VFD प्रोग्रामिंग के बुनियादी सिद्धांत
वीएफडी (VFD - Variable Frequency Drive) प्रोग्रामिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम VFD को नियंत्रित करते हैं ताकि वह मोटर की गति (स्पीड) और टॉर्क को हमारी आवश्यकताओं के अनुसार समायोजित कर सके। VFD मूल रूप से मोटर को दी जाने वाली फ्रीक्वेंसी और वोल्टेज को बदलकर उसकी गति को नियंत्रित करता है।
VFD प्रोग्रामिंग के बुनियादी सिद्धांत
VFD प्रोग्रामिंग के कुछ मूलभूत सिद्धांत इस प्रकार हैं:
* फ्रीक्वेंसी नियंत्रण: VFD का मुख्य काम मोटर को दी जाने वाली AC पावर की फ्रीक्वेंसी को बदलना है। जब फ्रीक्वेंसी बढ़ती है, तो मोटर की गति बढ़ती है, और जब फ्रीक्वेंसी कम होती है, तो मोटर की गति कम होती है।
* वोल्टेज नियंत्रण: VFD फ्रीक्वेंसी के साथ-साथ वोल्टेज को भी समायोजित करता है ताकि मोटर को सही V/Hz अनुपात मिले। यह मोटर को ओवरहीटिंग या अंडर-वोल्टेज से बचाता है।
* पैरामीटर्स: VFD में कई पैरामीटर होते हैं जिन्हें सेट करके हम उसके व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। ये पैरामीटर VFD के प्रकार और निर्माता के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य पैरामीटर नीचे दिए गए हैं।
* एक्सीलरेशन और डीसेलरेशन टाइम: यह बताता है कि मोटर को उसकी न्यूनतम गति से अधिकतम गति तक पहुँचने में कितना समय लगेगा (एक्सीलरेशन) और अधिकतम गति से न्यूनतम गति तक पहुँचने में कितना समय लगेगा (डीसेलरेशन)।
* मोटर डेटा: VFD को मोटर के रेटेड पावर, रेटेड फ्रीक्वेंसी, रेटेड स्पीड, रेटेड वोल्टेज और रेटेड करंट जैसे डेटा की आवश्यकता होती है ताकि वह मोटर को कुशलतापूर्वक चला सके।
* नियंत्रण मोड: VFD को विभिन्न तरीकों से नियंत्रित किया जा सकता है, जैसे कि स्थानीय (कीपैड से), रिमोट (बाहरी स्विच या पोटेंशियोमीटर से), या PLC (प्रोग्रामेबल लॉजिक कंट्रोलर) के माध्यम से।
VFD प्रोग्रामिंग कैसे करें
VFD प्रोग्रामिंग आमतौर पर VFD के कीपैड और डिस्प्ले का उपयोग करके की जाती है। प्रत्येक VFD मॉडल और निर्माता के पास अपनी विशिष्ट प्रोग्रामिंग प्रक्रिया और पैरामीटर कोड होते हैं, लेकिन सामान्य चरण इस प्रकार हैं:
* VFD मैनुअल को समझना: VFD प्रोग्रामिंग शुरू करने से पहले, अपने विशिष्ट VFD मॉडल के उपयोगकर्ता मैनुअल को ध्यान से पढ़ना सबसे महत्वपूर्ण है। मैनुअल में सभी पैरामीटर, उनके कार्य और उन्हें कैसे सेट करना है, इसकी विस्तृत जानकारी होती है।
* मुख्य पैरामीटर सेट करना:
* मोटर के नाम-प्लेट डेटा: सबसे पहले, आपको VFD में मोटर के नाम-प्लेट पर दिए गए रेटेड पावर, वोल्टेज, करंट, फ्रीक्वेंसी और RPM जैसे डेटा को दर्ज करना होगा। यह अक्सर P2 ग्रुप में होता है (जैसे P2.00, P2.01, आदि)।
* नियंत्रण मोड: तय करें कि आप VFD को कैसे नियंत्रित करना चाहते हैं - कीपैड से, बाहरी पुश बटन/स्विच से, या एनालॉग सिग्नल (जैसे 0-10V या 4-20mA) के माध्यम से। इसके लिए संबंधित पैरामीटर सेट करें।
* अधिकतम और न्यूनतम फ्रीक्वेंसी: VFD को कितनी न्यूनतम और अधिकतम फ्रीक्वेंसी पर काम करना चाहिए, इसे सेट करें।
* एक्सीलरेशन और डीसेलरेशन टाइम: मोटर को स्टार्ट और स्टॉप करने में कितना समय लगना चाहिए, इसे निर्धारित करें। यह झटकों को कम करने और मशीनरी की लाइफ बढ़ाने में मदद करता है।
* स्टॉप मोड: चुनें कि मोटर को कैसे रोकना है - फ्री रनिंग स्टॉप (VFD पावर हटा देगा और मोटर अपने आप रुक जाएगी) या रैंप स्टॉप (VFD धीरे-धीरे फ्रीक्वेंसी कम करके मोटर को रोकेगा)।
* फ़ैक्टरी रीसेट: यदि आप पुरानी सेटिंग्स को हटाना चाहते हैं, तो VFD को फ़ैक्टरी सेटिंग्स पर रीसेट करने का विकल्प होता है।
* एंटर और सेव करना: पैरामीटर वैल्यू को बदलने के बाद, आमतौर पर "एंटर" या "प्रोग्राम" बटन दबाकर उसे सेव करना होता है। यह सुनिश्चित करता है कि सेटिंग्स VFD की मेमोरी में स्टोर हो जाएं।
* टेस्टिंग: प्रोग्रामिंग के बाद, VFD और मोटर के संचालन का सावधानीपूर्वक परीक्षण करें ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सब कुछ सही ढंग से काम कर रहा है।
महत्वपूर्ण विचार
* सुरक्षा: VFD और मोटर के साथ काम करते समय हमेशा सुरक्षा को प्राथमिकता दें। बिजली बंद करें और लॉकआउट/टैगआउट प्रक्रियाओं का पालन करें।
* ग्राउंडिंग: VFD और मोटर की उचित ग्राउंडिंग बहुत ज़रूरी है ताकि बिजली के झटके और उपकरण को नुकसान से बचाया जा सके।
* पर्यावरण: VFD को ऐसे वातावरण में स्थापित करें जो धूल, नमी और अत्यधिक तापमान से सुरक्षित हो।
* PLC इंटीग्रेशन: कई औद्योगिक अनुप्रयोगों में, VFD को PLC (प्रोग्रामेबल लॉजिक कंट्रोलर) से नियंत्रित किया जाता है। इसमें PLC से VFD को स्टार्ट/स्टॉप कमांड और एनालॉग सिग्नल (फ्रीक्वेंसी रेफरेंस के लिए) भेजने के लिए प्रोग्रामिंग शामिल होती है।
VFD प्रोग्रामिंग एक विशिष्ट अनुप्रयोग की आवश्यकताओं पर निर्भर करती है। सही प्रोग्रामिंग से आप ऊर्जा बचा सकते हैं, मोटर की लाइफ बढ़ा सकते हैं और अपनी प्रक्रिया को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं।
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