एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) की बुनियादी सेटिंग्स यह सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि यह बिजली के सर्किट को ओवरलोड, शॉर्ट-सर्किट और ग्राउंड फॉल्ट जैसी खराबी से सुरक्षित रखता है। इन सेटिंग्स को आमतौर पर एक माइक्रोप्रोसेसर-आधारित रिले या "ट्रिप यूनिट" पर कॉन्फ़िगर किया जाता है।
एसीबी की मुख्य सेटिंग्स इस प्रकार हैं:
https://dkrajwar.blogspot.com/2025/08/blog-post_10.html
* लॉन्ग टाइम (Ir और Tr):
* Ir (इर):
यह ओवरलोड प्रोटेक्शन के लिए वर्तमान रेटिंग है। यह ब्रेकर की सामान्य रेटिंग के प्रतिशत के रूप में सेट किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि ब्रेकर की रेटिंग 1000A है और Ir 0.8 पर सेट है, तो ओवरलोड ट्रिप 800A से ऊपर के करंट पर होगा।
* Tr (टीआर):
यह लॉन्ग टाइम डिले सेटिंग है। यह वह समय निर्धारित करता है कि ओवरलोड होने पर ब्रेकर ट्रिप होने से पहले कितनी देर तक इंतजार करेगा। यह डिले अनावश्यक ट्रिपिंग से बचने में मदद करता है, खासकर जब मोटर शुरू होती है और थोड़े समय के लिए ज्यादा करंट लेती है।
* शॉर्ट टाइम (Isd और Tsd):
* Isd (आइएसडी):
यह शॉर्ट-सर्किट प्रोटेक्शन के लिए वर्तमान पिकअप सेटिंग है। यह Ir (लॉन्ग टाइम सेटिंग) के गुणक (multiplication) के रूप में सेट किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि Ir 800A है और Isd 2x पर सेट है, तो शॉर्ट-सर्किट ट्रिप 1600A के करंट पर होगा।
* Tsd (टीएसडी):
यह शॉर्ट टाइम डिले सेटिंग है। यह शॉर्ट-सर्किट होने पर ब्रेकर के ट्रिप होने से पहले लगने वाले समय को निर्धारित करता है। यह डिले डाउनस्ट्रीम सर्किट ब्रेकर को पहले ट्रिप होने की अनुमति देता है, जिससे केवल फॉल्ट वाले हिस्से को ही बंद किया जाता है।
* इंस्टंटेनियस (Ii):
* Ii (आइआइ):
यह तुरंत ट्रिपिंग के लिए करंट सेटिंग है। यह शॉर्ट-सर्किट की बहुत अधिक मात्रा में होता है, जहां किसी भी प्रकार के डिले की आवश्यकता नहीं होती है। यह अक्सर ब्रेकर की सामान्य रेटिंग के गुणक (multiplication) के रूप में सेट किया जाता है, जैसे 5x, 10x, या इससे भी अधिक। यह सेटिंग बिना किसी समय विलंब के तुरंत ट्रिप कर देती है।
* ग्राउंड फॉल्ट (Ig और Tg):
* Ig (आइजी):
यह ग्राउंड फॉल्ट प्रोटेक्शन के लिए करंट सेटिंग है। यह ग्राउंड फॉल्ट करंट की वह मात्रा है जिस पर ब्रेकर ट्रिप होगा।
* Tg (टीजी):
यह ग्राउंड फॉल्ट के लिए समय विलंब है। यह सेटिंग ग्राउंड फॉल्ट होने पर ट्रिपिंग से पहले लगने वाले समय को निर्धारित करती है।
इन सेटिंग्स को सही ढंग से कॉन्फ़िगर करना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि एसीबी आपके बिजली के उपकरणों और सिस्टम को सुरक्षित रख सके। सेटिंग्स को लोड की प्रकृति (नेचर), डाउनस्ट्रीम सुरक्षा उपकरण और अन्य सिस्टम आवश्यकताओं के आधार पर चुना जाना चाहिए।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में सुरक्षा सेटिंग्स को सही ढंग से कॉन्फ़िगर करना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि यह बिजली के सर्किट को ओवरलोड, शॉर्ट-सर्किट, और ग्राउंड फॉल्ट जैसी खराबी से सुरक्षित रख सके। इन सेटिंग्स को आमतौर पर एक माइक्रोप्रोसेसर-आधारित रिले या "ट्रिप यूनिट" पर कॉन्फ़िगर किया जाता है, जिसे माइक्रोलॉजिक कंट्रोल यूनिट भी कहते हैं।
एसीबी में मुख्य सुरक्षा सेटिंग्स इस प्रकार हैं:
1. लॉन्ग टाइम प्रोटेक्शन (L) - ओवरलोड प्रोटेक्शन
यह ब्रेकर की प्राथमिक सुरक्षा है जो ओवरलोड से बचाती है।
* Ir (करंट सेटिंग):
यह ओवरलोड प्रोटेक्शन के लिए करंट की रेटिंग है। इसे ब्रेकर की रेटेड करंट (In) के प्रतिशत के रूप में सेट किया जाता है।
* उदाहरण:
यदि ब्रेकर 1000A का है और Ir 0.8 पर सेट है, तो ओवरलोड ट्रिप 800A (1000A का 80%) से ऊपर के करंट पर होगा।
* Tr (टाइम डिले):
यह वह समय निर्धारित करता है कि ओवरलोड होने पर ब्रेकर ट्रिप होने से पहले कितनी देर तक इंतजार करेगा।
* उदाहरण:
यदि Tr 5 सेकंड पर सेट है, तो 800A से ऊपर का करंट 5 सेकंड तक बहने के बाद ही ब्रेकर ट्रिप होगा। यह डिले अनावश्यक ट्रिपिंग से बचने में मदद करता है, खासकर जब मोटर शुरू होती है और थोड़े समय के लिए ज्यादा करंट लेती है।
2. शॉर्ट टाइम प्रोटेक्शन (S) - शॉर्ट-सर्किट प्रोटेक्शन (कुछ समय बाद)
यह शॉर्ट-सर्किट से सुरक्षा प्रदान करता है, लेकिन तुरंत नहीं। इसमें एक छोटा सा समय विलंब होता है।
* Isd (करंट सेटिंग):
यह शॉर्ट-सर्किट प्रोटेक्शन के लिए करंट पिकअप सेटिंग है। इसे Ir (लॉन्ग टाइम सेटिंग) के गुणक (multiplication) के रूप में सेट किया जाता है।
* उदाहरण:
यदि Ir 800A है और Isd 2x पर सेट है, तो शॉर्ट-सर्किट ट्रिप 1600A (800A का 2 गुना) के करंट पर होगा।
* Tsd (टाइम डिले):
यह शॉर्ट टाइम डिले सेटिंग है। यह शॉर्ट-सर्किट होने पर ब्रेकर के ट्रिप होने से पहले लगने वाले समय को निर्धारित करता है।
* उदाहरण:
यह डिले डाउनस्ट्रीम सर्किट ब्रेकर को पहले ट्रिप होने की अनुमति देता है, जिससे केवल फॉल्ट वाले हिस्से को ही बंद किया जाता है।
3. इंस्टेंटेनियस प्रोटेक्शन (I) - तुरंत शॉर्ट-सर्किट प्रोटेक्शन
यह शॉर्ट-सर्किट की बहुत अधिक मात्रा में होता है, जहां किसी भी प्रकार के डिले की आवश्यकता नहीं होती है।
* Ii (करंट सेटिंग):
यह तुरंत ट्रिपिंग के लिए करंट सेटिंग है। यह अक्सर ब्रेकर की रेटेड करंट के गुणक के रूप में सेट किया जाता है, जैसे 5x, 10x, या इससे भी अधिक। यह सेटिंग बिना किसी समय विलंब के तुरंत ट्रिप कर देती है।
* उदाहरण:
यदि ब्रेकर 1000A का है और Ii 10x पर सेट है, तो 10,000A से ऊपर का करंट होते ही ब्रेकर तुरंत ट्रिप हो जाएगा।
4. ग्राउंड फॉल्ट प्रोटेक्शन (G)
यह ग्राउंड फॉल्ट (जब करंट जमीन में चला जाता है) से सुरक्षा प्रदान करता है।
* Ig (करंट सेटिंग):
यह ग्राउंड फॉल्ट प्रोटेक्शन के लिए करंट सेटिंग है। यह ग्राउंड फॉल्ट करंट की वह मात्रा है जिस पर ब्रेकर ट्रिप होगा।
* Tg (टाइम डिले):
यह ग्राउंड फॉल्ट के लिए समय विलंब है। यह सेटिंग ग्राउंड फॉल्ट होने पर ट्रिपिंग से पहले लगने वाले समय को निर्धारित करती है।
इन सभी सेटिंग्स को संयुक्त रूप से "LSIG" सेटिंग्स कहा जाता है, जहां L लॉन्ग टाइम, S शॉर्ट टाइम, I इंस्टेंटेनियस और G ग्राउंड फॉल्ट को दर्शाता है।
सही सेटिंग्स का चुनाव लोड की प्रकृति,
डाउनस्ट्रीम सुरक्षा उपकरण और अन्य सिस्टम आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। एक पेशेवर इलेक्ट्रीशियन या इंजीनियर को इन सेटिंग्स को कॉन्फ़िगर करना चाहिए ताकि ब्रेकर सही ढंग से काम कर सके और उपकरण सुरक्षित रहें।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में सुरक्षा सेटिंग्स के अलावा, कई अन्य कॉन्फ़िगरेशन सेटिंग्स भी होती हैं जो ब्रेकर की कार्यक्षमता, नियंत्रण और सिस्टम के साथ समन्वय को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। ये सेटिंग्स आधुनिक माइक्रोप्रोसेसर-आधारित ट्रिप यूनिट में पाई जाती हैं।
1. न्यूट्रल प्रोटेक्शन (Neutral Protection)
* Neutral Current Setting (In):
यह 4-पोल एसीबी में न्यूट्रल कंडक्टर के लिए ओवरलोड प्रोटेक्शन सेटिंग है। इसे फेज करंट सेटिंग (Ir) के प्रतिशत के रूप में सेट किया जा सकता है, जैसे 50%, 100%, या 200%।
* Neutral Time Delay (Tn):
यह न्यूट्रल ओवरलोड होने पर ट्रिपिंग से पहले का समय विलंब है। यह फेज प्रोटेक्शन (Tr) के समान ही होता है।
2. ग्राउंड फॉल्ट प्रोटेक्शन के तरीके (Ground Fault Protection Methods)
आधुनिक एसीबी में ग्राउंड फॉल्ट प्रोटेक्शन के कई तरीके हो सकते हैं:
* Residual Ground Fault (अवशिष्ट ग्राउंड फॉल्ट): यह सबसे आम तरीका है, जिसमें सभी फेज और न्यूट्रल तारों के वेक्टर योग (vector sum) को मापा जाता है। यदि योग शून्य नहीं है, तो इसका मतलब है कि कुछ करंट जमीन में बह रहा है।
* Sensor Ground Fault (सेंसर ग्राउंड फॉल्ट):
इसमें ग्राउंड फॉल्ट करंट को सीधे ग्राउंड कंडक्टर के माध्यम से मापा जाता है।
3. ZSI (Zone Selective Interlocking)
ZSI एक महत्वपूर्ण सेटिंग है जो ब्रेकर के ट्रिपिंग समय को समन्वयित करने के लिए उपयोग की जाती है।
* यह डाउनस्ट्रीम ब्रेकर को अपस्ट्रीम ब्रेकर को यह सूचित करने की अनुमति देता है कि उसने एक फॉल्ट का पता लगा लिया है।
* यदि डाउनस्ट्रीम ब्रेकर को फॉल्ट मिलता है, तो वह अपस्ट्रीम ब्रेकर को तुरंत ट्रिप होने से रोकता है, ताकि केवल फॉल्ट वाले हिस्से को ही अलग किया जा सके।
* यदि फॉल्ट डाउनस्ट्रीम ब्रेकर के बाद साफ़ नहीं होता है, तो ZSI डिले समाप्त होने पर अपस्ट्रीम ब्रेकर ट्रिप हो जाता है।
4. ओवरराइड (Override)
यह एक सेटिंग है जो ZSI डिले को बायपास कर सकती है। यदि किसी विशेष स्थिति में तुरंत ट्रिपिंग की आवश्यकता होती है, तो ओवरराइड सेटिंग का उपयोग किया जा सकता है।
5. कम्युनिकेशन सेटिंग्स
आधुनिक एसीबी में कम्युनिकेशन पोर्ट (जैसे RS485) होते हैं, जो इन्हें बिल्डिंग मैनेजमेंट सिस्टम (BMS), SCADA सिस्टम या अन्य निगरानी प्रणालियों से जोड़ते हैं।
* Address:
