रिले कैसे काम करता है? ( How does a relay work )

रिले (relay) एक इलेक्ट्रिकल स्विच है जिसे विद्युत धारा के माध्यम से संचालित किया जाता है। इसका उपयोग एक कम पावर वाले सर्किट से एक उच्च पावर वाले सर्किट को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।

रिले के मुख्य भाग इस प्रकार हैं:

  • इलेक्ट्रोमैग्नेट (Electromagnet): यह एक कॉइल होती है, जिसमें जब करंट प्रवाहित होता है, तो यह एक चुंबक की तरह व्यवहार करती है।
  • आर्मेचर (Armature): यह एक चलित (movable) धातु का टुकड़ा होता है जो इलेक्ट्रोमैग्नेट की तरफ आकर्षित होता है।
  • संपर्क बिंदु (Contacts): ये दो या दो से अधिक धातु के बिंदु होते हैं। जब आर्मेचर चलता है, तो ये संपर्क बिंदु या तो जुड़ जाते हैं (close) या अलग हो जाते हैं (open), जिससे सर्किट चालू या बंद होता है।

रिले कैसे काम करता है?

​जब रिले के कॉइल में कम मात्रा में करंट भेजा जाता है, तो इलेक्ट्रोमैग्नेट सक्रिय हो जाता है। यह चुंबकीय बल आर्मेचर को अपनी ओर खींचता है, जिससे संपर्क बिंदु आपस में जुड़ जाते हैं। इन संपर्क बिंदुओं के जुड़ने से उच्च पावर वाला सर्किट चालू हो जाता है। जब कॉइल में करंट बंद कर दिया जाता है, तो चुंबकीय बल समाप्त हो जाता है, और आर्मेचर वापस अपनी मूल स्थिति में आ जाता है, जिससे संपर्क बिंदु अलग हो जाते हैं और उच्च पावर वाला सर्किट बंद हो जाता है।

रिले का उपयोग कहाँ होता है?

​रिले का उपयोग कई जगहों पर होता है, जैसे:

  • कारों में: हेडलाइट्स, हॉर्न और स्टार्टर मोटर जैसे उच्च पावर वाले उपकरणों को नियंत्रित करने के लिए।
  • औद्योगिक मशीनों में: बड़े मोटरों और हीटिंग सिस्टम को चालू और बंद करने के लिए।
  • घरेलू उपकरणों में: एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर में कंप्रेसर को नियंत्रित करने के लिए।
  • सुरक्षा प्रणालियों में: ऑटोमेटिक दरवाज़ों और अलार्म सिस्टम को नियंत्रित करने के लिए।

संक्षेप में, 

रिले एक सुरक्षा उपकरण के रूप में काम करता है जो एक छोटे सिग्नल का उपयोग करके एक बड़े लोड को सुरक्षित रूप से नियंत्रित करने में मदद करता है।


रिले एक विद्युत-संचालित स्विच है। इसका मुख्य कार्य एक छोटे विद्युत संकेत का उपयोग करके एक अलग, अक्सर उच्च-शक्ति वाले सर्किट को नियंत्रित करना है। यह एक रिमोट कंट्रोल की तरह काम करता है।

​रिले के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं:

  • कम शक्ति वाले संकेत से उच्च-शक्ति भार को नियंत्रित करना: यह रिले का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। रिले एक कम-वोल्टेज, कम-करंट वाले संकेत (जैसे माइक्रोकंट्रोलर से) का उपयोग करके मोटर या प्रकाश जैसे उच्च-वोल्टेज या उच्च-करंट वाले उपकरण को सुरक्षित रूप से चालू या बंद करने की अनुमति देता है। यह नियंत्रण और भार सर्किट के बीच विद्युत अलगाव (electrical isolation) भी प्रदान करता है, जिससे संवेदनशील नियंत्रण इलेक्ट्रॉनिक्स को उच्च वोल्टेज और करंट से बचाया जा सके।
  • एक सुरक्षा उपकरण के रूप में कार्य करना: रिले को सर्किट में असामान्य स्थितियों, जैसे ओवरकरंट या ओवरवोल्टेज, का पता लगाने के लिए कैलिब्रेट किया जा सकता है। जब कोई दोष (fault) पाया जाता है, तो रिले अपने संपर्कों (contacts) को खोल देता है, जिससे सर्किट टूट जाता है और उपकरण को नुकसान होने से बचाता है।
  • सर्किट स्वचालन (Automation) और नियंत्रण प्रदान करना: रिले स्वचालित प्रणालियों में महत्वपूर्ण घटक होते हैं। इनका उपयोग विभिन्न उपकरणों के संचालन के क्रम को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है, जिससे सटीक समय और समन्वय संभव होता है। उदाहरण के लिए, एक फैक्ट्री में, एक रिले एक नियंत्रण प्रणाली से संकेत प्राप्त करके एक मशीन को चालू कर सकता है, और कुछ सेकंड बाद, दूसरी मशीन को चालू कर सकता है।
  • कई सर्किट्स को नियंत्रित करना: रिले के लिए एक ही इनपुट संकेत का उपयोग एक साथ कई स्वतंत्र सर्किट्स को नियंत्रित करने के लिए किया जा सकता है। यह जटिल प्रणालियों में रिले को उपयोगी बनाता है जहां एक ही कमांड से कई क्रियाएं शुरू करने की आवश्यकता होती है।

​रिले का उपयोग कई तरह के अनुप्रयोगों में किया जाता है:

  • ऑटोमोटिव प्रणालियाँ (Automotive Systems): कारों में, ये हेडलाइट्स, हॉर्न और पावर विंडो जैसे घटकों को नियंत्रित करते हैं।
  • औद्योगिक स्वचालन (Industrial Automation): ये कारखानों में मोटर्स और अन्य उपकरणों को नियंत्रित करते हैं।
  • घरेलू उपकरण (Home Appliances): ये वाशिंग मशीन, रेफ्रिजरेटर और एयर कंडीशनर में पाए जाते हैं।


रिले को उनके संचालन के सिद्धांत के आधार पर मुख्य रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

​1. विद्युतचुंबकीय रिले (Electromagnetic Relay) 

​ये सबसे आम प्रकार की रिले हैं जो विद्युत चुंबकत्व के सिद्धांत पर काम करती हैं। इनमें एक कॉइल (तार का कुंडल) होता है जो एक विद्युत चुंबक बनाता है। जब कॉइल में करंट प्रवाहित होता है, तो यह एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है जो एक आर्मेचर (चलने वाला भाग) को खींचता है, जिससे विद्युत संपर्क (electrical contacts) खुलते या बंद होते हैं।

इनकी मुख्य विशेषताएँ:

  • यांत्रिक गति: इसमें यांत्रिक भाग होते हैं जो संचालित होते हैं।
  • उपयोग: कम लागत, उच्च करंट भार (heavy current load) और उच्च वोल्टेज स्विचिंग के लिए उपयुक्त होते हैं।
  • उदाहरण: आर्मेचर टाइप रिले, रीड रिले (reed relay)।

​2. ठोस अवस्था रिले (Solid-State Relay - SSR) 

​ये रिले पूरी तरह से इलेक्ट्रॉनिक घटकों से बनी होती हैं और इनमें कोई चलने वाला या यांत्रिक भाग नहीं होता। ये सेमीकंडक्टर स्विचिंग उपकरणों (जैसे, ट्रांजिस्टर, SCR, TRIAC) का उपयोग करती हैं।

 इनकी मुख्य विशेषताएँ:

  • यांत्रिक भागों की अनुपस्थिति: इनमें कोई भी यांत्रिक भाग नहीं होता, जिससे टूट-फूट और शोर नहीं होता।
  • तेज स्विचिंग: ये बहुत तेज़ी से काम करती हैं और उच्च-आवृत्ति स्विचिंग अनुप्रयोगों के लिए आदर्श हैं।
  • लंबे समय तक चलने वाली: इनमें यांत्रिक टूट-फूट न होने के कारण इनका जीवनकाल लंबा होता है।
  • उपयोग: तेज़ स्विचिंग, उच्च-आवृत्ति अनुप्रयोग और शोर-मुक्त संचालन के लिए उपयुक्त।

इन दो मुख्य प्रकारों के अलावा, 

हाइब्रिड रिले (hybrid relay) भी होती हैं जो विद्युतचुंबकीय और ठोस अवस्था रिले दोनों के गुणों को मिलाकर बनती हैं।


इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले (electromechanical relay - EMR) और स्टैटिक रिले (static relay), जिन्हें सॉलिड-स्टेट रिले (solid-state relay - SSR) भी कहते हैं, के बीच मुख्य अंतर उनके संचालन के सिद्धांत में है।

इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले (EMR)

​इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले विद्युतचुंबकत्व के सिद्धांत पर काम करती हैं। इनमें एक कॉइल (कुंडल) और यांत्रिक रूप से चलने वाले भाग (जैसे आर्मेचर और संपर्क) होते हैं। जब कॉइल में करंट प्रवाहित होता है, तो यह एक चुंबकीय क्षेत्र बनाता है जो आर्मेचर को खींचता है, जिससे स्विच के संपर्क खुलते या बंद होते हैं।

फायदे

  • लागत प्रभावी: ये आमतौर पर स्टैटिक रिले की तुलना में कम खर्चीले होते हैं।
  • विद्युत अलगाव: ये नियंत्रण और लोड सर्किट के बीच पूर्ण विद्युत अलगाव प्रदान करते हैं, क्योंकि उनके संपर्क भौतिक रूप से अलग होते हैं।
  • उच्च करंट क्षमता: ये अक्सर बड़े विद्युत भार को नियंत्रित करने में बेहतर होते हैं।

नुकसान

  • धीमी गति: इनमें यांत्रिक गति के कारण स्विचिंग की गति धीमी होती है।
  • जीवनकाल: लगातार उपयोग से चलने वाले भाग घिस जाते हैं, जिससे इनका जीवनकाल कम होता है।
  • शोर: स्विचिंग के दौरान "क्लिक" जैसी ध्वनि उत्पन्न होती है।

स्टैटिक रिले (SSR)

​स्टैटिक रिले में कोई भी चलने वाला या यांत्रिक भाग नहीं होता है। ये बिजली के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए सेमीकंडक्टर घटकों (जैसे ट्रांजिस्टर, SCR) का उपयोग करते हैं।

फायदे

  • तेज़ स्विचिंग: ये बहुत तेज़ी से काम करती हैं और उच्च-आवृत्ति वाले अनुप्रयोगों के लिए आदर्श हैं।
  • लंबा जीवनकाल: इनमें कोई यांत्रिक भाग नहीं होता, इसलिए टूट-फूट नहीं होती और इनका जीवनकाल बहुत लंबा होता है।
  • शांत संचालन: ये बिना किसी शोर के काम करती हैं।
  • झटके और कंपन के प्रति प्रतिरोधी: चूंकि इनमें कोई चलने वाला भाग नहीं होता, ये झटके और कंपन वाले वातावरण में बेहतर प्रदर्शन करती हैं।

नुकसान

  • उच्च लागत: ये आमतौर पर इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले से अधिक महंगे होते हैं।
  • कम अलगाव: ये कम विद्युत अलगाव प्रदान करते हैं और ओवरवॉल्टेज स्पाइक्स के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
  • गर्मी: उच्च करंट प्रवाहित होने पर ये गर्मी उत्पन्न कर सकते हैं, जिसके लिए हीट सिंक की आवश्यकता होती है।

संक्षेप में, 

चुनाव एप्लिकेशन की आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। यदि कम लागत, पूर्ण विद्युत अलगाव और उच्च करंट क्षमता की आवश्यकता है, तो इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले बेहतर है। यदि तेज़ स्विचिंग गति, लंबा जीवनकाल और शांत संचालन महत्वपूर्ण हैं, तो स्टैटिक रिले अधिक उपयुक्त होती है।


रिले का कार्य सिद्धांत विद्युतचुंबकीय आकर्षण (electromagnetic attraction) पर आधारित है। 

​जब रिले की कॉइल (तार के कुंडल) में एक छोटा विद्युत प्रवाह भेजा जाता है, तो यह एक विद्युत चुंबक बनाता है। यह चुंबकीय क्षेत्र एक धातु के आर्मेचर (चलने वाले भाग) को अपनी ओर आकर्षित करता है, जिससे वह गति करता है।

रिले का संचालन

​यह यांत्रिक गति आर्मेचर से जुड़े संपर्कों (contacts) को खोलती या बंद करती है, जिससे एक अलग, उच्च-शक्ति वाला सर्किट नियंत्रित होता है।

  1. सामान्यतः खुला (Normally Open - NO): इस स्थिति में, जब रिले निष्क्रिय होता है तो संपर्क खुले होते हैं। जब कॉइल में करंट भेजा जाता है, तो आर्मेचर संपर्क को बंद कर देता है और सर्किट पूरा हो जाता है।
  2. सामान्यतः बंद (Normally Closed - NC): इस स्थिति में, जब रिले निष्क्रिय होता है तो संपर्क बंद होते हैं। जब कॉइल में करंट भेजा जाता है, तो आर्मेचर संपर्क को खोल देता है और सर्किट टूट जाता है।

​जब कॉइल से करंट हटा दिया जाता है, तो एक स्प्रिंग या गुरुत्वाकर्षण बल आर्मेचर को उसकी मूल स्थिति में वापस ले आता है, और संपर्क अपनी सामान्य स्थिति (NC या NO) में लौट आते हैं।

​यह रिले को एक प्रकार के "रिमोट कंट्रोल" के रूप में कार्य करने की अनुमति देता है, जहाँ एक छोटा विद्युत संकेत एक बड़े सर्किट को नियंत्रित कर सकता है।


विद्युतचुंबकीय रिले एक प्रकार का विद्युत-संचालित स्विच है जो एक विद्युतचुंबकीय तंत्र का उपयोग करके एक सर्किट को नियंत्रित करता है। यह सबसे सामान्य प्रकार की रिले है। इसका मुख्य कार्य एक छोटे विद्युत संकेत का उपयोग करके एक बड़े विद्युत भार को नियंत्रित करना है, जबकि दोनों सर्किटों के बीच विद्युत अलगाव बनाए रखना है।

संरचना और घटक

​एक विद्युतचुंबकीय रिले में मुख्य रूप से निम्नलिखित घटक होते हैं:

  • विद्युतचुंबक (Electromagnet): यह एक लोहे की कोर (core) होती है जिसके चारों ओर एक कॉइल (कुंडल) लपेटा होता है। जब कॉइल में करंट प्रवाहित होता है, तो यह एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
  • आर्मेचर (Armature): यह एक चल धातु का टुकड़ा होता है जो चुंबक के सामने स्थित होता है। यह चुंबकीय क्षेत्र से आकर्षित होता है और घूम सकता है।
  • संपर्क (Contacts): ये विद्युत स्विचिंग पॉइंट होते हैं। इसमें दो प्रकार के संपर्क होते हैं:
    • सामान्यतः खुला (Normally Open - NO): जब रिले निष्क्रिय होता है तो यह संपर्क खुला रहता है।
    • सामान्यतः बंद (Normally Closed - NC): जब रिले निष्क्रिय होता है तो यह संपर्क बंद रहता है।
  • स्प्रिंग (Spring): यह आर्मेचर को उसकी मूल स्थिति में वापस लाने के लिए जिम्मेदार होता है, जब कॉइल से करंट हटा लिया जाता है।

कार्य सिद्धांत

​विद्युतचुंबकीय रिले का कार्य सिद्धांत सरल है:

