विद्युत कनवर्टर (Electric Converter)

विद्युत कनवर्टर (Electric Converter) एक ऐसा उपकरण है जो विद्युत शक्ति के एक रूप को दूसरे रूप में बदलता है। इसका उपयोग वोल्टेज, धारा या आवृत्ति के स्तर को बदलने के लिए किया जाता है, ताकि इसे विभिन्न उपकरणों या प्रणालियों में उपयोग किया जा सके।

​उदाहरण के लिए, एक कनवर्टर अल्टरनेटिंग करंट (AC) को डायरेक्ट करंट (DC) में बदल सकता है (इसे रेक्टिफायर कहते हैं), या DC को AC में बदल सकता है (जिसे इन्वर्टर कहते हैं)। यह विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में एक महत्वपूर्ण घटक होता है, जैसे:

  • मोबाइल चार्जर: यह AC को कम-वोल्टेज DC में बदलता है।
  • यूपीएस/इन्वर्टर: यह बैटरी के DC को घर के उपकरणों के लिए AC में बदलता है।
  • कंप्यूटर पावर सप्लाई यूनिट (PSU): यह AC को कंप्यूटर के आंतरिक घटकों के लिए आवश्यक DC वोल्टेज में बदलता है।

विद्युत कनवर्टर के प्रकार

​विद्युत कनवर्टर को उनके इनपुट और आउटपुट के आधार पर कई श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  • AC से DC कनवर्टर (रेक्टिफायर): ये सबसे आम प्रकार के कनवर्टर हैं जो प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में बदलते हैं।
  • DC से AC कनवर्टर (इन्वर्टर): ये दिष्ट धारा को प्रत्यावर्ती धारा में बदलते हैं, जिनका उपयोग घरों और कार्यालयों में किया जाता है।
  • DC से DC कनवर्टर: ये एक DC वोल्टेज को दूसरे DC वोल्टेज स्तर (ऊंचा या नीचा) में बदलते हैं। उदाहरण के लिए, यह कार की 12V बैटरी को USB डिवाइस के लिए 5V में बदल सकता है।
  • AC से AC कनवर्टर: ये एक AC वोल्टेज और आवृत्ति को दूसरे AC वोल्टेज और आवृत्ति में बदलते हैं।


एसी से एसी कनवर्टर (AC to AC converter) एक ऐसा उपकरण है जो अल्टरनेटिंग करंट (AC) के एक रूप को दूसरे रूप में बदलता है। यह कनवर्टर इनपुट वोल्टेज और/या आवृत्ति को बदलकर आउटपुट वोल्टेज और/या आवृत्ति को नियंत्रित करता है। यह एसी वोल्टेज, आवृत्ति, या दोनों को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है।

एसी से एसी कनवर्टर के प्रकार

​एसी से एसी कनवर्टर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं:

  1. एसी वोल्टेज नियंत्रक (AC Voltage Controller): यह कनवर्टर इनपुट एसी वोल्टेज को आउटपुट में बदलता है, लेकिन आवृत्ति को अपरिवर्तित रखता है। यह एक एसी स्रोत से वेरिएबल एसी वोल्टेज प्रदान करता है। इसका उपयोग अक्सर पंखे की गति को नियंत्रित करने, प्रकाश की चमक को कम करने (dimmer) या हीटिंग तत्वों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
  2. साइक्लोकनवर्टर (Cycloconverter): यह कनवर्टर आवृत्ति को बदलता है। यह सीधे एक एसी इनपुट से एक अलग आवृत्ति के एसी आउटपुट में परिवर्तित करता है, बिना किसी डीसी लिंक (DC link) के। यह अक्सर भारी औद्योगिक अनुप्रयोगों में उपयोग होता है, जैसे कि बड़े मोटरों की गति को नियंत्रित करना, खासकर रेलवे कर्षण (traction) प्रणालियों में।

उपयोग

  • औद्योगिक ड्राइव: यह कनवर्टर औद्योगिक मोटरों की गति को नियंत्रित करने के लिए बहुत उपयोगी है।
  • प्रकाश व्यवस्था: इसका उपयोग रोशनी की चमक को नियंत्रित करने वाले डिमर (dimmer) में किया जाता है।
  • हीटिंग सिस्टम: यह हीटिंग तत्वों के तापमान को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • हवाई जहाज में विद्युत प्रणाली: कुछ हवाई जहाजों में अलग-अलग आवृत्तियों की आवश्यकता होती है, जिसके लिए इनका उपयोग किया जाता है।

