ट्रांसफार्मर (Transformer)

 ट्रांसफार्मर (Transformer) एक ऐसा विद्युत उपकरण है जो विद्युत ऊर्जा को एक सर्किट से दूसरे सर्किट में स्थानांतरित करता है, जबकि आवृत्ति (frequency) में कोई बदलाव नहीं होता है। यह विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (electromagnetic induction) के सिद्धांत पर कार्य करता है। इसका मुख्य कार्य वोल्टेज के स्तर को बढ़ाना (स्टेप-अप) या घटाना (स्टेप-डाउन) है। 

ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत (Working Principle of Transformer)

ट्रांसफार्मर अन्योन्य प्रेरण (mutual induction) के सिद्धांत पर काम करता है। इसमें दो मुख्य वाइंडिंग होती हैं:

 * प्राथमिक वाइंडिंग (Primary Winding): यह वह कॉइल होती है जिसमें इनपुट AC वोल्टेज लगाया जाता है।

 * द्वितीयक वाइंडिंग (Secondary Winding): यह वह कॉइल होती है जिससे आउटपुट AC वोल्टेज प्राप्त होता है।

जब प्राथमिक वाइंडिंग में AC वोल्टेज लगाया जाता है, तो उसमें एक परिवर्तनशील चुंबकीय प्रवाह (varying magnetic flux) उत्पन्न होता है। यह चुंबकीय प्रवाह एक लोहे के कोर (iron core) के माध्यम से द्वितीयक वाइंडिंग से भी जुड़ता है। फैराडे के विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के नियम के अनुसार, जब द्वितीयक वाइंडिंग से जुड़ा चुंबकीय प्रवाह बदलता है, तो उसमें भी एक विद्युत वाहक बल (electromotive force - EMF) या वोल्टेज प्रेरित होता है।

द्वितीयक वाइंडिंग में उत्पन्न वोल्टेज का मान प्राथमिक वाइंडिंग में लगाए गए वोल्टेज और दोनों वाइंडिंग के घुमावों की संख्या (number of turns) के अनुपात पर निर्भर करता है।

ट्रांसफार्मर के प्रकार (Types of Transformers)

ट्रांसफार्मर को कई आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है, लेकिन मुख्य प्रकार उनके कार्य के आधार पर इस प्रकार हैं:

1. स्टेप-अप ट्रांसफार्मर (Step-up Transformer)

यह वह ट्रांसफार्मर है जो इनपुट वोल्टेज को बढ़ाता है और आउटपुट में अधिक वोल्टेज प्रदान करता है। इसमें द्वितीयक वाइंडिंग में प्राथमिक वाइंडिंग की तुलना में अधिक घुमाव होते हैं।

 * उपयोग: इसका उपयोग बिजली उत्पादन स्टेशनों में किया जाता है, जहां उत्पन्न बिजली को लंबी दूरी तक प्रेषित करने के लिए वोल्टेज को बहुत अधिक बढ़ाया जाता है, ताकि बिजली के नुकसान को कम किया जा सके। 

2. स्टेप-डाउन ट्रांसफार्मर (Step-down Transformer)

यह वह ट्रांसफार्मर है जो इनपुट वोल्टेज को कम करता है और आउटपुट में कम वोल्टेज प्रदान करता है। इसमें द्वितीयक वाइंडिंग में प्राथमिक वाइंडिंग की तुलना में कम घुमाव होते हैं।

 * उपयोग: इसका उपयोग बिजली वितरण (power distribution) में किया जाता है, जैसे कि सब-स्टेशनों और घरों में, जहां उच्च वोल्टेज को उपयोग करने योग्य निम्न वोल्टेज में परिवर्तित किया जाता है। यह विभिन्न इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों (जैसे मोबाइल चार्जर, टीवी) में भी उपयोग होता है जिन्हें कम वोल्टेज की आवश्यकता होती है। 

इसके अलावा, ट्रांसफार्मर को अन्य आधारों पर भी वर्गीकृत किया जाता है, जैसे:

 * कोर के आधार पर:

   * कोर-टाइप ट्रांसफार्मर (Core-type Transformer): इसमें वाइंडिंग कोर के चारों ओर होती हैं।

   * शेल-टाइप ट्रांसफार्मर (Shell-type Transformer): इसमें कोर वाइंडिंग के चारों ओर होता है।

 * फेज़ की संख्या के आधार पर:

   * सिंगल फेज़ ट्रांसफार्मर

   * थ्री फेज़ ट्रांसफार्मर

 * शीतलन विधि के आधार पर:

   * सूखा प्रकार (Dry Type)

   * तेल में डूबा हुआ (Oil Immersed)

   * एयर कूल्ड (Air Cooled) आदि।

ट्रांसफार्मर आधुनिक विद्युत प्रणालियों का एक अभिन्न अंग हैं, जो बिजली के कुशल उत्पादन, संचरण और वितरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।


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