ट्रांसफार्मर के मुख्य घटक ( Main components of transformer )
ट्रांसफार्मर एक स्थिर (static) विद्युत उपकरण है जो विद्युत ऊर्जा को एक सर्किट से दूसरे सर्किट में स्थानांतरित करता है। यह बिना किसी यांत्रिक गतिमान पुर्जे के काम करता है और ऐसा केवल तभी कर सकता है जब यह एसी (प्रत्यावर्ती धारा) पर काम करे। इसका मुख्य कार्य वोल्टेज के स्तर को बढ़ाना (स्टेप-अप) या घटाना (स्टेप-डाउन) है, जिससे यह विद्युत पारेषण और वितरण प्रणालियों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कार्य सिद्धांत
ट्रांसफार्मर विद्युतचुंबकीय प्रेरण (electromagnetic induction) के सिद्धांत पर काम करता है। इसमें दो या दो से अधिक वाइंडिंग (तारों के कुंडल) होती हैं, जो एक साझा लौह कोर (iron core) पर लिपटी होती हैं।
- जब प्राथमिक (primary) वाइंडिंग को एसी वोल्टेज से जोड़ा जाता है, तो यह कोर में एक परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र (changing magnetic field) उत्पन्न करता है।
- यह परिवर्तनशील चुंबकीय क्षेत्र द्वितीयक (secondary) वाइंडिंग से भी गुजरता है और उसमें एक प्रेरित ईएमएफ (induced EMF) उत्पन्न करता है।
- इस प्रेरित ईएमएफ का मान वाइंडिंग में टर्न (turns) की संख्या पर निर्भर करता है।
प्रकार
ट्रांसफार्मर को उनके कार्य के आधार पर दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:
- स्टेप-अप ट्रांसफार्मर (Step-Up Transformer): यह द्वितीयक वाइंडिंग में अधिक टर्न का उपयोग करके वोल्टेज को बढ़ाता है। इनका उपयोग बिजली संयंत्रों में किया जाता है ताकि बिजली को लंबी दूरी तक कम धारा पर भेजा जा सके, जिससे ऊर्जा हानि कम हो।
- स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर (Step-Down Transformer): यह द्वितीयक वाइंडिंग में कम टर्न का उपयोग करके वोल्टेज को घटाता है। इनका उपयोग घरों और उद्योगों में बिजली के वितरण के लिए किया जाता है, ताकि वोल्टेज को सुरक्षित और उपयोग योग्य स्तर पर लाया जा सके।
ट्रांसफार्मर के मुख्य घटक
- कोर (Core): यह सिलिकॉन स्टील की पतली, लैमिनेटेड (laminated) शीट्स से बना होता है और चुंबकीय क्षेत्र के लिए एक रास्ता प्रदान करता है।
- वाइंडिंग (Windings): ये तांबे या एल्यूमीनियम के तार होते हैं जो कोर के चारों ओर लिपटे होते हैं।
- ट्रांसफार्मर तेल (Transformer Oil): यह एक इंसुलेटर और कूलिंग माध्यम के रूप में काम करता है।
- कंजरवेटर टैंक (Conservator Tank): यह तेल के विस्तार और संकुचन को समायोजित करता है।
- ब्रीथर (Breather): यह हवा में मौजूद नमी को सोखता है।
- बुशिंग (Bushings): ये ट्रांसफार्मर के अंदर और बाहर के कनेक्शनों के लिए इंसुलेटेड मार्ग प्रदान करते हैं।
संक्षेप में,
ट्रांसफार्मर एक ऐसा उपकरण है जो विद्युत ऊर्जा को रूपांतरित करके हमारे घरों और उद्योगों तक बिजली पहुँचाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संरक्षक टैंक
एक संरक्षक टैंक (Protector Tank) एक विशेष प्रकार का सैन्य वाहन है जिसे मुख्य रूप से युद्ध के मैदान में मित्र देशों की इकाइयों की सुरक्षा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह सिर्फ हमला करने के लिए नहीं होता, बल्कि इसका प्राथमिक उद्देश्य अन्य टैंकों, पैदल सेना, या महत्वपूर्ण वाहनों को दुश्मन के हमलों से बचाना होता है।
संरक्षक टैंक की कुछ मुख्य विशेषताएँ:
- भारी कवच: इन टैंकों पर आमतौर पर बहुत भारी और उन्नत कवच होता है ताकि वे दुश्मन की तोपों, मिसाइलों और अन्य हमलों का सामना कर सकें।
- उन्नत सुरक्षा प्रणालियाँ: इनमें एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम (APS) जैसी तकनीकें होती हैं जो दुश्मन के आने वाले प्रोजेक्टाइल का पता लगाकर उन्हें हवा में ही नष्ट कर देती हैं।
- कम गतिशीलता: ये आक्रामक टैंकों की तुलना में थोड़े धीमे हो सकते हैं, क्योंकि इनका डिज़ाइन गति की बजाय सुरक्षा पर केंद्रित होता है।
- सहायक हथियार: इनमें मुख्य तोप के अलावा मशीन गन और अन्य सहायक हथियार भी होते हैं, जो नज़दीकी खतरे से निपटने में मदद करते हैं।
संक्षेप में,
संरक्षक टैंक एक चलती-फिरती ढाल (Mobile Shield) की तरह काम करता है, जो युद्ध के मैदान में महत्वपूर्ण संपत्तियों की रक्षा करता है।
तेल स्तर गेज (Oil Level Gauge) एक महत्वपूर्ण उपकरण है जिसका उपयोग किसी भी मशीन, इंजन, या टैंक में तेल के स्तर को मापने के लिए किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि मशीन सही ढंग से काम कर रही है और उसमें पर्याप्त चिकनाई (lubrication) है।
यह कैसे काम करता है?
तेल स्तर गेज का काम करने का तरीका उसके प्रकार पर निर्भर करता है, लेकिन इसका मूल सिद्धांत हमेशा एक ही होता है: तरल के स्तर को मापना।
सबसे सामान्य प्रकार हैं:
- डिपस्टिक (Dipstick): यह सबसे सरल और सबसे आम प्रकार है, खासकर कारों और अन्य छोटे इंजनों में। यह एक लंबी छड़ी होती है जिसे सीधे इंजन या टैंक में डाला जाता है। छड़ी पर "मिनिमम" (Min) और "मैक्सिमम" (Max) के निशान होते हैं। जब आप डिपस्टिक को बाहर निकालते हैं, तो आप देख सकते हैं कि तेल का स्तर इन निशानों के बीच कहाँ है।
- चुंबकीय स्तर गेज (Magnetic Level Gauge): ये गेज अक्सर बड़े औद्योगिक टैंकों और ट्रांसफॉर्मर में इस्तेमाल होते हैं। इसमें एक फ्लोट (तैरने वाला हिस्सा) होता है जिसमें एक चुंबक लगा होता है। यह फ्लोट तेल के स्तर के साथ ऊपर-नीचे होता है। टैंक के बाहर एक संकेतक (indicator) होता है जिसमें छोटे-छोटे चुंबकीय फ्लैप लगे होते हैं। जैसे ही अंदर का फ्लोट ऊपर-नीचे होता है, उसके चुंबक के प्रभाव से बाहर के फ्लैप घूमकर लाल या कोई और रंग दिखा देते हैं, जिससे तेल का स्तर पता चलता है।
- इलेक्ट्रॉनिक स्तर गेज (Electronic Level Gauge): ये आधुनिक गेज होते हैं जो सेंसर का उपयोग करते हैं। ये सेंसर तेल के स्तर को मापते हैं और उस डेटा को एक विद्युत संकेत में बदल देते हैं। यह संकेत कार के डैशबोर्ड या किसी कंट्रोल पैनल पर डिजिटल रीडिंग के रूप में दिखाई देता है। कुछ उन्नत प्रणालियाँ तो तेल का स्तर कम होने पर स्वचालित रूप से चेतावनी भी भेजती हैं।
इसका महत्व
तेल स्तर गेज का उपयोग इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि:
- इंजन की सुरक्षा: यदि इंजन में तेल का स्तर बहुत कम हो जाता है, तो इसके पुर्जे ठीक से चिकनाई नहीं कर पाते, जिससे घर्षण (friction) और अत्यधिक गर्मी पैदा होती है। इससे इंजन को गंभीर नुकसान हो सकता है।
- प्रदर्शन बनाए रखना: सही तेल स्तर इंजन को कुशलतापूर्वक काम करने में मदद करता है।
- समय पर रखरखाव: यह गेज आपको समय पर यह बताता है कि कब तेल बदलने या टॉप-अप करने की आवश्यकता है, जिससे आप मशीन के जीवनकाल को बढ़ा सकते हैं।
संक्षेप में,
तेल स्तर गेज एक सरल लेकिन बहुत ही महत्वपूर्ण उपकरण है जो यह सुनिश्चित करता है कि मशीनें सुचारू और सुरक्षित रूप से चलती रहें।
एलवी बुशिंग (LV Bushing)
- निम्न वोल्टेज साइड: यह बुशिंग ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयक (secondary) वाइंडिंग से जुड़ी होती है।
- उद्देश्य: यह निम्न वोल्टेज बिजली को बाहर निकालने के लिए एक इंसुलेटेड मार्ग प्रदान करती है।
- संरचना: एलवी बुशिंग आमतौर पर एचवी बुशिंग की तुलना में छोटी होती है और इसमें कम इंसुलेशन की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह कम वोल्टेज पर काम करती है।
एचवी और एलवी बुशिंग में
एचवी (HV) और एलवी (LV) बुशिंग ट्रांसफॉर्मर के महत्वपूर्ण घटक हैं, जिनका उपयोग ट्रांसफॉर्मर के अंदर और बाहर की वाइंडिंग को जोड़ने के लिए किया जाता है। "HV" का मतलब हाई वोल्टेज (High Voltage) और "LV" का मतलब लो वोल्टेज (Low Voltage) होता है।
एचवी बुशिंग (HV Bushing)
उच्च वोल्टेज साइड: यह बुशिंग ट्रांसफॉर्मर की प्राथमिक (primary) वाइंडिंग से जुड़ी होती है।
उद्देश्य: यह उच्च वोल्टेज बिजली को ट्रांसफॉर्मर के अंदर और बाहर सुरक्षित रूप से प्रवाहित करने के लिए एक इंसुलेटेड मार्ग प्रदान करती है।
संरचना: एचवी बुशिंग आकार में बड़ी होती है और इसमें अधिक इंसुलेटिंग सामग्री, जैसे चीनी मिट्टी या विशेष रेजिन, का उपयोग होता है ताकि उच्च वोल्टेज के कारण होने वाले फ्लैशओवर (flashover) को रोका जा सके।
ऑन-लोड टैप चेंजर (OLTC) ट्रांसफॉर्मर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो ट्रांसफॉर्मर को बिना बिजली काटे, आउटपुट वोल्टेज को समायोजित करने की अनुमति देता है। यह पावर ग्रिड में वोल्टेज को स्थिर रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
कार्य सिद्धांत
OLTC का मुख्य कार्य ट्रांसफॉर्मर की वाइंडिंग में टर्न की संख्या को बदलना है। जब सिस्टम में लोड बदलता है, तो वोल्टेज में भी उतार-चढ़ाव आता है। OLTC इस उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करता है। यह एक मोटर-चालित तंत्र (motor-driven mechanism) का उपयोग करके ट्रांसफॉर्मर की हाई-वोल्टेज वाइंडिंग पर लगे अलग-अलग टैपिंग पॉइंट्स को चुनता है।
- लोड बढ़ने पर: जब लोड बढ़ता है, तो वोल्टेज गिरता है। इस स्थिति में, OLTC वाइंडिंग में टर्न की संख्या को बढ़ाता है ताकि आउटपुट वोल्टेज को वापस वांछित स्तर पर लाया जा सके।
- लोड घटने पर: जब लोड कम होता है, तो वोल्टेज बढ़ता है। इस स्थिति में, OLTC वाइंडिंग में टर्न की संख्या को घटाता है ताकि वोल्टेज को सुरक्षित स्तर पर बनाए रखा जा सके।
यह प्रक्रिया पूरी तरह से स्वचालित होती है, जिससे बिजली की आपूर्ति में कोई बाधा नहीं आती है।
OLTC के मुख्य घटक
- टैप सिलेक्टर (Tap Selector): यह स्विच होता है जो अलग-अलग टैपिंग पॉइंट्स को चुनता है।
- डायवर्टर स्विच (Diverter Switch): यह मुख्य स्विच होता है जो लोड करंट को एक टैप से दूसरे टैप पर स्थानांतरित करता है। यह आर्क को रोकने के लिए प्रतिरोधक (resistors) का उपयोग करता है।
- ड्राइव तंत्र (Drive Mechanism): यह एक मोटर-चालित गियरबॉक्स होता है जो टैप सिलेक्टर और डायवर्टर स्विच को चलाता है।
- टैप चेंजर का नियंत्रण (Tap Changer Control): यह एक नियंत्रण कक्ष होता है जो वोल्टेज को मापकर OLTC को सही टैप स्थिति पर जाने का निर्देश देता है।
OLTC और NLTC में अंतर
OLTC (ऑन-लोड टैप चेंजर) और NLTC (नो-लोड टैप चेंजर) में मुख्य अंतर यह है कि OLTC ट्रांसफॉर्मर के चालू रहने पर ही वोल्टेज बदल सकता है, जबकि NLTC का उपयोग करने के लिए ट्रांसफॉर्मर को पूरी तरह से बंद (de-energize) करना पड़ता है। इसी कारण, OLTC बड़े और महत्वपूर्ण पावर ट्रांसफॉर्मर में उपयोग होता है जहाँ बिजली की निरंतर आपूर्ति आवश्यक होती है।
ऑन-लोड टैप चेंजर (OLTC) का तेल स्तर गेज (oil level gauge) एक महत्वपूर्ण सुरक्षा और निगरानी उपकरण है जो यह सुनिश्चित करता है कि टैप चेंजर के कंपार्टमेंट में तेल का स्तर सही है।
कार्य और महत्व
- तेल स्तर की निगरानी: OLTC में एक अलग तेल कंपार्टमेंट होता है, जिसमें टैप बदलने के दौरान उत्पन्न होने वाले आर्क (arc) को बुझाने के लिए विशेष तेल भरा जाता है। तेल स्तर गेज इस तेल की मात्रा को दिखाता है।
- दोष का पता लगाना: टैप चेंजर के कंपार्टमेंट में तेल के स्तर का गिरना एक संभावित दोष का संकेत हो सकता है, जैसे कि तेल का रिसाव (leakage) या अत्यधिक गैस का निर्माण। गेज के माध्यम से इस तरह के बदलाव की तुरंत पहचान की जा सकती है।
- सुरक्षा और चेतावनी: गेज में आमतौर पर अलार्म और ट्रिपिंग कॉन्टैक्ट्स होते हैं। यदि तेल का स्तर बहुत कम हो जाता है, तो यह अलार्म को सक्रिय कर देता है और गंभीर स्थिति में ट्रांसफार्मर को ट्रिप कर देता है ताकि बड़े नुकसान को रोका जा सके।
- नियमित रखरखाव: तेल स्तर गेज रखरखाव कर्मियों को यह जांचने में मदद करता है कि क्या OLTC को अतिरिक्त तेल की आवश्यकता है या किसी अन्य रखरखाव की।
नल स्थिति सूचक (Tap Position Indicator) एक उपकरण है जो ट्रांसफॉर्मर के ऑन-लोड टैप चेंजर (OLTC) की वर्तमान स्थिति को दर्शाता है। यह एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो ऑपरेटरों और रखरखाव कर्मियों को यह जानने में मदद करता है कि ट्रांसफॉर्मर की कौन सी टैप सेटिंग सक्रिय है।
मुख्य कार्य
- दृश्य प्रदर्शन: यह गेज या डिजिटल डिस्प्ले के माध्यम से दिखाता है कि OLTC वर्तमान में किस टैप पर है (उदाहरण के लिए, 1 से 17)। यह जानकारी वोल्टेज विनियमन को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
- दूरी से निगरानी: आधुनिक ट्रांसफॉर्मर में, नल स्थिति सूचक अक्सर नियंत्रण कक्ष में दूर से भी दिखाई देते हैं, जिससे ऑपरेटर को ट्रांसफॉर्मर के पास गए बिना उसकी स्थिति का पता चल जाता है।
- ऑटोमेशन में उपयोग: यह सूचक स्वचालित वोल्टेज विनियमन रिले (AVR) को फीडबैक देता है। AVR इस जानकारी का उपयोग यह तय करने के लिए करता है कि वोल्टेज को वांछित स्तर पर बनाए रखने के लिए टैप को कब और किस दिशा में बदलना है।
- लॉगिंग और डेटा विश्लेषण: कई प्रणालियाँ टैप की स्थिति को लगातार रिकॉर्ड करती हैं, जिससे लोड के उतार-चढ़ाव और ट्रांसफॉर्मर के प्रदर्शन का विश्लेषण किया जा सकता है।
प्रकार
- यांत्रिक सूचक: ये आमतौर पर OLTC के पास ही लगे होते हैं और गियर तथा शाफ्ट के माध्यम से टैप की स्थिति को सीधे दर्शाते हैं।
- डिजिटल सूचक: ये अधिक उन्नत होते हैं और एक डिजिटल डिस्प्ले पर टैप संख्या दिखाते हैं। ये अक्सर दूरस्थ निगरानी प्रणालियों (SCADA) से जुड़े होते हैं।
संक्षेप में,
नल स्थिति सूचक एक अनिवार्य उपकरण है जो ट्रांसफॉर्मर के वोल्टेज विनियमन तंत्र की सही कार्यप्रणाली की निगरानी और नियंत्रण के लिए आवश्यक है।
नल परिवर्तक मोटर नियंत्रण (Tap Changer Motor Control) वह प्रणाली है जो ट्रांसफॉर्मर के ऑन-लोड टैप चेंजर (OLTC) में लगी मोटर के संचालन को नियंत्रित करती है। इस मोटर का उपयोग टैप चेंजर के यांत्रिक तंत्र को चलाने के लिए किया जाता है, जिससे ट्रांसफॉर्मर की वाइंडिंग पर टैप की स्थिति बदलती है और आउटपुट वोल्टेज समायोजित होता है।
नियंत्रण के तरीके
मोटर नियंत्रण प्रणाली दो मुख्य तरीकों से काम करती है:
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स्वचालित (Automatic) नियंत्रण: यह सबसे आम तरीका है। इसमें एक स्वचालित वोल्टेज विनियमन रिले (AVR) का उपयोग किया जाता है।
- AVR लगातार ट्रांसफॉर्मर के आउटपुट वोल्टेज को मापता है।
- जब वोल्टेज एक पूर्व-निर्धारित सीमा (डेडबैंड) से बाहर चला जाता है, तो AVR मोटर को एक कमांड भेजता है।
- अगर वोल्टेज बहुत कम है, तो AVR "RAISE" कमांड भेजता है, जिससे मोटर एक दिशा में चलती है और टैप की संख्या बढ़ जाती है।
- अगर वोल्टेज बहुत अधिक है, तो AVR "LOWER" कमांड भेजता है, जिससे मोटर विपरीत दिशा में चलती है और टैप की संख्या कम हो जाती है।
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स्थानीय (Local) और दूरस्थ (Remote) मैनुअल नियंत्रण:
- स्थानीय नियंत्रण: यह ट्रांसफॉर्मर के पास स्थित एक नियंत्रण कक्ष (control panel) से किया जाता है। इसमें पुश बटन या स्विच होते हैं जिनका उपयोग मोटर को मैन्युअल रूप से चलाने के लिए किया जाता है। यह आमतौर पर रखरखाव के दौरान या आपातकालीन स्थितियों में उपयोग होता है।
- दूरस्थ नियंत्रण: यह SCADA (Supervisory Control and Data Acquisition) प्रणाली के माध्यम से एक केंद्रीय नियंत्रण केंद्र से किया जाता है। ऑपरेटर कंप्यूटर स्क्रीन से टैप की स्थिति को देख और बदल सकता है।
नियंत्रण सर्किट के मुख्य घटक
- मोटर: यह टैप चेंजर को चलाने वाला मुख्य शक्ति स्रोत है।
- कॉन्टेक्टर/रिले: ये सर्किट में मोटर को चालू या बंद करने के लिए स्विच के रूप में काम करते हैं।
- लिमिट स्विच (Limit Switches): ये टैप बदलने की अधिकतम और न्यूनतम सीमा निर्धारित करते हैं ताकि मोटर अधिक न चले। जब टैप अंतिम स्थिति पर पहुँच जाता है, तो यह स्विच मोटर को रोक देता है।
- ऑटो/मैनुअल सिलेक्टर स्विच: यह ऑपरेटर को नियंत्रण के तरीके (स्वचालित या मैनुअल) का चयन करने की अनुमति देता है।
- पुश बटन: मैन्युअल संचालन के लिए "RAISE" और "LOWER" बटन।
- फीडबैक: नियंत्रण प्रणाली को यह सूचित करने के लिए सेंसर लगे होते हैं कि टैप किस स्थिति में है, ताकि AVR सही कमांड दे सके।
एक नाली वाल्व (Drain Valve) और एक नमूना वाल्व (Sampling Valve) ट्रांसफॉर्मर और अन्य औद्योगिक उपकरणों में बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। हालांकि दोनों का उपयोग तरल पदार्थ को निकालने के लिए होता है, उनके उद्देश्य और कार्य अलग-अलग होते हैं।
नाली वाल्व (Drain Valve)
नाली वाल्व का मुख्य उद्देश्य ट्रांसफॉर्मर या किसी भी तरल-भरे उपकरण से तरल पदार्थ (जैसे ट्रांसफार्मर तेल) को पूरी तरह से बाहर निकालना है। यह निम्नलिखित स्थितियों में उपयोग किया जाता है:
- रखरखाव (Maintenance): जब ट्रांसफॉर्मर की मरम्मत या रखरखाव किया जाता है, तो तेल को पूरी तरह से बाहर निकालना आवश्यक होता है।
- तेल बदलना (Oil Replacement): जब ट्रांसफॉर्मर के तेल को बदलने की आवश्यकता होती है क्योंकि उसकी गुणवत्ता खराब हो गई है, तो पुराने तेल को पूरी तरह से निकालने के लिए नाली वाल्व का उपयोग किया जाता है।
- परिवहन (Transportation): ट्रांसफॉर्मर को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने से पहले उसके टैंक को हल्का करने के लिए तेल निकाला जाता है।
नाली वाल्व आमतौर पर ट्रांसफॉर्मर के सबसे निचले हिस्से पर लगा होता है ताकि गुरुत्वाकर्षण की मदद से पूरा तेल निकाला जा सके।
नमूना वाल्व (Sampling Valve)
नमूना वाल्व का उपयोग उपकरण के अंदर के तरल पदार्थ का एक छोटा, प्रतिनिधि नमूना (sample) लेने के लिए किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य तरल की गुणवत्ता की जांच करना है।
- तेल विश्लेषण (Oil Analysis): ट्रांसफॉर्मर तेल की गुणवत्ता का समय-समय पर विश्लेषण करना बहुत महत्वपूर्ण है। नमूना वाल्व के माध्यम से तेल का नमूना लिया जाता है ताकि उसकी डाइइलेक्ट्रिक शक्ति (dielectric strength), नमी की मात्रा और गैसों की जांच की जा सके।
- पूर्वानुमानित रखरखाव (Predictive Maintenance): तेल के नमूनों का नियमित विश्लेषण करके यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ट्रांसफॉर्मर में कोई आंतरिक समस्या तो नहीं है, जैसे कि ओवरहीटिंग या इन्सुलेशन का खराब होना।
नमूना वाल्व अक्सर नाली वाल्व के ऊपर या उसके साथ ही लगा होता है। कई मामलों में, एक ही वाल्व को "ड्रेन-कम-सैंपलिंग वाल्व" कहा जाता है, जो दोनों उद्देश्यों को पूरा करता है
सिलिका जेल ब्रीथर (Silica Gel Breather) ट्रांसफॉर्मर का एक महत्वपूर्ण सहायक उपकरण है, जो ट्रांसफॉर्मर के अंदर के तेल को नमी से बचाता है। इसे अक्सर ट्रांसफॉर्मर का फेफड़ा (lung) भी कहा जाता है, क्योंकि यह ट्रांसफॉर्मर के टैंक में हवा के प्रवेश को नियंत्रित करता है।
यह कैसे काम करता है?