एसी से एसी कनवर्टर (AC to AC converter) एक ऐसा उपकरण है जो अल्टरनेटिंग करंट (AC) के एक रूप को दूसरे रूप में बदलता है। इसका उपयोग इनपुट एसी वोल्टेज और/या आवृत्ति (frequency) को बदलकर आउटपुट वोल्टेज और/या आवृत्ति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।

​यह दो मुख्य तरीकों से काम करता है:

  1. एसी वोल्टेज कंट्रोलर (AC Voltage Controller):
    • ​यह इनपुट एसी वोल्टेज को नियंत्रित करता है, लेकिन आवृत्ति को नहीं बदलता है।
    • ​यह कनवर्टर SCRs (सिलिकॉन कंट्रोल्ड रेक्टिफायर) या ट्रांजिस्टर जैसे इलेक्ट्रॉनिक स्विच का उपयोग करता है।
    • ​ये स्विच एसी वेवफॉर्म के एक हिस्से को 'चालू' या 'बंद' करके आउटपुट वोल्टेज को कम या ज्यादा करते हैं।
    • ​उदाहरण के लिए, जब आपको किसी पंखे की गति कम करनी हो, तो यह कनवर्टर कम वोल्टेज देकर ऐसा करता है, जिससे पंखा धीरे चलता है।
    • ​इसका उपयोग रोशनी के डिमर (dimmer), हीटिंग सिस्टम और पंखों की गति को नियंत्रित करने में किया जाता है।
  2. साइक्लोकनवर्टर (Cycloconverter):
    • ​यह इनपुट एसी वोल्टेज की आवृत्ति को सीधे बदलता है।
    • ​यह बिना किसी मध्यवर्ती डीसी लिंक के, एक एसी इनपुट से एक अलग आवृत्ति का एसी आउटपुट बनाता है।
    • ​यह कनवर्टर भी SCRs जैसे इलेक्ट्रॉनिक स्विच का उपयोग करता है, जो इनपुट वेवफॉर्म से अलग-अलग खंडों को चुनकर एक नई आवृत्ति का आउटपुट वेवफॉर्म बनाते हैं।
    • ​इनका उपयोग बड़े औद्योगिक मोटरों की गति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, खासकर रेलवे जैसे भारी-भरकम अनुप्रयोगों में।

​यह उपकरण एसी को एसी में बदलकर विभिन्न उपकरणों की कार्यक्षमता को नियंत्रित करने में मदद करता है, जिससे ऊर्जा की खपत भी कम हो सकती है।


एसी से एसी कन्वर्टर में मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक स्विच (electronic switches) और कुछ अन्य सर्किट घटक होते हैं। यह एक बहुत ही जटिल सर्किट होता है, लेकिन इसके मुख्य पार्ट्स इस प्रकार हैं:

​1. इलेक्ट्रॉनिक स्विच (Electronic Switches)

​यह एसी से एसी कन्वर्टर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यही वह कंपोनेंट है जो एसी वोल्टेज को नियंत्रित करता है। ये स्विच एसी वेवफॉर्म के कुछ हिस्सों को "चालू" या "बंद" करते हैं, जिससे आउटपुट वोल्टेज और/या आवृत्ति बदल जाती है। इन स्विचों में अक्सर निम्नलिखित कंपोनेंट का उपयोग होता है:

  • थाइरिस्टर (Thyristor) / SCR (Silicon Controlled Rectifier): ये अर्धचालक (semiconductor) डिवाइस होते हैं जिनका उपयोग एसी वोल्टेज को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। ये स्विच केवल एक दिशा में करंट को प्रवाहित होने देते हैं।
  • ट्रायैक (TRIAC): यह थाइरिस्टर का एक उन्नत रूप है, जो दोनों दिशाओं में करंट को नियंत्रित कर सकता है। इसका उपयोग अक्सर पंखों और डिमर (dimmer) में किया जाता है।
  • आईजीबीटी (IGBT - Insulated Gate Bipolar Transistor) और मॉस्फेट (MOSFET): ये उच्च-आवृत्ति (high-frequency) स्विचिंग के लिए उपयोग होते हैं। इनका उपयोग आधुनिक और कुशल कन्वर्टर में होता है।

​2. कंट्रोल सर्किट (Control Circuit)