  1. सक्रियण (Activation): जब कॉइल को कम-शक्ति वाला विद्युत संकेत मिलता है, तो वह एक विद्युत चुंबक बन जाता है।
  2. आकर्षण (Attraction): यह विद्युत चुंबक आर्मेचर को अपनी ओर आकर्षित करता है, जिससे वह घूमता है।
  3. स्विचिंग (Switching): आर्मेचर की इस गति के कारण, संपर्क अपनी स्थिति बदलते हैं (या तो NO से बंद हो जाते हैं या NC से खुल जाते हैं)।
  4. निष्क्रियण (Deactivation): जब कॉइल से विद्युत प्रवाह बंद कर दिया जाता है, तो चुंबकीय क्षेत्र समाप्त हो जाता है और स्प्रिंग आर्मेचर को उसकी मूल स्थिति में वापस खींच लेता है, जिससे संपर्क अपनी सामान्य स्थिति में लौट आते हैं।

इस प्रक्रिया से, 

एक छोटा विद्युत संकेत (नियंत्रण सर्किट) एक बड़े विद्युत भार (मुख्य सर्किट) को सुरक्षित रूप से नियंत्रित कर सकता है।

​यह वीडियो रिले के कार्य सिद्धांत को विस्तार से समझाता है, जिसमें इसके मुख्य घटकों और उनके कार्य करने के तरीके को दर्शाया गया है।



थर्मल रिले, जिसे थर्मल ओवरलोड रिले (Thermal Overload Relay) भी कहा जाता है, एक सुरक्षा उपकरण है जिसका उपयोग विद्युत मोटरों और अन्य उपकरणों को ओवरलोड या ज़्यादा करंट से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए किया जाता है। यह रिले सीधे विद्युत चुंबकत्व के बजाय गर्मी के सिद्धांत पर काम करती है।

कार्य सिद्धांत 

​थर्मल रिले का कार्य सिद्धांत द्विधात्विक पट्टी (bimetallic strip) पर आधारित है।

  • ​यह पट्टी दो अलग-अलग धातुओं से बनी होती है जिनकी ऊष्मीय विस्तार (thermal expansion) की दरें अलग-अलग होती हैं।
  • ​जब सर्किट में ज़्यादा करंट प्रवाहित होता है, तो जूल के तापन नियम के अनुसार, उत्पन्न होने वाली गर्मी भी बढ़ जाती है (H \propto I^2Rt)।
  • ​यह बढ़ी हुई गर्मी द्विधात्विक पट्टी को गर्म करती है। चूँकि दोनों धातुओं के विस्तार की दर अलग है, पट्टी एक तरफ मुड़ जाती है।
  • ​जब यह झुकाव एक निश्चित बिंदु पर पहुँचता है, तो यह एक यांत्रिक तंत्र को ट्रिगर करता है जो रिले के संपर्कों को खोल देता है, जिससे मोटर की बिजली आपूर्ति कट जाती है और उसे जलने से बचाया जा सकता है।

मुख्य कार्य और उपयोग

​थर्मल रिले का मुख्य कार्य मोटर को अधिभार (overload) से सुरक्षा प्रदान करना है।

  • ओवरलोड से सुरक्षा: जब मोटर पर निर्धारित से ज़्यादा लोड पड़ता है, तो वह ज़्यादा करंट खींचती है। थर्मल रिले इस अतिरिक्त करंट से उत्पन्न गर्मी को पहचान कर मोटर को स्वचालित रूप से बंद कर देती है।
  • फेज फेलियर से सुरक्षा: कुछ थर्मल रिले मोटर को फेज लॉस या फेज अनबैलेंसिंग से भी बचाते हैं, जो मोटर वाइंडिंग को नुकसान पहुँचा सकता है।

​इनका व्यापक रूप से औद्योगिक प्रणालियों में, विशेष रूप से मोटर स्टार्टर के साथ उपयोग किया जाता है, जहाँ वे मोटर के लिए एक किफायती और विश्वसनीय सुरक्षा उपकरण के रूप में काम करते हैं।

स्थैतिक रिले (Static Relay), जिसे सॉलिड-स्टेट रिले (Solid-State Relay - SSR) भी कहते हैं, एक प्रकार का इलेक्ट्रॉनिक स्विचिंग डिवाइस है जिसमें कोई भी यांत्रिक या गतिमान भाग नहीं होता है। यह विद्युतचुंबकीय रिले के विपरीत होता है, जो स्विचिंग क्रिया के लिए चलने वाले भागों का उपयोग करते हैं।

कार्य सिद्धांत

​स्थैतिक रिले अपने संचालन के लिए सेमीकंडक्टर घटकों जैसे ट्रांजिस्टर, TRIAC, या SCR का उपयोग करता है।  इसमें एक नियंत्रण सर्किट (control circuit) होता है जो एक छोटे संकेत का उपयोग करके मुख्य लोड सर्किट को चालू या बंद करता है।

​इनमें आमतौर पर एक ऑप्टोकपलर (optocoupler) या फोटोकपल का उपयोग होता है, जो नियंत्रण और लोड सर्किट के बीच पूर्ण विद्युत अलगाव प्रदान करता है। जब नियंत्रण संकेत दिया जाता है, तो ऑप्टोकपलर के भीतर एक LED (प्रकाश उत्सर्जक डायोड) प्रकाश उत्सर्जित करता है, जो दूसरे छोर पर एक फोटोसेंसिटिव डिवाइस को सक्रिय करता है, जिससे मुख्य सर्किट में करंट प्रवाहित होता है।

फायदे और नुकसान

फायदे

  • तेज स्विचिंग: इनमें यांत्रिक भागों की अनुपस्थिति के कारण स्विचिंग गति बहुत तेज होती है (मिलीसेकंड से भी कम)।
  • लंबा जीवनकाल: इनमें कोई यांत्रिक टूट-फूट नहीं होती, जिससे इनका जीवनकाल बहुत लंबा होता है।
  • शांत संचालन: स्विचिंग के दौरान कोई शोर उत्पन्न नहीं होता।
  • आघात और कंपन प्रतिरोधी: बिना चलने वाले भागों के कारण, ये झटके और कंपन वाले वातावरण में अच्छी तरह से काम करते हैं।

नुकसान

  • उच्च लागत: ये आमतौर पर इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले से अधिक महंगे होते हैं।
  • गर्मी उत्पन्न करना: उच्च करंट पर काम करते समय ये गर्मी उत्पन्न कर सकते हैं, जिसके लिए अक्सर हीट सिंक की आवश्यकता होती है।

उपयोग

​स्थैतिक रिले का उपयोग उन अनुप्रयोगों में किया जाता है जहाँ तेज स्विचिंग, उच्च विश्वसनीयता और कम रखरखाव की आवश्यकता होती है। ये आमतौर पर ताप नियंत्रण प्रणालियों (heating control systems), मोटर नियंत्रण, और रोबोटिक्स में उपयोग होते हैं।

​यह वीडियो बताता है कि सॉलिड-स्टेट रिले (SSR) क्या है और यह कैसे काम करती है, जिसमें इसके फायदे और नुकसान भी शामिल हैं।



डिजिटल रिले एक प्रकार की सुरक्षा रिले है जो विद्युत प्रणालियों में दोषों (faults) का पता लगाने और उनसे सुरक्षा प्रदान करने के लिए डिजिटल सिग्नल प्रोसेसर (DSP) या माइक्रोकंट्रोलर का उपयोग करती है। यह पारंपरिक इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले की तुलना में अधिक उन्नत और बहुमुखी है।

कार्य सिद्धांत

​डिजिटल रिले का कार्य सिद्धांत डेटा प्रसंस्करण (data processing) पर आधारित है। यह एनालॉग इनपुट (जैसे करंट और वोल्टेज) को डिजिटल डेटा में परिवर्तित करती है।

  1. एनालॉग-टू-डिजिटल रूपांतरण (ADC): रिले से जुड़े सेंसर (करंट ट्रांसफॉर्मर और वोल्टेज ट्रांसफॉर्मर) से आने वाले एनालॉग संकेतों को एनालॉग-टू-डिजिटल कनवर्टर (ADC) द्वारा डिजिटल रूप में परिवर्तित किया जाता है।
  2. डेटा प्रोसेसिंग: यह डिजिटल डेटा तब एक डिजिटल सिग्नल प्रोसेसर (DSP) या माइक्रोकंट्रोलर द्वारा संसाधित किया जाता है। यह प्रोसेसर पूर्व-प्रोग्राम किए गए एल्गोरिदम (algorithms) का उपयोग करके दोषों का विश्लेषण करता है।
  3. ट्रिप सिग्नल: यदि रिले के एल्गोरिदम को कोई दोष (जैसे ओवरकरंट, अंडरवोल्टेज, या ग्राउंड फॉल्ट) मिलता है, तो यह तुरंत एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करता है, जो सर्किट ब्रेकर को सर्किट खोलने और उपकरण को नुकसान से बचाने का निर्देश देता है।

डिजिटल रिले के फायदे

​डिजिटल रिले के कई फायदे हैं जो उन्हें आधुनिक विद्युत प्रणालियों में अधिक लोकप्रिय बनाते हैं:

  • उच्च सटीकता: डिजिटल प्रसंस्करण के कारण ये बहुत सटीक होते हैं।
  • बहुमुखी प्रतिभा (Versatility): एक ही डिजिटल रिले को सॉफ्टवेयर के माध्यम से कई अलग-अलग सुरक्षा कार्यों के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है।
  • संचार क्षमता: ये अक्सर SCADA (Supervisory Control and Data Acquisition) प्रणालियों के साथ संचार कर सकते हैं, जिससे दूरस्थ निगरानी और नियंत्रण संभव होता है।
  • आत्म-निदान (Self-diagnosis): ये अपनी आंतरिक स्थिति का पता लगा सकते हैं और खराबी की रिपोर्ट कर सकते हैं।

​डिजिटल रिले का उपयोग मुख्य रूप से पावर ग्रिड, सबस्टेशन, और औद्योगिक बिजली वितरण प्रणालियों में होता है, जहाँ विश्वसनीय और सटीक सुरक्षा की आवश्यकता होती है।



माइक्रोप्रोसेसर-आधारित रिले एक उन्नत सुरक्षा रिले है जो विद्युत प्रणालियों में दोषों का पता लगाने, उनका विश्लेषण करने और उनसे सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक माइक्रोप्रोसेसर का उपयोग करती है। यह पारंपरिक रिले की तुलना में अधिक बुद्धिमान, बहुमुखी और सटीक है।

कार्य सिद्धांत

​यह रिले पूरी तरह से सॉफ्टवेयर और डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स पर काम करती है। इसका कार्य सिद्धांत डेटा प्रसंस्करण (data processing) पर आधारित है, जिसमें निम्नलिखित चरण शामिल हैं:

  1. डेटा अधिग्रहण (Data Acquisition): रिले से जुड़े सेंसर (जैसे करंट ट्रांसफार्मर और वोल्टेज ट्रांसफार्मर) से आने वाले एनालॉग संकेतों को एनालॉग-टू-डिजिटल कनवर्टर (ADC) द्वारा डिजिटल रूप में परिवर्तित किया जाता है।
  2. माइक्रोप्रोसेसर द्वारा प्रसंस्करण (Processing by Microprocessor): यह डिजिटल डेटा तब माइक्रोप्रोसेसर द्वारा संसाधित किया जाता है। यह माइक्रोप्रोसेसर पूर्व-प्रोग्राम किए गए एल्गोरिदम (algorithms) का उपयोग करके डेटा का विश्लेषण करता है। यह विश्लेषण यह निर्धारित करता है कि क्या कोई दोष हुआ है, जैसे ओवरकरंट, शॉर्ट सर्किट, या वोल्टेज असंतुलन।
  3. निर्णय लेना (Decision Making): यदि माइक्रोप्रोसेसर को कोई दोष मिलता है जो सुरक्षा सेटिंग्स से मेल खाता है, तो यह तुरंत एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करता है।
  4. आउटपुट (Output): यह ट्रिप सिग्नल सर्किट ब्रेकर को सर्किट खोलने का निर्देश देता है, जिससे उपकरण और प्रणाली को नुकसान होने से बचाया जा सके।

प्रमुख विशेषताएँ और लाभ

​माइक्रोप्रोसेसर-आधारित रिले में कई विशेषताएँ होती हैं जो इन्हें पारंपरिक रिले से बेहतर बनाती हैं:

  • सटीकता और संवेदनशीलता: ये बहुत सटीक होते हैं और छोटी से छोटी गड़बड़ी का भी पता लगा सकते हैं।
  • बहुमुखी प्रतिभा (Versatility): एक ही रिले को सॉफ्टवेयर के माध्यम से कई सुरक्षा कार्यों के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है, जिससे लागत और जगह की बचत होती है।
  • स्व-निदान (Self-diagnosis): ये अपनी खुद की स्थिति की निगरानी कर सकते हैं और किसी भी खराबी की रिपोर्ट कर सकते हैं।
  • डेटा लॉगिंग: ये दोषों के समय और प्रकार से संबंधित डेटा को स्टोर कर सकते हैं, जिससे बाद में विश्लेषण और समस्या निवारण में मदद मिलती है।
  • संचार: ये अक्सर SCADA (Supervisory Control and Data Acquisition) प्रणालियों के साथ संवाद कर सकते हैं, जिससे दूरस्थ निगरानी और नियंत्रण संभव होता है।

​इस प्रकार की रिले का उपयोग मुख्य रूप से आधुनिक पावर ग्रिड, सबस्टेशन, और जटिल औद्योगिक नियंत्रण प्रणालियों में किया जाता है, जहाँ उच्च स्तर की विश्वसनीयता और सुरक्षा की आवश्यकता होती है।



डिफरेंशियल रिले एक प्रकार की सुरक्षा रिले है जिसका उपयोग विद्युत प्रणाली के एक विशिष्ट क्षेत्र (ज़ोन) में दोषों (faults) का पता लगाने के लिए किया जाता है। इसका कार्य सिद्धांत इनपुट और आउटपुट करंट के बीच के अंतर को मापना है। 

कार्य सिद्धांत

​यह रिले किरचॉफ के वर्तमान नियम (Kirchhoff's Current Law) पर काम करती है, जिसके अनुसार किसी भी नोड (node) में प्रवेश करने और बाहर निकलने वाले धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है।

​डिफरेंशियल रिले को एक ऐसे घटक की सुरक्षा के लिए डिज़ाइन किया जाता है जिसमें इनपुट करंट और आउटपुट करंट सामान्य परिस्थितियों में बराबर होने चाहिए।

  1. माप: रिले के दोनों सिरों पर करंट ट्रांसफार्मर (Current Transformers - CTs) लगाए जाते हैं। एक CT घटक में प्रवेश करने वाले करंट को मापता है और दूसरा बाहर निकलने वाले करंट को मापता है।
  2. तुलना: रिले लगातार दोनों CTs से आने वाले संकेतों की तुलना करती है। सामान्य संचालन के दौरान, इन दोनों धाराओं का वेक्टर अंतर (vector difference) शून्य या बहुत कम होना चाहिए।
  3. दोष का पता लगाना: यदि रिले के संरक्षित क्षेत्र के भीतर कोई दोष (जैसे शॉर्ट सर्किट) होता है, तो इनपुट और आउटपुट करंट के बीच एक बड़ा अंतर उत्पन्न होता है।
  4. ट्रिप सिग्नल: जब यह अंतर एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो रिले तुरंत सक्रिय हो जाती है और एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करती है, जो सर्किट ब्रेकर को सर्किट खोलने का निर्देश देता है और उपकरण को नुकसान से बचाता है।

