कैपेसिटर बैंक (संधारित्र बैंक) ( Capacitor Bank )

कैपेसिटर बैंक (संधारित्र बैंक) एक विद्युत प्रणाली है जिसमें कई कैपेसिटर को एक साथ जोड़ा जाता है। इन कैपेसिटर को श्रृंखला (सीरीज़), समानांतर (पैरेलल) या दोनों तरीकों से जोड़ा जा सकता है।

इसका मुख्य उद्देश्य बिजली प्रणालियों की दक्षता (एफिशिएंसी) में सुधार करना है।

कैपेसिटर बैंक के मुख्य उपयोग:

  • पावर फैक्टर सुधार (Power Factor Correction): औद्योगिक क्षेत्रों में मोटर और ट्रांसफार्मर जैसे बड़े उपकरण बिजली ग्रिड से रिएक्टिव पावर खींचते हैं, जिससे पावर फैक्टर कम हो जाता है। एक कम पावर फैक्टर का मतलब है कि बिजली का एक बड़ा हिस्सा व्यर्थ जा रहा है। कैपेसिटर बैंक इस रिएक्टिव पावर को संतुलित करके पावर फैक्टर को बढ़ाता है, जिससे बिजली की खपत कम होती है और सिस्टम की दक्षता बढ़ती है।
  • वोल्टेज स्थिरीकरण (Voltage Stabilization): कैपेसिटर बैंक बिजली के वोल्टेज को स्थिर रखने में मदद करते हैं। जब किसी क्षेत्र में वोल्टेज कम या ज्यादा होता है, तो ये बैंक वोल्टेज को सामान्य स्तर पर लाकर उपकरणों को क्षति से बचाते हैं।
  • ऊर्जा भंडारण और जारी करना: कैपेसिटर बैंक थोड़े समय के लिए विद्युत ऊर्जा को संग्रहित (स्टोर) कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर इसे तेजी से जारी कर सकते हैं। यह उन जगहों पर उपयोगी होता है जहां बिजली की अचानक मांग (जैसे किसी बड़ी मशीन को चालू करने पर) होती है।

सरल शब्दों में, 

कैपेसिटर बैंक बिजली के बिल को कम करने, उपकरणों के जीवनकाल को बढ़ाने और बिजली प्रणाली को अधिक स्थिर और कुशल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।



कैपेसिटर बैंक कई कैपेसिटर इकाइयों को एक साथ श्रृंखला (series) या समानांतर (parallel) संयोजन में जोड़कर बनाया गया एक उपकरण है। इसका मुख्य उद्देश्य बिजली प्रणाली की दक्षता में सुधार करना है। यह अतिरिक्त विद्युत ऊर्जा को संग्रहित करता है और जरूरत पड़ने पर उसे छोड़ता है।

अनुप्रयोग

​कैपेसिटर बैंक का उपयोग मुख्य रूप से विद्युत प्रणालियों में निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाता है:

  • पावर फैक्टर सुधार (Power Factor Correction): यह सबसे महत्वपूर्ण अनुप्रयोग है। औद्योगिक भार (जैसे मोटर और ट्रांसफॉर्मर) आमतौर पर इंडक्टिव होते हैं, जो पावर फैक्टर को कम कर देते हैं। कम पावर फैक्टर से बिजली की बर्बादी होती है और बिजली बिल बढ़ता है। कैपेसिटर बैंक reactive power की आपूर्ति करके इस इंडक्टिव प्रभाव को खत्म कर देता है, जिससे पावर फैक्टर 1 के करीब आ जाता है।
  • वोल्टेज विनियमन (Voltage Regulation): कैपेसिटर बैंक विद्युत प्रणाली में वोल्टेज को स्थिर रखने में मदद करता है। जब भार बढ़ता है, तो वोल्टेज गिर सकता है। कैपेसिटर बैंक reactive power की आपूर्ति करके वोल्टेज को वांछित स्तर पर बनाए रखता है।
  • सिस्टम क्षमता बढ़ाना: पावर फैक्टर में सुधार करके, कैपेसिटर बैंक ट्रांसफॉर्मर और कंडक्टर पर लोड कम करता है। इससे मौजूदा बुनियादी ढांचे का उपयोग करके अधिक भार को संभाला जा सकता है, जिससे सिस्टम की क्षमता बढ़ जाती है।
  • हार्मोनिक फ़िल्टरिंग (Harmonic Filtering): कुछ कैपेसिटर बैंकों को हार्मोनिक फ़िल्टर के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है। ये बिजली प्रणाली में मौजूद अवांछित हार्मोनिक धाराओं को हटाकर बिजली की गुणवत्ता में सुधार करते हैं।


पावर फैक्टर सुधार (Power Factor Correction) आवश्यक है क्योंकि यह विद्युत प्रणाली की दक्षता को बढ़ाता है और ऊर्जा की बर्बादी को कम करता है।

पावर फैक्टर सुधार की आवश्यकता क्यों है?

​इंडक्टिव लोड (जैसे मोटर्स, ट्रांसफॉर्मर और इंडक्शन फर्नेस) विद्युत प्रणालियों में बहुत आम हैं। ये उपकरण काम करने के लिए reactive power खींचते हैं, जिससे वोल्टेज और करंट के बीच एक फेज अंतर (phase difference) पैदा होता है। यह फेज अंतर पावर फैक्टर को कम करता है, जिसका मतलब है कि कुल खपत की गई शक्ति का केवल एक हिस्सा ही वास्तविक कार्य (active power) में परिवर्तित होता है।

कम पावर फैक्टर के कारण:

  • बिजली की बर्बादी: सिस्टम में अतिरिक्त करंट प्रवाहित होता है, जिससे ट्रांसमिशन लाइनों में अधिक ऊर्जा की हानि होती है।
  • बढ़े हुए बिजली के बिल: उपयोगिता कंपनियाँ अक्सर कम पावर फैक्टर वाले ग्राहकों पर जुर्माना लगाती हैं।
  • उपकरणों पर अधिक भार: कम पावर फैक्टर के कारण उपकरणों को अधिक करंट खींचना पड़ता है, जिससे वे अधिक गर्म होते हैं और उनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है।

कैपेसिटर बैंक कैसे मदद करता है?

​एक कैपेसिटर बैंक इन समस्याओं को हल करने में मदद करता है। कैपेसिटर बैंक reactive power प्रदान करके इंडक्टिव लोड द्वारा खींची गई lagging reactive power को संतुलित करता है।

कार्यप्रणाली:

  1. lagging reactive power को संतुलित करना: इंडक्टिव लोड (जैसे मोटर) lagging current खींचते हैं, जिससे वोल्टेज और करंट के बीच का फेज अंतर बढ़ता है।
  2. leading reactive power की आपूर्ति: कैपेसिटर बैंक, इसके विपरीत, leading current उत्पन्न करते हैं।
  3. पावर फैक्टर में सुधार: जब कैपेसिटर बैंक को इंडक्टिव लोड के समानांतर (parallel) में जोड़ा जाता है, तो इसके द्वारा उत्पन्न leading reactive power, इंडक्टिव लोड द्वारा खींची गई lagging reactive power को रद्द कर देती है। इससे वोल्टेज और करंट फिर से फेज में आ जाते हैं, जिससे पावर फैक्टर 1 के करीब पहुंच जाता है।

इस प्रकार, 

कैपेसिटर बैंक न केवल ऊर्जा की बर्बादी को कम करता है, बल्कि बिजली के बिलों को भी कम करने और विद्युत प्रणाली की समग्र दक्षता और स्थिरता को बेहतर बनाने में मदद करता है।



कैपेसिटर बैंक को उनके उपयोग और कार्यप्रणाली के आधार पर कई प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है। मुख्य रूप से उन्हें दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है: नियत (Fixed) और स्वचालित (Automatic)

नियत कैपेसिटर बैंक (Fixed Capacitor Banks)