प्रत्येक ब्रेकर को एक विशिष्ट पता (address) दिया जाता है ताकि सिस्टम उसे पहचान सके।
* Baud Rate:
यह डेटा ट्रांसमिशन की गति है।
* Protocol:
यह संचार प्रोटोकॉल (जैसे Modbus, Profibus) निर्धारित करता है।
6. मीटरिंग और डेटा लॉगिंग
कई एसीबी की ट्रिप यूनिट में इन-बिल्ट मीटरिंग और डेटा लॉगिंग क्षमताएं होती हैं।
* Current, Voltage, Power, Frequency:
ये सेटिंग्स ब्रेकर को इन मापदंडों को मापने और प्रदर्शित करने की अनुमति देती हैं।
* Fault History:
यह ब्रेकर के ट्रिप होने के कारणों, समय और करंट के स्तर का रिकॉर्ड रखता है।
7. थर्मल मेमोरी (Thermal Memory)
* यह सेटिंग ट्रिप यूनिट को ब्रेकर के पिछले ओवरलोड इतिहास को याद रखने की अनुमति देती है।
* यदि ब्रेकर पहले ही गर्म हो चुका है, तो एक नया ओवरलोड होने पर यह तेजी से ट्रिप हो जाएगा, भले ही ओवरलोड करंट लॉन्ग टाइम डिले के लिए पर्याप्त न हो।
ये सभी सेटिंग्स एसीबी को सिर्फ एक सुरक्षा उपकरण से कहीं अधिक बनाती हैं। ये इसे एक स्मार्ट डिवाइस बनाती हैं जो सिस्टम की विश्वसनीयता, सुरक्षा और दक्षता को बढ़ाती हैं। इन सेटिंग्स का उचित कॉन्फ़िगरेशन किसी भी विद्युत प्रणाली के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में "सेकेंडरी टर्मिनल" एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, खासकर ड्रॉ-आउट टाइप के एसीबी में। जबकि "प्राइमरी टर्मिनल" बड़े और मजबूत होते हैं और मुख्य पावर सर्किट से जुड़े होते हैं, सेकेंडरी टर्मिनल का उपयोग ब्रेकर के नियंत्रण और सहायक कार्यों के लिए किया जाता है।
सेकेंडरी टर्मिनल का उपयोग मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्यों के लिए किया जाता है:
1. कंट्रोलिंग (नियंत्रण)
* स्प्रिंग चार्जिंग मोटर (Spring Charging Motor): अधिकांश एसीबी में एक मोटर होती है जो ब्रेकर के ऑपरेटिंग स्प्रिंग को चार्ज करती है। इस मोटर को बिजली देने के लिए सेकेंडरी टर्मिनल का उपयोग किया जाता है।
* क्लोजिंग कॉइल (Closing Coil):
यह कॉइल ब्रेकर को बंद (ON) करने के लिए आवश्यक होती है। जब इस कॉइल को बिजली मिलती है, तो यह ब्रेकर के कॉन्टैक्ट्स को बंद कर देती है।
* शंट ट्रिप कॉइल (Shunt Trip Coil):
यह कॉइल ब्रेकर को रिमोट से ट्रिप (OFF) करने के लिए उपयोग की जाती है। यह आपातकालीन स्थितियों या सुरक्षा इंटरलॉक के लिए बहुत उपयोगी है।
* अंडर-वोल्टेज ट्रिप कॉइल (Under-Voltage Trip Coil):
यह कॉइल तब ट्रिप करती है जब सर्किट में वोल्टेज एक निश्चित स्तर से कम हो जाता है। यह ब्रेकर को कम वोल्टेज की स्थिति में अनजाने में ऑन होने से रोकती है।
2. इंडिकेशन और मॉनिटरिंग (संकेत और निगरानी)
* ऑक्सिलरी कॉन्टैक्ट्स (Auxiliary Contacts):
ये छोटे-छोटे कॉन्टैक्ट्स होते हैं जो ब्रेकर की स्थिति (ON/OFF) का संकेत देते हैं। इन कॉन्टैक्ट्स का उपयोग रिमोट पैनल पर लाइट या बजर को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है, जिससे ऑपरेटर को ब्रेकर की स्थिति के बारे में पता चलता है।
* अलार्म कॉन्टैक्ट्स (Alarm Contacts):
ये कॉन्टैक्ट्स तब सक्रिय होते हैं जब कोई फॉल्ट (जैसे ओवरलोड या शॉर्ट-सर्किट) होता है और ब्रेकर ट्रिप हो जाता है। इनका उपयोग फॉल्ट की स्थिति में अलार्म बजाने या सिस्टम में लॉग करने के लिए किया जाता है।
3. कम्युनिकेशन और डेटा
* ट्रिप यूनिट (Trip Unit):
आधुनिक एसीबी में माइक्रोप्रोसेसर-आधारित ट्रिप यूनिट होती है। सेकेंडरी टर्मिनल का उपयोग इस यूनिट को बिजली देने और कम्युनिकेशन के लिए भी किया जाता है।
* कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल (Communication Protocols):
सेकेंडरी टर्मिनल के माध्यम से, ब्रेकर को SCADA या BMS (बिल्डिंग मैनेजमेंट सिस्टम) जैसे सिस्टम से जोड़ा जा सकता है। इससे रिमोट मॉनिटरिंग, डेटा लॉगिंग (जैसे करंट, वोल्टेज, पावर) और रिमोट कंट्रोल संभव हो जाता है।
* ZSI (Zone Selective Interlocking):
ZSI फंक्शन के लिए भी सेकेंडरी टर्मिनल का उपयोग किया जाता है, जिससे डाउनस्ट्रीम और अपस्ट्रीम ब्रेकर आपस में संवाद कर सकें और फॉल्ट को सही जगह पर अलग कर सकें।
4. ड्रॉ-आउट मैकेनिज्म (Draw-Out Mechanism) में महत्व
ड्रॉ-आउट टाइप के एसीबी में, सेकेंडरी टर्मिनल का महत्व बहुत बढ़ जाता है।
* ये टर्मिनल ब्रेकर को उसके क्रैडल (cradle) से बाहर निकालने पर स्वचालित रूप से डिस्कनेक्ट हो जाते हैं और वापस अंदर डालने पर कनेक्ट हो जाते हैं।
* इससे ब्रेकर पर काम करना सुरक्षित और आसान हो जाता है, क्योंकि ब्रेकर के मुख्य पावर कॉन्टैक्ट्स को डिस्कनेक्ट किए बिना ही कंट्रोल वायरिंग को अलग किया जा सकता है।
संक्षेप में,
सेकेंडरी टर्मिनल एसीबी के "दिमाग" और "तंत्रिका तंत्र" की तरह काम करते हैं, जो ब्रेकर को न केवल सुरक्षित रूप से काम करने में मदद करते हैं बल्कि इसे एक बुद्धिमान और नियंत्रित उपकरण भी बनाते हैं जिसे रिमोट से नियंत्रित और मॉनिटर किया जा सकता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में "कैसेट" या "क्रैडल" (Cradle) का उपयोग मुख्य रूप से ब्रेकर के रखरखाव (maintenance), प्रतिस्थापन (replacement) और सुरक्षा को आसान बनाने के लिए किया जाता है। कैसेट एक प्रकार का फिक्स्ड चेसिस (chassis) या हाउसिंग होता है जो ब्रेकर को एक स्विचगियर पैनल में स्थापित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
आइए इसके प्रमुख उपयोगों को विस्तार से समझते हैं:
1. सुरक्षा और रखरखाव में आसानी
* लाइव वर्किंग से बचाव:
कैसेट का सबसे बड़ा फायदा यह है कि यह ब्रेकर को मुख्य पावर बसबार (busbar) से अलग करने की अनुमति देता है, भले ही बसबार अभी भी चालू हो। ब्रेकर को कैसेट से बाहर निकालने के लिए एक विशेष रैक-आउट (rack-out) तंत्र का उपयोग किया जाता है। इससे रखरखाव कर्मी ब्रेकर पर सुरक्षित रूप से काम कर सकते हैं, क्योंकि वे लाइव सर्किट के संपर्क में नहीं होते हैं।
* इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंटरलॉकिंग:
कैसेट में मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंटरलॉकिंग सिस्टम होते हैं। ये सुनिश्चित करते हैं कि ब्रेकर को तभी बाहर निकाला जा सकता है जब वह "ऑफ" स्थिति में हो, और ब्रेकर को तभी वापस डाला जा सकता है जब वह "ऑफ" स्थिति में हो। यह गलती से ब्रेकर को लाइव सर्किट में डालने या निकालने से रोकता है, जिससे शॉर्ट-सर्किट या आर्क-फ्लैश (arc-flash) का खतरा कम हो जाता है।
2. तीव्र प्रतिस्थापन और अपग्रेड (Quick Replacement and Upgrades)
* मिनिमम डाउनटाइम:
यदि किसी एसीबी में खराबी आती है, तो उसे ठीक करने के लिए पूरे पैनल को बंद करने की आवश्यकता नहीं होती। खराब ब्रेकर को कैसेट से बाहर निकाला जा सकता है और एक नया या मरम्मत किया हुआ ब्रेकर तुरंत उसके स्थान पर डाल दिया जा सकता है। इससे सिस्टम का डाउनटाइम (बंद रहने का समय) बहुत कम हो जाता है।
* ब्रेकर स्वैपिंग (Swapping):
अलग-अलग रेटिंग या कॉन्फ़िगरेशन वाले ब्रेकर को उसी कैसेट में डाला जा सकता है, बशर्ते वे एक ही फ्रेम साइज़ के हों। यह सिस्टम को अपग्रेड करना या कॉन्फ़िगरेशन को बदलना आसान बनाता है।
3. कनेक्शन और कम्युनिकेशन
* स्थायी कनेक्शन:
कैसेट मुख्य पावर बसबार और कंट्रोल वायरिंग (सेकेंडरी टर्मिनल) से स्थायी रूप से जुड़ा रहता है। जब ब्रेकर को कैसेट में डाला जाता है, तो इसके प्राइमरी और सेकेंडरी कॉन्टैक्ट्स अपने आप कैसेट के संबंधित कॉन्टैक्ट्स से जुड़ जाते हैं।
* सेकेंडरी टर्मिनल:
ब्रेकर और कैसेट के बीच सेकेंडरी टर्मिनल होते हैं। ये नियंत्रण, संकेत और संचार सर्किट के लिए कनेक्शन प्रदान करते हैं। ब्रेकर को बाहर निकालते समय ये कनेक्शन भी डिस्कनेक्ट हो जाते हैं और वापस डालते समय कनेक्ट हो जाते हैं।
4. विभिन्न स्थिति (Positions)
कैसेट ब्रेकर को तीन मुख्य स्थितियों में रखने की अनुमति देता है:
* कनेक्टेड पोजीशन (Connected Position):
ब्रेकर पूरी तरह से अंदर होता है और प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों कॉन्टैक्ट्स जुड़े होते हैं। इस स्थिति में ब्रेकर सामान्य रूप से काम कर रहा होता है।
* टेस्ट पोजीशन (Test Position):
ब्रेकर थोड़ा बाहर खींचा जाता है। इस स्थिति में प्राइमरी कॉन्टैक्ट्स डिस्कनेक्ट हो जाते हैं, लेकिन सेकेंडरी कॉन्टैक्ट्स जुड़े रहते हैं। इससे ब्रेकर को पावर सर्किट से अलग करके उसकी ट्रिपिंग यूनिट, मोटर, और अन्य सहायक सर्किट का परीक्षण किया जा सकता है।
* डिस्कनेक्टेड पोजीशन (Disconnected Position): ब्रेकर पूरी तरह से बाहर खींचा जाता है। प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों कॉन्टैक्ट्स डिस्कनेक्ट हो जाते हैं। इस स्थिति में ब्रेकर पर सुरक्षित रूप से रखरखाव का काम किया जा सकता है।
संक्षेप में,
