणाली में प्रत्येक चरण का वोल्टेज या तो आयाम (magnitude) में बराबर नहीं होता है या उनके बीच 120 डिग्री का मानक कोण नहीं होता है, तो इस स्थिति को वोल्टेज असंतुलन कहते हैं। यह प्रणाली इस असंतुलन का पता लगाकर उपकरणों को बंद कर देती है या चेतावनी देती है।

    वोल्टेज असंतुलन के कारण

    ​वोल्टेज असंतुलन के कई कारण हो सकते हैं, जैसे:

    • ​एकल-चरण (single-phase) भार का असमान वितरण।
    • ​सिस्टम में दोष (जैसे कि ग्राउंड फॉल्ट या शॉर्ट सर्किट)।
    • ​फ्यूज का उड़ जाना या सर्किट ब्रेकर का अनुचित संचालन।
    • ​बिजली वितरण नेटवर्क में ट्रांसफॉर्मर का गलत कनेक्शन।

    वोल्टेज असंतुलन के प्रभाव

    ​वोल्टेज असंतुलन विशेष रूप से प्रेरण मोटरों (induction motors) जैसे तीन-चरण उपकरणों के लिए बहुत हानिकारक होता है। इसके मुख्य प्रभाव हैं:

    • अत्यधिक गर्मी (Overheating): असंतुलन से मोटर वाइंडिंग में धारा (current) का असंतुलन बढ़ जाता है, जिससे अत्यधिक गर्मी पैदा होती है।
    • टॉर्क स्पंदन (Torque Pulsation): यह मोटर में कंपन और यांत्रिक तनाव को बढ़ाता है।
    • मोटर का जीवनकाल कम होना: अत्यधिक गर्मी और कंपन के कारण मोटर के इन्सुलेशन और बेयरिंग को नुकसान पहुँचता है, जिससे मोटर का जीवनकाल काफी कम हो जाता है।

    संरक्षण कैसे काम करता है?

    ​वोल्टेज असंतुलन संरक्षण प्रणाली एक सुरक्षा रिले का उपयोग करती है जो लगातार तीन-चरण वोल्टेज की निगरानी करती है। यह रिले वोल्टेज के सकारात्मक और नकारात्मक अनुक्रम घटकों (positive and negative sequence components) की तुलना करती है। जब नकारात्मक अनुक्रम वोल्टेज एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो रिले सक्रिय हो जाती है। यह ट्रिपिंग क्रिया मोटर या उपकरण को बिजली आपूर्ति से डिस्कनेक्ट कर देती है, जिससे उसे नुकसान से बचाया जा सकता है।

    यह संरक्षण प्रणाली उद्योगों, 

    बिजली उत्पादन संयंत्रों और अन्य स्थानों पर महत्वपूर्ण है जहां तीन-चरण उपकरण व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं।




    विद्युत प्रणाली की स्थिरता बनाए रखने के लिए आवृत्ति और वोल्टेज रिले का एक साथ उपयोग किया जाता है क्योंकि ये दोनों पैरामीटर प्रणाली के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण संकेतक हैं और एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। 

    वोल्टेज रिले (Voltage Relay)

    • कार्य: यह प्रणाली में वोल्टेज के स्तर की निगरानी करता है। जब वोल्टेज बहुत अधिक (ओवर-वोल्टेज) या बहुत कम (अंडर-वोल्टेज) हो जाता है, तो यह रिले सक्रिय हो जाता है।
    • महत्व:
      • उपकरणों की सुरक्षा: ओवर-वोल्टेज से उपकरण का इंसुलेशन खराब हो सकता है, जबकि अंडर-वोल्टेज से मोटर जैसे उपकरण कम क्षमता पर काम करते हैं और गर्म हो सकते हैं। वोल्टेज रिले इन स्थितियों को पहचान कर उपकरण को ट्रिप कर देता है, जिससे उन्हें नुकसान से बचाया जाता है।

    आवृत्ति रिले (Frequency Relay)