  • ​ये सबसे सरल और किफायती प्रकार के कैपेसिटर बैंक होते हैं।
  • ​ये हमेशा ऑन रहते हैं और एक निरंतर मात्रा में reactive power की आपूर्ति करते हैं, भले ही लोड की आवश्यकता बदल जाए।
  • ​इनका उपयोग उन विद्युत प्रणालियों के लिए सबसे उपयुक्त है जहाँ लोड स्थिर या बहुत कम बदलता है, जैसे कि एक बड़ी मोटर या प्रकाश व्यवस्था।
  • ​इनका उपयोग पावर फैक्टर को एक निश्चित स्तर तक बढ़ाने के लिए किया जाता है और इन्हें कम रखरखाव की आवश्यकता होती है।

स्वचालित कैपेसिटर बैंक (Automatic Capacitor Banks)

  • ​इन बैंकों में एक नियंत्रण इकाई (controller) होती है जो सिस्टम के reactive power की आवश्यकता के अनुसार कैपेसिटर इकाइयों को स्वचालित रूप से जोड़ती या हटाती है।
  • ​ये उन औद्योगिक सुविधाओं के लिए आदर्श हैं जहाँ विद्युत भार पूरे दिन बदलता रहता है।
  • ​यह सुनिश्चित करता है कि पावर फैक्टर हमेशा एक वांछित सीमा के भीतर बना रहे, जिससे अत्यधिक मुआवजा (overcompensation) और वोल्टेज में उतार-चढ़ाव से बचा जा सके।
  • ​इनका उपयोग APFC (Automatic Power Factor Correction) पैनलों में किया जाता है, जो मैन्युअल हस्तक्षेप के बिना दक्षता बनाए रखने में मदद करते हैं।

अन्य प्रकार

​इन मुख्य प्रकारों के अलावा, कैपेसिटर बैंकों को उनके डिज़ाइन या उपयोग के आधार पर भी वर्गीकृत किया जाता है:

  • स्विच्ड कैपेसिटर बैंक (Switched Capacitor Banks): ये मैनुअल या स्वचालित रूप से चालू-बंद किए जा सकते हैं, जो फिक्स्ड और स्वचालित बैंकों के बीच का एक प्रकार है।
  • ट्यून्ड कैपेसिटर बैंक (Tuned Capacitor Banks): ये विशेष रूप से हार्मोनिक्स को फ़िल्टर करने के लिए डिज़ाइन किए जाते हैं, जिसमें कैपेसिटर और रिएक्टर श्रृंखला में जुड़े होते हैं।
  • सबस्टेशन/पोल/कैबिनेट प्रकार: यह वर्गीकरण उनके भौतिक स्थान के आधार पर होता है, जैसे सबस्टेशनों में बड़े पैमाने पर स्थापित बैंक, या छोटे पोल-माउंटेड बैंक।


एक कैपेसिटर बैंक का निर्माण कई अलग-अलग घटकों को एक साथ जोड़कर किया जाता है ताकि एक एकल, कार्यात्मक इकाई बन सके। इसका उद्देश्य आवश्यक क्षमता और वोल्टेज रेटिंग प्राप्त करना है।

मुख्य घटक (Main Components)

​कैपेसिटर बैंक के निर्माण में कई महत्वपूर्ण भाग शामिल होते हैं:

  • कैपेसिटर इकाइयाँ (Capacitor Units): ये बैंक के मुख्य घटक हैं। प्रत्येक इकाई एक अलग सीलबंद कंटेनर होती है जिसमें एक डाइइलेक्ट्रिक सामग्री (जैसे पॉलीप्रोपाइलीन फिल्म) होती है। ये इकाईयाँ बैंक की कुल क्षमता (capacitance) और वोल्टेज रेटिंग निर्धारित करती हैं।
  • आंतरिक वायरिंग (Internal Wiring): ये तार कैपेसिटर इकाइयों को आपस में और बैंक के मुख्य टर्मिनल से जोड़ते हैं। कनेक्शन या तो समानांतर (parallel) या श्रृंखला (series) में किया जाता है, जो बैंक के उद्देश्य पर निर्भर करता है।
  • फ्यूज और स्विच (Fuses and Switches): प्रत्येक कैपेसिटर इकाई को सुरक्षा प्रदान करने के लिए आमतौर पर उसके साथ एक फ्यूज लगाया जाता है। यह शॉर्ट सर्किट या ओवरकरंट की स्थिति में इकाई को क्षतिग्रस्त होने से बचाता है। बड़े बैंकों में, स्विचिंग उपकरण (जैसे कॉन्टैक्टर्स या सर्किट ब्रेकर) का उपयोग इकाइयों को चालू या बंद करने के लिए किया जाता है।
  • कंट्रोलर (Controller) (स्वचालित बैंकों के लिए): स्वचालित पावर फैक्टर सुधार (APFC) बैंकों में एक माइक्रोप्रोसेसर-आधारित कंट्रोलर होता है। यह कंट्रोलर लगातार सिस्टम के पावर फैक्टर को मापता है और आवश्यकता के अनुसार कैपेसिटर इकाइयों को स्वचालित रूप से जोड़ता या हटाता है।
  • आवरण (Enclosure/Housing): सभी घटकों को एक धातु के कैबिनेट या आवरण में रखा जाता है। यह आवरण बैंक को धूल, नमी और अन्य पर्यावरणीय कारकों से बचाता है, साथ ही सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

निर्माण प्रक्रिया (Construction Process)

​कैपेसिटर बैंक का निर्माण निम्नलिखित चरणों में किया जाता है:

  1. इकाइयों का चयन: सिस्टम की आवश्यकताओं के अनुसार, सही क्षमता और वोल्टेज रेटिंग वाली कैपेसिटर इकाइयों का चयन किया जाता है।
  2. कनेक्शन: अधिकांश पावर फैक्टर सुधार बैंकों में, कैपेसिटर इकाइयों को समानांतर (parallel) में जोड़ा जाता है। ऐसा करने से कुल क्षमता (capacitance) बढ़ जाती है। यदि उच्च वोल्टेज की आवश्यकता होती है, तो इकाइयों को श्रृंखला (series) में जोड़ा जा सकता है।
  3. सुरक्षा और नियंत्रण: प्रत्येक इकाई के साथ एक फ्यूज लगाया जाता है। स्वचालित बैंक में, कंट्रोलर को स्थापित किया जाता है और उसके आउटपुट को स्विचिंग उपकरणों (जैसे कॉन्टैक्टर्स) से जोड़ा जाता है।
  4. अंतिम संयोजन: सभी घटक, जैसे कैपेसिटर, वायरिंग, फ्यूज और कंट्रोलर को, अंतिम आवरण में सावधानीपूर्वक स्थापित किया जाता है। फिर बैंक को विद्युत प्रणाली से जोड़ने के लिए इनपुट और आउटपुट टर्मिनल लगाए जाते हैं।

इस तरह से, 

एक कैपेसिटर बैंक को विभिन्न घटकों का उपयोग करके बनाया जाता है ताकि यह एक सुरक्षित और प्रभावी तरीके से विद्युत प्रणाली में reactive power की आपूर्ति कर सके।



एक संधारित्र बैंक का मूल आरेख (basic diagram) विद्युत प्रणाली में उसके कार्य और घटकों को दर्शाता है। यह दिखाता है कि कैसे कई संधारित्र इकाइयां एक साथ जुड़कर काम करती हैं।

आरेख का स्पष्टीकरण (Diagram Explanation)

​एक सामान्य संधारित्र बैंक आरेख में निम्नलिखित प्रमुख घटक शामिल होते हैं:

  1. बिजली आपूर्ति (Power Supply): यह विद्युत स्रोत है जो पूरी प्रणाली को शक्ति प्रदान करता है।
  2. भार (Load): यह वह उपकरण है जो बिजली की खपत करता है, जैसे कि एक मोटर। यह आमतौर पर इंडक्टिव होता है, जो पावर फैक्टर को कम करता है।
  3. कैपेसिटर बैंक (Capacitor Bank): यह मुख्य इकाई है जिसमें कई कैपेसिटर इकाइयाँ (capacitor units) एक साथ समानांतर (parallel) में जुड़ी होती हैं।
  4. स्विच/कॉन्टैक्टर (Switch/Contactor): यह एक उपकरण है जो कैपेसिटर बैंक को जरूरत पड़ने पर बिजली आपूर्ति से जोड़ता या हटाता है। यह मैनुअल हो सकता है या स्वचालित नियंत्रण इकाई द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।

