बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) Battery Energy Storage Systems
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) एक ऐसी तकनीक है जो बिजली को रिचार्जेबल बैटरी में संग्रहीत करती है ताकि इसे बाद में उपयोग किया जा सके। यह प्रणाली बिजली को तब स्टोर करती है जब वह प्रचुर मात्रा में (जैसे, सौर ऊर्जा का उत्पादन दिन के समय) या सस्ती होती है, और फिर उसे तब जारी करती है जब इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है या यह महंगी होती है।
BESS के प्रमुख घटक
BESS में कई महत्वपूर्ण घटक होते हैं जो मिलकर काम करते हैं:
- बैटरी सेल और मॉड्यूल: ये प्रणाली के मुख्य हिस्से हैं जो रासायनिक ऊर्जा के रूप में बिजली को स्टोर करते हैं। आज के समय में, लिथियम-आयन बैटरी सबसे ज़्यादा उपयोग की जाती है क्योंकि इनका ऊर्जा घनत्व (energy density) ज़्यादा होता है और जीवनकाल लंबा होता है।
- बैटरी प्रबंधन प्रणाली (BMS): यह बैटरी की स्थिति की निगरानी करती है, जैसे तापमान, वोल्टेज और चार्ज स्तर, ताकि सुरक्षित और कुशल संचालन सुनिश्चित किया जा सके।
- पावर रूपांतरण प्रणाली (PCS): यह बैटरी के डायरेक्ट करंट (DC) को घरों और ग्रिड में उपयोग होने वाले अल्टरनेटिंग करंट (AC) में बदलती है, और इसके विपरीत भी।
- ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली (EMS): यह पूरे सिस्टम को नियंत्रित करती है, यह तय करती है कि बैटरी को कब चार्ज या डिस्चार्ज करना है, और यह सुनिश्चित करती है कि यह ग्रिड की ज़रूरतों के हिसाब से काम करे।
BESS के उपयोग
BESS का उपयोग कई क्षेत्रों में होता है, जो बिजली ग्रिड को स्थिर और अधिक कुशल बनाने में मदद करता है:
- अक्षय ऊर्जा का एकीकरण: सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों से बिजली का उत्पादन अनियमित होता है। BESS अतिरिक्त ऊर्जा को स्टोर करके तब उपयोग के लिए उपलब्ध कराता है जब सूरज नहीं चमक रहा हो या हवा नहीं चल रही हो, जिससे इन स्रोतों का उपयोग चौबीसों घंटे किया जा सकता है।
- ग्रिड स्थिरता: BESS ग्रिड में अचानक होने वाले उतार-चढ़ाव (जैसे, आवृत्ति और वोल्टेज में बदलाव) को संतुलित करने में मदद करता है, जिससे बिजली आपूर्ति की विश्वसनीयता और गुणवत्ता में सुधार होता है।
- पीक शेविंग और लोड शिफ्टिंग: बिजली की मांग में उतार-चढ़ाव होता रहता है। BESS कम मांग वाले समय में (जब बिजली सस्ती होती है) ऊर्जा को स्टोर करके और पीक मांग वाले समय में (जब बिजली महंगी होती है) उसे जारी करके बिजली के बिलों को कम करने में मदद करता है।
- आपातकालीन बैकअप: बिजली गुल होने की स्थिति में, BESS घरों, व्यवसायों और महत्वपूर्ण सुविधाओं को बैकअप बिजली प्रदान करता है।
BESS के लाभ
- पर्यावरणीय लाभ: यह जीवाश्म ईंधन से चलने वाले पावर प्लांट पर निर्भरता कम करके कार्बन उत्सर्जन को घटाता है।
- आर्थिक लाभ: यह ऊर्जा की लागत को कम करता है और बिजली बाजार में लचीलापन प्रदान करता है।
- विश्वसनीयता में सुधार: यह ग्रिड को अधिक विश्वसनीय और लचीला बनाता है, जिससे बिजली कटौती की संभावना कम होती है।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) एक ऐसी तकनीक है जो बिजली को रिचार्जेबल बैटरी में संग्रहीत करती है, ताकि इसे बाद में इस्तेमाल किया जा सके। यह प्रणाली एक विशाल रिचार्जेबल बैटरी की तरह काम करती है, जो अतिरिक्त बिजली को स्टोर करती है और जब जरूरत होती है तो उसे वापस ग्रिड में या किसी अन्य उपकरण में भेजती है। इसका मुख्य उद्देश्य ऊर्जा की उपलब्धता और मांग के बीच संतुलन बनाए रखना है।
मूल अवधारणाएँ
BESS की मूल अवधारणाएँ इसके मुख्य घटकों और कार्यप्रणाली पर आधारित हैं:
- ऊर्जा का भंडारण: यह सिस्टम अतिरिक्त विद्युत ऊर्जा को, विशेषकर नवीकरणीय स्रोतों (जैसे सौर और पवन ऊर्जा) से, रासायनिक ऊर्जा के रूप में स्टोर करता है। यह ऊर्जा तब संग्रहीत की जाती है जब उसका उत्पादन अधिक होता है और उसकी मांग कम होती है (उदाहरण के लिए, दिन के समय)।
- ऊर्जा का रूपांतरण: बैटरी में ऊर्जा डायरेक्ट करंट (DC) के रूप में संग्रहीत होती है, लेकिन घरों और ग्रिड में इसका उपयोग अल्टरनेटिंग करंट (AC) के रूप में होता है। पावर रूपांतरण प्रणाली (PCS) इस रूपांतरण को संभालती है।
- प्रबंधन और नियंत्रण: बैटरी प्रबंधन प्रणाली (BMS) बैटरी के स्वास्थ्य, तापमान और चार्ज स्तर की निगरानी करती है, जबकि ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली (EMS) पूरे सिस्टम को नियंत्रित करती है कि कब चार्ज करना है और कब डिस्चार्ज करना है।
- ग्रिड स्थिरता: BESS का उपयोग ग्रिड को स्थिर रखने के लिए किया जाता है। जब बिजली की मांग अधिक होती है (पीक आवर्स), तो यह संग्रहीत ऊर्जा को जारी करता है, जिससे बिजली की आपूर्ति में कोई रुकावट नहीं आती। यह पीक शेविंग और लोड शिफ्टिंग जैसी अवधारणाओं को संभव बनाता है।
यह प्रणाली जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके और नवीकरणीय ऊर्जा को अधिक विश्वसनीय बनाकर एक स्थायी ऊर्जा भविष्य की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) के मुख्य घटक इसे कुशलतापूर्वक कार्य करने में सक्षम बनाते हैं। ये घटक मिलकर ऊर्जा को संग्रहीत करने, प्रबंधित करने और वितरित करने का काम करते हैं।
बैटरी सेल (Battery Cells)
परिभाषा: ये BESS का सबसे महत्वपूर्ण और मूलभूत घटक हैं। ये वे इकाइयाँ हैं जहाँ रासायनिक ऊर्जा के रूप में विद्युत ऊर्जा को संग्रहीत किया जाता है।
प्रौद्योगिकी: लिथियम-आयन बैटरी सबसे अधिक उपयोग की जाती है क्योंकि इनका ऊर्जा घनत्व (energy density) ज़्यादा होता है, जिससे ये कम जगह में अधिक ऊर्जा स्टोर कर सकती हैं।
महत्व: बैटरी की क्षमता और जीवनकाल सीधे तौर पर इसके सेल की गुणवत्ता पर निर्भर करते हैं।
बैटरी प्रबंधन प्रणाली (BMS)
- परिभाषा: यह एक "मस्तिष्क" की तरह काम करता है जो बैटरी पैक के स्वास्थ्य और सुरक्षा की निगरानी करता है।
- कार्य: यह बैटरी के वोल्टेज, करंट, तापमान और चार्ज की स्थिति (State of Charge - SOC) जैसे मापदंडों को नियंत्रित करता है। यह ओवरचार्जिंग, ओवरहीटिंग, और डीप डिस्चार्जिंग जैसी स्थितियों को रोकता है, जिससे बैटरी का जीवनकाल बढ़ता है।
पावर रूपांतरण प्रणाली (PCS)
- परिभाषा: यह एक इन्वर्टर और कनवर्टर का संयोजन है जो बिजली के प्रवाह को नियंत्रित करता है।
- कार्य: जब बैटरी को चार्ज किया जाता है, तो PCS ग्रिड से आने वाली अल्टरनेटिंग करंट (AC) को बैटरी के लिए उपयुक्त डायरेक्ट करंट (DC) में बदलता है। जब बैटरी से ऊर्जा निकाली जाती है, तो यह DC को वापस AC में बदलकर ग्रिड या उपकरणों को आपूर्ति करता है।
ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली (EMS)
- परिभाषा: यह एक उच्च-स्तरीय सॉफ्टवेयर है जो पूरे BESS के संचालन को नियंत्रित और अनुकूलित करता है।
- कार्य: यह ग्रिड की मांग, बिजली की कीमतों, और बैटरी के चार्ज स्तर के आधार पर यह निर्णय लेता है कि बैटरी को कब चार्ज या डिस्चार्ज करना है। यह प्रणाली को अधिकतम दक्षता और आर्थिक लाभ के लिए संचालित करता है।
सुरक्षा और थर्मल प्रबंधन प्रणाली
- सुरक्षा प्रणाली: इसमें अग्निशमन प्रणाली, सेंसर, और अलार्म शामिल होते हैं ताकि किसी भी आपातकालीन स्थिति जैसे कि आग या शॉर्ट सर्किट को तुरंत पहचाना और नियंत्रित किया जा सके।
- थर्मल प्रबंधन: यह बैटरी के तापमान को एक सुरक्षित सीमा के भीतर रखता है। क्योंकि लिथियम-आयन बैटरी तापमान के प्रति संवेदनशील होती हैं, इसलिए अत्यधिक गर्मी या ठंड से बचने के लिए कूलिंग या हीटिंग सिस्टम का उपयोग किया जाता है।
BESS में विभिन्न प्रकार की बैटरियों का उपयोग किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी विशिष्ट विशेषताएँ, फायदे और नुकसान होते हैं। सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाले प्रकार इस प्रकार हैं:
1. लिथियम-आयन (Lithium-ion) बैटरी
यह BESS में सबसे लोकप्रिय और व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली बैटरी तकनीक है।
- विशेषताएँ: इसका ऊर्जा घनत्व (energy density) बहुत ज़्यादा होता है, जिससे यह कम जगह में अधिक ऊर्जा स्टोर कर सकती है। इसका जीवनकाल लंबा होता है, और यह उच्च दक्षता पर काम करती है।
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फायदे:
- उच्च दक्षता: चार्ज और डिस्चार्ज के दौरान ऊर्जा का नुकसान कम होता है।
- लंबे समय तक चलने वाली: इसका जीवनकाल बहुत अच्छा होता है।
- तेज चार्ज/डिस्चार्ज: यह कम समय में चार्ज और डिस्चार्ज हो सकती है।
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नुकसान:
- लागत: अन्य प्रकार की बैटरियों की तुलना में यह महंगी होती है।
- सुरक्षा: इसमें थर्मल रनवे (thermal runaway) का खतरा होता है, जिससे आग लग सकती है। हालांकि, आधुनिक BMS (बैटरी प्रबंधन प्रणाली) इस जोखिम को कम करती है।
2. लेड-एसिड (Lead-Acid) बैटरी
यह सबसे पुरानी और सबसे अधिक स्थापित बैटरी प्रौद्योगिकियों में से एक है।
- विशेषताएँ: यह लिथियम-आयन की तुलना में कम ऊर्जा घनत्व और छोटा जीवनकाल रखती है।
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फायदे:
- कम लागत: यह लिथियम-आयन बैटरियों की तुलना में बहुत सस्ती होती है।
- विश्वसनीय: इसकी तकनीक पुरानी और सिद्ध है, जिससे यह बहुत विश्वसनीय है।
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नुकसान:
- कम जीवनकाल: इसकी चार्ज-डिस्चार्ज साइकिल (cycle) की संख्या कम होती है।
- कम दक्षता: यह चार्ज और डिस्चार्ज के दौरान अधिक ऊर्जा खोती है।
- पर्यावरणीय चिंताएँ: इसमें जहरीले सीसे का उपयोग होता है, जिससे इसके निपटान में पर्यावरणीय चुनौतियाँ आती हैं।
3. फ्लो (Flow) बैटरी
यह एक नई और उभरती हुई तकनीक है, जो तरल इलेक्ट्रोलाइट्स का उपयोग करती है।
- विशेषताएँ: इसमें ऊर्जा को दो अलग-अलग टैंकों में संग्रहीत किया जाता है, जिससे ऊर्जा और शक्ति (power) को स्वतंत्र रूप से बढ़ाया जा सकता है।
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फायदे:
- लंबे समय तक ऊर्जा भंडारण: यह कई घंटों से लेकर दिनों तक ऊर्जा स्टोर कर सकती है।
- लंबे जीवनकाल: यह हजारों चार्ज-डिस्चार्ज साइकिल तक चल सकती है।
- सुरक्षा: इसमें आग लगने का खतरा बहुत कम होता है।
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नुकसान:
- जटिलता: इसमें कई पंप और पाइप होते हैं, जिससे यह लिथियम-आयन की तुलना में अधिक जटिल होती है।
- कम ऊर्जा घनत्व: यह प्रति इकाई आयतन कम ऊर्जा स्टोर करती है।
4. सोडियम-सल्फर (Sodium-Sulfur) बैटरी
यह एक उच्च तापमान वाली बैटरी है जो सोडियम और सल्फर का उपयोग करती है।
- विशेषताएँ: यह 300°C से अधिक तापमान पर काम करती है।
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फायदे:
- उच्च ऊर्जा घनत्व: यह लिथियम-आयन के बराबर ऊर्जा घनत्व प्रदान कर सकती है।
- लंबे जीवनकाल: यह बहुत लंबे समय तक चल सकती है।
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नुकसान:
- उच्च तापमान: इसे काम करने के लिए लगातार उच्च तापमान पर रखना पड़ता है, जिससे ऊर्जा की खपत होती है।
- सुरक्षा: सोडियम और सल्फर अत्यधिक प्रतिक्रियाशील होते हैं, जिससे इसमें सुरक्षा संबंधी चुनौतियाँ आती हैं।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) का कार्य सिद्धांत मुख्य रूप से ऊर्जा के भंडारण और वितरण पर आधारित है। यह प्रणाली विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में संग्रहीत करती है और आवश्यकता पड़ने पर उसे वापस विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करती है। यह प्रक्रिया दो मुख्य चरणों में होती है: चार्जिंग (Charging) और डिस्चार्जिंग (Discharging)।
1. चार्जिंग का सिद्धांत
जब BESS को चार्ज किया जाता है, तो अतिरिक्त बिजली को बैटरी में भेजा जाता है।
ऊर्जा का प्रवाह: विद्युत ग्रिड या नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर पैनल) से आने वाली अल्टरनेटिंग करंट (AC) बिजली को पावर रूपांतरण प्रणाली (PCS) द्वारा डायरेक्ट करंट (DC) में बदला जाता है।
रासायनिक प्रक्रिया: यह DC बिजली बैटरी के अंदर रासायनिक प्रतिक्रियाओं को प्रेरित करती है। बैटरी के इलेक्ट्रोलाइट्स में आयन (ions) एक इलेक्ट्रोड (electrode) से दूसरे इलेक्ट्रोड की ओर प्रवाहित होते हैं, जिससे रासायनिक ऊर्जा संग्रहीत हो जाती है।
यह प्रक्रिया तब होती है जब बिजली सस्ती होती है या जब इसका उत्पादन मांग से अधिक होता है।
2. डिस्चार्जिंग का सिद्धांत
जब बिजली की मांग अधिक होती है या आपूर्ति कम होती है, तो BESS संग्रहीत ऊर्जा को ग्रिड में वापस भेजता है।
- रासायनिक प्रतिक्रिया: चार्जिंग के दौरान संग्रहीत रासायनिक ऊर्जा अब विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित होती है। आयन विपरीत दिशा में प्रवाहित होते हैं, जिससे DC करंट उत्पन्न होता है।
- ऊर्जा का प्रवाह: इस DC करंट को फिर से पावर रूपांतरण प्रणाली (PCS) द्वारा AC करंट में बदला जाता है, जिसे ग्रिड या उपकरणों को आपूर्ति किया जाता है।
यह प्रक्रिया पीक शेविंग (मांग के चरम समय में ग्रिड से लोड कम करना) और लोड शिफ्टिंग (ऊर्जा को सस्ते समय में स्टोर करके महंगे समय में उपयोग करना) जैसे कार्यों को संभव बनाती है।
संक्षेप में,
BESS का काम एक दो-तरफा सड़क की तरह है:
- चार्जिंग: बिजली को AC से DC में बदलकर रासायनिक रूप में भंडारण करना।
- डिस्चार्जिंग: संग्रहीत रासायनिक ऊर्जा को DC से AC में बदलकर वितरित करना।
यह संपूर्ण प्रक्रिया बैटरी प्रबंधन प्रणाली (BMS) और ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली (EMS) द्वारा नियंत्रित और अनुकूलित की जाती है ताकि सुरक्षा और दक्षता सुनिश्चित की जा सके।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) की प्रभावशीलता और प्रदर्शन को समझने के लिए कुछ प्रमुख पैरामीटर महत्वपूर्ण होते हैं। ये पैरामीटर प्रणाली की क्षमता, दक्षता, और समग्र प्रदर्शन को परिभाषित करते हैं।
1. क्षमता (Capacity)