उपयोग

​डिफरेंशियल रिले का उपयोग उन उपकरणों को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है जहाँ इनपुट और आउटपुट करंट सामान्य रूप से बराबर होते हैं। इनके कुछ प्रमुख उपयोग हैं:

  • ट्रांसफॉर्मर: ट्रांसफॉर्मर की वाइंडिंग को शॉर्ट सर्किट और अन्य आंतरिक दोषों से बचाने के लिए।
  • जनरेटर और मोटर: इनके वाइंडिंग दोषों से सुरक्षा के लिए।
  • बस-बार: सबस्टेशन में बस-बार की सुरक्षा के लिए, जहाँ कई फीडर जुड़े होते हैं।

​यह रिले अपनी सटीकता और तेजी के लिए जानी जाती है, क्योंकि यह केवल अपने निर्धारित सुरक्षा क्षेत्र के भीतर के दोषों पर ही प्रतिक्रिया देती है।


ओवरकरंट रिले एक सुरक्षा उपकरण है जो विद्युत प्रणाली में अधिक करंट (overcurrent) का पता लगाकर सर्किट ब्रेकर को सर्किट खोलने का निर्देश देता है। यह रिले उपकरणों को शॉर्ट सर्किट या ओवरलोड की स्थिति में जलने या क्षतिग्रस्त होने से बचाती है।

कार्य सिद्धांत

​ओवरकरंट रिले एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक करंट प्रवाह का पता लगाने के सिद्धांत पर काम करती है।

  1. करंट की माप: रिले एक करंट ट्रांसफॉर्मर (CT) से जुड़ा होता है जो सर्किट में प्रवाहित होने वाले करंट को लगातार मापता है। CT बड़े करंट को एक छोटे, मापने योग्य स्तर तक कम कर देता है।
  2. सेटिंग से तुलना: रिले को एक निश्चित "पिकअप वैल्यू" (pickup value) पर सेट किया जाता है। जब मापा गया करंट इस सेट वैल्यू से अधिक हो जाता है, तो रिले सक्रिय हो जाती है।
  3. ट्रिप सिग्नल: जब रिले सक्रिय होती है, तो यह एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करती है जो एक सर्किट ब्रेकर को भेज दिया जाता है।
  4. सर्किट को खोलना: सर्किट ब्रेकर इस सिग्नल को प्राप्त करने के बाद स्वचालित रूप से सर्किट को खोल देता है, जिससे ओवरकरंट की स्थिति समाप्त हो जाती है और उपकरण सुरक्षित हो जाते हैं।

​ओवरकरंट रिले को उनकी प्रतिक्रिया के समय के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

  • तात्कालिक ओवरकरंट रिले (Instantaneous Overcurrent Relay): यह बिना किसी समय की देरी के तुरंत काम करती है जब करंट पिकअप वैल्यू से अधिक हो जाता है।
  • निश्चित समय ओवरकरंट रिले (Definite Time Overcurrent Relay): यह एक निश्चित, पूर्व-निर्धारित समय देरी के बाद काम करती है, भले ही करंट कितना भी अधिक हो।
  • व्युत्क्रम समय ओवरकरंट रिले (Inverse Time Overcurrent Relay): इस रिले का संचालन समय करंट की मात्रा के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इसका मतलब है कि करंट जितना अधिक होगा, रिले उतनी ही तेज़ी से काम करेगी।

​ओवरकरंट रिले का उपयोग मुख्य रूप से बिजली वितरण प्रणालियों, ट्रांसफार्मर और मोटर्स की सुरक्षा के लिए किया जाता है।



अंडरवोल्टेज रिले एक सुरक्षा उपकरण है जो विद्युत प्रणाली में वोल्टेज के एक निश्चित सीमा से कम होने पर सर्किट को डिस्कनेक्ट कर देती है। यह रिले वोल्टेज ड्रॉप (voltage drop) की स्थिति में संवेदनशील उपकरणों को नुकसान से बचाने के लिए उपयोग की जाती है।

कार्य सिद्धांत

​अंडरवोल्टेज रिले का कार्य सिद्धांत एक पूर्व-निर्धारित वोल्टेज स्तर से नीचे के वोल्टेज का पता लगाने पर आधारित है।

  1. वोल्टेज की निगरानी: रिले लगातार सर्किट में वोल्टेज के स्तर की निगरानी करती है।
  2. सेटिंग से तुलना: रिले को एक निश्चित "पिकअप वैल्यू" (pickup value) पर सेट किया जाता है, जो सामान्यतः रेटेड वोल्टेज से थोड़ा कम होता है।
  3. सक्रियण: जब मापा गया वोल्टेज इस सेट वैल्यू से नीचे गिर जाता है, तो रिले सक्रिय हो जाती है।
  4. ट्रिप सिग्नल: रिले सक्रिय होने पर एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करती है जो एक सर्किट ब्रेकर को भेजा जाता है।
  5. सर्किट को खोलना: सर्किट ब्रेकर इस सिग्नल को प्राप्त करने के बाद सर्किट को खोल देता है, जिससे वोल्टेज ड्रॉप की स्थिति में उपकरण सुरक्षित रहते हैं।

मुख्य कार्य और उपयोग

​अंडरवोल्टेज रिले का मुख्य कार्य उन उपकरणों की सुरक्षा करना है जो वोल्टेज के उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील होते हैं।

  • मोटर सुरक्षा: यह मोटर को कम वोल्टेज पर चलने से रोकती है, जो उनकी वाइंडिंग को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक उपकरण: यह संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को खराब होने से बचाती है।
  • ऑटोमेशन और नियंत्रण: इसका उपयोग औद्योगिक नियंत्रण प्रणालियों में यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि उपकरण केवल सही वोल्टेज स्तर पर ही काम करें।

​यह रिले उन अनुप्रयोगों में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जहाँ वोल्टेज में अचानक गिरावट से उपकरण या पूरी प्रक्रिया बाधित हो सकती है।


दिशात्मक रिले (Directional Relay) एक सुरक्षा रिले है जो दोषपूर्ण करंट की दिशा का पता लगाने के लिए उपयोग की जाती है। यह विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण होती है जब एक ही सर्किट को दो सिरों से बिजली दी जा रही हो, क्योंकि यह सुनिश्चित करती है कि रिले केवल तभी ट्रिप करे जब करंट संरक्षित क्षेत्र से बाहर की ओर बह रहा हो।

कार्य सिद्धांत

​यह रिले दो मात्राओं के बीच के चरण कोण (phase angle) की तुलना करके काम करती है:

  1. करंट: दोषपूर्ण सर्किट में बहने वाला करंट।
  2. वोल्टेज: एक संदर्भ वोल्टेज।

​यह रिले करंट और वोल्टेज के बीच के चरण संबंध को मापकर यह निर्धारित करती है कि दोषपूर्ण करंट किस दिशा में बह रहा है। यदि करंट रिले के "ट्रिपिंग ज़ोन" (जिसे एक विशिष्ट दिशा के रूप में परिभाषित किया जाता है) में बह रहा है, तो रिले ट्रिप करती है। यदि करंट विपरीत दिशा में बह रहा है, तो रिले ट्रिप नहीं करती, भले ही करंट की मात्रा सामान्य से अधिक हो।

मुख्य कार्य और उपयोग

​दिशात्मक रिले का मुख्य कार्य चुनिंदा सुरक्षा (selective protection) प्रदान करना है।

  • समानांतर फीडर (Parallel Feeders): इसका उपयोग मुख्य रूप से समानांतर फीडर लाइनों की सुरक्षा में किया जाता है, जहाँ एक लाइन में दोष होने पर दूसरी लाइन से भी करंट बह सकता है। दिशात्मक रिले यह सुनिश्चित करती है कि केवल दोषपूर्ण लाइन को ही डिस्कनेक्ट किया जाए, और स्वस्थ लाइन को चालू रखा जाए।
  • रिंग मेन डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम: यह रिंग मेन डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम में भी महत्वपूर्ण है, जहाँ यह बिजली को एक ही दिशा में बहने से रोककर दोषों को अलग करने में मदद करती है।

इस प्रकार, 

दिशात्मक रिले यह सुनिश्चित करती है कि सर्किट ब्रेकर केवल सही समय पर और सही दिशा में कार्य करे, जिससे प्रणाली की विश्वसनीयता और स्थिरता बनी रहती है।



बुचोलज़ रिले (Buchholz Relay) एक प्रकार की सुरक्षा रिले है जिसका उपयोग तेल-निमज्जित ट्रांसफार्मर (oil-immersed transformers) और अन्य तेल से भरे विद्युत उपकरणों को आंतरिक दोषों (internal faults) से बचाने के लिए किया जाता है। यह गैस से चलने वाला एक उपकरण है जो ट्रांसफार्मर टैंक के अंदर उत्पन्न होने वाली गैसों का पता लगाता है, जो आमतौर पर दोषों के कारण बनती हैं।

कार्य सिद्धांत 

​बुचोलज़ रिले का कार्य सिद्धांत ट्रांसफार्मर के टैंक के अंदर उत्पन्न होने वाली गैसों की मात्रा और प्रवाह पर आधारित है। इसे ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक और कंज़र्वेटर (conservator) टैंक के बीच स्थापित किया जाता है।

  1. छोटे दोष (Minor Faults): जब ट्रांसफार्मर में छोटे दोष होते हैं, जैसे कि इन्सुलेशन की शुरुआत, तो यह थोड़ी मात्रा में गैसें उत्पन्न करता है। ये गैसें तेल से ऊपर उठकर रिले के ऊपरी हिस्से में जमा हो जाती हैं। गैस के जमा होने से रिले के ऊपरी हिस्से में लगा फ्लोट (float) नीचे आ जाता है। जब फ्लोट एक निश्चित स्तर से नीचे आता है, तो यह एक अलार्म सर्किट को सक्रिय करता है, जिससे ऑपरेटर को चेतावनी मिलती है।
  2. गंभीर दोष (Major Faults): जब ट्रांसफार्मर में गंभीर दोष होता है (जैसे वाइंडिंग में शॉर्ट सर्किट), तो बड़ी मात्रा में गैसें बहुत तेज़ी से उत्पन्न होती हैं। इन गैसों का तेज़ बहाव तेल को रिले के माध्यम से कंज़र्वेटर टैंक की ओर धकेलता है। यह तेल का प्रवाह रिले में लगे निचले फ्लोट (lower float) को सक्रिय करता है, जो सर्किट ब्रेकर को एक ट्रिप सिग्नल भेजता है। यह सिग्नल तुरंत सर्किट ब्रेकर को खोल देता है और ट्रांसफार्मर को बिजली की आपूर्ति बंद कर देता है, जिससे बड़े नुकसान को रोका जा सकता है।

उपयोग और लाभ

  • मुख्य उपयोग: बुचोलज़ रिले का उपयोग 500 KVA से अधिक क्षमता वाले बड़े ट्रांसफार्मर में किया जाता है।
  • प्रारंभिक चेतावनी: यह छोटे दोषों का भी पता लगा सकती है, जिससे ऑपरेटर को संभावित गंभीर समस्या से पहले ही कार्रवाई करने का समय मिल जाता है।
  • सुरक्षा: यह ट्रांसफार्मर को आंतरिक दोषों जैसे कि इंटर-टर्न शॉर्ट सर्किट, कोर फॉल्ट, और वाइंडिंग फॉल्ट से बचाने के लिए एक विश्वसनीय और संवेदनशील उपकरण है।



रिवर्स पावर रिले (Reverse Power Relay) एक सुरक्षा उपकरण है जो यह पता लगाने के लिए उपयोग किया जाता है कि क्या किसी जनरेटर या विद्युत प्रणाली में बिजली का प्रवाह गलत दिशा में हो रहा है। इसका उपयोग विशेष रूप से उन प्रणालियों में किया जाता है जहाँ जनरेटर ग्रिड से जुड़ा होता है या समानांतर में काम कर रहा होता है।

कार्य सिद्धांत

​यह रिले जनरेटर की सुरक्षा करती है जब वह "मोटरिंग" (motoring) की स्थिति में चला जाता है। यह स्थिति तब होती है जब जनरेटर की प्राइम मूवर (prime mover - जैसे टर्बाइन या डीजल इंजन) विफल हो जाती है, और जनरेटर ग्रिड से शक्ति खींचना शुरू कर देता है, जिससे वह एक मोटर की तरह कार्य करने लगता है।

​रिवर्स पावर रिले का कार्य सिद्धांत इस प्रकार है:

  1. बिजली के प्रवाह की दिशा को मापना: यह रिले लगातार जनरेटर में और उससे बहने वाली बिजली की दिशा को मापती है। यह काम करने के लिए, यह करंट ट्रांसफॉर्मर (CTs) और वोल्टेज ट्रांसफॉर्मर (PTs) दोनों से डेटा का उपयोग करती है।
  2. माप की तुलना: सामान्य संचालन के दौरान, जनरेटर ग्रिड को बिजली की आपूर्ति करता है। जब प्राइम मूवर विफल हो जाता है, तो बिजली का प्रवाह उलट जाता है (यानी, ग्रिड से जनरेटर की ओर)।
  3. सक्रियण: जब यह रिवर्स पावर प्रवाह एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो रिले सक्रिय हो जाती है।
  4. ट्रिप सिग्नल: रिले एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करती है, जो सर्किट ब्रेकर को भेज दिया जाता है।
  5. सर्किट को खोलना: सर्किट ब्रेकर जनरेटर को ग्रिड से डिस्कनेक्ट कर देता है, जिससे जनरेटर को नुकसान होने से बचाया जा सके।

​रिवर्स पावर रिले यह सुनिश्चित करती है कि जनरेटर को नुकसान न हो और ग्रिड पर बिजली का प्रवाह स्थिर रहे। इसका उपयोग आमतौर पर बड़े जनरेटर सेट, जैसे कि बिजली संयंत्रों और औद्योगिक सुविधाओं में किया जाता है।


अर्थ फॉल्ट रिले (Earth Fault Relay), जिसे ग्राउंड फॉल्ट रिले (Ground Fault Relay) भी कहते हैं, एक सुरक्षा रिले है जो विद्युत प्रणाली में पृथ्वी दोष (earth fault) या ग्राउंड फॉल्ट का पता लगाने के लिए उपयोग की जाती है। यह विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण होती है जब एक लाइव तार गलती से ज़मीन या किसी धातु के आवरण को छू लेता है, जिससे बड़ी मात्रा में करंट पृथ्वी की ओर प्रवाहित होने लगता है।

कार्य सिद्धांत

​यह रिले किरचॉफ के वर्तमान नियम के सिद्धांत पर काम करती है, जिसके अनुसार किसी भी परिपथ (circuit) में प्रवेश करने वाली और बाहर निकलने वाली धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होना चाहिए।

अर्थ फॉल्ट रिले का कार्य सिद्धांत इस प्रकार है:

  1. करंट की माप: रिले एक अवशेष करंट ट्रांसफॉर्मर (Residual Current Transformer - RCT) से जुड़ी होती है। यह RCT सभी जीवित तारों (लाइव, न्यूट्रल, और फेज) में से बहने वाले करंट को मापता है और उनके वेक्टर योग की गणना करता है।
  2. दोष का पता लगाना: सामान्य परिस्थितियों में, सभी तारों में करंट का वेक्टर योग शून्य होता है (अर्थात्, जितना करंट अंदर जा रहा है, उतना ही बाहर आ रहा है)।
  3. सक्रियण: जब कोई अर्थ फॉल्ट होता है, तो करंट का एक हिस्सा पृथ्वी की ओर बहने लगता है। इससे आने वाले और बाहर जाने वाले करंट के बीच एक असंतुलन पैदा होता है, और उनका योग शून्य नहीं होता। जब यह असंतुलन एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो रिले सक्रिय हो जाती है।
  4. ट्रिप सिग्नल: रिले एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करती है जो सर्किट ब्रेकर को भेज दिया जाता है, जिससे सर्किट टूट जाता है और व्यक्ति तथा उपकरण सुरक्षित रहते हैं।