    • कार्य: यह प्रणाली की आवृत्ति (frequency) की निगरानी करता है। जब बिजली उत्पादन और मांग के बीच असंतुलन होता है, तो आवृत्ति बदलती है। अगर उत्पादन मांग से कम हो, तो आवृत्ति गिरती है, और अगर उत्पादन मांग से अधिक हो, तो आवृत्ति बढ़ती है।
    • महत्व:
      • भार-निर्धारण (Load Shedding): जब उत्पादन में अचानक कमी आती है (जैसे किसी जनरेटर के बंद होने पर), तो आवृत्ति तेजी से गिरने लगती है। इस स्थिति में, आवृत्ति रिले महत्वपूर्ण नहीं होने वाले कुछ भार (loads) को स्वचालित रूप से बंद कर देता है, ताकि बाकी प्रणाली स्थिर रहे और पूरी तरह से ब्लैकआउट न हो।

    दोनों का संयुक्त उपयोग (Combined Use)

    ​वोल्टेज और आवृत्ति दोनों एक ही प्रणाली में परस्पर संबंधित होते हैं। उदाहरण के लिए:

    1. कम आवृत्ति और कम वोल्टेज: जब प्रणाली में एक बड़ा फॉल्ट होता है, तो ऊर्जा की मांग बढ़ जाती है जिससे जनरेटर की गति कम हो जाती है (आवृत्ति कम हो जाती है) और साथ ही वोल्टेज भी गिरता है। इन दोनों रिले का उपयोग करके फॉल्ट को जल्दी से पहचाना जा सकता है और प्रणाली को टूटने से बचाया जा सकता है।
    2. समग्र स्थिरता: वोल्टेज रिले व्यक्तिगत उपकरणों की सुरक्षा करता है, जबकि आवृत्ति रिले पूरे ग्रिड की स्थिरता सुनिश्चित करता है। एक साथ काम करते हुए, ये रिले प्रणाली को छोटे फॉल्ट से लेकर बड़े ब्लैकआउट तक हर तरह की गड़बड़ी से बचाते हैं, जिससे बिजली आपूर्ति की विश्वसनीयता बनी रहती है।



    सर्ज प्रोटेक्शन और वोल्टेज रेगुलेशन दो अलग-अलग कार्य हैं जो विद्युत उपकरणों को बिजली की समस्याओं से बचाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। उनका मुख्य अंतर उन समस्याओं की प्रकृति में है जिनसे वे निपटते हैं।

    सर्ज प्रोटेक्शन (Surge Protection)

    ​सर्ज प्रोटेक्शन डिवाइस (जैसे कि एक सर्ज प्रोटेक्टर) का मुख्य कार्य अचानक और बहुत थोड़े समय के लिए होने वाले वोल्टेज स्पाइक्स या सर्ज से सुरक्षा प्रदान करना है। ये सर्ज अक्सर बिजली गिरने, पावर ग्रिड में स्विचिंग, या बड़े उपकरणों के चालू या बंद होने से उत्पन्न होते हैं। एक सर्ज में वोल्टेज का स्तर सामान्य से कई हजार गुना अधिक हो सकता है, लेकिन यह केवल कुछ माइक्रोसेकंड या मिलीसेकंड के लिए रहता है।

    • कार्य: सर्ज प्रोटेक्टर अतिरिक्त वोल्टेज को उपकरणों तक पहुँचने से पहले ही उसे ग्राउंड में मोड़ देता है। यह एक सुरक्षा गार्ड की तरह काम करता है जो केवल तेज, खतरनाक हमलों को रोकता है।
    • उदाहरण: बिजली के तार में बिजली गिरने पर उत्पन्न होने वाला क्षणिक वोल्टेज।

    वोल्टेज रेगुलेशन (Voltage Regulation)

    ​वोल्टेज रेगुलेशन (या स्टेबलाइजेशन) का कार्य लंबे समय तक चलने वाले और लगातार वोल्टेज में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करना है। ये उतार-चढ़ाव अचानक नहीं होते, बल्कि वोल्टेज या तो लगातार थोड़ा अधिक (ओवर-वोल्टेज) या थोड़ा कम (अंडर-वोल्टेज) रहता है। एक वोल्टेज रेगुलेटर (जिसे वोल्टेज स्टेबलाइजर भी कहते हैं) यह सुनिश्चित करता है कि आउटपुट वोल्टेज एक सुरक्षित और स्थिर सीमा के भीतर रहे।