​इन इलेक्ट्रॉनिक स्विच को नियंत्रित करने के लिए एक कंट्रोल सर्किट की आवश्यकता होती है। यह सर्किट निर्धारित करता है कि स्विच को कब और कितने समय के लिए चालू या बंद करना है। इसमें आमतौर पर निम्नलिखित कंपोनेंट होते हैं:

  • माइक्रोकंट्रोलर (Microcontroller) या डिजिटल सिग्नल प्रोसेसर (DSP): यह सर्किट का "दिमाग" होता है। यह इनपुट और आउटपुट वोल्टेज और आवृत्ति को मापता है और स्विच को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक सिग्नल भेजता है।
  • गेट ड्राइवर्स (Gate Drivers): ये ऐसे सर्किट होते हैं जो माइक्रोकंट्रोलर से मिलने वाले कम-शक्ति वाले सिग्नल को इलेक्ट्रॉनिक स्विच को चालू करने के लिए आवश्यक उच्च-शक्ति वाले सिग्नल में बदलते हैं।

​3. अन्य घटक

​इन मुख्य घटकों के अलावा, सर्किट में कुछ अन्य सहायक पार्ट्स भी होते हैं:

  • ट्रांसफॉर्मर (Transformer): कुछ एसी-एसी कन्वर्टर में इनपुट वोल्टेज को कम या ज्यादा करने के लिए ट्रांसफॉर्मर का उपयोग किया जाता है।
  • फिल्टर सर्किट (Filter Circuit): स्विचिंग के कारण आउटपुट वेवफॉर्म में शोर (noise) और हार्मोनिक्स उत्पन्न हो सकते हैं। इन अवांछित तत्वों को हटाने के लिए इंडक्टर (inductor) और कैपेसिटर (capacitor) से बने फिल्टर सर्किट का उपयोग किया जाता है ताकि आउटपुट साफ और चिकना (smooth) हो।
  • कूलिंग सिस्टम (Cooling System): हाई-पावर कन्वर्टर में इलेक्ट्रॉनिक स्विच गर्म हो सकते हैं। उन्हें ठंडा रखने के लिए हीट सिंक (heat sink) या पंखे (fan) का उपयोग किया जाता है।

​यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एसी से एसी कन्वर्टर के प्रकार के आधार पर, इन घटकों की संख्या और व्यवस्था में बदलाव हो सकता है।


डीसी से डीसी कन्वर्टर (DC to DC converter) एक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट या डिवाइस है जो डायरेक्ट करंट (DC) वोल्टेज के एक लेवल को दूसरे लेवल में बदलता है। इसका उपयोग अक्सर एक फिक्स DC वोल्टेज को दूसरे आवश्यक DC वोल्टेज में बदलने के लिए किया जाता है, चाहे वह ज्यादा हो या कम।

​यह कन्वर्टर आमतौर पर स्विचिंग मोड पर काम करता है। इसका मतलब है कि यह इनपुट वोल्टेज को बहुत तेजी से चालू और बंद करता है (एक "स्विचिंग" क्रिया)। इस प्रक्रिया में, ऊर्जा को एक प्रेरक (inductor) या संधारित्र (capacitor) जैसे स्टोरेज एलिमेंट में अस्थायी रूप से संग्रहीत किया जाता है। जब स्विच बंद होता है, तो संग्रहित ऊर्जा को आउटपुट पर एक अलग वोल्टेज लेवल पर छोड़ा जाता है।

डीसी से डीसी कन्वर्टर के प्रकार

​डीसी से डीसी कन्वर्टर को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में बांटा जा सकता है:

  • बक कन्वर्टर (Buck Converter): इसे "स्टेप-डाउन कन्वर्टर" भी कहते हैं। इसका काम इनपुट DC वोल्टेज को आउटपुट में कम करना है। यह सबसे सामान्य प्रकार का कन्वर्टर है, जिसका उपयोग मोबाइल चार्जर और कंप्यूटर में वोल्टेज कम करने के लिए किया जाता है।
  • बूस्ट कन्वर्टर (Boost Converter): इसे "स्टेप-अप कन्वर्टर" भी कहते हैं। इसका काम इनपुट DC वोल्टेज को आउटपुट में बढ़ाना है। यह बैटरी से चलने वाले उपकरणों में उपयोग होता है जहाँ कम वोल्टेज को डिवाइस की ज़रूरतों के लिए बढ़ाना होता है, जैसे टॉर्च में।
  • बक-बूस्ट कन्वर्टर (Buck-Boost Converter): यह एक बहुमुखी कन्वर्टर है जो इनपुट वोल्टेज को आवश्यकतानुसार कम या ज्यादा कर सकता है। इसका उपयोग उन अनुप्रयोगों में किया जाता है जहाँ इनपुट वोल्टेज में उतार-चढ़ाव होता रहता है, जैसे इलेक्ट्रिक वाहनों में।