एसीबी में कैसेट का उपयोग इसे एक ड्रॉ-आउट टाइप का ब्रेकर बनाता है, जो न केवल सुरक्षा बढ़ाता है बल्कि रखरखाव को सरल और तेज़ करके सिस्टम की विश्वसनीयता को भी बहुत बढ़ा देता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में "नेमप्लेट" (nameplate) एक महत्वपूर्ण पहचान और सूचना पटल है जो ब्रेकर पर लगा होता है। हालाँकि, एसीबी के "सेकेंडरी टर्मिनल" पर कोई अलग नेमप्लेट नहीं होती है। नेमप्लेट आमतौर पर ब्रेकर के मुख्य शरीर पर लगी होती है, और इस पर ब्रेकर के प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों सर्किट्स से संबंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी शामिल होती है।
नेमप्लेट का उपयोग निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए होता है:
1. ब्रेकर की पहचान और रेटिंग की जानकारी
* ब्रांड और मॉडल:
नेमप्लेट पर निर्माता (जैसे सीमेंस, श्नाइडर, एबीबी), ब्रेकर का मॉडल नंबर, और सीरियल नंबर लिखा होता है।
* रेटेड करंट (In):
यह ब्रेकर का अधिकतम करंट है जिसे वह बिना ट्रिप हुए लगातार वहन कर सकता है।
* रेटेड वोल्टेज (Ue):
यह ब्रेकर का अधिकतम वोल्टेज है जिस पर वह काम कर सकता है।
* शॉर्ट-सर्किट रेटिंग (Icu, Ics, Icw):
यह ब्रेकर की शॉर्ट-सर्किट करंट को सहन करने और तोड़ने की क्षमता को दर्शाता है। यह सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण जानकारी है।
2. सेकेंडरी टर्मिनल और कंट्रोल वायरिंग की जानकारी
नेमप्लेट पर सीधे सेकेंडरी टर्मिनल से संबंधित जानकारी नहीं होती, लेकिन ब्रेकर के साथ मिलने वाले मैनुअल और वायरिंग डायग्राम में यह जानकारी विस्तार से दी गई होती है।
* टर्मिनल का लेआउट:
वायरिंग डायग्राम में प्रत्येक सेकेंडरी टर्मिनल का कार्य और उसका नंबरिंग दिया गया होता है।
* कॉइल की रेटिंग:
ब्रेकर के शंट ट्रिप कॉइल, अंडर-वोल्टेज कॉइल और मोटर चार्जिंग कॉइल के लिए आवश्यक वोल्टेज और फ्रीक्वेंसी (जैसे 220V AC, 110V DC) की जानकारी दी जाती है।
* ऑक्सिलरी और अलार्म कॉन्टैक्ट्स की रेटिंग:
इन कॉन्टैक्ट्स की अधिकतम करंट और वोल्टेज रेटिंग दी जाती है, जिस पर वे सुरक्षित रूप से काम कर सकते हैं।
3. ट्रिप यूनिट की जानकारी
* ट्रिप यूनिट का प्रकार:
नेमप्लेट या ट्रिप यूनिट पर ही ट्रिप यूनिट का मॉडल और प्रकार (जैसे माइक्रोलॉजिक 5.0) लिखा होता है।
* प्रोटेक्शन सेटिंग्स:
हालाँकि नेमप्लेट पर सेटिंग्स के मान नहीं होते हैं, लेकिन यह इंगित करता है कि ब्रेकर में कौन-कौन सी सुरक्षा सेटिंग्स (जैसे LSIG) उपलब्ध हैं।
4. अन्य महत्वपूर्ण जानकारी
* मानक अनुपालन:
यह इंगित करता है कि ब्रेकर किन अंतरराष्ट्रीय या राष्ट्रीय मानकों (जैसे IEC 60947-2) का पालन करता है।
* ऑपरेशनल डेटा:
कुछ नेमप्लेट पर ब्रेकर को कैसे ऑपरेट करना है (मैनुअल/मोटर ऑपरेटेड), स्प्रिंग चार्जिंग के निर्देश, और अन्य ऑपरेशनल जानकारी भी हो सकती है।
संक्षेप में,
एसीबी के सेकेंडरी टर्मिनल पर कोई अलग नेमप्लेट नहीं होती है। ब्रेकर की मुख्य नेमप्लेट और उसके साथ दिए गए तकनीकी दस्तावेज़ (मैनुअल, वायरिंग डायग्राम) में सेकेंडरी सर्किट से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी होती है। यह जानकारी ब्रेकर की सही इंस्टॉलेशन, ऑपरेशन, और रखरखाव के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में "फॉल्ट ट्रिप इंडिकेशन" (Fault Trip Indication) का उपयोग यह पहचानने के लिए किया जाता है कि ब्रेकर क्यों ट्रिप हुआ। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विशेषता है जो फॉल्ट की पहचान करने और समस्या का निवारण करने में मदद करती है।
फॉल्ट ट्रिप इंडिकेशन के मुख्य उपयोग और कार्य इस प्रकार हैं:
1. फॉल्ट का कारण जानना
आधुनिक एसीबी में माइक्रोप्रोसेसर-आधारित ट्रिप यूनिट होती है। जब ब्रेकर किसी फॉल्ट के कारण ट्रिप होता है, तो ट्रिप यूनिट एक इंडिकेशन देती है कि फॉल्ट किस प्रकार का था। यह आमतौर पर एक एलईडी (LED) लाइट या डिस्प्ले पर दर्शाया जाता है।
* L (लॉन्ग टाइम/ओवरलोड):
यदि ब्रेकर ओवरलोड के कारण ट्रिप हुआ है, तो 'L' या ओवरलोड इंडिकेटर जलेगा।
* S (शॉर्ट टाइम/शॉर्ट-सर्किट):
यदि शॉर्ट-सर्किट के कारण ट्रिप हुआ है, तो 'S' या शॉर्ट-सर्किट इंडिकेटर जलेगा।
* I (इंस्टेंटेनियस/इंस्टेंटेनियस शॉर्ट-सर्किट):
बहुत बड़े शॉर्ट-सर्किट करंट के कारण ट्रिप होने पर 'I' इंडिकेटर जलेगा।
* G (ग्राउंड फॉल्ट):
यदि कोई ग्राउंड फॉल्ट हुआ है, तो 'G' या ग्राउंड फॉल्ट इंडिकेटर जलेगा।
2. त्वरित समस्या निवारण (Quick Troubleshooting)
जब कोई ब्रेकर ट्रिप होता है, तो सबसे पहला काम यह जानना होता है कि ऐसा क्यों हुआ। फॉल्ट ट्रिप इंडिकेशन की मदद से रखरखाव कर्मी तुरंत पता लगा सकते हैं कि क्या हुआ था, और अनावश्यक रूप से पूरे सिस्टम की जाँच करने में समय बर्बाद नहीं करते।
* उदाहरण:
यदि 'L' इंडिकेटर जल रहा है, तो उन्हें पता होता है कि सर्किट पर ओवरलोड था और उन्हें डाउनस्ट्रीम उपकरणों की जाँच करनी चाहिए। यदि 'G' इंडिकेटर जल रहा है, तो उन्हें ग्राउंड फॉल्ट का पता लगाने की आवश्यकता होती है।
3. सुरक्षा सुनिश्चित करना
ब्रेकर के ट्रिप होने के बाद, उसे तुरंत रीसेट नहीं करना चाहिए। फॉल्ट इंडिकेशन देखकर, ऑपरेटर यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि वे ट्रिप के कारण को ठीक किए बिना ब्रेकर को बंद नहीं कर रहे हैं, जो एक और खतरनाक स्थिति पैदा कर सकता है।
* उदाहरण:
यदि एक शॉर्ट-सर्किट फॉल्ट हुआ था और इंडिकेशन 'I' दिखा रहा है, तो यह संकेत देता है कि एक गंभीर समस्या थी। ब्रेकर को रीसेट करने से पहले, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि शॉर्ट-सर्किट का कारण ठीक हो गया है।
4. डेटा लॉगिंग और विश्लेषण
कई उन्नत एसीबी में फॉल्ट ट्रिप की जानकारी को लॉग करने की सुविधा होती है।
* ट्रिप यूनिट घटना (event) के समय, कारण और करंट के स्तर को रिकॉर्ड कर सकती है।
* इस डेटा का उपयोग समय के साथ सिस्टम के व्यवहार का विश्लेषण करने, बार-बार होने वाले फॉल्ट के पैटर्न की पहचान करने और निवारक रखरखाव (preventive maintenance) की योजना बनाने के लिए किया जा सकता है।
5. रिमोट मॉनिटरिंग और अलार्म
एसीबी में लगे ऑक्सिलरी और अलार्म कॉन्टैक्ट्स का उपयोग फॉल्ट ट्रिप की जानकारी को दूरस्थ (remote) स्थानों पर भेजने के लिए किया जा सकता है।
* जब ब्रेकर ट्रिप होता है, तो ये कॉन्टैक्ट्स सक्रिय हो जाते हैं और एक SCADA या BMS सिस्टम को सिग्नल भेजते हैं।
* इससे ऑपरेटर को तुरंत पता चल जाता है कि कोई समस्या हुई है, भले ही वे ब्रेकर के पास न हों। यह सिस्टम की निगरानी और प्रतिक्रिया समय को बहुत बढ़ा देता है।
संक्षेप में,
एसीबी में फॉल्ट ट्रिप इंडिकेशन का उपयोग सिर्फ यह बताने के लिए नहीं होता कि ब्रेकर ट्रिप हो गया है, बल्कि यह बताने के लिए होता है कि ब्रेकर क्यों ट्रिप हुआ है। यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा और रखरखाव सुविधा है जो समस्या निवारण को आसान बनाती है, सुरक्षा बढ़ाती है और सिस्टम के डाउनटाइम को कम करने में मदद करती है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में "रीसेट बटन" (Reset Button) का उपयोग ब्रेकर को ट्रिप होने के बाद पुनः सामान्य स्थिति में लाने के लिए किया जाता है। हालाँकि, एसीबी में रीसेट बटन का उपयोग सीधे सर्किट को ऑन करने के लिए नहीं होता है। इसका उपयोग एक विशिष्ट यांत्रिक प्रक्रिया के लिए होता है जो ब्रेकर को फिर से बंद (close) होने के लिए तैयार करती है।
रीसेट बटन के उपयोग और कार्य को विस्तार से समझने के लिए, इसे दो मुख्य स्थितियों में समझना आवश्यक है:
1. मैनुअल रीसेट (Manual Reset)
अधिकांश एसीबी में,
जब ब्रेकर किसी फॉल्ट के कारण ट्रिप हो जाता है, तो इसकी ट्रिप यूनिट के साथ-साथ एक मैकेनिकल इंडिकेटर भी "ट्रिप्ड" स्थिति दिखाता है। ब्रेकर को फिर से बंद करने से पहले, इस इंडिकेटर को मैन्युअल रूप से रीसेट करना आवश्यक होता है।
* रीसेट प्रक्रिया:
ब्रेकर के सामने पैनल पर एक छोटा सा रीसेट बटन होता है। इसे दबाने से ब्रेकर के आंतरिक मैकेनिकल लिंकेज रीसेट हो जाते हैं।
* ज़रूरत:
यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेकर को फिर से बंद करने से पहले ट्रिप यूनिट की ट्रिपिंग स्थिति को साफ़ कर दिया गया है। यह सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
2. रीसेट करने के बाद की प्रक्रिया
रीसेट बटन दबाने के बाद,
ब्रेकर तुरंत बंद (ON) नहीं होता है। इसके बाद निम्नलिखित चरण आते हैं:
* फॉल्ट का निवारण (Fault Clearing):
सबसे महत्वपूर्ण कदम यह है कि जिस फॉल्ट (जैसे ओवरलोड, शॉर्ट-सर्किट) के कारण ब्रेकर ट्रिप हुआ था, उसे पहले ठीक किया जाए। यदि फॉल्ट को ठीक किए बिना ब्रेकर को बंद करने का प्रयास किया जाता है, तो वह तुरंत फिर से ट्रिप हो जाएगा।
* स्प्रिंग चार्जिंग (Spring Charging):
ब्रेकर को बंद करने के लिए उसके ऑपरेटिंग स्प्रिंग को चार्ज करना होता है। यह या तो मैन्युअल रूप से एक हैंडल का उपयोग करके किया जाता है या स्वचालित रूप से एक मोटर की मदद से किया जाता है।
* ब्रेकर को बंद करना (Closing the Breaker):
स्प्रिंग चार्ज होने के बाद ही ब्रेकर को बंद किया जा सकता है। यह आमतौर पर ब्रेकर पर लगे "क्लोज" (Close) बटन को दबाकर या रिमोट कमांड (यदि ब्रेकर में यह सुविधा है) का उपयोग करके किया जाता है।
रीसेट बटन का उपयोग क्यों आवश्यक है?