आरेख की कार्यप्रणाली (How the Diagram Works)

  • ​आरेख में, कैपेसिटर बैंक को लोड के समानांतर (parallel to the load) जोड़ा गया है।
  • ​जब लोड (उदाहरण के लिए, एक बड़ी मोटर) चालू होता है, तो यह बिजली आपूर्ति से वास्तविक (active) और प्रतिक्रियाशील (reactive) दोनों प्रकार की शक्ति खींचता है। यह प्रतिक्रियाशील शक्ति वोल्टेज और करंट के बीच एक चरण अंतर (phase difference) पैदा करती है, जिससे पावर फैक्टर कम हो जाता है।
  • ​जब स्विच को बंद करके कैपेसिटर बैंक को चालू किया जाता है, तो यह सिस्टम में प्रतिक्रियाशील शक्ति की आपूर्ति करता है।
  • ​कैपेसिटर बैंक द्वारा प्रदान की गई यह शक्ति मोटर द्वारा खींची गई प्रतिक्रियाशील शक्ति को संतुलित (balance) करती है, जिससे बिजली आपूर्ति से खींची गई कुल प्रतिक्रियाशील शक्ति कम हो जाती है।
  • ​परिणामस्वरूप, वोल्टेज और करंट के बीच का चरण अंतर कम हो जाता है और पावर फैक्टर 1 के करीब आ जाता है, जिससे सिस्टम की दक्षता बढ़ जाती है।

​यह आरेख दर्शाता है कि एक कैपेसिटर बैंक कैसे एक विद्युत प्रणाली में एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में काम करता है ताकि पावर फैक्टर में सुधार किया जा सके और ऊर्जा की बर्बादी को कम किया जा सके।



कैपेसिटर बैंक में कई मुख्य घटक होते हैं जो एक साथ काम करके पावर फैक्टर में सुधार करते हैं और विद्युत प्रणाली की दक्षता बढ़ाते हैं।

मुख्य घटक

  1. कैपेसिटर इकाइयाँ (Capacitor Units): ये बैंक के सबसे महत्वपूर्ण घटक हैं। ये विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए कैपेसिटर होते हैं जिन्हें श्रृंखला या समानांतर में जोड़कर आवश्यक क्षमता और वोल्टेज रेटिंग प्राप्त की जाती है। वे reactive power को स्टोर करते हैं और उसे प्रणाली में वापस भेजते हैं।
  2. स्विचिंग उपकरण (Switching Devices): ये कॉन्टैक्टर्स या सर्किट ब्रेकर जैसे उपकरण होते हैं जो आवश्यकता पड़ने पर कैपेसिटर इकाइयों को चालू या बंद करते हैं। स्वचालित (automatic) बैंकों में, एक नियंत्रण इकाई इन स्विचों को संचालित करती है।
  3. नियंत्रण इकाई (Controller): यह केवल स्वचालित कैपेसिटर बैंकों में पाया जाता है। यह एक माइक्रोप्रोसेसर-आधारित इकाई है जो सिस्टम के पावर फैक्टर को लगातार मापती है। जब पावर फैक्टर एक निश्चित स्तर से नीचे गिरता है, तो यह कंट्रोलर स्वचालित रूप से कैपेसिटर इकाइयों को चालू करता है।
  4. फ्यूज और सर्किट ब्रेकर (Fuses and Circuit Breakers): ये सुरक्षा उपकरण हैं। प्रत्येक कैपेसिटर इकाई को ओवरकरंट या शॉर्ट सर्किट से बचाने के लिए एक फ्यूज लगाया जाता है। मुख्य सर्किट ब्रेकर पूरे बैंक को प्रणाली से अलग करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  5. बसबार (Busbars) और वायरिंग (Wiring): बसबार मोटी धातु की प्लेटें होती हैं जिनका उपयोग उच्च करंट को एक घटक से दूसरे घटक तक ले जाने के लिए किया जाता है। वायरिंग व्यक्तिगत इकाइयों को स्विच और बसबार से जोड़ती है।
  6. आवरण (Enclosure): यह एक धातु का कैबिनेट होता है जो सभी आंतरिक घटकों को बाहरी तत्वों जैसे धूल, नमी और क्षति से बचाता है। यह बैंक की स्थापना के लिए एक सुरक्षित संरचना भी प्रदान करता है।




कैपेसिटर बैंकों का उपयोग विद्युत प्रणाली की दक्षता को बढ़ाने के लिए किया जाता है, लेकिन इनके कुछ नुकसान भी हैं।

फायदे (Advantages)

  • पावर फैक्टर में सुधार (Improved Power Factor): यह सबसे बड़ा फायदा है। कैपेसिटर बैंक इंडक्टिव लोड (जैसे मोटर्स) द्वारा खींची गई प्रतिक्रियाशील शक्ति (reactive power) को संतुलित करते हैं, जिससे पावर फैक्टर 1 के करीब आ जाता है।
  • बिजली के बिल में कमी (Reduced Electricity Bills): कम पावर फैक्टर के लिए अक्सर उपयोगिता कंपनियाँ जुर्माना लगाती हैं। पावर फैक्टर में सुधार करके, ये जुर्माने समाप्त हो जाते हैं, जिससे बिजली के बिल में काफी बचत होती है।
  • वोल्टेज विनियमन (Voltage Regulation): कैपेसिटर बैंक प्रणाली में वोल्टेज को स्थिर बनाए रखने में मदद करते हैं, जिससे वोल्टेज में उतार-चढ़ाव कम होता है और उपकरणों का प्रदर्शन बेहतर होता है।
  • प्रणाली की क्षमता में वृद्धि (Increased System Capacity): पावर फैक्टर में सुधार करके, ट्रांसफॉर्मर और कंडक्टर पर करंट का भार कम हो जाता है। इससे मौजूदा बुनियादी ढांचे का उपयोग करके अधिक भार को जोड़ा जा सकता है।

नुकसान (Disadvantages)

  • अति-क्षतिपूर्ति (Over-compensation): यदि लोड की आवश्यकता से अधिक प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान की जाती है, तो यह ओवर-कंपंसेशन का कारण बन सकता है, जिससे सिस्टम में वोल्टेज बढ़ जाता है। यह वोल्टेज वृद्धि उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकती है।
  • हार्मोनिक्स का खतरा (Risk of Harmonics): कैपेसिटर बैंक हार्मोनिक अनुनाद (harmonic resonance) को बढ़ा सकते हैं, जिससे बिजली की गुणवत्ता खराब हो सकती है और संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
  • स्थापना और रखरखाव की लागत (Installation and Maintenance Cost): कैपेसिटर बैंकों को स्थापित करने की प्रारंभिक लागत अधिक हो सकती है। इसके अलावा, इन्हें सुरक्षित और प्रभावी ढंग से काम करने के लिए नियमित रखरखाव की आवश्यकता होती है।
  • स्विचिंग ट्रांजिएंट्स (Switching Transients): कैपेसिटर बैंक को अचानक चालू या बंद करने से वोल्टेज और करंट में क्षणिक वृद्धि (transient spike) हो सकती है, जो सिस्टम के अन्य घटकों पर तनाव डाल सकती है।



कैपेसिटर बैंक का चयन करते समय, विद्युत प्रणाली की विशिष्ट आवश्यकताओं और स्थितियों के आधार पर कई महत्वपूर्ण कारकों पर विचार करना आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह प्रभावी ढंग से काम करे और सुरक्षित हो।

विचारणीय कारक (Factors to Consider)

