विद्युत मशीन ( Electrical machine ) Induction Motor

विद्युत मशीन (Electrical machine) एक ऐसा उपकरण है जो यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) और विद्युत ऊर्जा (electrical energy) के बीच ऊर्जा रूपांतरण (energy conversion) का कार्य करता है। यह या तो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है या इसके विपरीत।

मुख्य प्रकार (Main Types)

​विद्युत मशीनों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:

​1. मोटर (Motor) 

  • परिभाषा: एक मोटर एक विद्युत मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती है। इसका उपयोग विभिन्न उपकरणों को चलाने के लिए किया जाता है, जैसे पंखे, पंप, और इलेक्ट्रिक वाहन।
  • कार्य सिद्धांत: यह विद्युत चुम्बकत्व (electromagnetism) के सिद्धांत पर काम करता है, जहाँ एक चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) में रखे गए विद्युत धारा (electric current) से प्रवाहित कंडक्टर (conductor) पर एक बल (force) लगता है, जिससे घूर्णन (rotation) होता है।

​2. जनरेटर (Generator) 

  • परिभाषा: एक जनरेटर एक विद्युत मशीन है जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलती है। इसका उपयोग बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है।
  • कार्य सिद्धांत: यह फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Faraday's law of electromagnetic induction) के सिद्धांत पर काम करता है, जहाँ एक चुंबकीय क्षेत्र के भीतर एक चालक (conductor) के घूमने से उसमें विद्युत धारा प्रेरित (induced) होती है।

अन्य प्रकार (Other Types)

​इनके अलावा, एक और महत्वपूर्ण प्रकार है:

ट्रांसफॉर्मर (Transformer) 

  • परिभाषा: ट्रांसफॉर्मर एक स्थिर (static) विद्युत उपकरण है जो विद्युत ऊर्जा को एक परिपथ से दूसरे परिपथ में स्थानांतरित (transfer) करता है, बिना आवृत्ति (frequency) को बदले।
  • कार्य सिद्धांत: यह पारस्परिक प्रेरण (mutual induction) के सिद्धांत पर काम करता है और मुख्य रूप से वोल्टेज को बढ़ाने या घटाने (step up or step down) के लिए उपयोग किया जाता है।

​इन सभी मशीनों का आधार विद्युत चुंबकत्व का सिद्धांत है, जो उन्हें हमारे आधुनिक जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है।



तीन चरण प्रेरण मोटर (Three-phase induction motor) एक प्रकार की एसी (AC) विद्युत मशीन है जो विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलती है। इसे "प्रेरण" मोटर इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका रोटर (घूमने वाला हिस्सा) विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर काम करता है। यह मोटर उद्योग में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली मोटर है क्योंकि यह विश्वसनीय, मजबूत और किफायती होती है।

 इसे अक्सर उद्योगों का घोड़ा (workhorse of industries) भी कहा जाता है।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​तीन चरण प्रेरण मोटर का कार्य सिद्धांत फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम पर आधारित है।  जब मोटर के स्टेटर (स्थिर भाग) को तीन चरण एसी विद्युत आपूर्ति से जोड़ा जाता है, तो स्टेटर वाइंडिंग में एक घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र (rotating magnetic field) उत्पन्न होता है। यह घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र रोटर के चालकों को काटता है, जिससे रोटर में एक विद्युत धारा (electric current) प्रेरित होती है। यह प्रेरित धारा एक चुंबकीय क्षेत्र बनाती है जो स्टेटर के घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र के साथ प्रतिक्रिया करती है। इस प्रतिक्रिया के कारण रोटर पर एक बल (force) और बलाघूर्ण (torque) लगता है, जिससे रोटर घूमना शुरू कर देता है।

मुख्य अनुप्रयोग (Major Applications)

​तीन चरण प्रेरण मोटर का उपयोग उन जगहों पर होता है जहाँ स्थिर गति और उच्च टॉर्क की आवश्यकता होती है। इसके कुछ प्रमुख अनुप्रयोग इस प्रकार हैं:

  • ​पंप और कंप्रेसर
  • ​कन्वेयर बेल्ट और लिफ्ट
  • ​फैक्ट्री में मशीनें और औद्योगिक ड्राइव
  • ​फैन और ब्लोअर

​यह मोटर अपनी सरल संरचना, कम लागत और उच्च दक्षता के कारण विभिन्न औद्योगिक और वाणिज्यिक अनुप्रयोगों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।



तीन चरण प्रेरण मोटर के मुख्य भाग दो होते हैं:

स्टेटर (Stator) और रोटर (Rotor)

स्टेटर (Stator): यह मोटर का स्थिर (static) भाग होता है।  इसमें एक खोखली बेलनाकार कोर होती है जिसमें स्लॉट (slots) बने होते हैं। इन स्लॉट्स में तीन-चरण वाइंडिंग (winding) डाली जाती है, जिसे जब एसी (AC) आपूर्ति दी जाती है, तो एक घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र (rotating magnetic field) उत्पन्न होता है। स्टेटर के बाहरी हिस्से को फ्रेम (frame) या योक कहा जाता है, जो पूरे मोटर को सहारा और यांत्रिक सुरक्षा प्रदान करता है।

रोटर (Rotor): यह मोटर का घूमने वाला (rotating) भाग होता है।  यह शाफ्ट (shaft) से जुड़ा होता है और स्टेटर के चुंबकीय क्षेत्र के भीतर घूमता है। रोटर दो प्रकार के होते हैं:

  1. स्क्विरल केज रोटर (Squirrel-cage rotor): यह सबसे सामान्य प्रकार है। इसमें तांबे या एल्यूमीनियम के सीधे या तिरछे चालक (conductors) होते हैं जो सिरों पर एक रिंग (end rings) से जुड़े होते हैं। इसकी संरचना गिलहरी के पिंजरे (squirrel cage) जैसी होती है।
  2. स्लिप-रिंग या वाउंड रोटर (Slip-ring or wound rotor): इसमें रोटर वाइंडिंग होती है जो बाहरी प्रतिरोधकों (external resistors) से स्लिप रिंग्स और ब्रशेस के माध्यम से जुड़ी होती है। इसका उपयोग उन अनुप्रयोगों में होता है जहाँ शुरुआती टॉर्क (starting torque) को नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है।

इन मुख्य भागों के अलावा, मोटर में कुछ और हिस्से भी होते हैं जैसे:

  • शाफ्ट (Shaft): जिस पर रोटर लगा होता है और यह यांत्रिक शक्ति को बाहर भेजता है।
  • बियरिंग्स (Bearings): जो रोटर के घूर्णन को सुचारू बनाते हैं।
  • कूलिंग फैन (Cooling fan): जो मोटर को ठंडा रखने में मदद करता है।
  • टर्मिनल बॉक्स (Terminal box): जहाँ विद्युत आपूर्ति के तार जोड़े जाते हैं।



तीन चरण प्रेरण मोटर का कार्य सिद्धांत विद्युत चुम्बकीय प्रेरण पर आधारित है।

यह कई चरणों में काम करता है:

1. घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र (Rotating Magnetic Field - RMF) का निर्माण ​जब मोटर के स्टेटर को तीन चरण एसी (AC) आपूर्ति दी जाती है, तो स्टेटर वाइंडिंग में एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है।

चूँकि तीनों धाराएं एक दूसरे से 120° के कलांतर (phase difference) पर होती हैं, इसलिए उत्पन्न होने वाला चुंबकीय क्षेत्र स्थिर नहीं होता, बल्कि एक निश्चित गति पर घूमता है। इस घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र को तुल्यकालिक गति (synchronous speed) कहते हैं, 

जिसकी गणना इस सूत्र से की जाती है: N_s = 120f/P 

जहाँ f आपूर्ति की आवृत्ति (frequency) है और 

P ध्रुवों (poles) की संख्या है। ​

2. रोटर में विद्युत धारा का प्रेरण ​घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र रोटर के चालकों को काटता है।

 फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम के अनुसार, जब एक चालक किसी चुंबकीय क्षेत्र को काटता है, तो उसमें एक विद्युत वाहक बल (electromotive force - EMF) उत्पन्न होता है। चूँकि रोटर के चालक शॉर्ट-सर्किटेड होते हैं, इसलिए इस EMF के कारण रोटर में एक विद्युत धारा (current) प्रवाहित होने लगती है। ​

3. टॉर्क का निर्माण और रोटर का घूर्णन ​अब रोटर में विद्युत धारा प्रवाहित हो रही है और यह स्टेटर के चुंबकीय क्षेत्र में स्थित है। 

इस स्थिति में, रोटर पर एक बल लगता है, जिससे एक घूर्णन बल या टॉर्क (torque) उत्पन्न होता है। यह टॉर्क रोटर को घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र की दिशा में घूमने के लिए मजबूर करता है। ​

4. स्लिप (Slip) ​रोटर उसी दिशा में घूमता है जिस दिशा में घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र घूम रहा है, 

लेकिन इसकी गति हमेशा तुल्यकालिक गति से कम होती है। यदि रोटर की गति तुल्यकालिक गति के बराबर हो जाती है, तो रोटर और चुंबकीय क्षेत्र के बीच कोई सापेक्ष गति (relative motion) नहीं होगी। इस स्थिति में, रोटर में कोई EMF प्रेरित नहीं होगा और इसलिए कोई टॉर्क उत्पन्न नहीं होगा, जिससे मोटर रुक जाएगी। इसलिए, रोटर की गति हमेशा तुल्यकालिक गति से थोड़ी कम होती है। इस अंतर को स्लिप कहा जाता है। 

सारांश में: 

स्टेटर का घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र रोटर में धारा प्रेरित करता है, जो स्वयं एक चुंबकीय क्षेत्र बनाता है, और इन दोनों क्षेत्रों की परस्पर क्रिया से टॉर्क उत्पन्न होता है, जिससे रोटर घूमता है। ​




स्लिप (slip) से मतलब है कि एक इंडक्शन मोटर (प्रेरण मोटर) में रोटर (घूमने वाला हिस्सा) की गति, सिंक्रोनस स्पीड (synchronous speed) की तुलना में कितनी धीमी है। सिंक्रोनस स्पीड वह गति है जिस पर मोटर का चुंबकीय क्षेत्र घूमता है।

​यह क्यों महत्वपूर्ण है, इसके कुछ कारण यहां दिए गए हैं:

  • टॉर्क (Torque) पैदा करने के लिए: एक इंडक्शन मोटर को टॉर्क पैदा करने के लिए स्लिप की ज़रूरत होती है। जब रोटर की गति चुंबकीय क्षेत्र की गति से थोड़ी कम होती है, तो रोटर के कंडक्टर (चालक) घूमने वाले चुंबकीय क्षेत्र को काटते हैं। इससे रोटर में करंट पैदा होता है, जो मोटर को घुमाने के लिए ज़रूरी टॉर्क पैदा करता है। अगर स्लिप शून्य हो जाए (यानी, रोटर और चुंबकीय क्षेत्र एक ही गति पर घूमें), तो कोई करंट पैदा नहीं होगा और मोटर कोई टॉर्क नहीं दे पाएगी।
  • दक्षता (Efficiency) और नियंत्रण के लिए: स्लिप मोटर की दक्षता और इसके व्यवहार को दर्शाती है। मोटर की ज़्यादातर ऑपरेटिंग रेंज में, टॉर्क स्लिप के लगभग आनुपातिक (proportional) होता है। स्लिप को कंट्रोल करके, आप मोटर की गति और आउटपुट को नियंत्रित कर सकते हैं।

संक्षेप में, 

स्लिप एक इंडक्शन मोटर की काम करने की क्षमता का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह हमें बताता है कि मोटर कितनी तेज़ी से घूम रही है और यह मोटर के टॉर्क और दक्षता जैसे महत्वपूर्ण गुणों को सीधे प्रभावित करता है।



तीन चरण (three phase) प्रेरण मोटर को मुख्य रूप से उनके रोटर के निर्माण के आधार पर दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है: 

1. गिलहरी-पिंजरा प्रेरण मोटर (Squirrel-Cage Induction Motor)

​यह सबसे सामान्य प्रकार की तीन चरण मोटर है। इसका रोटर एक पिंजरे जैसा दिखता है, जिसमें मोटी तांबे या एल्यूमीनियम की छड़ें होती हैं जो दोनों तरफ से एंड-रिंग्स से शॉर्ट-सर्किट होती हैं।

  • विशेषताएँ:
    • सरल और मजबूत निर्माण: इसमें कोई स्लिप रिंग या ब्रश नहीं होते हैं, जिससे रखरखाव कम होता है।
    • लागत-प्रभावी: निर्माण में आसानी के कारण यह मोटर सस्ती होती है।
    • उच्च दक्षता: सामान्यतः इसकी दक्षता काफी अच्छी होती है।
  • नुकसान: इसका स्टार्टिंग टॉर्क कम होता है और गति को नियंत्रित करना मुश्किल होता है।

2. स्लिप-रिंग प्रेरण मोटर (Slip-Ring Induction Motor)

​इस मोटर का रोटर फेज-वाउंड (phase-wound) होता है। रोटर वाइंडिंग के सिरे स्लिप रिंग के माध्यम से बाहर लाए जाते हैं, जिससे बाहरी प्रतिरोध (resistance) जोड़ा जा सकता है।

  • विशेषताएँ:
    • उच्च स्टार्टिंग टॉर्क: बाहरी प्रतिरोध जोड़कर स्टार्टिंग टॉर्क को बढ़ाया जा सकता है।
    • गति नियंत्रण: बाहरी प्रतिरोध को बदलकर मोटर की गति को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • नुकसान: इसका निर्माण जटिल होता है, इसमें स्लिप रिंग और ब्रश होते हैं, जिससे इसका रखरखाव अधिक होता है और यह महंगी होती है।

दोनों प्रकार की मोटरों के स्टेटर की बनावट समान होती है, लेकिन उनके रोटर की बनावट में अंतर होता है। 


तुल्यकालिक गति (Synchronous Speed) एक प्रेरण (इंडक्शन) मोटर के स्टेटर में घूमने वाले चुंबकीय क्षेत्र (rotating magnetic field) की गति है। 

यह वह सैद्धांतिक गति है जिस पर एक आदर्श मोटर चलती है, लेकिन व्यवहार में, प्रेरण मोटर का रोटर इस गति से थोड़ा कम गति पर घूमता है, जिसे स्लिप (slip) कहा जाता है। ​गणना ​तुल्यकालिक गति की गणना एक साधारण सूत्र से की जा सकती है: Ns = 120×f/P

जहाँ: ​

Ns = तुल्यकालिक गति (RPM में) 

f = विद्युत आपूर्ति की आवृत्ति (हर्ट्ज में) 

P = मोटर में ध्रुवों (poles) की संख्या 

उदाहरण के लिए, 50 Hz की आवृत्ति और 4 ध्रुवों वाली मोटर के लिए तुल्यकालिक गति होगी:

Ns = 120×50/4 = 1500 RPM 

​महत्व ​तुल्यकालिक गति कई कारणों से महत्वपूर्ण है: ​

मोटर के संचालन का आधार: यह वह गति है जो मोटर के अंदर चुंबकीय क्षेत्र पैदा करती है, और इसी चुंबकीय क्षेत्र के कारण रोटर घूमता है। ​

स्लिप की गणना: स्लिप की गणना करने के लिए तुल्यकालिक गति का उपयोग किया जाता है, जो मोटर के प्रदर्शन को समझने में एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है। ​

गति नियंत्रण: मोटर की गति को नियंत्रित करने के लिए आवृत्ति (f) या ध्रुवों की संख्या (P) को बदला जाता है, जो सीधे तुल्यकालिक गति को प्रभावित करते हैं। ​

प्रेरण बनाम तुल्यकालिक मोटर: तुल्यकालिक मोटर में, रोटर बिल्कुल तुल्यकालिक गति पर घूमता है, जबकि प्रेरण मोटर में रोटर हमेशा तुल्यकालिक गति से कम गति पर घूमता है। ​



सिंक्रोनस मोटर (synchronous motor) और इंडक्शन मोटर (induction motor) दोनों एसी मोटर हैं, लेकिन उनके काम करने के तरीके और गुणों में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं।

काम करने का सिद्धांत

  • सिंक्रोनस मोटर: यह मोटर चुंबकीय लॉकिंग के सिद्धांत पर काम करती है। स्टेटर का घूमने वाला चुंबकीय क्षेत्र, रोटर के चुंबकीय क्षेत्र को अपनी ओर खींचता है और दोनों एक साथ सिंक्रोनस गति पर घूमते हैं।
  • इंडक्शन मोटर: यह विद्युतचुंबकीय प्रेरण (electromagnetic induction) के सिद्धांत पर काम करती है। स्टेटर का चुंबकीय क्षेत्र रोटर के कंडक्टरों में करंट पैदा करता है, जिससे रोटर में एक चुंबकीय क्षेत्र बनता है। यह दोनों चुंबकीय क्षेत्रों की परस्पर क्रिया के कारण रोटर घूमता है।

गति

  • सिंक्रोनस मोटर: यह मोटर हमेशा तुल्यकालिक गति (synchronous speed) पर चलती है, जो लोड बदलने पर भी स्थिर रहती है। इसकी गति केवल आपूर्ति आवृत्ति और ध्रुवों की संख्या पर निर्भर करती है।
  • इंडक्शन मोटर: इसकी गति हमेशा तुल्यकालिक गति से थोड़ी कम होती है। इस अंतर को स्लिप (slip) कहते हैं। जब लोड बढ़ता है, तो स्लिप भी बढ़ती है और मोटर की गति थोड़ी कम हो जाती है


