भूमिगत केबल के प्रकार

 भूमिगत केबल वे केबल होती हैं जो विद्युत शक्ति या संचार संकेतों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए धरती की सतह के नीचे बिछाई जाती हैं। ये पारंपरिक ओवरहेड (शिरोपरि) लाइनों का एक विकल्प हैं, और अक्सर उन क्षेत्रों में पसंद की जाती हैं जहाँ ऊंचे भवनों या सौंदर्य कारणों से ओवरहेड लाइनें संभव नहीं होतीं।



भूमिगत केबल के प्रकार:

भूमिगत केबलों को मुख्य रूप से उनकी वोल्टेज क्षमता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है:

 * निम्न तनाव (L.T.) केबल: 0 - 1 kV तक

 * उच्च तनाव (H.T.) केबल: 1 - 11 kV तक

 * अति तनाव (S.T.) केबल: 11 - 33 kV तक

 * अतिरिक्त उच्च-तनाव (E.H.T.) केबल: 33 - 66 kV तक

 * अतिरिक्त अति-तनाव (E.S.T.) केबल: 66 kV और ऊपर

इनके अलावा, निर्माण के आधार पर भी विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे:

 * प्रत्यक्ष दफन (Direct Buried) केबल:

सीधे जमीन में बिछाई जाती हैं।

 * बख्तरबंद केबल (Armored Cables): 

यांत्रिक क्षति से बचाने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा कवच होता है।

 * पानी और नमी प्रतिरोधी केबल: 

नमी वाले वातावरण के लिए डिज़ाइन की गई होती हैं।

 * सिंगल कोर या मल्टी-कोर केबल: उपयोग के आधार पर।

भूमिगत केबल के फायदे:

 * सौंदर्यपूर्ण: 

ये भूमिगत होने के कारण दृश्य प्रदूषण कम करती हैं और शहरी सौंदर्य को बढ़ाती हैं।

 * सुरक्षा: 

लोगों, जानवरों या वाहनों के साथ अनजाने संपर्क की संभावना कम होती है, जिससे विद्युत खतरों का जोखिम कम होता है।

 * विश्वसनीयता और स्थिरता: 

हवा, बर्फ और बिजली जैसे पर्यावरणीय तत्वों से सुरक्षित रहती हैं, जिससे मौसम संबंधी व्यवधानों की संभावना कम होती है।

 * कम संचरण नुकसान:

कुछ मामलों में ओवरहेड लाइनों की तुलना में संचरण नुकसान कम हो सकता है।

 * पर्यावरण संरक्षण: 

दृश्य प्रदूषण और वन्यजीव आवास में व्यवधान को कम करने में सहायक।

भूमिगत केबल के नुकसान:

 * अधिक लागत: 

इन्हें स्थापित करने की लागत ओवरहेड लाइनों की तुलना में काफी अधिक होती है।

 * मरम्मत में कठिनाई: 

यदि कोई खराबी आती है तो दोष का पता लगाना और उसकी मरम्मत करना अधिक जटिल और समय लेने वाला होता है क्योंकि केबल भूमिगत होती हैं।

 * कम लचीलापन: 

ओवरहेड लाइनों की तुलना में प्रणाली में बदलाव या विस्तार करना कम लचीला होता है।

 * भू-दोष का पता लगाना कठिन:

अभूसंपर्कित प्रणालियों के लिए भू-दोष संरक्षण कठिन होता है।

स्थापना प्रक्रिया:

भूमिगत केबल की स्थापना में कई महत्वपूर्ण कदम शामिल होते हैं:

 * उत्खनन (Excavation): 

केबल बिछाने के लिए खाई खोदी जाती है।

 * केबल बिछाना (Cable Laying): 

खाई में केबल बिछाई जाती है। यह सीधे दफन की जा सकती है या नलिकाओं/पाइपों के माध्यम से खींची जा सकती है।

 * जोड़ना और समापन (Joining and Termination): 

केबलों को एक-दूसरे से और विद्युत उपकरणों (जैसे ट्रांसफार्मर, स्विचगियर) से जोड़ने के लिए विशेष कनेक्टर और इन्सुलेटिंग सामग्री का उपयोग किया जाता है।

 * बैकफिलिंग (Backfilling):

केबल स्थापित होने के बाद, खाई को रेत, बजरी या विशेष बैकफिल यौगिकों से भर दिया जाता है ताकि केबल को यांत्रिक क्षति से बचाया जा सके और स्थिरता प्रदान की जा सके।

 * मार्कर लगाना: 

केबल के मार्ग को इंगित करने के लिए मार्कर लगाए जाते हैं।

संक्षेप में, भूमिगत केबल आधुनिक बुनियादी ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो बिजली और संचार दोनों के लिए एक विश्वसनीय और सौंदर्यपूर्ण समाधान प्रदान करती हैं, हालांकि उनकी स्थापना और रखरखाव में अपनी चुनौतियाँ होती हैं।




भूमिगत केबलों को कई तरीकों से वर्गीकृत किया जा सकता है, लेकिन मुख्य रूप से उन्हें उनकी वोल्टेज क्षमता और निर्माण/संरचना के आधार पर विभाजित किया जाता है।

1. वोल्टेज क्षमता के आधार पर प्रकार:
यह वर्गीकरण सबसे आम है और केबल द्वारा वहन की जा सकने वाली अधिकतम वोल्टेज को दर्शाता है:
 * निम्न तनाव (L.T.) केबल: 
ये केबल 0 से 1{ kV} (1000 वोल्ट) तक के वोल्टेज के लिए उपयोग की जाती हैं। ये आमतौर पर घरों, छोटे व्यवसायों और स्थानीय वितरण नेटवर्क में बिजली की आपूर्ति के लिए इस्तेमाल होती हैं।
 * उच्च तनाव (H.T.) केबल: 
ये केबल 1{ kV} से 11{ kV} तक के वोल्टेज के लिए होती हैं। इनका उपयोग शहरी और उपनगरीय क्षेत्रों में मध्यम दूरी के वितरण के लिए किया जाता है।
 * अति तनाव (S.T.) केबल: 
ये केबल 11{ kV} से 33{ kV} तक के वोल्टेज के लिए होती हैं। ये बड़े औद्योगिक क्षेत्रों और उप-संचरण नेटवर्क में उपयोग होती हैं।
 * अतिरिक्त उच्च-तनाव (E.H.T.) केबल:
ये केबल 33{ kV} से 66{ kV} तक के वोल्टेज के लिए डिज़ाइन की जाती हैं। इनका उपयोग मुख्य संचरण लाइनों और बड़े पावर स्टेशनों के बीच होता है।
 * अतिरिक्त अति-तनाव (E.S.T.) केबल: 
ये केबल 66{ kV} और उससे ऊपर के बहुत उच्च वोल्टेज के लिए होती हैं। इनका उपयोग बड़े पैमाने पर बिजली संचरण और राष्ट्रीय ग्रिडों के अंतर-कनेक्शन के लिए किया जाता है।
2. निर्माण/संरचना के आधार पर प्रकार:
केबल की आंतरिक और बाहरी संरचना के आधार पर भी उन्हें वर्गीकृत किया जाता है। यह वर्गीकरण केबल के उपयोग और उस वातावरण पर निर्भर करता है जिसमें इसे स्थापित किया जाना है। कुछ प्रमुख प्रकार हैं:
 * प्रत्यक्ष दफन (Direct Buried) केबल:
   * ये केबल सीधे जमीन में बिछाई जाती हैं, बिना किसी अतिरिक्त पाइप या नलिका के।
   * इनकी संरचना मजबूत होती है और इनमें लंबे समय तक चलने वाला इन्सुलेशन होता है ताकि ये सीधे जमीन के संपर्क में रहने पर भी खराब न हों।
   * लाभ: 
सरल स्थापना, किफायती।
   * उपयोग: 
घरों, व्यवसायों और उद्योगों में बिजली वितरण, बाहरी लाइटिंग, भू-दृश्यांकन।
 * बख्तरबंद केबल (Armored Cables):
   * इन केबलों पर यांत्रिक क्षति से बचाने के लिए अतिरिक्त धातु का कवच (आमतौर पर स्टील के तार या टेप) होता है।
   * यह कवच पत्थरों, निर्माण सामग्री या अनजाने में की गई खुदाई से होने वाले नुकसान से बचाता है।
   * लाभ: 
बेहतर यांत्रिक सुरक्षा, लंबी उम्र और मजबूती।
   * उपयोग: 
भारी यातायात वाले क्षेत्रों, औद्योगिक संदर्भों और यांत्रिक रूप से अस्थिर क्षेत्रों में जहां केबल को भौतिक क्षति का अधिक जोखिम होता है।
 * जल और नमी प्रतिरोधी केबल (Water and Moisture Resistant Cables):
   * ये केबल विशेष रूप से नमी, भूमिगत जल और खराब मौसम की स्थिति के प्रति लचीलापन के लिए डिज़ाइन की जाती हैं।
   * इनमें अद्वितीय इन्सुलेटिंग सामग्री और गुण होते हैं जो पानी के प्रवेश को रोकते हैं और विद्युत अखंडता बनाए रखते हैं।
   * लाभ: 
पानी और नमी से सुरक्षा, उच्च विश्वसनीयता।
   * उपयोग:
बाढ़, उच्च भूजल स्तर या अत्यधिक आर्द्रता वाले क्षेत्रों में भूमिगत प्रणालियों के लिए महत्वपूर्ण।
 * सिंगल-कोर और मल्टी-कोर केबल:
   * सिंगल-कोर:
इसमें केवल एक कंडक्टर (चालक) होता है।
   * मल्टी-कोर: 
इसमें एक साथ कई कंडक्टर होते हैं, जो आमतौर पर एक सामान्य बाहरी आवरण में होते हैं। 
ये 2-कोर, 3-कोर, 4-कोर आदि हो सकते हैं।
 * इन्सुलेशन के आधार पर:
   * PILC (Paper Insulated Lead Covered) केबल: 
ये पुरानी प्रकार की केबल हैं जिनमें कागज का इन्सुलेशन और लेड (सीसा) का आवरण होता है।
   * XLPE (Cross-Linked Polyethylene) केबल: ये आधुनिक और सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली केबल हैं, जिनमें XLPE इन्सुलेशन होता है। ये उच्च तापमान और नमी के प्रति अधिक प्रतिरोधी होती हैं।
   * PVC (Polyvinyl Chloride) केबल:
इनमें PVC इन्सुलेशन होता है, जो आमतौर पर निम्न वोल्टेज अनुप्रयोगों के लिए उपयोग होता है।
ये विभिन्न प्रकार की भूमिगत केबलें विभिन्न विद्युत वितरण और संचार आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं, और उनके चयन में वोल्टेज स्तर, स्थापना पर्यावरण, लागत और अपेक्षित जीवनकाल जैसे कारकों पर विचार किया जाता है।