- ऊर्जा क्षमता (Energy Capacity): यह सबसे महत्वपूर्ण मापदंड है, जिसे किलोवाट-घंटे (kWh) या मेगावाट-घंटे (MWh) में मापा जाता है। यह बताती है कि बैटरी कितनी ऊर्जा स्टोर कर सकती है। उदाहरण के लिए, एक 100 kWh की बैटरी 100 kW के लोड को एक घंटे तक चला सकती है।
- शक्ति क्षमता (Power Capacity): इसे किलोवाट (kW) या मेगावाट (MW) में मापा जाता है। यह बताती है कि BESS किसी भी समय कितनी अधिकतम शक्ति (power) प्रदान या अवशोषित कर सकता है। यह पैरामीटर बताता है कि BESS कितनी तेजी से ऊर्जा को छोड़ सकता है या ग्रहण कर सकता है।
2. दक्षता (Efficiency)
- राउंड-ट्रिप दक्षता (Round-Trip Efficiency): यह पैरामीटर यह बताता है कि बैटरी को चार्ज और डिस्चार्ज करने में कितनी ऊर्जा का नुकसान होता है। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है। यदि एक BESS की राउंड-ट्रिप दक्षता 90% है, तो इसका मतलब है कि 100 kWh ऊर्जा डालने पर, आप केवल 90 kWh ऊर्जा वापस निकाल सकते हैं। यह दक्षता जितनी अधिक होगी, प्रणाली उतनी ही बेहतर होगी।
3. जीवनकाल (Lifetime)
- चक्र जीवन (Cycle Life): यह बताता है कि बैटरी अपने जीवनकाल में कितनी बार पूर्ण रूप से चार्ज और डिस्चार्ज की जा सकती है, इससे पहले कि उसकी क्षमता एक निश्चित स्तर से कम हो जाए (जैसे, 80% तक)। यह पैरामीटर बैटरी की दीर्घायु का एक अच्छा संकेतक है।
- कैलेंडर जीवन (Calendar Life): यह बताता है कि बैटरी कितनी देर तक अपनी क्षमता को बनाए रखती है, भले ही उसका उपयोग न किया जाए। यह समय के साथ बैटरी की प्राकृतिक गिरावट को दर्शाता है।
4. चार्ज और डिस्चार्ज दरें (Charge and Discharge Rates)
- C-दर (C-rate): यह मापदंड बताता है कि बैटरी कितनी तेजी से चार्ज या डिस्चार्ज हो रही है, इसे बैटरी की कुल क्षमता के सापेक्ष मापा जाता है। 1C की दर का मतलब है कि बैटरी एक घंटे में पूरी तरह से चार्ज या डिस्चार्ज हो सकती है, जबकि 0.5C का मतलब है कि इसमें दो घंटे लगेंगे।
5. चार्ज की स्थिति (State of Charge - SOC)
- SOC: यह बताता है कि बैटरी में कितनी ऊर्जा बची है, इसे 0% (पूरी तरह से खाली) से 100% (पूरी तरह से चार्ज) के बीच प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
- स्वास्थ्य की स्थिति (State of Health - SOH): यह बताता है कि बैटरी का प्रदर्शन उसकी मूल स्थिति की तुलना में कैसा है। एक नई बैटरी का SOH 100% होता है, जो समय के साथ कम होता जाता है।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) के अनुप्रयोग बहुत व्यापक हैं और ये बिजली ग्रिड, नवीकरणीय ऊर्जा, और उपभोक्ता दोनों स्तरों पर क्रांति ला रहे हैं। इसके मुख्य अनुप्रयोग इस प्रकार हैं:
1. ग्रिड-स्तरीय अनुप्रयोग
- ग्रिड स्थिरीकरण (Grid Stabilization): बिजली ग्रिड में मांग और आपूर्ति के बीच हमेशा उतार-चढ़ाव होता रहता है। BESS इस अस्थिरता को कम करने में मदद करता है। जब ग्रिड में अचानक बिजली की मांग बढ़ जाती है, तो BESS तुरंत संग्रहीत ऊर्जा जारी करता है, और जब मांग कम होती है, तो यह अतिरिक्त ऊर्जा को अवशोषित करता है। यह ग्रिड की फ्रीक्वेंसी (frequency) और वोल्टेज (voltage) को स्थिर रखता है।
- पीक शेविंग और लोड शेफ्टिंग (Peak Shaving & Load Shifting): बिजली की मांग दिन के कुछ खास समय (जैसे शाम को) चरम पर होती है, जिसे "पीक डिमांड" कहते हैं। इस दौरान बिजली महंगी होती है। BESS कम मांग वाले समय (जैसे रात को) बिजली को स्टोर करता है और पीक समय में उसे जारी करता है। इससे बिजली का बिल कम होता है और ग्रिड पर दबाव भी घटता है।
- ब्लैक स्टार्ट (Black Start): बिजली ग्रिड के पूरी तरह से फेल हो जाने पर, BESS एक शुरुआती पावर सोर्स के रूप में काम कर सकता है, जिससे ग्रिड को फिर से शुरू करने में मदद मिलती है।
2. नवीकरणीय ऊर्जा के साथ एकीकरण
- नवीकरणीय ऊर्जा का स्थिरीकरण: सौर और पवन ऊर्जा का उत्पादन अनियमित होता है। BESS सौर पैनलों से दिन में उत्पन्न अतिरिक्त ऊर्जा को स्टोर करता है, ताकि रात में या बादल छाए रहने पर भी बिजली उपलब्ध रहे। इसी तरह, यह पवन ऊर्जा की अनियमितता को भी कम करता है, जिससे नवीकरणीय ऊर्जा चौबीसों घंटे विश्वसनीय बन जाती है।
3. वाणिज्यिक और औद्योगिक अनुप्रयोग (C&I)
- मांग शुल्क प्रबंधन (Demand Charge Management): कई औद्योगिक और व्यावसायिक ग्राहकों को उनकी उच्चतम बिजली मांग के आधार पर अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता है। BESS इस पीक डिमांड को कम करता है, जिससे उनके बिजली के बिल में काफी बचत होती है।
- बैकअप पावर: बिजली गुल होने की स्थिति में, BESS एक विश्वसनीय बैकअप पावर स्रोत के रूप में काम करता है, जिससे डेटा केंद्रों, अस्पतालों और अन्य महत्वपूर्ण सुविधाओं में काम बिना रुकावट के जारी रहता है।
4. आवासीय अनुप्रयोग
- सोलर स्टोरेज: आवासीय उपभोक्ता अपने घरों की छतों पर लगे सौर पैनलों से उत्पन्न अतिरिक्त बिजली को BESS में स्टोर कर सकते हैं। इस संग्रहीत ऊर्जा का उपयोग रात में या बिजली गुल होने पर किया जा सकता है। यह उपयोगकर्ताओं को ग्रिड पर कम निर्भर बनाता है और बिजली के बिल को काफी कम करता है।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) के कई महत्वपूर्ण फायदे हैं जो इसे आधुनिक ऊर्जा पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण तकनीक बनाते हैं। ये लाभ आर्थिक, पर्यावरणीय और तकनीकी, तीनों स्तरों पर देखे जा सकते हैं:
1. ग्रिड स्थिरता और विश्वसनीयता में सुधार
- लोड प्रबंधन: BESS बिजली ग्रिड में मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने में मदद करता है। यह बिजली की मांग के चरम समय (पीक आवर्स) में संग्रहीत ऊर्जा को जारी करता है, जिससे ग्रिड पर दबाव कम होता है और बिजली कटौती की संभावना घटती है।
- आवृत्ति और वोल्टेज विनियमन: यह ग्रिड में आवृत्ति (frequency) और वोल्टेज को स्थिर रखने में सहायक है। यह ग्रिड में होने वाले छोटे उतार-चढ़ाव को तुरंत संतुलित करता है, जिससे बिजली की गुणवत्ता बेहतर होती है।
- आपातकालीन बैकअप: बिजली गुल होने की स्थिति में, BESS एक विश्वसनीय बैकअप पावर स्रोत के रूप में काम कर सकता है, जिससे महत्वपूर्ण सुविधाओं जैसे अस्पतालों और डेटा केंद्रों में काम बिना रुके चलता रहता है।
2. आर्थिक लाभ
- लागत में कमी: BESS उपयोगकर्ताओं को कम मांग वाले समय (जब बिजली सस्ती होती है) में ऊर्जा स्टोर करने और पीक मांग वाले समय में उसका उपयोग करने की अनुमति देता है, जिससे बिजली के बिलों में काफी कमी आती है।
- मांग शुल्क में कमी: वाणिज्यिक और औद्योगिक ग्राहकों के लिए, BESS पीक डिमांड को कम करके मांग शुल्क (demand charges) से बचाता है, जो उनके मासिक बिजली बिल का एक बड़ा हिस्सा होता है।
3. पर्यावरणीय लाभ
- अक्षय ऊर्जा का एकीकरण: BESS सौर और पवन ऊर्जा जैसे अनिरंतर नवीकरणीय स्रोतों से उत्पन्न अतिरिक्त ऊर्जा को स्टोर करता है, जिससे इन स्रोतों का उपयोग चौबीसों घंटे किया जा सके। यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करता है और कार्बन उत्सर्जन को घटाता है।
- ग्रीनहाउस गैसों में कमी: जीवाश्म ईंधन से चलने वाले पावर प्लांट पर निर्भरता कम करके, BESS ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने में योगदान देता है, जो जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
4. परिचालन दक्षता में सुधार
- बिजली की गुणवत्ता में सुधार: BESS ग्रिड पर लोड को स्थिर रखता है, जिससे बिजली की गुणवत्ता में सुधार होता है और उपकरण बेहतर तरीके से काम करते हैं।
- लचीलापन: BESS को विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोगों के लिए अनुकूलित किया जा सकता है, चाहे वह ग्रिड-स्तरीय उपयोग हो, औद्योगिक या आवासीय। यह ऊर्जा प्रणाली को अधिक लचीला और अनुकूलनीय बनाता है।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) के कई फायदे हैं, लेकिन इसके कुछ नुकसान और चुनौतियाँ भी हैं जिन पर ध्यान देना ज़रूरी है।
1. लागत (Cost)
- उच्च प्रारंभिक निवेश: BESS को स्थापित करने का प्रारंभिक खर्च बहुत अधिक होता है, खासकर लिथियम-आयन बैटरियों के लिए। इस लागत में बैटरी पैक, पावर रूपांतरण प्रणाली (PCS), और ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली (EMS) सभी शामिल होते हैं।
- बैटरी बदलने की लागत: बैटरी का जीवनकाल सीमित होता है (आमतौर पर 10-15 साल), जिसके बाद उन्हें बदलना पड़ता है। यह अतिरिक्त लागत लंबी अवधि में कुल स्वामित्व लागत (Total Cost of Ownership) को बढ़ा देती है।
2. सुरक्षा जोखिम (Safety Risks)
- थर्मल रनवे (Thermal Runaway): लिथियम-आयन बैटरियों में ओवरचार्जिंग, यांत्रिक क्षति या दोषपूर्ण निर्माण के कारण थर्मल रनवे का जोखिम होता है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें बैटरी का तापमान अनियंत्रित रूप से बढ़ता है, जिससे आग लग सकती है। हालांकि, आधुनिक बैटरी प्रबंधन प्रणालियाँ (BMS) इस जोखिम को कम करती हैं, लेकिन यह पूरी तरह से समाप्त नहीं होता।
- विषाक्त पदार्थ: कुछ बैटरी प्रौद्योगिकियाँ (जैसे लेड-एसिड) में जहरीले पदार्थ होते हैं, जिससे उनके निर्माण और निपटान में पर्यावरणीय जोखिम होते हैं।
3. सीमित जीवनकाल (Limited Lifespan)
- चक्र जीवन (Cycle Life): BESS में उपयोग की जाने वाली बैटरियों का जीवनकाल सीमित होता है, जिसे चार्ज और डिस्चार्ज साइकिलों की संख्या से मापा जाता है। हर बार जब बैटरी चार्ज और डिस्चार्ज होती है, तो उसकी कुल क्षमता थोड़ी कम हो जाती है। समय के साथ, बैटरी का प्रदर्शन घटता जाता है।
- कैलेंडर जीवन (Calendar Life): बैटरियाँ समय के साथ स्वाभाविक रूप से खराब होती हैं, भले ही उनका उपयोग न किया जाए। तापमान, आर्द्रता, और भंडारण की स्थिति भी उनके जीवनकाल को प्रभावित करती है।
4. परिचालन सीमाएँ (Operational Limitations)
- तापमान संवेदनशीलता: बैटरियाँ, विशेष रूप से लिथियम-आयन, तापमान के प्रति संवेदनशील होती हैं। अत्यधिक गर्मी या ठंड उनके प्रदर्शन और जीवनकाल को प्रभावित कर सकती है। उन्हें एक नियंत्रित तापमान रेंज में रखने के लिए थर्मल प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता होती है, जो ऊर्जा की खपत करती है।
- ऊर्जा हानि (Energy Loss): BESS की राउंड-ट्रिप दक्षता 100% नहीं होती। चार्जिंग और डिस्चार्जिंग के दौरान कुछ ऊर्जा गर्मी के रूप में नष्ट हो जाती है। यह ऊर्जा हानि प्रणाली की कुल दक्षता को कम करती है।
5. पर्यावरण और निपटान (Environmental & Disposal)
- कच्चे माल: लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे दुर्लभ खनिजों का खनन पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दे पैदा करता है।
- बैटरी का निपटान: इस्तेमाल की गई बैटरियों का निपटान एक बड़ी चुनौती है। यदि उन्हें ठीक से रीसायकल नहीं किया जाता है, तो उनमें मौजूद रसायन मिट्टी और जल स्रोतों को दूषित कर सकते हैं।
बैटरी प्रबंधन प्रणाली (BMS) एक बुद्धिमान इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है जो रिचार्जेबल बैटरियों की सुरक्षा, दक्षता और जीवनकाल सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन की गई है। यह एक तरह से बैटरी पैक के "मस्तिष्क" की तरह काम करती है, जो उसके हर पहलू की निगरानी और प्रबंधन करती है।
BMS के मुख्य कार्य इस प्रकार हैं:
1. निगरानी (Monitoring)
BMS का सबसे प्राथमिक कार्य बैटरी के महत्वपूर्ण मापदंडों की वास्तविक समय में निगरानी करना है। यह सुनिश्चित करता है कि बैटरी सुरक्षित ऑपरेटिंग क्षेत्र (Safe Operating Area - SOA) के भीतर काम करे।
- वोल्टेज: यह प्रत्येक व्यक्तिगत सेल के साथ-साथ पूरे बैटरी पैक के वोल्टेज को मापता है। यह ओवरचार्जिंग (अधिक वोल्टेज) और ओवर-डिस्चार्जिंग (कम वोल्टेज) को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है।
- करंट: यह बैटरी में और बाहर जाने वाले करंट की निगरानी करता है ताकि ओवरकरंट से बचा जा सके, जो बैटरी को गर्म कर सकता है और नुकसान पहुंचा सकता है।
- तापमान: यह बैटरी पैक के तापमान को ट्रैक करता है। अत्यधिक गर्मी या ठंड दोनों ही बैटरी के प्रदर्शन और जीवनकाल को कम कर सकते हैं।
2. सुरक्षा (Protection)
BMS का एक और महत्वपूर्ण कार्य बैटरी को संभावित क्षति से बचाना है। यह निगरानी से प्राप्त डेटा का उपयोग करके सुरक्षा प्रोटोकॉल को सक्रिय करता है।
- ओवरचार्ज और ओवर-डिस्चार्ज सुरक्षा: जब कोई सेल एक निर्धारित वोल्टेज सीमा से अधिक या कम हो जाता है, तो BMS चार्जिंग या डिस्चार्जिंग प्रक्रिया को रोक देता है ताकि सेल को नुकसान न पहुँचे।
- शॉर्ट सर्किट सुरक्षा: यह शॉर्ट सर्किट होने पर बिजली के प्रवाह को तुरंत काट देता है, जिससे आग लगने या विस्फोट होने का जोखिम कम होता है।
- तापमान नियंत्रण: यह अत्यधिक तापमान की स्थिति में कूलिंग (शीतलन) या हीटिंग (तापमान वृद्धि) सिस्टम को सक्रिय करता है ताकि बैटरी सुरक्षित तापमान रेंज में रहे।
3. सेल संतुलन (Cell Balancing)
बैटरी पैक में कई सेल होते हैं, और ये सेल निर्माण या उपयोग के कारण थोड़े अलग होते हैं। समय के साथ, कुछ सेल दूसरों की तुलना में अधिक चार्ज या डिस्चार्ज हो जाते हैं, जिससे पूरे पैक की क्षमता कम हो जाती है।
- कार्य: BMS सेल संतुलन का कार्य करता है। यह सबसे अधिक चार्ज वाले सेल से ऊर्जा को हटाकर कम चार्ज वाले सेल में भेजता है (सक्रिय संतुलन) या अतिरिक्त ऊर्जा को गर्मी के रूप में नष्ट कर देता है (निष्क्रिय संतुलन), ताकि सभी सेल एक समान चार्ज स्तर पर आ जाएं। इससे बैटरी का कुल जीवनकाल बढ़ता है।
4. स्थिति का अनुमान (State Estimation)
BMS बैटरी की वर्तमान स्थिति का सटीक अनुमान लगाने के लिए जटिल एल्गोरिदम का उपयोग करता है।
- चार्ज की स्थिति (State of Charge - SOC): यह बताता है कि बैटरी में कितनी ऊर्जा बची है, इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है (उदाहरण के लिए, 50% चार्ज)।
- स्वास्थ्य की स्थिति (State of Health - SOH): यह बताता है कि बैटरी का समग्र स्वास्थ्य कैसा है, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बैटरी अपनी मूल क्षमता का कितना प्रतिशत उपयोग कर सकती है।