तीन चरण प्रेरण मोटर के कई लाभ हैं, यही कारण है कि वे औद्योगिक और वाणिज्यिक अनुप्रयोगों में सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाली मोटर हैं।

प्रमुख लाभ

  1. स्व-चालन (Self-Starting): तीन चरण प्रेरण मोटरें स्वाभाविक रूप से स्व-चालन (self-starting) होती हैं, क्योंकि तीन-चरण विद्युत आपूर्ति एक घूर्णन चुंबकीय क्षेत्र (rotating magnetic field) बनाती है। इसके लिए किसी अतिरिक्त शुरुआती तंत्र (जैसे कैपेसिटर या अलग वाइंडिंग) की आवश्यकता नहीं होती है।
  2. सरल और मजबूत संरचना: विशेष रूप से गिलहरी-पिंजरा (squirrel-cage) प्रेरण मोटरें बहुत सरल और मजबूत होती हैं। इनमें कोई ब्रश, स्लिप रिंग, या कम्यूटेटर नहीं होता है, जिससे ये कम खराब होती हैं और इनका जीवनकाल लंबा होता है।
  3. कम रखरखाव: अपनी सरल और टिकाऊ संरचना के कारण, इन मोटरों को बहुत कम रखरखाव की आवश्यकता होती है। इनमें पहनने वाले हिस्से कम होते हैं, जिससे रखरखाव का खर्च कम होता है।
  4. उच्च दक्षता: ये मोटरें अन्य प्रकार की मोटरों की तुलना में, विशेष रूप से उच्च हॉर्सपावर रेटिंग पर, अधिक कुशल होती हैं। वे कम ऊर्जा का उपयोग करके अधिक यांत्रिक शक्ति प्रदान करती हैं, जिससे परिचालन लागत कम होती है।
  5. लागत प्रभावी: इनका निर्माण सरल होने के कारण, ये मोटरें तुल्यकालिक और डीसी मोटरों की तुलना में सस्ती होती हैं।
  6. विश्वसनीयता और स्थायित्व: ये मोटरें अपनी विश्वसनीयता और स्थायित्व के लिए जानी जाती हैं। वे विभिन्न औद्योगिक वातावरणों में विश्वसनीय ढंग से काम कर सकती हैं, और भारी भार को आसानी से संभाल सकती हैं।



तीन चरण प्रेरण मोटर के कुछ मुख्य नुकसान हैं:

कम स्टार्टिंग टॉर्क: गिलहरी-पिंजरा (squirrel-cage) प्रेरण मोटरों में स्टार्टिंग टॉर्क (startup torque) कम होता है। इसके अलावा, स्टार्ट करते समय ये मोटरें बहुत अधिक करंट (inrush current) लेती हैं, जो रेटेड करंट से 4 से 8 गुना तक अधिक हो सकता है। यह समस्या विशेष रूप से उन अनुप्रयोगों में होती है जहाँ मोटर को भारी लोड के साथ शुरू करना होता है।

कम पावर फैक्टर: सामान्यतः, ये मोटरें लैगिंग पावर फैक्टर (lagging power factor) पर काम करती हैं। जब मोटर पर लोड कम होता है, तो पावर फैक्टर बहुत खराब हो जाता है (0.3 से 0.5 तक)। यह कम पावर फैक्टर प्रणाली की समग्र दक्षता को प्रभावित करता है।

गति नियंत्रण में कठिनाई: प्रेरण मोटर की गति को नियंत्रित करना जटिल होता है, क्योंकि इसकी गति मुख्य रूप से आपूर्ति की आवृत्ति और ध्रुवों की संख्या पर निर्भर करती है। इसकी गति को दक्षता में कमी लाए बिना बदलना मुश्किल है।

वोल्टेज उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशीलता: मोटर का प्रदर्शन वोल्टेज में बदलाव के प्रति संवेदनशील होता है। यदि वोल्टेज कम हो जाता है, तो मोटर को समान लोड को संभालने के लिए अधिक करंट लेना पड़ता है, जिससे मोटर गर्म हो सकती है और उसकी लाइफ कम हो सकती है।

 उच्च हानि (Losses): प्रेरण मोटरों में कुछ आंतरिक हानियाँ होती हैं जैसे कि कोर हानि (core losses), कॉपर हानि (copper losses), और यांत्रिक हानि (mechanical losses), जो मोटर की दक्षता को कम करती हैं।



तीन फेज़ इंडक्शन मोटर्स का उपयोग मुख्य रूप से भारी औद्योगिक कार्यों के लिए किया जाता है क्योंकि वे उच्च दक्षता और विश्वसनीयता प्रदान करते हैं। इन मोटरों को अक्सर "उद्योगों का वर्कहॉर्स" कहा जाता है।

प्रमुख अनुप्रयोग

  • औद्योगिक मशीनरी: तीन फेज़ इंडक्शन मोटर्स का उपयोग विभिन्न प्रकार की मशीनरी को चलाने के लिए किया जाता है, जैसे:
    • पंप और कंप्रेसर: पानी की आपूर्ति प्रणाली, सिंचाई, और औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए।
    • कन्वेयर बेल्ट: सामग्री को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए।
    • क्रेन और होइस्ट: भारी वस्तुओं को उठाने और स्थानांतरित करने के लिए।
    • मशीन टूल्स: जैसे लेथ (lathe), ग्राइंडर (grinder) और मिलिंग मशीन (milling machine)।
  • एचवीएसी (HVAC) सिस्टम: ये मोटरें बड़े-बड़े वेंटिलेशन (ventilation), हीटिंग (heating), और एयर कंडीशनिंग (air conditioning) सिस्टम में पंखे और ब्लोअर चलाने के लिए उपयोग में लाई जाती हैं।
  • कृषि उपकरण: कृषि में इन मोटरों का उपयोग ट्रैक्टर, थ्रेशर (threshers), और प्लॉ (plows) जैसी मशीनों को चलाने के लिए होता है।
  • विद्युत उत्पादन: बिजली संयंत्रों में जनरेटर को चलाने के लिए भी इनका उपयोग किया जाता है, जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलते हैं।


गिलहरी पिंजरे (squirrel cage) और स्लिप रिंग (slip ring) प्रेरण मोटर के बीच का मुख्य अंतर उनके रोटर की बनावट और प्रदर्शन में होता है।  दोनों ही प्रकार की मोटर्स तीन फेज़ इंडक्शन मोटर के प्रकार हैं, लेकिन उनके अलग-अलग अनुप्रयोग होते हैं।

गिलहरी पिंजरे प्रेरण मोटर (Squirrel Cage Induction Motor)

​यह सबसे आम और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली प्रेरण मोटर है।

  • बनावट: इसका रोटर एक पिंजरे की तरह दिखता है, जिसमें मोटी तांबे या एल्यूमीनियम की छड़ें होती हैं जो दोनों सिरों पर रिंग से स्थायी रूप से शॉर्ट-सर्किट होती हैं।
  • प्रदर्शन:
    • लागत: इनकी बनावट सरल होती है, जिससे ये सस्ती होती हैं।
    • रखरखाव: इसमें कोई स्लिप रिंग या ब्रश नहीं होता है, जिससे रखरखाव की आवश्यकता बहुत कम होती है।
    • टॉर्क (Torque): स्टार्टिंग टॉर्क कम होता है और इसे बदला नहीं जा सकता।
    • गति नियंत्रण: गति को नियंत्रित करना मुश्किल होता है क्योंकि रोटर का प्रतिरोध निश्चित होता है।

स्लिप रिंग प्रेरण मोटर (Slip Ring Induction Motor)

​इस मोटर का उपयोग उन अनुप्रयोगों में होता है जहाँ उच्च स्टार्टिंग टॉर्क और गति नियंत्रण की आवश्यकता होती है।

  • बनावट: इसका रोटर तीन-फेज़ वाइंडिंग से बना होता है, जिसके सिरे स्लिप रिंग और कार्बन ब्रश के माध्यम से बाहरी प्रतिरोध से जुड़े होते हैं।
  • प्रदर्शन:
    • लागत: गिलहरी पिंजरे मोटर की तुलना में यह महंगी होती है।
    • रखरखाव: स्लिप रिंग और ब्रश होने के कारण अधिक रखरखाव की आवश्यकता होती है।
    • टॉर्क (Torque): बाहरी प्रतिरोध को जोड़कर स्टार्टिंग टॉर्क को नियंत्रित और बढ़ाया जा सकता है।
    • गति नियंत्रण: बाहरी प्रतिरोध को बदलकर गति को नियंत्रित किया जा सकता है।

​इन दोनों मोटरों के बीच चुनाव इस बात पर निर्भर करता है कि आपके अनुप्रयोग के लिए लागत, रखरखाव, स्टार्टिंग टॉर्क, और गति नियंत्रण में से कौन सी विशेषता अधिक महत्वपूर्ण है।


तीन चरण प्रेरण मोटर पर मुख्य रूप से दो प्रकार के परीक्षण किए जाते हैं: 

प्रत्यक्ष परीक्षण (direct test) और 

अप्रत्यक्ष परीक्षण (indirect test)।

इनमें से अप्रत्यक्ष परीक्षण अधिक सामान्य हैं क्योंकि वे कम समय में और मोटर को नुकसान पहुँचाए बिना महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करते हैं। ​

अप्रत्यक्ष परीक्षण (Indirect Tests) ​ये परीक्षण मोटर के दक्षता (efficiency), हानियों (losses), और 

समकक्ष परिपथ मापदंडों (equivalent circuit parameters) को निर्धारित करने के लिए किए जाते हैं। ​

कोई भार परीक्षण नहीं (No-Load Test): यह परीक्षण मोटर को बिना किसी यांत्रिक भार के चलाकर किया जाता है। 

इससे मोटर की लोहे की हानि (core losses), घर्षण (friction) और 

हवा के प्रतिरोध (windage losses) की गणना की जाती है। इस परीक्षण में, मोटर अपनी सामान्य गति के बहुत करीब चलती है। ​

अवरुद्ध रोटर परीक्षण (Blocked Rotor Test): इस परीक्षण में, मोटर के रोटर को स्थिर रखा जाता है। इसके लिए, मोटर के स्टेटर में कम वोल्टेज लगाया जाता है ताकि रेटेड (rated) करंट बह सके। 

यह परीक्षण मोटर की पूर्ण भार (full-load) कॉपर हानि और लीकेज रिएक्टेंस (leakage reactance) को निर्धारित करने में मदद करता है। 

स्टेटर वाइंडिंग प्रतिरोध परीक्षण (Stator Winding Resistance Test): इस परीक्षण में, मोटर के स्टेटर वाइंडिंग के प्रतिरोध को मापा जाता है। इससे स्टेटर की कॉपर हानि (copper losses) की गणना की जाती है। 

​प्रत्यक्ष परीक्षण (Direct Test) ​यह परीक्षण मोटर की दक्षता को सीधे मापने के लिए किया जाता है। इसमें मोटर पर विभिन्न प्रकार के यांत्रिक भार लगाए जाते हैं और इनपुट और आउटपुट पावर को मापा जाता है। ​

लोड टेस्ट (Load Test): इस परीक्षण में, मोटर को विभिन्न भारों पर चलाया जाता है और इनपुट पावर (इनपुट वोल्टमीटर, एमीटर और वाटमीटर से) और आउटपुट पावर (टॉर्क और गति मापकर) को रिकॉर्ड किया जाता है। 

दक्षता की गणना निम्नलिखित सूत्र से की जाती है: 

दक्षता = आउटपुट पावर / इनपुट पावर × 100 % ​

यह विधि सटीक होती है, लेकिन इसमें अधिक समय लगता है और यह मोटर के लिए जोखिम भरा हो सकता है।



DC और AC मोटरों की गति को नियंत्रित करने के कई तरीके हैं। प्रत्येक मोटर प्रकार के लिए, नियंत्रण के तरीके अलग-अलग होते हैं क्योंकि उनके कार्य सिद्धांत भिन्न होते हैं।

डीसी मोटर (DC Motor)

​डीसी मोटर की गति को नियंत्रित करने के तीन मुख्य तरीके हैं:

  1. आर्मेचर वोल्टेज नियंत्रण: इस विधि में, आर्मेचर के पार वोल्टेज को बदलकर गति को नियंत्रित किया जाता है। आर्मेचर वोल्टेज बढ़ाने से मोटर की गति बढ़ती है।
  2. क्षेत्र प्रवाह नियंत्रण (Field Flux Control): क्षेत्र वाइंडिंग (field winding) में प्रवाहित धारा को बदलकर क्षेत्र प्रवाह को नियंत्रित किया जाता है। प्रवाह को कम करने से गति बढ़ती है, और प्रवाह को बढ़ाने से गति घटती है।
  3. आर्मेचर प्रतिरोध नियंत्रण: आर्मेचर सर्किट में एक बाहरी प्रतिरोध जोड़कर वोल्टेज ड्रॉप को बढ़ाया जाता है, जिससे गति कम हो जाती है। यह विधि कम कुशल है क्योंकि प्रतिरोध में ऊर्जा की हानि होती है।

तीन चरण प्रेरण मोटर (Three Phase Induction Motor)

​तीन चरण प्रेरण मोटर की गति को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न विधियाँ हैं, जिन्हें स्टेटर साइड से और रोटर साइड से नियंत्रित किया जा सकता है।

  • स्टेटर साइड से नियंत्रण:
    • आपूर्ति आवृत्ति नियंत्रण (Frequency Control): मोटर की गति आवृत्ति के सीधे आनुपातिक होती है। परिवर्तनशील आवृत्ति ड्राइव (VFD) का उपयोग करके आवृत्ति को बदलकर गति को नियंत्रित किया जाता है। यह सबसे कुशल और आधुनिक तरीका है।
    • आपूर्ति वोल्टेज नियंत्रण: मोटर के स्टेटर को दिए गए वोल्टेज को बदलकर गति को नियंत्रित किया जाता है। यह विधि कम कुशल है और कम-टॉर्क अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त है।
    • ध्रुव परिवर्तन (Pole Changing): स्टेटर वाइंडिंग के कनेक्शन को बदलकर ध्रुवों (poles) की संख्या को बदला जाता है। यह एक असतत (discrete) गति नियंत्रण प्रदान करता है, न कि निरंतर (continuous)।
  • रोटर साइड से नियंत्रण:
    • रोटर प्रतिरोध नियंत्रण: केवल स्लिप रिंग इंडक्शन मोटर्स के लिए, रोटर सर्किट में बाहरी प्रतिरोध जोड़कर गति को नियंत्रित किया जाता है। इससे मोटर का स्लिप (slip) बढ़ता है और गति घटती है। यह विधि उच्च स्टार्टिंग टॉर्क की आवश्यकता वाले अनुप्रयोगों के लिए उपयोगी है।


तीन-फेज इंडक्शन मोटर को सेल्फ-स्टार्टिंग (self-starting) कहा जाता है क्योंकि जब इसे तीन-फेज AC सप्लाई दी जाती है, तो इसके अंदर एक घूमता हुआ चुंबकीय क्षेत्र (rotating magnetic field) उत्पन्न होता है। यह घूमता हुआ चुंबकीय क्षेत्र रोटर के चालकों में करंट प्रेरित करता है, जिससे एक बल उत्पन्न होता है जो मोटर को घुमाना शुरू कर देता है।

​इसके काम करने का तरीका कुछ इस तरह है:

  • घूमता हुआ चुंबकीय क्षेत्र (Rotating Magnetic Field - RMF): तीन-फेज AC सप्लाई में तीनों फेज के बीच 120 डिग्री का फेज शिफ्ट होता है। जब यह सप्लाई स्टेटर (मोटर का स्थिर हिस्सा) की वाइंडिंग को दी जाती है, तो यह एक ऐसा चुंबकीय क्षेत्र बनाता है जो एक निश्चित गति पर घूमता है, जिसे सिंक्रोनस स्पीड (synchronous speed) कहते हैं। यह लगातार घूमता हुआ क्षेत्र ही मोटर को शुरू करने के लिए आवश्यक प्रारंभिक बल प्रदान करता है।
  • प्रेरित करंट और बल (Induced Current and Torque): स्टेटर का यह घूमता हुआ चुंबकीय क्षेत्र रोटर (मोटर का घूमने वाला हिस्सा) के चालकों को काटता है। फैराडे के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन के नियम (Faraday's Law of Electromagnetic Induction) के अनुसार, इस घूमने वाले क्षेत्र के कारण रोटर के चालकों में एक विद्युत वाहक बल (EMF) प्रेरित होता है। चूंकि रोटर की वाइंडिंग शॉर्ट-सर्किट होती है, यह प्रेरित EMF इसमें एक भारी करंट उत्पन्न करता है।
  • टॉर्क का उत्पादन: अब, रोटर में बहने वाला करंट अपना खुद का चुंबकीय क्षेत्र बनाता है। यह रोटर का चुंबकीय क्षेत्र स्टेटर के घूमते हुए चुंबकीय क्षेत्र के साथ प्रतिक्रिया करता है, जिससे एक टॉर्क (torque) या घुमावदार बल उत्पन्न होता है। यह टॉर्क रोटर को उसी दिशा में घुमाना शुरू कर देता है जिस दिशा में स्टेटर का चुंबकीय क्षेत्र घूम रहा होता है।