जब ट्रांसफॉर्मर लोड के कारण गर्म होता है, तो उसके अंदर का तेल फैलता है। यह फैला हुआ तेल कंजरवेटर टैंक (Conservator Tank) में चला जाता है। जब ट्रांसफॉर्मर ठंडा होता है, तो तेल सिकुड़ता है और कंजरवेटर टैंक में खाली जगह बन जाती है। इस खाली जगह को भरने के लिए बाहर की हवा अंदर खींच ली जाती है।
यदि यह हवा सीधे ट्रांसफॉर्मर में प्रवेश करे, तो इसमें मौजूद नमी तेल के साथ मिल जाएगी। नमी वाला तेल एक खराब इंसुलेटर बन जाता है, जिससे ट्रांसफॉर्मर के इन्सुलेशन को गंभीर नुकसान हो सकता है और शॉर्ट सर्किट का खतरा बढ़ सकता है।
सिलिका जेल ब्रीथर इसी समस्या को हल करता है। यह एक पारदर्शी कंटेनर होता है जिसमें सिलिका जेल के क्रिस्टल भरे होते हैं। जब भी बाहर की हवा ट्रांसफॉर्मर के अंदर जाती है, तो वह पहले ब्रीथर से होकर गुजरती है। सिलिका जेल के क्रिस्टल इस हवा में मौजूद सारी नमी को सोख लेते हैं और सूखी हवा ही ट्रांसफॉर्मर में प्रवेश कर पाती है।
सिलिका जेल का रंग
- नीला/नारंगी: जब सिलिका जेल पूरी तरह से सूखा होता है, तो इसका रंग नीला (कोबाल्ट क्लोराइड युक्त) या नारंगी (कोबाल्ट मुक्त, जो पर्यावरण के लिए सुरक्षित है) होता है। यह दर्शाता है कि ब्रीथर ठीक से काम कर रहा है।
- गुलाबी/सफ़ेद: जब सिलिका जेल नमी सोख लेता है, तो इसका रंग बदलकर हल्का गुलाबी (नीले से) या सफ़ेद (नारंगी से) हो जाता है। यह इस बात का संकेत है कि अब सिलिका जेल अपनी नमी सोखने की क्षमता खो चुका है और उसे बदलने या रीजेनरेट करने की आवश्यकता है।
रखरखाव
सिलिका जेल को नमी से संतृप्त होने के बाद उसे बदलने या गर्म करके सुखाकर (रीजेनरेट करके) फिर से उपयोग किया जा सकता है। नियमित रूप से ब्रीथर की स्थिति की जाँच करना ट्रांसफॉर्मर के सुरक्षित और कुशल संचालन के लिए आवश्यक है।
नियंत्रण कैबिनेट (Control Cabinet) एक संलग्न बॉक्स होता है जिसमें बिजली के उपकरण जैसे स्विच, रिले, फ्यूज, सर्किट ब्रेकर, और अन्य नियंत्रण उपकरण सुरक्षित रूप से रखे जाते हैं। यह एक मशीन, प्रक्रिया या प्रणाली के संचालन को नियंत्रित करने और निगरानी करने के लिए बनाया गया है।
मुख्य कार्य
- नियंत्रण (Control): यह विभिन्न उपकरणों को मैन्युअल या स्वचालित रूप से चालू और बंद करने के लिए स्विच और बटन प्रदान करता है।
- सुरक्षा (Protection): यह बिजली के झटके, शॉर्ट सर्किट और ओवरलोड जैसी खतरों से उपकरणों और ऑपरेटरों की सुरक्षा करता है।
- प्रबंधन (Management): यह सभी तारों और घटकों को एक ही स्थान पर व्यवस्थित रखता है, जिससे समस्या निवारण और रखरखाव आसान हो जाता है।
घटक
एक विशिष्ट नियंत्रण कैबिनेट में निम्नलिखित घटक हो सकते हैं:
- मुख्य सर्किट ब्रेकर (Main Circuit Breaker): यह कैबिनेट को बिजली की आपूर्ति को काटता या जोड़ता है।
- रिले और कॉन्टैक्टर (Relays and Contactors): ये स्विच की तरह काम करते हैं जो बड़े लोड को चालू और बंद करने के लिए छोटे नियंत्रण संकेतों का उपयोग करते हैं।
- पीएलसी (PLC - Programmable Logic Controller): यह एक कंप्यूटर है जो स्वचालित नियंत्रण के लिए निर्देशों को चलाता है।
- पावर सप्लाई (Power Supply): यह कैबिनेट के अंदर के घटकों को उचित वोल्टेज प्रदान करता है।
- टर्मिनल ब्लॉक (Terminal Blocks): ये तारों को जोड़ने और व्यवस्थित करने के लिए उपयोग होते हैं।
- एचएमआई (HMI - Human-Machine Interface): यह एक टचस्क्रीन या डिस्प्ले है जो ऑपरेटर को मशीन की स्थिति देखने और नियंत्रण करने की अनुमति देता है।
प्रकार
नियंत्रण कैबिनेट का उपयोग कई उद्योगों में होता है,
जैसे:
- विनिर्माण (Manufacturing): रोबोट और असेंबली लाइनों को नियंत्रित करने के लिए।
- बिजली संयंत्र (Power Plants): जनरेटर और स्विचगियर को नियंत्रित करने के लिए।
- जल उपचार (Water Treatment): पंपों और वाल्वों को नियंत्रित करने के लिए।
संक्षेप में,
एक नियंत्रण कैबिनेट किसी भी स्वचालित या नियंत्रित प्रणाली का मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र है, जो सुरक्षा, नियंत्रण और दक्षता सुनिश्चित करता है।
ट्रांसफार्मर में टैप परिवर्तक (Tap Changer) का मुख्य उद्देश्य ट्रांसफार्मर के आउटपुट वोल्टेज को समायोजित (adjust) करना है, ताकि यह एक स्थिर और वांछित स्तर पर बना रहे। यह ट्रांसफार्मर को बिना बंद किए, लोड और इनपुट वोल्टेज में होने वाले उतार-चढ़ाव के बावजूद, वोल्टेज को नियंत्रित करने में मदद करता है।
यह क्यों महत्वपूर्ण है?
बिजली आपूर्ति प्रणाली में, लोड (उपभोक्ताओं द्वारा उपयोग की जाने वाली बिजली) लगातार बदलता रहता है। जब लोड बढ़ता है, तो वोल्टेज गिरता है, और जब लोड कम होता है, तो वोल्टेज बढ़ता है। इस उतार-चढ़ाव को संभालने के लिए, टैप परिवर्तक ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में टर्न (turns) की संख्या को बदलता है।
- वोल्टेज कम होने पर: टैप परिवर्तक वाइंडिंग में टर्न की संख्या बढ़ाता है, जिससे आउटपुट वोल्टेज बढ़ता है।
- वोल्टेज अधिक होने पर: टैप परिवर्तक वाइंडिंग में टर्न की संख्या घटाता है, जिससे आउटपुट वोल्टेज कम होता है।
इस तरह, टैप परिवर्तक यह सुनिश्चित करता है कि बिजली उपभोक्ताओं को हमेशा सही वोल्टेज मिले, जिससे उनके उपकरण सुरक्षित और कुशलता से काम कर सकें।
प्रकार
टैप परिवर्तक मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
- ऑन-लोड टैप परिवर्तक (OLTC): यह ट्रांसफार्मर के लोड में रहते हुए यानी बिना बिजली काटे वोल्टेज को समायोजित कर सकता है। यह बड़े पावर ट्रांसफार्मर में उपयोग होता है।
- नो-लोड टैप परिवर्तक (NLTC): यह ट्रांसफार्मर के बंद होने पर ही वोल्टेज को समायोजित कर सकता है। यह आमतौर पर छोटे वितरण ट्रांसफार्मर में उपयोग होता है जहाँ वोल्टेज समायोजन की आवश्यकता कम होती है।
ट्रांसफार्मर में बुचोलज़ रिले (Buchholz Relay) एक गैस-चालित सुरक्षा उपकरण है जिसका उपयोग तेल में डूबे हुए ट्रांसफार्मर को आंतरिक दोषों से बचाने के लिए किया जाता है। यह ट्रांसफार्मर के कंजरवेटर टैंक और मुख्य टैंक के बीच एक पाइप में लगा होता है।
यह कैसे काम करता है?
बुचोलज़ रिले इस सिद्धांत पर काम करता है कि ट्रांसफार्मर के अंदर कोई भी दोष, जैसे कि शॉर्ट सर्किट या इंसुलेशन फेलियर, तेल को गर्म करता है जिससे गैसें बनती हैं।
- छोटे दोष (Minor Faults): जब कोई छोटा दोष होता है, तो तेल धीरे-धीरे गर्म होता है और गैस के छोटे बुलबुले बनते हैं। ये गैसें ऊपर की ओर बढ़ती हैं और रिले के ऊपरी हिस्से में जमा हो जाती हैं। जैसे ही पर्याप्त गैस जमा हो जाती है, यह रिले के अंदर लगे ऊपरी फ्लोट (float) को नीचे धकेलती है। यह फ्लोट एक स्विच को सक्रिय करता है, जो एक अलार्म बजाता है ताकि ऑपरेटर को समस्या की जानकारी मिल सके।
- गंभीर दोष (Major Faults): जब कोई बड़ा और गंभीर दोष होता है, तो गैसें बहुत तेजी से और बड़ी मात्रा में बनती हैं। यह अचानक गैसों का प्रवाह रिले के अंदर एक निचले फ्लोट (flap) को धकेलता है। यह फ्लोट एक और स्विच को सक्रिय करता है, जो तुरंत ट्रांसफार्मर की बिजली आपूर्ति को काट (trip) देता है।
बुचोलज़ रिले का महत्व
- प्रारंभिक चेतावनी: यह छोटे दोषों का पता लगाता है और उन्हें बड़े दोषों में बदलने से पहले ही चेतावनी देता है।
- तीव्र सुरक्षा: यह गंभीर दोषों की स्थिति में तुरंत बिजली काट देता है, जिससे ट्रांसफार्मर को गंभीर और स्थायी नुकसान से बचाया जा सकता है।
- सुरक्षा का स्रोत: यह ट्रांसफार्मर का सबसे विश्वसनीय और सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाला आंतरिक सुरक्षा उपकरण है।
संक्षेप में,
बुचोलज़ रिले एक सुरक्षा गार्ड की तरह काम करता है जो ट्रांसफार्मर की आंतरिक स्थिति की निगरानी करता है और किसी भी समस्या का पता चलने पर तुरंत कार्रवाई करता है।
ट्रांसफार्मर का ध्रुवता परीक्षण (Polarity Test) एक आवश्यक परीक्षण है जो यह निर्धारित करता है कि ट्रांसफार्मर की प्राथमिक (Primary) और द्वितीयक (Secondary) वाइंडिंग में वोल्टेज की दिशा एक-दूसरे के सापेक्ष कैसी है।
यह परीक्षण सुनिश्चित करता है कि वाइंडिंग को सही ढंग से जोड़ा गया है, जो विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण है जब ट्रांसफार्मर को समानांतर (parallel) में जोड़ा जाता है। यदि ध्रुवता गलत होती है, तो यह शॉर्ट-सर्किट या उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकता है।
ध्रुवता के प्रकार योगात्मक ध्रुवता (Additive Polarity): जब प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग इस तरह से जुड़ी होती हैं कि उनके वोल्टेज एक-दूसरे में जुड़ जाते हैं।
इस स्थिति में,
यदि प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग के बाहरी सिरों को एक साथ जोड़ा जाता है, तो वोल्टमीटर पर मापा गया कुल वोल्टेज प्राथमिक और द्वितीयक वोल्टेज का योग (V_L = V_P + V_S) होता है।
व्यवकलनात्मक ध्रुवता (Subtractive Polarity): जब प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग इस तरह से जुड़ी होती हैं कि उनके वोल्टेज एक-दूसरे को घटाते हैं।
इस स्थिति में,
यदि प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग के बाहरी सिरों को एक साथ जोड़ा जाता है, तो वोल्टमीटर पर मापा गया कुल वोल्टेज प्राथमिक और द्वितीयक वोल्टेज का अंतर (V_L = V_P - V_S) होता है।
परीक्षण कैसे किया जाता है?
ध्रुवता परीक्षण आमतौर पर एक सरल एसी वोल्टमीटर का उपयोग करके किया जाता है। ट्रांसफार्मर की प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग के एक-एक टर्मिनल को एक साथ जोड़ा जाता है।
प्राथमिक वाइंडिंग को एक कम एसी वोल्टेज दिया जाता है (उदाहरण के लिए, 120V)।
अब, दो खुले सिरों (प्राथमिक और द्वितीयक के) के बीच एक वोल्टमीटर लगाया जाता है। वोल्टमीटर की रीडिंग को नोट किया जाता है। यदि रीडिंग प्राथमिक और द्वितीयक वोल्टेज के योग के बराबर है, तो ध्रुवता योगात्मक है।
यदि रीडिंग प्राथमिक और द्वितीयक वोल्टेज के अंतर के बराबर है, तो ध्रुवता व्यवकलनात्मक है।
ट्रांसफार्मर का शॉर्ट सर्किट परीक्षण (Short Circuit Test) एक महत्वपूर्ण परीक्षण है जिसका उपयोग ट्रांसफार्मर के पूर्ण-लोड तांबा हानि (full-load copper loss) और तुल्यकालिक प्रतिबाधा (equivalent impedance) को निर्धारित करने के लिए किया जाता है।
यह परीक्षण रेटेड करंट पर किया जाता है, लेकिन बहुत कम वोल्टेज पर, जिससे ट्रांसफार्मर को नुकसान से बचाया जा सके।
परीक्षण कैसे किया जाता है?
उपकरण: इस परीक्षण के लिए एक वाटमीटर (wattmeter), एक एमीटर (ammeter), और एक वोल्टमीटर (voltmeter) का उपयोग किया जाता है।
सर्किट: ट्रांसफार्मर की निम्न-वोल्टेज (LV) वाइंडिंग को एक मोटे तार से शॉर्ट-सर्किट कर दिया जाता है।
वोल्टेज का अनुप्रयोग: ट्रांसफार्मर की उच्च-वोल्टेज (HV) वाइंडिंग को धीरे-धीरे वोल्टेज दिया जाता है, जब तक कि एमीटर रेटेड पूर्ण-लोड करंट न दिखा दे। यह वोल्टेज आमतौर पर रेटेड वोल्टेज का केवल 5-10% होता है।
माप: वाटमीटर: ट्रांसफार्मर की पूर्ण-लोड तांबा हानि (P_{sc}) को मापता है।
वोल्टमीटर: शॉर्ट सर्किट वोल्टेज (V_{sc}) को मापता है। एमीटर: पूर्ण-लोड करंट (I_{sc}) को मापता है।
परिणाम और गणनाएँ इस परीक्षण से प्राप्त डेटा का उपयोग करके
निम्नलिखित महत्वपूर्ण मापदंडों की गणना की जाती है:
तुल्यकालिक प्रतिबाधा (Z_{eq}):
यह ट्रांसफार्मर की कुल प्रतिबाधा होती है।
Z_{eq} = V_{sc} / I_{sc}
तुल्यकालिक प्रतिरोध
(R_{eq}): यह ट्रांसफार्मर का कुल प्रतिरोध होता है।
R_{eq} = P_{sc} / I_{sc}^2 तुल्यकालिक प्रतिक्रिया (X_{eq}): यह ट्रांसफार्मर की कुल प्रतिक्रिया होती है।
X_{eq} = \sqrt{Z_{eq}^2 - R_{eq}^2}
इस परीक्षण का महत्व
तांबा हानि (Copper Loss): यह परीक्षण ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग प्रतिरोध के कारण होने वाली पूर्ण-लोड हानि को सीधे मापता है। यह हानि ट्रांसफार्मर की दक्षता (efficiency) की गणना के लिए महत्वपूर्ण है।
वोल्टेज विनियमन (Voltage Regulation): प्राप्त प्रतिबाधा (Z_{eq}) का उपयोग ट्रांसफार्मर के वोल्टेज विनियमन की गणना के लिए किया जाता है, जो यह बताता है कि लोड में बदलाव होने पर आउटपुट वोल्टेज कितना बदलता है।
संक्षेप में,
शॉर्ट सर्किट परीक्षण एक सुरक्षित और कुशल तरीका है जिससे ट्रांसफार्मर की महत्वपूर्ण विशेषताओं को मापा जा सकता है, जिससे उसकी दक्षता और प्रदर्शन का सही आकलन हो सके।
ट्रांसफार्मर का खुला परिपथ परीक्षण (Open-Circuit Test) एक परीक्षण है जिसका उपयोग ट्रांसफार्मर की लौह हानि (iron loss) या कोर हानि (core loss) और शंट शाखा मापदंडों को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। यह परीक्षण रेटेड वोल्टेज पर, लेकिन बिना किसी लोड के किया जाता है।
परीक्षण कैसे किया जाता है?
