बिजली प्रणाली में इंसुलेटर के प्रकार ( Types of Insulators ) Power System
बिजली प्रणाली में, इंसुलेटर (विद्युत रोधी) ऐसे घटक होते हैं जो विद्युत प्रवाह को अनियंत्रित रूप से बहने से रोकते हैं। ये आमतौर पर ग्लास, पोर्सलीन या अन्य सिरेमिक सामग्री से बने होते हैं। इंसुलेटर को उनके डिजाइन, उपयोग और सामग्री के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है।
इंसुलेटर के मुख्य प्रकार
1. पिन टाइप इंसुलेटर
ये सबसे पुराने और सबसे सामान्य प्रकार के इंसुलेटर हैं।
- उपयोग: इनका उपयोग 33 kV तक की वोल्टेज लाइनों में किया जाता है।
- डिज़ाइन: इनमें एक पिन (लोहे या स्टील का) होता है जिस पर इंसुलेटर का सिरेमिक हिस्सा लगा होता है। कंडक्टर को इंसुलेटर के शीर्ष पर खांचे में बांधा जाता है।
- फायदे: ये लागत प्रभावी और मजबूत होते हैं।
2. सस्पेंशन टाइप इंसुलेटर
ये इंसुलेटर 33 kV से अधिक वोल्टेज के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- उपयोग: उच्च-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों में।
- डिज़ाइन: इनमें कई इंसुलेटर डिस्क एक श्रृंखला में जुड़ी होती हैं। प्रत्येक डिस्क 11 kV तक का वोल्टेज सहन कर सकती है। जितनी अधिक डिस्क होती हैं, उतना ही अधिक वोल्टेज सहन किया जा सकता है।
- फायदे: ये लचीले होते हैं और इनका उपयोग बहुत अधिक वोल्टेज के लिए किया जा सकता है।
3. स्ट्रेन टाइप इंसुलेटर
ये इंसुलेटर विशेष रूप से उन स्थानों पर उपयोग किए जाते हैं जहाँ कंडक्टर पर अत्यधिक यांत्रिक तनाव (mechanical stress) होता है।
- उपयोग: इनका उपयोग मोड़ (corners), अंत (dead ends) और क्रॉसिंग बिंदुओं पर किया जाता है।
- डिज़ाइन: ये सस्पेंशन इंसुलेटर की तरह ही होते हैं, लेकिन इन्हें क्षैतिज रूप से (horizontally) लगाया जाता है।
- फायदे: ये मजबूत होते हैं और अत्यधिक तनाव को सहन कर सकते हैं।
4. शैकल टाइप इंसुलेटर
इन्हें स्पूल इंसुलेटर भी कहा जाता है।
- उपयोग: इनका उपयोग कम-वोल्टेज वितरण लाइनों में किया जाता है, जैसे शहरी क्षेत्रों में।
- डिज़ाइन: ये छोटे आकार के होते हैं और एक शैकल (एक यू-आकार का ब्रैकेट) के साथ पोल से जुड़े होते हैं।
- फायदे: ये कॉम्पैक्ट और मजबूत होते हैं।
5. पोस्ट टाइप इंसुलेटर
ये इंसुलेटर मुख्य रूप से सबस्टेशनों में बस बार (bus bars) और स्विचगियर को सपोर्ट करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
- उपयोग: इनका उपयोग सबस्टेशनों और उच्च-वोल्टेज स्विचगियर में होता है।
- डिज़ाइन: ये एक ठोस स्तंभ के रूप में होते हैं, जो ऊपर और नीचे धातु के फिटिंग्स के साथ लगे होते हैं।
- फायदे: ये यांत्रिक रूप से मजबूत होते हैं और उच्च वोल्टेज को संभालने में सक्षम होते हैं।
पारेषण (ट्रांसमिशन) और वितरण लाइन में, इन्सुलेटर का मुख्य कार्य चालक तारों को टावर या खंभे से विद्युत-रोधी करना (insulating the conductor wires from the tower or pole) है।
इन्सुलेटर के मुख्य कार्य (Main Functions of Insulators)
इन्सुलेटर के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:
विद्युत-रोधक (Insulation): इन्सुलेटर चालक तारों को सहारा देते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उच्च वोल्टेज विद्युत धारा टावर या खंभे में प्रवाहित न हो। यह विद्युत ऊर्जा के नुकसान को रोकता है और सुरक्षा बनाए रखता है।
यांत्रिक सहारा (Mechanical Support): ये चालक तारों के वजन और हवा, बर्फ, और अन्य बाहरी दबावों के कारण लगने वाले यांत्रिक भार (mechanical load) को सहन करते हैं। उन्हें इतना मजबूत होना चाहिए कि वे इन सभी तनावों का सामना कर सकें।
विद्युत धारा को लीक होने से रोकना (Preventing Current Leakage): इन्सुलेटर की सतह पर बनी नाली (sheds) या रिब्ड डिज़ाइन (ribbed design) पानी को बहने देती है और सतह के गीले होने पर भी रिसाव (leakage) धारा को कम करती है।
आर्क (Arc) को नियंत्रित करना: जब बिजली गिरती है या कोई अन्य उच्च-वोल्टेज घटना होती है, तो इन्सुलेटर आर्क (उच्च-वोल्टेज स्पार्क) को नियंत्रित करता है और उसे चालक और टावर के बीच सीमित करता है, जिससे उपकरणों को नुकसान से बचाया जा सके।
ओवरहेड ट्रांसमिशन सिस्टम में इंसुलेटर बहुत आवश्यक हैं क्योंकि वे दो महत्वपूर्ण कार्य करते हैं: विद्युत सुरक्षा और यांत्रिक सहारा।
1. विद्युत सुरक्षा (Electrical Safety)
इंसुलेटर का सबसे महत्वपूर्ण कार्य चालक तारों को टावर या खंभे से विद्युत-रोधी करना है। चूँकि ट्रांसमिशन लाइनों में बहुत उच्च वोल्टेज होता है (उदाहरण के लिए, 66 kV से 400 kV तक), यह सुनिश्चित करना बहुत ज़रूरी है कि विद्युत धारा टावर के माध्यम से ज़मीन में न जाए। ऐसा होने पर:
- विद्युत ऊर्जा का नुकसान होता है (Loss of Electrical Energy) जिससे सिस्टम की दक्षता घटती है।
- ग्राउंड फॉल्ट (Ground Fault) का खतरा बढ़ जाता है, जो पूरे सिस्टम को ट्रिप कर सकता है।
- यह लोगों और जानवरों के लिए जानलेवा सुरक्षा जोखिम (Fatal Safety Risk) पैदा कर सकता है।
- आर्क के कारण टावर को नुकसान पहुँच सकता है।
2. यांत्रिक सहारा (Mechanical Support)
इंसुलेटर केवल विद्युत-रोधी ही नहीं होते, बल्कि वे चालक तारों को सहारा देने के लिए भी बहुत मजबूत होते हैं। वे निम्न भारों को सहन करते हैं:
- तारों का वजन: इंसुलेटर को तारों के भारी वजन को उठाना पड़ता है।
- हवा का दबाव: तेज हवाओं के कारण तारों पर पड़ने वाले दबाव को सहना।
- बर्फ और धूल का भार: सर्दियों में बर्फ जमने या धूल-मिट्टी के कारण बढ़ने वाले वजन को संभालना।
इन दोनों कारणों से,
इंसुलेटर ओवरहेड ट्रांसमिशन सिस्टम के सुरक्षित और कुशल संचालन के लिए अपरिहार्य (indispensable) हैं।
एक अच्छे इन्सुलेटर पदार्थ में कई प्रमुख गुण होने चाहिए ताकि वह उच्च वोल्टेज वातावरण में कुशलतापूर्वक और सुरक्षित रूप से कार्य कर सके।
1. उच्च ढांकता हुआ शक्ति (High Dielectric Strength)
यह एक इंसुलेटर का सबसे महत्वपूर्ण गुण है। ढांकता हुआ शक्ति वह अधिकतम वोल्टेज है जिसे एक सामग्री बिना टूटे या विद्युत चालन शुरू किए झेल सकती है। एक अच्छे इन्सुलेटर की ढांकता हुआ शक्ति बहुत अधिक होनी चाहिए ताकि यह ट्रांसमिशन लाइन के उच्च वोल्टेज का सामना कर सके।
2. उच्च विद्युत प्रतिरोधकता (High Electrical Resistivity)
प्रतिरोधकता यह मापती है कि कोई सामग्री विद्युत प्रवाह का कितना विरोध करती है। एक अच्छे इन्सुलेटर में उच्च आयतन प्रतिरोधकता (high volume resistivity) और उच्च सतह प्रतिरोधकता (high surface resistivity) होनी चाहिए। यह रिसाव धारा (leakage current) को न्यूनतम करता है, जिससे ऊर्जा का नुकसान कम होता है।
3. उच्च यांत्रिक शक्ति (High Mechanical Strength)
इंसुलेटर को चालक तारों के वजन, हवा के दबाव, बर्फ के भार और अन्य यांत्रिक तनावों को सहना पड़ता है। इसलिए, यह यांत्रिक रूप से बहुत मजबूत होना चाहिए ताकि यह इन सभी बलों का सामना कर सके और तारों को सहारा दे सके।
4. गैर-छिद्रपूर्ण और नमी प्रतिरोधी (Non-porous and Moisture-resistant)
एक अच्छे इंसुलेटर को गैर-छिद्रपूर्ण होना चाहिए, यानी इसमें कोई छिद्र नहीं होने चाहिए जो पानी को अवशोषित कर सकें। पानी एक अच्छा चालक होता है, और नमी इन्सुलेटर की ढांकता हुआ शक्ति को काफी कम कर सकती है, जिससे उसका प्रदर्शन बिगड़ जाता है।
5. मौसम और तापमान प्रतिरोधी (Weather and Temperature Resistant)
इंसुलेटर को कठोर मौसम की स्थिति जैसे बारिश, धूप, अत्यधिक गर्मी और ठंड का सामना करना पड़ता है। सामग्री को इन स्थितियों में अपनी इन्सुलेटिंग और यांत्रिक गुणों को बनाए रखना चाहिए।
ये गुण सुनिश्चित करते हैं कि इंसुलेटर उच्च वोल्टेज लाइनों में सुरक्षा और विश्वसनीयता प्रदान करते हुए कुशलतापूर्वक काम कर सकें।
विद्युत प्रणालियों में विभिन्न प्रकार की इंसुलेटिंग सामग्रियों का उपयोग होता है, जिन्हें उनके उपयोग के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
1. सिरेमिक (चीनी मिट्टी)
यह ओवरहेड ट्रांसमिशन और वितरण लाइनों में सबसे आम इंसुलेटिंग सामग्री है। इसमें उच्च ढांकता हुआ शक्ति, उच्च यांत्रिक शक्ति और मौसम प्रतिरोध होता है।
2. ग्लास
कठोर ग्लास का उपयोग भी ओवरहेड लाइनों के लिए इंसुलेटर बनाने में किया जाता है। इसका लाभ यह है कि इसमें कोई छिद्र नहीं होता, जो इसे नमी से बचाता है, और यह क्षतिग्रस्त होने पर आसानी से दिखाई देता है।
3. पॉलीमर (सिलिकॉन रबर)
ये सिंथेटिक रबर से बने होते हैं और इन्हें कंपोजिट इंसुलेटर भी कहा जाता है। ये हल्के होते हैं, जल-प्रतिरोधी होते हैं और इनका प्रदर्शन धूल-भरे और प्रदूषित वातावरण में अच्छा होता है। इनका उपयोग ट्रांसमिशन और वितरण दोनों प्रणालियों में किया जाता है।
4. पेपर और लकड़ी
विशेष रूप से उपचारित पेपर का उपयोग ट्रांसफार्मर, कैपेसिटर और केबल में इन्सुलेशन के लिए किया जाता है। लकड़ी का उपयोग कभी-कभी निम्न वोल्टेज वितरण लाइनों के लिए क्रॉस-आर्म के रूप में किया जाता है।
5. तरल पदार्थ
ट्रांसफार्मर तेल सबसे आम तरल इन्सुलेटर है। यह ट्रांसफार्मर को इन्सुलेशन प्रदान करता है और साथ ही उसे ठंडा करने में भी मदद करता है।
6. प्लास्टिक
पॉलीविनाइल क्लोराइड (PVC), पॉलीइथाइलीन और बैकेलाइट जैसी सामग्रियां निम्न वोल्टेज वायरिंग, केबल, और छोटे उपकरणों में व्यापक रूप से उपयोग होती हैं।
विद्युत प्रणालियों में विभिन्न प्रकार के इंसुलेटर का उपयोग किया जाता है, जिन्हें उनके डिज़ाइन और उपयोग के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
1. पिन टाइप इंसुलेटर
यह सबसे पुराने और सबसे सामान्य प्रकार के इंसुलेटरों में से एक है। यह सीधे टावर के क्रॉस-आर्म पर एक पिन के साथ लगाया जाता है और चालक तार को इसके शीर्ष पर एक खाँचे में रखा जाता है। यह आमतौर पर 33 kV तक की वोल्टेज लाइनों के लिए उपयोग किया जाता है।
2. सस्पेंशन इंसुलेटर
उच्च वोल्टेज (33 kV से अधिक) के लिए, सस्पेंशन इंसुलेटर का उपयोग किया जाता है। ये कई चीनी मिट्टी या कांच की डिस्क से बने होते हैं जिन्हें श्रृंखला में जोड़ा जाता है और टावर से लंबवत रूप से लटकाया जाता है। जितनी अधिक डिस्क होती हैं, उतना ही अधिक वोल्टेज सहन किया जा सकता है।
3. स्ट्रेन इंसुलेटर
जब लाइनों को मोड़ना हो, या जहाँ लाइनें समाप्त होती हैं (जैसे नदी पार करते समय), वहाँ चालक पर भारी तनाव पड़ता है। स्ट्रेन इंसुलेटर का उपयोग इस यांत्रिक तनाव को सहन करने के लिए किया जाता है। ये आमतौर पर सस्पेंशन इंसुलेटर के समान ही होते हैं, लेकिन इन्हें क्षैतिज रूप से लगाया जाता है।
4. शेकल इंसुलेटर
इन्हें स्पूल इंसुलेटर भी कहते हैं। ये कम वोल्टेज वितरण लाइनों के लिए उपयोग किए जाते हैं, विशेषकर जब लाइनों को मोड़ना हो। इन्हें क्षैतिज या लंबवत दोनों तरह से लगाया जा सकता है।
5. पोस्ट इंसुलेटर
पोस्ट इंसुलेटर का उपयोग सबस्टेशन और बस-बार व्यवस्था में होता है। ये एक खंभे के आकार के होते हैं, जो ऊपर और नीचे से चौड़े होते हैं। ये उच्च वोल्टेज को सहन कर सकते हैं और प्रदूषित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होते हैं।
पिन-प्रकार के इंसुलेटर की संरचना और कार्यप्रणाली को नीचे विस्तार से समझाया गया है:
संरचना
पिन-प्रकार का इंसुलेटर एक सिरेमिक या कांच से बना होता है और इसमें तीन मुख्य भाग होते हैं:
बॉडी (Body): यह इंसुलेटर का मुख्य भाग है। यह चीनी मिट्टी या टफन ग्लास से बना होता है और इसमें एक या अधिक छतरीनुमा स्कर्ट (skirts) होती हैं। ये स्कर्ट वर्षा के पानी को इंसुलेटर की सतह से सीधे नीचे गिरने से रोकती हैं, जिससे लीकेज करंट (leakage current) का मार्ग बढ़ जाता है और इंसुलेटर की सतह सूखी रहती है।
ग्रूव (Groove): बॉडी के ऊपरी हिस्से में एक खांचा (groove) होता है जिसमें कंडक्टर तार को रखा जाता है। यह खांचा कंडक्टर को इंसुलेटर पर सुरक्षित रूप से टिकाए रखता है।
पिन (Pin): इंसुलेटर के निचले हिस्से में एक पिन होती है। यह पिन आमतौर पर जस्तीकृत स्टील की बनी होती है और इसे क्रॉस आर्म (cross arm) या पोल पर लगे हुए ब्रैकेट में फिट किया जाता है। इंसुलेटर को इस पिन पर पेंच (screw) की सहायता से मजबूती से कसा जाता है।
कार्यप्रणाली
पिन-प्रकार के इंसुलेटर का मुख्य कार्य बिजली के खंभे (pole) या क्रॉस आर्म को विद्युत कंडक्टर से अलग करना है ताकि बिजली का प्रवाह खंभे या क्रॉस आर्म में न हो।
इसकी कार्यप्रणाली निम्नलिखित बिंदुओं पर आधारित है:
- विद्युत इन्सुलेशन (Electrical Insulation): इंसुलेटर उच्च प्रतिरोधकता (high resistivity) वाले पदार्थ जैसे चीनी मिट्टी या कांच से बना होता है, जो विद्युत धारा को खंभे तक जाने से रोकता है। यह सुनिश्चित करता है कि बिजली का प्रवाह केवल कंडक्टर के माध्यम से ही हो।
- यांत्रिक सहारा (Mechanical Support): इंसुलेटर कंडक्टर को सुरक्षित रूप से सहारा देता है। ऊपरी खांचे में कंडक्टर को बांधकर, यह हवा, बर्फ या अन्य बाहरी दबावों के कारण कंडक्टर को अपनी जगह से हिलने से रोकता है।
- लीकेज करंट को रोकना (Preventing Leakage Current): इंसुलेटर की छतरीनुमा स्कर्ट (skirt) डिजाइन बहुत महत्वपूर्ण है। बारिश के दौरान, पानी इन स्कर्टों पर गिरता है और सतह पर बहता है। यह स्कर्ट पानी के लिए एक लंबा और घुमावदार रास्ता बनाती हैं, जिससे लीकेज करंट का मार्ग बढ़ जाता है। इस लंबी दूरी के कारण लीकेज करंट का मान बहुत कम हो जाता है, जिससे बिजली की हानि कम होती है और इंसुलेटर की दक्षता बनी रहती है।
पिन-प्रकार के इंसुलेटर का उपयोग आमतौर पर 33 kV तक के वोल्टेज स्तरों के लिए किया जाता है। इससे अधिक वोल्टेज के लिए इसका उपयोग नहीं किया जाता क्योंकि इसके लिए बड़े और महंगे इंसुलेटर की आवश्यकता होगी।
निलंबन प्रकार का इंसुलेटर, उच्च वोल्टेज (33 kV से ऊपर) वाली ट्रांसमिशन लाइनों में उपयोग किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण घटक है। यह विशेष रूप से हाई-टेंशन (HT) और एक्स्ट्रा-हाई-टेंशन (EHT) लाइनों में इस्तेमाल होता है।
संरचना
निलंबन इंसुलेटर की संरचना कई डिस्क-आकार की इकाइयों को एक साथ जोड़कर बनाई जाती है। प्रत्येक इकाई को एक इंसुलेटर डिस्क कहते हैं, जो आमतौर पर चीनी मिट्टी या टफन ग्लास से बनी होती है। इसकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
डिस्क (Disc): प्रत्येक डिस्क 11 kV तक का वोल्टेज झेल सकती है।
मेटल लिंक (Metal Links): डिस्कें एक दूसरे से मेटल लिंक (धातु की कड़ियों) द्वारा जुड़ी होती हैं, जिससे एक लंबी श्रृंखला या "स्ट्रिंग" बनती है।
बॉल और सॉकेट (Ball and Socket): ये लिंक बॉल और सॉकेट या क्लेविस-एंड-पिन जोड़ों का उपयोग करके डिस्क को जोड़ते हैं।
कोरोना रिंग (Corona Ring): बहुत उच्च वोल्टेज (जैसे 220 kV और उससे अधिक) के लिए, स्ट्रिंग के निचले हिस्से में कोरोना रिंग लगाई जाती हैं। ये रिंग कंडक्टर के पास विद्युत क्षेत्र को समान रूप से वितरित करती हैं, जिससे कोरोना डिस्चार्ज (corona discharge) को कम किया जा सके।
कार्यप्रणाली
निलंबन इंसुलेटर की कार्यप्रणाली पिन-प्रकार के इंसुलेटर से अलग होती है क्योंकि यह लंबवत (vertically) लटका हुआ होता है और टावर के क्रॉस आर्म से कंडक्टर को निलंबित करता है।
- उच्च वोल्टेज का सामना (Handling High Voltage): पिन-प्रकार के इंसुलेटर की तरह निलंबन इंसुलेटर में एक ही इंसुलेटर का उपयोग करने की बजाय, वोल्टेज के स्तर के अनुसार डिस्क की संख्या को बढ़ाया या घटाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, 132 kV की लाइन के लिए लगभग 10-12 डिस्क की आवश्यकता होती है। इस तरह, यह बहुत उच्च वोल्टेज को सुरक्षित रूप से संभालने की क्षमता प्रदान करता है।
- यांत्रिक लचीलापन (Mechanical Flexibility): ये इंसुलेटर स्ट्रिंग के रूप में होते हैं, जिससे वे हवा के झोंकों या अन्य यांत्रिक तनाव के कारण होने वाले झूलों को सहन कर सकते हैं। यह लचीलापन लाइन पर तनाव को कम करता है।
- मरम्मत और रखरखाव (Repair and Maintenance): यदि स्ट्रिंग में कोई एक डिस्क खराब हो जाती है, तो उसे पूरी स्ट्रिंग को बदले बिना आसानी से बदला जा सकता है। यह रखरखाव को आसान और किफायती बनाता है।
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टेंशन और सस्पेंशन स्ट्रिंग (Tension and Suspension String): निलंबन इंसुलेटर का उपयोग दो मुख्य तरीकों से किया जाता है:
- सस्पेंशन स्ट्रिंग (Suspension String): जहाँ कंडक्टर को सीधे टावर से लटकाया जाता है।
- स्ट्रेन या टेंशन स्ट्रिंग (Strain/Tension String): जहाँ लाइन में अधिक यांत्रिक तनाव होता है (जैसे मोड़ या डेड-एंड पर), वहाँ स्ट्रिंग को क्षैतिज रूप से लगाया जाता है।
तनाव इंसुलेटर (Strain Insulator) एक प्रकार का सस्पेंशन इंसुलेटर ही है, लेकिन इसका उपयोग विशेष परिस्थितियों में किया जाता है, जहाँ कंडक्टर पर बहुत अधिक यांत्रिक तनाव होता है।
संरचना और कार्यप्रणाली
तनाव इंसुलेटर की संरचना निलंबन इंसुलेटर के समान होती है, जिसमें कई इंसुलेटर डिस्क एक श्रृंखला (string) में जुड़ी होती हैं। हालाँकि, इसकी मुख्य पहचान और कार्यप्रणाली में अंतर होता है:
क्षैतिज स्थापना (Horizontal Installation): जहाँ निलंबन इंसुलेटर को टावर से लंबवत (vertically) लटकाया जाता है, वहीं तनाव इंसुलेटर को क्षैतिज रूप से (horizontally) स्थापित किया जाता है।
उच्च तनाव सहन करना (Withstanding High Tension): इसका प्राथमिक कार्य कंडक्टरों पर पड़ने वाले अत्यधिक खिंचाव बल (tensile force) को सहना है। यह वहाँ उपयोग किया जाता है जहाँ बिजली की लाइनें मुड़ती हैं (जैसे कि कोनों पर), या जहाँ लाइनें समाप्त होती हैं (डेड-एंड)।