​इस पूरी प्रक्रिया के लिए किसी बाहरी उपकरण की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए इसे सेल्फ-स्टार्टिंग मोटर कहते हैं। इसके विपरीत, सिंगल-फेज इंडक्शन मोटर में केवल एक चुंबकीय क्षेत्र होता है जो घूमता नहीं है, इसलिए उसे शुरू करने के लिए बाहरी उपकरणों (जैसे कैपेसिटर) की आवश्यकता होती है।


टॉर्क-स्पीड विशेषता (Torque-Speed Characteristic) एक वक्र (curve) है जो किसी मोटर के टॉर्क आउटपुट और उसकी गति (speed) के बीच संबंध को दर्शाती है।

 यह वक्र मोटर के प्रदर्शन (performance) का एक महत्वपूर्ण मापदंड है, खासकर जब यह विभिन्न भारों (loads) के तहत काम करती है। ​प्रेरण मोटर का टॉर्क-स्पीड वक्र ​प्रेरण मोटर (induction motor) का टॉर्क-स्पीड वक्र एक अतिपरवलय (hyperbola) जैसा होता है और इसे

 तीन मुख्य क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है: ​

प्रारंभिक या उच्च सर्पी क्षेत्र (Starting or High Slip Region): ​जब मोटर शुरू होती है, तो इसकी गति शून्य होती है और सर्पी (slip) का मान अधिकतम (S = 1) होता है। ​

इस स्थिति में, मोटर एक निश्चित प्रारंभिक टॉर्क (starting torque) उत्पन्न करती है। ​

जैसे-जैसे गति बढ़ती है, टॉर्क भी बढ़ता है। ​

स्थिर या निम्न सर्पी क्षेत्र (Stable or Low Slip Region): ​यह वक्र का वह हिस्सा है जहाँ मोटर सामान्यतः काम करती है। ​इस क्षेत्र में, गति तुल्यकालिक गति (synchronous speed) के बहुत करीब होती है और सर्पी का मान बहुत कम होता है। ​टॉर्क गति के लगभग व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होता है। 

इसका मतलब है कि जब मोटर पर भार बढ़ता है, तो उसकी गति थोड़ी कम हो जाती है, जिससे टॉर्क बढ़ जाता है और वह बढ़े हुए भार को संतुलित कर पाती है। यह मोटर की स्थिरता (stability) सुनिश्चित करता है। 

​अस्थिर या मध्यम सर्पी क्षेत्र (Unstable or Medium Slip Region): 

​यह क्षेत्र अधिकतम टॉर्क (maximum torque) या ब्रेकडाउन टॉर्क (breakdown torque) के बाद शुरू होता है। ​यदि भार इस अधिकतम टॉर्क से अधिक हो जाता है, 

तो मोटर इस अस्थिर क्षेत्र में प्रवेश कर जाती है। ​इस क्षेत्र में गति बढ़ने पर टॉर्क कम होने लगता है, जिससे मोटर की गति और भी कम हो जाती है और अंततः मोटर रुक जाती है। ​

टॉर्क-स्पीड विशेषताओं को प्रभावित करने वाले कारक ​कई कारक मोटर के टॉर्क-स्पीड वक्र को प्रभावित करते हैं: 

रोटर प्रतिरोध (Rotor Resistance): रोटर का प्रतिरोध बढ़ने से प्रारंभिक टॉर्क बढ़ता है और वक्र का अधिकतम टॉर्क बिंदु (breakdown torque point) बाईं ओर (कम गति की ओर) चला जाता है। ​

आपूर्ति वोल्टेज (Supply Voltage): टॉर्क, आपूर्ति वोल्टेज के वर्ग (voltage squared) के समानुपाती होता है (T V^2)। यदि वोल्टेज कम हो जाता है, तो टॉर्क भी काफी कम हो जाएगा। ​

आपूर्ति आवृत्ति (Supply Frequency): आवृत्ति में बदलाव से तुल्यकालिक गति और परिणामस्वरूप पूरे टॉर्क-स्पीड वक्र में बदलाव आता है। ​प्रेरण मोटर का टॉर्क-स्पीड वक्र ​इस वीडियो में तीन-फेज इंडक्शन मोटर के टॉर्क-स्पीड वक्र की विशेषताओं को विस्तार से समझाया गया है।



टॉर्क और स्लिप के बीच संबंध को समझने के लिए, हमें पहले इन दोनों शब्दों को समझना होगा।

​टॉर्क (Torque)

​टॉर्क एक घूर्णन बल है जो किसी वस्तु को उसके अक्ष के चारों ओर घुमाता है।  यह एक प्रकार का बल है जो किसी चीज को घुमाने की प्रवृत्ति रखता है। किसी मोटर के लिए, टॉर्क वह शक्ति है जो मोटर शाफ्ट को घुमाती है, जिससे कोई काम हो पाता है, जैसे पंखे की ब्लेड को घुमाना या कार के पहियों को चलाना।

​स्लिप (Slip)

​स्लिप, प्रेरण मोटर (induction motor) में होती है। यह मोटर के रोटर की गति (rotor speed) और सिंक्रोनस गति (synchronous speed) के बीच का अंतर है, जिसे प्रतिशत या प्रति इकाई (per unit) में व्यक्त किया जाता है। सिंक्रोनस गति वह गति है जिस पर मोटर का चुंबकीय क्षेत्र घूमता है।  यदि रोटर बिल्कुल सिंक्रोनस गति पर घूमता, तो स्लिप शून्य होती। लेकिन, ऐसा कभी नहीं होता क्योंकि टॉर्क उत्पन्न करने के लिए रोटर के चालकों (conductors) को चुंबकीय क्षेत्र को काटना पड़ता है, और ऐसा तभी हो सकता है जब दोनों की गति में अंतर हो।

​टॉर्क और स्लिप के बीच संबंध (Relationship between Torque and Slip)

​टॉर्क और स्लिप के बीच संबंध प्रेरण मोटर के प्रदर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह संबंध इस प्रकार है:

  • कम स्लिप पर (शून्य के पास): जब मोटर पर लोड कम होता है, तो रोटर की गति सिंक्रोनस गति के बहुत करीब होती है, जिससे स्लिप बहुत कम होती है। इस अवस्था में, टॉर्क लगभग स्लिप के सीधे आनुपातिक (directly proportional) होता है। यानी, जैसे-जैसे स्लिप बढ़ती है, टॉर्क भी लगभग रैखिक (linearly) रूप से बढ़ता है।
  • उच्च स्लिप पर: जब मोटर पर लोड बढ़ता है, तो रोटर धीमा हो जाता है, जिससे स्लिप बढ़ जाती है। एक निश्चित बिंदु तक टॉर्क बढ़ता रहता है। इस बिंदु को अधिकतम टॉर्क (maximum torque) या पुल-आउट टॉर्क (pull-out torque) कहते हैं।
  • अधिकतम टॉर्क के बाद: यदि लोड और बढ़ता है, तो रोटर और धीमा हो जाता है, जिससे स्लिप और बढ़ जाती है। लेकिन इस बिंदु के बाद, टॉर्क स्लिप के साथ घटने लगता है। इस क्षेत्र में मोटर अस्थिर हो जाती है और अंततः रुक सकती है।

​संक्षेप में, 

स्लिप वह "आवश्यक" गति अंतर है जो टॉर्क उत्पन्न करने के लिए चाहिए होता है। जैसे-जैसे मोटर पर लोड बढ़ता है, टॉर्क की आवश्यकता भी बढ़ती है, और इसे पूरा करने के लिए मोटर की स्लिप भी बढ़ती है।



रोटर आवृत्ति, जिसे fr से दर्शाया जाता है, 

प्रेरण मोटर के रोटर में प्रेरित धारा की आवृत्ति है। यह आपूर्ति आवृत्ति (f) और मोटर की स्लिप (s) पर निर्भर करती है। ​इसे एक सरल सूत्र से व्यक्त किया जा सकता है: ​fr = sf ​

यहाँ:

fr = रोटर आवृत्ति ​

s = स्लिप (slip) ​

f = स्टेटर की आपूर्ति आवृत्ति (supply frequency) ​

विभिन्न स्थितियों में रोटर आवृत्ति  ​जब मोटर स्थिर हो (Start-up): जब मोटर स्थिर होती है, तो रोटर की गति शून्य होती है। इस स्थिति में स्लिप (s) का मान 1 होता है। 

fr = 1

f = f इसका मतलब है कि जब मोटर चलना शुरू करती है, तो रोटर की आवृत्ति आपूर्ति आवृत्ति के बराबर होती है। ​जब मोटर सामान्य गति पर चल रही हो: 

जब मोटर अपनी सामान्य गति पर चलती है, तो स्लिप का मान शून्य और एक के बीच (0 < s < 1) होता है। 

fr < f ​जब मोटर तुल्यकालिक गति पर हो (असंभव): अगर मोटर तुल्यकालिक गति पर चलती, तो स्लिप 0 होती। इस स्थिति में रोटर में कोई प्रेरित धारा नहीं होती, इसलिए रोटर आवृत्ति शून्य होती। 

fr = 0 

f = 0 लेकिन व्यवहार में ऐसा कभी नहीं होता, क्योंकि टॉर्क उत्पन्न करने के लिए स्लिप का होना आवश्यक है। ​रोटर आवृत्ति का महत्व ​रोटर आवृत्ति मोटर के प्रदर्शन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह रोटर प्रतिघात (rotor reactance) को प्रभावित करती है, जो मोटर के टॉर्क-स्पीड विशेषताओं को निर्धारित करती है।  

रोटर प्रतिघात (Xr) का सूत्र 2pi fr Lr है, 

जहाँ Lr रोटर का अधिष्ठापन (inductance) है। 

जैसे-जैसे मोटर की गति बदलती है, स्लिप और रोटर आवृत्ति भी बदलती है, जिससे रोटर प्रतिघात बदल जाता है। यह परिवर्तन मोटर के टॉर्क और धारा को प्रभावित करता है।



प्रेरण मोटर (induction motor - IM) में शक्ति प्रवाह (power flow) को समझने के लिए, इसे कई चरणों में विभाजित किया जा सकता है। यह दर्शाता है कि कैसे विद्युत ऊर्जा मोटर में प्रवेश करती है और अंत में यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित होती है, जिसमें विभिन्न हानियाँ (losses) भी शामिल हैं। 

​1. इनपुट शक्ति (Input Power, P_{in})

यह वह कुल विद्युत शक्ति है जो मोटर के स्टेटर को तीन-चरण (three-phase) आपूर्ति से मिलती है। 

P_{in} = {3} V_L  I_L ​

V_L = लाइन वोल्टेज ​

I_L = लाइन करंट ​= शक्ति गुणक (power factor) ​

2. स्टेटर हानियाँ (Stator Losses)

​स्टेटर में दो मुख्य प्रकार की हानियाँ होती हैं: ​

स्टेटर कॉपर हानियाँ (P_{scu}): यह स्टेटर वाइंडिंग के प्रतिरोध के कारण होती हैं। 

P_{scu} = 3I_1^2 R_1 ​I_1 = स्टेटर करंट ​R_1 = स्टेटर प्रतिरोध ​स्टेटर कोर हानियाँ (P_{ci}): इसमें हिस्टैरिसीस (hysteresis) और एडी करंट (eddy current) हानियाँ शामिल हैं, जो चुंबकीय क्षेत्र के कारण होती हैं। ​इन हानियों के बाद, शेष शक्ति एयर गैप शक्ति (P_{ag}) कहलाती है। ​P_{ag} = P_{in} - (P_{scu} + P_{ci}) ​

3. एयर गैप शक्ति (Air Gap Power, P_{ag})

​यह वह शक्ति है जो स्टेटर से चुंबकीय क्षेत्र के माध्यम से रोटर में स्थानांतरित होती है। यह रोटर में कुल इनपुट शक्ति होती है। यह मोटर द्वारा विकसित कुल यांत्रिक शक्ति के बराबर होती है। 

​4. रोटर हानियाँ (Rotor Losses) ​

रोटर में मुख्य रूप से एक प्रकार की हानि होती है: ​रोटर कॉपर हानियाँ (P_{rcu}): यह रोटर वाइंडिंग के प्रतिरोध के कारण होती है। यह एयर गैप शक्ति (P_{ag}) और स्लिप (s) से संबंधित है। 

P_{rcu} = sP_{ag} इसका मतलब है कि जैसे-जैसे स्लिप बढ़ती है, रोटर में हानि भी बढ़ती है। ​

5. विकसित यांत्रिक शक्ति (Developed Mechanical Power, P_{dev}) ​

यह वह शक्ति है जो रोटर में विद्युत चुम्बकीय रूप से विकसित होती है। यह एयर गैप शक्ति में से रोटर कॉपर हानियों को घटाकर प्राप्त होती है। 

P_{dev} = P_{ag} - P_{rcu} या P_{dev} = P_{ag} - sP_{ag} = P_{ag} (1-s) ​

6. आउटपुट शक्ति (Output Power, P_{out}) ​

विकसित यांत्रिक शक्ति में से कुछ यांत्रिक हानियाँ भी घटानी पड़ती हैं: ​

घर्षण और वायु प्रवाह हानियाँ (P_{fw}): 

यह मोटर के घूमने वाले हिस्सों में घर्षण और हवा के प्रतिरोध के कारण होती हैं। ​अंतिम आउटपुट शक्ति (या शाफ्ट पर उपलब्ध शक्ति) होती है: P_{out} = P_{dev} - P_{fw} ​ 



प्रेरण मोटर (Induction Motor - IM) कभी भी अपनी तुल्यकालिक गति (synchronous speed, Ns) पर नहीं चल सकती है क्योंकि इसका कार्य सिद्धांत ही इस पर आधारित है कि रोटर की गति (rotor speed, Nr) स्टेटर के घूर्णनशील चुंबकीय क्षेत्र की गति से थोड़ी कम हो। ​

इसका मुख्य कारण प्रेरण (induction) और स्लिप (slip) के सिद्धांत में निहित है। 

​मुख्य कारण: प्रेरण का सिद्धांत ​प्रेरण मोटर का रोटर केवल तभी घूम सकता है जब रोटर के चालकों (conductors) में धारा उत्पन्न हो। यह धारा प्रेरण के माध्यम से उत्पन्न होती है। ​

घूर्णनशील चुंबकीय क्षेत्र (Rotating Magnetic Field - RMF): 

जब मोटर के स्टेटर को तीन-फेज एसी आपूर्ति दी जाती है, तो यह एक घूर्णनशील चुंबकीय क्षेत्र (RMF) उत्पन्न करता है जो तुल्यकालिक गति (Ns) पर घूमता है। ​

प्रेरित ईएमएफ (Induced EMF): 

यह घूमता हुआ चुंबकीय क्षेत्र रोटर के चालकों को काटता है। इस गति के अंतर के कारण, रोटर के चालकों में एक वोल्टेज (ईएमएफ) प्रेरित होता है, जैसा कि फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम में बताया गया है।

 ​धारा और टॉर्क: 

यह प्रेरित ईएमएफ रोटर में एक धारा उत्पन्न करता है। यह धारा फिर से चुंबकीय क्षेत्र के साथ क्रिया करती है और टॉर्क उत्पन्न करती है, जिससे रोटर घूमना शुरू करता है।

 ​क्या होगा यदि मोटर तुल्यकालिक गति पर चले? ​यदि रोटर की गति (Nr) तुल्यकालिक गति (Ns) के बराबर हो जाती है, तो निम्न समस्याएँ उत्पन्न होंगी: ​

सापेक्षिक गति शून्य: 

रोटर और घूर्णनशील चुंबकीय क्षेत्र के बीच की सापेक्षिक गति (relative speed) शून्य हो जाएगी (Ns - Nr = 0)। ​

कोई प्रेरित ईएमएफ नहीं: 

चूंकि चुंबकीय क्षेत्र अब रोटर के चालकों को नहीं काटेगा, इसलिए कोई ईएमएफ प्रेरित नहीं होगा। ​कोई रोटर धारा नहीं: कोई प्रेरित ईएमएफ नहीं होने से, रोटर में कोई धारा प्रवाहित नहीं होगी। ​

कोई टॉर्क नहीं: 

चूंकि टॉर्क उत्पन्न करने के लिए रोटर में धारा का होना आवश्यक है, इसलिए टॉर्क शून्य हो जाएगा। ​टॉर्क के शून्य हो जाने से, मोटर पर लगा हुआ यांत्रिक लोड (जैसे पंखा या पंप) मोटर को धीमा कर देगा, जिससे इसकी गति तुल्यकालिक गति से कम हो जाएगी। गति के कम होते ही, 

सापेक्षिक गति फिर से उत्पन्न होगी, 

जिससे टॉर्क फिर से उत्पन्न होगा और मोटर फिर से चलेगी। ​यही कारण है कि प्रेरण मोटर हमेशा तुल्यकालिक गति से थोड़ी कम गति पर चलती है, जिसे स्लिप कहते हैं। स्लिप, टॉर्क उत्पन्न करने के लिए एक अनिवार्य शर्त है। ​



प्रेरण मोटर (induction motor) का बिना भार परीक्षण (No-Load Test) एक महत्वपूर्ण प्रयोग है जो मोटर के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए किया जाता है।

 इस परीक्षण का मुख्य उद्देश्य मोटर की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताओं और हानियों (losses) का पता लगाना है। 

​बिना भार परीक्षण का उद्देश्य ​इस परीक्षण का उपयोग प्रेरण मोटर की निम्नलिखित विशेषताओं को निर्धारित करने के लिए किया जाता है: ​

स्थिर हानियाँ (Fixed Losses): ये वे हानियाँ हैं जो मोटर पर लोड की मात्रा पर निर्भर नहीं करती हैं। बिना भार परीक्षण से इन हानियों का पता लगाया जाता है: 