* सुरक्षा:
रीसेट बटन एक सुरक्षा उपाय है जो ऑपरेटर को यह याद दिलाता है कि ट्रिपिंग की घटना हुई है और उसे ब्रेकर को फिर से चालू करने से पहले फॉल्ट की जाँच करनी चाहिए।
* दो-चरणीय प्रक्रिया:
यह एक दो-चरणीय प्रक्रिया (रीसेट और फिर क्लोज) को अनिवार्य बनाता है। यह जल्दबाजी में ब्रेकर को फिर से चालू करने से रोकता है, जिससे संभावित खतरों को रोका जा सकता है।
* मैकेनिकल रीसेट:
रीसेट बटन मुख्य रूप से ब्रेकर के यांत्रिक लिंकेज को रीसेट करने के लिए होता है, जो फॉल्ट ट्रिप के बाद लॉक हो जाते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेकर अब अगले ऑपरेशन के लिए तैयार है।
संक्षेप में,
एसीबी में रीसेट बटन का उपयोग ब्रेकर को ट्रिप होने के बाद उसके यांत्रिक लिंकेज को रीसेट करने के लिए होता है, ताकि उसे फिर से बंद किया जा सके। यह सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे दबाने के बाद भी ब्रेकर को चालू करने से पहले फॉल्ट का निवारण करना और स्प्रिंग को चार्ज करना आवश्यक होता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में "इंटेलिजेंट" का उपयोग ब्रेकर की उन्नत क्षमताओं और विशेषताओं को दर्शाने के लिए किया जाता है, जो इसे पारंपरिक ब्रेकरों से अलग करती हैं। एक "इंटेलिजेंट एसीबी" का मतलब है कि यह सिर्फ एक सुरक्षा उपकरण नहीं है, बल्कि एक स्मार्ट डिवाइस है जो सुरक्षा, नियंत्रण, निगरानी और डेटा विश्लेषण की क्षमताओं को एकीकृत करता है।
इंटेलिजेंट एसीबी के मुख्य उपयोग और विशेषताएं इस प्रकार हैं:
1. उन्नत सुरक्षा और लचीलापन
* माइक्रोप्रोसेसर-आधारित ट्रिप यूनिट:
एक इंटेलिजेंट एसीबी का "दिमाग" एक माइक्रोप्रोसेसर-आधारित ट्रिप यूनिट होती है। यह यूनिट पारंपरिक थर्मल-मैग्नेटिक ब्रेकरों की तुलना में अधिक सटीक और लचीली सुरक्षा प्रदान करती है। इसमें LSIG (लॉन्ग टाइम, शॉर्ट टाइम, इंस्टेंटेनियस, ग्राउंड फॉल्ट) जैसी सेटिंग्स को बहुत सटीक रूप से कॉन्फ़िगर किया जा सकता है।
* सेलेक्टिविटी और ज़ोन सेलेक्टिव इंटरलॉकिंग (ZSI): इंटेलिजेंट एसीबी में ZSI जैसी सुविधाएँ होती हैं, जो फॉल्ट को केवल उसके निकटतम ब्रेकर द्वारा अलग करने की अनुमति देती हैं। इससे डाउनस्ट्रीम फॉल्ट के कारण अपस्ट्रीम ब्रेकर ट्रिप नहीं होता, जिससे अनावश्यक पावर आउटेज से बचा जा सकता है।
2. निगरानी और डेटा विश्लेषण
* इन-बिल्ट मीटरिंग:
इंटेलिजेंट एसीबी में वोल्टेज, करंट, पावर, फ्रीक्वेंसी और एनर्जी जैसे मापदंडों को मापने की क्षमता होती है। यह डेटा सीधे ब्रेकर के डिस्प्ले पर देखा जा सकता है और दूरस्थ रूप से भी मॉनिटर किया जा सकता है।
* फॉल्ट और इवेंट लॉगिंग:
यह ब्रेकर के ट्रिप होने के कारण (ओवरलोड, शॉर्ट-सर्किट), समय, और फॉल्ट करंट के स्तर का एक विस्तृत रिकॉर्ड रखता है। इस डेटा का उपयोग निवारक रखरखाव (preventive maintenance), फॉल्ट के पैटर्न की पहचान करने और सिस्टम के प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए किया जा सकता है।
* वेवफॉर्म कैप्चर:
कुछ उन्नत ब्रेकर फॉल्ट के समय करंट और वोल्टेज वेवफॉर्म को भी कैप्चर कर सकते हैं, जो फॉल्ट की प्रकृति को समझने में बहुत मददगार होता है।
3. रिमोट कंट्रोल और ऑटोमेशन
* कम्युनिकेशन पोर्ट:
इंटेलिजेंट एसीबी में कम्युनिकेशन पोर्ट (जैसे RS485 या ईथरनेट) होते हैं, जो इसे SCADA (सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डेटा एक्विजिशन) या BMS (बिल्डिंग मैनेजमेंट सिस्टम) जैसे सिस्टम से जुड़ने की अनुमति देते हैं।
* रिमोट ऑपरेशन:
कम्युनिकेशन के माध्यम से, ऑपरेटर ब्रेकर को दूर से ही ऑन या ऑफ कर सकते हैं, उसकी सेटिंग्स को बदल सकते हैं और उसका स्टेटस जान सकते हैं।
* सिस्टम इंटीग्रेशन:
इंटेलिजेंट एसीबी को अन्य स्मार्ट डिवाइसों (जैसे स्मार्ट मीटर, रिले) के साथ एकीकृत किया जा सकता है ताकि एक पूरी तरह से स्वचालित और नियंत्रित विद्युत प्रणाली बनाई जा सके।
4. डायग्नोस्टिक्स और मेंटेनेंस
* हेल्थ मॉनिटरिंग:
इंटेलिजेंट ब्रेकर अपने स्वास्थ्य की स्थिति पर भी डेटा प्रदान कर सकते हैं, जैसे कि मैकेनिकल ऑपरेशन की संख्या, कॉन्टैक्ट वियर, और अन्य डायग्नोस्टिक जानकारी।
* अलार्म और नोटिफिकेशन:
यदि ब्रेकर को कोई समस्या महसूस होती है (उदाहरण के लिए, अत्यधिक गर्मी या कोई अंदरूनी खराबी), तो यह अलार्म उत्पन्न कर सकता है और रखरखाव कर्मियों को सूचित कर सकता है।
संक्षेप में, एसीबी में "इंटेलिजेंट" का उपयोग यह बताता है कि ब्रेकर अब केवल एक सुरक्षा डिवाइस नहीं है, बल्कि विद्युत प्रणाली का एक सक्रिय और जागरूक हिस्सा है जो सुरक्षा, विश्वसनीयता और दक्षता को बढ़ाता है। यह आधुनिक औद्योगिक और वाणिज्यिक अनुप्रयोगों के लिए एक अनिवार्य विशेषता है जहाँ सिस्टम की निरंतर निगरानी और नियंत्रण आवश्यक है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में इंटेलिजेंट कंट्रोलर का उपयोग ब्रेकर की सुरक्षा, नियंत्रण और निगरानी क्षमताओं को बेहतर बनाने के लिए किया जाता है। इसे ट्रिप यूनिट या माइक्रोलॉजिक कंट्रोल यूनिट भी कहते हैं। यह एक माइक्रोप्रोसेसर-आधारित डिवाइस है जो पारंपरिक थर्मल-मैग्नेटिक ब्रेकर की तुलना में अधिक उन्नत कार्यक्षमता प्रदान करता है।
इंटेलिजेंट कंट्रोलर के प्रमुख उपयोग इस प्रकार हैं:
1. उन्नत और लचीली सुरक्षा सेटिंग्स
* सटीक सुरक्षा कॉन्फ़िगरेशन:
कंट्रोलर LSIG (लॉन्ग टाइम, शॉर्ट टाइम, इंस्टेंटेनियस, ग्राउंड फॉल्ट) प्रोटेक्शन सेटिंग्स को बहुत सटीक रूप से कॉन्फ़िगर करने की अनुमति देता है। यह ब्रेकर के रेटेड करंट के अनुसार नहीं, बल्कि लोड की वास्तविक आवश्यकता के अनुसार सेटिंग्स को समायोजित करने का लचीलापन देता है।
* सेलेक्टिविटी और ZSI (Zone Selective Interlocking):
यह ZSI जैसी उन्नत सुरक्षा सुविधाएँ प्रदान करता है। ZSI डाउनस्ट्रीम और अपस्ट्रीम ब्रेकरों को आपस में संवाद करने की अनुमति देता है, जिससे फॉल्ट होने पर केवल फॉल्ट के निकटतम ब्रेकर ही ट्रिप होता है। इससे अनावश्यक पावर आउटेज से बचा जा सकता है।
2. रियल-टाइम मॉनिटरिंग और डेटा विश्लेषण
* इन-बिल्ट मीटरिंग:
इंटेलिजेंट कंट्रोलर वोल्टेज, करंट, पावर, एनर्जी और फ्रीक्वेंसी जैसे मापदंडों को लगातार मापता है। यह डेटा सीधे ब्रेकर के डिस्प्ले पर प्रदर्शित होता है और इसे दूरस्थ रूप से भी मॉनिटर किया जा सकता है।
* फॉल्ट और इवेंट लॉगिंग:
यह ब्रेकर के ट्रिप होने के कारणों (जैसे ओवरलोड या शॉर्ट-सर्किट), समय, और फॉल्ट करंट के स्तर का एक विस्तृत रिकॉर्ड रखता है। इस डेटा का उपयोग निवारक रखरखाव (preventive maintenance) और सिस्टम के प्रदर्शन का विश्लेषण करने के लिए किया जा सकता है।
* हेल्थ और डायग्नोस्टिक्स:
कंट्रोलर ब्रेकर के आंतरिक स्वास्थ्य की निगरानी भी करता है, जैसे मैकेनिकल ऑपरेशन की संख्या और कॉन्टैक्ट वियर। यह संभावित समस्याओं का पता लगाता है और रखरखाव कर्मियों को सूचित करता है।
3. रिमोट कंट्रोल और सिस्टम इंटीग्रेशन
* कम्युनिकेशन पोर्ट:
इंटेलिजेंट कंट्रोलर में RS485 या ईथरनेट जैसे कम्युनिकेशन पोर्ट होते हैं। ये ब्रेकर को SCADA (सुपरवाइजरी कंट्रोल एंड डेटा एक्विजिशन) या BMS (बिल्डिंग मैनेजमेंट सिस्टम) जैसे केंद्रीकृत नियंत्रण प्रणालियों से जोड़ते हैं।
* रिमोट ऑपरेशन:
कम्युनिकेशन के माध्यम से, ब्रेकर को दूर से ही बंद (ON) या चालू (OFF) किया जा सकता है। यह विशेष रूप से बड़ी औद्योगिक सुविधाओं में उपयोगी होता है।
* डाटा ट्रांसमिशन:
कंट्रोलर द्वारा एकत्रित सभी मॉनिटरिंग डेटा को दूरस्थ प्रणालियों में भेजा जा सकता है, जिससे ऑपरेटर कहीं से भी सिस्टम की स्थिति की निगरानी कर सकते हैं।
4. सुरक्षा और विश्वसनीयता में वृद्धि
* अलार्म और इंडिकेशन:
फॉल्ट होने पर, इंटेलिजेंट कंट्रोलर एलईडी इंडिकेटर के माध्यम से फॉल्ट का प्रकार (LSIG) दिखाता है। यह जानकारी समस्या का निवारण करने में मदद करती है।
* आसान कॉन्फ़िगरेशन:
कंट्रोलर में एक यूजर-फ्रेंडली इंटरफ़ेस होता है जो सेटिंग्स को कॉन्फ़िगर करना आसान बनाता है। इससे गलत सेटिंग्स के कारण होने वाली त्रुटियों को कम किया जा सकता है।
संक्षेप में,
इंटेलिजेंट कंट्रोलर एसीबी को एक साधारण ब्रेकर से एक बुद्धिमान और नियंत्रित उपकरण में बदल देता है। यह विद्युत प्रणाली की सुरक्षा, दक्षता और विश्वसनीयता को बढ़ाता है, जिससे इसे आधुनिक औद्योगिक और वाणिज्यिक अनुप्रयोगों के लिए एक अनिवार्य घटक बनाता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में "ओपन बटन" (Open Button), जिसे "ट्रिप बटन" भी कहा जाता है, का उपयोग ब्रेकर को मैन्युअल रूप से ऑफ करने के लिए किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा और नियंत्रण सुविधा है।
ओपन बटन के प्रमुख उपयोग इस प्रकार हैं:
1. मैन्युअल ट्रिपिंग (Manual Tripping)
* आपातकालीन स्थिति:
यदि किसी आपात स्थिति में सर्किट को तुरंत बंद करने की आवश्यकता हो (जैसे आग लगना, बिजली के झटके का खतरा, या कोई अन्य खराबी), तो ऑपरेटर ओपन बटन का उपयोग करके ब्रेकर को तुरंत ट्रिप कर सकता है।
* रखरखाव:
रखरखाव के दौरान,
ब्रेकर को सुरक्षित रूप से अलग (isolated) करने के लिए ओपन बटन का उपयोग किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि डाउनस्ट्रीम सर्किट में कोई पावर न हो, जिससे उस पर काम करना सुरक्षित हो जाता है।
2. रिमोट ट्रिपिंग की जाँच
* ट्रिप कॉइल की टेस्टिंग:
ओपन बटन का उपयोग ट्रिप कॉइल (जैसे शंट ट्रिप कॉइल) की कार्यप्रणाली की जाँच के लिए भी किया जा सकता है। ट्रिप कॉइल एक ऐसा उपकरण है जो ब्रेकर को दूर से ही ट्रिप करने की अनुमति देता है। ओपन बटन दबाकर, आप सुनिश्चित कर सकते हैं कि ट्रिपिंग मैकेनिज्म सही ढंग से काम कर रहा है।
3. ब्रेकर को सुरक्षित रूप से बंद करना