  • लोड का प्रकार (Type of Load): सबसे पहले, यह निर्धारित करें कि आपका लोड स्थिर है या परिवर्तनशील।
    • ​यदि लोड स्थिर है (जैसे कि एक बड़ी मोटर जो लगातार चलती है), तो एक नियत (fixed) कैपेसिटर बैंक पर्याप्त होगा।
    • ​यदि लोड पूरे दिन बदलता रहता है (जैसे एक विनिर्माण संयंत्र), तो एक स्वचालित (automatic) कैपेसिटर बैंक की आवश्यकता होगी, जो लोड की मांग के अनुसार प्रतिक्रियाशील शक्ति को समायोजित कर सके।
  • पावर फैक्टर की आवश्यकता (Required Power Factor): यह तय करें कि आप वर्तमान पावर फैक्टर को किस स्तर तक सुधारना चाहते हैं। यह गणना करने में मदद करता है कि आपको कितने kVAr (kilo-volt-ampere reactive) क्षमता वाले कैपेसिटर बैंक की आवश्यकता है।
  • वोल्टेज और आवृत्ति रेटिंग (Voltage and Frequency Rating): कैपेसिटर बैंक की वोल्टेज और आवृत्ति रेटिंग (उदा. 415V, 50Hz) विद्युत प्रणाली के वोल्टेज और आवृत्ति से मेल खानी चाहिए। गलत रेटिंग से बैंक को नुकसान हो सकता है।
  • हार्मोनिक्स की उपस्थिति (Presence of Harmonics): कुछ औद्योगिक वातावरण में हार्मोनिक्स (harmonics) मौजूद होते हैं। यदि आपके सिस्टम में हार्मोनिक्स हैं, तो एक सामान्य कैपेसिटर बैंक हार्मोनिक अनुनाद (harmonic resonance) का कारण बन सकता है। ऐसे मामलों में, एक ट्यून्ड (tuned) या डी-ट्यून्ड (detuned) कैपेसिटर बैंक का उपयोग करना सबसे अच्छा होता है जो हार्मोनिक्स को फ़िल्टर कर सके।
  • तापमान और पर्यावरण (Temperature and Environment): बैंक को ऐसे वातावरण में स्थापित किया जाना चाहिए जहाँ तापमान, आर्द्रता और धूल की स्थिति उसके डिज़ाइन मानकों के अनुरूप हो। अत्यधिक गर्मी या धूल से बैंक के घटकों की विफलता हो सकती है।
  • स्विचिंग आवश्यकताएं (Switching Requirements): विचार करें कि क्या आपको मैन्युअल स्विचिंग की आवश्यकता है या स्वचालित नियंत्रण की। स्वचालित नियंत्रण उन प्रणालियों के लिए बेहतर है जहां मानवीय हस्तक्षेप के बिना पावर फैक्टर को बनाए रखने की आवश्यकता होती है।



स्वचालित कैपेसिटर स्विचिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक नियंत्रण इकाई (controller) विद्युत प्रणाली के पावर फैक्टर की निगरानी करती है और आवश्यकता के अनुसार कैपेसिटर इकाइयों को स्वचालित रूप से चालू या बंद करती है। यह सुनिश्चित करता है कि पावर फैक्टर लगातार एक वांछित स्तर पर बना रहे।

इसका उपयोग क्यों किया जाता है?

​स्वचालित कैपेसिटर स्विचिंग का उपयोग मुख्य रूप से उन विद्युत प्रणालियों में किया जाता है जहां भार (load) लगातार बदलता रहता है। इसके उपयोग के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

  • लगातार पावर फैक्टर सुधार (Continuous Power Factor Correction): जब औद्योगिक संयंत्रों में मोटर्स और अन्य उपकरण चालू या बंद होते रहते हैं, तो पावर फैक्टर भी बदलता है। स्वचालित स्विचिंग मैन्युअल हस्तक्षेप के बिना, हर समय पावर फैक्टर को सही स्तर पर बनाए रखती है।
  • अति-क्षतिपूर्ति से बचाव (Avoiding Over-compensation): यदि आप एक नियत कैपेसिटर बैंक का उपयोग करते हैं और लोड कम हो जाता है, तो बैंक अभी भी अतिरिक्त reactive power प्रदान करता रहेगा। इससे वोल्टेज में खतरनाक वृद्धि (over-voltage) हो सकती है। स्वचालित स्विचिंग केवल आवश्यक मात्रा में ही reactive power प्रदान करती है, जिससे इस जोखिम से बचा जा सकता है।
  • ऊर्जा और लागत की बचत (Energy and Cost Savings): लगातार सही पावर फैक्टर बनाए रखने से बिजली की बर्बादी कम होती है। इससे न केवल ऊर्जा की खपत कम होती है, बल्कि कम पावर फैक्टर के लिए लगने वाले जुर्माने से भी बचा जा सकता है, जिससे बिजली बिल में महत्वपूर्ण कमी आती है।
  • उपकरणों की सुरक्षा (Equipment Protection): स्थिर वोल्टेज और नियंत्रित पावर फैक्टर से उपकरण कम तनाव में काम करते हैं, जिससे उनका जीवनकाल बढ़ता है।

​यह प्रणाली APFC (Automatic Power Factor Correction) पैनल का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो आधुनिक औद्योगिक और वाणिज्यिक सेटिंग्स में बहुत महत्वपूर्ण है।



अनुनाद एक ऐसी स्थिति है जिसमें विद्युत प्रणाली में कैपेसिटर बैंक और प्रणाली के इंडक्टेंस (जैसे ट्रांसफॉर्मर और मोटर्स से) मिलकर एक प्रतिध्वनि (resonant) सर्किट बनाते हैं। जब इस सर्किट की प्राकृतिक आवृत्ति, सिस्टम में मौजूद हार्मोनिक्स की आवृत्ति से मेल खाती है, तो अनुनाद की स्थिति उत्पन्न होती है।

हार्मोनिक्स और कैपेसिटर बैंक

​हार्मोनिक्स, गैर-रैखिक भार (non-linear loads) जैसे कि वेरिएबल फ्रीक्वेंसी ड्राइव (VFD), कंप्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों द्वारा उत्पन्न अवांछित धाराएं और वोल्टेज हैं। ये धाराएं मूल आवृत्ति (50 Hz या 60 Hz) के गुणक (multiple) होती हैं।

​जब एक सामान्य कैपेसिटर बैंक को ऐसे सिस्टम में जोड़ा जाता है, तो यह इंडक्टेंस के साथ मिलकर एक समानांतर अनुनाद सर्किट (parallel resonant circuit) बनाता है। यह सर्किट विशेष हार्मोनिक आवृत्तियों के लिए एक कम प्रतिबाधा (low-impedance) वाला मार्ग बन जाता है, जिससे वे उस पर केंद्रित होने लगते हैं।

अनुनाद का प्रभाव

​अनुनाद की स्थिति में, कैपेसिटर बैंक पर निम्नलिखित गंभीर प्रभाव पड़ते हैं:

  • अत्यधिक धारा और ओवरहीटिंग (Excessive Current and Overheating): अनुनाद के कारण, बैंक के माध्यम से बहुत अधिक हार्मोनिक धारा प्रवाहित होती है, जो कैपेसिटर इकाइयों को ओवरलोड करती है। यह अत्यधिक गर्मी पैदा करता है, जिससे बैंक के डाइइलेक्ट्रिक सामग्री को नुकसान होता है और अंततः वह विफल हो सकता है।
  • वोल्टेज विरूपण (Voltage Distortion): अनुनाद के कारण बैंक में उत्पन्न उच्च धाराएं प्रणाली में वोल्टेज विरूपण को बढ़ाती हैं। यह वोल्टेज विरूपण अन्य संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के सामान्य कामकाज में बाधा डाल सकता है और उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है।
  • उपकरणों की विफलता (Equipment Failure): अनुनाद के कारण उत्पन्न उच्च धाराएं और वोल्टेज न केवल कैपेसिटर बैंक को बल्कि ट्रांसफॉर्मर, मोटर और अन्य स्विचिंग उपकरणों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं, जिससे उनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है या वे पूरी तरह से विफल हो जाते हैं।

इस समस्या से बचने के लिए, 

हार्मोनिक-प्रवण प्रणालियों में डी-ट्यून्ड (detuned) या ट्यून्ड (tuned) कैपेसिटर बैंकों का उपयोग किया जाता है। इन बैंकों में रिएक्टर (inductor) को कैपेसिटर के साथ श्रृंखला में जोड़ा जाता है ताकि अनुनाद आवृत्ति को हानिकारक हार्मोनिक्स से दूर स्थानांतरित किया जा सके और उन्हें फ़िल्टर किया जा सके।