​कोर हानियाँ (Core Losses): इसमें हिस्टैरिसीस (hysteresis) और एडी करंट (eddy current) हानियाँ शामिल हैं, जो चुंबकीय क्षेत्र के कारण होती हैं। 

​यांत्रिक हानियाँ (Mechanical Losses): इसमें घर्षण (friction) और वायु प्रवाह (windage) हानियाँ शामिल हैं।

 ​शंट शाखा के पैरामीटर (Shunt Branch Parameters): प्रेरण मोटर के समकक्ष सर्किट (equivalent circuit) में, 

शंट शाखा चुंबकत्व (magnetizing) और कोर हानि घटकों को दर्शाती है। 

बिना भार परीक्षण से इस शाखा के प्रतिरोध (R_0) और प्रतिघात (X_0) को ज्ञात किया जाता है। ​

नो-लोड करंट (I_0) और पावर फैक्टर (\cos\phi_0): 

परीक्षण के दौरान मापी गई इनपुट शक्ति (input power), 

वोल्टेज और करंट से नो-लोड पावर फैक्टर की गणना की जा सकती है, जो मोटर के चुंबकत्व (magnetizing) करंट को समझने में मदद करता है। ​

परीक्षण विधि ​बिना भार परीक्षण को करने के लिए, मोटर को बिना किसी यांत्रिक भार के रेटेड वोल्टेज और आवृत्ति पर चलाया जाता है। 

इस दौरान, एक वोल्टमीटर, एक एमीटर, और दो वाटमीटर का उपयोग करके इनपुट वोल्टेज, करंट और शक्ति को मापा जाता है। ​इस परीक्षण में, चूंकि कोई यांत्रिक भार नहीं होता,

इसलिए रोटर की गति तुल्यकालिक गति के बहुत करीब होती है, और स्लिप (s) का मान बहुत कम होता है। 

इस स्थिति में, 

रोटर कॉपर हानियाँ (P_{rcu} = s \times P_{ag}) लगभग नगण्य होती हैं, इसलिए मापी गई इनपुट शक्ति मुख्य रूप से स्थिर हानियों (P_{scu} + P_{ci} + P_{fw}) के बराबर होती है। ​



अवरुद्ध रोटर परीक्षण (Blocked Rotor Test) प्रेरण मोटर का एक महत्वपूर्ण परीक्षण है, जिसे शॉर्ट-सर्किट परीक्षण (Short-Circuit Test) या लॉक्ड-रोटर परीक्षण (Locked-Rotor Test) भी कहते हैं। 

यह परीक्षण मोटर के श्रेणी शाखा मापदंडों (series branch parameters) और पूर्ण-भार ताम्र हानियों (full-load copper losses) को निर्धारित करने के लिए किया जाता है। ​

परीक्षण का उद्देश्य ​इस परीक्षण का मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित मापदंडों को ज्ञात करना है: 

​पूर्ण-भार ताम्र हानियाँ (P_{sc}): यह परीक्षण मोटर के रोटर और स्टेटर में होने वाली कुल ताम्र हानियों को बताता है जब मोटर अपनी पूर्ण-भार धारा पर चल रही होती है। ​

समकक्ष परिपथ की श्रृंखला शाखा मापदंड: ​कुल रिसाव प्रतिरोध (R_{01}): स्टेटर और रोटर के समकक्ष प्रतिरोध का योग। ​

कुल रिसाव प्रतिघात (X_{01}): स्टेटर और रोटर के समकक्ष रिसाव प्रतिघात का योग। ​

शुरुआती टॉर्क (T_{st}): यह परीक्षण मोटर के शुरुआती टॉर्क का अनुमान लगाने में भी मदद करता है। ​परीक्षण विधि ​इस परीक्षण को करने के लिए, मोटर के रोटर को यांत्रिक रूप से अवरुद्ध (blocked) कर दिया जाता है ताकि वह घूम न सके। इस अवस्था में, रोटर की गति शून्य होती है, जिससे स्लिप (s) का मान 1 हो जाता है। 

​कम वोल्टेज का अनुप्रयोग: चूंकि रोटर अवरुद्ध होता है, 

मोटर एक ट्रांसफार्मर के शॉर्ट-सर्किट की तरह व्यवहार करती है। यदि रेटेड वोल्टेज लगाया जाए, तो मोटर बहुत अधिक धारा (रेटेड धारा से 5 से 8 गुना) खींचेगी, जिससे मोटर को नुकसान हो सकता है। 

इसलिए, स्टेटर वाइंडिंग पर एक कम, संतुलित तीन-फेज वोल्टेज लगाया जाता है। ​

रेटेड करंट का मापन: लगाए गए वोल्टेज को धीरे-धीरे तब तक बढ़ाया जाता है जब तक कि मोटर रेटेड करंट को नहीं खींचती। इस दौरान, एक वोल्टमीटर, एमीटर, और दो वाटमीटर का उपयोग करके वोल्टेज, करंट और इनपुट शक्ति को मापा जाता है। ​

हानियों की गणना: इस परीक्षण में, क्योंकि स्लिप 1 है, रोटर में प्रेरित आवृत्ति आपूर्ति आवृत्ति के बराबर होती है, और अधिकांश शक्ति रोटर और स्टेटर ताम्र हानियों के रूप में नष्ट हो जाती है। कोर हानियाँ (P_{ci}) नगण्य होती हैं क्योंकि वोल्टेज बहुत कम होता है। 

इसलिए, 

मापी गई शक्ति सीधे तौर पर कुल ताम्र हानियों के बराबर होती है। ​



लोड परीक्षण (Load Test) एक प्रेरण मोटर के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने के लिए एक प्रयोग है। यह मोटर को उसके पूर्ण-भार (full-load) पर चलाकर उसकी वास्तविक ऑपरेटिंग विशेषताओं को निर्धारित करता है। 

यह परीक्षण मोटर की दक्षता,

गति नियमन, और टॉर्क-गति विशेषताओं का आकलन करने में मदद करता है। ​

परीक्षण का उद्देश्य ​लोड परीक्षण का उपयोग मोटर की निम्नलिखित विशेषताओं को ज्ञात करने के लिए किया जाता है: ​

दक्षता (Efficiency): मोटर की दक्षता, इनपुट विद्युत शक्ति और आउटपुट यांत्रिक शक्ति का अनुपात है।

{Efficiency} = {Output Power}}{Input Power} यह परीक्षण वास्तविक ऑपरेटिंग परिस्थितियों में दक्षता का मूल्यांकन करने का सबसे विश्वसनीय तरीका है। ​

गति नियमन (Speed Regulation): यह नो-लोड गति और पूर्ण-लोड गति के बीच का अंतर है, जिसे पूर्ण-लोड गति के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। 

{Speed Regulation} = {No-load speed} - {Full-load speed}{Full-load speed}100 % 

​शक्ति गुणक (Power Factor): 

यह इनपुट शक्ति और वोल्टेज-करंट उत्पाद का अनुपात है। ​

तापमान वृद्धि (Temperature Rise): यह दर्शाता है कि मोटर एक निश्चित लोड पर लगातार चलने के दौरान कितनी गर्म होती है। ​परीक्षण विधि ​लोड परीक्षण में, मोटर को उसके रेटेड वोल्टेज और आवृत्ति पर चलाया जाता है। 

एक डायनेमोमीटर या ब्रेक ड्रम जैसे यांत्रिक भार को मोटर की शाफ्ट से जोड़ा जाता है। 

​भार का अनुप्रयोग: मोटर को चालू करने के बाद, उस पर धीरे-धीरे भार बढ़ाया जाता है।

मापन: प्रत्येक भार स्तर पर, निम्नलिखित मापदंडों को मापा जाता है:

इनपुट शक्ति (P_{in}): दो वाटमीटर का उपयोग करके मापा जाता है।

लाइन वोल्टेज (V_L) और लाइन करंट (I_L): वोल्टमीटर और एमीटर का उपयोग करके मापा जाता है। ​

गति (N): टैकोमीटर का उपयोग करके मापा जाता है। ​

टॉर्क (T): डायनेमोमीटर के साथ मापा जाता है। ​

गणना: इन मापों का उपयोग करके आउटपुट शक्ति, दक्षता, और अन्य मापदंडों की गणना की जाती है।

{Output Power} (P_{out}) = {2\pi NT}{60} (वाट में,

 जहाँ N rpm में और T N-m में है) ​महत्व ​लोड परीक्षण मोटर के वास्तविक-विश्व प्रदर्शन को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। 

यह निर्माता को मोटर की रेटेड विशेषताओं को सत्यापित करने और यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि यह निर्दिष्ट शर्तों के तहत सुरक्षित रूप से और कुशलता से काम कर सकती है।  

यह परीक्षण मोटर की दक्षता वक्र (efficiency curve) बनाने के लिए आवश्यक डेटा भी प्रदान करता है, जो विभिन्न लोड स्तरों पर इसकी दक्षता को दर्शाता है।



प्रेरण मोटरों में होने वाली हानियों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: ​

1. स्थिर हानियाँ (Constant Losses)

​ये हानियाँ मोटर के भार (लोड) पर निर्भर नहीं करतीं और पूरे संचालन के दौरान लगभग स्थिर रहती हैं. इन्हें बिना-भार परीक्षण (No-Load Test) द्वारा निर्धारित किया जा सकता है. 

स्थिर हानियों में दो प्रमुख प्रकार शामिल हैं: 

​लोहा हानियाँ या कोर हानियाँ (Iron or Core Losses):

 ये हानियाँ मोटर के स्टेटर (स्थिर भाग) के कोर में होती हैं.

 ये चुंबकीय क्षेत्र के कारण होती हैं और आपूर्ति आवृत्ति और फ्लक्स घनत्व पर निर्भर करती हैं.

 इन्हें दो उप-भागों में बांटा जाता है: ​हिस्टेरेसिस हानि (Hysteresis Loss): 

यह तब होती है जब मोटर के चुंबकीय कोर में बार-बार चुंबकत्व की दिशा बदलती है, जिससे ऊर्जा का क्षय होता है. ​

भंवर धारा हानि (Eddy Current Loss): 

यह तब होती है जब बदलते चुंबकीय फ्लक्स से कोर में भंवर धाराएँ (Eddy Currents) उत्पन्न होती हैं,

 जो ऊष्मा के रूप में ऊर्जा का क्षय करती हैं. इसे कोर को लैमिनेट (परतदार) करके कम किया जाता है. ​

यांत्रिक हानियाँ (Mechanical Losses): ये हानियाँ मोटर के घूमने वाले भागों में होती हैं. इनमें शामिल हैं: 

​घर्षण हानि (Friction Loss): यह मोटर के बियरिंग में घर्षण के कारण होती है. 

​वायु घर्षण हानि (Windage Loss): यह रोटर के घूमने से उत्पन्न हवा के घर्षण के कारण होती है. ​

2. परिवर्तनीय हानियाँ (Variable Losses) 

ये हानियाँ मोटर के भार के साथ बदलती रहती हैं. जब मोटर पर भार बढ़ता है, तो मोटर अधिक धारा खींचती है, जिससे ये हानियाँ भी बढ़ जाती हैं. इन्हें अवरुद्ध रोटर परीक्षण (Blocked Rotor Test) द्वारा मापा जा सकता है. 

इनमें दो मुख्य प्रकार शामिल हैं: ​

तांबा हानियाँ (Copper Losses): ये हानियाँ मोटर के स्टेटर और रोटर की वाइंडिंग में धारा प्रवाहित होने के कारण होती हैं. इन्हें {I^2R} हानियाँ भी कहा जाता है, 

जहाँ I धारा और R वाइंडिंग का प्रतिरोध है. ​

स्टेटर तांबा हानि: यह स्टेटर वाइंडिंग में होती है. ​

रोटर तांबा हानि: यह रोटर वाइंडिंग में होती है. ​

आवारा भार हानियाँ (Stray Load Losses): ये हानियाँ मोटर के भार के साथ उत्पन्न होती हैं और इनकी गणना करना मुश्किल होता है. ये मुख्य रूप से रिसाव फ्लक्स (Leakage Flux) और हार्मोनिक घटकों (Harmonic Components) के कारण होती हैं. ​

ये सभी हानियाँ मोटर की दक्षता (efficiency) को प्रभावित करती हैं, क्योंकि वे उपयोगी आउटपुट शक्ति में से घटा दी जाती हैं.  



प्रेरण मोटर की दक्षता (efficiency) उसकी आउटपुट शक्ति और इनपुट शक्ति का अनुपात होती है. यह बताती है कि मोटर कितनी कुशलता से विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदल रही है. मोटर में होने वाली हानियों (losses) के कारण इसकी दक्षता हमेशा 100% से कम होती है. ​

दक्षता का सूत्र ​दक्षता को प्रतिशत (%) में दर्शाया जाता है और इसका सूत्र इस प्रकार है:

(%) = {आउटपुट शक्ति } (P_{out})}{इनपुट शक्ति } (P_{in})} times 100 

​जहाँ: ​

आउटपुट शक्ति (P_{out}): मोटर द्वारा प्रदान की गई यांत्रिक शक्ति है, जो मोटर के शाफ्ट पर उपलब्ध होती है. ​

इनपुट शक्ति (P_{in}): मोटर द्वारा खींची गई विद्युत शक्ति है. ​दूसरे शब्दों में, इनपुट शक्ति, आउटपुट शक्ति और सभी हानियों का योग होती है: ​

P_{in} = P_{out} + {हानियां} ​इसलिए,

 दक्षता का सूत्र इस तरह भी लिखा जा सकता है: 

​(%) = {P_{in} - {हानियां}}{P_{in}}100 ​दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक ​प्रेरण मोटर की दक्षता को कई कारक प्रभावित करते हैं: ​

हानियां (Losses): मोटर में होने वाली हानियां, जैसे कि तांबा हानियां, लोहा हानियां और यांत्रिक हानियां, सीधे तौर पर दक्षता को कम करती हैं. इन हानियों को कम करके दक्षता बढ़ाई जा सकती है. 

​भार (Load): मोटर की दक्षता भार के साथ बदलती रहती है. मोटर अपनी पूर्ण भार (full load) पर सबसे अधिक दक्षता प्राप्त करती है. कम भार पर दक्षता कम हो जाती है क्योंकि स्थिर हानियां (जैसे लोहा हानियां) समान रहती हैं, जबकि उपयोगी आउटपुट कम होता है. 

​मोटर का डिज़ाइन: अच्छी गुणवत्ता वाले कोर सामग्री, बेहतर वाइंडिंग और उचित वायु अंतराल (air gap) जैसी डिज़ाइन विशेषताएँ मोटर की दक्षता को बढ़ा सकती हैं. 

​वोल्टेज और आवृत्ति: मोटर को उसके रेटेड वोल्टेज और आवृत्ति पर चलाना सबसे अच्छा होता है. यदि वोल्टेज या आवृत्ति में बड़ा विचलन होता है, तो दक्षता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ​आम तौर पर, एक अच्छी प्रेरण मोटर की दक्षता 85% से 95% तक हो सकती है. ​



प्रेरण मोटर में अधिकतम दक्षता की शर्त यह है कि परिवर्तनीय हानियाँ (Variable Losses) स्थिर हानियों (Constant Losses) के बराबर हों.

 ​विस्तृत विवरण ​प्रेरण मोटर में दक्षता को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है: = {आउटपुट शक्ति}}{इनपुट शक्ति}} = {P_{out}}{P_{in}} = {P_{in} - {हानियां}}{P_{in}}

 जहाँ कुल हानियां (Total Losses) दो प्रकार की होती हैं: ​

स्थिर हानियाँ (P_{c}): ये भार पर निर्भर नहीं करती हैं, 

जैसे कि कोर हानियां और यांत्रिक हानियां. 

​परिवर्तनीय हानियाँ (P_{v}): ये भार के साथ बदलती हैं, 

जैसे कि तांबा हानियां. 

​इसलिए, 

कुल हानियां = P_{c} + P_{v} ​दक्षता को अधिकतम करने के लिए, हमें कुल हानियों को न्यूनतम करना होता है. 

गणितीय रूप से, यह स्थिति तब प्राप्त होती है जब परिवर्तनीय हानियों का मान स्थिर हानियों के बराबर हो जाता है. ​

शर्त: परिवर्तनीय हानियां = स्थिर हानियां P_v = P_c यानी, 

रोटर और स्टेटर तांबा हानियां = कोर हानियां + यांत्रिक हानियां ​इस शर्त का पालन करके, मोटर अपने डिज़ाइन किए गए भार पर सबसे अधिक कुशलता से काम करती है. ​



मोटर स्टार्टर की आवश्यकता मुख्य रूप से उच्च प्रारंभिक धारा (high starting current) को नियंत्रित करने और मोटर को विभिन्न दोषों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए होती है.

​1. उच्च प्रारंभिक धारा को सीमित करना

​जब एक मोटर को सीधे बिजली की आपूर्ति से जोड़ा जाता है, तो वह अपने शुरुआती क्षणों में बहुत अधिक धारा (current) खींचती है. यह धारा, जिसे इनरश करंट (inrush current) भी कहते हैं, सामान्य पूर्ण भार धारा (full load current) से 5 से 8 गुना अधिक हो सकती है. यह उच्च धारा कई समस्याएं पैदा कर सकती है:

  • मोटर को नुकसान: यह अत्यधिक धारा मोटर की वाइंडिंग को गर्म कर सकती है और इन्सुलेशन को जला सकती है, जिससे मोटर स्थायी रूप से खराब हो सकती है.
  • वोल्टेज में गिरावट: उच्च धारा के कारण बिजली आपूर्ति लाइन में वोल्टेज में भारी गिरावट आ सकती है, जिससे उसी लाइन पर चल रहे अन्य उपकरण भी प्रभावित हो सकते हैं.
  • बिजली के बिल में वृद्धि: बार-बार उच्च प्रारंभिक धारा खींचने से बिजली का बिल भी बढ़ सकता है.