* ट्रिपिंग मैकेनिज्म का उपयोग:
ओपन बटन दबाने से ब्रेकर का इंटरनल ट्रिपिंग मैकेनिज्म सक्रिय हो जाता है, जिससे ब्रेकर के कॉन्टैक्ट्स खुल जाते हैं। यह प्रक्रिया सामान्य ब्रेकर को बंद करने (क्लोज) की प्रक्रिया से अलग है।
* सुरक्षा इंटरलॉक:
ओपन बटन का उपयोग कई सुरक्षा इंटरलॉक के साथ भी किया जाता है। उदाहरण के लिए, कुछ स्थितियों में ब्रेकर को बंद करने से पहले यह आवश्यक हो सकता है कि पहले ओपन बटन दबाकर यह सुनिश्चित किया जाए कि ब्रेकर पूरी तरह से ऑफ है।
4. ऑपरेशन की स्थिति
* इंडिकेशन:
ब्रेकर में आमतौर पर एक इंडिकेटर होता है जो ब्रेकर की स्थिति (ON/OFF) दिखाता है। ओपन बटन का उपयोग करने के बाद, यह इंडिकेटर "ऑफ" स्थिति में चला जाता है, जो ऑपरेटर को ब्रेकर की स्थिति के बारे में जानकारी देता है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ओपन बटन का उपयोग करके ब्रेकर को ट्रिप करने के बाद, उसे फिर से चालू करने के लिए पहले उसे रीसेट करना पड़ सकता है (जैसा कि रीसेट बटन के उपयोग में बताया गया है) और उसके बाद उसके स्प्रिंग को चार्ज करके क्लोज बटन दबाना होगा।
संक्षेप में,
एसीबी में ओपन बटन का उपयोग ब्रेकर को मैन्युअल रूप से और सुरक्षित रूप से बंद करने के लिए किया जाता है, जो आपातकालीन नियंत्रण, रखरखाव और टेस्टिंग के लिए एक अनिवार्य सुविधा है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में "क्लोज बटन" (Close Button) का उपयोग ब्रेकर को मैन्युअल रूप से चालू (ON) करने के लिए किया जाता है, ताकि यह सर्किट में बिजली के प्रवाह को शुरू कर सके। यह एसीबी के ऑपरेशन का एक अनिवार्य हिस्सा है।
क्लोज बटन के प्रमुख उपयोग इस प्रकार हैं:
1. ब्रेकर को चालू करना (Closing the Breaker)
* मैन्युअल ऑपरेशन:
क्लोज बटन का सबसे प्राथमिक उपयोग ब्रेकर को मैन्युअल रूप से बंद (ON) करना है। ब्रेकर को बंद करने से पहले, उसके ऑपरेटिंग स्प्रिंग को चार्ज करना अनिवार्य होता है। क्लोज बटन को दबाने पर, चार्ज किया हुआ स्प्रिंग रिलीज होता है और ब्रेकर के मुख्य कॉन्टैक्ट्स को एक साथ जोड़ देता है, जिससे सर्किट में करंट बहना शुरू हो जाता है।
* स्प्रिंग चार्जिंग के बाद:
ब्रेकर के क्लोज बटन को तभी दबाया जा सकता है जब उसका स्प्रिंग पूरी तरह से चार्ज हो। यदि स्प्रिंग चार्ज नहीं है, तो क्लोज बटन काम नहीं करेगा।
2. सर्किट को पावर देना
* पावर रीस्टोर करना:
जब कोई ब्रेकर किसी फॉल्ट के कारण ट्रिप हो जाता है और उस फॉल्ट को ठीक कर दिया जाता है, तो सर्किट में पावर को फिर से बहाल करने के लिए क्लोज बटन का उपयोग किया जाता है।
* नया सर्किट शुरू करना:
किसी नए सर्किट को कमीशन करते समय भी क्लोज बटन का उपयोग ब्रेकर को पहली बार चालू करने के लिए किया जाता है।
3. सुरक्षा इंटरलॉक
* दो-चरणीय प्रक्रिया:
ब्रेकर को ऑन करने के लिए एक दो-चरणीय प्रक्रिया (पहले स्प्रिंग को चार्ज करना और फिर क्लोज बटन दबाना) होती है। यह आकस्मिक रूप से ब्रेकर को ऑन होने से रोकता है, जिससे सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
* रिमोट क्लोजिंग से समन्वय:
कुछ एसीबी में रिमोट क्लोजिंग (दूर से ऑन करना) की सुविधा होती है। क्लोज बटन का उपयोग मैन्युअल ऑपरेशन के लिए होता है, जबकि रिमोट कमांड शंट क्लोजिंग कॉइल को सक्रिय करती है। इन दोनों का उपयोग ब्रेकर को ऑन करने के लिए होता है।
संक्षेप में,
एसीबी में क्लोज बटन का उपयोग ब्रेकर को सुरक्षित और नियंत्रित तरीके से चालू करने के लिए किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण ऑपरेशनल बटन है जिसका उपयोग ब्रेकर को सर्विस में लाने, फॉल्ट के बाद पावर बहाल करने और सर्किट को चालू करने के लिए किया जाता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में मैनुअल चार्जिंग हैंडल का उपयोग ब्रेकर के ऑपरेटिंग स्प्रिंग को मैन्युअल रूप से चार्ज करने के लिए किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण यांत्रिक क्रिया है जो ब्रेकर को बंद (ON) करने से पहले की जाती है।
मैनुअल चार्जिंग क्यों आवश्यक है?
एसीबी एक बड़े और शक्तिशाली ब्रेकर होते हैं। इन्हें बंद करने के लिए, इनके अंदर के कॉन्टैक्ट्स को एक साथ बहुत तेज़ी से और बलपूर्वक जोड़ना होता है ताकि आर्क (arc) न बने। इस बल को उत्पन्न करने के लिए एक मजबूत स्प्रिंग का उपयोग किया जाता है। ब्रेकर को बंद करने से पहले इस स्प्रिंग को चार्ज (यानी खींचा हुआ) होना चाहिए।
यदि ब्रेकर में मोटर चार्जिंग की सुविधा नहीं है या वह काम नहीं कर रही है, तो मैन्युअल चार्जिंग हैंडल का उपयोग किया जाता है।
उपयोग की प्रक्रिया
* हैंडल को जोड़ना:
ब्रेकर के सामने एक जगह होती है जहाँ मैनुअल चार्जिंग हैंडल को जोड़ा जाता है। यह आमतौर पर ब्रेकर के निचले हिस्से में होता है।
* चार्जिंग:
हैंडल को जोड़कर, उसे ऊपर और नीचे की दिशा में बार-बार हिलाया जाता है। इस क्रिया से ब्रेकर के अंदर का स्प्रिंग धीरे-धीरे खींचा जाता है और चार्ज होता है।
* इंडिकेशन:
जब स्प्रिंग पूरी तरह से चार्ज हो जाता है, तो ब्रेकर पर लगा एक इंडिकेटर "चार्ज्ड" या "स्प्रिंग चार्ज्ड" की स्थिति दिखाता है। यह अक्सर एक हरे रंग का इंडिकेटर होता है।
* क्लोज करना:
स्प्रिंग चार्ज होने के बाद ही क्लोज बटन को दबाकर ब्रेकर को ऑन किया जा सकता है।
मैनुअल चार्जिंग हैंडल के मुख्य उपयोग:
* मोटर चार्जिंग की विफलता:
यदि ब्रेकर का स्वचालित मोटर चार्जिंग मैकेनिज्म काम नहीं कर रहा है, तो मैन्युअल चार्जिंग एकमात्र तरीका है जिससे ब्रेकर को ऑन करने के लिए स्प्रिंग को तैयार किया जा सकता है।
* रखरखाव और परीक्षण:
रखरखाव के दौरान, ब्रेकर के ऑपरेशन का परीक्षण करने के लिए मैनुअल चार्जिंग का उपयोग किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि ब्रेकर का यांत्रिक मैकेनिज्म सही ढंग से काम कर रहा है।
* पावर आउटेज के दौरान:
यदि ब्रेकर को बिजली के बिना (पावर आउटेज की स्थिति में) चालू करने की आवश्यकता है, तो मैनुअल चार्जिंग ही एकमात्र विकल्प होता है।
संक्षेप में,
मैनुअल चार्जिंग हैंडल एसीबी को मैन्युअल रूप से चालू करने के लिए स्प्रिंग को चार्ज करने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। यह एक सुरक्षा और बैकअप मैकेनिज्म है जो ब्रेकर को आपातकालीन स्थितियों या मोटर की खराबी में भी संचालित करने की अनुमति देता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में "रिले इंडिकेशन" का उपयोग ब्रेकर की स्थिति और ट्रिप होने के कारण को जानने के लिए किया जाता है। रिले इंडिकेशन से हमारा मतलब ब्रेकर पर लगे LED लाइट्स या डिस्प्ले पर दिखाई देने वाले संकेतों से है। यह संकेत ऑपरेटर को यह समझने में मदद करता है कि ब्रेकर क्यों ट्रिप हुआ और क्या कार्रवाई करनी चाहिए।
एक इंटेलिजेंट एसीबी में, रिले इंडिकेशन का उपयोग कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए होता है:
1. फॉल्ट के कारण की पहचान
यह सबसे महत्वपूर्ण उपयोग है। जब ब्रेकर किसी फॉल्ट के कारण ट्रिप होता है, तो रिले इंडिकेशन बताता है कि फॉल्ट किस प्रकार का था। यह आमतौर पर एक डिस्प्ले पर या LED लाइट्स के माध्यम से दिखाया जाता है।
* L (Long-Time):
यह संकेत ओवरलोड (overload) की स्थिति को दर्शाता है। यदि यह इंडिकेटर जल रहा है, तो इसका मतलब है कि सर्किट पर रेटेड करंट से अधिक करंट लंबे समय तक बह रहा था।
* S (Short-Time):
यह शॉर्ट-सर्किट (short-circuit) की स्थिति को दर्शाता है। यह संकेत देता है कि एक तात्कालिक करंट बढ़ा था, लेकिन यह बहुत बड़े शॉर्ट-सर्किट जितना नहीं था।
* I (Instantaneous):
यह एक बहुत ही बड़े और खतरनाक शॉर्ट-सर्किट को दर्शाता है। इस स्थिति में ब्रेकर बिना किसी समय विलंब के तुरंत ट्रिप हो जाता है।
* G (Ground Fault):
यह ग्राउंड फॉल्ट (ground fault) की स्थिति को दर्शाता है, जिसमें कुछ करंट सर्किट से बाहर निकलकर जमीन में बह रहा होता है।
2. त्वरित समस्या निवारण (Troubleshooting)
रिले इंडिकेशन का उपयोग रखरखाव कर्मियों को समस्या का निवारण करने में मदद करता है। फॉल्ट के कारण का पता चलने पर, वे अनावश्यक जाँच में समय बर्बाद नहीं करते और सीधे समस्या के स्रोत पर जा सकते हैं।
* उदाहरण के लिए,
यदि 'L' इंडिकेशन जल रहा है, तो उन्हें पता होता है कि लोड बहुत अधिक है और उन्हें डाउनस्ट्रीम उपकरणों की जाँच करनी चाहिए। यदि 'G' इंडिकेशन है, तो उन्हें ग्राउंडिंग या इंसुलेशन की समस्या की जाँच करनी होती है।
3. ब्रेकर की स्थिति की निगरानी
रिले इंडिकेशन ब्रेकर की सामान्य स्थिति को भी दर्शाता है।
* चार्ज्ड/रेडी टू क्लोज:
यह संकेत देता है कि ब्रेकर का स्प्रिंग चार्ज हो चुका है और वह बंद (ON) होने के लिए तैयार है।
* ट्रिप्ड:
यह संकेत देता है कि ब्रेकर ट्रिप हो चुका है और उसे रीसेट करने की आवश्यकता है।
4. सुरक्षा सुनिश्चित करना
फॉल्ट ट्रिप इंडिकेशन ऑपरेटर को तुरंत ब्रेकर को फिर से चालू करने से रोकता है। यह एक सुरक्षा उपाय है जो सुनिश्चित करता है कि फॉल्ट का कारण ठीक होने के बाद ही ब्रेकर को फिर से बंद किया जाए, जिससे एक और खतरनाक स्थिति को रोका जा सके।
5. रिमोट मॉनिटरिंग और कंट्रोल
आधुनिक एसीबी में लगे कम्युनिकेशन पोर्ट और रिले इंडिकेशन को SCADA या BMS जैसे दूरस्थ निगरानी प्रणालियों से जोड़ा जा सकता है। इससे ऑपरेटर दूर से ही ब्रेकर की स्थिति और फॉल्ट के कारण को जान सकते हैं, और यदि आवश्यक हो तो आवश्यक कार्रवाई कर सकते हैं।
संक्षेप में,