उपकरण: इस परीक्षण के लिए एक वाटमीटर (wattmeter), एक एमीटर (ammeter), और एक वोल्टमीटर (voltmeter) का उपयोग किया जाता है।
सर्किट: ट्रांसफार्मर की उच्च-वोल्टेज (HV) वाइंडिंग को खुला (open) छोड़ दिया जाता है।
वोल्टेज का अनुप्रयोग: ट्रांसफार्मर की निम्न-वोल्टेज (LV) वाइंडिंग को रेटेड वोल्टेज दिया जाता है। इस दौरान, ट्रांसफार्मर बहुत कम करंट खींचता है, जो पूर्ण-लोड करंट का केवल 2-6% होता है।
माप: वाटमीटर: ट्रांसफार्मर की लौह हानि (P_{oc}) को मापता है।
वोल्टमीटर: लागू वोल्टेज (V_{oc}) को मापता है।
एमीटर: नो-लोड करंट (I_{oc}) को मापता है। परिणाम और गणनाएँ इस परीक्षण से प्राप्त डेटा का उपयोग करके
निम्नलिखित महत्वपूर्ण मापदंडों की गणना की जाती है:
नो-लोड पावर फैक्टर (cos\phi_{oc}):
cos\phi_{oc} = P_{oc} / (V_{oc} \cdot I_{oc})
शंट शाखा प्रतिरोध (R_c): यह कोर हानि को दर्शाता है।
R_c = V_{oc} \cdot cos\phi_{oc} / I_{oc}
शंट शाखा प्रतिक्रिया (X_m): यह चुंबकन धारा को दर्शाता है। X_m = V_{oc} \cdot sin\phi_{oc} / I_{oc}
इस परीक्षण का महत्व
लौह हानि (Iron Loss): यह परीक्षण ट्रांसफार्मर के कोर में होने वाली स्थायी हानि (hyseteresis and eddy current loss) को सीधे मापता है। यह हानि वोल्टेज पर निर्भर करती है और लोड से स्वतंत्र होती है।
दक्षता की गणना: लौह हानि की जानकारी ट्रांसफार्मर की दक्षता (efficiency) और वोल्टेज विनियमन की गणना के लिए महत्वपूर्ण है।
सुरक्षा: यह परीक्षण बहुत कम करंट पर किया जाता है, जिससे ऊर्जा की बचत होती है और परीक्षण के दौरान ट्रांसफार्मर गर्म नहीं होता।
हम ट्रांसफार्मर को समानांतर (parallel) में कई कारणों से जोड़ते हैं, जिनमें से मुख्य कारण विश्वसनीयता, लचीलापन और दक्षता बढ़ाना है। यह बड़े बिजली वितरण प्रणालियों में एक सामान्य प्रथा है।
समानांतर में जोड़ने के मुख्य कारण
- बढ़ी हुई लोड क्षमता (Increased Load Capacity): जब लोड की मांग एक एकल ट्रांसफार्मर की क्षमता से अधिक हो जाती है, तो उसे एक बड़े ट्रांसफार्मर से बदलने के बजाय, मौजूदा ट्रांसफार्मर के साथ समानांतर में एक और ट्रांसफार्मर जोड़ना अधिक किफायती होता है।
- विश्वसनीयता और निरर्थकता (Reliability and Redundancy): यदि समानांतर में जुड़े ट्रांसफार्मर में से कोई एक खराब हो जाता है या रखरखाव के लिए बंद कर दिया जाता है, तो बाकी के ट्रांसफार्मर बिना किसी रुकावट के लोड को बिजली की आपूर्ति जारी रखते हैं। इससे बिजली आपूर्ति की निरंतरता बनी रहती है।
- दक्षता में सुधार (Improved Efficiency): ट्रांसफार्मर अपनी अधिकतम दक्षता पर तब काम करते हैं जब वे लगभग पूरी लोड पर होते हैं। समानांतर संचालन में, लोड के कम होने पर कुछ ट्रांसफार्मर को बंद किया जा सकता है, जिससे बाकी के ट्रांसफार्मर अधिकतम दक्षता पर काम कर सकें।
- भविष्य में विस्तार (Future Expansion): यदि भविष्य में लोड बढ़ने की उम्मीद हो, तो शुरू में ही एक बड़े ट्रांसफार्मर को स्थापित करने के बजाय, छोटे ट्रांसफार्मर को समानांतर में जोड़ना एक लचीला और लागत प्रभावी विकल्प है।
- कम स्पेयर लागत (Reduced Spare Cost): एक बड़े ट्रांसफार्मर के लिए स्पेयर यूनिट रखने की तुलना में, समान रेटिंग वाले दो छोटे ट्रांसफार्मर के लिए स्पेयर यूनिट रखना अधिक सस्ता हो सकता है।
समानांतर संचालन के लिए,
यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि ट्रांसफार्मर कुछ शर्तों को पूरा करते हैं, जैसे कि समान वोल्टेज अनुपात, समान फेज अनुक्रम और समान प्रतिशत प्रतिबाधा, ताकि उनके बीच कोई परिसंचारी धारा (circulating current) प्रवाहित न हो।
ट्रांसफार्मर के सफल समानांतर संचालन के लिए, उन्हें कुछ विशिष्ट शर्तों को पूरा करना चाहिए ताकि उनके बीच कोई परिसंचारी धारा (circulating current) प्रवाहित न हो। यदि ये धाराएँ प्रवाहित होती हैं, तो वे अनावश्यक रूप से तांबा हानि (copper loss) को बढ़ा सकती हैं और ट्रांसफार्मर को ज़्यादा गरम कर सकती हैं।
आवश्यक शर्तें
- समान वोल्टेज अनुपात और टैप सेटिंग: दोनों ट्रांसफार्मर का वोल्टेज अनुपात (primary to secondary voltage) बिल्कुल समान होना चाहिए। यदि वोल्टेज अनुपात में थोड़ा भी अंतर होता है, तो द्वितीयक वाइंडिंग में वोल्टेज असमान हो जाएगा, जिससे एक बड़ी परिसंचारी धारा प्रवाहित होगी।
- समान प्रतिशत प्रतिबाधा: दोनों ट्रांसफार्मर की प्रतिशत प्रतिबाधा (percentage impedance) लगभग समान होनी चाहिए। यदि प्रतिबाधा अलग-अलग होती है, तो कम प्रतिबाधा वाला ट्रांसफार्मर अधिक लोड उठाएगा, और ज़्यादा प्रतिबाधा वाला ट्रांसफार्मर कम लोड उठाएगा। इससे दोनों ट्रांसफार्मर की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो पाएगा।
- समान ध्रुवता (Polarity): दोनों ट्रांसफार्मर की ध्रुवता समान होनी चाहिए, चाहे वह योगात्मक हो या व्यवकलनात्मक। यदि ध्रुवता विपरीत होती है, तो द्वितीयक वाइंडिंग में वोल्टेज जुड़ जाएगा, जिससे एक बड़ा शॉर्ट-सर्किट करंट प्रवाहित होगा।
- समान फेज अनुक्रम (Phase Sequence): बहु-फेज प्रणालियों में, दोनों ट्रांसफार्मर का फेज अनुक्रम (जैसे A-B-C) समान होना चाहिए। यदि फेज अनुक्रम अलग होता है, तो फेज में बड़ा वोल्टेज अंतर होगा, जिससे भारी परिसंचारी धारा प्रवाहित होगी और ट्रांसफार्मर क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
- फेज शिफ्ट कोण (Phase Shift Angle): तीन-फेज ट्रांसफार्मर के लिए, वेक्टर समूह (vector group) समान होना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि प्राथमिक और द्वितीयक वोल्टेज के बीच फेज शिफ्ट का कोण समान हो, जिससे कोई परिसंचारी धारा न बहे।
इन शर्तों को पूरा करने से ट्रांसफार्मर की दक्षता और विश्वसनीयता बनी रहती है।
ट्रांसफार्मर में बुशिंग (Bushing) का मुख्य कार्य ट्रांसफार्मर के आंतरिक वाइंडिंग और बाहरी लाइन कनेक्शनों के बीच एक विद्युत रोधक (इंसुलेटर) के रूप में कार्य करना है। यह सुनिश्चित करता है कि उच्च वोल्टेज वाले कंडक्टर ट्रांसफार्मर के धातु के टैंक के संपर्क में न आएं, जिससे शॉर्ट सर्किट और बिजली के झटके का खतरा टल जाता है।
मुख्य कार्य
- विद्युत रोधन (Electrical Insulation): बुशिंग, कंडक्टर और ट्रांसफार्मर टैंक के बीच एक मजबूत इंसुलेटिंग बैरियर प्रदान करती है। यह धातु के टैंक से उच्च वोल्टेज वाले कंडक्टर को अलग रखती है, जिससे करंट को लीक होने से रोका जाता है।
- यांत्रिक सहारा (Mechanical Support): यह कंडक्टर को ट्रांसफार्मर से जुड़ने के लिए एक मजबूत यांत्रिक सहारा भी प्रदान करती है, जिससे वे बाहरी बलों, जैसे हवा या केबल के तनाव, का सामना कर सकें।
- सुरक्षा (Safety): यह ट्रांसफार्मर को सुरक्षित बनाती है, क्योंकि यह बिजली के करंट को बाहर के वातावरण या रखरखाव कर्मियों तक पहुंचने से रोकती है।
संरचना
बुशिंग आमतौर पर चीनी मिट्टी (porcelain), एपॉक्सी रेजिन (epoxy resin), या तेल से भरे कागज (oil-impregnated paper) जैसी उच्च डाइइलेक्ट्रिक सामग्री से बनी होती है। इन सामग्रियों में उत्कृष्ट विद्युत रोधन गुण होते हैं। बुशिंग में अक्सर बाहरी सतह पर खांचे (fins) होते हैं, जिन्हें शेड्स (sheds) कहा जाता है। ये शेड्स सतह पर रिसाव करंट के लिए दूरी को बढ़ाते हैं और धूल, गंदगी और नमी को इकट्ठा होने से रोकते हैं, जिससे इंसुलेशन की प्रभावशीलता बनी रहती है।
संक्षेप में,
बुशिंग एक आवश्यक घटक है जो ट्रांसफार्मर की सुरक्षा, विश्वसनीयता और लंबे जीवनकाल के लिए महत्वपूर्ण है।
ट्रांसफार्मर के वेक्टर समूह (Vector Group) से तात्पर्य ट्रांसफार्मर की प्राथमिक (Primary) और द्वितीयक (Secondary) वाइंडिंग के बीच के फेज विस्थापन (phase displacement) से है।
यह एक नोटेशन है जो ट्रांसफार्मर के कनेक्शन प्रकार (जैसे स्टार या डेल्टा) और प्राथमिक और द्वितीयक वोल्टेज के बीच के कोण (angle) को दर्शाता है।
वेक्टर समूह की पहचान वेक्टर समूह को एक विशिष्ट नोटेशन से दर्शाया जाता है,
जैसे Dyn11।
इस नोटेशन के हर भाग का एक विशेष अर्थ होता है:
पहला अक्षर (D): यह प्राथमिक (HV) वाइंडिंग के कनेक्शन को दर्शाता है।
D = डेल्टा कनेक्शन
Y = स्टार कनेक्शन
Z = जिग-जैग स्टार कनेक्शन
दूसरा अक्षर (y): यह द्वितीयक (LV) वाइंडिंग के कनेक्शन को दर्शाता है।
d = डेल्टा कनेक्शन
y = स्टार कनेक्शन
z = जिग-जैग स्टार कनेक्शन
तीसरा अक्षर (n): यदि यह मौजूद हो,
तो यह स्टार कनेक्शन में न्यूट्रल पॉइंट के बाहर आने (brought out) को दर्शाता है।
यह केवल स्टार (Y) या जिग-जैग (Z) कनेक्शन के लिए लागू होता है।
अंतिम अंक (11): यह प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग के वोल्टेज के बीच फेज शिफ्ट कोण (phase shift angle) को दर्शाता है, जिसे घड़ी के डायल पर 30° के गुणक (multiple) के रूप में दिखाया जाता है।
उदाहरण के लिए,
11 का अर्थ है
11× 30° = 330° का फेज विस्थापन।
वेक्टर समूह का महत्व वेक्टर समूह का सही होना निम्नलिखित कारणों से बहुत महत्वपूर्ण है:
समानांतर संचालन (Parallel Operation): जब दो या दो से अधिक ट्रांसफार्मर को समानांतर में जोड़ा जाता है, तो उनका वेक्टर समूह एक समान होना चाहिए।
यदि उनका वेक्टर समूह मेल नहीं खाता है, तो प्राथमिक और द्वितीयक वोल्टेज के बीच एक बड़ा वोल्टेज अंतर होगा, जिससे भारी परिसंचारी धाराएँ (circulating currents) प्रवाहित होंगी जो ट्रांसफार्मर को ज़्यादा गरम कर सकती हैं और उसे नुकसान पहुंचा सकती हैं।
सुरक्षा और प्रदर्शन: सही वेक्टर समूह सुनिश्चित करता है कि ट्रांसफार्मर सिस्टम के बाकी हिस्सों के साथ ठीक से काम करे, जिससे उपकरणों की सुरक्षा और प्रणाली का कुशल संचालन सुनिश्चित होता है।
ट्रांसफार्मर में शीतलन (cooling) का मुख्य महत्व अत्यधिक गर्मी को दूर करना है, जो ट्रांसफार्मर के संचालन के दौरान उत्पन्न होती है। यह गर्मी ट्रांसफार्मर की दक्षता और जीवनकाल को सीधे प्रभावित करती है।
गर्मी के स्रोत
ट्रांसफार्मर में गर्मी दो मुख्य हानियों (losses) के कारण उत्पन्न होती है:
- लौह हानि (Iron Loss): यह ट्रांसफार्मर के कोर में होती है और वोल्टेज पर निर्भर करती है।
- तांबा हानि (Copper Loss): यह वाइंडिंग के प्रतिरोध के कारण होती है और लोड के साथ बदलती है।
यदि इस गर्मी को प्रभावी ढंग से दूर न किया जाए, तो ट्रांसफार्मर का तापमान खतरनाक स्तर तक बढ़ सकता है।
शीतलन का महत्व
- इंसुलेशन की सुरक्षा: ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग को इन्सुलेट करने के लिए कागज और तेल जैसे सामग्री का उपयोग किया जाता है। अत्यधिक गर्मी इस इन्सुलेशन को ख़राब कर सकती है, जिससे उसकी डाइइलेक्ट्रिक शक्ति कम हो जाती है। यदि इन्सुलेशन विफल हो जाता है, तो यह शॉर्ट-सर्किट और ट्रांसफार्मर के स्थायी नुकसान का कारण बन सकता है। प्रभावी शीतलन इन्सुलेशन के जीवनकाल को बनाए रखता है।
- दक्षता बनाए रखना: जब ट्रांसफार्मर ज़्यादा गरम होता है, तो उसका प्रतिरोध बढ़ता है, जिससे तांबा हानि भी बढ़ती है और उसकी दक्षता कम हो जाती है। ठंडा रखकर, ट्रांसफार्मर अपनी अधिकतम दक्षता पर काम कर सकता है।
- वोल्टेज विनियमन: ट्रांसफार्मर का तापमान बढ़ने पर वाइंडिंग का प्रतिरोध बदलता है, जिससे आउटपुट वोल्टेज प्रभावित हो सकता है। उचित शीतलन वोल्टेज विनियमन को स्थिर रखने में मदद करता है।
- सुरक्षा और विश्वसनीयता: अत्यधिक गर्मी से ट्रांसफार्मर में गैसें बन सकती हैं, जो दबाव बढ़ाती हैं और विस्फोट का कारण बन सकती हैं। शीतलन प्रणाली इस जोखिम को कम करती है, जिससे ट्रांसफार्मर का सुरक्षित और विश्वसनीय संचालन सुनिश्चित होता है।
संक्षेप में,
ट्रांसफार्मर में शीतलन का उद्देश्य इंसुलेशन को सुरक्षित रखना, दक्षता बढ़ाना, और ट्रांसफार्मर के जीवनकाल को लंबा करना है।
ट्रांसफार्मर तेल की परावैद्युत शक्ति (Dielectric Strength) से तात्पर्य उस अधिकतम वोल्टेज से है जिसे तेल बिना टूटे (यानी, बिना विद्युत प्रवाहकीय बने) झेल सकता है। यह ट्रांसफार्मर तेल की सबसे महत्वपूर्ण गुणों में से एक है। इसे आमतौर पर kV/mm में मापा जाता है।
इसका महत्व
परावैद्युत शक्ति ट्रांसफार्मर तेल के दो मुख्य कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है:
- विद्युत रोधन (Electrical Insulation): ट्रांसफार्मर तेल एक इन्सुलेटर के रूप में काम करता है। उच्च परावैद्युत शक्ति यह सुनिश्चित करती है कि तेल वाइंडिंग और टैंक के बीच एक प्रभावी अवरोध (barrier) बना रहे, जिससे शॉर्ट-सर्किट का खतरा कम हो।
- आर्क बुझाना (Arc Quenching): जब टैप चेंजर जैसे उपकरणों में स्विचिंग ऑपरेशन होता है, तो आर्क (spark) उत्पन्न होती है। तेल की उच्च परावैद्युत शक्ति इस आर्क को तुरंत बुझाने में मदद करती है, जिससे उपकरण सुरक्षित रहते हैं।
परावैद्युत शक्ति को प्रभावित करने वाले कारक
ट्रांसफार्मर तेल की परावैद्युत शक्ति कई कारकों से कम हो सकती है:
- नमी (Moisture): तेल में थोड़ी सी भी नमी इसकी परावैद्युत शक्ति को बहुत कम कर देती है। नमी के अणु एक पुल का निर्माण कर सकते हैं, जिससे करंट का प्रवाह आसान हो जाता है।
- धूल और कण (Dust and Particles): तेल में मौजूद ठोस कण भी इन्सुलेशन को कमजोर कर सकते हैं।
- तापमान (Temperature): अत्यधिक तापमान तेल की डाइइलेक्ट्रिक शक्ति को कम कर सकता है।
परावैद्युत शक्ति का परीक्षण नियमित रूप से किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ट्रांसफार्मर तेल उपयोग के लिए सुरक्षित है। यदि यह निर्धारित सीमा से कम हो जाता है, तो तेल को फ़िल्टर करने या बदलने की आवश्यकता होती है।
ट्रांसफार्मर में तेल फिल्टर (Oil Filter) का मुख्य उद्देश्य ट्रांसफार्मर तेल की गुणवत्ता बनाए रखना है। यह तेल से नमी, गैसों, और ठोस अशुद्धियों को हटाता है, जिससे तेल की परावैद्युत शक्ति (dielectric strength) और शीतलन क्षमता (cooling capacity) बनी रहे।
तेल फिल्टर का महत्व
- नमी हटाना: ट्रांसफार्मर तेल में नमी सबसे बड़ा खतरा है। थोड़ी सी भी नमी तेल की इन्सुलेशन क्षमता को बहुत कम कर देती है, जिससे शॉर्ट-सर्किट का खतरा बढ़ जाता है। फिल्टर सिस्टम तेल से नमी को प्रभावी ढंग से हटाता है।