ऊर्जा भंडारण प्रणाली (Energy Storage System - ESS) को विभिन्न विन्यासों (configurations) में स्थापित किया जा सकता है, जो उनके उपयोग और आवश्यकता पर निर्भर करते हैं। ये विन्यास इस बात पर आधारित होते हैं कि बैटरी सिस्टम को ग्रिड, लोड और अन्य ऊर्जा स्रोतों से कैसे जोड़ा जाता है।
1. ग्रिड-स्तरीय विन्यास (Grid-Level Configuration)
इस विन्यास में, एक बड़ा BESS सीधे ट्रांसमिशन या डिस्ट्रीब्यूशन ग्रिड से जुड़ा होता है। इसका मुख्य उद्देश्य पूरे ग्रिड को स्थिरता और सहायक सेवाएँ प्रदान करना होता है।
- अनुप्रयोग: ग्रिड स्थिरीकरण, आवृत्ति विनियमन (frequency regulation), और पीक शेविंग।
- विशेषता: ये प्रणालियाँ बहुत बड़े पैमाने पर होती हैं (मेगावाट से लेकर सैकड़ों मेगावाट तक) और इनका नियंत्रण ग्रिड ऑपरेटरों द्वारा किया जाता है।
2. ग्राहक-स्तरीय विन्यास (Customer-Level Configuration)
यह विन्यास आवासीय, वाणिज्यिक और औद्योगिक (C&I) ग्राहकों द्वारा अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे दो मुख्य तरीकों से जोड़ा जा सकता है:
a) एसी-युग्मित विन्यास (AC-Coupled Configuration)
- परिभाषा: इस विन्यास में, सौर ऊर्जा प्रणाली और BESS दोनों का अपना अलग-अलग इन्वर्टर होता है। सौर पैनल से उत्पन्न डीसी बिजली को पहले सौर इन्वर्टर द्वारा एसी में बदला जाता है, फिर या तो इसका उपयोग किया जाता है या इसे एक अलग बैटरी इन्वर्टर के माध्यम से फिर से डीसी में बदलकर बैटरी में स्टोर किया जाता है।
- फायदे: यह मौजूदा सौर ऊर्जा प्रणाली में BESS जोड़ने के लिए आसान है, और यह ग्रिड से सीधे चार्ज या डिस्चार्ज हो सकता है।
- नुकसान: ऊर्जा रूपांतरण (DC-AC-DC) की दोहरी प्रक्रिया के कारण कुछ ऊर्जा की हानि होती है।
b) डीसी-युग्मित विन्यास (DC-Coupled Configuration)
- परिभाषा: इस विन्यास में, सौर पैनल और बैटरी दोनों एक ही हाइब्रिड इन्वर्टर से जुड़े होते हैं। सौर पैनल से उत्पन्न डीसी बिजली को सीधे बैटरी में भेजा जा सकता है, जिससे डीसी से एसी रूपांतरण की आवश्यकता नहीं होती।
- फायदे: ऊर्जा दक्षता अधिक होती है क्योंकि केवल एक रूपांतरण प्रक्रिया (डीसी से एसी) की आवश्यकता होती है जब ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। यह अक्सर नए सौर + स्टोरेज सिस्टम के लिए एक अधिक कुशल विकल्प होता है।
- नुकसान: इसे मौजूदा सौर प्रणाली के साथ एकीकृत करना अधिक जटिल हो सकता है।
3. हाइब्रिड ऊर्जा भंडारण प्रणाली (Hybrid Energy Storage Systems - HESS)
इस विन्यास में, दो या दो से अधिक अलग-अलग ऊर्जा भंडारण प्रौद्योगिकियों को एक साथ जोड़ा जाता है।
- उद्देश्य: प्रत्येक तकनीक की सीमाओं को दूर करना और समग्र प्रदर्शन में सुधार करना।
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उदाहरण:
- बैटरी + सुपरकैपेसिटर: बैटरी धीमी गति से ऊर्जा प्रदान करती है, जबकि सुपरकैपेसिटर बहुत तेजी से और कम समय के लिए उच्च शक्ति प्रदान कर सकते हैं। यह उन अनुप्रयोगों के लिए आदर्श है जहाँ बिजली की मांग में अचानक उतार-चढ़ाव होता है (जैसे इलेक्ट्रिक वाहन)।
- बैटरी + फ्लाईव्हील: फ्लाईव्हील त्वरित प्रतिक्रिया प्रदान करते हैं जबकि बैटरियाँ लंबी अवधि के लिए ऊर्जा भंडारण प्रदान करती हैं।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) का नवीकरणीय ऊर्जा के साथ एकीकरण, आधुनिक ऊर्जा प्रणाली के सबसे महत्वपूर्ण और परिवर्तनकारी अनुप्रयोगों में से एक है। यह एकीकरण BESS के मुख्य उद्देश्यों में से एक है:
नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को विश्वसनीय और चौबीसों घंटे उपलब्ध कराना।
क्यों ज़रूरी है एकीकरण?
सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोत प्रकृति पर निर्भर करते हैं, जिससे उनका उत्पादन अनियमित और अप्रत्याशित होता है।
- सौर ऊर्जा केवल दिन के समय, और साफ आसमान में ही उपलब्ध होती है। रात में या बादलों वाले दिनों में इसका उत्पादन बंद हो जाता है।
- पवन ऊर्जा केवल तब उत्पन्न होती है जब हवा चलती है, जो हमेशा एक समान नहीं होती।
यह अनियमितता ग्रिड के लिए एक चुनौती पेश करती है, क्योंकि बिजली की मांग लगातार बनी रहती है, भले ही नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन कम हो। BESS इस समस्या को हल करने के लिए एक आदर्श समाधान प्रदान करता है।
एकीकरण कैसे काम करता है?
BESS दो प्रमुख तरीकों से नवीकरणीय ऊर्जा के साथ एकीकृत होता है:
अतिरिक्त ऊर्जा का भंडारण (Storing Excess Energy): जब सौर पैनल या पवन टर्बाइन अपनी चरम क्षमता पर काम कर रहे होते हैं और बिजली का उत्पादन मांग से अधिक होता है, तो BESS अतिरिक्त ऊर्जा को स्टोर कर लेता है। यह ऊर्जा बर्बाद होने से बचती है और ग्रिड को ओवरलोड होने से भी बचाती है।
मांग के समय आपूर्ति (Supplying during Demand): जब नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन कम होता है (जैसे, सूर्यास्त के बाद या जब हवा नहीं चल रही हो), BESS अपनी संग्रहीत ऊर्जा को ग्रिड में जारी करता है। इससे ग्रिड को लगातार बिजली मिलती रहती है, और जीवाश्म ईंधन से चलने वाले पावर प्लांट पर निर्भरता कम होती है।
एकीकरण के लाभ
- विश्वसनीयता में सुधार: BESS नवीकरणीय ऊर्जा को विश्वसनीय और डिस्पैचेबल (जब भी ज़रूरत हो, उपलब्ध) बनाता है, जिससे यह पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का प्रभावी विकल्प बन जाता है।
- ग्रिड स्थिरीकरण: यह ग्रिड में अचानक होने वाले बिजली के उतार-चढ़ाव को संतुलित करता है, जो नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के कारण हो सकते हैं।
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कमी: BESS के साथ, नवीकरणीय ऊर्जा को अधिक कुशलता से उपयोग किया जा सकता है, जिससे कोयले या गैस से चलने वाले पावर प्लांट पर निर्भरता घटती है।
- ऊर्जा सुरक्षा: यह ऊर्जा की उपलब्धता को बढ़ाता है और बाहरी कारकों पर निर्भरता को कम करता है, जिससे देश की ऊर्जा सुरक्षा मजबूत होती है।
BESS का आकार, जिसे शक्ति (power) और ऊर्जा (energy) क्षमता के संदर्भ में मापा जाता है, एक जटिल प्रक्रिया है जो कई कारकों पर निर्भर करती है। सही आकार का निर्धारण करना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रणाली की प्रभावशीलता, लागत और आर्थिक व्यवहार्यता को सीधे प्रभावित करता है।
प्रमुख पैरामीटर
BESS का आकार निर्धारित करने के लिए दो मुख्य मापदंडों को ध्यान में रखा जाता है:
- शक्ति (Power) क्षमता: यह बताती है कि BESS किसी भी समय कितनी अधिकतम शक्ति (kW या MW) प्रदान या अवशोषित कर सकता है। यह पैरामीटर उन अनुप्रयोगों के लिए महत्वपूर्ण है जिनमें तेजी से प्रतिक्रिया की आवश्यकता होती है, जैसे कि ग्रिड स्थिरीकरण या पीक शेविंग।
- ऊर्जा (Energy) क्षमता: यह बताती है कि BESS कितनी ऊर्जा (kWh या MWh) को स्टोर कर सकता है। यह पैरामीटर उन अनुप्रयोगों के लिए महत्वपूर्ण है जहां लंबी अवधि के लिए ऊर्जा भंडारण की आवश्यकता होती है, जैसे कि नवीकरणीय ऊर्जा को स्टोर करना ताकि रात में उसका उपयोग किया जा सके।
इन दोनों मापदंडों का अनुपात भंडारण अवधि (storage duration) को निर्धारित करता है। उदाहरण के लिए, एक 1 MW / 4 MWh BESS 1 MW की शक्ति पर 4 घंटे तक ऊर्जा प्रदान कर सकता है।
आकार को प्रभावित करने वाले कारक
BESS का आकार तय करते समय निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है:
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अनुप्रयोग (Application): BESS का उपयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाएगा, यह सबसे महत्वपूर्ण कारक है।
- पीक शेविंग: इसके लिए उस अधिकतम मांग (peak demand) को जानना ज़रूरी है जिसे BESS को कम करना है, और साथ ही यह भी कि यह कितने समय तक चलेगा।
- नवीकरणीय ऊर्जा का एकीकरण: यहाँ, सौर या पवन ऊर्जा के दैनिक उत्पादन प्रोफ़ाइल और लोड की मांग को समझना ज़रूरी है ताकि यह तय किया जा सके कि कितनी अतिरिक्त ऊर्जा स्टोर करनी है।
- ग्रिड स्थिरीकरण: इस तरह के अनुप्रयोगों के लिए, कम ऊर्जा क्षमता (जैसे 15 मिनट से 1 घंटे तक) लेकिन उच्च शक्ति क्षमता वाले BESS की आवश्यकता होती है।
- मांग प्रोफ़ाइल (Load Profile): ग्राहक की दैनिक, साप्ताहिक और मौसमी ऊर्जा खपत का विश्लेषण करना बहुत ज़रूरी है। इसमें पीक और ऑफ-पीक समय, बिजली की लागत और कुल ऊर्जा खपत शामिल होती है।
- आर्थिक व्यवहार्यता (Economic Viability): BESS का आकार इस तरह से निर्धारित किया जाता है कि वह अधिकतम आर्थिक लाभ प्रदान करे। इसमें पूंजीगत लागत, परिचालन लागत, बैटरी का जीवनकाल और राजस्व का विश्लेषण शामिल है।
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बैटरी की विशेषताएँ:
- राउंड-ट्रिप दक्षता (Round-Trip Efficiency): दक्षता में होने वाले नुकसान को ध्यान में रखकर अतिरिक्त क्षमता को शामिल किया जाता है।
- डिस्चार्ज की गहराई (Depth of Discharge - DoD): बैटरी को उसके अधिकतम प्रदर्शन और जीवनकाल के लिए कितनी गहराई तक डिस्चार्ज किया जा सकता है, यह आकार को प्रभावित करता है।
BESS का सटीक आकार निर्धारित करने के लिए आमतौर पर उन्नत मॉडलिंग और सिमुलेशन सॉफ़्टवेयर का उपयोग किया जाता है जो सभी प्रासंगिक डेटा को ध्यान में रखते हैं।
BESS स्थापनाओं को मुख्य रूप से उनके स्थान और उपयोग के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। प्रमुख प्रकार हैं फ्रंट-ऑफ-द-मीटर (Front-of-the-Meter - FTM) और बिहाइंड-द-मीटर (Behind-the-Meter - BTM)।
1. फ्रंट-ऑफ-द-मीटर (FTM) स्थापनाएँ
FTM BESS स्थापनाएँ वे होती हैं जो सीधे ट्रांसमिशन या डिस्ट्रीब्यूशन ग्रिड से जुड़ी होती हैं, यानी वे बिजली के मीटर से "पहले" स्थापित होती हैं। ये प्रणालियाँ आमतौर पर बहुत बड़े पैमाने पर होती हैं (मेगावाट-घंटे में मापी जाती हैं) और ग्रिड-स्तरीय उपयोगों के लिए डिज़ाइन की जाती हैं।
- स्थान: ये बिजली सबस्टेशनों, सौर ऊर्जा फार्मों या पवन फार्मों के पास स्थित हो सकती हैं।
- उद्देश्य: इनका मुख्य उद्देश्य पूरे ग्रिड को स्थिरता और सहायक सेवाएँ प्रदान करना है। इनमें आवृत्ति विनियमन, वोल्टेज नियंत्रण, और पीक शेविंग शामिल हैं।
- मालिक: ये आम तौर पर यूटिलिटी कंपनियों, स्वतंत्र बिजली उत्पादकों या ग्रिड ऑपरेटरों के स्वामित्व में होती हैं।
2. बिहाइंड-द-मीटर (BTM) स्थापनाएँ
BTM BESS स्थापनाएँ वे होती हैं जो उपभोक्ता के बिजली मीटर के बाद स्थापित होती हैं। ये प्रणालियाँ सीधे उपभोक्ता के परिसर में ऊर्जा का प्रबंधन करती हैं, जैसे कि घर, वाणिज्यिक भवन, या औद्योगिक इकाई।
- स्थान: ये घरों की छतों, इमारतों के तहखानों, या औद्योगिक सुविधाओं में स्थापित की जाती हैं।
- उद्देश्य: इनका उपयोग उपभोक्ता की ऊर्जा लागत कम करने, बैकअप पावर प्रदान करने, और सौर ऊर्जा का स्व-उपभोग बढ़ाने के लिए किया जाता है।
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प्रकार: इन्हें आगे तीन उप-प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है:
- आवासीय BESS: घरों के लिए छोटे पैमाने की प्रणालियाँ (किलोवाट-घंटे में)। इनका उपयोग सौर ऊर्जा को स्टोर करने और रात में उपयोग करने के लिए किया जाता है।
- वाणिज्यिक और औद्योगिक (C&I) BESS: बड़ी प्रणालियाँ (सैकड़ों kWh से कई MWh तक) जो व्यवसायों और कारखानों में पीक मांग को प्रबंधित करने और मांग शुल्क (demand charges) को कम करने के लिए उपयोग की जाती हैं।
- माइक्रोग्रिड BESS: ये प्रणालियाँ ग्रिड से स्वतंत्र रूप से काम कर सकती हैं, जिससे वे दूरदराज के क्षेत्रों या उन स्थानों के लिए आदर्श हैं जहां ग्रिड कनेक्शन अविश्वसनीय है।
दोनों प्रकार की स्थापनाएँ,
FTM और BTM, ऊर्जा प्रणाली को अधिक लचीला और कुशल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। FTM बड़े पैमाने पर ग्रिड को लाभ पहुँचाता है, जबकि BTM उपभोक्ताओं को अपनी ऊर्जा का प्रबंधन करने की शक्ति देता है।
जब बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (BESS) की बात आती है, तो "मीटर के सामने" (Front-of-the-Meter - FTM) का मतलब होता है कि BESS को सीधे ट्रांसमिशन या डिस्ट्रीब्यूशन ग्रिड से जोड़ा गया है।
यह नाम इस तथ्य से आया है कि ये प्रणालियाँ बिजली के मीटर से "पहले" स्थापित होती हैं, जो आम तौर पर उपभोक्ता के परिसर में होता है। FTM प्रणालियाँ उपभोक्ता की बजाय पूरे ग्रिड को लाभ पहुँचाने के लिए डिज़ाइन की गई हैं।
प्रमुख विशेषताएँ
- स्थान: ये BESS स्थापनाएँ आमतौर पर बिजली सबस्टेशनों, सौर ऊर्जा फार्मों, पवन फार्मों, या बिजली ग्रिड के महत्वपूर्ण बिंदुओं के पास स्थित होती हैं।
- पैमाना: ये बहुत बड़े पैमाने पर होती हैं, जिनकी क्षमता मेगावाट-घंटे (MWh) में मापी जाती है।
- मालिक: FTM प्रणालियों का स्वामित्व और संचालन आमतौर पर यूटिलिटी कंपनियों, ग्रिड ऑपरेटरों या बड़े स्वतंत्र बिजली उत्पादकों द्वारा किया जाता है।
मुख्य उद्देश्य और अनुप्रयोग
FTM BESS का प्राथमिक उद्देश्य ग्रिड की स्थिरता और विश्वसनीयता को बढ़ाना है। इसके कुछ प्रमुख अनुप्रयोग इस प्रकार हैं:
- ग्रिड स्थिरीकरण (Grid Stabilization): यह ग्रिड में अचानक होने वाले उतार-चढ़ाव (जैसे, आवृत्ति और वोल्टेज में बदलाव) को संतुलित करने में मदद करता है।
- पीक शेविंग (Peak Shaving): FTM BESS कम मांग वाले समय में अतिरिक्त बिजली को स्टोर करता है और पीक मांग के दौरान उसे जारी करता है, जिससे ग्रिड पर दबाव कम होता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा का एकीकरण: यह बड़े सौर और पवन फार्मों से उत्पन्न होने वाली अनियमित बिजली को अवशोषित करके ग्रिड को स्थिर रखता है।
- ब्लैक स्टार्ट (Black Start): बिजली ग्रिड के पूरी तरह से फेल होने पर, FTM BESS एक शुरुआती पावर सोर्स के रूप में काम कर सकता है, जिससे ग्रिड को फिर से शुरू करने में मदद मिलती है।
