टरबाइन के प्रकार ( Tyre of Turbine )

टरबाइन एक यांत्रिक उपकरण है जो बहते हुए द्रव (तरल या गैस) की गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा को घूर्णी यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है। इसे सरल शब्दों में एक घूमते हुए इंजन के रूप में समझा जा सकता है।

टरबाइन के प्रकार

​टरबाइन को कई आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है:

1. कार्यशील द्रव के आधार पर:

  • जल टरबाइन (Water Turbine): ये बहते हुए पानी की ऊर्जा का उपयोग करते हैं और मुख्य रूप से जलविद्युत संयंत्रों में बिजली बनाने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
  • भाप टरबाइन (Steam Turbine): ये अत्यधिक दबाव वाली भाप की ऊर्जा का उपयोग करते हैं। इनका उपयोग ताप विद्युत संयंत्रों और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में बिजली उत्पादन के लिए होता है।
  • गैस टरबाइन (Gas Turbine): ये जलती हुई गैसों की ऊर्जा का उपयोग करते हैं। इनका उपयोग विमानन (जेट इंजन), बिजली उत्पादन और औद्योगिक अनुप्रयोगों में होता है।
  • पवन टरबाइन (Wind Turbine): ये हवा की गतिज ऊर्जा को बिजली में बदलते हैं। इनका उपयोग पवन ऊर्जा संयंत्रों में होता है।

2. कार्य सिद्धांत के आधार पर:

  • आवेग टरबाइन (Impulse Turbine): इस टरबाइन में, कार्यशील द्रव (जैसे पानी या भाप) एक नोजल के माध्यम से ब्लेड पर तेज गति से टकराता है, जिससे टरबाइन घूमती है।
  • प्रतिक्रिया टरबाइन (Reaction Turbine): इस टरबाइन में, द्रव का दाब और गति दोनों मिलकर ब्लेडों पर प्रतिक्रिया बल उत्पन्न करते हैं। द्रव जब ब्लेडों से होकर गुजरता है, तो उसका दाब और वेग दोनों बदल जाते हैं, जिससे टरबाइन घूमती है।

टरबाइन का कार्य (Working Principle)

​टरबाइन का मूल कार्य सिद्धांत यह है कि यह किसी बहते हुए द्रव की ऊर्जा को घुमावदार गति में परिवर्तित करता है। द्रव (जैसे पानी, भाप या गैस) एक नोजल या गाइड वैन के माध्यम से टरबाइन के घूमने वाले ब्लेड पर निर्देशित किया जाता है। द्रव की गति और दबाव टरबाइन ब्लेड पर बल लगाते हैं, जिससे ब्लेड और उनसे जुड़ा शाफ्ट घूमने लगता है। यह घूर्णी ऊर्जा एक जनरेटर से जुड़कर बिजली पैदा करती है या सीधे किसी मशीन को चलाती है।

टरबाइन का निर्माण (Manufacturing)

​टरबाइन का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें उच्च-गुणवत्ता वाली सामग्री और सटीक इंजीनियरिंग की आवश्यकता होती है। टरबाइन के विभिन्न घटकों का निर्माण अलग-अलग प्रक्रियाओं द्वारा किया जाता है:

  • ब्लेड (Blades): ये टरबाइन के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से हैं। इन्हें अक्सर उच्च-शक्ति वाले मिश्र धातुओं (जैसे निकल-आधारित सुपर मिश्र धातु) से बनाया जाता है, ताकि वे उच्च तापमान और दबाव का सामना कर सकें। ब्लेडों को बनाने के लिए प्रेसिजन कास्टिंग (precision casting) और सीएनसी मशीनिंग (CNC machining) जैसी तकनीकों का उपयोग किया जाता है।
  • रोटर और शाफ्ट (Rotor and Shaft): ये टरबाइन के केंद्रीय घूमने वाले भाग होते हैं। इनका निर्माण भारी फोर्जिंग (forging) और मशीनिंग (machining) प्रक्रियाओं का उपयोग करके किया जाता है, ताकि वे भारी भार और उच्च गति का सामना कर सकें।
  • आवरण (Casing): यह टरबाइन के घूमने वाले हिस्सों को घेरता है और द्रव को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसे आमतौर पर ढलवां लोहे या स्टील से बनाया जाता है।
  • जनरेटर (Generator): टरबाइन से जुड़ी यांत्रिक ऊर्जा को बिजली में बदलने के लिए जनरेटर का निर्माण अलग से किया जाता है।

पूरी निर्माण प्रक्रिया में, 

कठोर गुणवत्ता नियंत्रण और परीक्षण किए जाते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि टरबाइन सुरक्षित और कुशलता से काम करेगी।


टर्बाइन एक घूर्णन करने वाला यांत्रिक उपकरण है जो बहते हुए तरल पदार्थ (जैसे पानी, भाप, या गैस) की गतिज ऊर्जा और स्थितिज ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करता है। इस यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग अक्सर बिजली पैदा करने के लिए एक जनरेटर को चलाने में किया जाता है।

टर्बाइन के प्रकार

​टर्बाइन को विभिन्न मापदंडों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • कार्यशील तरल पदार्थ के आधार पर:
    • जल टर्बाइन: ये पानी की ऊर्जा का उपयोग करते हैं और जलविद्युत संयंत्रों में उपयोग किए जाते हैं।
    • भाप टर्बाइन: ये उच्च दबाव वाली भाप की ऊर्जा का उपयोग करते हैं, जो अक्सर ताप विद्युत और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में उत्पन्न होती है।
    • गैस टर्बाइन: ये उच्च वेग वाली दहन गैसों की ऊर्जा का उपयोग करते हैं और विमानों के जेट इंजन में तथा बिजली उत्पादन में उपयोग होते हैं।
    • पवन टर्बाइन: ये हवा की गतिज ऊर्जा को बिजली में बदलते हैं।
  • कार्य सिद्धांत के आधार पर:
    • आवेग टर्बाइन (Impulse Turbine): इन टर्बाइन में, तरल पदार्थ (जैसे पानी) को एक नोजल के माध्यम से उच्च वेग के जेट के रूप में ब्लेडों पर निर्देशित किया जाता है। ब्लेड पर तरल पदार्थ का टकराव टर्बाइन को घुमाता है।
    • प्रतिक्रिया टर्बाइन (Reaction Turbine): इन टर्बाइन में, तरल पदार्थ का दबाव और वेग दोनों ही मिलकर ब्लेडों को घुमाते हैं। जैसे-जैसे तरल पदार्थ ब्लेडों के बीच से गुजरता है, उसका दबाव कम होता जाता है और यह प्रतिक्रिया बल पैदा करता है।

टर्बाइन का कार्य

​टर्बाइन के कार्य करने का मूल सिद्धांत न्यूटन के गति के नियमों पर आधारित है। जब कोई तरल पदार्थ (पानी, भाप, या गैस) टर्बाइन के घुमावदार ब्लेडों पर टकराता है या उनसे होकर गुजरता है, तो वह ब्लेडों पर बल लगाता है।  यह बल टर्बाइन के रोटर (घूमने वाले भाग) को घुमा देता है। यह घूर्णन यांत्रिक ऊर्जा पैदा करता है, जिसे अक्सर एक जनरेटर के माध्यम से बिजली में परिवर्तित किया जाता है।



टर्बाइन और इंजन दोनों ही ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करने वाले उपकरण हैं, लेकिन उनके काम करने के सिद्धांत और संरचना में महत्वपूर्ण अंतर होते हैं।

टर्बाइन और इंजन दोनों ही ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में बदलने वाले यंत्र हैं, लेकिन वे बिलकुल अलग तरह से काम करते हैं। यहाँ उनके बीच के मुख्य अंतरों को समझाया गया है:

कार्य का सिद्धांत

  • टर्बाइन (Turbine): टर्बाइन एक घूमने वाला (rotary) यंत्र है। यह बहते हुए तरल पदार्थ (जैसे पानी, भाप या गैस) की गति और दबाव का उपयोग करता है। यह तरल पदार्थ टर्बाइन के ब्लेड पर सीधे बल डालता है, जिससे वह लगातार घूमता रहता है। इसमें कोई पिस्टन या सिलेंडर नहीं होता।
  • इंजन (Engine): इंजन, खासकर आंतरिक दहन इंजन (Internal Combustion Engine), एक आगे-पीछे चलने वाला (reciprocating) यंत्र है। इसमें ईंधन को सिलेंडर के अंदर जलाया जाता है, जिससे उच्च दबाव वाली गैसें बनती हैं। यह दबाव पिस्टन को धक्का देता है। पिस्टन की इस आगे-पीछे की गति को क्रैंकशाफ्ट की मदद से घुमावदार गति में बदला जाता है।

संरचना और घटक

  • टर्बाइन: इसकी संरचना बहुत सरल होती है, जिसमें मुख्य रूप से एक रोटर (घूमने वाला शाफ्ट) और उस पर लगे हुए कई ब्लेड होते हैं।
  • इंजन: इसकी संरचना टर्बाइन की तुलना में अधिक जटिल होती है। इसमें सिलेंडर, पिस्टन, क्रैंकशाफ्ट, वाल्व और स्पार्क प्लग जैसे कई भाग होते हैं।

मुख्य उपयोग

  • टर्बाइन: इनका उपयोग बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन (जलविद्युत, ताप विद्युत संयंत्र), विमानों के जेट इंजन, और बड़े जहाजों को चलाने में होता है, जहाँ लगातार और उच्च शक्ति की आवश्यकता होती है।
  • इंजन: इनका उपयोग मुख्य रूप से वाहनों (कार, बाइक), छोटे बिजली जनरेटर और उन जगहों पर होता है जहाँ कम या मध्यम शक्ति की जरूरत होती है।

संक्षेप में, 

टर्बाइन तरल पदार्थ के प्रवाह का उपयोग करके सीधे घूर्णन गति पैदा करता है, जबकि इंजन ईंधन को जलाकर पिस्टन की आगे-पीछे की गति को घूर्णन में बदलता है।



टरबाइन एक जटिल मशीन है, जिसके मुख्य भागों को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है: 

स्थिर भाग (Stationary Parts) और 

घूर्णन भाग (Rotating Parts)

1. घूर्णन भाग (Rotating Parts)

​ये टरबाइन के वे भाग हैं जो ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में बदलने के लिए घूमते हैं।

  • रोटर (Rotor): यह टरबाइन का सबसे महत्वपूर्ण घूमने वाला भाग है। यह एक मजबूत शाफ्ट होता है जिस पर ब्लेड लगे होते हैं। जब तरल पदार्थ (पानी, भाप या गैस) ब्लेड पर दबाव डालता है, तो रोटर घूमना शुरू कर देता है।
  • ब्लेड (Blades): ये रोटर पर लगे हुए पंख जैसे आकार के भाग होते हैं। ब्लेड का आकार और कोण इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि बहते हुए तरल पदार्थ की ऊर्जा को अधिकतम दक्षता के साथ घूर्णन ऊर्जा में बदला जा सके।
  • शाफ्ट (Shaft): यह रोटर के केंद्र में लगा एक मजबूत रॉड होता है। यह घूर्णन ऊर्जा को जनरेटर जैसे अन्य उपकरण तक पहुँचाता है।

2. स्थिर भाग (Stationary Parts)

​ये भाग टरबाइन को सहारा देते हैं और तरल पदार्थ के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं।

  • केसिंग (Casing): यह टरबाइन के घूमने वाले भागों को चारों तरफ से घेरता है। इसका मुख्य कार्य तरल पदार्थ को टरबाइन के अंदर बनाए रखना और उसे सही दिशा में निर्देशित करना है।
  • गाइड वैन (Guide Vanes) या नोजल (Nozzles): ये स्थिर ब्लेड होते हैं जो तरल पदार्थ को सही कोण और वेग के साथ घूमने वाले ब्लेड पर निर्देशित करते हैं। जल टरबाइन में इन्हें गाइड वैन और भाप या गैस टरबाइन में नोजल कहा जाता है।
  • बियरिंग (Bearings): ये ऐसे यांत्रिक भाग होते हैं जो घूर्णन शाफ्ट को सहारा देते हैं और घर्षण को कम करते हैं, जिससे टरबाइन सुचारू रूप से घूमती है।
  • इनलेट और आउटलेट (Inlet and Outlet): ये वे मार्ग होते हैं जिनसे तरल पदार्थ टरबाइन में प्रवेश करता है (इनलेट) और बाहर निकलता है (आउटलेट)।

​ये सभी भाग एक साथ मिलकर काम करते हैं ताकि तरल पदार्थ की ऊर्जा को प्रभावी ढंग से यांत्रिक ऊर्जा में बदला जा सके।



शाफ्ट एक महत्वपूर्ण यांत्रिक घटक है, जो आमतौर पर बेलनाकार आकार का होता है। इसका मुख्य कार्य घूर्णी गति और शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करना है। 

सरल शब्दों में, 

यह एक ऐसा हिस्सा है जो किसी एक मशीन से घूमने की शक्ति लेकर उसे दूसरी मशीन या उसके भाग तक पहुंचाता है।

​शाफ्ट के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

  • शक्ति का संचरण (Power Transmission): यह शाफ्ट का सबसे मुख्य कार्य है। एक शाफ्ट एक मशीन, जैसे कि मोटर या इंजन, से उत्पन्न होने वाली शक्ति को दूसरे घूमने वाले घटकों जैसे गियर, पुली, फ्लाईव्हील या टरबाइन तक पहुंचाता है।
  • घूर्णन भागों को सहारा देना (Supporting Rotating Parts): शाफ्ट घूमने वाले पुर्जों, जैसे कि पुली और गियर, को सहारा देता है और उन्हें सही स्थिति में रखता है। ये पुर्जे शाफ्ट पर लगे होते हैं और शाफ्ट के घूमने पर वे भी घूमते हैं।
  • बलाघूर्ण और झुकने वाले क्षण को संभालना (Handling Torque and Bending Moment): चूंकि शाफ्ट शक्ति को संचारित करता है और अन्य घटकों का भार उठाता है, इसलिए इसे घुमावदार बल (टॉर्क) और झुकने वाले बल (बेंडिंग मोमेंट) दोनों को सहने के लिए डिज़ाइन किया जाता है।
  • घटक को सही संरेखण में रखना (Maintaining Alignment): शाफ्ट यह सुनिश्चित करता है कि जुड़े हुए सभी भाग, जैसे कि गियर या बेल्ट, सही संरेखण (alignment) में रहें ताकि वे कुशलता से काम कर सकें।

​शाफ्ट ठोस या खोखले हो सकते हैं, और इनका उपयोग अलग-अलग प्रकार की मशीनों में किया जाता है, जैसे कि टरबाइन, मोटर वाहन, और औद्योगिक मशीनरी।


टरबाइन दक्षता को प्रभावित करने वाले कई कारक हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:

  • दाब और तापमान (Pressure and Temperature): टरबाइन के इनलेट (प्रवेश) पर भाप या गैस का उच्च दाब और तापमान होने से टरबाइन की दक्षता बढ़ती है, क्योंकि इससे कार्यशील द्रव में अधिक ऊर्जा होती है।
  • दहन अनुपात (Compression Ratio): गैस टरबाइन के मामले में, उच्च संपीड़न अनुपात (compression ratio) का मतलब है कि दहन से पहले हवा को अधिक संपीड़ित किया जाता है। इससे थर्मल दक्षता में सुधार होता है और ईंधन से अधिक ऊर्जा निकाली जा सकती है।
  • यांत्रिक नुकसान (Mechanical Losses): टरबाइन के घूमने वाले हिस्सों जैसे बियरिंग और सील में घर्षण और कंपन के कारण ऊर्जा का नुकसान होता है। यह नुकसान टरबाइन की कुल दक्षता को कम करता है।
  • ब्लेड का डिज़ाइन और क्षरण (Blade Design and Erosion): टरबाइन ब्लेड का आकार और कोण दक्षता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समय के साथ, तरल पदार्थ में मौजूद कणों (जैसे पानी की बूंदें या धूल) के कारण ब्लेड का क्षरण (erosion) हो सकता है, जिससे उनकी दक्षता कम हो जाती है।
  • परिचालन की स्थिति (Operating Conditions): टरबाइन की दक्षता परिवेश के तापमान, आर्द्रता और ऊंचाई जैसी बाहरी स्थितियों पर भी निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, गर्म हवा ठंडी हवा की तुलना में कम घनी होती है, जिससे कंप्रेसर को अधिक काम करना पड़ता है और दक्षता घट जाती है।
  • रखरखाव (Maintenance): नियमित रखरखाव, जिसमें सही स्नेहन और घटकों का संरेखण (alignment) शामिल है, प्रदर्शन में गिरावट को रोकता है और टरबाइन की निरंतर दक्षता सुनिश्चित करता है।



ऊर्जा रूपांतरण के आधार पर टर्बाइनों को दो मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है: 

आवेग टर्बाइन (Impulse Turbine) और

प्रतिक्रिया टर्बाइन (Reaction Turbine)

 इन दोनों के काम करने के तरीके में मौलिक अंतर होता है।

​1. आवेग टर्बाइन (Impulse Turbine)

  • कार्य सिद्धांत: इस प्रकार की टर्बाइन में, तरल पदार्थ (जैसे पानी या भाप) की पूरी ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में बदला जाता है। एक नोजल का उपयोग करके, तरल पदार्थ को बहुत तेज गति के जेट में बदला जाता है, जो टर्बाइन के ब्लेड पर टकराता है। यह टकराव या आवेग ही ब्लेड को घुमाता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ: ब्लेड पर टकराने के बाद तरल पदार्थ का दाब वायुमंडलीय दाब के बराबर रहता है। टर्बाइन का रोटर पूरी तरह से तरल पदार्थ से घिरा नहीं होता। इसका उपयोग आमतौर पर उच्च दाब और कम प्रवाह दर वाले अनुप्रयोगों में किया जाता है।
  • उदाहरण:
    • पेल्टन व्हील (Pelton Wheel): जल टर्बाइन जो उच्च जल-शीर्ष (high head) के लिए उपयोग होता है।
    • डी-लेवल टर्बाइन (De Laval Turbine): भाप टर्बाइन का एक प्रकार।

​2. प्रतिक्रिया टर्बाइन (Reaction Turbine)

  • कार्य सिद्धांत: इस टर्बाइन में, तरल पदार्थ की ऊर्जा का रूपांतरण दो चरणों में होता है। पहले, स्थिर गाइड वैन तरल पदार्थ के दाब को आंशिक रूप से गतिज ऊर्जा में बदलते हैं। फिर, घूमने वाले ब्लेड में तरल पदार्थ का दाब और वेग दोनों बदलते हैं, जिससे ब्लेड पर एक प्रतिक्रिया बल उत्पन्न होता है जो टर्बाइन को घुमाता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ: टर्बाइन का रोटर पूरी तरह से तरल पदार्थ से घिरा होता है। ब्लेड के बीच से गुजरने पर तरल पदार्थ का दाब लगातार कम होता जाता है। इसका उपयोग निम्न या मध्यम दाब और उच्च प्रवाह दर वाले अनुप्रयोगों में किया जाता है।
  • उदाहरण:
    • फ्रांसिस टर्बाइन (Francis Turbine): जल टर्बाइन जो मध्यम जल-शीर्ष के लिए उपयोग होता है।
    • कापलान टर्बाइन (Kaplan Turbine): जल टर्बाइन जो कम जल-शीर्ष के लिए उपयोग होता है।
    • पारसन्स टर्बाइन (Parsons Turbine): भाप टर्बाइन का एक प्रकार।


आवेग (Impulse) और प्रतिक्रिया (Reaction) टर्बाइन दोनों ही तरल पदार्थ (जैसे पानी या भाप) की ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं, लेकिन उनके कार्य करने के तरीके में महत्वपूर्ण अंतर होता है। यहाँ इन दोनों के बीच एक तुलनात्मक विवरण दिया गया है:

आवेग (Impulse) और प्रतिक्रिया (Reaction) टर्बाइन दोनों ही तरल पदार्थ (जैसे पानी या भाप) की ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलते हैं, लेकिन उनके काम करने के तरीके और बनावट में काफी अंतर होता है।

​यहाँ इन दोनों के बीच मुख्य अंतरों को एक तुलनात्मक तालिका में समझाया गया है:

आवेग टर्बाइन (Impulse Turbine) 

एक प्रकार की टर्बाइन है जो बहते हुए तरल पदार्थ (जैसे पानी या भाप) की गतिज ऊर्जा का उपयोग करके घूमती है। इसका मुख्य सिद्धांत यह है कि तरल पदार्थ की सारी दाब ऊर्जा (pressure energy) को गतिज ऊर्जा (kinetic energy) में बदलकर, एक तेज जेट के रूप में टर्बाइन के ब्लेडों पर मारा जाता है।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​आवेग टर्बाइन का कार्य सिद्धांत न्यूटन के गति के दूसरे नियम पर आधारित है।

  1. दाब से गति में रूपांतरण: सबसे पहले, टर्बाइन के प्रवेश द्वार पर लगे नोजल द्वारा तरल पदार्थ के दाब को बहुत कम किया जाता है। दाब कम होने के कारण, तरल पदार्थ का वेग अत्यधिक बढ़ जाता है।
  2. ब्लेड पर प्रहार: यह उच्च-वेग वाला तरल जेट टर्बाइन के घूमने वाले रोटर पर लगे विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए कप या बाल्टी के आकार के ब्लेडों से टकराता है।
  3. आवेग बल: यह टकराव ब्लेडों पर एक शक्तिशाली आवेग बल उत्पन्न करता है, जिससे रोटर घूमना शुरू कर देता है। तरल पदार्थ ब्लेड से टकराकर अपनी गतिज ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा रोटर को स्थानांतरित कर देता है।
  4. दाब में स्थिरता: इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, ब्लेड के ऊपर और नीचे का दाब वायुमंडलीय दाब के बराबर या लगभग स्थिर रहता है।

मुख्य भाग (Main Parts)

  • नोजल (Nozzle): यह वह भाग है जो तरल पदार्थ के दाब को कम करके उसके वेग को बढ़ाता है।
  • रोटर या धावक (Rotor or Runner): यह टर्बाइन का घूमने वाला भाग है, जिस पर ब्लेड लगे होते हैं।
  • ब्लेड या बाल्टी (Blades or Buckets): ये रोटर पर लगे कप के आकार के भाग होते हैं, जो तरल जेट के आवेग को ग्रहण करते हैं।
  • केसिंग (Casing): यह टर्बाइन के घूमने वाले भागों को सुरक्षा प्रदान करता है और बाहर निकले हुए पानी को नियंत्रित करता है।