मुख्य उपयोग और लाभ

  • मानव सुरक्षा: यह रिले सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण है क्योंकि यह बिजली के झटके से होने वाले गंभीर खतरों से बचाती है।
  • उपकरण सुरक्षा: यह उपकरण को ज़्यादा करंट से होने वाले नुकसान से बचाती है।
  • आग से बचाव: अर्थ फॉल्ट से होने वाली आग को रोकती है।

इस प्रकार, 

अर्थ फॉल्ट रिले एक अनिवार्य सुरक्षा उपकरण है, खासकर घरेलू और औद्योगिक अनुप्रयोगों में, जहाँ विद्युत सुरक्षा सर्वोपरि है।



तात्कालिक रिले (Instantaneous Relay) एक प्रकार की सुरक्षा रिले है जो बिना किसी जानबूझकर देरी के तुरंत काम करती है। यह रिले तब सक्रिय होती है जब मापा गया करंट, वोल्टेज या कोई अन्य विद्युत मात्रा एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाती है।

कार्य सिद्धांत 

​इस रिले का कार्य सिद्धांत सीधा है: यह अपनी सेट सीमा के ऊपर की स्थिति का पता लगाते ही तुरंत एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करती है। इसमें जानबूझकर कोई समय देरी जोड़ी नहीं जाती।

  • ​यह रिले अपने संपर्कों को खोलने या बंद करने के लिए या तो विद्युतचुंबकीय बल या तेज गति से काम करने वाले इलेक्ट्रॉनिक सर्किट का उपयोग करती है।
  • ​जब रिले का पिकअप पॉइंट (वह बिंदु जिस पर रिले सक्रिय होती है) पार हो जाता है, तो इसके संपर्क तुरंत स्थिति बदलते हैं।
  • ​इसकी प्रतिक्रिया का समय कुछ मिलीसेकंड या उससे भी कम होता है।

उपयोग

​तात्कालिक रिले का उपयोग उन अनुप्रयोगों में किया जाता है जहाँ बहुत तेज प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है ताकि बड़े नुकसान को रोका जा सके।

  • शॉर्ट सर्किट से सुरक्षा: इसका सबसे आम उपयोग शॉर्ट सर्किट से सुरक्षा प्रदान करना है, जहाँ बहुत कम समय में अत्यधिक करंट प्रवाहित होता है।
  • अन्य दोषों से सुरक्षा: इसका उपयोग उन दोषों से सुरक्षा के लिए भी किया जाता है जो तुरंत बड़े नुकसान का कारण बन सकते हैं।

​इसकी मुख्य विशेषता इसकी उच्च गति है, जो इसे उन स्थितियों के लिए आदर्श बनाती है जहाँ समय बहुत महत्वपूर्ण होता है।


समय विलंब रिले (Time Delay Relay) एक प्रकार की रिले है जो अपने संपर्कों को बदलने के लिए एक पूर्व-निर्धारित समय देरी के बाद सक्रिय होती है। यह तुरंत काम नहीं करती, बल्कि एक निश्चित समय अंतराल के बाद ही अपनी क्रिया पूरी करती है, भले ही इसका इनपुट सिग्नल पहले ही सक्रिय हो गया हो।

कार्य सिद्धांत 

​समय विलंब रिले का मुख्य उद्देश्य एक प्रक्रिया को नियंत्रित करना है जिसमें समय महत्वपूर्ण होता है। यह एक टाइमर (timer) के साथ काम करती है जो रिले को सक्रिय करने से पहले एक निश्चित समय तक प्रतीक्षा करता है।

इसके दो मुख्य प्रकार हैं:

  1. देरी पर सक्रिय (On-Delay Relay): इस प्रकार की रिले तब तक सक्रिय नहीं होती जब तक कि इनपुट सिग्नल मिलने के बाद एक निश्चित समय बीत न जाए। जब इनपुट सिग्नल बंद होता है, तो रिले तुरंत अपनी मूल स्थिति में वापस आ जाती है। इसका उपयोग अक्सर मोटरों को अनुक्रमिक रूप से शुरू करने के लिए किया जाता है।
  2. देरी पर निष्क्रिय (Off-Delay Relay): यह रिले इनपुट सिग्नल बंद होने के बाद भी एक निश्चित समय के लिए सक्रिय रहती है, और उसके बाद ही अपनी मूल स्थिति में लौटती है। इसका उपयोग अक्सर कूलिंग पंखों को मोटर बंद होने के बाद भी थोड़ी देर तक चलाने के लिए किया जाता है।

उपयोग

​समय विलंब रिले का उपयोग उन अनुप्रयोगों में किया जाता है जहाँ प्रक्रियाओं को नियंत्रित करने के लिए समय का सटीक निर्धारण आवश्यक है।

  • औद्योगिक स्वचालन: मोटरों को क्रमबद्ध तरीके से शुरू करने के लिए।
  • प्रकाश नियंत्रण: सीढ़ी की लाइट को कुछ समय के लिए चालू रखने के लिए।
  • सुरक्षा प्रणालियाँ: अलार्म बजने से पहले एक निश्चित समय देना।

इस प्रकार, 

समय विलंब रिले यांत्रिक और विद्युत प्रणालियों के सटीक नियंत्रण और समन्वय के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है।



नकारात्मक अनुक्रम रिले (Negative Sequence Relay) एक सुरक्षा रिले है जो थ्री-फेज विद्युत प्रणालियों में असंतुलन (unbalance) और दोषों का पता लगाने के लिए उपयोग की जाती है। यह उन स्थितियों से सुरक्षा प्रदान करती है जहाँ थ्री-फेज प्रणाली में वोल्टेज या करंट का संतुलन बिगड़ जाता है।

कार्य सिद्धांत

​यह रिले सममित घटकों के सिद्धांत (Symmetrical Components Theory) पर काम करती है। इस सिद्धांत के अनुसार, एक असंतुलित थ्री-फेज प्रणाली को तीन सममित घटकों के योग में विभाजित किया जा सकता है:

  1. धनात्मक अनुक्रम (Positive Sequence): यह सामान्य, संतुलित वोल्टेज और करंट का घटक होता है।
  2. नकारात्मक अनुक्रम (Negative Sequence): यह विपरीत फेज अनुक्रम वाला एक घटक होता है। यह असंतुलन या दोष की स्थिति में प्रकट होता है।
  3. शून्य अनुक्रम (Zero Sequence): यह ग्राउंड फॉल्ट की स्थिति में मौजूद होता है।

​नकारात्मक अनुक्रम रिले विशेष रूप से नकारात्मक अनुक्रम करंट (Negative Sequence Current) की मात्रा को मापकर काम करती है।

  • ​सामान्य, संतुलित प्रणाली में, नकारात्मक अनुक्रम करंट शून्य या बहुत कम होता है।
  • ​जब कोई असंतुलन या दोष (जैसे फेज फेलियर, फेज शॉर्ट सर्किट) होता है, तो नकारात्मक अनुक्रम करंट का मान बढ़ जाता है।
  • ​जब मापा गया नकारात्मक अनुक्रम करंट एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो रिले सक्रिय हो जाती है और एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करती है। यह ट्रिप सिग्नल सर्किट ब्रेकर को सर्किट खोलने का निर्देश देता है।

उपयोग और लाभ

  • जनरेटर और मोटर की सुरक्षा: इसका उपयोग मुख्य रूप से थ्री-फेज जनरेटर और मोटरों को फेज असंतुलन से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए किया जाता है। फेज असंतुलन से मोटर और जनरेटर की वाइंडिंग में अत्यधिक गर्मी उत्पन्न हो सकती है, जिससे वे क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।
  • लाइन की सुरक्षा: यह रिले लंबी ट्रांसमिशन लाइनों में भी फेज असंतुलन के कारण होने वाले दोषों से सुरक्षा प्रदान करती है।

​नकारात्मक अनुक्रम रिले की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह ओवरकरंट रिले की तुलना में फेज असंतुलन को अधिक संवेदनशील और प्रभावी ढंग से पहचानती है।



थर्मल ओवरलोड रिले एक सुरक्षा उपकरण है जो विद्युत मोटरों को ओवरलोड (अधिभार) और ज़्यादा करंट से होने वाले नुकसान से बचाने के लिए उपयोग किया जाता है। यह सीधे विद्युतचुंबकत्व के बजाय गर्मी के सिद्धांत पर काम करता है।

कार्य सिद्धांत 

​थर्मल रिले का कार्य सिद्धांत द्विधात्विक पट्टी (bimetallic strip) पर आधारित है। यह पट्टी दो अलग-अलग धातुओं से बनी होती है जिनकी ऊष्मीय विस्तार की दरें अलग-अलग होती हैं।

  • ​जब मोटर ज़्यादा करंट खींचती है, तो इस अतिरिक्त करंट से उत्पन्न होने वाली गर्मी से द्विधात्विक पट्टी गर्म होकर एक तरफ मुड़ जाती है।
  • ​जब यह मुड़ाव एक निश्चित स्तर तक पहुँचता है, तो यह एक यांत्रिक तंत्र को ट्रिगर करता है जो रिले के संपर्कों को खोल देता है।
  • ​इससे मोटर की बिजली आपूर्ति कट जाती है और उसे जलने से बचाया जा सकता है।

उपयोग और लाभ

​थर्मल ओवरलोड रिले का मुख्य उपयोग मोटर को अधिभार से सुरक्षा प्रदान करना है। यह औद्योगिक प्रणालियों में एक किफायती और विश्वसनीय सुरक्षा उपकरण के रूप में काम करता है, खासकर मोटर स्टार्टर्स के साथ। यह फेज फेलियर से भी सुरक्षा प्रदान कर सकता है।


विद्युतचुंबकीय रिले का निर्माण विद्युत चुंबकत्व (electromagnetism) के सिद्धांत पर आधारित है। इसमें कई मुख्य भाग होते हैं जो एक साथ काम करके सर्किट को नियंत्रित करते हैं।

मुख्य घटक 

  1. विद्युतचुंबक (Electromagnet): यह रिले का मुख्य भाग है। इसे एक लोहे की कोर (core) पर तांबे के तार को लपेटकर बनाया जाता है। जब इस कॉइल में करंट प्रवाहित होता है, तो यह एक शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है।
  2. आर्मेचर (Armature): यह एक चल धातु का टुकड़ा होता है, जो टिकाऊ धातु से बना होता है। इसे विद्युत चुंबक के पास इस तरह से रखा जाता है कि चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होने पर यह उसकी ओर आकर्षित हो सके।
  3. स्प्रिंग (Spring): यह आर्मेचर के एक छोर से जुड़ा होता है। जब विद्युत चुंबक में कोई करंट नहीं होता है, तो स्प्रिंग आर्मेचर को उसकी मूल स्थिति में वापस खींचकर रखता है।
  4. संपर्क (Contacts): ये विद्युत स्विचिंग पॉइंट होते हैं जो आर्मेचर से जुड़े होते हैं। ये संपर्क आमतौर पर दो प्रकार के होते हैं:
    • नॉर्मली ओपन (NO): ये संपर्क सामान्य स्थिति में खुले होते हैं और आर्मेचर के चलने पर बंद होते हैं।
    • नॉर्मली क्लोज्ड (NC): ये संपर्क सामान्य स्थिति में बंद होते हैं और आर्मेचर के चलने पर खुलते हैं।
  5. टर्मिनल (Terminals): ये रिले के बाहरी हिस्से पर स्थित कनेक्टर होते हैं, जहाँ से नियंत्रण सर्किट और लोड सर्किट के तार जोड़े जाते हैं।

निर्माण प्रक्रिया

  • ​पहले, एक लोहे की कोर पर एक तांबे की कॉइल को सावधानी से लपेटा जाता है, जिससे विद्युत चुंबक तैयार हो सके।
  • ​इसके बाद, एक आर्मेचर को एक निश्चित दूरी पर रखा जाता है, ताकि वह चुंबकीय क्षेत्र से आकर्षित हो सके।
  • ​आर्मेचर को उसकी मूल स्थिति में वापस लाने के लिए एक स्प्रिंग जोड़ा जाता है।
  • ​संपर्क (NO और NC) को आर्मेचर और रिले के आधार से जोड़ा जाता है।
  • ​अंत में, इन सभी घटकों को एक इंसुलेटेड (अवरोधी) आवरण में रखा जाता है ताकि यह सुरक्षित रूप से कार्य कर सके।

​जब एक छोटा विद्युत संकेत कॉइल में भेजा जाता है, तो यह विद्युत चुंबक को सक्रिय करता है, जो आर्मेचर को खींचता है, जिससे संपर्क बंद हो जाते हैं और सर्किट पूरा हो जाता है।



थर्मल ओवरलोड रिले गर्मी के सिद्धांत पर काम करता है ताकि विद्युत मोटरों को ओवरलोड से बचाया जा सके। इसका मुख्य घटक एक द्विधात्विक पट्टी (bimetallic strip) होती है।

कार्य सिद्धांत 

​जब मोटर पर सामान्य से अधिक भार पड़ता है, तो वह ज़्यादा करंट खींचती है। यह अतिरिक्त करंट जूल के तापन नियम के अनुसार रिले में अधिक गर्मी उत्पन्न करता है।

  • द्विधात्विक पट्टी का मुड़ना: रिले के अंदर की द्विधात्विक पट्टी दो अलग-अलग धातुओं से बनी होती है जिनकी ऊष्मीय विस्तार (thermal expansion) की दरें अलग-अलग होती हैं। जब यह पट्टी ज़्यादा गर्मी से गर्म होती है, तो यह असमान विस्तार के कारण एक तरफ मुड़ जाती है।
  • सर्किट का टूटना: जब पट्टी का मुड़ाव एक निश्चित स्तर तक पहुँचता है, तो यह एक यांत्रिक तंत्र को सक्रिय करता है जो रिले के संपर्कों को खोल देता है।
  • बिजली का कटना: संपर्कों के खुलने से मोटर को जाने वाली बिजली की आपूर्ति कट जाती है, जिससे मोटर को ओवरहीटिंग से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।

​जब ओवरलोड की स्थिति समाप्त हो जाती है और रिले ठंडी हो जाती है, तो पट्टी अपनी मूल स्थिति में लौट आती है, और रिले को रीसेट बटन के माध्यम से मैन्युअल रूप से या स्वचालित रूप से फिर से चालू किया जा सकता है।


दूरी रिले (Distance Relay) दोषों का पता लगाने के लिए वोल्टेज और करंट दोनों को मापता है और उनके अनुपात से प्रतिबाधा (impedance) की गणना करता है। यह प्रतिबाधा सर्किट में रिले से लेकर दोष बिंदु तक की दूरी के सीधे आनुपातिक होती है।