भूमिगत केबल बिछाने का तरीका कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि केबल का प्रकार, मिट्टी की स्थिति, इलाके और परियोजना की विशिष्ट आवश्यकताएं। हालाँकि, यहाँ एक सामान्य प्रक्रिया दी गई है कि भूमिगत केबल कैसे बिछाई जाती हैं:

1. योजना और तैयारी (Planning and Preparation)
 * सर्वेक्षण (Survey): 
सबसे पहले, केबल के रास्ते का सर्वेक्षण किया जाता है। इसमें मौजूदा भूमिगत उपयोगिताओं (जैसे पानी के पाइप, गैस लाइनें, अन्य केबल) का पता लगाना शामिल है ताकि खुदाई के दौरान उन्हें नुकसान न पहुँचे। इसके लिए जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार) जैसी तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है।
 * अनुमति (Permissions): 
आवश्यक अनुमतियाँ प्राप्त करना, खासकर यदि केबल सार्वजनिक भूमि या सड़कों के नीचे बिछाई जा रही हो।
 * केबल का चयन (Cable Selection): 
सही केबल का चुनाव करना, जो वोल्टेज, करंट और पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल हो।
 * उपकरण तैयार करना (Equipment Preparation): 
खुदाई, केबल बिछाने और बैकफिलिंग के लिए आवश्यक उपकरण (जैसे ट्रेंचिंग मशीन, केबल ड्रम स्टैंड, रोलर, आदि) तैयार करना।
2. खाई खोदना (Trench Excavation)
 * निशान लगाना (Marking): 
केबल के रास्ते को ज़मीन पर चिह्नित किया जाता है।
 * खाई की गहराई और चौड़ाई (Trench Depth and Width): 
खाई की गहराई और चौड़ाई आवश्यक मानकों के अनुसार होनी चाहिए। यह वोल्टेज स्तर और केबल के प्रकार पर निर्भर करता है। आमतौर पर, 
निम्न वोल्टेज के लिए कम गहराई (लगभग 0.75-1 मीटर) और उच्च वोल्टेज के लिए अधिक गहराई (1.2-1.5 मीटर) होती है। चौड़ाई इतनी होनी चाहिए कि केबल को आसानी से रखा जा सके और उसके चारों ओर पर्याप्त कुशनिंग सामग्री आ सके।
 * खुदाई (Digging): 
खुदाई ट्रेंचिंग मशीनों या मैन्युअल रूप से की जाती है। खोदी गई मिट्टी को खाई के किनारे सावधानी से रखा जाता है।
3. केबल बिछाना (Cable Laying)
 * तल पर रेत/कुशनिंग परत (Sand/Cushioning Layer at Bottom): 
खाई के निचले हिस्से में लगभग 10-15 सेमी मोटी रेत या महीन मिट्टी की एक परत बिछाई जाती है। यह केबल को नुकीले पत्थरों या अन्य कठोर वस्तुओं से बचाता है।
 * केबल डालना (Placing the Cable):
केबल ड्रम से केबल को सावधानीपूर्वक खाई में डाला जाता है। यह मैन्युअल रूप से या मशीनीकृत केबल लेइंग उपकरणों (जैसे केबल पुलिंग मशीन) का उपयोग करके किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि केबल मुड़े नहीं या क्षतिग्रस्त न हो।
 * सिंगल बनाम मल्टीपल केबल (Single vs. Multiple Cables): 
यदि कई केबल एक ही खाई में बिछाई जा रही हैं, तो उनके बीच उचित दूरी बनाए रखी जानी चाहिए ताकि हीटिंग की समस्या न हो।
 * नलिकाएं/कंड्यूट (Ducts/Conduits) (वैकल्पिक): शहरी क्षेत्रों या भविष्य में मरम्मत/बदलाव की संभावना वाले स्थानों पर केबलों को सीधे मिट्टी में डालने के बजाय प्लास्टिक या कंक्रीट की नलिकाओं (डक्ट्स) के अंदर बिछाया जाता है। इससे भविष्य में केबल बदलने में आसानी होती है और अतिरिक्त सुरक्षा मिलती है।
4. सुरक्षा और मार्किंग (Protection and Marking)
 * रेत की दूसरी परत (Second Layer of Sand): 
केबल के ऊपर लगभग 10-15 सेमी मोटी रेत या महीन मिट्टी की एक और परत डाली जाती है। यह परत केबल को यांत्रिक क्षति से बचाती है।
 * ईंट/टाइल्स/केबल कवर (Bricks/Tiles/Cable Covers): 
रेत की परत के ऊपर ईंटें, कंक्रीट की टाइलें, या विशेष प्लास्टिक केबल कवर बिछाए जाते हैं। यह परत केबल को आकस्मिक खुदाई से और अधिक सुरक्षा प्रदान करती है।
 * चेतावनी टेप (Warning Tape):
ईंटों/कवर के ऊपर एक रंगीन प्लास्टिक का चेतावनी टेप बिछाया जाता है। इस टेप पर "विद्युत केबल" या "हाई वोल्टेज" जैसी चेतावनी लिखी होती है, ताकि भविष्य में खुदाई करने वालों को सतर्क किया जा सके।
 * मार्कर पोस्ट (Marker Posts): 
केबल के पूरे मार्ग पर, विशेषकर मोड़ या महत्वपूर्ण बिंदुओं पर, सतह पर मार्कर पोस्ट लगाए जाते हैं। ये पोस्ट केबल के मार्ग को दर्शाते हैं।
5. बैकफिलिंग और समापन (Backfilling and Termination)
 * बैकफिलिंग (Backfilling): 
सुरक्षात्मक परतों के बाद, खाई को खोदी गई मिट्टी से पूरी तरह से भर दिया जाता है। मिट्टी को कॉम्पैक्ट करना महत्वपूर्ण है ताकि ज़मीन बाद में धँसे नहीं।
 * टर्मिनेशन और जॉइनिंग (Termination and Joining): 
केबल के सिरों को ट्रांसफार्मर, स्विचगियर या अन्य केबलों से जोड़ा जाता है। इन जोड़ों और टर्मिनेशन को उचित इन्सुलेशन और सुरक्षा के साथ किया जाना चाहिए ताकि कोई लीकेज न हो।
 * परीक्षण (Testing):
केबल बिछाने और जोड़ने के बाद, इसे उपयोग में लाने से पहले इंसुलेशन प्रतिरोध, निरंतरता और अन्य विद्युत परीक्षणों से गुजारा जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह सही ढंग से काम कर रही है और कोई दोष नहीं है।
यह प्रक्रिया भूमिगत केबल बिछाने का एक सामान्य अवलोकन है। प्रत्येक चरण में सुरक्षा मानकों और स्थानीय नियमों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।



भूमिगत केबल का आकार (या साइज़) विद्युत प्रणालियों के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्धारण है। सही आकार की केबल का चयन न केवल दक्षता सुनिश्चित करता है बल्कि सुरक्षा और लंबी उम्र के लिए भी महत्वपूर्ण है। केबल का आकार मुख्य रूप से उसके चालक (कंडक्टर) के अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (cross-sectional area) से निर्धारित होता है, जिसे आमतौर पर वर्ग मिलीमीटर (mm²) में मापा जाता है।