एकाधिक स्ट्रिंग (Multiple Strings): अत्यधिक तनाव को झेलने के लिए, एक ही कंडक्टर के लिए दो या तीन समांतर (parallel) स्ट्रिंग का उपयोग किया जा सकता है। यह यांत्रिक शक्ति को बढ़ाता है और लाइन को सुरक्षित रखता है।
उपयोग के क्षेत्र
तनाव इंसुलेटर का उपयोग निम्नलिखित स्थानों पर होता है:
- डेड-एंड (Dead-ends): जहाँ बिजली की लाइनें खत्म होती हैं।
- तीव्र मोड़ (Sharp Turns): जहाँ लाइन की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है।
- लंबी स्पैन (Long Spans): लंबी दूरी वाली लाइनों में, जहाँ कंडक्टर का भार और तनाव बढ़ जाता है।
- नदी और सड़क पार करने वाली लाइनें (River and Road Crossings): ऐसे स्थानों पर जहाँ अतिरिक्त सुरक्षा और यांत्रिक शक्ति की आवश्यकता होती है।
शैकल इंसुलेटर (Shackle Insulator) का उपयोग निम्न वोल्टेज (low voltage) वितरण लाइनों (distribution lines) में किया जाता है। इसे स्पूल इंसुलेटर के नाम से भी जाना जाता है।
संरचना और कार्यप्रणाली
शैकल इंसुलेटर की संरचना और कार्यप्रणाली को नीचे समझाया गया है:
संरचना: यह आमतौर पर चीनी मिट्टी (porcelain) का बना होता है और इसमें एक या दो खांचे (grooves) होते हैं। यह बेलनाकार या अंडाकार (cylindrical or oval) आकार का होता है।
स्थापना: इसे एक बोल्ट या शैकल (shackle) की मदद से पोल या क्रॉस आर्म से जोड़ा जाता है। कंडक्टर को सीधे इंसुलेटर के खांचे में रखा जाता है और फिर बांधने वाले तार (binding wire) से सुरक्षित किया जाता है।
कार्यप्रणाली: शैकल इंसुलेटर का मुख्य कार्य कंडक्टर को सीधे सहारा देना है, खासकर जहाँ लाइनें मुड़ती हैं (टर्निंग पॉइंट) या जहाँ वे समाप्त होती हैं (डेड-एंड)। ये इंसुलेटर क्षैतिज या लंबवत दोनों तरह से स्थापित किए जा सकते हैं।
उपयोग
- निम्न वोल्टेज वितरण: शैकल इंसुलेटर का उपयोग 11 kV से कम वोल्टेज वाली वितरण लाइनों में किया जाता है।
- मोड़ और डेड-एंड: इन्हें मुख्य रूप से स्ट्रीट लाइटिंग पोल, या ऐसे स्थानों पर उपयोग किया जाता है जहाँ कम वोल्टेज वाली लाइनों को मोड़ना होता है।
- टेंशन स्ट्रिंग: इन्हें छोटी टेंशन स्ट्रिंग (tension string) के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
शैकल इंसुलेटर की तुलना में पिन और निलंबन इंसुलेटर का उपयोग उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों में किया जाता है, जबकि शैकल इंसुलेटर का उपयोग कम वोल्टेज वितरण लाइनों के लिए होता है।
निवास या स्टे इंसुलेटर (Stay Insulator), जिसे एग इंसुलेटर (Egg Insulator) भी कहा जाता है, एक विशेष प्रकार का इंसुलेटर है जिसका उपयोग ओवरहेड पावर लाइनों में यांत्रिक सहारा प्रदान करने के लिए किया जाता है।
संरचना और कार्यप्रणाली
- संरचना: यह आमतौर पर पोर्सिलेन (चीनी मिट्टी) का बना होता है और इसका आकार अंडाकार या दिल (heart) के आकार का होता है। इसके बीच में एक छेद होता है जिससे स्टे वायर (stay wire) या गार्ड वायर (guard wire) को गुजारा जाता है।
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कार्यप्रणाली:
- यांत्रिक सहारा: जब ओवरहेड पावर लाइनें किसी मोड़ पर या डेड-एंड पर होती हैं, तो खंभों पर बहुत अधिक तनाव होता है। इस तनाव को संतुलित करने और खंभों को सीधा रखने के लिए एक स्टे वायर (stay wire) या गार्ड वायर का उपयोग किया जाता है।
- विद्युत इन्सुलेशन: स्टे वायर को जमीन या खंभे के निचले हिस्से में गाड़ा जाता है। स्टे इंसुलेटर का मुख्य कार्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी लीकेज करंट (leakage current) की स्थिति में बिजली का प्रवाह स्टे वायर से होकर जमीन में न जाए।
- यह बिजली के खंभे और स्टे वायर के बीच एक इन्सुलेशन प्रदान करता है, जिससे करंट को जमीन में जाने से रोका जा सके।
- स्थापना: स्टे इंसुलेटर को जमीन से लगभग 3 मीटर (10 फीट) की ऊंचाई पर स्टे वायर के बीच में लगाया जाता है।
उपयोग
- स्टे इंसुलेटर का उपयोग मुख्य रूप से ओवरहेड बिजली के खंभों को सहारा देने वाले स्टे वायर या गार्ड वायर में किया जाता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि यदि बिजली का तार टूटकर स्टे वायर पर गिर जाए, तो करंट जमीन में न बहे, जिससे लोगों को बिजली का झटका लगने का खतरा न रहे।
संक्षेप में,
स्टे इंसुलेटर का उपयोग सुरक्षा के उद्देश्य से किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि बिजली का प्रवाह खंभे से स्टे वायर और फिर जमीन तक न पहुंचे।
पोस्ट-प्रकार के इंसुलेटर (Post-type Insulator) चीनी मिट्टी (porcelain) या पॉलीमर से बने होते हैं और इनका उपयोग सबस्टेशनों (substations) और उच्च वोल्टेज वाली बिजली लाइनों पर किया जाता है। ये पिन-प्रकार के इंसुलेटर का एक उन्नत रूप हैं।
संरचना
पोस्ट-इंसुलेटर की संरचना एक स्तंभ या खंभे (post or column) के समान होती है। इसमें एक ठोस या खोखली बॉडी होती है और इस पर कई छतरीनुमा स्कर्ट (skirts) होती हैं। इन स्कर्टों की संख्या वोल्टेज स्तर के आधार पर भिन्न हो सकती है।
- बॉडी: इंसुलेटर की बॉडी पर खांचे (grooves) नहीं होते। कंडक्टर को एक क्लैंप (clamp) या कैप (cap) की मदद से इंसुलेटर के शीर्ष पर जोड़ा जाता है।
- बेस और कैप: इंसुलेटर के नीचे एक धातु का बेस होता है जो इसे पोल या क्रॉस आर्म से जोड़ता है। ऊपर एक धातु की कैप होती है जो कंडक्टर को सहारा देती है।
कार्यप्रणाली और उपयोग
पोस्ट-इंसुलेटर का उपयोग मुख्य रूप से दो उद्देश्यों के लिए किया जाता है:
- यांत्रिक शक्ति: पोस्ट-इंसुलेटर की मजबूत संरचना इसे बहुत अधिक यांत्रिक दबाव और तनाव (stress) सहन करने में सक्षम बनाती है। यह हवा, बर्फ और भूस्खलन जैसे बाहरी दबावों को झेल सकता है।
- विद्युत इन्सुलेशन: यह उच्च वोल्टेज के लिए प्रभावी इन्सुलेशन प्रदान करता है। इसकी सतह पर मौजूद स्कर्ट वर्षा के पानी को प्रभावी ढंग से हटाती हैं, जिससे लीकेज करंट का मार्ग बढ़ जाता है और इंसुलेटर की सतह सूखी रहती है।
उपयोग:
- सबस्टेशन (Substations): पोस्ट इंसुलेटर का व्यापक रूप से सबस्टेशन में बसबार (busbars) को सहारा देने के लिए उपयोग किया जाता है।
- ट्रांसमिशन लाइनें: इनका उपयोग उच्च वोल्टेज वाली बिजली लाइनों पर भी किया जाता है, खासकर वहाँ जहाँ अधिक यांत्रिक स्थिरता की आवश्यकता होती है।
पोस्ट-इंसुलेटर पिन-प्रकार के इंसुलेटर की तुलना में अधिक मजबूत और यांत्रिक रूप से स्थिर होते हैं। इस कारण से इनका उपयोग उच्च वोल्टेज और उच्च यांत्रिक तनाव वाले स्थानों पर किया जाता है।
पिन और निलंबन प्रकार के इंसुलेटर के बीच प्रमुख अंतर उनके उपयोग, वोल्टेज क्षमता और संरचना में निहित हैं।
पिन प्रकार के इंसुलेटर (Pin Type Insulators)
संरचना:
- यह एक एकल ठोस भाग से बना होता है, जिसमें शीर्ष पर कंडक्टर को रखने के लिए एक खांचा होता है।
- यह सीधे पोल के क्रॉसआर्म पर स्थापित होता है।
उपयोग और क्षमता:
- इसका उपयोग कम वोल्टेज वितरण लाइनों के लिए किया जाता है।
- यह आमतौर पर 33 kV तक के वोल्टेज स्तरों के लिए उपयुक्त होता है।
- अधिक वोल्टेज पर, इसका आकार और वजन बहुत अधिक हो जाता है, जिससे यह अव्यावहारिक और महंगा हो जाता है।
कार्यप्रणाली:
- यह कंडक्टर को लंबवत रूप से पोल पर सहारा देता है।
- इसमें अधिक यांत्रिक शक्ति नहीं होती है।
निलंबन प्रकार के इंसुलेटर (Suspension Type Insulators)
संरचना:
- यह कई इंसुलेटर डिस्क को एक श्रृंखला (string) में जोड़कर बनाया जाता है।
- प्रत्येक डिस्क एक निश्चित वोल्टेज (लगभग 11 kV) को झेल सकती है।
- यह टावर के क्रॉसआर्म से लंबवत रूप से निलंबित (suspended) होता है।
उपयोग और क्षमता:
- इसका उपयोग उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों के लिए किया जाता है।
- यह 33 kV से ऊपर के वोल्टेज स्तरों के लिए सबसे उपयुक्त है।
- इसमें डिस्क की संख्या बढ़ाकर किसी भी उच्च वोल्टेज स्तर के लिए इसे अनुकूलित किया जा सकता है।
कार्यप्रणाली:
- यह कंडक्टर को टावर से निलंबित करता है, जिससे हवा के कारण होने वाले झूलों को संभालने में लचीलापन मिलता है।
- इसकी यांत्रिक शक्ति बहुत अधिक होती है और यह अत्यधिक तनाव को झेल सकता है।
तनाव (strain) और ठहराव (stay) इन्सुलेटर दोनों ही विद्युत लाइनों में उपयोग होने वाले उपकरण हैं जो करंट को प्रवाह होने से रोकते हैं, लेकिन इनके उपयोग और उद्देश्य में महत्वपूर्ण अंतर हैं।
तनाव इन्सुलेटर (Strain Insulator)
तनाव इन्सुलेटर का उपयोग वहाँ किया जाता है जहाँ तारों पर उच्च यांत्रिक तनाव होता है, जैसे कि तीखे मोड़ों, लाइनों के अंत या नदी पार करने जैसे स्थानों पर।
- उद्देश्य: ये इन्सुलेटर कंडक्टरों को खींचने वाले बल (tensile force) को सहने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। वे तारों को एक साथ कसकर पकड़े रहते हैं ताकि वे आपस में न टकराएं।
- संरचना: आमतौर पर, ये डिस्क इन्सुलेटर की एक श्रृंखला होती हैं जिन्हें क्षैतिज रूप से लगाया जाता है।
ठहराव इन्सुलेटर (Stay Insulator)
ठहराव इन्सुलेटर, जिसे आमतौर पर एग इन्सुलेटर (egg insulator) भी कहा जाता है, का उपयोग स्टे वायर या सपोर्ट वायर में किया जाता है जो पोल को सहारा देते हैं।
- उद्देश्य: इनका मुख्य उद्देश्य पोल पर करंट के प्रवाह को रोकना है। यदि किसी कारणवश पोल पर करंट आ जाता है, तो यह इन्सुलेटर उस करंट को जमीन तक पहुँचने से रोकता है, जिससे सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
- संरचना: ये आमतौर पर अंडाकार (egg-shaped) होते हैं और स्टे वायर के बीच में लगे होते हैं।
EHV (एक्स्ट्रा हाई वोल्टेज) लाइनों के लिए सस्पेंशन इंसुलेटर को कई कारणों से प्राथमिकता दी जाती है:
उच्च वोल्टेज को संभालना (Handling High Voltage)
पिन इंसुलेटर के विपरीत, जिन्हें उच्च वोल्टेज के लिए बहुत बड़ा और भारी बनाना पड़ता है, सस्पेंशन इंसुलेटर अलग-अलग डिस्क इकाइयों से बने होते हैं। प्रत्येक डिस्क लगभग 11 kV का वोल्टेज झेल सकती है। इसलिए, EHV लाइनों के लिए आवश्यक इंसुलेशन प्रदान करने के लिए, इन डिस्क को श्रृंखला (series) में जोड़ा जाता है। इससे किसी भी वोल्टेज स्तर के लिए आवश्यक इन्सुलेशन प्राप्त करना आसान हो जाता है, जिससे यह उच्च वोल्टेज के लिए अधिक कुशल और लचीला विकल्प बन जाता है।
यांत्रिक लचीलापन (Mechanical Flexibility)
सस्पेंशन इंसुलेटर में कंडक्टर एक लचीली स्ट्रिंग पर निलंबित (suspended) होता है। यह कंडक्टर को हवा के कारण होने वाले स्विंग को झेलने की अनुमति देता है। यह लचीलापन मैकेनिकल तनाव को कम करता है, जिससे कंडक्टर पर दबाव कम होता है।
रखरखाव में आसानी (Easy to Maintain)
यदि सस्पेंशन इंसुलेटर की एक डिस्क क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो पूरी स्ट्रिंग को बदलने के बजाय केवल उस एक डिस्क को बदला जा सकता है। इससे रखरखाव की लागत और समय दोनों कम हो जाते हैं। इसके विपरीत, पिन इंसुलेटर जैसे एकल-इकाई इंसुलेटर को पूरी तरह से बदलना पड़ता है, जो अधिक महंगा और कठिन हो सकता है।
कम लागत (Cost-effective)
पिन इंसुलेटर की तुलना में, जो 33 kV से अधिक वोल्टेज के लिए बहुत महंगे हो जाते हैं, सस्पेंशन इंसुलेटर का उपयोग अधिक किफायती होता है। वे उच्च वोल्टेज के लिए लागत-प्रभावी समाधान प्रदान करते हैं।
इन्सुलेटर बनाने के लिए कई सामग्रियों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से प्रमुख हैं चीनी मिट्टी, कांच, और मिश्रित सामग्री (पॉलीमर)। प्रत्येक सामग्री के अपने विशिष्ट गुण और उपयोग होते हैं।
चीनी मिट्टी (Porcelain)
चीनी मिट्टी इन्सुलेटर के लिए सबसे पारंपरिक और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली सामग्री है।
- संरचना: यह मिट्टी (clay), फेल्डस्पार (feldspar), और क्वार्ट्ज (quartz) के मिश्रण से बनती है। इसे उच्च तापमान पर बेक किया जाता है ताकि यह एक गैर-छिद्रपूर्ण और मजबूत सिरेमिक सामग्री बन जाए।
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विशेषताएँ:
- इसमें उच्च ढांकता हुआ (dielectric) ताकत होती है, यानी यह बिजली को अच्छी तरह रोकती है।
- यह कठोर और टिकाऊ होती है।
- पोर्सिलेन इन्सुलेटरों को ग्लेज्ड (glazed) किया जाता है ताकि नमी को सोखने से रोका जा सके।
- उपयोग: इसका उपयोग निम्न, मध्यम और उच्च वोल्टेज लाइनों के लिए पिन, सस्पेंशन और स्ट्रेन इन्सुलेटर बनाने में होता है।
कांच (Glass)
कठोर कांच (tempered glass) का उपयोग भी इन्सुलेटर बनाने के लिए किया जाता है।
- संरचना: यह क्वार्ट्ज रेत, सोडा ऐश, चूना पत्थर, और अन्य सामग्रियों से मिलकर बनता है।
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विशेषताएँ:
- कांच में चीनी मिट्टी की तुलना में बेहतर ढांकता हुआ ताकत होती है।
- यह पारदर्शी होता है, जिससे दोषों को आसानी से देखा जा सकता है।
- यह नमी को बिल्कुल भी अवशोषित नहीं करता।
- उपयोग: यह मुख्य रूप से सस्पेंशन डिस्क इन्सुलेटरों के लिए उपयोग किया जाता है।
मिश्रित सामग्री (Composite/Polymer)
यह इन्सुलेटरों की एक आधुनिक श्रेणी है और इसे अक्सर पॉलिमर इन्सुलेटर भी कहा जाता है।
- संरचना: इसमें एक फाइबरग्लास रॉड कोर होता है जिस पर सिलिकॉन रबर या ईपीआर (एथिलीन प्रोपलीन रबर) जैसी पॉलिमर सामग्री की बाहरी परत चढ़ी होती है।
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विशेषताएँ:
- हल्का: ये चीनी मिट्टी या कांच के इन्सुलेटरों की तुलना में बहुत हल्के होते हैं, जिससे परिवहन और स्थापना आसान हो जाती है।
- यांत्रिक शक्ति: इनका फाइबरग्लास कोर उच्च यांत्रिक तनाव को झेल सकता है।
- जल-विरोधी (Hydrophobic): इनकी सिलिकॉन सतह पानी को जमा होने से रोकती है, जिससे रिसाव करंट कम होता है।
- टूटना-विरोधी: ये चीनी मिट्टी की तरह नाजुक नहीं होते हैं।
- उपयोग: इनका उपयोग सभी वोल्टेज स्तरों, विशेषकर उच्च वोल्टेज (HV) और एक्स्ट्रा हाई वोल्टेज (EHV) लाइनों में तेजी से बढ़ रहा है।
चीनी मिट्टी का व्यापक रूप से इंसुलेटर बनाने के लिए उपयोग किया जाता है क्योंकि इसमें कई उत्कृष्ट गुण होते हैं:
- उच्च विद्युत प्रतिरोध और ढांकता हुआ शक्ति: चीनी मिट्टी एक उत्कृष्ट विद्युत अवरोधक है। इसका उच्च विद्युत प्रतिरोध और ढांकता हुआ (dielectric) शक्ति इसे बिना टूटे या खराब हुए उच्च वोल्टेज का सामना करने में सक्षम बनाती है, जिससे करंट को पोल या टावर तक पहुंचने से रोका जा सकता है।
- यांत्रिक शक्ति और कठोरता: चीनी मिट्टी बहुत मजबूत और टिकाऊ होती है। यह कंडक्टरों के वजन, हवा के दबाव और अन्य यांत्रिक तनावों को झेल सकती है। यह कठोर सामग्री टूटने या मुड़ने के प्रति प्रतिरोधी है, जो इसे लंबे समय तक चलने वाला बनाती है।
- लागत-प्रभावशीलता: अन्य सामग्रियों, जैसे कि पॉलिमर, की तुलना में चीनी मिट्टी के इन्सुलेटर का निर्माण काफी सरल और सस्ता होता है, खासकर जब उच्च वोल्टेज के लिए आवश्यक बड़े आकार के इन्सुलेटर बनाने की बात आती है।
- रासायनिक स्थिरता: यह रसायनों और संक्षारण के प्रति प्रतिरोधी होती है। यह गुण इसे कठोर बाहरी वातावरण में उपयोग के लिए उपयुक्त बनाता है।
- गैर-छिद्रपूर्ण सतह: चीनी मिट्टी के इन्सुलेटरों को ग्लेज्ड (glazed) किया जाता है, जिससे उनकी सतह चिकनी और गैर-छिद्रपूर्ण हो जाती है। यह नमी (पानी) को सतह पर जमा होने से रोकता है, जो करंट रिसाव को कम करने में मदद करता है और इन्सुलेशन की अखंडता बनाए रखता है।
चीनी मिट्टी और कांच दोनों का उपयोग इंसुलेटर बनाने के लिए किया जाता है, लेकिन उनके गुणों और प्रदर्शन में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं।
चीनी मिट्टी (Porcelain) इन्सुलेटर
- मजबूती: चीनी मिट्टी के इन्सुलेटर में उच्च यांत्रिक शक्ति और कठोरता होती है, जिससे वे भारी भार और भौतिक तनाव का सामना कर सकते हैं।
- रखरखाव: चीनी मिट्टी के इन्सुलेटरों में दोष या दरारें तुरंत दिखाई नहीं देती हैं, इसलिए उनका निरीक्षण करने के लिए विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है। समय के साथ, वे खराब हो सकते हैं, जिससे उनका इन्सुलेशन प्रदर्शन कम हो सकता है।
- लागत: ये कांच की तुलना में थोड़े कम महंगे होते हैं और इनका उत्पादन करना आसान होता है।
- उपयोग: इनका उपयोग व्यापक रूप से सभी वोल्टेज स्तरों के लिए किया जाता है, और ये दशकों से बिजली उद्योग का एक प्रमुख हिस्सा रहे हैं।
कांच (Glass) इन्सुलेटर
- मजबूती: कठोर कांच (tempered glass) के इन्सुलेटर में चीनी मिट्टी की तुलना में बेहतर यांत्रिक और ढांकता हुआ (dielectric) ताकत होती है।
- रखरखाव: कांच का एक बड़ा फायदा यह है कि यदि कोई डिस्क खराब हो जाती है या उसमें दरार आ जाती है, तो यह तुरंत टूटकर गिर जाती है। इससे दोष का पता लगाना और उसे बदलना बहुत आसान हो जाता है, जबकि चीनी मिट्टी में दोष का पता लगाना मुश्किल होता है।
- प्रदर्शन: कांच के इन्सुलेटर पारदर्शी होते हैं, जिससे उनके अंदर के दोषों को आसानी से देखा जा सकता है। उनमें उम्र बढ़ने की दर धीमी होती है और वे प्रदूषण से कम प्रभावित होते हैं।
- लागत: ये चीनी मिट्टी की तुलना में थोड़े अधिक महंगे हो सकते हैं, लेकिन उनके कम रखरखाव और लंबी उम्र के कारण कुल लागत कम हो सकती है।
- उपयोग: इनका उपयोग मुख्य रूप से सस्पेंशन डिस्क इन्सुलेटरों के लिए किया जाता है।
संक्षेप में,
चीनी मिट्टी एक मजबूत और समय-परीक्षित सामग्री है जो विश्वसनीय प्रदर्शन देती है, जबकि कांच अपनी पारदर्शिता, आसान दोष पहचान और बेहतर ढांकता हुआ गुणों के कारण आधुनिक अनुप्रयोगों के लिए एक लोकप्रिय विकल्प बन रहा है।
कम्पोजिट मटेरियल,