उदाहरण (Examples)

पेल्टन व्हील (Pelton Wheel) 

आवेग टर्बाइन का एक सबसे अच्छा और लोकप्रिय उदाहरण है। इसका उपयोग उन जलविद्युत संयंत्रों में होता है जहाँ पानी का बहाव कम होता है, लेकिन ऊँचाई (जल-शीर्ष) बहुत अधिक होती है।

​आवेग टर्बाइन उच्च-दाब, कम-प्रवाह वाले अनुप्रयोगों के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।


प्रतिक्रिया टर्बाइन (Reaction Turbine) 

एक प्रकार की टर्बाइन है जो तरल पदार्थ (जैसे पानी या भाप) की गतिज ऊर्जा और दाब ऊर्जा दोनों का उपयोग करके घूर्णन गति उत्पन्न करती है। इसका नाम "प्रतिक्रिया" इसलिए है क्योंकि यह न्यूटन के गति के तीसरे नियम (क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया) के सिद्धांत पर काम करती है।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

  1. दाब और गतिज ऊर्जा का उपयोग: प्रतिक्रिया टरबाइन में, तरल पदार्थ (जैसे पानी या भाप) एक गाइड वैन के माध्यम से ब्लेडों पर निर्देशित होता है। इस प्रक्रिया में, तरल का दाब आंशिक रूप से गतिज ऊर्जा में बदल जाता है।
  2. ब्लेडों में दाब में गिरावट: जैसे ही तरल पदार्थ घूमने वाले ब्लेडों के बीच से गुजरता है, उसका दाब लगातार कम होता जाता है।
  3. प्रतिक्रिया बल: ब्लेडों के विशेष आकार के कारण, तरल पदार्थ का वेग और दाब दोनों बदलते हैं, जिससे ब्लेडों पर एक प्रतिक्रिया बल उत्पन्न होता है। यही प्रतिक्रिया बल ब्लेडों को घुमाता है।
  4. पूर्ण घेराव: आवेग टर्बाइन के विपरीत, प्रतिक्रिया टर्बाइन पूरी तरह से तरल पदार्थ से घिरी होती है, जिससे यह दाब में कमी का लाभ उठा पाती है।

मुख्य भाग (Main Parts)

  • गाइड वैन (Guide Vanes): ये स्थिर ब्लेड होते हैं जो तरल पदार्थ को घूमने वाले ब्लेडों की तरफ सही कोण पर निर्देशित करते हैं।
  • रोटर (Rotor): यह टर्बाइन का घूमने वाला भाग है जिस पर ब्लेड लगे होते हैं।
  • केसिंग (Casing): यह टर्बाइन के घूमने वाले हिस्सों को घेरता है और यह सुनिश्चित करता है कि तरल पदार्थ ब्लेडों से होकर गुजरे।

उदाहरण (Examples)

​प्रतिक्रिया टर्बाइन का उपयोग आमतौर पर उन जलविद्युत संयंत्रों में किया जाता है जहाँ पानी का बहाव अधिक और जल-शीर्ष (ऊँचाई) कम या मध्यम होता है।

  • फ्रांसिस टर्बाइन (Francis Turbine): यह मध्यम जल-शीर्ष और मध्यम प्रवाह के लिए सबसे उपयुक्त है।
  • कापलान टर्बाइन (Kaplan Turbine): यह कम जल-शीर्ष और उच्च प्रवाह के लिए उपयोग की जाती है।
  • पारसन्स टर्बाइन (Parsons Turbine): यह एक प्रकार की भाप टर्बाइन है जो प्रतिक्रिया सिद्धांत पर काम करती है।


फ्रांसिस टर्बाइन एक प्रतिक्रिया टर्बाइन है जिसे स्विस-अमेरिकी इंजीनियर जेम्स बी. फ्रांसिस ने 1848 में विकसित किया था। यह अपनी उच्च दक्षता के कारण दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले जल टर्बाइनों में से एक है।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​फ्रांसिस टर्बाइन, प्रतिक्रिया सिद्धांत पर काम करती है। यह टर्बाइन पानी के दाब और गतिज ऊर्जा दोनों का उपयोग करती है।

  1. पानी का प्रवेश: पानी एक सर्पिलाकार आवरण (scroll casing) से होते हुए टर्बाइन में प्रवेश करता है। यह आवरण पानी को समान रूप से गाइड वैन की ओर निर्देशित करता है।
  2. गाइड वैन द्वारा नियंत्रण: गाइड वैन (जो स्थिर ब्लेड होते हैं) पानी के प्रवाह को रोटर के ब्लेडों पर सही कोण पर निर्देशित करते हैं। यह क्रिया पानी के दाब को गतिज ऊर्जा में बदलना शुरू कर देती है।
  3. ब्लेडों पर प्रतिक्रिया: जैसे ही पानी रोटर के मुड़े हुए ब्लेडों से होकर गुजरता है, इसका दाब लगातार कम होता जाता है। ब्लेडों के विशेष आकार के कारण, यह दाब में कमी एक प्रतिक्रिया बल उत्पन्न करती है, जिससे रोटर घूमना शुरू हो जाता है।
  4. ड्राफ्ट ट्यूब द्वारा निकास: पानी टर्बाइन से एक ड्राफ्ट ट्यूब (draft tube) के माध्यम से बाहर निकलता है, जो पानी के वेग को कम करके और दाब को बढ़ाकर टर्बाइन की दक्षता को बनाए रखने में मदद करता है।

मुख्य भाग (Main Parts)

  • सर्पिलाकार आवरण (Spiral Casing): यह एक शंख के आकार का पाइप है जो टर्बाइन के चारों ओर लिपटा होता है। यह पानी को गाइड वैन तक समान रूप से पहुँचाता है।
  • गाइड वैन (Guide Vanes): ये घूमने वाले ब्लेडों के चारों ओर लगे स्थिर ब्लेड होते हैं, जो पानी के प्रवाह को नियंत्रित और निर्देशित करते हैं।
  • रोटर (Rotor): यह टर्बाइन का मुख्य घूमने वाला भाग है जिस पर ब्लेड लगे होते हैं। इसे धावक (Runner) भी कहा जाता है।
  • ड्राफ्ट ट्यूब (Draft Tube): यह टर्बाइन के निकास पर लगा एक पाइप है जो पानी को बाहर निकालता है और दक्षता बढ़ाता है।

उपयोग (Applications)

​फ्रांसिस टर्बाइन सबसे बहुमुखी टर्बाइनों में से एक है। इसका उपयोग उन जलविद्युत संयंत्रों में किया जाता है जहाँ पानी का जल-शीर्ष (head) मध्यम होता है (आमतौर पर 40 से 600 मीटर तक) और पानी का प्रवाह (flow) भी मध्यम होता है। इसका उपयोग अक्सर पंप स्टोरेज प्लांट में भी किया जाता है, जहाँ यह बिजली पैदा करने के लिए टर्बाइन और पानी को ऊपर पंप करने के लिए पंप दोनों के रूप में काम कर सकती है।



कापलान टर्बाइन एक प्रकार की प्रतिक्रिया टर्बाइन है, जिसे ऑस्ट्रियाई प्रोफेसर विक्टर कापलान ने 1913 में विकसित किया था। यह अपनी दक्षता और बहुमुखी प्रतिभा के लिए जानी जाती है, खासकर उन स्थितियों में जहाँ पानी का बहाव बहुत अधिक होता है, लेकिन पानी का जल-शीर्ष (head) बहुत कम होता है।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​कापलान टर्बाइन का कार्य सिद्धांत प्रतिक्रिया टर्बाइन के समान है, लेकिन इसमें कुछ महत्वपूर्ण सुधार हैं:

  1. पानी का प्रवाह: पानी टर्बाइन के सर्पिलाकार आवरण (scroll casing) से प्रवेश करता है और रेडियल रूप से (अंदर की ओर) गाइड वैन तक पहुँचता है।
  2. अक्षीय प्रवाह: गाइड वैन पानी के प्रवाह को मोड़ती हैं ताकि यह अक्षीय रूप से (शाफ्ट के समानांतर) रोटर में प्रवेश करे।
  3. समायोज्य ब्लेड (Adjustable Blades): कापलान टर्बाइन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसके समायोज्य ब्लेड हैं। ब्लेड का कोण पानी के प्रवाह और लोड के अनुसार स्वचालित रूप से बदल सकता है। यह सुविधा टर्बाइन को विभिन्न प्रवाह स्थितियों में भी उच्च दक्षता बनाए रखने में मदद करती है।
  4. दाब और वेग का उपयोग: पानी का दाब और वेग दोनों ब्लेडों पर प्रतिक्रिया बल उत्पन्न करते हैं, जिससे टर्बाइन घूमती है।
  5. ड्राफ्ट ट्यूब द्वारा निकास: पानी टर्बाइन से एक ड्राफ्ट ट्यूब के माध्यम से बाहर निकलता है।

मुख्य भाग (Main Parts)

  • सर्पिलाकार आवरण (Scroll Casing): यह पानी को समान रूप से टर्बाइन के चारों ओर वितरित करता है।
  • गाइड वैन (Guide Vanes): ये स्थिर ब्लेड होते हैं जो पानी के प्रवाह को रोटर तक निर्देशित करते हैं।
  • हब के साथ प्रोपेलर (Propeller with Hub): यह टर्बाइन का घूमने वाला भाग है, जिसमें 3 से 8 पंखों की तरह ब्लेड लगे होते हैं।
  • समायोज्य ब्लेड (Adjustable Blades): ये ब्लेड अपनी स्थिति को स्वचालित रूप से बदल सकते हैं।
  • ड्राफ्ट ट्यूब (Draft Tube): यह पानी को टर्बाइन से बाहर निकालता है और दक्षता बढ़ाता है।

उपयोग (Applications)

​कापलान टर्बाइन का उपयोग उन जलविद्युत संयंत्रों में सबसे अधिक होता है जहाँ पानी का जल-शीर्ष कम होता है (2 से 40 मीटर तक) और पानी का बहाव बहुत अधिक होता है। इन्हें अक्सर समतल भूभाग पर बहने वाली नदियों पर बने बांधों में देखा जा सकता है। अपनी उच्च दक्षता के कारण, यह बिजली उत्पादन के लिए एक बहुत ही प्रभावी और लोकप्रिय विकल्प है।



गैस टर्बाइन और भाप टर्बाइन दोनों ही ऊर्जा को यांत्रिक शक्ति में बदलने वाले उपकरण हैं, लेकिन वे विभिन्न सिद्धांतों पर काम करते हैं और उनके अपने-अपने फायदे और नुकसान होते हैं।

​यहाँ इन दोनों के बीच मुख्य अंतरों को एक तुलनात्मक तालिका में समझाया गया है:

गैस टर्बाइन बनाम भाप टर्बाइन:

 मुख्य अंतर

गैस टर्बाइन एक आंतरिक दहन इंजन है जो उच्च वेग वाली गर्म गैसों का उपयोग करके घूर्णन गति उत्पन्न करता है। इसे अक्सर एक जेट इंजन के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसका उपयोग विमानों को चलाने में किया जाता है।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​गैस टर्बाइन ब्रेटन चक्र (Brayton Cycle) के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें तीन मुख्य चरण होते हैं:

  1. संपीड़न (Compression): टर्बाइन में एक कंप्रेसर होता है जो बाहर से हवा खींचता है और उसे बहुत उच्च दाब पर संपीड़ित करता है। इस प्रक्रिया में हवा का तापमान भी बढ़ जाता है।
  2. दहन (Combustion): यह संपीड़ित हवा एक दहन कक्ष (combustion chamber) में भेजी जाती है, जहाँ उसमें ईंधन (जैसे प्राकृतिक गैस या डीजल) मिलाया जाता है और जलाया जाता है। दहन से गैसों का तापमान और भी बढ़ जाता है, जिससे उच्च दाब और उच्च तापमान वाली गैसें बनती हैं।
  3. विस्तार (Expansion): ये उच्च-दाब वाली गर्म गैसें टर्बाइन के ब्लेडों पर तेजी से फैलती हैं और बल लगाती हैं, जिससे टर्बाइन का शाफ्ट तेजी से घूमने लगता है। इस घूर्णन ऊर्जा का उपयोग एक जनरेटर को चलाने या सीधे किसी मशीन को शक्ति देने के लिए किया जाता है।

मुख्य भाग (Main Parts)

  • कंप्रेसर (Compressor): यह टर्बाइन के सामने का भाग होता है जो हवा को खींचता और संपीड़ित करता है।
  • दहन कक्ष (Combustor): यह वह जगह है जहाँ ईंधन जलता है और उच्च-तापमान वाली गैसें बनती हैं।
  • टर्बाइन (Turbine): यह अंतिम भाग होता है जिसमें घूमने वाले ब्लेड होते हैं। गर्म गैसें इन ब्लेडों को घुमाती हैं।

उपयोग (Applications)

​गैस टर्बाइन के प्रमुख उपयोग निम्नलिखित हैं:

  • बिजली उत्पादन: गैस टर्बाइन का उपयोग बिजली संयंत्रों में बिजली बनाने के लिए किया जाता है, खासकर कंबाइंड साइकिल प्लांट में।
  • विमानन: यह विमानों में जेट इंजन के रूप में सबसे अधिक उपयोग होता है।
  • नौवहन: इसका उपयोग तेज गति वाले जहाजों और नौसेना के जहाजों में प्रोपेलर को शक्ति देने के लिए किया जाता है।
  • तेल और गैस उद्योग: पाइपलाइनों में गैस को पंप करने और कंप्रेसर को चलाने के लिए भी इसका उपयोग होता है।

वाष्प (या भाप) टर्बाइन एक यांत्रिक उपकरण है जो उच्च दाब और तापमान वाली भाप से ऊष्मा ऊर्जा को घूर्णी यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करता है। यह बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन के लिए सबसे महत्वपूर्ण मशीन है, खासकर ताप विद्युत और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​वाष्प टर्बाइन रैंकिन चक्र (Rankine Cycle) के सिद्धांत पर काम करती है। इसका कार्य प्रवाह इस प्रकार है:

  1. भाप का निर्माण: एक बॉयलर में पानी को गर्म करके उच्च दाब और उच्च तापमान वाली भाप बनाई जाती है।
  2. टर्बाइन में विस्तार: यह भाप टर्बाइन में प्रवेश करती है, जहाँ यह टर्बाइन के ब्लेडों पर फैलती और टकराती है।
  3. ऊर्जा रूपांतरण: भाप की दाब और गतिज ऊर्जा ब्लेडों को घुमाती है, जिससे टर्बाइन का शाफ्ट तेजी से घूमने लगता है।
  4. संक्षेपण: टर्बाइन से निकलने वाली भाप का दाब और तापमान कम हो जाता है। इसे एक कंडेंसर में भेजकर ठंडा किया जाता है और वापस पानी में बदल दिया जाता है। इस पानी को फिर से बॉयलर में पंप करके चक्र पूरा किया जाता है।

मुख्य भाग (Main Parts)

  • रोटर (Rotor): यह टर्बाइन का घूमने वाला केंद्रीय भाग है, जिस पर ब्लेड लगे होते हैं।
  • ब्लेड (Blades): ये ब्लेड रोटर पर लगे होते हैं और भाप के बल से घूमते हैं। ये ब्लेड अलग-अलग चरणों में छोटे से बड़े होते जाते हैं।
  • केसिंग या सिलेंडर (Casing or Cylinder): यह टर्बाइन के घूमने वाले हिस्सों को घेरता है और भाप के रिसाव को रोकता है।
  • बॉयलर (Boiler): वह उपकरण जहाँ पानी को गर्म करके भाप बनाई जाती है।
  • कंडेंसर (Condenser): यह टर्बाइन से निकली भाप को ठंडा करके पानी में बदलता है।

वाष्प टर्बाइन के प्रकार

​वाष्प टर्बाइन को उनके कार्य सिद्धांत के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

  • आवेग टर्बाइन (Impulse Turbine): इसमें भाप का दाब एक नोजल में गिरता है, जिससे इसका वेग बहुत बढ़ जाता है। यह उच्च-वेग वाली भाप ब्लेडों से टकराकर उन्हें घुमाती है।
  • प्रतिक्रिया टर्बाइन (Reaction Turbine): इसमें भाप का दाब ब्लेडों के बीच लगातार कम होता जाता है, जिससे प्रतिक्रिया बल उत्पन्न होता है जो टर्बाइन को घुमाता है।
  • आवेग-प्रतिक्रिया टर्बाइन (Impulse-Reaction Turbine): यह दोनों सिद्धांतों का एक संयोजन है, जिसका उपयोग आधुनिक बड़े बिजली संयंत्रों में किया जाता है।

संक्षिप्त तुलना

  • गैस टर्बाइन अपनी तेज स्टार्ट-अप क्षमता और हल्के वजन के कारण उन अनुप्रयोगों के लिए आदर्श हैं जहाँ शक्ति की मांग में बार-बार बदलाव होता है।
  • भाप टर्बाइन अपनी उच्च दक्षता और विश्वसनीयता के कारण बड़े पैमाने पर और निरंतर बिजली उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त हैं। इन्हें अक्सर गैस टर्बाइन के साथ मिलाकर कंबाइंड साइकिल प्लांट में उपयोग किया जाता है, जहाँ गैस टर्बाइन के निकास से निकलने वाली गर्मी का उपयोग भाप टर्बाइन को चलाने के लिए किया जाता है, जिससे कुल दक्षता बहुत बढ़ जाती है।


ऊर्ध्वाधर (vertical) और क्षैतिज (horizontal) टर्बाइन के बीच का मुख्य अंतर उनके मुख्य शाफ्ट की दिशा (orientation) है। यह दिशा टर्बाइन के डिज़ाइन, स्थापना और उपयोग को काफी हद तक प्रभावित करती है।

ऊर्ध्वाधर बनाम क्षैतिज टर्बाइन: 

तुलना

ऊर्ध्वाधर टर्बाइन वह टर्बाइन है जिसका मुख्य शाफ्ट जमीन के समानांतर ऊर्ध्वाधर (vertically) स्थापित होता है। इस डिज़ाइन का उपयोग आमतौर पर जलविद्युत संयंत्रों में किया जाता है, खासकर उन जगहों पर जहाँ पानी का बहाव बहुत अधिक होता है।

कार्य और उपयोग (Working and Use)

​ऊर्ध्वाधर टर्बाइन अपनी कार्यक्षमता के कारण निम्न से मध्यम जल-शीर्ष (low to medium head) और उच्च प्रवाह (high flow) वाली स्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त हैं।

  • ​पानी का प्रवाह एक सर्पिलाकार आवरण (scroll casing) के माध्यम से टर्बाइन में प्रवेश करता है।
  • ​गाइड वैन पानी को नियंत्रित करते हैं और इसे टर्बाइन के घूमने वाले ब्लेडों पर निर्देशित करते हैं।
  • ​पानी का बल ब्लेडों को घुमाता है, जिससे ऊर्ध्वाधर शाफ्ट घूमता है। यह घूर्णन ऊर्जा सीधे ऊपर स्थित जनरेटर को बिजली उत्पन्न करने के लिए चलाती है।

प्रमुख प्रकार (Main Types)

​दो सबसे आम प्रकार की जल टर्बाइन जिन्हें ऊर्ध्वाधर रूप से स्थापित किया जाता है, वे हैं:

  1. फ्रांसिस टर्बाइन (Francis Turbine): इसका उपयोग मध्यम जल-शीर्ष और उच्च प्रवाह दोनों के लिए किया जाता है। यह सबसे बहुमुखी और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली टर्बाइन है।
  2. कापलान टर्बाइन (Kaplan Turbine): इसका उपयोग बहुत कम जल-शीर्ष और बहुत उच्च प्रवाह के लिए किया जाता है। इसकी समायोज्य ब्लेडें इसे बदलते हुए प्रवाह की स्थिति में भी अत्यधिक कुशल बनाती हैं।

फायदे (Advantages)

  • कम जगह: ऊर्ध्वाधर डिज़ाइन क्षैतिज टर्बाइन की तुलना में कम जगह घेरता है।
  • उच्च दक्षता: ये टर्बाइन कम-शीर्ष और उच्च-प्रवाह की स्थितियों में बहुत कुशल होती हैं।
  • जल निकासी: यह डिज़ाइन पानी को आसानी से टर्बाइन से बाहर निकालने (drainage) में मदद करता है।

ऊर्ध्वाधर शाफ्ट (Vertical Shaft) एक यांत्रिक घटक है जो जमीन के लंबवत, यानी ऊपर से नीचे की दिशा में स्थापित होता है। इसका मुख्य कार्य ऊर्ध्वाधर अक्ष के चारों ओर घूर्णन गति और शक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करना है।

कार्य और उपयोग

​ऊर्ध्वाधर शाफ्ट का उपयोग उन मशीनों में किया जाता है जहाँ कम जगह में अधिक शक्ति संचारित करने की आवश्यकता होती है। यह विशेष रूप से उन टर्बाइनों में महत्वपूर्ण है जिन्हें उच्च दक्षता के लिए इस तरह से डिज़ाइन किया गया है।

  • शक्ति का संचरण: यह टर्बाइन के घूमने वाले रोटर से प्राप्त घूर्णन ऊर्जा को ऊपर लगे जनरेटर तक पहुँचाता है, जिससे बिजली बनती है।
  • घटक को सहारा देना: यह टर्बाइन के घूमने वाले भागों, जैसे कि रोटर और ब्लेड, को सहारा देता है और उन्हें सही संरेखण (alignment) में रखता है।

जल टर्बाइनों में ऊर्ध्वाधर शाफ्ट

​जलविद्युत परियोजनाओं में ऊर्ध्वाधर शाफ्ट का व्यापक उपयोग होता है, खासकर फ्रांसिस और कापलान टर्बाइनों में।

  • अंतरिक्ष दक्षता: ऊर्ध्वाधर व्यवस्था एक छोटा टर्बाइन हाउस बनाने में मदद करती है, जिससे जगह की बचत होती है।
  • जल प्रवाह: यह कम से मध्यम जल-शीर्ष (head) और उच्च प्रवाह (flow) वाली स्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त है।

इस तरह, 

ऊर्ध्वाधर शाफ्ट एक विशेष प्रकार का शाफ्ट है जो अपनी दिशा के कारण विशिष्ट मशीनों और उनके अनुप्रयोगों के लिए एक महत्वपूर्ण घटक बन जाता है।