- ठोस कणों को निकालना: तेल में धूल, धातु के कण और अन्य ठोस अशुद्धियाँ जमा हो सकती हैं। ये कण इन्सुलेशन के लिए खतरनाक होते हैं और तेल के प्रवाह को भी बाधित कर सकते हैं। फिल्टर इन कणों को हटाता है।
- गैसों को बाहर करना: जब ट्रांसफार्मर में आंतरिक दोष होते हैं, तो तेल में गैसें (जैसे हाइड्रोजन और मीथेन) बनती हैं। तेल फिल्टरिंग के दौरान, इन गैसों को भी तेल से बाहर निकाला जाता है, जिससे ट्रांसफार्मर में दबाव और दोषों का खतरा कम होता है।
- परावैद्युत शक्ति बनाए रखना: नमी और अशुद्धियों को हटाकर, फिल्टर तेल की परावैद्युत शक्ति को उसकी मूल स्थिति में वापस लाता है, जिससे यह एक प्रभावी इंसुलेटर बना रहता है।
फिल्टरिंग प्रक्रिया
तेल फिल्टरिंग आमतौर पर एक विशेष मशीन का उपयोग करके की जाती है जिसे तेल फिल्टरेशन प्लांट कहते हैं। यह मशीन तेल को ट्रांसफार्मर से खींचती है, उसे कई फिल्टर चरणों से गुजारती है (जैसे कि हीटिंग, वैक्यूम फिल्टरेशन, और फाइन फिल्टरेशन), और फिर शुद्ध तेल को वापस ट्रांसफार्मर में पंप करती है। यह प्रक्रिया ट्रांसफार्मर के चालू रहते हुए भी की जा सकती है।
ट्रांसफार्मर में कंजर्वेटर टैंक (Conservator Tank) एक बेलनाकार धातु का टैंक होता है जो मुख्य ट्रांसफार्मर टैंक के ऊपर लगा होता है। इसका मुख्य कार्य ट्रांसफार्मर के तेल के आयतन में होने वाले विस्तार और संकुचन को समायोजित करना है। यह सुनिश्चित करता है कि मुख्य टैंक हमेशा तेल से भरा रहे, जिससे वाइंडिंग और कोर हवा के संपर्क में न आएं।
कार्य और महत्व
तापमान से समायोजन: जब ट्रांसफार्मर लोड के कारण गर्म होता है, तो उसका तेल फैलता है। यह अतिरिक्त तेल कंजरवेटर टैंक में चला जाता है। जब ट्रांसफार्मर ठंडा होता है, तो तेल सिकुड़ता है और कंजरवेटर से तेल वापस मुख्य टैंक में आ जाता है।
नमी से सुरक्षा: यह सुनिश्चित करता है कि ट्रांसफार्मर के अंदर हवा न जाए। जब तेल का स्तर गिरता है, तो कंजरवेटर टैंक में हवा प्रवेश करती है, लेकिन यह हवा सिलिका जेल ब्रीथर से होकर गुजरती है, जो हवा में मौजूद नमी को सोख लेता है। इस तरह, नमी ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक में प्रवेश नहीं कर पाती।
दबाव नियंत्रण: यह ट्रांसफार्मर के अंदर तेल के दबाव को संतुलित करने में मदद करता है।
निगरानी: कंजरवेटर टैंक पर एक तेल स्तर गेज (oil level gauge) लगा होता है जो ट्रांसफार्मर में तेल के स्तर की निगरानी करता है।
इस तरह,
कंजरवेटर टैंक ट्रांसफार्मर के तेल की गुणवत्ता और मात्रा को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे ट्रांसफार्मर का जीवनकाल और विश्वसनीयता बढ़ती है।
ट्रांसफार्मर में ब्रीथर (Breather) एक महत्वपूर्ण उपकरण है जो ट्रांसफार्मर के अंदर के तेल को बाहरी हवा में मौजूद नमी से बचाता है। इसे अक्सर ट्रांसफार्मर का "फेफड़ा" कहा जाता है क्योंकि यह ट्रांसफार्मर के टैंक में हवा के प्रवेश और निकास को नियंत्रित करता है।
कार्यप्रणाली
जब ट्रांसफार्मर गर्म होता है (लोड के कारण), तो इसके अंदर का तेल फैलता है और कंजरवेटर टैंक में चला जाता है। जब ट्रांसफार्मर ठंडा होता है, तो तेल सिकुड़ता है और बाहरी हवा को कंजरवेटर टैंक में खींचता है। यह हवा सीधे ट्रांसफार्मर में नहीं जा सकती क्योंकि इसमें नमी होती है, जो ट्रांसफार्मर के तेल की परावैद्युत शक्ति (dielectric strength) को कम कर सकती है, जिससे इन्सुलेशन कमजोर हो जाता है।
ब्रीथर इस समस्या को हल करता है। यह एक कंटेनर होता है जिसमें सिलिका जेल (silica gel) भरा होता है। जब भी हवा को ट्रांसफार्मर में खींचा जाता है, तो यह पहले ब्रीथर से होकर गुजरती है, जहाँ सिलिका जेल हवा में मौजूद सारी नमी को सोख लेता है। इस प्रकार, केवल सूखी हवा ही ट्रांसफार्मर में प्रवेश करती है।
सिलिका जेल का महत्व
- सूखा होने पर: जब सिलिका जेल सूखा होता है, तो इसका रंग नीला या नारंगी होता है।
- नमी सोखने पर: नमी सोखने के बाद इसका रंग बदलकर गुलाबी या सफ़ेद हो जाता है। यह इस बात का संकेत है कि अब सिलिका जेल को बदलने या रीजेनरेट करने की आवश्यकता है।
इस तरह,
ब्रीथर ट्रांसफार्मर के तेल की गुणवत्ता और इन्सुलेशन को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिससे ट्रांसफार्मर का जीवनकाल और विश्वसनीयता बढ़ती है।
ट्रांसफार्मर का इन्सुलेशन प्रतिरोध (IR) परीक्षण, जिसे मेगर परीक्षण (Megger Test) भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण नैदानिक परीक्षण है जिसका उपयोग ट्रांसफार्मर के इंसुलेशन की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। यह परीक्षण ट्रांसफार्मर वाइंडिंग और ग्राउंड के बीच, और विभिन्न वाइंडिंग के बीच इन्सुलेशन के प्रतिरोध को मापता है।
परीक्षण का उद्देश्य
यह परीक्षण ट्रांसफार्मर के इन्सुलेशन में निम्नलिखित समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है:
- नमी का प्रवेश: नमी ट्रांसफार्मर के इन्सुलेशन प्रतिरोध को बहुत कम कर देती है, जिससे शॉर्ट-सर्किट का खतरा बढ़ जाता है।
- इन्सुलेशन का पुराना होना (Ageing): समय के साथ, इन्सुलेशन सामग्री की गुणवत्ता खराब हो जाती है, जिससे उसका प्रतिरोध कम हो जाता है।
- सतह पर गंदगी या नमी: बाहरी बुशिंग पर गंदगी या नमी का जमाव भी इन्सुलेशन को कमजोर कर सकता है।
परीक्षण कैसे किया जाता है
इस परीक्षण के लिए एक विशेष उपकरण, मेगर (Megohmmeter) का उपयोग किया जाता है, जो उच्च डीसी वोल्टेज (DC Voltage) उत्पन्न करता है। परीक्षण कई संयोजनों में किया जाता है:
- हाई-वोल्टेज (HV) से लो-वोल्टेज (LV) वाइंडिंग: यह HV और LV वाइंडिंग के बीच के इन्सुलेशन की जांच करता है।
- HV वाइंडिंग से ग्राउंड: यह HV वाइंडिंग और ट्रांसफार्मर के टैंक (ग्राउंड) के बीच के इन्सुलेशन की जांच करता है।
- LV वाइंडिंग से ग्राउंड: यह LV वाइंडिंग और ट्रांसफार्मर के टैंक (ग्राउंड) के बीच के इन्सुलेशन की जांच करता है।
परिणाम का मूल्यांकन
IR परीक्षण का परिणाम मेगाओह्म्स (MΩ) में मापा जाता है। एक स्वस्थ ट्रांसफार्मर में इन्सुलेशन प्रतिरोध का मान बहुत अधिक होना चाहिए।
- उच्च IR मान: एक उच्च इन्सुलेशन प्रतिरोध मान (मेगाओह्म्स में) यह दर्शाता है कि इन्सुलेशन अच्छी स्थिति में है और सूखा है।
- निम्न IR मान: एक निम्न इन्सुलेशन प्रतिरोध मान यह संकेत देता है कि इन्सुलेशन क्षतिग्रस्त या नम हो गया है, और ट्रांसफार्मर को सूखने या मरम्मत की आवश्यकता हो सकती है।
ट्रांसफार्मर में आवेग परीक्षण (Impulse test) एक प्रकार का गैर-विनाशकारी परीक्षण है जिसका उपयोग यह जांचने के लिए किया जाता है कि क्या ट्रांसफार्मर का इन्सुलेशन (insulation) बिजली की लाइन में अचानक वोल्टेज वृद्धि, जिसे आकाशीय बिजली की लहर या स्विचिंग सर्ज (switching surge) कहा जाता है, का सामना कर सकता है। यह ट्रांसफार्मर की सुरक्षा और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षण है।
आवेग परीक्षण कैसे काम करता है?
आवेग परीक्षण में,
एक उच्च वोल्टेज पल्स जनरेटर (high voltage pulse generator) का उपयोग करके ट्रांसफार्मर के टर्मिनलों पर एक विशिष्ट, क्षणिक (transient) वोल्टेज लहर लगाई जाती है। यह लहर प्राकृतिक बिजली गिरने या स्विचिंग ऑपरेशन के दौरान होने वाली वास्तविक वोल्टेज वृद्धि की नकल करती है।
इस परीक्षण के दौरान,
वोल्टेज और करंट की तरंगों को ऑसिलोस्कोप (oscilloscope) का उपयोग करके मापा और रिकॉर्ड किया जाता है। इन रिकॉर्ड की गई तरंगों की तुलना, एक सामान्य ट्रांसफार्मर की मानक तरंगों से की जाती है। यदि कोई असामान्यता या विरूपण (distortion) होता है, तो यह दर्शाता है कि ट्रांसफार्मर के अंदर इन्सुलेशन में कोई खराबी है।
आवेग परीक्षण के प्रकार
आवेग परीक्षण मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
- पूर्ण आवेग परीक्षण (Full Impulse Test): इस परीक्षण में, ट्रांसफार्मर पर पूर्ण वोल्टेज लगाया जाता है। यह परीक्षण यह जांचने के लिए किया जाता है कि ट्रांसफार्मर का इन्सुलेशन बिना किसी खराबी के अधिकतम वोल्टेज का सामना कर सकता है या नहीं।
- काट-छाँट आवेग परीक्षण (Chopped Impulse Test): इस परीक्षण में, वोल्टेज को जानबूझकर एक निश्चित समय के बाद अचानक काट दिया जाता है। यह परीक्षण वास्तविक दुनिया की उन स्थितियों का अनुकरण करता है जहाँ एक बिजली की लहर फ्यूज के उड़ने या आर्क के कारण अचानक बाधित हो जाती है। यह ट्रांसफार्मर के इन्सुलेशन की क्षमता को और अधिक गहनता से जांचता है।
यह परीक्षण यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि ट्रांसफार्मर कठिन पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी सुरक्षित और कुशलता से काम करेगा।
ट्रांसफार्मर का अंतर संरक्षण (differential protection) एक सुरक्षात्मक रिले प्रणाली है जिसका उपयोग ट्रांसफार्मर को उसके भीतर होने वाले आंतरिक दोषों (जैसे शॉर्ट सर्किट) से बचाने के लिए किया जाता है। यह सिद्धांत पर काम करता है कि सामान्य परिस्थितियों में, ट्रांसफार्मर में प्रवेश करने और बाहर निकलने वाली धाराओं में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं होता है।
यह कैसे काम करता है, इसे समझने के लिए, कल्पना करें कि एक ट्रांसफार्मर के प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के दोनों तरफ करंट ट्रांसफार्मर (CTs) लगे हुए हैं।
कार्य सिद्धांत
- सामान्य स्थिति: जब ट्रांसफार्मर सामान्य रूप से काम कर रहा होता है, तो प्राइमरी वाइंडिंग में प्रवेश करने वाली धारा, सेकेंडरी वाइंडिंग से बाहर निकलने वाली धारा के बराबर (ट्रांसफार्मर के टर्न अनुपात को ध्यान में रखते हुए) होती है। इन दोनों धाराओं को सीटी के माध्यम से एक विभेदक रिले (differential relay) में भेजा जाता है। क्योंकि धाराओं में कोई अंतर नहीं है, रिले में शुद्ध धारा शून्य होती है और यह काम नहीं करती।
- आंतरिक दोष: यदि ट्रांसफार्मर के अंदर कोई शॉर्ट सर्किट या आंतरिक खराबी होती है, तो यह प्राइमरी और सेकेंडरी धाराओं के बीच एक असमानता (imbalance) पैदा करता है।
- सुरक्षा सक्रियण: इस असमानता के कारण, विभेदक रिले में एक शुद्ध धारा बहने लगती है। जब यह धारा एक पूर्वनिर्धारित मान से अधिक हो जाती है, तो रिले ट्रिप हो जाता है और ट्रांसफार्मर को पावर ग्रिड से अलग करने के लिए सर्किट ब्रेकर को एक संकेत भेजता है।
इस प्रकार,
अंतर संरक्षण प्रणाली ट्रांसफार्मर को किसी भी बड़े नुकसान से बचाती है और बिजली प्रणाली की स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है।
आरईएफ सुरक्षा का पूरा नाम प्रतिबंधित पृथ्वी दोष सुरक्षा (Restricted Earth Fault Protection) है। यह एक विशेष प्रकार की सुरक्षा प्रणाली है जिसका उपयोग ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में होने वाले पृथ्वी दोष (earth faults) से बचाने के लिए किया जाता है।
यह प्रणाली अंतर संरक्षण (Differential Protection) का ही एक विशेष रूप है, लेकिन यह केवल ट्रांसफार्मर वाइंडिंग के अंदर के पृथ्वी दोषों का पता लगाने और उनसे सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाई गई है।
यह कैसे काम करता है?
आरईएफ सुरक्षा का कार्य सिद्धांत ट्रांसफार्मर के न्यूट्रल पॉइंट और फेज वाइंडिंग से जुड़े करंट ट्रांसफार्मर (CTs) पर आधारित है।
- सामान्य स्थिति: जब ट्रांसफार्मर सामान्य रूप से काम कर रहा होता है, तो फेज करंट का सदिश योग (vector sum) और न्यूट्रल करंट का योग शून्य होता है। इसलिए, आरईएफ रिले से कोई करंट नहीं गुजरता और यह निष्क्रिय रहता है।
- आंतरिक पृथ्वी दोष: जब ट्रांसफार्मर वाइंडिंग के अंदर कोई पृथ्वी दोष होता है, तो न्यूट्रल पॉइंट में एक असंतुलित करंट बहने लगता है।
- सुरक्षा सक्रियण: यह असंतुलित करंट आरईएफ रिले को ट्रिगर करता है। जैसे ही रिले में करंट बहता है, यह तुरंत सर्किट ब्रेकर को एक संकेत भेजता है, जो ट्रांसफार्मर को बिजली की लाइन से अलग कर देता है।
आरईएफ सुरक्षा बहुत संवेदनशील होती है और छोटे से छोटे पृथ्वी दोषों का भी पता लगा सकती है, जो सामान्य अंतर संरक्षण से छूट सकते हैं। यह ट्रांसफार्मर को गंभीर क्षति से बचाता है और इसकी विश्वसनीयता बढ़ाता है।
ट्रांसफार्मर की रेटिंग आमतौर पर किलोवोल्ट-एम्पीयर (kVA) या मेगावोल्ट-एम्पीयर (MVA) में व्यक्त की जाती है, न कि किलोवाट (kW) में।
क्यों ट्रांसफार्मर की रेटिंग kVA में होती है?
इसकी मुख्य वजह यह है कि ट्रांसफार्मर में होने वाली हानियाँ (losses) लोड के पावर फैक्टर पर निर्भर नहीं करती हैं। ये हानियाँ दो प्रकार की होती हैं:
ताम्र हानि (Copper Loss): यह ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में धारा (I) के कारण होती है और I^2R के अनुपात में होती है। यह सीधे धारा पर निर्भर करती है।
लौह हानि (Iron Loss) / कोर हानि: यह ट्रांसफार्मर के कोर में वोल्टेज (V) के कारण होती है। यह सीधे वोल्टेज पर निर्भर करती है।
क्योंकि ट्रांसफार्मर की कुल हानियाँ केवल वोल्टेज और धारा पर निर्भर करती हैं, और यह नहीं पता होता कि किस प्रकार का लोड (प्रतिरोधी, प्रेरक या धारिता) ट्रांसफार्मर से जोड़ा जाएगा, इसलिए उसकी रेटिंग को स्पष्ट शक्ति (apparent power), यानी वोल्ट-एम्पीयर (VA) या उसके बड़े मात्रकों (kVA, MVA) में दर्शाया जाता है।
यह ट्रांसफार्मर की कुल शक्ति वहन क्षमता को दर्शाता है, जिसमें वास्तविक शक्ति (kW) और प्रतिक्रियाशील शक्ति (kVAR) दोनों शामिल होती हैं। सामान्य ट्रांसफार्मर रेटिंग ट्रांसफार्मर की रेटिंग उसके उपयोग के आधार पर अलग-अलग होती है।
कुछ सामान्य रेटिंग्स इस प्रकार हैं:
आवासीय उपयोग (Residential):
5 kVA से 25 kVA तक।
वाणिज्यिक उपयोग (Commercial):
30 kVA से 112.5 kVA तक।
औद्योगिक उपयोग (Industrial):
150 kVA से 500 kVA तक।
यूटिलिटी/पावर ट्रांसफार्मर (Utility/Power):
750 kVA, 1000 kVA (1 MVA) और उससे ऊपर MVA में। यह वीडियो ट्रांस
ऑटो ट्रांसफार्मर एक विशेष प्रकार का ट्रांसफार्मर है जिसमें केवल एक ही वाइंडिंग होती है। यह वाइंडिंग प्राथमिक (Primary) और द्वितीयक (Secondary) दोनों के रूप में कार्य करती है। इस वाइंडिंग के कुछ हिस्से को इनपुट (प्राथमिक) से जोड़ा जाता है, जबकि आउटपुट (द्वितीयक) के लिए एक अलग टैपिंग (tapping) का उपयोग किया जाता है।
यह कैसे काम करता है?