संधारित्र बैंकों की सुरक्षा के लिए कई योजनाएँ और उपकरण उपयोग किए जाते हैं ताकि उन्हें अत्यधिक धारा, वोल्टेज वृद्धि और अवशिष्ट आवेश (residual charge) से बचाया जा सके। ये योजनाएँ उपकरण की सुरक्षा और कर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं।

मुख्य सुरक्षा योजनाएँ

  • अतिकरंट सुरक्षा (Overcurrent Protection):
    • ​प्रत्येक कैपेसिटर इकाई को एक फ्यूज से सुरक्षित किया जाता है। यदि किसी इकाई में शॉर्ट सर्किट होता है, तो यह फ्यूज केवल उसी इकाई को अलग कर देता है, जिससे पूरी बैंक को नुकसान होने से बचाया जा सके।
    • ​बैंक के मुख्य इनपुट पर एक सर्किट ब्रेकर लगाया जाता है जो ओवरलोड या बड़े शॉर्ट सर्किट की स्थिति में पूरी बैंक को बिजली से अलग कर देता है।
  • अति-वोल्टेज सुरक्षा (Overvoltage Protection):
    • ​वोल्टेज वृद्धि (voltage surges) कैपेसिटर के डाइइलेक्ट्रिक को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचा सकती है। इसे रोकने के लिए वोल्टेज रिले का उपयोग किया जाता है। यह रिले वोल्टेज की निगरानी करता है और यदि यह एक सुरक्षित सीमा से अधिक हो जाता है, तो बैंक को स्वचालित रूप से बंद कर देता है।
    • ​बिजली गिरने जैसी बाहरी वोल्टेज वृद्धि से बचाने के लिए सर्ज अरेस्टर (surge arresters) का भी उपयोग किया जाता है।
  • डिस्चार्जिंग डिवाइस (Discharging Devices):
    • ​यह सुरक्षा की एक बहुत ही महत्वपूर्ण योजना है। बिजली से डिस्कनेक्ट होने के बाद भी, कैपेसिटर एक खतरनाक वोल्टेज को बनाए रख सकते हैं। कर्मियों को बिजली के झटके से बचाने के लिए, प्रत्येक कैपेसिटर इकाई से डिस्चार्जिंग रेसिस्टर (discharging resistors) स्थायी रूप से जुड़े होते हैं। ये रेसिस्टर बैंक के बंद होने के बाद अवशिष्ट आवेश को कुछ मिनटों के भीतर सुरक्षित स्तर तक कम कर देते हैं।
  • हार्मोनिक फिल्टरिंग (Harmonic Filtering):
    • ​जहां सिस्टम में हार्मोनिक्स मौजूद होते हैं, वहां अनुनाद (resonance) को रोकने के लिए रिएक्टर (reactor) को कैपेसिटर के साथ श्रृंखला (series) में जोड़ा जाता है। यह न केवल बैंक को हानिकारक हार्मोनिक्स से बचाता है, बल्कि सिस्टम की समग्र बिजली गुणवत्ता में भी सुधार करता है।



संधारित्र बैंकों में कई प्रकार की खराबी हो सकती है, जिनमें से कुछ उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती हैं, जबकि कुछ गंभीर सुरक्षा जोखिम पैदा करती हैं।

खराबी के प्रकार

  • डाइइलेक्ट्रिक विफलता (Dielectric Failure): यह कैपेसिटर बैंकों में सबसे आम और गंभीर खराबी है। प्रत्येक कैपेसिटर इकाई में, डाइइलेक्ट्रिक सामग्री विद्युत आवेश को संग्रहीत करने के लिए एक इन्सुलेटर के रूप में कार्य करती है। अति-वोल्टेज, अत्यधिक गर्मी, या निर्माण दोषों के कारण यह डाइइलेक्ट्रिक सामग्री टूट सकती है।  इस विफलता से कैपेसिटर के अंदर एक शॉर्ट सर्किट हो जाता है, जिससे इकाई निष्क्रिय हो जाती है और अंततः वह फट सकती है।
  • खुला सर्किट (Open Circuit): यह तब होता है जब कैपेसिटर बैंक में कहीं भी एक विद्युत कनेक्शन टूट जाता है। इसके मुख्य कारण हो सकते हैं:
    • ​किसी इकाई के भीतर फ्यूज का उड़ जाना (blown fuse)।
    • ​टर्मिनल या आंतरिक तारों का ढीला हो जाना।
    • ​कैपेसिटर इकाई का आंतरिक रूप से विफल हो जाना। इस खराबी से उस विशेष कैपेसिटर इकाई का कार्य बंद हो जाता है, जिससे बैंक की कुल क्षमता कम हो जाती है, लेकिन यह आमतौर पर शॉर्ट सर्किट जितना खतरनाक नहीं होता है।
  • शॉर्ट सर्किट (Short Circuit): यह एक बहुत ही खतरनाक खराबी है। डाइइलेक्ट्रिक विफलता के कारण या बाहरी कनेक्शन में शॉर्ट सर्किट के कारण यह हो सकता है। शॉर्ट सर्किट होने पर, कैपेसिटर के माध्यम से बहुत अधिक धारा प्रवाहित होती है, जिससे अत्यधिक गर्मी, धुआं और अंततः इकाई में विस्फोट हो सकता है। यह खराबी अक्सर अन्य घटकों को भी नुकसान पहुंचाती है।

अन्य संबंधित समस्याएं

  • अत्यधिक गर्मी (Overheating): यह खराबी का एक कारण और परिणाम दोनों हो सकता है। उच्च परिवेश का तापमान, अपर्याप्त वेंटिलेशन, या हार्मोनिक्स के कारण अत्यधिक धारा के प्रवाह से कैपेसिटर गर्म हो सकते हैं, जिससे डाइइलेक्ट्रिक विफलता की संभावना बढ़ जाती है।
  • हार्मोनिक अनुनाद (Harmonic Resonance): यदि प्रणाली में हार्मोनिक्स मौजूद हैं, तो यह कैपेसिटर बैंक के साथ मिलकर अनुनाद पैदा कर सकता है। अनुनाद के कारण वोल्टेज और धारा में भारी वृद्धि होती है, जो कैपेसिटर इकाइयों को तेजी से क्षतिग्रस्त कर सकती है।



स्थिर (Fixed) और स्विच्ड (Switched) कैपेसिटर बैंकों के बीच मुख्य अंतर उनकी कार्यप्रणाली और अनुप्रयोग में है। सरल शब्दों में, स्थिर बैंक हमेशा चालू रहते हैं, जबकि स्विच्ड बैंक आवश्यकतानुसार चालू या बंद होते हैं।

स्थिर और स्विच्ड कैपेसिटर बैंकों के बीच अंतर

एक स्थिर संधारित्र बैंक (Fixed Capacitor Bank) एक प्रकार का उपकरण है जिसे विद्युत प्रणाली में एक निश्चित मात्रा में प्रतिक्रियाशील शक्ति (reactive power) प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यह स्वचालित रूप से अपनी क्षमता को समायोजित नहीं कर सकता है; यह या तो पूरी तरह से चालू होता है या बंद होता है।

कार्यप्रणाली और अनुप्रयोग

​स्थिर संधारित्र बैंक का उपयोग उन विद्युत प्रणालियों में सबसे उपयुक्त होता है जहाँ विद्युत भार (electrical load) स्थिर या लगभग स्थिर रहता है। ऐसे स्थानों पर, पावर फैक्टर की आवश्यकता पूरे दिन या संचालन के दौरान ज्यादा नहीं बदलती है।

  • स्थिर भार (Constant Load): उदाहरण के लिए, एक बड़ी मोटर जो लगातार चलती रहती है, या एक प्रकाश व्यवस्था जिसका भार स्थिर रहता है। इन मामलों में, बैंक को एक बार स्थापित और चालू कर दिया जाता है, और यह लगातार आवश्यक प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान करता रहता है।
  • सरलता और लागत (Simplicity and Cost): चूंकि इसमें किसी भी जटिल नियंत्रण इकाई या स्वचालित स्विचिंग की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए यह सरल, विश्वसनीय और स्वचालित बैंकों की तुलना में सस्ता होता है।