कार्य सिद्धांत 

  1. प्रतिबाधा की गणना: दूरी रिले को सर्किट में एक निश्चित बिंदु पर स्थापित किया जाता है। यह रिले लगातार उस बिंदु पर वोल्टेज (V) और करंट (I) को मापती है। रिले का माइक्रोप्रोसेसर या आंतरिक सर्किट ओह्म के नियम का उपयोग करके प्रतिबाधा (Z) की गणना करता है, जहाँ Z = V/I होता है।
  2. दूरी का अनुमान: चूंकि किसी भी ट्रांसमिशन लाइन या फीडर की प्रतिबाधा प्रति इकाई लंबाई पर लगभग स्थिर होती है, इसलिए प्रतिबाधा का मान रिले से दोष बिंदु तक की दूरी का सीधा संकेत देता है। यदि Z_{line} प्रति इकाई लंबाई प्रतिबाधा है, तो रिले से दोष की दूरी D \propto Z_{measured} / Z_{line} होगी।
  3. जोन सुरक्षा (Zone Protection): दूरी रिले को कई सुरक्षा क्षेत्रों (Zones) में विभाजित किया जाता है:
    • ज़ोन 1: यह रिले के सबसे निकट का क्षेत्र होता है (आमतौर पर 80-90% लाइन)। इस क्षेत्र में दोष होने पर रिले तुरंत ट्रिप करती है।
    • ज़ोन 2: यह ज़ोन 1 से आगे का क्षेत्र होता है (आमतौर पर 120% लाइन)। इस क्षेत्र में दोष होने पर रिले कुछ समय की देरी के बाद ट्रिप करती है। यह देरी बैकअप सुरक्षा के लिए होती है।
    • ज़ोन 3: यह सबसे दूर का क्षेत्र होता है जो आस-पास की लाइनों को भी कवर करता है। इस ज़ोन में भी समय देरी के साथ ट्रिपिंग होती है।
  4. ट्रिपिंग: जब मापी गई प्रतिबाधा (Z) रिले के किसी भी निर्धारित ज़ोन की प्रतिबाधा से कम हो जाती है, तो यह माना जाता है कि उस ज़ोन में एक दोष हुआ है। रिले तब उस ज़ोन के लिए निर्धारित समय देरी के साथ ट्रिप सिग्नल भेजती है।

इस तरह, 

दूरी रिले केवल अपने निर्धारित क्षेत्र के भीतर के दोषों पर प्रतिक्रिया देती है, जिससे चयनात्मकता (selectivity) सुनिश्चित होती है और स्वस्थ सर्किटों को अनावश्यक रूप से बंद होने से रोका जा सकता है।


रिले का परिचालन समय (operating time) दो मुख्य तरीकों से नियंत्रित किया जाता है: डिजाइन द्वारा और समय-विलंब तंत्र द्वारा

​1. रिले के डिज़ाइन द्वारा नियंत्रण

​यह नियंत्रण रिले के भौतिक या इलेक्ट्रॉनिक घटकों पर निर्भर करता है।

  • तात्कालिक रिले (Instantaneous Relay): यह रिले बिना किसी समय देरी के तुरंत काम करती है। इसके लिए मजबूत विद्युतचुंबकीय बल या तेज स्विचिंग वाले इलेक्ट्रॉनिक घटक (जैसे ट्रांजिस्टर) का उपयोग किया जाता है। जब करंट पूर्व-निर्धारित स्तर से अधिक होता है, तो रिले तुरंत ट्रिप करती है।
  • व्युत्क्रम समय रिले (Inverse Time Relay): इस रिले का परिचालन समय करंट के मान के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इसका मतलब है कि करंट जितना अधिक होगा, रिले उतनी ही तेज़ी से काम करेगी। यह एक यांत्रिक डैम्पिंग तंत्र (damping mechanism) या इलेक्ट्रॉनिक सर्किट द्वारा प्राप्त किया जाता है।

​2. समय-विलंब तंत्र द्वारा नियंत्रण

​यह नियंत्रण जानबूझकर रिले की प्रतिक्रिया में देरी करने के लिए किया जाता है।

  • इलेक्ट्रॉनिक समय विलंब: यह सबसे आम तरीका है, जिसमें एक टाइमर सर्किट या माइक्रोप्रोसेसर का उपयोग किया जाता है। जब रिले को इनपुट सिग्नल मिलता है, तो टाइमर एक पूर्व-निर्धारित समय तक गिनती करता है। गिनती पूरी होने के बाद ही रिले ट्रिप सिग्नल भेजती है।
  • यांत्रिक समय विलंब: कुछ पुरानी इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले में एक डैम्पिंग डिस्क (damping disc) या डैम्पिंग फ्लूइड का उपयोग किया जाता था। जब कॉइल सक्रिय होती है, तो यह डिस्क धीमी गति से घूमती है और एक निश्चित कोण पर पहुँचने के बाद ही संपर्क को ट्रिगर करती है। यह घूमने की गति करंट के स्तर पर निर्भर करती थी, जिससे व्युत्क्रम समय विशेषता प्राप्त होती थी।


निश्चित समय ओवरकरंट रिले (Definite Time Overcurrent Relay) एक सुरक्षा उपकरण है जो एक पूर्व-निर्धारित और निश्चित समय देरी के बाद सक्रिय होता है, जब भी करंट का स्तर उसकी सेट वैल्यू से अधिक हो जाता है। 

​यह रिले करंट की मात्रा पर निर्भर नहीं करती है। इसका मतलब है कि, चाहे करंट थोड़ा अधिक हो या बहुत अधिक, रिले केवल अपनी निर्धारित समय अवधि के बाद ही काम करेगी।

कार्य सिद्धांत

  1. करंट की निगरानी: रिले लगातार सर्किट में बहने वाले करंट को मापती है।
  2. सक्रियण: जब करंट का स्तर इसकी पिकअप वैल्यू (pickup value) से ऊपर जाता है, तो रिले का टाइमर सर्किट सक्रिय हो जाता है।
  3. समय की गिनती: टाइमर तब एक पूर्व-निर्धारित समय अंतराल तक गिनती करता है, जो कुछ मिलीसेकंड से लेकर कई सेकंड तक हो सकता है। यह समय ऑपरेटर द्वारा मैन्युअल रूप से सेट किया जाता है।
  4. ट्रिप सिग्नल: जब टाइमर की गिनती पूरी हो जाती है, तो रिले एक ट्रिप सिग्नल भेजती है, जो सर्किट ब्रेकर को सर्किट खोलने का निर्देश देता है।

उपयोग

​निश्चित समय ओवरकरंट रिले का उपयोग उन अनुप्रयोगों में किया जाता है जहाँ समन्वित सुरक्षा (coordinated protection) की आवश्यकता होती है। यह सुनिश्चित करता है कि यदि कोई दोष होता है, तो सबसे पास का सर्किट ब्रेकर पहले ट्रिप करे और पूरा सर्किट तुरंत बंद न हो। इसका उपयोग मुख्य रूप से बिजली वितरण प्रणालियों में किया जाता है।



ट्रांसफार्मर को आंतरिक और बाहरी दोनों प्रकार के दोषों से बचाने के लिए विभिन्न प्रकार की रिले का उपयोग किया जाता है। ट्रांसफार्मर के संरक्षण में उपयोग की जाने वाली कुछ प्रमुख रिले इस प्रकार हैं:

1. डिफरेंशियल रिले (Differential Relay) 

  • उपयोग: यह ट्रांसफार्मर को आंतरिक दोषों (जैसे वाइंडिंग में शॉर्ट सर्किट) से बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण रिले है।
  • कार्य: यह रिले ट्रांसफार्मर के इनपुट और आउटपुट करंट के बीच के अंतर को मापती है। सामान्य परिचालन में यह अंतर शून्य होता है। जब कोई आंतरिक दोष होता है, तो यह अंतर बढ़ जाता है, जिससे रिले ट्रिप हो जाती है और ट्रांसफार्मर को बिजली की आपूर्ति बंद हो जाती है।

2. बुचोलज़ रिले (Buchholz Relay) 

  • उपयोग: यह तेल-निमज्जित ट्रांसफार्मर में आंतरिक दोषों का पता लगाने के लिए उपयोग की जाती है।
  • कार्य: यह ट्रांसफार्मर के अंदर उत्पन्न होने वाली गैसों का पता लगाती है, जो दोषों के कारण बनती हैं। छोटे दोषों के लिए यह एक अलार्म देती है और बड़े दोषों के लिए यह सीधे सर्किट ब्रेकर को ट्रिप करती है।

3. ओवरकरंट रिले (Overcurrent Relay) 

  • उपयोग: यह ट्रांसफार्मर को ओवरलोड और बाहरी शॉर्ट सर्किट से बचाने के लिए उपयोग की जाती है।
  • कार्य: यह रिले तब सक्रिय होती है जब करंट का मान एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, और यह सर्किट ब्रेकर को ट्रिप सिग्नल भेजती है।

4. ग्राउंड फॉल्ट रिले (Earth Fault Relay) 

  • उपयोग: यह ट्रांसफार्मर को ग्राउंड फॉल्ट से बचाने के लिए उपयोग की जाती है।
  • कार्य: यह तब सक्रिय होती है जब करंट का एक हिस्सा गलती से जमीन की ओर बहने लगता है, जिससे सर्किट में करंट का असंतुलन हो जाता है।

​ट्रांसफार्मर की सुरक्षा की आवश्यकता के आधार पर इन रिले का संयोजन (combination) आमतौर पर उपयोग किया जाता है, जिससे अधिकतम सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।


अल्टरनेटर (जनरेटर) को दोषों से बचाने के लिए कई प्रकार की रिले का उपयोग किया जाता है। चूंकि अल्टरनेटर बिजली उत्पादन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसलिए इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना आवश्यक है। 

​अल्टरनेटर संरक्षण में उपयोग की जाने वाली कुछ प्रमुख रिले इस प्रकार हैं:

1. डिफरेंशियल रिले (Differential Relay) 

  • उपयोग: यह अल्टरनेटर की वाइंडिंग को आंतरिक दोषों (जैसे फेज-टू-फेज या फेज-टू-ग्राउंड फॉल्ट) से बचाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण रिले है।
  • कार्य: यह रिले वाइंडिंग के दोनों सिरों पर बहने वाले करंट के बीच के अंतर को मापकर काम करती है। सामान्य परिस्थितियों में यह अंतर शून्य होता है, लेकिन आंतरिक दोष होने पर यह बढ़ जाता है, जिससे रिले ट्रिप हो जाती है।

2. ओवरकरंट रिले (Overcurrent Relay) 

  • उपयोग: यह अल्टरनेटर को ओवरलोड और बाहरी शॉर्ट सर्किट से सुरक्षा प्रदान करती है।
  • कार्य: यह रिले तब सक्रिय होती है जब करंट का मान एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है।

3. रिवर्स पावर रिले (Reverse Power Relay)

  • उपयोग: यह अल्टरनेटर को "मोटरिंग" की स्थिति से बचाने के लिए उपयोग की जाती है।
  • कार्य: यह तब काम करती है जब अल्टरनेटर ग्रिड से बिजली खींचना शुरू कर देता है (यानी, जब उसकी प्राइम मूवर विफल हो जाती है), जिससे बिजली की दिशा उलट जाती है।

4. ओवरवोल्टेज और अंडरवोल्टेज रिले (Overvoltage & Undervoltage Relay) 

  • उपयोग: ये रिले अल्टरनेटर को वोल्टेज के अत्यधिक उतार-चढ़ाव से बचाती हैं।
  • कार्य: ओवरवोल्टेज रिले तब ट्रिप करती है जब वोल्टेज एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाता है, जबकि अंडरवोल्टेज रिले तब काम करती है जब वोल्टेज निर्धारित स्तर से नीचे गिर जाता है।

5. नकारात्मक अनुक्रम रिले (Negative Sequence Relay) 

  • उपयोग: यह रिले अल्टरनेटर को फेज असंतुलन (phase unbalance) से होने वाले नुकसान से बचाती है।
  • कार्य: जब थ्री-फेज प्रणाली में असंतुलन होता है, तो यह नकारात्मक अनुक्रम करंट का पता लगाती है और अल्टरनेटर को ट्रिप करती है, क्योंकि यह असंतुलन वाइंडिंग को ज़्यादा गरम कर सकता है।

​इन रिले का उपयोग एक समन्वित सुरक्षा योजना के तहत किया जाता है ताकि अल्टरनेटर को हर प्रकार के संभावित दोष से बचाया जा सके।



डिफरेंशियल रिले का उपयोग उन विद्युत उपकरणों या प्रणालियों को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है जहाँ इनपुट और आउटपुट करंट सामान्य रूप से बराबर होते हैं। यह रिले इन दोनों के बीच के अंतर को मापकर आंतरिक दोषों का पता लगाती है।

​इसका उपयोग मुख्य रूप से निम्नलिखित अनुप्रयोगों में किया जाता है:

1. ट्रांसफार्मर संरक्षण (Transformer Protection) यह ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग को शॉर्ट सर्किट और अन्य आंतरिक दोषों से बचाने के लिए सबसे आम अनुप्रयोग है। रिले ट्रांसफार्मर के प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग के करंट की तुलना करती है। यदि इनके बीच कोई बड़ा अंतर होता है, तो यह दर्शाता है कि ट्रांसफार्मर के अंदर कोई दोष है, और रिले ट्रिप हो जाती है।

2. जनरेटर और मोटर संरक्षण (Generator & Motor Protection)

​बड़ी मोटरों और जनरेटर की वाइंडिंग को आंतरिक फेज-टू-फेज या फेज-टू-ग्राउंड दोषों से बचाने के लिए भी डिफरेंशियल रिले का उपयोग किया जाता है। रिले वाइंडिंग के दोनों सिरों पर करंट को मापती है। यदि करंट में कोई असंतुलन होता है, तो रिले ट्रिप करती है।

3. बस-बार संरक्षण (Bus-Bar Protection)

​पावर सबस्टेशन में बस-बार की सुरक्षा के लिए डिफरेंशियल रिले का उपयोग किया जाता है। यह बस-बार के विभिन्न फीडर से आने और जाने वाले सभी करंट का योग करती है। यदि योग शून्य नहीं होता है, तो यह दर्शाता है कि बस-बार पर कोई दोष है, और रिले ट्रिप करती है।



ट्रांसमिशन लाइनों की सुरक्षा के लिए, सबसे आम और प्रभावी रिले दूरी रिले (Distance Relay) है। इसके अलावा, लाइनों के प्रकार और लंबाई के आधार पर अन्य रिले का भी उपयोग किया जाता है।

1. दूरी रिले (Distance Relay) 

  • मुख्य कार्य: यह ट्रांसमिशन लाइन में दोष की दूरी का पता लगाकर काम करती है। यह लाइन के वोल्टेज और करंट को मापकर उनके अनुपात से प्रतिबाधा (impedance) की गणना करती है।
  • उपयोग: यह लंबी ट्रांसमिशन लाइनों की सुरक्षा के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है क्योंकि यह बहुत सटीक होती है और दोष का पता लगते ही तुरंत ट्रिप कर सकती है, जिससे स्वस्थ सर्किटों को अनावश्यक रूप से बंद होने से रोका जा सकता है।
  • प्रकार: इसमें कई सुरक्षा जोन (zones) होते हैं, जैसे ज़ोन 1 (तात्कालिक ट्रिपिंग) और ज़ोन 2 (समय-विलंब ट्रिपिंग), जो चयनात्मक सुरक्षा (selective protection) प्रदान करते हैं।

2. ओवरकरंट रिले (Overcurrent Relay) 

  • मुख्य कार्य: यह तब काम करती है जब लाइन में करंट एक निश्चित सीमा से अधिक हो जाता है।
  • उपयोग: इसका उपयोग कम दूरी की ट्रांसमिशन लाइनों और डिस्ट्रीब्यूशन फीडरों के लिए किया जाता है, जहाँ दूरी रिले की उच्च लागत उचित नहीं होती है।

3. दिशात्मक ओवरकरंट रिले (Directional Overcurrent Relay)