डीसी से डीसी कन्वर्टर का उपयोग

​डीसी से डीसी कन्वर्टर का उपयोग कई आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में होता है, जिनमें शामिल हैं:

  • मोबाइल फ़ोन और लैपटॉप: बैटरी के वोल्टेज को अलग-अलग आंतरिक घटकों के लिए आवश्यक वोल्टेज में बदलने के लिए।
  • इलेक्ट्रिक वाहन (EVs): बैटरी के हाई-वोल्टेज को वाहन के अन्य सिस्टम (जैसे लाइट्स) के लिए आवश्यक कम वोल्टेज में बदलने के लिए।
  • सौर ऊर्जा प्रणाली (Solar Power Systems): सौर पैनलों से मिलने वाले वोल्टेज को स्थिर और उपयोग करने योग्य वोल्टेज में बदलने के लिए।

डीसी से डीसी कन्वर्टर (DC to DC converter) का मुख्य काम एक डायरेक्ट करंट (DC) वोल्टेज को दूसरे DC वोल्टेज लेवल में बदलना है। यह एक इलेक्ट्रॉनिक सर्किट है जो इनपुट डीसी वोल्टेज को कम (स्टेप-डाउन) या ज्यादा (स्टेप-अप) कर सकता है, जिससे यह विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की ज़रूरतों को पूरा कर सके।

डीसी से डीसी कन्वर्टर कैसे काम करता है?

​डीसी-डीसी कन्वर्टर आमतौर पर स्विचिंग मोड पर काम करते हैं। इसका मतलब है कि वे एक इलेक्ट्रॉनिक स्विच (जैसे ट्रांजिस्टर) का उपयोग करते हैं, जो बहुत तेजी से चालू (ON) और बंद (OFF) होता है।

​इस प्रक्रिया में:

  1. ​जब स्विच चालू होता है, तो ऊर्जा एक इंडक्टर (प्रेरक) या कैपेसिटर (संधारित्र) में स्टोर होती है।
  2. ​जब स्विच बंद होता है, तो यह संग्रहीत ऊर्जा आउटपुट पर जारी होती है।

​स्विचिंग की गति और समय (duty cycle) को नियंत्रित करके, आउटपुट वोल्टेज को सटीक रूप से नियंत्रित किया जा सकता है। यह स्विचिंग तकनीक बहुत कुशल होती है, जिससे ऊर्जा का नुकसान कम होता है।

मुख्य प्रकार और उनके काम

​डीसी से डीसी कन्वर्टर के तीन मुख्य प्रकार हैं, और प्रत्येक का अपना विशिष्ट काम है:

  • बक कन्वर्टर (Buck Converter): इसका काम इनपुट वोल्टेज को कम करना है। उदाहरण के लिए, यह कार की 12V बैटरी के वोल्टेज को USB चार्जर के लिए 5V में बदल सकता है।
  • बूस्ट कन्वर्टर (Boost Converter): इसका काम इनपुट वोल्टेज को बढ़ाना है। इसका उपयोग अक्सर बैटरी से चलने वाले डिवाइसेस में किया जाता है, जहाँ कम वोल्टेज को एक उच्च वोल्टेज में बदलना होता है, जैसे किसी एलईडी को जलाने के लिए।
  • बक-बूस्ट कन्वर्टर (Buck-Boost Converter): यह एक ही समय में वोल्टेज को कम या ज्यादा दोनों कर सकता है। इसका उपयोग उन अनुप्रयोगों में होता है जहाँ इनपुट वोल्टेज में उतार-चढ़ाव होता रहता है, और आउटपुट वोल्टेज को स्थिर रखना होता है।

डीसी से डीसी कन्वर्टर (DC to DC converter) में मुख्य रूप से चार प्रकार के पार्ट्स होते हैं:

​1. स्विचिंग एलिमेंट (Switching Element)