प्रमुख सीमाएँ

​स्थिर कैपेसिटर बैंक की मुख्य सीमा यह है कि यह बदलती हुई लोड की स्थिति के अनुसार प्रतिक्रिया नहीं दे सकता। यदि लोड कम हो जाता है, तो बैंक अभी भी उसी मात्रा में प्रतिक्रियाशील शक्ति प्रदान करता रहेगा, जिससे ओवर-कंपंसेशन (over-compensation) और ओवर-वोल्टेज (over-voltage) की स्थिति पैदा हो सकती है, जो उपकरणों के लिए हानिकारक है। इस कारण से, ये उन प्रणालियों के लिए अनुपयुक्त हैं जहाँ लोड में बार-बार उतार-चढ़ाव होता है।

एक स्विच्ड कैपेसिटर बैंक (Switched Capacitor Bank) एक प्रकार का कैपेसिटर बैंक है जो विद्युत प्रणाली के पावर फैक्टर में उतार-चढ़ाव के अनुसार अपनी क्षमता को स्वचालित रूप से समायोजित कर सकता है। इसे APFC (Automatic Power Factor Correction) पैनल के रूप में भी जाना जाता है।

कार्यप्रणाली

​यह बैंक एक माइक्रोप्रोसेसर-आधारित नियंत्रक (controller) का उपयोग करता है।  यह नियंत्रक लगातार सिस्टम के पावर फैक्टर की निगरानी करता है। जब लोड बढ़ता है और पावर फैक्टर एक निर्धारित सीमा से नीचे गिरता है, तो नियंत्रक स्वचालित रूप से एक या अधिक कैपेसिटर इकाइयों को सिस्टम से जोड़ देता है।

​इसके विपरीत, जब लोड कम होता है और पावर फैक्टर वांछित स्तर से ऊपर चला जाता है, तो नियंत्रक अतिरिक्त इकाइयों को बंद कर देता है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि पावर फैक्टर हमेशा एक इष्टतम सीमा में बना रहे।

स्विच्ड कैपेसिटर बैंक के फायदे

  • गतिशील पावर फैक्टर सुधार (Dynamic Power Factor Correction): यह प्रणाली वास्तविक समय में पावर फैक्टर में सुधार करती है, जो उन औद्योगिक या वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों के लिए आदर्श है जहाँ भार में लगातार उतार-चढ़ाव होता है।
  • अति-क्षतिपूर्ति से बचाव (Avoids Over-compensation): यह एक निश्चित बैंक की तरह ओवर-कंपनसेशन और ओवर-वोल्टेज का कारण नहीं बनता, क्योंकि यह केवल उतनी ही प्रतिक्रियाशील शक्ति (reactive power) प्रदान करता है जितनी आवश्यक होती है।
  • ऊर्जा दक्षता (Energy Efficiency): पावर फैक्टर को लगातार इष्टतम स्तर पर बनाए रखने से बिजली की बर्बादी कम होती है और बिजली के बिलों पर लगने वाले जुर्माने से बचा जा सकता है।
  • उपकरणों की सुरक्षा (Equipment Protection): स्थिर वोल्टेज और नियंत्रित पावर फैक्टर से उपकरण कम तनाव में काम करते हैं, जिससे उनका जीवनकाल बढ़ता है।

संक्षेप में, 

यदि आपके पास एक स्थिर और अनुमानित विद्युत लोड है, तो एक स्थिर कैपेसिटर बैंक पर्याप्त और लागत-प्रभावी समाधान है। हालांकि, यदि आपका लोड पूरे दिन बदलता रहता है, तो एक स्विच्ड कैपेसिटर बैंक प्रणाली की दक्षता को बनाए रखने और संभावित नुकसान से बचने के लिए सबसे अच्छा विकल्प है।




कैपेसिटर बैंक की kVAR रेटिंग की गणना करने के लिए, हमें तीन मुख्य कारकों की आवश्यकता होती है: 

मौजूदा वास्तविक शक्ति (kW), 

वर्तमान पावर फैक्टर (PF1), और 

वांछित पावर फैक्टर (PF2)।

गणना का उद्देश्य यह पता लगाना है कि वांछित पावर फैक्टर तक पहुंचने के लिए कितनी प्रतिक्रियाशील शक्ति (reactive power) की आवश्यकता है। ​kVAR रेटिंग की गणना के चरण ​

1. आवश्यक डेटा इकट्ठा करें ​वास्तविक शक्ति (kW): यह वह शक्ति है जो वास्तव में भार द्वारा कार्य करने के लिए उपयोग की जाती है (जैसे, मोटर्स को चलाने के लिए)। ​

वर्तमान पावर फैक्टर (PF1): यह आपके सिस्टम का मौजूदा पावर फैक्टर है, जिसे आप सुधारना चाहते हैं। ​

वांछित पावर फैक्टर (PF2): यह वह लक्षित पावर फैक्टर है जिसे आप हासिल करना चाहते हैं (आमतौर पर 0.95 से 0.99)। 

​2. आवश्यक kVAR की गणना करें ​आप इस गणना के लिए एक सरल गणितीय सूत्र का उपयोग कर सकते हैं: ​आवश्यक\, kVAR = kW \times (tan(\arccos(PF1)) - tan(\arccos(PF2))) ​

सूत्र में: ​\arccos(PF) आपको पावर फैक्टर का कोण (\phi) देता है। ​tan(\phi) आपको \frac{kVAR}{kW} का अनुपात देता है। ​

3. एक उदाहरण से समझें ​मान लीजिए आपके पास एक औद्योगिक सुविधा है जिसकी जानकारी इस प्रकार है: ​

वास्तविक शक्ति (kW) = 150 kW ​वर्तमान पावर फैक्टर (PF1) = 0.75 (lagging) ​

वांछित पावर फैक्टर (PF2) = 0.98 (lagging) ​गणना: 

Step 1: वर्तमान पावर फैक्टर कोण की गणना करें: $\arccos(0.75) = 41.41° $$ tan(41.41°) = 0.88 $ ​

Step 2: वांछित पावर फैक्टर कोण की गणना करें: $\arccos(0.98) = 11.48° $$ tan(11.48°) = 0.20 $ ​

Step 3: आवश्यक kVAR की गणना करें: 

$आवश्यक, kVAR = 150 \times (0.88 - 0.20) $$ 

आवश्यक, kVAR = 150 \times 0.68 $ आवश्यक\, kVAR = 102\, kVAR ​इस प्रणाली के लिए, 

पावर फैक्टर को 0.75 से 0.98 तक सुधारने के लिए लगभग 102 kVAR के कैपेसिटर बैंक की आवश्यकता होगी।




कैपेसिटर बैंक के प्रदर्शन की निगरानी मुख्य रूप से विद्युत मापदंडों और भौतिक स्थिति की जांच करके की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह सुरक्षित और प्रभावी ढंग से काम कर रहा है।

विद्युत मापदंडों की निगरानी

पावर फैक्टर (Power Factor): यह निगरानी का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। कैपेसिटर बैंक स्थापित करने के बाद, सिस्टम के पावर फैक्टर में वांछित सुधार हो रहा है या नहीं, यह मापने के लिए एक पावर फैक्टर मीटर या पावर एनालाइजर का उपयोग किया जाता है। यदि पावर फैक्टर में सुधार नहीं हो रहा है, तो यह बैंक में खराबी का संकेत हो सकता है।

धारा (Current): कैपेसिटर बैंक द्वारा खींची गई धारा को मापा जाता है। यदि धारा इसकी रेटेड सीमा से अधिक है, तो यह सिस्टम में अत्यधिक वोल्टेज या हार्मोनिक्स की उपस्थिति का संकेत हो सकता है, जिससे कैपेसिटर को नुकसान हो सकता है।