क्षैतिज टर्बाइन वह टर्बाइन है जिसका मुख्य शाफ्ट जमीन के समानांतर क्षैतिज (horizontally) स्थापित होता है। इस डिज़ाइन का उपयोग आमतौर पर उन स्थितियों में किया जाता है जहाँ पानी का बहाव कम हो, लेकिन बहुत अधिक दाब (जल-शीर्ष) हो।

कार्य और उपयोग (Working and Use)

​क्षैतिज टर्बाइन अपनी कार्यक्षमता के कारण उच्च जल-शीर्ष (high head) और कम प्रवाह (low flow) वाली स्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त हैं।

पानी एक लंबी पाइपलाइन (penstock) से अत्यधिक दाब के साथ आता है।

यह पानी नोजल के माध्यम से एक शक्तिशाली जेट के रूप में निकलता है।

यह जेट टर्बाइन के क्षैतिज रूप से लगे ब्लेडों पर सीधे टकराता है, जिससे टर्बाइन का शाफ्ट घूमता है।

 यह घूर्णन ऊर्जा सीधे जनरेटर को बिजली उत्पन्न करने के लिए चलाती है।

प्रमुख प्रकार (Main Types)

​सबसे आम प्रकार की जल टर्बाइन जिसे क्षैतिज रूप से स्थापित किया जाता है, वह है:

  • पेल्टन व्हील (Pelton Wheel): यह एक आवेग टर्बाइन है जिसका उपयोग बहुत उच्च जल-शीर्ष और कम प्रवाह के लिए किया जाता है। इसके ब्लेडों को "बाल्टी" कहा जाता है जो सीधे पानी के जेट से टकराती हैं।

​कुछ छोटे फ्रांसिस टर्बाइन और कापलान टर्बाइन भी विशिष्ट स्थितियों में क्षैतिज रूप से स्थापित किए जा सकते हैं, लेकिन यह कम सामान्य है।

फायदे (Advantages)

  • आसान रखरखाव: क्षैतिज टर्बाइन के घूमने वाले भाग आसानी से सुलभ होते हैं, जिससे रखरखाव सरल हो जाता है।
  • कम लागत: इनकी स्थापना और नागरिक कार्यों (civil works) की लागत आमतौर पर ऊर्ध्वाधर टर्बाइन की तुलना में कम होती है।

क्षैतिज शाफ्ट (Horizontal Shaft) एक यांत्रिक घटक है जो जमीन के समानांतर क्षैतिज (horizontally) स्थापित होता है। इसका मुख्य कार्य क्षैतिज अक्ष के चारों ओर घूर्णन गति और शक्ति को एक मशीन के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक स्थानांतरित करना है।

कार्य और उपयोग

​क्षैतिज शाफ्ट का उपयोग उन मशीनों में किया जाता है जहाँ यह डिज़ाइन अधिक व्यावहारिक होता है, खासकर कुछ प्रकार की टर्बाइनों में।

  • शक्ति का संचरण: यह टर्बाइन के घूमने वाले रोटर से प्राप्त घूर्णन ऊर्जा को सीधे एक जनरेटर या किसी अन्य मशीन तक पहुँचाता है।
  • घटक को सहारा देना: यह टर्बाइन के घूमने वाले भागों, जैसे कि रोटर और ब्लेड, को सहारा देता है और उन्हें सही संरेखण (alignment) में रखता है।

जल टर्बाइनों में क्षैतिज शाफ्ट

​जलविद्युत परियोजनाओं में, क्षैतिज शाफ्ट का उपयोग अक्सर उन टर्बाइनों में किया जाता है जो उच्च जल-शीर्ष (high head) और कम प्रवाह (low flow) वाली स्थितियों के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।

  • मुख्य उदाहरण: पेल्टन व्हील (Pelton Wheel) टर्बाइन क्षैतिज शाफ्ट का एक सबसे आम उदाहरण है। इसमें पानी का जेट शाफ्ट पर लगे कप के आकार के ब्लेडों से टकराता है, जिससे शाफ्ट घूमता है।
  • रखरखाव में आसानी: क्षैतिज शाफ्ट और उससे जुड़े घटक आसानी से सुलभ होते हैं, जिससे रखरखाव और मरम्मत सरल हो जाती है।

इस तरह,

क्षैतिज शाफ्ट एक महत्वपूर्ण यांत्रिक घटक है जो अपनी दिशा के कारण विशिष्ट मशीनों और उनके अनुप्रयोगों के लिए एक आदर्श विकल्प बन जाता है।

मुख्य अंतर और उपयोग

  • ऊर्ध्वाधर टर्बाइन का उपयोग अक्सर बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में किया जाता है जहाँ पानी का बहाव बहुत अधिक होता है, जैसे कि कापलान और फ्रांसिस टर्बाइन। ये अपने कॉम्पैक्ट डिज़ाइन के कारण अधिक जगह बचाती हैं।
  • क्षैतिज टर्बाइन का उपयोग आमतौर पर छोटे जलविद्युत संयंत्रों में और जहाँ पानी का बहाव कम लेकिन दाब बहुत अधिक होता है, वहाँ किया जाता है। पेल्टन टर्बाइन इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

संक्षेप में, 

टर्बाइन का चुनाव उसकी दक्षता, लागत और विशेष रूप से उपलब्ध जल-शीर्ष और प्रवाह की स्थिति पर निर्भर करता है।




खुला चक्र और बंद चक्र टर्बाइन के बीच का मुख्य अंतर यह है कि उनमें कार्यशील द्रव (working fluid) का उपयोग कैसे होता है। यह अंतर उनके डिज़ाइन, दक्षता और अनुप्रयोगों को प्रभावित करता है।

खुला चक्र (Open Cycle) टर्बाइन

  • कार्य सिद्धांत: इस प्रकार की टर्बाइन में, कार्यशील द्रव (आमतौर पर हवा) को वातावरण से खींचा जाता है। इसे कंप्रेसर में संपीड़ित किया जाता है, दहन कक्ष में ईंधन के साथ जलाया जाता है, और फिर टर्बाइन के ब्लेडों पर विस्तार करने दिया जाता है। काम करने के बाद, गर्म निकास गैसों को सीधे वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है। चक्र पूरा होने के लिए ताजी हवा को फिर से बाहर से खींचना पड़ता है।
  • फायदे: ये डिज़ाइन में सरल, कम लागत वाले और तेजी से शुरू होने वाले होते हैं। इनका उपयोग विमानों के जेट इंजन और उन बिजली संयंत्रों में किया जाता है जहाँ बिजली की मांग में उतार-चढ़ाव होता है।
  • नुकसान: इनकी तापीय दक्षता (thermal efficiency) कम होती है और ये वायुमंडलीय तापमान पर संवेदनशील होते हैं, यानी गर्म दिनों में इनका प्रदर्शन गिर जाता है।

बंद चक्र (Closed Cycle) टर्बाइन

  • कार्य सिद्धांत: इस प्रणाली में, कार्यशील द्रव (जैसे हवा, हीलियम या नाइट्रोजन) एक बंद लूप में लगातार घूमता रहता है। बाहर से गर्मी एक हीट एक्सचेंजर के माध्यम से द्रव में स्थानांतरित की जाती है, जो इसे गर्म करके टर्बाइन में भेजता है। काम करने के बाद, टर्बाइन से निकलने वाली गैसों को ठंडा किया जाता है और फिर से कंप्रेसर में भेज दिया जाता है, जिससे चक्र बंद रहता है।
  • फायदे: ये अधिक तापीय दक्षता प्रदान करते हैं और वायुमंडलीय स्थितियों से प्रभावित नहीं होते हैं, क्योंकि द्रव बाहर के वातावरण के संपर्क में नहीं आता। इनमें साफ ईंधन का उपयोग किया जा सकता है और ब्लेड का जीवनकाल लंबा होता है।
  • नुकसान: ये जटिल, अधिक महंगे और बड़े होते हैं, क्योंकि इनमें हीट एक्सचेंजर और कूलर जैसे अतिरिक्त घटक होते हैं।

संक्षेप में, 

खुला चक्र टर्बाइन कम लागत और तेज स्टार्ट-अप के लिए बेहतर होते हैं, जबकि बंद चक्र टर्बाइन उच्च दक्षता और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए उपयुक्त होते हैं।


खुले चक्र गैस टर्बाइन में, कार्यशील द्रव (working fluid) को एक ही बार उपयोग किया जाता है और फिर उसे वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है। यह डिज़ाइन ब्रेटन चक्र (Brayton Cycle) पर आधारित है और तीन मुख्य चरणों में काम करता है।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

  1. संपीड़न (Compression): सबसे पहले, टर्बाइन का कंप्रेसर वायुमंडल से ताजी हवा खींचता है और उसे बहुत उच्च दाब पर संपीड़ित करता है। इस प्रक्रिया में हवा का तापमान भी बढ़ जाता है।
  2. दहन (Combustion): यह संपीड़ित और गर्म हवा एक दहन कक्ष में जाती है, जहाँ इसमें ईंधन (जैसे प्राकृतिक गैस) मिलाकर उसे जलाया जाता है। दहन से गैसों का तापमान और दाब और भी बढ़ जाता है।
  3. विस्तार और निकास (Expansion and Exhaust): ये उच्च-दाब वाली गर्म गैसें टर्बाइन के ब्लेडों से होकर गुजरती हैं, जिससे वे तेजी से घूमते हैं और यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। काम करने के बाद, इन गैसों को सीधे चिमनी के माध्यम से वायुमंडल में छोड़ दिया जाता है।

​यह एक खुला चक्र है क्योंकि कार्यशील द्रव (हवा) एक बंद लूप में पुन: प्रसारित नहीं होता है।

फायदे और नुकसान

  • फायदे: खुला चक्र टर्बाइन डिज़ाइन में सरल और कम लागत वाले होते हैं। ये तेजी से शुरू हो सकते हैं, जिससे बिजली की अचानक बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद मिलती है।
  • नुकसान: इनकी तापीय दक्षता आमतौर पर कम होती है, क्योंकि निकास गैसों में बहुत अधिक अपशिष्ट ऊष्मा (waste heat) होती है जो बेकार चली जाती है।

​आजकल, इस अपशिष्ट ऊष्मा का उपयोग अक्सर भाप टर्बाइन को चलाकर बिजली उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता है, जिसे संयुक्त चक्र (Combined Cycle) कहा जाता है।

बंद चक्र गैस टर्बाइन एक ऐसी प्रणाली है जिसमें कार्यशील द्रव (working fluid) को एक बंद लूप में लगातार पुन: प्रसारित (recirculated) किया जाता है। इस प्रणाली में, कार्यशील द्रव बाहर के वातावरण के सीधे संपर्क में नहीं आता।

कार्य सिद्धांत (Working Principle)

​बंद चक्र गैस टर्बाइन भी ब्रेटन चक्र (Brayton Cycle) पर आधारित है, लेकिन इसका कार्य प्रवाह एक खुला चक्र टरबाइन से अलग है:

  1. संपीड़न (Compression): कंप्रेसर कार्यशील द्रव (आमतौर पर हवा, हीलियम या नाइट्रोजन) को संपीड़ित करता है, जिससे इसका दाब बढ़ जाता है।
  2. ऊष्मा का प्रवेश (Heat Input): संपीड़ित द्रव एक ऊष्मा स्रोत (heat source) में प्रवेश करता है, जो अक्सर एक परमाणु रिएक्टर या बाहरी दहन कक्ष होता है। इस ऊष्मा स्रोत से गर्मी एक हीट एक्सचेंजर के माध्यम से द्रव में स्थानांतरित होती है, जिससे इसका तापमान और भी बढ़ जाता है।
  3. विस्तार (Expansion): उच्च-दाब और उच्च-तापमान वाला द्रव टर्बाइन में विस्तार करता है, जिससे टर्बाइन का शाफ्ट घूमता है और यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
  4. शीतलन (Cooling): टर्बाइन से निकलने के बाद, द्रव एक कूलर में भेजा जाता है जहाँ इसे ठंडा किया जाता है। ठंडा होने के बाद, द्रव को फिर से कंप्रेसर में भेज दिया जाता है ताकि चक्र दोहराया जा सके।

फायदे और नुकसान

  • फायदे:
    • उच्च दक्षता: बंद चक्र प्रणाली में ऊष्मा का उपयोग अधिक कुशलता से होता है, जिससे तापीय दक्षता बढ़ जाती है।
    • स्वतंत्रता: यह वायुमंडलीय स्थितियों से प्रभावित नहीं होती क्योंकि कार्यशील द्रव बाहरी हवा के संपर्क में नहीं आता।
    • विभिन्न ईंधन: यह प्रणाली परमाणु ऊर्जा सहित किसी भी बाहरी ऊष्मा स्रोत का उपयोग कर सकती है, जो इसे बहुमुखी बनाता है।
    • कम प्रदूषण: यदि बाहरी ऊष्मा स्रोत का उपयोग किया जाता है, तो प्रदूषण नियंत्रण आसान होता है।
  • नुकसान:
    • जटिलता और लागत: हीट एक्सचेंजर और कूलर जैसे अतिरिक्त घटकों के कारण यह प्रणाली बहुत जटिल और महंगी होती है।
    • बड़ा आकार: बंद चक्र प्रणाली को बड़े घटकों की आवश्यकता होती है, जिससे यह बहुत जगह घेरती है।




माइक्रो टर्बाइन एक छोटे आकार का टर्बाइन है जो मुख्य रूप से बिजली उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह गैस टर्बाइन इंजन के समान होता है लेकिन इसका आकार और उत्पादन क्षमता काफी कम होती है।

माइक्रो टर्बाइन कैसे काम करता है?

​माइक्रो टर्बाइन का कार्य सिद्धांत एक जेट इंजन के समान है। इसमें मुख्य रूप से तीन भाग होते हैं:

  1. कंप्रेसर: यह हवा को खींचकर उसे संपीड़ित (compress) करता है।
  2. दहन कक्ष (Combustion Chamber): यहां संपीड़ित हवा में ईंधन (जैसे प्राकृतिक गैस, प्रोपेन या डीजल) मिलाकर जलाया जाता है, जिससे उच्च तापमान और दबाव वाली गैस बनती है।
  3. टर्बाइन: दहन से उत्पन्न गैस टर्बाइन ब्लेडों को घुमाती है। यह घूर्णन एक जनरेटर से जुड़ा होता है जो यांत्रिक ऊर्जा को बिजली में बदलता है।

​यह पूरी प्रक्रिया एक ही शाफ्ट पर होती है, जिससे यह प्रणाली बहुत कॉम्पैक्ट और कुशल बन जाती है।

माइक्रो टर्बाइन के उपयोग

​माइक्रो टर्बाइन का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:

  • विकेन्द्रीकृत बिजली उत्पादन (Distributed Power Generation): इन्हें छोटे पैमाने पर बिजली उत्पन्न करने के लिए लगाया जाता है, जैसे कि व्यावसायिक इमारतों, कारखानों और दूरदराज के क्षेत्रों में।
  • संयुक्त ताप और बिजली (Combined Heat and Power - CHP): यह प्रणाली एक साथ बिजली और उपयोगी ताप (जैसे गर्म पानी या भाप) उत्पन्न करती है।  यह गर्मी हीटिंग, कूलिंग और औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए उपयोग की जा सकती है, जिससे ऊर्जा दक्षता बढ़ती है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा के साथ संयोजन: इनका उपयोग सौर और पवन ऊर्जा के पूरक के रूप में किया जा सकता है जब मौसम की स्थिति अनुकूल न हो।
  • आपातकालीन बैकअप पावर: अस्पताल, डेटा सेंटर और अन्य महत्वपूर्ण सुविधाओं में बिजली गुल होने की स्थिति में बैकअप के लिए।

लाभ और चुनौतियां

लाभ (Advantages)

  • उच्च दक्षता: CHP मोड में यह 80% तक की दक्षता प्राप्त कर सकता है।
  • कम उत्सर्जन: पारंपरिक जनरेटर की तुलना में इनका उत्सर्जन स्तर काफी कम होता है।
  • कम रखरखाव: इनमें कम चलने वाले हिस्से होते हैं, जिससे रखरखाव की आवश्यकता कम होती है।
  • छोटा आकार और हल्का वजन: ये आसानी से स्थापित और स्थानांतरित किए जा सकते हैं।

चुनौतियां (Challenges)

  • उच्च लागत: इनकी प्रारंभिक लागत पारंपरिक डीजल जनरेटर की तुलना में अधिक होती है।
  • शोर: ये ऑपरेशन के दौरान काफी शोर उत्पन्न कर सकते हैं, हालांकि आजकल कई मॉडलों में इसे कम करने के लिए उपाय किए जा रहे हैं।
  • ईंधन की आवश्यकता: ये गैस पर निर्भर करते हैं, जिससे ईंधन की उपलब्धता एक मुद्दा हो सकती है।




एयरो व्युत्पन्न टर्बाइन एक गैस टर्बाइन है जिसे विमान के जेट इंजन से प्राप्त तकनीक और डिज़ाइन का उपयोग करके बनाया जाता है। इसे औद्योगिक और समुद्री उपयोगों के लिए अनुकूलित किया जाता है। सरल शब्दों में, यह एक जेट इंजन का गैर-हवाई संस्करण है जिसका उपयोग बिजली उत्पादन और अन्य औद्योगिक कार्यों के लिए होता है।

एयरो-व्युत्पन्न बनाम औद्योगिक गैस टर्बाइन

​एयरो-व्युत्पन्न टर्बाइन पारंपरिक औद्योगिक गैस टर्बाइनों से कई मायनों में भिन्न होते हैं:

  • डिज़ाइन: एयरो-व्युत्पन्न टर्बाइन मूल रूप से हल्के, कॉम्पैक्ट और तेज़ गति से चलने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, जो उन्हें विमानों में उपयोग के लिए आदर्श बनाता है। औद्योगिक टर्बाइन आमतौर पर अधिक भारी और धीमी गति से चलते हैं।
  • दक्षता: ये टर्बाइन कम भार पर भी उच्च दक्षता प्रदान करते हैं, जिससे वे उन अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त होते हैं जहाँ बिजली की मांग बदलती रहती है (जैसे पीक लोड पावर प्लांट)।
  • स्थानांतरण: इनके कॉम्पैक्ट और हल्के डिज़ाइन के कारण इन्हें आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।

उपयोग

​एयरो-व्युत्पन्न टर्बाइन का उपयोग मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जाता है:

  1. बिजली उत्पादन:
    • पीक लोड पावर प्लांट: जब बिजली की मांग चरम पर होती है तो इन्हें तुरंत शुरू करके अतिरिक्त बिजली प्रदान की जा सकती है।
    • स्थानीय बिजली उत्पादन: इनका उपयोग दूरस्थ क्षेत्रों या तेल और गैस प्लेटफार्मों पर बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है।
  2. तेल और गैस उद्योग: इनका उपयोग प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों में गैस को पंप करने और कंप्रेसर चलाने के लिए किया जाता है।
  3. समुद्री प्रणोदन (Marine Propulsion): इनका उपयोग नौसेना के जहाजों और बड़े जहाजों को चलाने के लिए भी किया जाता है क्योंकि ये उच्च शक्ति-से-भार अनुपात प्रदान करते हैं।


सूक्ष्म जलविद्युत के लिए सबसे अच्छी टरबाइन का चुनाव कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि जल की उपलब्ध मात्रा (प्रवाह दर) और पानी की ऊंचाई (हेड)। हालाँकि, पेल्टन टरबाइन और क्रॉसफ्लो टरबाइन को अक्सर सबसे उपयुक्त माना जाता है।

पेल्टन टरबाइन 

​पेल्टन टरबाइन उन जगहों के लिए सबसे अच्छी है जहाँ हेड बहुत ऊँचा (ऊपरी हेड) होता है, लेकिन पानी का प्रवाह कम होता है। यह एक आवेग टरबाइन है जो पानी के जेट को बकेट (बाल्टी) पर मारकर घूमती है। यह टरबाइन छोटे जलविद्युत प्रणालियों में बहुत कुशल होती है। 

क्रॉसफ्लो टरबाइन 

​क्रॉसफ्लो टरबाइन उन जगहों के लिए बेहतर है जहाँ हेड मध्यम से कम होता है और पानी का प्रवाह अधिक होता है। इसकी बनावट ऐसी होती है कि पानी टरबाइन के ब्लेडों के आर-पार दो बार गुजरता है, जिससे यह अधिक ऊर्जा निकाल पाती है। इसे बनाना और रखरखाव करना भी अपेक्षाकृत आसान होता है।

अन्य टरबाइन विकल्प 

  • फ्रांसिस टरबाइन: यह टरबाइन मध्यम हेड और मध्यम प्रवाह के लिए अच्छी होती है।
  • टर्गेo टरबाइन: यह भी एक प्रकार की आवेग टरबाइन है, जो पेल्टन टरबाइन की तरह कम प्रवाह और ऊँचे हेड के लिए इस्तेमाल होती है।

​सही टरबाइन का चयन करने के लिए, अपने प्रोजेक्ट स्थल पर उपलब्ध हेड (ऊंचाई) और प्रवाह दर (पानी की मात्रा) का सटीक आकलन करना बहुत महत्वपूर्ण है।



पेल्टन और कापलान टरबाइन के बीच प्रमुख अंतर उनके उपयोग की शर्तों और उनके कार्य करने के तरीके से संबंधित हैं। इन दोनों टर्बाइनों का चयन जलविद्युत परियोजना की आवश्यकताओं, जैसे कि पानी की ऊंचाई (हेड) और प्रवाह दर (डिस्चार्ज), के आधार पर किया जाता है।

प्रमुख अंतर

  • हेड (पानी की ऊंचाई): पेल्टन टरबाइन का उपयोग बहुत ऊँचे हेड (250-1000 मीटर) के लिए किया जाता है, जहाँ पानी बहुत ऊँचाई से गिरता है। इसके विपरीत, कापलान टरबाइन का उपयोग बहुत कम हेड (10-70 मीटर) के लिए किया जाता है।
  • प्रवाह दर (डिस्चार्ज): पेल्टन टरबाइन को कम पानी के प्रवाह की आवश्यकता होती है, जबकि कापलान टरबाइन को अधिक प्रवाह दर की आवश्यकता होती है।
  • टरबाइन का प्रकार: पेल्टन टरबाइन एक आवेग (Impulse) टरबाइन है। यह पानी की गतिज ऊर्जा (kinetic energy) का उपयोग करके घूमती है, जहाँ एक तेज पानी का जेट ब्लेड पर सीधे टकराता है। इसके विपरीत, कापलान टरबाइन एक प्रतिक्रिया (Reaction) टरबाइन है। यह पानी की गतिज और स्थितिज (pressure) दोनों ऊर्जाओं का उपयोग करती है, जहाँ पानी टरबाइन के ब्लेडों के माध्यम से बहता है।
  • ब्लेड का डिज़ाइन: पेल्टन टरबाइन में बकेट (बाल्टी के आकार के ब्लेड) लगे होते हैं, जबकि कापलान टरबाइन में एडजस्टेबल (समायोज्य) ब्लेड होते हैं जो पानी के प्रवाह के अनुसार खुद को ढाल सकते हैं।