​यह डीसी-डीसी कन्वर्टर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक हाई-स्पीड इलेक्ट्रॉनिक स्विच होता है जो बहुत तेज़ी से चालू और बंद होता है। इस स्विचिंग की गति को नियंत्रित करके आउटपुट वोल्टेज को बदला जाता है। इसके लिए आमतौर पर ट्रांजिस्टर या मॉस्फेट (MOSFET) का उपयोग किया जाता है।

​2. ऊर्जा स्टोरेज एलिमेंट (Energy Storage Element)

​स्विचिंग के दौरान, ऊर्जा को अस्थायी रूप से इन घटकों में संग्रहीत किया जाता है।

  • इंडक्टर (Inductor): यह एक कॉइल होती है जो करंट के माध्यम से चुंबकीय क्षेत्र में ऊर्जा को संग्रहीत करती है। यह बक और बूस्ट दोनों कन्वर्टर्स में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • कैपेसिटर (Capacitor): यह एक इलेक्ट्रॉनिक घटक है जो विद्युत क्षेत्र में ऊर्जा को संग्रहीत करता है और आउटपुट वोल्टेज को स्थिर और स्मूथ (smooth) बनाने के लिए एक फिल्टर के रूप में भी काम करता है।

​3. डायोड (Diode)

​डायोड एक ऐसा अर्धचालक (semiconductor) है जो करंट को केवल एक दिशा में बहने देता है। यह स्विचिंग प्रक्रिया के दौरान करंट को सही दिशा में प्रवाहित करने में मदद करता है।

​4. कंट्रोल सर्किट (Control Circuit)

​यह सर्किट स्विचिंग एलिमेंट को नियंत्रित करता है। यह स्विच को कब और कितने समय के लिए चालू या बंद करना है, यह तय करता है। इसमें आमतौर पर एक माइक्रोकंट्रोलर या पल्स-विड्थ मॉडुलन (PWM) कंट्रोलर लगा होता है जो आउटपुट वोल्टेज को मापता है और उसे स्थिर रखने के लिए स्विचिंग की गति को समायोजित करता है।

​DC to DC converter के प्रकार के आधार पर इन घटकों की व्यवस्था अलग-अलग होती है, लेकिन इन सभी घटकों का उपयोग लगभग सभी स्विचिंग DC to DC converter में होता है।

एसी से डीसी कनवर्टर (AC to DC converter) एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक सर्किट है जो अल्टरनेटिंग करंट (AC) को डायरेक्ट करंट (DC) में बदलता है। इसे रेक्टिफायर भी कहते हैं।

​यह कन्वर्टर उन सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जिन्हें काम करने के लिए डीसी पावर की आवश्यकता होती है, जैसे कि मोबाइल चार्जर, कंप्यूटर, लैपटॉप, टेलीविजन और अन्य घरेलू उपकरण।

एसी से डीसी कनवर्टर कैसे काम करता है?

​एसी को डीसी में बदलने की प्रक्रिया में मुख्य रूप से चार चरण होते हैं:

  1. ट्रांसफॉर्मर (Transformer): सबसे पहले, इनपुट एसी वोल्टेज को ट्रांसफॉर्मर का उपयोग करके कम किया जाता है। उदाहरण के लिए, आपके घर की 240V AC सप्लाई को 12V AC में बदला जाता है।
  2. रेक्टिफिकेशन (Rectification): इस चरण में, डायोड्स का उपयोग करके एसी को "पल्सेटिंग" (स्पंदित) डीसी में बदला जाता है। डायोड्स करंट को केवल एक दिशा में प्रवाहित होने देते हैं, जिससे एसी वेवफॉर्म का नकारात्मक (negative) हिस्सा हट जाता है या उसे सकारात्मक (positive) में बदल दिया जाता है। इस प्रक्रिया को रेक्टिफिकेशन कहते हैं।
  3. फिल्टरिंग (Filtering): रेक्टिफिकेशन के बाद, आउटपुट वोल्टेज पूरी तरह से स्मूथ नहीं होता, उसमें कुछ उतार-चढ़ाव (ripples) होते हैं। इन उतार-चढ़ावों को हटाने के लिए एक कैपेसिटर का उपयोग किया जाता है। यह कैपेसिटर वोल्टेज को चार्ज और डिस्चार्ज करके एक अधिक स्थिर और चिकना डीसी आउटपुट प्रदान करता है।
  4. वोल्टेज रेगुलेशन (Voltage Regulation): अंत में, आउटपुट वोल्टेज को स्थिर और सही मान पर रखने के लिए एक वोल्टेज रेगुलेटर का उपयोग किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि आउटपुट वोल्टेज लोड या इनपुट वोल्टेज में किसी भी बदलाव से प्रभावित न हो।