चीनी मिट्टी (सिरेमिक) और कांच की तुलना में कई लाभ प्रदान करते हैं। कम्पोजिट दो या दो से अधिक भिन्न सामग्रियों को मिलाकर बनाए जाते हैं ताकि एक नई सामग्री का निर्माण हो सके जिसके गुण मूल सामग्रियों से बेहतर हों।
कम्पोजिट के प्रमुख लाभ
- प्रभाव प्रतिरोध: कम्पोजिट में चीनी मिट्टी और कांच की तुलना में अधिक प्रभाव प्रतिरोध होता है। ये बिना टूटे या क्षतिग्रस्त हुए झटकों और टकरावों को सहन कर सकते हैं। यह गुण उन्हें उन अनुप्रयोगों के लिए महत्वपूर्ण बनाता है जहाँ टक्करों का जोखिम होता है, जैसे कि ऑटोमोबाइल और एयरोस्पेस उद्योग में।
- हल्कापन और मज़बूती: कम्पोजिट अपनी उच्च मज़बूती के साथ-साथ बहुत हल्के होते हैं। यह गुण उन्हें उन क्षेत्रों में उपयोगी बनाता है जहाँ वजन कम करना ज़रूरी होता है, जैसे कि विमानों, जहाजों और खेल के सामानों में।
- बहुमुखी प्रतिभा और डिजाइन लचीलापन: कम्पोजिट को विभिन्न आकारों और जटिल आकृतियों में ढाला जा सकता है, जो चीनी मिट्टी और कांच से ज़्यादा आसान होता है। यह डिजाइनरों को अधिक रचनात्मक स्वतंत्रता देता है।
- जंग और रासायनिक प्रतिरोध: कम्पोजिट, खासकर पॉलिमर-आधारित कम्पोजिट, में रासायनिक जंग और क्षरण के प्रति उत्कृष्ट प्रतिरोध होता है। यह उन्हें उन वातावरणों में उपयोगी बनाता है जहाँ अम्लीय या संक्षारक पदार्थ मौजूद होते हैं।
- स्थायित्व: कम्पोजिट में उच्च स्थायित्व होता है और वे लंबे समय तक चलते हैं। वे मौसम और यूवी किरणों के प्रति प्रतिरोधी होते हैं, जिससे उनका रंग और संरचना प्रभावित नहीं होती।
- ऊष्मीय स्थिरता: कुछ कम्पोजिट उच्च तापमान को सहन कर सकते हैं और ऊष्मीय इन्सुलेशन (thermal insulation) प्रदान करते हैं, जो उन्हें विशिष्ट औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त बनाता है।
चीनी मिट्टी के इंसुलेटर,
जो बिजली के खंभों पर इस्तेमाल होते हैं, एक कठोर और टिकाऊ सामग्री से बनाए जाते हैं। इनका निर्माण एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें कई चरण शामिल होते हैं। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि इंसुलेटर उच्च वोल्टेज और कठोर मौसम की स्थितियों का सामना कर सकें।
कच्चे माल की तैयारी
सबसे पहले, कच्चे माल जैसे कि चीनी मिट्टी (काओलिन), फेल्सपार, और क्वार्ट्ज को एक विशिष्ट अनुपात में मिलाया जाता है। काओलिन (ball clay) ताकत और लचीलापन प्रदान करता है, जबकि फेल्सपार एक फ्लक्स (द्रव) के रूप में कार्य करता है जो फायरिंग प्रक्रिया में मदद करता है। क्वार्ट्ज और एल्यूमिना जैसी सामग्री यांत्रिक शक्ति को बढ़ाती हैं। इन सभी को बारीक पीसकर पानी के साथ एक घोल (स्लरी) बनाया जाता है।
ढलाई (Molding) और आकार देना (Shaping)
घोल को फिल्टर प्रेस में डाला जाता है ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाए और एक गाढ़ा केक जैसा पदार्थ बचे। इस केक को फिर एक वैक्यूम एक्सट्रूडर (de-airing pug mill) में डाला जाता है, जो हवा को बाहर निकालता है और इसे एक ठोस और प्लास्टिक जैसी स्थिति में लाता है, जिसे पग (pug) कहते हैं। इस पग को फिर मशीनों का उपयोग करके वांछित आकार में ढाला जाता है।
सुखाना (Drying) और ग्लेजिंग (Glazing)
इंसुलेटर को ढालने के बाद, उन्हें विशेष जलवायु-नियंत्रित कमरों में सुखाया जाता है ताकि उनकी नमी पूरी तरह से निकल जाए। इसके बाद, उन्हें एक ग्लेजिंग प्रक्रिया से गुजारा जाता है। ग्लेजिंग एक चिकनी और चमकदार परत होती है जो इंसुलेटर की सतह पर लगाई जाती है। यह परत न केवल सौंदर्य बढ़ाती है, बल्कि नमी और गंदगी को भी सतह पर जमने से रोकती है, जिससे इंसुलेटर के विद्युत गुण बेहतर होते हैं।
फायरिंग (Firing)
ग्लेजिंग के बाद,
इंसुलेटर को एक भट्टी (kiln) में बहुत उच्च तापमान (आमतौर पर 1200°C से अधिक) पर पकाया जाता है। इस प्रक्रिया को फायरिंग कहते हैं। फायरिंग के दौरान, सामग्री में रासायनिक और भौतिक परिवर्तन होते हैं, जो इसे एक विट्रियस (कांच जैसा) और मजबूत चीनी मिट्टी में बदल देते हैं। यह चरण इंसुलेटर को उसकी आवश्यक विद्युत और यांत्रिक शक्ति प्रदान करता है।
असेंबली और परीक्षण
फायरिंग के बाद,
इंसुलेटर को ठंडा किया जाता है और उस पर धातु की फिटिंग (जैसे कैप और पिन) लगाई जाती हैं। ये फिटिंग सीमेंट या मोर्टार का उपयोग करके सुरक्षित रूप से जोड़ी जाती हैं। अंतिम चरण में, इंसुलेटर पर यांत्रिक और विद्युत परीक्षण किए जाते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे सभी सुरक्षा और प्रदर्शन मानकों को पूरा करते हैं। सफल परीक्षण के बाद, उन्हें पैकेज करके शिपिंग के लिए तैयार किया जाता है।
कांच के इंसुलेटर,
जो अक्सर बिजली की लाइनों पर इस्तेमाल होते हैं, एक कठोर और टिकाऊ सामग्री से बने होते हैं। इनका निर्माण एक स्वचालित और नियंत्रित प्रक्रिया है ताकि वे उच्च वोल्टेज और मौसम की कठोर परिस्थितियों का सामना कर सकें।
कच्चे माल की तैयारी
कांच के इंसुलेटर बनाने के लिए मुख्य कच्चे माल क्वार्ट्ज, रेत, सोडा ऐश, फेल्सपार और डोलोमाइट हैं। इन सामग्रियों को कंप्यूटर-नियंत्रित साइलो में संग्रहीत किया जाता है और एक सटीक संरचना सुनिश्चित करने के लिए मिलाया जाता है।
पिघलाना और आकार देना
मिश्रित कच्चे माल को एक भट्ठी में लगभग 1,400°C से 1,600°C तक के उच्च तापमान पर पिघलाया जाता है। पिघले हुए कांच को बुलबुले और अशुद्धियों को हटाने के लिए लगातार हिलाया जाता है। फिर, पिघले हुए कांच के एक सटीक मात्रा को पहले से गरम किए गए सांचों में डाला जाता है। सांचे एक घूमने वाली मशीन पर रखे जाते हैं, जो इंसुलेटर के बाहरी आकार को निर्धारित करते हैं। इसके बाद, एक हाइड्रोलिक प्रेसिंग सिस्टम से कांच को वांछित आकार में ढाला जाता है।
कठोर करना (Toughening)
इंसुलेटर को आकार देने के बाद, वे एक महत्वपूर्ण कठोर (toughening) प्रक्रिया से गुजरते हैं। इस प्रक्रिया में, गर्म कांच की सतह को तेजी से संपीड़ित हवा के जेट का उपयोग करके ठंडा किया जाता है, जबकि उसका अंदरूनी हिस्सा अभी भी गर्म होता है। जैसे-जैसे इंसुलेटर अंदर से ठंडा और सिकुड़ता है, सतह पर संपीड़न तनाव (compressive stresses) पैदा होता है, जिससे इसकी यांत्रिक और प्रभाव प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
असेंबली और गुणवत्ता नियंत्रण
कठोर करने के बाद,
इंसुलेटर पर धातु की फिटिंग (जैसे कैप और पिन) को सीमेंट या मोर्टार का उपयोग करके जोड़ा जाता है। अंत में, निर्मित इंसुलेटर की गुणवत्ता और प्रदर्शन मानकों को सुनिश्चित करने के लिए कठोर यांत्रिक और विद्युत परीक्षण किए जाते हैं।
पॉलिमर इंसुलेटर,
जिन्हें कंपोजिट इंसुलेटर भी कहते हैं, तीन मुख्य घटकों से मिलकर बनते हैं: एक कोर रॉड (core rod), एक हाउसिंग (housing), और मेटल एंड फिटिंग (metal end fittings)। इनकी निर्माण तकनीक पारंपरिक चीनी मिट्टी या कांच के इंसुलेटर से बहुत अलग है।
निर्माण प्रक्रिया के चरण
- कोर रॉड का निर्माण: * पॉलिमर इंसुलेटर का दिल फाइबर-ग्लास-रीइन्फोर्स्ड प्लास्टिक (FRP) रॉड होता है। यह रॉड मैकेनिकल शक्ति और विद्युत प्रतिरोध प्रदान करती है।
- यह रॉड पुलट्रूजन (pultrusion) नामक एक प्रक्रिया से बनाई जाती है, जहाँ ग्लास फाइबर को एपॉक्सी रेजिन से खींचा जाता है और फिर उसे कठोर किया जाता है।
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हाउसिंग का निर्माण: * हाउसिंग (शेड्स के साथ) आमतौर पर सिलिकॉन रबर या ईपीडीएम (EPDM) जैसे पॉलिमर सामग्री से बनी होती है।
- इसका मुख्य काम कोर रॉड को पर्यावरण, जैसे कि नमी, गंदगी, और यूवी किरणों से बचाना है।
- हाउसिंग को इंजेक्शन मोल्डिंग या एक्सट्रूज़न प्रक्रिया से बनाया जाता है, जहाँ पिघली हुई पॉलिमर सामग्री को एक मोल्ड में इंजेक्ट किया जाता है या एक साँचे के माध्यम से निकाला जाता है।
- असेंबली और क्रिम्पिंग: * कोर रॉड और हाउसिंग को आपस में जोड़ा जाता है। इसके बाद, इंसुलेटर के दोनों सिरों पर धातु की फिटिंग लगाई जाती है।
- ये फिटिंग आमतौर पर फोर्ज्ड स्टील या मैलेबल आयरन से बनी होती हैं और उन्हें कोर रॉड पर एक विशेष क्रिम्पिंग (crimping) प्रक्रिया द्वारा सुरक्षित रूप से दबाकर लगाया जाता है। यह प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि फिटिंग और रॉड के बीच एक मजबूत यांत्रिक बंधन बन जाए।
- अंत में, इंसुलेटर की गुणवत्ता और प्रदर्शन की जांच करने के लिए उस पर कई यांत्रिक और विद्युत परीक्षण किए जाते हैं।
सिरेमिक इंसुलेटर को चमकदार बनाने के लिए एक विशेष प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है जिसे ग्लेजिंग कहते हैं। इस प्रक्रिया में, चीनी मिट्टी के कच्चे इंसुलेटर की सतह पर एक तरल ग्लेज लगाया जाता है और फिर उसे बहुत उच्च तापमान पर भट्टी में पकाया जाता है।
ग्लेजिंग का उद्देश्य
ग्लेजिंग का प्राथमिक उद्देश्य इंसुलेटर की सतह को चिकना, गैर-छिद्रपूर्ण (non-porous) और जल-प्रतिरोधी (water-resistant) बनाना है। इसके कई महत्वपूर्ण फायदे हैं:
- सतह की सुरक्षा: ग्लेज की चिकनी सतह नमी, धूल, नमक और अन्य प्रदूषकों को जमा होने से रोकती है। यदि ये प्रदूषक जमा हो जाते हैं, तो वे इंसुलेटर की सतह पर एक प्रवाहकीय (conductive) परत बना सकते हैं, जिससे बिजली का रिसाव (leakage) हो सकता है या फ्लैशओवर (flashover) हो सकता है। चमकदार ग्लेज सतह को साफ रखना आसान बनाता है।
- विद्युत गुण: ग्लेज इंसुलेटर की ढांकता हुआ ताकत (dielectric strength) को बढ़ाता है, जिससे यह उच्च वोल्टेज को अधिक प्रभावी ढंग से रोक पाता है। यह बिजली के प्रवाह को अंदर जाने से रोकता है, जिससे यह एक उत्कृष्ट इन्सुलेटर बना रहता है।
- यांत्रिक मजबूती: ग्लेज एक प्रकार की कांच जैसी परत होती है, जो चीनी मिट्टी के शरीर पर एक सुरक्षात्मक परत के रूप में काम करती है। यह इंसुलेटर की यांत्रिक मजबूती को बढ़ाती है और इसे खरोंच और टूट-फूट से बचाती है।
- सौंदर्य: ग्लेज लगाने से इंसुलेटर को एक चमकदार और आकर्षक रूप मिलता है, जो अक्सर भूरा या सफेद रंग का होता है।
इस प्रकार,
ग्लेजिंग एक आवश्यक प्रक्रिया है जो सिरेमिक इंसुलेटर को न केवल चमकदार बनाती है, बल्कि इसके प्रदर्शन और स्थायित्व को भी बढ़ाती है, जिससे वे बिजली ट्रांसमिशन लाइनों के लिए विश्वसनीय और सुरक्षित बन जाते हैं।
पॉलिमर इंसुलेटर,
चीनी मिट्टी (porcelain) और कांच के इंसुलेटर की तुलना में बहुत हल्के होते हैं क्योंकि उनकी संरचना और बनाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री अलग होती है।
हल्केपन के कारण
- सामग्री का घनत्व: पॉलिमर इंसुलेटर मुख्य रूप से फाइबर-ग्लास-रीइन्फोर्स्ड प्लास्टिक (FRP) रॉड और सिलिकॉन रबर या ईपीडीएम (EPDM) जैसी हल्की पॉलिमर सामग्री से बने होते हैं। इन सामग्रियों का घनत्व चीनी मिट्टी या कांच की तुलना में बहुत कम होता है।
- ठोस बनाम खोखला: पारंपरिक चीनी मिट्टी के इंसुलेटर अक्सर ठोस और भारी होते हैं। इसके विपरीत, पॉलिमर इंसुलेटर में एक हल्की FRP कोर रॉड होती है, जिसके चारों ओर पतली पॉलिमर हाउसिंग होती है।
- निर्माण प्रक्रिया: पॉलिमर इंसुलेटर के निर्माण में कम सामग्री और कम ऊर्जा का उपयोग होता है, जिससे वे हल्के बनते हैं।
हल्केपन के लाभ
- आसान परिवहन और स्थापना: हल्के होने के कारण, इन्हें आसानी से और कम श्रम में एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है और स्थापित किया जा सकता है।
- टावरों पर कम भार: ये इंसुलेटर बिजली के खंभों और टावरों पर कम यांत्रिक भार डालते हैं, जिससे इन संरचनाओं की आवश्यकता कम हो जाती है और लागत में भी कमी आती है।
- सुरक्षा: हल्के होने के कारण इन्हें संभालना और स्थापित करना अधिक सुरक्षित होता है, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा कम हो जाता है।
इन्सुलेटरों की यांत्रिक शक्ति एक महत्वपूर्ण विशेषता है क्योंकि उन्हें बिजली की लाइनों को सहारा देना और उन्हें खींचने वाले तनाव भार (tensile load) और वायु भार (wind load) का सामना करना पड़ता है। इंसुलेटरों के लिए कई यांत्रिक शक्ति आवश्यकताएं होती हैं:
तन्यता शक्ति (Tensile Strength)
इंसुलेटर को तार खींचने वाले बल का सामना करना पड़ता है। यह शक्ति इन्सुलेटर को टूटने से रोकती है जब तार का तनाव बढ़ता है, खासकर हवा या बर्फ के भार के कारण।
- सस्पेंशन इंसुलेटर (Suspension Insulators): ये तार को सीधा लटकाने के लिए उपयोग किए जाते हैं, और इन्हें तार के वजन और उस पर पड़ने वाले तनाव का सामना करना पड़ता है।
संपीड़न शक्ति (Compressive Strength)
जब इंसुलेटर को सीधा खड़ा करके टावर पर लगाया जाता है, तो उन्हें ऊपर से आने वाले भार को सहन करना पड़ता है। पोस्ट टाइप इंसुलेटर (Post-type insulators) इस तरह के भार को सहन करने के लिए बनाए जाते हैं।
केंटीलीवर शक्ति (Cantilever Strength)
यह शक्ति तब महत्वपूर्ण होती है जब इंसुलेटर पर लंबवत बल (horizontal force) पड़ता है, जैसे कि तेज हवा के कारण। इस प्रकार का बल इन्सुलेटर को मोड़ सकता है। यह शक्ति पोस्ट इंसुलेटरों के लिए महत्वपूर्ण है।
मरोड़ शक्ति (Torsional Strength)
यह शक्ति इंसुलेटर को घूमने वाले या मरोड़ने वाले बलों का सामना करने में मदद करती है, जो तारों के तनाव या इंस्टालेशन के समय हो सकते हैं।
अन्य कारक
- सुरक्षा कारक (Factor of Safety): इंसुलेटरों को उनकी अधिकतम रेटेड शक्ति से 2 से 3 गुना अधिक यांत्रिक शक्ति के साथ डिज़ाइन किया जाता है, ताकि वे आपातकालीन स्थितियों जैसे कि अचानक तूफान या बर्फबारी में भी सुरक्षित रहें।
- पर्यावरण प्रतिरोध: उन्हें तापमान में बदलाव, नमी और यूवी किरणों के कारण होने वाली क्षति से भी प्रतिरोधी होना चाहिए।
ये सभी यांत्रिक आवश्यकताएं सुनिश्चित करती हैं कि इंसुलेटर बिना टूटे और बिना विफल हुए लंबे समय तक सेवा दे सकें, जिससे बिजली की आपूर्ति में निरंतरता बनी रहे।
इन्सुलेटर दो मुख्य तरीकों से काम करते हैं: यांत्रिक समर्थन प्रदान करके और विद्युत अलगाव सुनिश्चित करके। ये दोनों कार्य एक साथ मिलकर बिजली के ट्रांसमिशन सिस्टम की सुरक्षा और विश्वसनीयता बनाए रखते हैं।
यांत्रिक समर्थन (Mechanical Support)
इन्सुलेटर भौतिक रूप से बिजली के तारों को टावरों या खंभों से अलग रखते हैं। वे तार के वजन, हवा के दबाव, और बर्फ के भार जैसे बाहरी बलों का सामना करते हैं।
- लोड वहन क्षमता: इन्सुलेटर को विशेष रूप से मजबूत बनाया जाता है ताकि वे तार पर पड़ने वाले सभी यांत्रिक तनावों को बिना टूटे सहन कर सकें।
- स्थायित्व: वे मौसम की चरम स्थितियों, जैसे कि भारी हवा, बारिश, बर्फबारी और तापमान में बड़े बदलावों के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।
विद्युत अलगाव (Electrical Isolation)
इन्सुलेटर अत्यधिक प्रतिरोधी (resistive) सामग्री से बने होते हैं, जैसे कि सिरेमिक, कांच या पॉलिमर। ये सामग्री बिजली के लिए खराब चालक होती हैं, जिससे वे विद्युत धारा को अपने माध्यम से प्रवाहित होने से रोकती हैं।
- अवांछित प्रवाह को रोकना: इन्सुलेटर का मुख्य काम बिजली के तारों और खंभों या टावरों के बीच एक अवरोध पैदा करना है। यह सुनिश्चित करता है कि बिजली का प्रवाह केवल तारों में ही रहे और टावर में न जाए, जिससे शॉर्ट सर्किट और बिजली के झटके का खतरा खत्म हो जाता है।
- उच्च ढांकता हुआ शक्ति (High Dielectric Strength): इन्सुलेटर में बहुत अधिक ढांकता हुआ शक्ति होती है, जिसका अर्थ है कि वे उच्च वोल्टेज को बिना टूटे और बिना बिजली के रिसाव के सहन कर सकते हैं। यह गुण उन्हें बिजली ट्रांसमिशन लाइनों के लिए आवश्यक बनाता है।
- सतह डिजाइन: कुछ इंसुलेटरों की सतह पर विशेष आकार की परतें (sheds) होती हैं। ये परतें सतह की दूरी को बढ़ाती हैं, जिससे नमी और धूल के जमा होने पर भी बिजली का रिसाव कम हो जाता है।
पिन प्रकार के इन्सुलेटर का निर्माण एक बहु-चरणीय प्रक्रिया है जिसमें उच्च गुणवत्ता वाली चीनी मिट्टी का उपयोग किया जाता है ताकि वे विद्युत और यांत्रिक दोनों आवश्यकताओं को पूरा कर सकें। ये इन्सुलेटर अक्सर कम और मध्यम वोल्टेज के लिए उपयोग किए जाते हैं।
निर्माण प्रक्रिया
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कच्चे माल की तैयारी:
- पिन इन्सुलेटर के निर्माण के लिए मुख्य कच्चे माल काओलिन, क्वार्ट्ज, और फेल्सपार होते हैं।
- इन सामग्रियों को सही अनुपात में मिलाकर एक महीन पाउडर बनाया जाता है, जिसे पानी के साथ मिलाकर एक गाढ़ा घोल (slurry) बनाया जाता है।
- यह घोल फिर फिल्टर प्रेस से गुजारा जाता है ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाए और एक गाढ़ा, केक जैसा पदार्थ बचे।
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ढलाई और आकार देना:
- केक जैसे पदार्थ को एक वैक्यूम एक्सट्रूडर (de-airing pug mill) में डाला जाता है। यह मशीन हवा को बाहर निकालकर सामग्री को एक ठोस और चिकनी अवस्था में लाती है, जिसे पग कहते हैं।
- इस पग को फिर स्पिनिंग मशीनों का उपयोग करके वांछित पिन इंसुलेटर के आकार में ढाला जाता है। इन मशीनों में विशेष सांचे होते हैं जो इंसुलेटर के विशिष्ट आकार, जिसमें शीर्ष पर खांचे और निचली सतह पर थ्रेडिंग होती है, को बनाते हैं।
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सुखाना और ग्लेजिंग:
- ढलने के बाद, इन्सुलेटरों को नियंत्रित वातावरण में सुखाया जाता है ताकि नमी पूरी तरह से निकल जाए और संकुचन (shrinkage) एकसमान हो।
- सूखने के बाद, इन्सुलेटर पर एक ग्लेज (कांच जैसी परत) लगाया जाता है। यह परत इन्सुलेटर को चिकना, गैर-छिद्रपूर्ण और जल-प्रतिरोधी बनाती है, जिससे इसकी विद्युत और यांत्रिक शक्ति बढ़ जाती है।