​ये मुख्य अंतर हैं जो इन दोनों टर्बाइनों को अलग-अलग परिस्थितियों में उपयुक्त बनाते हैं।


जल टर्बाइनों की दक्षता कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि जल की ऊंचाई (हेड) और प्रवाह दर (डिस्चार्ज)। इसलिए, यह कहना मुश्किल है कि कोई एक टरबाइन "सबसे कुशल" है, क्योंकि प्रत्येक टरबाइन को विशिष्ट परिस्थितियों के लिए डिज़ाइन किया गया है।

​हालांकि, कापलान (Kaplan) टरबाइन को अक्सर सबसे कुशल टर्बाइनों में से एक माना जाता है, खासकर निम्न हेड और उच्च प्रवाह दर वाली स्थितियों में। जब ये अपनी आदर्श परिचालन स्थितियों में काम करती हैं, तो इनकी दक्षता 90% से अधिक हो सकती है।

​इसके अलावा, फ्रांसिस (Francis) टरबाइन भी अपनी उच्च दक्षता (लगभग 90%) के लिए जानी जाती है, और यह मध्यम हेड और मध्यम प्रवाह दर वाली परियोजनाओं के लिए सबसे उपयुक्त होती है।

​संक्षेप में, सही टरबाइन का चुनाव आपके प्रोजेक्ट की जल ऊर्जा की शर्तों पर निर्भर करता है:

  • उच्च हेड, कम प्रवाह: पेल्टन टरबाइन सबसे कुशल मानी जाती है।
  • निम्न हेड, उच्च प्रवाह: कापलान टरबाइन सबसे कुशल मानी जाती है।
  • मध्यम हेड, मध्यम प्रवाह: फ्रांसिस टरबाइन सबसे कुशल मानी जाती है।

​इसलिए, सबसे कुशल टरबाइन वह होती है जो आपकी परियोजना की विशिष्ट परिस्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त हो।



गुहिकायन (Cavitation) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तरल के दबाव में कमी के कारण वाष्प के बुलबुले बनते हैं और फिर उच्च दबाव वाले क्षेत्रों में जाकर फट जाते हैं। यह प्रक्रिया टर्बाइनों के लिए बहुत हानिकारक होती है, क्योंकि इससे टरबाइन के ब्लेडों पर गड्ढे पड़ जाते हैं और उनकी सतह खराब हो जाती है।

​गुहिकायन का खतरा फ्रांसिस और कापलान दोनों टर्बाइनों में होता है, लेकिन यह कापलान टरबाइन में अधिक आम है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

  • हेड (Head): कापलान टरबाइन का उपयोग निम्न हेड के लिए किया जाता है, जिसका मतलब है कि ड्राफ्ट ट्यूब के आउटलेट पर पानी का दबाव कम होता है। यह कम दबाव बुलबुलों के बनने को आसान बनाता है।
  • ब्लेड डिज़ाइन: कापलान टरबाइन के ब्लेडों का आकार प्रोपेलर जैसा होता है, जो पानी के प्रवाह को बहुत तेज गति से घुमाता है। इससे ब्लेड की सतह पर दबाव में भारी गिरावट आती है, जिससे गुहिकायन का खतरा बढ़ जाता है।
  • स्थापना की ऊँचाई: कापलान टरबाइन को अक्सर जल स्तर के करीब स्थापित किया जाता है, जिससे ड्राफ्ट ट्यूब में कम दबाव का क्षेत्र बनता है और गुहिकायन की संभावना बढ़ जाती है।

गुहिकायन के प्रभाव

​गुहिकायन के कारण टरबाइन पर कई नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं:

  • सतह का क्षरण: बुलबुलों के फटने से उत्पन्न होने वाले शक्तिशाली झटके ब्लेडों की सतह पर छोटे-छोटे गड्ढे बना देते हैं, जिससे टरबाइन की सामग्री खराब हो जाती है।
  • दक्षता में कमी: खराब सतह के कारण टरबाइन की दक्षता घट जाती है, क्योंकि यह पानी की ऊर्जा को प्रभावी ढंग से यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित नहीं कर पाती।
  • शोर और कंपन: गुहिकायन से तेज आवाज और कंपन उत्पन्न होता है, जो टरबाइन की संरचना को नुकसान पहुंचा सकता है।


अक्षीय और रेडियल प्रवाह टरबाइनों में मुख्य अंतर पानी के प्रवाह की दिशा से संबंधित है, जैसा कि यह टरबाइन के रोटर (runner) से होकर गुजरता है।

अक्षीय प्रवाह टरबाइन (Axial Flow Turbine)

​अक्षीय प्रवाह टरबाइन में, पानी का प्रवाह टरबाइन के शाफ्ट की धुरी के समांतर होता है। इस प्रकार की टरबाइन में पानी एक छोर से प्रवेश करता है और शाफ्ट के समानांतर दिशा में चलते हुए दूसरे छोर से बाहर निकलता है। इसका डिज़ाइन एक प्रोपेलर (Propeller) जैसा होता है।

उदाहरण:

  • कापलान टरबाइन: इसका उपयोग बहुत कम हेड (ऊंचाई) और अधिक प्रवाह वाली स्थितियों में होता है।
  • प्रोपेलर टरबाइन: यह कापलान टरबाइन का एक सरल रूप है, जिसमें ब्लेड स्थिर होते हैं।

रेडियल प्रवाह टरबाइन (Radial Flow Turbine)

​रेडियल प्रवाह टरबाइन में, पानी का प्रवाह शाफ्ट की धुरी के लंबवत या त्रिज्य (radial) दिशा में होता है। इस डिज़ाइन में, पानी टरबाइन के रोटर के केंद्र की ओर या उससे दूर बहता है।

उदाहरण:

  • फ्रांसिस टरबाइन: यह सबसे आम जल टरबाइन है और इसे मिश्रित प्रवाह (mixed flow) टरबाइन भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें पानी रेडियल दिशा में प्रवेश करता है और अक्षीय दिशा में बाहर निकलता है।


गैस और भाप टरबाइन दोनों का उपयोग यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, जिसे फिर बिजली में बदला जा सकता है। हालाँकि, उनके काम करने का तरीका और उनके उपयोग में कई महत्वपूर्ण अंतर हैं।

कार्यशील द्रव (Working Fluid)

  • गैस टरबाइन: यह दहन से उत्पन्न होने वाली गर्म और उच्च दाब वाली गैसों (जैसे वायु और दहन उत्पाद) का उपयोग कार्यशील द्रव के रूप में करती है।
  • भाप टरबाइन: यह उच्च दाब और तापमान वाली भाप का उपयोग कार्यशील द्रव के रूप में करती है।

संचालन सिद्धांत (Working Principle)

  • गैस टरबाइन: यह ब्रेटन चक्र (Brayton Cycle) पर काम करती है। इसमें, वायु को पहले कंप्रेस किया जाता है, फिर दहन कक्ष में ईंधन के साथ मिलाकर जलाया जाता है, और अंत में गर्म गैसों को टरबाइन ब्लेडों पर विस्तारित किया जाता है। यह एक आंतरिक दहन इंजन है।
  • भाप टरबाइन: यह रैंकिन चक्र (Rankine Cycle) पर काम करती है। इसमें, पानी को बॉयलर में गर्म करके भाप में बदला जाता है। इस उच्च दाब वाली भाप को टरबाइन में भेजा जाता है, जहाँ यह ब्लेडों को घुमाती है। टरबाइन से निकलने वाली भाप को फिर संघनित (condense) करके पानी में वापस बदल दिया जाता है।

दक्षता और अनुप्रयोग (Efficiency and Applications)

  • गैस टरबाइन: इनकी दक्षता भाप टरबाइन की तुलना में कम होती है (लगभग 35-40%), लेकिन इन्हें जल्दी चालू किया जा सकता है। इनका उपयोग मुख्य रूप से विमानन, प्राकृतिक गैस पाइपलाइनों और बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है, खासकर संयुक्त चक्र (combined cycle) पावर प्लांट में जहाँ उनकी दक्षता बढ़ाई जाती है।
  • भाप टरबाइन: इनकी दक्षता अधिक होती है (40-45% या उससे अधिक)। ये बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन के लिए उपयोग होती हैं, जैसे थर्मल (कोयला), परमाणु और भू-तापीय ऊर्जा संयंत्रों में।


फ्रांसिस और कापलान टर्बाइन दोनों ही प्रतिक्रिया (Reaction) टरबाइन हैं, जिसका अर्थ है कि वे पानी की गतिज (kinetic) और दबाव (pressure) दोनों ऊर्जाओं का उपयोग करके घूमती हैं। हालांकि, उनके डिज़ाइन और उपयोग की शर्तें अलग-अलग हैं।

मुख्य अंतर 

  • पानी का हेड (ऊंचाई):
    • फ्रांसिस टरबाइन: यह मध्यम हेड (30 से 300 मीटर) के लिए सबसे उपयुक्त है।
    • कापलान टरबाइन: यह निम्न हेड (10 से 70 मीटर) के लिए डिज़ाइन की गई है।
  • प्रवाह दर (Flow Rate):
    • फ्रांसिस टरबाइन: इसे मध्यम से उच्च प्रवाह की आवश्यकता होती है।
    • कापलान टरबाइन: इसे बहुत अधिक प्रवाह दर की आवश्यकता होती है।
  • पानी का प्रवाह (Flow Direction):
    • फ्रांसिस टरबाइन: यह एक मिश्रित प्रवाह (Mixed Flow) टरबाइन है। पानी रेडियल दिशा में प्रवेश करता है और अक्षीय दिशा में बाहर निकलता है।
    • कापलान टरबाइन: यह एक अक्षीय प्रवाह (Axial Flow) टरबाइन है। पानी शाफ्ट की धुरी के समानांतर प्रवेश करता है और बाहर निकलता है।
  • ब्लेड का डिज़ाइन:
    • फ्रांसिस टरबाइन: इसमें ब्लेड स्थिर (fixed) होते हैं और उन्हें समायोजित नहीं किया जा सकता।
    • कापलान टरबाइन: इसके ब्लेड समायोज्य (adjustable) होते हैं, जिससे यह बदलते जल प्रवाह की स्थितियों में भी उच्च दक्षता बनाए रख पाती है।
  • दक्षता:
    • फ्रांसिस टरबाइन: इसकी अधिकतम दक्षता 90% तक हो सकती है।
    • कापलान टरबाइन: इसे सबसे कुशल टर्बाइनों में से एक माना जाता है, जिसकी दक्षता 93% से भी अधिक हो सकती है, खासकर जब ब्लेडों को प्रवाह के अनुसार समायोजित किया जाता है।

पेल्टन और कापलान टर्बाइन दोनों जलविद्युत में उपयोग होने वाली प्रमुख टरबाइन हैं, लेकिन उनके काम करने के तरीके, डिज़ाइन और उपयोग की शर्तें एक दूसरे से बहुत अलग हैं।


मुख्य अंतर 

पेल्टन टरबाइन एक प्रकार की आवेग (Impulse) जल टरबाइन है जिसका उपयोग जलविद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। इसका आविष्कार 1870 के दशक में अमेरिकी आविष्कारक लेस्टर एलन पेल्टन ने किया था। यह टरबाइन विशेष रूप से उन जगहों के लिए डिज़ाइन की गई है जहाँ पानी का हेड (ऊंचाई) बहुत ऊँचा होता है, लेकिन पानी का प्रवाह (flow) कम होता है।

यह कैसे काम करती है?

​पेल्टन टरबाइन का कार्य सिद्धांत काफी सीधा है। यह पानी की गतिज ऊर्जा (kinetic energy) का उपयोग करके घूमती है, न कि उसके दबाव का।

  1. पानी का जेट: डैम या जलाशय से उच्च ऊंचाई से आने वाले पानी को एक मजबूत पाइप (पेनस्टॉक) के माध्यम से निर्देशित किया जाता है। यह पाइप पानी को एक विशेष नोजल (nozzle) में ले जाता है, जहाँ इसकी दबाव ऊर्जा पूरी तरह से गतिज ऊर्जा में बदल जाती है।
  2. ब्लेडों पर प्रभाव: नोजल से निकलने वाला पानी एक बहुत ही तेज गति का जेट बन जाता है। यह जेट टरबाइन के पहिये पर लगे विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए बकेट-जैसे ब्लेडों (जिन्हें "बकेट" या बाल्टी कहते हैं) पर सीधे टकराता है।
  3. घूर्णन: ये बकेट जेट की दिशा को लगभग 160 डिग्री तक मोड़ देते हैं, जिससे पानी का संवेग (momentum) टरबाइन के ब्लेडों में स्थानांतरित हो जाता है। इस बल के कारण टरबाइन का पहिया बहुत तेज गति से घूमता है।
  4. ऊर्जा उत्पादन: जब टरबाइन घूमती है, तो यह एक शाफ्ट को घुमाती है जो एक जनरेटर से जुड़ा होता है। यह जनरेटर इस यांत्रिक ऊर्जा को बिजली में बदल देता है।

मुख्य विशेषताएँ और उपयोग

  • उच्च हेड: यह 250 से 1000 मीटर या उससे अधिक के हेड के लिए सबसे उपयुक्त है।
  • कम प्रवाह: यह उन स्थानों पर सबसे अच्छा काम करती है जहाँ पानी की मात्रा कम होती है।
  • अनुप्रयोग: इसका उपयोग अक्सर पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ पानी प्राकृतिक रूप से ऊँचाई से उपलब्ध होता है, जैसे कि हिमालयी क्षेत्रों में।
  • दक्षता: सही परिस्थितियों में, पेल्टन टरबाइन बहुत कुशल होती है, जिसकी दक्षता 85% तक हो सकती है।

संक्षेप में, 

पेल्टन टरबाइन उच्च वेग वाले पानी के जेट की शक्ति का उपयोग करके बिजली उत्पन्न करती है, जिससे यह ऊँचे हेड वाली जलविद्युत परियोजनाओं के लिए एक आदर्श विकल्प बन जाती है।

कापलान टरबाइन एक प्रकार की प्रतिक्रिया (Reaction) जल टरबाइन है जिसका उपयोग जलविद्युत उत्पादन के लिए किया जाता है। इसका आविष्कार 1913 में ऑस्ट्रियाई प्रोफेसर विक्टर कापलान ने किया था। यह टरबाइन विशेष रूप से उन स्थितियों के लिए डिज़ाइन की गई है जहाँ पानी का हेड (ऊंचाई) कम होता है, लेकिन पानी का प्रवाह (flow) बहुत अधिक होता है।

यह कैसे काम करती है?

​कापलान टरबाइन का डिज़ाइन एक जहाज के प्रोपेलर जैसा होता है, और इसे अक्षीय प्रवाह (Axial Flow) टरबाइन कहा जाता है क्योंकि पानी टरबाइन के शाफ्ट की धुरी के समानांतर बहता है।

  1. पानी का प्रवेश: पानी एक स्पाइरल केसिंग से होकर टरबाइन में प्रवेश करता है। यह केसिंग पानी को गाइड वेन्स की ओर निर्देशित करता है।
  2. गाइड वेन्स: गाइड वेन्स पानी को सही कोण पर मोड़ते हैं ताकि यह टरबाइन के ब्लेडों पर प्रभावी ढंग से टकरा सके।
  3. समायोज्य ब्लेड: कापलान टरबाइन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसके समायोज्य ब्लेड हैं। ये ब्लेड पानी के प्रवाह की मात्रा के अनुसार अपने कोण को बदल सकते हैं, जिससे टरबाइन अलग-अलग प्रवाह दरों पर भी अपनी उच्च दक्षता बनाए रख पाती है।
  4. घूर्णन: जब पानी ब्लेडों से होकर गुजरता है, तो यह अपनी गतिज और दबाव ऊर्जा दोनों का उपयोग करके टरबाइन के रनर को घुमाता है।
  5. ऊर्जा उत्पादन: रनर का यह घूर्णन एक शाफ्ट के माध्यम से जनरेटर को ऊर्जा देता है, जिससे बिजली उत्पन्न होती है।

मुख्य विशेषताएँ और उपयोग

  • निम्न हेड और उच्च प्रवाह: यह 10 से 70 मीटर तक के कम हेड के लिए सबसे कुशल है।
  • उच्च दक्षता: कापलान टरबाइन की दक्षता 93% से भी अधिक हो सकती है, जिससे यह बहुत ही कुशल मानी जाती है।
  • अनुप्रयोग: इसका उपयोग अक्सर नदियों और उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ पानी का बहाव प्रचुर मात्रा में होता है, जैसे कि नदी के किनारे के जलविद्युत संयंत्र और ज्वारीय ऊर्जा संयंत्र।

कार्य करने का तरीका

  • पेल्टन टरबाइन: यह टरबाइन पानी के एक या अधिक उच्च-वेग वाले जेट के साथ काम करती है जो टरबाइन के ब्लेडों (बकेट) पर सीधे टकराते हैं, जिससे टरबाइन घूमती है।
  • कापलान टरबाइन: यह टरबाइन प्रोपेलर के समान होती है और पानी के प्रवाह के दबाव और गतिज ऊर्जा का उपयोग करके घूमती है। इसके एडजस्टेबल ब्लेड इसे बदलते हुए जल प्रवाह के लिए बहुत कुशल बनाते हैं।



परमाणु ऊर्जा संयंत्र में बिजली पैदा करने के लिए भाप टरबाइन (Steam Turbine) का उपयोग किया जाता है। ये टरबाइन पारंपरिक थर्मल पावर प्लांटों में उपयोग होने वाली भाप टरबाइन के समान ही होती हैं, लेकिन इन्हें रिएक्टर से निकलने वाली भाप के उच्च मात्रा और विशिष्ट गुणों को संभालने के लिए डिज़ाइन किया जाता है।

यह कैसे काम करती है?

​परमाणु ऊर्जा संयंत्र में बिजली उत्पादन का मूल सिद्धांत रैंकिन चक्र (Rankine Cycle) पर आधारित है, जिसमें भाप टरबाइन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। पूरी प्रक्रिया इस प्रकार होती है:

गर्मी का उत्पादन: सबसे पहले, रिएक्टर कोर में परमाणु विखंडन की प्रक्रिया से भारी मात्रा में ऊष्मा उत्पन्न होती है।

भाप का निर्माण: इस ऊष्मा का उपयोग पानी को गर्म करके उच्च दबाव वाली भाप बनाने के लिए किया जाता है। यह भाप अक्सर एक अलग सर्किट में बनती है ताकि कोई भी रेडियोधर्मी पदार्थ टरबाइन तक न पहुँचे।

टरबाइन का संचालन: उच्च दबाव वाली भाप टरबाइन में प्रवेश करती है और इसके ब्लेडों पर गिरती है। भाप की गतिज ऊर्जा और दबाव के कारण टरबाइन के ब्लेड बहुत तेजी से घूमते हैं। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में, टरबाइन आमतौर पर एक ही शाफ्ट पर उच्च-दाब, मध्यवर्ती-दाब और निम्न-दाब वाले खंडों में विभाजित होती है।

बिजली उत्पादन: टरबाइन का घूर्णन एक जनरेटर को चलाता है, जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदल देता है।

 भाप का संघनन: टरबाइन से निकलने के बाद, भाप को एक कंडेनसर में ठंडा करके वापस पानी में बदल दिया जाता है ताकि इसे फिर से उपयोग किया जा सके।



माइक्रो टर्बाइन छोटे बिजली उत्पादन उपकरण हैं जो 25 kW से लेकर 500 kW तक की बिजली उत्पन्न करते हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से विकेन्द्रीकृत बिजली उत्पादन (distributed power generation) के लिए होता है, जहाँ बिजली सीधे उपयोग के स्थान पर ही पैदा की जाती है।

प्रमुख अनुप्रयोग 

​माइक्रो टर्बाइन का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जाता है, जहाँ दक्षता, कम उत्सर्जन और कॉम्पैक्ट आकार महत्वपूर्ण होते हैं:

  • संयुक्त ऊष्मा और बिजली (Combined Heat and Power - CHP): यह सबसे आम अनुप्रयोगों में से एक है। माइक्रो टर्बाइन बिजली उत्पन्न करती हैं, और इसकी निकास गैस से निकलने वाली अतिरिक्त गर्मी का उपयोग पानी को गर्म करने, हीटिंग, या औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए किया जाता है। इससे समग्र दक्षता बहुत बढ़ जाती है।
  • वाणिज्यिक और आवासीय भवन: होटल, अस्पताल, शॉपिंग मॉल और बड़े आवासीय परिसरों में माइक्रो टर्बाइन का उपयोग बिजली और हीटिंग दोनों के लिए किया जाता है, जिससे वे ग्रिड पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं।
  • दूरस्थ स्थान और ऑफ-ग्रिड बिजली: तेल और गैस के रिसाव, दूरस्थ दूरसंचार टावरों और ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली प्रदान करने के लिए माइक्रो टर्बाइन एक आदर्श समाधान हैं। ये प्राकृतिक गैस या बायोगैस जैसे स्थानीय रूप से उपलब्ध ईंधन पर काम कर सकते हैं।
  • अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र: ये टर्बाइन बायोगैस को ईंधन के रूप में उपयोग करके बिजली और गर्मी उत्पन्न कर सकते हैं। यह अपशिष्ट को ऊर्जा में बदलने का एक कुशल तरीका है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा के पूरक: सौर या पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों के साथ मिलकर, माइक्रो टर्बाइन एक स्थिर बिजली आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं जब सूरज नहीं होता या हवा धीमी होती है।