ऑटो ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम पर आधारित है।
- प्रेरण और चालन: सामान्य ट्रांसफार्मर की तरह, ऑटो ट्रांसफार्मर में भी वोल्टेज का परिवर्तन विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के माध्यम से होता है। हालांकि, इसमें एक अतिरिक्त लाभ यह होता है कि प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग एक दूसरे से विद्युतीय रूप से जुड़ी होती हैं। इसलिए, शक्ति का स्थानांतरण प्रेरण और चालन (conduction) दोनों के माध्यम से होता है, जिससे यह अधिक कुशल बनता है।
- वोल्टेज नियंत्रण: वाइंडिंग पर विभिन्न बिंदुओं पर टैपिंग लगाकर, हम आउटपुट वोल्टेज को आवश्यकतानुसार कम या ज्यादा कर सकते हैं। यही कारण है कि इसे अक्सर परिवर्तनीय ट्रांसफार्मर (variable transformer) या वेरियक (Variac) भी कहा जाता है।
ऑटो ट्रांसफार्मर के फायदे और नुकसान
फायदे:
- उच्च दक्षता: कम ताम्र हानि (copper loss) के कारण यह सामान्य ट्रांसफार्मर की तुलना में अधिक कुशल होता है।
- कम लागत: इसमें कम वाइंडिंग सामग्री की आवश्यकता होती है।
- बेहतर वोल्टेज विनियमन: इसके कम प्रतिरोध और प्रतिघात के कारण वोल्टेज विनियमन बेहतर होता है।
नुकसान:
- आइसोलेशन की कमी: प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग एक दूसरे से विद्युतीय रूप से जुड़ी होती हैं, जिससे आइसोलेशन नहीं होता। यह सुरक्षा के लिए एक बड़ा जोखिम हो सकता है।
- बड़े शॉर्ट सर्किट करंट का खतरा: यदि द्वितीयक वाइंडिंग में शॉर्ट सर्किट होता है, तो प्राथमिक में एक बड़ा करंट बह सकता है।
ट्रांसफार्मर का वेक्टर समूह एक विशेष कोड है जो एक तीन-फेज ट्रांसफार्मर के प्राथमिक (high-voltage) और द्वितीयक (low-voltage) वाइंडिंग के बीच के संबंध को परिभाषित करता है। यह कोड तीन मुख्य बातों को बताता है:
-
वाइंडिंग का विन्यास (Configuration): यह बताता है कि प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग स्टार (Y), डेल्टा (D), या ज़िग-ज़ैग (Z) में से किस तरह से जुड़ी हुई हैं।
- स्टार (Y): सभी तीन फेजों को एक सामान्य बिंदु (न्यूट्रल) पर जोड़ा जाता है।
- डेल्टा (D): तीन वाइंडिंग को एक त्रिभुज के आकार में जोड़ा जाता है।
- न्यूट्रल कनेक्शन: यह बताता है कि वाइंडिंग में न्यूट्रल पॉइंट उपलब्ध है या नहीं। यदि न्यूट्रल उपलब्ध है, तो इसे 'n' से दर्शाया जाता है।
- फेज शिफ्ट या कोण (Phase Shift): यह प्राथमिक और द्वितीयक वोल्टेज के बीच के कोण अंतर को दर्शाता है। इसे घड़ी के अंकों (clock notation) का उपयोग करके व्यक्त किया जाता है, जहाँ हर एक अंक 30 डिग्री के कोण को दर्शाता है। प्राथमिक वाइंडिंग को संदर्भ के रूप में 12 बजे की स्थिति पर रखा जाता है।
एक उदाहरण: Dy11
यह सबसे आम वेक्टर समूहों में से एक है जो वितरण ट्रांसफार्मर में उपयोग होता है। इसका मतलब है:
D: प्राथमिक वाइंडिंग डेल्टा में जुड़ी है।
y: द्वितीयक वाइंडिंग स्टार में जुड़ी है। (छोटा अक्षर 'y' बताता है कि यह लो-वोल्टेज साइड है।)
n: द्वितीयक वाइंडिंग में न्यूट्रल पॉइंट उपलब्ध है।
11: द्वितीयक वोल्टेज का वेक्टर प्राथमिक वोल्टेज के वेक्टर से 330° पीछे (या 30° आगे) है। घड़ी में 11 बजे की स्थिति 12 से 30° पीछे होती है।
वेक्टर समूह महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह ट्रांसफार्मर के समानांतर संचालन (parallel operation) और सिस्टम के संगतता (compatibility) को प्रभावित करता है। एक ही वेक्टर समूह वाले ट्रांसफार्मर ही बिना किसी समस्या के समानांतर में काम कर सकते हैं।
ट्रांसफार्मर में Dyn11 कनेक्शन एक प्रकार का वेक्टर समूह है जो तीन-फेज ट्रांसफार्मर की प्राथमिक (प्राइमरी) और द्वितीयक (सेकेंडरी) वाइंडिंग के बीच के संबंध को दर्शाता है। यह कोड बताता है कि वाइंडिंग कैसे जुड़ी हुई हैं और उनके वोल्टेज वैक्टर के बीच कितना फेज शिफ्ट है।
Dyn11 कनेक्शन का क्या मतलब है?
Dyn11 कोड के प्रत्येक अक्षर और संख्या का एक विशिष्ट अर्थ होता है:
- D: यह दर्शाता है कि ट्रांसफार्मर की प्राथमिक (हाई-वोल्टेज) वाइंडिंग डेल्टा (Δ) में जुड़ी हुई है। डेल्टा कनेक्शन में, तीनों वाइंडिंग को एक त्रिभुज के आकार में जोड़ा जाता है और इसमें कोई न्यूट्रल पॉइंट नहीं होता है।
- y: यह दर्शाता है कि ट्रांसफार्मर की द्वितीयक (लो-वोल्टेज) वाइंडिंग स्टार (Y) में जुड़ी हुई है। स्टार कनेक्शन में, तीनों वाइंडिंग का एक सिरा एक सामान्य बिंदु (कॉमन पॉइंट) पर जोड़ा जाता है।
- n: यह इंगित करता है कि स्टार से जुड़े द्वितीयक वाइंडिंग में एक न्यूट्रल पॉइंट उपलब्ध है, जिसे बाहर निकाला गया है। यह न्यूट्रल पॉइंट सिंगल-फेज लोड को कनेक्ट करने के लिए बहुत उपयोगी होता है।
- 11: यह फेज शिफ्ट को दर्शाता है। इसे घड़ी के अंकों (clock notation) का उपयोग करके व्यक्त किया जाता है, जहाँ हर एक अंक 30° के कोण को दर्शाता है। '11' का मतलब है कि द्वितीयक वोल्टेज वेक्टर, प्राथमिक वोल्टेज वेक्टर से 330° पीछे है। घड़ी में 11 बजे का अंक 12 बजे के अंक से 330° पीछे होता है।
Dyn11 कनेक्शन का उपयोग
यह कनेक्शन आमतौर पर वितरण ट्रांसफार्मर (distribution transformers) में उपयोग होता है। इसका कारण यह है कि यह ट्रांसफार्मर को डेल्टा-जुड़े प्राइमरी साइड पर थ्री-फेज सप्लाई प्राप्त करने और स्टार-जुड़े सेकेंडरी साइड पर थ्री-फेज और सिंगल-फेज दोनों लोड को सप्लाई देने की अनुमति देता है। सेकेंडरी वाइंडिंग में न्यूट्रल पॉइंट की उपलब्धता घरों और छोटे व्यवसायों को 230V सिंगल-फेज बिजली प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण है, जबकि फेज-टू-फेज कनेक्शन (400V) थ्री-फेज मोटर जैसे भारी औद्योगिक भार के लिए उपयोग होता है।
एक ट्रांसफार्मर में तृतीयक वाइंडिंग (tertiary winding) प्राथमिक (primary) और द्वितीयक (secondary) वाइंडिंग के अतिरिक्त एक तीसरी वाइंडिंग होती है। इसे अक्सर स्थिरता वाइंडिंग (stabilizing winding) भी कहा जाता है क्योंकि यह कुछ विशिष्ट समस्याओं को हल करने और ट्रांसफार्मर के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए उपयोग की जाती है।
तृतीयक वाइंडिंग के मुख्य उद्देश्य:
- तीसरी हार्मोनिक्स को हटाना: स्टार-स्टार (Y-Y) जुड़े ट्रांसफार्मर में तीसरी हार्मोनिक्स (harmonic) उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे वोल्टेज में विकृति (distortion) और न्यूट्रल का विस्थापन (neutral shifting) होता है। डेल्टा (Δ) में जुड़ी एक तृतीयक वाइंडिंग इन हार्मोनिक धाराओं को प्रसारित होने के लिए एक बंद मार्ग प्रदान करती है, जिससे वे मुख्य वाइंडिंग में प्रवेश नहीं कर पाती हैं और वोल्टेज स्थिर रहता है।
- असंतुलित लोड को संतुलित करना: यदि द्वितीयक साइड पर लोड असंतुलित होता है, तो यह प्राथमिक वाइंडिंग पर भी असंतुलन पैदा करता है। तृतीयक वाइंडिंग इन असंतुलित धाराओं को कम करके फेज वोल्टेज को स्थिर रखने में मदद करती है।
- सहायक लोड को आपूर्ति: कभी-कभी, ट्रांसफार्मर को अपनी मुख्य प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के अलावा एक अलग वोल्टेज स्तर पर सहायक लोड (जैसे सबस्टेशन के लिए लाइटिंग, पंखे, पंप आदि) को बिजली की आपूर्ति करने की आवश्यकता होती है। तृतीयक वाइंडिंग इस उद्देश्य को पूरा करती है।
- अलग-अलग वोल्टेज प्रणालियों को जोड़ना: तृतीयक वाइंडिंग का उपयोग तीन अलग-अलग वोल्टेज स्तरों पर काम करने वाली प्रणालियों को एक साथ जोड़ने के लिए भी किया जा सकता है।
- अर्थ फॉल्ट सुरक्षा में सुधार: तृतीयक वाइंडिंग पृथ्वी दोषों (earth faults) के दौरान एक कम प्रतिबाधा (impedance) मार्ग प्रदान करके सुरक्षा उपकरणों को सही ढंग से काम करने में मदद करती है।
ट्रांसफार्मर में इनरश करंट एक बहुत ही उच्च, क्षणिक (transient) धारा है जो तब बहती है जब ट्रांसफार्मर को पहली बार ऊर्जा दी जाती है। यह धारा सामान्य फुल-लोड करंट से कई गुना (5 से 10 गुना तक) अधिक हो सकती है, लेकिन यह केवल कुछ मिलीसेकंड या कुछ साइकिल तक ही रहती है। इसे मैग्नेटाइजिंग इनरश करंट भी कहते हैं।
यह घटना ट्रांसफार्मर के कोर को चुंबकित करने के लिए आवश्यक प्रारंभिक ऊर्जा के कारण होती है।
जब ट्रांसफार्मर को बंद किया जाता है, तो उसके कोर में एक अवशिष्ट चुंबकीय फ्लक्स (residual magnetic flux) रह सकता है। जब ट्रांसफार्मर को फिर से चालू किया जाता है, तो नया चुंबकीय फ्लक्स अवशिष्ट फ्लक्स के साथ जुड़ जाता है।
यदि ये दोनों फ्लक्स एक ही दिशा में होते हैं, तो कुल फ्लक्स इतना बढ़ जाता है कि यह कोर को संतृप्त (saturate) कर देता है।
जब कोर संतृप्त होता है, तो उसकी प्रतिबाधा (impedance) बहुत कम हो जाती है, जिससे प्राइमरी वाइंडिंग से एक बहुत बड़ा करंट प्रवाहित होता है। यही इनरश करंट कहलाता है।
यह करंट समय के साथ तेजी से कम होता जाता है क्योंकि कोर अपनी सामान्य ऑपरेटिंग स्थिति में वापस आ जाता है।
हालाँकि यह एक सामान्य घटना है,
लेकिन इसका उच्च मान सुरक्षा उपकरणों (जैसे फ़्यूज़ और सर्किट ब्रेकर) को अनावश्यक रूप से ट्रिप कर सकता है, जिससे बिजली की आपूर्ति बाधित हो सकती है।
ट्रांसफार्मर के गुनगुनाने की आवाज को हम्मिंग नॉइज़ (humming noise) कहा जाता है, और यह मुख्य रूप से मैग्नेटोस्ट्रिक्शन (magnetostriction) नामक घटना के कारण होती है।
मैग्नेटोस्ट्रिक्शन क्या है?
जब ट्रांसफार्मर के कोर से प्रत्यावर्ती फ्लक्स (alternating flux) गुजरता है, तो कोर की सामग्री (जैसे सिलिकॉन स्टील) में बहुत छोटे-छोटे यांत्रिक खिंचाव और संकुचन होते हैं।
यह खिंचाव और संकुचन एसी सप्लाई की आवृत्ति (frequency) के दोगुने पर होता है।
भारत में,
जहां 50 हर्ट्ज (Hz) की आवृत्ति का उपयोग किया जाता है, यह कंपन प्रति सेकंड 100 बार होता है।
ये कंपन ट्रांसफार्मर की कोर प्लेटों और अन्य यांत्रिक भागों में फैल जाते हैं, जिससे यह गुनगुनाने की आवाज पैदा होती है।
अन्य कारण
हालांकि मैग्नेटोस्ट्रिक्शन मुख्य कारण है, कुछ अन्य कारण भी इस आवाज में योगदान कर सकते हैं:
- ढीले क्लैम्प या वाइंडिंग: यदि ट्रांसफार्मर के अंदर के क्लैम्प, कोर प्लेटें, या वाइंडिंग ठीक से नहीं कसे गए हैं, तो वे कंपन कर सकते हैं, जिससे शोर बढ़ सकता है।
- लोड में बदलाव: लोड में अचानक बदलाव से भी करंट और फ्लक्स में बदलाव होता है, जिससे कंपन का स्तर बढ़ सकता है।
- उच्च हार्मोनिक्स: वोल्टेज और करंट में उच्च हार्मोनिक्स भी कोर में अतिरिक्त कंपन पैदा कर सकते हैं।
यह गुनगुनाने की आवाज सामान्य है और ट्रांसफार्मर के सामान्य संचालन का हिस्सा है, जब तक कि यह बहुत जोर से या असामान्य न हो।
ट्रांसफार्मर में टैप चेंजर (Tap Changer) एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग ट्रांसफार्मर के सेकेंडरी वोल्टेज को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। यह ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में टर्न की संख्या को बदलकर आउटपुट वोल्टेज को समायोजित करता है।
टैप चेंजर कैसे काम करता है?
टैप चेंजर वाइंडिंग में लगे हुए टैप्स (निकलने वाले पॉइंट्स) से जुड़ा होता है। इन टैप्स को बदलकर, प्राइमरी या सेकेंडरी वाइंडिंग के प्रभावी टर्न की संख्या को बदला जा सकता है। जब टर्न की संख्या बदलती है, तो ट्रांसफार्मर का टर्न अनुपात (turn ratio) बदल जाता है, जिससे आउटपुट वोल्टेज भी बदल जाता है।
टैप चेंजर के प्रकार:
टैप चेंजर दो मुख्य प्रकार के होते हैं:
ऑफ-लोड टैप चेंजर (Off-Load Tap Changer): इस प्रकार के टैप चेंजर का उपयोग केवल तभी किया जाता है जब ट्रांसफार्मर को डी-एनर्जाइज़ (de-energize) किया गया हो, यानी जब ट्रांसफार्मर से कोई लोड नहीं जुड़ा हो। इसका उपयोग मुख्य रूप से ट्रांसफार्मर के वोल्टेज को एक बार सेट करने के लिए किया जाता है।
ऑन-लोड टैप चेंजर (On-Load Tap Changer - OLTC): इस प्रकार का टैप चेंजर ट्रांसफार्मर के सक्रिय (energized) होने पर भी काम करता है, यानी लोड से जुड़े होने पर भी वोल्टेज को समायोजित कर सकता है। यह बिजली वितरण प्रणालियों में महत्वपूर्ण है जहां वोल्टेज में लगातार बदलाव की आवश्यकता होती है।
टैप चेंजर का महत्व:
- वोल्टेज विनियमन (Voltage Regulation): यह सुनिश्चित करता है कि लोड पर वोल्टेज एक स्थिर और स्वीकार्य सीमा के भीतर रहे, भले ही इनपुट वोल्टेज या लोड की स्थिति बदल जाए।
- दक्षता में सुधार: सही वोल्टेज विनियमन से उपकरणों को सही ढंग से काम करने में मदद मिलती है, जिससे उनकी दक्षता और जीवनकाल बढ़ता है।
- सिस्टम संगतता (System Compatibility): यह अलग-अलग लोड आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न वोल्टेज स्तर प्रदान करता है।
ऑफ-लोड (Off-Load) और ऑन-लोड (On-Load) टैप चेंजर के बीच का मुख्य अंतर यह है कि ऑन-लोड टैप चेंजर ट्रांसफार्मर की बिजली आपूर्ति को बिना काटे वोल्टेज को समायोजित कर सकता है, जबकि ऑफ-लोड टैप चेंजर के लिए यह काम करने से पहले ट्रांसफार्मर को बंद करना पड़ता है।
यहाँ दोनों के बीच के प्रमुख अंतरों का एक तुलनात्मक सारांश दिया गया है:
ऑफ-लोड टैप चेंजर (Off-Load Tap Changer)
- परिचालन: इसे केवल तभी संचालित किया जाता है जब ट्रांसफार्मर को मुख्य बिजली आपूर्ति से डिस्कनेक्ट (बंद) कर दिया गया हो। यदि लोड जुड़ा हुआ है तो इसे ऑपरेट करना खतरनाक है।
- उपयोग: इसका उपयोग ऐसे मामलों में होता है जहाँ वोल्टेज में बार-बार बदलाव की आवश्यकता नहीं होती है।
- लागत: यह एक सरल और सस्ता उपकरण है।
- अनुप्रयोग: छोटे वितरण ट्रांसफार्मर में, जहाँ वोल्टेज को साल में केवल कुछ बार ही समायोजित करने की आवश्यकता होती है।
ऑन-लोड टैप चेंजर (On-Load Tap Changer - OLTC)
- परिचालन: इसे ट्रांसफार्मर के सक्रिय (चालू) होने और लोड से जुड़े होने पर भी संचालित किया जा सकता है। यह बिना किसी रुकावट के वोल्टेज को समायोजित करता है।
- उपयोग: इसका उपयोग ऐसे मामलों में होता है जहाँ इनपुट वोल्टेज और लोड की स्थिति के अनुसार वोल्टेज को लगातार और स्वचालित रूप से समायोजित करने की आवश्यकता होती है।
- लागत: यह एक जटिल और महंगा उपकरण है जिसमें स्विच, मोटर और नियंत्रण सर्किटरी शामिल होती है।
- अनुप्रयोग: बड़े पावर ट्रांसफार्मर, ग्रिड सबस्टेशन और औद्योगिक अनुप्रयोगों में, जहाँ बिजली आपूर्ति में रुकावट अस्वीकार्य होती है।
दोनों प्रकार के टैप चेंजर का उद्देश्य ट्रांसफार्मर के आउटपुट वोल्टेज को स्थिर रखना है, लेकिन जिस तरह से वे इसे हासिल करते हैं, वह उनके उपयोग और लागत में महत्वपूर्ण अंतर पैदा करता है।
ट्रांसफार्मर का समानांतर संचालन (parallel operation) का मतलब है कि एक ही लोड को बिजली की आपूर्ति करने के लिए दो या दो से अधिक ट्रांसफार्मर को एक साथ उनके प्राइमरी और सेकेंडरी साइड पर समानांतर में जोड़ना।
ट्रांसफार्मर को समानांतर में क्यों चलाया जाता है?