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फायरिंग और असेंबली:
- ग्लेज लगे इन्सुलेटरों को एक भट्टी (kiln) में 1200°C से अधिक के तापमान पर पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में, सामग्री एक मजबूत और गैर-छिद्रपूर्ण सिरेमिक में बदल जाती है।
- फायरिंग के बाद, इन्सुलेटर के निचले हिस्से में एक धातु का पिन या थ्रेडेड सॉकेट लगाया जाता है। इसे अक्सर सीमेंट या मोर्टार का उपयोग करके सुरक्षित किया जाता है, जो इंसुलेटर और पिन के बीच एक मजबूत बंधन बनाता है।
- परीक्षण:
- अंतिम चरण में, हर इंसुलेटर का यांत्रिक और विद्युत परीक्षण किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे सभी सुरक्षा और प्रदर्शन मानकों को पूरा करते हैं। सफल परीक्षण के बाद, उन्हें पैकेज किया जाता है।
निलंबन इन्सुलेटर स्ट्रिंग का निर्माण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कई व्यक्तिगत निलंबन इन्सुलेटर डिस्क को एक साथ जोड़ा जाता है। इस स्ट्रिंग का उपयोग उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों में कंडक्टरों को टावरों से लटकाने के लिए किया जाता है। ये स्ट्रिंग्स इंसुलेशन और यांत्रिक शक्ति दोनों प्रदान करते हैं।
डिस्क इन्सुलेटर का निर्माण
सबसे पहले, प्रत्येक डिस्क इंसुलेटर का निर्माण किया जाता है। ये डिस्क आमतौर पर चीनी मिट्टी या टेंपर्ड ग्लास से बनी होती हैं। निर्माण की प्रक्रिया पिन प्रकार के इंसुलेटर के समान होती है, जिसमें कच्चे माल को मिलाया जाता है, सांचों में ढाला जाता है, सुखाया जाता है, और फिर बहुत उच्च तापमान पर पकाया जाता है। इसके बाद, ग्लेजिंग प्रक्रिया होती है जो डिस्क की सतह को चिकना और जल प्रतिरोधी बनाती है।
धातु के हिस्सों की असेंबली
प्रत्येक डिस्क में एक धातु टोपी (cap) और एक पिन होता है। ये धातु के हिस्से डिस्क के सिरेमिक या कांच के भाग से सीमेंट का उपयोग करके जुड़े होते हैं। ये टोपी और पिन, डिस्क को यांत्रिक रूप से एक-दूसरे से जोड़ने के लिए आवश्यक होते हैं।
स्ट्रिंग असेंबली
एक बार जब व्यक्तिगत डिस्क तैयार हो जाती हैं, तो उन्हें एक साथ जोड़कर एक स्ट्रिंग बनाया जाता है।
- बॉल-एंड-सॉकेट व्यवस्था: प्रत्येक डिस्क की टोपी में एक सॉकेट होता है, जबकि पिन में एक बॉल होता है। ये दोनों भाग एक-दूसरे में फिट होते हैं, जिससे एक लचीला जोड़ बनता है।
- यांत्रिक लॉकिंग: एक कॉटर पिन (cotter pin) या अन्य लॉकिंग तंत्र का उपयोग करके बॉल और सॉकेट को सुरक्षित रूप से लॉक किया जाता है, ताकि वे अलग न हों। यह सुनिश्चित करता है कि स्ट्रिंग भारी भार के तहत भी एकजुट रहे।
स्ट्रिंग की लंबाई का निर्धारण
निलंबन इन्सुलेटर स्ट्रिंग की लंबाई, यानी उसमें उपयोग होने वाली डिस्क की संख्या, लाइन के वोल्टेज स्तर पर निर्भर करती है।
- उच्च वोल्टेज = अधिक डिस्क: उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों को अधिक इंसुलेशन की आवश्यकता होती है, इसलिए स्ट्रिंग में अधिक डिस्क का उपयोग किया जाता है।
- उदाहरण: 132 kV की लाइन के लिए लगभग 9-10 डिस्क की आवश्यकता हो सकती है, जबकि 400 kV की लाइन के लिए 20 या अधिक डिस्क की आवश्यकता हो सकती है।
इस तरह,
निलंबन इन्सुलेटर स्ट्रिंग का निर्माण और असेंबली बिजली के कंडक्टरों को प्रभावी ढंग से सहारा देने और उन्हें विद्युत रूप से अलग करने के लिए की जाती है।
निलंबन डिस्क में धातु कैप और पिन जोड़ का मुख्य कार्य विद्युत अलगाव को बनाए रखते हुए डिस्क को यांत्रिक रूप से एक-दूसरे से जोड़ना है। यह जोड़ इन्सुलेटर स्ट्रिंग को एक लचीलापन और मज़बूती प्रदान करता है, जिससे वह उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों का भार उठा सके।
विद्युत और यांत्रिक कार्य
धातु का कैप और पिन, दोनों ही इन्सुलेटर स्ट्रिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:
- विद्युत अलगाव: ये जोड़ प्रत्येक डिस्क को एक दूसरे से अलग रखते हैं ताकि बिजली का प्रवाह एक डिस्क से दूसरे डिस्क में न हो। प्रत्येक डिस्क के सिरेमिक या कांच का शरीर ही विद्युत को रोकता है, जबकि धातु के सिरे कनेक्शन का काम करते हैं।
- यांत्रिक बंधन: कैप और पिन एक दूसरे के साथ मिलकर एक बॉल-एंड-सॉकेट (ball-and-socket) जोड़ बनाते हैं। यह जोड़ डिस्क को एक दूसरे से जोड़ने के लिए एक मजबूत यांत्रिक कड़ी के रूप में कार्य करता है। यह लचीलापन प्रदान करता है, जिससे इन्सुलेटर स्ट्रिंग हवा के झोंकों या तारों में कंपन के कारण होने वाले तनाव को झेल सकती है।
- तनाव सहनशीलता: यह जोड़ न केवल डिस्क के भार को वहन करता है, बल्कि कंडक्टर के वजन और हवा के कारण होने वाले खिंचाव (tensile load) को भी सहन करता है। पिन और कैप को सुरक्षित रूप से जोड़ने के लिए एक कॉटर पिन (cotter pin) का उपयोग किया जाता है, जो सुनिश्चित करता है कि वे अलग न हों।
संक्षेप में,
धातु के कैप और पिन का जोड़ निलंबन इन्सुलेटर स्ट्रिंग के निर्माण के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह इंसुलेशन के साथ-साथ आवश्यक यांत्रिक शक्ति और लचीलापन भी प्रदान करता है।
शैकल इन्सुलेटर को कम वोल्टेज की वितरण लाइनों में सीधा या क्षैतिज स्थिति में स्थापित किया जाता है। इनकी स्थापना प्रक्रिया बहुत सरल होती है, और ये छोटे, हल्के और बहुत विश्वसनीय होते हैं।
स्थापना प्रक्रिया
- इंसुलेटर की तैयारी:
- स्थापना से पहले, यह सुनिश्चित करें कि शैकल इंसुलेटर और उसका पिन या बोल्ट साफ और सही स्थिति में है।
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क्रॉस-आर्म पर लगाना:
- शैकल इंसुलेटर को आमतौर पर खंभे पर लगे क्रॉस-आर्म पर स्थापित किया जाता है। इसे क्रॉस-आर्म के छेद में एक धातु के बोल्ट या पिन का उपयोग करके सुरक्षित रूप से लगाया जाता है।
- इंसुलेटर का निचला भाग, जिसमें खांचा (groove) होता है, ऊपर की ओर होता है ताकि कंडक्टर को आसानी से रखा जा सके।
-
कंडक्टर को सुरक्षित करना:
- कंडक्टर को इंसुलेटर के शीर्ष पर बने खांचे में रखा जाता है।
- कंडक्टर को सुरक्षित रखने के लिए, इसे बांधने वाले तार (binding wire) से इन्सुलेटर के खांचे में मजबूती से लपेटा जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि कंडक्टर अपनी जगह से हिले नहीं और इन्सुलेटर से अलग न हो।
उपयोग के प्रकार
- क्षैतिज स्थापना: शैकल इंसुलेटर को अक्सर क्षैतिज स्थिति में स्थापित किया जाता है। यह तब उपयोगी होता है जब लाइन को एक कोने में मोड़ना होता है, क्योंकि यह इंसुलेटर पार्श्व (lateral) तनाव को सहन करने की क्षमता रखता है।
- सीधी स्थापना: इन्हें सीधे खंभों पर भी लगाया जा सकता है, जहाँ कंडक्टर को मोड़ना नहीं होता।
शैकल इंसुलेटर अपनी सादगी और मजबूती के कारण कम वोल्टेज की लाइनों के लिए एक प्रभावी और लागत-कुशल समाधान प्रदान करते हैं।
पोस्ट इंसुलेटर का निर्माण, जो आमतौर पर सबस्टेशनों और कम वोल्टेज वाली ट्रांसमिशन लाइनों में उपयोग किए जाते हैं, एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें कई चरणों का पालन किया जाता है। इन इंसुलेटरों को उच्च यांत्रिक शक्ति और विद्युत इन्सुलेशन प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, ताकि वे बसबारों और अन्य विद्युत उपकरणों को सुरक्षित रूप से सहारा दे सकें।
सामग्री और तैयारी
- चीनी मिट्टी (पोरसिलेन): पोस्ट इंसुलेटर का मुख्य घटक चीनी मिट्टी है, जो काओलिन, क्वार्ट्ज और फेल्सपार के मिश्रण से बनती है।
- घोल बनाना: इन कच्चे माल को बारीक पीसकर पानी के साथ मिलाकर एक गाढ़ा घोल (स्लरी) बनाया जाता है।
- निराकरण (डी-एयरिंग): घोल को एक फिल्टर प्रेस के माध्यम से सुखाया जाता है और फिर एक वैक्यूम एक्सट्रूडर में संसाधित किया जाता है। यह प्रक्रिया घोल से हवा को हटाती है, जिससे सामग्री अधिक घनी और दोषमुक्त हो जाती है।
ढलाई और आकार देना
- मोल्डिंग: तैयार सामग्री को हाइड्रोलिक प्रेस या टर्निंग मशीनों का उपयोग करके वांछित बेलनाकार आकार में ढाला जाता है। इन मशीनों में सांचे होते हैं जो इंसुलेटर के विशिष्ट खांचे और पेंचदार आधार को बनाते हैं।
- सुखाना: ढलाई के बाद, इंसुलेटर को नियंत्रित वातावरण में सावधानीपूर्वक सुखाया जाता है ताकि नमी धीरे-धीरे बाहर निकले और संकुचन एक समान हो।
फायरिंग और ग्लेजिंग
- ग्लेजिंग: सूखने के बाद, इंसुलेटर की सतह पर एक तरल ग्लेज लगाया जाता है। यह ग्लेज एक चिकनी, चमकदार और जल-प्रतिरोधी सतह बनाता है, जो धूल और नमी के संचय को रोकता है और इंसुलेटर के विद्युत प्रदर्शन को बढ़ाता है।
- फायरिंग (पकाना): ग्लेज लगे इंसुलेटरों को एक भट्ठी (kiln) में 1200°C से अधिक तापमान पर पकाया जाता है। इस प्रक्रिया से चीनी मिट्टी सख्त और मजबूत बनती है।
असेंबली और परीक्षण
- धातु फिटिंग: फायरिंग के बाद, इंसुलेटर के शीर्ष और आधार पर धातु के फिटिंग लगाए जाते हैं, जो अक्सर सीमेंट या एपॉक्सी का उपयोग करके सुरक्षित रूप से चिपकाए जाते हैं।
- परीक्षण: अंत में, निर्मित इंसुलेटर की गुणवत्ता और प्रदर्शन मानकों को सुनिश्चित करने के लिए कठोर यांत्रिक और विद्युत परीक्षण किए जाते हैं। सफल परीक्षण के बाद, उन्हें पैकेज करके भेजा जाता है।
लीकेज करंट को नियंत्रित करने के कई तरीके हैं। लीकेज करंट एक अवांछित विद्युत प्रवाह है जो इंसुलेशन की सतह या उसके माध्यम से प्रवाहित होता है। इसे नियंत्रित करना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि यह ऊर्जा की हानि, उपकरणों की क्षति और सुरक्षा जोखिमों को बढ़ा सकता है।
सतह पर लीकेज करंट का नियंत्रण
सतह पर लीकेज करंट को नियंत्रित करने के लिए ग्लेजिंग (glazing) एक प्रभावी तरीका है। सिरेमिक इंसुलेटरों को चमकाने के लिए एक विशेष ग्लेज लगाया जाता है, जो सतह को चिकना और गैर-छिद्रपूर्ण बनाता है। इससे नमी और धूल का जमाव कम होता है, जिससे विद्युत रिसाव में कमी आती है।
इंसुलेटर की सफाई भी बहुत महत्वपूर्ण है। नियमित अंतराल पर इंसुलेटर की सतह पर जमा हुई धूल, नमक और औद्योगिक प्रदूषकों को हटाना ज़रूरी है। यह आमतौर पर पानी के जेट या विशेष सफाई समाधानों से किया जाता है।
डिज़ाइन द्वारा लीकेज करंट का नियंत्रण
- शेड्स (sheds) का उपयोग: इंसुलेटरों को इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि उनकी सतह पर शेड्स या छतरी जैसी संरचनाएं होती हैं। ये शेड्स सतह की दूरी को बढ़ाते हैं, जिससे लीकेज करंट के लिए एक लंबा और जटिल रास्ता बनता है। इससे बिजली का प्रवाह कम होता है।
- लंबाई बढ़ाना: इंसुलेटर की कुल लंबाई को बढ़ाकर भी लीकेज करंट को नियंत्रित किया जा सकता है। उच्च वोल्टेज लाइनों के लिए अधिक डिस्क या लंबे इंसुलेटर का उपयोग किया जाता है।
सामग्री द्वारा नियंत्रण
- हाइड्रोफोबिक सामग्री: पॉलिमर इंसुलेटर, जैसे कि सिलिकॉन रबर, में स्वाभाविक रूप से जल-विकर्षक (water-repellent) गुण होते हैं। यह सामग्री पानी की बूंदों को सतह पर इकट्ठा होने से रोकती है, जिससे एक सतत प्रवाहकीय परत नहीं बन पाती है।
- उच्च गुणवत्ता वाले इंसुलेटर: सही सामग्री और सख्त गुणवत्ता नियंत्रण के साथ निर्मित इंसुलेटर, जिनका डाइइलेक्ट्रिक स्ट्रेंथ उच्च होता है, लीकेज करंट को कम करने में मदद करते हैं।
क्रीपेज दूरी एक इन्सुलेटर की सतह पर वह न्यूनतम दूरी है जो दो चालक भागों के बीच मौजूद होती है। यह दूरी लीकेज करंट (अवांछित विद्युत प्रवाह) को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
क्रीपेज दूरी की भूमिका
क्रीपेज दूरी का मुख्य उद्देश्य सतह पर लीकेज करंट के प्रवाह को रोकना है। जब एक इन्सुलेटर की सतह पर नमी, धूल, नमक या अन्य प्रदूषक जमा हो जाते हैं, तो वे एक प्रवाहकीय परत बना सकते हैं। यह परत इंसुलेटर के दोनों सिरों (उच्च वोल्टेज और निम्न वोल्टेज) के बीच एक शॉर्टकट प्रदान करती है, जिससे बिजली का रिसाव होता है।
क्रीपेज दूरी इस संभावित शॉर्टकट को लंबा करके लीकेज करंट के लिए एक जटिल और लंबी राह बनाती है। जितनी लंबी क्रीपेज दूरी होगी, लीकेज करंट को उतनी ही अधिक सतह पर यात्रा करनी पड़ेगी, जिससे इसका प्रवाह कम हो जाएगा।
इंसुलेटर का डिजाइन
क्रीपेज दूरी बढ़ाने के लिए, इंसुलेटर की सतह को विशेष रूप से डिजाइन किया जाता है।
- शेड्स (Sheds): इंसुलेटर की सतह पर कई छतरी जैसी संरचनाएं या शेड्स बनाई जाती हैं। ये शेड्स हवा और पानी के सीधे प्रवाह को रोकते हैं और सतह की कुल लंबाई को बढ़ाते हैं, जिससे क्रीपेज दूरी बढ़ जाती है।
- आकार और सामग्री: विभिन्न वोल्टेज स्तरों के लिए अलग-अलग क्रीपेज दूरी की आवश्यकता होती है। उच्च वोल्टेज लाइनों के लिए, अधिक शेड्स वाले बड़े और लंबे इंसुलेटर का उपयोग किया जाता है। पॉलिमर इंसुलेटर, जो स्वाभाविक रूप से जल-विकर्षक (hydrophobic) होते हैं, क्रीपेज दूरी को अधिक प्रभावी बनाते हैं।
क्रीपेज दूरी और फ्लैशओवर
क्रीपेज दूरी फ्लैशओवर (flashover) को रोकने में भी मदद करती है। फ्लैशओवर एक ऐसी स्थिति है जिसमें इंसुलेटर की सतह पर प्रदूषण के कारण एक चिंगारी पैदा होती है, जो हवा के माध्यम से सीधे उच्च-वोल्टेज और निम्न-वोल्टेज के बीच कूदती है, जिससे बिजली की आपूर्ति बाधित होती है। लंबी क्रीपेज दूरी फ्लैशओवर के जोखिम को कम करती है।
संक्षेप में,
क्रीपेज दूरी इन्सुलेटर के सतह डिजाइन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो लीकेज करंट और फ्लैशओवर को रोककर बिजली ट्रांसमिशन सिस्टम की सुरक्षा और विश्वसनीयता सुनिश्चित करती है।
फ्लैशओवर दूरी,
जिसे एयर क्लियरेंस (air clearance) भी कहा जाता है, एक इन्सुलेटर के दो चालक भागों (जैसे कि इन्सुलेटर का टॉप और टावर का ग्राउंडेड हिस्सा) के बीच हवा में सबसे छोटी दूरी होती है। यह वह दूरी है जो एक विद्युत चाप (electric arc) को इन्सुलेटर की सतह को बायपास करके हवा के माध्यम से सीधे यात्रा करने से रोकती है।
भूमिका और महत्व
- विद्युत चाप को रोकना: जब किसी इन्सुलेटर पर अत्यधिक वोल्टेज या बाहरी कारक जैसे बिजली गिरने से वोल्टेज स्पाइक होता है, तो हवा में एक विद्युत चाप बन सकता है। फ्लैशओवर दूरी इस चाप को बनने से रोकती है।
- सुरक्षा: यह सुनिश्चित करती है कि बिजली का प्रवाह केवल तारों में ही रहे और जमीन पर या टावर के माध्यम से न जाए, जिससे उपकरणों और लोगों की सुरक्षा बनी रहती है।
- मौसम संबंधी कारक: बारिश, नमी और प्रदूषण जैसी स्थितियाँ हवा की ढांकता हुआ ताकत (dielectric strength) को कम कर सकती हैं, जिससे फ्लैशओवर का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए, इन्सुलेटर और टावर के बीच पर्याप्त फ्लैशओवर दूरी बनाए रखना बहुत ज़रूरी है।
फ्लैशओवर दूरी बनाम क्रीपेज दूरी
यह समझना महत्वपूर्ण है कि फ्लैशओवर दूरी और क्रीपेज दूरी अलग-अलग हैं:
- फ्लैशओवर दूरी: यह हवा के माध्यम से दो चालक भागों के बीच की सबसे छोटी दूरी है।
- क्रीपेज दूरी: यह इन्सुलेटर की सतह पर सबसे लंबी दूरी है। यह लीकेज करंट को नियंत्रित करती है।
संक्षेप में,
फ्लैशओवर दूरी इन्सुलेटर और टावर के बीच एक आवश्यक सुरक्षा बफर है जो विद्युत चाप को रोकता है, जबकि क्रीपेज दूरी इन्सुलेटर की सतह पर रिसाव को नियंत्रित करती है।
पिन प्रकार के इंसुलेटर का उपयोग मुख्य रूप से कम और मध्यम वोल्टेज (11 kV से 33 kV तक) की बिजली लाइनों में कंडक्टरों को सहारा देने के लिए किया जाता है। इनकी डिजाइन सादगी और विश्वसनीयता इन्हें इन अनुप्रयोगों के लिए एक आदर्श विकल्प बनाती है।
प्रमुख अनुप्रयोग
- वितरण लाइनें: पिन इंसुलेटर का सबसे आम उपयोग शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली के खंभों पर वितरण लाइनों में होता है। ये सीधे खंभों पर या क्रॉस-आर्म पर लगाए जाते हैं ताकि कंडक्टर को सुरक्षित रूप से सहारा मिल सके।
- टावरों पर उपयोग: 33 kV तक की ट्रांसमिशन लाइनों में, पिन इंसुलेटर का उपयोग टावरों के शीर्ष पर किया जाता है।
- कोने और वक्र (corners and curves): पिन इंसुलेटर को मोड़ों और कोणों पर भी स्थापित किया जाता है ताकि कंडक्टरों को बिना टूटे मोड़ा जा सके।
सीमाएं
पिन इंसुलेटर की अपनी कुछ सीमाएं हैं:
- उच्च वोल्टेज के लिए अनुपयुक्त: 33 kV से अधिक वोल्टेज के लिए पिन इंसुलेटर का उपयोग नहीं किया जाता है क्योंकि वे आवश्यक इंसुलेशन और यांत्रिक शक्ति प्रदान नहीं कर पाते। उच्च वोल्टेज के लिए निलंबन इंसुलेटर स्ट्रिंग (suspension insulator strings) का उपयोग किया जाता है।
- यांत्रिक भार: ये भारी यांत्रिक भार को सहन नहीं कर सकते, जैसे कि लंबे स्पैन या नदी पार करने वाली लाइनों में।
कुल मिलाकर,
पिन इंसुलेटर कम और मध्यम वोल्टेज के अनुप्रयोगों में अपनी प्रभावशीलता, कम लागत और आसान स्थापना के कारण व्यापक रूप से उपयोग किए जाते हैं।
निलंबन इंसुलेटर का उपयोग मुख्य रूप से उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों (high voltage transmission lines) में किया जाता है, जहाँ अधिक इंसुलेशन और यांत्रिक शक्ति की आवश्यकता होती है। इनकी डिज़ाइन उन्हें बहुत अधिक तनाव और भार को सहन करने की अनुमति देती है।
प्रमुख अनुप्रयोग
- उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनें: निलंबन इंसुलेटर का सबसे महत्वपूर्ण उपयोग लंबी दूरी की ट्रांसमिशन लाइनों में होता है जो 33 kV से अधिक वोल्टेज पर काम करती हैं, जैसे कि 132 kV, 220 kV, 400 kV और उससे भी अधिक। ये इंसुलेटर स्ट्रिंग्स (strings) में व्यवस्थित होते हैं, जिसमें कई डिस्क एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं।
- भारी भार वाले कंडक्टरों का समर्थन: ये इंसुलेटर भारी कंडक्टरों और उनके वजन को प्रभावी ढंग से संभालते हैं। वे हवा के दबाव, बर्फ के भार और अन्य यांत्रिक तनावों को सहन करने के लिए पर्याप्त रूप से मजबूत होते हैं।