एसीबी में रिले इंडिकेशन एक महत्वपूर्ण विशेषता है जो ब्रेकर के ट्रिप होने का कारण बताती है, जिससे समस्या का निवारण आसान हो जाता है, सुरक्षा बढ़ती है, और सिस्टम का डाउनटाइम कम होता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में चार्जिंग इंडिकेशन का उपयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि ब्रेकर का ऑपरेटिंग स्प्रिंग पूरी तरह से चार्ज हो गया है और ब्रेकर बंद (ON) होने के लिए तैयार है। यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा और परिचालन सुविधा है।
चार्जिंग इंडिकेशन का महत्व
एसीबी के कॉन्टैक्ट्स को बंद करने के लिए बहुत अधिक बल की आवश्यकता होती है ताकि आर्क (आग की चिंगारी) बनने से रोका जा सके। इस बल को प्रदान करने के लिए ब्रेकर के अंदर एक मजबूत स्प्रिंग होता है। यह स्प्रिंग या तो एक मोटर द्वारा स्वचालित रूप से या एक हैंडल द्वारा मैन्युअल रूप से खींचा जाता है। चार्जिंग इंडिकेशन इस प्रक्रिया के पूरा होने की पुष्टि करता है।
चार्जिंग इंडिकेशन के प्रमुख उपयोग
* ऑपरेशन की तैयारी की पुष्टि:
चार्जिंग इंडिकेशन यह सुनिश्चित करता है कि ऑपरेटर ब्रेकर को ऑन करने से पहले यह जान ले कि ब्रेकर पूरी तरह से तैयार है। यह आमतौर पर एक हरे या पीले रंग का इंडिकेटर होता है, जो 'स्प्रिंग चार्ज्ड' (Spring Charged) या 'चार्ज्ड' (Charged) का संकेत देता है।
* क्लोजिंग से पहले की शर्त:
ब्रेकर को बंद (ON) करने का क्लोज बटन या रिमोट कमांड तभी काम करता है जब चार्जिंग इंडिकेशन दिखाता है कि स्प्रिंग चार्ज हो चुका है। यदि स्प्रिंग चार्ज नहीं है, तो ब्रेकर को बंद नहीं किया जा सकता।
* मैन्युअल चार्जिंग में मार्गदर्शन:
यदि ब्रेकर को मैन्युअल रूप से चार्ज किया जा रहा है, तो चार्जिंग इंडिकेशन ऑपरेटर को यह बताता है कि कब चार्जिंग की प्रक्रिया पूरी हो गई है। यह ओवर-चार्जिंग को रोकता है और समय बचाता है।
* स्वचालित चार्जिंग की निगरानी:
यदि एसीबी में मोटर चार्जिंग की सुविधा है, तो यह इंडिकेशन मोटर की कार्यप्रणाली को दर्शाता है। यदि मोटर काम कर रही है, तो इंडिकेशन 'चार्ज्ड' दिखाएगा। यदि मोटर में कोई खराबी आती है, तो यह इंडिकेशन नहीं दिखेगा, जिससे ऑपरेटर को समस्या का पता चल जाएगा।
* सुरक्षा:
चार्जिंग इंडिकेशन ब्रेकर के गलत संचालन को रोकता है। यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेकर को केवल तभी ऑन किया जाए जब वह पूरी तरह से तैयार हो। यह आकस्मिक क्लोजिंग को भी रोकता है, जिससे सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
संक्षेप में,
एसीबी में चार्जिंग इंडिकेशन एक महत्वपूर्ण संकेत है जो बताता है कि ब्रेकर बंद होने के लिए यांत्रिक रूप से तैयार है। यह ब्रेकर के सुरक्षित और कुशल संचालन के लिए एक आवश्यक हिस्सा है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में "रिलीज़ इंडिकेशन" (Release Indication) का उपयोग ब्रेकर के स्प्रिंग मैकेनिज्म की स्थिति को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह इंडिकेशन चार्जिंग इंडिकेशन के विपरीत होता है।
रिलीज़ इंडिकेशन का महत्व
जब ब्रेकर का ऑपरेटिंग स्प्रिंग पूरी तरह से चार्ज हो जाता है,
तो ब्रेकर का क्लोज बटन या ट्रिप मैकेनिज्म दबाने पर यह स्प्रिंग रिलीज़ हो जाता है। यह रिलीज़ होने पर एक बड़ा बल उत्पन्न करता है जो ब्रेकर के कॉन्टैक्ट्स को बंद या खोल देता है। रिलीज़ इंडिकेशन इसी स्थिति की पुष्टि करता है।
रिलीज़ इंडिकेशन के प्रमुख उपयोग:
* ऑपरेशन के बाद की स्थिति:
जब ब्रेकर को बंद (ON) या ट्रिप (OFF) किया जाता है,
तो स्प्रिंग रिलीज़ हो जाता है। यह इंडिकेशन दिखाता है कि ब्रेकर का स्प्रिंग अब डिस्चार्ज हो चुका है। यह आमतौर पर 'स्प्रिंग डिस्चार्ज्ड' या 'स्प्रिंग रिलीज़्ड' के रूप में दर्शाया जाता है।
* क्लोजिंग से पहले की शर्त:
ब्रेकर को फिर से ऑन करने से पहले,
यह इंडिकेशन दिखाता है कि स्प्रिंग रिलीज़ हो चुका है और उसे फिर से चार्ज करने की आवश्यकता है। ब्रेकर को फिर से ऑन करने के लिए, स्प्रिंग को पहले चार्ज करना अनिवार्य होता है।
* ऑटोमेशन और कंट्रोल:
यदि ब्रेकर को रिमोटली कंट्रोल किया जा रहा है,
तो रिलीज़ इंडिकेशन कंट्रोल सिस्टम को ब्रेकर की यांत्रिक स्थिति के बारे में जानकारी देता है। यह बताता है कि ब्रेकर का क्लोजिंग या ट्रिपिंग ऑपरेशन पूरा हो चुका है।
* सुरक्षा:
रिलीज़ इंडिकेशन सुनिश्चित करता है कि ऑपरेटर को ब्रेकर की यांत्रिक स्थिति की सही जानकारी मिले। यह गलती से या अधूरे ऑपरेशन के बाद ब्रेकर को फिर से संचालित करने से रोकता है।
संक्षेप में,
एसीबी में रिलीज़ इंडिकेशन एक महत्वपूर्ण संकेत है जो बताता है कि ब्रेकर का स्प्रिंग डिस्चार्ज हो चुका है। यह ब्रेकर के सुरक्षित और सटीक संचालन के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह ऑपरेटर को अगले ऑपरेशन से पहले स्प्रिंग को फिर से चार्ज करने की याद दिलाता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में ओपन इंडिकेशन का उपयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि ब्रेकर के मुख्य कॉन्टैक्ट्स खुल गए हैं और सर्किट में कोई करंट नहीं बह रहा है। यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा और स्थिति-जाँच सुविधा है।
ओपन इंडिकेशन का महत्व
ब्रेकर का मुख्य कार्य सर्किट को चालू (ON) या बंद (OFF) करना है। ओपन इंडिकेशन ब्रेकर के बंद होने की स्थिति की पुष्टि करता है। जब ब्रेकर ऑफ होता है, तो उसके कॉन्टैक्ट्स अलग हो जाते हैं, जिससे सर्किट में बिजली का प्रवाह रुक जाता है। यह इंडिकेशन ऑपरेटर को इस स्थिति के बारे में जानकारी देता है।
ओपन इंडिकेशन के प्रमुख उपयोग:
* सर्किट की स्थिति की पुष्टि:
ओपन इंडिकेशन यह सुनिश्चित करता है कि सर्किट वास्तव में डी-एनर्जाइज्ड (de-energized) है। यह आमतौर पर ब्रेकर पर एक लाल या हरे रंग का इंडिकेटर होता है, जो 'ऑफ' (OFF) या 'ओपन' (OPEN) स्थिति को दर्शाता है।
* रखरखाव और सुरक्षा:
रखरखाव कर्मियों के लिए ओपन इंडिकेशन बहुत महत्वपूर्ण है। ब्रेकर पर काम शुरू करने से पहले, वे इस इंडिकेशन को देखकर यह पुष्टि कर सकते हैं कि सर्किट में कोई बिजली नहीं है, जिससे बिजली के झटके या अन्य दुर्घटनाओं का खतरा कम हो जाता है।
* ऑटोमेशन और रिमोट मॉनिटरिंग:
आधुनिक एसीबी में, ओपन इंडिकेशन का उपयोग रिमोट मॉनिटरिंग सिस्टम (जैसे SCADA या BMS) में भी किया जाता है। जब ब्रेकर ऑफ होता है, तो यह इंडिकेशन एक सिग्नल भेजता है, जिससे ऑपरेटर को दूर से ही सर्किट की स्थिति का पता चल जाता है।
* ट्रिपिंग की पुष्टि:
जब ब्रेकर किसी फॉल्ट के कारण ट्रिप होता है, तो वह ओपन स्थिति में चला जाता है। ओपन इंडिकेशन यह पुष्टि करता है कि ट्रिपिंग की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और कॉन्टैक्ट्स खुल गए हैं।
संक्षेप में,
एसीबी में ओपन इंडिकेशन एक आवश्यक संकेत है जो बताता है कि ब्रेकर के कॉन्टैक्ट्स खुले हैं और सर्किट में कोई करंट नहीं है। यह सुरक्षा, रखरखाव, और रिमोट मॉनिटरिंग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में क्लोज्ड इंडिकेशन का उपयोग यह बताने के लिए किया जाता है कि ब्रेकर के मुख्य कॉन्टैक्ट्स बंद हो गए हैं और सर्किट में बिजली का प्रवाह हो रहा है। यह एक महत्वपूर्ण स्थिति-जाँच और सुरक्षा सुविधा है।
क्लोज्ड इंडिकेशन का महत्व
ब्रेकर का मुख्य कार्य सर्किट को चालू (ON) या बंद (OFF) करना है। क्लोज्ड इंडिकेशन ब्रेकर के चालू होने की स्थिति की पुष्टि करता है। जब ब्रेकर चालू होता है, तो उसके कॉन्टैक्ट्स एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं, जिससे सर्किट में बिजली का प्रवाह शुरू हो जाता है। यह इंडिकेशन ऑपरेटर को इस स्थिति के बारे में जानकारी देता है।
क्लोज्ड इंडिकेशन के प्रमुख उपयोग:
* सर्किट की स्थिति की पुष्टि:
क्लोज्ड इंडिकेशन यह सुनिश्चित करता है कि सर्किट वास्तव में एनर्जाइज्ड (energized) है। यह आमतौर पर ब्रेकर पर एक लाल या हरे रंग का इंडिकेटर होता है, जो 'ON' या 'क्लोज्ड' (Closed) स्थिति को दर्शाता है।
* ऑपरेशन की पुष्टि:
जब ऑपरेटर ब्रेकर को चालू (ON) करता है, तो क्लोज्ड इंडिकेशन यह बताता है कि ऑपरेशन सफल रहा और ब्रेकर पूरी तरह से बंद हो गया है।
* ऑटोमेशन और रिमोट मॉनिटरिंग:
आधुनिक एसीबी में, क्लोज्ड इंडिकेशन का उपयोग रिमोट मॉनिटरिंग सिस्टम (जैसे SCADA या BMS) में भी किया जाता है। जब ब्रेकर बंद होता है, तो यह इंडिकेशन एक सिग्नल भेजता है, जिससे ऑपरेटर को दूर से ही सर्किट की स्थिति का पता चल जाता है।
* सुरक्षा इंटरलॉक:
क्लोज्ड इंडिकेशन का उपयोग सुरक्षा इंटरलॉक में भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, कुछ स्थितियों में यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है कि एक ब्रेकर बंद होने से पहले दूसरा ब्रेकर बंद न हो।
संक्षेप में, एसीबी में क्लोज्ड इंडिकेशन एक आवश्यक संकेत है जो बताता है कि ब्रेकर के कॉन्टैक्ट्स बंद हैं और सर्किट में बिजली का प्रवाह हो रहा है। यह सुरक्षा, संचालन, और रिमोट मॉनिटरिंग के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में डेटा नेमप्लेट एक महत्वपूर्ण पहचान और सूचना पटल होता है जो ब्रेकर पर लगा होता है। यह ब्रेकर की सभी तकनीकी विशिष्टताओं (technical specifications) को सूचीबद्ध करता है। यह एक तरह से ब्रेकर का "पहचान पत्र" है जो इंजीनियरों, तकनीशियनों और ऑपरेटरों को ब्रेकर की क्षमता, रेटिंग और उपयोग की शर्तों के बारे में जानने में मदद करता है।
डेटा नेमप्लेट का उपयोग कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए होता है:
1. ब्रेकर की पहचान और रेटिंग
* रेटेड करंट (In):
यह ब्रेकर का अधिकतम करंट है जिसे वह बिना ट्रिप हुए लगातार वहन कर सकता है। यह जानकारी ब्रेकर के सही आकार को चुनने के लिए महत्वपूर्ण है।
* रेटेड वोल्टेज (Ue):
यह ब्रेकर का अधिकतम वोल्टेज है जिस पर वह सुरक्षित रूप से काम कर सकता है।
* मॉडल नंबर और सीरियल नंबर:
यह जानकारी ब्रेकर को पहचानने, निर्माता से संपर्क करने और वारंटी या सेवा के लिए आवश्यक होती है।
* निर्माता (Manufacturer):
नेमप्लेट पर निर्माता का नाम (जैसे सीमेंस, श्नाइडर, एबीबी) लिखा होता है।
2. सुरक्षा क्षमताएं
* रेटेड अल्टीमेट शॉर्ट-सर्किट ब्रेकिंग कैपेसिटी (Icu):
यह अधिकतम शॉर्ट-सर्किट करंट है जिसे ब्रेकर एक बार सुरक्षित रूप से तोड़ सकता है। यह दर्शाता है कि ब्रेकर कितना मजबूत है।
* रेटेड सर्विस शॉर्ट-सर्किट ब्रेकिंग कैपेसिटी (Ics):
यह शॉर्ट-सर्किट करंट है जिसे ब्रेकर कई बार सुरक्षित रूप से तोड़ सकता है।
* रेटेड शॉर्ट-टाइम विदस्टैंड करंट (Icw):
यह वह करंट है जिसे ब्रेकर ट्रिप हुए बिना एक निर्दिष्ट समय (जैसे 1 सेकंड) तक सहन कर सकता है। यह ज़ोन सेलेक्टिविटी (Zone Selectivity) के लिए महत्वपूर्ण है।
3. ऑपरेशनल जानकारी
* पोल की संख्या (Poles):
नेमप्लेट बताती है कि ब्रेकर कितने पोल (जैसे 3-पोल, 4-पोल) का है।
* ऑपरेटिंग मैकेनिज्म:
यह जानकारी देती है कि ब्रेकर मैन्युअल (manual) है या मोटर-ऑपरेटेड (motor-operated)।
* कंट्रोल वोल्टेज:
यदि ब्रेकर में शंट ट्रिप कॉइल या मोटर जैसी सहायक डिवाइस हैं, तो नेमप्लेट पर उनके लिए आवश्यक वोल्टेज (जैसे 220V AC, 110V DC) की जानकारी होती है।
4. मानक और प्रमाणन
* मानक अनुपालन (Standards Compliance): नेमप्लेट पर उन मानकों (जैसे IEC 60947-2) का उल्लेख होता है जिनका पालन ब्रेकर करता है। यह पुष्टि करता है कि ब्रेकर अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और प्रदर्शन मानदंडों को पूरा करता है।
संक्षेप में,
एसीबी में डेटा नेमप्लेट का उपयोग ब्रेकर की सभी आवश्यक तकनीकी जानकारी को एक ही स्थान पर प्रदान करने के लिए होता है। यह जानकारी ब्रेकर के सही चयन, इंस्टॉलेशन, ऑपरेशन और रखरखाव के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में लीवर स्टोरेज पोजीशन का उपयोग ब्रेकर को मैन्युअल रूप से रैक-आउट (rack-out) या रैक-इन (rack-in) करने वाले हैंडल को रखने के लिए किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा और रखरखाव सुविधा है, खासकर ड्रॉ-आउट टाइप के एसीबी में।
लीवर स्टोरेज पोजीशन का महत्व
ड्रॉ-आउट टाइप के एसीबी को उसके क्रैडल (cassette) से बाहर निकालने और अंदर डालने के लिए एक विशेष हैंडल या लीवर का उपयोग किया जाता है। यह हैंडल हमेशा ब्रेकर पर लगा नहीं रहता है। लीवर स्टोरेज पोजीशन वह जगह है जहाँ इस हैंडल को सुरक्षित रूप से रखा जाता है जब इसका उपयोग नहीं हो रहा होता है।
उपयोग के प्रमुख कारण
* सुरक्षा:
* आकस्मिक ऑपरेशन से बचाव:
हैंडल को उसकी स्टोरेज पोजीशन में रखने से कोई भी व्यक्ति गलती से उसे रैक-इन या रैक-आउट करने का प्रयास नहीं कर सकता। यह आकस्मिक ब्रेकर ऑपरेशन को रोकता है, जिससे सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
* हैंडल का खोना:
स्टोरेज पोजीशन हैंडल को खोने से बचाती है, जो एक महत्वपूर्ण उपकरण है और अक्सर स्विचगियर पैनल पर केवल एक या दो ही उपलब्ध होते हैं।
* रखरखाव और ऑपरेशन में आसानी:
* सुव्यवस्थित पहुंच:
हैंडल को एक निश्चित जगह पर रखने से, जब भी उसकी आवश्यकता होती है, तो उसे आसानी से पाया जा सकता है। इससे रखरखाव के दौरान समय की बचत होती है।
* कार्यक्षेत्र का प्रबंधन:
यह सुनिश्चित करता है कि हैंडल काम के क्षेत्र में इधर-उधर न हो, जिससे एक साफ और व्यवस्थित कार्यस्थल बना रहे।
लीवर का उपयोग कब होता है?
* रैक-आउट:
ब्रेकर को उसके क्रैडल से बाहर निकालने के लिए, जब रखरखाव करना हो या ब्रेकर को बदलना हो।
* रैक-इन:
ब्रेकर को उसके क्रैडल में वापस डालने के लिए, ताकि वह ऑपरेशन के लिए तैयार हो सके।
* टेस्ट पोजीशन:
ब्रेकर को टेस्ट पोजीशन में डालने के लिए, जहाँ प्राइमरी कॉन्टैक्ट्स अलग होते हैं, लेकिन सेकेंडरी कॉन्टैक्ट्स जुड़े रहते हैं।
संक्षेप में,
लीवर स्टोरेज पोजीशन एक सुरक्षित और सुविधाजनक जगह है जहाँ एसीबी के रैक-आउट/रैक-इन हैंडल को रखा जाता है। इसका उपयोग यह सुनिश्चित करता है कि हैंडल हमेशा उपलब्ध हो, सुरक्षित रूप से रखा जाए और उसका गलत उपयोग न हो।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में 3-पोज़िशन इंडिकेशन का उपयोग ड्रॉ-आउट टाइप के ब्रेकरों में ब्रेकर की यांत्रिक स्थिति को दर्शाने के लिए किया जाता है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण सुरक्षा और परिचालन सुविधा है।
3-पोज़िशन इंडिकेशन का महत्व
ड्रॉ-आउट टाइप के एसीबी को उसके क्रैडल (cassette) में तीन अलग-अलग स्थितियों में रखा जा सकता है। 3-पोज़िशन इंडिकेशन ऑपरेटर को इन स्थितियों के बारे में स्पष्ट रूप से सूचित करता है, जिससे वह सुरक्षित रूप से रखरखाव और परिचालन कार्य कर सकता है।
तीन स्थितियाँ और उनका उपयोग
* कनेक्टेड पोज़िशन (Connected Position):
* इंडिकेशन:
यह स्थिति ब्रेकर पर लगे इंडिकेटर पर 'कनेक्ट' (Connect) या एक ठोस हरी पट्टी के रूप में दर्शाई जाती है।
* उपयोग:
इस स्थिति में, ब्रेकर पूरी तरह से क्रैडल में अंदर होता है। इसके प्राइमरी (मुख्य पावर) और सेकेंडरी (कंट्रोल/ऑक्सिलरी) दोनों कॉन्टैक्ट्स जुड़े होते हैं। ब्रेकर सामान्य रूप से काम करने के लिए तैयार होता है और इसे ऑन या ऑफ किया जा सकता है। यह ब्रेकर की सामान्य परिचालन स्थिति है।
* सुरक्षा:
इस स्थिति में ब्रेकर को रैक-आउट (बाहर निकालने) का प्रयास करना बहुत खतरनाक होता है।
* टेस्ट पोज़िशन (Test Position):
* इंडिकेशन:
यह स्थिति 'टेस्ट' (Test) या एक खाली हरी पट्टी के रूप में दर्शाई जाती है।
* उपयोग:
इस स्थिति में, ब्रेकर को क्रैडल से थोड़ा बाहर खींचा जाता है। इसके प्राइमरी कॉन्टैक्ट्स अब मुख्य बसबार से अलग हो जाते हैं, लेकिन सेकेंडरी कॉन्टैक्ट्स अभी भी जुड़े रहते हैं। इस स्थिति में, ब्रेकर को बिजली के सर्किट से अलग किए बिना ही उसकी ट्रिप यूनिट, शंट ट्रिप कॉइल, और मोटर जैसी सहायक सुविधाओं का परीक्षण किया जा सकता है। यह एक सुरक्षित टेस्टिंग स्थिति है।
* सुरक्षा:
इस स्थिति में ब्रेकर के प्राइमरी कॉन्टैक्ट्स पर कोई वोल्टेज नहीं होता है, जिससे टेस्टिंग सुरक्षित हो जाती है।
* डिस्कनेक्टेड पोज़िशन (Disconnected Position):
* इंडिकेशन:
यह स्थिति 'डिस्कनेक्ट' (Disconnect) या एक लाल पट्टी के रूप में दर्शाई जाती है।
* उपयोग:
इस स्थिति में, ब्रेकर को क्रैडल से पूरी तरह से बाहर निकाल लिया जाता है। इसके प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों कॉन्टैक्ट्स अलग हो जाते हैं। इस स्थिति में ब्रेकर पर सुरक्षित रूप से रखरखाव का काम किया जा सकता है।
* सुरक्षा:
यह सबसे सुरक्षित स्थिति है क्योंकि ब्रेकर अब पूरी तरह से सर्किट से अलग हो गया है, जिससे बिजली के झटके या अन्य दुर्घटनाओं का कोई खतरा नहीं रहता है।
संक्षेप में,
एसीबी में 3-पोज़िशन इंडिकेशन एक महत्वपूर्ण सुरक्षा सुविधा है जो ऑपरेटर को यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि ब्रेकर को किस स्थिति में रखना है। यह रखरखाव, परीक्षण और सामान्य ऑपरेशन को सुरक्षित और कुशल बनाता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में लीवर ड्राइविंग पोजीशन का उपयोग ड्रॉ-आउट टाइप के ब्रेकर को उसके क्रैडल (cassette) के अंदर या बाहर ले जाने के लिए किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण यांत्रिक क्रिया है जो ब्रेकर को उसकी तीन मुख्य स्थितियों - कनेक्टेड, टेस्ट और डिस्कनेक्टेड - में से किसी एक में ले जाने के लिए आवश्यक है।
लीवर ड्राइविंग पोजीशन का महत्व
ड्रॉ-आउट एसीबी में, ब्रेकर को उसके क्रैडल में धकेलने या खींचने के लिए बहुत अधिक बल की आवश्यकता होती है। यह बल मैनुअल लीवर के माध्यम से प्रदान किया जाता है। लीवर को सही ढंग से संचालित करने के लिए, उसे एक विशेष ड्राइविंग पोजीशन में रखना होता है। यह पोजीशन लीवर के उपयोग के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी तरीका प्रदान करती है।
उपयोग के प्रमुख कारण
* ब्रेकर को रैक-इन करना (Rack-in):
* जब ब्रेकर को डिस्कनेक्टेड पोजीशन से टेस्ट या कनेक्टेड पोजीशन में ले जाना होता है, तो लीवर को एक निश्चित ड्राइविंग पोजीशन में रखा जाता है।
* ऑपरेटर लीवर को घुमाता है (आमतौर पर दक्षिणावर्त) जिससे ब्रेकर धीरे-धीरे क्रैडल के अंदर जाता है।
* यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक ब्रेकर अपनी वांछित स्थिति (टेस्ट या कनेक्टेड) तक नहीं पहुँच जाता।
* ब्रेकर को रैक-आउट करना (Rack-out):
* जब ब्रेकर को कनेक्टेड या टेस्ट पोजीशन से बाहर निकालना होता है, तो लीवर को फिर से एक निश्चित ड्राइविंग पोजीशन में रखा जाता है।
* ऑपरेटर लीवर को विपरीत दिशा में घुमाता है (आमतौर पर वामावर्त) जिससे ब्रेकर धीरे-धीरे क्रैडल से बाहर आता है।
* यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक ब्रेकर डिस्कनेक्टेड पोजीशन में नहीं आ जाता।
* सुरक्षा और इंटरलॉकिंग:
* लीवर को केवल तभी ड्राइविंग पोजीशन में डाला जा सकता है जब ब्रेकर ऑफ स्थिति में हो।
* इससे यह सुनिश्चित होता है कि ब्रेकर को गलती से ऑन स्थिति में रैक-इन या रैक-आउट नहीं किया जा सकता, जो एक बहुत ही खतरनाक स्थिति है और इससे शॉर्ट-सर्किट या आर्क-फ्लैश हो सकता है।
* लीवर का सही उपयोग सुनिश्चित करता है कि यांत्रिक ऑपरेशन सुरक्षित हो।
* स्थिति की पुष्टि:
* लीवर को घुमाते समय, ऑपरेटर ब्रेकर की प्रगति को देख सकता है।
* जब ब्रेकर अपनी वांछित स्थिति (जैसे कनेक्टेड) पर पहुँच जाता है, तो लीवर अटक जाता है, जिससे यह संकेत मिलता है कि प्रक्रिया पूरी हो गई है।
संक्षेप में,