ट्रांसफार्मर को समानांतर में चलाने के कई कारण हैं:
- विश्वसनीयता (Reliability): यदि कोई एक ट्रांसफार्मर विफल हो जाता है, तो दूसरा ट्रांसफार्मर लोड को बिजली की आपूर्ति जारी रख सकता है, जिससे बिजली की आपूर्ति में कोई रुकावट नहीं आती।
- दक्षता (Efficiency): जब लोड कम होता है, तो एक बड़े ट्रांसफार्मर को कम लोड पर चलाने के बजाय, एक छोटे ट्रांसफार्मर को पूरी क्षमता पर चलाया जा सकता है, जिससे दक्षता में सुधार होता है।
- क्षमता बढ़ाना (Increased Capacity): लोड की मांग बढ़ने पर, मौजूदा ट्रांसफार्मर के साथ एक नया ट्रांसफार्मर जोड़कर कुल क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
- रखरखाव (Maintenance): किसी एक ट्रांसफार्मर का रखरखाव करते समय, अन्य ट्रांसफार्मर सेवा में बने रहते हैं।
समानांतर संचालन के लिए आवश्यक शर्तें
सही और सुरक्षित समानांतर संचालन के लिए, सभी ट्रांसफार्मर को निम्नलिखित महत्वपूर्ण शर्तों को पूरा करना चाहिए:
- समान वोल्टेज अनुपात (Same Voltage Ratio): सभी ट्रांसफार्मर का टर्न अनुपात (turn ratio) समान होना चाहिए ताकि प्राइमरी और सेकेंडरी वोल्टेज समान हों।
- समान प्रतिशत प्रतिबाधा (Same Percentage Impedance): उनका प्रतिशत प्रतिबाधा लगभग समान होना चाहिए ताकि लोड करंट उनके kVA रेटिंग के अनुपात में साझा हो।
- समान ध्रुवीयता (Same Polarity): ट्रांसफार्मर की ध्रुवीयता समान होनी चाहिए। गलत ध्रुवीयता के कारण वाइंडिंग में शॉर्ट सर्किट हो सकता है।
- समान फेज अनुक्रम और वेक्टर समूह (Same Phase Sequence and Vector Group): तीन-फेज ट्रांसफार्मर में, उनका फेज अनुक्रम (phase sequence) और वेक्टर समूह (vector group) समान होना चाहिए (जैसे Dy11)। यदि ये शर्तें पूरी नहीं होती हैं, तो ट्रांसफार्मर के बीच सर्कुलेटिंग करंट (circulating current) प्रवाहित हो सकता है, जिससे अनावश्यक नुकसान और हीटिंग हो सकती है।
ट्रांसफार्मर में चुंबकीय धारा (magnetizing current) वह धारा है जो ट्रांसफार्मर की प्राइमरी वाइंडिंग द्वारा तब खींची जाती है जब सेकेंडरी वाइंडिंग पर कोई लोड नहीं होता (नो-लोड की स्थिति)। इस धारा का मुख्य उद्देश्य ट्रांसफार्मर के कोर में चुंबकीय फ्लक्स स्थापित करना है।
यह फ्लक्स प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच ऊर्जा स्थानांतरित करने के लिए एक माध्यम के रूप में कार्य करता है।
चुंबकीय धारा की विशेषताएं:
- कम मान: चुंबकीय धारा का मान बहुत कम होता है, जो ट्रांसफार्मर की पूर्ण-भार धारा (full-load current) का केवल 2% से 5% तक होता है।
- पावर फैक्टर: यह वोल्टेज से लगभग 90° पीछे (lagging) होती है क्योंकि इसका मुख्य कार्य चुंबकीय क्षेत्र स्थापित करना है। इसलिए इसका पावर फैक्टर बहुत कम और प्रेरक (inductive) होता है।
- हार्मोनिक्स: आदर्श रूप से, यह एक साइनसॉइडल तरंग होनी चाहिए, लेकिन कोर के संतृप्त होने (saturation) के कारण इसमें तीसरी हार्मोनिक्स और अन्य विषम हार्मोनिक्स (odd harmonics) भी शामिल होते हैं।
-
हानियाँ: चुंबकीय धारा का उपयोग दो प्रकार की हानियों को पूरा करने के लिए भी होता है:
- हिस्टैरेसिस हानि (Hysteresis loss): कोर के बार-बार चुंबकित और विचुंबकित होने के कारण होने वाली हानि।
- एड्डी करंट हानि (Eddy current loss): कोर में प्रेरित होने वाली भंवर धाराओं (eddy currents) के कारण होने वाली हानि।
यह एक आवश्यक धारा है क्योंकि इसके बिना कोई चुंबकीय फ्लक्स नहीं होगा और ट्रांसफार्मर काम नहीं करेगा।
कोर प्रकार (Core Type) और शेल प्रकार (Shell Type) ट्रांसफार्मर के बीच का मुख्य अंतर उनकी संरचनात्मक बनावट और वाइंडिंग के प्लेसमेंट में है। यह अंतर उनके प्रदर्शन, शीतलन और अनुप्रयोगों को प्रभावित करता है।
कोर प्रकार ट्रांसफार्मर (Core Type Transformer)
संरचना: इसमें एक साधारण आयताकार कोर होता है जिसमें दो अंग (limbs) और दो योक (yokes) होते हैं।
वाइंडिंग: वाइंडिंग कोर के चारों ओर लिपटी होती हैं। प्राथमिक (primary) और द्वितीयक (secondary) वाइंडिंग को एक ही अंग पर एक के ऊपर एक लपेटा जाता है ताकि लीकेज फ्लक्स (leakage flux) को कम किया जा सके। आमतौर पर, कम वोल्टेज वाली वाइंडिंग को कोर के पास रखा जाता है और उच्च वोल्टेज वाली वाइंडिंग को उसके ऊपर रखा जाता है।
चुंबकीय पथ: इसमें चुंबकीय फ्लक्स के लिए एक ही मार्ग होता है।
शीतलन: क्योंकि वाइंडिंग कोर के बाहर होती हैं, उनका सतह क्षेत्र अधिक होता है जिससे प्राकृतिक वायु या तेल परिसंचरण द्वारा शीतलन (cooling) अधिक प्रभावी होता है।
उपयोग: यह आमतौर पर उच्च-वोल्टेज और कम-रेटिंग वाले ट्रांसफार्मर के लिए उपयोग किया जाता है।
शेल प्रकार ट्रांसफार्मर (Shell Type Transformer)
संरचना: इसमें कोर के तीन अंग (limbs) होते हैं। वाइंडिंग मध्य अंग पर लिपटी होती हैं, और कोर वाइंडिंग के चारों ओर लिपटा होता है, जिससे यह एक खोल (shell) जैसा दिखता है। कोर का मध्य अंग बाहरी अंगों की तुलना में मोटा होता है।
वाइंडिंग: प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग दोनों को मध्य अंग पर लपेटा जाता है। इन्हें अक्सर सैंडविच वाइंडिंग (sandwich winding) या डिस्क वाइंडिंग कहा जाता है, जहाँ कम और उच्च वोल्टेज वाली वाइंडिंग को बारी-बारी से रखा जाता है।
चुंबकीय पथ: इसमें चुंबकीय फ्लक्स के लिए दो समानांतर मार्ग होते हैं।
शीतलन: वाइंडिंग कोर से घिरी होती हैं, जिससे प्राकृतिक शीतलन कम प्रभावी होता है। अक्सर, इन ट्रांसफार्मरों में मजबूर वायु (forced air) या तेल परिसंचरण (forced oil circulation) का उपयोग किया जाता है।
उपयोग: यह आमतौर पर कम-वोल्टेज और उच्च-रेटिंग वाले ट्रांसफार्मर के लिए उपयोग किया जाता है।
दोनों प्रकार के ट्रांसफार्मर की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं, और उनका चुनाव विशिष्ट अनुप्रयोग की आवश्यकताओं पर निर्भर करता है।
ट्रांसफार्मर में शीतलन प्रणाली का मुख्य कार्य ऑपरेटिंग तापमान को सुरक्षित सीमा के भीतर रखना है। ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग और कोर में होने वाली हानियों (जैसे ताम्र हानि और लौह हानि) के कारण गर्मी उत्पन्न होती है। यदि यह गर्मी प्रभावी ढंग से दूर नहीं की जाती है, तो ट्रांसफार्मर का तापमान बढ़ जाएगा, जिससे उसका इन्सुलेशन खराब हो सकता है और अंततः ट्रांसफार्मर क्षतिग्रस्त हो सकता है।
शीतलन प्रणाली के प्रकार
ट्रांसफार्मर में उपयोग की जाने वाली शीतलन प्रणालियों को मोटे तौर पर दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1. प्राकृतिक शीतलन:
- वायु प्राकृतिक (Air Natural - AN): छोटे ट्रांसफार्मर में, गर्मी को सीधे हवा में फैलाया जाता है।
- तेल प्राकृतिक, वायु प्राकृतिक (Oil Natural, Air Natural - ONAN): इस प्रणाली में, ट्रांसफार्मर का कोर और वाइंडिंग तेल में डूबे होते हैं। यह तेल गर्मी को अवशोषित करता है और फिर ट्रांसफार्मर टैंक की बाहरी सतहों (जैसे फिन्स या रेडिएटर) तक ले जाता है, जहाँ से हवा के प्राकृतिक संचलन से गर्मी दूर होती है। यह सबसे सामान्य शीतलन विधि है।
2. मजबूर शीतलन (Forced Cooling):
- तेल प्राकृतिक, वायु मजबूर (Oil Natural, Air Forced - ONAF): इस प्रणाली में, रेडिएटर पर पंखे लगाकर हवा के प्रवाह को बढ़ाया जाता है, जिससे गर्मी अधिक तेजी से दूर होती है।
- तेल मजबूर, वायु मजबूर (Oil Forced, Air Forced - OFAF): यहाँ तेल को एक पंप द्वारा जबरदस्ती रेडिएटर से गुजारा जाता है और पंखे भी हवा का प्रवाह बढ़ाते हैं। यह उच्च क्षमता वाले ट्रांसफार्मर के लिए उपयोग होता है।
- तेल मजबूर, जल मजबूर (Oil Forced, Water Forced - OFWF): इस प्रणाली में, तेल पंप द्वारा एक बाहरी हीट एक्सचेंजर में प्रवाहित किया जाता है, जहाँ ठंडा पानी गर्मी को अवशोषित करता है। यह बहुत बड़े पावर ट्रांसफार्मर के लिए उपयोग की जाती है।
शीतलन प्रणाली का महत्व
एक प्रभावी शीतलन प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि ट्रांसफार्मर का इन्सुलेशन जीवनकाल बना रहे और यह अपनी रेटेड क्षमता पर सुरक्षित रूप से काम कर सके। यदि ट्रांसफार्मर का तापमान बहुत अधिक हो जाता है, तो इन्सुलेशन समय से पहले खराब हो जाता है, जिससे ट्रांसफार्मर की सेवा अवधि कम हो जाती है।
ट्रांसफार्मर में उपयोग किए जाने वाले सामान्य शीतलन माध्यम मुख्य रूप से वायु (air) और तेल (oil) हैं। इन माध्यमों का उपयोग ट्रांसफार्मर में उत्पन्न होने वाली गर्मी को दूर करने के लिए किया जाता है, जिससे ट्रांसफार्मर का तापमान सुरक्षित सीमा के भीतर रहता है और इसका जीवनकाल बढ़ता है।
1. वायु शीतलन (Air Cooling)
यह सबसे सरल शीतलन विधि है और इसका उपयोग आमतौर पर छोटे और कम-रेटिंग वाले ट्रांसफार्मर में किया जाता है।
- वायु प्राकृतिक (Air Natural - AN): इस विधि में, ट्रांसफार्मर के कोर और वाइंडिंग से उत्पन्न गर्मी को सीधे आसपास की हवा में प्राकृतिक संवहन (natural convection) और विकिरण (radiation) के माध्यम से फैलाया जाता है।
- वायु मजबूर (Air Forced - AF): इस विधि में, ट्रांसफार्मर पर पंखे (fans) लगाए जाते हैं जो हवा को जबरदस्ती प्रवाहित करते हैं। यह छोटे और मध्यम आकार के ट्रांसफार्मर की शीतलन क्षमता को बढ़ाता है।
2. तेल शीतलन (Oil Cooling)
यह बड़े और मध्यम आकार के ट्रांसफार्मर के लिए सबसे आम शीतलन विधि है। तेल का उपयोग करने का मुख्य कारण यह है कि यह एक अच्छा इन्सुलेटर होने के साथ-साथ एक उत्कृष्ट ऊष्मा-स्थानांतरण माध्यम (heat-transfer medium) भी है।
- तेल प्राकृतिक, वायु प्राकृतिक (Oil Natural, Air Natural - ONAN): इस विधि में, ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग और कोर को तेल में डुबोया जाता है। गर्म तेल प्राकृतिक संवहन के कारण ऊपर की ओर बढ़ता है, रेडिएटर या टैंक में ठंडा होता है, और फिर ठंडा होकर नीचे आता है। इस प्रक्रिया में, रेडिएटर की सतह से गर्मी प्राकृतिक रूप से हवा में फैलती है।
- तेल प्राकृतिक, वायु मजबूर (Oil Natural, Air Forced - ONAF): यह ONAN प्रणाली का एक उन्नत रूप है, जहाँ रेडिएटर पर पंखे लगाए जाते हैं ताकि वायु परिसंचरण को बढ़ाकर शीतलन को अधिक प्रभावी बनाया जा सके।
- तेल मजबूर, वायु मजबूर (Oil Forced, Air Forced - OFAF): बहुत बड़े ट्रांसफार्मर में, तेल को एक पंप द्वारा रेडिएटर में जबरदस्ती प्रवाहित किया जाता है, और पंखे भी हवा का प्रवाह बढ़ाते हैं, जिससे अधिकतम गर्मी का निष्कासन होता है।
पानी का उपयोग:
कुछ बहुत बड़े पावर ट्रांसफार्मर में, तेल मजबूर, जल मजबूर (Oil Forced, Water Forced - OFWF) प्रणाली का भी उपयोग किया जाता है, जहाँ एक हीट एक्सचेंजर में पानी का उपयोग करके तेल को ठंडा किया जाता है।
वाइंडिंग तापमान वृद्धि का अर्थ है, ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग का तापमान, आसपास के परिवेश के तापमान से कितना अधिक है। इसे अक्सर डेल्टा टी (ΔT) से दर्शाया जाता है।
यह एक महत्वपूर्ण मापदंड है जिसका उपयोग ट्रांसफार्मर की दक्षता और सुरक्षा का आकलन करने के लिए किया जाता है।
यह क्यों महत्वपूर्ण है?
ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में विद्युत धारा के प्रवाह के कारण ताम्र हानि (copper loss) होती है, जिससे गर्मी उत्पन्न होती है। यह गर्मी वाइंडिंग के इन्सुलेशन (जैसे कागज या वार्निश) के तापमान को बढ़ाती है।
इन्सुलेशन जीवन: ट्रांसफार्मर के जीवनकाल का निर्धारण मुख्य रूप से उसके इन्सुलेशन की स्थिति पर निर्भर करता है। उच्च तापमान इन्सुलेशन को तेजी से खराब करता है, जिससे ट्रांसफार्मर का जीवनकाल कम हो जाता है। एक सामान्य नियम के अनुसार, यदि ट्रांसफार्मर का तापमान प्रत्येक 6°C से 8°C तक बढ़ता है, तो उसके इन्सुलेशन का जीवनकाल लगभग आधा हो जाता है।
ओवरलोडिंग: यदि कोई ट्रांसफार्मर अपनी निर्धारित रेटिंग से अधिक लोड पर चलता है, तो वाइंडिंग से अधिक धारा प्रवाहित होती है, जिससे तापमान वृद्धि तेजी से होती है और इन्सुलेशन को नुकसान पहुंच सकता है।
तापमान वृद्धि को कैसे नियंत्रित किया जाता है?