- नदी और घाटी को पार करना: जब बिजली की लाइनों को नदियों, घाटियों या अन्य लंबी दूरी पर फैलाना होता है, तो निलंबन इंसुलेटर स्ट्रिंग्स का उपयोग किया जाता है। इनकी यांत्रिक शक्ति यह सुनिश्चित करती है कि तार बिना टूटे सुरक्षित रहें।
- टेंशन और डेड-एंड अनुप्रयोग: ट्रांसमिशन लाइनों के अंत में या जहाँ लाइनों को कोण पर मोड़ा जाता है, वहाँ निलंबन इंसुलेटर का उपयोग तनाव इंसुलेटर (tension insulators) के रूप में किया जाता है। ये स्ट्रिंग्स तार पर पड़ने वाले सीधे यांत्रिक तनाव को झेलते हैं।
- सबस्टेशन: सबस्टेशन के अंदर भी बसबारों और अन्य उच्च वोल्टेज उपकरणों को सहारा देने के लिए निलंबन इंसुलेटर का उपयोग किया जाता है।
संक्षेप में,
निलंबन इंसुलेटर का उपयोग उन सभी जगहों पर होता है जहाँ आवश्यक इंसुलेशन प्रदान करने के लिए अधिक यांत्रिक शक्ति और वोल्टेज सहनशीलता की आवश्यकता होती है।
तनाव इन्सुलेटर (Strain Insulator) ऐसे विद्युत घटक हैं जो आमतौर पर ओवरहेड पावर लाइनों (Overhead Power Lines) में इस्तेमाल होते हैं। ये कंडक्टरों के तनाव को संभालने के साथ-साथ उन्हें टावर या पोल से विद्युत रूप से अलग (insulate) करते हैं। हालांकि, गतिरोध (arrester) एक अलग उपकरण है जिसका उपयोग बिजली के हमलों (lightning strikes) या स्विचिंग के कारण होने वाले वोल्टेज सर्ज (voltage surges) से विद्युत उपकरणों की सुरक्षा के लिए किया जाता है।
गतिरोध और तनाव इन्सुलेटर अलग-अलग कार्यों के लिए बनाए गए दो अलग-अलग उपकरण हैं, इसलिए वे एक दूसरे पर "गतिरोध" नहीं हो सकते।
तनाव इन्सुलेटर का कार्य
तनाव इन्सुलेटर का मुख्य उद्देश्य दोहरी भूमिका निभाना है:
- यांत्रिक तनाव को संभालना: यह ओवरहेड कंडक्टरों के भारी यांत्रिक तनाव को सहन करता है, जो हवा, बर्फ, और कंडक्टर के खुद के वजन से उत्पन्न होता है।
- विद्युत इन्सुलेशन प्रदान करना: यह कंडक्टर को जमीन से (यानी, टावर या पोल से) विद्युत रूप से अलग रखता है, जिससे करंट टावर के माध्यम से जमीन में नहीं बहता।
ये इन्सुलेटर आमतौर पर डिस्क-प्रकार के होते हैं और एक श्रृंखला में निलंबित होते हैं। जितने अधिक डिस्क होते हैं, उतनी ही अधिक वोल्टेज इन्सुलेशन क्षमता होती है।
गतिरोध का कार्य
गतिरोध (जिसे सर्ज अरेस्टर या लाइटनिंग अरेस्टर भी कहते हैं) का मुख्य उद्देश्य असामान्य उच्च वोल्टेज (जैसे कि बिजली गिरने से) से विद्युत प्रणाली की सुरक्षा करना है।
इसका कार्य इस प्रकार है:
- सामान्य ऑपरेशन के दौरान: गतिरोध बहुत उच्च विद्युत प्रतिरोध (resistance) बनाए रखता है, जिससे सामान्य ऑपरेशन वोल्टेज पर कोई करंट प्रवाहित नहीं होता।
- सर्ज की स्थिति में: जब एक वोल्टेज सर्ज आता है, तो इसका प्रतिरोध अत्यधिक कम हो जाता है, जिससे यह सर्ज करंट को जमीन पर प्रवाहित कर देता है।
- सर्ज के बाद: एक बार जब सर्ज बीत जाता है, तो गतिरोध का प्रतिरोध फिर से उच्च हो जाता है, और यह सामान्य स्थिति में लौट आता है, जिससे सामान्य ऑपरेशन जारी रहता है।
शैकल इंसुलेटर का उपयोग मुख्य रूप से कम या मध्यम वोल्टेज वाली बिजली वितरण लाइनों में किया जाता है। ये इंसुलेटर विशेष रूप से उन जगहों पर उपयोगी होते हैं जहाँ लाइनें दिशा बदलती हैं, जैसे कि कोनों या मोड़ों पर, या फिर लाइन के शुरू और आखिरी सिरों पर।
शैकल इंसुलेटर के मुख्य उपयोग
- लाइन के मोड़ों और कोनों पर: जब बिजली की लाइनें सीधी नहीं होतीं और उन्हें दिशा बदलनी पड़ती है, तो शैकल इंसुलेटर का उपयोग कंडक्टरों को सुरक्षित रूप से मोड़ने में मदद करता है।
- शुरू और अंतिम सिरों पर (Dead Ends): ये इंसुलेटर लाइनों के शुरुआती और अंतिम बिंदुओं पर कंडक्टर को पोल या टावर से जोड़ने और उनका तनाव बनाए रखने के लिए लगाए जाते हैं।
- कम और मध्यम वोल्टेज वितरण लाइनें: शैकल इंसुलेटर को आमतौर पर 11 kV तक की लाइनों में इस्तेमाल किया जाता है।
- स्थापना में लचीलापन: इन इंसुलेटर को ऊर्ध्वाधर (vertical) और क्षैतिज (horizontal) दोनों तरह से स्थापित किया जा सकता है, जो इन्हें विभिन्न प्रकार की इंस्टॉलेशन आवश्यकताओं के लिए उपयुक्त बनाता है।
- तनाव इंसुलेटर के रूप में: पुराने समय में, शैकल इंसुलेटर का उपयोग तनाव इंसुलेटर (strain insulators) के रूप में भी किया जाता था, जहाँ कंडक्टरों पर अधिक यांत्रिक तनाव होता था।
शैकल इंसुलेटर को अक्सर एक विशेष प्रकार के ब्रैकेट या "डी-आयरन" की मदद से पोल से जोड़ा जाता है।
स्टे गाइ इंसुलेटर (Stay Guy Insulator), जिसे एग इंसुलेटर (Egg Insulator) भी कहा जाता है, का उपयोग मुख्य रूप से ओवरहेड बिजली लाइनों में पोल को सहारा देने वाले स्टे वायर या गाइ वायर में किया जाता है।
स्टे इंसुलेटर का कार्य
- इंसुलेशन प्रदान करना: स्टे वायर एक धातु का तार होता है जो बिजली के पोल को अतिरिक्त यांत्रिक सहायता देने के लिए जमीन से बांधा जाता है। अगर किसी कारणवश पोल या कंडक्टर में करंट आ जाए, तो स्टे इंसुलेटर यह सुनिश्चित करता है कि वह करंट स्टे वायर के माध्यम से जमीन तक न पहुंचे। इससे न केवल पोल को छूने वाले व्यक्ति को बिजली के झटके से बचाया जाता है, बल्कि पोल के चारों ओर सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है।
- सुरक्षा प्रदान करना: यह इंसुलेटर जमीन के ऊपर एक निश्चित ऊंचाई पर, आमतौर पर लगभग 3 मीटर की ऊंचाई पर, स्टे वायर के बीच में लगाया जाता है। इसका डिजाइन अंडाकार (egg-shaped) होता है, जिससे अगर इंसुलेटर टूट भी जाए, तो तार तब भी अपनी जगह पर बना रहता है और जमीन के संपर्क में नहीं आता।
- यांत्रिक तनाव को संभालना: यह स्टे वायर के यांत्रिक तनाव को भी सहन करता है, जो हवा या अन्य बाहरी दबावों के कारण उत्पन्न होता है।
यह इंसुलेटर कम और मध्यम वोल्टेज वाली वितरण लाइनों में सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है।
सबस्टेशनों में इंसुलेटर मुख्य रूप से दो बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए लगाए जाते हैं:
- विद्युत पृथक्करण (Electrical Insulation): इंसुलेटर का सबसे महत्वपूर्ण कार्य कंडक्टरों और उपकरणों को जमीन से या अन्य संरचनाओं से विद्युत रूप से अलग करना है। सबस्टेशन में, जहां बहुत उच्च वोल्टेज होता है, यह सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है कि करंट केवल कंडक्टरों में ही प्रवाहित हो, न कि टावरों, खंभों या अन्य गैर-चालक भागों में। यह दुर्घटनाओं और बिजली के रिसाव को रोकता है।
- यांत्रिक सहारा (Mechanical Support): इंसुलेटर का दूसरा प्रमुख कार्य कंडक्टरों और विभिन्न विद्युत उपकरणों को यांत्रिक रूप से सहारा देना है। वे उपकरणों को उनकी सही स्थिति में रखते हैं और उन पर पड़ने वाले सभी तरह के यांत्रिक तनाव (जैसे हवा का दबाव, बर्फ का भार, और कंडक्टरों का खुद का वजन) को सहन करते हैं।
सबस्टेशनों में उपयोग होने वाले इंसुलेटर के प्रकार
सबस्टेशनों में कई प्रकार के इंसुलेटर का उपयोग होता है, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
- पोस्ट इंसुलेटर (Post Insulator): ये इंसुलेटर सबस्टेशनों में सबसे अधिक उपयोग किए जाते हैं। ये बहुत मजबूत होते हैं और उच्च वोल्टेज स्विचगियर, बसबार (busbars), और अन्य उपकरणों को सहारा देने के लिए लगाए जाते हैं।
- सस्पेंशन इंसुलेटर (Suspension Insulator): ये आमतौर पर सबस्टेशनों के अंदर के बजाय ट्रांसमिशन लाइनों में अधिक उपयोग होते हैं, लेकिन उच्च वोल्टेज वाले सबस्टेशनों में भी इनका उपयोग किया जा सकता है, विशेष रूप से जहां ओवरहेड कंडक्टरों को सहारा देना हो।
इन इंसुलेटरों के बिना,
सबस्टेशन में उपकरणों को सुरक्षित और कुशलता से संचालित करना असंभव होगा। वे सिस्टम की सुरक्षा और विश्वसनीयता के लिए आवश्यक हैं।
आजकल,
पॉलिमर इंसुलेटर का उपयोग बिजली के बुनियादी ढांचे में क्रांति ला रहा है। वे पारंपरिक सिरेमिक और कांच के इंसुलेटर की जगह तेजी से ले रहे हैं, क्योंकि उनमें कई महत्वपूर्ण फायदे हैं।
पॉलिमर इंसुलेटर के मुख्य उपयोग:
- ओवरहेड ट्रांसमिशन और वितरण लाइनें: यह उनका सबसे आम और व्यापक उपयोग है। पॉलिमर इंसुलेटर का हल्का वजन, उच्च शक्ति-से-वजन अनुपात, और मौसम प्रतिरोध उन्हें लंबी दूरी की बिजली लाइनों के लिए आदर्श बनाते हैं। इन्हें पिन, सस्पेंशन, और स्ट्रेन इंसुलेटर के रूप में उपयोग किया जाता है।
- सबस्टेशन और स्विचयार्ड: पॉलिमर पोस्ट इंसुलेटर (post insulators) का उपयोग सबस्टेशनों में उच्च वोल्टेज बसबारों (busbars) और उपकरणों को सहारा देने के लिए किया जाता है। इनकी उच्च यांत्रिक शक्ति और बेहतर प्रदूषण प्रदर्शन इसे सुरक्षित और अधिक विश्वसनीय बनाते हैं।
- प्रदूषित और तटीय क्षेत्र: सिलिकॉन रबर, जो पॉलिमर इंसुलेटर बनाने के लिए एक मुख्य सामग्री है, स्वभाव से हाइड्रोफोबिक (hydrophobic) होता है, यानी यह पानी को पीछे हटाता है। यह विशेषता धूल, नमक, और अन्य प्रदूषकों को सतह पर जमा होने से रोकती है, जिससे फ्लैशओवर (flashover) का खतरा कम हो जाता है। इसलिए, इन्हें तटीय और औद्योगिक क्षेत्रों में बहुत पसंद किया जाता है।
- रेलवे विद्युतीकरण प्रणाली: रेलवे लाइनों को बिजली देने के लिए उपयोग किए जाने वाले ओवरहेड कैटेनरी (catenary) सिस्टम में भी इनका उपयोग होता है।
- भूकंपीय क्षेत्र: पॉलिमर इंसुलेटर सिरेमिक इंसुलेटर की तुलना में अधिक लचीले होते हैं और भूकंप या तेज हवाओं के कारण होने वाले कंपन को बेहतर ढंग से झेल सकते हैं। यह उन्हें भूकंप-संभावित क्षेत्रों के लिए एक सुरक्षित विकल्प बनाता है।
- वेंडलिज्म (Vandalism) और तोड़-फोड़ से प्रतिरोध: चूंकि वे सिरेमिक की तरह आसानी से नहीं टूटते, इसलिए वे बर्बरता और गोली लगने जैसी घटनाओं के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं, जिससे ग्रिड की सुरक्षा और विश्वसनीयता बढ़ती है।
फ्लैशओवर (Flashover) एक खतरनाक विद्युत घटना है जिसमें उच्च-वोल्टेज वाले दो बिंदुओं के बीच, आमतौर पर हवा या किसी इंसुलेटिंग सतह के पार, अचानक एक अनियंत्रित विद्युत आर्क (arc) बन जाता है। इससे भारी मात्रा में गर्मी, प्रकाश और दबाव पैदा होता है, जो उपकरणों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है और व्यक्तियों के लिए जानलेवा हो सकता है।
फ्लैशओवर के कई प्रमुख कारण होते हैं:
- अत्यधिक वोल्टेज (Overvoltage): यह फ्लैशओवर का सबसे आम कारण है। जब किसी कारण से सिस्टम का वोल्टेज उसकी सामान्य सीमा से बहुत अधिक बढ़ जाता है (जैसे कि बिजली गिरने से या स्विचिंग ऑपरेशन के दौरान), तो इंसुलेटर की ढाँकिक शक्ति (dielectric strength) टूट जाती है, जिससे हवा के पार एक आर्क बन जाता है।
- प्रदूषण और गंदगी (Pollution and Contamination): हवा में मौजूद धूल, नमक, औद्योगिक अपशिष्ट, या पक्षियों की बीट इंसुलेटर की सतह पर जमा हो जाती है। जब नमी (जैसे बारिश या ओस) होती है, तो यह प्रदूषित परत एक चालक पथ (conductive path) बन जाती है। इससे इन्सुलेशन प्रतिरोध कम हो जाता है, और फ्लैशओवर की संभावना बढ़ जाती है।
- अनुचित रखरखाव (Improper Maintenance): ढीले कनेक्शन, पुराने या क्षतिग्रस्त इंसुलेटर, और उपकरणों पर जमा हुआ मलबा (debris) भी फ्लैशओवर का कारण बन सकते हैं। इन समस्याओं से स्थानीय रूप से गर्मी पैदा होती है, जिससे इंसुलेशन कमजोर होता है।
-
मौसम की स्थिति (Weather Conditions):
- आंधी और बिजली (Storms and Lightning): बिजली गिरने से उत्पन्न होने वाले अत्यधिक वोल्टेज सर्ज (surge) सीधे फ्लैशओवर का कारण बनते हैं।
- नम और आर्द्र मौसम (Wet and Humid Weather): बारिश, कोहरा या ओस से इंसुलेटर की सतह गीली हो जाती है, जिससे सतह पर मौजूद गंदगी एक चालक परत बना देती है।
- बर्फ और पाला (Ice and Snow): बर्फ जमने से इंसुलेटर की सतह पर चालकता (conductivity) बढ़ सकती है, खासकर जब बर्फ में अशुद्धियाँ हों।
- मानवीय भूल (Human Error): जब कोई व्यक्ति या उपकरण गलती से लाइव (live) कंडक्टर के बहुत करीब आ जाता है, तो इससे भी आर्क बन सकता है, जिससे फ्लैशओवर हो सकता है। यह आमतौर पर खराब प्रशिक्षण या लापरवाही के कारण होता है।
फ्लैशओवर से बचने के लिए,
बिजली प्रणालियों में इंसुलेशन कोऑर्डिनेशन (insulation coordination), नियमित रखरखाव, और सर्ज अरेस्टर (surge arrester) जैसे सुरक्षा उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
इंसुलेटर का पंचर (Puncture) एक ऐसी स्थिति है जिसमें इंसुलेटर का आंतरिक विद्युत ब्रेकडाउन हो जाता है। इसका मतलब है कि अत्यधिक वोल्टेज के कारण इंसुलेटिंग सामग्री (जैसे चीनी मिट्टी या ग्लास) के अंदर से एक चालक पथ (conductive path) बन जाता है, जिससे करंट इंसुलेटर के शरीर के माध्यम से प्रवाहित होने लगता है।
पंचर की मुख्य विशेषताएं
- स्थायी क्षति (Permanent Damage): जब एक इंसुलेटर में पंचर होता है, तो यह स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो जाता है। पंचर होने के बाद, इंसुलेटर का उपयोग नहीं किया जा सकता और उसे बदलना पड़ता है।
- आंतरिक ब्रेकडाउन (Internal Breakdown): यह फ्लैशओवर (Flashover) से अलग होता है। फ्लैशओवर में, विद्युत आर्क इंसुलेटर की बाहरी सतह पर हवा के माध्यम से चलता है, जबकि पंचर में यह इंसुलेटर के अंदरूनी हिस्से में होता है।
- उच्च वोल्टेज पर होता है: पंचर आमतौर पर तब होता है जब इंसुलेटर पर लगाया गया वोल्टेज उसकी पंचर वोल्टेज (Puncture Voltage) से अधिक हो जाता है। यह वोल्टेज आमतौर पर उसकी फ्लैशओवर वोल्टेज से कई गुना अधिक होता है।
- धीरे-धीरे क्षरण (Gradual Degradation): पंचर लंबे समय तक होने वाले छोटे-छोटे लीकेज करंट (leakage current) या सामग्री के अंदर की खामियों (जैसे नमी या छोटे voids) के कारण हो सकता है, जिससे धीरे-धीरे सामग्री की ढाँकिक शक्ति (dielectric strength) कम हो जाती है।
फ्लैशओवर और पंचर में अंतर
- फ्लैशओवर: यह इंसुलेटर की सतह पर होता है, हवा के माध्यम से। यह आमतौर पर अस्थायी होता है, और अगर इंसुलेटर को कोई स्थायी नुकसान न हो, तो उसे बदला नहीं जाता।
- पंचर: यह इंसुलेटर के अंदरूनी भाग में होता है, जिससे सामग्री स्थायी रूप से नष्ट हो जाती है।
बिजली प्रणाली के डिज़ाइन में,
इंसुलेटर की पंचर स्ट्रेंथ (puncture strength) उसकी फ्लैशओवर वोल्टेज से बहुत अधिक रखी जाती है। इस अनुपात को सेफ्टी फैक्टर कहते हैं, जो आमतौर पर 10 के आसपास होता है। यह सुनिश्चित करता है कि पंचर होने के बजाय फ्लैशओवर पहले हो, जिससे इंसुलेटर क्षतिग्रस्त होने से बच जाए।
इंसुलेटर में फ्लैशओवर (Flashover) और पंचर (Puncture) दो अलग-अलग प्रकार की विफलताएं हैं, जो दोनों ही अत्यधिक वोल्टेज के कारण होती हैं। इनके बीच मुख्य अंतर यह है कि कहां पर ब्रेकडाउन होता है।
फ्लैशओवर (Flashover)
फ्लैशओवर तब होता है जब एक विद्युत चाप (electric arc) इंसुलेटर की बाहरी सतह पर या उसके आसपास की हवा में बनता है। यह आमतौर पर तब होता है जब इंसुलेटर की सतह पर गंदगी, धूल, या नमी जमा हो जाती है, जिससे एक चालक पथ (conductive path) बन जाता है।
- कहां होता है? इंसुलेटर की बाहरी सतह पर।
- परिणाम: यह आमतौर पर एक अस्थायी घटना होती है। जब आर्क बनता है, तो वह करंट को ग्राउंड कर देता है, जिससे सिस्टम ट्रिप हो सकता है। एक बार जब वोल्टेज सामान्य हो जाता है, तो आर्क बुझ जाता है, और अगर इंसुलेटर को कोई स्थायी नुकसान नहीं हुआ है, तो वह फिर से काम करने लायक होता है।
- कारण: अत्यधिक वोल्टेज, प्रदूषण (धूल, नमक), नमी, और पक्षियों की बीट।
पंचर (Puncture)
पंचर तब होता है जब इंसुलेटर की सामग्री के अंदर से ही विद्युत ब्रेकडाउन हो जाता है। अत्यधिक वोल्टेज के कारण इंसुलेटिंग सामग्री की ढाँकिक शक्ति (dielectric strength) टूट जाती है, जिससे एक छेद बन जाता है और करंट इंसुलेटर के शरीर के माध्यम से बहने लगता है।
- कहां होता है? इंसुलेटर के आंतरिक भाग में।
- परिणाम: यह एक स्थायी और अपरिवर्तनीय क्षति है। एक बार पंचर हो जाने के बाद, इंसुलेटर को पूरी तरह से बदलना पड़ता है, क्योंकि वह अब इंसुलेटर नहीं रहता बल्कि एक चालक की तरह काम करने लगता है।
- कारण: यह तब होता है जब लगाया गया वोल्टेज इंसुलेटर की पंचर वोल्टेज (जो फ्लैशओवर वोल्टेज से बहुत अधिक होती है) से अधिक हो जाता है।
मुख्य अंतर सारणी
सामान्यतः,
इंसुलेटर को इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि फ्लैशओवर पहले हो (कम वोल्टेज पर), ताकि पंचर से बचा जा सके। इसे सेफ्टी फैक्टर कहा जाता है, जिसमें पंचर वोल्टेज फ्लैशओवर वोल्टेज से कई गुना अधिक होता है।
स्ट्रिंग दक्षता (String Efficiency) एक महत्वपूर्ण माप है जो मल्टी-डिस्क सस्पेंशन इंसुलेटर स्ट्रिंग के वोल्टेज वितरण की प्रभावशीलता को दर्शाती है।
यह स्ट्रिंग में लगे डिस्क (इंसुलेटर) पर वोल्टेज के असमान वितरण के कारण होने वाली हानि को मापती है। परिभाषा स्ट्रिंग दक्षता को कुल स्ट्रिंग वोल्टेज और व्यक्तिगत डिस्क पर वोल्टेज के योग के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है।
इसका सूत्र है: {String Efficiency} = {Voltage across the entire string}}{Number of discs}5{Voltage across the disc closest to the conductor} 100%
दूसरे शब्दों में: {String Efficiency} = {V}{n}V{n} 100%
जहाँ: V= पूरी स्ट्रिंग पर कुल वोल्टेज
n = स्ट्रिंग में डिस्क की संख्या
Vn= कंडक्टर के सबसे करीब वाले डिस्क पर वोल्टेज एक आदर्श स्थिति में,
प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज समान रूप से वितरित होना चाहिए, जिससे स्ट्रिंग दक्षता 100% हो।
हालांकि, व्यवहार में, यह संभव नहीं है।
स्ट्रिंग दक्षता कम क्यों होती है?