मुख्य लाभ 

  • कम उत्सर्जन: माइक्रो टर्बाइन पारंपरिक डीजल जनरेटर की तुलना में कम नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO_x) और अन्य हानिकारक उत्सर्जन करते हैं।
  • कॉम्पैक्ट और मॉड्यूलर: इनका आकार छोटा होता है और इन्हें आसानी से स्थापित किया जा सकता है। मॉड्यूलर डिज़ाइन के कारण, आवश्यकतानुसार अतिरिक्त इकाइयाँ जोड़ी जा सकती हैं।
  • उच्च विश्वसनीयता: इनमें कुछ ही चलने वाले हिस्से होते हैं, जिससे रखरखाव की आवश्यकता कम होती है और इनकी विश्वसनीयता अधिक होती है।
  • ईंधन की विविधता: ये प्राकृतिक गैस, प्रोपेन, डीजल, बायोगैस और हाइड्रोजन जैसे विभिन्न ईंधनों पर चल सकती हैं।


पेल्टन टरबाइन के अनुप्रयोग सीधे तौर पर इसकी विशेषताओं से जुड़े हैं, यानी उच्च हेड (ऊंचाई) और कम प्रवाह दर। इस कारण इसका उपयोग मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ पानी प्राकृतिक रूप से बड़ी ऊँचाई से उपलब्ध होता है।

प्रमुख अनुप्रयोग 

  • पहाड़ी जलविद्युत संयंत्र: पेल्टन टरबाइन का सबसे आम अनुप्रयोग पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में है। इन क्षेत्रों में, नदियाँ और झरने ऊँचे पहाड़ों से नीचे गिरते हैं, जिससे पानी का हेड बहुत अधिक होता है।
    • ​उदाहरण के लिए, हिमालयी क्षेत्रों में कई जलविद्युत परियोजनाएँ पेल्टन टरबाइन का उपयोग करती हैं, जैसे कि भारत, नेपाल और भूटान में।
  • सूक्ष्म जलविद्युत (Micro-Hydropower): छोटे पैमाने पर बिजली उत्पादन के लिए भी पेल्टन टरबाइन एक आदर्श विकल्प है। छोटे गाँवों या दूरदराज के घरों में बिजली की आपूर्ति के लिए जहाँ कोई छोटी जलधारा या झरना उपलब्ध हो, वहाँ इसका उपयोग किया जा सकता है।
  • औद्योगिक प्रक्रियाएँ: कुछ औद्योगिक संयंत्रों में जहाँ उच्च दबाव वाले तरल पदार्थों की आवश्यकता होती है, वहाँ भी पेल्टन टरबाइन का उपयोग ऊर्जा पुनर्प्राप्ति (energy recovery) के लिए किया जाता है।

संक्षेप में, 

पेल्टन टरबाइन उन सभी अनुप्रयोगों के लिए सबसे उपयुक्त है जहाँ कम मात्रा में पानी उपलब्ध हो, लेकिन वह बहुत ऊँचाई से गिर रहा हो। यही कारण है कि यह ऊँचे पहाड़ों पर बिजली उत्पादन का एक विश्वसनीय साधन है।



फ्रांसिस टरबाइन के अनुप्रयोग इसकी विशेषताओं से सीधे जुड़े हैं, यानी यह मध्यम हेड (ऊंचाई) और मध्यम से उच्च प्रवाह दर वाली स्थितियों के लिए सबसे उपयुक्त है। इसी कारण यह दुनिया में सबसे अधिक उपयोग होने वाली जल टरबाइन है।

प्रमुख अनुप्रयोग 

​फ्रांसिस टरबाइन का उपयोग मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जाता है:

  • मध्यम से बड़े पैमाने के जलविद्युत संयंत्र: यह दुनिया भर के अधिकांश जलविद्युत संयंत्रों में प्रमुख टरबाइन है। इसका उपयोग उन नदियों पर बने बड़े बांधों और जलाशयों में किया जाता है जहाँ पानी का हेड बहुत अधिक नहीं होता, लेकिन पानी की मात्रा काफी होती है।
    • ​उदाहरण के लिए, भाखड़ा नांगल बांध और टिहरी बांध जैसी भारत की कई बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं फ्रांसिस टरबाइन का उपयोग करती हैं।
  • पंप-संचय (Pumped-Storage) संयंत्र: फ्रांसिस टरबाइन को इस प्रकार के संयंत्रों में पंप के रूप में भी संचालित किया जा सकता है। जब बिजली की मांग कम होती है, तो यह अतिरिक्त बिजली का उपयोग करके निचले जलाशय से पानी को ऊपर उठाती है। जब बिजली की मांग अधिक होती है, तो यह पानी को टरबाइन के माध्यम से नीचे छोड़ती है और बिजली उत्पन्न करती है।
  • दक्षता और बहुमुखी प्रतिभा: फ्रांसिस टरबाइन अपनी उच्च दक्षता और विभिन्न हेड और प्रवाह की स्थितियों में काम करने की क्षमता के कारण बहुत बहुमुखी है। यह कम लागत पर भी अच्छी दक्षता प्रदान करती है, जिससे यह कई परियोजनाओं के लिए एक व्यावहारिक विकल्प बन जाती है।

संक्षेप में, 

फ्रांसिस टरबाइन का व्यापक रूप से उपयोग उन सभी स्थितियों में होता है जहाँ जलविद्युत परियोजनाएँ बड़े या मध्यम हेड पर संचालित होती हैं, और यह वैश्विक स्तर पर जलविद्युत उत्पादन का एक मुख्य आधार है।



कापलान टर्बाइन का उपयोग मुख्य रूप से कम जल स्तर (low head) और उच्च प्रवाह दर (high flow rate) वाले स्थानों पर बिजली उत्पादन के लिए किया जाता है। इसके कुछ प्रमुख अनुप्रयोग इस प्रकार हैं:

  • जलविद्युत उत्पादन: कापलान टर्बाइन का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग जलविद्युत संयंत्रों में बिजली उत्पन्न करना है। इनकी उच्च दक्षता के कारण, ये उन नदियों या जल स्रोतों के लिए आदर्श हैं जहाँ जल स्तर कम होता है लेकिन पानी का प्रवाह बहुत अधिक होता है।
  • रन-ऑफ-द-रिवर प्रतिष्ठान: यह उन नदी-आधारित परियोजनाओं के लिए बहुत उपयुक्त है जहां बड़े जलाशय बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। यह प्राकृतिक नदी के प्रवाह का उपयोग करके बिजली पैदा करता है, जिससे पर्यावरण पर प्रभाव कम होता है।
  • सिंचाई प्रणालियां: सिंचाई नहरों में पानी के प्रवाह का उपयोग करके, कापलान टर्बाइन बिजली उत्पन्न कर सकते हैं, जिसका उपयोग पंपों और अन्य कृषि मशीनरी को चलाने के लिए किया जा सकता है।
  • बाढ़ नियंत्रण: कुछ मामलों में, इनका उपयोग बाढ़ नियंत्रण तंत्रों में भी किया जाता है, जहाँ पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने और साथ ही ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए इनका उपयोग किया जाता है।
  • जल उपचार संयंत्र: जल उपचार संयंत्रों में पंपिंग, निस्पंदन और कीटाणुशोधन जैसे विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए बिजली प्रदान करने में भी इनका उपयोग होता है।
  • ऑफ-ग्रिड पावर समाधान: दूरदराज के क्षेत्रों में जहां बिजली ग्रिड की पहुंच नहीं है, कापलान टर्बाइन स्थानीय जल स्रोतों का उपयोग करके बिजली उत्पन्न करने के लिए एक टिकाऊ समाधान प्रदान करते हैं।


पवन टर्बाइन का मुख्य उपयोग पवन ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करना है। ये टर्बाइन हवा की गतिज ऊर्जा का उपयोग करके बिजली का उत्पादन करते हैं, जिसका इस्तेमाल विभिन्न कार्यों के लिए किया जाता है।

पवन टर्बाइन के प्रमुख उपयोग:

बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन: पवन टर्बाइन का सबसे प्रमुख उपयोग बड़े-बड़े पवन ऊर्जा संयंत्रों (wind farms) में होता है।  ये संयंत्र बहुत से टर्बाइनों का एक समूह होते हैं, जो मिलकर ग्रिड को बिजली प्रदान करते हैं। इस बिजली का उपयोग घरों, व्यवसायों और उद्योगों को बिजली देने के लिए किया जाता है।

दूरस्थ क्षेत्रों में बिजली: जहाँ पारंपरिक बिजली ग्रिड नहीं पहुँच पाते, वहाँ पवन टर्बाइन एक उत्कृष्ट समाधान हैं। ये दूरदराज के घरों, खेतों या छोटे समुदायों को बिजली प्रदान कर सकते हैं।

जल पंपिंग: पारंपरिक पवन चक्कियों की तरह, पवन टर्बाइन का उपयोग पानी को पंप करने के लिए किया जाता है, जिसका उपयोग सिंचाई या पीने के पानी के लिए हो सकता है।

हाइड्रोजन उत्पादन: पवन ऊर्जा का उपयोग नवीकरणीय हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए आवश्यक विद्युत धारा प्रदान करने में भी किया जाता है, जिसका उपयोग स्वच्छ ईंधन के रूप में किया जा सकता है।

ऑफ-ग्रिड सिस्टम: छोटी पवन टर्बाइनें नावों, आरवी (RV) और दूरस्थ संचार टावरों जैसी ऑफ-ग्रिड प्रणालियों के लिए बिजली का एक स्वच्छ और स्थायी स्रोत प्रदान करती हैं।

पवन टर्बाइन जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने, कार्बन उत्सर्जन घटाने और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।



हाइड्रो टर्बाइन का मुख्य उपयोग बहते पानी की गतिज ऊर्जा (kinetic energy) को यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) में और फिर विद्युत ऊर्जा (electrical energy) में बदलना है। ये जलविद्युत उत्पादन (hydroelectric power generation) के लिए एक आवश्यक उपकरण हैं।

हाइड्रो टर्बाइन के प्रमुख उपयोग और अनुप्रयोग:

  1. जलविद्युत उत्पादन: हाइड्रो टर्बाइन का सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक उपयोग जलविद्युत संयंत्रों में बिजली बनाने के लिए किया जाता है।
  2. छोटे पैमाने पर बिजली उत्पादन: माइक्रो हाइड्रो टर्बाइन (5 kW से 100 kW तक) का उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों या दूरस्थ स्थानों में बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, जहाँ पारंपरिक ग्रिड की पहुँच नहीं होती है।
  3. औद्योगिक शक्ति स्रोत: 19वीं सदी में बिजली ग्रिडों के आने से पहले, जल टर्बाइन का उपयोग औद्योगिक कार्यों जैसे अनाज पीसने और पानी पंप करने के लिए किया जाता था।
  4. ऊर्जा भंडारण: पंप-स्टोरेज प्लांट (Pumped-storage plant) में हाइड्रो टर्बाइन का उपयोग तब किया जाता है जब बिजली की मांग कम होती है। इस दौरान, पानी को निचले जलाशय से ऊपरी जलाशय में पंप किया जाता है। जब बिजली की मांग बढ़ती है, तो यही पानी टर्बाइन से होकर गुजरता है और बिजली पैदा करता है।

​हाइड्रो टर्बाइन विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे फ्रांसिस, पेल्टन और कापलान टर्बाइन, और इनका चुनाव पानी के बहाव और जल स्तर (hydraulic head) के आधार पर किया जाता है।



गैस टर्बाइन का उपयोग उच्च दबाव वाली गर्म गैस से ऊर्जा निकालकर उसे यांत्रिक ऊर्जा में बदलने के लिए किया जाता है। यह एक बहुमुखी इंजन है जिसका उपयोग कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में होता है।

गैस टर्बाइन के प्रमुख उपयोग:

  • बिजली उत्पादन: गैस टर्बाइन का सबसे आम उपयोग बिजली संयंत्रों में है। ये टर्बाइन प्राकृतिक गैस या अन्य तरल ईंधन को जलाकर बिजली पैदा करते हैं। इन्हें अक्सर संयुक्त चक्र बिजली संयंत्रों (combined cycle power plants) में उपयोग किया जाता है, जहाँ टरबाइन से निकलने वाली गर्म गैस का उपयोग भाप बनाने और अतिरिक्त बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है, जिससे दक्षता में काफी वृद्धि होती है।
  • उड्डयन: विमानों में जेट इंजन के रूप में गैस टर्बाइन का व्यापक रूप से उपयोग होता है। ये इंजन हवा को संपीड़ित करते हैं, ईंधन के साथ मिलकर उसे जलाते हैं, और उत्पन्न उच्च गति वाली गैस से जोर (thrust) पैदा करते हैं, जो विमान को आगे बढ़ाती है।
  • समुद्री प्रणोदन: गैस टर्बाइन का उपयोग नौसेना के जहाजों और बड़े जहाजों को चलाने के लिए भी किया जाता है क्योंकि ये हल्के, शक्तिशाली और तेजी से शुरू हो सकते हैं।
  • तेल और गैस उद्योग: इस उद्योग में, गैस टर्बाइन का उपयोग प्राकृतिक गैस कंप्रेशर को चलाने और तेल पाइपलाइनों में पंपिंग स्टेशनों को शक्ति देने के लिए किया जाता है।
  • अन्य औद्योगिक अनुप्रयोग: इनका उपयोग कई उद्योगों में होता है जैसे कि रासायनिक संयंत्रों, स्टील मिलों और कागज मिलों में, जहाँ ये सह-उत्पादन (cogeneration) प्रणालियों के हिस्से के रूप में बिजली और गर्मी दोनों प्रदान करते हैं।


भाप टर्बाइन का उपयोग उच्च दबाव वाली भाप की ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा (घूर्णी गति) में बदलने के लिए किया जाता है, जिसका उपयोग बाद में विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है।

भाप टर्बाइन के प्रमुख उपयोग:

  • बिजली उत्पादन: यह भाप टर्बाइन का सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक उपयोग है। दुनिया के अधिकांश थर्मल (थर्मल), परमाणु (न्यूक्लियर), और भू-तापीय (जियोथर्मल) बिजली संयंत्रों में, भाप टर्बाइन का उपयोग जनरेटर को चलाने और बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। ये जीवाश्म ईंधन (कोयला, गैस) या परमाणु ऊर्जा से पानी को गर्म करके भाप बनाते हैं।
  • औद्योगिक प्रक्रियाएँ: कई उद्योगों में भाप टर्बाइन का उपयोग न केवल बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है, बल्कि विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक गर्मी और यांत्रिक शक्ति भी प्रदान करने के लिए किया जाता है। इसे सह-उत्पादन (cogeneration) कहा जाता है। उदाहरण के लिए, चीनी मिलों, कागज मिलों और पेट्रोकेमिकल संयंत्रों में भाप का उपयोग टर्बाइन चलाने और साथ ही उत्पादन प्रक्रिया के लिए गर्मी प्रदान करने में किया जाता है।
  • समुद्री प्रणोदन: बड़े जहाजों, विशेष रूप से नौसेना के जहाजों और बड़े टैंकरों में, भाप टर्बाइन का उपयोग जहाज के प्रोपेलर को घुमाने के लिए किया जाता है। ये इंजन हल्के होते हैं और उच्च गति पर निरंतर शक्ति प्रदान कर सकते हैं।
  • पंपिंग और संपीड़न: तेल और गैस उद्योग में, भाप टर्बाइन का उपयोग पंपों, कंप्रेशरों और अन्य यांत्रिक उपकरणों को चलाने के लिए किया जाता है।


ड्राफ्ट ट्यूब दक्षता (Draft Tube Efficiency) यह मापती है कि ड्राफ्ट ट्यूब कितनी कुशलता से टरबाइन से बाहर निकलने वाले पानी की गतिज ऊर्जा (kinetic energy) को दबाव ऊर्जा (pressure energy) में परिवर्तित करती है। यह विशेष रूप से प्रतिक्रिया टर्बाइनों (reaction turbines) जैसे फ्रांसिस (Francis) और कापलान (Kaplan) टर्बाइनों के लिए महत्वपूर्ण है।

इसका महत्व:

​जब पानी टरबाइन के रनर (runner) से बाहर निकलता है, तो उसमें अभी भी कुछ गतिज ऊर्जा होती है। यदि यह ऊर्जा व्यर्थ हो जाती है, तो टरबाइन की कुल दक्षता कम हो जाएगी। ड्राफ्ट ट्यूब, जो एक फैलने वाली नली (divergent tube) की तरह होती है, इस गतिज ऊर्जा को दबाव में बदलकर पुनर्प्राप्त करती है, जिससे टरबाइन के आउटलेट पर एक ऋणात्मक दबाव (negative pressure) बनता है। यह ऋणात्मक दबाव टरबाइन के कुल उपलब्ध हेड (available head) को बढ़ाता है और इस प्रकार उसकी शक्ति और दक्षता में सुधार करता है।

ड्राफ्ट ट्यूब दक्षता का सूत्र:


​एक अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई ड्राफ्ट ट्यूब की दक्षता 90% तक हो सकती है।


टरबाइन में ऊष्मा हानि कई कारणों से होती है, जो टरबाइन की दक्षता (efficiency) को कम करती है। ये हानियाँ ऊष्मा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया के दौरान होती हैं।

टरबाइन में ऊष्मा हानि के मुख्य कारण:

  1. घर्षण हानियाँ (Friction Losses):
    • भाप/गैस का घर्षण: जब भाप या गैस टरबाइन के नोज़ल (nozzles) और ब्लेड (blades) से होकर गुजरती है, तो उनकी सतहों पर घर्षण होता है। इससे कुछ ऊर्जा गर्मी के रूप में नष्ट हो जाती है।
    • पहिया घर्षण: टरबाइन के घूमने वाले पहिए (wheel) और ब्लेडों के चारों ओर भाप या गैस की उपस्थिति के कारण भी घर्षण होता है, जिसे पवन हानि (windage loss) भी कहते हैं।
  2. रिसाव हानियाँ (Leakage Losses):
    • सीलों से रिसाव: भाप या गैस टरबाइन में सील (seals), ब्लेड युक्तियों (blade tips) और अन्य जगहों से लीक हो सकती है। यह लीकेज उपयोगी काम किए बिना ही ऊर्जा को बर्बाद कर देती है।
  3. विकिरण और संवहन हानियाँ (Radiation and Convection Losses):
    • ​टरबाइन का बाहरी आवरण (casing) अक्सर गर्म होता है। यह गर्मी आसपास के वातावरण में विकिरण (radiation) और संवहन (convection) के माध्यम से निकल जाती है, जिससे ऊष्मा का नुकसान होता है।
  4. अंतिम वेग की हानि (Leaving Velocity Loss):
    • ​टरबाइन से बाहर निकलने वाली भाप या गैस में अभी भी कुछ गतिज ऊर्जा (kinetic energy) होती है। यदि यह ऊर्जा पूरी तरह से पुनर्प्राप्त नहीं होती है, तो इसे अवशिष्ट वेग हानि (residual velocity loss) कहते हैं, जो एक प्रकार की ऊष्मा हानि है।
  5. नमी के कारण हानियाँ (Losses due to Moisture):
    • ​स्टीम टरबाइन के अंतिम चरणों में, भाप का दबाव और तापमान इतना कम हो जाता है कि उसमें पानी की बूंदें बन जाती हैं। ये पानी की बूंदें ब्लेडों से टकराकर उनकी गति को धीमा कर देती हैं, जिससे ऊर्जा का नुकसान होता है।
  6. थ्रॉटलिंग (Throttling) हानियाँ:
    • ​टरबाइन के इनलेट पर प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए लगे थ्रॉटल वाल्वों (throttle valves) में भाप के दबाव में अचानक गिरावट आती है, जिससे ऊर्जा का नुकसान होता है।

​ये सभी हानियाँ टरबाइन की कार्य क्षमता को कम करती हैं और बिजली उत्पादन को प्रभावित करती हैं।


आंशिक भार दक्षता (Partial load efficiency) किसी भी मशीन या उपकरण की वह दक्षता होती है जब वह अपनी अधिकतम क्षमता (full load) से कम पर काम कर रही होती है। यह विशेष रूप से उन प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण है जिनकी ऊर्जा की मांग लगातार बदलती रहती है, जैसे कि बिजली संयंत्र या हीटिंग, वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग (HVAC) सिस्टम।

आंशिक भार दक्षता का महत्व

  • वास्तविक दुनिया का प्रदर्शन: अधिकतर समय, मशीनों को उनकी अधिकतम क्षमता पर नहीं चलाया जाता है। उदाहरण के लिए, एक बिजली संयंत्र रात में या कम मांग वाले मौसमों में अपनी पूरी क्षमता पर काम नहीं करता है। ऐसे में, मशीन की आंशिक भार दक्षता यह निर्धारित करती है कि वह इन स्थितियों में कितनी ऊर्जा-कुशल है।
  • ईंधन की बचत: कम दक्षता पर चलने से ईंधन या ऊर्जा की अधिक खपत होती है, जिससे संचालन लागत (operating costs) बढ़ जाती है। उच्च आंशिक भार दक्षता वाली मशीनें कम भार पर भी बेहतर प्रदर्शन करती हैं और ईंधन बचाती हैं।
  • पर्यावरणीय प्रभाव: कम दक्षता का मतलब अधिक ईंधन जलना और अधिक उत्सर्जन होना है, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है। उच्च आंशिक भार दक्षता से कार्बन उत्सर्जन (carbon emissions) को कम करने में मदद मिलती है।
  • टर्बाइनों में अनुप्रयोग:
    • गैस टर्बाइन: गैस टर्बाइन की आंशिक भार दक्षता अक्सर काफी कम होती है क्योंकि कम भार पर कंप्रेसर को चलाने के लिए भी एक बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
    • हाइड्रो टर्बाइन: हाइड्रो टर्बाइन में, कापलान टर्बाइन (Kaplan turbine) अपनी समायोज्य ब्लेडों के कारण आंशिक भार पर सबसे कुशल मानी जाती है। यह ब्लेडों को पानी के प्रवाह के अनुसार समायोजित करके कम प्रवाह पर भी उच्च दक्षता बनाए रखती है।
    • भाप टर्बाइन: भाप टर्बाइन की दक्षता भी आंशिक भार पर कम हो जाती है, खासकर जब भाप के तापमान और दबाव में कमी आती है।


उछाल घटना (Surge phenomenon) तब होती है जब पानी का प्रवाह अचानक रुक जाता है या धीमा हो जाता है, जिससे पाइपलाइन या नहर जैसी बंद प्रणाली के अंदर दबाव में अचानक वृद्धि होती है। इस दबाव वृद्धि से पानी एक लहर के रूप में पीछे की ओर बढ़ता है, जिसे उछाल लहर (surge wave) कहा जाता है।

​यह घटना अक्सर जलविद्युत संयंत्रों (hydroelectric power plants) में देखने को मिलती है जब टरबाइन के गेट अचानक बंद हो जाते हैं।