    • कार्य: वोल्टेज रेगुलेटर इनपुट वोल्टेज को मापता है और इसे समायोजित करके एक स्थिर आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है। यह एक फिल्टर की तरह काम करता है जो लगातार आने वाले छोटे-मोटे उतार-चढ़ाव को सुचारू करता है।
    • उदाहरण: किसी क्षेत्र में बिजली की आपूर्ति कमजोर होने पर उपकरणों को मिलने वाला लगातार कम वोल्टेज।

    संक्षेप में, 

    सर्ज प्रोटेक्टर एक सुरक्षात्मक ढाल है जो अचानक आए बड़े हमलों (सर्ज) से बचाता है, जबकि वोल्टेज रेगुलेटर एक नियंत्रक है जो लगातार और छोटे-मोटे वोल्टेज के उतार-चढ़ाव को स्थिर करता है। सर्वोत्तम सुरक्षा के लिए, खासकर संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए, दोनों का एक साथ उपयोग करने की सलाह दी जाती है।



    इलेक्ट्रॉनिक्स में, एक क्राउबर सर्किट (Crowbar circuit) एक प्रकार का ओवरवॉल्टेज सुरक्षा सर्किट है। यह अचानक या अनियंत्रित रूप से वोल्टेज बढ़ जाने की स्थिति में संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को क्षति से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

    यह कैसे काम करता है?

    ​जब एक बिजली आपूर्ति (power supply) में वोल्टेज एक पूर्व-निर्धारित सुरक्षित स्तर से अधिक हो जाता है, तो क्राउबर सर्किट तुरंत सक्रिय हो जाता है। यह बिजली आपूर्ति के आउटपुट टर्मिनलों के पार एक निम्न-प्रतिरोध पथ (low-resistance path) बना देता है, या प्रभावी रूप से उन्हें शॉर्ट-सर्किट कर देता है।

    ​यह क्रिया एक धातु की रॉड (या "क्राउबर") को बिजली के तारों के बीच डालने के समान है, जिससे एक बड़ा शॉर्ट-सर्किट होता है—इसीलिए इसे यह नाम दिया गया है।

    इस शॉर्ट-सर्किट के कारण:

    1. आउटपुट वोल्टेज शून्य के करीब गिर जाता है: लोड (यानी, आपके उपकरण) को मिलने वाला खतरनाक ओवरवॉल्टेज तुरंत समाप्त हो जाता है।
    2. फ्यूज उड़ जाता है या सर्किट ब्रेकर ट्रिप हो जाता है: शॉर्ट-सर्किट के कारण बिजली की आपूर्ति से अत्यधिक धारा (current) प्रवाहित होती है, जो प्रणाली में लगे सुरक्षा फ्यूज को उड़ा देती है या सर्किट ब्रेकर को ट्रिप कर देती है।

    ​एक बार जब फ्यूज उड़ जाता है या ब्रेकर ट्रिप हो जाता है, तो बिजली की आपूर्ति पूरी तरह से बंद हो जाती है, जिससे उपकरण स्थायी रूप से सुरक्षित हो जाते हैं। क्राउबर सर्किट अक्सर SCR (सिलिकॉन नियंत्रित रेक्टिफायर) या TRIAC जैसे घटकों का उपयोग करके बनाए जाते हैं, जो एक बार चालू होने के बाद तब तक चालू रहते हैं जब तक कि उनमें से धारा प्रवाहित होना बंद न हो जाए।

    संक्षेप में, 

    क्राउबर सर्किट एक अंतिम-उपाय सुरक्षा तंत्र है जो उपकरणों को बचाने के लिए खुद को और बिजली आपूर्ति को त्याग देता है।



    अंडरवोल्टेज रिले में टाइम ग्रेडिंग महत्वपूर्ण है ताकि बिजली प्रणाली में क्षणिक वोल्टेज ड्रॉप्स (transient voltage dips) के कारण अनावश्यक ट्रिपिंग को रोका जा सके। यह सुनिश्चित करता है कि रिले केवल तभी सक्रिय हो जब अंडरवोल्टेज की स्थिति लंबे समय तक बनी रहे, जिससे वास्तविक समस्या का संकेत मिलता है, न कि किसी क्षणिक गड़बड़ी का।