"मीटर के पीछे" (Behind-the-Meter - BTM) का मतलब उन बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (BESS) से है जो सीधे उपभोक्ता के बिजली मीटर के बाद स्थापित होती हैं। ये प्रणालियाँ सीधे उपभोक्ता के परिसर में ऊर्जा का प्रबंधन करती हैं, जैसे कि घर, वाणिज्यिक भवन, या औद्योगिक इकाई।
यह नाम इस तथ्य से आता है कि ये प्रणालियाँ उपभोक्ता के मीटर और उसके उपकरणों के बीच स्थापित होती हैं, जिससे वे ग्रिड से बिजली लेने या उसे वापस भेजने की बजाय, पहले उपभोक्ता की ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करती हैं।
प्रमुख विशेषताएँ
- स्थान: ये स्थापनाएँ घरों की छतों, इमारतों के तहखानों, या औद्योगिक सुविधाओं में की जाती हैं।
- पैमाना: ये FTM प्रणालियों की तुलना में छोटे पैमाने की होती हैं, जिनकी क्षमता किलोवाट-घंटे (kWh) से लेकर मेगावाट-घंटे (MWh) तक हो सकती है।
- मालिक: ये उपभोक्ता (जैसे घर का मालिक, व्यवसाय या औद्योगिक इकाई) के स्वामित्व में होती हैं।
मुख्य उद्देश्य और अनुप्रयोग
BTM BESS का प्राथमिक उद्देश्य उपभोक्ता को आर्थिक और परिचालन लाभ प्रदान करना है। इसके कुछ प्रमुख अनुप्रयोग इस प्रकार हैं:
- सौर ऊर्जा का स्व-उपभोग: आवासीय और वाणिज्यिक उपभोक्ता अपने सौर पैनलों से उत्पन्न अतिरिक्त बिजली को BESS में स्टोर कर सकते हैं और रात में या बादलों वाले दिनों में इसका उपयोग कर सकते हैं। इससे ग्रिड पर निर्भरता कम होती है।
- ऊर्जा लागत में कमी: BTM BESS कम बिजली दरों (ऑफ-पीक) के समय ऊर्जा को स्टोर करके और पीक डिमांड के समय उपयोग करके बिजली के बिल को कम करने में मदद करता है।
- मांग शुल्क प्रबंधन (Demand Charge Management): वाणिज्यिक और औद्योगिक ग्राहकों के लिए, BESS पीक डिमांड को कम करता है, जिससे उनके मासिक बिल में लगने वाले मांग शुल्क (demand charges) से बचा जा सकता है।
- आपातकालीन बैकअप: बिजली गुल होने पर, BESS घरों, व्यवसायों और महत्वपूर्ण सुविधाओं को निर्बाध बिजली प्रदान करता है।
FTM और BTM स्थापनाओं के बीच का अंतर उनके उद्देश्य और संचालन के पैमाने में निहित है। FTM पूरे ग्रिड को लाभ पहुँचाता है, जबकि BTM सीधे उपभोक्ता को लाभ पहुँचाता है।
एफटीपी और बीटीएम में अंतर समझने के लिए, मैं इनके बारे में और जानकारी ढूंढ सकता हूँ।
Ftm (Front-of-the-Meter) और Btm (Behind-the-Meter) बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के बीच मुख्य अंतर उनके स्थान, पैमाने, मालिक और उद्देश्य में होता है। दोनों ही ऊर्जा प्रणाली को अधिक कुशल और लचीला बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन अलग-अलग स्तरों पर।
मीटर के सामने (FTM) बैटरी ऊर्जा भंडारण
FTM प्रणालियाँ सीधे बिजली ग्रिड से जुड़ी होती हैं, यानी वे उपभोक्ता के बिजली मीटर से पहले स्थापित होती हैं। ये बड़े पैमाने की प्रणालियाँ होती हैं।
- स्थान: ये आमतौर पर बिजली सबस्टेशनों, सौर ऊर्जा फार्मों या पवन फार्मों के पास स्थित होती हैं।
- पैमाना: ये बहुत बड़े होते हैं, जिनकी क्षमता मेगावाट (MW) और मेगावाट-घंटे (MWh) में मापी जाती है।
- मालिक: इनका स्वामित्व और संचालन आमतौर पर यूटिलिटी कंपनियों या ग्रिड ऑपरेटरों द्वारा किया जाता है।
- उद्देश्य: इनका मुख्य उद्देश्य पूरे ग्रिड को स्थिरता और सहायक सेवाएँ प्रदान करना है। इनमें ग्रिड स्थिरीकरण, आवृत्ति विनियमन, और पीक शेविंग शामिल है।
मीटर के पीछे (BTM) बैटरी ऊर्जा भंडारण
BTM प्रणालियाँ उपभोक्ता के बिजली मीटर के बाद स्थापित होती हैं। ये सीधे उपभोक्ता के परिसर में ऊर्जा का प्रबंधन करती हैं, जैसे कि घर, वाणिज्यिक भवन, या औद्योगिक इकाई।
- स्थान: ये घरों, व्यवसायों या औद्योगिक इकाइयों के परिसर में स्थापित की जाती हैं।
- पैमाना: ये FTM की तुलना में छोटे होते हैं, जिनकी क्षमता किलोवाट (kW) और किलोवाट-घंटे (kWh) में मापी जाती है।
- मालिक: इनका स्वामित्व उपभोक्ता (जैसे घर का मालिक, व्यवसाय या औद्योगिक इकाई) के पास होता है।
- उद्देश्य: इनका मुख्य उद्देश्य उपभोक्ता को लाभ पहुँचाना है। इनमें ऊर्जा लागत कम करना, बैकअप पावर प्रदान करना, और सौर ऊर्जा का स्व-उपभोग बढ़ाना शामिल है।
प्रदर्शन सूचक, जिन्हें KPI (Key Performance Indicators) भी कहते हैं, बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) के प्रदर्शन, दक्षता और आर्थिक व्यवहार्यता का आकलन करने के लिए महत्वपूर्ण मापदंड हैं। ये संकेतक यह समझने में मदद करते हैं कि BESS कितनी कुशलता से काम कर रहा है और निवेश पर कितना रिटर्न दे रहा है।
प्रमुख प्रदर्शन सूचक इस प्रकार हैं:
1. दक्षता सूचक (Efficiency Indicators)
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राउंड-ट्रिप दक्षता (Round-Trip Efficiency - RTE): यह सबसे महत्वपूर्ण प्रदर्शन सूचक है। यह बताता है कि बैटरी में डाली गई ऊर्जा का कितना प्रतिशत चार्जिंग और डिस्चार्जिंग के बाद वापस मिल सकता है।
- RTE = (\frac{कुल निकाली गई ऊर्जा (kWh)}{कुल डाली गई ऊर्जा (kWh)}) \times 100\%
- एक उच्च RTE (आमतौर पर 85-95%) का मतलब है कि ऊर्जा का नुकसान कम हो रहा है।
- सहायक बिजली खपत (Auxiliary Power Consumption): यह BESS को ठंडा रखने, नियंत्रित करने और निगरानी करने के लिए आवश्यक बिजली को मापता है। यह खपत जितनी कम होगी, प्रणाली उतनी ही अधिक कुशल होगी।
2. जीवनकाल सूचक (Lifetime Indicators)
- चक्र जीवन (Cycle Life): यह बताता है कि बैटरी अपनी मूल क्षमता (जैसे 80% तक) खोने से पहले कितनी बार चार्ज और डिस्चार्ज की जा सकती है। यह BESS के जीवनकाल का एक प्रमुख संकेतक है।
- उदाहरण के लिए, एक BESS जिसका चक्र जीवन 6,000 साइकिल है, वह 6,000 बार पूरी तरह से चार्ज और डिस्चार्ज किया जा सकता है।
-
स्वास्थ्य की स्थिति (State of Health - SOH): यह बैटरी के वर्तमान प्रदर्शन को उसकी मूल क्षमता के सापेक्ष मापता है।
- SOH = (\frac{वर्तमान अधिकतम क्षमता}{मूल क्षमता}) \times 100\%
- एक नई बैटरी का SOH 100% होता है और समय के साथ यह घटता जाता है।
3. वित्तीय सूचक (Financial Indicators)
- निवेश पर वापसी (Return on Investment - ROI): यह बताता है कि BESS में निवेश से कितना वित्तीय लाभ मिल रहा है।
- ROI का अनुमान BESS द्वारा बचाए गए बिजली बिल और अन्य राजस्व (जैसे ग्रिड सेवाओं से) को स्थापना और परिचालन लागतों से तुलना करके लगाया जाता है।
- मूल्य प्रति kWh (Cost per kWh): यह BESS द्वारा संग्रहीत और वितरित की गई ऊर्जा की लागत को मापता है, जिसमें पूंजीगत लागत और परिचालन लागत शामिल होती है। यह जितना कम होगा, BESS उतना ही अधिक आर्थिक रूप से आकर्षक होगा।
4. परिचालन सूचक (Operational Indicators)
- प्रतिक्रिया समय (Response Time): यह बताता है कि BESS को बिजली की मांग में बदलाव पर कितनी तेजी से प्रतिक्रिया करने की आवश्यकता है। ग्रिड स्थिरीकरण जैसे अनुप्रयोगों के लिए त्वरित प्रतिक्रिया समय (मिलीसेकंड में) महत्वपूर्ण है।
- उपलब्धता (Availability): यह उस समय का प्रतिशत बताता है जब BESS परिचालन के लिए उपलब्ध होता है। उच्च उपलब्धता का मतलब है कि प्रणाली विश्वसनीय है और कम समय के लिए रखरखाव या खराबी के कारण बंद रहती है।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) में कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं जिन पर काबू पाना ज़रूरी है ताकि यह तकनीक और अधिक व्यापक रूप से अपनाई जा सके। ये चुनौतियाँ मुख्य रूप से लागत, सुरक्षा और परिचालन से संबंधित हैं।
1. उच्च लागत
- प्रारंभिक निवेश: BESS की स्थापना के लिए प्रारंभिक लागत बहुत अधिक होती है। इसमें बैटरियों के अलावा पावर रूपांतरण प्रणाली (PCS) और ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली (EMS) जैसी अन्य महंगी घटकों की लागत भी शामिल होती है।
- बैटरी बदलने की लागत: बैटरियों का जीवनकाल सीमित होता है (आमतौर पर 10-15 साल)। उनका जीवनकाल समाप्त होने के बाद, उन्हें बदलना पड़ता है, जो कुल स्वामित्व लागत (Total Cost of Ownership) को काफी बढ़ा देता है।
2. सुरक्षा जोखिम
- थर्मल रनवे: लिथियम-आयन बैटरियों में सबसे बड़ी सुरक्षा चुनौती थर्मल रनवे है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें बैटरी का तापमान अनियंत्रित रूप से बढ़ता है, जिससे आग लग सकती है या विस्फोट हो सकता है। यद्यपि आधुनिक बैटरी प्रबंधन प्रणालियाँ (BMS) इस जोखिम को कम करती हैं, लेकिन यह पूरी तरह से समाप्त नहीं होता है।
- विषाक्त पदार्थ: कुछ बैटरी प्रौद्योगिकियों (जैसे लेड-एसिड) में जहरीले पदार्थ होते हैं, जिससे उनके निर्माण, उपयोग और निपटान में पर्यावरणीय और स्वास्थ्य जोखिम होते हैं।
3. सीमित जीवनकाल और प्रदर्शन में गिरावट
- चक्र जीवन: हर बार जब बैटरी चार्ज और डिस्चार्ज होती है, तो उसकी कुल क्षमता थोड़ी कम हो जाती है। समय के साथ, बैटरी का प्रदर्शन घटता जाता है, जिससे वह कम ऊर्जा स्टोर कर पाती है।
- तापमान संवेदनशीलता: बैटरियाँ, विशेष रूप से लिथियम-आयन, तापमान के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं। अत्यधिक गर्मी या ठंड दोनों ही उनके प्रदर्शन और जीवनकाल को प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए, उन्हें एक नियंत्रित तापमान रेंज में रखने के लिए कूलिंग या हीटिंग सिस्टम की आवश्यकता होती है, जो ऊर्जा की खपत करती है।
4. पर्यावरण और निपटान संबंधी चुनौतियाँ
- कच्चे माल: लिथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे दुर्लभ खनिजों का खनन पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दे पैदा करता है। इन खनिजों की सीमित उपलब्धता भी एक दीर्घकालिक चिंता है।
- बैटरी का निपटान: इस्तेमाल की गई बैटरियों का सुरक्षित और प्रभावी ढंग से निपटान या पुनर्चक्रण (recycling) करना एक बड़ी चुनौती है। यदि उन्हें ठीक से प्रबंधित नहीं किया जाता है, तो उनमें मौजूद रसायन मिट्टी और जल स्रोतों को दूषित कर सकते हैं।
इन चुनौतियों के बावजूद,
बैटरी प्रौद्योगिकी में लगातार सुधार हो रहे हैं, जिससे लागत कम हो रही है, सुरक्षा बढ़ रही है और जीवनकाल लंबा हो रहा है।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) में सुरक्षा एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है, खासकर लिथियम-आयन बैटरियों के उपयोग के कारण। इन बैटरियों में थर्मल रनवे (thermal runaway) का जोखिम होता है, जो एक अनियंत्रित तापमान वृद्धि है जिससे आग लग सकती है। इस जोखिम को कम करने के लिए, BESS को कई सुरक्षा परतों के साथ डिज़ाइन किया जाता है।
प्रमुख सुरक्षा उपाय
- बैटरी प्रबंधन प्रणाली (BMS): यह सुरक्षा की पहली और सबसे महत्वपूर्ण परत है। BMS हर बैटरी सेल के वोल्टेज, करंट और तापमान की लगातार निगरानी करता है। यदि कोई भी पैरामीटर सुरक्षित सीमा से बाहर जाता है, तो BMS तुरंत चार्जिंग या डिस्चार्जिंग को रोक देता है ताकि थर्मल रनवे जैसी घटनाओं से बचा जा सके।
- थर्मल प्रबंधन प्रणाली (Thermal Management System): यह प्रणाली बैटरी को एक सुरक्षित ऑपरेटिंग तापमान रेंज में बनाए रखती है। इसमें कूलिंग (शीतलन) या हीटिंग (तापमान वृद्धि) सिस्टम शामिल हो सकते हैं, जो अत्यधिक गर्मी या ठंड को नियंत्रित करते हैं।
- आग का पता लगाना और दमन प्रणाली (Fire Detection and Suppression System): आधुनिक BESS में कई स्तरों पर आग का पता लगाने के लिए सेंसर (जैसे धुआं, गैस, और तापमान सेंसर) लगाए जाते हैं। आग लगने की स्थिति में, स्वचालित दमन प्रणालियाँ (जैसे निष्क्रिय गैस या पानी का स्प्रे) सक्रिय हो जाती हैं ताकि आग को फैलने से रोका जा सके।
- शारीरिक अलगाव (Physical Segregation): बड़ी BESS स्थापनाओं में, बैटरी मॉड्यूलों को एक-दूसरे से और अन्य उपकरणों से अलग रखा जाता है। इससे अगर एक मॉड्यूल में कोई समस्या होती है, तो वह अन्य मॉड्यूलों तक नहीं फैलती।
सुरक्षा मानक और दिशानिर्देश
BESS की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मानक हैं, जिनका पालन करना आवश्यक है:
- UL 9540: यह ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के लिए एक व्यापक सुरक्षा मानक है।
- NFPA 855: यह स्थिर ऊर्जा भंडारण प्रणालियों की सुरक्षित स्थापना के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है।
- UL 9540A: यह विशेष रूप से थर्मल रनवे के जोखिम का मूल्यांकन करने और आग के प्रसार को रोकने के लिए एक परीक्षण विधि है।
BESS में सुरक्षा एक बहुस्तरीय दृष्टिकोण है जो न केवल प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है बल्कि सख्त मानकों, नियमित रखरखाव और आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाओं के पालन पर भी निर्भर करता है।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) का भविष्य उज्ज्वल है, और कई रुझान इस तकनीक को और अधिक शक्तिशाली, किफायती और व्यापक बना रहे हैं। ये रुझान तकनीकी नवाचारों, सरकारी नीतियों और बढ़ती बाज़ार की मांग से प्रेरित हैं।
1. बैटरी प्रौद्योगिकी में नवाचार
- बेहतर लिथियम-आयन बैटरियाँ: लिथियम-आयन बैटरियाँ BESS बाज़ार पर हावी रहेंगी, लेकिन उनकी ऊर्जा घनत्व, जीवनकाल और सुरक्षा में लगातार सुधार होगा।
- ठोस-अवस्था (Solid-State) बैटरियाँ: ये बैटरियाँ लिथियम-आयन की तुलना में अधिक सुरक्षित मानी जाती हैं क्योंकि इनमें ज्वलनशील तरल इलेक्ट्रोलाइट नहीं होता। यह तकनीक भविष्य में BESS के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकती है, खासकर सुरक्षा-संवेदनशील अनुप्रयोगों में।
- सोडियम-आयन बैटरियाँ: सोडियम, लिथियम की तुलना में अधिक प्रचुर मात्रा में और सस्ता है, जिससे सोडियम-आयन बैटरियाँ लागत-प्रभावी हो सकती हैं। ये बैटरियाँ कम ऊर्जा घनत्व वाली होती हैं, लेकिन ग्रिड-स्तरीय भंडारण के लिए एक आकर्षक विकल्प बन सकती हैं।
2. लागत में कमी
- उत्पादन में वृद्धि: बैटरी निर्माण में बड़े पैमाने पर उत्पादन और तकनीकी प्रगति के कारण बैटरियों की लागत लगातार कम हो रही है। यह BESS को अधिक किफायती बना रहा है।
- सरकारी सब्सिडी: भारत सरकार जैसी कई सरकारें बैटरी ऊर्जा भंडारण को बढ़ावा देने के लिए वित्तीय सहायता (जैसे व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण - VGF) प्रदान कर रही हैं, जिससे बड़े पैमाने पर परियोजनाओं को स्थापित करना संभव हो रहा है।