  • मुख्य कार्य: यह रिले ओवरकरंट के साथ-साथ उसकी दिशा का भी पता लगाती है।
  • उपयोग: इसका उपयोग समानांतर फीडर लाइनों में किया जाता है, जहाँ बिजली दोनों दिशाओं में प्रवाहित हो सकती है। यह सुनिश्चित करती है कि केवल उसी लाइन को ट्रिप किया जाए जिसमें दोष हुआ हो।

4. ग्राउंड फॉल्ट रिले (Earth Fault Relay)

  • मुख्य कार्य: यह रिले तब सक्रिय होती है जब करंट का एक हिस्सा गलती से जमीन की ओर बहने लगता है।
  • उपयोग: यह विशेष रूप से ट्रांसमिशन लाइनों पर होने वाले ग्राउंड फॉल्ट से सुरक्षा प्रदान करती है।

EHV (अति उच्च वोल्टेज) प्रणालियों में दूरी रिले (distance relay) का उपयोग मुख्य रूप से दोषों का तेजी से और चुनिंदा पता लगाने के लिए किया जाता है। ये रिले पारंपरिक ओवरकरंट रिले की तुलना में अधिक प्रभावी होती हैं क्योंकि EHV प्रणालियों में ओवरकरंट रिले के साथ समन्वय और संवेदनशीलता की समस्याएँ होती हैं।

प्रमुख कारण

  1. तेज संचालन: EHV प्रणालियों में दोष (fault) बहुत गंभीर होते हैं और उपकरण को तुरंत नुकसान पहुँचा सकते हैं। दूरी रिले दोष की पहचान करते ही मिलीसेकंड में ट्रिप कर सकती है, जिससे प्रणाली को भारी क्षति से बचाया जा सकता है और प्रणाली की स्थिरता बनी रहती है।
  2. चुनिंदा सुरक्षा (Selectivity): यह रिले केवल अपने निर्धारित सुरक्षा क्षेत्र (ज़ोन) के भीतर के दोषों पर प्रतिक्रिया करती है। इसका मतलब है कि यदि एक ट्रांसमिशन लाइन में कोई दोष होता है, तो केवल उस लाइन के सबसे पास का सर्किट ब्रेकर ट्रिप करेगा, जबकि स्वस्थ लाइनों पर बिजली की आपूर्ति जारी रहेगी। यह EHV ग्रिड में बिजली की आपूर्ति की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
  3. ओवरकरंट रिले की सीमाएँ: EHV प्रणालियों में, दोष करंट का स्तर जनरेटर के आउटपुट और फीडरों की संख्या पर निर्भर करता है, न कि केवल दोष की दूरी पर। इसके अलावा, एक ही लाइन पर अलग-अलग स्थानों पर दोष होने पर करंट का मान लगभग समान हो सकता है, जिससे ओवरकरंट रिले के लिए दोष की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। दूरी रिले इस समस्या को हल करती है क्योंकि यह वोल्टेज और करंट दोनों को मापती है।
  4. दोष का सटीक पता लगाना: दूरी रिले वोल्टेज और करंट के अनुपात से प्रतिबाधा (impedance) की गणना करती है, जो सीधे रिले से दोष तक की दूरी के आनुपातिक होती है। इससे दोष का सटीक स्थान निर्धारित करने में मदद मिलती है, जो पारंपरिक रिले नहीं कर सकतीं।

संक्षेप में, 

EHV प्रणालियों की जटिलता और बड़े पैमाने को देखते हुए, दूरी रिले उनकी विश्वसनीयता, गति और चयनात्मकता के कारण सबसे उपयुक्त सुरक्षा उपकरण है।



बुचोलज़ रिले का उपयोग तेल से भरे ट्रांसफार्मर को आंतरिक दोषों से बचाने के लिए किया जाता है। यह रिले विशेष रूप से ट्रांसफार्मर के मुख्य टैंक और कंज़र्वेटर (conservator) टैंक के बीच स्थापित की जाती है।

मुख्य कार्य 

​बुचोलज़ रिले का मुख्य कार्य ट्रांसफार्मर के अंदर गैस बनने या तेल के बहाव का पता लगाना है। ये स्थितियाँ आमतौर पर ट्रांसफार्मर में होने वाले आंतरिक दोषों के कारण उत्पन्न होती हैं, जैसे:

  1. छोटे दोष (Minor Faults): इन्सुलेशन की खराबी, वाइंडिंग के बीच छोटे-मोटे शॉर्ट सर्किट। ये दोष थोड़ी मात्रा में गैस उत्पन्न करते हैं।
  2. गंभीर दोष (Major Faults): वाइंडिंग में बड़े शॉर्ट सर्किट या कोर फॉल्ट। ये दोष बड़ी मात्रा में गैस और तेल के तेज बहाव का कारण बनते हैं।

​जब रिले इन स्थितियों का पता लगाती है, तो यह या तो एक अलार्म देती है (छोटे दोषों के लिए) या तुरंत सर्किट ब्रेकर को ट्रिप करती है (गंभीर दोषों के लिए), जिससे ट्रांसफार्मर को गंभीर नुकसान से बचाया जा सके।



मोटर की सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार की रिले का उपयोग किया जाता है, जो मोटर को अलग-अलग प्रकार के दोषों से बचाती हैं। इन रिले का चयन मोटर के प्रकार और उसके उपयोग पर निर्भर करता है।

1. थर्मल ओवरलोड रिले (Thermal Overload Relay) 

  • कार्य: यह सबसे आम मोटर सुरक्षा रिले है। यह मोटर को अधिभार (overload) और ज़्यादा करंट से होने वाले नुकसान से बचाती है।
  • सिद्धांत: यह द्विधात्विक पट्टी (bimetallic strip) के ऊष्मीय विस्तार के सिद्धांत पर काम करती है। जब मोटर पर ज़्यादा लोड पड़ता है, तो ज़्यादा करंट से उत्पन्न गर्मी के कारण यह पट्टी मुड़ जाती है और सर्किट को खोल देती है।

2. ओवरकरंट रिले (Overcurrent Relay) 

  • कार्य: यह रिले मोटर को अत्यधिक करंट और शॉर्ट सर्किट से बचाने के लिए उपयोग की जाती है।
  • सिद्धांत: जब मोटर में बहने वाला करंट एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो यह तुरंत या एक निश्चित समय देरी के बाद सक्रिय होती है और मोटर की बिजली आपूर्ति को काट देती है।

3. अंडरवोल्टेज रिले (Undervoltage Relay) 

  • कार्य: यह रिले मोटर को कम वोल्टेज पर चलने से रोकती है, जो मोटर को नुकसान पहुँचा सकता है।
  • सिद्धांत: जब मोटर को मिलने वाला वोल्टेज एक निश्चित स्तर से नीचे गिर जाता है, तो यह रिले ट्रिप करती है और मोटर को बंद कर देती है।

4. फेज सीक्वेंस रिले (Phase Sequence Relay) 

  • कार्य: यह रिले सुनिश्चित करती है कि थ्री-फेज मोटर को सही फेज क्रम (phase sequence) में बिजली मिल रही है।
  • सिद्धांत: यदि फेज का क्रम गलत होता है, तो मोटर विपरीत दिशा में घूम सकती है, जिससे उपकरण और प्रक्रिया को नुकसान हो सकता है। यह रिले गलत क्रम का पता लगाकर मोटर को बंद कर देती है।

5. डिफरेंशियल रिले (Differential Relay) 

  • कार्य: बड़ी और महत्वपूर्ण मोटरों को आंतरिक वाइंडिंग दोषों (internal winding faults) से बचाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
  • सिद्धांत: यह रिले मोटर की वाइंडिंग में प्रवेश करने वाले और बाहर निकलने वाले करंट के बीच के अंतर को मापती है। यदि कोई दोष होता है, तो यह अंतर बढ़ जाता है, जिससे रिले ट्रिप हो जाती है।


दूरी रिले (Distance Relay) और विभेदक रिले (Differential Relay) दोनों ही महत्वपूर्ण सुरक्षा रिले हैं, लेकिन उनके कार्य सिद्धांत और अनुप्रयोग में प्रमुख अंतर होते हैं।

प्रमुख अंतर

दूरी रिले (Distance Relay) एक सुरक्षा रिले है जो विद्युत प्रणाली में दोष की दूरी का पता लगाने के लिए उपयोग की जाती है। यह रिले वोल्टेज और करंट दोनों को मापकर उनके अनुपात से प्रतिबाधा (impedance) की गणना करती है, जो सीधे रिले से दोष बिंदु तक की दूरी के आनुपातिक होती है।

कार्य सिद्धांत 

  1. प्रतिबाधा की गणना: दूरी रिले लगातार लाइन पर वोल्टेज (V) और करंट (I) को मापती है और ओह्म के नियम (Z = V/I) का उपयोग करके प्रतिबाधा की गणना करती है।
  2. दोष का पता लगाना: जब लाइन में कोई दोष होता है, तो दोष बिंदु पर वोल्टेज कम हो जाता है और करंट बढ़ जाता है। इससे मापी गई प्रतिबाधा कम हो जाती है।
  3. दूरी का अनुमान: प्रतिबाधा का मान रिले से दोष बिंदु तक की दूरी के सीधे आनुपातिक होता है।
  4. जोन सुरक्षा (Zone Protection): दूरी रिले को कई सुरक्षा क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। जब मापी गई प्रतिबाधा किसी भी निर्धारित ज़ोन की प्रतिबाधा से कम हो जाती है, तो रिले उस ज़ोन के लिए निर्धारित समय देरी के साथ ट्रिप करती है।

उपयोग

​दूरी रिले का उपयोग मुख्य रूप से लंबी ट्रांसमिशन लाइनों की सुरक्षा के लिए किया जाता है। यह रिले बहुत सटीक होती है और दोष का पता लगते ही तुरंत या एक निश्चित समय के बाद ट्रिप कर सकती है, जिससे केवल दोषपूर्ण हिस्से को ही अलग किया जा सके और स्वस्थ सर्किटों पर बिजली की आपूर्ति जारी रहे।

विभेदक रिले (Differential Relay) एक सुरक्षा रिले है जो विद्युत प्रणाली के एक विशिष्ट क्षेत्र (ज़ोन) में आंतरिक दोषों का पता लगाने के लिए उपयोग की जाती है। इसका कार्य सिद्धांत इनपुट और आउटपुट करंट के बीच के अंतर को मापना है।

कार्य सिद्धांत 

​यह रिले किरचॉफ के वर्तमान नियम (Kirchhoff's Current Law) पर काम करती है, जिसके अनुसार किसी भी नोड में प्रवेश करने और बाहर निकलने वाले धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है।

  1. करंट की तुलना: रिले के दोनों सिरों पर करंट ट्रांसफार्मर (CTs) लगाए जाते हैं जो इनपुट और आउटपुट करंट को मापते हैं।
  2. अंतर का पता लगाना: सामान्य परिचालन के दौरान, दोनों CTs से आने वाले संकेतों का वेक्टर अंतर शून्य या बहुत कम होता है। जब रिले के संरक्षित क्षेत्र के भीतर कोई दोष (जैसे शॉर्ट सर्किट) होता है, तो इनपुट और आउटपुट करंट के बीच एक बड़ा अंतर उत्पन्न होता है।
  3. ट्रिप सिग्नल: जब यह अंतर एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो रिले सक्रिय हो जाती है और एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करती है, जो सर्किट ब्रेकर को सर्किट खोलने का निर्देश देता है और उपकरण को नुकसान से बचाता है।

उपयोग

​डिफरेंशियल रिले का उपयोग उन उपकरणों को सुरक्षित रखने के लिए किया जाता है जहाँ इनपुट और आउटपुट करंट सामान्य रूप से बराबर होते हैं।

  • ट्रांसफार्मर: ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग को शॉर्ट सर्किट और अन्य आंतरिक दोषों से बचाने के लिए।
  • जनरेटर और मोटर: इनके वाइंडिंग दोषों से सुरक्षा के लिए।
  • बस-बार: सबस्टेशन में बस-बार की सुरक्षा के लिए।

संक्षेप में, 

दूरी रिले दोष की दूरी के आधार पर काम करती है, जबकि विभेदक रिले करंट के अंतर के आधार पर काम करती है। दोनों ही चयनात्मक सुरक्षा प्रदान करती हैं, लेकिन अलग-अलग अनुप्रयोगों में।



ओवरकरंट और अर्थ फॉल्ट रिले के बीच मुख्य अंतर उनके संरक्षण के उद्देश्य और कार्य सिद्धांत में है। दोनों ही अत्यधिक करंट की स्थिति से सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन अलग-अलग प्रकार के दोषों के लिए।

ओवरकरंट रिले (Overcurrent Relay)

  • उद्देश्य: यह रिले फेज-टू-फेज या फेज-टू-न्यूट्रल शॉर्ट सर्किट जैसे दोषों से सुरक्षा प्रदान करती है।
  • कार्य सिद्धांत: यह रिले सर्किट के माध्यम से बहने वाले कुल करंट की मात्रा को मापती है। जब करंट का मान एक पूर्व-निर्धारित सीमा (सेटिंग) से अधिक हो जाता है, तो रिले ट्रिप हो जाती है। यह प्रणाली में ओवरलोड और शॉर्ट सर्किट के कारण होने वाले उच्च करंट पर प्रतिक्रिया करती है।

अर्थ फॉल्ट रिले (Earth Fault Relay)

  • उद्देश्य: यह रिले विशेष रूप से अर्थ फॉल्ट (ग्राउंड फॉल्ट) से सुरक्षा प्रदान करती है। यह तब होती है जब करंट का एक हिस्सा गलती से जमीन की ओर बहने लगता है।
  • कार्य सिद्धांत: यह रिले किरचॉफ के वर्तमान नियम के सिद्धांत पर काम करती है, जिसके अनुसार सामान्य परिस्थितियों में सभी फेज तारों और न्यूट्रल तार में बहने वाले करंट का वेक्टर योग शून्य होना चाहिए। जब कोई अर्थ फॉल्ट होता है, तो यह योग शून्य नहीं रहता। रिले इस असंतुलन का पता लगाती है और ट्रिप हो जाती है।

मुख्य अंतर

ओवरकरंट रिले एक सुरक्षा उपकरण है जो विद्युत प्रणाली में अधिक करंट (overcurrent) का पता लगाकर सर्किट ब्रेकर को सर्किट खोलने का निर्देश देता है। यह रिले उपकरणों को शॉर्ट सर्किट या ओवरलोड की स्थिति में जलने या क्षतिग्रस्त होने से बचाती है।

कार्य सिद्धांत

​ओवरकरंट रिले एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक करंट प्रवाह का पता लगाने के सिद्धांत पर काम करती है।

  1. करंट की माप: रिले एक करंट ट्रांसफॉर्मर (CT) से जुड़ा होता है जो सर्किट में प्रवाहित होने वाले करंट को लगातार मापता है। CT बड़े करंट को एक छोटे, मापने योग्य स्तर तक कम कर देता है।
  2. सेटिंग से तुलना: रिले को एक निश्चित "पिकअप वैल्यू" (pickup value) पर सेट किया जाता है। जब मापा गया करंट इस सेट वैल्यू से अधिक हो जाता है, तो रिले सक्रिय हो जाती है।
  3. ट्रिप सिग्नल: जब रिले सक्रिय होती है, तो यह एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करती है जो एक सर्किट ब्रेकर को भेज दिया जाता है।
  4. सर्किट को खोलना: सर्किट ब्रेकर इस सिग्नल को प्राप्त करने के बाद स्वचालित रूप से सर्किट को खोल देता है, जिससे ओवरकरंट की स्थिति समाप्त हो जाती है और उपकरण सुरक्षित हो जाते हैं।

ओवरकरंट रिले को उनकी प्रतिक्रिया के समय के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:

  • तात्कालिक ओवरकरंट रिले (Instantaneous Overcurrent Relay): यह बिना किसी समय की देरी के तुरंत काम करती है जब करंट पिकअप वैल्यू से अधिक हो जाता है।
  • निश्चित समय ओवरकरंट रिले (Definite Time Overcurrent Relay): यह एक निश्चित, पूर्व-निर्धारित समय देरी के बाद काम करती है, भले ही करंट कितना भी अधिक हो।
  • व्युत्क्रम समय ओवरकरंट रिले (Inverse Time Overcurrent Relay): इस रिले का संचालन समय करंट की मात्रा के व्युत्क्रमानुपाती होता है। इसका मतलब है कि करंट जितना अधिक होगा, रिले उतनी ही तेज़ी से काम करेगी।

​ओवरकरंट रिले का उपयोग मुख्य रूप से बिजली वितरण प्रणालियों, ट्रांसफार्मर और मोटर्स की सुरक्षा के लिए किया जाता है।



पृथ्वी दोष रिले (Earth Fault Relay) एक सुरक्षा रिले है जो विद्युत प्रणाली में पृथ्वी दोष (earth fault) या ग्राउंड फॉल्ट का पता लगाने के लिए उपयोग की जाती है। यह विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण होती है जब एक लाइव तार गलती से ज़मीन या किसी धातु के आवरण को छू लेता है, जिससे बड़ी मात्रा में करंट पृथ्वी की ओर प्रवाहित होने लगता है।

कार्य सिद्धांत

​यह रिले किरचॉफ के वर्तमान नियम के सिद्धांत पर काम करती है, जिसके अनुसार किसी भी परिपथ (circuit) में प्रवेश करने वाली और बाहर निकलने वाली धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होना चाहिए।

  1. करंट की माप: रिले एक अवशेष करंट ट्रांसफॉर्मर (Residual Current Transformer - RCT) से जुड़ी होती है। यह RCT सभी जीवित तारों (लाइव, न्यूट्रल, और फेज) में से बहने वाले करंट को मापता है और उनके वेक्टर योग की गणना करता है।
  2. दोष का पता लगाना: सामान्य परिस्थितियों में, सभी तारों में करंट का वेक्टर योग शून्य होता है (अर्थात्, जितना करंट अंदर जा रहा है, उतना ही बाहर आ रहा है)। जब कोई अर्थ फॉल्ट होता है, तो करंट का एक हिस्सा पृथ्वी की ओर बहने लगता है। इससे आने वाले और बाहर जाने वाले करंट के बीच एक असंतुलन पैदा होता है, और उनका योग शून्य नहीं होता। जब यह असंतुलन एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तो रिले सक्रिय हो जाती है।
  3. ट्रिप सिग्नल: रिले एक ट्रिप सिग्नल उत्पन्न करती है जो सर्किट ब्रेकर को भेज दिया जाता है, जिससे सर्किट टूट जाता है और व्यक्ति तथा उपकरण सुरक्षित रहते हैं।

मुख्य उपयोग और लाभ

  • मानव सुरक्षा: यह रिले सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण है क्योंकि यह बिजली के झटके से होने वाले गंभीर खतरों से बचाती है।
  • उपकरण सुरक्षा: यह उपकरण को ज़्यादा करंट से होने वाले नुकसान से बचाती है।
  • आग से बचाव: अर्थ फॉल्ट से होने वाली आग को रोकती है।


तात्कालिक और समय विलंब रिले के बीच मुख्य अंतर उनके संचालन के समय में है।

तात्कालिक रिले (Instantaneous Relay)

  • परिभाषा: यह रिले बिना किसी जानबूझकर समय देरी के तुरंत काम करती है। यह तब सक्रिय होती है जब करंट या वोल्टेज का मान एक पूर्व-निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है।
  • कार्य सिद्धांत: यह रिले मिलीसेकंड के भीतर ट्रिप करती है। इसका उपयोग उन स्थितियों के लिए होता है जहाँ तुरंत प्रतिक्रिया आवश्यक होती है, जैसे कि शॉर्ट सर्किट

समय विलंब रिले (Time Delay Relay)

  • परिभाषा: यह रिले अपने संपर्कों को बदलने के लिए एक पूर्व-निर्धारित समय अंतराल तक प्रतीक्षा करती है, भले ही इनपुट सिग्नल पहले ही सक्रिय हो गया हो।
  • कार्य सिद्धांत: इसमें एक टाइमर सर्किट होता है जो रिले को सक्रिय करने से पहले एक निश्चित समय तक गिनती करता है। इसका उपयोग उन प्रक्रियाओं के लिए किया जाता है जहाँ समय का सटीक नियंत्रण आवश्यक है, जैसे कि मोटर को अनुक्रमिक रूप से शुरू करना


इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले (electromechanical relay - EMR) और स्थैतिक रिले (static relay), जिन्हें सॉलिड-स्टेट रिले (solid-state relay - SSR) भी कहते हैं, के बीच मुख्य अंतर उनके संचालन के सिद्धांत में है।

इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले (EMR)

​इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले विद्युतचुंबकत्व के सिद्धांत पर काम करती हैं। इनमें एक कॉइल (कुंडल) और यांत्रिक रूप से चलने वाले भाग (जैसे आर्मेचर और संपर्क) होते हैं। जब कॉइल में करंट प्रवाहित होता है, तो यह एक चुंबकीय क्षेत्र बनाता है जो आर्मेचर को खींचता है, जिससे स्विच के संपर्क खुलते या बंद होते हैं।

  • फायदे: ये लागत प्रभावी होते हैं, नियंत्रण और लोड सर्किट के बीच पूर्ण विद्युत अलगाव प्रदान करते हैं, और उच्च करंट क्षमता को संभाल सकते हैं।
  • नुकसान: इनकी स्विचिंग गति धीमी होती है, लगातार उपयोग से चलने वाले भाग घिस जाते हैं जिससे जीवनकाल कम होता है, और स्विचिंग के दौरान शोर उत्पन्न होता है।

स्थैतिक रिले (SSR)

​स्थैतिक रिले में कोई भी चलने वाला या यांत्रिक भाग नहीं होता है। ये बिजली के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए सेमीकंडक्टर घटकों (जैसे ट्रांजिस्टर, SCR) का उपयोग करते हैं।

  • फायदे: इनकी स्विचिंग गति बहुत तेज़ होती है, इनमें कोई यांत्रिक टूट-फूट नहीं होती, इसलिए इनका जीवनकाल लंबा होता है। ये शांत और झटके तथा कंपन के प्रति प्रतिरोधी होते हैं।
  • नुकसान: ये आमतौर पर इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले से अधिक महंगे होते हैं, कम विद्युत अलगाव प्रदान करते हैं, और उच्च करंट पर काम करते समय गर्मी उत्पन्न कर सकते हैं।

संक्षेप में, चुनाव एप्लिकेशन की आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। यदि कम लागत और उच्च करंट क्षमता की आवश्यकता है, तो इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले बेहतर है। यदि तेज़ स्विचिंग गति, लंबा जीवनकाल और शांत संचालन महत्वपूर्ण हैं, तो स्थैतिक रिले अधिक उपयुक्त होती है।


थर्मल और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रिले के बीच मुख्य अंतर उनके कार्य सिद्धांत में है। थर्मल रिले गर्मी पर आधारित होती है, जबकि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रिले विद्युत चुंबकत्व पर आधारित होती है।

थर्मल रिले (Thermal Relay) 

  • कार्य सिद्धांत: यह रिले द्विधात्विक पट्टी (bimetallic strip) के तापीय विस्तार (thermal expansion) के सिद्धांत पर काम करती है। जब ज़्यादा करंट प्रवाहित होता है, तो उत्पन्न हुई गर्मी के कारण यह पट्टी मुड़ जाती है, जिससे मोटर की बिजली आपूर्ति कट जाती है।
  • उद्देश्य: इसका प्राथमिक उपयोग मोटर अधिभार (overload) से सुरक्षा प्रदान करना है। यह ज़्यादा करंट को संभाल सकती है, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया धीमी होती है क्योंकि इसे गर्म होने में समय लगता है।

इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रिले (Electromagnetic Relay) 

  • कार्य सिद्धांत: यह रिले विद्युतचुंबकीय बल के सिद्धांत पर काम करती है। इसमें एक कॉइल होती है जो सक्रिय होने पर एक चुंबकीय क्षेत्र बनाती है। यह चुंबकीय क्षेत्र एक आर्मेचर को खींचता है, जिससे संपर्क खुलते या बंद होते हैं।
  • उद्देश्य: इसका उपयोग सर्किट को स्विच करने के लिए किया जाता है, खासकर कम वोल्टेज वाले नियंत्रण सर्किट से उच्च वोल्टेज वाले लोड को नियंत्रित करने के लिए। यह शॉर्ट सर्किट जैसे तेज दोषों का पता लगाने में भी प्रभावी है।



रिले में पिक अप मान (Pickup Value) वह न्यूनतम मान (minimum value) है जिस पर रिले सक्रिय (operate) होती है और अपने संपर्कों को स्थिति बदलने के लिए ट्रिप सिग्नल भेजती है।

​यह मान करंट, वोल्टेज या किसी अन्य विद्युत मात्रा के लिए निर्धारित किया जाता है। जब तक मापी गई मात्रा इस पिक अप मान से नीचे रहती है, तब तक रिले निष्क्रिय रहती है। जैसे ही यह मात्रा पिक अप मान के बराबर या उससे अधिक हो जाती है, रिले सक्रिय हो जाती है।

उदाहरण

  • ओवरकरंट रिले में: यदि एक ओवरकरंट रिले का पिक अप मान 5 एम्पीयर (Amperes) पर सेट है, तो यह केवल तभी काम करेगी जब सर्किट में करंट 5 एम्पीयर या उससे अधिक हो। 4.9 एम्पीयर के करंट पर भी यह निष्क्रिय रहेगी।
  • अंडरवोल्टेज रिले में: यदि एक अंडरवोल्टेज रिले का पिक अप मान 180 वोल्ट (Volts) पर सेट है, तो यह तब सक्रिय होगी जब वोल्टेज 180 वोल्ट या उससे नीचे चला जाएगा।

​पिक अप मान को सावधानी से चुना जाता है ताकि रिले सामान्य परिचालन स्थितियों के दौरान ट्रिप न करे, लेकिन दोष की स्थिति में तुरंत काम कर सके।



रिले का रीसेटिंग मान (Resetting Value) वह मान होता है जिस पर रिले, एक बार सक्रिय होने के बाद, अपने सामान्य, निष्क्रिय अवस्था (normal, non-operated state) में लौट आती है।

​यह मान पिक अप मान से हमेशा कम होता है। यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसा किया जाता है कि रिले, पिक अप मान पर ट्रिप होने के बाद, तब तक फिर से सक्रिय न हो जाए जब तक कि फॉल्ट की स्थिति पूरी तरह से समाप्त न हो जाए।

उदाहरण

  • ओवरकरंट रिले में: यदि रिले का पिक अप मान 5 एम्पीयर है, तो इसका रीसेटिंग मान 4.5 एम्पीयर या उससे कम हो सकता है। इसका मतलब है कि जब करंट 5 एम्पीयर से अधिक होता है तो रिले ट्रिप हो जाएगी, लेकिन यह तभी रीसेट होगी जब करंट 4.5 एम्पीयर या उससे कम हो जाए।

​यह अंतर रिले को "पुलआउट" (pullout) से बचाता है, जहाँ लोड करंट के मामूली उतार-चढ़ाव के कारण रिले बार-बार ट्रिप और रीसेट होती रहती है। रीसेटिंग मान और पिक अप मान के बीच के अनुपात को रीसेटिंग अनुपात (Resetting Ratio) कहा जाता है।



प्लग सेटिंग गुणक (Plug Setting Multiplier - PSM) एक मान है जो यह निर्धारित करता है कि एक ओवरकरंट रिले कितने गुना ओवरलोड पर काम करेगी। यह रिले की वास्तविक परिचालन करंट (operating current) को सेट करने के लिए उपयोग किया जाता है।

गणना 

​PSM को निम्नलिखित सूत्र से गणना किया जाता है:

PSM = दोष धारा (Fault Current) / (CT अनुपात x प्लग सेटिंग)

  • दोष धारा (Fault Current): सर्किट में वास्तविक दोष की स्थिति में बहने वाली धारा।
  • CT अनुपात (CT Ratio): करंट ट्रांसफॉर्मर का अनुपात (जैसे 100/5)।
  • प्लग सेटिंग (Plug Setting): रिले की कॉइल में प्रवाहित होने वाले करंट की वह प्रतिशत सेटिंग जो रिले को सक्रिय करने के लिए आवश्यक है।

उदाहरण

​मान लीजिए कि एक CT का अनुपात 100/5 है और आपने रिले की प्लग सेटिंग को 100% पर सेट किया है। इसका मतलब है कि रिले 5A के करंट पर सक्रिय होगी। यदि सर्किट में 10A का दोष करंट प्रवाहित होता है, तो:

  • ​CT का आउटपुट करंट = 10A \times (5/100) = 0.5A
  • ​रिले में प्लग सेटिंग = 5A \times 100\% = 5A

PSM = 0.5A / 5A = 0.1

​यह दर्शाता है कि रिले पर प्रभावी करंट रिले के पिकअप मान का 0.1 गुना है।

उपयोग

PSM का उपयोग यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है कि रिले एक विशिष्ट ओवरलोड स्तर पर ट्रिप हो। यह रिले की समय-करंट विशेषताओं को ओवरलोड और शॉर्ट सर्किट की स्थितियों से बचाने के लिए भी सेट करने में मदद करता है।



दूरी रिले की पहुंच (Reach of a Distance Relay) वह अधिकतम दूरी है जिस तक रिले एक दोष (fault) का पता लगा सकती है और उसे ट्रिप कर सकती है। इसे अक्सर रिले के प्रतिबाधा (impedance) सेटिंग के संदर्भ में व्यक्त किया जाता है, जो लाइन की प्रतिबाधा से संबंधित होती है।

पहुंच को कौन से कारक प्रभावित करते हैं?