वोल्टेज (Voltage): यह सुनिश्चित करने के लिए वोल्टेज की निगरानी की जाती है कि यह स्थिर रहे और कैपेसिटर बैंक के चालू होने के बाद खतरनाक स्तर तक न बढ़े (अति-वोल्टेज)। अति-वोल्टेज कैपेसिटर के डाइइलेक्ट्रिक को नुकसान पहुंचा सकता है।

हार्मोनिक्स (Harmonics): उन प्रणालियों में जहाँ गैर-रैखिक भार (non-linear loads) होते हैं, हार्मोनिक स्तरों की जांच की जाती है। उच्च हार्मोनिक्स कैपेसिटर बैंक को ओवरलोड कर सकते हैं और अनुनाद पैदा कर सकते हैं।

 

भौतिक निरीक्षण

  • तापमान (Temperature): कैपेसिटर इकाइयों के तापमान की जांच की जाती है। यदि कोई इकाई असामान्य रूप से गर्म हो रही है, तो यह आंतरिक खराबी, ओवरलोडिंग, या हार्मोनिक अनुनाद का संकेत हो सकता है।
  • दृश्य निरीक्षण (Visual Inspection): तकनीशियन नियमित रूप से कैपेसिटर के आवरण (casings) की जांच करते हैं। उभरा हुआ आवरण (bulging casing), रिसाव (leaks) या मलिनकिरण (discoloration) एक विफल या विफल हो रही इकाई का स्पष्ट संकेत है।
  • फ्यूज और स्विच (Fuses and Switches): बैंक में उड़े हुए फ्यूज की जांच की जाती है। एक उड़ा हुआ फ्यूज एक विफल कैपेसिटर इकाई का संकेत देता है जिसे तुरंत बदलने की आवश्यकता होती है। स्विचिंग उपकरणों (contactor) की भी उचित कार्यप्रणाली के लिए जांच की जाती है।



कैपेसिटर बैंकों में उच्च वोल्टेज और संग्रहीत ऊर्जा के कारण, इनके साथ काम करते समय सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है। सुरक्षा सावधानियां मुख्य रूप से कर्मियों की सुरक्षा और उपकरण की सुरक्षा पर केंद्रित होती हैं।

व्यक्तिगत सुरक्षा (Personnel Safety)

  • डिस्चार्जिंग (Discharging): यह सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा सावधानी है। बैंक को बिजली से डिस्कनेक्ट करने के बाद भी, कैपेसिटर में खतरनाक वोल्टेज बना रहता है। इसलिए, किसी भी रखरखाव या मरम्मत के काम से पहले, कैपेसिटर को समर्पित डिस्चार्जिंग रेसिस्टर का उपयोग करके पूरी तरह से डिस्चार्ज करना अनिवार्य है।
  • लॉकआउट/टैगाउट (Lockout/Tagout - LOTO): रखरखाव के दौरान, गलती से बिजली के फिर से चालू होने से रोकने के लिए मेन स्विच को लॉक और टैग (चिह्नित) करना चाहिए।
  • व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE): कैपेसिटर बैंकों के पास काम करते समय इन्सुलेटेड दस्ताने, सुरक्षा चश्मे, और अन्य आवश्यक PPE पहनना अनिवार्य है।

उपकरण सुरक्षा (Equipment Protection)

  • अति-धारा सुरक्षा (Overcurrent Protection): प्रत्येक कैपेसिटर इकाई को शॉर्ट-सर्किट या ओवरलोड से बचाने के लिए एक फ्यूज लगाया जाना चाहिए। बैंक के मुख्य इनपुट पर एक सर्किट ब्रेकर भी होना चाहिए।
  • अति-वोल्टेज सुरक्षा (Overvoltage Protection): वोल्टेज में वृद्धि कैपेसिटर को नुकसान पहुंचा सकती है। इसे रोकने के लिए वोल्टेज-सेंसिंग रिले का उपयोग किया जाना चाहिए जो वोल्टेज के खतरनाक स्तर तक पहुंचने पर बैंक को डिस्कनेक्ट कर दे।
  • हार्मोनिक फिल्टरिंग (Harmonic Filtering): यदि सिस्टम में हार्मोनिक्स मौजूद हैं, तो अनुनाद और संभावित विफलता से बचने के लिए एक ट्यून्ड या डी-ट्यून्ड कैपेसिटर बैंक का उपयोग करना चाहिए।

सामान्य सावधानियां (General Precautions)

  • नियमित निरीक्षण (Regular Inspection): समय-समय पर बैंक का भौतिक निरीक्षण करना चाहिए। इसमें ढीले कनेक्शन, उभरे हुए आवरण (bulging casing), या तेल के रिसाव (oil leaks) जैसे क्षति के संकेतों की जांच करना शामिल है।
  • उचित वेंटिलेशन (Proper Ventilation): यह सुनिश्चित करें कि बैंक अच्छी तरह हवादार क्षेत्र में स्थापित हो ताकि ओवरहीटिंग से बचा जा सके।
  • योग्य कर्मियों द्वारा स्थापना (Installation by Qualified Personnel): कैपेसिटर बैंकों की स्थापना केवल प्रशिक्षित और योग्य इलेक्ट्रीशियन या इंजीनियरों द्वारा ही की जानी चाहिए जो सुरक्षा मानकों और प्रक्रियाओं से परिचित हों।



नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों में कैपेसिटर बैंक बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये इन प्रणालियों की स्थिरता, दक्षता और ग्रिड के साथ अनुकूलता सुनिश्चित करते हैं। चूंकि सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोत आंतरायिक (intermittent) होते हैं, इसलिए उनके आउटपुट में लगातार उतार-चढ़ाव होता रहता है।

कैपेसिटर बैंकों का महत्व

  • वोल्टेज स्थिरीकरण (Voltage Stabilization): सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन मौसम की स्थिति (जैसे बादलों का आना-जाना या हवा की गति में बदलाव) के साथ बदलता रहता है। यह परिवर्तन ग्रिड में वोल्टेज में उतार-चढ़ाव पैदा कर सकता है। कैपेसिटर बैंक reactive power की आपूर्ति करके इन उतार-चढ़ावों को संतुलित करने और ग्रिड वोल्टेज को स्थिर बनाए रखने में मदद करते हैं, जिससे प्रणाली की विश्वसनीयता बढ़ती है।
  • पावर फैक्टर सुधार (Power Factor Correction): नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों में उपयोग किए जाने वाले इनवर्टर और ट्रांसफॉर्मर प्रतिक्रियाशील शक्ति उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे पावर फैक्टर कम हो जाता है। एक कम पावर फैक्टर ट्रांसमिशन लाइनों में ऊर्जा की बर्बादी को बढ़ाता है। कैपेसिटर बैंक इस प्रतिक्रियाशील शक्ति को संतुलित करके पावर फैक्टर को सुधारते हैं, जिससे प्रणाली की समग्र दक्षता में वृद्धि होती है।
  • हार्मोनिक शमन (Harmonic Mitigation): इनवर्टर डीसी (DC) बिजली को एसी (AC) बिजली में परिवर्तित करते समय हार्मोनिक्स उत्पन्न कर सकते हैं। ये हार्मोनिक्स बिजली की गुणवत्ता को खराब करते हैं और उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कैपेसिटर बैंक, खासकर ट्यून्ड या डी-ट्यून्ड फ़िल्टर, इन हार्मोनिक्स को फ़िल्टर करने में मदद करते हैं, जिससे बिजली की आपूर्ति साफ और स्थिर रहती है।
  • ग्रिड एकीकरण (Grid Integration): कैपेसिटर बैंक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को मौजूदा बिजली ग्रिड के साथ आसानी से एकीकृत करने में मदद करते हैं। वे ग्रिड को आवश्यक प्रतिक्रियाशील शक्ति सहायता प्रदान करके ग्रिड को वोल्टेज पतन (voltage collapse) से बचाते हैं और ग्रिड कोड की आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करते हैं।

संक्षेप में,

कैपेसिटर बैंक एक बफर के रूप में कार्य करते हैं, जो नवीकरणीय ऊर्जा के परिवर्तनशील और कभी-कभी 'अस्वच्छ' आउटपुट को स्थिर और मुख्य ग्रिड के अनुकूल बनाते हैं।