उछाल घटना के कारण

  • त्वरित वाल्व बंद होना: जब टरबाइन के इनलेट पर लगे वाल्व तेजी से बंद हो जाते हैं, तो पाइपलाइन में पानी का वेग (velocity) अचानक शून्य हो जाता है। गति के इस अचानक परिवर्तन से पानी की गतिज ऊर्जा (kinetic energy) दबाव ऊर्जा में बदल जाती है।
  • पंप का अचानक बंद होना: जब पानी पंप करने वाले सिस्टम में पंप अचानक बंद हो जाता है, तो भी दबाव में वृद्धि होती है।

उछाल घटना के प्रभाव

  • अत्यधिक दबाव: यह घटना पाइपलाइन और उसके घटकों पर बहुत अधिक दबाव डालती है, जिससे पाइप फट सकते हैं या टूट सकते हैं।
  • उपकरणों को नुकसान: अत्यधिक दबाव से टरबाइन, पंप और वाल्व जैसे संवेदनशील उपकरणों को गंभीर नुकसान हो सकता है।
  • सुरक्षा जोखिम: इससे कर्मचारियों के लिए भी जोखिम पैदा हो सकता है यदि पाइपलाइन विफल हो जाती है।

उछाल को नियंत्रित करने के उपाय

​उछाल घटना के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए, कई सुरक्षात्मक उपकरणों का उपयोग किया जाता है:

  1. सर्ज टैंक (Surge Tanks): यह एक ऊर्ध्वाधर (vertical) टैंक होता है जो पेनस्टॉक (penstock) से जुड़ा होता है। जब टरबाइन बंद हो जाती है, तो पानी का दबाव बढ़ने पर यह अतिरिक्त पानी को अवशोषित कर लेता है। जब दबाव कम होता है, तो यह वापस पानी छोड़ देता है, जिससे टरबाइन का सुचारू संचालन सुनिश्चित होता है।
  2. दबाव राहत वाल्व (Pressure Relief Valves): ये वाल्व तब खुलते हैं जब दबाव एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाता है, जिससे अतिरिक्त पानी बाहर निकल जाता है और दबाव कम हो जाता है।
  3. फ्लाईव्हील (Flywheels): कुछ प्रणालियों में, फ्लाईव्हील का उपयोग किया जाता है जो अचानक बंद होने पर भी धीरे-धीरे टरबाइन को घूमने देता है, जिससे दबाव में वृद्धि को नियंत्रित किया जा सके।

​उछाल घटना को समझना और उसे नियंत्रित करना जलविद्युत और पाइपलाइन प्रणालियों के सुरक्षित और कुशल संचालन के लिए महत्वपूर्ण है।



बेकाबू गति (Runaway speed) किसी भी टरबाइन की वह अधिकतम गति होती है जिस पर वह तब घूमती है जब उस पर कोई भार (load) नहीं होता है, यानी जब वह किसी जनरेटर या मशीन से जुड़ी नहीं होती है, और पानी या भाप का प्रवाह अपनी अधिकतम दर पर होता है। यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा पैरामीटर है, खासकर जलविद्युत टर्बाइनों के लिए।

बेकाबू गति का महत्व

  • डिज़ाइन की सीमा: टरबाइन के सभी यांत्रिक घटकों (जैसे ब्लेड, शाफ्ट और बेयरिंग) को बेकाबू गति पर उत्पन्न होने वाले अधिकतम तनाव (stress) को झेलने के लिए डिज़ाइन किया जाता है। यदि टरबाइन इस गति से अधिक पर घूमती है, तो यह गंभीर संरचनात्मक क्षति का कारण बन सकती है और टूट सकती है।
  • सुरक्षा उपाय: बेकाबू गति से बचने के लिए, टरबाइन को स्वचालित नियंत्रण प्रणालियों (automatic control systems) से लैस किया जाता है। ये प्रणालियाँ टरबाइन की गति को ट्रैक करती हैं और यदि गति एक सुरक्षित सीमा से अधिक हो जाती है, तो ये प्रवाह को नियंत्रित करने वाले गेटों या वाल्वों को बंद कर देती हैं।

टर्बाइन प्रकार और बेकाबू गति

  • प्रतिक्रिया टर्बाइन (Reaction Turbines):
    • फ्रांसिस टर्बाइन: इन टर्बाइनों में, बेकाबू गति आमतौर पर सामान्य परिचालन गति से 1.8 से 2.0 गुना अधिक होती है।
    • कापलान टर्बाइन: अपनी समायोज्य ब्लेडों के कारण, इनकी बेकाबू गति फ्रांसिस टर्बाइन की तुलना में अधिक होती है, जो सामान्य गति से 2.0 से 3.0 गुना अधिक हो सकती है।
  • आवेग टर्बाइन (Impulse Turbines):
    • पेल्टन व्हील: इनकी बेकाबू गति अन्य प्रकारों की तुलना में कम होती है, आमतौर पर सामान्य गति से 1.8 गुना तक।

​बेकाबू गति को समझना और नियंत्रित करना टरबाइन और संबंधित उपकरणों की सुरक्षा और दीर्घायु सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।



दक्षता (Efficiency) का अर्थ है किसी प्रणाली या मशीन द्वारा आउटपुट (उत्पादित कार्य या ऊर्जा) और इनपुट (उपयोग की गई ऊर्जा या शक्ति) के बीच का अनुपात। दक्षता को आमतौर पर प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

​दक्षता  ={आउटपुट शक्ति}}{इनपुट शक्ति}} \times 100%

​विभिन्न क्षेत्रों में दक्षता को अलग-अलग तरीकों से परिभाषित और वर्गीकृत किया जाता है। यहाँ कुछ प्रमुख प्रकारों की सूची दी गई है:

​1. यांत्रिक दक्षता (Mechanical Efficiency)

​यह किसी मशीन द्वारा उत्पन्न वास्तविक यांत्रिक शक्ति और उसके इनपुट पर दी गई कुल यांत्रिक शक्ति का अनुपात है। यह मुख्य रूप से घर्षण (friction) और अन्य यांत्रिक हानियों के कारण कम होती है।

  • उदाहरण: एक इंजन में, यह इंजन द्वारा शाफ्ट पर उपलब्ध शक्ति और पिस्टन द्वारा उत्पन्न कुल शक्ति का अनुपात होता है।

यांत्रिक दक्षता (Mechanical efficiency) किसी मशीन या यांत्रिक प्रणाली की दक्षता का माप है। यह मशीन के उपयोगी आउटपुट शक्ति और इनपुट पर दी गई कुल शक्ति का अनुपात है। इसे प्रतिशत (%) में व्यक्त किया जाता है।

​{mechanical} ={आउटपुट शक्ति (ब्रेक पावर)}{इनपुट शक्ति (इंडिकेटेड पावर)}\times 100%

मुख्य बातें:

  • इनपुट शक्ति (Input Power): यह वह कुल शक्ति है जो मशीन के भीतर उत्पन्न होती है, जैसे कि किसी इंजन के पिस्टन द्वारा उत्पन्न शक्ति। इसे इंडिकेटेड पावर (Indicated Power) भी कहा जाता है।
  • आउटपुट शक्ति (Output Power): यह वह उपयोगी शक्ति है जो मशीन के शाफ्ट पर वास्तव में उपलब्ध होती है। इसे ब्रेक पावर (Brake Power) भी कहते हैं क्योंकि इसे आमतौर पर डायनेमोमीटर (brake dynamometer) का उपयोग करके मापा जाता है।

​यांत्रिक दक्षता हमेशा 100% से कम होती है क्योंकि मशीन के आंतरिक भागों के बीच घर्षण (friction), वायु प्रतिरोध (air resistance), और अन्य यांत्रिक हानियों के कारण कुछ ऊर्जा गर्मी के रूप में नष्ट हो जाती है। यह ऊर्जा का नुकसान मशीन को चलाने के लिए आवश्यक होता है।

​एक उच्च यांत्रिक दक्षता का मतलब है कि मशीन की आंतरिक हानियां कम हैं, जिससे यह अधिक ऊर्जा-कुशल होती है।

​2. तापीय दक्षता (Thermal Efficiency)

​यह ऊष्मा इंजन या किसी भी ऐसी प्रणाली की दक्षता है जो ऊष्मा ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करती है। यह उत्पन्न कार्य और इनपुट में दी गई कुल ऊष्मा ऊर्जा का अनुपात है।

  • उदाहरण: एक भाप टर्बाइन में, यह भाप की ऊष्मा से उत्पन्न यांत्रिक कार्य और भाप द्वारा दी गई कुल ऊष्मा का अनुपात होता है।

तापीय दक्षता (Thermal efficiency) किसी ऊष्मा इंजन या ऐसी प्रणाली की दक्षता को मापती है जो ऊष्मा ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करती है। यह उत्पन्न हुए उपयोगी कार्य और इंजन को दी गई कुल ऊष्मा ऊर्जा का अनुपात है। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

​{thermal}} ={उत्पन्न उपयोगी कार्य}{दी गई कुल ऊष्मा ऊर्जा}\times 100\%

तापीय दक्षता के प्रकार

  • सैद्धांतिक तापीय दक्षता (Theoretical Thermal Efficiency): यह किसी आदर्श चक्र (जैसे कार्नोट चक्र) की अधिकतम संभव दक्षता है, जहाँ कोई घर्षण या अन्य ऊर्जा हानियां नहीं होती हैं। यह केवल चक्र के उच्चतम और निम्नतम तापमान पर निर्भर करती है। \eta_{\text{Carnot}} = \left( 1 - \frac{T_C}{T_H} \right) \times 100\% जहाँ T_C निम्नतम तापमान है और T_H उच्चतम तापमान है।
  • वास्तविक तापीय दक्षता (Actual Thermal Efficiency): यह वास्तविक दुनिया में काम कर रहे इंजन की दक्षता है। यह सैद्धांतिक दक्षता से हमेशा कम होती है क्योंकि इसमें घर्षण, अपूर्ण दहन और ऊष्मा विकिरण जैसी हानियां शामिल होती हैं।

उदाहरण और अनुप्रयोग

  • भाप टर्बाइन: एक भाप टर्बाइन में, तापीय दक्षता यह बताती है कि बॉयलर में उत्पन्न भाप की ऊष्मा का कितना हिस्सा टर्बाइन को घुमाने के लिए उपयोगी यांत्रिक कार्य में बदलता है।
  • आंतरिक दहन इंजन: पेट्रोल या डीजल इंजन में, यह दहन से निकलने वाली ऊष्मा का कितना हिस्सा पिस्टन को चलाने में उपयोग होता है, यह दर्शाता है।

​तापीय दक्षता को बढ़ाने के लिए, इंजन के उच्चतम परिचालन तापमान को बढ़ाना और निम्नतम तापमान को कम करना आवश्यक है। यह ऊर्जा की बचत और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 

​3. हाइड्रोलिक दक्षता (Hydraulic Efficiency)

​यह हाइड्रो टर्बाइन या पंपों में पानी की शक्ति से प्राप्त उपयोगी शक्ति और पानी में उपलब्ध कुल शक्ति का अनुपात है। यह मुख्य रूप से पानी के प्रवाह में घर्षण और अशांति (turbulence) के कारण होने वाले नुकसान को दर्शाती है।

  • उदाहरण: हाइड्रो टर्बाइन में, यह टर्बाइन के रनर को दी गई शक्ति और पानी के प्रवाह में उपलब्ध कुल शक्ति का अनुपात होता है।

हाइड्रोलिक दक्षता (Hydraulic Efficiency) एक जलविद्युत टरबाइन की प्रदर्शन माप है जो यह बताती है कि पानी में उपलब्ध कुल ऊर्जा का कितना हिस्सा टरबाइन के रनर (runner) को स्थानांतरित होता है। दूसरे शब्दों में, यह पानी के प्रवाह से उत्पन्न यांत्रिक ऊर्जा और पानी द्वारा टरबाइन को प्रदान की गई कुल ऊर्जा का अनुपात है।

हाइड्रोलिक दक्षता की गणना

​हाइड्रोलिक दक्षता की गणना के लिए निम्नलिखित सूत्र का उपयोग किया जाता है:

दक्षता  ={रनर को दी गई शक्ति}}{टरबाइन के इनलेट पर पानी में उपलब्ध शक्ति}} \times 100%

​यह दक्षता मुख्य रूप से पानी के प्रवाह में होने वाले नुकसानों के कारण कम होती है।

दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक

​हाइड्रोलिक दक्षता को कम करने वाले मुख्य कारण हैं:

  • घर्षण हानि (Friction Loss): पानी जब पेनस्टॉक (penstock) और टरबाइन के विभिन्न घटकों (जैसे नोज़ल और ब्लेड) से गुजरता है, तो सतहों पर घर्षण होता है, जिससे ऊर्जा का नुकसान होता है।
  • अशांति हानि (Turbulence Loss): पानी के प्रवाह में होने वाली अशांति या भंवर (vortex) भी ऊर्जा को नष्ट करते हैं।
  • प्रवेश और निकास हानि (Inlet and Exit Losses): पानी के टरबाइन में प्रवेश और बाहर निकलने के दौरान भी ऊर्जा का नुकसान होता है, खासकर जब प्रवाह दिशा में अचानक बदलाव होता है।

​एक अच्छी तरह से डिज़ाइन की गई टरबाइन इन नुकसानों को कम करती है, जिससे उसकी हाइड्रोलिक दक्षता बढ़ जाती है।

​4. वॉल्यूमेट्रिक दक्षता (Volumetric Efficiency)

​यह एक मशीन में वास्तव में प्रवेश करने वाले द्रव या गैस की मात्रा (आयतन) और सैद्धांतिक रूप से प्रवेश करने वाली मात्रा के बीच का अनुपात है। यह विशेष रूप से पिस्टन इंजन और पंपों के लिए महत्वपूर्ण है।

  • उदाहरण: एक इंजन में, यह प्रत्येक चक्र में सिलेंडर में प्रवेश करने वाली हवा की वास्तविक मात्रा और सिलेंडर के आयतन का अनुपात होता है।

आयतन दक्षता (Volumetric efficiency) एक मशीन या प्रणाली की वह दक्षता होती है जो यह मापती है कि वह कितनी कुशलता से द्रव या गैस को खींचती या पंप करती है। यह विशेष रूप से पिस्टन इंजन और पंपों के लिए महत्वपूर्ण है।

आयतन दक्षता की गणना

​आयतन दक्षता को निम्नलिखित सूत्र से परिभाषित किया जाता है:

​v ={वास्तविक आयतन (Actual Volume)}{सैद्धांतिक आयतन (Swept Volume)} \times 100%

​जहाँ:

  • वास्तविक आयतन (Actual Volume): यह वह वास्तविक मात्रा है जो मशीन के एक चक्र में खींची जाती है।
  • सैद्धांतिक आयतन (Swept Volume): यह पिस्टन के स्ट्रोक (stroke) द्वारा विस्थापित किया गया कुल आयतन होता है। इसे विस्थापन आयतन (Displacement Volume) भी कहते हैं।

आयतन दक्षता का महत्व और अनुप्रयोग

​5. समग्र दक्षता (Overall Efficiency)

​यह पूरी प्रणाली की अंतिम दक्षता है। यह आउटपुट में प्राप्त शुद्ध शक्ति और इनपुट में दी गई कुल शक्ति का अनुपात होता है, जिसमें सभी प्रकार की हानियां (यांत्रिक, तापीय, हाइड्रोलिक आदि) शामिल होती हैं।

  • उदाहरण: एक जलविद्युत संयंत्र में, यह जनरेटर से आउटपुट में प्राप्त बिजली और पानी में उपलब्ध कुल शक्ति का अनुपात है।

समग्र दक्षता (Overall efficiency) किसी प्रणाली की अंतिम दक्षता है जो यह दर्शाती है कि इनपुट में दी गई कुल ऊर्जा का कितना हिस्सा आउटपुट में उपयोगी कार्य के रूप में प्राप्त होता है। यह प्रणाली के सभी घटकों की व्यक्तिगत दक्षताओं का गुणनफल होती है।

​{{समग्र}} = times \eta_2 \times \.\times 

समग्र दक्षता का महत्व

  • संपूर्ण प्रणाली का मूल्यांकन: समग्र दक्षता किसी भी ऊर्जा रूपांतरण प्रणाली के प्रदर्शन का सबसे अच्छा संकेतक है। यह बताती है कि पूरी प्रक्रिया कितनी कुशल है, न कि केवल एक घटक।
  • ऊर्जा हानि की पहचान: यह ऊर्जा हानि के विभिन्न स्रोतों (जैसे घर्षण, तापीय हानि, रिसाव, आदि) को ध्यान में रखती है। इसका उपयोग यह पहचानने के लिए किया जा सकता है कि प्रणाली में कहाँ सुधार की गुंजाइश है।
  • आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव: उच्च समग्र दक्षता का अर्थ है कम ऊर्जा की खपत, जिससे संचालन लागत कम होती है और पर्यावरणीय प्रभाव (जैसे कार्बन उत्सर्जन) भी घटता है।

उदाहरण:

 जलविद्युत संयंत्र

​एक जलविद्युत संयंत्र की समग्र दक्षता को निम्नलिखित घटकों की दक्षताओं के गुणनफल के रूप में मापा जा सकता है:

  1. हाइड्रोलिक दक्षता (\eta_h): पानी की गतिज ऊर्जा का टरबाइन के रनर में यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण।
  2. यांत्रिक दक्षता (\eta_m): टरबाइन के रनर से शाफ्ट तक ऊर्जा का स्थानांतरण, जिसमें घर्षण हानियाँ शामिल हैं।
  3. विद्युत दक्षता (\eta_e): जनरेटर द्वारा यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरण।

​अतः, जलविद्युत संयंत्र की समग्र दक्षता का सूत्र है:

​{समग्र} =  \times \times 

​यह सूत्र दर्शाता है कि यदि किसी भी घटक की दक्षता कम है, तो पूरी प्रणाली की समग्र दक्षता भी कम हो जाएगी, भले ही अन्य घटक बहुत कुशल हों।

​समग्र दक्षता {overall} = {mechanical} \times {hydraulic} \times \{electrical}

​ये दक्षता के प्रकार किसी भी प्रणाली के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने और उसकी ऊर्जा खपत को अनुकूलित करने के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।



टरबाइन की विशिष्ट गति (Specific speed) एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है जो टरबाइन के प्रकार और उसके इष्टतम (optimal) परिचालन स्थितियों को निर्धारित करने के लिए उपयोग किया जाता है। यह एक आयाम रहित (dimensionless) संख्या है, जो टरबाइन की ज्यामिति, आकार और कार्य प्रदर्शन को दर्शाती है।

विशिष्ट गति की परिभाषा

​विशिष्ट गति को उस गति के रूप में परिभाषित किया जाता है जिस पर एक ज्यामितीय रूप से समान (geometrically similar) टरबाइन एक इकाई हेड (1 मीटर) के तहत एक इकाई शक्ति (1 kW) उत्पन्न करेगी।

​इसका सूत्र इस प्रकार है:

​जहाँ:

  • ​N_s = विशिष्ट गति
  • ​N = वास्तविक टरबाइन की गति (rpm में)
  • ​P = टरबाइन द्वारा उत्पन्न शक्ति (kW में)
  • ​H = टरबाइन पर पानी का हेड (मीटर में)

टर्बाइन के प्रकार और विशिष्ट गति

​विशिष्ट गति के मान के आधार पर, टर्बाइन को तीन मुख्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • कम विशिष्ट गति (Low specific speed): 10 से 35 के बीच।
    • उपयोग: पेल्टन व्हील टरबाइन (Pelton Wheel Turbine)। ये उच्च हेड और कम प्रवाह दर के लिए उपयुक्त हैं।
  • मध्यम विशिष्ट गति (Medium specific speed): 50 से 250 के बीच।
    • उपयोग: फ्रांसिस टरबाइन (Francis Turbine)। ये मध्यम हेड और प्रवाह दर के लिए उपयुक्त हैं।
  • उच्च विशिष्ट गति (High specific speed): 250 से 850 के बीच।
    • उपयोग: कापलान टरबाइन (Kaplan Turbine)। ये कम हेड और उच्च प्रवाह दर के लिए सबसे उपयुक्त हैं।

​विशिष्ट गति का उपयोग किसी विशेष साइट के लिए सबसे उपयुक्त टरबाइन प्रकार का चयन करने में मदद करता है, जिससे अधिकतम दक्षता सुनिश्चित हो सके।



टर्बाइन की दक्षता से तात्पर्य उस अनुपात से है जिस पर टर्बाइन में बहने वाली ऊर्जा का उपयोग यांत्रिक कार्य, जैसे कि जनरेटर को घुमाना, करने के लिए किया जाता है। दक्षता जितनी अधिक होती है, टर्बाइन उतना ही अधिक प्रभावी ढंग से ऊर्जा को उपयोगी कार्य में परिवर्तित करती है। 

​यह दक्षता कई कारकों पर निर्भर करती है, जैसे कि टर्बाइन का डिज़ाइन, ब्लेड का आकार और प्रवाह की स्थिति।

टर्बाइन दक्षता के प्रकार

​टर्बाइन दक्षता को कई तरीकों से मापा जा सकता है, जिनमें से मुख्य हैं:

  • आइसेंट्रोपिक दक्षता (Isentropic Efficiency): यह टर्बाइन के वास्तविक कार्य उत्पादन और आदर्श आइसेंट्रोपिक (Isentropic) प्रक्रिया के तहत अधिकतम संभव कार्य उत्पादन का अनुपात है। यह दक्षता टर्बाइन में होने वाले आंतरिक नुकसान को दर्शाती है, जैसे कि घर्षण और अशांति के कारण होने वाली ऊर्जा हानि।
  • यांत्रिक दक्षता (Mechanical Efficiency): यह टर्बाइन के आउटपुट पर उपलब्ध वास्तविक यांत्रिक शक्ति और टर्बाइन के अंदर विकसित कुल शक्ति का अनुपात है। यह बेयरिंग घर्षण और वायु प्रतिरोध के कारण होने वाले नुकसान को ध्यान में रखती है।
  • कुल दक्षता (Overall Efficiency): यह टर्बाइन द्वारा उत्पादित उपयोगी आउटपुट शक्ति और टर्बाइन में प्रवाहित होने वाली कुल ऊर्जा का अनुपात है। यह सभी प्रकार के नुकसानों को एक साथ मापती है, जिसमें आइसेंट्रोपिक और यांत्रिक दक्षता दोनों शामिल हैं।