3. हाइब्रिड और स्मार्ट सिस्टम
- हाइब्रिड सिस्टम: भविष्य में, BESS को अन्य ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर और पवन ऊर्जा) के साथ हाइब्रिड सिस्टम में एकीकृत किया जाएगा। इससे बिजली का उत्पादन अधिक विश्वसनीय और चौबीसों घंटे उपलब्ध होगा।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग: AI-संचालित ऊर्जा प्रबंधन प्रणाली (EMS) BESS के प्रदर्शन को अनुकूलित करेगी। ये प्रणालियाँ बिजली की मांग का अनुमान लगा सकती हैं, चार्जिंग और डिस्चार्जिंग को सबसे अधिक आर्थिक रूप से फायदेमंद समय पर नियंत्रित कर सकती हैं, और बैटरी के स्वास्थ्य का पूर्वानुमान लगा सकती हैं।
4. नीति और विनियमन में सुधार
- ऊर्जा भंडारण दायित्व (Energy Storage Obligation - ESO): भारत सहित कई देश बिजली वितरण कंपनियों के लिए ऊर्जा भंडारण क्षमता को बनाए रखने के लिए अनिवार्य नियम बना रहे हैं, जिससे BESS की मांग बढ़ेगी।
- समर्थक नीतियाँ: सरकारें नवीकरणीय ऊर्जा के लक्ष्यों को प्राप्त करने और ग्रिड को आधुनिक बनाने के लिए BESS को बढ़ावा दे रही हैं।
5. बढ़ते अनुप्रयोग
- इलेक्ट्रिक वाहन (EV) चार्जिंग: BESS ईवी चार्जिंग स्टेशनों के लिए एक महत्वपूर्ण घटक बन रहा है। यह ग्रिड से ऑफ-पीक समय में ऊर्जा स्टोर करता है और पीक चार्जिंग घंटों के दौरान ईवी को तेज़ चार्जिंग प्रदान करता है, जिससे ग्रिड पर दबाव कम होता है।
- माइक्रोग्रिड और ऑफ-ग्रिड समाधान: दूरदराज के क्षेत्रों या उन स्थानों के लिए जहाँ ग्रिड कनेक्शन अविश्वसनीय है, BESS माइक्रोग्रिड को शक्ति प्रदान करने और बिजली की आपूर्ति को विश्वसनीय बनाने के लिए आदर्श समाधान बन रहा है।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (BESS) की सुरक्षा और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिए, कई मानक और विनियम (standards and regulations) विकसित किए गए हैं। इनका उद्देश्य BESS के डिजाइन, स्थापना, संचालन और रखरखाव को नियंत्रित करना है ताकि जोखिमों को कम किया जा सके और प्रणाली की दक्षता को अधिकतम किया जा सके।
प्रमुख मानक और दिशानिर्देश
कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठन BESS के लिए मानक बनाते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
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UL (Underwriters Laboratories):
- UL 9540: यह ऊर्जा भंडारण प्रणालियों और उनके उपकरणों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा मानक है। यह BESS के लिए सुरक्षा आवश्यकताओं को निर्दिष्ट करता है, जिसमें बैटरी, इन्वर्टर, और नियंत्रण प्रणाली शामिल हैं।
- UL 9540A: यह एक परीक्षण विधि है जिसका उपयोग BESS में थर्मल रनवे के कारण आग लगने के जोखिम का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि प्रणाली में आग लगने पर वह सीमित रहे और न फैले।
- NFPA (National Fire Protection Association):
- NFPA 855: यह स्थिर ऊर्जा भंडारण प्रणालियों की स्थापना के लिए एक व्यापक अग्नि सुरक्षा कोड है। यह BESS को कहाँ स्थापित किया जा सकता है, सुरक्षात्मक अलगाव की आवश्यकताएँ और आपातकालीन प्रतिक्रिया के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है।
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IEEE (Institute of Electrical and Electronics Engineers):
- IEEE 1547: यह मानक BESS सहित वितरण ग्रिड से जुड़े किसी भी वितरित ऊर्जा संसाधन (DER) के लिए इंटरकनेक्शन आवश्यकताओं को परिभाषित करता है। यह ग्रिड सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- IEEE 1547.1: यह IEEE 1547 मानक के अनुरूपता परीक्षणों को परिभाषित करता है।
विनियम और नीतियाँ
मानकों के अलावा, कई सरकारी और नियामक संस्थाएँ BESS के उपयोग को नियंत्रित करने के लिए नीतियाँ और विनियम बनाती हैं।
- ऊर्जा भंडारण दायित्व (Energy Storage Obligation - ESO): भारत जैसे कुछ देशों ने वितरण कंपनियों के लिए एक निश्चित प्रतिशत ऊर्जा को नवीकरणीय स्रोतों और भंडारण से प्राप्त करना अनिवार्य कर दिया है। यह नीति BESS की स्थापना को बढ़ावा देती है।
- इंटरकनेक्शन कोड (Interconnection Codes): ये विनियम बताते हैं कि एक BESS को ग्रिड से कैसे सुरक्षित रूप से जोड़ा जाए। इनमें तकनीकी आवश्यकताएँ, संचार प्रोटोकॉल, और आपातकालीन शटडाउन प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं।
इन मानकों और विनियमों का पालन करना अनिवार्य है क्योंकि वे न केवल सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं बल्कि बीमा और वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए भी आवश्यक होते हैं। BESS उद्योग में बढ़ती रुचि के साथ, इन मानकों और विनियमों में लगातार सुधार हो रहे हैं ताकि नई तकनीकों को शामिल किया जा सके और जोखिमों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित किया जा सके।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणालियों (BESS) के अनुप्रयोग और प्रभाव को समझने के लिए, भारत और दुनिया भर के कुछ केस स्टडीज़ को देखना सहायक है। ये केस स्टडीज़ दर्शाते हैं कि BESS को कैसे विभिन्न उद्देश्यों के लिए सफलतापूर्वक स्थापित किया गया है।
भारत में केस स्टडीज़
भारत सरकार ने अक्षय ऊर्जा के लक्ष्यों को प्राप्त करने और ग्रिड को स्थिर करने के लिए BESS को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं।
- दिल्ली में टाटा पावर-डीडीएल परियोजना: 2019 में, टाटा पावर-डीडीएल ने दिल्ली में भारत की पहली ग्रिड-स्केल BESS परियोजना स्थापित की। इस 10 MW/10 MWh की लिथियम-आयन बैटरी प्रणाली का उद्देश्य ग्रिड में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करना और पीक डिमांड को कम करना था। इस परियोजना ने दिखाया कि BESS कैसे शहरी ग्रिड की स्थिरता में सुधार कर सकता है।
- छत्तीसगढ़ सौर ऊर्जा संयंत्र: छत्तीसगढ़ में स्थापित एक सौर संयंत्र भारत के लिए एक दिशा-निर्देशक परियोजना है। यह दिन के दौरान उत्पन्न सौर ऊर्जा को विशाल बैटरियों में संग्रहीत करता है। यह संयंत्र सूर्यास्त के बाद भी घरों, विद्यालयों और अस्पतालों को बिजली की आपूर्ति करता है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है और कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है।
- सरकारी नीतियां: भारत सरकार ने BESS को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना और व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (VGF)। 2030-31 तक 4,000 मेगावाट-घंटे (MWh) की बैटरी ऊर्जा भंडारण परियोजनाओं के विकास का लक्ष्य रखा गया है।
विश्व में केस स्टडीज़
दुनिया भर में BESS का उपयोग कई प्रमुख परियोजनाओं में किया जा रहा है, जो इसकी बहुमुखी प्रतिभा को प्रदर्शित करते हैं।
- हॉर्नस्डेल पावर रिजर्व, ऑस्ट्रेलिया: यह परियोजना BESS के सबसे प्रसिद्ध उदाहरणों में से एक है। 2017 में स्थापित, टेस्ला द्वारा निर्मित यह 100 MW/129 MWh की लिथियम-आयन बैटरी प्रणाली ने ग्रिड में बिजली की कमी के दौरान तेजी से प्रतिक्रिया देकर पूरे दक्षिण ऑस्ट्रेलिया को ब्लैकआउट से बचाया। इसने पारंपरिक बिजली संयंत्रों की तुलना में बहुत तेजी से प्रतिक्रिया दी, जिससे BESS की विश्वसनीयता साबित हुई।
- कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका में मॉस लैंडिंग (Moss Landing) परियोजना: यह दुनिया की सबसे बड़ी BESS परियोजनाओं में से एक है। इसकी क्षमता कई चरणों में बढ़ाई गई है और यह लगभग 400 MW/1600 MWh तक पहुँच गई है। यह परियोजना ग्रिड को स्थिरता प्रदान करती है और नवीकरणीय ऊर्जा के एकीकरण को सक्षम बनाती है।
- हवाई (Hawaii): हवाई में, BESS का व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है ताकि सौर और पवन ऊर्जा के उच्च हिस्से को ग्रिड में एकीकृत किया जा सके। 2017 से, लगभग 130 MW की BESS प्रणालियाँ स्थापित की गई हैं, जिससे द्वीपों को अपनी ऊर्जा स्वतंत्रता बढ़ाने में मदद मिली है। हवाई का लक्ष्य 2045 तक 100% नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करना है, और BESS इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है।
ये केस स्टडीज़ दिखाते हैं कि कैसे BESS विभिन्न पैमानों पर ग्रिड को स्थिर करने, नवीकरणीय ऊर्जा को एकीकृत करने और ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) एक ऐसी तकनीक है जो विद्युत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में संग्रहीत करती है और आवश्यकता पड़ने पर उसे फिर से बिजली में बदल देती है। यह मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर बिजली ग्रिड और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर और पवन ऊर्जा) के साथ मिलकर काम करने के लिए डिज़ाइन की गई है।
BESS के प्रमुख घटक
BESS प्रणाली में कई महत्वपूर्ण भाग होते हैं जो इसे कुशलतापूर्वक कार्य करने में मदद करते हैं:
- बैटरी: यह प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। यह लिथियम-आयन, लेड-एसिड या फ्लो बैटरी जैसी तकनीकों का उपयोग करके ऊर्जा को संग्रहीत करता है।
- पावर कन्वर्जन सिस्टम (PCS): यह एक इन्वर्टर की तरह काम करता है, जो बैटरी में संग्रहीत डायरेक्ट करंट (DC) को ग्रिड के लिए उपयोग किए जाने वाले अल्टरनेटिंग करंट (AC) में बदलता है, और इसके विपरीत।
- बैटरी प्रबंधन प्रणाली (BMS): यह बैटरी के स्वास्थ्य, तापमान और चार्जिंग स्थिति की निगरानी और प्रबंधन करती है, जिससे इसकी सुरक्षा और दक्षता सुनिश्चित होती है।
- थर्मल प्रबंधन प्रणाली: यह प्रणाली बैटरी के तापमान को नियंत्रित करती है, क्योंकि तापमान में उतार-चढ़ाव बैटरी के प्रदर्शन और जीवनकाल को प्रभावित कर सकता है।
BESS के अनुप्रयोग और लाभ
BESS का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जाता है, और इसके कई महत्वपूर्ण लाभ हैं:
- नवीकरणीय ऊर्जा का एकीकरण: यह सौर और पवन ऊर्जा जैसे अस्थिर स्रोतों से उत्पन्न अतिरिक्त ऊर्जा को संग्रहीत करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि बिजली की आपूर्ति स्थिर और निरंतर बनी रहे, खासकर जब सूरज नहीं चमक रहा हो या हवा नहीं चल रही हो।
- ग्रिड स्थिरीकरण: BESS बिजली की आपूर्ति और मांग के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। यह कम मांग के समय अतिरिक्त बिजली को संग्रहीत करता है और पीक आवर्स के दौरान उसे ग्रिड में छोड़ता है, जिससे ग्रिड की स्थिरता में सुधार होता है।
- बैकअप पावर: बिजली कटौती या आपातकाल की स्थिति में, BESS एक विश्वसनीय बैकअप पावर स्रोत प्रदान कर सकता है।
- ऊर्जा लागत में कमी: यह पीक आवर्स के दौरान महंगी बिजली खरीदने की आवश्यकता को कम करता है, क्योंकि संग्रहीत ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है।
BESS (बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली) का मुख्य कार्य अस्थिर ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त विद्युत ऊर्जा को संग्रहीत करना और मांग के समय इसे जारी करना है। इसका उपयोग बिजली की आपूर्ति और मांग के बीच संतुलन बनाए रखने, ग्रिड को स्थिर करने और नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे सौर और पवन ऊर्जा) को कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिए किया जाता है।
BESS (बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली) के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं:
- बैटरी सेल और मॉड्यूल: ये ऊर्जा को संग्रहीत करने वाले प्राथमिक घटक हैं, जो लिथियम-आयन, लेड-एसिड या फ्लो बैटरी जैसी तकनीकों पर आधारित होते हैं।
- बैटरी प्रबंधन प्रणाली (BMS): यह बैटरी की सुरक्षा और दक्षता सुनिश्चित करने के लिए उसके प्रदर्शन, स्वास्थ्य, तापमान और चार्जिंग स्थिति की लगातार निगरानी करता है।
- पावर कन्वर्जन सिस्टम (PCS): यह एक द्वि-दिशात्मक इन्वर्टर होता है जो बैटरी के डायरेक्ट करंट (DC) को ग्रिड के अल्टरनेटिंग करंट (AC) में बदलता है, और इसके विपरीत।
- थर्मल प्रबंधन प्रणाली: यह प्रणाली बैटरी के संचालन के लिए इष्टतम तापमान बनाए रखती है, क्योंकि अत्यधिक गर्मी या ठंड बैटरी के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकती है।
BESS में कई तरह की बैटरियों का इस्तेमाल होता है, लेकिन सबसे ज़्यादा लिथियम-आयन बैटरी का उपयोग किया जाता है। इसकी मुख्य वजह इसका उच्च ऊर्जा घनत्व, लंबा जीवनकाल (long lifespan) और बेहतर दक्षता (efficiency) है।
इसके अलावा, कुछ अन्य प्रकार की बैटरियों का भी उपयोग किया जाता है:
- लेड-एसिड बैटरियाँ (Lead-Acid Batteries): ये लिथियम-आयन बैटरियों की तुलना में सस्ती होती हैं, लेकिन इनका जीवनकाल और दक्षता कम होती है। इन्हें अक्सर बैकअप पावर सिस्टम जैसे अनुप्रयोगों में उपयोग किया जाता है।
- फ्लो बैटरियाँ (Flow Batteries): ये एक नई तकनीक हैं जो तरल इलेक्ट्रोलाइट्स (liquid electrolytes) का उपयोग करके ऊर्जा को संग्रहीत करती हैं। ये बड़े पैमाने पर भंडारण (large-scale storage) के लिए उपयुक्त होती हैं और इनका जीवनकाल बहुत लंबा होता है।
- सोडियम-सल्फर बैटरियाँ (Sodium-Sulfur Batteries): ये उच्च तापमान पर काम करती हैं और इनमें उच्च ऊर्जा घनत्व होता है, जो इन्हें बड़े पैमाने के ग्रिड भंडारण के लिए आदर्श बनाता है।
इनमें से लिथियम-आयन बैटरी ही सबसे प्रचलित और व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली तकनीक है।
BESS (बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली) में लिथियम-आयन बैटरियों का सबसे ज़्यादा उपयोग इसलिए किया जाता है क्योंकि वे कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करती हैं:
- उच्च ऊर्जा घनत्व (High Energy Density): लिथियम-आयन बैटरियाँ कम जगह में ज़्यादा ऊर्जा संग्रहीत कर सकती हैं, जिससे वे ग्रिड-स्केल अनुप्रयोगों के लिए अधिक उपयुक्त बन जाती हैं जहाँ स्थान सीमित होता है।