एसी (प्रत्यावर्ती धारा) से डीसी (दिष्ट धारा) कनवर्टर, जिसे रेक्टिफायर भी कहा जाता है, का मुख्य कार्य प्रत्यावर्ती धारा को दिष्ट धारा में बदलना है। यह रूपांतरण इसलिए आवश्यक है क्योंकि घरों में आने वाली बिजली एसी होती है, जबकि ज़्यादातर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, जैसे मोबाइल चार्जर, कंप्यूटर, और टीवी, डीसी पर काम करते हैं।

​यह रूपांतरण कई चरणों में होता है:

  1. ट्रांसफॉर्मर: सबसे पहले, ट्रांसफॉर्मर एसी वोल्टेज को कम करता है, इसे उस स्तर पर लाता है जिस पर उपकरण को काम करने की आवश्यकता होती है।
  2. रेक्टिफिकेशन: इस चरण में, डायोड का उपयोग किया जाता है। डायोड एक दिशा में करंट को बहने देते हैं, और दूसरी दिशा में रोकते हैं। इस प्रक्रिया से एसी की साइन वेव को एक स्पंदित (pulsating) डीसी वेव में बदल दिया जाता है।
  3. फिल्टरिंग: रेक्टिफिकेशन के बाद, जो स्पंदित डीसी वेव प्राप्त होती है, वह पूरी तरह से स्थिर नहीं होती है। इस वेव को चिकना (smooth) करने के लिए कैपेसिटर का उपयोग किया जाता है। कैपेसिटर ऊर्जा को स्टोर करते हैं और जब वोल्टेज गिरता है तो उसे छोड़ते हैं, जिससे आउटपुट वोल्टेज लगभग स्थिर हो जाता है।
  4. वोल्टेज रेगुलेशन: कुछ कनवर्टर सर्किट में, वोल्टेज रेगुलेटर का उपयोग किया जाता है ताकि आउटपुट वोल्टेज बिल्कुल स्थिर और नियंत्रित रहे, भले ही इनपुट वोल्टेज में थोड़ा उतार-चढ़ाव हो।

एसी से डीसी कनवर्टर (जिसे रेक्टिफायर भी कहते हैं) में मुख्य रूप से चार प्रकार के भाग होते हैं। ये सभी भाग मिलकर एसी (प्रत्यावर्ती धारा) को डीसी (दिष्ट धारा) में बदलने का काम करते हैं।

​1. ट्रांसफॉर्मर (Transformer)

​यह कनवर्टर का पहला और सबसे महत्वपूर्ण भाग है। इसका काम आने वाली एसी वोल्टेज को कम करना या बढ़ाना है। ज़्यादातर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिए यह वोल्टेज को कम करता है, क्योंकि घरों में आने वाली बिजली (जैसे 220V) उपकरणों के लिए बहुत ज़्यादा होती है।

​2. रेक्टिफायर (Rectifier)

​यह एसी को स्पंदित (pulsating) डीसी में बदलता है। रेक्टिफायर बनाने के लिए डायोड (diodes) का इस्तेमाल होता है। डायोड एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक घटक है जो करंट को केवल एक ही दिशा में बहने देता है। एसी की साइन वेव को ये डायोड एक ही दिशा में करके डीसी में बदलते हैं।

​3. फिल्टर सर्किट (Filter Circuit)

​रेक्टिफायर से मिली स्पंदित डीसी वेव पूरी तरह से स्थिर नहीं होती है। इस वेव को चिकना और स्थिर बनाने के लिए कैपेसिटर (capacitors) और कभी-कभी इंडक्टर (inductors) का उपयोग किया जाता है। कैपेसिटर ऊर्जा को स्टोर करते हैं और जब वोल्टेज कम होता है तो उसे छोड़ते हैं, जिससे आउटपुट वोल्टेज में स्थिरता आती है।

​4. वोल्टेज रेगुलेटर (Voltage Regulator)