ट्रांसफार्मर में तापमान वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए शीतलन प्रणाली (cooling system) का उपयोग किया जाता है। जैसे-जैसे ट्रांसफार्मर का आकार और रेटिंग बढ़ती है,
वैसे-वैसे अधिक उन्नत शीतलन प्रणालियों की आवश्यकता होती है। छोटे ट्रांसफार्मर में प्राकृतिक वायु शीतलन (Air Natural) का उपयोग होता है। बड़े ट्रांसफार्मर में, तेल-आधारित शीतलन प्रणालियों (जैसे ONAN, ONAF) का उपयोग किया जाता है जो वाइंडिंग से गर्मी को अवशोषित करती हैं और इसे बाहर निकालती हैं।
इस तरह,
तापमान वृद्धि को सीमित करके, ट्रांसफार्मर को सुरक्षित और कुशलतापूर्वक काम करने में मदद मिलती है।
वितरण ट्रांसफार्मर (Distribution Transformers) ऐसे ट्रांसफार्मर हैं जो बिजली वितरण नेटवर्क के अंतिम चरण में उपयोग किए जाते हैं। इनका मुख्य कार्य उच्च या मध्यम वोल्टेज को घरों, कार्यालयों और छोटे औद्योगिक इकाइयों में उपयोग के लिए आवश्यक कम वोल्टेज में बदलना है। ये ट्रांसफार्मर आमतौर पर बिजली के खंभों पर या जमीन पर स्थापित छोटे सबस्टेशनों में पाए जाते हैं।
मुख्य विशेषताएं
- रेटिंग: ये ट्रांसफार्मर आमतौर पर कम kVA रेटिंग (जैसे 10 kVA से 500 kVA तक) के होते हैं।
- वोल्टेज स्तर: ये मुख्य रूप से 11 kV, 33 kV या 6.6 kV जैसे उच्च वोल्टेज को 440V या 230V जैसे कम वोल्टेज में बदलते हैं।
- दक्षता: इन्हें इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि ये अधिकतम दक्षता नो-लोड (no-load) या कम-लोड की स्थिति में प्रदान करें, क्योंकि ये दिन के अधिकांश समय कम लोड पर चलते हैं।
- कनेक्शन: इनका सबसे आम कनेक्शन डेल्टा-स्टार (Dyn11) होता है। यह प्राइमरी साइड पर तीन-फेज बिजली लेता है और सेकेंडरी साइड पर थ्री-फेज और सिंगल-फेज दोनों प्रकार की बिजली प्रदान करता है, जिसमें न्यूट्रल पॉइंट भी उपलब्ध होता है।
- शीतलन: आमतौर पर, ये तेल-आधारित ONAN (Oil Natural, Air Natural) शीतलन प्रणाली का उपयोग करते हैं।
उपयोग
वितरण ट्रांसफार्मर का उपयोग मुख्य रूप से आवासीय और वाणिज्यिक क्षेत्रों में बिजली की आपूर्ति के लिए किया जाता है। ये बिजली संयंत्रों और ट्रांसमिशन लाइनों से आने वाली उच्च वोल्टेज बिजली को उपभोक्ताओं के लिए सुरक्षित और उपयोग योग्य वोल्टेज में बदलते हैं।
ट्रांसफार्मर में सुरक्षात्मक उपकरणों का उद्देश्य ट्रांसफार्मर को आंतरिक और बाहरी दोषों से बचाना है ताकि इसकी विश्वसनीयता और जीवनकाल सुनिश्चित हो सके। ये उपकरण किसी भी असामान्य स्थिति का पता लगाते हैं और ट्रांसफार्मर को बिजली की लाइन से डिस्कनेक्ट करके उसे गंभीर क्षति से बचाते हैं।
प्रमुख सुरक्षात्मक उपकरण और उनके कार्य
- बुकोल्ज रिले (Buchholz Relay): यह एक गैस-सक्रिय रिले है जो ट्रांसफार्मर टैंक और कंजर्वेटर के बीच स्थापित होता है। यह ट्रांसफार्मर के अंदर होने वाले छोटे दोषों (जैसे इन्सुलेशन की खराबी, लोकल हीटिंग) से उत्पन्न होने वाली गैसों का पता लगाता है और अलार्म बजाता है। यदि बड़ा दोष होता है, तो यह सर्किट ब्रेकर को ट्रिप कर देता है।
- दाब विमोचन वाल्व (Pressure Relief Valve - PRV): यह एक सुरक्षा उपकरण है जो ट्रांसफार्मर के अंदर अत्यधिक दबाव बनने पर उसे छोड़ देता है। आंतरिक दोषों के कारण तेल का तेजी से वाष्पीकरण होता है, जिससे दबाव बढ़ता है। PRV इस दबाव को नियंत्रित करके टैंक को फटने से बचाता है।
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तापमान संकेतक (Temperature Indicators):
- तेल तापमान संकेतक (Oil Temperature Indicator - OTI): यह ट्रांसफार्मर के तेल के ऊपरी हिस्से का तापमान मापता है।
- वाइंडिंग तापमान संकेतक (Winding Temperature Indicator - WTI): यह वाइंडिंग के सबसे गर्म बिंदु का तापमान मापता है। जब तापमान एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो ये उपकरण अलार्म या ट्रिप सर्किट को सक्रिय करते हैं।
- विभेदक सुरक्षा (Differential Protection): यह ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में होने वाले शॉर्ट सर्किट जैसे आंतरिक दोषों से सुरक्षा प्रदान करता है। यह प्राइमरी और सेकेंडरी धाराओं के बीच के अंतर का पता लगाता है और यदि यह अंतर बहुत अधिक होता है, तो सर्किट ब्रेकर को ट्रिप करता है।
- प्रतिबंधित पृथ्वी दोष सुरक्षा (Restricted Earth Fault - REF): यह एक विशेष सुरक्षा प्रणाली है जो केवल ट्रांसफार्मर वाइंडिंग के अंदर होने वाले पृथ्वी दोषों का पता लगाती है। यह छोटे पृथ्वी दोषों के खिलाफ भी संवेदनशील है।
- ओवरकरंट और अर्थ फॉल्ट रिले (Overcurrent and Earth Fault Relays): ये बाहरी दोषों (जैसे ट्रांसमिशन लाइन पर शॉर्ट सर्किट) से ट्रांसफार्मर की सुरक्षा करते हैं। ओवरकरंट रिले अत्यधिक धारा का पता लगाते हैं, जबकि अर्थ फॉल्ट रिले पृथ्वी दोष धारा का पता लगाते हैं।
ये सभी उपकरण एक साथ काम करके ट्रांसफार्मर को विभिन्न प्रकार के नुकसानों से बचाते हैं, जिससे बिजली आपूर्ति की निरंतरता और विश्वसनीयता सुनिश्चित होती है।
ट्रांसफार्मर में कंजर्वेटर (Conservator) और ब्रीथर (Breather) दोनों एक साथ काम करते हैं, और इनका मुख्य उद्देश्य ट्रांसफार्मर में तेल की मात्रा और गुणवत्ता को बनाए रखना है।
कंजर्वेटर का उद्देश्य
कंजर्वेटर टैंक एक बेलनाकार टैंक होता है जो मुख्य ट्रांसफार्मर टैंक के ऊपर स्थापित होता है और एक पाइप से जुड़ा होता है। इसका प्राथमिक उद्देश्य तेल को गर्म होने और ठंडा होने पर होने वाले फैलाव और संकुचन को समायोजित करना है। 🌡️
तेल का विस्तार और संकुचन: जब ट्रांसफार्मर लोड पर होता है, तो वाइंडिंग और कोर में उत्पन्न गर्मी के कारण तेल गर्म होता है और उसका आयतन बढ़ता है। यह अतिरिक्त तेल कंजर्वेटर टैंक में चला जाता है। जब लोड कम होता है या ट्रांसफार्मर ठंडा होता है, तो तेल सिकुड़ता है और कंजर्वेटर से वापस मुख्य टैंक में आ जाता है।
सतह क्षेत्र को कम करना: कंजर्वेटर टैंक में तेल का सतह क्षेत्र मुख्य टैंक की तुलना में बहुत कम होता है। इससे हवा के संपर्क में आने वाले तेल की मात्रा कम हो जाती है, जिससे तेल का ऑक्सीकरण (oxidation) और नमी का अवशोषण (moisture absorption) कम होता है।
ब्रीथर का उद्देश्य
ब्रीथर एक बेलनाकार कंटेनर होता है जो कंजर्वेटर टैंक से जुड़ा होता है और इसमें सिलिका जेल (Silica gel) नामक एक रासायनिक पदार्थ होता है। ब्रीथर का उद्देश्य ट्रांसफार्मर में प्रवेश करने वाली हवा से नमी को अवशोषित करना है।
- नमी नियंत्रण: जब ट्रांसफार्मर ठंडा होता है, तो तेल का स्तर गिरता है और बाहर से हवा ब्रीथर के माध्यम से अंदर खींची जाती है। सिलिका जेल इस हवा में मौजूद नमी को सोख लेता है। यह नमी को सीधे ट्रांसफार्मर के तेल में जाने से रोकता है, क्योंकि तेल में नमी की मौजूदगी इन्सुलेशन की परावैद्युत शक्ति (dielectric strength) को कम कर सकती है, जिससे ट्रांसफार्मर में खराबी आ सकती है।
- सिलिका जेल का रंग: जब सिलिका जेल शुष्क होता है, तो इसका रंग नीला होता है। जब यह नमी को अवशोषित कर लेता है, तो इसका रंग गुलाबी हो जाता है। यह रंग परिवर्तन रखरखाव कर्मचारियों को यह जानने में मदद करता है कि सिलिका जेल को बदलने या रिचार्ज करने का समय आ गया है।
शॉर्ट-सर्किट प्रतिबाधा (Short-circuit impedance) एक ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में धारा के प्रवाह में आने वाली कुल रुकावट है, जिसे शॉर्ट-सर्किट की स्थिति में मापा जाता है।
इसे प्रतिशत प्रतिबाधा के रूप में व्यक्त किया जाता है। माप की प्रक्रिया शॉर्ट-सर्किट प्रतिबाधा को मापने के लिए, ट्रांसफार्मर के प्राइमरी वाइंडिंग पर रेटेड आवृत्ति (rated frequency) का कम वोल्टेज लगाया जाता है, जबकि सेकेंडरी वाइंडिंग को पूरी तरह से शॉर्ट-सर्किट कर दिया जाता है।
प्राइमरी वोल्टेज को तब तक धीरे-धीरे बढ़ाया जाता है जब तक कि वाइंडिंग से रेटेड करंट प्रवाहित न हो जाए। इस समय प्राइमरी साइड पर मापा गया वोल्टेज, ट्रांसफार्मर का प्रतिबाधा वोल्टेज (V_z) कहलाता है।
महत्व शॉर्ट-सर्किट प्रतिबाधा कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
वोल्टेज विनियमन (Voltage Regulation): यह ट्रांसफार्मर के वोल्टेज विनियमन को निर्धारित करने में मदद करता है। कम प्रतिबाधा का मतलब है कि पूर्ण लोड पर वोल्टेज ड्रॉप कम होगा और वोल्टेज विनियमन बेहतर होगा।
दोष धारा की गणना: इसका उपयोग ट्रांसफार्मर में शॉर्ट-सर्किट होने पर बहने वाली अधिकतम दोष धारा (fault current) की गणना करने के लिए किया जाता है। उच्च प्रतिबाधा से दोष धारा का मान कम होता है, जिससे ट्रांसफार्मर को नुकसान से बचाया जा सकता है।
समानांतर संचालन: ट्रांसफार्मरों के समानांतर संचालन के लिए उनकी प्रतिशत प्रतिबाधा का समान होना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि प्रतिबाधा में अंतर होता है, तो ट्रांसफार्मरों के बीच भार का सही वितरण नहीं होगा और एक ट्रांसफार्मर ओवरलोड हो सकता है।
ट्रांसफार्मर के कोर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:
1. कोर टाइप ट्रांसफार्मर (Core Type Transformer)
यह एक साधारण डिज़ाइन है जिसमें प्राइमरी (primary) और सेकेंडरी (secondary) वाइंडिंग कोर के चारों ओर लपेटी जाती हैं। इसमें कोर पतली-पतली परतों (laminations) से मिलकर बना होता है जो एक आयताकार या L-आकार में होती हैं। इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में मैग्नेटिक फ्लक्स (magnetic flux) का केवल एक ही रास्ता होता है।
2. शेल टाइप ट्रांसफार्मर (Shell Type Transformer)
इस डिज़ाइन में, कोर वाइंडिंग को चारों ओर से घेर लेता है। वाइंडिंग एक केंद्रीय लिंब (central limb) पर स्थित होती है। शेल टाइप ट्रांसफार्मर में मैग्नेटिक फ्लक्स के दो रास्ते होते हैं। यह डिज़ाइन कोर टाइप की तुलना में बेहतर मैकेनिकल सुरक्षा (mechanical protection) और अधिक दक्षता (efficiency) प्रदान करता है।
इसके अलावा,
कुछ अन्य प्रकार के कोर भी होते हैं, जैसे:
- बेरी टाइप (Berry Type): इसमें कोर बेलनाकार होता है और वाइंडिंग इसके चारों ओर रेडियल रूप से लगाई जाती हैं।
- टोरॉयडल कोर (Toroidal Core): यह एक डोनट के आकार का कोर होता है।
ट्रांसफार्मर में परावैद्युत हानि (dielectric loss) एक प्रकार की ऊर्जा हानि है जो ट्रांसफार्मर में उपयोग होने वाले इंसुलेटिंग पदार्थों (जैसे ट्रांसफार्मर तेल और पेपर इंसुलेशन) में होती है। यह हानि तब होती है जब ये इंसुलेटिंग पदार्थ एक प्रत्यावर्ती (alternating) विद्युत क्षेत्र के संपर्क में आते हैं।
यह हानि मुख्य रूप से निम्नलिखित कारणों से होती है:
- अपूर्ण इन्सुलेशन (Imperfect Insulation): कोई भी इंसुलेटिंग पदार्थ पूरी तरह से आदर्श नहीं होता है। उसमें थोड़ी मात्रा में चालकता (conductivity) होती है, जिसके कारण उसमें से एक बहुत छोटी मात्रा में धारा प्रवाहित होती है, जिससे ऊष्मा के रूप में ऊर्जा की हानि होती है।
- परावैद्युत हिस्टैरिसीस (Dielectric Hysteresis): जब ट्रांसफार्मर में प्रत्यावर्ती वोल्टेज लागू होता है, तो इंसुलेटिंग पदार्थ के अणुओं में कंपन (vibrations) होता है। इस कंपन के कारण उत्पन्न घर्षण (friction) से ऊष्मा पैदा होती है, जो ऊर्जा हानि का कारण बनती है।
परावैद्युत हानि को कम करने के लिए उच्च प्रतिरोधकता वाले और उच्च गुणवत्ता वाले इंसुलेटिंग सामग्री का उपयोग किया जाता है।
ट्रांसफार्मर में परावैद्युत हानि,
कोर हानि (जैसे हिस्टैरिसीस और एडी करंट लॉस) और कॉपर हानि (वाइंडिंग में I²R लॉस) की तुलना में बहुत कम होती है, लेकिन यह उच्च वोल्टेज ट्रांसफार्मर में अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।
ट्रांसफार्मर की कार्यक्षमता,
सुरक्षा और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए कई प्रकार के परीक्षण किए जाते हैं। इन परीक्षणों को आम तौर पर तीन मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
1. रूटीन टेस्ट (Routine Tests)
ये परीक्षण प्रत्येक ट्रांसफार्मर पर किए जाते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह डिज़ाइन और विनिर्माण मानकों को पूरा करता है।
- वाइंडिंग रेजिस्टेंस टेस्ट (Winding Resistance Test): यह वाइंडिंग के डी.सी. प्रतिरोध को मापता है। इससे वाइंडिंग में किसी भी दोष या ढीले कनेक्शन का पता लगाया जा सकता है।
- टर्न्स रेशियो और पोलैरिटी टेस्ट (Turns Ratio and Polarity Test): यह प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के बीच टर्न्स के अनुपात की जाँच करता है और यह सुनिश्चित करता है कि वाइंडिंग सही दिशा में जुड़ी हैं।
- इंसुलेशन रेजिस्टेंस टेस्ट (Insulation Resistance Test): इसे मेगर टेस्ट भी कहते हैं। यह वाइंडिंग और कोर के बीच के इंसुलेशन की गुणवत्ता को मापता है।
- नो-लोड लॉस और एक्साइटिंग करंट टेस्ट (No-Load Loss and Exciting Current Test): यह ओपन-सर्किट टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है। इससे ट्रांसफार्मर के कोर में होने वाली हानियों (जैसे हिस्टैरिसीस और एडी करंट लॉस) का पता चलता है।
- शॉर्ट-सर्किट इंपीडेंस और लोड लॉस टेस्ट (Short-Circuit Impedance and Load Loss Test): यह शॉर्ट-सर्किट टेस्ट के रूप में भी जाना जाता है। इससे ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में होने वाली कॉपर हानियों का पता चलता है।
- वोल्टेज विथस्टैंड टेस्ट (Voltage Withstand Test): यह ट्रांसफार्मर के इंसुलेशन की dielectric strength को जांचता है।
2. टाइप टेस्ट (Type Tests)
ये परीक्षण केवल एक विशिष्ट डिज़ाइन के प्रोटोटाइप ट्रांसफार्मर पर किए जाते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि डिज़ाइन विनिर्देशों को पूरा करता है।
- टेंपरेचर राइज टेस्ट (Temperature Rise Test): यह जांचने के लिए किया जाता है कि रेटेड लोड पर काम करते समय ट्रांसफार्मर का तापमान कितना बढ़ता है।
- इंपल्स वोल्टेज विथस्टैंड टेस्ट (Impulse Voltage Withstand Test): यह परीक्षण ट्रांसफार्मर की क्षमता को जांचता है कि वह लाइटनिंग और स्विचिंग सर्जेस जैसे उच्च वोल्टेज पल्स को झेल सकता है या नहीं।
3. स्पेशल टेस्ट (Special Tests)
ये परीक्षण ग्राहक की विशेष आवश्यकताओं पर किए जाते हैं और इन्हें नियमित रूप से नहीं किया जाता है।
- नोइज लेवल टेस्ट (Noise Level Test): यह ट्रांसफार्मर द्वारा उत्पन्न ध्वनि के स्तर को मापता है।
- जीरो-सीक्वेंस इंपीडेंस टेस्ट (Zero-Sequence Impedance Test): यह तीन-फेज ट्रांसफार्मर के लिए किया जाता है।
- शॉर्ट-सर्किट विथस्टैंड टेस्ट (Short-Circuit Withstand Test): यह ट्रांसफार्मर की यांत्रिक और तापीय स्थिरता को जांचता है।
ट्रांसफार्मर तेल परीक्षण, ट्रांसफार्मर के इंसुलेटिंग तेल (विद्युतरोधी तेल) की स्थिति का आकलन करने की एक प्रक्रिया है। यह तेल ट्रांसफार्मर के महत्वपूर्ण घटकों में से एक है जो मुख्य रूप से दो कार्य करता है:
इंसुलेशन (विद्युत् रोधन) और कूलिंग (शीतलन)।
समय के साथ, इस तेल की गुणवत्ता खराब हो जाती है जिससे ट्रांसफार्मर के प्रदर्शन और सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इस परीक्षण का उद्देश्य तेल की गुणवत्ता, उसके गुणों और उसमें मौजूद अशुद्धियों का पता लगाना है ताकि संभावित खराबी को रोका जा सके और ट्रांसफार्मर के जीवन को बढ़ाया जा सके।
प्रमुख परीक्षण
ट्रांसफार्मर तेल की गुणवत्ता का आकलन करने के लिए कई तरह के परीक्षण किए जाते हैं।
विद्युत गुण परीक्षण
- डाइइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ टेस्ट (Breakdown Voltage Test): इस परीक्षण में, तेल के एक नमूने पर धीरे-धीरे वोल्टेज बढ़ाया जाता है जब तक कि वह टूट न जाए (इंसुलेट करना बंद कर दे)। यह परीक्षण तेल की विद्युत् रोधन क्षमता को मापता है। कम ब्रेकडाउन वोल्टेज तेल में पानी या अन्य अशुद्धियों की उपस्थिति का संकेत देता है।
- पावर फैक्टर टेस्ट (Dissipation Factor Test): यह परीक्षण तेल की इंसुलेटिंग क्षमता में नुकसान को मापता है। उच्च पावर फैक्टर यह दर्शाता है कि तेल में संदूषण या ऑक्सीकरण हुआ है।
रासायनिक गुण परीक्षण
- एसिडिटी टेस्ट (Neutralization Number): यह परीक्षण तेल में मौजूद अम्लीय पदार्थों की मात्रा को मापता है। उच्च अम्लता तेल के ऑक्सीकरण और स्लज (गाद) निर्माण का संकेत है, जो ट्रांसफार्मर के अंदरूनी हिस्सों को नुकसान पहुंचा सकता है।
- पानी की मात्रा का परीक्षण (Moisture Content): यह परीक्षण तेल में पानी की मात्रा को निर्धारित करता है। पानी की थोड़ी सी मात्रा भी तेल की डाइइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ को काफी कम कर सकती है, जिससे शॉर्ट सर्किट का खतरा बढ़ जाता है।
- इंटरफेशियल टेंशन (IFT) टेस्ट: यह परीक्षण तेल और पानी के बीच के इंटरफेशियल तनाव को मापता है। कम IFT तेल के ऑक्सीकरण उत्पादों की उपस्थिति का संकेत है।
परीक्षण का महत्व
ट्रांसफार्मर तेल परीक्षण का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह ट्रांसफार्मर की संभावित विफलताओं का पूर्वानुमान लगाने में मदद करता है। नियमित परीक्षण से यह सुनिश्चित होता है कि:
- सुरक्षा: तेल की गुणवत्ता बनाए रखकर शॉर्ट सर्किट और विस्फोट जैसे हादसों को रोका जा सकता है।
- दीर्घायु: समय पर तेल की कमी या गुणवत्ता में गिरावट का पता लगाकर, ट्रांसफार्मर का जीवन बढ़ाया जा सकता है।
- प्रदर्शन: अच्छी गुणवत्ता वाला तेल बेहतर शीतलन और इंसुलेशन प्रदान करता है, जिससे ट्रांसफार्मर की दक्षता बनी रहती है।
संक्षेप में,