भूमिगत केबल के आकार को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक:
 * करंट वहन क्षमता (Current Carrying Capacity / Ampacity):
   * यह सबसे महत्वपूर्ण कारक है। केबल का आकार इतना होना चाहिए कि वह बिना ज़्यादा गरम हुए, अपेक्षित विद्युत धारा (एम्पीयर में) को सुरक्षित रूप से वहन कर सके।
   * भूमिगत केबलें हवा में बिछी केबलों की तुलना में गर्मी को कम कुशलता से प्रसारित करती हैं, इसलिए उनकी वर्तमान वहन क्षमता कम होती है।
   * जितनी अधिक धारा की आवश्यकता होगी, उतना ही बड़ा केबल का आकार (मोटा कंडक्टर) चाहिए होगा।
 * वोल्टेज ड्रॉप (Voltage Drop):
   * केबल में विद्युत धारा प्रवाहित होने पर कुछ वोल्टेज का नुकसान होता है। यह नुकसान केबल की लंबाई, उसके प्रतिरोध और प्रवाहित धारा पर निर्भर करता है।
   * भारतीय मानकों और सामान्य प्रथाओं के अनुसार, अनुमेय वोल्टेज ड्रॉप आमतौर पर कुल आपूर्ति वोल्टेज के 2% से 5% तक सीमित होता है।
   * लंबी दूरी के लिए या उच्च धाराओं के लिए, वोल्टेज ड्रॉप को स्वीकार्य सीमा के भीतर रखने के लिए बड़े आकार की केबल की आवश्यकता होती है।
 * वोल्टेज स्तर (Voltage Level):
   * जैसा कि पहले बताया गया है, केबल को जिस वोल्टेज स्तर (LT, HT, ST, EHT) पर उपयोग किया जाना है, वह उसके इन्सुलेशन (कुचालक) की मोटाई को प्रभावित करता है। उच्च वोल्टेज के लिए अधिक मोटा और बेहतर इन्सुलेशन आवश्यक होता है।
   * हालांकि कंडक्टर का आकार सीधे वोल्टेज से प्रभावित नहीं होता, लेकिन उच्च वोल्टेज प्रणालियों में अक्सर उच्च शक्ति संचरित होती है, जिसके लिए बड़े कंडक्टर की आवश्यकता होती है।
 * स्थापना का तरीका और परिवेश का तापमान (Installation Method and Ambient Temperature):
   * प्रत्यक्ष दफन (Direct Buried) या डक्ट में (in Ducts): 
प्रत्यक्ष दफन केबल डक्ट में बिछी केबलों की तुलना में गर्मी को बेहतर ढंग से फैला सकती हैं (बशर्ते मिट्टी अच्छी हो), जिससे उनकी एम्पेसिटी थोड़ी अधिक हो सकती है। डक्ट में बिछी केबलें हवा को फँसा सकती हैं, जिससे गर्मी का संचय हो सकता है।
   * मिट्टी की तापीय प्रतिरोधकता (Soil Thermal Resistivity): 
जिस मिट्टी में केबल बिछाई जा रही है, उसकी गर्मी को अवशोषित करने और फैलाने की क्षमता (तापीय प्रतिरोधकता) भी महत्वपूर्ण है। खराब तापीय प्रतिरोधकता वाली मिट्टी के लिए बड़े आकार की केबल की आवश्यकता हो सकती है।
   * परिवेश का तापमान (Ambient Temperature): यदि भूमिगत केबल गर्म जलवायु वाले क्षेत्र में बिछाई जा रही है, तो उसकी वर्तमान वहन क्षमता कम हो जाएगी, और इसलिए समान धारा के लिए बड़े आकार की केबल की आवश्यकता होगी।
 * शॉर्ट-सर्किट करंट (Short-Circuit Current):
   * केबल को शॉर्ट-सर्किट की स्थिति में उत्पन्न होने वाली उच्च धाराओं को कुछ समय के लिए सहन करने में सक्षम होना चाहिए, जब तक कि सुरक्षात्मक उपकरण (जैसे ब्रेकर) ट्रिप न कर दें। इसके लिए केबल के कंडक्टर का पर्याप्त आकार होना चाहिए ताकि वह क्षणिक उच्च तापमान को झेल सके।
 * केबल की सामग्री (Cable Material):
   * कंडक्टर सामग्री: आमतौर पर तांबा (Copper) या एल्यूमीनियम (Aluminum) का उपयोग किया जाता है। तांबा एल्यूमीनियम की तुलना में बेहतर चालक है, इसलिए समान धारा के लिए तांबे की केबल का आकार एल्यूमीनियम की केबल से छोटा हो सकता है।
   * इन्सुलेशन सामग्री:
XLPE (क्रॉस-लिंक्ड पॉलीइथिलीन) या PVC (पॉलीविनाइल क्लोराइड) जैसी इन्सुलेशन सामग्री की तापीय रेटिंग भी केबल की एम्पेसिटी को प्रभावित करती है।
सामान्य केबल आकार (mm² में):
भारतीय संदर्भ में, भूमिगत केबलों के लिए कुछ सामान्य कंडक्टर आकार (mm² में) होते हैं:
 * छोटे आकार (आमतौर पर निम्न वोल्टेज और कम करंट के लिए):
   * 1.5mm² (कम रोशनी या बहुत छोटे उपकरणों के लिए)
   * 2.5mm² (सामान्य प्रकाश व्यवस्था, छोटे उपकरण)
   * 4mm² ,6mm² (छोटे पावर सर्किट)
 * मध्यम आकार (वितरण और औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए):
   * 10mm² , 16mm², 25mm² ,35mm² ,50mm²
 * बड़े आकार (उच्च करंट और उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन के लिए):
   * 70mm² , 95mm² , 120mm² , 150mm² , 185mm² , 240mm² , 300mm²
 * बहुत बड़े आकार (विशेष औद्योगिक या ट्रांसमिशन के लिए):
   * 400mm² , 500mm², 630mm² और इससे भी बड़े।
केबल का सही आकार निर्धारित करने के लिए विभिन्न भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) कोड और तालिकाएं (जैसे IS 3961: वर्तमान रेटिंग) उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग करके इन सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए गणना की जाती है। यह एक जटिल इंजीनियरिंग प्रक्रिया है, और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हमेशा एक योग्य विद्युत अभियंता से परामर्श करना उचित होता है।



भूमिगत केबलों में फॉल्ट (दोष) का पता लगाना ओवरहेड लाइनों की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि केबल जमीन के नीचे दबी होती है और दोष सीधे दिखाई नहीं देता। दोष का सही स्थान जानना बहुत महत्वपूर्ण है ताकि अनावश्यक खुदाई से बचा जा सके और मरम्मत का समय कम हो सके।

भूमिगत केबल में फॉल्ट ढूंढने के लिए कई तरीके और उपकरण इस्तेमाल किए जाते हैं:
1. फॉल्ट के प्रकार की पहचान (Identifying the Type of Fault):
सबसे पहले, यह समझना ज़रूरी है कि किस प्रकार का फॉल्ट हुआ है, क्योंकि विभिन्न फॉल्ट के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग किया जाता है। मुख्य प्रकार के फॉल्ट हैं:
 * ओपन-सर्किट फॉल्ट (Open-Circuit Fault):
जब केबल का कंडक्टर टूट जाता है, जिससे सर्किट खुल जाता है और विद्युत प्रवाह रुक जाता है।
 * शॉर्ट-सर्किट फॉल्ट (Short-Circuit Fault):
जब दो या दो से अधिक कंडक्टर आपस में या ग्राउंड से सीधे जुड़ जाते हैं, जिससे बहुत अधिक करंट प्रवाहित होता है। यह इन्सुलेशन फेल होने के कारण होता है।
 * अर्थ फॉल्ट (Earth Fault / Ground Fault):
जब केबल का कंडक्टर जमीन से संपर्क में आ जाता है (इन्सुलेशन टूटने के कारण)।
 * लीकेज फॉल्ट (Leakage Fault): 
जब इन्सुलेशन पूरी तरह से फेल नहीं होता, लेकिन उसका प्रतिरोध कम हो जाता है, जिससे कुछ करंट लीक होने लगता है।
 * फ्लैशओवर फॉल्ट (Flashover Fault): 
उच्च वोल्टेज के कारण इन्सुलेशन का क्षणिक रूप से ब्रेकडाउन होना, जिससे स्पार्किंग या चाप (आर्क) बनता है।
2. फॉल्ट लोकेशन की सामान्य तकनीकें (General Fault Location Techniques):
फॉल्ट का पता लगाने के लिए मुख्यतः 
दो चरणों में काम किया जाता है:
 * प्री (Pre-location): 
यह-लोकेशन केबल के एक सिरे से दोष की अनुमानित दूरी का पता लगाने के लिए होता है। इसमें अक्सर विद्युत परीक्षण विधियों का उपयोग किया जाता है।
 * पिन-पॉइंटिंग (Pin-pointing): 
यह दोष के सटीक स्थान का पता लगाने के लिए होता है, जिससे खुदाई करके मरम्मत की जा सके। इसमें ध्वनिक या चुंबकीय विधियों का उपयोग किया जाता है।
3. फॉल्ट ढूंढने के लिए इस्तेमाल होने वाले मुख्य तरीके और उपकरण:
a) टाइम डोमेन रिफ्लेक्टोमेट्री (TDR - Time Domain Reflectometry):
 * यह सबसे आम और प्रभावी तरीकों में से एक है।
 * सिद्धांत: TDR उपकरण केबल में एक छोटा पल्स (विद्युत संकेत) भेजता है। जब यह पल्स किसी दोष या केबल की समाप्ति से टकराता है, तो वह वापस परावर्तित होता है। TDR उपकरण पल्स को भेजने और वापस प्राप्त करने में लगे समय को मापता है।
 * उपयोग: इस समय और केबल में संकेत की गति के आधार पर, दोष की दूरी की गणना की जाती है। यह ओपन-सर्किट, शॉर्ट-सर्किट और लीकेज फॉल्ट का पता लगाने में बहुत प्रभावी है।
 * लाभ: अपेक्षाकृत तेज और सटीक, गैर-विनाशकारी।
b) मरे लूप टेस्ट (Murray Loop Test):
 * यह विशेष रूप से अर्थ फॉल्ट और शॉर्ट-सर्किट फॉल्ट का पता लगाने के लिए उपयोग की जाने वाली एक ब्रिज मेथड है।
 * सिद्धांत: यह व्हीटस्टोन ब्रिज के सिद्धांत पर आधारित है। केबल के दोषपूर्ण कंडक्टर को एक ज्ञात अच्छे कंडक्टर के साथ एक लूप में जोड़ा जाता है। ब्रिज को संतुलित करके, दोषपूर्ण बिंदु की दूरी की गणना की जाती है।
 * लाभ: अपेक्षाकृत सरल और सस्ता।
 * सीमाएं: केवल धातु के कंडक्टर में शॉर्ट या अर्थ फॉल्ट के लिए प्रभावी।
c) सर्ज जनरेटर / थंपर (Surge Generator / Thumper):
 * यह उच्च प्रतिरोध वाले फॉल्ट या फ्लैशओवर फॉल्ट का पता लगाने के लिए उपयोग किया जाता है।
 * सिद्धांत: यह उपकरण केबल में उच्च वोल्टेज पल्स (या "थंप") भेजता है। जब यह पल्स दोष बिंदु पर पहुंचता है, तो एक आर्क (चाप) उत्पन्न होता है, जिससे एक ज़ोरदार "थंप" या "क्रैक" की आवाज आती है।
 * पिन-पॉइंटिंग: दोष के स्थान पर जमीन से सुनाई देने वाली ध्वनि को सुनने के लिए एक संवेदनशील ध्वनिक सेंसर (जियोफोन) का उपयोग किया जाता है।
 * लाभ: उच्च प्रतिरोध और फ्लैशओवर फॉल्ट का पता लगाने में प्रभावी।
 * सीमाएं: उच्च वोल्टेज का उपयोग होता है, इसलिए सावधानी आवश्यक है।
d) केबल फॉल्ट लोकेटर / केबल डिटेक्टर (Cable Fault Locator / Cable Detector):
 * यह एक सामान्य शब्द है जो विभिन्न प्रकार के उपकरणों को संदर्भित करता है जो केबल के मार्ग और दोष को ढूंढते हैं।
 * कुछ लोकेटर केबल के रूट का पता लगाने में मदद करते हैं ताकि पता चल सके कि केबल कहां बिछी है।
 * कुछ विशेष उपकरण TDR, सर्ज जनरेटर और ध्वनिक सेंसर के संयोजन के रूप में काम करते हैं ताकि दोष की दूरी और सटीक स्थान दोनों का पता लगाया जा सके।
e) अर्थ फॉल्ट लोकेटर (Earth Fault Locator):
 * ये उपकरण विशेष रूप से जमीन के दोषों का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
 * वे केबल में एक विशेष संकेत भेजते हैं और दोष बिंदु पर लीक होने वाले संकेत का पता लगाते हैं।
f) अन्य आधुनिक तकनीकें:
 * अंडरग्राउंड वायर ट्रेसर: यह डिवाइस अंडरग्राउंड केबल को ट्रेस करने और डिटेक्ट करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें एक ट्रांसमीटर होता है जो केबल में एक सिग्नल भेजता है और एक रिसीवर जो उस सिग्नल को ट्रैक करता है।
 * पल्स इको मेथड (Pulse Echo Method):
TDR के समान, लेकिन इसमें विभिन्न प्रकार के पल्स का उपयोग किया जा सकता है।
 * इन्फ्रारेड थर्मोग्राफी (Infrared Thermography): कभी-कभी, यदि दोष गर्म हो रहा हो, तो इन्फ्रारेड कैमरे का उपयोग करके सतह के तापमान भिन्नता का पता लगाया जा सकता है, हालांकि यह भूमिगत केबलों के लिए कम प्रभावी है।
फॉल्ट ढूंढने की प्रक्रिया में सामान्य कदम:
 * समस्या की पुष्टि: 
पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कि समस्या केबल में ही है न कि किसी अन्य उपकरण में।
 * सुरक्षा उपाय: 
सभी सुरक्षा प्रक्रियाओं का पालन किया जाता है, केबल को डी-एनर्जाइज किया जाता है और लॉक-आउट/टैग-आउट (LOTO) किया जाता है।
 * प्री-लोकेशन: 
TDR या मरे लूप टेस्ट जैसे उपकरणों का उपयोग करके दोष की अनुमानित दूरी का पता लगाया जाता है।
 * पिन-पॉइंटिंग: 
सर्ज जनरेटर और ध्वनिक सेंसर का उपयोग करके या अन्य डिटेक्शन विधियों से दोष के सटीक स्थान का पता लगाया जाता है।
 * खुदाई और मरम्मत: 
दोष के सटीक स्थान पर खुदाई की जाती है और केबल की मरम्मत या प्रतिस्थापन किया जाता है।
 * पुनः 
परीक्षण: मरम्मत के बाद, यह सुनिश्चित करने के लिए केबल का पुनः परीक्षण किया जाता है कि दोष ठीक हो गया है और केबल सुरक्षित है।
भूमिगत केबल में फॉल्ट ढूंढना एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें विशेषज्ञता और विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है। यह हमेशा प्रशिक्षित पेशेवरों द्वारा ही किया जाना चाहिए।