दक्षता को प्रभावित करने वाले कारक

​टर्बाइन की दक्षता कई कारकों पर निर्भर करती है, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:

  • ब्लेड का डिज़ाइन: ब्लेड का आकार और कोण प्रवाह को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे ऊर्जा का स्थानांतरण अधिकतम होता है।
  • प्रवाह की स्थिति: टर्बाइन में प्रवेश करने वाले द्रव (जैसे भाप या पानी) का वेग, दबाव और तापमान दक्षता पर सीधा प्रभाव डालते हैं।
  • घर्षण हानि: टर्बाइन के अंदर ब्लेड और आवरण के बीच घर्षण, और बेयरिंग में घर्षण, ऊर्जा हानि का कारण बनते हैं।
  • रिसाव: टर्बाइन के आवरण और ब्लेड के बीच से द्रव का रिसाव होने से उपयोगी ऊर्जा का नुकसान होता है।

​उच्च दक्षता वाली टर्बाइनें कम ईंधन या द्रव का उपयोग करके अधिक बिजली पैदा करती हैं, जिससे परिचालन लागत कम होती है और पर्यावरणीय प्रभाव भी कम होता है। 



एकल-चरण (single-stage) और बहु-चरण (multi-stage) टर्बाइनें ऊर्जा रूपांतरण के लिए उपयोग किए जाने वाले दो मुख्य प्रकार के टर्बाइन हैं, और इनके बीच का मुख्य अंतर इनके डिज़ाइन और अनुप्रयोग में निहित है।

एकल-चरण टर्बाइन (Single-Stage Turbine)

​एकल-चरण टर्बाइन वह होती है जिसमें एक ही ब्लेड और एक ही नोजल होता है। इसमें द्रव (जैसे भाप) का पूरा विस्तार एक ही चरण में होता है।

लाभ:

  • सरल डिज़ाइन: यह टर्बाइन संरचना में सरल होती है और इसमें कम घटक होते हैं, जिससे इसका निर्माण, संचालन और रखरखाव आसान हो जाता है।
  • कम लागत: इसकी सादगी के कारण, एकल-चरण टर्बाइनों का उत्पादन लागत कम होता है।
  • तेज स्टार्टअप: ये टर्बाइन जल्दी शुरू हो सकती हैं, जो ऐसे अनुप्रयोगों के लिए फायदेमंद है जहां त्वरित प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है।

हानियाँ:

  • कम दक्षता: क्योंकि द्रव का पूरा दबाव एक ही बार में गिर जाता है, यह ऊर्जा का पूरी तरह से उपयोग नहीं कर पाता है, जिससे इसकी समग्र दक्षता कम होती है।
  • सीमित शक्ति: इनका उपयोग आमतौर पर कम-शक्ति वाले अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है।

बहु-चरण टर्बाइन (Multi-Stage Turbine)

​बहु-चरण टर्बाइन में एक ही शाफ्ट पर कई ब्लेड और नोजल होते हैं। द्रव का विस्तार कई चरणों में होता है, जिससे ऊर्जा को धीरे-धीरे निकाला जाता है।

लाभ:

  • उच्च दक्षता: ऊर्जा को कई चरणों में निकालने से, यह टर्बाइन द्रव की उपलब्ध ऊर्जा का अधिक प्रभावी ढंग से उपयोग कर पाती है, जिससे इसकी दक्षता काफी बढ़ जाती है।
  • अधिक शक्ति उत्पादन: उच्च दक्षता के कारण, बहु-चरण टर्बाइनें बड़ी मात्रा में शक्ति का उत्पादन कर सकती हैं।
  • नियंत्रित प्रवाह: कई चरणों में दबाव को धीरे-धीरे कम करने से ब्लेड की गति को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे टर्बाइन का जीवनकाल बढ़ता है।

हानियाँ:

  • जटिल डिज़ाइन: इनका डिज़ाइन अधिक जटिल होता है, जिसमें कई ब्लेड, नोजल और घटक होते हैं।
  • उच्च लागत: जटिलता और अधिक घटकों के कारण, इनका निर्माण और रखरखाव अधिक महंगा होता है।
  • बड़ा आकार: आमतौर पर, बहु-चरण टर्बाइनें एकल-चरण टर्बाइनों की तुलना में बड़ी होती हैं और अधिक जगह लेती हैं।

निष्कर्ष

​कुल मिलाकर, एकल-चरण टर्बाइनें अपनी सरलता, कम लागत और तेज प्रतिक्रिया के कारण छोटे पैमाने के अनुप्रयोगों (जैसे छोटे पंप या जनरेटर) के लिए आदर्श होती हैं। इसके विपरीत, बहु-चरण टर्बाइनें अपनी उच्च दक्षता और शक्ति उत्पादन क्षमता के कारण बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन संयंत्रों (जैसे थर्मल पावर प्लांट) के लिए बेहतर होती हैं।


टर्बाइन में, वेग (velocity) और दबाव (pressure) के संयोजन का उपयोग दो मुख्य प्रकार की टर्बाइनों को वर्गीकृत करने के लिए किया जाता है: आवेग (Impulse) और प्रतिक्रिया (Reaction) टर्बाइन। इन दोनों प्रकारों में ऊर्जा को यांत्रिक कार्य में परिवर्तित करने का तरीका अलग-अलग होता है।

आवेग टर्बाइन (Impulse Turbine)

​आवेग टर्बाइनें पूरी तरह से गतिज ऊर्जा (kinetic energy) पर काम करती हैं। इनमें, द्रव (जैसे भाप या पानी) को एक या अधिक नोजल (nozzles) के माध्यम से बहुत अधिक वेग पर त्वरित किया जाता है। यह उच्च-वेग वाला द्रव सीधे टर्बाइन के ब्लेडों (जिसे बकेट भी कहा जाता है) पर प्रभाव डालता है।

  • कार्य सिद्धांत: नोजल में द्रव की सारी दबाव ऊर्जा को गतिज ऊर्जा में बदल दिया जाता है। जब यह उच्च-वेग वाला द्रव ब्लेड से टकराता है, तो इसकी गति की दिशा में बदलाव होता है। इस बदलाव से पैदा हुए बल (बल = द्रव्यमान x त्वरण) के कारण टर्बाइन का शाफ्ट घूमता है।
  • दबाव और वेग में बदलाव:
    • ​नोजल में: दबाव घटता है और वेग बहुत बढ़ जाता है।
    • ​ब्लेड पर: दबाव स्थिर रहता है (वायुमंडलीय दबाव के बराबर), जबकि वेग घटता है।
  • उदाहरण: पेल्टन व्हील टर्बाइन (Pelton Wheel Turbine)।

प्रतिक्रिया टर्बाइन (Reaction Turbine)

​प्रतिक्रिया टर्बाइनें दबाव और वेग दोनों का उपयोग करती हैं। इनमें ब्लेडों को इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि जब द्रव उनसे होकर गुजरता है, तो उसका दबाव लगातार घटता रहता है। इस दबाव के घटने से ब्लेडों पर एक प्रतिक्रिया बल (reaction force) पैदा होता है, जिससे टर्बाइन घूमती है।

  • कार्य सिद्धांत: ये टर्बाइन दो प्रकार के ब्लेडों का उपयोग करती हैं: स्थिर ब्लेड (fixed blades) और गतिशील ब्लेड (moving blades)। स्थिर ब्लेड नोजल की तरह काम करते हैं, जो द्रव का आंशिक विस्तार करते हैं और इसे गति देते हैं। गतिशील ब्लेड में भी दबाव में गिरावट आती है, जिससे ब्लेड के दोनों किनारों पर दबाव का अंतर पैदा होता है। यह दबाव का अंतर ब्लेड को घुमाने के लिए बल प्रदान करता है।
  • दबाव और वेग में बदलाव:
    • ​स्थिर ब्लेड में: दबाव घटता है और वेग बढ़ता है।
    • ​गतिशील ब्लेड में: दबाव और वेग दोनों घटते हैं।
  • उदाहरण: फ्रांसिस टर्बाइन (Francis Turbine) और कापलान टर्बाइन (Kaplan Turbine)।


मिश्रित प्रवाह टर्बाइन का सिद्धांत अक्षीय (axial) और त्रिज्य (radial) प्रवाह टर्बाइनों की विशेषताओं को मिलाकर बनाया गया है। इसमें, कार्यशील द्रव (जैसे पानी या भाप) एक साथ त्रिज्य (radial) दिशा में अंदर की ओर प्रवेश करता है और फिर अक्षीय (axial) दिशा में बाहर निकलता है। इस दोहरी प्रवाह दिशा के कारण इसे "मिश्रित प्रवाह" टर्बाइन कहा जाता है।

कार्य सिद्धांत (Principle of Operation)

  1. त्रिज्य प्रवेश (Radial Entry): द्रव टर्बाइन के बाहरी किनारों पर एक सर्पिल आवरण (spiral casing) के माध्यम से त्रिज्य दिशा में प्रवेश करता है। यह प्रवेश नोजल या गाइड वेन्स द्वारा नियंत्रित होता है।
  2. दबाव और वेग का संयोजन: प्रवेश के बाद, द्रव ब्लेड से होकर गुजरता है। इस प्रक्रिया में, द्रव की गतिज ऊर्जा और दबाव ऊर्जा दोनों का उपयोग टर्बाइन को घुमाने के लिए किया जाता है। यह एक प्रतिक्रिया (reaction) टर्बाइन की तरह काम करता है, जहाँ ब्लेडों से गुजरते समय द्रव का दबाव लगातार घटता रहता है।
  3. अक्षीय निकास (Axial Exit): द्रव टरबाइन के केंद्र की ओर मुड़ता है और अंत में शाफ्ट के अक्ष के समानांतर दिशा में बाहर निकलता है। इस तरह, ऊर्जा का कुशल उपयोग सुनिश्चित होता है।

मिश्रित प्रवाह टर्बाइन के फायदे

  • उच्च दक्षता (High Efficiency): यह मध्यम प्रवाह और मध्यम दबाव (head) की स्थितियों में सबसे कुशल टर्बाइनों में से एक है, क्योंकि यह त्रिज्य और अक्षीय दोनों प्रवाहों की विशेषताओं का लाभ उठाता है।
  • व्यापक अनुप्रयोग (Versatile Application): यह टर्बाइन मध्यम दबाव वाले जलविद्युत संयंत्रों के लिए आदर्श है और इसका उपयोग पंप वाले भंडारण संयंत्रों (pumped storage plants) में भी किया जा सकता है।
  • कम जड़त्व (Low Inertia): इसका डिज़ाइन कम जड़त्व (inertia) प्रदान करता है, जिससे यह त्वरित रूप से भार (load) में बदलाव का जवाब दे सकती है।

​आधुनिक फ्रांसिस टर्बाइन (Francis Turbine) मिश्रित प्रवाह टर्बाइन का सबसे अच्छा उदाहरण है। इसका उपयोग दुनिया भर में मध्यम हेड और प्रवाह दर वाले जलविद्युत स्टेशनों में बड़े पैमाने पर किया जाता है।



हाइड्रो टर्बाइन में, जल शीर्ष (water head) का सीधा और महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। जल शीर्ष से तात्पर्य टर्बाइन के ऊपर पानी के स्तर और टर्बाइन के निकास पर पानी के स्तर के बीच की ऊर्ध्वाधर दूरी से है। यह टर्बाइन को घुमाने के लिए उपलब्ध स्थितिज ऊर्जा (potential energy) का माप है।
शक्ति उत्पादन पर प्रभाव

​जलविद्युत टर्बाइन द्वारा उत्पन्न शक्ति सीधे जल शीर्ष और पानी के प्रवाह दर (flow rate) पर निर्भर करती है।  शक्ति (Power) की गणना के लिए एक सामान्य सूत्र है:

P = \eta \cdot \rho \cdot g \cdot Q \cdot H

​जहाँ:

  • P = उत्पन्न शक्ति (power output)
  • η = टर्बाइन की समग्र दक्षता (overall efficiency)
  • ρ = पानी का घनत्व (density of water)
  • g = गुरुत्वाकर्षण त्वरण (acceleration due to gravity)
  • Q = पानी का प्रवाह दर (flow rate)
  • H = जल शीर्ष (water head)

​इस सूत्र से स्पष्ट है कि यदि प्रवाह दर स्थिर है, तो टर्बाइन की शक्ति सीधे जल शीर्ष के समानुपाती होती है। अधिक जल शीर्ष का अर्थ है अधिक स्थितिज ऊर्जा और इस प्रकार अधिक शक्ति उत्पादन।

टर्बाइन के प्रकार पर प्रभाव

​जल शीर्ष का मान टर्बाइन के प्रकार के चयन को भी प्रभावित करता है, क्योंकि प्रत्येक टर्बाइन डिज़ाइन एक विशिष्ट जल शीर्ष सीमा में सबसे अधिक कुशल होता है।

  • उच्च शीर्ष (High Head) (300 मीटर से ऊपर): इन स्थितियों में आवेग (Impulse) टर्बाइनों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि पेल्टन टर्बाइन (Pelton Turbine)। ये टर्बाइन पानी की उच्च वेग ऊर्जा का उपयोग करती हैं।
  • मध्यम शीर्ष (Medium Head) (30 से 300 मीटर): इसके लिए प्रतिक्रिया (Reaction) टर्बाइनों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि फ्रांसिस टर्बाइन (Francis Turbine)। ये टर्बाइन पानी के दबाव और वेग दोनों का उपयोग करती हैं।
  • निम्न शीर्ष (Low Head) (30 मीटर से कम): कम शीर्ष वाली स्थितियों के लिए कापलान टर्बाइन (Kaplan Turbine) जैसी टर्बाइनों का उपयोग किया जाता है, जो बड़े प्रवाह दर (flow rate) को संभाल सकती हैं।

​जल शीर्ष में कमी टर्बाइन के प्रदर्शन को कम कर सकती है, जिससे टर्बाइन पर पानी का दबाव कम हो जाता है।



पवन टरबाइन का कार्य पवन ऊर्जा (हवा की गतिज ऊर्जा) को उपयोगी यांत्रिक ऊर्जा में और फिर विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करना है। यह एक साधारण लेकिन प्रभावी सिद्धांत पर काम करती है।

कार्य प्रक्रिया

​पवन टरबाइन निम्नलिखित चरणों में काम करती है:

  1. पवन ऊर्जा का रूपांतरण: जब हवा टरबाइन के प्रोपेलर जैसे ब्लेडों से टकराती है, तो यह ब्लेडों को घुमाती है। ब्लेडों का डिज़ाइन हवाई जहाज के पंखों के समान होता है, जो हवा के प्रवाह से एक वायुगतिकीय बल (aerodynamic force) उत्पन्न करता है। यह बल रोटर को घुमाने के लिए आवश्यक टॉर्क (torque) प्रदान करता है।
  2. यांत्रिक शक्ति का संचरण: रोटर एक शाफ्ट से जुड़ा होता है। जब रोटर घूमता है, तो यह शाफ्ट को भी घुमाता है। चूंकि हवा की गति धीमी होती है, इसलिए शाफ्ट की घूमने की गति भी कम होती है (लगभग 19-30 चक्कर प्रति मिनट)। इस कम गति को बढ़ाने के लिए, शाफ्ट को एक गियरबॉक्स से जोड़ा जाता है।  गियरबॉक्स गति को लगभग 50 गुना तक बढ़ा देता है, जिससे शाफ्ट की गति 1500 चक्कर प्रति मिनट तक पहुँच जाती है।
  3. विद्युत ऊर्जा का उत्पादन: गियरबॉक्स से जुड़ा उच्च-गति वाला शाफ्ट एक जनरेटर को घुमाता है। जनरेटर के अंदर, शाफ्ट के घूमने से एक चुंबक के चारों ओर तार की कुंडली घूमती है। यह विद्युतचुंबकीय प्रेरण (electromagnetic induction) के सिद्धांत पर काम करता है, जो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है।
  4. विद्युत ग्रिड में संचरण: जनरेटर द्वारा उत्पन्न बिजली को केबल के माध्यम से एक ट्रांसफार्मर तक भेजा जाता है, जो वोल्टेज को बढ़ाता है ताकि इसे लंबी दूरी तक बिना अधिक नुकसान के विद्युत ग्रिड में भेजा जा सके।

​यह प्रक्रिया हवा की गतिज ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में और अंततः विद्युत ऊर्जा में बदल देती है, जिससे घरों, स्कूलों और व्यवसायों को बिजली मिलती है।


गैस टर्बाइन में ब्रेटन चक्र (Brayton Cycle) एक ऊष्मागतिक (thermodynamic) चक्र है, जो यह बताता है कि एक गैस टर्बाइन इंजन कैसे काम करता है। यह चक्र चार मुख्य चरणों से मिलकर बना है, जो लगातार दोहराए जाते हैं।

​ब्रेटन चक्र गैस टर्बाइन की कार्यप्रणाली का सैद्धांतिक आधार है, जिसका उपयोग बिजली उत्पादन और विमान प्रणोदन (aircraft propulsion) दोनों के लिए किया जाता है।

ब्रेटन चक्र के चरण

​यह चक्र एक खुले या बंद निकाय (open or closed system) में हो सकता है। आमतौर पर, गैस टर्बाइनें खुले चक्र पर काम करती हैं, जिसमें हवा को वायुमंडल से लिया जाता है।

1. संपीड़न (Compression):

  • ​चक्र की शुरुआत हवा को टरबाइन के अंदर खींचने से होती है।
  • ​एक कंप्रेसर (compressor) इस हवा को संपीड़ित (compress) करता है, जिससे इसका दबाव और तापमान दोनों बढ़ जाते हैं। यह प्रक्रिया लगभग स्थिर-एंट्रॉपी (isentropic) होती है।

2. ऊष्मा संकलन (Heat Addition):

  • ​संकुचित हवा को एक दहन कक्ष (combustion chamber) में भेजा जाता है।
  • ​यहां ईंधन (जैसे प्राकृतिक गैस या विमानन ईंधन) को हवा के साथ मिलाकर जलाया जाता है, जिससे दहन होता है।
  • ​इस दहन से गैसों का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है, लेकिन यह प्रक्रिया स्थिर-दबाव (constant-pressure) पर होती है।

3. विस्तार (Expansion):

  • ​अत्यधिक गर्म और उच्च दबाव वाली गैसें टरबाइन के ब्लेडों में प्रवेश करती हैं।
  • ​ये गैसें ब्लेडों पर दबाव डालती हैं, जिससे टरबाइन घूमती है।
  • ​इस प्रक्रिया में, गैसों का विस्तार होता है, जिससे उनका दबाव और तापमान दोनों घटते हैं। यह टरबाइन की घूमने वाली गतिज ऊर्जा में परिवर्तित होता है।

4. ऊष्मा निष्कासन (Heat Rejection):

  • ​टरबाइन से निकलने वाली गैसें अभी भी बहुत गर्म होती हैं।
  • ​ये गैसें वापस वायुमंडल में छोड़ दी जाती हैं, जिससे चक्र पूरा होता है। इस प्रक्रिया में, गैसों से ऊष्मा वायुमंडल में निष्कासित हो जाती है, जिसे स्थिर-दबाव पर ऊष्मा निष्कासन कहा जाता है।

ब्रेटन चक्र का महत्व

ब्रेटन चक्र के अनुसार,

टरबाइन द्वारा उत्पन्न शक्ति का एक हिस्सा कंप्रेसर को चलाने के लिए उपयोग किया जाता है, जबकि शेष शक्ति उपयोगी कार्य (जैसे जनरेटर को घुमाना या विमान को प्रणोद देना) के लिए उपलब्ध होती है। इस चक्र की दक्षता मुख्य रूप से कंप्रेसर और टरबाइन के दबाव अनुपात पर निर्भर करती है। उच्च दबाव अनुपात से आम तौर पर चक्र की दक्षता बढ़ती है।



भाप टर्बाइन में रैंकिन चक्र (Rankine Cycle) वह ऊष्मागतिक (thermodynamic) चक्र है जिसके आधार पर अधिकांश थर्मल पावर प्लांट काम करते हैं। यह चक्र तरल पदार्थ (आमतौर पर पानी) को गर्म करके भाप में बदलता है, जिससे टर्बाइन घूमती है और बिजली पैदा होती है। यह एक बंद चक्र है, जिसका अर्थ है कि एक ही कार्यशील द्रव (पानी) को बार-बार पुनर्चक्रित किया जाता है।

रैंकिन चक्र के चार चरण

​यह चक्र चार मुख्य घटकों में पूरा होता है, जो प्रत्येक चरण को दर्शाते हैं:

1. पंपिंग (Pumping):

  • ​इस चरण में, एक पंप कम दबाव वाले पानी को कंडेंसर से लेता है और उसे उच्च दबाव वाले बॉयलर में भेजता है।
  • ​यह प्रक्रिया पानी के तापमान को थोड़ा बढ़ा देती है और इसकी स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि करती है।

2. ऊष्मा संकलन (Heat Addition):

  • ​उच्च दबाव वाले पानी को बॉयलर में गर्म किया जाता है।
  • ​बॉयलर में, पानी को ईंधन (जैसे कोयला, प्राकृतिक गैस या परमाणु ऊर्जा) का उपयोग करके भाप में बदला जाता है।
  • ​इस प्रक्रिया में, पानी का तापमान और दबाव दोनों बहुत बढ़ जाते हैं, जिससे यह अत्यधिक गर्म भाप (superheated steam) बन जाती है। यह चरण स्थिर-दबाव (constant-pressure) पर होता है।

3. विस्तार (Expansion):

  • ​अत्यधिक गर्म और उच्च दबाव वाली भाप टरबाइन में प्रवेश करती है।
  • ​जब भाप टरबाइन के ब्लेडों पर दबाव डालती है, तो वे घूमते हैं। इस प्रक्रिया में, भाप का विस्तार होता है, जिससे उसका दबाव और तापमान घटता है।
  • ​भाप की तापीय ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा टरबाइन के घूमने के लिए यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है, जिसका उपयोग जनरेटर को चलाने के लिए किया जाता है।

4. ऊष्मा निष्कासन (Heat Rejection):

  • ​टरबाइन से निकलने वाली कम दबाव वाली भाप कंडेंसर (condenser) में प्रवेश करती है।
  • ​कंडेंसर में, भाप को ठंडा करके वापस तरल पानी में बदल दिया जाता है। यह अक्सर एक शीतलक माध्यम (जैसे हवा या ठंडा पानी) का उपयोग करके किया जाता है।
  • ​यह प्रक्रिया ऊष्मा को निष्कासित करती है, जिससे पानी अपनी प्रारंभिक अवस्था में लौट आता है, और फिर उसे फिर से पंप द्वारा अगले चक्र के लिए भेज दिया जाता है।