​स्टार्टर इस उच्च धारा को कम करके मोटर को सुचारू रूप से चालू होने में मदद करता है, जिससे मोटर और बिजली आपूर्ति प्रणाली दोनों सुरक्षित रहती हैं.

​2. मोटर को सुरक्षा प्रदान करना

​स्टार्टर सिर्फ धारा को कम नहीं करता, बल्कि यह मोटर को कई तरह की सुरक्षा भी प्रदान करता है:

  • अतिभार सुरक्षा (Overload Protection): जब मोटर पर बहुत अधिक यांत्रिक भार पड़ता है, तो वह अधिक धारा खींचना शुरू कर देती है. स्टार्टर में लगे ओवरलोड रिले इस स्थिति को पहचानते हैं और मोटर को जलने से बचाने के लिए बिजली की आपूर्ति काट देते हैं.
  • निम्न-वोल्टेज सुरक्षा (Under-voltage Protection): यदि बिजली की आपूर्ति में वोल्टेज अचानक बहुत कम हो जाता है, तो मोटर को अपनी शक्ति बनाए रखने के लिए अधिक धारा खींचनी पड़ती है. स्टार्टर मोटर को इस स्थिति में बंद कर देता है, जिससे उसे नुकसान से बचाया जा सके.
  • एकल-फेजिंग सुरक्षा (Single Phasing Protection): तीन-फेज मोटर में यदि एक फेज की बिजली अचानक कट जाए तो मोटर बाकी दो फेज पर चलती रहती है, जिससे शेष दो फेजों पर धारा बढ़ जाती है. स्टार्टर इस स्थिति में मोटर को बंद कर देता है.



प्रेरण मोटरों के लिए विभिन्न प्रकार के स्टार्टर उपलब्ध हैं, जिन्हें उनकी कार्यप्रणाली और मोटर के आकार के अनुसार चुना जाता है. सबसे सामान्य प्रकार हैं: ​

1. डायरेक्ट-ऑन-लाइन (Direct-On-Line - DOL) स्टार्टर ​यह सबसे सरल और सबसे किफायती प्रकार का स्टार्टर है. इसमें मोटर को सीधे और पूर्ण वोल्टेज पर शुरू किया जाता है. ​

उपयोग: यह छोटे आकार की मोटरों (आमतौर पर 5HP या 7.5HP तक) के लिए उपयुक्त है. ​

फायदे: सरल संरचना, कम लागत और रखरखाव में आसान. ​

नुकसान: मोटर को शुरू करते समय बहुत अधिक धारा (full load current का 5 से 8 गुना) खींचता है, जिससे वोल्टेज में गिरावट हो सकती है. ​

2. स्टार-डेल्टा (Star-Delta) 

स्टार्टर ​यह स्टार्टर मोटर को दो चरणों में शुरू करता है: पहले, मोटर को स्टार (star) कनेक्शन में जोड़ा जाता है, जिससे शुरुआती वोल्टेज 1/\sqrt{3} गुना कम हो जाता है और धारा भी घट जाती है. फिर, जब मोटर अपनी गति का लगभग 80% प्राप्त कर लेती है, तो इसे डेल्टा (delta) कनेक्शन में बदल दिया जाता है. ​

उपयोग: 5HP से 20HP तक की मध्यम से बड़ी मोटरों के लिए. ​

फायदे: शुरुआती धारा को DOL स्टार्टर की तुलना में काफी कम करता है. ​

नुकसान: यह थोड़ा जटिल है और DOL स्टार्टर से महंगा होता है.

 ​3. ऑटो-ट्रांसफार्मर (Auto-Transformer) 

स्टार्टर ​यह स्टार्टर वोल्टेज को कम करने के लिए एक ऑटो-ट्रांसफार्मर का उपयोग करता है. ट्रांसफार्मर में अलग-अलग टैपिंग (tappings) होती हैं, जिससे वोल्टेज को आवश्यकतानुसार कम किया जा सकता है. 

उपयोग: बड़ी मोटरों (20HP से अधिक) के लिए, जहाँ शुरुआती धारा को और भी कम करने की आवश्यकता होती है. ​

फायदे: शुरुआती वोल्टेज को कई चरणों में नियंत्रित किया जा सकता है. यह सबसे कुशल स्टार्टर में से एक है. ​

नुकसान: यह अन्य स्टार्टर्स की तुलना में काफी महंगा और बड़ा होता है. 

​4. सॉफ्ट स्टार्टर (Soft Starter) 

​यह एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो थाइरिस्टर (thyristors) या सिलिकॉन नियंत्रित दिष्टकारी (SCRs) का उपयोग करके मोटर को धीरे-धीरे शुरू करता है. यह मोटर को बहुत सुचारू रूप से शुरू होने देता है, जिससे यांत्रिक तनाव और उच्च धारा दोनों कम हो जाते हैं.

​उपयोग: ऐसी जगहों पर जहाँ यांत्रिक झटके या उच्च शुरुआती धारा को पूरी तरह से खत्म करना आवश्यक हो. ​

फायदे: सबसे सुचारू शुरुआत प्रदान करता है, यांत्रिक उपकरणों के जीवनकाल को बढ़ाता है और शुरुआती धारा को न्यूनतम रखता है. ​

नुकसान: यह सबसे महंगा स्टार्टर है. ​

5. वेरिएबल फ्रीक्वेंसी ड्राइव (Variable Frequency Drive - VFD) ​

VFD एक आधुनिक और बहुमुखी स्टार्टर है जो न केवल शुरुआती धारा को नियंत्रित करता है, बल्कि मोटर की गति को भी नियंत्रित कर सकता है. यह मोटर की गति और बलाघूर्ण को बदलकर उसके प्रदर्शन को पूरी तरह से नियंत्रित करता है. 

​उपयोग: उन अनुप्रयोगों के लिए जहाँ गति नियंत्रण की आवश्यकता होती है, जैसे कि पंखे, पंप और कन्वेयर बेल्ट. ​

फायदे: सबसे कुशल और सटीक नियंत्रण प्रदान करता है, ऊर्जा की बचत करता है और मोटर को सर्वोत्तम प्रदर्शन देता है. ​

नुकसान: यह सबसे महंगा और जटिल स्टार्टर है. ​



गिलहरी पिंजरे वाली मोटरों में DOL और स्टार-डेल्टा स्टार्टर का उपयोग मुख्य रूप से मोटर की उच्च प्रारंभिक धारा (high starting current) को नियंत्रित करने और उसे सुरक्षा प्रदान करने के लिए किया जाता है। ​

गिलहरी पिंजरे वाली प्रेरण मोटरों में प्रारंभिक अवस्था में रोटर का प्रतिरोध बहुत कम होता है, जिसके कारण वे अपनी सामान्य (rated) धारा से 5-8 गुना अधिक धारा खींचती हैं।

इस अत्यधिक धारा को नियंत्रित करने के लिए स्टार्टर की आवश्यकता होती है। ​DOL (Direct-On-Line) स्टार्टर का उपयोग ​DOL स्टार्टर सबसे सरल प्रकार का स्टार्टर है और इसका उपयोग छोटी गिलहरी पिंजरे वाली मोटरों के लिए किया जाता है। ​

छोटे आकार की मोटरों के लिए: यह 5 HP या 7.5 HP तक की छोटी मोटरों के लिए सबसे उपयुक्त है क्योंकि इन मोटरों की शुरुआती धारा इतनी अधिक नहीं होती कि बिजली की आपूर्ति प्रणाली को गंभीर नुकसान पहुँचाए। 

सरल और सस्ता: इसकी संरचना बहुत सरल होती है, और यह अन्य स्टार्टर की तुलना में सस्ता होता है। 

मुख्य कार्य: यह मोटर को सीधे पूर्ण वोल्टेज से जोड़ता है।

 इसका मुख्य उद्देश्य ओवरलोड और अंडर-वोल्टेज जैसी स्थितियों से मोटर को सुरक्षा प्रदान करना है। 

​स्टार-डेल्टा (Star-Delta) स्टार्टर का उपयोग ​स्टार-डेल्टा स्टार्टर का उपयोग मध्यम से बड़ी गिलहरी पिंजरे वाली मोटरों के लिए किया जाता है। ​

उच्च प्रारंभिक धारा को कम करना: बड़ी मोटरों की शुरुआती धारा बहुत अधिक होती है, जिसे सीधे नियंत्रित करना मुश्किल होता है। स्टार-डेल्टा स्टार्टर मोटर को शुरू करने के लिए वोल्टेज को कम करके (स्टार कनेक्शन में) धारा को उसकी सामान्य शुरुआती धारा के केवल एक-तिहाई तक कम कर देता है। ​

दो-चरण की प्रक्रिया: ​

चरण 1 (स्टार): मोटर को पहले स्टार कनेक्शन में शुरू किया जाता है। इस अवस्था में, प्रति चरण वोल्टेज लाइन वोल्टेज का 1/\sqrt{3} गुना हो जाता है, जिससे शुरुआती धारा भी काफी कम हो जाती है। ​

चरण 2 (डेल्टा): जब मोटर अपनी गति का लगभग 80% प्राप्त कर लेती है, तो स्टार्टर स्वचालित रूप से इसे डेल्टा कनेक्शन में स्विच कर देता है, जहाँ यह सामान्य रूप से चलती है। ​यह विधि न केवल मोटर को उच्च धारा से बचाती है, बल्कि बिजली आपूर्ति प्रणाली को भी वोल्टेज में अचानक गिरावट से सुरक्षित रखती है।



स्टेटर साइड नियंत्रण (Stator Side Control) प्रेरण मोटर की गति को नियंत्रित करने की एक विधि है। यह विधि स्टेटर से जुड़े मापदंडों को बदलकर काम करती है, 

जैसे कि वोल्टेज, आवृत्ति, या दोनों। ​

1. स्टेटर वोल्टेज नियंत्रण (Stator Voltage Control) ​इस विधि में, स्टेटर को दी जाने वाली वोल्टेज को बदलकर मोटर की गति को नियंत्रित किया जाता है। 

जब स्टेटर वोल्टेज कम होता है, तो मोटर द्वारा उत्पन्न टॉर्क (बलाघूर्ण) भी कम हो जाता है, जिससे मोटर की गति कम हो जाती है। इसके विपरीत, वोल्टेज बढ़ाने पर गति बढ़ जाती है। ​

विधि: वोल्टेज को नियंत्रित करने के लिए अक्सर सिलिकॉन नियंत्रित दिष्टकारी (SCR) का उपयोग किया जाता है। ​

उपयोग: यह विधि मुख्य रूप से पंखों, पंपों और ब्लोअर जैसे अनुप्रयोगों में उपयोग की जाती है, जहां स्थिर टॉर्क की आवश्यकता नहीं होती है। ​

नुकसान: इस विधि का उपयोग करने पर मोटर की दक्षता कम हो जाती है और उच्च स्लिप पर टॉर्क भी कम हो जाता है। ​

2. स्टेटर आवृत्ति नियंत्रण (Stator Frequency Control) ​

यह गति नियंत्रण की सबसे प्रभावी और कुशल विधि है। 

इस विधि में, 

स्टेटर को दी जाने वाली आपूर्ति की आवृत्ति (frequency) को बदला जाता है। मोटर की तुल्यकालिक गति (synchronous speed) आवृत्ति के सीधे आनुपातिक होती है (N_s \propto f), इसलिए आवृत्ति को बदलकर गति को नियंत्रित किया जा सकता है। ​

विधि: आवृत्ति को बदलने के लिए एक परिवर्तनीय आवृत्ति ड्राइव (VFD) का उपयोग किया जाता है। ​

फायदे: यह विधि मोटर की दक्षता को उच्च स्तर पर बनाए रखती है और गति की एक विस्तृत श्रृंखला पर नियंत्रण प्रदान करती है। ​

उपयोग: यह उच्च प्रदर्शन वाले अनुप्रयोगों में उपयोग की जाती है, जैसे कि रोबोटिक्स और मशीन टूल्स। ​

3. वोल्टेज/आवृत्ति नियंत्रण (V/f Control)

यह स्टेटर साइड नियंत्रण की सबसे आम और कुशल विधि है। इसमें वोल्टेज और आवृत्ति दोनों को एक साथ इस तरह से बदला जाता है कि उनका अनुपात (V/f अनुपात) स्थिर बना रहे। ​

महत्व: V/f अनुपात को स्थिर रखने से मोटर के एयर गैप में चुंबकीय फ्लक्स (magnetic flux) भी स्थिर रहता है, जिससे मोटर का अधिकतम टॉर्क लगभग स्थिर बना रहता है।

लाभ: यह विधि गति की एक विस्तृत श्रृंखला पर मोटर को उसके रेटेड टॉर्क पर चलाने की अनुमति देती है, जबकि दक्षता भी उच्च बनी रहती है। ​

उपयोग: इसका उपयोग लगभग सभी आधुनिक औद्योगिक अनुप्रयोगों में किया जाता है, जहाँ मोटर की गति को कुशलता से नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है। 

स्टेटर साइड नियंत्रण के विपरीत

रोटर साइड नियंत्रण विधि भी होती है, जिसका उपयोग केवल स्लिप रिंग प्रेरण मोटरों में किया जाता है। हालाँकि, स्टेटर साइड नियंत्रण, विशेष रूप से V/f नियंत्रण, गिलहरी पिंजरे वाली मोटरों सहित सभी प्रकार की प्रेरण मोटरों में प्रभावी है।



रोटर साइड नियंत्रण प्रेरण मोटर की गति को नियंत्रित करने की एक विधि है, जिसका उपयोग केवल स्लिप-रिंग (slip-ring) प्रेरण मोटरों में किया जाता है। यह विधि रोटर परिपथ (rotor circuit) में बाह्य प्रतिरोध (external resistance) को जोड़कर मोटर की स्लिप और गति को बदलती है। 

​कार्यप्रणाली ​अतिरिक्त प्रतिरोध जोड़ना: स्लिप-रिंग मोटर के रोटर वाइंडिंग के सिरे स्लिप रिंगों से जुड़े होते हैं, जो बाहरी प्रतिरोध को जोड़ने के लिए संपर्क प्रदान करते हैं। 

​टॉर्क और स्लिप संबंध: प्रेरण मोटर का टॉर्क रोटर प्रतिरोध के सीधे आनुपातिक होता है।

 गति नियंत्रण: ​जब रोटर परिपथ में बाहरी प्रतिरोध जोड़ा जाता है, तो कुल रोटर प्रतिरोध बढ़ जाता है। ​बढ़े हुए प्रतिरोध के कारण, मोटर एक ही टॉर्क पर अधिक स्लिप पर चलती है। ​चूंकि स्लिप बढ़ने से मोटर की गति कम हो जाती है (N = N_s(1-s)), इसलिए मोटर की गति को नियंत्रित किया जा सकता है। 

​शुरुआती टॉर्क में वृद्धि: इस विधि का एक और फायदा यह है कि यह शुरुआती टॉर्क को भी बढ़ाती है। मोटर को शुरू करते समय, रोटर परिपथ में अधिकतम प्रतिरोध जोड़ा जाता है, जिससे उच्च शुरुआती टॉर्क प्राप्त होता है। 

जैसे-जैसे मोटर गति पकड़ती है, प्रतिरोध को धीरे-धीरे कम किया जाता है। ​

फायदे और नुकसान ​फायदे: ​गति की एक विस्तृत श्रृंखला: यह विधि मोटर की गति को सिंक्रोनस गति के नीचे एक बड़ी रेंज में नियंत्रित करने की अनुमति देती है। 

​उच्च शुरुआती टॉर्क: बाहरी प्रतिरोध जोड़कर मोटर के शुरुआती टॉर्क को बढ़ाया जा सकता है, जो उच्च जड़त्व वाले भार (high-inertia loads) के लिए उपयोगी है। ​

नुकसान: ​कम दक्षता: बाहरी प्रतिरोध में ऊर्जा का क्षय ऊष्मा के रूप में होता है, जिससे मोटर की दक्षता काफी कम हो जाती है। ​

कम शक्ति गुणांक: यह विधि मोटर के शक्ति गुणांक (power factor) को भी कम कर देती है। 

​केवल स्लिप-रिंग मोटर के लिए: यह विधि गिलहरी पिंजरे वाली मोटरों में उपयोग नहीं की जा सकती क्योंकि उनके रोटर शॉर्ट-सर्किट होते हैं और बाहरी प्रतिरोध जोड़ने के लिए कोई संपर्क नहीं होता है।



वी/एफ नियंत्रण एक विधि है जिसका उपयोग प्रेरण मोटरों की गति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है. 

इस विधि में, 

मोटर को दी जाने वाली वोल्टेज (V) और आवृत्ति (f) दोनों को एक साथ इस तरह से बदला जाता है कि उनका अनुपात (V/f अनुपात) स्थिर बना रहे. 

इसे अदिश नियंत्रण (Scalar control) के रूप में भी जाना जाता है. ​V/f नियंत्रण का सिद्धांत ​प्रेरण मोटर का टॉर्क (बल आघूर्ण) मोटर के अंदर उत्पन्न होने वाले चुंबकीय फ्लक्स के समानुपाती होता है. 