    टाइम ग्रेडिंग का उद्देश्य

    1. अनावश्यक ट्रिपिंग रोकना:
      • ​बिजली प्रणाली में कई कारण हैं जिनकी वजह से वोल्टेज क्षण भर के लिए गिर सकता है, जैसे कि बड़े मोटरों का चालू होना या लाइटिंग स्ट्राइक।
      • ​अगर टाइम ग्रेडिंग नहीं होगी, तो रिले हर छोटे से वोल्टेज ड्रॉप पर ट्रिप कर जाएगा, जिससे उपकरणों का संचालन बार-बार बाधित होगा।
      • ​टाइम डिले सेट करने से, रिले एक निर्धारित समय (जैसे 1-2 सेकंड) तक इंतजार करता है। अगर वोल्टेज इस समय के बाद भी कम रहता है, तभी वह ट्रिप करता है।
    2. समन्वय और चयनात्मकता (Coordination and Selectivity):
      • ​एक बड़ी प्रणाली में, कई अंडरवोल्टेज रिले होते हैं। टाइम ग्रेडिंग यह सुनिश्चित करती है कि फॉल्ट के सबसे नज़दीक का रिले पहले ट्रिप हो।
      • ​उदाहरण के लिए, अगर एक सब-स्टेशन पर वोल्टेज गिरता है, तो सब-स्टेशन के ब्रेकर को ट्रिप होने में थोड़ा अधिक समय लग सकता है, जबकि एक मोटर के ब्रेकर को कम समय। यह सुनिश्चित करता है कि सिर्फ प्रभावित क्षेत्र का लोड ही डिस्कनेक्ट हो, और पूरे ग्रिड को अनावश्यक रूप से बंद न किया जाए।
    3. सुरक्षा और विश्वसनीयता:
      • ​टाइम ग्रेडिंग रिले को उन स्थितियों से बचाती है जो वास्तव में हानिकारक नहीं हैं, जबकि यह सुनिश्चित करती है कि जब कोई गंभीर और स्थायी अंडरवोल्टेज की स्थिति उत्पन्न हो (जैसे कि ट्रांसफार्मर का फॉल्ट), तो रिले सही समय पर और सही क्रम में काम करे। यह प्रणाली की समग्र विश्वसनीयता को बढ़ाता है।

    संक्षेप में, 

    टाइम ग्रेडिंग अंडरवोल्टेज रिले को एक स्मार्ट सुरक्षा तंत्र बनाती है जो अनावश्यक रुकावटों से बचता है और केवल वास्तविक खतरे की स्थिति में ही कार्रवाई करता है, जिससे प्रणाली की स्थिरता और दक्षता बनी रहती है।




    मोटर स्टार्टर में अंडरवोल्टेज रिले (UV Relay) और नो-वोल्टेज रिलीज़ कॉइल (No-Voltage Release Coil या NVR) दोनों का मुख्य कार्य मोटर को कम वोल्टेज की स्थिति से बचाना है। हालाँकि, इन दोनों के बीच कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं:

    ​नो-वोल्टेज रिलीज़ (NVR) कॉइल

    • कार्य: NVR कॉइल मोटर स्टार्टर का एक अंतर्निहित (integral) हिस्सा होती है। इसका एकमात्र उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जब बिजली की आपूर्ति पूरी तरह से बंद हो जाए (यानी, वोल्टेज शून्य हो जाए), तो मोटर बंद हो जाए। यह एक होल्डिंग कॉइल के रूप में काम करती है जो स्टार्टर के कॉन्टैक्टर को चालू स्थिति में बनाए रखती है।
    • तंत्र: जब आप स्टार्ट बटन दबाते हैं, तो NVR कॉइल में बिजली जाती है और यह चुंबकीय क्षेत्र बनाती है। यह चुंबकीय क्षेत्र कॉन्टैक्टर को खींचकर रखता है। जब बिजली चली जाती है या वोल्टेज बहुत कम हो जाता है, तो चुंबकीय बल कमजोर हो जाता है और कॉन्टैक्टर अपनी शुरुआती (ऑफ) स्थिति में वापस आ जाता है।
    • मुख्य उपयोग: बिजली गुल होने के बाद मोटर को फिर से चालू होने से रोकना। अगर बिजली वापस आती है और मोटर अपने आप चालू हो जाती है, तो यह ऑपरेटर के लिए खतरनाक हो सकता है।