- लंबा जीवनकाल (Long Lifespan): इन बैटरियों का चक्र जीवन (cycle life) बहुत लंबा होता है, जिसका अर्थ है कि इन्हें बार-बार चार्ज और डिस्चार्ज किया जा सकता है। यह ग्रिड स्थिरीकरण जैसे दैनिक उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है।
- उच्च दक्षता (High Efficiency): लिथियम-आयन बैटरियाँ ऊर्जा को संग्रहीत करने और जारी करने में बहुत कुशल होती हैं, जिससे ऊर्जा का कम नुकसान होता है।
- तेज़ चार्जिंग और डिस्चार्जिंग: ये बैटरियाँ बहुत जल्दी चार्ज और डिस्चार्ज हो सकती हैं, जो बिजली की मांग में अचानक होने वाले बदलावों को प्रबंधित करने के लिए आवश्यक है।
- स्केलेबिलिटी (Scalability): इन्हें छोटे आवासीय प्रणालियों से लेकर बड़े उपयोगिता-पैमाने (utility-scale) के BESS तक, विभिन्न जरूरतों के अनुरूप आसानी से बढ़ाया जा सकता है।
इन विशेषताओं के कारण,
लिथियम-आयन बैटरियाँ BESS के लिए सबसे पसंदीदा और प्रभावी विकल्प बन गई हैं।
पावर कन्वर्ज़न सिस्टम (PCS) एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण है जो इलेक्ट्रिक ग्रिड और बैटरी के बीच ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करता है। इसका मुख्य काम डायरेक्ट करंट (DC) को अल्टरनेटिंग करंट (AC) में और AC को DC में बदलना है।
यह BESS का एक अनिवार्य घटक है क्योंकि:
- चार्जिंग: जब बैटरी को चार्ज किया जाता है, तो PCS ग्रिड (AC) से आने वाली बिजली को बैटरी (DC) के लिए उपयुक्त रूप में परिवर्तित करता है।
- डिस्चार्जिंग: जब बैटरी से ऊर्जा का उपयोग किया जाता है, तो PCS बैटरी (DC) से आने वाली ऊर्जा को ग्रिड या घर के उपकरणों (AC) के लिए उपयुक्त रूप में परिवर्तित करता है।
सरल शब्दों में,
PCS एक द्वि-दिशात्मक इन्वर्टर के रूप में कार्य करता है जो यह सुनिश्चित करता है कि ऊर्जा का भंडारण और उपयोग दोनों ही कुशलतापूर्वक हो।
BMS का पूरा नाम बैटरी प्रबंधन प्रणाली (Battery Management System) है। यह BESS का एक बहुत ही महत्वपूर्ण घटक है, जिसे बैटरी पैक के सुरक्षित, विश्वसनीय और कुशल संचालन को सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसे बैटरी का "मस्तिष्क" भी कहा जा सकता है।
BMS के मुख्य कार्य
BMS कई महत्वपूर्ण कार्य करता है:
-
निगरानी (Monitoring): यह बैटरी के प्रमुख मापदंडों की लगातार निगरानी करता है, जैसे:
- वोल्टेज: प्रत्येक सेल का वोल्टेज ताकि ओवरचार्जिंग या ओवर-डिस्चार्जिंग से बचा जा सके।
- करंट (Current): बैटरी से आने या जाने वाले करंट का मापन।
- तापमान (Temperature): बैटरी के ज़्यादा गरम होने या ठंडा होने से बचाने के लिए।
- सेल संतुलन (Cell Balancing): यह सुनिश्चित करता है कि बैटरी पैक के सभी सेल समान रूप से चार्ज और डिस्चार्ज हों। यदि किसी सेल का वोल्टेज असंतुलित हो जाता है, तो BMS उसे बराबर करता है, जिससे बैटरी का जीवनकाल बढ़ता है।
- सुरक्षा (Protection): BMS कई सुरक्षा तंत्र प्रदान करता है। यह ओवर-वोल्टेज, अंडर-वोल्टेज, ओवर-करंट और शॉर्ट-सर्किट जैसी खतरनाक स्थितियों का पता लगाता है और बैटरी को नुकसान से बचाने के लिए उसे डिस्कनेक्ट कर देता है।
-
राज्य का अनुमान (State Estimation): यह बैटरी की वर्तमान स्थिति का अनुमान लगाता है, जैसे:
- चार्ज की स्थिति (State of Charge - SOC): बैटरी में कितनी ऊर्जा बची है।
- स्वास्थ्य की स्थिति (State of Health - SOH): बैटरी का समग्र स्वास्थ्य और उसकी उम्र।
- संचार (Communication): BMS बाहरी प्रणालियों जैसे पावर कन्वर्जन सिस्टम (PCS) के साथ संचार करता है, जिससे ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सके।
संक्षेप में,
BMS बैटरी को इष्टतम प्रदर्शन पर बनाए रखने और उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीय नियंत्रण इकाई के रूप में कार्य करता है।
थर्मल प्रबंधन प्रणाली (Thermal Management System) एक ऐसी प्रणाली है जो बैटरी और अन्य BESS घटकों का तापमान नियंत्रित करती है। इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैटरी एक सुरक्षित और इष्टतम तापमान सीमा के भीतर काम करे, जिससे उसकी दक्षता, प्रदर्शन और जीवनकाल में सुधार हो सके।
कार्य और महत्व
थर्मल प्रबंधन प्रणाली कई तरीकों से काम करती है:
- गर्मी हटाना (Heat Dissipation): जब बैटरी चार्ज या डिस्चार्ज होती है, तो उसमें गर्मी पैदा होती है। यह प्रणाली अतिरिक्त गर्मी को बाहर निकालकर बैटरी को ज़्यादा गरम होने से बचाती है।
- गर्मी देना (Heating): ठंडे मौसम में, बैटरी का प्रदर्शन घट जाता है। यह प्रणाली बैटरी को गर्म करके उसे सही ऑपरेटिंग तापमान पर लाती है।
- तापमान नियंत्रण (Temperature Control): यह बैटरी के सभी सेलों में एक समान तापमान बनाए रखती है, जो उनके प्रदर्शन को संतुलित रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
इसका महत्व इसलिए है क्योंकि:
- सुरक्षा: अत्यधिक तापमान से बैटरी में आग लगने या विस्फोट होने का खतरा बढ़ जाता है। थर्मल प्रबंधन प्रणाली इस खतरे को कम करती है।
- जीवनकाल: स्थिर और सही तापमान पर काम करने से बैटरी का जीवनकाल काफी बढ़ जाता है।
- दक्षता: बैटरी अपनी इष्टतम दक्षता पर तभी काम कर पाती है जब उसका तापमान सही हो।
यह प्रणाली आमतौर पर एयर-कूलिंग (पंखों का उपयोग करके) या लिक्विड-कूलिंग (तरल पदार्थ का उपयोग करके) जैसे तरीकों का उपयोग करती है।
निर्वहन की गहराई (Depth of Discharge - DoD) एक बैटरी से निकाली गई ऊर्जा का वह प्रतिशत है जो उसकी कुल क्षमता के सापेक्ष होता है।
सरल शब्दों में, यह बताती है कि बैटरी को उसकी अधिकतम क्षमता से कितना डिस्चार्ज किया गया है। उदाहरण के लिए, यदि 100 Ah की बैटरी से 80 Ah ऊर्जा निकाली जाती है, तो DoD 80% होगा।
DoD का महत्व और BESS पर प्रभाव
DoD बैटरी के जीवनकाल (lifespan) को सीधे प्रभावित करता है। आमतौर पर, जितना कम DoD होता है, बैटरी का जीवनकाल उतना ही लंबा होता है।
- उच्च DoD: बार-बार बैटरी को पूरी तरह से या बहुत ज़्यादा डिस्चार्ज करने से उसके रासायनिक घटकों पर तनाव पड़ता है, जिससे उसकी उम्र जल्दी कम हो जाती है। उदाहरण के लिए, 100% DoD पर एक बैटरी का जीवनकाल 500 चक्र (cycles) हो सकता है।
- कम DoD: बैटरी को केवल 30-50% तक ही डिस्चार्ज करने से उसका जीवनकाल 3000 से 5000 चक्र तक बढ़ सकता है।
BESS में,
बैटरी प्रबंधन प्रणाली (BMS) DoD को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ताकि बैटरी के प्रदर्शन और जीवनकाल को अधिकतम किया जा सके। अधिकांश BESS प्रणालियों को एक विशिष्ट DoD पर काम करने के लिए डिज़ाइन किया जाता है, जैसे कि 80% या उससे कम, ताकि वे लंबे समय तक टिकाऊ रहें।
राउंड ट्रिप दक्षता (Round Trip Efficiency - RTE) किसी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (जैसे बैटरी) की दक्षता का एक माप है। यह उस ऊर्जा का प्रतिशत बताती है जिसे भंडारण में डालने के बाद फिर से निकाला जा सकता है।
इसका मतलब है कि जब आप किसी बैटरी को चार्ज करते हैं, तो कुछ ऊर्जा गर्मी या रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण बर्बाद हो जाती है। RTE यह मापता है कि इस नुकसान के बाद आपको कितनी ऊर्जा वापस मिलती है।
RTE की गणना कैसे करें?
RTE की गणना एक साधारण सूत्र का उपयोग करके की जाती है:
RTE = \frac{\text{निकली गई ऊर्जा (Energy Out)}}{\text{डाली गई ऊर्जा (Energy In)}} \times 100\%
उदाहरण: यदि आप किसी BESS में 100 kWh ऊर्जा डालते हैं, लेकिन डिस्चार्ज के दौरान केवल 90 kWh ऊर्जा ही निकाल पाते हैं, तो RTE 90% होगी। इसका मतलब है कि 10% ऊर्जा चार्जिंग और डिस्चार्जिंग प्रक्रिया के दौरान नष्ट हो गई।
विभिन्न बैटरियों की RTE
- लिथियम-आयन बैटरियाँ: इनकी RTE आमतौर पर 90% से 95% के बीच होती है, जो उन्हें BESS के लिए बहुत कुशल बनाती है।
- लेड-एसिड बैटरियाँ: इनकी RTE आमतौर पर 75% से 85% के बीच होती है, जो लिथियम-आयन बैटरियों की तुलना में कम कुशल हैं।
एक उच्च RTE का मतलब है कि ऊर्जा का नुकसान कम हो रहा है, जिससे प्रणाली अधिक लागत-प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल बनती है।
ऊर्जा घनत्व (Energy Density) किसी पदार्थ या प्रणाली में प्रति इकाई द्रव्यमान या प्रति इकाई आयतन में संग्रहीत ऊर्जा की मात्रा को संदर्भित करता है।
सरल शब्दों में, यह बताता है कि कोई बैटरी या ईंधन अपनी क्षमता के अनुसार कितनी ऊर्जा को कितनी जगह या वजन में समाहित कर सकता है।
इसे आमतौर पर दो तरह से मापा जाता है:
- गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा घनत्व (Gravimetric Energy Density): यह प्रति इकाई द्रव्यमान (वजन) में संग्रहीत ऊर्जा की मात्रा है। इसकी इकाई वाट-घंटा प्रति किलोग्राम (Wh/kg) है। यह पोर्टेबल उपकरणों (जैसे स्मार्टफोन और इलेक्ट्रिक वाहन) के लिए महत्वपूर्ण है, जहाँ वजन कम रखना ज़रूरी होता है।
- आयतनिक ऊर्जा घनत्व (Volumetric Energy Density): यह प्रति इकाई आयतन (जगह) में संग्रहीत ऊर्जा की मात्रा है। इसकी इकाई वाट-घंटा प्रति लीटर (Wh/L) है। यह BESS और कॉम्पैक्ट स्टोरेज सिस्टम के लिए महत्वपूर्ण है, जहाँ जगह कम होती है।
उदाहरण के लिए,
लिथियम-आयन बैटरियों का उच्च ऊर्जा घनत्व उन्हें BESS के लिए आदर्श बनाता है, क्योंकि वे कम जगह और वजन में ज़्यादा ऊर्जा संग्रहीत कर सकती हैं।
शक्ति घनत्व (Power Density) प्रति इकाई द्रव्यमान या आयतन में किसी प्रणाली द्वारा दी जाने वाली या प्राप्त की जाने वाली अधिकतम शक्ति (power) की मात्रा है।
सरल शब्दों में,
यह बताता है कि कोई बैटरी या उपकरण कितनी तेज़ी से ऊर्जा को वितरित कर सकता है या स्वीकार कर सकता है।
इसे भी दो तरह से मापा जाता है:
- गुरुत्वाकर्षण शक्ति घनत्व (Gravimetric Power Density): यह प्रति इकाई द्रव्यमान में शक्ति की मात्रा है, जिसकी इकाई वाट प्रति किलोग्राम (W/kg) है।
- आयतनिक शक्ति घनत्व (Volumetric Power Density): यह प्रति इकाई आयतन में शक्ति की मात्रा है, जिसकी इकाई वाट प्रति लीटर (W/L) है।
ऊर्जा घनत्व बनाम शक्ति घनत्व
यह समझना महत्वपूर्ण है कि ऊर्जा घनत्व और शक्ति घनत्व अलग-अलग अवधारणाएँ हैं:
- ऊर्जा घनत्व: यह बताता है कि कितनी कुल ऊर्जा संग्रहीत की जा सकती है (उदाहरण: एक टैंक में कितना पानी है)।
- शक्ति घनत्व: यह बताता है कि उस ऊर्जा को कितनी तेज़ी से निकाला जा सकता है (उदाहरण: पानी को कितनी तेज़ी से बाहर निकाला जा सकता है)।
उदाहरण के लिए,
एक बड़ी कार की बैटरी में उच्च ऊर्जा घनत्व होता है (लंबी दूरी के लिए), जबकि एक रेसिंग कार की बैटरी में उच्च शक्ति घनत्व होता है (तेज़ त्वरण के लिए)। BESS में, उच्च शक्ति घनत्व ग्रिड को अचानक लोड बढ़ने पर तुरंत प्रतिक्रिया देने में मदद करता है।
बैटरी का चक्र जीवन (Cycle Life) यह बताता है कि एक रिचार्जेबल बैटरी को अपनी क्षमता में महत्वपूर्ण गिरावट आने से पहले कितनी बार पूरी तरह से चार्ज और डिस्चार्ज किया जा सकता है।
यह किसी भी बैटरी का एक महत्वपूर्ण मापदंड है, खासकर BESS (बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली) के लिए, क्योंकि यह बैटरी के कुल उपयोगी जीवनकाल (lifespan) को निर्धारित करता है।
एक चक्र: एक चक्र तब पूरा होता है जब बैटरी की पूरी क्षमता का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी बैटरी को 50% तक डिस्चार्ज करते हैं और फिर उसे पूरी तरह चार्ज करते हैं, तो इसे 0.5 चक्र माना जाएगा। यदि आप इसे पूरी तरह से डिस्चार्ज करते हैं और फिर पूरी तरह चार्ज करते हैं, तो यह 1 चक्र होगा।
क्षमता में गिरावट: बैटरी का चक्र जीवन आमतौर पर उस बिंदु तक गिना जाता है जब उसकी मूल क्षमता 80% या उससे कम हो जाती है।
कम निर्वहन की गहराई (Depth of Discharge - DoD) पर बैटरी को संचालित करने से उसका चक्र जीवन काफी बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, 80% DoD पर एक बैटरी का जीवनकाल 2,500 चक्र हो सकता है, जबकि 50% DoD पर यही जीवनकाल 5,000 चक्र तक बढ़ सकता है।
बीईएसएस (BESS) में पावर रेटिंग और ऊर्जा रेटिंग दो अलग-अलग लेकिन एक-दूसरे से जुड़े हुए मापदंड हैं जो प्रणाली की क्षमता को परिभाषित करते हैं।
पावर रेटिंग (Power Rating)
पावर रेटिंग (kW या MW में) यह बताती है कि एक BESS प्रणाली कितनी तेज़ी से ऊर्जा को डिलीवर या स्वीकार कर सकती है।
- यह बैटरी के तात्कालिक आउटपुट या इनपुट को मापता है।
- यह उस गति को दर्शाता है जिस पर प्रणाली ग्रिड को बिजली की आपूर्ति कर सकती है या ग्रिड से बिजली ले सकती है।
- उदाहरण: यदि एक BESS की पावर रेटिंग 1 MW है, तो इसका मतलब है कि यह एक ही समय में अधिकतम 1 मेगावाट बिजली की आपूर्ति कर सकता है।
ऊर्जा रेटिंग (Energy Rating)
ऊर्जा रेटिंग (kWh या MWh में) यह बताती है कि एक BESS प्रणाली कितनी ऊर्जा को संग्रहीत कर सकती है।
- यह बैटरी की कुल क्षमता का माप है।
- यह बताता है कि एक निश्चित शक्ति पर प्रणाली कितने समय तक ऊर्जा की आपूर्ति कर सकती है।
- उदाहरण: यदि एक BESS की ऊर्जा रेटिंग 4 MWh है, तो इसका मतलब है कि यह 4 मेगावाट-घंटे ऊर्जा को संग्रहीत कर सकता है।
सरल शब्दों में,
पावर रेटिंग यह है कि आप कितनी तेज़ी से पानी के टैंक से पानी निकाल सकते हैं, जबकि ऊर्जा रेटिंग यह है कि उस टैंक में कुल कितना पानी समाहित है।
एसओसी (SoC) का मतलब स्टेट ऑफ चार्ज (State of Charge) है।
यह एक बैटरी में संग्रहीत ऊर्जा की वर्तमान मात्रा का एक माप है, जिसे उसकी कुल क्षमता के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है।
सरल शब्दों में,
SoC यह बताता है कि आपकी बैटरी कितनी भरी हुई है, जैसे कि आपके स्मार्टफोन पर बैटरी आइकन।
- 100% SoC: इसका मतलब है कि बैटरी पूरी तरह से चार्ज है।
- 0% SoC: इसका मतलब है कि बैटरी पूरी तरह से डिस्चार्ज है।
- 50% SoC: इसका मतलब है कि बैटरी अपनी कुल क्षमता का आधा भरी हुई है।
BESS में,
SoC का उपयोग यह तय करने के लिए किया जाता है कि बैटरी को कब चार्ज या डिस्चार्ज करना है, और यह सुनिश्चित करने के लिए भी किया जाता है कि बैटरी को ज़्यादा डिस्चार्ज न किया जाए, जिससे उसका जीवनकाल प्रभावित हो सकता है।