चुंबकीय फ्लक्स आपूर्ति वोल्टेज और आवृत्ति के अनुपात (Φ \propto V/f) पर निर्भर करता है. ​जब आप मोटर की गति को कम करने के लिए केवल आवृत्ति (f) को कम करते हैं, तो V/f अनुपात बढ़ जाता है. 

इससे फ्लक्स अत्यधिक बढ़ जाता है, जिससे मोटर की वाइंडिंग संतृप्त (saturated) हो सकती है और बहुत अधिक धारा खींच सकती है. ​जब आप मोटर की गति को बढ़ाने के लिए केवल आवृत्ति (f) को बढ़ाते हैं, तो V/f अनुपात कम हो जाता है. 

इससे फ्लक्स कम हो जाता है, जिससे मोटर का टॉर्क भी कम हो जाता है. ​V/f नियंत्रण विधि में, इस समस्या से बचने के लिए, आवृत्ति के साथ-साथ वोल्टेज को भी उसी अनुपात में कम या ज्यादा किया जाता है, 

ताकि V/f अनुपात स्थिर रहे. इससे फ्लक्स भी स्थिर बना रहता है, और मोटर अपनी पूरी टॉर्क क्षमता के साथ काम करती है, भले ही उसकी गति बदल रही हो. ​उपयोग ​यह नियंत्रण विधि एक परिवर्तनीय आवृत्ति ड्राइव (VFD) द्वारा लागू की जाती है. 

VFD मोटर को नियंत्रित करने के लिए बिजली की आपूर्ति को समायोजित करता है, जिससे मोटर को उसकी बेस गति (rated speed) से नीचे और ऊपर दोनों तरह से चलाया जा सकता है.

यह पंखों, पंपों और कन्वेयर बेल्ट जैसे अनुप्रयोगों के लिए आदर्श है जहाँ व्यापक गति नियंत्रण की आवश्यकता होती है. ​ 



प्लगिंग (Plugging) प्रेरण मोटर को तेज़ी से रोकने (stopping) की एक विधि है. इस विधि में, मोटर के रोटेशन की दिशा को बदलने के लिए स्टेटर में किसी भी दो आपूर्ति फेज़ को आपस में बदल दिया जाता है. ​प्लगिंग कैसे काम करती है ​

सामान्य परिचालन: मोटर सामान्य रूप से दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में घूम रही होती है. ​

फेज़ बदलना: मोटर को रोकने के लिए, आपूर्ति से जुड़े तीन फेज़ (R, Y, B) में से किसी भी दो फेज़ (उदाहरण के लिए, Y और B) को आपस में बदल दिया जाता है.

रोटर का विपरीत दिशा में घूमना: फेज़ बदलने से स्टेटर में चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) की घूमने की दिशा तुरंत विपरीत (वामावर्त) हो जाती है.

स्लिप का बढ़ना: इस समय, मोटर की गति (N) अभी भी अपनी मूल दिशा में है, लेकिन चुंबकीय क्षेत्र की गति (N_s) विपरीत दिशा में है. इससे स्लिप का मान बढ़कर (1-s) के बजाय (1+s) हो जाता है. स्लिप का मान 2 के करीब पहुंच जाता है, 

जिससे रोटर में बहुत अधिक धारा प्रेरित होती है और एक बड़ा टॉर्क उत्पन्न होता है. ​

मोटर का रुकना: यह बड़ा और विपरीत दिशा में लगने वाला टॉर्क मोटर को तेज़ी से रोकता है.

मुख्य स्विच खोलना: जब मोटर रुक जाती है, तो उसे विपरीत दिशा में घूमने से रोकने के लिए तुरंत मुख्य आपूर्ति को काट दिया जाता है. यदि ऐसा नहीं किया गया, तो मोटर विपरीत दिशा में घूमना शुरू कर देगी. ​

फायदे और नुकसान ​फायदे: ​तेज़ ब्रेकिंग: यह सबसे तेज़ ब्रेकिंग विधियों में से एक है, क्योंकि यह एक बड़े और विपरीत टॉर्क का उपयोग करती है.

सरल विधि: यह विधि लागू करने में अपेक्षाकृत सरल है. ​

नुकसान: ​अत्यधिक ऊष्मा: प्लगिंग के दौरान, मोटर में बहुत अधिक धारा बहती है, जिससे अत्यधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है. यह मोटर को नुकसान पहुंचा सकती है. ​

यांत्रिक तनाव: अचानक विपरीत दिशा में लगने वाला टॉर्क मोटर और उससे जुड़े उपकरणों पर भारी यांत्रिक तनाव डालता है. ​

ऊर्जा का अपव्यय: यह एक ऊर्जा-अकुशल विधि है क्योंकि मोटर की गतिज ऊर्जा (kinetic energy) ऊष्मा के रूप में व्यर्थ हो जाती है. ​इन कमियों के कारण, प्लगिंग का उपयोग केवल उन अनुप्रयोगों में किया जाता है

जहाँ मोटर को तेज़ी से रोकना आवश्यक होता है, भले ही इसके परिणामस्वरूप उच्च ऊर्जा अपव्यय या यांत्रिक तनाव हो.



गतिशील ब्रेकिंग (Dynamic Braking) प्रेरण मोटर को रोकने की एक विधि है, जिसमें मोटर के रोटर वाइंडिंग में डीसी (DC) धारा प्रवाहित करके एक स्थिर चुंबकीय क्षेत्र (stationary magnetic field) बनाया जाता है, जिससे मोटर में एक ब्रेकिंग टॉर्क उत्पन्न होता है.

कार्यप्रणाली

  1. एसी आपूर्ति हटाना: मोटर को पहले एसी (AC) आपूर्ति से अलग कर दिया जाता है.
  2. डीसी आपूर्ति जोड़ना: स्टेटर वाइंडिंग के दो टर्मिनलों पर एक डीसी स्रोत (जैसे एक बैटरी या रेक्टिफायर) जोड़ा जाता है, जिससे एक स्थिर चुंबकीय क्षेत्र बनता है.
  3. ब्रेकिंग टॉर्क उत्पन्न होना: चूंकि मोटर का रोटर अभी भी घूम रहा होता है, इसलिए वह इस स्थिर चुंबकीय क्षेत्र को काटता है. इससे रोटर कंडक्टरों में धारा प्रेरित होती है. यह प्रेरित धारा चुंबकीय क्षेत्र के साथ प्रतिक्रिया करती है, जिससे एक ब्रेकिंग टॉर्क उत्पन्न होता है जो मोटर के रोटेशन की दिशा के विपरीत होता है.
  4. मोटर का रुकना: यह विपरीत ब्रेकिंग टॉर्क मोटर को धीमा कर देता है और अंततः रोक देता है.

फायदे और नुकसान

फायदे:

  • सुचारु ब्रेकिंग: प्लगिंग की तुलना में, यह एक सुचारु ब्रेकिंग विधि है, जिससे मोटर और उससे जुड़े यांत्रिक उपकरणों पर कम तनाव पड़ता है.
  • नियंत्रण: डीसी धारा के मान को नियंत्रित करके ब्रेकिंग टॉर्क की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है.
  • ऊर्जा का अपव्यय कम: यह प्लगिंग की तुलना में कम ऊर्जा का अपव्यय करती है.

नुकसान:

  • अतिरिक्त डीसी स्रोत की आवश्यकता: इस विधि का उपयोग करने के लिए एक बाहरी डीसी स्रोत या रेक्टिफायर की आवश्यकता होती है.
  • धीमी गति पर अकुशल: यह विधि कम गति पर बहुत प्रभावी नहीं होती क्योंकि रोटर द्वारा काटे जाने वाले फ्लक्स की दर कम हो जाती है.

​गतिशील ब्रेकिंग का उपयोग उन अनुप्रयोगों में किया जाता है जहाँ मोटर को तेज़ी से, लेकिन नियंत्रित तरीके से रोकना होता है, जैसे कि क्रेन और लिफ्ट.



पुनर्योजी ब्रेक लगाना (Regenerative Braking) एक ऐसी विधि है जिसका उपयोग प्रेरण मोटर को धीमा करने या रोकने के लिए किया जाता है, जिसमें मोटर जनरेटर की तरह काम करती है और गतिज ऊर्जा (kinetic energy) को विद्युत ऊर्जा में बदलकर उसे वापस आपूर्ति स्रोत में भेज देती है।

यह सबसे कुशल ब्रेकिंग विधियों में से एक है क्योंकि इसमें ऊर्जा का संरक्षण होता है। ​पुनर्योजी ब्रेक लगाना कैसे काम करता है ​यह विधि तब काम करती है जब मोटर की गति उसकी तुल्यकालिक गति (synchronous speed, N_s) से अधिक हो जाती है। 

ऐसा दो स्थितियों में हो सकता है: ​भार की वजह से गति बढ़ना: जब कोई भार, जैसे कि एक क्रेन, नीचे की ओर जा रहा हो और उसकी गुरुत्वाकर्षण बल के कारण मोटर की गति तुल्यकालिक गति से अधिक हो जाए। 

​आपूर्ति आवृत्ति को कम करना: जब एक परिवर्तनीय आवृत्ति ड्राइव (VFD) का उपयोग करके मोटर को चलाया जा रहा हो और VFD की आवृत्ति को अचानक कम कर दिया जाए। इससे मोटर की तुल्यकालिक गति कम हो जाती है, जबकि मोटर की वास्तविक गति अभी भी अधिक होती है। ​

इन दोनों स्थितियों में, मोटर का रोटर चुंबकीय क्षेत्र की तुलना में तेज़ी से घूमता है। 

जब ऐसा होता है, तो स्लिप (slip) का मान ऋणात्मक हो जाता है: 

​s = {N_s - N}{N_s} ​चूंकि रोटर की गति (N) तुल्यकालिक गति (N_s) से अधिक है, इसलिए (N_s - N) ऋणात्मक हो जाता है, जिससे स्लिप भी ऋणात्मक हो जाती है।

 ऋणात्मक स्लिप होने पर, 

मोटर की क्रियाविधि उलट जाती है और वह एक जनरेटर की तरह काम करना शुरू कर देती है। यह यांत्रिक ऊर्जा (रोटर की गतिज ऊर्जा) को विद्युत ऊर्जा में बदलती है और इस ऊर्जा को वापस आपूर्ति स्रोत में भेज देती है। यह प्रक्रिया मोटर पर एक ब्रेकिंग टॉर्क लगाती है, जिससे उसकी गति कम हो जाती है। 

​फायदे और नुकसान ​फायदे: ​उच्च दक्षता: यह सबसे अधिक ऊर्जा-कुशल ब्रेकिंग विधि है क्योंकि यह ऊर्जा को नष्ट करने के बजाय उसका पुनर्चक्रण करती है। ​

सुचारु ब्रेकिंग: ब्रेकिंग टॉर्क काफी नियंत्रित और सुचारु होता है, जिससे मोटर और यांत्रिक प्रणाली पर तनाव कम होता है। ​

सुरक्षित: यह विधि मोटर को बिना अधिक गर्म किए रोक सकती है, क्योंकि ऊर्जा ऊष्मा के रूप में नष्ट नहीं होती। ​

नुकसान: ​केवल विशिष्ट अनुप्रयोगों के लिए: यह विधि केवल तभी प्रभावी होती है जब मोटर की गति तुल्यकालिक गति से अधिक हो। यह उन अनुप्रयोगों में उपयोग नहीं की जा सकती जहां मोटर को उसकी सामान्य गति पर अचानक रोकना हो। ​

महंगा: इसका उपयोग करने के लिए अक्सर VFD जैसे महंगे और जटिल उपकरणों की आवश्यकता होती है। ​

इस कारण, 

पुनर्योजी ब्रेकिंग का उपयोग मुख्य रूप से उन प्रणालियों में होता है जहाँ मोटर की गति को बार-बार नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है, जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहन, लिफ्ट और रोलिंग मिल्स।



विशेष प्रभाव और दोषों को अक्सर मोटर के प्रदर्शन पर उनके प्रभाव के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है. ये प्रभाव और दोष मोटर की दक्षता, जीवनकाल और विश्वसनीयता को प्रभावित करते हैं.

​विशेष प्रभाव (Special Effects)

​विशेष प्रभाव मोटर के सामान्य संचालन के दौरान उत्पन्न होने वाली कुछ अनूठी घटनाएं हैं जो मोटर के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती हैं.

  • क्रोकिंग (Crawling): यह एक ऐसी घटना है जिसमें प्रेरण मोटर अपनी तुल्यकालिक गति (synchronous speed) के 1/7वें हिस्से पर चलती है और पूर्ण गति तक नहीं पहुंच पाती है. यह मुख्य रूप से हार्मोनिक्स (harmonics) के कारण होता है, जो मोटर के टॉर्क-गति (torque-speed) विशेषता में एक अतिरिक्त टॉर्क उत्पन्न करते हैं, जिससे मोटर उस कम गति पर फंस जाती है.
  • कोगिंग (Cogging): यह तब होता है जब मोटर के स्टेटर और रोटर के स्लॉट (slots) की संख्या समान या एक-दूसरे के पूर्णांक गुणज (integral multiples) में होती है. इस स्थिति में, रोटर के दांत (teeth) स्टेटर के दांतों के साथ सीधे संरेखित हो जाते हैं, जिससे रोटर जाम हो जाता है और मोटर शुरू नहीं हो पाती है. इसे स्लॉट की संख्या को अलग-अलग करके रोका जा सकता है.

​दोष (Faults)

​दोष वे असामान्यताएं हैं जो मोटर के संचालन में बाधा डालती हैं और अक्सर क्षति का कारण बन सकती हैं.

  • सिंगल-फेजिंग (Single-Phasing): यह एक तीन-फेज मोटर में तब होता है जब एक आपूर्ति फेज किसी भी कारण से बाधित हो जाता है (उदाहरण के लिए, एक फ्यूज का जलना). इस स्थिति में, मोटर शेष दो फेज़ पर चलती रहती है, जिससे शेष वाइंडिंग में धारा अत्यधिक बढ़ जाती है, और वे ज़्यादा गर्म होकर जल सकती हैं.
  • ओवरलोडिंग (Overloading): जब मोटर पर उसकी डिज़ाइन की गई क्षमता से अधिक यांत्रिक भार डाल दिया जाता है, तो मोटर अपनी आवश्यक टॉर्क प्रदान करने के लिए अधिक धारा खींचती है. यह अतिरिक्त धारा मोटर की वाइंडिंग को ज़्यादा गरम करती है, जिससे उसका इन्सुलेशन खराब हो सकता है और मोटर स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती है.
  • रोटर बार का टूटना (Broken Rotor Bars): गिलहरी पिंजरे वाली मोटरों में, रोटर वाइंडिंग एल्यूमीनियम या तांबे की छड़ों से बनी होती है. इन छड़ों में से एक या अधिक छड़ों का टूटना मोटर के प्रदर्शन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है. इससे मोटर में कंपन, शोर, और दक्षता में कमी होती है.
  • असंतुलित वोल्टेज (Unbalanced Voltage): जब तीन-फेज आपूर्ति में वोल्टेज का मान असंतुलित होता है, तो मोटर की वाइंडिंग में असंतुलित धाराएं बहती हैं. इससे मोटर के एक या अधिक फेज़ ज़्यादा गर्म हो जाते हैं, जिससे उसके जीवनकाल में कमी आती है.

​इन सभी विशेष प्रभावों और दोषों को मोटर की नियमित जांच और सही सुरक्षा उपकरणों, जैसे ओवरलोड रिले, के उपयोग से कम किया जा सकता है.



क्रॉलिंग और कॉगिंग दोनों ही प्रेरण मोटरों के सामान्य दोष हैं, लेकिन वे अलग-अलग कारणों से होते हैं और अलग-अलग लक्षण दिखाते हैं।

​कॉगिंग (Cogging)

​कॉगिंग, जिसे चुंबकीय लॉक-इन (magnetic lock-in) भी कहते हैं, एक ऐसा दोष है जिसमें प्रेरण मोटर शुरू ही नहीं हो पाती है, या बहुत धीमी गति से चलती है। यह तब होता है जब मोटर के स्टेटर और रोटर के खांचों (slots) की संख्या समान हो या एक दूसरे के पूर्णांक गुणज (integral multiples) में हो।

  • क्या होता है: इस स्थिति में, स्टेटर और रोटर के दांत (teeth) एक-दूसरे के बिल्कुल सामने आ जाते हैं, जिससे उनके बीच एक मजबूत चुंबकीय आकर्षण बल पैदा होता है। यह बल रोटर को घूमने से रोकता है और उसे अपनी जगह पर ही रोक देता है।
  • परिणाम: मोटर अपनी शुरुआती गति से नहीं चल पाती है, भले ही उसे पूरी बिजली आपूर्ति मिल रही हो।
  • रोकथाम: इस समस्या से बचने के लिए, मोटर बनाते समय स्टेटर और रोटर के खांचों की संख्या को जानबूझकर अलग रखा जाता है।

​क्रॉलिंग (Crawling)

​क्रॉलिंग वह दोष है जिसमें प्रेरण मोटर अपनी सामान्य गति तक नहीं पहुँच पाती, बल्कि अपनी तुल्यकालिक गति (synchronous speed) के 1/7वें भाग जितनी धीमी गति पर चलने लगती है।

  • क्या होता है: यह दोष मुख्य रूप से आपूर्ति वोल्टेज में मौजूद हार्मोनिक्स (harmonics) के कारण होता है। ये हार्मोनिक्स मुख्य चुंबकीय क्षेत्र के अलावा कुछ अतिरिक्त चुंबकीय क्षेत्र बनाते हैं जो मोटर में अतिरिक्त टॉर्क (torque) पैदा करते हैं।
  • परिणाम: 7वें हार्मोनिक के कारण उत्पन्न होने वाला टॉर्क मुख्य टॉर्क के विपरीत दिशा में काम करता है, जिससे मोटर की गति 1/7वें हिस्से पर स्थिर हो जाती है और वह सामान्य गति तक नहीं पहुँच पाती।
  • रोकथाम: अच्छी गुणवत्ता वाले बिजली आपूर्ति फिल्टर का उपयोग करके या मोटर को इस तरह डिज़ाइन करके जिससे हार्मोनिक्स का प्रभाव कम हो, इसे रोका जा सकता है।

​संक्षेप में, 

कॉगिंग मोटर को शुरू होने से रोकती है, जबकि क्रॉलिंग मोटर को कम गति पर चलने के लिए मजबूर करती है।



यदि एक तीन-चरण प्रेरण मोटर का एक चरण (phase) खो जाए, तो इसे एकल-फेजिंग (single-phasing) कहा जाता है। इस स्थिति में मोटर तुरंत बंद नहीं होती, बल्कि शेष दो चरणों पर काम करना जारी रखती है।

क्या होता है?