रैंकिन चक्र की दक्षता मुख्य रूप से बॉयलर में भाप के तापमान और दबाव और कंडेंसर में तापमान के अंतर पर निर्भर करती है। भाप का तापमान और दबाव जितना अधिक होगा, चक्र उतना ही अधिक कुशल होगा।



क्षमा करें, आपका प्रश्न बहुत सामान्य है। "कार्य सिद्धांत" एक व्यापक शब्द है और यह किसी भी मशीन, उपकरण या प्रक्रिया पर लागू हो सकता है।

​कृपया स्पष्ट करें कि आप किस चीज़ का कार्य सिद्धांत जानना चाहते हैं, जैसे:

  • एक कार का इंजन
  • एक रेफ्रिजरेटर
  • एक बिजली का जनरेटर
  • एक कंप्यूटर

​एक बार जब आप मुझे विषय बता देंगे, तो मैं आपको एक विस्तृत और सटीक उत्तर दे पाऊँगा।




​प्रतिक्रिया टर्बाइन का कार्य कार्यशील द्रव (जैसे भाप या पानी) की गतिज और दबाव दोनों ऊर्जाओं का उपयोग करके शाफ्ट को घुमाना है। यह एक सतत प्रक्रिया है जिसमें द्रव के ब्लेडों से गुजरते समय उसका दबाव लगातार घटता रहता है। 

​यह टर्बाइन दो प्रकार के ब्लेडों का उपयोग करती है, जो इसके कार्य सिद्धांत का मूल हैं:

कार्य सिद्धांत

  1. स्थिर ब्लेड (Fixed Blades):
    • ​टर्बाइन के आवरण पर लगे इन ब्लेडों का आकार नोजल (nozzle) जैसा होता है।
    • ​जब द्रव इन ब्लेडों से होकर गुजरता है, तो इसका दबाव आंशिक रूप से कम होता है और इसकी गतिज ऊर्जा बढ़ जाती है।
    • ​स्थिर ब्लेड द्रव को घुमावदार दिशा में अगले सेट के ब्लेडों की ओर निर्देशित करते हैं।
  2. गतिशील ब्लेड (Moving Blades):
    • ​ये ब्लेड टर्बाइन के रोटर (घूमने वाले भाग) पर लगे होते हैं।
    • ​स्थिर ब्लेड से आया द्रव इन गतिशील ब्लेडों पर पड़ता है। इन ब्लेडों को इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि जब द्रव इनसे होकर गुजरता है, तो इसका दबाव और भी कम हो जाता है।
    • ​इस दबाव में गिरावट से ब्लेडों के दोनों किनारों पर दबाव का अंतर पैदा होता है, जिससे प्रतिक्रिया बल (reaction force) उत्पन्न होता है। यह बल ही ब्लेडों को घुमाकर यांत्रिक कार्य करता है।

इस प्रकार,

प्रतिक्रिया टर्बाइन में, टर्बाइन के ब्लेडों से गुजरते समय दबाव ऊर्जा गतिज ऊर्जा और फिर यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित होती रहती है, जिससे टर्बाइन कुशलता से घूमती है।

​हाइड्रो टर्बाइनों में फ्रांसिस टर्बाइन और भाप टर्बाइनों में पार्मा टर्बाइन (Parsons turbine) प्रतिक्रिया टर्बाइन के प्रमुख उदाहरण हैं।



रोटर और स्टेटर किसी भी घूर्णन (rotating) मशीन के दो मुख्य भाग होते हैं, जैसे कि इलेक्ट्रिक मोटर, जनरेटर, और टर्बाइन। इन दोनों के बीच का संबंध ही मशीन को गति उत्पन्न करने या बिजली पैदा करने में सक्षम बनाता है।

रोटर (Rotor)

​रोटर मशीन का घूमने वाला हिस्सा होता है। इसका नाम "रोटेशन" (rotation) शब्द से आया है। यह सीधे शाफ्ट से जुड़ा होता है और ऊर्जा को यांत्रिक गति में या यांत्रिक गति को ऊर्जा में परिवर्तित करने का काम करता है।

  • विद्युत मोटर में: रोटर वह हिस्सा है जो चुंबकीय क्षेत्र से उत्पन्न बल के कारण घूमता है।
  • जनरेटर में: रोटर वह हिस्सा है जिसे किसी बाहरी शक्ति स्रोत (जैसे टर्बाइन) द्वारा घुमाया जाता है, जिससे बिजली पैदा होती है।

स्टेटर (Stator)

​स्टेटर मशीन का स्थिर (static) हिस्सा होता है। यह मशीन के बाहरी आवरण (casing) से जुड़ा होता है और घूमता नहीं है। इसका मुख्य कार्य रोटर के चारों ओर एक स्थिर चुंबकीय क्षेत्र या प्रवाह पथ (flow path) बनाना होता है, जिससे रोटर घूम सके या ऊर्जा उत्पन्न कर सके।

  • विद्युत मोटर में: स्टेटर में तार की कॉइल होती हैं, जिनमें बिजली प्रवाहित करने पर एक चुंबकीय क्षेत्र बनता है। यह चुंबकीय क्षेत्र रोटर को घुमाता है।
  • जनरेटर में: स्टेटर में कॉइल होती हैं, जिनके पास से रोटर पर लगे चुंबक घूमते हैं। इस गति से कॉइल में बिजली पैदा होती है।

संक्षेप में, 

रोटर गतिमान है और स्टेटर स्थिर है। ये दोनों एक साथ काम करके मशीन के उद्देश्य को पूरा करते हैं, चाहे वह बिजली पैदा करना हो या गति उत्पन्न करना।



टर्बाइन ब्लेड की सामग्री का चुनाव कई महत्वपूर्ण कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि टर्बाइन का प्रकार (भाप, गैस, या जल), ऑपरेटिंग तापमान, दबाव और पर्यावरणीय स्थितियां। ब्लेड को अत्यधिक यांत्रिक भार, उच्च तापमान, जंग, और कटाव (erosion) का सामना करना पड़ता है। इसलिए, ब्लेड बनाने के लिए ऐसी सामग्री का उपयोग किया जाता है जो इन सभी चुनौतियों का सामना कर सके। 

प्रमुख ब्लेड सामग्री

​विभिन्न प्रकार की टर्बाइनों के लिए अलग-अलग सामग्रियों का उपयोग किया जाता है:

  • भाप टर्बाइन (Steam Turbine):
    • निम्न-दबाव (Low-pressure) ब्लेड: इन ब्लेडों पर पानी की बूंदों के कटाव का खतरा रहता है। इसलिए, इन्हें आमतौर पर स्टेनलेस स्टील से बनाया जाता है, जिसमें उच्च शक्ति और जंग प्रतिरोध होता है। कुछ मामलों में, जंग-प्रतिरोधी गुण बढ़ाने के लिए स्टील में क्रोमियम (Chromium) और निकल (Nickel) मिलाया जाता है।
    • उच्च-दबाव (High-pressure) ब्लेड: ये ब्लेड उच्च तापमान और दबाव का सामना करते हैं। इन्हें क्रोमियम स्टील या निकल-आधारित मिश्र धातुओं (Nickel-based alloys) से बनाया जाता है, जो उच्च तापमान पर भी अपनी ताकत बनाए रखते हैं।
  • गैस टर्बाइन (Gas Turbine):
    • ​गैस टर्बाइन के ब्लेडों को सबसे कठिन परिस्थितियों, विशेषकर अत्यधिक उच्च तापमान (1500°C तक) का सामना करना पड़ता है।
    • ​इन ब्लेडों को मुख्य रूप से निकल-आधारित सुपर मिश्र धातुओं (Nickel-based superalloys) से बनाया जाता है। इन मिश्र धातुओं में कोबाल्ट (Cobalt), क्रोमियम, और एल्यूमीनियम जैसे तत्व मिलाए जाते हैं, जो इन्हें उच्च तापमान पर भी मजबूत और जंग-प्रतिरोधी बनाते हैं।
    • ​इन ब्लेडों पर अक्सर सिरेमिक या धातु की परत चढ़ाई जाती है ताकि ये और भी अधिक गर्मी प्रतिरोधी बन सकें।
  • जल टर्बाइन (Water Turbine):
    • ​जल टर्बाइन के ब्लेड पानी के प्रवाह से होने वाले कटाव और गुहिकायन (cavitation) से बचाने के लिए बनाए जाते हैं।
    • ​इन्हें आमतौर पर उच्च शक्ति वाले कार्बन स्टील या स्टेनलेस स्टील से बनाया जाता है, क्योंकि इनमें कटाव और जंग से लड़ने की क्षमता होती है।
    • ​बड़े टर्बाइनों के लिए स्टेनलेस स्टील को प्राथमिकता दी जाती है।

​इन सामग्रियों का चयन करते समय, उनकी लागत, उपलब्धता और निर्माण की सरलता को भी ध्यान में रखा जाता है।


गैस टरबाइन में शीतलन प्रणाली (cooling system) का उपयोग ब्लेडों और अन्य घटकों को अत्यधिक उच्च तापमान से बचाने के लिए किया जाता है। गैस टरबाइन के दहन कक्ष में गैसों का तापमान 1500°C से भी अधिक हो सकता है, जो ब्लेड की सामग्री के गलनांक (melting point) से काफी अधिक है। यदि ब्लेडों को ठंडा न किया जाए, तो वे पिघल जाएंगे या उनका जीवनकाल बहुत कम हो जाएगा।

शीतलन के तरीके

​गैस टर्बाइन में कई उन्नत शीतलन तकनीकों का उपयोग किया जाता है। मुख्य विधियाँ इस प्रकार हैं:

  1. वायु शीतलन (Air Cooling):
    • ​यह सबसे आम तरीका है। कंप्रेसर से ली गई ठंडी हवा को ब्लेडों के अंदरूनी हिस्सों में भेजा जाता है।
    • ​ब्लेडों के अंदर हवा के लिए विशेष चैनल होते हैं, जिससे हवा ऊष्मा को अवशोषित करती है और ब्लेड की सतह से निकल जाती है।
    • ​कुछ डिज़ाइनों में, हवा को ब्लेड की सतह पर छोटे-छोटे छिद्रों (holes) के माध्यम से छोड़ा जाता है, जिससे ब्लेड की सतह के ऊपर एक ठंडी हवा की परत बन जाती है। इसे फिल्म शीतलन (film cooling) कहा जाता है।
  2. भाप शीतलन (Steam Cooling):
    • ​कुछ उन्नत गैस टर्बाइनों में, भाप का उपयोग शीतलन माध्यम के रूप में किया जाता है।
    • ​भाप की विशिष्ट ऊष्मा (specific heat) हवा की तुलना में अधिक होती है, जिससे यह अधिक प्रभावी ढंग से ऊष्मा को अवशोषित कर सकती है।
    • ​इस भाप को अक्सर टर्बाइन के निचले भागों से गुजार कर उत्पन्न किया जाता है, जिससे समग्र दक्षता भी बढ़ती है।
  3. थर्मल बैरियर कोटिंग (Thermal Barrier Coating - TBC):
    • ​यह सीधे तौर पर एक शीतलन विधि नहीं है, लेकिन यह शीतलन प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
    • ​ब्लेड की सतह पर एक सिरेमिक कोटिंग लगाई जाती है, जो गर्मी के प्रवाह को कम करती है। यह कोटिंग ब्लेड की धातु को अत्यधिक तापमान से बचाती है और शीतलन हवा की आवश्यकता को कम करती है।

​इन प्रणालियों के बिना, आधुनिक गैस टर्बाइनें इतने उच्च तापमान पर कुशलता से काम नहीं कर पाएंगी और उनकी विश्वसनीयता बहुत कम हो जाएगी।



स्नेहन प्रणाली, जिसे लुब्रिकेशन सिस्टम भी कहते हैं, एक यांत्रिक प्रणाली है जिसका मुख्य कार्य किसी मशीन के चलते हुए पुर्जों के बीच घर्षण (friction) और टूट-फूट को कम करना है। यह सुनिश्चित करती है कि मशीन के भाग चिकने रहें, जिससे वे आसानी से चल सकें और उनकी दक्षता बनी रहे। 

​यह प्रणाली आमतौर पर एक तरल स्नेहक, जैसे तेल, का उपयोग करती है, जिसे मशीन के पुर्जों पर लगातार पंप किया जाता है।

कार्य सिद्धांत

​एक सामान्य स्नेहन प्रणाली निम्नलिखित चरणों में काम करती है:

  1. भंडारण (Storage): स्नेहक (जैसे तेल) एक टैंक या सुम्प (sump) में जमा होता है, जो अक्सर मशीन के निचले हिस्से में होता है।
  2. संचलन (Circulation): एक पंप इस तेल को सुम्प से खींचकर पूरे सिस्टम में भेजता है। यह पंप अक्सर इंजन या मशीन के चलने से ही संचालित होता है।
  3. फ़िल्टरेशन (Filtration): पंप से निकलने वाला तेल एक फिल्टर से होकर गुजरता है। यह फिल्टर तेल में मौजूद गंदगी, धातु के कणों और अन्य अशुद्धियों को हटा देता है, जिससे साफ तेल ही पुर्जों तक पहुँचता है।
  4. स्नेहन और शीतलन (Lubrication and Cooling): साफ किया गया तेल दबाव के तहत मशीन के महत्वपूर्ण पुर्जों, जैसे बेयरिंग, गियर और शाफ्ट, तक पहुँचता है। यह पुर्जों के बीच एक पतली परत बनाता है, जिससे धातु-से-धातु का संपर्क रुक जाता है। इस प्रक्रिया से घर्षण कम होता है और साथ ही तेल गर्मी को भी अवशोषित कर लेता है, जिससे पुर्जे ठंडे रहते हैं।
  5. वापसी (Return): पुर्जों से गुजरने के बाद, तेल गुरुत्वाकर्षण या पंप की मदद से वापस सुम्प में लौट आता है, जहाँ से चक्र फिर से शुरू होता है।

स्नेहन प्रणाली के मुख्य कार्य

  • घर्षण कम करना: यह प्रणाली चलती हुई सतहों के बीच घर्षण को कम करती है, जिससे ऊर्जा की हानि कम होती है और पुर्जे आसानी से घूमते हैं।
  • घिसावट कम करना: तेल की परत पुर्जों को आपस में सीधे संपर्क में आने से रोकती है, जिससे घिसावट और टूट-फूट कम होती है।
  • पुर्जों को ठंडा रखना: यह प्रणाली मशीन द्वारा उत्पन्न अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित करके पुर्जों को ठंडा रखती है, जिससे वे अधिक गर्म होने से बचते हैं।
  • पुर्जों को साफ रखना: तेल अशुद्धियों और कार्बन कणों को इकट्ठा करके फिल्टर तक ले जाता है, जिससे पुर्जे साफ रहते हैं।
  • जंग से बचाना: तेल की परत नमी और हवा को पुर्जों से दूर रखती है, जिससे जंग लगने का खतरा कम होता है।

टरबाइन में, "शासन प्रणाली" का अर्थ वास्तव में नियंत्रण प्रणाली (control system) या गवर्नर (governor) होता है। इसका मुख्य कार्य टरबाइन की गति को स्थिर रखना और मांग (load) के अनुसार इसकी शक्ति उत्पादन को नियंत्रित करना है। यह सुनिश्चित करता है कि जनरेटर से निकलने वाली बिजली की आवृत्ति (frequency) स्थिर रहे।

​यह प्रणाली एक स्वचालित व्यवस्था की तरह काम करती है।

कार्य सिद्धांत

​एक गवर्नर प्रणाली निम्नलिखित चरणों में काम करती है:

  1. गति का संवेदन (Speed Sensing): सबसे पहले, प्रणाली टरबाइन के शाफ्ट की घूमने की गति को लगातार मापती है। यह एक सेंसर या टैकोमीटर की मदद से किया जाता है।
  2. तुलना (Comparison): मापी गई गति को एक पूर्वनिर्धारित गति (setpoint) से तुलना की जाती है। यदि टरबाइन की गति निर्धारित गति से बढ़ रही है, तो इसका मतलब है कि लोड कम हो गया है। यदि गति घट रही है, तो लोड बढ़ गया है।
  3. प्रवाह का समायोजन (Flow Adjustment):
    • ​जब गति बढ़ती है (लोड कम होने पर), गवर्नर कार्यशील द्रव (पानी, भाप या गैस) के प्रवाह को कम करने के लिए वाल्व या गेट को बंद करना शुरू कर देता है।
    • ​जब गति घटती है (लोड बढ़ने पर), गवर्नर प्रवाह को बढ़ाने के लिए वाल्व को खोलता है।
  4. स्थिरीकरण (Stabilization): यह निरंतर समायोजन टरबाइन की गति को स्थिर रखता है, जिससे जनरेटर द्वारा उत्पन्न बिजली की आवृत्ति स्थिर बनी रहती है।

उदाहरण: 

आप इसे कार के क्रूज कंट्रोल की तरह समझ सकते हैं। जब कार को किसी पहाड़ी पर चढ़ना होता है (लोड बढ़ता है), तो क्रूज कंट्रोल सिस्टम स्वतः ही इंजन को अधिक ईंधन देता है ताकि गति बनी रहे। उसी तरह, टरबाइन गवर्नर भी लोड के अनुसार द्रव के प्रवाह को नियंत्रित करता है।

​यह प्रणाली टरबाइन और जनरेटर दोनों को अधिक गति से होने वाले नुकसान से बचाती है और विद्युत ग्रिड की स्थिरता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।



गाइड वेन (Guide Vane) और स्टे वेन (Stay Vane) हाइड्रो टर्बाइन में दो महत्वपूर्ण, लेकिन अलग-अलग कार्य करने वाले घटक हैं। ये दोनों टर्बाइन के आवरण (casing) में ब्लेडों के चारों ओर एक गोलाकार व्यवस्था में स्थित होते हैं।

स्टे वेन (Stay Vane)

​स्टे वेन स्थिर, गैर-समायोज्य ब्लेड होते हैं जिनका मुख्य कार्य संरचनात्मक समर्थन (structural support) प्रदान करना है। ये टर्बाइन के आवरण को पेनस्टॉक (penstock) से आने वाले पानी के उच्च दबाव का सामना करने में मदद करते हैं।

  • कार्य:
    • ​ये टर्बाइन के पूरे ढांचे को मजबूत करते हैं।
    • ​इनका आकार और कोण इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि ये पानी के प्रवाह को धीरे-धीरे घुमाते हैं, जिससे वह गाइड वेन तक सुचारू रूप से पहुँच सके। यह प्रारंभिक प्रवाह को बेहतर बनाने में मदद करता है।
    • ​ये टर्बाइन की स्थिरता सुनिश्चित करते हैं।

गाइड वेन (Guide Vane)

​गाइड वेन एक स्थिर रिंग में लगे समायोज्य (adjustable) ब्लेड होते हैं। ये टर्बाइन में पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। इन्हें विकेट गेट (wicket gates) भी कहा जाता है।

  • कार्य:
    • प्रवाह नियंत्रण: गवर्नर प्रणाली के आदेश पर ये ब्लेड खुलते या बंद होते हैं। जब अधिक शक्ति की आवश्यकता होती है, तो ये खुल जाते हैं ताकि अधिक पानी टर्बाइन ब्लेड तक पहुँच सके। जब कम शक्ति की आवश्यकता होती है, तो ये बंद हो जाते हैं।
    • कोण नियंत्रण: गाइड वेन पानी के प्रवाह को एक विशिष्ट कोण पर टर्बाइन के ब्लेड (runner blades) की ओर निर्देशित करते हैं। यह ब्लेडों पर प्रभाव के कोण को अनुकूलित करता है, जिससे टर्बाइन की दक्षता अधिकतम होती है।
    • गति विनियमन: प्रवाह को नियंत्रित करके, ये टर्बाइन की घूमने की गति को स्थिर रखते हैं, जिससे जनरेटर द्वारा उत्पन्न बिजली की आवृत्ति स्थिर बनी रहती है।

संक्षेप में,

स्टे वेन टर्बाइन के लिए एक मजबूत ढाँचा प्रदान करते हैं, जबकि गाइड वेन टर्बाइन के प्रदर्शन और गति को नियंत्रित करने के लिए पानी के प्रवाह को समायोजित करते हैं।



ड्राफ्ट ट्यूब एक ऐसा उपकरण है जो प्रतिक्रिया हाइड्रो टर्बाइन के निकास पर लगाया जाता है। इसका मुख्य कार्य टर्बाइन के आउटलेट पर पानी के गतिज ऊर्जा को वापस दबाव ऊर्जा में बदलना है।

कार्य सिद्धांत

​ड्राफ्ट ट्यूब का डिज़ाइन एक धीरे-धीरे चौड़ा होने वाली नली जैसा होता है। यह टर्बाइन के रनर (runner) से शुरू होती है और नीचे की ओर टेल्रेस (tailrace) तक जाती है।

  1. कम दबाव पर निकास: जब पानी टर्बाइन के रनर से निकलता है, तो इसकी गति तेज होती है, लेकिन दबाव कम होता है (अक्सर वायुमंडलीय दबाव से कम)।
  2. दबाव में वृद्धि: जैसे ही पानी ड्राफ्ट ट्यूब से होकर गुजरता है, ट्यूब के चौड़े होने के कारण उसका वेग कम हो जाता है। बर्नौली के सिद्धांत (Bernoulli's principle) के अनुसार, जब द्रव का वेग कम होता है, तो उसका दबाव बढ़ जाता है।
  3. ऊर्जा की वसूली: इस तरह, ड्राफ्ट ट्यूब टर्बाइन से निकलने वाले पानी की गतिज ऊर्जा के एक बड़े हिस्से को उपयोगी दबाव ऊर्जा में बदल देती है। इस दबाव ऊर्जा को टर्बाइन के कार्य में जोड़ा जाता है।

महत्व

​ड्राफ्ट ट्यूब के बिना, टर्बाइन से निकलने वाले पानी की गतिज ऊर्जा बर्बाद हो जाएगी। यह टर्बाइन की समग्र दक्षता को बढ़ाता है और इसे कम जल शीर्ष (low head) की स्थितियों में भी कुशलता से काम करने में सक्षम बनाता है।

​संक्षेप में, यह एक ऐसा उपकरण है जो टर्बाइन से बाहर निकलने वाली बेकार ऊर्जा को पुनर्प्राप्त करता है, जिससे टर्बाइन अधिक शक्ति का उत्पादन कर पाती है।




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