भूमिगत केबलें अपनी छिपी हुई प्रकृति के कारण ओवरहेड लाइनों की तुलना में अधिक जटिल दोषों का सामना कर सकती हैं। इन दोषों को पहचानना और उनका पता लगाना मुश्किल होता है, जिससे बिजली आपूर्ति में लंबे समय तक रुकावट आ सकती है।

भूमिगत केबल में पाए जाने वाले मुख्य दोष (Faults Found in Underground Cables)
भूमिगत केबलों में मुख्य रूप से तीन प्रकार के विद्युत दोष पाए जाते हैं:
 * खुला परिपथ दोष (Open-Circuit Fault):
   * क्या होता है:
यह तब होता है जब केबल का चालक (कंडक्टर) किसी बिंदु पर टूट जाता है, जिससे विद्युत प्रवाह पूरी तरह से बाधित हो जाता है। यह एक तरह का "ब्रेक" है।
   * कारण:
     * केबल पर अत्यधिक खिंचाव या यांत्रिक तनाव।
     * केबल के निर्माण या बिछाने में दोष।
     * ओवरलोडिंग के कारण कंडक्टर का पिघल जाना।
     * जोड़ों पर खराब कनेक्शन।
   * पहचान: 
इस दोष को मेगर (Megger) जैसे उपकरण से जांचा जा सकता है, जो उच्च प्रतिरोध दिखाता है।
 * लघु परिपथ दोष (Short-Circuit Fault):
   * क्या होता है:
यह तब होता है जब केबल के दो या दो से अधिक चालक (कंडक्टर) आपस में (या आर्मर/शीथ से) सीधे संपर्क में आ जाते हैं। यह आमतौर पर इन्सुलेशन (कुचालक) की विफलता के कारण होता है। इससे अत्यधिक धारा प्रवाहित होती है और सर्किट ब्रेकर ट्रिप हो सकते हैं।
   * कारण:
     * इन्सुलेशन का खराब होना (उम्र बढ़ने, नमी, रासायनिक क्षरण)।
     * अत्यधिक वोल्टेज या ओवरलोडिंग के कारण इन्सुलेशन का टूटना।
     * यांत्रिक क्षति जो इन्सुलेशन को नुकसान पहुँचाती है।
     * निर्माण या स्थापना के दौरान इन्सुलेशन में दोष।
   * पहचान: 
मेगर कम या शून्य प्रतिरोध दिखाएगा।
 * भू-दोष (Earth Fault / Ground Fault):
   * क्या होता है: 
यह तब होता है जब केबल का कोई चालक (कंडक्टर) इन्सुलेशन की विफलता के कारण सीधे जमीन के संपर्क में आ जाता है। यह शॉर्ट-सर्किट का एक विशेष मामला है जहाँ शॉर्टिंग ग्राउंड के साथ होती है।
   * कारण:
     * इन्सुलेशन में दरार या छिद्र।
     * मिट्टी में नमी या पानी का प्रवेश।
     * केबल के यांत्रिक क्षति से इन्सुलेशन का टूट जाना।
     * केमिकल रिएक्शन या मिट्टी में संक्षारण।
   * पहचान: 
मेगर का एक टर्मिनल कंडक्टर से और दूसरा टर्मिनल जमीन से जोड़ने पर यदि मैगर शून्य रीडिंग इंगित करता है, तो इसका अर्थ है कि कंडक्टर को भूसम्पर्कित किया गया है।
दोषों के सामान्य कारण (Common Causes of Faults)
इन तीन मुख्य प्रकार के दोषों के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
 * बाहरी बल से क्षति (External Force Damage):
   * यह भूमिगत केबलों में दोषों का सबसे आम कारण है।
   * खुदाई: निर्माण कार्य या अन्य भूमिगत उपयोगिताओं की खुदाई के दौरान केबल को गलती से काट देना या क्षतिग्रस्त कर देना।
   * भार: सड़क पर भारी वाहनों के गुजरने से पड़ने वाला दबाव।
   * घुमाव: केबल बिछाने के दौरान अत्यधिक मोड़ या खिंचाव।
 * इन्सुलेशन में नमी (Insulation Moisture):
   * केबल के जोड़ (जोइंट्स) या सिरे (टर्मिनेशन) ठीक से सील न होने के कारण पानी या नमी का अंदर प्रवेश।
   * केबल शीथ (आवरण) में छोटे छेद या दरारें।
   * मिट्टी में नमी या भूजल का रिसाव।
   * पानी से इन्सुलेशन की परावैद्युत शक्ति कम हो जाती है, जिससे लीकेज या शॉर्ट-सर्किट हो सकता है।
 * इन्सुलेशन का पुराना होना और ख़राब होना (Insulation Aging and Degradation):
   * केबल की उम्र बढ़ने के साथ इन्सुलेशन सामग्री की गुणवत्ता धीरे-धीरे कम हो जाती है।
   * लगातार उच्च तापमान या ओवरलोडिंग के कारण इन्सुलेशन का थर्मल स्ट्रेस।
   * केबल के अंदर हवा के अंतराल या अशुद्धियां जो समय के साथ इन्सुलेशन को कमजोर करती हैं।
 * ओवरवोल्टेज (Overvoltage):
   * बिजली गिरने (वायुमंडलीय ओवरवोल्टेज) या स्विचिंग ऑपरेशन (आंतरिक ओवरवोल्टेज) के कारण केबल पर अचानक उच्च वोल्टेज का दबाव।
   * यह इन्सुलेशन को पंचर कर सकता है, जिससे फ्लैशओवर या शॉर्ट-सर्किट हो सकता है।
 * खराब डिज़ाइन और निर्माण प्रक्रिया (Poor Design and Manufacturing Process):
   * केबल के डिजाइन या निर्माण में कोई कमी, जैसे कि इन्सुलेशन की अपर्याप्त मोटाई या अशुद्धियाँ।
   * जोड़ या टर्मिनेशन की गलत या खराब गुणवत्ता वाली स्थापना।
   * सामग्रियों का गलत चुनाव।
 * रासायनिक क्षरण (Chemical Corrosion):
   * मिट्टी में मौजूद रसायनों, अम्ल या क्षार का केबल के बाहरी आवरण और धातु भागों पर प्रभाव, जिससे संक्षारण और अंततः इन्सुलेशन का नुकसान होता है।
भूमिगत केबल में दोषों का पता लगाना एक जटिल और विशिष्ट कार्य है जिसके लिए विशेष उपकरणों और प्रशिक्षित कर्मियों की आवश्यकता होती है। सही पहचान और तुरंत मरम्मत से बिजली आपूर्ति में व्यवधान को कम किया जा सकता है।



भूमिगत केबल बिछाने के मुख्य रूप से चार मेथड्स (विधियाँ) हैं, जिनका चुनाव परियोजना की आवश्यकताओं, इलाके, लागत और मिट्टी की स्थितियों पर निर्भर करता है:

 * प्रत्यक्ष बिछाने की विधि (Direct Laying Method):
   * तरीका: 
यह सबसे आम और किफायती तरीका है। इस विधि में, केबल को सीधे जमीन में खोदी गई खाई में बिछाया जाता है।
   * प्रक्रिया:
     * पहले, केबल मार्ग पर आवश्यक गहराई और चौड़ाई की खाई खोदी जाती है (आमतौर पर 0.75 से 1.2 मीटर गहरी)।
     * खाई के तल पर लगभग 10-15 सेमी मोटी रेत या महीन मिट्टी की एक परत बिछाई जाती है ताकि केबल को नुकीले पत्थरों या कठोर मिट्टी से बचाया जा सके।
     * केबल को सावधानीपूर्वक रेत की परत पर रखा जाता है। यदि एक से अधिक केबल बिछाई जा रही हैं, तो उनके बीच उचित दूरी बनाए रखी जाती है।
     * केबल के ऊपर रेत की एक और परत (लगभग 10-15 सेमी) डाली जाती है।
     * रेत की परत के ऊपर ईंटें, कंक्रीट स्लैब या प्लास्टिक केबल कवर बिछाए जाते हैं ताकि केबल को भविष्य में यांत्रिक क्षति से बचाया जा सके।
     * इसके ऊपर एक चेतावनी टेप (जिस पर "विद्युत केबल" लिखा होता है) बिछाया जाता है।
     * अंत में, खाई को मिट्टी से भर दिया जाता है और कॉम्पैक्ट किया जाता है।
   * फायदे: 
सबसे किफायती, स्थापना में अपेक्षाकृत कम समय लगता है, अच्छी गर्मी अपव्यय (गर्मी आसानी से मिट्टी में फैल जाती है)।
   * नुकसान: 
भविष्य में मरम्मत या बदलाव के लिए खुदाई करनी पड़ती है, जिससे परेशानी और लागत बढ़ती है; यांत्रिक क्षति का अधिक जोखिम यदि पर्याप्त सुरक्षा न हो।
   * उपयोग:
शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली वितरण के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
 * ड्रॉ-इन सिस्टम (Draw-in System) / डक्ट लेइंग (Duct Laying Method):
   * तरीका: 
इस विधि में, केबलों को सीधे जमीन में बिछाने के बजाय, उन्हें कंक्रीट, स्टील, या प्लास्टिक (जैसे HDPE) से बनी नलिकाओं (डक्ट्स) या कंड्यूट्स के अंदर खींचा जाता है।
   * प्रक्रिया:
     * केबल मार्ग पर एक खाई खोदी जाती है, और फिर इस खाई में नलिकाओं को बिछाया जाता है।
     * निश्चित दूरी पर मैनहोल या पुल बॉक्स (जोइंटिंग पिट्स) बनाए जाते हैं ताकि भविष्य में केबल को अंदर खींचा जा सके, जोड़ा जा सके या मरम्मत की जा सके।
     * एक बार नलिकाएं बिछ जाने के बाद, केबल को इन नलिकाओं के माध्यम से मैनहोल से मैनहोल तक खींचा जाता है।
     * नलिकाओं को रेत और मिट्टी से ढका जाता है।
   * फायदे: 
भविष्य में केबल बदलने या अतिरिक्त केबल बिछाने में आसानी होती है (बिना दोबारा खुदाई किए); यांत्रिक क्षति से बेहतर सुरक्षा; मरम्मत करना आसान।
   * नुकसान:
स्थापना लागत बहुत अधिक होती है; नलिकाओं के कारण गर्मी का अपव्यय कम हो सकता है, जिससे केबल की करंट वहन क्षमता थोड़ी कम हो जाती है।
   * उपयोग: 
घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों, सड़कों के नीचे, रेलवे क्रॉसिंग, या उन स्थानों पर जहाँ भविष्य में मरम्मत या उन्नयन की संभावना अधिक हो।
 * सॉलिड सिस्टम (Solid System):
   * तरीका:
यह एक पुरानी विधि है जो अब शायद ही कभी उपयोग की जाती है। इस विधि में, लेड शीथ वाली केबल को कच्चा लोहा, पत्थर के बने कुंड (ट्रफ्स) या कंक्रीट के ट्रफ्स में रखा जाता है। फिर इन ट्रफ्स को एक विशेष बिटुमिनस कंपाउंड (डामर जैसा यौगिक) से भर दिया जाता है।
   * प्रक्रिया:
     * खाई खोदने के बाद, ट्रफ्स को रखा जाता है।
     * केबल को ट्रफ्स के अंदर रखा जाता है।
     * ट्रफ्स को गर्म बिटुमिनस कंपाउंड से भरा जाता है, जो कठोर होकर केबल को सुरक्षा और नमी से बचाता है।
     * ट्रफ्स को ढक्कन से बंद कर दिया जाता है और फिर मिट्टी से ढक दिया जाता है।
   * फायदे:
यांत्रिक और रासायनिक क्षति से अच्छी सुरक्षा; नमी के प्रवेश से बचाव।
   * नुकसान:
बहुत महंगा, स्थापना में बहुत समय लगता है, फॉल्ट ढूंढना और मरम्मत करना अत्यंत मुश्किल, गर्मी का अपव्यय खराब।
   * उपयोग:
अब लगभग अप्रचलित है।
 * गैस-भरा या तेल-भरा सिस्टम (Gas-Filled or Oil-Filled Systems):
   * तरीका: 
यह विधि बहुत उच्च वोल्टेज (EHV) केबलों के लिए उपयोग की जाती है। इसमें केबल को एक दबावयुक्त माध्यम (जैसे तेल या SF6 गैस) से भरा जाता है। यह माध्यम इन्सुलेशन को मजबूत करता है और आंशिक निर्वहन (पार्शियल डिस्चार्ज) को रोकता है।
   * प्रक्रिया: 
विशेष रूप से डिज़ाइन की गई केबलें, जिनमें आंतरिक नलिकाएं होती हैं, बिछाई जाती हैं। इन नलिकाओं को लगातार उच्च दबाव वाले तेल या गैस से भरा जाता है।
   * फायदे:
बहुत उच्च वोल्टेज पर विश्वसनीय प्रदर्शन; उत्कृष्ट इन्सुलेशन गुण।
   * नुकसान:
बहुत महंगा और जटिल स्थापना; नियमित निगरानी और रखरखाव की आवश्यकता होती है; यदि रिसाव होता है तो पर्यावरणीय चिंताएं।
   * उपयोग: 
लंबी दूरी के उच्च वोल्टेज ट्रांसमिशन के लिए, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ ओवरहेड लाइनों का निर्माण संभव नहीं है।
विधि का चुनाव:
सही विधि का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों पर विचार किया जाता है:
 * लागत: 
बजट की उपलब्धता।
 * आवश्यक विश्वसनीयता: 
कितनी बिजली आपूर्ति बाधित नहीं होनी चाहिए।
 * मरम्मत में आसानी: 
भविष्य में मरम्मत कितनी आसानी से हो सकती है।
 * भूमि उपलब्धता और उपयोग:
शहरी बनाम ग्रामीण क्षेत्र, सड़क क्रॉसिंग, आदि।
 * वोल्टेज स्तर: 
निम्न, मध्यम या उच्च वोल्टेज।
 * मिट्टी की स्थिति: 
पथरीली, दलदली या सामान्य मिट्टी।
आजकल, प्रत्यक्ष बिछाने और ड्रॉ-इन सिस्टम (डक्ट लेइंग) सबसे अधिक प्रचलित विधियाँ हैं।



भूमिगत केबलों में पाए जाने वाले दोषों को ठीक करना एक बहु-चरणीय प्रक्रिया है जिसमें सटीकता, विशेष उपकरण और उच्च सुरक्षा मानकों का पालन करना आवश्यक है। यह ओवरहेड लाइनों की मरम्मत से कहीं अधिक जटिल होता है क्योंकि दोष दिखाई नहीं देता और केबल जमीन के नीचे दबी होती है।

दोष को ठीक करने की प्रक्रिया को मुख्य रूप से निम्न चरणों में बांटा जा सकता है:
1. सुरक्षा उपाय (Safety Precautions)
यह सबसे महत्वपूर्ण पहला कदम है।
 * बिजली आपूर्ति बंद करना (De-energizing): 
सबसे पहले, दोषपूर्ण केबल को बिजली की आपूर्ति से पूरी तरह से अलग किया जाता है। संबंधित ब्रेकर या स्विच को बंद कर दिया जाता है।
 * लॉक-आउट/टैग-आउट (LOTO): 
यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई गलती से बिजली चालू न कर दे, स्विचगियर या ब्रेकर को लॉक कर दिया जाता है और उस पर "मरम्मत कार्य प्रगति पर है" का टैग लगा दिया जाता है।
 * ग्राउंडिंग (Grounding): 
केबल पर काम शुरू करने से पहले उसे पूरी तरह से डिस्चार्ज और ग्राउंडेड किया जाता है ताकि कोई अवशिष्ट चार्ज न रहे और गलती से बिजली आने पर भी सुरक्षा बनी रहे।
 * व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE): 
तकनीशियन उचित व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (जैसे इन्सुलेटेड दस्ताने, सुरक्षा जूते, हेलमेट, सुरक्षात्मक कपड़े) पहनते हैं।
2. दोष का पता लगाना (Fault Location)
दोष का सटीक स्थान ढूंढना मरम्मत प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। गलत जगह खुदाई करने से समय और धन दोनों बर्बाद होते हैं। इसके लिए विभिन्न तकनीकों और उपकरणों का उपयोग किया जाता है:
 * प्री-लोकेशन (Pre-location): 
यह केबल के एक सिरे से दोष की अनुमानित दूरी का पता लगाने के लिए किया जाता है।
   * टाइम डोमेन रिफ्लेक्टोमेट्री (TDR):
यह केबल में एक पल्स भेजता है और दोष से परावर्तित पल्स के समय को मापकर दूरी बताता है। यह ओपन-सर्किट, शॉर्ट-सर्किट और लीकेज फॉल्ट के लिए प्रभावी है।
   * मरे लूप टेस्ट (Murray Loop Test): 
यह व्हीटस्टोन ब्रिज के सिद्धांत पर आधारित है और अर्थ फॉल्ट या शॉर्ट-सर्किट फॉल्ट के लिए उपयोग होता है।
 * पिन-पॉइंटिंग (Pin-pointing): 
एक बार अनुमानित दूरी का पता चलने के बाद, दोष के सटीक स्थान को इंगित करने के लिए निम्न विधियों का उपयोग किया जाता है:
   * सर्ज जनरेटर/थंपर (Surge Generator/Thumper): 
यह केबल में उच्च वोल्टेज पल्स भेजता है। दोष बिंदु पर एक चाप (आर्क) बनता है, जिससे एक श्रव्य "थंप" या "क्रैक" की आवाज आती है। तकनीशियन जमीन पर ध्वनिक सेंसर (जियोफोन) का उपयोग करके इस आवाज का पता लगाते हैं।
   * इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फॉल्ट लोकेटर:
यह दोष से उत्पन्न होने वाले विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र का पता लगाकर स्थान निर्धारित करता है।
3. खुदाई और केबल को उजागर करना (Excavation and Exposure of Cable)
 * दोष का सटीक स्थान निर्धारित होने के बाद, उस बिंदु पर सावधानीपूर्वक खुदाई की जाती है।
 * आसपास की अन्य उपयोगिताओं (जैसे पानी या गैस पाइप) को नुकसान न पहुँचाने का विशेष ध्यान रखा जाता है।
 * केबल को पूरी तरह से उजागर किया जाता है और उसके चारों ओर काम करने के लिए पर्याप्त जगह बनाई जाती है।
4. केबल की मरम्मत (Cable Repair)
मरम्मत की विधि दोष के प्रकार और केबल के वोल्टेज स्तर पर निर्भर करती है।
 * क्षतिग्रस्त भाग को हटाना (Removing Damaged Section): 
दोषपूर्ण या क्षतिग्रस्त केबल के हिस्से को काट कर हटा दिया जाता है।
 * केबल जॉइंटिंग/स्प्लिसिंग (Cable Jointing/Splicing):
   * नए केबल के टुकड़े को क्षतिग्रस्त हिस्से की जगह जोड़ा जाता है।
   * केबल जॉइंटिंग एक विशेष प्रक्रिया है जिसमें केबल के कंडक्टरों को जोड़ना, इन्सुलेशन को बहाल करना, और बाहरी शीथ/कवच को फिर से स्थापित करना शामिल है।
   * इसमें विशेष जॉइंटिंग किट का उपयोग किया जाता है, जिनमें हीट श्रिंक (Heat Shrink), कोल्ड श्रिंक (Cold Shrink) या रेजिन कास्ट (Resin Cast) तकनीकें शामिल हो सकती हैं।
   * हीट श्रिंक किट: 
इसमें गर्मी से सिकुड़ने वाली ट्यूबें होती हैं जो जॉइंट पर कसकर फिट हो जाती हैं और इन्सुलेशन प्रदान करती हैं।
   * कोल्ड श्रिंक किट:
ये पूर्व-फैली हुई ट्यूबें होती हैं जिन्हें जॉइंट पर रोल किया जाता है, और वे अपनी मूल स्थिति में सिकुड़कर सील बना लेती हैं।
   * रेसिन कास्ट जॉइंट्स:
इसमें जॉइंट को एक मोल्ड में रखकर विशेष रेजिन से भरा जाता है जो कठोर होकर एक ठोस, जलरोधक सील बनाता है।
   * जोड़ ऐसा होना चाहिए कि वह केबल की मूल यांत्रिक और विद्युत गुणों को बनाए रखे।
5. परीक्षण (Testing After Repair)
 * मरम्मत पूरी होने के बाद, केबल पर फिर से विद्युत परीक्षण (जैसे इन्सुलेशन प्रतिरोध परीक्षण, निरंतरता परीक्षण, उच्च वोल्टेज परीक्षण) किए जाते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोष पूरी तरह से ठीक हो गया है और केबल सुरक्षित और कार्यात्मक है।
 * यह परीक्षण यह भी सुनिश्चित करता है कि मरम्मत के दौरान कोई नया दोष उत्पन्न न हुआ हो।
6. बैकफिलिंग और सतह की बहाली (Backfilling and Surface Restoration)
 * एक बार जब केबल की सफलतापूर्वक मरम्मत और परीक्षण हो जाता है, तो खाई को उचित बैकफिल सामग्री (जैसे रेत और मिट्टी) से भरा जाता है, जैसा कि केबल बिछाने की प्रक्रिया में होता है।
 * मिट्टी को कॉम्पैक्ट किया जाता है ताकि बाद में जमीन धँसे नहीं।
 * सतह को उसके मूल स्वरूप में बहाल किया जाता है, चाहे वह सड़क हो, फुटपाथ हो या घास का मैदान।
भूमिगत केबल दोष निवारण एक जटिल और तकनीकी कार्य है जिसे केवल प्रशिक्षित और प्रमाणित पेशेवरों द्वारा ही किया जाना चाहिए। गलत या अपर्याप्त मरम्मत से भविष्य में गंभीर सुरक्षा जोखिम या बार-बार खराबी हो सकती है।




केबल का आकार (साइज़) निर्धारित करना एक महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग प्रक्रिया है जो सुरक्षा, दक्षता और दीर्घायु सुनिश्चित करती है। केबल का आकार मुख्य रूप से उस करंट (एम्पीयर) पर निर्भर करता है जिसे उसे ले जाना है, लेकिन वोल्टेज ड्रॉप और ओवरकरंट सुरक्षा जैसे कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यहाँ केबल का साइज़, वोल्टेज और एम्पीयर के बीच संबंध और गणना का तरीका बताया गया है:
1. आवश्यक करंट (एम्पीयर) की गणना करें:
सबसे पहले, आपको उस अधिकतम करंट (एम्पीयर) की गणना करनी होगी जिसे केबल को वहन करना होगा। यह आपके लोड (उपकरणों) की कुल शक्ति पर निर्भर करता है।
 * सिंगल-फेज (एकल-चरण) सिस्टम के लिए:
   \text{करंट (एम्पीयर, I)} = \frac{\text{शक्ति (वॉट, P)}}{\text{वोल्टेज (वोल्ट, V)} \times \text{पावर फैक्टर (Cosφ)}}
   * उदाहरण: यदि आपके पास 230V पर चलने वाला 2000W का हीटर है और पावर फैक्टर 1 है:
     \text{I} = \frac{2000}{230 \times 1} \approx 8.7 \text{ एम्पीयर}
 * थ्री-फेज (तीन-चरण) सिस्टम के लिए:
   \text{करंट (एम्पीयर, I)} = \frac{\text{शक्ति (वॉट, P)}}{\sqrt{3} \times \text{वोल्टेज (वोल्ट, V)} \times \text{पावर फैक्टर (Cosφ)}}
   (जहाँ \sqrt{3} का मान लगभग 1.732 होता है)
   * उदाहरण: यदि आपके पास 415V पर चलने वाली 5000W की थ्री-फेज मोटर है और पावर फैक्टर 0.8 है:
     \text{I} = \frac{5000}{1.732 \times 415 \times 0.8} \approx \frac{5000}{575} \approx 8.7 \text{ एम्पीयर}
महत्वपूर्ण नोट्स:
 * लोड की रेटिंग:
हमेशा उपकरण की अधिकतम रेटेड शक्ति (वॉट या किलोवॉट में) का उपयोग करें।
 * पावर फैक्टर (Cosφ): 
यह AC सर्किट में वास्तविक शक्ति और आभासी शक्ति का अनुपात होता है। रेजिस्टिव लोड (जैसे हीटर, इनकैंडेसेंट बल्ब) के लिए यह लगभग 1 होता है। इंडक्टिव लोड (जैसे मोटर, पंखे) के लिए यह 0.8 या 0.9 हो सकता है। यदि पता न हो, तो सामान्यतः 0.85 से 0.9 का उपयोग किया जा सकता है, या सबसे खराब स्थिति (0.8) मान लें।
 * भविष्य की वृद्धि (Future Expansion): 
भविष्य में संभावित लोड वृद्धि को ध्यान में रखते हुए 15-25% का सुरक्षा मार्जिन जोड़ना हमेशा अच्छा होता है।
2. केबल की करंट वहन क्षमता (Ampacity) का निर्धारण करें:
एक बार जब आप आवश्यक करंट की गणना कर लेते हैं, तो आपको एक ऐसी केबल का चयन करना होगा जो उस करंट को सुरक्षित रूप से वहन कर सके। केबल की करंट वहन क्षमता (या एम्पेसिटी) कई कारकों पर निर्भर करती है:
 * केबल की सामग्री: 
तांबा (Copper) एल्यूमीनियम (Aluminum) की तुलना में बेहतर चालक है। समान करंट के लिए तांबे की केबल का आकार एल्यूमीनियम से छोटा होगा।
 * इन्सुलेशन का प्रकार: 
PVC, XLPE जैसे इन्सुलेशन प्रकारों की अलग-अलग तापमान रेटिंग होती है। XLPE आमतौर पर उच्च तापमान सहन कर सकता है, जिससे यह समान आकार में अधिक करंट वहन कर सकता है।
 * स्थापना का तरीका:
   * भूमिगत (Direct Buried): 
मिट्टी में सीधी दबी हुई केबल।
   * डक्ट में (In Ducts):
पाइप या नलिकाओं के अंदर बिछी केबल।
   * हवा में (In Air): 
ओवरहेड या दीवारों पर बिछी केबल।
     भूमिगत और डक्ट में बिछी केबलें हवा की तुलना में गर्मी को कम कुशलता से प्रसारित करती हैं, इसलिए उनकी एम्पेसिटी कम होती है।
 * परिवेश का तापमान (Ambient Temperature): यदि केबल गर्म वातावरण में है, तो उसकी करंट वहन क्षमता कम हो जाती है।
 * केबलों की संख्या (Number of Cables): यदि कई केबलें एक ही खाई या डक्ट में बिछी हैं, तो वे एक-दूसरे को गर्म करेंगी, जिससे उनकी व्यक्तिगत एम्पेसिटी कम हो जाएगी (डे-रेटिंग फैक्टर)।
सही एम्पेसिटी के लिए संदर्भ:
आपको भारतीय मानक (Indian Standards - IS) कोड जैसे IS 3961 या IS 1554 (या अन्य प्रासंगिक स्थानीय मानकों) में दी गई तालिकाओं का संदर्भ लेना होगा। ये तालिकाएं विभिन्न प्रकार की केबलों, स्थापना विधियों और परिवेश के तापमान के लिए उनकी अधिकतम करंट वहन क्षमता दर्शाती हैं।
उदाहरण: एक तालिका दिखा सकती है कि 4mm² की तांबे की PVC इन्सुलेटेड केबल, यदि सीधी जमीन में बिछाई जाए, तो 30 डिग्री सेल्सियस परिवेश तापमान पर 32 एम्पीयर तक वहन कर सकती है।
3. वोल्टेज ड्रॉप (Voltage Drop) की जाँच करें:
केबल में करंट प्रवाहित होने पर वोल्टेज का कुछ नुकसान होता है, जिसे वोल्टेज ड्रॉप कहते हैं। यह नुकसान केबल की लंबाई और उस पर बहने वाले करंट पर निर्भर करता है। अत्यधिक वोल्टेज ड्रॉप उपकरणों के खराब प्रदर्शन या क्षति का कारण बन सकता है।
 * भारतीय मानकों के अनुसार, अनुमेय वोल्टेज ड्रॉप आमतौर पर कुल आपूर्ति वोल्टेज के 2% से 5% तक सीमित होता है (लोड के प्रकार पर निर्भर करता है)।
 * आपको चुनी गई केबल के लिए वोल्टेज ड्रॉप की गणना करनी होगी (केबल निर्माताओं द्वारा प्रदान किए गए डेटा या मानक सूत्रों का उपयोग करके)।
 * यदि गणना किया गया वोल्टेज ड्रॉप अनुमेय सीमा से अधिक है, तो आपको बड़े आकार की केबल (अगला मानक साइज़) का चयन करना होगा, भले ही वर्तमान वहन क्षमता के हिसाब से वर्तमान साइज़ पर्याप्त हो।
4. शॉर्ट-सर्किट करंट वहन क्षमता (Short-Circuit Current Withstand) की जाँच करें:
केबल को किसी शॉर्ट-सर्किट की स्थिति में उत्पन्न होने वाली अत्यधिक उच्च धाराओं को एक छोटे समय के लिए (जब तक सुरक्षात्मक उपकरण ट्रिप न कर दें) सहन करने में सक्षम होना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए केबल के कंडक्टर का आकार पर्याप्त होना चाहिए कि शॉर्ट-सर्किट के दौरान वह अत्यधिक गर्म होकर पिघल न जाए। यह गणना विशेष रूप से बड़े औद्योगिक और उच्च वोल्टेज प्रतिष्ठानों के लिए महत्वपूर्ण है।
5. ओवरकरंट सुरक्षा (Overcurrent Protection) के साथ समन्वय:
 * चुनी गई केबल की एम्पेसिटी हमेशा उस सर्किट ब्रेकर (MCB/MCCB) या फ्यूज की रेटिंग से अधिक होनी चाहिए जो उस केबल की सुरक्षा कर रहा है।
 * उदाहरण के लिए, यदि एक केबल 32 एम्पीयर वहन कर सकती है, तो आप उसे 25 एम्पीयर के ब्रेकर से सुरक्षित कर सकते हैं, लेकिन 40 एम्पीयर के ब्रेकर से नहीं।
केबल साइज़ चुनने के लिए चरण-दर-चरण सारांश:
 * लोड का निर्धारण करें: 
उपकरणों की कुल शक्ति (वॉट/किलोवॉट) और सिस्टम वोल्टेज (सिंगल-फेज/थ्री-फेज) ज्ञात करें।
 * करंट (एम्पीयर) की गणना करें: 
ऊपर दिए गए सूत्रों का उपयोग करके कुल करंट (I) ज्ञात करें।
 * सुरक्षा मार्जिन जोड़ें: 
गणना किए गए करंट में 15-25% का सुरक्षा मार्जिन जोड़ें।
 * प्रारंभिक केबल साइज़ चुनें: 
भारतीय मानकों (IS कोड) की तालिकाओं का संदर्भ लें और गणना किए गए करंट वहन क्षमता और स्थापना के तरीके के आधार पर एक प्रारंभिक केबल साइज़ चुनें।
 * वोल्टेज ड्रॉप की जाँच करें:
इस प्रारंभिक केबल साइज़ के लिए वोल्टेज ड्रॉप की गणना करें। यदि यह अनुमेय सीमा से अधिक है, तो अगले बड़े साइज़ की केबल चुनें और पुनः जाँच करें।
 * शॉर्ट-सर्किट वहन क्षमता की जाँच करें (यदि आवश्यक हो): 
विशेष रूप से बड़े प्रतिष्ठानों के लिए।
 * ओवरकरंट सुरक्षा के साथ समन्वय करें: सुनिश्चित करें कि केबल की एम्पेसिटी ब्रेकर/फ्यूज की रेटिंग से अधिक है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि केबल साइज़ की गणना एक जटिल इंजीनियरिंग कार्य है। सुरक्षा और नियामक अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए हमेशा एक योग्य विद्युत अभियंता से परामर्श करना या मानक सॉफ्टवेयर कैलकुलेटर का उपयोग करना सबसे अच्छा होता है।




परीक्षाओं के दृष्टिकोण से केबल से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न
केबल से संबंधित प्रश्न अक्सर तकनीकी परीक्षाओं (जैसे जूनियर इंजीनियर, सहायक इंजीनियर, ITI, डिप्लोमा और अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं) में पूछे जाते हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण विषय और उनसे संबंधित प्रश्न दिए गए हैं जो परीक्षा के दृष्टिकोण से उपयोगी हो सकते हैं:

1. केबल के प्रकार और वर्गीकरण (Types and Classification of Cables)
 * प्रश्न
वोल्टेज के आधार पर केबलों का वर्गीकरण करें और प्रत्येक प्रकार की वोल्टेज रेंज बताएं।
   * उत्तर में शामिल बिंदु: 
निम्न तनाव (LT), उच्च तनाव (HT), अति तनाव (ST), अतिरिक्त उच्च तनाव (EHT), अतिरिक्त अति तनाव (EST) केबलें और उनकी संबंधित kV रेंज।
 * प्रश्न
इन्सुलेशन सामग्री के आधार पर केबलें कितने प्रकार की होती हैं? किन्हीं दो महत्वपूर्ण इन्सुलेशन सामग्री के नाम और उनकी विशेषताएँ बताएं।
   * उत्तर में शामिल बिंदु: 
PVC, XLPE, PILC (पेपर इन्सुलेटेड लेड कवर्ड) केबलें और उनकी मुख्य विशेषताएँ (जैसे तापमान सहनशीलता, नमी प्रतिरोध)।
 * प्रश्न
सिंगल-कोर और मल्टी-कोर केबलों में क्या अंतर है? उनके उपयोग के दो उदाहरण दें।
2. केबल की संरचना और घटक (Construction and Components of Cables)
 * प्रश्न
एक भूमिगत केबल के विभिन्न घटकों का वर्णन करें और प्रत्येक का कार्य बताएं। (चित्र बनाने के लिए भी आ सकता है)
   * उत्तर में शामिल बिंदु: 
कंडक्टर, इन्सुलेशन, मेटालिक शीथ, बेडिंग, आर्मरिंग, सर्विंग। प्रत्येक भाग का स्पष्ट कार्य।
 * प्रश्न
भूमिगत केबल में आर्मरिंग (Armouring) का क्या उद्देश्य है? यह किस सामग्री से बनी होती है?
   * उत्तर में शामिल बिंदु: 
यांत्रिक सुरक्षा, स्टील के तार या टेप।
 * प्रश्न
केबल में मेटालिक शीथ (Metallic Sheath) का कार्य क्या है और इसे ग्राउंड क्यों किया जाता है?
   * उत्तर में शामिल बिंदु: 
नमी, गैस, रासायनिक हमले से बचाव; लीकेज करंट को ग्राउंड करना।
3. केबल बिछाने के तरीके (Methods of Cable Laying)
 * प्रश्न
भूमिगत केबल बिछाने के विभिन्न तरीकों का वर्णन करें। इनमें से सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली विधि कौन सी है और क्यों?
   * उत्तर में शामिल बिंदु: 
डायरेक्ट लेइंग, ड्रॉ-इन सिस्टम (डक्ट लेइंग), सॉलिड सिस्टम। प्रत्येक का संक्षिप्त विवरण, फायदे और नुकसान।
 * प्रश्न:
 ड्रॉ-इन सिस्टम (डक्ट लेइंग) का उपयोग कब पसंद किया जाता है? इसके दो मुख्य फायदे बताएं।
   * उत्तर में शामिल बिंदु: 
शहरी क्षेत्र, सड़कों के नीचे, भविष्य में विस्तार की आवश्यकता, आसान मरम्मत।
4. केबल के दोष और उनका पता लगाना (Cable Faults and Location)
 * प्रश्न
भूमिगत केबलों में पाए जाने वाले तीन प्रमुख दोषों के नाम बताएं और प्रत्येक का संक्षिप्त वर्णन करें।
   * उत्तर में शामिल बिंदु:
ओपन-सर्किट फॉल्ट, शॉर्ट-सर्किट फॉल्ट, अर्थ फॉल्ट।
 * प्रश्न
केबल में फॉल्ट का पता लगाने के लिए उपयोग की जाने वाली किन्हीं दो विधियों का नाम बताएं और उनका कार्य सिद्धांत संक्षेप में समझाएं।
   * उत्तर में शामिल बिंदु: 
TDR (टाइम डोमेन रिफ्लेक्टोमेट्री), मरे लूप टेस्ट, सर्ज जनरेटर (थंपर)।
 * प्रश्न
भूमिगत केबल में दोष ढूंढने के लिए थंपर (Thumper) का उपयोग कैसे किया जाता है?
   * उत्तर में शामिल बिंदु:
उच्च वोल्टेज पल्स भेजना, आर्क बनाना, ध्वनि का पता लगाना।
5. केबल का आकार और चयन (Cable Sizing and Selection)
 * प्रश्न:
 केबल का आकार निर्धारित करते समय किन मुख्य कारकों पर विचार किया जाता है? किन्हीं तीन कारकों का विस्तार से वर्णन करें।
   * उत्तर में शामिल बिंदु:
करंट वहन क्षमता (एम्पेसिटी), वोल्टेज ड्रॉप, स्थापना का तरीका, परिवेश का तापमान, शॉर्ट-सर्किट करंट।
 * प्रश्न
वोल्टेज ड्रॉप क्या है और यह केबल के प्रदर्शन को कैसे प्रभावित करता है? इसे कम करने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
   * उत्तर में शामिल बिंदु: 
वोल्टेज में कमी, उपकरणों का खराब प्रदर्शन; बड़े आकार की केबल का उपयोग।
 * प्रश्न:
 यदि एक ही खाई में कई केबलें बिछाई जा रही हैं, तो उनकी करंट वहन क्षमता क्यों कम हो जाती है?
   * उत्तर में शामिल बिंदु:
हीटिंग प्रभाव, गर्मी अपव्यय में कमी (डे-रेटिंग)।
6. केबल जॉइंटिंग और टर्मिनेशन (Cable Jointing and Termination)
 * प्रश्न
केबल जॉइंटिंग के लिए उपयोग की जाने वाली किन्हीं दो आधुनिक तकनीकों का नाम बताएं और उनके लाभ बताएं।
   * उत्तर में शामिल बिंदु:
हीट श्रिंक, कोल्ड श्रिंक, रेजिन कास्ट जॉइंट्स।
 * प्रश्न: 
केबल टर्मिनेशन का क्या उद्देश्य है?
   * उत्तर में शामिल बिंदु:
कंडक्टर को उपकरण से जोड़ना, इन्सुलेशन प्रदान करना, नमी प्रवेश रोकना।
ये प्रश्न आपको केबल से संबंधित परीक्षाओं की तैयारी में मदद करेंगे। इन विषयों को विस्तार से पढ़ना और उनके नोट्स बनाना आपके लिए बहुत फायदेमंद होगा।
क्या आप इनमें से किसी विशिष्ट बिंदु पर अधिक जानकारी चाहते हैं?


भूमिगत केबल जोड़ (Underground Cable Joint) बनाना एक बहुत ही कुशल और सावधानी भरा काम है, खासकर उच्च वोल्टेज केबलों के लिए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जोड़ मूल केबल जितनी ही मजबूत, जलरोधक और विद्युत रूप से विश्वसनीय हो। केबल जोड़ बनाने के लिए विभिन्न तकनीकें उपलब्ध हैं, जिनमें सबसे आम हीट श्रिंक (Heat Shrink), कोल्ड श्रिंक (Cold Shrink), और रेजिन कास्ट (Resin Cast) विधियाँ हैं।

यहाँ एक सामान्य प्रक्रिया दी गई है कि भूमिगत केबल जोड़ कैसे बनाया जाता है, जिसमें हीट श्रिंक विधि का उदाहरण दिया गया है:
आवश्यक उपकरण और सामग्री:
 * केबल जॉइंटिंग किट:
इसमें आमतौर पर सभी आवश्यक सामग्री जैसे इन्सुलेटिंग ट्यूब, मास्टिक टेप, फिलर्स, क्लीनर, एमरी क्लॉथ, और कभी-कभी आर्मरिंग के लिए सामग्री शामिल होती है।
 * हॉट ब्लोअर/टॉर्च: 
हीट श्रिंक सामग्री को गर्म करने के लिए।
 * केबल कटिंग और स्ट्रिपिंग टूल्स: केबल को सही ढंग से काटने और उसकी परतों को हटाने के लिए।
 * क्रिंपिंग टूल: 
कंडक्टरों को जोड़ने के लिए।
 * क्लीनिंग एजेंट: 
सतहों को साफ करने के लिए।
 * सुरक्षात्मक उपकरण (PPE): 
दस्ताने, सुरक्षा चश्मा, आदि।
भूमिगत केबल जोड़ बनाने के चरण:
1. सुरक्षा सबसे पहले (Safety First):
* केबल को पूरी तरह से डी-एनर्जाइज (बिजली आपूर्ति बंद) करें और सुनिश्चित करें कि यह सुरक्षित रूप से लॉक-आउट/टैग-आउट (LOTO) है।
* केबल को ग्राउंड करें और कोई भी अवशिष्ट चार्ज हटा दें।
* सभी आवश्यक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (PPE) पहनें।
2. केबल की तैयारी (Cable Preparation):
* क्षतिग्रस्त भाग को हटाना: 
यदि दोष की मरम्मत कर रहे हैं, तो क्षतिग्रस्त केबल के हिस्से को काट कर हटा दें। यदि दो केबल खंडों को जोड़ रहे हैं, तो उन्हें उचित लंबाई में काट लें।
* लंबाई का मापन: 
जॉइंटिंग किट के निर्देशों के अनुसार, केबल के सिरों से बाहरी शीथ (serving, armouring, bedding) और इन्सुलेशन को सही लंबाई तक हटा दें। यह चरण बहुत सटीक होना चाहिए।
* परतों को हटाना: 
विभिन्न परतों को सावधानीपूर्वक हटाया जाता है:
* सर्विंग (बाहरी आवरण):
सबसे बाहरी सुरक्षात्मक परत।
* आर्मरिंग (कवच): 
धातु की तारों या टेप से बना होता है, जो यांत्रिक सुरक्षा प्रदान करता है। इसे भी हटा दिया जाता है और बाद में फिर से जोड़ा जाएगा।
* बेडिंग: 
आर्मरिंग के नीचे की परत।
* मेटालिक शीथ/स्क्रीन: 
यह कंडक्टर को ग्राउंड से अलग रखता है और फॉल्ट करंट के लिए रास्ता प्रदान करता है। इसे भी निश्चित लंबाई तक हटाया जाता है।
* सेमी-कंडक्टिंग लेयर (यदि हो): 
XLPE केबलों में इन्सुलेशन के अंदर और बाहर एक सेमी-कंडक्टिंग परत होती है, इसे भी ठीक से ट्रिम किया जाता है।
* इन्सुलेशन:
कंडक्टर के चारों ओर की मुख्य इन्सुलेशन परत को भी आवश्यक लंबाई तक सावधानीपूर्वक हटाया जाता है ताकि कंडक्टर उजागर हो सके।
* कंडक्टर:
कंडक्टर के सिरे को नंगे किया जाता है।
* साफ-सफाई: 
कंडक्टरों और इन्सुलेशन की सतहों को किसी भी गंदगी, तेल या नमी से अच्छी तरह से साफ किया जाता है।
3. कंडक्टरों को जोड़ना (Joining the Conductors):
* दोनों केबलों के नंगे कंडक्टर सिरों को एक उपयुक्त क्रिंपिंग कनेक्टर (जोड़) या फेरूल का उपयोग करके जोड़ा जाता है।
* क्रिंपिंग टूल का उपयोग करके कनेक्टर को कंडक्टरों पर मजबूती से दबाया जाता है ताकि एक मजबूत और विद्युत रूप से विश्वसनीय कनेक्शन बन सके।
* सुनिश्चित करें कि कंडक्टरों के बीच कोई ढीलापन या अंतराल न हो।
4. इन्सुलेशन की बहाली (Insulation Restoration):
* यह जॉइंटिंग प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। कंडक्टरों के जोड़ पर इन्सुलेटिंग सामग्री लगाई जाती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह मूल इन्सुलेशन जितना ही प्रभावी हो।
* हीट श्रिंक विधि में:
* आमतौर पर, सबसे पहले प्रत्येक जुड़े हुए कंडक्टर के ऊपर एक छोटी हीट श्रिंक ट्यूब डाली जाती है और गर्म करके सिकुड़ाया जाता है। यह व्यक्तिगत कंडक्टरों को इन्सुलेट करता है।
* फिर, पूरे जॉइंट किए गए कंडक्टरों के बंडल पर (यदि मल्टी-कोर केबल हो) या सिंगल कंडक्टर पर एक बड़ी हीट श्रिंक इन्सुलेटिंग ट्यूब डाली जाती है। इसे गर्म करके कसकर सिकुड़ाया जाता है ताकि यह जॉइंट पर पूरी तरह से फिट हो जाए और हवा या नमी के प्रवेश को रोक सके।
* अक्सर, अतिरिक्त सुरक्षा के लिए इसके ऊपर मास्टिक टेप या अन्य फिलर्स का भी उपयोग किया जाता है।
5. मेटालिक शीथ/स्क्रीन की बहाली (Restoration of Metallic Sheath/Screen):
* मूल मेटालिक शीथ या स्क्रीन की निरंतरता को बहाल किया जाता है। यह आमतौर पर कॉपर ब्रेडेड टेप या कॉपर मेश का उपयोग करके किया जाता है, जिसे जॉइंट के ऊपर लपेटा जाता है और केबल के मूल मेटालिक शीथ से जोड़ा जाता है। इसे ग्राउंड से भी जोड़ा जाता है।
6. आर्मरिंग की बहाली (Restoration of Armouring):
* यदि केबल में आर्मरिंग थी, तो उसे भी बहाल किया जाता है। यह आमतौर पर गैल्वेनाइज्ड स्टील के तारों या टेप का उपयोग करके किया जाता है, जिसे मेटालिक शीथ की बहाली के ऊपर लपेटा जाता है और केबल के मूल आर्मरिंग से जोड़ा जाता है। इसे भी सुरक्षित रूप से ग्राउंड किया जाता है।
7. बाहरी आवरण की बहाली (Restoration of Outer Sheath/Serving):
* सबसे अंत में, पूरे जॉइंट पर एक बाहरी हीट श्रिंक आउटेर शीथ ट्यूब डाली जाती है। इसे गर्म करके सिकुड़ाया जाता है ताकि यह जॉइंट को यांत्रिक क्षति, नमी और रासायनिक प्रभावों से बचाए। यह केबल को एक समान, जलरोधक आवरण प्रदान करता है।
8. अंतिम निरीक्षण और परीक्षण (Final Inspection and Testing):
* जोड़ का दृश्य निरीक्षण किया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी परतें ठीक से लगी हैं और कोई दोष नहीं है।
* मरम्मत किए गए केबल जॉइंट पर इंसुलेशन प्रतिरोध परीक्षण (मेगर टेस्ट) और अन्य आवश्यक विद्युत परीक्षण (जैसे हाई-पॉट टेस्ट) किए जाते हैं ताकि इसकी अखंडता और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
9. बैकफिलिंग (Backfilling):
* एक बार जब जॉइंट का सफलतापूर्वक परीक्षण हो जाता है, तो उसे रेत और मिट्टी की परतों से सावधानीपूर्वक ढक दिया जाता है, जैसा कि सामान्य केबल बिछाने की प्रक्रिया में होता है, और सतह को बहाल किया जाता है।
अन्य जॉइंटिंग विधियाँ:
 * कोल्ड श्रिंक (Cold Shrink): 
इसमें प्री-स्ट्रेच्ड (पहले से खींची हुई) ट्यूबें होती हैं जो एक रिमूवेबल कोर पर लगी होती हैं। जॉइंट पर लगाने के बाद कोर को खींच लिया जाता है और ट्यूब अपनी मूल स्थिति में सिकुड़ जाती है, जिससे बिना गर्मी के एक कसकर फिट होने वाला सील बनता है।
 * रेजिन कास्ट (Resin Cast): 
इस विधि में, जॉइंट को एक मोल्ड में रखा जाता है और एक विशेष रेजिन कंपाउंड (राल) से भर दिया जाता है। यह रेजिन कठोर होकर एक ठोस, जलरोधक और यांत्रिक रूप से मजबूत जॉइंट बनाता है।
केबल जॉइंटिंग एक जटिल प्रक्रिया है जिसके लिए उच्च स्तर की विशेषज्ञता और सटीकता की आवश्यकता होती है। यह हमेशा प्रशिक्षित और प्रमाणित कर्मियों द्वारा ही किया जाना चाहिए।





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घरेलू उपयोग के लिए पीएलसी (Programmable Logic Controller) का इस्तेमाल करना संभव है, हालांकि यह औद्योगिक उपयोग जितना आम नहीं है। आमतौर पर, घर के स्वचालन के लिए माइक्रोकंट्रोलर-आधारित सिस्टम या रेडीमेड स्मार्ट होम सोल्यूशंस (जैसे गूगल होम, अमेज़न एलेक्सा, स्मार्टथिंग्स) अधिक प्रचलित हैं।

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