एसओएच (SOH) का मतलब स्टेट ऑफ हेल्थ (State of Health) है। यह एक बैटरी की समग्र स्थिति और प्रदर्शन का एक माप है, जिसकी तुलना एक नई बैटरी से की जाती है।
सरल शब्दों में,
एसओएच यह बताता है कि आपकी बैटरी कितनी "स्वस्थ" है। यह दर्शाता है कि अपनी मूल क्षमता की तुलना में वह कितनी ऊर्जा संग्रहीत कर सकती है और वितरित कर सकती है। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।
- 100% एसओएच: इसका मतलब है कि बैटरी नई जैसी है और अपनी पूरी क्षमता पर काम कर रही है।
- 80% एसओएच: यह एक सामान्य मानदंड है जिस पर बैटरी को उसकी उपयोगी जीवन के अंत तक पहुंचा हुआ माना जाता है, क्योंकि उसकी मूल क्षमता का 20% उपयोग करने योग्य नहीं रहता है।
- 0% एसओएच: इसका मतलब है कि बैटरी अब ऊर्जा को प्रभावी ढंग से संग्रहीत नहीं कर सकती है।
एसओसी (SoC) और एसओएच (SOH) के बीच अंतर
एसओएच और एसओसी (स्टेट ऑफ चार्ज) दोनों ही महत्वपूर्ण हैं, लेकिन वे अलग-अलग चीजें मापते हैं:
- एसओसी (SoC): यह एक तात्कालिक माप है जो बताता है कि बैटरी वर्तमान में कितनी भरी हुई है (जैसे कार में ईंधन गेज)।
- एसओएच (SOH): यह एक दीर्घकालिक माप है जो बताता है कि बैटरी की कुल क्षमता कितनी कम हुई है (जैसे कार के इंजन की कुल स्वास्थ्य स्थिति)।
उच्च एसओएच बनाए रखना BESS के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उसके समग्र जीवनकाल, विश्वसनीयता और प्रदर्शन को सीधे प्रभावित करता है।
विद्युत प्रणालियों में BESS (बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली) के कई महत्वपूर्ण अनुप्रयोग हैं जो ग्रिड की स्थिरता और विश्वसनीयता को बढ़ाते हैं। BESS पारंपरिक ऊर्जा प्रणालियों की सीमाओं को दूर करने में मदद करता है।
1. नवीकरणीय ऊर्जा का एकीकरण
सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोत अस्थिर होते हैं (जब सूरज नहीं चमक रहा हो या हवा नहीं चल रही हो तो ऊर्जा का उत्पादन नहीं होता)। BESS इन स्रोतों से अतिरिक्त ऊर्जा को दिन में संग्रहीत करता है और रात में या जब उत्पादन कम होता है, तब बिजली की आपूर्ति करता है। इससे ऊर्जा की आपूर्ति निरंतर बनी रहती है और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है।
2. ग्रिड स्थिरीकरण
BESS बिजली की आपूर्ति और मांग के बीच संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- पीक शेविंग: BESS कम मांग (ऑफ-पीक) के समय ग्रिड से ऊर्जा संग्रहीत करता है और उच्च मांग (पीक) के समय इसे जारी करता है। इससे महंगी पीक पावर प्लांट चलाने की आवश्यकता कम हो जाती है।
- आवृत्ति विनियमन: यह ग्रिड की आवृत्ति को स्थिर करने में मदद करता है। यदि ग्रिड की आवृत्ति कम होने लगे, तो BESS तुरंत बिजली जारी करके इसे सामान्य स्तर पर वापस लाता है।
3. बैकअप पावर और ऊर्जा सुरक्षा
बिजली कटौती या आपातकाल की स्थिति में, BESS एक विश्वसनीय बैकअप पावर स्रोत के रूप में काम कर सकता है। यह अस्पतालों, डेटा केंद्रों और अन्य महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचों को बिजली की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
4. ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन में सुधार
BESS को ग्रिड के महत्वपूर्ण बिंदुओं पर स्थापित किया जा सकता है ताकि ट्रांसमिशन लाइनों पर लोड को कम किया जा सके और ग्रिड की दक्षता बढ़ाई जा सके। इससे ग्रिड के बुनियादी ढांचे को अपग्रेड करने की लागत कम हो जाती है।
बीईएसएस (BESS) का उपयोग करके पीक शेविंग (Peak Shaving) का मतलब है कि बिजली की खपत या मांग जब सबसे अधिक होती है, उस समय ग्रिड से बिजली लेना कम करना या पूरी तरह से बचना।
यह एक लागत-बचत रणनीति है जिसका उपयोग औद्योगिक, वाणिज्यिक और कभी-कभी आवासीय उपभोक्ता भी करते हैं ताकि बिजली के बिलों को कम किया जा सके।
यह कैसे काम करता है?
- चार्जिंग: जब बिजली की मांग कम होती है (जैसे कि रात के समय), तब बिजली सस्ती होती है। इस दौरान, BESS ग्रिड से सस्ती बिजली संग्रहीत करता है।
- डिस्चार्जिंग: जब दिन के समय बिजली की मांग अपने चरम पर होती है (पीक आवर्स), तब बिजली की दरें सबसे ज़्यादा होती हैं। इस समय, BESS ग्रिड से बिजली लेने के बजाय अपनी संग्रहीत ऊर्जा को जारी (डिस्चार्ज) करता है।
इस प्रक्रिया से, उपभोक्ता को महंगी पीक-टाइम बिजली का उपयोग नहीं करना पड़ता, जिससे उनके बिजली के बिल में काफी कमी आती है।
संक्षेप में,
पीक शेविंग BESS का उपयोग करके कम कीमत पर ऊर्जा संग्रहीत करने और महंगी कीमत पर उसका उपयोग करने की एक विधि है।
लोड शिफ्टिंग (Load Shifting) एक ऊर्जा प्रबंधन रणनीति है जिसमें बिजली की खपत को उच्च मांग और उच्च लागत वाले समय से हटाकर कम मांग और कम लागत वाले समय में स्थानांतरित किया जाता है।
सरल शब्दों में, इसका मतलब है कि आप अपने बिजली के उपयोग को दिन के उस समय के लिए निर्धारित करते हैं जब बिजली सस्ती होती है।
यह कैसे काम करता है?
उदाहरण के लिए, एक कंपनी जो दिन में बहुत ज़्यादा बिजली का उपयोग करती है, वह अपनी कुछ बिजली-खपत वाली गतिविधियों को रात के समय में स्थानांतरित कर सकती है, जब बिजली की दरें कम होती हैं। BESS (बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली) इस प्रक्रिया को आसान बनाता है:
- चार्जिंग: BESS रात में या जब बिजली की मांग कम होती है, तब ग्रिड से ऊर्जा को संग्रहीत करता है।
- डिस्चार्जिंग: दिन के समय, जब बिजली की मांग और लागत अधिक होती है, BESS अपनी संग्रहीत ऊर्जा का उपयोग करता है।
इस तरह, कंपनी ग्रिड से महंगी बिजली खरीदने से बच जाती है, जिससे उसके परिचालन लागत में काफी बचत होती है।
लोड शिफ्टिंग का मुख्य उद्देश्य बिजली के बिल को कम करना और ग्रिड पर से अतिरिक्त भार को कम करना है।
ब्लैक स्टार्ट क्षमता का मतलब है कि एक बिजली संयंत्र या ऊर्जा भंडारण प्रणाली (जैसे BESS) बिना बाहरी ग्रिड पावर के, पूरी तरह से ब्लैकआउट (पूर्ण बिजली गुल) के बाद खुद से शुरू हो सकती है।
सामान्य परिस्थितियों में, जब कोई बिजली संयंत्र बंद हो जाता है, तो उसे फिर से शुरू करने के लिए बाहरी बिजली की आवश्यकता होती है। यह बिजली ग्रिड के दूसरे सक्रिय हिस्से से आती है। लेकिन जब पूरा ग्रिड ही फेल हो जाता है (यानी ब्लैकआउट हो जाता है), तो कोई बाहरी बिजली उपलब्ध नहीं होती है।
यहीं पर BESS की ब्लैक स्टार्ट क्षमता काम आती है।
-
BESS ब्लैक स्टार्ट कैसे करता है:
- BESS अपनी संग्रहीत ऊर्जा का उपयोग करता है।
- यह ग्रिड के एक छोटे हिस्से को बिजली देकर उसे फिर से सक्रिय करता है।
- यह छोटे हिस्से को बिजली देने के बाद, ग्रिड के अन्य बड़े हिस्सों को धीरे-धीरे एक-एक करके फिर से चालू किया जाता है, जब तक कि पूरी प्रणाली बहाल न हो जाए।
BESS की यह क्षमता इसे पारंपरिक ब्लैक स्टार्ट स्रोतों (जैसे कुछ हाइड्रो और गैस टर्बाइन प्लांट) की तुलना में एक आकर्षक विकल्प बनाती है, क्योंकि यह तेज़ी से काम कर सकता है और ग्रिड को अधिक स्थिरता प्रदान कर सकता है।
बीईएसएस (BESS) को बिजली व्यवस्था में एक क्रांतिकारी परिवर्तनकर्ता कहा जाता है क्योंकि यह पारंपरिक बिजली ग्रिड की कई प्रमुख चुनौतियों को हल करता है और इसे अधिक लचीला, कुशल और टिकाऊ बनाता है। BESS बिजली को ऊर्जा के रूप में संग्रहीत करने और आवश्यकतानुसार उपयोग करने की क्षमता के कारण ग्रिड के काम करने के तरीके को बदल रहा है।
यहाँ कुछ मुख्य कारण दिए गए हैं कि BESS को इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है:
1. नवीकरणीय ऊर्जा का एकीकरण
परंपरागत रूप से, सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोत अपनी अस्थिर प्रकृति के कारण ग्रिड में चुनौतियाँ पैदा करते थे। BESS इस समस्या का समाधान करता है। यह उस समय अतिरिक्त ऊर्जा को संग्रहीत करता है जब सूरज चमकता है या हवा चलती है, और बाद में जब ऊर्जा का उत्पादन कम होता है तो इसे जारी करता है। यह नवीकरणीय ऊर्जा को विश्वसनीय और निरंतर बनाने में मदद करता है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती है।
2. ग्रिड स्थिरीकरण और लचीलापन
BESS ग्रिड को स्थिर करने के लिए महत्वपूर्ण सेवाएँ प्रदान करता है। यह बिजली की मांग में अचानक होने वाले उतार-चढ़ाव को तुरंत संतुलित कर सकता है, जिससे ग्रिड की आवृत्ति और वोल्टेज स्थिर रहते हैं। इसके अलावा, इसकी ब्लैक स्टार्ट क्षमता (black start capability) ब्लैकआउट के बाद ग्रिड को बिना बाहरी सहायता के फिर से शुरू करने में मदद करती है, जिससे बिजली प्रणाली अधिक लचीली और सुरक्षित बनती है।
3. आर्थिक लाभ और लागत में कमी
BESS बिजली के बिलों को कम करने में भी मदद करता है। पीक शेविंग और लोड शिफ्टिंग जैसी रणनीतियों के माध्यम से, BESS महंगी पीक-टाइम बिजली को खरीदने से बचाता है। यह ऑफ-पीक समय में ऊर्जा को संग्रहीत करता है और पीक समय में उपयोग करता है। इससे न केवल उपभोक्ताओं की लागत कम होती है, बल्कि उपयोगिता कंपनियों को भी महंगे पीक-लोड पावर प्लांट बनाने की आवश्यकता नहीं रहती है।
4. त्वरित और मॉड्यूलर परिनियोजन
पारंपरिक बिजली संयंत्रों के विपरीत, BESS को अपेक्षाकृत तेज़ी से और किसी भी पैमाने पर (एक छोटे घर से लेकर पूरे शहर तक) स्थापित किया जा सकता है। यह ग्रिड ऑपरेटरों को मांग के अनुसार अपनी बिजली भंडारण क्षमता को जल्दी से समायोजित करने की अनुमति देता है, जिससे यह एक बहुत ही लचीला समाधान बन जाता है।
भारत में कई बड़े पैमाने के BESS प्रोजेक्ट स्थापित किए गए हैं, लेकिन "पहला" प्रोजेक्ट कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि क्या वह पूरी तरह से ग्रिड-स्केल पर था, व्यावसायिक था या नवीकरणीय ऊर्जा के साथ जुड़ा था।
विभिन्न रिपोर्टों और स्रोतों के अनुसार, यहाँ कुछ प्रमुख उदाहरण दिए गए हैं जिन्हें भारत का पहला या सबसे बड़ा माना जाता है:
- दिल्ली में 20MW/40MWh BESS: दिल्ली में BSES Rajdhani Power Limited (BRPL) द्वारा स्थापित एक परियोजना को भारत का पहला व्यावसायिक उपयोगिता-स्तरीय (commercial utility-scale) स्टैंडअलोन BESS माना जाता है। इस 20 MW / 40 MWh क्षमता वाले BESS को ग्रिड की स्थिरता और पीक डिमांड को प्रबंधित करने के लिए Kilokari सबस्टेशन में स्थापित किया गया था। यह भारत में इस तरह की पहली परियोजना थी जिसे नियामक अनुमोदन (regulatory approval) प्राप्त हुआ।
- छत्तीसगढ़ में 40MW/120MWh BESS: सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SECI) द्वारा छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में एक बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र के साथ एक BESS स्थापित किया गया है। 40 MW / 120 MWh क्षमता वाला यह BESS भारत की सबसे बड़ी सौर-बैटरी परियोजना है। यह दिन के दौरान सौर ऊर्जा को संग्रहीत करता है और शाम को बिजली की मांग को पूरा करने के लिए इसका उपयोग करता है, जिससे राज्य में नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ता है।
- दिल्ली में 10MW BESS: टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड (टाटा पावर-डीडीएल) ने भी रोहिणी, दिल्ली में 10 MW क्षमता का BESS स्थापित किया है। इसे भी भारत में ग्रिड-स्केल पर BESS का शुरुआती उदाहरण माना जाता है, जिसका उद्देश्य ग्रिड को स्थिर करना और सौर ऊर्जा को एकीकृत करना था।
इनमें से,
दिल्ली का 20MW/40MWh वाला BESS वाणिज्यिक और नियामक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था, जबकि छत्तीसगढ़ का 40MW/120MWh वाला BESS अपनी क्षमता और सौर संयंत्र के साथ एकीकरण के लिए सबसे बड़ा माना जाता है।
दुनिया की सबसे बड़ी BESS परियोजनाएं लगातार बदलती रहती हैं, क्योंकि नई और बड़ी परियोजनाएं हर साल शुरू होती रहती हैं। वर्तमान में, कई परियोजनाएं दुनिया की सबसे बड़ी होने का दावा करती हैं, जो उनके पैमाने, प्रौद्योगिकी या कार्यक्षमता पर निर्भर करता है।
यहाँ कुछ सबसे बड़े और महत्वपूर्ण उदाहरण दिए गए हैं:
-
एडवर्ड्स और सैनबोर्न (Edwards & Sanborn) सौर-बैटरी परियोजना, कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका:
- क्षमता: 3,287 MWh
- यह वर्तमान में चालू दुनिया की सबसे बड़ी सौर-बैटरी भंडारण परियोजना है। यह 875 MWDC सौर संयंत्र के साथ मिलकर काम करती है और ग्रिड को बिजली की आपूर्ति करती है। यह कैलिफ़ोर्निया के लिए ग्रिड विश्वसनीयता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
-
मास लैंडिंग (Moss Landing) BESS, कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका:
- क्षमता: 1,800 MWh (मूल रूप से 3,000 MWh तक बढ़ने की योजना थी, लेकिन वर्तमान में कम क्षमता पर काम कर रही है)
- यह परियोजना दुनिया में सबसे बड़ी स्वतंत्र (standalone) BESS सुविधाओं में से एक है। इसे ग्रिड को स्थिर करने और पीक डिमांड को प्रबंधित करने के लिए डिजाइन किया गया था।
-
यूएई की 19 GWh की परियोजना (अबू धाबी):
- यह एक नियोजित परियोजना है जिसमें 5.2 GW का सौर संयंत्र और 19 GWh की बैटरी भंडारण क्षमता होगी।
- अगर यह पूरी हो जाती है, तो यह दुनिया की अब तक की सबसे बड़ी सौर-बैटरी परियोजना होगी, जिसका उद्देश्य 24/7 स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करना है।
-
सऊदी अरब की बीशा परियोजना (Bisha Project):
- क्षमता: 2,000 MWh
- यह सऊदी अरब की सबसे बड़ी BESS परियोजना है, जिसका उद्देश्य देश के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का समर्थन करना और ग्रिड को स्थिर करना है।
इनमें से,
एडवर्ड्स और सैनबोर्न परियोजना वर्तमान में दुनिया की सबसे बड़ी चालू सौर-बैटरी सुविधा है, जबकि यूएई की नियोजित परियोजना भविष्य में सबसे बड़ी बनने की संभावना रखती है।
BESS (बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम) के साथ एक माइक्रोग्रिड एक आधुनिक, स्थानीय बिजली प्रणाली है जो मुख्य ग्रिड से स्वतंत्र रूप से या उसके साथ मिलकर काम कर सकती है। यह प्रणाली विभिन्न बिजली स्रोतों, जैसे कि सौर पैनल, पवन टर्बाइन और पारंपरिक जनरेटर, को बैटरी स्टोरेज के साथ एकीकृत करती है।
BESS कैसे काम करता है?