ट्रांसफार्मर तेल परीक्षण निवारक रखरखाव (preventive maintenance) का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो बड़े नुकसान और लागत को रोकने में सहायक होता है।
इंसुलेटिंग पेपर का मुख्य उद्देश्य विद्युत उपकरणों में विद्युत प्रवाह को रोकना है। इसका उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि बिजली एक चालक से दूसरे में न जाए, जिससे शॉर्ट सर्किट, बिजली का रिसाव और उपकरणों को नुकसान होने से बचा जा सके।
प्रमुख उद्देश्य और गुण
इंसुलेटिंग पेपर के कई महत्वपूर्ण कार्य और गुण होते हैं:
- विद्युत रोधन (Electrical Insulation): यह इसका प्राथमिक उद्देश्य है। पेपर उच्च डाइइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ (Dielectric Strength) वाला होता है, जिसका अर्थ है कि यह बिना टूटे या खराब हुए उच्च वोल्टेज का सामना कर सकता है।
- यांत्रिक स्थायित्व (Mechanical Durability): इंसुलेटिंग पेपर अक्सर मजबूत और टिकाऊ होता है ताकि वह उपकरणों के अंदर तनाव, कंपन और अन्य यांत्रिक बलों का सामना कर सके।
- तापमान प्रतिरोध (Thermal Resistance): यह ऊष्मा को सहने की क्षमता रखता है और उच्च तापमान पर भी अपने विद्युतरोधी गुण बनाए रखता है।
- नमी प्रतिरोध (Moisture Resistance): कई प्रकार के इंसुलेटिंग पेपर को नमी को अवशोषित करने से रोकने के लिए विशेष रूप से ट्रीट किया जाता है, क्योंकि नमी इसकी डाइइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ को कम कर देती है।
अनुप्रयोग (Applications)
इंसुलेटिंग पेपर का उपयोग विभिन्न विद्युत उपकरणों में किया जाता है,
जैसे:
- ट्रांसफार्मर और कैपेसिटर: यह वाइंडिंग और कोर के बीच और वाइंडिंग की परतों के बीच इन्सुलेशन प्रदान करता है।
- मोटर्स और जनरेटर: यह मोटर वाइंडिंग में अलग-अलग कॉइल को एक दूसरे से अलग करने के लिए इस्तेमाल होता है।
- केबल्स: कुछ पावर केबल्स में, यह कंडक्टर को इन्सुलेट करने के लिए एक परत के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- इलेक्ट्रॉनिक उपकरण: छोटे सर्किट बोर्ड और घटकों में शॉर्ट सर्किट को रोकने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
ट्रांसफार्मर कोर में मैग्नेटोस्ट्रिक्शन (magnetostriction) एक ऐसा प्रभाव है जिसके कारण ट्रांसफार्मर का कोर, जो एक लौहचुंबकीय पदार्थ (ferromagnetic material) से बना होता है, चुंबकीय क्षेत्र के प्रभाव में आने पर अपनी लंबाई और आकार में थोड़ा बदलाव करता है।
इसे ऐसे समझें:
- चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव: जब ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग (winding) से प्रत्यावर्ती धारा (alternating current) बहती है, तो यह कोर के चारों ओर एक बदलता हुआ चुंबकीय क्षेत्र बनाता है।
- अणुओं का संरेखण: यह बदलता हुआ चुंबकीय क्षेत्र कोर के अंदर मौजूद चुंबकीय डोमेन (magnetic domains) को संरेखित करता है। इस संरेखण के कारण, कोर में बहुत ही सूक्ष्म, लेकिन लगातार भौतिक परिवर्तन (physical changes) होते हैं—यह फैलता और सिकुड़ता है।
- आवाज (शोर): यह बार-बार होने वाला फैलाव और संकुचन यांत्रिक कंपन (mechanical vibration) पैदा करता है। यही कंपन हवा में ध्वनि तरंगें (sound waves) बनाता है, जिसे हम ट्रांसफार्मर से आने वाली "गुनगुनाने" या "हम्मिंग" (humming) की आवाज के रूप में सुनते हैं। यह आवाज मैग्नेटोस्ट्रिक्शन के कारण होती है।
सरल शब्दों में, मैग्नेटोस्ट्रिक्शन वह प्रक्रिया है जिसमें ट्रांसफार्मर का कोर चुंबकीय क्षेत्र के कारण थोड़ा-थोड़ा हिलता या कांपता है, जिससे शोर पैदा होता है।
मैग्नेटोस्ट्रिक्शन को कम करने के उपाय
ट्रांसफार्मर के डिजाइन और निर्माण में मैग्नेटोस्ट्रिक्शन के प्रभाव को कम करने के लिए कई तरीके अपनाए जाते हैं:
- सामग्री का चयन: ऐसे सिलिकॉन स्टील (silicon steel) का उपयोग किया जाता है जिसमें मैग्नेटोस्ट्रिक्शन का स्तर कम हो।
- कोर की बनावट: कोर की बनावट को इस तरह से डिजाइन किया जाता है कि कंपन को कम किया जा सके।
- डैम्पिंग सामग्री: कोर और ट्रांसफार्मर टैंक के बीच डैम्पिंग सामग्री (damping materials) का उपयोग किया जाता है जो कंपन को अवशोषित करती है।
ट्रांसफार्मर में लोड हानि (Load loss), जिसे कॉपर हानि (Copper loss) या ताम्र हानि भी कहा जाता है, वह ऊर्जा हानि है जो ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग (कुंडलियों) में विद्युत धारा प्रवाहित होने पर होती है। यह हानि मुख्य रूप से वाइंडिंग के प्रतिरोध के कारण होती है, जो ऊर्जा को गर्मी के रूप में नष्ट कर देती है।
लोड हानि के कारण लोड हानि के दो मुख्य घटक हैं:
1. I²R हानि (I-squared-R loss) यह लोड हानि का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग से धारा (current) प्रवाहित होती है, तो वाइंडिंग के प्रतिरोध (resistance) के कारण ऊष्मा उत्पन्न होती है। यह ऊष्मा ऊर्जा का अपव्यय (dissipation) है।
इस हानि को सूत्र P = I^2R से दर्शाया जाता है,
जहाँ:
P = शक्ति हानि (Power Loss)
I = वाइंडिंग में प्रवाहित होने वाली धारा (Current)
R = वाइंडिंग का प्रतिरोध (Resistance) चूंकि यह हानि धारा के वर्ग (square) के अनुपात में होती है,
इसलिए जैसे-जैसे ट्रांसफार्मर पर लोड बढ़ता है (अर्थात, धारा बढ़ती है), लोड हानि भी तेजी से बढ़ती है।
2. आवारा हानि (Stray loss) यह हानि चुंबकीय रिसाव (magnetic leakage) के कारण होती है। जब ट्रांसफार्मर लोड पर होता है, तो वाइंडिंग में एक रिसाव प्रवाह (leakage flux) उत्पन्न होता है।
यह रिसाव प्रवाह ट्रांसफार्मर के अन्य धातु भागों (जैसे कि टैंक, क्लैंप और कोर) में भँवर धाराएँ (eddy currents) उत्पन्न करता है, जिससे गर्मी पैदा होती है। यह भी लोड हानि का एक हिस्सा है।
लोड हानि का महत्व लोड-निर्भर: लोड हानि, ट्रांसफार्मर पर पड़ने वाले भार (लोड) के साथ बदलती रहती है। जब ट्रांसफार्मर पर कोई लोड नहीं होता है, तो यह शून्य होती है, और जैसे-जैसे लोड बढ़ता है, यह बढ़ती जाती है।
दक्षता पर प्रभाव: यह ट्रांसफार्मर की दक्षता (efficiency) को सीधे प्रभावित करती है। उच्च लोड हानि का मतलब कम दक्षता और अधिक ऊर्जा का अपव्यय है।
तापमान वृद्धि: लोड हानि से उत्पन्न होने वाली गर्मी ट्रांसफार्मर के तापमान को बढ़ाती है। यदि यह गर्मी बहुत अधिक हो जाए, तो यह ट्रांसफार्मर के इंसुलेशन (विद्युतरोधी) को नुकसान पहुंचा सकती है और उसके जीवनकाल को कम कर सकती है।
ट्रांसफार्मर में नो लोड लॉस (No-load loss), जिसे कोर लॉस (Core loss) या आयरन लॉस (Iron loss) भी कहा जाता है, वह ऊर्जा हानि है जो ट्रांसफार्मर में तब होती है जब उसकी प्राथमिक वाइंडिंग को रेटेड वोल्टेज से जोड़ा जाता है, लेकिन उसकी द्वितीयक वाइंडिंग से कोई लोड (भार) जुड़ा नहीं होता है।
यह हानि ट्रांसफार्मर के कोर (लौह कोर) में होती है और ट्रांसफार्मर के लोड से पूरी तरह से स्वतंत्र होती है। दूसरे शब्दों में, जब तक ट्रांसफार्मर को बिजली से जोड़ा जाता है, यह हानि 24/7 बनी रहती है, भले ही उस पर कोई लोड हो या न हो।
नो लोड हानि के कारण
नो लोड लॉस के दो मुख्य घटक होते हैं, जो ट्रांसफार्मर के कोर के अंदर चुंबकीय क्षेत्र में होने वाली प्रक्रियाओं के कारण होते हैं:
1. हिस्टेरेसिस लॉस (Hysteresis loss)
यह हानि तब होती है जब ट्रांसफार्मर के कोर को बारी-बारी से चुंबकीय (magnetize) और विचुंबकीय (demagnetize) किया जाता है। चूंकि एसी (प्रत्यावर्ती धारा) की आवृत्ति लगातार बदलती रहती है, कोर के चुंबकीय डोमेन (magnetic domains) भी लगातार अपनी दिशा बदलते रहते हैं। इस प्रक्रिया में ऊर्जा की खपत होती है, जो गर्मी के रूप में निकलती है।
2. एड्डी करेंट लॉस (Eddy current loss)
यह हानि तब होती है जब ट्रांसफार्मर के कोर के अंदर घूमते हुए चुंबकीय क्षेत्र के कारण भँवर धाराएँ (eddy currents) उत्पन्न होती हैं। ये धाराएँ कोर के प्रतिरोध से होकर बहती हैं, जिससे ऊष्मा उत्पन्न होती है और ऊर्जा का नुकसान होता है। इस हानि को कम करने के लिए, कोर को एक ही टुकड़े के बजाय पतली-पतली, इन्सुलेटेड (विद्युतरोधी) सिलिकॉन स्टील की शीट्स (lamination) से बनाया जाता है।
इन हानियों को कम करने के लिए,
ट्रांसफार्मर निर्माता कम हिस्टेरेसिस और एडी करेंट लॉस वाली उच्च-गुणवत्ता वाली सिलिकॉन स्टील शीट्स का उपयोग करते हैं।
ट्रांसफार्मर में आवेग वोल्टेज (Impulse Voltage) एक बहुत ही कम अवधि का, उच्च-आयाम वाला वोल्टेज स्पाइक (surge) है जो बिजली प्रणालियों में अचानक होने वाली घटनाओं के कारण उत्पन्न होता है। यह एक सामान्य परिचालन वोल्टेज (normal operating voltage) नहीं होता है, बल्कि एक क्षणिक (transient) घटना है।
ये आवेग वोल्टेज आमतौर पर दो मुख्य कारणों से उत्पन्न होते हैं:
- आकाशीय बिजली (Lightning Strikes): जब बिजली ट्रांसमिशन लाइन पर गिरती है, तो यह अत्यधिक उच्च वोल्टेज का एक बहुत तेज झटका पैदा करती है जो लाइन से जुड़े ट्रांसफार्मर तक पहुंच सकता है।
- स्विचिंग सर्जेस (Switching Surges): जब बड़े सर्किट ब्रेकर या स्विच को खोला या बंद किया जाता है, तो यह विद्युत प्रणाली में अचानक वोल्टेज में उतार-चढ़ाव (oscillation) पैदा कर सकता है, जिसे स्विचिंग सर्ज कहा जाता है।
आवेग वोल्टेज का प्रभाव
आवेग वोल्टेज बहुत खतरनाक होते हैं क्योंकि वे ट्रांसफार्मर के सामान्य इंसुलेशन (विद्युतरोधी) के लिए डिजाइन किए गए वोल्टेज स्तर से कहीं अधिक होते हैं। ये क्षणिक झटके ट्रांसफार्मर के अंदरूनी हिस्सों, जैसे कि वाइंडिंग के इन्सुलेशन को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे शॉर्ट सर्किट और ट्रांसफार्मर की विफलता हो सकती है।
आवेग वोल्टेज परीक्षण
ट्रांसफार्मर को इन खतरों से बचाने के लिए, निर्माता आवेग वोल्टेज परीक्षण (Impulse Voltage Test) करते हैं। इस परीक्षण में, एक विशेष जनरेटर का उपयोग करके ट्रांसफार्मर पर नियंत्रित और मानकीकृत आवेग वोल्टेज लागू किया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ट्रांसफार्मर का इंसुलेशन आकाशीय बिजली और स्विचिंग सर्जेस का सफलतापूर्वक सामना कर सकता है।
यह परीक्षण एक महत्वपूर्ण गुणवत्ता नियंत्रण उपाय है जो यह सुनिश्चित करता है कि ट्रांसफार्मर कठिन परिचालन स्थितियों में भी सुरक्षित और विश्वसनीय बना रहे।
सहायक/तृतीयक वाइंडिंग (Tertiary Winding) का कार्य मुख्य रूप से ट्रांसफार्मर की दक्षता और स्थिरता को बढ़ाना है। यह वाइंडिंग प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग के अतिरिक्त होती है और कई महत्वपूर्ण कार्य करती है।
मुख्य कार्य
1. संतुलन और हार्मोनिक नियंत्रण
यह वाइंडिंग डेल्टा (Delta) कनेक्शन में जुड़ी होती है, जो तीन-चरण (three-phase) ट्रांसफार्मर में हार्मोनिक धाराओं (जैसे कि तीसरी हार्मोनिक धारा) के प्रवाह के लिए एक रास्ता प्रदान करती है। ऐसा करने से ये हार्मोनिक्स मुख्य वाइंडिंग और सिस्टम में नहीं फैलते, जिससे वोल्टेज तरंगरूप (waveform) विकृत होने से बचता है। यह सिस्टम के संतुलन को बनाए रखने में भी मदद करता है।
2. बाहरी भार को जोड़ने के लिए
तृतीयक वाइंडिंग का उपयोग ट्रांसफार्मर पर एक अतिरिक्त, कम वोल्टेज वाले भार को जोड़ने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यह सबस्टेशन में उपकरणों को बिजली देने के लिए या नियंत्रण सर्किट को आपूर्ति प्रदान करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
3. ग्राउंड फॉल्ट प्रोटेक्शन
कुछ मामलों में, तृतीयक वाइंडिंग का उपयोग ग्राउंड फॉल्ट की स्थिति में ट्रांसफार्मर को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है। जब कोई फॉल्ट होता है, तो यह वाइंडिंग फॉल्ट करंट को प्रवाहित करने के लिए एक कम प्रतिबाधा (low-impedance) पथ प्रदान करती है, जिससे सुरक्षा रिले (relays) सक्रिय हो जाते हैं और सर्किट को काट दिया जाता है।
4. वोल्टेज रेगुलेशन
यह ट्रांसफार्मर के वोल्टेज रेगुलेशन में सुधार करने में भी मदद कर सकता है, खासकर जब प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग के बीच पावर फैक्टर का अंतर अधिक हो।
संक्षेप में,
तृतीयक वाइंडिंग केवल एक अतिरिक्त वाइंडिंग नहीं है, बल्कि यह ट्रांसफार्मर के प्रदर्शन को बढ़ाने, वोल्टेज की गुणवत्ता में सुधार करने और सुरक्षा प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण घटक है।
शॉर्ट सर्किट विथस्टैंड टेस्ट, जिसे शॉर्ट-सर्किट टेस्ट भी कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण परीक्षण है जो यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि एक ट्रांसफार्मर या अन्य विद्युत उपकरण शॉर्ट सर्किट की स्थिति में होने वाले भारी यांत्रिक और थर्मल तनावों का सामना कर सकता है। यह टेस्ट उपकरण की मजबूती और विश्वसनीयता का मूल्यांकन करता है।
टेस्ट की प्रक्रिया
यह परीक्षण दो मुख्य भागों में किया जाता है:
1. यांत्रिक तनाव (Mechanical Stress)
जब एक शॉर्ट सर्किट होता है, तो वाइंडिंग में बहुत अधिक मात्रा में धारा प्रवाहित होती है। इस उच्च धारा के कारण, वाइंडिंग में शक्तिशाली चुंबकीय बल उत्पन्न होते हैं। ये बल वाइंडिंग को एक दूसरे से दूर या पास धकेलते हैं, जिससे वाइंडिंग और उनके सपोर्ट सिस्टम पर भारी यांत्रिक तनाव पड़ता है।
परीक्षण के दौरान, ट्रांसफार्मर को जानबूझकर रेटेड शॉर्ट सर्किट धारा के अधीन किया जाता है। इससे यह देखा जाता है कि वाइंडिंग, सपोर्ट और कोर को कोई स्थायी विरूपण (deformation) या क्षति तो नहीं होती।
2. थर्मल तनाव (Thermal Stress)
शॉर्ट सर्किट के दौरान अत्यधिक धारा प्रवाहित होने से वाइंडिंग में तापमान तेजी से बढ़ता है। यह ऊष्मा वाइंडिंग के इंसुलेशन (विद्युतरोधी सामग्री) को नुकसान पहुंचा सकती है।
परीक्षण में यह सुनिश्चित किया जाता है कि वाइंडिंग का तापमान उस स्तर तक नहीं पहुंचता है जो इंसुलेशन को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचाए।
उद्देश्य और महत्व
- सुरक्षा और विश्वसनीयता: इस टेस्ट का मुख्य उद्देश्य यह प्रमाणित करना है कि ट्रांसफार्मर एक वास्तविक शॉर्ट सर्किट की घटना में सुरक्षित रूप से काम कर सकता है और विफल नहीं होगा।
- डिजाइन सत्यापन: यह निर्माताओं को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि ट्रांसफार्मर का डिजाइन और निर्माण, जिसमें वाइंडिंग और सपोर्ट स्ट्रक्चर शामिल हैं, सभी आवश्यक मानकों को पूरा करता है।
- क्षमता का आकलन: यह बताता है कि ट्रांसफार्मर बिना किसी स्थायी नुकसान के कितने समय तक एक निर्दिष्ट शॉर्ट सर्किट करंट का सामना कर सकता है।
संक्षेप में,
शॉर्ट सर्किट विथस्टैंड टेस्ट एक निवारक माप है जो संभावित विफलता को रोकता है और ट्रांसफार्मर की लंबी अवधि की सुरक्षा और प्रदर्शन की गारंटी देता है।
ट्रांसफार्मर में सुरक्षा विशेषताएँ ऐसे उपकरण और प्रणालियाँ हैं जो ट्रांसफार्मर को ओवरलोड, शॉर्ट सर्किट, आंतरिक दोषों और अन्य असामान्य परिस्थितियों से बचाती हैं। ये विशेषताएँ ट्रांसफार्मर के सुरक्षित और विश्वसनीय संचालन को सुनिश्चित करती हैं।
प्रमुख सुरक्षा विशेषताएँ
1. बुचोल्ज़ रिले (Buchholz Relay)
यह ट्रांसफार्मर में सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरणों में से एक है। यह गैस से चलने वाला एक रिले है जो ट्रांसफार्मर के टैंक और कंज़र्वेटर के बीच स्थापित होता है। जब ट्रांसफार्मर में कोई आंतरिक दोष (जैसे कि वाइंडिंग शॉर्ट सर्किट या कोर दोष) होता है, तो उत्पन्न होने वाली गैस और तेल के अचानक प्रवाह को यह रिले महसूस करता है। बुचोल्ज़ रिले पहले अलार्म बजाता है और यदि स्थिति गंभीर होती है तो ट्रांसफार्मर को बंद कर देता है।
2. प्रेशर रिलीफ वाल्व (Pressure Relief Valve)
यह वाल्व ट्रांसफार्मर के टैंक के ऊपरी हिस्से पर लगा होता है। जब ट्रांसफार्मर के अंदर कोई गंभीर दोष होता है, तो तेल और गैस के अत्यधिक दबाव को यह वाल्व तुरंत बाहर छोड़ देता है। यह टैंक को फटने से रोकता है और संभावित विस्फोट के जोखिम को कम करता है।
3. तापमान संकेतक (Temperature Indicators)
- वाइंडिंग तापमान संकेतक (Winding Temperature Indicator - WTI): यह ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग के तापमान को मापता है।
- तेल तापमान संकेतक (Oil Temperature Indicator - OTI): यह ट्रांसफार्मर के तेल के ऊपरी हिस्से के तापमान को मापता है।
ये दोनों संकेतक एक निश्चित तापमान सीमा से ऊपर जाने पर अलार्म बजाते हैं और यदि तापमान और बढ़ जाता है तो ट्रांसफार्मर को बंद कर देते हैं।
4. तेल स्तर संकेतक (Oil Level Indicator)
यह कंज़र्वेटर टैंक पर लगा होता है और ट्रांसफार्मर के तेल का स्तर दर्शाता है। यदि तेल का स्तर बहुत कम हो जाता है तो यह एक अलार्म भेजता है, क्योंकि कम तेल स्तर से ट्रांसफार्मर की कूलिंग और इंसुलेशन क्षमता प्रभावित होती है।
5. स्वतः-नियंत्रक (Automatic Control)
आधुनिक ट्रांसफार्मर में कूलिंग फैन और पंप के लिए स्वचालित नियंत्रण होते हैं। ये तापमान के अनुसार चालू और बंद होते हैं ताकि तापमान को एक सुरक्षित सीमा के भीतर रखा जा सके।
6. डिफरेंशियल प्रोटेक्शन (Differential Protection)
यह एक उच्च-संवेदनशील सुरक्षा योजना है जो ट्रांसफार्मर की प्राथमिक और द्वितीयक वाइंडिंग के बीच धारा के अंतर को मापकर आंतरिक दोषों का पता लगाती है। यदि कोई अंतर पाया जाता है, तो यह तुरंत ट्रांसफार्मर को बंद कर देता है।
ये सुरक्षा विशेषताएँ सामूहिक रूप से ट्रांसफार्मर की रक्षा करती हैं और इसकी लंबी आयु सुनिश्चित करती हैं।
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