कैपेसिटर बैंक स्विचिंग नुकसान को सीधे तौर पर कम नहीं करते हैं, बल्कि वे समग्र प्रणाली में होने वाले नुकसान को कम करते हैं, जिनमें स्विचिंग उपकरण (जैसे कॉन्टैक्टर्स और सर्किट ब्रेकर) में होने वाले नुकसान भी शामिल हैं। यह मुख्य रूप से पावर फैक्टर में सुधार करके किया जाता है। ​

नुकसान को कम करने की प्रक्रिया ​धारा में कमी (Reduction in Current): कैपेसिटर बैंक का प्राथमिक कार्य इंडक्टिव भार (जैसे मोटर्स) द्वारा खींची गई प्रतिक्रियाशील शक्ति (reactive power) को संतुलित करना है। जब यह प्रतिक्रियाशील शक्ति बैंक द्वारा प्रदान की जाती है, तो सिस्टम को बिजली आपूर्ति से कम कुल धारा (apparent current) खींचनी पड़ती है। ​

I^2R नुकसान में कमी (Reduction in I^2R Losses): विद्युत उपकरणों और केबलों में होने वाला नुकसान, जिसे अक्सर I^2R नुकसान कहा जाता है, धारा के वर्ग (I²) के सीधे आनुपातिक होता है। 

जब कैपेसिटर बैंक द्वारा कुल धारा कम हो जाती है, तो स्विचिंग उपकरणों, केबलों और ट्रांसफॉर्मर में होने वाला यह नुकसान काफी कम हो जाता है। इससे उपकरणों का जीवनकाल बढ़ता है और वे कम गर्म होते हैं। ​

इस तरह, 

कैपेसिटर बैंक प्रत्यक्ष रूप से स्विचिंग के दौरान होने वाले नुकसान को कम करने के बजाय, यह सुनिश्चित करते हैं कि स्विचिंग के समय और उसके बाद भी, कम धारा प्रवाहित हो, जिससे प्रणाली की दक्षता बढ़ती है और ऊर्जा की बर्बादी कम होती है।




संधारित्र बैंकों के संदर्भ में, अग्रणी (leading) और पश्चगामी (lagging) प्रतिक्रियाशील शक्ति का संबंध वोल्टेज और धारा के बीच के चरण अंतर (phase difference) से होता है। यह विद्युत प्रणालियों में दो अलग-अलग प्रकार के भार को दर्शाता है और कैपेसिटर बैंक इस अंतर को संतुलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

पश्चगामी प्रतिक्रियाशील शक्ति (Lagging Reactive Power)

  • परिभाषा: जब धारा वोल्टेज से पीछे चलती है, तो इसे पश्चगामी शक्ति कहा जाता है। यह आमतौर पर प्रेरणिक भार (inductive loads) के कारण होता है।
  • उदाहरण: मोटर्स, ट्रांसफॉर्मर और इंडक्शन फर्नेस जैसे उपकरण चुंबकीय क्षेत्र बनाने के लिए ऊर्जा का उपयोग करते हैं, जिससे धारा वोल्टेज से पिछड़ जाती है।
  • प्रभाव: यह पश्चगामी शक्ति, जिसे अक्सर "नकारात्मक" प्रतिक्रियाशील शक्ति कहा जाता है, पावर फैक्टर को कम करती है, जिससे बिजली की बर्बादी होती है और सिस्टम की दक्षता घट जाती है।

अग्रणी प्रतिक्रियाशील शक्ति (Leading Reactive Power)

  • परिभाषा: जब धारा वोल्टेज से आगे चलती है, तो इसे अग्रणी शक्ति कहा जाता है। यह धारिता भार (capacitive loads) के कारण होता है।
  • उदाहरण: कैपेसिटर इसी प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं। वे ऊर्जा को एक विद्युत क्षेत्र में संग्रहीत करते हैं, जिससे धारा वोल्टेज से आगे रहती है।
  • कैपेसिटर बैंक का कार्य: कैपेसिटर बैंक इसी अग्रणी शक्ति को उत्पन्न करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। जब इन्हें एक इंडक्टिव लोड (जो पश्चगामी शक्ति का उपभोग करता है) के समानांतर (parallel) में जोड़ा जाता है, तो बैंक की अग्रणी शक्ति भार की पश्चगामी शक्ति को संतुलित करती है।

इस प्रकार, 

कैपेसिटर बैंक का उपयोग करके, सिस्टम से खींची गई कुल प्रतिक्रियाशील शक्ति को कम किया जाता है, जिससे वोल्टेज और धारा एक ही चरण (phase) में आ जाते हैं और पावर फैक्टर 1 के करीब पहुंच जाता है।



कैपेसिटर बैंक बिजली के बिल को कम करने में मुख्य रूप से पावर फैक्टर में सुधार करके मदद करते हैं। बिजली वितरण कंपनियाँ अक्सर उन ग्राहकों पर जुर्माना लगाती हैं जिनका पावर फैक्टर कम होता है, और कैपेसिटर बैंक इस जुर्माने को कम या समाप्त कर देते हैं। ​

पावर फैक्टर और बिजली बिल का संबंध ​बिजली का बिल दो प्रकार की ऊर्जा पर आधारित होता है: ​

वास्तविक शक्ति (Active Power) - kW: यह वह शक्ति है जो वास्तव में काम करने (जैसे मोटर चलाने या रोशनी करने) के लिए उपयोग की जाती है। यह सीधे आपके मीटर द्वारा मापी जाती है। 

प्रतिक्रियाशील शक्ति (Reactive Power) - kVAR: यह वह शक्ति है जो इंडक्टिव उपकरणों (जैसे मोटर्स, ट्रांसफॉर्मर) द्वारा उनके चुंबकीय क्षेत्र को बनाए रखने के लिए उपयोग की जाती है। यह कोई उपयोगी कार्य नहीं करती, लेकिन विद्युत प्रणाली पर बोझ डालती है। ​

पावर फैक्टर वास्तविक शक्ति और कुल शक्ति (वास्तविक + प्रतिक्रियाशील) के बीच का अनुपात है। कम पावर फैक्टर का मतलब है कि आपके सिस्टम में प्रतिक्रियाशील शक्ति का अनुपात अधिक है। ​

कम पावर फैक्टर होने पर, 

आपकी सुविधा को समान मात्रा में वास्तविक शक्ति के लिए अधिक कुल धारा (current) खींचनी पड़ती है। यह अतिरिक्त धारा केबल और ट्रांसफॉर्मर में I^2R नुकसान (गर्मी के रूप में ऊर्जा की बर्बादी) का कारण बनती है, जिससे बिजली वितरण कंपनी पर अतिरिक्त भार पड़ता है। ​

कैपेसिटर बैंक कैसे मदद करते हैं? ​

कैपेसिटर बैंक अग्रणी प्रतिक्रियाशील शक्ति (leading reactive power) प्रदान करके इंडक्टिव भार द्वारा खींची गई पश्चगामी प्रतिक्रियाशील शक्ति (lagging reactive power) को संतुलित करते हैं। ​यह संतुलन प्रणाली से खींची गई कुल प्रतिक्रियाशील शक्ति को कम कर देता है। ​

परिणामस्वरूप, 

आपके सिस्टम को समान वास्तविक शक्ति के लिए कम कुल धारा की आवश्यकता होती है। ​कम धारा का मतलब है कि बिजली वितरण कंपनी को आपके लिए कम बिजली उत्पन्न और वितरित करनी पड़ती है।

चूंकि कई बिजली कंपनियाँ कम पावर फैक्टर के लिए जुर्माना (penalty) लगाती हैं, कैपेसिटर बैंक इस जुर्माने को समाप्त कर देते हैं। इसके अतिरिक्त, कम धारा का मतलब है कि आपके अपने आंतरिक उपकरणों (जैसे केबल और ट्रांसफॉर्मर) में भी कम नुकसान होता है, जिससे समग्र ऊर्जा दक्षता बढ़ती है।





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