BESS मूल रूप से एक बड़ा बैटरी बैंक होता है जो अतिरिक्त बिजली को स्टोर करता है। यह विशेष रूप से उन जगहों के लिए उपयोगी है जहाँ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (जैसे सौर और पवन) का उपयोग होता है, क्योंकि इन स्रोतों से बिजली का उत्पादन हमेशा एक जैसा नहीं रहता।
- स्टोर करना: जब सौर पैनलों से दिन में या पवन टर्बाइनों से तेज हवा के दौरान अधिक बिजली बनती है, तो यह अतिरिक्त ऊर्जा BESS में स्टोर हो जाती है।
- डिस्चार्ज करना: जब बिजली की मांग अधिक होती है या नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत बिजली नहीं बना रहे होते (जैसे कि रात में या जब हवा नहीं चल रही हो), तो BESS में स्टोर की गई बिजली का उपयोग किया जाता है।
BESS के साथ माइक्रोग्रिड के लाभ
BESS के साथ माइक्रोग्रिड कई फायदे प्रदान करता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां बिजली की आपूर्ति अविश्वसनीय है।
- विश्वसनीयता और लचीलापन: यह मुख्य ग्रिड के बाधित होने पर भी बिजली की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करता है। यह ग्रिड से कटकर "आइलैंड मोड" में भी काम कर सकता है।
- ऊर्जा लागत में कमी: यह कम मांग वाले समय में सस्ती बिजली को स्टोर करने और उच्च मांग वाले समय में इसका उपयोग करने में मदद करता है, जिससे बिजली के बिल कम हो सकते हैं।
- पर्यावरणीय लाभ: यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करता है और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देता है, जिससे कार्बन उत्सर्जन कम होता है।
- ग्रिड स्थिरता: यह बिजली की आपूर्ति और मांग में होने वाले उतार-चढ़ाव को स्थिर करने में मदद करता है, जिससे ग्रिड की समग्र विश्वसनीयता बढ़ती है।
BESS (बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम) का उपयोग करते हुए वाहन से ग्रिड (V2G) एक ऐसी तकनीक है जो इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को केवल चार्ज होने के बजाय बिजली ग्रिड में ऊर्जा वापस देने की अनुमति देती है। इस प्रक्रिया में, एक EV की बड़ी बैटरी को एक चलता-फिरता बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम (BESS) माना जाता है।
यह द्विदिश (bidirectional) चार्जिंग के माध्यम से काम करता है, जिसका मतलब है कि बिजली दोनों दिशाओं में जा सकती है:
- ग्रिड से वाहन तक: पारंपरिक तरीके से, जब आप अपनी कार को चार्ज करते हैं।
- वाहन से ग्रिड तक: जब ग्रिड को अतिरिक्त बिजली की आवश्यकता होती है, तो आपकी कार की बैटरी में संग्रहीत बिजली का उपयोग किया जा सकता है।
V2G कैसे काम करता है?
जब एक इलेक्ट्रिक वाहन को V2G-सक्षम चार्जिंग स्टेशन से जोड़ा जाता है, तो यह ग्रिड के साथ संचार कर सकता है। यह संचार ग्रिड ऑपरेटरों को यह निर्धारित करने की अनुमति देता है कि कब और कितनी बिजली को वाहन से ग्रिड में वापस भेजा जाना चाहिए।
इस प्रक्रिया को समझना महत्वपूर्ण है:
- अतिरिक्त बिजली को स्टोर करना: EV मालिक रात में या ऑफ-पीक घंटों के दौरान अपनी कार को चार्ज कर सकते हैं, जब बिजली की दरें कम होती हैं।
- ऊर्जा वापस देना: दिन के दौरान, जब बिजली की मांग अधिक होती है और कीमतें बढ़ जाती हैं (पीक आवर्स), तो EV अपनी बैटरी से बिजली ग्रिड को वापस भेज सकता है।
- आर्थिक लाभ: EV मालिक इस सेवा के लिए वित्तीय प्रोत्साहन या भुगतान प्राप्त कर सकते हैं, जिससे उनकी ऊर्जा लागत में कमी आती है।
V2G के लाभ
V2G तकनीक के कई लाभ हैं जो इसे भविष्य की ऊर्जा प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण बनाते हैं।
- ग्रिड स्थायित्व: V2G ग्रिड को स्थिर करने में मदद करता है। जब बिजली की मांग अचानक बढ़ जाती है, तो EVs तत्काल बिजली आपूर्ति करके ब्लैकआउट को रोक सकते हैं।
- नवीकरणीय ऊर्जा का एकीकरण: सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोतों में बिजली का उत्पादन अनियमित होता है। V2G EVs अतिरिक्त नवीकरणीय ऊर्जा को स्टोर कर सकते हैं और इसे तब वापस ग्रिड में भेज सकते हैं जब इन स्रोतों से उत्पादन कम होता है। यह नवीकरणीय ऊर्जा को और अधिक विश्वसनीय बनाता है।
- ऊर्जा लागत में कमी: यह उपभोक्ताओं को पैसे बचाने में मदद करता है। वे बिजली को कम लागत पर खरीद सकते हैं और अधिक लागत पर बेच सकते हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा: यह ग्रिड को अधिक लचीला बनाता है और पारंपरिक बिजली संयंत्रों पर निर्भरता कम करता है।
BESS (बैटरी एनर्जी स्टोरेज सिस्टम) का उपयोग करके ग्रिड आवृत्ति विनियमन (Grid Frequency Regulation) का मतलब है कि बिजली ग्रिड की स्थिरता बनाए रखने के लिए BESS का उपयोग किया जाता है। ग्रिड की आवृत्ति (frequency) यह दर्शाती है कि बिजली की आपूर्ति और मांग के बीच संतुलन कैसा है।
ग्रिड आवृत्ति क्या है?
किसी भी बिजली ग्रिड में, बिजली की आपूर्ति और मांग हमेशा बराबर होनी चाहिए। भारत में, यह आवृत्ति 50 हर्ट्ज़ (Hz) पर स्थिर रखी जाती है।
- अगर बिजली की मांग, आपूर्ति से अधिक हो जाती है, तो ग्रिड की आवृत्ति कम होने लगती है।
- अगर बिजली की आपूर्ति, मांग से अधिक हो जाती है, तो ग्रिड की आवृत्ति बढ़ने लगती है।
आवृत्ति में यह उतार-चढ़ाव ग्रिड के उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकता है और बिजली आपूर्ति में व्यवधान पैदा कर सकता है।
BESS की भूमिका
BESS एक बहुत ही तेज़ी से प्रतिक्रिया देने वाला सिस्टम है। यह कुछ ही मिलीसेकंड में बिजली को ग्रिड में भेज या उससे ले सकता है। यही कारण है कि यह ग्रिड आवृत्ति विनियमन के लिए आदर्श है।
- जब आवृत्ति कम होती है (बिजली की मांग अधिक): BESS तुरंत अपनी संग्रहीत ऊर्जा को ग्रिड में डाल देता है। यह अतिरिक्त बिजली की आपूर्ति करके आवृत्ति को वापस 50 Hz पर लाने में मदद करता है।
- जब आवृत्ति बढ़ती है (बिजली की आपूर्ति अधिक): BESS अतिरिक्त बिजली को अवशोषित करके अपनी बैटरी को चार्ज करना शुरू कर देता है। यह ग्रिड से अतिरिक्त ऊर्जा हटाकर आवृत्ति को कम करने और उसे स्थिर करने में मदद करता है।
संक्षेप में,
BESS ग्रिड के लिए एक "ऊर्जा बफर" के रूप में काम करता है, जो वास्तविक समय में आपूर्ति और मांग के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
BESS का उपयोग करके वोल्टेज समर्थन का मतलब है कि एक बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली (BESS) ग्रिड में वोल्टेज के स्तर को स्थिर रखने में मदद करती है। यह ग्रिड पर होने वाले उतार-चढ़ाव को तुरंत नियंत्रित करके किया जाता है, जिससे बिजली की गुणवत्ता और विश्वसनीयता बेहतर होती है।
वोल्टेज समर्थन कैसे काम करता है?
वोल्टेज एक महत्वपूर्ण पैरामीटर है जो यह निर्धारित करता है कि बिजली कितनी प्रभावी ढंग से एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा रही है। जब किसी ग्रिड में मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन होता है, तो वोल्टेज में गिरावट या वृद्धि हो सकती है।
- वोल्टेज में गिरावट (जब मांग अधिक हो): जब बिजली की मांग अचानक बढ़ जाती है (उदाहरण के लिए, गर्म दिन में जब सभी एयर कंडीशनर चल रहे हों), तो वोल्टेज कम होने लगता है। BESS इस स्थिति का पता लगाता है और तुरंत ग्रिड में बिजली भेजकर वोल्टेज को बढ़ाता है।
- वोल्टेज में वृद्धि (जब आपूर्ति अधिक हो): जब बिजली का उत्पादन अचानक बढ़ जाता है (जैसे कि एक तेज धूप वाले दिन सौर पैनलों से बहुत अधिक बिजली उत्पन्न होती है), तो वोल्टेज बढ़ने लगता है। BESS इस अतिरिक्त बिजली को अवशोषित करके अपनी बैटरी को चार्ज कर लेता है, जिससे ग्रिड का वोल्टेज स्थिर हो जाता है।
BESS की यह क्षमता इसे अन्य पारंपरिक तरीकों की तुलना में अधिक प्रभावी बनाती है क्योंकि यह बहुत तेज़ी से (मिलीसेकंड में) प्रतिक्रिया दे सकता है।
BESS का उपयोग करके वोल्टेज का समर्थन करना बिजली की गुणवत्ता को बढ़ाता है, उपकरणों को नुकसान से बचाता है, और ग्रिड को अधिक लचीला और विश्वसनीय बनाता है, खासकर नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करने के लिए।
BESS (बैटरी ऊर्जा भंडारण प्रणाली) की तैनाती में सबसे बड़ी चुनौती उच्च प्रारंभिक लागत है। यह प्रणाली को स्थापित करने के लिए आवश्यक निवेश को संदर्भित करता है, जिसमें बैटरी, पावर कन्वर्जन सिस्टम, प्रबंधन सॉफ्टवेयर और अन्य संबंधित उपकरण शामिल हैं।
इसके अलावा, कई अन्य चुनौतियाँ भी हैं जो BESS की व्यापक तैनाती में बाधा डालती हैं:
1. उच्च लागत और वित्तपोषण संबंधी बाधाएँ
BESS की स्थापना के लिए बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। यह लागत न केवल बैटरी पैक की होती है, बल्कि पूरे सिस्टम की होती है, जिसमें चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और ग्रिड से जुड़ाव शामिल होता है। भारत जैसे देशों में, यह चुनौती और भी बड़ी हो जाती है, क्योंकि लिथियम और कोबाल्ट जैसे महत्वपूर्ण खनिजों के लिए आयात पर निर्भरता अधिक है, जिससे लागत अस्थिर रहती है। निवेशकों को भी बड़े पैमाने पर BESS परियोजनाओं के लिए वित्तपोषण करने में झिझक होती है, क्योंकि इस बाजार में अभी भी जोखिम और अनिश्चितता बनी हुई है।
2. सुरक्षा और संचालन जोखिम
लिथियम-आयन बैटरी, जो BESS में सबसे अधिक उपयोग होती हैं, में थर्मल रनअवे का जोखिम होता है, जिससे आग या विस्फोट हो सकता है। इस जोखिम को कम करने के लिए, उन्नत अग्नि शमन प्रणाली, तापमान नियंत्रण और बैटरी प्रबंधन प्रणाली (BMS) की आवश्यकता होती है, जिससे लागत और जटिलता और बढ़ जाती है।
3. बैटरी का जीवनकाल और प्रदर्शन में गिरावट
समय के साथ और कई बार चार्ज-डिस्चार्ज होने पर, बैटरी की क्षमता और दक्षता में गिरावट आती है। इससे BESS का प्रदर्शन कम होता जाता है और अंततः बैटरी को बदलने की आवश्यकता पड़ती है, जिससे परिचालन और रखरखाव की लागत बढ़ जाती है।
4. नियामक और नीतिगत अनिश्चितता
BESS को बढ़ावा देने के लिए एक स्पष्ट और स्थिर नीतिगत ढाँचे की कमी एक बड़ी चुनौती है। ग्रिड ऑपरेटरों और नियामक निकायों के लिए यह समझना और परिभाषित करना मुश्किल है कि BESS को कैसे एकीकृत किया जाए और इसके लिए क्या प्रोत्साहन दिया जाए, जिससे निवेशकों के लिए जोखिम बढ़ जाता है।
5. आपूर्ति श्रृंखला और भू-राजनीतिक जोखिम
BESS में उपयोग होने वाले महत्वपूर्ण खनिज, जैसे लिथियम, निकल, और कोबाल्ट, कुछ ही देशों में पाए जाते हैं। इन खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला पर कुछ देशों का प्रभुत्व है, जिससे आपूर्ति में व्यवधान और कीमतों में उतार-चढ़ाव का खतरा बना रहता है।
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