स्ट्रिंग दक्षता का 100% से कम होने का मुख्य कारण शंट कैपेसिटेंस (Shunt Capacitance) है, जिसे ग्राउंड कैपेसिटेंस भी कहते हैं।
सेल्फ कैपेसिटेंस (C_s): प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क के दो सिरे होते हैं (पिन और कैप) जिनके बीच एक समाई (capacitance) होती है।
यह कैपेसिटेंस C_s है।
शंट कैपेसिटेंस (C_p): प्रत्येक डिस्क के धातु के हिस्से और टावर के बीच एक समाई भी होती है।
इसे शंट कैपेसिटेंस C_p कहते हैं। यह कैपेसिटेंस ग्राउंडेड टावर के कारण होती है। शंट कैपेसिटेंस (C_p) के कारण, कुछ करंट प्रत्येक डिस्क के समानांतर में टावर की ओर बहता है।
इस वजह से,
स्ट्रिंग में करंट समान नहीं रहता, और जो डिस्क कंडक्टर के सबसे करीब होती है (सबसे नीचे वाली), उस पर सबसे अधिक वोल्टेज ड्रॉप होता है।
जैसे-जैसे आप टावर की ओर बढ़ते हैं, प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज कम होता जाता है। कम दक्षता के प्रभाव कम स्ट्रिंग दक्षता के कारण निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं:
असमान वोल्टेज वितरण: कंडक्टर के सबसे करीब वाली डिस्क पर बहुत अधिक वोल्टेज स्ट्रेस होता है, जिससे उसके क्षतिग्रस्त होने या फ्लैशओवर होने की संभावना बढ़ जाती है।
उच्च इन्सुलेशन लागत: उच्च दक्षता प्राप्त करने के लिए अधिक डिस्क की आवश्यकता होती है, जिससे इंसुलेटर स्ट्रिंग महंगी हो जाती है।
रेडियो इंटरफेरेंस: वोल्टेज के असमान वितरण के कारण, स्ट्रिंग के पिन और कैप पर कोरोना डिस्चार्ज हो सकता है, जिससे रेडियो हस्तक्षेप होता है।
स्ट्रिंग दक्षता बढ़ाने के तरीके स्ट्रिंग दक्षता में सुधार करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाते हैं:
ग्रेडिंग रिंग (Grading Ring): इसे गार्ड रिंग भी कहते हैं। यह कंडक्टर के पास सबसे नीचे वाले इंसुलेटर पर लगाया जाता है।
यह रिंग शंट कैपेसिटेंस को कम करता है और वोल्टेज वितरण को अधिक समान बनाता है।
लंबी क्रॉस-आर्म का उपयोग: टावर की क्रॉस-आर्म को लंबा करके शंट कैपेसिटेंस को कम किया जा सकता है।
डिस्क ग्रेडिंग: स्ट्रिंग में अलग-अलग कैपेसिटेंस वाली डिस्क का उपयोग करके वोल्टेज वितरण को समान किया जा सकता है। कंडक्टर के पास वाली डिस्क की कैपेसिटेंस को बढ़ाकर यह किया जाता है।
स्ट्रिंग दक्षता को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक शंट कैपेसिटेंस हैं, जो डिस्क पर वोल्टेज के असमान वितरण का कारण बनते हैं। शंट कैपेसिटेंस (Shunt Capacitance) स्ट्रिंग दक्षता कम होने का सबसे महत्वपूर्ण कारण शंट कैपेसिटेंस (C_p) है। यह प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क के धातु भाग और टावर के बीच की कैपेसिटेंस है।
प्रभाव: शंट कैपेसिटेंस एक लीकेज पथ (leakage path) की तरह काम करती है। यह कंडक्टर से आने वाले करंट के कुछ हिस्से को टावर की ओर मोड़ देती है, जिससे स्ट्रिंग में करंट का प्रवाह असमान हो जाता है।
वोल्टेज वितरण: इस असमान करंट के कारण, कंडक्टर के सबसे करीब वाली डिस्क पर सबसे अधिक वोल्टेज ड्रॉप होता है।
जैसे-जैसे डिस्क टावर के करीब आती जाती हैं, उन पर वोल्टेज कम होता जाता है। यह वोल्टेज का असमान वितरण ही कम स्ट्रिंग दक्षता का मुख्य कारण है।
अन्य कारक डिस्क की संख्या: जैसे-जैसे स्ट्रिंग में डिस्क की संख्या बढ़ती है, शंट कैपेसिटेंस का संचयी प्रभाव भी बढ़ता है, जिससे स्ट्रिंग दक्षता कम होती जाती है।
क्रॉस-आर्म की लंबाई: टावर की क्रॉस-आर्म की लंबाई बढ़ाकर शंट कैपेसिटेंस को कम किया जा सकता है। एक लंबी क्रॉस-आर्म टावर और कंडक्टर के बीच की दूरी बढ़ाती है, जिससे शंट कैपेसिटेंस कम हो जाती है।
ऑपरेटिंग वोल्टेज: अधिक ऑपरेटिंग वोल्टेज पर शंट कैपेसिटेंस का प्रभाव अधिक होता है, जिससे स्ट्रिंग दक्षता और भी कम हो जाती है।
आवृत्ति (Frequency): यदि सिस्टम की आवृत्ति (frequency) बढ़ती है, तो कैपेसिटेंस का रिएक्शन (X_c = 1 / 2\pi fC) कम हो जाता है,
जिससे शंट कैपेसिटेंस का प्रभाव बढ़ जाता है और स्ट्रिंग दक्षता घट जाती है।
दक्षता में सुधार स्ट्रिंग दक्षता को बढ़ाने के लिए कुछ प्रमुख उपाय किए जाते हैं:
ग्रेडिंग रिंग (Grading Ring): यह एक धातु की रिंग होती है जिसे स्ट्रिंग के सबसे निचले हिस्से में कंडक्टर के पास लगाया जाता है।
यह रिंग एक अतिरिक्त कैपेसिटेंस (C_g) बनाती है जो शंट कैपेसिटेंस के प्रभाव को संतुलित करती है, जिससे सभी डिस्क पर वोल्टेज अधिक समान रूप से वितरित होता है।
डिस्क ग्रेडिंग: इस विधि में स्ट्रिंग में अलग-अलग कैपेसिटेंस वाली डिस्क का उपयोग किया जाता है।
कंडक्टर के पास वाली डिस्क की कैपेसिटेंस को बढ़ाया जाता है ताकि उस पर वोल्टेज ड्रॉप कम हो सके।
हिंदी में: स्ट्रिंग दक्षता में सुधार कैसे करें?
स्ट्रिंग दक्षता में सुधार करने के लिए, आपको स्ट्रिंग ऑपरेशन (String Operations) को अनुकूलित करना होगा। स्ट्रिंग ऑपरेशन वे प्रक्रियाएं हैं जो कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में स्ट्रिंग्स (वर्णों की श्रृंखला) पर की जाती हैं, जैसे कि स्ट्रिंग्स को जोड़ना, बदलना, या खोजना।
प्रमुख तरीके
- अपरिवर्तनीयता (Immutability) को समझना: ज़्यादातर प्रोग्रामिंग भाषाओं में, स्ट्रिंग्स अपरिवर्तनीय (Immutable) होती हैं, जिसका मतलब है कि एक बार बनने के बाद उन्हें बदला नहीं जा सकता। जब आप एक स्ट्रिंग को बदलते हैं, तो असल में एक नई स्ट्रिंग बनती है। बार-बार स्ट्रिंग्स को जोड़ना (Concatenation) या बदलना बहुत महंगा पड़ सकता है, क्योंकि हर बार एक नई स्ट्रिंग बनाने के लिए मेमोरी का उपयोग होता है।
- समाधान: जब आपको बहुत सारे स्ट्रिंग्स को जोड़ना हो, तो StringBuilder या StringBuffer (Java), या join मेथड (Python, JavaScript) जैसे परिवर्तनीय (Mutable) स्ट्रिंग डेटा प्रकारों का उपयोग करें। यह एक कुशल तरीका है क्योंकि यह बार-बार नई स्ट्रिंग बनाने की ज़रूरत को खत्म कर देता है।
- स्ट्रिंग इंटरनिंग (String Interning): यह एक ऐसी तकनीक है जहाँ स्ट्रिंग लिटरल (String Literals) को एक विशेष पूल (Pool) में संग्रहीत किया जाता है। जब भी आप एक नया स्ट्रिंग लिटरल बनाते हैं, तो प्रोग्राम पहले पूल में जांच करता है कि क्या वही स्ट्रिंग पहले से मौजूद है। यदि यह मौजूद है, तो वह उसी स्ट्रिंग का संदर्भ (Reference) लौटाता है, जिससे मेमोरी बचती है।
- समाधान: स्ट्रिंग लिटरल का उपयोग करें, जैसे String s = "Hello";, न कि String s = new String("Hello");। यह स्ट्रिंग इंटरनिंग का लाभ उठाता है।
- लूप में स्ट्रिंग ऑपरेशन से बचें: लूप के अंदर स्ट्रिंग को जोड़ने या बदलने से प्रदर्शन (Performance) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि हर पुनरावृत्ति (Iteration) में एक नई स्ट्रिंग बनती है।
- समाधान: लूप शुरू होने से पहले एक StringBuilder या StringBuffer बनाएं, और लूप के अंदर इसमें स्ट्रिंग्स जोड़ें। लूप खत्म होने के बाद, इसे अंतिम स्ट्रिंग में बदलें।
- सही तुलना विधियों का उपयोग करें: स्ट्रिंग्स की तुलना करते समय, == ऑपरेटर का उपयोग न करें। == केवल यह जांचता है कि क्या दोनों स्ट्रिंग्स एक ही मेमोरी स्थान को संदर्भित (Reference) करती हैं। स्ट्रिंग्स के मानों की तुलना करने के लिए equals() या equalsIgnoreCase() विधियों का उपयोग करें।
- समाधान: हमेशा स्ट्रिंग के कंटेंट की तुलना करने के लिए string1.equals(string2) का उपयोग करें।
- नियमित अभिव्यक्तियों (Regular Expressions) का सावधानीपूर्वक उपयोग: रेगुलर एक्सप्रेशंस बहुत शक्तिशाली होती हैं, लेकिन वे काफी धीमी हो सकती हैं। यदि आपके पास एक साधारण स्ट्रिंग ऑपरेशन है (जैसे कि एक स्ट्रिंग के भीतर एक वर्ण खोजना), तो अंतर्निहित स्ट्रिंग विधियों का उपयोग करना ज़्यादा कुशल होता है।
- समाधान: साधारण स्ट्रिंग ऑपरेशंस के लिए indexOf(), replace(), या split() जैसी अंतर्निहित विधियों का उपयोग करें।
उदाहरण
अकुशल तरीका (Inefficient):
String result = "";
for (int i = 0; i < 1000; i++) {result += "hello"; // हर पुनरावृत्ति में नई स्ट्रिंग बनती है}
कुशल तरीका (Efficient):
StringBuilder sb = new StringBuilder();
for (int i = 0; i < 1000; i++) {sb.append("hello"); // एक ही ऑब्जेक्ट में जोड़ता है}
String result = sb.toString();
इन तकनीकों को अपनाकर, आप अपने प्रोग्राम की स्ट्रिंग दक्षता में सुधार कर सकते हैं, जिससे प्रदर्शन (Performance) बेहतर होता है और मेमोरी का उपयोग कम होता है।
निलंबन स्ट्रिंग में वोल्टेज वितरण (Voltage Distribution in a Suspension String) एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो विद्युत शक्ति पारेषण लाइनों (Electric Power Transmission Lines) से संबंधित है।
एक निलंबन स्ट्रिंग में इंसुलेटर डिस्क (Insulator Discs) की एक श्रृंखला होती है, जो उच्च वोल्टेज चालक (High Voltage Conductor) को पारेषण टावर (Transmission Tower) से अलग करती है।
वोल्टेज वितरण आदर्श रूप से, यह उम्मीद की जाती है कि वोल्टेज प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क पर समान रूप से वितरित होगा। हालांकि, व्यवहार में ऐसा नहीं होता है।
वोल्टेज वितरण गैर-समान (Non-uniform) होता है, जिसका अर्थ है कि चालक के सबसे पास वाली डिस्क को टावर के सबसे पास वाली डिस्क की तुलना में अधिक वोल्टेज मिलता है।
यह गैर-समान वितरण इंसुलेटर डिस्क की स्वयं की धारिता (Self-capacitance, C_1) और स्ट्रिंग के विभिन्न बिंदुओं पर इंसुलेटर और टावर के बीच मौजूद शंट धारिता (Shunt capacitance, C_2) के कारण होता है।
यह शंट धारिता टावर और इंसुलेटर के बीच वायु (Air) में एक समानांतर पथ (Parallel Path) बनाती है।
स्ट्रिंग दक्षता (String Efficiency) स्ट्रिंग दक्षता एक निलंबन स्ट्रिंग के प्रदर्शन को मापने का एक तरीका है।
इसे स्ट्रिंग पर कुल वोल्टेज (अर्थात, चालक और टावर के बीच का वोल्टेज) और सबसे पास वाली डिस्क पर वोल्टेज के बीच के अनुपात के रूप में परिभाषित किया जाता है।
{स्ट्रिंग दक्षता} = {स्ट्रिंग पर कुल वोल्टेज}{डिस्क की संख्या} {सबसे पास वाली डिस्क पर वोल्टेज}} 100% एक आदर्श स्ट्रिंग में, स्ट्रिंग दक्षता 100% होगी, लेकिन व्यवहार में, यह हमेशा 100% से कम होती है क्योंकि वोल्टेज का वितरण गैर-समान होता है।
वोल्टेज वितरण में सुधार के तरीके स्ट्रिंग दक्षता में सुधार करने और वोल्टेज वितरण को अधिक समान बनाने के लिए कई तरीके हैं:
गार्ड रिंग (Guard Rings)
या ग्रेडिंग रिंग्स (Grading Rings) का उपयोग: ये धातु के छल्ले होते हैं जो चालक के सबसे पास वाली इंसुलेटर डिस्क के चारों ओर स्थापित किए जाते हैं। गार्ड रिंगें शंट धारिता (C_2) को बढ़ाती हैं, जिससे सबसे पास वाली डिस्क पर वोल्टेज कम हो जाता है और वितरण अधिक समान हो जाता है।
लंबी क्रॉस-आर्म्स (Longer Cross-arms) का उपयोग: क्रॉस-आर्म्स की लंबाई बढ़ाने से इंसुलेटर स्ट्रिंग और टावर के बीच की दूरी बढ़ जाती है, जिससे शंट धारिता (C_2) कम हो जाती है और वोल्टेज वितरण बेहतर होता है।
इंसुलेटर को ग्रेडिंग करना (Grading of Insulators): इस विधि में विभिन्न क्षमताओं वाली इंसुलेटर डिस्क का उपयोग किया जाता है। चालक के सबसे पास वाली डिस्क की धारिता को बढ़ाकर और टावर की ओर बढ़ते हुए इसे धीरे-धीरे कम करके वोल्टेज वितरण को समान बनाया जा सकता है।
कैपेसिटिव ग्रेडिंग (Capacitive Grading) का उपयोग: कुछ विशेष प्रकार के इंसुलेटर को इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि उनकी धारिता बदलती रहे। इन तरीकों का उद्देश्य शंट धारिता के प्रभाव को कम करना है ताकि प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क पर वोल्टेज का भार लगभग बराबर हो जाए, जिससे फ्लैशओवर (Flashover) का खतरा कम हो और पूरी प्रणाली की विश्वसनीयता (Reliability) बढ़ जाए।
वोल्टेज वितरण को समान करने के कई तरीके हैं, विशेष रूप से निलंबन स्ट्रिंग में, ताकि प्रत्येक इंसुलेटर डिस्क पर वोल्टेज का भार लगभग बराबर हो।
वोल्टेज वितरण को समान करने के मुख्य तरीके गार्ड रिंग (Guard Rings) या
ग्रेडिंग रिंग्स (Grading Rings): यह सबसे प्रभावी और व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला तरीका है।
गार्ड रिंग धातु के बने होते हैं और इन्हें सबसे नीचे वाली इंसुलेटर डिस्क के चारों ओर स्थापित किया जाता है, जो सीधे कंडक्टर से जुड़ी होती है।
कार्यप्रणाली: गार्ड रिंग शंट धारिता (C_2) को बढ़ाती है, जो इंसुलेटर और टावर के बीच मौजूद होती है। इससे सबसे नीचे वाली डिस्क पर वोल्टेज का भार कम हो जाता है, जिससे वोल्टेज का वितरण अधिक समान हो जाता है।
लंबी क्रॉस-आर्म्स (Longer Cross-arms): टावर की क्रॉस-आर्म्स की लंबाई बढ़ाने से इंसुलेटर स्ट्रिंग और टावर के बीच की दूरी बढ़ जाती है।
कार्यप्रणाली: दूरी बढ़ने से शंट धारिता (C_2) कम हो जाती है।
क्योंकि शंट धारिता दूरी के व्युत्क्रमानुपाती होती है, इसका मान कम होने से वोल्टेज वितरण में सुधार होता है।
इंसुलेटर का ग्रेडिंग (Grading of Insulators): इस विधि में विभिन्न क्षमताओं (capacitances) वाली इंसुलेटर डिस्क का उपयोग किया जाता है।
कार्यप्रणाली: चालक के सबसे पास वाली डिस्क की धारिता को बढ़ाकर और टावर की ओर बढ़ते हुए इसे धीरे-धीरे कम करके वोल्टेज वितरण को समान बनाया जा सकता है।
यह एक जटिल और महंगा तरीका है, इसलिए इसका उपयोग कम होता है।
कैपेसिटिव ग्रेडिंग (Capacitive Grading): यह एक ऐसी विधि है जिसमें विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए इंसुलेटर का उपयोग किया जाता है ताकि उनकी धारिता बदलती रहे।
कार्यप्रणाली: इंसुलेटर की सतह पर कुछ विशेष कोटिंग्स का उपयोग करके उनकी धारिता को नियंत्रित किया जाता है, जिससे प्रत्येक डिस्क पर वोल्टेज का ड्रॉप (voltage drop) बराबर हो जाता है।
ये सभी तरीके निलंबन स्ट्रिंग की स्ट्रिंग दक्षता (string efficiency) को बढ़ाने में मदद करते हैं। एक उच्च स्ट्रिंग दक्षता का अर्थ है कि स्ट्रिंग का फ्लैशओवर वोल्टेज बढ़ जाता है और यह अधिक विश्वसनीय हो जाती है।
इंसुलेटर के पास कोरोना डिस्चार्ज, जिसे "कोरोना इफेक्ट" भी कहा जाता है, एक ऐसी विद्युत घटना है जो उच्च वोल्टेज पारेषण लाइनों में होती है।
यह तब होता है जब एक कंडक्टर के चारों ओर का इलेक्ट्रिक फील्ड हवा की ढांकता हुआ ताकत (dielectric strength) से अधिक हो जाता है। क्या होता है? जब कंडक्टर और इंसुलेटर के बीच का वोल्टेज बहुत अधिक होता है, तो कंडक्टर के चारों ओर की हवा आयनित (ionized) हो जाती है।
यह आयनीकरण हवा को एक आंशिक चालक (partial conductor) में बदल देता है, जिससे कंडक्टर से हवा में चार्ज का रिसाव होने लगता है।
इस प्रक्रिया में,
एक मंद, बैंगनी रंग की चमक दिखाई देती है, साथ ही एक हिसिंग ध्वनि (hissing sound) और ओजोन गैस (O_3) का उत्पादन होता है।
इंसुलेटर और कोरोना इंसुलेटर पर, कोरोना डिस्चार्ज आमतौर पर उन स्थानों पर होता है जहाँ इलेक्ट्रिक फील्ड सबसे अधिक केंद्रित होता है।
यह आमतौर पर इंसुलेटर की सतह पर, या जहां कंडक्टर इंसुलेटर से जुड़ता है, जैसे कि पिन या क्लैंप के पास, होता है। इंसुलेटर के पास कोरोना डिस्चार्ज इसलिए भी एक समस्या है क्योंकि यह इंसुलेटर की सतह को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे उसकी दक्षता (efficiency) कम हो जाती है और अंततः वह फेल हो सकता है।
दुष्प्रभाव कोरोना डिस्चार्ज के कई हानिकारक प्रभाव होते हैं:
बिजली का नुकसान (Power Loss): कोरोना के कारण ऊर्जा का नुकसान होता है, जिससे ट्रांसमिशन लाइन की दक्षता कम हो जाती है।
रेडियो हस्तक्षेप (Radio Interference): यह रेडियो और टेलीविजन प्रसारण में हस्तक्षेप पैदा कर सकता है।
शोर (Noise): हिसिंग ध्वनि के कारण ध्वनि प्रदूषण होता है। ओजोन का उत्पादन: ओजोन गैस का उत्पादन होता है, जो धातु के उपकरणों को जंग लगा सकती है।
चीनी मिट्टी के इन्सुलेटरों में सामान्य विफलताएं हैं:
- यांत्रिक विफलताएं: यह इंसुलेटरों के टूटने या दरार पड़ने का कारण बनता है। यह या तो निर्माण दोषों या बाहरी यांत्रिक तनावों (जैसे आंधी या कंपन) के कारण होता है।
- विद्युत विफलताएं: इंसुलेटर फ्लैशओवर (इंसुलेटर की सतह पर हवा का टूटना) या पंचर (इंसुलेटर के अंदर की सामग्री का टूटना) के कारण विफल हो सकते हैं। इन विफलताओं से बिजली लाइनों में रुकावट आ सकती है।
- पोरसिटी (छिद्रीपन): यदि चीनी मिट्टी की सामग्री में छोटे छेद या छिद्र होते हैं, तो वे नमी को अवशोषित कर सकते हैं। यह लीकेज करंट को बढ़ाता है और इंसुलेटर की दक्षता को कम करता है, जिससे अंततः विद्युत विफलता हो सकती है।
- वेदरिंग (मौसम का प्रभाव): लंबे समय तक सूर्य के प्रकाश, वर्षा और तापमान में बदलाव के संपर्क में रहने से चीनी मिट्टी की सतह खराब हो सकती है। यह सतह को खुरदुरा बनाता है, जिससे प्रदूषण के कणों का जमाव बढ़ जाता है और फ्लैशओवर की संभावना बढ़ जाती है।
- प्रदूषण: हवा में धूल, नमक या औद्योगिक प्रदूषण इंसुलेटर की सतह पर जमा हो जाते हैं। यह सतह पर एक प्रवाहकीय परत बनाता है, जिससे लीकेज करंट बढ़ता है और फ्लैशओवर की संभावना बढ़ जाती है।
इंसुलेटर की संरचना और विफलता के बीच संबंध
चीनी मिट्टी के इंसुलेटर आमतौर पर एक पिन और एक इंसुलेटिंग बॉडी से मिलकर बने होते हैं। इंसुलेटिंग बॉडी को विशेष रूप से फ्लैशओवर को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है। जब कोई भी विफलता होती है, तो यह इंसुलेटर के इंसुलेटिंग गुणों को सीधे प्रभावित करती है, जिससे यह बिजली के प्रवाह को रोक नहीं पाता है।
कांच के इंसुलेटर, चीनी मिट्टी के इंसुलेटर की तुलना में कई फायदे प्रदान करते हैं, खासकर उच्च-वोल्टेज लाइनों के लिए।
1. विद्युत गुण
- उच्च ढांकता हुआ शक्ति: कांच में चीनी मिट्टी की तुलना में काफी अधिक ढांकता हुआ शक्ति होती है, जिसका अर्थ है कि यह उच्च वोल्टेज तनाव को बेहतर ढंग से झेल सकता है।