    अंडरवोल्टेज (UV) रिले

    • कार्य: UV रिले एक अतिरिक्त (auxiliary) सुरक्षा उपकरण है जिसे मोटर स्टार्टर के साथ जोड़ा जाता है। इसका उद्देश्य न केवल बिजली गुल होने पर, बल्कि ब्राउनआउट जैसी स्थितियों में भी मोटर की सुरक्षा करना है, जहाँ वोल्टेज सामान्य से काफी कम होता है लेकिन शून्य नहीं होता।
    • तंत्र: UV रिले को एक निश्चित वोल्टेज सीमा (जैसे, सामान्य वोल्टेज का 70-80%) पर सेट किया जाता है। यह लगातार वोल्टेज की निगरानी करता है। जब वोल्टेज इस निर्धारित सीमा से नीचे चला जाता है, तो रिले ट्रिप हो जाता है और स्टार्टर को बंद करने का संकेत देता है।
    • मुख्य उपयोग: कम वोल्टेज की स्थिति (अंडरवोल्टेज) से मोटर को बचाना। कम वोल्टेज में मोटर सामान्य से अधिक धारा (current) खींचती है, जिससे मोटर की वाइंडिंग गर्म हो सकती है और उसे नुकसान हो सकता है।

    संक्षेप में, 

    NVR कॉइल एक बुनियादी सुरक्षा है जो केवल तभी काम करती है जब कोई वोल्टेज नहीं होता, जबकि UV रिले एक अधिक उन्नत सुरक्षा प्रणाली है जो कम वोल्टेज की स्थिति को भी पहचानती है।


    परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में अंडरवोल्टेज सुरक्षा बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सुरक्षा-संबंधी प्रणालियों की विश्वसनीयता सुनिश्चित करती है। रिएक्टर में सुरक्षा प्रणालियाँ, जैसे कि इमरजेंसी कोर कूलिंग सिस्टम (ECCS) और रिएक्टर प्रोटेक्शन सिस्टम (RPS), को चलाने के लिए एक स्थिर और विश्वसनीय बिजली आपूर्ति की आवश्यकता होती है।

    अंडरवोल्टेज सुरक्षा क्यों आवश्यक है?

    1. सुरक्षा प्रणालियों का संचालन: परमाणु संयंत्रों को बिजली ग्रिड से बाहरी बिजली मिलती है। यदि ग्रिड में किसी फॉल्ट के कारण वोल्टेज गिरता है, तो यह सुरक्षा प्रणालियों के लिए खतरे का कारण बन सकता है। अंडरवोल्टेज रिले यह सुनिश्चित करता है कि जब वोल्टेज एक निर्धारित सीमा से नीचे चला जाए, तो सुरक्षा-संबंधी मोटर्स और पंप्स को सुरक्षित रूप से बंद कर दिया जाए या उन्हें स्टैंडबाय जनरेटर जैसे वैकल्पिक बिजली स्रोतों पर स्थानांतरित कर दिया जाए। इससे यह सुनिश्चित होता है कि आपातकालीन स्थिति में भी महत्वपूर्ण प्रणालियाँ काम करती रहें।
    2. उपकरणों की सुरक्षा: कम वोल्टेज की स्थिति में, विद्युत उपकरण, विशेष रूप से मोटर्स, सामान्य से अधिक धारा (current) खींचते हैं, जिससे वे गर्म हो जाते हैं और क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। अंडरवोल्टेज रिले इन उपकरणों को नुकसान से बचाता है।
    3. ब्लैकआउट से सुरक्षा: यदि ग्रिड में वोल्टेज की कमी के कारण रिएक्टर से ग्रिड का कनेक्शन टूट जाता है, तो यह एक पूर्ण ब्लैकआउट का कारण बन सकता है। अंडरवोल्टेज सुरक्षा, इस स्थिति को पहचानकर, आवश्यक प्रणालियों को चालू रखकर एक नियंत्रित शटडाउन को संभव बनाती है, जिससे ग्रिड की स्थिरता बनाए रखने में मदद मिलती है।
    4. सुरक्षा-गहन लोड्स की रक्षा: परमाणु संयंत्रों में कई लोड्स होते हैं जिनकी सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाती है। अंडरवोल्टेज सुरक्षा यह सुनिश्चित करती है कि इन क्रिटिकल लोड्स को बिजली की आपूर्ति में रुकावट या गिरावट से कोई नुकसान न हो, क्योंकि ये रिएक्टर की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