एसीबी में लीवर ड्राइविंग पोजीशन उस स्थान को संदर्भित करती है जहाँ रैक-इन/रैक-आउट हैंडल को लगाया जाता है और घुमाया जाता है। इसका उपयोग ब्रेकर को सुरक्षित और नियंत्रित तरीके से क्रैडल के अंदर या बाहर ले जाने के लिए किया जाता है, जो रखरखाव और ऑपरेशन दोनों के लिए आवश्यक है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में अनलॉक बटन का उपयोग मुख्य रूप से ब्रेकर के ड्रॉ-आउट मैकेनिज्म को अनलॉक करने के लिए किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा सुविधा है, खासकर उन ब्रेकरों में जिन्हें उनके क्रैडल (cassette) से बाहर निकालने की आवश्यकता होती है।
अनलॉक बटन का महत्व
ड्रॉ-आउट टाइप के एसीबी में,
ब्रेकर को उसकी कनेक्टेड पोजीशन (जुड़ी हुई स्थिति) में लॉक कर दिया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेकर गलती से या अनजाने में क्रैडल से बाहर न निकल जाए। अनलॉक बटन इस लॉकिंग मैकेनिज्म को रिलीज करता है, ताकि ब्रेकर को बाहर निकाला जा सके।
अनलॉक बटन के प्रमुख उपयोग
* ब्रेकर को रैक-आउट करने के लिए:
जब रखरखाव (maintenance) के लिए ब्रेकर को क्रैडल से बाहर निकालना होता है, तो पहले अनलॉक बटन दबाना अनिवार्य होता है। यह बटन ब्रेकर को रैक-आउट करने के लिए आवश्यक यांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत करता है।
* सुरक्षा और इंटरलॉकिंग:
* आकस्मिक निकासी से बचाव:
यह बटन एक सुरक्षा इंटरलॉक के रूप में काम करता है। जब तक यह बटन नहीं दबाया जाता, ब्रेकर अपनी जगह पर मजबूती से लॉक रहता है। यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेकर केवल अधिकृत कर्मियों द्वारा और एक नियंत्रित तरीके से ही बाहर निकाला जाए।
* ऑपरेशन की स्थिति की जाँच:
कुछ ब्रेकरों में, अनलॉक बटन को तभी दबाया जा सकता है जब ब्रेकर ऑफ (OFF) स्थिति में हो। यह एक सुरक्षा इंटरलॉक है जो यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेकर को गलती से लाइव सर्किट से बाहर न निकाला जाए, जिससे गंभीर दुर्घटनाएं हो सकती हैं।
* रखरखाव में सुविधा:
अनलॉक बटन ब्रेकर को क्रैडल से आसानी से अलग करने की अनुमति देता है। एक बार जब ब्रेकर अनलॉक हो जाता है, तो उसे उसकी डिस्कनेक्टेड पोजीशन (पूरी तरह से अलग) में ले जाने के लिए रैक-आउट हैंडल का उपयोग किया जा सकता है।
संक्षेप में,
एसीबी में अनलॉक बटन का उपयोग ब्रेकर को उसकी कनेक्टेड स्थिति से सुरक्षित रूप से रिलीज करने के लिए होता है ताकि उसे रैक-आउट किया जा सके। यह ब्रेकर की सुरक्षा और कुशल रखरखाव के लिए एक महत्वपूर्ण विशेषता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में अनलॉक बटन का उपयोग मुख्य रूप से ब्रेकर के ड्रॉ-आउट मैकेनिज्म को अनलॉक करने के लिए किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण सुरक्षा सुविधा है, खासकर उन ब्रेकरों में जिन्हें उनके क्रैडल (cassette) से बाहर निकालने की आवश्यकता होती है।
अनलॉक बटन का महत्व
ड्रॉ-आउट टाइप के एसीबी में,
ब्रेकर को उसकी कनेक्टेड पोजीशन (जुड़ी हुई स्थिति) में लॉक कर दिया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेकर गलती से या अनजाने में क्रैडल से बाहर न निकल जाए। अनलॉक बटन इस लॉकिंग मैकेनिज्म को रिलीज करता है, ताकि ब्रेकर को बाहर निकाला जा सके।
अनलॉक बटन के प्रमुख उपयोग
* ब्रेकर को रैक-आउट करने के लिए:
जब रखरखाव (maintenance) के लिए ब्रेकर को क्रैडल से बाहर निकालना होता है, तो पहले अनलॉक बटन दबाना अनिवार्य होता है। यह बटन ब्रेकर को रैक-आउट करने के लिए आवश्यक यांत्रिक प्रक्रिया की शुरुआत करता है।
* सुरक्षा और इंटरलॉकिंग:
* आकस्मिक निकासी से बचाव:
यह बटन एक सुरक्षा इंटरलॉक के रूप में काम करता है। जब तक यह बटन नहीं दबाया जाता, ब्रेकर अपनी जगह पर मजबूती से लॉक रहता है। यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेकर केवल अधिकृत कर्मियों द्वारा और एक नियंत्रित तरीके से ही बाहर निकाला जाए।
* ऑपरेशन की स्थिति की जाँच:
कुछ ब्रेकरों में, अनलॉक बटन को तभी दबाया जा सकता है जब ब्रेकर ऑफ (OFF) स्थिति में हो। यह एक सुरक्षा इंटरलॉक है जो यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेकर को गलती से लाइव सर्किट से बाहर न निकाला जाए, जिससे गंभीर दुर्घटनाएं हो सकती हैं।
* रखरखाव में सुविधा:
अनलॉक बटन ब्रेकर को क्रैडल से आसानी से अलग करने की अनुमति देता है। एक बार जब ब्रेकर अनलॉक हो जाता है, तो उसे उसकी डिस्कनेक्टेड पोजीशन (पूरी तरह से अलग) में ले जाने के लिए रैक-आउट हैंडल का उपयोग किया जा सकता है।
संक्षेप में,
एसीबी में अनलॉक बटन का उपयोग ब्रेकर को उसकी कनेक्टेड स्थिति से सुरक्षित रूप से रिलीज करने के लिए होता है ताकि उसे रैक-आउट किया जा सके। यह ब्रेकर की सुरक्षा और कुशल रखरखाव के लिए एक महत्वपूर्ण विशेषता है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में ग्राउंड बोल्ट (Ground Bolt) का उपयोग ब्रेकर को स्विचगियर पैनल के अर्थिंग (earthing) सिस्टम से जोड़ने के लिए किया जाता है। यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण सुरक्षा सुविधा है जो विद्युत प्रणाली और कर्मियों दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
ग्राउंड बोल्ट का महत्व
जब भी किसी विद्युत उपकरण में कोई खराबी आती है (जैसे कि फेज वायर का केसिंग को छूना), तो उपकरण की बाहरी धातु की बॉडी में करंट बह सकता है। यदि यह करंट जमीन में नहीं भेजा जाता है, तो उपकरण को छूने वाले व्यक्ति को गंभीर बिजली का झटका लग सकता है। ग्राउंड बोल्ट इस करंट को सीधे अर्थिंग सिस्टम में भेजता है, जिससे यह खतरा टल जाता है।
ग्राउंड बोल्ट के प्रमुख उपयोग
* व्यक्तिगत सुरक्षा:
ग्राउंड बोल्ट यह सुनिश्चित करता है कि यदि ब्रेकर के बाहरी धातु के केसिंग में गलती से करंट आ जाए, तो वह करंट तुरंत ग्राउंड हो जाए। इससे ब्रेकर पर काम करने वाले या उसके आसपास खड़े व्यक्ति को बिजली के झटके से बचाया जा सकता है।
* उपकरणों की सुरक्षा:
यदि कोई बड़ा फॉल्ट (fault) होता है, तो ग्राउंडेड सर्किट फॉल्ट करंट को एक सुरक्षित मार्ग प्रदान करता है, जिससे सर्किट ब्रेकर और अन्य सुरक्षा उपकरण (जैसे रिले) ट्रिप हो जाते हैं। इससे उपकरण को ओवरकरंट और ओवरहीटिंग से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है।
* स्थिर विद्युत का निवारण (Static Discharge): ग्राउंडिंग ब्रेकर की बॉडी पर स्थिर विद्युत (static electricity) को जमा होने से भी रोकती है।
* लूप क्लोजर:
ग्राउंड बोल्ट ब्रेकर के मेटल केसिंग को पैनल के अर्थिंग बसबार से जोड़कर एक पूर्ण ग्राउंड लूप बनाता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी प्रकार का लीकेज करंट बिना किसी रुकावट के जमीन में चला जाए।
ग्राउंडिंग की प्रक्रिया
* ग्राउंड बोल्ट आमतौर पर एसीबी के फ्रेम या केसिंग पर स्पष्ट रूप से चिह्नित होता है।
* एक मोटे और अच्छे कंडक्टर वाले तार को एक सिरे से ग्राउंड बोल्ट से जोड़ा जाता है।
* तार का दूसरा सिरा स्विचगियर पैनल के मुख्य अर्थिंग बसबार (earthing busbar) से जोड़ा जाता है, जो अंततः जमीन में लगी अर्थ प्लेट से जुड़ा होता है।
संक्षेप में,
एसीबी में ग्राउंड बोल्ट एक सुरक्षात्मक कनेक्शन है जो ब्रेकर के मेटल केसिंग को अर्थिंग सिस्टम से जोड़ता है। यह बिजली के झटके से कर्मियों की सुरक्षा, उपकरणों को फॉल्ट से होने वाले नुकसान से बचाने, और एक स्थिर विद्युत प्रणाली सुनिश्चित करने के लिए एक अनिवार्य घटक है।
एसीबी (एयर सर्किट ब्रेकर) में पावर सप्लाई मॉड्यूल का उपयोग ब्रेकर के नियंत्रण और सहायक कार्यों के लिए आवश्यक डीसी (DC) पावर प्रदान करने के लिए किया जाता है। यह मॉड्यूल ब्रेकर के अंदर या उसके पास स्थित होता है और यह सुनिश्चित करता है कि ब्रेकर के सभी इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रोमैकेनिकल घटक सही ढंग से काम करें।
पावर सप्लाई मॉड्यूल का महत्व
एसीबी के मुख्य सर्किट में एसी (AC) करंट और वोल्टेज होता है, लेकिन उसके नियंत्रण सर्किट (जैसे ट्रिप यूनिट, स्प्रिंग चार्जिंग मोटर, शंट ट्रिप कॉइल) को अक्सर डीसी पावर की आवश्यकता होती है। पावर सप्लाई मॉड्यूल इस एसी पावर को कम वोल्टेज वाले डीसी पावर में परिवर्तित करता है।
पावर सप्लाई मॉड्यूल के प्रमुख उपयोग
* ट्रिप यूनिट को पावर देना:
एक इंटेलिजेंट एसीबी में, माइक्रोप्रोसेसर-आधारित ट्रिप यूनिट को लगातार पावर की आवश्यकता होती है ताकि वह लोड करंट को मॉनिटर कर सके और फॉल्ट होने पर ट्रिप कर सके। पावर सप्लाई मॉड्यूल इस यूनिट को आवश्यक डीसी पावर प्रदान करता है।
* स्प्रिंग चार्जिंग मोटर को चलाना:
ब्रेकर को ऑन करने के लिए उसके स्प्रिंग को चार्ज करना पड़ता है। यदि ब्रेकर में मोटर चार्जिंग की सुविधा है, तो इस मोटर को चलाने के लिए पावर सप्लाई मॉड्यूल से ही बिजली मिलती है।
* ट्रिप कॉइल और क्लोजिंग कॉइल को सक्रिय करना:
शंट ट्रिप कॉइल (ब्रेकर को दूर से ऑफ करने के लिए) और क्लोजिंग कॉइल (ब्रेकर को दूर से ऑन करने के लिए) को सक्रिय करने के लिए भी पावर सप्लाई मॉड्यूल से ही डीसी पावर मिलती है।
* इंडिकेशन और अलार्म सर्किट:
ब्रेकर की स्थिति (जैसे ऑन/ऑफ, ट्रिप्ड, स्प्रिंग चार्ज्ड) दिखाने वाले इंडिकेटर लाइट्स और अलार्म सर्किट को भी पावर सप्लाई मॉड्यूल से ही बिजली मिलती है।
* कम्युनिकेशन और डेटा:
यदि ब्रेकर को SCADA या BMS सिस्टम से जोड़ा गया है, तो कम्युनिकेशन मॉड्यूल और उसके संबंधित इलेक्ट्रॉनिक्स को भी पावर सप्लाई मॉड्यूल से ही बिजली मिलती है।
संक्षेप में,
एसीबी में पावर सप्लाई मॉड्यूल एक महत्वपूर्ण घटक है जो ब्रेकर के सभी नियंत्रण और सहायक सर्किट को विश्वसनीय डीसी पावर प्रदान करता है। यह ब्रेकर के सुरक्षित, नियंत्रित और कुशल संचालन के लिए आवश्यक है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें