विद्युत उत्पादन (Electricity Generation) का अर्थ है ऊर्जा के अन्य स्रोतों से विद्युत शक्ति का निर्माण करना। व्यावहारिक रूप से, बिजली का उत्पादन विद्युत जनित्रों (generators) द्वारा किया जाता है। माइकल फैराडे ने 1820 के दशक में विद्युत उत्पादन के मूलभूत सिद्धांत की खोज की थी।
विद्युत उत्पादन के मूलभूत सिद्धांत:
मूल सिद्धांत यह है कि जब तार की एक कुंडली को किसी चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है, तो उसमें विद्युत धारा उत्पन्न होती है। इसी सिद्धांत पर आज भी आधुनिक जनरेटर काम करते हैं।
बिजलीघर (Power Plants) और उत्पादन की प्रक्रिया:
बिजली जहां उत्पन्न होती है, उसे बिजलीघर (power plant) कहते हैं। बिजलीघरों में, विद्युत-यांत्रिक जनित्रों द्वारा बिजली पैदा की जाती है, जिन्हें किसी अन्य युक्ति से घुमाया जाता है, जिसे प्रधान चालक (prime mover) कहते हैं। यह प्रधान चालक यांत्रिक ऊर्जा प्रदान करता है, जिसे जनरेटर विद्युत ऊर्जा में बदलता है।
प्रधान चालक विभिन्न प्रकार के हो सकते हैं, जैसे:
* जल टर्बाइन (Hydro Turbines):
जल विद्युत परियोजनाओं में, नदियों के पानी के प्रवाह की गति का उपयोग टर्बाइन घुमाने के लिए किया जाता है।
* वाष्प टर्बाइन (Steam Turbines):
कोयले, प्राकृतिक गैस, परमाणु ऊर्जा या बायोमास को जलाकर पानी को भाप में बदला जाता है। इस उच्च दबाव वाली भाप का उपयोग टर्बाइन को घुमाने के लिए किया जाता है।
* गैस टर्बाइन (Gas Turbines):
प्राकृतिक गैस को जलाकर उत्पन्न उच्च दबाव वाली गैस से टर्बाइन को घुमाया जाता है।
* पवन टर्बाइन (Wind Turbines):
पवन ऊर्जा में, हवा की गति का उपयोग सीधे टर्बाइन को घुमाने के लिए किया जाता है।
* डीजल इंजन (Diesel Engines):
कुछ छोटे बिजलीघरों या आपातकालीन बिजली आपूर्ति के लिए डीजल इंजन का उपयोग किया जाता है।
विद्युत उत्पादन की विविध विधियाँ:
विद्युत उत्पादन के कई तरीके हैं, जिन्हें मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
1. गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (Non-Renewable Energy Sources):
* तापीय ऊर्जा (Thermal Power):
यह भारत में बिजली उत्पादन का सबसे बड़ा स्रोत है (लगभग 65% से अधिक)। इसमें कोयला, प्राकृतिक गैस या तरल ईंधन (जैसे डीजल) को जलाकर पानी को भाप में बदला जाता है, जिससे टर्बाइन घूमते हैं और बिजली पैदा होती है।
* परमाणु ऊर्जा (Nuclear Power):
परमाणु विखंडन (fission) की प्रक्रिया से गर्मी उत्पन्न की जाती है, जो पानी को भाप में बदलती है और टर्बाइन को चलाती है।
2. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत (Renewable Energy Sources):
* जलविद्युत (Hydroelectricity):
बहते पानी की गतिज ऊर्जा का उपयोग करके टर्बाइन घुमाई जाती है।
* सौर ऊर्जा (Solar Energy):
* फोटोवोल्टिक (Photovoltaic - PV) पैनल:
सूर्य के प्रकाश को सीधे बिजली में बदलते हैं।
* सौर तापीय (Solar Thermal):
सूर्य की गर्मी का उपयोग करके पानी को भाप में बदला जाता है और टर्बाइन घुमाई जाती है।
* पवन ऊर्जा (Wind Energy):
हवा की गति से पवन टर्बाइन घूमती हैं और बिजली पैदा करती हैं।
* बायोमास ऊर्जा (Biomass Energy):
जैविक पदार्थों को जलाकर या गैसीकृत करके गर्मी उत्पन्न की जाती है, जिससे टर्बाइन घूमती हैं।
* भूतापीय ऊर्जा (Geothermal Energy):
पृथ्वी के अंदर की गर्मी का उपयोग करके पानी को भाप में बदला जाता है।
भारत में विद्युत उत्पादन:
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बिजली उत्पादक और तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत में बिजली उत्पादन का प्रमुख स्रोत अभी भी कोयला-आधारित तापीय ऊर्जा है, लेकिन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में तेजी से वृद्धि हो रही है। भारत सरकार 2035 तक नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी को काफी बढ़ाने का लक्ष्य रख रही है।
संक्षेप में, विद्युत उत्पादन ऊर्जा के अन्य रूपों को विद्युत ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया है, जिसमें मुख्य रूप से जनरेटर का उपयोग किया जाता है जो विभिन्न ऊर्जा स्रोतों से यांत्रिक ऊर्जा प्राप्त करते हैं।
विद्युत उत्पादन का मूलभूत सिद्धांत विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) है। इस सिद्धांत की खोज माइकल फैराडे (Michael Faraday) ने 1820 के दशक के दौरान और 1830 के दशक की शुरुआत में की थी।
यह सिद्धांत बताता है कि:
* जब एक चालक (जैसे तार की कुंडली) किसी चुंबकीय क्षेत्र में गति करता है, या जब एक चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र बदलता है, तो उस चालक में एक विद्युत वाहक बल (Electromotive Force - EMF) उत्पन्न होता है, जिससे विद्युत धारा प्रवाहित होती है।
सरल शब्दों में, इसका मतलब है कि बिजली पैदा करने के लिए आपको तीन मुख्य चीजें चाहिए:
* एक चालक (Conductor):
आमतौर पर तांबे के तार की एक कुंडली।
* एक चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field):
यह स्थायी चुम्बक या विद्युत चुम्बक द्वारा बनाया जा सकता है।
* सापेक्ष गति (Relative Motion):
चालक और चुंबकीय क्षेत्र के बीच गति होनी चाहिए। या तो चालक चुंबकीय क्षेत्र में घूमता है, या चुंबकीय क्षेत्र चालक के चारों ओर घूमता है।
जब यह सापेक्ष गति होती है, तो चालक में मौजूद इलेक्ट्रॉन गतिमान चुंबकीय क्षेत्र के कारण एक बल का अनुभव करते हैं, जिससे वे एक दिशा में प्रवाहित होने लगते हैं और विद्युत धारा उत्पन्न होती है।
आधुनिक विद्युत जनरेटर (generators) इसी सिद्धांत पर काम करते हैं। वे एक टर्बाइन (जो पानी, भाप, गैस या हवा से घूमती है) का उपयोग करके एक बड़े चुंबक को तार की कुंडली के भीतर घुमाते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर बिजली का उत्पादन होता है।
'बिजली घाट' शब्द शायद 'बिजली उत्पादन संयंत्र' या 'पावर प्लांट' के संदर्भ में इस्तेमाल किया गया है। यदि ऐसा है, तो हम बिजली की प्रकृति और उसके उत्पादन की प्रकृति दोनों को समझेंगे।
बिजली (विद्युत) की प्रकृति
बिजली, जिसे हम विद्युत (Electricity) कहते हैं, ऊर्जा का एक रूप है। इसकी मूल प्रकृति आवेशित कणों, विशेषकर इलेक्ट्रॉनों, के प्रवाह से संबंधित है।
इसे समझने के लिए, हम परमाणुओं की संरचना पर विचार करते हैं:
* परमाणु (Atom):
सभी पदार्थ परमाणुओं से बने होते हैं।
* नाभिक (Nucleus):
परमाणु के केंद्र में नाभिक होता है, जिसमें धनावेशित प्रोटॉन (Protons) और अनावेशित न्यूट्रॉन (Neutrons) होते हैं।
* इलेक्ट्रॉन (Electrons):
नाभिक के चारों ओर ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन चक्कर लगाते हैं।
सामान्य अवस्था में, एक परमाणु में प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉनों की संख्या बराबर होती है, जिससे परमाणु वैद्युत रूप से उदासीन होता है।
बिजली की प्रकृति के प्रमुख बिंदु:
* इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह:
जब इन इलेक्ट्रॉनों को एक निश्चित दिशा में गति करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो इस प्रवाह को विद्युत धारा (Electric Current) कहते हैं। यह इलेक्ट्रॉनों का यह संगठित प्रवाह ही बिजली है।
* ऊर्जा का रूप:
बिजली ऊर्जा का एक रूप है। यह ऊष्मा, प्रकाश, यांत्रिक ऊर्जा, और रासायनिक ऊर्जा जैसे अन्य ऊर्जा रूपों में परिवर्तित हो सकती है, और स्वयं भी इन्हीं ऊर्जा रूपों से उत्पन्न होती है।
* विद्युत चुम्बकीय घटना:
बिजली और चुंबकत्व आपस में जुड़े हुए हैं। गतिमान विद्युत आवेश चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करते हैं, और बदलते चुंबकीय क्षेत्र विद्युत आवेशों को गतिमान करते हैं (जैसा कि विद्युत उत्पादन के मूलभूत सिद्धांत - विद्युत चुम्बकीय प्रेरण - में होता है)। इस पूरे क्षेत्र को विद्युत चुम्बकत्व (Electromagnetism) कहते हैं।
* आवेश का संरक्षण:
आवेश को न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है; यह केवल एक वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानांतरित होता है।
* आवेश का क्वांटमीकरण:
आवेश हमेशा एक मूल इकाई (इलेक्ट्रॉन पर आवेश का परिमाण) का पूर्ण गुणज होता है।
संक्षेप में, बिजली एक ऐसी भौतिक घटना है जो आवेशित कणों, विशेषकर इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह से उत्पन्न होती है, और यह ऊर्जा का एक अत्यंत उपयोगी रूप है।
विद्युत उत्पादन की प्रकृति
विद्युत उत्पादन की प्रकृति मूल रूप से ऊर्जा के एक रूप को दूसरे रूप में परिवर्तित करना है, विशेष रूप से यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से विद्युत जनित्रों (Electrical Generators) द्वारा संपन्न होती है।
विद्युत उत्पादन की प्रकृति को समझने के लिए कुछ मुख्य पहलू:
* ऊर्जा रूपांतरण (Energy Conversion):
बिजली उत्पादन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू ऊर्जा का रूपांतरण है। विभिन्न ऊर्जा स्रोतों (जैसे कोयले की रासायनिक ऊर्जा, पानी की गतिज ऊर्जा, सूर्य की प्रकाश ऊर्जा, हवा की गतिज ऊर्जा) को पहले यांत्रिक ऊर्जा में बदला जाता है, और फिर इस यांत्रिक ऊर्जा को जनरेटर द्वारा विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
* उदाहरण:
* थर्मल पावर प्लांट:
कोयले की रासायनिक ऊर्जा → ऊष्मीय ऊर्जा (पानी को भाप में बदलना) → यांत्रिक ऊर्जा (टर्बाइन घुमाना) → विद्युत ऊर्जा (जनरेटर द्वारा)।
* जलविद्युत संयंत्र:
पानी की स्थितिज और गतिज ऊर्जा → यांत्रिक ऊर्जा (टर्बाइन घुमाना) → विद्युत ऊर्जा (जनरेटर द्वारा)।
* पवन ऊर्जा: हवा की गतिज ऊर्जा → यांत्रिक ऊर्जा (पवनचक्की घुमाना) → विद्युत ऊर्जा (जनरेटर द्वारा)।
* सौर फोटोवोल्टिक (PV):
सूर्य की प्रकाश ऊर्जा → सीधे विद्युत ऊर्जा (कोई यांत्रिक रूपांतरण नहीं)।
* विद्युत चुम्बकीय प्रेरण का उपयोग:
जैसा कि ऊपर बताया गया है, विद्युत उत्पादन का आधार विद्युत चुम्बकीय प्रेरण है। जनरेटर में, एक चालक (तार की कुंडली) को एक चुंबकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है, जिससे उसमें विद्युत धारा उत्पन्न होती है।
* प्रधान चालक (Prime Mover):
जनरेटर को घुमाने के लिए आवश्यक यांत्रिक ऊर्जा प्रदान करने वाले उपकरण को प्रधान चालक कहते हैं। इसकी प्रकृति ऊर्जा स्रोत पर निर्भर करती है (जैसे भाप टर्बाइन, जल टर्बाइन, गैस टर्बाइन, पवन टर्बाइन, या डीजल इंजन)।
* स्केल और दक्षता:
विद्युत उत्पादन संयंत्रों की प्रकृति उनके आकार और दक्षता पर निर्भर करती है। बड़े केंद्रीयकृत पावर प्लांट (जैसे थर्मल या परमाणु) बड़ी मात्रा में बिजली उत्पन्न करते हैं, जबकि विकेन्द्रीकृत स्रोत (जैसे सौर पैनल) छोटे पैमाने पर उत्पादन कर सकते हैं। दक्षता इस बात पर निर्भर करती है कि ऊर्जा रूपांतरण प्रक्रिया कितनी प्रभावी है।
* पर्यावरणीय प्रभाव:
विद्युत उत्पादन की प्रकृति में इसके पर्यावरणीय प्रभाव भी शामिल हैं। जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कम या कोई उत्सर्जन नहीं करते हैं।
संक्षेप में, विद्युत उत्पादन की प्रकृति विभिन्न ऊर्जा स्रोतों से यांत्रिक ऊर्जा प्राप्त करके उसे विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में कुशलतापूर्वक और बड़े पैमाने पर परिवर्तित करने की प्रक्रिया है।
विद्युत उत्पादन (Electricity generation) वह प्रक्रिया है जिससे विभिन्न ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके बिजली बनाई जाती है। दुनिया भर में और भारत में भी, बिजली उत्पादन के कई तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं, जिन्हें मुख्य रूप से पारंपरिक और गैर-पारंपरिक (नवीकरणीय) स्रोतों में बांटा जा सकता है।
विद्युत उत्पादन के प्रमुख स्रोत
1. पारंपरिक स्रोत (Conventional Sources)
ये वे स्रोत हैं जिनका लंबे समय से बिजली उत्पादन के लिए उपयोग किया जा रहा है और इनमें से कुछ सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं:
* थर्मल पावर (Thermal Power):
यह भारत में बिजली उत्पादन का सबसे बड़ा स्रोत है.
* कोयला आधारित (Coal-fired):
कोयले को जलाकर पानी को भाप में बदला जाता है. यह उच्च दबाव वाली भाप टर्बाइन को घुमाती है, जिससे जनरेटर बिजली पैदा करता है.
* गैस आधारित (Gas-fired):
प्राकृतिक गैस को जलाकर सीधे टर्बाइन को चलाया जाता है या भाप बनाने के लिए उपयोग किया जाता है.
* डीजल आधारित (Diesel-fired):
मुख्य रूप से छोटे पैमाने पर या आपातकालीन बैकअप के लिए उपयोग किया जाता है.
* हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर (Hydroelectric Power): बहते या गिरते पानी की गतिज ऊर्जा का उपयोग टर्बाइन चलाने और बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है. बड़े बांध बनाकर पानी को नियंत्रित किया जाता है.
* परमाणु ऊर्जा (Nuclear Power):
परमाणु विखंडन (nuclear fission) की प्रक्रिया से निकलने वाली गर्मी का उपयोग पानी को भाप में बदलने और टर्बाइन चलाने के लिए किया जाता है. इसमें यूरेनियम जैसे रेडियोधर्मी तत्वों का उपयोग होता है.
2. गैर-पारंपरिक या नवीकरणीय स्रोत (Non-conventional or Renewable Sources)
ये वे स्रोत हैं जो प्राकृतिक रूप से फिर से भर जाते हैं और पर्यावरण पर कम प्रभाव डालते हैं:
* सौर ऊर्जा (Solar Power):
* सौर फोटोवोल्टिक (Solar Photovoltaic - PV): सूर्य के प्रकाश को सीधे बिजली में बदलने के लिए सौर पैनलों का उपयोग किया जाता है.
* सौर तापीय (Solar Thermal):
सूर्य की गर्मी का उपयोग पानी को गर्म करके भाप बनाने और टर्बाइन चलाने के लिए किया जाता है.
* पवन ऊर्जा (Wind Power):
पवन ऊर्जा में हवा की गति का उपयोग पवन टर्बाइन के ब्लेड को घुमाने के लिए किया जाता है, जो एक जनरेटर से जुड़े होते हैं और बिजली उत्पन्न करते हैं.
* बायोमास ऊर्जा (Biomass Energy): जैविक सामग्री (जैसे कृषि अपशिष्ट, पौधों के अवशेष, पशु खाद) को जलाकर या गैसीकरण करके गर्मी पैदा की जाती है, जिसका उपयोग भाप बनाने और बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है.
* भूतापीय ऊर्जा (Geothermal Energy):
पृथ्वी के अंदर की गर्मी (गर्म पानी या भाप) का उपयोग टर्बाइन चलाने और बिजली पैदा करने के लिए किया जाता है.
* लघु जलविद्युत परियोजनाएं (Small Hydro Project):
ये बड़े बांधों की तुलना में छोटे पैमाने पर जलविद्युत परियोजनाएं होती हैं.
* समुद्री ऊर्जा (Marine Energy):
इसमें ज्वार-भाटा (tidal power) और तरंग ऊर्जा (wave power) शामिल है, जो समुद्र की गति का उपयोग करके बिजली पैदा करती है.
बिजली उत्पादन की सामान्य प्रक्रिया
अधिकांश बिजली संयंत्रों में, बुनियादी सिद्धांत यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलना होता है. यह आमतौर पर एक जनरेटर (generator) का उपयोग करके किया जाता है, जो माइकल फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित है.
* ऊर्जा स्रोत:
सबसे पहले, किसी भी ऊर्जा स्रोत (कोयला, पानी, हवा, सूर्य, परमाणु ईंधन) से यांत्रिक ऊर्जा प्राप्त की जाती है.
* टर्बाइन (Turbine):
यह यांत्रिक ऊर्जा एक टर्बाइन को घुमाती है. टर्बाइन में ब्लेड होते हैं जो भाप, पानी, हवा या गैस के बल से घूमते हैं.
* जनरेटर (Generator):
टर्बाइन एक शाफ्ट के माध्यम से जनरेटर से जुड़ा होता है. जब टर्बाइन घूमता है, तो जनरेटर के अंदर के मैग्नेट और कॉइल के बीच सापेक्ष गति होती है, जिससे बिजली (विद्युत धारा) उत्पन्न होती है.
* ट्रांसमिशन और वितरण (Transmission and Distribution):
उत्पन्न बिजली को फिर ट्रांसफार्मर की मदद से उच्च वोल्टेज में परिवर्तित किया जाता है और लंबी दूरी तक ट्रांसमिशन लाइनों के माध्यम से भेजा जाता है. अंत में, इसे उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए वितरण नेटवर्क के माध्यम से निम्न वोल्टेज में परिवर्तित किया जाता है.
भारत में, थर्मल पावर (मुख्यतः कोयला) अभी भी बिजली उत्पादन का सबसे बड़ा हिस्सा है, लेकिन सरकार नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, विशेषकर सौर और पवन ऊर्जा में निवेश और उत्पादन बढ़ाने पर जोर दे रही है.
क्या आप बिजली उत्पादन के किसी विशेष पहलू या स्रोत के बारे में अधिक जानना चाहेंगे?
"ऊष्मा विद्युत" (Thermal Power) का सीधा अर्थ है गर्मी (ऊष्मा) का उपयोग करके बिजली (विद्युत) का उत्पादन करना। यह विद्युत उत्पादन का एक प्रमुख तरीका है, खासकर भारत जैसे देशों में।
यह कैसे काम करता है?
ऊष्मा विद्युत संयंत्रों (Thermal Power Plants) में, ईंधन को जलाकर पानी को भाप में बदला जाता है, और फिर इस भाप का उपयोग करके बिजली उत्पन्न की जाती है। इस प्रक्रिया को मोटे तौर पर इन चरणों में समझा जा सकता है:
* ईंधन का दहन (Fuel Combustion):
* सबसे पहले, कोयला, प्राकृतिक गैस या तेल जैसे जीवाश्म ईंधन को एक बॉयलर (boiler) में जलाया जाता है।
* यह दहन (जलने की प्रक्रिया) बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा ऊर्जा उत्पन्न करती है।
* भाप का निर्माण (Steam Generation):
* उत्पन्न हुई ऊष्मा का उपयोग बॉयलर में मौजूद पानी को गर्म करने के लिए किया जाता है।
* यह पानी बहुत अधिक दबाव और तापमान पर भाप (steam) में बदल जाता है, जिसे "सुपरहीटेड स्टीम" भी कहते हैं।
* टरबाइन का घूमना (Turbine Rotation):
* उच्च दबाव और उच्च तापमान वाली यह भाप एक टरबाइन (turbine) पर निर्देशित की जाती है।
* भाप के बल से टरबाइन के पंखे (blades) तेजी से घूमने लगते हैं। यह ऊष्मा ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) में बदलता है।
* बिजली का उत्पादन (Electricity Generation):
* टरबाइन सीधे एक जनरेटर (generator) से जुड़ा होता है।
* जब टरबाइन घूमता है, तो यह जनरेटर को घुमाता है, और जनरेटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा (electrical energy) में परिवर्तित करता है। इस तरह बिजली उत्पन्न होती है।
* संघनन और पुनर्चक्रण (Condensation and Reuse):
* टरबाइन से निकलने वाली भाप को फिर एक कंडेनसर (condenser) में भेजा जाता है।
* यहां भाप को ठंडा करके वापस पानी में बदल दिया जाता है। इस पानी को फिर से बॉयलर में पंप कर दिया जाता है ताकि प्रक्रिया को दोहराया जा सके। यह एक बंद लूप प्रणाली है, जिससे पानी का कुशल उपयोग होता है।
भारत में ऊष्मा विद्युत का महत्व:
भारत में विद्युत उत्पादन में ऊष्मा विद्युत, विशेषकर कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों का सबसे बड़ा हिस्सा है। जून 2025 तक, भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता का लगभग 50.52% तापीय ऊर्जा से आता है, जिसमें कोयला अकेले कुल तापीय ऊर्जा में 91% से अधिक का योगदान देता है।
यह भारत की बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, हालांकि इससे कार्बन उत्सर्जन और प्रदूषण संबंधी चुनौतियाँ भी जुड़ी हुई हैं। इसलिए, भारत अब नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को भी तेजी से बढ़ा रहा है ताकि ऊर्जा मिश्रण को अधिक टिकाऊ बनाया जा सके।
जल विद्युत (Hydroelectricity) वह विद्युत है जो बहते हुए या गिरते हुए पानी की ऊर्जा का उपयोग करके उत्पन्न की जाती है। यह एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, जिसका अर्थ है कि यह प्राकृतिक रूप से फिर से भर जाता है और इसका उपयोग करने से प्रदूषण नहीं होता है।
जल विद्युत कैसे उत्पन्न होती है?
जल विद्युत उत्पादन की प्रक्रिया में मुख्य रूप से पानी की स्थितिज ऊर्जा (potential energy) और गतिज ऊर्जा (kinetic energy) का उपयोग किया जाता है:
* बांध का निर्माण (Dam Construction):
* सबसे पहले, एक नदी पर एक बड़ा बांध बनाया जाता है। यह बांध पानी को रोककर एक बड़ा जलाशय (reservoir) बनाता है।
* जलाशय में पानी को ऊँचाई पर जमा करने से उसमें स्थितिज ऊर्जा (ऊंचाई के कारण ऊर्जा) बढ़ जाती है।
* पानी का प्रवाह (Water Flow):
* जलाशय से पानी को बड़े पाइपों (penstocks) के माध्यम से नियंत्रित तरीके से नीचे की ओर छोड़ा जाता है।
* जैसे-जैसे पानी नीचे गिरता है, उसकी स्थितिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा (गति के कारण ऊर्जा) में बदल जाती है। पानी बहुत तेज गति से बहता है।
* टरबाइन का घूमना (Turbine Rotation):
* तेज गति से बहता हुआ पानी टरबाइन (turbine) के ब्लेडों पर गिरता है और उन्हें तेजी से घुमाता है।
* यह पानी की गतिज ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा (mechanical energy) में परिवर्तित करता है।
* बिजली का उत्पादन (Electricity Generation):
* टरबाइन सीधे एक जनरेटर (generator) से जुड़ा होता है।
* जब टरबाइन घूमता है, तो यह जनरेटर को भी घुमाता है, और जनरेटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा (electrical energy) में बदल देता है। इस तरह बिजली उत्पन्न होती है।
* पानी का निकास (Water Discharge):
* टरबाइन से गुजरने के बाद पानी को वापस नदी में छोड़ दिया जाता है, जिससे नदी का प्राकृतिक बहाव बना रहता है।
जल विद्युत के लाभ और हानियां:
लाभ (Advantages):
* नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत: पानी एक प्राकृतिक और नवीकरणीय संसाधन है, इसलिए यह ऊर्जा का एक स्थायी स्रोत है।
* प्रदूषण मुक्त:
जल विद्युत उत्पादन में जीवाश्म ईंधन नहीं जलाए जाते, जिससे वायु प्रदूषण या ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं होता। यह पर्यावरण के अनुकूल है।
* कम परिचालन लागत:
एक बार संयंत्र बन जाने के बाद, इसकी परिचालन और रखरखाव लागत अपेक्षाकृत कम होती है।
* बहुउद्देशीय परियोजनाएं:
बांधों का उपयोग केवल बिजली उत्पादन के लिए ही नहीं, बल्कि सिंचाई, बाढ़ नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति और पर्यटन जैसे अन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है।
* ऊर्जा की मांग पर आपूर्ति:
जलविद्युत संयंत्रों में पानी के प्रवाह को नियंत्रित करके बिजली उत्पादन को मांग के अनुसार बढ़ाया या घटाया जा सकता है।
हानियां (Disadvantages):
* उच्च प्रारंभिक लागत:
बांधों और जलविद्युत संयंत्रों के निर्माण में बहुत अधिक पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है।
* पर्यावरणीय प्रभाव:
बांधों के निर्माण से बड़े क्षेत्रों में पानी भर जाता है, जिससे वनस्पति, वन्यजीव आवास और पारिस्थितिक तंत्र प्रभावित हो सकते हैं।
* लोगों का विस्थापन:
बांध निर्माण के लिए अक्सर बड़े क्षेत्रों को खाली कराना पड़ता है, जिससे स्थानीय समुदायों को विस्थापित होना पड़ता है।
* सूखे का खतरा:
सूखे की स्थिति में, जलाशय में पानी का स्तर कम हो सकता है, जिससे बिजली उत्पादन प्रभावित होता है।
* गाद जमा होना:
समय के साथ, जलाशयों में गाद (silt) जमा हो सकती है, जिससे उनकी भंडारण क्षमता कम हो जाती है और संयंत्र की दक्षता प्रभावित होती है।
* सीमित स्थान:
जलविद्युत संयंत्रों का निर्माण केवल उन स्थानों पर ही संभव है जहां पर्याप्त जल स्रोत और उपयुक्त भूभाग हो।
भारत में जल विद्युत उत्पादन:
भारत में जल विद्युत उत्पादन का एक लंबा इतिहास रहा है, पहला जलविद्युत संयंत्र 1897 में दार्जिलिंग के सिद्रापोंग में स्थापित किया गया था। भारत में कई महत्वपूर्ण जलविद्युत परियोजनाएं हैं जैसे भाखड़ा नांगल, गांधी सागर, नागार्जुन सागर और दामोदर नदी घाटी परियोजनाएं।
भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता में जल विद्युत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। हालांकि, कोयला आधारित ताप विद्युत अभी भी प्रमुख है, लेकिन भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता के लिए जलविद्युत और अन्य नवीकरणीय स्रोतों पर लगातार ध्यान केंद्रित कर रहा है।
Nuclear Power (परमाणु ऊर्जा) बिजली उत्पादन का एक तरीका है जो परमाणु के नाभिक (nucleus) में संग्रहित ऊर्जा का उपयोग करता है। दुनिया भर में वर्तमान में बिजली उत्पादन के लिए परमाणु विखंडन (nuclear fission) की प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है। परमाणु संलयन (nuclear fusion) अभी अनुसंधान और विकास के चरण में है।
परमाणु ऊर्जा कैसे उत्पन्न होती है (How Nuclear Power is Generated):
परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में बिजली बनाने की प्रक्रिया कुछ हद तक थर्मल पावर प्लांट जैसी ही होती है, लेकिन गर्मी पैदा करने का तरीका अलग होता है:
* परमाणु विखंडन (Nuclear Fission):
* परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में, यूरेनियम-235 जैसे भारी परमाणु के नाभिक को एक न्यूट्रॉन से टकराकर विभाजित किया जाता है।
* इस विखंडन प्रक्रिया से बड़ी मात्रा में ऊर्जा, मुख्य रूप से गर्मी और विकिरण के रूप में, निकलती है।
* इसके साथ ही, अतिरिक्त न्यूट्रॉन भी निकलते हैं जो आस-पास के अन्य यूरेनियम परमाणुओं से टकराकर एक "श्रृंखला प्रतिक्रिया" (chain reaction) शुरू करते हैं। इस श्रृंखला प्रतिक्रिया को नियंत्रित किया जाता है ताकि ऊर्जा का उत्पादन स्थिर और सुरक्षित तरीके से हो।
* गर्मी का उत्पादन (Heat Production):
* परमाणु विखंडन से उत्पन्न यह तीव्र गर्मी रिएक्टर (reactor) के शीतलक (cooling agent), आमतौर पर पानी, को गर्म करती है।
* भाप का निर्माण (Steam Generation):
* गर्म पानी या विशेष शीतलक भाप जनरेटर (steam generator) में पानी को भाप में बदलता है। यह भाप उच्च दबाव और उच्च तापमान पर होती है।
* टरबाइन का घूमना (Turbine Rotation):
* उच्च दबाव वाली भाप को टरबाइन (turbine) पर निर्देशित किया जाता है, जिससे टरबाइन के ब्लेड घूमते हैं। यह ऊष्मा ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है।
* बिजली का उत्पादन (Electricity Generation):
* टरबाइन एक जनरेटर (generator) से जुड़ा होता है। टरबाइन के घूमने से जनरेटर भी घूमता है और यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है, जिससे बिजली उत्पन्न होती है।
* संघनन और पुनर्चक्रण (Condensation and Recycling):
* टरबाइन से निकली भाप को ठंडा करके वापस पानी में बदल दिया जाता है और इस पानी को फिर से बॉयलर में पंप कर दिया जाता है, ताकि प्रक्रिया दोहराई जा सके।
परमाणु ऊर्जा के लाभ (Advantages):
* कम कार्बन उत्सर्जन (Low Carbon Emissions): परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के संचालन से लगभग शून्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है, जिससे यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
* उच्च ऊर्जा घनत्व (High Energy Density):
बहुत कम मात्रा में परमाणु ईंधन (जैसे यूरेनियम) से बड़ी मात्रा में बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, 1 किलोग्राम यूरेनियम में 2.7 मिलियन किलोग्राम कोयले के बराबर ऊर्जा होती है।
* विश्वसनीय और बेसलोड पावर (Reliable and Baseload Power):
परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगातार और विश्वसनीय रूप से 24/7 बिजली का उत्पादन कर सकते हैं, जो ग्रिड की न्यूनतम मांग (बेसलॉड) को पूरा करने के लिए महत्वपूर्ण है। यह मौसम पर निर्भर नहीं करता, जैसा कि सौर या पवन ऊर्जा के साथ होता है।
* जीवाश्म ईंधन पर कम निर्भरता (Reduced Dependency on Fossil Fuels):
परमाणु ऊर्जा का उपयोग करके देशों को तेल, गैस और कोयले जैसे आयातित जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद मिलती है।
* संचालन की कम लागत (Low Operating Costs): हालांकि प्रारंभिक निर्माण लागत अधिक होती है, एक बार संयंत्र बन जाने के बाद, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को चलाने की लागत अपेक्षाकृत कम होती है।
परमाणु ऊर्जा की हानियां (Disadvantages):
* उच्च प्रारंभिक और निर्माण लागत (High Upfront and Construction Costs):
परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण बहुत महंगा और समय लेने वाला होता है।
* परमाणु कचरा (Nuclear Waste):
परमाणु विखंडन प्रक्रिया से अत्यधिक रेडियोधर्मी अपशिष्ट (radioactive waste) निकलता है, जो हजारों वर्षों तक खतरनाक बना रहता है। इस कचरे के सुरक्षित दीर्घकालिक निपटान (disposal) एक बड़ी चुनौती है।
* दुर्घटनाओं का जोखिम (Risk of Accidents): चेरनोबिल और फुकुशिमा जैसी परमाणु दुर्घटनाओं का इतिहास रहा है, जिनके विनाशकारी पर्यावरणीय और मानवीय परिणाम हो सकते हैं, हालांकि आधुनिक संयंत्रों में सुरक्षा प्रोटोकॉल बहुत सख्त होते हैं।
* सुरक्षा संबंधी चिंताएं (Security Concerns):
परमाणु सामग्री का उपयोग हथियार बनाने में किया जा सकता है, जिससे परमाणु प्रसार (nuclear proliferation) और सुरक्षा संबंधी चिंताएं पैदा होती हैं।
* ईंधन की सीमित आपूर्ति (Limited Fuel Supply): यूरेनियम एक गैर-नवीकरणीय संसाधन है, हालांकि इसकी वर्तमान आपूर्ति पर्याप्त है, यह अनंत नहीं है।
* सार्वजनिक धारणा (Public Perception):
परमाणु दुर्घटनाओं के इतिहास और परमाणु कचरे से जुड़ी चिंताओं के कारण परमाणु ऊर्जा को लेकर आम जनता में अक्सर नकारात्मक धारणा होती है।
भारत में परमाणु ऊर्जा (Nuclear Power in India):
भारत के पास एक स्वदेशी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम है। यह अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए परमाणु ऊर्जा को एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानता है।
* वर्तमान स्थिति: अप्रैल 2025 तक, भारत में 8 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में 25 परमाणु रिएक्टर काम कर रहे हैं, जिनकी कुल स्थापित क्षमता 8,880 मेगावाट है। यह भारत की कुल बिजली उत्पादन का लगभग 3% योगदान करता है।
* भविष्य की योजनाएं:
भारत सरकार ने 2047 तक परमाणु ऊर्जा क्षमता को कम से कम 100 GW तक बढ़ाने का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है। 11 और रिएक्टर निर्माणाधीन हैं जिनकी संयुक्त क्षमता 8,700 मेगावाट है।
* थोरियम-आधारित ईंधन चक्र (Thorium-based Fuel Cycle):
भारत थोरियम के बड़े भंडार का उपयोग करने के लिए एक अद्वितीय तीन-चरण वाले परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को विकसित कर रहा है। यह अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
* स्वदेशीकरण:
भारत ने अपने परमाणु ईंधन चक्र में पूर्ण आत्मनिर्भरता हासिल करने पर जोर दिया है, जिसमें यूरेनियम अन्वेषण, खनन, ईंधन निर्माण, भारी जल उत्पादन, रिएक्टर डिजाइन और निर्माण, और पुनर्संसाधन और अपशिष्ट प्रबंधन शामिल है।
कुल मिलाकर, परमाणु ऊर्जा एक जटिल ऊर्जा स्रोत है जिसके महत्वपूर्ण लाभ और चुनौतियां दोनों हैं। यह भारत के ऊर्जा मिश्रण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और भविष्य में इसकी भूमिका बढ़ने की संभावना है।
"सौर ऊर्जा" (Solar Power) वह ऊर्जा है जो सीधे सूर्य से प्राप्त होती है। यह एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, जिसका अर्थ है कि यह कभी खत्म नहीं होती और पर्यावरण के लिए स्वच्छ है। सूर्य पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है, और इस ऊर्जा को कई तरीकों से बिजली या गर्मी में बदला जा सकता है।
सौर ऊर्जा कैसे काम करती है? (How Solar Power Works?)
सौर ऊर्जा को मुख्य रूप से दो तरीकों से उपयोग किया जाता है:
* फोटोवोल्टिक (Photovoltaic - PV) प्रणाली:
* यह सबसे आम तरीका है जिसमें सौर पैनलों (Solar Panels) का उपयोग किया जाता है। सौर पैनल छोटे-छोटे सौर सेलों (Solar Cells) से मिलकर बने होते हैं।
* ये सौर सेल, आमतौर पर सिलिकॉन जैसे अर्धचालक पदार्थों (semiconductor materials) से बने होते हैं। जब सूर्य का प्रकाश (फोटॉन) इन सेलों पर पड़ता है, तो वे प्रकाश-विद्युत प्रभाव (photoelectric effect) के कारण इलेक्ट्रॉनों को उत्तेजित करते हैं।
* इन उत्तेजित इलेक्ट्रॉनों की गति से विद्युत धारा (direct current - DC) उत्पन्न होती है।
* यह DC बिजली फिर एक इनवर्टर (Inverter) से गुजरती है, जो इसे प्रत्यावर्ती धारा (alternating current - AC) में परिवर्तित करता है, जिसका उपयोग घरों और उद्योगों में किया जाता है।
* अतिरिक्त बिजली को बैटरी में संग्रहीत किया जा सकता है या बिजली ग्रिड में वापस भेजा जा सकता है (नेट-मीटरिंग के साथ)।
* केंद्रित सौर ऊर्जा (Concentrated Solar Power - CSP) प्रणाली:
* इस प्रणाली में दर्पणों (mirrors) या लेंसों का उपयोग करके सूर्य के प्रकाश को एक छोटे से क्षेत्र पर केंद्रित किया जाता है।
* यह केंद्रित सूर्य का प्रकाश एक तरल पदार्थ (जैसे सिंथेटिक तेल या पिघला हुआ नमक) को अत्यधिक गर्म करता है।
* इस गर्म तरल का उपयोग फिर पानी को भाप में बदलने के लिए किया जाता है।
* यह भाप एक टरबाइन को घुमाती है, जिससे जनरेटर द्वारा बिजली उत्पन्न होती है, जैसा कि थर्मल पावर प्लांट में होता है।
* यह तरीका बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है।
सौर ऊर्जा के लाभ (Advantages of Solar Power):
* नवीकरणीय और प्रचुर मात्रा में:
सूर्य ऊर्जा का एक असीमित स्रोत है। जब तक सूर्य है, तब तक सौर ऊर्जा उपलब्ध रहेगी।
* पर्यावरण के अनुकूल:
सौर ऊर्जा के उत्पादन से कोई ग्रीनहाउस गैसें (जैसे CO2) या अन्य प्रदूषक उत्सर्जित नहीं होते हैं। यह स्वच्छ ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है।
* बिजली के बिल में कमी:
सौर पैनल स्थापित करने से आप अपनी खुद की बिजली उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे पारंपरिक बिजली के बिलों में काफी कमी आती है।
* कम रखरखाव:
सौर पैनलों को एक बार स्थापित करने के बाद बहुत कम रखरखाव की आवश्यकता होती है।
* ऊर्जा स्वतंत्रता:
यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करता है और ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाता है।
* दूरस्थ क्षेत्रों के लिए उपयुक्त:
जिन क्षेत्रों में ग्रिड की सुविधा नहीं है, वहां सौर ऊर्जा बिजली का एक व्यवहार्य विकल्प प्रदान करती है।
* सरकार की प्रोत्साहन योजनाएं:
कई सरकारें (भारत सहित) सौर ऊर्जा अपनाने के लिए सब्सिडी और अन्य प्रोत्साहन प्रदान करती हैं।
सौर ऊर्जा की हानियां (Disadvantages of Solar Power):
* उच्च प्रारंभिक लागत:
सौर पैनलों और संबंधित उपकरणों की स्थापना की प्रारंभिक लागत काफी अधिक हो सकती है।
* मौसम पर निर्भरता:
सौर ऊर्जा केवल तभी उत्पन्न होती है जब सूर्य का प्रकाश उपलब्ध हो (दिन के समय और साफ मौसम में)। रात में या बादल वाले दिनों में उत्पादन कम हो जाता है।
* भंडारण की आवश्यकता:
रात में या खराब मौसम में बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए बैटरी जैसे ऊर्जा भंडारण समाधानों की आवश्यकता होती है, जो लागत बढ़ाते हैं।
* भूमि की आवश्यकता:
बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित करने के लिए बड़ी मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है।
* दक्षता:
सौर पैनलों की दक्षता अभी भी सीमित है, जिसका अर्थ है कि वे सूर्य के प्रकाश के एक छोटे प्रतिशत को ही बिजली में परिवर्तित कर पाते हैं।
* निर्माण और निपटान:
सौर पैनलों के निर्माण में कुछ हानिकारक सामग्री का उपयोग होता है, और उनके जीवनकाल के अंत में उनके निपटान की चुनौती होती है।
भारत में सौर ऊर्जा की वर्तमान स्थिति (Current Status of Solar Power in India):
भारत सौर ऊर्जा के क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देशों में से एक बन गया है और तेजी से अपनी सौर ऊर्जा क्षमता बढ़ा रहा है।
* क्षमता में वृद्धि:
भारत की कुल स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता में जबरदस्त वृद्धि हुई है। जुलाई 2025 तक, भारत की कुल स्थापित सौर ऊर्जा क्षमता 100 GW (गीगावाट) से अधिक हो गई है, और यह लगातार बढ़ रही है। भारत वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा में तीसरे स्थान पर है।
* बड़े सौर पार्क:
भारत में दुनिया के कुछ सबसे बड़े सौर पार्क हैं, जैसे राजस्थान में भाड़ला सोलर पार्क, कर्नाटक में पावागड़ा सोलर पार्क, आंध्र प्रदेश में कुर्नूल अल्ट्रा मेगा सोलर पार्क, आदि।
* सरकारी नीतियां:
भारत सरकार ने "राष्ट्रीय सौर मिशन" (National Solar Mission) और "प्रधान मंत्री सूर्योदय योजना" (Pradhan Mantri Suryodaya Yojana) जैसी विभिन्न नीतियों और योजनाओं के माध्यम से सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया है, जिसमें रूफटॉप सौर ऊर्जा पर विशेष जोर दिया गया है।
* निवेश और रोजगार:
सौर ऊर्जा क्षेत्र में भारी निवेश आ रहा है और यह बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर भी पैदा कर रहा है।
* लक्ष्य:
भारत का लक्ष्य 2030 तक अपनी 50% बिजली गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना है, जिसमें सौर ऊर्जा का एक बड़ा हिस्सा होगा। 2047 तक 1,800 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य है।
सौर ऊर्जा भारत की ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
पवन ऊर्जा (Wind Power) वह ऊर्जा है जो हवा की गति का उपयोग करके बिजली उत्पन्न करती है। यह एक स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है, जिसका अर्थ है कि यह प्रदूषण पैदा नहीं करती और हवा का स्रोत असीमित है।
पवन ऊर्जा कैसे काम करती है? (How Wind Power Works?)
पवन ऊर्जा मुख्य रूप से पवन टरबाइनों (Wind Turbines) के माध्यम से काम करती है। ये टरबाइन बड़े पंखों (blades) वाले ढांचे होते हैं, जो हवा के चलने पर घूमते हैं:
* पवन टरबाइन का घूमना (Wind Turbine Rotation):
* जब तेज हवा पवन टरबाइन के बड़े पंखों से टकराती है, तो ये पंखे हवाई जहाज के पंखों के समान वायुगतिकी (aerodynamics) का उपयोग करके घूमना शुरू कर देते हैं। यह हवा की गतिज ऊर्जा (kinetic energy) को यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है।
* आमतौर पर, तीन पंखों वाले टरबाइन सबसे आम होते हैं, लेकिन दो पंखों वाले या ऊर्ध्वाधर अक्ष (vertical axis) वाले टरबाइन भी मौजूद हैं।
* गियरबॉक्स और जनरेटर (Gearbox and Generator):
* घूमते हुए पंखे एक शाफ्ट (shaft) से जुड़े होते हैं, जो एक गियरबॉक्स (Gearbox) में जाता है। गियरबॉक्स पंखों की धीमी गति को जनरेटर के लिए आवश्यक उच्च गति में परिवर्तित करता है।
* यह उच्च गति वाली रोटेशन फिर एक जनरेटर (Generator) को चलाती है। जनरेटर यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा (electrical energy) में बदल देता है।
* बिजली का संचरण (Electricity Transmission):
* उत्पन्न बिजली को फिर ट्रांसफॉर्मर (transformer) के माध्यम से वोल्टेज बढ़ाकर विद्युत ग्रिड (electric grid) में भेजा जाता है, जहां से इसे घरों और व्यवसायों तक वितरित किया जाता है।
* कई पवन टरबाइनों को एक साथ स्थापित करके पवन फार्म (Wind Farm) बनाए जाते हैं, जो बड़े पैमाने पर बिजली उत्पादन करते हैं।
पवन ऊर्जा के लाभ (Advantages of Wind Power):
* नवीकरणीय और स्वच्छ ऊर्जा (Renewable and Clean Energy):
हवा एक प्राकृतिक और असीमित संसाधन है। पवन ऊर्जा उत्पादन से कोई ग्रीनहाउस गैस (जैसे CO2) या अन्य वायु प्रदूषक उत्सर्जित नहीं होते, जिससे यह जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्वपूर्ण है।
* कम परिचालन लागत (Low Operating Costs): एक बार स्थापित होने के बाद, पवन टरबाइनों को चलाने और बनाए रखने की लागत अपेक्षाकृत कम होती है। ईंधन खरीदने की कोई लागत नहीं होती।
* भूमि का दोहरा उपयोग (Dual Land Use):
पवन फार्मों के तहत की भूमि का उपयोग खेती या पशुधन चराई जैसे अन्य उद्देश्यों के लिए भी किया जा सकता है।
* ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security):
यह जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करता है, जो अक्सर राजनीतिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों से आयात किए जाते हैं।
* ग्रामीण विकास (Rural Development):
पवन फार्म अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित होते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा मिलता है और रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।
पवन ऊर्जा की हानियां (Disadvantages of Wind Power):
* असंतुलित उत्पादन (Intermittency):
पवन ऊर्जा का उत्पादन हवा की उपलब्धता पर निर्भर करता है। जब हवा नहीं चलती, तो बिजली पैदा नहीं होती, और जब बहुत तेज चलती है, तो टरबाइनों को नुकसान से बचाने के लिए बंद करना पड़ सकता है। इससे ग्रिड को स्थिर रखना चुनौतीपूर्ण होता है।
* उच्च प्रारंभिक लागत (High Upfront Cost):
पवन टरबाइन और संबंधित बुनियादी ढांचे की स्थापना की प्रारंभिक लागत काफी अधिक हो सकती है।
* दृश्य और ध्वनि प्रदूषण (Visual and Noise Pollution):
बड़े पवन टरबाइन कुछ लोगों को आंखों में खटक सकते हैं (दृश्य प्रदूषण)। उनके घूमने से हल्की फुर्ती और शोर भी हो सकता है, हालांकि आधुनिक टरबाइन काफी शांत होते हैं।
* वन्यजीवों पर प्रभाव (Impact on Wildlife): टरबाइन के पंखे पक्षियों और चमगादड़ों के लिए खतरा हो सकते हैं, खासकर यदि वे प्रवासी मार्गों पर स्थित हों।
* भौगोलिक सीमाएं (Geographical Limitations): पवन फार्मों को केवल उन स्थानों पर स्थापित किया जा सकता है जहां लगातार और पर्याप्त हवा की गति हो।
* ग्रिड एकीकरण (Grid Integration):
पवन ऊर्जा के असंतुलित स्वभाव के कारण, इसे ग्रिड में सफलतापूर्वक एकीकृत करना और बिजली के प्रवाह को प्रबंधित करना जटिल हो सकता है, जिसके लिए बैकअप या भंडारण समाधानों की आवश्यकता होती है।
भारत में पवन ऊर्जा की वर्तमान स्थिति (Current Status of Wind Power in India):
भारत पवन ऊर्जा क्षमता में दुनिया के प्रमुख देशों में से एक है। सरकार पवन ऊर्जा को देश की ऊर्जा सुरक्षा और जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण स्तंभ मानती है।
* चौथी सबसे बड़ी क्षमता: भारत पवन ऊर्जा स्थापित क्षमता में दुनिया में चौथा सबसे बड़ा देश है (चीन, अमेरिका और जर्मनी के बाद)।
* तेज वृद्धि:
भारत की पवन ऊर्जा क्षमता तेजी से बढ़ रही है। अप्रैल 2025 तक, भारत की कुल स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता लगभग 47 GW (गीगावाट) तक पहुंच गई है।
* प्रमुख पवन बेल्ट:
गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्य भारत के मुख्य पवन ऊर्जा उत्पादक क्षेत्र हैं। तमिलनाडु में मुप्पंडल पवन फार्म दुनिया के सबसे बड़े पवन फार्मों में से एक है।
* नीतिगत समर्थन:
भारत सरकार ने "राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति" और बोली तंत्र (bidding mechanisms) जैसी नीतियों के माध्यम से पवन ऊर्जा को बढ़ावा दिया है ताकि परियोजनाओं के विकास को प्रोत्साहित किया जा सके।
* भविष्य की संभावनाएं:
भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली क्षमता का एक बड़ा हिस्सा पवन ऊर्जा से प्राप्त करना है, जिसमें अपतटीय पवन ऊर्जा (offshore wind power) की भी महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
पवन ऊर्जा भारत के स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है और भविष्य में भी इसका विस्तार जारी रहने की उम्मीद है।
"बायोमास ऊर्जा" (Biomass Power) उस ऊर्जा को संदर्भित करती है जो जैविक सामग्री (organic matter) से प्राप्त होती है, जो हाल ही में जीवित थी या अभी भी जीवित है। इसमें मुख्य रूप से पौधों और जानवरों से प्राप्त सामग्री शामिल होती है। यह एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है क्योंकि बायोमास को लगातार फिर से उगाया या पुनरुत्पादित किया जा सकता है।
बायोमास के स्रोत (Sources of Biomass):
बायोमास के विभिन्न स्रोतों में शामिल हैं:
* कृषि अवशेष (Agricultural Residues):
फसल काटने के बाद खेत में बचे हुए डंठल, पराली, भूसा, गन्ने की खोई (bagasse), चावल की भूसी आदि।
* वन अवशेष (Forestry Residues):
पेड़ों की शाखाएं, पत्ते, लकड़ी के टुकड़े, लकड़ी उद्योग से निकलने वाला कचरा।
* पशु अपशिष्ट (Animal Waste):
पशुओं का गोबर (dung), जिससे बायोगैस बनाई जा सकती है।
* नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Waste - MSW):
शहरों से निकलने वाला जैविक कचरा।
* ऊर्जा फसलें (Energy Crops):
विशेष रूप से ऊर्जा उत्पादन के लिए उगाई जाने वाली फसलें जैसे मकई, गन्ना, जेट्रोफा आदि।
बायोमास से बिजली कैसे बनती है? (How Biomass Power is Generated?)
बायोमास से बिजली बनाने के कई तरीके हैं, जिनमें सबसे आम तरीके इस प्रकार हैं:
* प्रत्यक्ष दहन (Direct Combustion):
* यह सबसे सीधा तरीका है। बायोमास (जैसे लकड़ी, कृषि अवशेष) को सीधे एक बॉयलर में जलाया जाता है।
* इस दहन से निकलने वाली गर्मी का उपयोग पानी को उच्च दबाव वाली भाप में बदलने के लिए किया जाता है।
* यह भाप फिर एक टरबाइन को घुमाती है, जो एक जनरेटर से जुड़ी होती है, जिससे बिजली उत्पन्न होती है। यह प्रक्रिया थर्मल पावर प्लांट के समान है, लेकिन इसमें जीवाश्म ईंधन के बजाय बायोमास का उपयोग होता है।
* सह-उत्पादन (Co-generation):
* इसमें बायोमास का उपयोग न केवल बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है, बल्कि साथ ही उपयोगी गर्मी या भाप भी उत्पन्न की जाती है जिसका उपयोग औद्योगिक प्रक्रियाओं या हीटिंग के लिए किया जा सकता है। चीनी मिलों में गन्ने की खोई का उपयोग करके सह-उत्पादन एक आम उदाहरण है।
* गैसीकरण (Gasification):
* इस प्रक्रिया में बायोमास को बहुत कम ऑक्सीजन वाले वातावरण में उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है। इससे एक ज्वलनशील गैस मिश्रण (जिसे "सिन्गैस" या "प्रोड्यूसर गैस" कहते हैं) उत्पन्न होता है।
* इस सिन्गैस का उपयोग फिर एक आंतरिक दहन इंजन (internal combustion engine) या गैस टरबाइन में बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।
* पायरोलिसिस (Pyrolysis):
* इसमें बायोमास को ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है, जिससे बायो-ऑयल, बायो-चार और गैस का उत्पादन होता है। बायो-ऑयल को फिर बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
* एनारोबिक पाचन (Anaerobic Digestion):
* यह प्रक्रिया अक्सर पशु अपशिष्ट और जैविक नगरपालिका कचरे के लिए उपयोग की जाती है। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में सूक्ष्मजीव जैविक पदार्थों को तोड़ते हैं, जिससे बायोगैस (मुख्य रूप से मीथेन) का उत्पादन होता है।
* इस बायोगैस का उपयोग फिर बिजली उत्पन्न करने के लिए जनरेटर चलाने या सीधे गर्मी पैदा करने के लिए किया जा सकता है।
बायोमास ऊर्जा के लाभ (Advantages of Biomass Power):
* नवीकरणीय स्रोत:
बायोमास को लगातार उगाया जा सकता है, जिससे यह एक स्थायी ऊर्जा स्रोत बन जाता है।
* कार्बन न्यूट्रल (लगभग):
बायोमास को जलाने से जो कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है, वह पौधों द्वारा उनके जीवनकाल में अवशोषित की गई CO2 के बराबर होती है। इसलिए, शुद्ध CO2 उत्सर्जन सैद्धांतिक रूप से शून्य होता है (हालांकि कटाई, परिवहन आदि से कुछ उत्सर्जन होता है)।
* अपशिष्ट का प्रबंधन:
यह कृषि अपशिष्ट, वन अवशेष और नगरपालिका कचरे का प्रभावी ढंग से उपयोग करके अपशिष्ट प्रबंधन में मदद करता है।
* बेसलॉड पावर:
सौर और पवन ऊर्जा के विपरीत, बायोमास ऊर्जा को आवश्यकतानुसार उत्पन्न किया जा सकता है (नियंत्रणीय), जिससे यह ग्रिड के लिए एक स्थिर और विश्वसनीय बेसलॉड पावर स्रोत बन सकता है।
* ग्रामीण विकास और रोजगार:
बायोमास की कटाई, संग्रह, परिवहन और प्रसंस्करण से ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।
* पूरक आय:
किसानों को अपने कृषि अवशेषों को बेचने से अतिरिक्त आय मिल सकती है।
बायोमास ऊर्जा की हानियां (Disadvantages of Biomass Power):
* प्रदूषण (दहन से):
बायोमास के सीधे दहन से कणिका तत्व (particulate matter), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) जैसे वायु प्रदूषक निकल सकते हैं, हालांकि जीवाश्म ईंधन की तुलना में कम। इन्हें नियंत्रित करने के लिए प्रदूषण नियंत्रण उपकरणों की आवश्यकता होती है।
* भूमि उपयोग पर प्रभाव:
ऊर्जा फसलों को उगाने के लिए बड़ी मात्रा में भूमि की आवश्यकता हो सकती है, जो खाद्य फसलों के लिए प्रतिस्पर्धा कर सकती है या वनों की कटाई को बढ़ावा दे सकती है।
* ऊर्जा घनत्व कम:
बायोमास का ऊर्जा घनत्व जीवाश्म ईंधन की तुलना में कम होता है, जिसका अर्थ है कि समान मात्रा में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए अधिक सामग्री की आवश्यकता होती है।
* परिवहन लागत:
बायोमास को संग्रह स्थलों से बिजली संयंत्रों तक ले जाने में काफी परिवहन लागत और ऊर्जा खर्च हो सकती है।
* जल उपयोग:
कुछ बायोमास उत्पादन प्रक्रियाओं, विशेष रूप से ऊर्जा फसलों के लिए, महत्वपूर्ण जल संसाधनों की आवश्यकता होती है।
* दक्षता:
पारंपरिक जीवाश्म ईंधन संयंत्रों की तुलना में बायोमास संयंत्रों की दक्षता कम हो सकती है।
भारत में बायोमास ऊर्जा (Biomass Power in India):
भारत के पास बायोमास का एक बड़ा भंडार है, खासकर कृषि प्रधान देश होने के कारण। यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा और ग्रामीण विकास के लिए एक महत्वपूर्ण नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है।
* विशाल क्षमता:
भारत में प्रति वर्ष लगभग 500 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) बायोमास उपलब्ध है, जिसमें लगभग 18,000 मेगावाट बिजली उत्पादन की अतिरिक्त क्षमता है, जिसमें कृषि और बागान अवशेष शामिल हैं।
* वर्तमान योगदान:
आधुनिक बायो-एनर्जी आज भारत की कुल अंतिम ऊर्जा खपत में लगभग 13% का योगदान करती है।
* सरकारी पहल:
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) बायोमास पावर और सह-उत्पादन (बायोमास प्रोग्राम के तहत) को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम लागू कर रहा है।
* नेशनल बायोएनर्जी प्रोग्राम (National Bioenergy Programme): इसमें "वेस्ट टू एनर्जी प्रोग्राम", "बायोमास प्रोग्राम" (ब्रिकेट और छर्रों के निर्माण और सह-उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए) और "बायोगैस प्रोग्राम" शामिल हैं।
* को-फायरिंग (Co-firing): सरकार थर्मल पावर प्लांटों में कोयले के साथ बायोमास पेलेट्स के सह-फायरिंग को बढ़ावा दे रही है। यह न केवल नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाता है बल्कि विशेष रूप से उत्तरी राज्यों में पराली जलाने की समस्या को कम करने में भी मदद करता है।
* रोजगार सृजन:
बायोमास क्षेत्र में संग्रह, प्रसंस्करण और संयंत्र संचालन में बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा करने की क्षमता है।
कुल मिलाकर, बायोमास ऊर्जा भारत के ऊर्जा मिश्रण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और अपशिष्ट प्रबंधन और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के साथ-साथ स्वच्छ ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता रखती है।
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