  1. प्रतिबाधा सेटिंग (Impedance Setting): यह सबसे महत्वपूर्ण कारक है। रिले को एक विशिष्ट प्रतिबाधा मान पर सेट किया जाता है। यदि दोष की प्रतिबाधा (जो दूरी के आनुपातिक होती है) इस मान से अधिक है, तो रिले उस दोष को "देख" नहीं पाएगी और ट्रिप नहीं करेगी।
  2. लाइन प्रतिबाधा: लाइन की प्रतिबाधा प्रति इकाई लंबाई जितनी अधिक होगी, रिले की भौतिक पहुंच उतनी ही कम होगी।
  3. करंट और वोल्टेज ट्रांसफार्मर (CT/PT): CTs और PTs की सटीकता सीधे रिले की माप की सटीकता को प्रभावित करती है, और इस प्रकार उसकी पहुंच को प्रभावित करती है।

सुरक्षा क्षेत्र (Protection Zones)

​दूरी रिले को अक्सर तीन सुरक्षा क्षेत्रों (zones) में विभाजित किया जाता है:

  • ज़ोन 1: यह रिले के सबसे निकट का क्षेत्र होता है (आमतौर पर 80-90% लाइन)। इस क्षेत्र में दोष होने पर रिले तात्कालिक (instantaneous) ट्रिप करती है।
  • ज़ोन 2: यह ज़ोन 1 से आगे का क्षेत्र होता है। इस क्षेत्र में दोष होने पर रिले एक निश्चित समय देरी के बाद ट्रिप करती है। यह देरी बैकअप सुरक्षा के लिए होती है।
  • ज़ोन 3: यह सबसे दूर का क्षेत्र होता है। इस ज़ोन में भी समय देरी के साथ ट्रिपिंग होती है।

​यह मल्टी-जोन पहुंच यह सुनिश्चित करती है कि पूरा ट्रांसमिशन लाइन सुरक्षित है और प्रणाली में दोषों को चुनिंदा रूप से (selectively) अलग किया जा सकता है।



दूरी रिले (distance relay) में ज़ोन सुरक्षा एक ऐसी विधि है जिसका उपयोग ट्रांसमिशन लाइनों को बचाने के लिए किया जाता है। यह विधि लाइन को कई खंडों में विभाजित करती है, जिन्हें सुरक्षा ज़ोन (protection zones) कहा जाता है। प्रत्येक ज़ोन के लिए रिले का ऑपरेशन समय अलग-अलग होता है, जिससे दोषों का पता लगाने और उन्हें चुनिंदा रूप से (selectively) अलग करने में मदद मिलती है।

सुरक्षा के मुख्य ज़ोन 

​दूरी रिले आमतौर पर तीन मुख्य ज़ोन में काम करती है:

  • ज़ोन 1 (Zone 1): यह रिले के सबसे निकट का क्षेत्र है, जो आमतौर पर लाइन की कुल लंबाई के 80-90% तक होता है। इस ज़ोन के भीतर होने वाले दोषों के लिए, रिले बिना किसी जानबूझकर समय देरी के तात्कालिक (instantaneous) रूप से ट्रिप करती है। यह प्राथमिक सुरक्षा प्रदान करता है।
  • ज़ोन 2 (Zone 2): यह ज़ोन 1 की सीमा से परे और अगली सबस्टेशन बस तक फैला होता है। इस ज़ोन में दोषों के लिए, रिले एक निश्चित समय देरी के बाद ट्रिप करती है (आमतौर पर 0.25-0.5 सेकंड)। यह विलंब पिछली लाइन की रिले के लिए बैकअप सुरक्षा प्रदान करता है, ताकि पिछली रिले को ट्रिप करने का समय मिल सके।
  • ज़ोन 3 (Zone 3): यह ज़ोन 2 के आगे का क्षेत्र है। यह उस लाइन के लिए बैकअप सुरक्षा प्रदान करता है जो ज़ोन 2 से भी बाहर है। ज़ोन 3 में दोषों के लिए, रिले और भी अधिक समय देरी के बाद काम करती है (आमतौर पर 1-2 सेकंड)।

उद्देश्य

​ज़ोन सुरक्षा का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि:

  • ​रिले केवल अपने निर्धारित क्षेत्र के दोषों को ट्रिप करे।
  • ​यदि प्राथमिक सुरक्षा रिले विफल हो जाती है, तो बैकअप रिले कुछ समय देरी के बाद ट्रिप हो जाए ताकि पूरे ग्रिड में बिजली की आपूर्ति बाधित न हो।
  • ​यह प्रणाली में चुनिंदा ट्रिपिंग (selective tripping) को बनाए रखता है, जिससे केवल दोषपूर्ण खंड को अलग किया जाता है और स्वस्थ खंड अप्रभावित रहते हैं।


रिले की खराबी के कई कारण हो सकते हैं, जो अक्सर रिले के प्रकार, उसके उपयोग और आसपास के वातावरण पर निर्भर करते हैं।

प्रमुख कारण

  1. यांत्रिक विफलता (Mechanical Failure): इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले में, लगातार चलने वाले हिस्सों (जैसे संपर्क और आर्मेचर) के घिसने से रिले खराब हो सकती है। संपर्क समय के साथ खराब हो सकते हैं, जिससे वे ठीक से काम नहीं कर पाते।
  2. बिजली के दोष (Electrical Faults):
    • वोल्टेज सर्ज (Voltage Surge): अचानक उच्च वोल्टेज की वृद्धि, जैसे बिजली गिरने या स्विचिंग के दौरान, रिले के इलेक्ट्रॉनिक घटकों को नुकसान पहुँचा सकती है।
    • ओवरकरंट (Overcurrent): डिज़ाइन की गई सीमा से अधिक करंट रिले के संपर्कों को जला सकता है या वेल्ड कर सकता है, जिससे वे ठीक से खुल या बंद नहीं हो पाते।
  3. गर्मी और ज़्यादा गरम होना (Heat and Overheating): अत्यधिक तापमान, चाहे वह आसपास के वातावरण से हो या रिले के अंदर ज़्यादा करंट के कारण, रिले के घटकों को नुकसान पहुँचा सकता है। यह विशेष रूप से सॉलिड-स्टेट रिले के लिए एक समस्या है, जिन्हें ठंडा रखने के लिए हीट सिंक की आवश्यकता होती है।
  4. पर्यावरणीय कारक (Environmental Factors):
    • धूल और गंदगी: धूल और गंदगी रिले के संपर्कों पर जमा हो सकती है, जिससे संपर्क प्रतिरोध बढ़ जाता है या संपर्क पूरी तरह से विफल हो जाते हैं।
    • नमी और जंग (Moisture and Corrosion): नमी के कारण रिले के आंतरिक भागों में जंग लग सकती है, जिससे विद्युत कनेक्शन खराब हो जाते हैं।
    • कंपन (Vibration): अत्यधिक कंपन रिले के यांत्रिक हिस्सों को ढीला कर सकता है या उन्हें गलत संरेखित कर सकता है।
  5. गलत चयन (Incorrect Selection): यदि किसी विशेष अनुप्रयोग के लिए गलत प्रकार या रेटिंग की रिले का चयन किया जाता है, तो यह जल्दी खराब हो सकती है। उदाहरण के लिए, एक कम करंट रेटिंग वाली रिले का उपयोग उच्च करंट लोड के लिए करना।
  6. स्थापना में त्रुटियाँ (Installation Errors): गलत वायरिंग, ढीले कनेक्शन, या गलत तरीके से माउंट करने से भी रिले की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है और उसकी विफलता हो सकती है।


संख्यात्मक रिले (Numerical Relays) डिजिटल सुरक्षा उपकरण हैं जो बिजली प्रणालियों में दोषों का पता लगाने और उनसे सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक माइक्रोप्रोसेसर या डिजिटल सिग्नल प्रोसेसर (DSP) का उपयोग करते हैं।

संख्यात्मक रिले के प्रमुख लाभ

  1. उच्च सटीकता और संवेदनशीलता: ये रिले दोषों को बहुत सटीकता से माप सकते हैं और पारंपरिक इलेक्ट्रोमैकेनिकल रिले की तुलना में छोटे से छोटे असंतुलन का भी पता लगा सकते हैं।
  2. बहुमुखी प्रतिभा (Versatility): एक ही संख्यात्मक रिले को सॉफ्टवेयर के माध्यम से कई अलग-अलग सुरक्षा कार्यों के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। यह कई अलग-अलग रिले खरीदने और स्थापित करने की आवश्यकता को समाप्त करता है।
  3. संचार क्षमता: ये रिले अक्सर SCADA (Supervisory Control and Data Acquisition) प्रणालियों के साथ संवाद कर सकते हैं। यह दूरस्थ निगरानी, नियंत्रण और डेटा लॉगिंग को सक्षम बनाता है।
  4. दोष विश्लेषण (Fault Analysis): जब कोई दोष होता है, तो संख्यात्मक रिले महत्वपूर्ण डेटा (जैसे समय, दोष का प्रकार, और तरंग रूप) को स्टोर कर सकती है। इस डेटा का उपयोग बाद में दोष का विश्लेषण करने और समस्या को ठीक करने में मदद करने के लिए किया जा सकता है।
  5. आत्म-निदान (Self-diagnosis): ये रिले अपनी खुद की स्थिति की निगरानी कर सकती हैं और किसी भी खराबी या विफलता की रिपोर्ट कर सकती हैं, जिससे रखरखाव आसान हो जाता है।
  6. कम रखरखाव: इनमें कोई यांत्रिक भाग नहीं होता है, जिससे पारंपरिक रिले की तुलना में इनका रखरखाव कम होता है।

कुल मिलाकर, 

संख्यात्मक रिले ग्रिड सुरक्षा और विश्वसनीयता को काफी बढ़ाती है, जिससे वे आधुनिक विद्युत प्रणालियों के लिए एक बेहतर विकल्प बन जाती हैं।



विद्युत प्रणाली में रिले समन्वय (relay coordination) का अर्थ है यह सुनिश्चित करना कि सुरक्षा रिले और सर्किट ब्रेकर एक पूर्व-निर्धारित और तर्कसंगत क्रम में काम करें। यह प्रणाली में दोष (fault) होने पर केवल दोषपूर्ण हिस्से को अलग करने के लिए महत्वपूर्ण है।

रिले समन्वय क्यों महत्वपूर्ण है?

  1. चयनात्मकता (Selectivity) : रिले समन्वय का मुख्य उद्देश्य चयनात्मकता प्राप्त करना है। इसका मतलब है कि जब कोई दोष होता है, तो केवल उस दोष के सबसे निकट की रिले और सर्किट ब्रेकर ट्रिप करें। इससे बिजली की आपूर्ति केवल दोषपूर्ण हिस्से में बाधित होती है, जबकि प्रणाली के बाकी स्वस्थ हिस्से सामान्य रूप से काम करते रहते हैं।
  2. विश्वसनीयता (Reliability) : यदि रिले समन्वित नहीं हैं, तो एक छोटा सा दोष भी बड़े क्षेत्र में बिजली कटौती (blackout) का कारण बन सकता है। उचित समन्वय यह सुनिश्चित करता है कि प्रणाली के बड़े हिस्से पर अनावश्यक ट्रिपिंग का प्रभाव न पड़े, जिससे ग्रिड की विश्वसनीयता बनी रहती है।
  3. सुरक्षा (Safety) : समन्वय यह सुनिश्चित करता है कि दोष को तुरंत और प्रभावी ढंग से अलग किया जाए, जिससे उपकरण और कर्मियों को नुकसान होने से बचाया जा सके। धीमी या गलत ट्रिपिंग से आग लग सकती है या उपकरण स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकते हैं।
  4. बैकअप सुरक्षा (Backup Protection) : यदि किसी कारण से प्राथमिक सुरक्षा रिले या सर्किट ब्रेकर काम करने में विफल हो जाते हैं, तो समन्वित प्रणाली में एक बैकअप रिले कुछ समय देरी के बाद सक्रिय हो जाएगी, जिससे दोष को तब भी अलग किया जा सके।

रिले समन्वय को समय, 

करंट और वोल्टेज सेटिंग्स को सावधानीपूर्वक समायोजित करके प्राप्त किया जाता है। आमतौर पर, प्रत्येक सुरक्षा डिवाइस को अपने डाउनस्ट्रीम डिवाइस (जो उसके बाद आता है) से थोड़ा अधिक समय देरी पर सेट किया जाता है। यह डाउनस्ट्रीम डिवाइस को पहले ट्रिप करने का अवसर देता है।



रिले बर्डन (Relay Burden) एक शब्द है जो सुरक्षा रिले के संदर्भ में उपयोग किया जाता है। यह उस शक्ति (power) को दर्शाता है जिसे रिले अपनी कॉइल में उचित रूप से काम करने के लिए करंट ट्रांसफॉर्मर (CT) या वोल्टेज ट्रांसफॉर्मर (PT) से लेती है। इसे वोल्ट-एम्पीयर (VA) में मापा जाता है।

रिले बर्डन क्यों महत्वपूर्ण है?

  1. सटीकता: यदि रिले का बर्डन बहुत अधिक है, तो यह CT या PT को उसकी निर्धारित सटीकता वर्ग (accuracy class) से बाहर काम करने के लिए मजबूर कर सकता है। इससे माप में त्रुटि हो सकती है, और रिले दोष को सही ढंग से महसूस नहीं कर पाएगी।
  2. CT/PT का चयन: CT या PT का चयन करते समय, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि इसकी VA रेटिंग रिले और उससे जुड़ी तारों के कुल बर्डन से अधिक हो। यदि CT का बर्डन उसकी रेटिंग से अधिक हो जाता है, तो यह संतृप्त (saturate) हो सकता है, जिससे आउटपुट करंट विकृत हो जाएगा और रिले गलत तरीके से काम करेगी।
  3. वोल्टेज ड्रॉप: उच्च बर्डन के कारण CT के सेकेंडरी सर्किट में अधिक वोल्टेज ड्रॉप हो सकता है, जिससे रिले को मिलने वाला वोल्टेज कम हो जाता है और वह सही ढंग से काम नहीं कर पाती।

संक्षेप में,

रिले बर्डन एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है जिसे विद्युत प्रणाली को डिजाइन करते समय ध्यान में रखना चाहिए ताकि सुरक्षा रिले अपनी पूरी क्षमता और सटीकता के साथ काम कर सके।



रिले संपर्कों में चाप दमन (Arc Suppression in Relay Contacts) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका उपयोग रिले के संपर्कों के बीच विद्युत चाप (electric arc) के गठन और नुकसान को रोकने के लिए किया जाता है, जब वे खुलते या बंद होते हैं।

चाप का कारण और समस्याएँ

​जब रिले के संपर्क खुलते हैं, तो उनके बीच का माध्यम (आमतौर पर हवा) आयनित (ionized) हो जाता है, जिससे करंट एक चाप के रूप में बहता रहता है। यह चाप कई समस्याओं का कारण बनता है:

  • संपर्क का क्षरण: चाप के कारण संपर्कों की सतह पर गर्मी और ऑक्सीकरण होता है, जिससे वे खराब हो जाते हैं और उनका जीवनकाल कम हो जाता है।
  • संपर्क वेल्डिंग: उच्च करंट चाप के कारण संपर्कों को एक साथ वेल्ड कर सकता है, जिससे वे स्थायी रूप से बंद हो जाते हैं।
  • विद्युत शोर: चाप से विद्युत शोर उत्पन्न होता है जो पास के संवेदनशील इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को प्रभावित कर सकता है।

चाप दमन के तरीके

​चाप को दबाने के लिए कई विधियाँ उपयोग की जाती हैं:

  1. संपर्क सामग्री (Contact Material): संपर्कों को ऐसी सामग्रियों से बनाया जाता है जिनमें उच्च चाप प्रतिरोध होता है, जैसे चांदी मिश्र धातु (silver alloys)।
  2. स्नबर सर्किट (Snubber Circuit): यह एक साधारण सर्किट है जिसमें एक कैपेसिटर (capacitor) और रेसिस्टर (resistor) का संयोजन होता है। इसे संपर्कों के समानांतर (parallel) में जोड़ा जाता है। जब संपर्क खुलते हैं, तो कैपेसिटर वोल्टेज को अवशोषित करता है, जिससे चाप बनने से रोका जा सके।
  3. डायोड (Diode): DC लोड के लिए, संपर्कों के समानांतर में एक फ्रीव्हीलिंग डायोड (freewheeling diode) जोड़ा जाता है। जब कॉइल डी-एनर्जाइज़ होती है, तो यह डायोड कॉइल में जमा ऊर्जा को एक लूप में प्रवाहित होने देता है, जिससे चाप नहीं बनता।
  4. ब्लोआउट मैग्नेट (Blowout Magnet): कुछ रिले में, एक छोटा चुंबक संपर्कों के पास लगाया जाता है जो चुंबकीय बल का उपयोग करके चाप को बाहर की ओर धकेलता है और उसे तोड़ देता है।

​चाप दमन रिले की विश्वसनीयता और जीवनकाल को बढ़ाने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।





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