​यह हिस्सा यह सुनिश्चित करता है कि आउटपुट वोल्टेज बिल्कुल स्थिर और नियंत्रित रहे, भले ही इनपुट वोल्टेज या लोड में थोड़ा बदलाव आए। यह घटक यह सुनिश्चित करता है कि आपके उपकरण को एक समान और सुरक्षित वोल्टेज मिले।

​ये सभी घटक एक साथ काम करके एसी को एक स्थिर और इस्तेमाल करने योग्य डीसी में बदलते हैं, जो हमारे सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को चलाने के लिए आवश्यक है।


डीसी से एसी कनवर्टर, जिसे आमतौर पर इन्वर्टर कहा जाता है, का काम दिष्ट धारा (DC) को प्रत्यावर्ती धारा (AC) में बदलना है। यह एसी वह होती है जिसका उपयोग हमारे घरों में ज़्यादातर बिजली के उपकरणों (जैसे पंखे, टीवी, और लाइट्स) को चलाने के लिए किया जाता है।

इन्वर्टर का कार्य

​इन्वर्टर मुख्य रूप से तीन चरणों में काम करता है:

  1. इनपुट: इन्वर्टर को बैटरी या सौर पैनल जैसे किसी डीसी स्रोत से बिजली मिलती है। यह डीसी वोल्टेज आमतौर पर कम होता है, जैसे 12V या 24V।

  1. ऑसिलेटर सर्किट: यह इन्वर्टर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह डीसी को एक स्पंदित सिग्नल में बदलता है। यह स्पंदन एक बार सकारात्मक (positive) और एक बार नकारात्मक (negative) होता है, जिससे एसी की साइन वेव जैसी तरंग बनती है।
  2. वोल्टेज बढ़ाना: इस स्पंदित सिग्नल को एक ट्रांसफॉर्मर में भेजा जाता है। ट्रांसफॉर्मर इस कम वोल्टेज (जैसे 12V) को बढ़ा कर घरों में उपयोग होने वाले उच्च वोल्टेज (जैसे 220V) में बदल देता है।
  3. आउटपुट: अंत में, आउटपुट को फ़िल्टर किया जाता है ताकि यह एक स्थिर और चिकनी साइन वेव बने, जिससे संवेदनशील उपकरण भी ठीक से काम कर सकें।

​यह प्रक्रिया बिजली जाने पर बहुत उपयोगी होती है, क्योंकि यह बैटरी में संग्रहीत डीसी ऊर्जा को हमारे घरेलू उपकरणों के लिए आवश्यक एसी ऊर्जा में बदल देती है।

डीसी से एसी कनवर्टर, जिसे आमतौर पर इन्वर्टर कहा जाता है, का मुख्य कार्य दिष्ट धारा (DC) को प्रत्यावर्ती धारा (AC) में बदलना है। यह एसी वह बिजली है जिसका उपयोग हमारे घरों में ज़्यादातर बिजली के उपकरणों (जैसे पंखे, टीवी, और लाइट्स) को चलाने के लिए किया जाता है।

इन्वर्टर का कार्य करने का तरीका

​इन्वर्टर निम्नलिखित तीन मुख्य चरणों में काम करता है:

  1. इनपुट: इन्वर्टर को बैटरी या सौर पैनल जैसे किसी डीसी स्रोत से कम वोल्टेज वाली बिजली (जैसे 12V या 24V) मिलती है।
  2. स्विचिंग और ऑसिलेशन: इस चरण में, इन्वर्टर का सर्किट डीसी को एक स्पंदित (pulsating) सिग्नल में बदलता है। यह स्पंदन एक बार सकारात्मक (positive) और एक बार नकारात्मक (negative) होता है, जिससे एसी की साइन वेव जैसी तरंग बनती है। यह काम इन्वर्टर में लगे स्विचिंग ट्रांजिस्टर द्वारा होता है।
  3. वोल्टेज बढ़ाना: इस स्पंदित सिग्नल को एक ट्रांसफॉर्मर में भेजा जाता है। ट्रांसफॉर्मर इस कम वोल्टेज (जैसे 12V) को बढ़ा कर घरों में उपयोग होने वाले उच्च वोल्टेज (जैसे 220V) में बदल देता है।
  4. आउटपुट: अंत में, आउटपुट को फ़िल्टर किया जाता है ताकि यह एक स्थिर और चिकनी साइन वेव बने, जिससे संवेदनशील उपकरण भी ठीक से काम कर सकें।