  1. असंतुलित धारा (Unbalanced Current): जब एक चरण चला जाता है, तो मोटर को अपनी आवश्यक शक्ति प्रदान करने के लिए शेष दो चरणों से अधिक धारा खींचनी पड़ती है। यह धारा मोटर के रेटेड मान से 1.7 से 2.5 गुना तक अधिक हो सकती है।
  2. अति-तापन (Overheating): बढ़ी हुई धारा के कारण मोटर की वाइंडिंग, विशेष रूप से शेष दो जीवित चरणों की वाइंडिंग, बहुत ज़्यादा गरम हो जाती है। यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है, तो यह अत्यधिक ताप वाइंडिंग के इन्सुलेशन को जला सकता है, जिससे मोटर स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकती है।
  3. टॉर्क में कमी (Loss of Torque): मोटर का कुल टॉर्क भी काफी कम हो जाता है, जिससे मोटर धीमे हो सकती है और अंततः रुक सकती है, खासकर यदि उस पर भार (load) हो।
  4. कंपन और शोर: असंतुलित चुंबकीय क्षेत्र के कारण मोटर में अत्यधिक कंपन और शोर उत्पन्न होता है, जो यांत्रिक क्षति का कारण बन सकता है।

सुरक्षा उपाय

​एकल-फेजिंग से मोटर की सुरक्षा के लिए, ओवरलोड रिले और फेज-विफलता रिले (phase-failure relay) जैसे सुरक्षा उपकरणों का उपयोग किया जाता है। ये उपकरण मोटर में असंतुलित धारा का पता लगाते हैं और उसे नुकसान से बचाने के लिए बिजली की आपूर्ति काट देते हैं।

  • ओवरलोड रिले: यदि मोटर पर हल्का भार हो, तो ओवरलोड रिले पर्याप्त रूप से गर्म नहीं हो सकता है, लेकिन यह भारी भार की स्थिति में मोटर को सुरक्षित रखता है।
  • फेज-विफलता रिले: यह विशेष रूप से एकल-फेजिंग का पता लगाने और मोटर को तुरंत बंद करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

​संक्षेप में, यदि एक चरण खो जाता है, तो मोटर जल सकती है, इसलिए ऐसे दोषों से तुरंत मोटर को बचाना महत्वपूर्ण है।



प्रेरण मोटर का टॉर्क समीकरण (Torque Equation) वह सूत्र है जो मोटर द्वारा उत्पन्न यांत्रिक बल आघूर्ण (mechanical torque) और उसके विद्युत और यांत्रिक मापदंडों के बीच संबंध को दर्शाता है. 

यह समीकरण मोटर के प्रदर्शन, जैसे कि गति और भार के साथ उसके व्यवहार को समझने के लिए महत्वपूर्ण है. 

टॉर्क समीकरण ​प्रेरण मोटर का टॉर्क समीकरण निम्नलिखित है:

 ​T = {3}{omega_s} {s E_2^2 R_2}{R_2^2 + (sX_2)^2} ​

यहाँ: 

T = मोटर द्वारा उत्पन्न टॉर्क ​

omega_s = तुल्यकालिक कोणीय गति (Synchronous angular speed)

(रेडियन/सेकंड) = 2\pi N_s / 60 

s = स्लिप (slip) 

E_2 = रोटर में प्रति-फेज प्रेरित विद्युत वाहक बल (EMF) जब रोटर स्थिर हो 

R_2 = रोटर का प्रति-फेज प्रतिरोध 

X_2 = रोटर का प्रति-फेज प्रतिघात (reactance) जब रोटर स्थिर हो ​यह समीकरण दर्शाता है कि टॉर्क कई कारकों पर निर्भर करता है,

 जिनमें स्लिप, रोटर का प्रतिरोध और प्रतिघात, और रोटर में प्रेरित वोल्टेज शामिल हैं. ​

समीकरण की व्याख्या ​यह समीकरण बताता है कि टॉर्क और स्लिप का संबंध रैखिक (linear) नहीं है, बल्कि एक वक्र (curve) के रूप में होता है.

कम स्लिप पर (गति तुल्यकालिक गति के करीब): जब मोटर सामान्य रूप से चलती है, तो स्लिप का मान बहुत कम होता है (s \approx 0). इस स्थिति में, R_2^2 का मान (sX_2)^2 की तुलना में बहुत बड़ा होता है.

इसलिए, समीकरण सरल होकर लगभग यह बन जाता है: T {s}{R_2^2} इसका अर्थ है कि कम स्लिप पर, टॉर्क स्लिप के सीधे आनुपातिक होता है. 

अधिक स्लिप पर (शुरुआती समय पर): जब मोटर शुरू होती है, तो स्लिप का मान 1 के बराबर होता है (s=1). 

इस स्थिति में,

 टॉर्क मुख्य रूप से रोटर प्रतिघात पर निर्भर करता है. यदि रोटर का प्रतिरोध कम है, तो शुरुआती टॉर्क भी कम होता है. ​

यह समीकरण मोटर के प्रदर्शन के ग्राफ को समझने में मदद करता है, जिसे टॉर्क-स्लिप विशेषता वक्र (Torque-Slip Characteristics Curve) कहा जाता है.  यह वक्र दर्शाता है कि मोटर की गति बदलने पर उसका टॉर्क कैसे बदलता है.



प्रेरण मोटर में अधिकतम टॉर्क (Maximum Torque) के लिए शर्त यह है कि रोटर प्रतिरोध (R_2) स्लिप पर रोटर प्रतिघात (sX_2) के बराबर हो. ​विस्तृत व्याख्या ​अधिकतम टॉर्क या पुल-आउट टॉर्क, वह अधिकतम टॉर्क है जिसे एक प्रेरण मोटर अपनी सामान्य परिचालन सीमा के भीतर उत्पन्न कर सकती है.

 यह एक महत्वपूर्ण विशेषता है जो मोटर की अधिभार (overload) क्षमता को निर्धारित करती है. 

अधिकतम टॉर्क के लिए शर्त को टॉर्क समीकरण को अवकलित करके प्राप्त किया जाता है: ​

टॉर्क समीकरण: T = {3}{omega_s}{s E_2^2 R_2}{R_2^2 + (sX_2)^2} ​टॉर्क को अधिकतम करने के लिए, 

हमें टॉर्क समीकरण को स्लिप (s) के संबंध में अवकलित करके शून्य के बराबर करना होगा: 

{dT}{ds} = 0 ​इस गणितीय प्रक्रिया के बाद,

हमें अधिकतम टॉर्क के लिए स्लिप (s_{mt}) का मान मिलता है: 

s_{mt} = {R_2}{X_2} ​यह समीकरण दर्शाता है कि अधिकतम टॉर्क किस स्लिप पर होता है.

अब, यदि हम इस शर्त को टॉर्क समीकरण में वापस रखते हैं, तो हमें पता चलता है कि अधिकतम टॉर्क उस बिंदु पर होता है 

जहाँ: ​R_2 = sX_2 ​यानी, जब रोटर प्रतिरोध, स्लिप पर रोटर प्रतिघात के बराबर हो जाता है, तो मोटर अधिकतम टॉर्क उत्पन्न करती है. 

यह शर्त मोटर के शुरुआती टॉर्क (starting torque) को भी प्रभावित करती है. यदि R_2 का मान बढ़ाया जाए, तो अधिकतम टॉर्क की स्लिप भी बढ़ जाती है, जिससे मोटर का शुरुआती टॉर्क भी बढ़ जाता है. ​

यह समीकरण टॉर्क-स्लिप वक्र पर अधिकतम बिंदु को दर्शाता है. 

इस वक्र में, 

अधिकतम टॉर्क एक विशिष्ट स्लिप पर होता है, जिसे अक्सर s_{mt} से दर्शाया जाता है.



आपूर्ति आवृत्ति (supply frequency) प्रेरण मोटर के प्रदर्शन पर कई महत्वपूर्ण प्रभाव डालती है. आवृत्ति में बदलाव मोटर की गति, टॉर्क, फ्लक्स, और दक्षता को सीधे प्रभावित करता है. 

​1. गति पर प्रभाव ​प्रेरण मोटर की तुल्यकालिक गति (N_s) सीधे आपूर्ति आवृत्ति के आनुपातिक होती है: ​

{N_s} = {120f}{P} ​

जहाँ: ​

N_s = तुल्यकालिक गति (rpm) ​

f = आपूर्ति आवृत्ति (Hz) ​

P = मोटर में पोल की संख्या ​जब आपूर्ति आवृत्ति बढ़ती है, तो मोटर की तुल्यकालिक गति और वास्तविक गति दोनों बढ़ती हैं.

 इसके विपरीत, आवृत्ति कम होने पर गति कम हो जाती है. ​

2. टॉर्क पर प्रभाव ​आपूर्ति आवृत्ति में बदलाव मोटर द्वारा उत्पन्न टॉर्क को भी प्रभावित करता है, विशेष रूप से जब वोल्टेज को स्थिर रखा जाता है. 

आवृत्ति कम होने पर: यदि वोल्टेज स्थिर रहता है और आवृत्ति कम होती है, तो V/f अनुपात बढ़ता है. 

इससे चुंबकीय फ्लक्स (\phi) बढ़ जाता है, जिससे मोटर का कोर (core) संतृप्त (saturated) हो सकता है. 

इस स्थिति में, मोटर अत्यधिक धारा खींचती है, जिससे कोर में हानियाँ और वाइंडिंग में गर्मी बढ़ती है.

आवृत्ति अधिक होने पर: यदि वोल्टेज स्थिर रहता है और आवृत्ति बढ़ती है, तो V/f अनुपात कम होता है. 

इससे चुंबकीय फ्लक्स कम हो जाता है और मोटर का अधिकतम टॉर्क भी कम हो जाता है. ​

3. प्रतिघात पर प्रभाव ​मोटर का प्रतिघात (reactance) आवृत्ति के सीधे आनुपातिक होता है: ​

प्रेरकीय प्रतिघात (X_L): X_L = 2\pi fL ​धारितीय प्रतिघात (X_C): X_C = 1/(2\pi fC) ​आवृत्ति बढ़ने से प्रेरक प्रतिघात बढ़ जाता है, जबकि धारितीय प्रतिघात कम हो जाता है. 

प्रेरण मोटर में मुख्य रूप से प्रेरक प्रतिघात होता है. 

इसलिए, आवृत्ति बढ़ने पर प्रतिबाधा (impedance) बढ़ जाती है, जिससे धारा कम हो सकती है. ​

4. हानियों और दक्षता पर प्रभाव ​लोहा हानियाँ (Iron losses): ये हानियाँ आवृत्ति पर निर्भर करती हैं.

हिस्टेरेसिस हानि: ये आवृत्ति के आनुपातिक होती हैं. 

भंवर धारा हानि: ये आवृत्ति के वर्ग के आनुपातिक होती हैं. ​

दक्षता: जब आवृत्ति बदलती है, तो मोटर की दक्षता भी बदल जाती है क्योंकि हानियाँ बदलती हैं. 

यदि आवृत्ति को बिना वोल्टेज के अनुपात में बदले कम किया जाता है, तो कोर संतृप्ति और बढ़ी हुई हानि के कारण दक्षता कम हो जाती है. ​

आधुनिक गति नियंत्रण प्रणालियों (जैसे VFDs) में, 

मोटर की गति को नियंत्रित करने के लिए वोल्टेज और आवृत्ति दोनों को एक साथ बदला जाता है, ताकि V/f अनुपात स्थिर बना रहे. 

ऐसा करने से मोटर का फ्लक्स और टॉर्क स्थिर रहते हैं, जिससे मोटर अपनी पूरी दक्षता पर काम करती है.



प्रेरण मोटर में शक्ति गुणक (power factor) मुख्य रूप से दो कारकों से प्रभावित होता है: 

प्रेरणिक स्वभाव (inductive nature) और 

भार (load).

​1. प्रेरणिक स्वभाव

​प्रेरण मोटर एक बड़ा प्रेरक भार (inductive load) है. इसका स्टेटर वाइंडिंग एक प्रेरक की तरह काम करता है, जिसे चुंबकीय क्षेत्र बनाने के लिए चुंबकन धारा (magnetizing current) की आवश्यकता होती है. यह चुंबकन धारा, जो यांत्रिक कार्य नहीं करती, वोल्टेज से लगभग 90 डिग्री पीछे रहती है और प्रतिक्रियाशील शक्ति (reactive power) की खपत करती है.

  • एयर गैप: स्टेटर और रोटर के बीच के एयर गैप (air gap) के कारण, चुंबकीय क्षेत्र स्थापित करने के लिए एक महत्वपूर्ण मात्रा में प्रतिक्रियाशील शक्ति की आवश्यकता होती है. यह आवश्यकता मोटर के शक्ति गुणक को कम कर देती है.

​2. भार (Load)

​मोटर का शक्ति गुणक उसके भार के साथ बदलता है:

  • कम भार पर: जब मोटर पर भार कम होता है, तो वह मुख्य रूप से चुंबकन धारा खींचती है. इस स्थिति में, वास्तविक शक्ति (real power) बहुत कम होती है, जबकि प्रतिक्रियाशील शक्ति लगभग स्थिर रहती है. इसलिए, शक्ति गुणक बहुत कम (0.2 से 0.3 तक) और पश्चगामी (lagging) होता है.
  • पूर्ण भार पर: जैसे-जैसे मोटर पर भार बढ़ता है, वह अधिक वास्तविक शक्ति खींचती है. जबकि प्रतिक्रियाशील शक्ति लगभग स्थिर रहती है, वास्तविक शक्ति में वृद्धि के कारण शक्ति गुणक में सुधार होता है और यह 0.8 से 0.9 तक पहुँच जाता है.

निष्कर्ष रूप में, 

प्रेरण मोटर का शक्ति गुणक स्वाभाविक रूप से कम और पश्चगामी होता है, खासकर जब वह कम भार पर चल रही हो.