- कम प्रतिरोधकता: इसकी प्रतिरोधकता भी बहुत अधिक होती है, जो रिसाव धारा को कम करने में मदद करती है।
2. यांत्रिक गुण
- टूटने का पता लगाना: कांच पारदर्शी होता है। यदि कोई इंसुलेटर टूट जाता है, तो वह पूरी तरह से बिखर जाता है, जिससे दोष का पता लगाना आसान हो जाता है। इसके विपरीत, चीनी मिट्टी के इंसुलेटर में आंतरिक दरारें या दोष हो सकते हैं जो बाहर से दिखाई नहीं देते, जिससे उनका पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
- उच्च तन्यता शक्ति: कांच के इंसुलेटर में चीनी मिट्टी की तुलना में बेहतर तन्यता शक्ति होती है, जिससे वे भारी यांत्रिक भार का सामना कर सकते हैं।
3. अन्य लाभ
- कम लागत: कांच के इंसुलेटर आमतौर पर चीनी मिट्टी के इंसुलेटर की तुलना में सस्ते होते हैं।
- कम उम्र बढ़ना: कांच के यांत्रिक और विद्युत गुण समय के साथ उम्र बढ़ने से प्रभावित नहीं होते हैं, जिससे इसका सेवा जीवन लंबा होता है।
- आसान निरीक्षण: कांच की पारदर्शिता के कारण, निर्माण के दौरान या बाद में इसमें मौजूद अशुद्धियों या दोषों का आसानी से पता लगाया जा सकता है।
इन्सुलेटरों की यांत्रिक शक्ति का परीक्षण विभिन्न तरीकों से किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे विद्युत प्रणालियों में लगाए जाने पर तनाव और भार का सामना कर सकते हैं। इन परीक्षणों में मुख्य रूप से तन्यता (tensile) और संपीड़न (compression) परीक्षण शामिल हैं।
तन्यता परीक्षण (Tensile Test)
यह परीक्षण इन्सुलेटर की खिंचाव शक्ति को मापने के लिए किया जाता है। इसमें, इन्सुलेटर को दोनों सिरों से पकड़कर विपरीत दिशाओं में खींचा जाता है, जब तक कि वह टूट न जाए। जिस अधिकतम बल पर इन्सुलेटर टूटता है, उसे उसकी अंतिम तन्यता शक्ति (ultimate tensile strength) कहा जाता है।
- उद्देश्य: यह सुनिश्चित करना कि इन्सुलेटर ओवरहेड लाइनों के वजन, हवा के दबाव और अन्य यांत्रिक तनावों को सह सकता है।
- प्रक्रिया: एक विशेष परीक्षण मशीन का उपयोग किया जाता है जो धीरे-धीरे बल को बढ़ाती है और टूटने के समय अधिकतम बल को रिकॉर्ड करती है।
संपीड़न परीक्षण (Compression Test)
यह परीक्षण इन्सुलेटर की दबाव शक्ति को मापने के लिए किया जाता है। इसमें, इन्सुलेटर पर ऊपर से नीचे की ओर बल लगाया जाता है जब तक कि वह विफल न हो जाए।
- उद्देश्य: यह जांचना कि इन्सुलेटर ट्रांसफार्मर या अन्य उपकरणों के भार को सह सकता है या नहीं, खासकर जब वे खड़ी स्थिति में स्थापित होते हैं।
- प्रक्रिया: इन्सुलेटर को एक मजबूत प्लेट पर रखा जाता है और एक मशीन धीरे-धीरे उस पर दबाव डालती है। उस बिंदु को नोट किया जाता है जहां इन्सुलेटर में दरार आती है या वह टूट जाता है।
टॉर्शन परीक्षण (Torsion Test)
कुछ प्रकार के इन्सुलेटरों के लिए, जैसे कि पोस्ट इन्सुलेटर, टॉर्शन (मरोड़) परीक्षण भी किया जाता है।
- उद्देश्य: यह जांचना कि इन्सुलेटर मरोड़ बल का सामना कर सकता है या नहीं, जो कंडक्टरों के मुड़ने या हवा के कारण हो सकता है।
- प्रक्रिया: इन्सुलेटर के एक सिरे को स्थिर रखा जाता है और दूसरे सिरे को घुमाया जाता है जब तक कि वह विफल न हो जाए।
इन सभी परीक्षणों का मुख्य लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि इन्सुलेटर अपनी निर्धारित यांत्रिक भार क्षमता को पूरा करे, जिससे विद्युत प्रणाली की सुरक्षा और विश्वसनीयता बनी रहे।
इन्सुलेटरों पर विद्युत परीक्षण यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है कि वे उच्च वोल्टेज की स्थिति में भी विद्युत प्रवाह को रोक सकें और प्रणाली की सुरक्षा बनाए रखें। इन परीक्षणों को मुख्यतः दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
1. गैर-विनाशकारी परीक्षण (Non-destructive Tests)
ये परीक्षण इन्सुलेटर को नुकसान पहुँचाए बिना उसकी स्थिति का मूल्यांकन करते हैं।
- इंसुलेशन प्रतिरोध परीक्षण: एक मेगर (megger) नामक उपकरण का उपयोग करके इन्सुलेटर के प्रतिरोध को मापा जाता है। एक स्वस्थ इन्सुलेटर का प्रतिरोध बहुत अधिक (MΩ या GΩ में) होता है। यदि प्रतिरोध कम है, तो इसका मतलब है कि इन्सुलेशन क्षतिग्रस्त या नम है।
- रिसाव धारा परीक्षण (Leakage Current Test): इस परीक्षण में इन्सुलेटर पर एक निश्चित डीसी वोल्टेज लगाया जाता है और उससे गुजरने वाली छोटी रिसाव धारा को मापा जाता है। उच्च रिसाव धारा इन्सुलेशन की खराब गुणवत्ता को दर्शाती है।
2. विनाशकारी परीक्षण (Destructive Tests)
ये परीक्षण इन्सुलेटर की अंतिम विद्युत शक्ति की जाँच करते हैं और इन्हें आमतौर पर नमूना (sample) आधार पर किया जाता है।
- फ्लैशओवर वोल्टेज परीक्षण (Flashover Voltage Test): इस परीक्षण में, इन्सुलेटर पर वोल्टेज को धीरे-धीरे तब तक बढ़ाया जाता है जब तक कि उसकी सतह पर हवा के माध्यम से एक स्पार्क (फ्लैशओवर) उत्पन्न न हो जाए। यह परीक्षण शुष्क (dry) और आर्द्र (wet) दोनों स्थितियों में किया जाता है ताकि बारिश या नमी के प्रभाव का आकलन किया जा सके।
- पंक्चर वोल्टेज परीक्षण (Puncture Voltage Test): इस परीक्षण में, इन्सुलेटर पर लगाया गया वोल्टेज इतना अधिक होता है कि वह इन्सुलेटर सामग्री के अंदर से ही टूट जाता है। जिस वोल्टेज पर यह होता है, उसे पंक्चर वोल्टेज कहा जाता है। यह फ्लैशओवर वोल्टेज से अधिक होना चाहिए, अन्यथा इन्सुलेटर बाहरी फ्लैशओवर के बजाय अंदर से क्षतिग्रस्त हो जाएगा।
ओवरवोल्टेज (overvoltage) का अर्थ है जब किसी विद्युत सर्किट या प्रणाली में वोल्टेज सामान्य या निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है। यह स्थिति विद्युत उपकरणों के लिए बहुत हानिकारक होती है, क्योंकि इससे वे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, उनका जीवनकाल कम हो सकता है, या वे पूरी तरह से काम करना बंद कर सकते हैं।
ओवरवोल्टेज के कारण
ओवरवोल्टेज कई कारणों से हो सकता है, जिन्हें मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
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बाह्य कारण (External Causes):
- आकाशीय बिजली (Lightning Strikes): यह ओवरवोल्टेज का सबसे आम और सबसे शक्तिशाली कारण है। बिजली सीधे बिजली लाइनों पर गिर सकती है या पास में गिरने से भी उसमें बहुत अधिक वोल्टेज उत्पन्न हो सकता है।
- वायुमंडलीय परिवर्तन: वायुमंडल में चार्ज्ड बादलों की उपस्थिति से भी लाइनों में इलेक्ट्रोस्टैटिक रूप से वोल्टेज उत्पन्न हो सकता है।
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आंतरिक कारण (Internal Causes):
- स्विचिंग ऑपरेशन (Switching Operations): बड़े भार (जैसे ट्रांसफार्मर या मोटर) को चालू या बंद करने से वोल्टेज में अचानक वृद्धि हो सकती है।
- ग्राउंड फॉल्ट (Ground Fault): जब कोई लाइव कंडक्टर जमीन से संपर्क करता है, तो इससे भी सिस्टम में वोल्टेज बढ़ सकता है।
- उपकरणों की विफलता: जैसे कि वोल्टेज रेगुलेटर का खराब होना।
- फेरांती प्रभाव (Ferranti Effect): जब एक लंबी ट्रांसमिशन लाइन बिना किसी भार के चलती है, तो उसका प्राप्त करने वाला वोल्टेज (receiving-end voltage) भेजने वाले वोल्टेज (sending-end voltage) से अधिक हो सकता है।
ओवरवोल्टेज के प्रभाव
ओवरवोल्टेज के कई गंभीर प्रभाव हो सकते हैं:
- इंसुलेशन का टूटना: उच्च वोल्टेज के कारण इंसुलेशन (जैसे केबल और इन्सुलेटर) में दरार आ सकती है, जिससे शॉर्ट सर्किट हो सकता है।
- उपकरणों को नुकसान: यह कंप्यूटर, टीवी, रेफ्रिजरेटर और अन्य संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त कर सकता है।
- आग का खतरा: अत्यधिक वोल्टेज से उपकरणों में अत्यधिक गर्मी उत्पन्न हो सकती है, जिससे आग लग सकती है।
- सिस्टम अस्थिरता: पावर ग्रिड में ओवरवोल्टेज से सिस्टम अस्थिर हो सकता है और बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है।
ओवरवोल्टेज से सुरक्षा के लिए,
सर्ज़ अरेस्टर (surge arresters) और सर्ज़ प्रोटेक्शन डिवाइस (surge protection devices) जैसे उपकरण उपयोग किए जाते हैं जो अतिरिक्त वोल्टेज को ग्राउंड में भेजकर उपकरणों को सुरक्षित रखते हैं।
शुष्क और गीला फ्लैशओवर वोल्टेज (Dry and Wet Flashover Voltage) इन्सुलेटरों के विद्युत परीक्षण में दो महत्वपूर्ण मानक हैं, जिनका उपयोग यह निर्धारित करने के लिए किया जाता है कि इन्सुलेटर विभिन्न वातावरणीय परिस्थितियों में कैसा प्रदर्शन करेगा।
शुष्क फ्लैशओवर वोल्टेज (Dry Flashover Voltage)
यह वह न्यूनतम वोल्टेज है जिस पर शुष्क और स्वच्छ परिस्थितियों में इन्सुलेटर की सतह के ऊपर हवा में एक स्पार्क (spark) या फ्लैशओवर होता है। इस परीक्षण में, इन्सुलेटर पर वोल्टेज को धीरे-धीरे तब तक बढ़ाया जाता है जब तक कि यह अपनी सतह पर हवा के माध्यम से टूट न जाए, जिससे एक आर्क (arc) उत्पन्न होता है। यह इन्सुलेटर के डिजाइन और उसके आसपास की हवा के इन्सुलेशन गुणों पर निर्भर करता है।
गीला फ्लैशओवर वोल्टेज (Wet Flashover Voltage)
यह वह न्यूनतम वोल्टेज है जिस पर नम या बारिश की परिस्थितियों में इन्सुलेटर की सतह पर फ्लैशओवर होता है। इस परीक्षण में, इन्सुलेटर पर कृत्रिम बारिश का छिड़काव किया जाता है, जिससे उसकी सतह पर एक पानी की परत बन जाती है। यह परत इन्सुलेटर के इन्सुलेशन को कम कर देती है, क्योंकि पानी में मौजूद अशुद्धियाँ एक चालक पथ (conductive path) बनाती हैं। इस कारण, गीला फ्लैशओवर वोल्टेज हमेशा शुष्क फ्लैशओवर वोल्टेज से कम होता है।
परीक्षण का महत्व
इन दोनों परीक्षणों को करने का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि इन्सुलेटर अपनी सेवा के दौरान आने वाली सभी मौसम स्थितियों का सामना कर सके। गीला परीक्षण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह वास्तविक जीवन की स्थितियों (बारिश, ओस, या नमी) का अनुकरण करता है। यह निर्धारित करता है कि क्या इन्सुलेटर उच्च आर्द्रता या बारिश में भी सुरक्षित रूप से काम कर सकता है।
प्रदूषित वातावरण में रिसाव दूरी (creepage distance) का महत्व बहुत अधिक है, क्योंकि यह विद्युत इन्सुलेटरों की सतह पर होने वाले फ्लैशओवर को रोकने में मदद करती है। रिसाव दूरी, किसी इन्सुलेटर की सतह के साथ दो चालकीय (conductive) भागों के बीच की सबसे छोटी दूरी होती है।
प्रदूषण और रिसाव दूरी का संबंध
प्रदूषित वातावरण में इन्सुलेटरों की सतह पर धूल, नमक, रसायन और अन्य संदूषक (contaminants) जमा हो जाते हैं। जब नमी (जैसे ओस, कोहरा या बारिश) इन संदूषकों के साथ मिलती है, तो वे एक चालक परत (conductive layer) बनाते हैं। यह चालक परत इन्सुलेटर की सतह पर विद्युत धारा को बहने का मार्ग प्रदान करती है, जिसे रिसाव धारा (leakage current) कहते हैं।
यदि यह रिसाव धारा बहुत अधिक हो जाती है, तो इससे सतह पर शुष्क बैंड (dry bands) बन जाते हैं। इन शुष्क बैंडों के पार वोल्टेज बढ़ जाता है, जिससे छोटे-छोटे स्पार्क (arcing) उत्पन्न होते हैं। यदि ये स्पार्क बढ़ते जाते हैं, तो वे अंततः एक पूर्ण फ्लैशओवर का कारण बन सकते हैं, जिससे इन्सुलेटर अपनी इन्सुलेशन क्षमता खो देता है और शॉर्ट सर्किट हो जाता है।
रिसाव दूरी का महत्व
इन्सुलेटर की सतह पर रिसाव दूरी को बढ़ाकर, इस चालक पथ की लंबाई को बढ़ा दिया जाता है। इसका मतलब है कि रिसाव धारा को एक लंबा मार्ग तय करना पड़ता है, जिससे उसका प्रतिरोध बढ़ जाता है और धारा का मान कम हो जाता है।
- फ्लैशओवर की रोकथाम: लंबी रिसाव दूरी, प्रदूषित सतह पर भी रिसाव धारा को नियंत्रित रखती है, जिससे फ्लैशओवर का खतरा कम हो जाता है।
- विश्वसनीयता में वृद्धि: प्रदूषित क्षेत्रों में उपयोग किए जाने वाले इन्सुलेटरों के लिए अधिक रिसाव दूरी वाले डिज़ाइन (जैसे डिस्क इन्सुलेटर में छतरियों की संख्या बढ़ाना) यह सुनिश्चित करते हैं कि विद्युत प्रणाली बारिश, कोहरे या औद्योगिक प्रदूषण की स्थिति में भी विश्वसनीय बनी रहे।
- सुरक्षा: पर्याप्त रिसाव दूरी यह सुनिश्चित करती है कि उच्च वोल्टेज उपकरण सुरक्षित रूप से काम करें और शॉर्ट सर्किट या आग जैसे जोखिमों को कम करें।
बिजली की लाइनों पर इन्सुलेटरों की विफलता कई कारणों से हो सकती है, जो मुख्य रूप से यांत्रिक (mechanical) और विद्युत (electrical) तनाव से संबंधित होते हैं। इन विफलताओं से बिजली आपूर्ति बाधित हो सकती है और सुरक्षा जोखिम भी बढ़ सकते हैं।
यांत्रिक कारण
- अत्यधिक यांत्रिक भार: तेज हवा, बर्फ का भारी जमाव या लाइन पर अचानक पड़ने वाले तनाव (जैसे कि पेड़ों के गिरने से) के कारण इन्सुलेटर पर अत्यधिक भार पड़ सकता है, जिससे वह टूट सकता है।
- निर्माण दोष: इन्सुलेटर के निर्माण के दौरान उसमें दरार, छिद्र या अन्य संरचनात्मक दोष रह सकते हैं, जो समय के साथ बढ़ते जाते हैं और विफलता का कारण बनते हैं।
- तापमान में परिवर्तन: इन्सुलेटर के विभिन्न घटक, जैसे कि चीनी मिट्टी, स्टील और सीमेंट, तापमान में बदलाव के साथ अलग-अलग दरों पर फैलते और सिकुड़ते हैं। इस असमान विस्तार और संकुचन से इन्सुलेटर में तनाव पैदा होता है, जिससे दरारें आ सकती हैं।
- तोड़फोड़: कभी-कभी बाहरी कारणों से भी इन्सुलेटर क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, जैसे कि पत्थर फेंकना या गोली मारना।
विद्युत कारण
- फ्लैशओवर: उच्च वोल्टेज के कारण इन्सुलेटर की सतह पर या उसके आसपास हवा में एक चिंगारी या आर्क (flashover) उत्पन्न हो सकती है। यह अक्सर तब होता है जब इन्सुलेटर की सतह पर धूल, गंदगी, या नमक जैसी अशुद्धियाँ जमा हो जाती हैं, जिससे एक प्रवाहकीय पथ बन जाता है। बार-बार होने वाले फ्लैशओवर इन्सुलेटर की सतह को नुकसान पहुंचाते हैं।
- पंचर: यदि लगाया गया वोल्टेज इन्सुलेटर की डाइइलेक्ट्रिक शक्ति से अधिक हो जाता है, तो विद्युत प्रवाह सीधे इन्सुलेटर सामग्री के अंदर से गुजर सकता है, जिससे स्थायी क्षति होती है। यह अक्सर विनिर्माण दोषों या नमी के कारण होता है।
- कोरोना प्रभाव: उच्च वोल्टेज के कारण इन्सुलेटर के आसपास हवा का आयनीकरण हो सकता है, जिससे एक हल्की बैंगनी चमक और एक हिसिंग ध्वनि उत्पन्न होती है। यह समय के साथ इन्सुलेशन सामग्री को खराब कर सकता है।
- ओवरवोल्टेज: आकाशीय बिजली या स्विचिंग ऑपरेशन से उत्पन्न होने वाले अत्यधिक वोल्टेज भी इन्सुलेटर की विफलता का कारण बन सकते हैं।
- रिसाव धारा: प्रदूषित सतहों पर नमी के कारण उत्पन्न होने वाली रिसाव धारा इन्सुलेटर की सतह पर स्थानीय रूप से गर्मी पैदा करती है, जिससे शुष्क बैंड बनते हैं और अंततः फ्लैशओवर हो सकता है।
ये सभी कारक इन्सुलेटर के जीवनकाल को कम करते हैं और विद्युत लाइनों की विश्वसनीयता को प्रभावित करते हैं।
एंटी-फॉग इंसुलेटर एक विशेष प्रकार का विद्युत इन्सुलेटर है जिसे धुंध, नमक, औद्योगिक प्रदूषण और भारी नमी वाले क्षेत्रों में उपयोग करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रदूषित वातावरण में इन्सुलेटर की सतह पर होने वाले फ्लैशओवर (शॉर्ट सर्किट) को रोकना है।
डिज़ाइन और कार्यप्रणाली
साधारण इन्सुलेटरों की तुलना में, एंटी-फॉग इन्सुलेटर की सतह पर ज्यादा गहरे और लंबे शेड (छतरी) होते हैं। ये शेड इन्सुलेटर की सतह पर रिसाव दूरी (creepage distance) को काफी बढ़ा देते हैं।
- जब इन्सुलेटर की सतह पर धूल, गंदगी या नमक जैसी अशुद्धियाँ जमा हो जाती हैं, तो नमी के संपर्क में आने पर एक प्रवाहकीय परत बनती है।
- यह परत एक रिसाव धारा (leakage current) को जन्म देती है, जो अगर बहुत अधिक हो जाए तो फ्लैशओवर का कारण बन सकती है।
- एंटी-फॉग इन्सुलेटर की लंबी रिसाव दूरी इस प्रवाहकीय मार्ग को लंबा कर देती है, जिससे धारा का प्रवाह कम हो जाता है। इससे सतह पर होने वाले छोटे-छोटे स्पार्क्स (arcing) का जोखिम कम हो जाता है और फ्लैशओवर की संभावना घट जाती है।
एंटी-फॉग इन्सुलेटर के फायदे
- विश्वसनीयता में वृद्धि: यह सुनिश्चित करता है कि बिजली आपूर्ति प्रदूषित और नम वातावरण में भी विश्वसनीय बनी रहे।
- रखरखाव में कमी: कम फ्लैशओवर के कारण इन्सुलेटर की सतह को बार-बार साफ करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- सुरक्षा में सुधार: शॉर्ट सर्किट और आग के जोखिम को कम करता है।
एंटी-फॉग इंसुलेटर आमतौर पर पोर्सिलेन या सिलिकॉन रबर जैसे हाइड्रोफोबिक (जल-विकर्षक) गुणों वाली सामग्री से बने होते हैं, जो पानी की बूंदों को सतह पर फैलने से रोकते हैं, जिससे रिसाव धारा को और भी कम करने में मदद मिलती है।
पॉलिमर इंसुलेटर की स्व-सफाई (self-cleaning) क्षमता का महत्व विशेष रूप से उन क्षेत्रों में होता है जहाँ प्रदूषण, धूल, नमक और नमी की मात्रा अधिक होती है। यह गुण बिजली के नुकसान को कम करने और विद्युत प्रणाली की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
स्व-सफाई का कार्य
पॉलिमर इंसुलेटर आमतौर पर सिलिकॉन रबर जैसी सामग्री से बने होते हैं, जिनकी सतह पर एक विशेष गुण होता है जिसे हाइड्रोफोबिसिटी (hydrophobicity) कहते हैं। हाइड्रोफोबिसिटी का अर्थ है जल-विकर्षण, यानी पानी को हटाना।
- जब पानी की बूँदें (जैसे बारिश, कोहरा या ओस) इन्सुलेटर की सतह पर गिरती हैं, तो वे पूरी सतह पर एक परत बनाने के बजाय गोल बूँदों के रूप में रहती हैं।
- ये बूँदें, जब नीचे की ओर लुढ़कती हैं, तो अपने साथ सतह पर जमी हुई धूल और प्रदूषकों को भी बहा ले जाती हैं।
- यह प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से इन्सुलेटर की सतह को साफ करती है, जिससे प्रदूषकों का जमाव कम हो जाता है।
महत्व
पॉलिमर इंसुलेटर की स्व-सफाई क्षमता के कई महत्वपूर्ण लाभ हैं:
- फ्लैशओवर की रोकथाम: पारंपरिक सिरेमिक इन्सुलेटर पर, प्रदूषक नमी के साथ मिलकर एक चालक पथ बनाते हैं, जिससे रिसाव धारा (leakage current) बहती है और अंततः फ्लैशओवर हो सकता है। पॉलिमर इंसुलेटर पर, हाइड्रोफोबिक सतह इस चालक पथ को बनने से रोकती है, जिससे फ्लैशओवर का खतरा काफी कम हो जाता है।