    ​संयुक्त राज्य अमेरिका के परमाणु नियामक आयोग (NRC) ने 1976 में मिल्स्टोन न्यूक्लियर प्लांट में वोल्टेज में गिरावट की घटनाओं के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि ऑफ-साइट बिजली आपूर्ति की पर्याप्तता सुनिश्चित करने के लिए एक अतिरिक्त अंडरवोल्टेज रिलेइंग योजना स्थापित की जानी चाहिए। यह दर्शाता है कि परमाणु सुरक्षा में अंडरवोल्टेज सुरक्षा एक महत्वपूर्ण और अनिवार्य घटक है।



    SCADA (Supervisory Control and Data Acquisition) प्रणाली ओवर/अंडर वोल्टेज सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि यह विद्युत ग्रिड के वोल्टेज स्तरों की वास्तविक समय में निगरानी, ​​डेटा रिकॉर्डिंग और दूरस्थ नियंत्रण की सुविधा प्रदान करती है। यह पारंपरिक रिले सुरक्षा प्रणालियों की तुलना में अधिक व्यापक और एकीकृत दृष्टिकोण प्रदान करता है।

    SCADA की मुख्य भूमिकाएँ

    1. वास्तविक समय की निगरानी (Real-time Monitoring): SCADA प्रणाली पूरे ग्रिड या संयंत्र में विभिन्न बिंदुओं पर वोल्टेज, धारा और अन्य मापदंडों को लगातार मापती है। यह डेटा ऑपरेटरों को एक केंद्रीय नियंत्रण कक्ष में दिखाया जाता है, जिससे वे किसी भी संभावित ओवर/अंडर वोल्टेज की स्थिति को तुरंत देख सकते हैं।
    2. अलार्म और चेतावनी (Alarms and Alerts): जब वोल्टेज पूर्व-निर्धारित सुरक्षित सीमा से बाहर चला जाता है, तो SCADA प्रणाली स्वचालित रूप से अलार्म उत्पन्न करती है। यह अलार्म ऑपरेटरों को टेक्स्ट मैसेज, ईमेल या ऑन-स्क्रीन नोटिफिकेशन के माध्यम से सतर्क कर सकता है, जिससे वे तत्काल कार्रवाई कर सकें।
    3. डेटा रिकॉर्डिंग और विश्लेषण (Data Recording and Analysis): SCADA प्रणाली सभी वोल्टेज उतार-चढ़ाव का ऐतिहासिक डेटा रिकॉर्ड करती है। यह डेटा इंजीनियरों को वोल्टेज की समस्याओं के पैटर्न को समझने, उनके कारणों का पता लगाने और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए निवारक उपाय विकसित करने में मदद करता है। यह ग्रिड की विश्वसनीयता के लिए महत्वपूर्ण है।
    4. दूरस्थ नियंत्रण (Remote Control): एक बार जब SCADA प्रणाली किसी समस्या का पता लगाती है, तो ऑपरेटर दूरस्थ रूप से सर्किट ब्रेकर और स्विच जैसे उपकरणों को नियंत्रित कर सकते हैं। वे प्रभावित सेक्शन को ग्रिड से डिस्कनेक्ट कर सकते हैं या लोड को बदल सकते हैं ताकि वोल्टेज को सामान्य स्तर पर वापस लाया जा सके। यह ग्रिड की स्थिरता को बनाए रखने के लिए तत्काल प्रतिक्रिया को संभव बनाता है।

    संक्षेप में,

    पारंपरिक ओवर/अंडर वोल्टेज रिले केवल एक स्थानीय घटना के जवाब में ट्रिप करते हैं, जबकि SCADA एक व्यापक और बुद्धिमान प्रणाली प्रदान करती है जो न केवल प्रतिक्रिया करती है बल्कि सक्रिय रूप से निगरानी करती है, चेतावनी देती है और दूरस्थ नियंत्रण के माध्यम से ग्रिड की स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है।





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