​यह प्रक्रिया बिजली जाने पर बहुत उपयोगी होती है, क्योंकि यह बैटरी में संग्रहीत डीसी ऊर्जा को हमारे घरेलू उपकरणों के लिए आवश्यक एसी ऊर्जा में बदल देती है।

मुख्य उपयोग

  • पावर बैकअप सिस्टम: घरों और कार्यालयों में बिजली जाने पर इन्वर्टर बैटरी में संग्रहीत बिजली का उपयोग करके उपकरणों को चलाता है।
  • सौर ऊर्जा प्रणाली: सौर पैनलों से मिलने वाली डीसी बिजली को एसी में बदलकर घरेलू उपयोग के लिए उपलब्ध कराता है।
  • गाड़ियों में: गाड़ियों में बैटरी से मिलने वाली डीसी बिजली को एसी में बदलकर लैपटॉप, चार्जर और अन्य उपकरणों को चलाने के लिए उपयोग किया जाता है।


डीसी से एसी कनवर्टर, जिसे आमतौर पर इन्वर्टर कहा जाता है, में कई महत्वपूर्ण भाग होते हैं जो एक साथ काम करके डीसी बिजली को एसी बिजली में बदलते हैं।

​1. बैटरी (Battery)

​यह इन्वर्टर का मुख्य ऊर्जा स्रोत है। बैटरी डीसी बिजली को स्टोर करती है, जिसे इन्वर्टर को चलाने के लिए उपयोग किया जाता है। बैटरी का आकार और क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि आप इन्वर्टर से कितने उपकरण और कितनी देर तक चलाना चाहते हैं।

​2. ऑसिलेटर या स्विचिंग सर्किट (Oscillator or Switching Circuit)

​यह इन्वर्टर का सबसे महत्वपूर्ण और जटिल हिस्सा है। यह सर्किट डीसी को स्पंदित (pulsating) सिग्नल में बदलता है। इस काम के लिए आमतौर पर ट्रांजिस्टर या मॉस्फेट जैसे इलेक्ट्रॉनिक स्विच का इस्तेमाल होता है। ये स्विच बहुत तेज़ी से ऑन और ऑफ होकर डीसी की दिशा को बार-बार बदलते हैं, जिससे एसी जैसी तरंग बनती है।

​3. ट्रांसफॉर्मर (Transformer)

​स्विचिंग सर्किट से जो कम वोल्टेज (जैसे 12V या 24V) का स्पंदित सिग्नल मिलता है, उसे ट्रांसफॉर्मर उच्च वोल्टेज (जैसे 220V) में बदलता है। ट्रांसफॉर्मर का उपयोग वोल्टेज को बढ़ाने के लिए किया जाता है ताकि यह घरेलू उपकरणों के लिए उपयुक्त हो सके।

​4. फ़िल्टर सर्किट (Filter Circuit)

​इन्वर्टर से मिलने वाला एसी सिग्नल हमेशा एक चिकनी साइन वेव नहीं होता। इसे और बेहतर बनाने के लिए फ़िल्टर सर्किट का उपयोग किया जाता है। यह सर्किट कैपेसिटर और इंडक्टर का उपयोग करके तरंग को चिकना करता है ताकि संवेदनशील उपकरण भी बिना किसी समस्या के काम कर सकें।

​5. कंट्रोलर या माइक्रोकंट्रोलर (Controller or Microcontroller)

​आधुनिक इन्वर्टर में यह एक छोटा सा कंप्यूटर जैसा चिप होता है। इसका काम पूरे इन्वर्टर को नियंत्रित करना है। यह बैटरी के चार्ज को मैनेज करता है, वोल्टेज को नियंत्रित करता है, और यह सुनिश्चित करता है कि इन्वर्टर सुरक्षित रूप से काम कर रहा है।




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घरेलू उपयोग के लिए पीएलसी (Programmable Logic Controller) का इस्तेमाल करना संभव है, हालांकि यह औद्योगिक उपयोग जितना आम नहीं है। आमतौर पर, घर के स्वचालन के लिए माइक्रोकंट्रोलर-आधारित सिस्टम या रेडीमेड स्मार्ट होम सोल्यूशंस (जैसे गूगल होम, अमेज़न एलेक्सा, स्मार्टथिंग्स) अधिक प्रचलित हैं।

एसी मोटर के मुख्य पुर्जे (Parts of AC Motor)

रिले के प्रकार