प्रेरण मोटर अपने मज़बूत, सरल और कम रखरखाव वाले डिज़ाइन के कारण औद्योगिक और घरेलू दोनों तरह के अनुप्रयोगों में व्यापक रूप से उपयोग की जाती हैं।

घरेलू और वाणिज्यिक अनुप्रयोग

​एकल-फेज़ प्रेरण मोटर का उपयोग अक्सर इन उपकरणों में किया जाता है:

  • पंखे और ब्लोअर: छत के पंखे, टेबल पंखे, एग्जॉस्ट पंखे और एयर कंडीशनर।
  • पंप: पानी के पंप और रेफ्रिजरेटर में कंप्रेसर चलाने के लिए।
  • घरेलू उपकरण: वॉशिंग मशीन, मिक्सर, वैक्यूम क्लीनर और हेयर ड्रायर।

औद्योगिक अनुप्रयोग

​तीन-फेज़ प्रेरण मोटर अपनी उच्च दक्षता और विश्वसनीयता के कारण सबसे अधिक उपयोग की जाती हैं। इनके कुछ प्रमुख अनुप्रयोग इस प्रकार हैं:

  • पंप और कंप्रेसर: औद्योगिक जल पंप, तेल और गैस उद्योग में कंप्रेसर।
  • कन्वेयर और लिफ्ट: सामग्री को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए कन्वेयर बेल्ट और लिफ्ट।
  • रोलिंग मिल्स और क्रेन: ये भारी-भरकम कार्य करते हैं जिनके लिए उच्च टॉर्क की आवश्यकता होती है, जैसे कि स्टील रोलिंग मिल्स और क्रेन।
  • मशीन टूल्स: ड्रिलिंग मशीन, खराद (lathes) और ग्राइंडिंग मशीनें।

विशेष अनुप्रयोग

  • इलेक्ट्रिक वाहन: कुछ इलेक्ट्रिक कारों और ट्रेनों में उच्च प्रदर्शन वाले प्रेरण मोटर का उपयोग किया जाता है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा: पवन टरबाइन भी प्रेरण मोटर का उपयोग करते हैं, जो जनरेटर के रूप में काम करते हैं ताकि पवन ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला जा सके।



इंडक्शन मोटर को "उद्योग का वर्कहॉर्स" (workhorse of industry) कहा जाता है क्योंकि यह अपनी असाधारण मज़बूती, विश्वसनीयता और कम लागत के कारण औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए सबसे पसंदीदा और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली मोटर है।

इसकी मुख्य विशेषताएँ जो इसे यह उपाधि दिलाती हैं, वे निम्नलिखित हैं:

  • सरल और मजबूत निर्माण: गिलहरी-पिंजरे वाली इंडक्शन मोटर का डिज़ाइन बहुत सरल होता है। इसमें कोई ब्रश, कम्यूटेटर या स्लिप रिंग नहीं होती है, जिससे इसमें हिलने वाले या घिसने वाले हिस्से कम होते हैं। इस सादगी के कारण यह मोटर अत्यधिक विश्वसनीय होती है और इसे कठोर औद्योगिक वातावरण में भी आसानी से चलाया जा सकता है।
  • कम रखरखाव: इसमें घिसने वाले हिस्सों की अनुपस्थिति के कारण, इसे बहुत कम रखरखाव की आवश्यकता होती है, जिससे परिचालन लागत कम हो जाती है और डाउनटाइम भी बहुत कम होता है।
  • लागत-प्रभावी: निर्माण में सादगी के कारण ये मोटर अन्य प्रकार की मोटरों की तुलना में सस्ती होती हैं, जिससे वे उद्योगों के लिए एक किफायती विकल्प बन जाती हैं।
  • स्व-प्रारंभ (Self-Starting): तीन-फेज़ प्रेरण मोटर स्वयं-प्रारंभ होने वाली होती है, जिससे इसे अतिरिक्त स्टार्टिंग मैकेनिज्म की आवश्यकता नहीं होती। यह इसकी परिचालन सादगी में और भी इजाफा करता है।
  • उच्च दक्षता: ये मोटर अपनी पूरी क्षमता (full load) पर बहुत कुशल होती हैं, जिससे ऊर्जा की बचत होती है और परिचालन लागत कम होती है।
  • व्यापक अनुप्रयोग: ये मोटर विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं में उपयोग होती हैं, जैसे कि पंप, कंप्रेसर, कन्वेयर बेल्ट और मशीन टूल्स को चलाने में। औद्योगिक मोटरों में से 90% से अधिक प्रेरण मोटर ही होती हैं।

इन सभी विशेषताओं के कारण, 

प्रेरण मोटर उद्योगों में सबसे विश्वसनीय और कार्य-कुशल मशीन बनी हुई है, जो बिना थके लगातार काम करती रहती है।


​प्रेरण मोटर (Induction Motor) का समतुल्य परिपथ (Equivalent Circuit) एक विद्युत परिपथ (Electrical circuit) होता है जो एक ट्रांसफार्मर (transformer) के समान होता है।

यह परिपथ मोटर के विभिन्न भौतिक मापदंडों (physical parameters) जैसे कि स्टेटर (stator) और रोटर (rotor) के प्रतिरोध (resistance) और प्रतिघात (reactance) का प्रतिनिधित्व करता है।

​समतुल्य परिपथ के अवयव (Components of the Equivalent Circuit)

​प्रेरण मोटर के समतुल्य परिपथ में निम्नलिखित अवयव शामिल होते हैं:

  • R1: स्टेटर वाइंडिंग (stator winding) का प्रतिरोध।
  • X1: स्टेटर वाइंडिंग का रिसाव प्रतिघात (leakage reactance)।
  • Rc: कोर हानि (core loss) का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रतिरोध। यह हिस्टैरिसीस (hysteresis) और भँवर धाराओं (eddy currents) के कारण होता है।
  • Xm: चुंबकन प्रतिघात (magnetizing reactance)।
  • R2': रोटर वाइंडिंग (rotor winding) का प्रतिरोध, जिसे स्टेटर की ओर संदर्भित किया गया है।
  • X2': रोटर वाइंडिंग का रिसाव प्रतिघात, जिसे स्टेटर की ओर संदर्भित किया गया है।
  • s: स्लिप (slip)।
  • R2'((1-s)/s): यांत्रिक भार (mechanical load) का प्रतिनिधित्व करने वाला प्रतिरोध।

​परिपथ का कार्य (Function of the Circuit)

​यह परिपथ मोटर के प्रदर्शन (performance) का विश्लेषण करने में मदद करता है। इसका उपयोग करके हम मोटर की दक्षता (efficiency), शक्ति गुणांक (power factor), टॉर्क (torque), और गति (speed) जैसी विशेषताओं की गणना कर सकते हैं।



​रोटर कॉपर हानि (Rotor Copper Loss) वह शक्ति हानि है जो प्रेरण मोटर (induction motor) के रोटर वाइंडिंग (rotor winding) में विद्युत धारा (current) के प्रवाह के कारण होती है। 

इसे I²R हानि भी कहते हैं क्योंकि यह वाइंडिंग के प्रतिरोध (R) और उसमें से प्रवाहित होने वाली धारा (I) के वर्ग के गुणनफल के बराबर होती है। ​

मुख्य बिंदु (Key Points) ​यह हानि परिवर्तनशील (variable) होती है, यानी यह मोटर पर लगे भार (load) के साथ बदलती रहती है। ​जब मोटर पर भार बढ़ता है, तो रोटर में धारा भी बढ़ती है, जिससे रोटर कॉपर हानि भी बढ़ जाती है। ​सामान्य ऑपरेशन में, रोटर कॉपर हानि, स्लिप (s) और रोटर इनपुट पावर (P₂) के गुणनफल के बराबर होती है।

रोटर कॉपर हानि का सूत्र (Formula for Rotor Copper Loss) 

​रोटर कॉपर हानि की गणना करने के लिए दो मुख्य सूत्र हैं: ​

रोटर प्रतिरोध और धारा का उपयोग करके: 

P_{cu,r} = 3I_2^2R_2 

जहाँ: ​

P\_{cu,r} = रोटर कॉपर हानि 

​I\_2 = प्रति चरण रोटर धारा ​

R\_2 = प्रति चरण रोटर प्रतिरोध ​

3 = 3-फेज मोटर के लिए ​स्लिप और 

रोटर इनपुट पावर का उपयोग करके: 

P_{cu,r} = s \times P_2 

जहाँ: ​s = स्लिप (slip) ​

P\_2 = रोटर को दी गई शक्ति (air-gap power)



​विकसित यांत्रिक शक्ति (Developed Mechanical Power) वह शक्ति है जो प्रेरण मोटर में वायु अंतराल (air gap) से रोटर में स्थानांतरित होती है और फिर यांत्रिक शक्ति में परिवर्तित हो जाती है।

यह रोटर को घुमाने के लिए उपलब्ध कुल शक्ति है। ​

विकसित यांत्रिक शक्ति का स्थान ​प्रेरण मोटर में शक्ति प्रवाह (power flow) को तीन मुख्य चरणों में समझा जा सकता है: 

रोटर इनपुट पावर (P₂ या P_gap): यह वह विद्युत शक्ति है जो स्टेटर से वायु अंतराल के माध्यम से रोटर में स्थानांतरित होती है।

विकसित यांत्रिक शक्ति (P_dev या P_md): यह वह शक्ति है जो रोटर इनपुट पावर से रोटर कॉपर हानि (rotor copper loss) को घटाने के बाद बचती है। यह मोटर के शाफ्ट पर यांत्रिक ऊर्जा के रूप में विकसित होती है। ​

शाफ्ट आउटपुट पावर (P_out): यह वह अंतिम शक्ति है जो शाफ्ट पर उपलब्ध होती है और भार को चलाने के लिए उपयोग की जाती है। यह विकसित यांत्रिक शक्ति से घर्षण और वायु प्रवाह हानि (friction and windage losses) को घटाने के बाद प्राप्त होती है। ​

सूत्र (Formula) ​विकसित यांत्रिक शक्ति की गणना निम्नलिखित सूत्र से की जा सकती है: ​

P_{dev} = P_2 - P_{cu,r} ​

जहाँ: ​

P_{dev} = विकसित यांत्रिक शक्ति ​

P_2 = रोटर इनपुट पावर (वायु अंतराल शक्ति) ​

P_{cu,r} = रोटर कॉपर हानि ​चूंकि रोटर कॉपर हानि

P_{cu,r} = s \times P_2 होती है (जैसा कि पिछली चर्चा में बताया गया है), 

तो हम इस सूत्र को इस प्रकार भी लिख सकते हैं: ​

P_{dev} = P_2 - s \times P_2 या

P_{dev} = P_2 (1-s) ​



 ​प्रेरण मोटर (induction motor) में अधिकतम यांत्रिक शक्ति (maximum mechanical power) का उत्पादन तब होता है जब रोटर का प्रतिरोध (rotor resistance) उसके प्रतिघात (reactance) के बराबर हो जाता है। ​

यह स्थिति तब आती है जब रोटर का प्रतिरोध (R2) और स्लिप (s) पर रोटर का प्रतिघात (sX2) बराबर होते हैं। ​R_2 = sX_2 ​इससे हम उस विशेष स्लिप (s_{max-power}) की गणना कर सकते हैं

जिस पर अधिकतम शक्ति विकसित होती है: 

s_{max-power} = {R_2}{X_2} 

​यह स्थिति अधिकतम टॉर्क (maximum torque) की स्थिति से अलग है, क्योंकि अधिकतम टॉर्क की स्थिति में रोटर का प्रतिरोध स्टेटर और रोटर के कुल लीकेज प्रतिघात (leakage reactance) के बराबर होता है। ​



​प्रेरण मोटर (induction motor) के रोटर बार को तिरछा (skewed) बनाने के कई महत्वपूर्ण कारण होते हैं। यह एक महत्वपूर्ण डिजाइन विशेषता है जो मोटर के प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद करती है।

मुख्य कारण (Main Reasons)

  1. कोगिंग (Cogging) को रोकना: कोगिंग वह प्रवृत्ति है जिसमें मोटर के स्टेटर और रोटर के दांतेदार हिस्से (teeth) के बीच चुंबकीय खिंचाव (magnetic locking) के कारण मोटर शुरू होते समय अटक जाती है। रोटर बार को तिरछा करने से यह खिंचाव कम हो जाता है, जिससे मोटर आसानी से और सुचारू रूप से शुरू हो पाती है।
  2. हार्मोनिक टॉर्क (Harmonic Torque) को कम करना: स्टेटर में चुंबकीय क्षेत्र पूरी तरह से साइन-वेव (sine wave) नहीं होता है, जिससे हार्मोनिक्स उत्पन्न होते हैं। ये हार्मोनिक्स रोटर में अतिरिक्त टॉर्क कंपन (torque pulsations) पैदा करते हैं, जिसे क्रॉलिंग (crawling) कहा जाता है। तिरछे रोटर बार इन हार्मोनिक्स के प्रभाव को कम करते हैं, जिससे मोटर का संचालन शांत और स्थिर होता है।
  3. शोर को कम करना: हार्मोनिक टॉर्क और कंपन को कम करने से मोटर के संचालन के दौरान होने वाला शोर भी कम हो जाता है, जिससे मोटर अधिक शांत चलती है।
  4. प्रभावी लंबाई बढ़ाना: तिरछे रोटर बार की प्रभावी लंबाई बढ़ जाती है, जिससे रोटर का प्रतिरोध भी थोड़ा बढ़ जाता है। यह मोटर के शुरुआती प्रदर्शन को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।



​पूर्ण भार (full load) पर प्रेरण मोटर (induction motor) में फिसलन (slip) का मतलब है तुल्यकालिक गति (synchronous speed) और रोटर की वास्तविक गति (actual rotor speed) के बीच का अंतर। इस अंतर को तुल्यकालिक गति के प्रतिशत (percentage) के रूप में व्यक्त किया जाता है।

फिसलन का महत्व

  • ​प्रेरण मोटर के रोटर को घूमने के लिए चुंबकीय क्षेत्र में प्रेरित धारा (induced current) की आवश्यकता होती है।
  • ​यह धारा तभी उत्पन्न होती है जब रोटर की गति तुल्यकालिक गति से थोड़ी कम होती है, जिससे रोटर के कंडक्टर चुंबकीय क्षेत्र को काट सकें।
  • ​यह गति का अंतर ही फिसलन कहलाता है और यह मोटर द्वारा आवश्यक टॉर्क (torque) पैदा करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

​पूर्ण भार पर फिसलन का मान

​मोटर पर भार बढ़ने के साथ-साथ उसकी गति थोड़ी कम हो जाती है और फिसलन का मान बढ़ जाता है। पूर्ण भार की स्थिति में, फिसलन का मान आमतौर पर 2% से 6% तक होता है, जो मोटर के आकार पर निर्भर करता है:

  • बड़ी मोटरें (Large motors): लगभग 2% से 4%
  • छोटी मोटरें (Small motors): लगभग 4% से 6%

​यह मान बताता है कि पूर्ण भार पर भी मोटर की गति तुल्यकालिक गति के बहुत करीब होती है, जिससे मोटर दक्षता (efficiency) के साथ काम करती है।


​प्रेरण मोटर के संचालन के दौरान, वाइंडिंग और कोर में होने वाली हानियों (लॉस) के कारण गर्मी उत्पन्न होती है। इस गर्मी को खत्म करने के लिए, मोटर को ठंडा करना ज़रूरी होता है ताकि इसका तापमान सुरक्षित सीमा के भीतर रहे। मोटर की शक्ति और उसके उपयोग के आधार पर, कई शीतलन विधियों का उपयोग किया जाता है।

​प्रेरण मोटर की मुख्य शीतलन विधियाँ (Main Cooling Methods)

  1. प्राकृतिक वायु शीतलन (Natural Air Cooling):
    • ​यह सबसे सरल विधि है और इसका उपयोग कम शक्ति (low power) वाली मोटरों में किया जाता है।
    • ​इस विधि में, मोटर की बाहरी सतह पर पंख (fins) या पसलियां (ribs) बनी होती हैं जो हवा के संपर्क में आकर गर्मी को वातावरण में स्थानांतरित करती हैं।
  2. फैन-कूल्ड या ज़बरदस्ती वायु शीतलन (Fan-Cooled / Forced Air Cooling):
    • ​यह सबसे आम और व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली विधि है, विशेषकर मध्यम शक्ति (medium power) की मोटरों के लिए।
    • ​इसमें मोटर के शाफ्ट पर एक पंखा (fan) लगा होता है, जो मोटर के घूमने पर भी घूमता है। यह पंखा हवा को मोटर की बाहरी सतह पर लगे पंखों (fins) के ऊपर से ज़ोर से बहाता है, जिससे गर्मी का अपव्यय (dissipation) बढ़ जाता है।
    • ​इस प्रकार की मोटरों को अक्सर TEFC (Totally Enclosed Fan-Cooled) मोटर कहा जाता है।
  3. तरल शीतलन (Liquid Cooling):
    • ​यह विधि उच्च शक्ति (high power) वाली मोटरों के लिए उपयोग की जाती है, जहाँ वायु शीतलन पर्याप्त नहीं होता।
    • ​इस विधि में, मोटर के अंदर या बाहर पानी या तेल जैसे तरल पदार्थ को चैनलों (channels) या जैकेट (jacket) के माध्यम से प्रवाहित किया जाता है।
    • ​यह तरल मोटर से गर्मी को अवशोषित करता है और फिर एक रेडिएटर या हीट एक्सचेंजर में ठंडा होकर वापस मोटर में आता है।
  4. हाइड्रोजन शीतलन (Hydrogen Cooling):
    • ​यह सबसे उन्नत और प्रभावी शीतलन विधि है, जो मुख्य रूप से बहुत बड़े जनरेटर और मोटरों (very large generators and motors) में उपयोग की जाती है।
    • ​हाइड्रोजन गैस में हवा की तुलना में गर्मी को हटाने की बहुत अधिक क्षमता होती है।
    • ​यह एक बंद प्रणाली (closed system) में काम करता है, जो उच्च दक्षता प्रदान करता है।



​प्रेरण मोटर तुल्यकालिक गति (synchronous speed) से अधिक नहीं चल सकती क्योंकि इसका कार्य सिद्धांत ही ऐसा है। मोटर को टॉर्क (torque) उत्पन्न करने के लिए फिसलन (slip) की आवश्यकता होती है, और यह फिसलन तभी संभव है जब रोटर की गति तुल्यकालिक गति से कम हो।

​मुख्य कारण (Main Reasons)

  • टॉर्क की आवश्यकता: मोटर को घूमने और भार को चलाने के लिए लगातार टॉर्क की जरूरत होती है।
  • प्रेरण का सिद्धांत: प्रेरण मोटर में रोटर में धारा प्रेरण के माध्यम से उत्पन्न होती है। यह प्रेरण तभी होता है जब रोटर के कंडक्टर स्टेटर के घूमते हुए चुंबकीय क्षेत्र को काटते हैं।
  • गति का संबंध: यदि रोटर की गति तुल्यकालिक गति के बराबर हो जाए, तो रोटर और चुंबकीय क्षेत्र के बीच कोई सापेक्ष गति (relative motion) नहीं होगी।
  • टॉर्क का शून्य होना: सापेक्ष गति के अभाव में, रोटर के कंडक्टर चुंबकीय क्षेत्र को नहीं काट पाएंगे, जिससे रोटर में कोई वोल्टेज प्रेरित नहीं होगा। नतीजतन, रोटर में कोई धारा नहीं बहेगी और कोई टॉर्क उत्पन्न नहीं होगा। टॉर्क के बिना, मोटर अपनी गति बनाए नहीं रख सकती और तुरंत धीमी हो जाएगी।

​संक्षेप में, 

प्रेरण मोटर का संचालन इस बात पर निर्भर करता है कि रोटर हमेशा तुल्यकालिक गति से थोड़ा पीछे रहे ताकि लगातार टॉर्क उत्पन्न हो सके।



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