- रखरखाव में कमी: पारंपरिक इन्सुलेटरों को प्रदूषित क्षेत्रों में नियमित रूप से साफ करने की आवश्यकता होती है, जो महंगा और जोखिम भरा काम है। पॉलिमर इन्सुलेटर की स्व-सफाई की क्षमता से इस प्रकार के मैन्युअल रखरखाव की आवश्यकता बहुत कम हो जाती है।
- लागत में बचत: रखरखाव के खर्चों में कमी से परिचालन लागत घटती है।
- बेहतर विश्वसनीयता: यह सुनिश्चित करता है कि बिजली की आपूर्ति प्रदूषण और खराब मौसम की स्थिति में भी निर्बाध और विश्वसनीय बनी रहे।
इस तरह,
पॉलिमर इन्सुलेटर अपनी स्व-सफाई के गुण के कारण पारंपरिक सिरेमिक इन्सुलेटरों की तुलना में प्रदूषित और नम वातावरण में अधिक उपयुक्त और प्रभावी साबित होते हैं।
पिन-प्रकार के इंसुलेटर 33kV से ऊपर के वोल्टेज के लिए उपयुक्त नहीं हैं क्योंकि वे अत्यधिक बड़े, भारी और आर्थिक रूप से अव्यवहार्य हो जाते हैं।
जैसे-जैसे वोल्टेज बढ़ता है, इंसुलेटर को फ्लैशओवर (शॉर्ट सर्किट) को रोकने के लिए अधिक इन्सुलेशन और लंबी रिसाव दूरी (creepage distance) की आवश्यकता होती है। पिन-प्रकार के इंसुलेटर के मामले में, इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए उसकी ऊंचाई और व्यास को बहुत बढ़ाना पड़ता है।
यह डिज़ाइन कई तरह की समस्याएँ पैदा करता है:
- बड़ा आकार और वजन: 33kV से ऊपर के वोल्टेज के लिए पिन इंसुलेटर इतने बड़े हो जाते हैं कि उनका निर्माण, परिवहन और स्थापना करना मुश्किल होता है।
- यांत्रिक शक्ति की सीमा: बड़े और भारी होने के कारण, उनका झुकने का तनाव (bending stress) बढ़ जाता है, जिससे उनके टूटने का जोखिम अधिक होता है। वे उच्च यांत्रिक भार जैसे कि हवा के दबाव या कंडक्टर के वजन को संभालने में सक्षम नहीं होते।
- फ्लैशओवर का खतरा: भले ही उनका आकार बढ़ाया जाए, पिन इंसुलेटर की सतह पर प्रभावी रिसाव दूरी (effective creepage distance) पर्याप्त नहीं होती। इससे प्रदूषित या नम वातावरण में फ्लैशओवर का खतरा बढ़ जाता है, जिससे बिजली कटौती और उपकरणों को नुकसान हो सकता है।
- उच्च लागत: बड़े पिन इंसुलेटरों के निर्माण में अधिक सामग्री लगती है, जिससे उनकी लागत बहुत बढ़ जाती है और वे अन्य प्रकार के इंसुलेटरों, जैसे सस्पेंशन इंसुलेटरों, की तुलना में आर्थिक रूप से अव्यवहार्य हो जाते हैं।
इन सीमाओं के कारण,
33kV से ऊपर के वोल्टेज के लिए सस्पेंशन इंसुलेटर का उपयोग किया जाता है। सस्पेंशन इंसुलेटर डिस्क की एक श्रृंखला से बने होते हैं जिन्हें एक साथ जोड़कर आवश्यक वोल्टेज स्तर प्राप्त किया जा सकता है, जिससे वे अधिक लचीले और विश्वसनीय होते हैं।
66kV ट्रांसमिशन लाइनों के लिए सस्पेंशन इंसुलेटरों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि वे पिन इंसुलेटर की तुलना में अधिक सुरक्षित, विश्वसनीय और किफायती होते हैं। यह उनके डिजाइन के कारण है जो उच्च वोल्टेज, यांत्रिक तनाव और खराब मौसम की स्थिति को बेहतर ढंग से संभाल सकता है।
सस्पेंशन इंसुलेटर को प्राथमिकता देने के कारण
- उच्च वोल्टेज के लिए उपयुक्तता: सस्पेंशन इंसुलेटर में कई इंसुलेटर डिस्क एक साथ जुड़ी होती हैं। प्रत्येक डिस्क लगभग 11kV तक के वोल्टेज को झेल सकती है। 66kV के लिए, लगभग 6 डिस्क की एक श्रृंखला का उपयोग किया जाता है। वोल्टेज बढ़ने पर बस अधिक डिस्क जोड़ी जा सकती हैं। यह पिन इंसुलेटर की तुलना में अधिक लचीला और कुशल तरीका है, जो उच्च वोल्टेज के लिए बहुत बड़ा और भारी हो जाता है।
- यांत्रिक शक्ति: सस्पेंशन इंसुलेटर को विशेष रूप से कंडक्टरों के भारी वजन और हवा के दबाव जैसे यांत्रिक तनावों को संभालने के लिए डिज़ाइन किया गया है। वे कंडक्टर को सीधे टावर के नीचे से निलंबित करते हैं, जिससे तनाव पूरे इंसुलेटर श्रृंखला में समान रूप से वितरित होता है।
- आर्थिक दक्षता: सस्पेंशन इंसुलेटर पिन-प्रकार के इंसुलेटर की तुलना में 66kV लाइनों के लिए अधिक किफायती होते हैं। उनकी मॉड्यूलर डिज़ाइन के कारण क्षतिग्रस्त डिस्क को आसानी से बदला जा सकता है, जिससे पूरे इंसुलेटर को बदलने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे रखरखाव की लागत कम होती है।
- लचीलापन: सस्पेंशन इंसुलेटर कंडक्टरों को ऊपर या नीचे स्विंग करने की अनुमति देते हैं, जिससे तेज हवा या तापमान में बदलाव के कारण होने वाले तनाव को कम करने में मदद मिलती है। यह पिन इंसुलेटर में संभव नहीं है।
- स्व-सफाई और रिसाव दूरी: सस्पेंशन इंसुलेटर की डिस्क-आधारित संरचना सतह पर लंबी रिसाव दूरी प्रदान करती है। यह प्रदूषित वातावरण में फ्लैशओवर (शॉर्ट सर्किट) के जोखिम को कम करता है क्योंकि पानी या गंदगी को चालक पथ बनाने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना पड़ता है।
EHV (Extra-High Voltage) और UHV (Ultra-High Voltage) ट्रांसमिशन में हाल के विकास ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ती मांग और स्थिरता के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये विकास मुख्य रूप से दक्षता बढ़ाने, नुकसान कम करने, और ग्रिड की विश्वसनीयता को बेहतर बनाने पर केंद्रित हैं।
प्रौद्योगिकी में प्रमुख विकास
- एचवीडीसी (HVDC) ट्रांसमिशन: उच्च-वोल्टेज डायरेक्ट करंट (HVDC) तकनीक लंबी दूरी पर, खासकर नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे कि दूरस्थ सौर या पवन फार्मों) को शहरों तक पहुँचाने के लिए एक महत्वपूर्ण विकास है। एचवीडीसी प्रणाली में पारंपरिक एसी (AC) प्रणालियों की तुलना में बिजली का नुकसान बहुत कम होता है।
- उन्नत कंडक्टर (Advanced Conductors): ट्रांसमिशन लाइनों में उच्च तापमान, कम सैग (High-Temperature, Low-Sag) कंडक्टरों का उपयोग बढ़ रहा है। ये कंडक्टर पारंपरिक एसीएसआर (ACSR) कंडक्टरों की तुलना में अधिक बिजली ले जा सकते हैं, जिससे मौजूदा लाइनों की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है बिना नए टावर बनाए।
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स्मार्ट ग्रिड और डिजिटल प्रौद्योगिकियां: ग्रिड के संचालन, निगरानी और नियंत्रण को बेहतर बनाने के लिए डिजिटल तकनीकों का उपयोग हो रहा है।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग (ML): इन तकनीकों का उपयोग ग्रिड की स्थिरता और दक्षता में सुधार के लिए किया जाता है।
- ड्रोन और रोबोट: ट्रांसमिशन लाइनों और सबस्टेशनों की निरीक्षण और रखरखाव के लिए ड्रोन और रोबोट का उपयोग किया जा रहा है। ये थर्मल इमेजिंग, उच्च-रिज़ॉल्यूशन वीडियो और कोरोना कैमरे से लैस होते हैं जो रियल-टाइम डेटा प्रदान करते हैं।
- उन्नत इंसुलेटर: पारंपरिक चीनी मिट्टी (porcelain) के इंसुलेटर के बजाय, सिलिकॉन रबर जैसे पॉलिमर इंसुलेटर का उपयोग बढ़ रहा है। ये इंसुलेटर हल्के, अधिक यांत्रिक रूप से मजबूत होते हैं, और इनकी स्व-सफाई की क्षमता होती है, जो प्रदूषित वातावरण में फ्लैशओवर के जोखिम को कम करती है।
नवाचार का उद्देश्य
इन सभी विकासों का मुख्य उद्देश्य बिजली के नुकसान को कम करके ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना, ग्रिड को अधिक लचीला और विश्वसनीय बनाना, और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के बड़े पैमाने पर एकीकरण को सुगम बनाना है। इन तकनीकों से ग्रिड के प्रबंधन में भी सुधार होता है, जिससे यह विभिन्न चुनौतियों का सामना करने में सक्षम होता है।
कैप और पिन इंसुलेटर (Cap and Pin Insulators) एक प्रकार के डिस्क इंसुलेटर होते हैं जिनका उपयोग उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों में किया जाता है। ये इंसुलेटर व्यक्तिगत इकाइयों के रूप में होते हैं जिन्हें एक साथ जोड़कर एक लंबी श्रृंखला बनाई जाती है।
संरचना
प्रत्येक कैप और पिन इंसुलेटर में तीन मुख्य भाग होते हैं:
- पोर्सिलेन या ग्लास डिस्क (Porcelain or Glass Disc): यह इंसुलेटर का मुख्य भाग होता है और विद्युत इन्सुलेशन प्रदान करता है।
- कैप (Cap): यह इंसुलेटर के शीर्ष पर लगा होता है, जो आमतौर पर एक धातु (जैसे कि कच्चा लोहा या malleable iron) से बना होता है। यह एक डिस्क को दूसरी डिस्क के पिन से जोड़ने का काम करता है।
- पिन (Pin): यह इंसुलेटर के निचले सिरे पर लगा एक धातु (स्टील) का भाग होता है जो अगली डिस्क की कैप में फिट होता है।
कार्यप्रणाली और उपयोग
कैप और पिन इंसुलेटर को एक श्रृंखला में एक के बाद एक जोड़ा जाता है, जिसे इंसुलेटर स्ट्रिंग (insulator string) कहते हैं। प्रत्येक डिस्क श्रृंखला में वोल्टेज का एक हिस्सा वहन करती है। वोल्टेज जितना अधिक होता है, उतनी ही अधिक डिस्क की आवश्यकता होती है।
- सस्पेंशन स्ट्रिंग: जब इंसुलेटरों को कंडक्टर (तार) को टॉवर के नीचे से लटकाने के लिए उपयोग किया जाता है, तो इसे सस्पेंशन स्ट्रिंग कहते हैं। यह सबसे सामान्य उपयोग है।
- स्ट्रेन स्ट्रिंग: जब लाइनों को घुमावदार मोड़ों पर या लाइन के अंत में अत्यधिक यांत्रिक तनाव को सहन करने की आवश्यकता होती है, तो इंसुलेटरों को क्षैतिज रूप से जोड़ा जाता है। इसे स्ट्रेन स्ट्रिंग कहते हैं।
यह डिज़ाइन 11kV से लेकर 765kV और उससे भी अधिक वोल्टेज स्तरों के लिए बहुत उपयुक्त है, क्योंकि इसकी मॉड्यूलर प्रकृति इसे विभिन्न वोल्टेज आवश्यकताओं के अनुसार अनुकूलित करने की अनुमति देती है।
लाभ
- उच्च यांत्रिक शक्ति: ये इंसुलेटर कंडक्टरों के वजन और हवा के दबाव को आसानी से संभाल सकते हैं।
- लचीलापन: एक श्रृंखला में डिस्क की संख्या को बढ़ाकर या घटाकर किसी भी वोल्टेज स्तर के लिए इसका उपयोग किया जा सकता है।
- रखरखाव में आसानी: यदि श्रृंखला में कोई डिस्क क्षतिग्रस्त हो जाती है, तो केवल उसी डिस्क को बदला जा सकता है, जिससे मरम्मत की लागत और समय कम हो जाता है।
लंबी छड़ वाले इंसुलेटर (Long-Rod Insulators) एक प्रकार के विद्युत इंसुलेटर होते हैं जिनका उपयोग उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों में किया जाता है। ये पारंपरिक डिस्क इंसुलेटर श्रृंखलाओं का एक विकल्प हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ प्रदूषण का स्तर अधिक होता है।
संरचना और कार्यप्रणाली
लंबी छड़ वाले इंसुलेटर एक एकल, लंबी छड़ जैसी संरचना से बने होते हैं। ये आमतौर पर पोर्सिलेन या सिलिकॉन रबर जैसे पॉलिमर सामग्री से बनाए जाते हैं। इन पर डिस्क की छतरियों जैसी संरचनाएं होती हैं, लेकिन यह पूरी इकाई एक ही टुकड़े से बनी होती है, जिसमें कोई धातु के जोड़ नहीं होते, सिवाय दोनों सिरों पर लगे अंत-भागों (end-fittings) के।
- पोर्सिलेन लॉन्ग-रॉड इंसुलेटर: ये सिरेमिक से बने होते हैं और एक लंबी, बेलनाकार छड़ के चारों ओर छतरियां होती हैं। इनमें पारंपरिक डिस्क इंसुलेटर की तुलना में कम धातु के हिस्से होते हैं, जिससे उनके बीच फ्लैशओवर का खतरा कम होता है।
- पॉलिमर लॉन्ग-रॉड इंसुलेटर: ये सिलिकॉन रबर जैसी सामग्री से बने होते हैं। इनमें स्वाभाविक रूप से हाइड्रोफोबिक (जल-विकर्षण) गुण होता है, जो पानी की बूंदों को गोल आकार में रखता है और उन्हें सतह पर फैलने से रोकता है। इससे ये स्व-सफाई करने में सक्षम होते हैं और प्रदूषित वातावरण में फ्लैशओवर का जोखिम बहुत कम हो जाता है।
लाभ
लंबी छड़ वाले इंसुलेटर कई लाभ प्रदान करते हैं:
- कम फ्लैशओवर जोखिम: इनमें कैप और पिन इंसुलेटर की तुलना में धातु के जोड़ कम होते हैं। ये जोड़ फ्लैशओवर के लिए एक कमजोर बिंदु हो सकते हैं। एक ही इकाई होने के कारण, फ्लैशओवर की संभावना कम हो जाती है।
- उच्च यांत्रिक शक्ति: इनकी एकल-टुकड़ा संरचना (one-piece construction) पारंपरिक डिस्क श्रृंखलाओं की तुलना में अधिक यांत्रिक शक्ति प्रदान करती है।
- स्व-सफाई क्षमता (पॉलिमर के लिए): पॉलिमर सामग्री की हाइड्रोफोबिक प्रकृति के कारण, प्रदूषक और गंदगी बारिश के पानी के साथ आसानी से धुल जाते हैं, जिससे नियमित रखरखाव की आवश्यकता कम हो जाती है।
- हल्के और स्थापित करने में आसान: पॉलिमर लॉन्ग-रॉड इंसुलेटर पारंपरिक पोर्सिलेन डिस्क श्रृंखलाओं की तुलना में काफी हल्के होते हैं, जिससे उनका परिवहन और स्थापना करना आसान हो जाता है।
इन फायदों के कारण,
लंबी छड़ वाले इंसुलेटर विशेष रूप से उन क्षेत्रों में पसंद किए जाते हैं जहाँ समुद्री नमक, औद्योगिक धुआं या अन्य प्रदूषक होते हैं।
प्रदूषित क्षेत्रों में लंबी छड़ वाले इंसुलेटरों को पारंपरिक कैप और पिन इंसुलेटरों की तुलना में कई कारणों से प्राथमिकता दी जाती है:
- हाइड्रोफोबिसिटी (Hydrophobicity): लंबी छड़ वाले इंसुलेटर, विशेष रूप से पॉलिमर सामग्री से बने, स्वाभाविक रूप से हाइड्रोफोबिक होते हैं। इसका मतलब है कि वे पानी को विकर्षित करते हैं, जिससे पानी उनकी सतह पर एक सतत परत बनाने के बजाय छोटी-छोटी गोल बूंदों के रूप में रहता है। ये बूंदें सतह पर जमी हुई धूल और प्रदूषकों को अपने साथ बहा ले जाती हैं।
- कम रिसाव धारा (Reduced Leakage Current): जब प्रदूषक और नमी एक साथ मिलकर इंसुलेटर की सतह पर जमा होते हैं, तो वे एक चालक पथ बना सकते हैं। यह चालक पथ एक रिसाव धारा (leakage current) का कारण बनता है। लंबी छड़ वाले इंसुलेटर की हाइड्रोफोबिक सतह इस चालक पथ के निर्माण को रोकती है, जिससे रिसाव धारा कम हो जाती है और फ्लैशओवर (short circuit) का जोखिम कम हो जाता है।
- कोई धातु के जोड़ नहीं: कैप और पिन इंसुलेटरों में डिस्क के बीच धातु के जोड़ होते हैं, जो प्रदूषित क्षेत्रों में जंग लगने या खराब होने के प्रति संवेदनशील होते हैं। लंबी छड़ वाले इंसुलेटर एक एकल-टुकड़ा संरचना (one-piece construction) होते हैं, जिसमें कोई आंतरिक धातु के जोड़ नहीं होते, जिससे उनकी विश्वसनीयता बढ़ जाती है।
- स्व-सफाई (Self-Cleaning): पानी को हटाकर प्रदूषकों को धोने की उनकी प्राकृतिक क्षमता के कारण, लंबी छड़ वाले इंसुलेटरों को कम मैन्युअल सफाई की आवश्यकता होती है। यह रखरखाव की लागत और समय को बहुत कम कर देता है।
संक्षेप में,
लंबी छड़ वाले इंसुलेटर अपनी जल-विकर्षण और स्व-सफाई विशेषताओं के कारण प्रदूषित और नम वातावरण में अधिक विश्वसनीय, कुशल और कम रखरखाव वाले होते हैं, जिससे वे पारंपरिक इंसुलेटरों के लिए एक बेहतर विकल्प बन जाते हैं।
इन्सुलेटर के प्रदर्शन पर हवा और बारिश दोनों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है, लेकिन उनके प्रभाव अलग-अलग होते हैं।
बारिश का प्रभाव
बारिश इन्सुलेटर के प्रदर्शन को कई तरह से प्रभावित कर सकती है:
- रिसाव धारा (Leakage Current): जब बारिश होती है, तो पानी इन्सुलेटर की सतह पर जमा हो जाता है। यदि हवा में प्रदूषण (जैसे धूल, नमक या औद्योगिक धुआं) है, तो यह पानी इन प्रदूषकों के साथ मिलकर एक प्रवाहकीय (conductive) परत बना देता है। यह परत इन्सुलेटर के इन्सुलेशन को कम कर देती है, जिससे एक रिसाव धारा बहने लगती है। यदि यह धारा बहुत अधिक हो जाती है, तो यह सतह पर छोटे-छोटे स्पार्क्स (आर्किंग) पैदा कर सकती है, जो अंततः फ्लैशओवर (short circuit) का कारण बन सकता है।
- सफाई का प्रभाव: हालांकि, कुछ मामलों में, बारिश इन्सुलेटर की सतह पर जमी हुई गंदगी और प्रदूषकों को धोकर प्राकृतिक रूप से सफाई का काम करती है। यह विशेष रूप से उन इंसुलेटरों के लिए फायदेमंद है जिनमें स्व-सफाई (self-cleaning) गुण होते हैं, जैसे कि पॉलिमर इंसुलेटर।
हवा का प्रभाव
हवा का प्रभाव भी महत्वपूर्ण है:
- यांत्रिक तनाव: तेज हवा के कारण ट्रांसमिशन लाइनों में कंपन और आंदोलन हो सकता है, जिससे इंसुलेटर पर यांत्रिक तनाव बढ़ता है। यदि इंसुलेटर इस तरह के तनाव को झेलने के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए हैं, तो इससे समय से पहले उनका टूटना या क्षतिग्रस्त होना हो सकता है।
- प्रदूषण का संचय: हवा अपने साथ धूल, नमक और अन्य प्रदूषकों को उड़ाकर इंसुलेटर की सतह पर जमा कर सकती है। यह जमाव, नमी (बारिश या कोहरे) के साथ मिलकर रिसाव धारा और फ्लैशओवर की समस्या को बढ़ा देता है।
- बारिश के साथ संयुक्त प्रभाव: हवा और बारिश का संयुक्त प्रभाव अक्सर एक-दूसरे के प्रभाव को बढ़ा देता है। उदाहरण के लिए, तेज हवा से चलने वाली बारिश प्रदूषकों को इन्सुलेटर के अंदरूनी या छिपे हुए हिस्सों तक पहुँचा सकती है, जहाँ वे आसानी से धुल नहीं पाते।
इन्सुलेटर का रखरखाव आवश्यक है ताकि विद्युत प्रणाली की सुरक्षा, विश्वसनीयता और कार्यक्षमता सुनिश्चित की जा सके।
रखरखाव का महत्व
- विफलता की रोकथाम: समय के साथ, इन्सुलेटर की सतह पर धूल, नमक, प्रदूषण और नमी जमा हो जाती है, जिससे फ्लैशओवर (शॉर्ट सर्किट) का खतरा बढ़ जाता है। नियमित रखरखाव (जैसे सफाई और निरीक्षण) इस जमाव को हटाता है और अचानक विफलता को रोकता है।
- सुरक्षा: क्षतिग्रस्त या खराब इन्सुलेटर बिजली के झटके और आग का कारण बन सकते हैं। रखरखाव से इन जोखिमों को कम किया जा सकता है।
- विश्वसनीयता में सुधार: एक अच्छी तरह से रखा हुआ इन्सुलेटर बिना किसी रुकावट के बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करता है। यह बिजली कटौती को कम करने में मदद करता है।
- जीवनकाल में वृद्धि: नियमित निरीक्षण और समय पर मरम्मत से इन्सुलेटर का जीवनकाल बढ़ जाता है, जिससे महंगे प्रतिस्थापन की आवश्यकता कम हो जाती है।
- प्रदर्शन में वृद्धि: रखरखाव से यह सुनिश्चित होता है कि इन्सुलेटर अपनी उच्चतम क्षमता पर कार्य करे।
रखरखाव के तरीके
- सफाई: इन्सुलेटर की सतह से धूल, गंदगी और प्रदूषण को हटाने के लिए नियमित रूप से सफाई की जाती है। यह गीले कपड़े, पानी के स्प्रे या विशेष सफाई एजेंटों का उपयोग करके किया जा सकता है।
- निरीक्षण: इन्सुलेटर में दरार, चिपिंग, या धातु के भागों में जंग की जांच के लिए दृश्य निरीक्षण किया जाता है।
- परीक्षण: समय-समय पर इन्सुलेशन प्रतिरोध और अन्य विद्युत परीक्षण किए जाते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इन्सुलेटर ठीक से काम कर रहे हैं।
- प्रतिस्थापन: यदि कोई इन्सुलेटर गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हो जाता है या अपने प्रदर्शन मानकों को पूरा करने में विफल रहता है, तो उसे बदल दिया जाता है।
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